सब्जियों की पैदावार में भारत चीन के बाद दूसरे नंबर पर है. पिछले कुछ सालों के दौरान हमारे देश में सब्जियों के उत्पादन में काफी बढ़ोतरी हुई है. लेकिन आज भी हमारी ज्यादातर सब्जियों की कम उत्पादकता व कमजोर गुणवत्ता की असली वजह ज्यादातर किसानों द्वारा सब्जी उत्पादन में अभी भी पुराने तरीकों और तकनीकों का अपनाया जाना है. आगे आने वाले समय में सब्जियों का उत्पादन व विदेशों में उन की सप्लाई दोनों ही बढ़ सकते हैं. जहां हम जानीपहचानी काफी तरह की सब्जियां अपने देश में उगा रहे हैं, वहीं अभी भी कुछ ऐसी सब्जियां हैं, जो पैसे व पौष्टिकता के लिहाज से बहुत महत्त्वपूर्ण हैं. इस तरह की सब्जियों में ब्रोकली का नाम बहुत मशहूर है. इस की खेती पिछले कुछ सालों से धीरेधीरे बड़े शहरों के आसपास कुछ किसान करने लगे हैं. बड़े महानगरों में इस सब्जी की मांग भी अब बढ़ने लगी है. पांच सितारा होटलों व पर्यटक स्थानों पर इस सब्जी की मांग बहुत है और जो किसान इस की खेती कर के इस को सही बाजार में बेचते हैं, उन को इस की खेती से बहुत ज्यादा फायदा मिलता है.
ब्रोकली सब से पहले इटली में उगाई जाती थी. 2000 सालों पहले इस की उपज की बात कही जाती है. ब्रोकली की खेती पैसा कमाने के लिए बहुत फायदेमंद है. यह साधारण फूलगोभी से काफी महंगी बिकती है. साथ ही एक गोभी के काट लेने के बाद उसी धड़ में दूसरी गोभी दोबारा पैदा हो जाती है. हालांकि दूसरी गोभी का आकार पहले वाली से छोटा होता है. ब्रोकली की मांग देश के सभी बड़े शहरों में है व पढ़ेलिखे लोग इस में पाए जाने वाले गुणकारी तत्त्वों की वजह से इस की खरीदारी करते हैं. यह सब्जी किचन गार्डन के लिए बहुत अच्छी रहती है. सर्दी के मौसम की फसल होने से इसे छतों, बालकनी और क्यारियों में आसानी से उगाया जा सकता है.
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ब्रोकली खाने के फायदे
ब्रोकली खाने के कई फायदे होते हैं. यह गहरी हरी सब्जी, ब्रेसिका फैमिली की है, जिस में पत्तागोभी और गोभी भी शामिल होती है. ब्रोकली को पका कर या फिर कच्चा भी खाया जा सकता है, लेकिन अगर आप इसे उबाल कर खाएंगे, तो आप को ज्यादा फायदा होगा. इस हरी सब्जी में लोहा, प्रोटीन, कैल्शियम, कार्बोहाइड्रेट, क्रोमियम, विटामिन ए और सी पाया जाता है, जो सब्जी को पौष्टिक बनाता है. इस के अलावा इस में फाइटोकैमिकल और एंटीआक्सीडेंट भी होते हैं, जो बीमारी और इन्फेक्शन से लड़ने में सहायक होते हैं.
* शोधकर्ताओं के अनुसार ब्रोकली में बीटाकैरोटीन होता है, जो आंखों में मोतियाबिंद और मस्कुलर डीजेनरेशन होने से रोकता है.
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* यह माना जाता है कि ब्रोकली में यौगिक सल्फोरापेन होता है, जो यूवी रेडिएशन की वजह से होने वाले असर से त्वचा को बचाने और सूजन को कम करने में फायदेमंद होता है.
* ब्रोकली में कैल्शियम, फास्फोरस, मैग्नीशियम और जिंक होते हैं, जो हड्डियों को मजबूत बनाते हैं. इसलिए ब्रोकली बुजुर्गों और गर्भवती महिलाओं के लिए बहुत अच्छी मानी जाती है, क्योंकि इन में औस्टियोपोरोसिस होने का खतरा बहुत ज्यादा होता है.
* ब्रोकली शरीर को एनीमिया और एल्जाइमर से बचाती है, क्योंकि इस में बहुत ज्यादा आयरन और फोलेट पाया जाता है.
* ब्रोकली को लगातार खाने से गर्भवती महिलाओं को मदद मिलती है. यह फोलेट का एक अच्छा स्रोत है, जो भ्रूण में दिमाग के दोषों को रोकने में मदद करता है.
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जलवायु : ब्रोकली को ठंडे मौसम में उगाया जा सकता है. 15 से 24 डिगरी सेल्सियस तापमान में इस की खेती की जा सकती है. इस के लिए गरम जलवायु सही नहीं होती. ब्रोकली को उत्तर भारत के मैदानी भागों में जाड़े के मौसम में यानी सितंबर से फरवरी तक उगाया जा सकता है. जिस किसान को साधारण फूलगोभी की खेती का तजरबा है, वह ब्रोकली की खेती आसानी से कर सकता है.
मिट्टी : ब्रोकली की खेती के लिए किसी खास जमीन की जरूरत नहीं पड़ती, बल्कि यह सभी प्रकार की जमीनों में पैदा की जाती है. लेकिन दोमट या हलकी बलुई दोमट जैविक जमीनें इस के लिए सब से अच्छी मानी जाती हैं, जिन का पीएच मान 6.0-7.5 के बीच का हो.
खेत की तैयारी : ब्रोकली की फसल के लिए खेत की 2-3 बार मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई करें ताकि खरीफ की फसल के खरपतवार गलसड़ जाएं. जरूरत के हिसाब से जुताई कर के खेत को अच्छी तरह भुरभुरा
कर के तैयार करना चाहिए, जिस से खेत में ढेले न रहें.
नर्सरी की तैयारी : ब्रोकली के बीज भी आसानी से मिल जाते हैं. ये किसी भी अच्छे बीज भंडार से खरीदे जा सकते हैं. सितंबर से नवंबर के शुरू होने तक इस के पौधे तैयार किए जा सकते हैं. बीज बोने के करीब 4 से 5 हफ्ते में इस के पौधे खेत में रोपाई करने लायक हो जाते हैं. इस की नर्सरी ठीक फूलगोभी की नर्सरी की तरह तैयार की जाती है.
ब्रोकली की किस्में
ब्रोकली की सभी किस्में विदेशी हैं, जिन में से कुछ इस प्रकार हैं :
* ग्रीन हेड किस्म : इस किस्म के शीर्ष ग्रीन (हरे) रंग के होते हैं, जो ऊपर से जुड़े हुए होते हैं.
* इटैलियन ग्रीन : इस के शीर्ष भी हरे रंग के होते हैं, जो ऊपर से कुछ खुले हुए दिखाई देते हैं.
* डीपीजीवी 1 : यह किस्म विकसित की गई है. इस का रंग हलका हरा होता है, लेकिन नीचे से शीर्ष गहरे हरे रंग के होते हैं.
* डीपीपीबी 1 : इस किस्म के शीर्ष जामुनी होते हैं.
* पूसा ब्रोकली 1 : भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली ने हाल ही में पूसा ब्रोकली 1 किस्म की खेती के लिए सिफारिश की है. इस के बीज थोड़ी मात्रा में पूसा संस्थान क्षेत्रीय केंद्र, कटराइन कुल्लू घाटी, हिमाचल प्रदेश से प्राप्त किए जा सकते हैं.
कई बीज कंपनियां अब ब्रोकली के संकर बीज भी बेच रही हैं.
बीजों की मात्रा : 1 हेक्टेयर लायक पौध तैयार करने के लिए करीब 375 से 400 ग्राम बीजों की जरूरत होती है. 200 ग्राम बीज प्रति एकड़ और 40-50 ग्राम बीज प्रति बीघा क्षेत्र के लिए काफी होते हैं.
बोआई का समय : ब्रोकली के बीजों की बोआई नर्सरी में सितंबर से नवंबर तक जरूर करें, क्योंकि ज्यादा देरी से बोने पर गुणवत्ता वाले शीर्ष तैयार नहीं होते.
रोपाई : नर्सरी में जब पौधे फूलगोभी की तरह 8-10 सेंटीमीटर लंबे या 4 हफ्ते के हो जाएं, तो उन की तैयार खेत में कतार से कतार की दूरी 55-60 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 45 सेंटीमीटर रखते हुए रोपाई करनी चाहिए. रोपाई करते समय मिट्टी में सही नमी होनी चाहिए और रोपाई के एकदम बाद हलकी सिंचाई जरूर करें. पौधों की रोपाई दोपहर के बाद या शाम के वक्त करनी चाहिए.
खाद व उर्वरकों की मात्रा : अच्छी पैदावार लेने के लिए खाद व उर्वरकों की मात्रा मिट्टी परीक्षण के आधार पर देना सही रहता है. वैसे ब्रोकली के लिए गोबर की सड़ी खाद
20-30 टन, नाइट्रोजन, 80-100 किलोग्राम, फास्फोरस 45-50 किलोग्राम व पोटाश
70 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की जरूरत पड़ती है. गोबर की खाद, फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा को खेत की तैयारी के वक्त रोपाई से पहले मिट्टी में अच्छी तरह मिला देना चाहिए. नाइट्रोजन को 3 भागों में बांट कर रोपाई के 25, 45 और 60 दिनों बाद इस्तेमाल करना अच्छा माना जाता है. नाइट्रोजन को दूसरी बार लगाने के बाद, पौधों पर मिट्टी की परत चढ़ाना सही रहता है.
निराईगुड़ाई व सिंचाई : पहली सिंचाई रोपाई के एकदम बाद करें और अन्य सिंचाइयां मिट्टी, मौसम और पौधों की बढ़वार को ध्यान में रख कर करें. इस फसल में लगभग 10-15 दिनों के अंतर पर हलकी सिंचाई करनी चाहिए. पौधे रोपने के 15 दिनों बाद पहली गुड़ाई करें. जंगली घास होने पर निकाल दें. इस तरह से 2-3 बाद निराईगुड़ाई की जरूरत पड़ती है. इसी दौरान कोई पौधा मर जाए, तो उस की जगह नए पौधे की रोपाई कर देनी चाहिए. पौधों पर हलकी मिट्टी भी चढ़ा देनी चाहिए, जिस से वे गिरने न पाएं.
शीर्षों की कटाई : शीर्षों यानी फूलों को काटने या तोड़ने का भी एक समय होता है. हैड यानी फूलों की कलियां बड़ी होने या खुलने से पहले ही कच्चे नर्म फूलों या हेड को काटना चाहिए नहीं तो ब्रोकली की गुणवत्ता खत्म हो जाती है. इन तैयार शीर्षों को 12-15 सेंटीमीटर लंबे डंठलों के साथ काट लेना सही रहता है.
कीट व इलाज : फसल की शुरुआती अवस्था में गिडार आरा मक्खी, तंबाकू की सूंड़ी आदि कई कीटों का हमला होता है. इन की रोकथाम के लिए मैलाथियान 50 ईसी या मिथाइल पैराथियान 50 ईसी की 10-15 मिलीलीटर मात्रा 10 लीटर पानी में घोल कर जरूरत के मुताबिक 2-3 बार छिड़काव करें.
रोग व इलाज : ब्रोकली की फसल में काला सड़न (ब्लैक राट) व पत्ती धब्बा रोग ज्यादा लगते हैं.
काला सड़न : इस रोग में पत्तियों के किनारे वी आकार के मुरझाए हुए धब्बे दिखाई देते हैं. रोग के बढ़ने पर पत्तियों की शिराओं का रंग काला व भूरा होने लगता है. इस की रोकथाम के लिए पौध लगाने से पहले 3 फीसदी फार्मेलीन के घोल से क्यारी को उपचारित कर के काली पालीथीन से तुरंत ढक कर चारों ओर से दबा दें.
पत्ती धब्बा रोग : इस रोग की वजह से पत्तियों पर अनेक छोटेछोटे गहरे रंग के धब्बे बन जाते?हैं. इन धब्बों के बीच के भाग पर नीलापन लिए हुए फफूंदी पाई जाती है. इस की रोकथाम के लिए 2.5 किलोग्राम मैंकोजेब प्रति हेक्टेयर की दर से 600 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करें. ब्रोकली की बढि़या फसल लेने के लिए एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन को भी अपनाने की जरूरत है.
कटाई व उपज : फसल में जब हरे रंग की कलियों का मुख्य गुच्छा बन कर तैयार हो जाए तो उसे तेज चाकू या दरांती से काटना चाहिए. ध्यान रखें कि कटाई के समय गुच्छा खूब गुंथा हुआ व कसा हो और उस में कोई कली खिलने न पाए. ब्रोकली की अगर तैयार होने के बाद देर से कटाई की जाएगी तो वह ढीली हो कर बिखर जाएगी और उस की कली खिल कर पीला रंग दिखाने लगेगी. ऐसे समय में कटाई किए गए गुच्छे बाजार में बहुत कम दामों पर बिक सकेंगे.
ब्रोकली के हैड को काटने के बाद पौधों में नईनई शाखाएं निकल आती हैं. पौधे का पहला हैड लगभग 200-400 ग्राम का और अन्य छोटे हैड 100-150 ग्राम तक के होते हैं. इस प्रकार से 1 पौधे से औसतन 800-1000 ग्राम या 1 किलोग्राम तक ब्रोकली मिलती है. ब्रोकली की अच्छी फसल से प्रति हेक्टेयर करीब 160-180 क्विंटल उपज मिल जाती है.
ब्रोकली के लिए समस्या
ब्रोकली की सब से बड़ी समस्या है इस की बिक्री. ब्रोकली की ज्यादातर बिक्री शहरी क्षेत्रों में ही होती है. शिक्षित वर्ग ही इस का सब से ज्यादा खरीदार है. कई प्रकार के गुणकारी तत्त्वों के कारण ब्रोकली अन्य गोभी से महंगी होती है. जानकारी की कमी की वजह से तमाम लोग इस की खरीदारी करना सही नहीं समझते.
पूर्णिमा सिंह सिकरवार, डा. बालाजी विक्रम