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तो क्या पाकिस्तान में भी जासूसी कर रहा था चीन, टिकटॉक क्यों हुआ बैन ?

जी हां यहां मसला पाकिस्तान में चीनी ऐप टिकटॉक को बैन करने का है.वैसे तो पाकिस्तान चीन को अपना दोस्त बताता है लेकिन फिर भी चीनी ऐप को बैन करने का मसला कुछ समझ नहीं आया.अभी कुछ वक्त पहले ही भारत ने चीन से तनाव के कारण चीनी ऐप टिकटॉक सहित कई चायनीज समानों पर प्रतिबंध लगा दिया था. हालांकि एलएसी पर चीन के साथ जो तनाव चल रहे हैं उसको देखते हुए भारत ने ऐसा क्यों किया इस पर कोई सवाल नहीं खड़े होते लेकिन पाकिस्तान पर जरूर खड़े होते हैं.पाकिस्तान ने 9 अक्टूबर को टिकटॉक पर बैन लगा दिया.

मामला चाहे जो भी हो लेकिन पाकिस्तान ने बताया कि चीन की कंपनी BYTEDANCE के वीडियो शेयरिंग ऐप पर अश्लीलता से भरे वीडियो वायरल हो रहे थे जिसके चलते पाकिस्तान सरकार ने उसको ब्लॉक किया.वहां के एक अधिकारी बताया कि बार-बार अश्लील कॉन्टेंट को लेकर पाकिस्तान ने टिकटॉक को चेतावनी भी दी थी और ये चेतावनी जुलाई माह में ही दे दी गई थी लेकिन इसके बावजूद कोई सुधार नहीं दिखा और अश्लील कॉंन्टेंट का भरमार आता गया और फिर क्या था पाकिस्तान सरकार ने इसे बैन करने का फैसला लिया. हालांकि पाकिस्तान ने ये भी कहा है कि अगर टिकटॉक अपने ऐप में सुधार करेगा, सुरक्षा का ध्यान रखेगा तो PTA यानी की पाकिस्तान टेलिकम्यूनिकेशन अथॉरिटी अपने फैसले पर एक और बार विचार कर सकती है और टिकटॉक से बैन हटा सकती है.

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इस मुद्दे को लेकर पाकिस्तानी सूचना मंत्री शिबली फराज और प्रधानमंत्री इमरान खान के बीच कई बार बात भी हुई थी और इस ऐप के जरिए लोगों की सिक्यॉरिटी पर जो खतरा मंडरा रहा था उसको लेकर काफी चिंता भी जताई थी इस बात की जानकारी खुद सूचना मंत्री शिबली फराज ने दी. शिबली ने ये भी बताया कि इमरान को अपनी पाकिस्तानी संस्कृति की फिक्र है.

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वो उसको मजबूत करना चाहते हैं और अपनी संस्कृति को बचाने के लिए वो कुछ भी कर सकते हैं.अब पाकिस्तान की संस्कृति क्या है कितना पुरानी है ये कह तो नहीं सकते हैं लेकिन पाकिस्तान का अचानक ये फैसला लेना सवाल खड़ा करता है. आपको बता दूं कि पाकिस्तान की कंपनी पीटीए ने इससे पहले चीन के लाइव स्ट्रीमिंग ऐप बीगो और पबजी गेम को भी ब्लॉक कर दिया था और जब भारत में टिकटॉक समेत 59 ऐप बैन किए गए थे तो पाकिस्तान में इस तरह की मांग उठने लगी थी.पाकिस्तान के ऐसे कई संगठन हैं जिन्होंने पीटीए को लेटर लिख कर इन ऐप्स पर बैन की मांग की थी.पीटीए ने खुद बताया कि उसके पास इस तरह की कई शिकायतें आई थीं.वैसे यहां सवाल ये भी खड़ा होता है कि क्या पाकिस्तान में भी जासूसी को लेकर इमरान को चिंता थी या सिर्फ संस्कृति की बात थी?

जनता का दर्द नहीं सुनना चाहती सरकार

‘निंदक नियरे राखिए आंगन कुटी छवाय‘ वाली कहावत बताती है कि अपनी निंदा करने वाले को भी पूरा अधिकार देना चाहिए. आज के समय में सरकार निंदा करने वाले या अपना दर्द सुनाने वाले को अपने से कुछ ज्यादा ही दूर रखना चाहती है, जिस की वजह से धरना, प्रदर्शन और अपनी बात सुनाने की आड़ में अराजकता भी होने लगी है. जनता का दर्द सीधे सुनने के लिए कुरसी पर बैठे नेताओं को प्रयास करने चाहिए तभी देश में असल लोकतंत्र स्थापित हो सकेगा.

दर्द को सुनना भी दर्द को दूर करने की एक प्रक्रिया हर शासनकाल में रही है. रामायण काल में भी ‘कोपभवन‘ होता था. कोपभवन में जाने का यह मतलब होता था कि व्यक्ति को दर्द है, वह पीड़ित है और न्याय चाहता है.

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कोपभवन में आए व्यक्ति की बात सुनना और उसे न्याय देना राजा का धर्म होता था. कैकेयी और राजा दशरथ का प्रसंग सबको याद है. आजाद देश में भी कोपभवन की जरूरत पर बल दिया गया था.

मुगल बादशाह जहांगीर ने अपने महल के बाहर एक घंटा लगवाया था. जहांगीर का आदेश था कि इस घंटे को बजाने वाले का दर्द वह खुद अगले दिन दरबार में सुनेंगे.

जब पीड़ित की बात सीधे राजा तक पहुंचने लगे, तब नीचे काम करने वाले लोग डरने लगते हैं. जब राजा जनता का दर्द सुनने से परहेज करने लगता है, तब शासन करने वाले लोग बेफिक्र हो जाते हैं. उन को लगता है कि अब तो राजा वही सुने जब उन के कर्मचारी सुनाएंगे.

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आजाद देश में जनता का दर्द सुनने के लिए ही हर शहर में धरना स्थल बनाए गए थे. धरना स्थलों पर बहुत सारे लोग अपनी पीड़ा बयान करने आते थे.

सरकार के अफसर ऐसे लोगों से मिल कर उन की शिकायत सरकार तक पहुंचाने का काम करते थे. कई बार विरोधी नेता भी धरना स्थल पर बैठ कर अपनी बात कहते थे. शांतिपूर्वक अपनी बात कहने की धरना स्थल एक व्यवस्था थी. धीरेधीरे सरकारों ने इस व्यवस्था को खत्म करने का काम शुरू किया. इस के बाद नाराज लोग सड़कों पर उतर कर अपनी बात कहने लगे. इस से अराजकता बढ़ने लगी. सरकार को पुलिस का प्रयोग कर के ऐसे विरोध को दबाने का अधिकार मिलने लगा. धरना स्थल को सरकार की नजर से दूर कर दिया गया. जहां उस के कानों तक जनता का दर्द नहीं पहुंचता. इस से साफ है कि सरकार जनता का दर्द नहीं सुनना चाहती.

14 साल बाद मिला न्याय

मथुरा की रहने वाली सरकारी स्कूल में प्रिंसिपल कटोरी देवी को परेशान करने के लिए प्रशासन ने तबादले को हथियार की तरह से प्रयोग किया. हर साल उस का तबादला कर दिया जाता था. कुछ ही साल की नौकरी के दौरान 32 बार उस का तबादला किया गया.

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कटोरी देवी का कहना था कि वह रिश्वत नहीं देती, जिस की वजह से उस को परेशान किया जाता है.

कटोरी देवी को जब कोई रास्ता नहीं समझ आया, तो 1982 में वह नौकरी से बिना छुट्टी लिए विभाग की शिकायत करने सीधे राजधानी लखनऊ चली आई. शिक्षा विभाग में उस की बात सुनी नहीं गई. वह सचिवालय भी गई जो विधानसभा भवन के अंदर होता था. वहां भी उसे न्याय नहीं मिला. विधानसभा भवन से जब बाहर कटोरी देवी आई तो गेट नंबर 2 के सामने उसे न्याय के लिए धरना देते लोग दिखे. कटोरी देवी भी सरकार और सरकारी विभागों से परेशान हो चुकी थी. उसे लगा कि यही आखिरी रास्ता है.

कटोरी देवी के पास सर्विस की कुछ फाइलें थीं. इस के अलावा झोले में पहनने के लिए 2 जोडी कपडे. कटोरी देवी धरना स्थल पर पहले बोरी बिछा कर बैठी, बाद में कागज, प्लास्टिक और बांस के कुछ टुकडों को जोड़ कर अपने रहने के लिए उस ने आसरा बना लिया. इस के बाद सालोंसाल यही कटोरी देवी का ठिकाना बन गया था. कई बार पुलिस ने उस को यहां से भगाया. बैठने की जगह उखाड़ दी. उस को जेल भेजा, पर हर अत्याचार सह कर भी कटोरी देवी अपने इरादे पर टिकी रही. जब भी कोई विधानसभा का सत्र चलता, तो यह जगह और गुलजार हो जाती थी. कटोरी देवी किसी विधायक और नेता से अपनी बात कहती. कई बार विधानसभा सदन में उस की आवाज उठी भी. कई विधायक और नेता पैसेरुपयों से भी कटोरी देवी की मदद कर देते थे.

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शायद ही कोई अखबार रहा हो, जिस ने कटोरी देवी की कहानी न छापी हो. इस के बाद भी सरकार ने कटोरी देवी की सुध नहीं ली.

14 साल के बाद उत्तर प्रदेश के राज्यपाल मोतीलाल बोरा ने कटोरी देवी के दर्द को समझा और अपनी पहल पर उस को न्याय दिलाया. 1996 में कटोरी देवी को पेंशन देने का आदेश हुआ.

कटोरी देवी का संघर्ष बताता है कि सरकार काम तो पहले भी नहीं करती थी, पर दर्द को सुन लेती थी. अब सरकार ने न केवल जनता के दर्द को सुनना खत्म कर दिया है, बल्कि जहां जनता अपना दर्द सुनाती थी, उसे ही खत्म कर दिया है.

उत्तर प्रदेश की विधानसभा के सामने धरना स्थल बना था. यहां से राज्यपाल, मुख्यमंत्री, नेता, अफसर, विधायक सभी गुजरते थे, जिस से दर्द सुनाने वाले को पता चलता था कि उन की बात सरकार सुन रही है.

सरकार से दूर होता जनता का दर्द

धीरेधीरे सरकार ने ऐसे धरना स्थल को ही खत्म कर दिया. अखिलेश सरकार ने विधानसभा भवन के सामने धरना स्थल को उजाड़ कर शानदार ‘लोकभवन’ बनवा दिया. यह ऐसा ‘लोकभवन‘, जिस में लोक कहीं नहीं है, केवल नेता और अफसर ऐश करते हैं. विधानसभा भवन के पास से धरना स्थल को हटा कर गोमती नदी के किनारे उस को एक जगह दी गई, जो विधानसभा से करीब 2 किलोमीटर दूर थी. बीएड बेरोजगारों ने एक बार धरना देते समय विरोध प्रदर्शन के लिए गोमती नदी में पानी में घुस कर विरोध प्रगट किया. इस के बाद सुरक्षा व्यवस्था का हवाला दे कर धरना स्थल को विधानसभा से 7 किलोमीटर दूर रमाबाई पार्क में भेज दिया गया. अब नेता, अफसर, मंत्रियों से दूर लोग धरना देते जरूर हैं, पर उन की आवाज सरकार तक नहीं पहुंचती. अगर ‘धरना स्थल‘ विधानसभा के सामने नहीं होता और नेता, विधायक कटोरी देवी की बात नहीं सुनते, तो क्या उस को इंसाफ कभी मिलता?

शहर के बीच विधानसभा के पास धरना स्थल होने से अखबारों में उन की खबर और फोटो छप जाती थी. शहर से दूर होने पर अखबार वाले भी वहां नहीं जाते. ऐसे में जनता का दर्द सरकार तक नहीं पहुंचता. जब कोई राजनीतिक दल सड़कों पर धरना प्रदर्शन करते हैं, तो पुलिस लाठियों का प्रयोग कर के उन की आवाज को दबा देती है. विरोध का स्वर और जनता का दर्द दोनों ही सरकार ने सुनना बंद कर दिया है. धरना स्थल खत्म होने से अपनी बात को कहने की जगह खत्म हो गई है. धरना स्थल वह जगह होती थी, जहां पर कोई भी शांतिपूर्वक रह कर अपनी बात कह सकता था. जिला प्रशासन के लोग वहां नियमित जाते थे. धरना देने वालों से उन के मामलों की जानकारी ले कर सरकार तक पहुंचाते थे. धरना स्थल लोकतंत्र की व्यवस्था का एक अंग होते थे. इन को खत्म करने से सड़कों पर गुस्सा उतरने लगा.

सड़क जाम क्यों करते हैं लोग?

दिल्ली के शाहीन बाग पर अदालत ने टिप्पणी कर दी. यहां यह बात सोचने की है कि सड़क जाम लोग क्यों करते हैं? जब सरकार के द्वारा उन की बात सुनी नहीं जाती, उन को अपना विरोध दर्ज कराने के लिए कोई सुरक्षित जगह नहीं मिलती, तब ऐसे हालात पैदा होते हैं. देश के हर बड़े शहर खासकर राजधानियों में पहले धरना स्थल होते थे, जो बहुत प्रमुख जगह पर होते थे. अब धरना स्थलों को प्रमुख जगहों से हटा कर शहर से दूरदराज की जगहों पर बना दिया गया. दिल्ली में जंतर मंतर और राजघाट जैसी जगह हैं, पर वहां भी धरना देने की इजाजत नहीं मिलती है. ऐसे में शाहीन बाग जैसी जगहें बनने लगती हैं. सरकार ने विरोध प्रदर्शन और अपनी बात कहने के लिए धरना देने वाली जगहों को खत्म कर दिया है.

राजधानी लखनऊ में धरना देने की जगह अब शहर से काफी दूर ईको गार्डन और रमाबाई पार्क में कर दी है, जिस से इस का प्रभाव अब खत्म हो गया है, क्योंकि जनता की आवाज सरकार तक सुनाई नहीं देती है. विरोध प्रदर्शन के लिए योगी सरकार के पहले तक लोग हजरतगंज चौराहे पर विधानभवन से कुछ दूर महात्मा गांधी की प्रतिमा के पास एकजुट हो कर कभी कैंडिल जला लेते थे तो कभी दिनभर का धरना या भूख हड़ताल कर लेते थे. योगी सरकार ने अब गांधी प्रतिमा के सामने विरोध प्रदर्शन को खत्म कर दिया है.

मुगल बादशाह जहांगीर ने अपने महल के बाहर पीड़ित को घंटा बजाने का अधिकार दिया था. आजाद भारत के राजाओं ने जनता को अपने महल से पूरी तरह से दूर करने का प्रबंध कर लिया है.

मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री आवास के आसपास तो किसी की हिम्मत नहीं होती कि वह अपनी बात कहने का साहस कर सके. उन्नाव रेप कांड में पीड़िता की बात को तभी सुना गया, जब उस ने मुख्यमंत्री आवास के सामने खुद पर मिट्टी का तेल डाल कर आत्मदाह करने का प्रयास किया था. ऐसे में यह जरूरी हो गया है कि सरकार जनता के दर्द को सुनने के लिए कोई व्यस्था करे, जिस से धरना प्रदर्शन की आड़ में सड़क, रेलवे लाइन और प्रमुख लोगों के घरों का घेराव न हो सके.

रिश्तों की रस्में-अनिका किसकी सेवा करनी चाह रही थी?

नंदा ने सोचा था कि अपनी भाभी सुमीता को उस की बहू अनिता के बारे में जब वे कुछ बातें, जिन से वे अनजान हैं, बताएंगी तो भाभी के होश उड़ जाएंगे. लेकिन हुआ कुछ और ही…   नंदा आंगन में स्टूल डाल कर बैठ गई, ‘‘लाओ परजाई, साग के पत्ते दे दो, काट देती हूं. शाम के लिए आप की मदद हो जाएगी.’’‘‘अभी ससुराल से आई और मायके में भी लग पड़ी काम करने.

रहने दे, मैं कर लूंगी,’’ सुमीता ने कहा. पर वाक्य समाप्त होने से पहले ही एक पुट और लग गया संग में, ‘‘क्यों, आप अकेले क्यों करोगे काम? मुझे किस दिन मौका मिलेगा आप की सेवा करने का?’’ यह स्वर अनिका का था. हंसती हुई अनिका, सुमीता की बांह थामे उसे बिठाती हुई आगे कहने लगी, ‘‘आप बैठ कर साग के पत्ते साफ करो मम्मा, बाकी सब भागदौड़ का काम मु झ पर छोड़ दो.’’आज अनिका की पहली लोहड़ी थी. कुछ महीनों पहले ब्याह कर आई अनिका घर में ऐसे घुलमिल गई थी कि  जब कोई सुमीता से पूछता कि कितना समय हुआ है बहू को घर में आए, तो वह सोच में पड़ जाती. लगता था, जैसे हमेशा से ही अनिका इस घर में समाई हुई थी.‘‘तुम्हें यहां मोहाली का क्या पता बेटे, आज सुबह ही तो पहुंची हो दिल्ली से, कल शाम तक तो औफिस में बिजी थे तुम दोनों. उसे देखो, अमन कैसे सोया पड़ा है अब तक,’’ अपने बेटे की ओर इशारा करते हुए सुमीता हंस पड़ी.‘‘मायके में तो सभी को नींद आती है,

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’’ नंदा ने भतीजे की टांगखिंचाई की.अमन का जौब काफी डिमांडिंग था. शादी के बाद वह सिर्फ त्योहारों पर ही घर आ पाया था. मगर अनिका कई बार अकेले ही वीकैंड पर बस पकड़ कर आ जाती. सुमीता मन ही मन गद्गद हो उठती. डेढ़दो दिनों के लिए बहू के आ जाने से ही उस का घरआंगन महक उठता. लगता, मानो अनिका के दिल्ली लौट जाने के बाद भी उस की गंध आंगन में मंडराती रहती. लेकिन साथ ही सुमीता के दिल को आशंका के बादल घेर लेते कि कहीं अमन के मन में शादी के तुरंत बाद अकेले वीकैंड बिताने पर यह विचार न आ जाए कि घरवाले कैसे सैल्फिश हैं, अपना सुख देखते हुए बेटेबहू को एकसाथ रहने नहीं देते. उस के सम झाने पर अनिका, उलटा, उसे ही सम झाने लगती, ‘‘मम्मा, मैं, हम दोनों की खुशी और इच्छा से यहां आती हूं. इस घर में आ कर मु झे बहुत अच्छा लगता है. आप नाहक ही परेशान हो जाती हैं.’’सासबहू के नेहबंधन के जितने श्रेय की हकदार अनिका है, उस से अधिक सुमीता. हर मां अपने बेटे के लिए लड़की ढूंढ़ते समय अपने मन में अनेकानेक सपने बुनती है. नई बहू से हर परिवार की कितनी ही अपेक्षाएं होती हैं. उसे नए रिश्तों में ढलना होता है. परिवार की परंपरा को केवल जानना ही नहीं,

अपनाना भी होता है. हर रिश्ता उसे अपनी कसौटी पर कसने को तत्पर बैठा होता है. ऐसे में नए परिवार में आई एक लड़की को यह अनुभूति देना कि यह घर उस का अपना है, उस के आसपास सहजता से लबरेज भावना का घेरा खींचना कोई सरल कार्य नहीं. सुमीता ने कभी अनिका को अपने  परिवेश के अनुकूल ढलने को  बाध्य नहीं किया. वह तो अनिका स्वयं ही ससुराल में हर वह कार्य करती, हर वह रस्म निभाती जिस की आशा एक बहू से की जा सकती है. जब भी आती, अपनी सास के लिए कुछ न कुछ उपहार लाती. सुमीता भी उस को लाड़ करने का कोई मौका न चूकती. सुमीता के पति अशोक चुहल करते, ‘‘बहू की जगह बेटी घर ले आई हो, और वह भी ब्राइब देने में माहिर.’’आज पहली लोहड़ी के मौके पर कई रिश्तेदार आमंत्रित थे. आसपड़ोस के सभी जानकार भी शाम को दावत में आने वाले थे. आंगन के चारों ओर लालहरा टैंट लग रहा था. जनवरी की ठंड में उधड़ी छत को ढकने हेतु लाइटों की  झालर बनाई गई थी. आंगन के बीचोंबीच सूखी लकडि़यां रखवा दी गई थीं.

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आज के दिन एक ओर सुमीता, अनिका के लिए सोने का हार खरीद कर लाई थी जो उसे शाम को तैयार होते समय उपहारस्वरूप देने वाली थी, तो दूसरी ओर अनिका अपनी सास के साथसाथ सभी रिश्तेदारों के लिए तोहफे लाई थी.शाम की तैयारी में अनिका अपनी कलाइयों में सजे चूड़ों से मेल खाती  गहरे लाल रंग की नई सलवारकमीज व अमृतसरी फुलकारी काम की रंगबिरंगी चुन्नी पहन कर आई तो सुमीता ने स्नेहभरा दृष्टिपात करते हुए उस के गले में सोने का हार पहना दिया. प्यार से अनिका, सुमीता के गले लग गई. फिर उस से पूछते हुए अनिका रिश्तेदारों के आने के साथ, पैरीपौना करते हुए उन्हें उपहार थमाने लगी. सभी बेहद खुश थे. हर तरफ सुमीता को इतनी अच्छी बहू मिलने की चर्चा हो रही थी.शाम का कार्यक्रम आरंभ हुआ, आंगन के बीच आग जलाई गई, सभी लोगों  ने उस में रेवड़ी, मूंगफली, गेहूं की बालियां आदि डाल कर लोहड़ी मनाना  शुरू किया. नियत समय पर ढोली भी  आ गया.‘‘आजकल की तरह प्लास्टिक वाला ढोल तो नहीं लाया न? चमड़े का ढोल है न तेरा?’’ अशोक ने ढोली से पूछा, ‘‘भई, जो बात चमड़े की लय और थाप में आती है, वह प्लास्टिक में कहां.’’ फिर तो ढोली ने सब से चहेती धुन ‘चाल’ बजानी शुरू की और सभी थिरकने लगे.

शायद ही किसी के पैर रुक पाए थे. नाच, गाना, भंगड़ा, टप्पे होते रहे. कुछ देर पश्चात एक ओर लगा कोल्डडिं्रक्स का काउंटर भी खुल गया. घर और पड़ोस के मर्द वहां जा कर अपने लिए कोल्डडिं्रक ले कर आने लगे. घर की स्त्रियां सब को खाना परोसने में व्यस्त हो गईं. अनिका आगे बढ़चढ़ कर सब को हाथ से घुटा गरमागरम सरसों का साग और मिस्सी रोटियां परोसने लगी. किसी थाली में घी का चमचा उड़ेलती, तो कहीं गुड़ की डली रखती. अनिका देररात तक परोसतीबटोरती  झूठी थालियां उठाती रही. मध्यरात्रि के बाद अधिकतर मेहमान अपनेअपने घर लौट चुके थे. दूसरे शहरों से आए कुछ मेहमान घर पर रुक गए थे.घर की छत पर अमन ने गद्दों और सफेद चादरों का इंतजाम करवा दिया था. चांदनी की शीतलता में नहाए सारे बिस्तरे ठंडक का एहसास दे रहे थे. मेहमानों के साथ आए बच्चे बिस्तरों पर लोटपोट कर खेलने लगे. ठंडेठंडे गद्दों पर लुढ़कने का आनंद लेते बच्चों को सरकाते हुए, बड़े भी लेटने की तैयारी करने लगे. ‘‘परजाई, मैं आप के पास सोऊंगी,’’

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नंदा, सुमीता के पास आ लेटी.‘‘हां, आ जा. पर बाकी बातें कल करेंगे. अब सोऊंगी मैं, बहुत थक गई आज. तू तो कुछ दिन रुक कर जाएगी न?’’ सुमीता थकान के कारण ऊंघने लगी थी, ‘‘कल अमन और अनिका भी चले जाएंगे,’’ कहतेकहते सुमीता सो गई.अगले दिन, बाकी बचे मेहमान भी विदा हो गए. दिन की बस से अमन और अनिका भी चले गए, ‘‘मम्मा, कल से औफिस है न, शाम तक घर पहुंच जाएंगे तो कल की तैयारी करना आसान रहेगा.’’ शाम को हाथ में 3 कप लिए नंदा छत पर आई तो अशोक हंसने लगे, ‘‘तु झे अब भी शाम की चाय का टाइम याद है.’’‘‘लड़कियां भले ही मायके से विदा होती हैं वीर जी, पर मायका कभी उन के दिल से विदा नहीं होता,’’

नंदा की इस भावनात्मक टिप्पणी पर सुमीता ने उठ कर उसे गले लगा लिया. चाय पी कर अशोक वौक पर चले गए. नंदा को कुछ चुप सा देख सुमीता ने पूछा, ‘‘कोई बात सता रही है, तो बोल क्यों नहीं देती? कल से देख रही हूं, कुछ अनमनी सी है.’’‘‘आप का दिल टूट जाएगा, परजाई, पर बिना कहे जा भी तो नहीं पाऊंगी. आप को तो पता है कि विम्मी की नौकरी लग गई है. इसी कारण वह इस फंक्शन में भी नहीं आ सकी और जवान बेटी को घर पर अकेला कैसे छोड़ें, इस वजह से उस के डैडी भी नहीं आ पाए,’’ नंदा ने अपनी बेटी विम्मी के न आने का कारण बताया तो सुमीता बोलीं, ‘‘मैं सम झती हूं, नंदा, मैं ने बिलकुल बुरा नहीं माना. कितनी बार अमन नहीं आ पाता है.

वह तो शुक्र है कि अनिका हमारा इतना खयाल रखती है कि अकसर हमारे पास आ जाया करती है.’’‘‘मेरी पूरी बात सुन लो,’’ नंदा ने सुमीता की बात बीच में ही काट दी, ‘‘विम्मी को नौकरी लगने पर ट्रेनिंग के लिए दिल्ली भेजा गया था. कंपनी के गैस्टहाउस में रहना था, औफिस की बस लाती व ले जाती. औफिस के पास ही के एक आईटी पार्क में था. वहां और भी कई दफ्तर थे, जिन में अनिका का भी दफ्तर है. पहली शाम गैस्टहाउस लौटते समय विम्मी ने देखा कि आप की बहू अपने अन्य सहकर्मियों के साथ सिगरेट का धुआं उड़ा रही है. उसे तो अपनी आंखों पर विश्वास ही नहीं हुआ. परंतु अगली हर शाम उस ने यही दृश्य देखा. यहां तक कि उस की पोशाकें भी अजीबोगरीब होतीं,

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कभी शौर्ट्स, कभी स्लिट स्कर्ट, तो कभी फैशनेबल टौप्स पहनती.‘‘अब बताओ परजाई, जो लड़की यहां हम सब के बीच घर के सारे तौरतरीके मानती है, जैसे कपड़े हमें पसंद है, वैसे पहनती है, हर रीतिरिवाज निभाने में कोई संकोच नहीं करती है, बड़ों का पूरा सम्मान करती है, वह असली जिंदगी में इस से बिलकुल उलट है. माफ करना परजाई, आप की बहू को रस्म निभाना तो आता है पर रिश्ते निभाना नहीं. आप की बहू आप को बेवकूफ बना रही है.’’ अब तक धुंधलका होने लगा था. शाम के गहराने के साथ मच्छर भी सिर पर मंडराने लगे थे. सुमीता ने तीनों कप उठाए और घर के भीतर चल दी. नंदा भी चुपचाप उस के पीछे हो ली. संवाद के धागे का कोना अब भी उन के बीच लटका हुआ  झूल रहा था. लेकिन उस का आखिरी छोर सुमीता को जनवरी की ठंड में भी ऐसे आहत कर रहा था मानो वह जेठ की भरी दोपहरी में नंगेपैर पत्थर से बने आंगन में दौड़ रही हो. नंदा की इन बातों से दोनों के बीच धुआं फैल गया. लेकिन इस धुएं को छांटना भी आवश्यक था. रात का खाना बनाते समय सुमीता ने फिर बात आरंभ की.‘‘याद है नंदा, पिछले वर्ष तुम्हारे वीरजी और मैं हौलिडे मनाने यूरोप गए थे.

वह मेरे लिए एक यादगार भ्रमण रहा. इसलिए नहीं कि मैं ने यूरोप घूमा, बल्कि इसलिए कि इस ट्रिप ने मु झे जीवन जीने का नया नजरिया सिखाया. हमारे साथ कुछ परिपक्व तो कुछ नवविवाहिता जोड़े भी थे जो अपने हनीमून पर आए थे. पूरा गु्रप एकसाथ, एक ही मर्सिडीज बस में घूमता. हम सब साथ खातेपीते, फोटो खींचते, वहां बस में दूसरे जोड़ों के आगेपीछे बैठे हुए मैं ने एक नई बात नोट की कि आजकल के दंपती हमारे जमाने से काफी विलग हैं. आजकल पतिपत्नी के बीच हमारे जमाने जैसा सम्मान का रिश्ता नहीं, बल्कि बराबरी का नाता है. हमारे जमाने में पति परमेश्वर थे जबकि आजकल के पति पार्टनर हैं. आज की पत्नी पूरे हक से पति की पीठ पर धौल भी जमा सकती है और लाड़ में आ कर उस के गाल पर चपत भी लगा सकती है. इस के लिए उसे एकांत की खोज नहीं होती. वह सारे समाज के सामने भी अपने रिश्ते में उतनी ही उन्मुक्त है जितनी अकेले में.‘‘ झूठ नहीं कहूंगी, नंदा, पहलेपहल तो मु झे काफी अजीब लगा यह व्यवहार. अपनी मानसिकता पर इतना गहरा प्रहार मु झे डगमगा गया. पर फिर जब उन लड़कियों से बातचीत होने लगी तो मु झे एहसास हुआ कि आजकल के बच्चों का खुलापन अच्छा ही है. जो अंदर है, वही भावना बाहर भी है. कहते तो हम भी हैं कि पतिपत्नी गृहस्थी के पहिए हैं, बराबरी के स्तर पर खड़े, पर फिर भी मन के भीतर पति को अपने से श्रेष्ठ मान ही बैठते हैं.

परंतु आजकल की लड़कियां कार्यदक्षता में लड़कों से बीस ही हैं, उन्नीस नहीं. तो फिर उन्हें उन का जीवन उन के हिसाब से जीने पर पाबंदी क्यों? जब हम अपने बेटों को नहीं रोकते तो बेटीबहुओं पर लगाम क्यों कसें.‘‘यूरोप जा कर मैं ने जाना कि सब को अपना जीवन अपनी खुशी से जीने का अधिकार मिलना चाहिए. किसी को भी दूसरे पर अंकुश लगाने का अधिकार ठीक नहीं. पारिवारिक सान्निध्य से ऊपर क्या है भला. यदि परिवार की खुशी के लिए अनिका हमारे हिसाब से ढल कर रहती है तो हमें उस का आभारी होना चाहिए. फिर अपनी निजी जिंदगी में वह जो करती है, वह उस के और अमन के बीच की बात है. हमारे परिवार की रस्में निभाने के पीछे उस का अभिप्राय रिश्ते निभाने का ही है, वरना क्यों वह वे सब काम करती है जिन में शायद उसे विश्वास भी नहीं. ‘‘जो बातें तुम ने मु झे आज बताईं, वे मैं पहले से ही जानती हूं. अनिका ने मु झे अपने फेसबुक पर फ्रैंडलिस्ट में रखा हुआ है. और आजकल की पीढ़ी चोरीछिपे कुछ नहीं करती. जो करती है, डंके की चोट पर करती है. मैं ने उस की कई फोटो देखीं जिन में उस के हाथ में सिगरेट थी तो कभी बीयर. अमन भी साथ था. मैं यह नहीं कहती कि ये आदतें अच्छी हैं, पर यदि अमन को छूट है तो अनिका को भी. हां, परिवारवृद्धि के बारे में विचार करने से पहले वे दोनों इन आदतों से तौबा कर लेंगे, इस विषय में मेरी उन से बात हो चुकी है. और दोनों ने सहर्ष सहमति भी दे दी है. ये उन के व्यसन नहीं, शायद पीयर प्रैशर में आ कर या सोशल सर्कल में जुड़ने के कारण शुरू की गई आदतें हैं.’’सुमीता अपने बच्चों की स्थिति सुगमतापूर्वक कहे जा रही थी और नंदा सोच रही थी कि केवल आज की पीढ़ी ही नहीं, बदल तो पुरानी पीढ़ी भी रही है वह भी सहजता से.

Crime Story: यूपी में रामराज नहीं अपराध राज

सौजन्या- मनोहर कहानियां

अपराध और अपराध की गिरफ्त में जकड़ता उत्तर प्रदेश. यह प्रदेश पहले से अधिक खतरनाक और हिंसक हो चला है. भगवा कपड़े पहना संत, नेता बन सत्ता में आया और अपराधमुक्त राज्य बनाने का दावा किया, लेकिन यह खोखला दावा आसमानी हो गया है और जमीन अपराध से लाल.   आगरा के एत्मादौला थाना क्षेत्र में रामवीर 30 साल से रह रहे थे. घर के बाहर के कमरे में उन की परचून की दुकान थी. वहीं पर 31 अगस्त को रामवीर, उस की पत्नी मीरा और बेटा बबलू की हत्या कर दी गई. बबलू और मीरा के हाथ बंधे थे. रामवीर के गले में फंदा पड़ा था. हत्या करने के बाद शव को जलाने और सिलैंडर के विस्फोट को दिखाने का साहस भी बदमाशों ने किया. तिहरे हत्याकांड ने प्रेम की नगरी आगरा को दहला दिया.    स 1 सितंबर को लखनऊ के मौल इलाके में पड़ने वाले मवई खुर्द गांव में रहने वाले किसान की 5 साल की बेटी को रैदास नामक युवक टौफी खिलाने के बहाने ले कर गया.

रात 11 बजे के करीब घर वालों को लड़की की लाश खेत में मिली. लड़की के शरीर पर कपड़े नहीं थे. लड़की की गला दबा कर हत्या कर दी गई थी. लड़की के घर वालों का आरोप था कि बच्ची के साथ रेप किए जाने के बाद उस की हत्या की गई थी.   स 2 सितंबर को बाराबंकी जिले के सतरिख थाने में लाठियों से पीटपीट कर इमरान नामक युवक की हत्या कर दी गई. इमरान के भाई गुड्डू की तबीयत ठीक नहीं रहती थी. असगर ने उस को सलाह दी कि अपने भाई को तांत्रिक को दिखा ले. इस के लिए उस ने इमरान के घर वालों से 15 हजार रुपए भी ले लिए. जब तांत्रिक से इलाज नहीं करा पाया और इमरान ने अपने पैसे वापस मांगे तो उस की लाठियों से पीट कर हत्या कर दी गई.    स 3 सितंबर को राजधानी लखनऊ के पीजीआई थाने के इलाके में दुर्गेश यादव किराए पर रहता था. सुबह साढ़े 7 बजे 2 कारों से एक युवती और 7-8 लोग आए. दुर्गेश बाथरूम में था. बाथरूम से बाहर निकलते ही युवती और उस के साथ आए लोगों ने उस की पिटाई करनी शुरू कर दी. लगभग 40 मिनट सभी मिल कर उस को पीटते रहे.

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अंत में हमलावरों ने दुर्गेश के पेट में गोली मार दी. राजधानी में एक महिला और उस के साथी ऐसा कर सकते हैं, यह किसी ने भी सोचा नहीं होगा.  स 6 सितंबर को लखीमपुर खीरी जिले में पूर्व विधायक निर्वेद्र मिश्र की जमीन के विवाद में मारपीट के बाद हत्या कर दी गई. मारपीट में पुलिस की भूमिका भी पाई गई. इस के कारण प्रदेश सरकार पर ब्राह्मण उत्पीड़न का आरोप भी लग रहा है. स 11 सितंबर को अलीगढ़ में दिनदहाड़े 40 लाख रुपए लूट लिए गए. सारसौल चौराहे से 100 मीटर की दूरी पर खैरो जाने वाले रास्ते पर सुंदर वर्मा की दुकान है. यहां पर इन का मकान और सुंदर ज्वैलर्स के नाम से ज्वैलरी शौप है. 11 सितंबर को दुकान पर सुंदर वर्मा, उन का 14 वर्षीय बेटा, नौकर धर्मेश के अलावा 3-4 ग्राहक भी बैठे थे. इसी दौरान करीब एक बजे बाइक पर 3 बदमाश आए. वे मास्क लगाए थे. उन के पास तमंचे थे. बदमाशों ने दुकान में आ कर पहले अपने हाथों पर सैनिटाइजर लगाया, फिर तमंचे निकाले और 700 ग्राम सोने के जेवर और 50 हजार रुपए नकद लूट कर भाग गए.  ‘तुम्हारी फाइलों में गांव का मौसम गुलाबी है, मगर ये आंकड़े  झूठे हैं, यह दावा किताबी है’ उत्तर प्रदेश के ही मशहूर शायर अदम गोंवी की ये पंक्तियां प्रदेश की योगी सरकार के रामराज के दावे पर एकदम फिट बैठती हैं. सरकार आंकड़ों में यह साबित करने में लगी है कि उत्तर प्रदेश में अपराध कम हो गए हैं, पर अपराध की रोज घटने वाली वारदातों से पता चलता है कि सारे दावे किताबी हैं. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने कार्यकाल में केवल पुलिस पर सब से अधिक भरोसा किया. उत्तर प्रदेश पुलिस ‘योगी की पुलिस’ कही जाती है.

पुलिस केवल फर्जी एनकांउटर को ले कर चर्चा में रहती है. अपराध नियंत्रण को ले कर यहां कोई सुधार नहीं है. लूट, हत्या, बलात्कार, अपहरण और धोखाधड़ी की घटनाएं कम नहीं हो रही हैं.  प्रदेश के कानपुर, उन्नाव, गोरखपुर, बुलंदशहर, गोंडा, आगरा, नोएडा और लखनऊ जैसे शहरों के विषय में जानने के लिए अगर कोई ‘गूगल’ करता है तो यहां की हत्या, बलात्कार, लूट और अपहरण की घटनाएं सब से पहले दिखने लगती हैं. ये घटनाएं इन शहरों की आपराधिक सचाई की पोल खोल देती हैं. मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ ने प्रदेश के कई शहरों के नाम बदल दिए थे. उन को लगता था कि नाम बदलने से उत्तर प्रदेश की छवि अच्छी हो जाएगी, पर अपराध की बढ़ती घटनाओं ने पूरे प्रदेश की छवि को खराब कर के रख दिया है. जनता पूछ रही है, ‘यह रामराज है या अपराध राज.’फेल हो गई ‘ठोक दो शैली’ अपराध को रोकने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पुलिस से कहा था कि वह ‘ठोक दो शैली’ में काम करे. जिस के तहत सरकार ने अपराधियों के एनकाउंटर की खुली छूट पुलिस को दे दी थी.

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पुलिस ने 6 हजार से अधिक मुठभेड़ के मामलों में सैकड़ों लोगों को जान से मार दिया. इस के बाद भी अपराध की घटनाएं कम नहीं हुईं. मार्च 2017 से ले कर जुलाई 2020 के बीच उत्तर प्रदेश पुलिस और अपराधियों के बीच 6,326 एनकाउंटर हुए. इन मुठभेड़ों में पुलिस ने 123 अपराधियों को मार गिराया. वहीं 2,337 को फायरिंग के दौरान गोली लगी.हाईकोर्ट के अधिवक्ता राजेश तिवारी कहते हैं, ‘‘मुख्यमंत्री की ‘ठोक दो शैली’ अपराध रोकने में कारगर नहीं हुई. उलटे, पुलिस ने मनमानी से लोगों को मार दिया. कानून को हाथ में लेने से अपराध तो कम नही हुए, कानून का राज जरूर खत्म होने लगा.’’ राजेश आगे कहते हैं, ‘‘अपराध की घटनाएं किसी भी सरकार का तख्ता पलट सकती हैं. 2007 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव ने अपनी सरकार के कार्यकाल में घटे अपराध की घटनाओं पर सफाई देने के लिए अभिनेता अमिताभ बच्चन से एक प्रचार फिल्म बनवाई, जिस में दावा किया गया कि ‘यूपी में है दम क्योंकि यहां अपराध हैं कम.’

इस का उलटा प्रभाव पड़ा और मुलायम सिंह यादव चुनाव हार गए और बसपा बहुमत से सरकार बनाने में सफल हो गई.विरोधियों पर मुकदमे हत्या, बलात्कार, अपहरण, लूट और गैंग बना कर अपराध के मामलों में उत्तर प्रदेश सुर्खियां बटोरता जा रहा है. कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू कहते हैं, ‘‘उत्तर प्रदेश में भाजपा की योगी सरकार रामराज का वादा कर के आई थी जबकि अपराध राज बना कर रख दिया है. यह पहली सरकार है जहां सवाल करने, आलोचना करने पर विरोधी के खिलाफ आपराधिक मामलों में मुकदमा कायम करा दिया जाता है. जनता के मुकदमे लिखे नहीं जाते, पर सरकार की आलोचना करने वालों को जेल भेज दिया जाता है.’’पीडि़तों की बातें पुलिस नहीं सुनती.

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कई मामलों में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने पत्र लिख कर मुख्यमंत्री से कार्रवाई करने को कहा, तब पुलिस ने मामलों का संज्ञान लिया. समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी कहते हैं, ‘‘सरकार ने अपराधियों को सरंक्षण दे रखा है. कुलदीप सेंगर, स्वामी चिन्मयानंद और विकास दुबे का संबंध भाजपा से दिखता है. ऐसे कुछ लोगों के मुकदमे भी वापस लेने का प्रयास हो रहा है. दूसरी तरफ आजम खान जैसे नेताओं को जेल में जबरदस्ती रखा जा रहा है.’’जातिगत आरोप में घिरे मुख्यमंत्रीमुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपराध रोकने में सफल तो हो नहीं पा रहे, उलटे, उन पर जातिवाद के आरोप लगने लगे हैं. कानपुर के अपराधी और 8 पुलिसमैनों की हत्या करने वाले विकास दुबे के एनकाउंटर के बाद सोशल मीडिया पर ऐसे मैसेज खूब वारयल हुए, जिन में यह कहा गया कि योगी सरकार में ब्राह्मण असुरक्षित हैं. सोशल मीडिया पर यह तर्क दिया गया कि उन्नाव के बलात्कारी विधायक कुलदीप सेंगर, शाहजहांपुर में सैक्स स्कैंडल में फंसे स्वामी चिन्मयानंद के खिलाफ योगी सरकार नरम बनी रही.

प्रतापगढ़ के बाहुबली नेता राजा भैया के खिलाफ लगे मुकदमे वापस लेने की तैयारी हो रही है. यह आरोप इतना बड़ा था कि भाजपा को अपने ब्राह्मण विधायक और मंत्रियों को इस की काट के लिए मैदान में उतारना पड़ा.आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में अपराध कम नहीं हो रहे. सरकार के खिलाफ आवाज उठाने वालों को प्रताडि़त किया जा रहा है. उन की आवाज को दबाया जा रहा है और उन का उत्पीड़न किया जा रहा है. मुख्यमंत्री के व्यवहार के कारण लोगों में दूरियां बढ़ रही हैं. ठाकुर जाति बेवजह निशाने पर आ गई है. प्रदेश के लोगों में इस जाति के प्रति सोच बदलती जा रही है. जिस का खमियाजा इस जाति के लोगों को भुगतना पड़ रहा है.

आकड़े सारे किताबी हैंएनसीआरबी यानी नैशनल क्राइम रिकौर्ड ब्यूरो के आकड़े बताते हैं कि उत्तर प्रदेश में क्राइम रेट 2017 के मुकाबले 2018 में बढ़ गया है. ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर प्रदेश पुलिस हर 2 घंटे में बलात्कार का एक मामला दर्ज करती है. जबकि, राज्य में हर 90 मिनट में एक बच्चे के खिलाफ अपराध की सूचना दी जाती है. 2018 में बलात्कार के 4,322 मामले दर्ज किए गए थे. राज्य में महिलाओं के खिलाफ 59,445 अपराध दर्ज किए गए हैं. जिन में रोजाना 62 मामले सामने आए हैं. यह 2017 में 7 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाता है, जबकि कुल 56,011 अपराध दर्ज किए गए थे.

बच्चों के मामलों में, 2017 में 139 के मुकाबले 2018 में 144 लड़कियों के बलात्कार के मामले सामने आए थे. 2018 में महिलाओं के साथ हुए अपराधों में लखनऊ सब से शीर्ष पर रहा है, जहां महिलाओं के साथ अपराध के 2,736 मामले दर्ज किए गए. इसी तरह लखनऊ में बच्चों के खिलाफ 19,936 आपराधिक मामले दर्ज किए गए, जिन में रोजाना 55 मामले दर्ज हुए. प्रदेश में साल 2018 में दहेज के मामलों में सब से अधिक 2,444 हत्याएं दर्ज की गईं. हालांकि, इस में 2017 के मुकाबले 3 प्रतिशत की कमी देखी गई. यूपी में 2017 में दहेज के कारण हत्या के 2,524 मामले दर्ज किए गए थे.

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प्रदेश में वरिष्ठ नागरिकों के खिलाफ हुए अपराधों में भी वृद्धि दर्ज की गई है.2018 में 454 अपराध दर्ज किए गए, जो 2017 के मुकाबले 12 प्रतिशत अधिक हैं. 2017 में 129 की तुलना में 2018 में 131 बुजुर्गों की हत्या की गई. वरिष्ठ नागरिकों द्वारा रिपोर्ट की गई डकैती की घटनाओं में 2018 में 15 और 2017 में 14 घटनाओं के साथ मामूली वृद्धि दर्ज की गई. राज्य में 2018 में साइबर अपराध के मामलों में भी वृद्धि देखी गई. 2018 में 6,280 साइबर अपराध के मामले दर्ज किए गए, जो 2017 की तुलना में 26 प्रतिशत अधिक हैं. पुलिस कहती है, ‘‘प्रदेश में बलात्कार के मामले 3,946 हैं जो 2017 की तुलना में 7 प्रतिशत कम हैं.’’ पुलिस कुछ भी कहे पर जमीनी हालत बेहद खराब है. हर शहर में अपराध की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं.

 

गलतफहमी -भाग 3: मिसेज चंद्रा क्यों रीमा को बाहर भेजने से डरती थी?

‘‘मगर क्या रीमा एक बोझ है? मेरे विचार से तो वह बोझ नहीं है, और आजकल तो लड़के वाले भी चाहते हैं कि लड़की ज्यादा से ज्यादा पढ़ी हो. और जब वह इंजीनियर बन जाएगी, खुद अच्छा कमाएगी तो आप को भी इतनी परेशानी नहीं होगी उस की शादी में,’’ मैं ने अपनी बात कही.

‘‘आप की बात तो सही है, मगर…’’ मिसेज चंद्रा सोचते हुए बोलीं.

मैं उन के इस मगर का अर्थ समझ रहा था किंतु मैं रीमा के सामने नहीं कह सकता था. वह हम लोगों के साथ ही बैठी थी. मैं ने उसे अपने बेटे व उस के भाई के साथ मेरे घर जाने को कहा. वह थोड़ा झिझकी. मैं ने उसे इशारों से आश्वस्त किया तो वह चली गई.

‘‘देखिए, जहां तक मैं समझता हूं आप का और रीमा का सहज संबंध नहीं है. आप लोगों के बीच कुछ तनाव है.’’

मिसेज चंद्रा का चेहरा गुस्से से तमतमा गया.

‘‘देखिए, मेरी बात को आप अन्यथा न लीजिए. यह बहुत सहज बात है. असल में आप दोनों के बीच किसी ने सहज संबंध बनाने का प्रयास ही नहीं किया. आप को उस की खूबसूरती के कारण हमेशा हीनता महसूस होती है. इसीलिए आप उसे हमेशा नीचा दिखाना चाहती हैं, उस की उन्नति नहीं चाहती हैं, मगर क्या यह अच्छा नहीं होता कि आप बजाय उस से जलने के गर्व महसूस करतीं कि आप की एक बहुत ही सुंदर बेटी भी है. उसे एक खूबसूरत तोहफा मानतीं नरेश की पहली पत्नी का. उसे इतना प्यार देतीं, उस की हर बात का खयाल रखतीं कि वह आप को अपनी सगी मां से ज्यादा प्यार, सम्मान देती. अगर आप को कोई परेशानी न हो तो मैं उस की जिम्मेदारी उठाने को तैयार हूं,’’ मैं ने अपनी पत्नी की तरफ देखा तो उस ने भी आंखों ही आंखों में अपनी रजामंदी दे दी.

मेरी बात का उन पर लगता है सही असर हुआ था क्योंकि जो बात मैं ने कही थी कभीकभी इन बातों का कुछ लोग उलटा अर्थ लगा लड़ने लग जाते हैं. मगर गनीमत कि उन्होंने मेरी बातों का बुरा नहीं माना.

‘‘ठीक है, जैसी आप की मरजी. आप उस से कह दीजिए कि हम लोग उसे इंजीनियरिंग पढ़ने भेज देंगे,’’ मिसेज चंद्रा ने बड़े ही शांत स्वर में कहा.

‘‘मैं नहीं, यह बात उस से आप ही कहेंगी और आप खुद देखेंगी कि इस बात का कैसा असर होगा.’’

थोड़ी देर में वह चाय और नाश्ता लाईं जिस के लिए अभी तक उन्होंने हम लोगों से पूछा नहीं था.

फिर मैं ने अपने घर टैलीफोन कर रीमा को बुलवाया. रीमा आई तो मिसेज चंद्रा ने उसे अपने पास बिठाया. उस का हाथ अपने हाथों में ले कर थोड़ी देर तक उसे देखती रहीं, फिर उन्होंने उस का माथा चूम लिया, ‘‘तुम जो कहोगी मैं वही करूंगी,’’ उन्होंने रुंधे गले से कहा तो रीमा उन से गले लग कर रोने लगी. मिस्टर चंद्रा की आंखों में भी आंसू आ गए थे. आंसू तो हमारी भी आंखों में थे मगर वह खुशी के आंसू थे.

गलतफहमी -भाग 2: मिसेज चंद्रा क्यों रीमा को बाहर भेजने से डरती थी?

‘‘मैं प्रभा की बेटी हूं.’’‘‘कौन प्रभा?’’ ‘‘वही जो आप की दूर के एक रिश्तेदार की बेटी थीं.’’मैं चौंका, ‘‘क्या तुम्हारी मम्मी बाबू जगदंबा प्रसाद की बेटी थीं?’’‘‘जी.’’ ‘‘ओह, तो यह बात है, तो क्या तुम मुझे जानती हो?’’

‘‘जी, मम्मी ने आप के बारे में बताया था. नाना के पास आप की फोटो थी. मम्मी ने बताया था कि आप चाहते थे कि आप की शादी उन से हो जाए मगर नाना नहीं माने. क्योंकि तब आप की पढ़ाई पूरी नहीं हो पाई थी और आप लोग उम्र में भी लगभग बराबर के थे.’’

प्रभा बहुत खूबसूरत और मेरे एक दूर के रिश्तेदार की बेटी थी. वे लोग पैसे वाले थे. उस के पिताजी पीडब्ल्यूडी में इंजीनियर थे जबकि मेरे पिताजी बैंक में अफसर. तब पैसे के मामले में एक बैंक अफसर से पीडब्ल्यूडी के एक इंजीनियर से क्या मुकाबला?

मैं अभी पढ़ रहा था, तभी सुना कि प्रभा की शादी की बात चल रही है. मैं ने अपनी मां से कहलवाया मगर उन लोगों ने मना कर दिया, क्योंकि मैं अभी एमकौम कर रहा था और उन को प्रभा के लिए इंजीनियर लड़का मिल रहा था. फिर प्रभा की शादी हो गई. मैं ने एमकौम, फिर सीए किया तब नौकरी मिली. इसीलिए मेरी शादी भी काफी देर से हुई.

तो रीमा उसी प्रभा की बेटी है. मुझे प्रभा से शादी न हो पाने का मलाल अवश्य था मगर मुझे उस के मरने की खबर नहीं थी. असल में हमारा उन के यहां आनाजाना बहुत कम था. कभीकभार किसी समारोह में या शादीविवाह में मुलाकात हो जाती थी. मगर इधर 8-10 साल से मेरी उस के परिवार के किसी व्यक्ति से मुलाकात नहीं हुई थी. इसीलिए मुझे उस की मौत की खबर नहीं थी.

‘‘तुम्हारी मम्मी कब और कैसे गुजरीं?’’ मैं ने पूछा. ‘‘दूसरी डिलीवरी के समय 7 साल पहले मेरी मम्मी की मृत्यु हो गई.’’‘‘और आजकल जो हैं वह?’’‘‘एक साल बाद पापा ने दूसरी शादी कर ली. राहुल उन से पैदा हुआ है.’’

अब मुझे दोनों भाईबहनों की असमानता का रहस्य समझ में आया कि क्यों रीमा इतनी खूबसूरत थी और उस का भाई इतना साधारण. और क्यों दोनों में उम्र का भी काफी अंतर था.

‘‘तो तुम मुझ से क्या चाहती हो?’‘‘अंकल, मैं आप को पिता के समान मानती हूं. जब आप शाम को बच्चे के साथ बाहर घूमने निकलते हैं तो मुझे बड़ा अच्छा लगता है. मैं भी चाहती हूं कि मेरे पापा भी ऐसा करें मगर उन के पास तो मेरे लिए फुरसत ही नहीं है. मम्मी लगता है मुझ से जलती हैं कि मैं इतनी खूबसूरत क्यों हूं. अब इस में हमारा क्या दोष? इसीलिए वह मेरी हर बात में कमी निकालती हैं, हर बात का विरोध करती हैं. वह नहीं चाहतीं कि मैं ज्यादा पढ़लिख कर आगे बढ़ूं.’’

अब मुझे उस की नजरों का अर्थ समझ में आने लगा था. वह मुझ में उस आदर्श पिता की तलाश कर रही थी जो उस के आदर्शों के अनुरूप हो. जो उस के पापा की कमियों को, उस की इच्छाओं को पूरा कर सके. मुझे अपनी सोच पर आत्मग्लानि भी हुई कि मैं उस के बारे में कितना गलत सोच रहा था. लगता था वह घर से झगड़ा कर के आई थी.

‘‘तुम ने नाश्ता किया है कि नहीं?’’ मैं ने पूछा तो वह खामोश रही.मैं समझ गया. झगड़े के कारण उस ने नाश्ता भी नहीं किया होगा.‘‘ठीक है, तुम पहले नाश्ता करो. शांत हो जाओ. फिर मैं चलता हूं तुम्हारे घर.’’

मैं ने उसे आश्वस्त किया. फिर हम सब ने बैठ कर नाश्ता किया. मैं ने अपनी पत्नी को बताया कि मैं रीमा के मम्मीपापा से मिलने जा रहा हूं.

‘‘मैं भी साथ चलूंगी,’’ मेरी पत्नी ने कहा.‘‘तुम क्या करोगी वहां जा कर?’’

‘‘आप नहीं जानते, यह लड़की का मामला है. अगर उन्होंने आप पर कोई उलटासीधा इलजाम लगाया या आप से पूछा कि आप को उन की बेटी में इतनी रुचि क्यों है तो आप क्या जवाब देंगे? और अगर उन्होंने कहा कि आप को उस से इतना ही लगाव है तो उसे अपने पास ही रख लीजिए. तो क्या आप इतना बड़ा फैसला अकेले कर सकेंगे?’’

मैं ने इस पहलू पर गौर ही नहीं किया था. मेरी पत्नी का कहना सही था.हम सब एकसाथ रीमा के घर गए.

मैं ने उन के घर पहुंच कर घंटी बजाई. उस की मम्मी ने दरवाजा खोला तो हम लोगों को देख कर वह नाराजगी से अंदर चली गईं फिर उस के पापा दरवाजे पर आए.

वहां का माहौल काफी तनावपूर्ण थारीमा के पिता नरेशचंद्र और मां माया रीमा से बहुत नाराज थे कि वह घर का झगड़ा बाहर क्यों ले गई, वह मेरे पास क्यों आई?

‘‘कहिए, क्या बात है?’’ वह बोले.हम दोनों ने उन को नमस्कार किया. मैं ने कहा, ‘‘क्या अंदर आने को नहीं कहेंगे?’’ उन्होंने बड़े अनमने मन से कहा, ‘‘आइए.’’

हम सब उन के ‘ड्राइंग कम डाइनिंग रूम’ में बैठ गए. थोड़ी देर खामोशी छाई रही, फिर मैं ने ही बात शुरू की.‘‘आप शायद मुझे नहीं जानते.’’‘‘जी, बिलकुल नहीं,’’ उन्होंने रूखे स्वर में कहा.

‘‘आप की पहली पत्नी मेरी बहुत दूर की रिश्तेदार थीं.’’‘‘तो?’’

‘‘इसीलिए रीमा बेटी से हम लोगों को थोड़ा लगाव सा है,’’ मैं कह तो गया मगर बाद में मुझे स्वयं अपने ऊपर ताज्जुब हुआ कि मैं इतनी बड़ी बात कैसे कह गया.

‘‘तो?’’ उन्होंने उसी बेरुखी से पूछा.मैं ने बड़ी मुश्किल से अपना धैर्य बनाए रखा. मुझे उन के इस व्यवहार से बड़ी खीज सी हो रही थी. कुछ देर खामोश रह कर मैं फिर बोला, ‘‘वह आईआईटी से पढ़ाई करना चाहती है…’’

‘‘मगर हम लोग उस को नहीं भेजना चाहते,’’ मिस्टर चंद्रा ने कहा.‘‘कोई खास बात…?’’‘‘यों ही.’’

‘‘यों ही तो नहीं हो सकता, जरूर कोई खास बात होगी. जब आप की बेटी पढ़ने में तेज है और फिर उस ने परीक्षा में सफलता प्राप्त कर ली है तो फिर आप को एतराज किस बात का है?’’

अब मिसेज चंद्रा भी बाहर आ कर अपने पति के पास बैठ गईं.‘‘देखिए भाई साहब, रीमा हमारी बेटी है. उस का भलाबुरा सोचना हमारा काम है, किसी बाहरी व्यक्ति या दूर के रिश्तेदार का नहीं,’’ मिसेज चंद्रा बोलीं.

मैं ने खामोशी से उन की बात सुनी. उन की बातों से मुझे इस बात का एहसास हो गया कि मिसेज चंद्र्रा का ही घर में काफी दबदबा है और नरेश चंद्रा उन के ही दबाव में हैं शायद इसीलिए रीमा को आगे पढ़ने नहीं देना चाहते.

मैं ने अपना धैर्य बनाए हुए संयत स्वर में कहा, ‘‘आप की बात बिलकुल सही है मगर क्या आप नहीं चाहतीं कि आप की बेटी उच्च शिक्षा प्राप्त करे, इंजीनियर बने. लोग आप का उदाहरण दें कि वह देखो वह मिसेज चंद्रा की बेटी है जो इंजीनियर बन गई है,’’ मैं ने थोड़ा मनोवैज्ञानिक दबाव बनाया.

मेरी बातों से वे थोड़ा शांत हुईं.  उन का अब तक का अंदाज बड़ा आक्रामक था.‘‘मगर हम चाहते हैं कि उस की जल्दी से शादी कर दें. वह अपने पति के घर जाए फिर उस का पति जैसा चाहे, करे.’’

‘‘मतलब आप शीघ्र ही अपनी जिम्मेदारियों से छुटकारा पाना चाहती हैं.’’‘‘जी हां,’’ मिसेज चंद्रा बोलीं.

 

कोरोना संक्रमित मरीजों के पर्चे से मत ले दवाएं, हो सकती है गंभीर बीमारियां

भले ही कोरोना काल में लोगों ने जीना सीख लिया है भले ही उन्हें ये लग रहा है कि शायद अब उन्हें कोरोना से डरने की जरूरत नहीं और इसके चलते लोग बेफिक्र होकर बाहर भी निकल रहे हैं.लेकिन ऐसा नहीं है कोरोना ने अभी पीछा नहीं छोड़ा है.कोरोना का ग्राफ लगातार बढ़ता जा रहा है. सरकार बार-बार लोगों से अपील भी कर रही हैं कि कोरोना बचाव के लिए जरुरी है कि आप अपनी सेफ्टी का ध्यान खुद ही रखें क्योंकि अपना बचाव आप खुद ही कर सकते हैं.लेकिन फिर भी लोग बाज नहीं आ रहें हैं और तो और अब सड़कों पर न तो सोशल डिस्टेंसिंग दिख रही है न ही लोग मास्क पहन रहे हैं इतना ही नहीं इस बीच एक खबर सामने आई है कि जिन लोगों को जरा सा भी सर्दी – जुखाम हो रहा है या वो बिमार हो रहे हैं तो कोविड – 19 वालें मरीजों का पर्चा दिखाकर दवा ले रहे हैं जो भी बहुत ही खतरनाक हो सकता है.

दरअसल मौसम बदल रहा है और सर्दी का मौसम आ रहा है तो जाहिर है ऐसे में सर्दी जुखाम होना आम बात है लेकिन कुछ लोगों में कोरोना का खौ़फ इस कदर भरा है कि वो टेस्ट कराने के बजाय कोविड-19 से संक्रमित लोगों के पर्चे वाली दवाई खा रहे हैं वो भी बिना किसी डॉक्टर के सलाह लिए.लोग बिना डॉक्टर के परामर्श लिए दवाईंयां खा रहे हैं जिसके कारण उनके स्वास्थ्य पर उल्टा असर पड़ रहा है . इसके कारण उनको उल्टी, घबराहट मिचली सी आना चक्कर जैसी समस्याएं उत्पन्न हो रहीं हैं.ऐसे में लोग अस्पतालों के चक्कर काट रहे हैं और लापरवाही दिखा रहे हैं.

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दरअसल बात ये है कि सोशल मीडिया पर कोरोना संक्रमित होने पर ये दवाई खाएं इस तरह का पर्चा वायरल हो रहा है और सबसे बड़ी लापरवाही की बात है कि लोग सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे इस पर्चे पर यकीन करके दवाईंयां खा रहे हैं. मेडिकल स्टोर्स पर विटामिन की टेबलेट या कैप्सूल लेने वाले लोग पहुंच रहे हैं. भले ही लोग कोरोना से बचने के लिए ये कोशिशें कर रहे हैं लेकिन इसका नुकसान ज्यादा हो रहा है और उनकी सेहत पर बहुत बुरा असर हो रहा है. क्योंकि भले ही कोरोना की दवा सही ले रहे हैं लेकिन उन्हें कोरोना है ही नहीं तो ऐसे में दवाई उल्टा असर कर ही है. लोग डॉक्टर से सलाह लिए बिना विटामिन ई,सी और डी की गोलियां खा रहे हैं.गुरुग्राम के डॉक्टर ने बताया कि इन दिनों बहुत से ऐसे मरीज आते हैं, जिन्हें उल्टी या जी घबराने की परेशानी हो रही है. इन लोगों ने बताया कि ये कोरोना से बचने के लिए विटामिन की गोलियां खा रहे थे.

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जब इनसे पूछा गया किसने ये दवा खाने की सलाह दी तो इनका जवाब चौंकाने वाला था. और आप भी उनका ये जवाब सुनकर हैरान परेशान हो जाएंगे. उन्होंने बताया कि उनके पड़ोसी और कुछ रिश्तेदार हैं जिन्होंने ये दवाई खाने को कहा क्योंकि वो खुद भी इसका सेवन कर रहे हैं और कहा कि ये दवा खाने से कोरोना बीमारी होगी ही नहीं और हो भी जाती है तो इस दवा से ठीक हो जाएगा किसी चिकित्सक के पास जाने की आवश्यकता नहीं. इन लोगों ने विटामिन डी की इतनी डोज ले ली कि इनकी सेहत बिगड़ने लगी.

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तो आप सावधान रहें ऐसे बिना सलाह के कोरोना से संबंधित दवा किसी के कहने पर बिल्कुल भी ना खाएं. साथ ही ये जान लेना भी आवश्यक है कि लोग आजकल कोरोना से बचने के लिए कई तरह के काढ़े का सेवन कर रहे हैं और इन काढ़ों के कारण भी की बीमारियां लोगों को हो रही हैं.खासतौर पर लीवर की बीमारी.ऐसे मरीजों की संख्या भी बढ़ गई है. इसलिए अभी भी वक्त है कि आप सावधान रहें और बीमा किसी डॉक्टर के सलाह के ऐसे ही कोई भी दवा ना खाएं नहीं तो आपको और आपके परिवार को खतरनाक बीमारीयों और परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है. अगर आपको जरा सा भी लगे की आप कोरोना से संक्रमित हैं तो एक बार जांच अवश्य कराएं और सलाह के बाद ही कोई दवा लें.

साफसफाई सब की जिम्मेदारी

सीमा का जब शहर के नामचीन  स्कूल में अध्यापिका के रूप में नियुक्ति हुई तो वह बेहद खुश थी. साफसुथरा स्कूल, करीने से सजा हुआ स्टाफरूम और चमचमाती कक्षाएं. पर सीमा की यह खुशी जल्द ही काफूर हो गई जब उस ने स्कूल के टौयलेट में कदम रखा.

टौयलेट में लगातार पानी रिस रहा था. चारों तरफ जालों का अंबार लगा हुआ था. गंदगी देख कर सीमा को उबकाई आने लगी और भाग कर वह बाहर निकल गई.

बाहर स्टाफरूम में बैठी इशिता और ज्योति खिलखिलाते हुए बोलीं,”लगता है आज सीमा मैडम ने टौयलेट के दर्शन कर ही लिए…”

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सीमा ने प्रश्नसूचक नजरों से उन्हें देखते हुए कहा,”आपलोगों ने इस बारे में आज तक कुछ नहीं किया?”

ज्योति कंधे उचकाते हुए बोली,”यह तो स्कूल के सफाईकर्मियों की जिम्मेदारी है.”

सीमा अभी क्लास में पहुंची ही थी कि छात्रा अंशिका झिझकते हुए आई और बोली,”मैडम, मुझे घर जाना होगा.”

सीमा प्यार से बोली,”अंशिका, इस के लिए घर जाने की क्या जरूरत है, मैडिकल रूम से पैड ले लो.”

अंशिका बोली,”मैडम, यहां के टौयलेट में जाने का मतलब है कि मैं  10 और प्रकार के इन्फैक्शन को न्यौता दे दूं.”

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सीमा अपने साथ हुए अनुभव को भूली नहीं थी. इसलिए वह अंशिका की बात से सहमत थी.

खुद की पहल और फिर…

घर आ कर सीमा इसी बात पर विचार करती रही और उस ने निर्णय ले लिया कि वह स्वयं ही पहल कर के इस

समस्या का समाधान निकाल लेगी.

अगले दिन सब से पहले जा कर सीमा ने अपनी कक्षा की छात्रों से कहा कि वे स्कूल टौयलेट में होने वाली समस्यओं और उस के समाधान के बारे में लिखें. यह छात्रों के लिए एक नए तरह का अनुभव था कि उन की कक्षा अध्यापिका ने उन से सलाह मांगी थी.

जब 40 छात्रों ने अपनेअपने विचार पेपर पर लिख कर दिए तो सीमा ने देखा कि अगर 200 समस्याएं हैं तो 20 समाधान भी हैं.

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सीमा अगले दिन सारे समाधानों को एकसाथ लिख कर अपने स्कूल के कोऔर्डिनेटर से मिली. कोऔर्डिनेटर को सीमा की सकारत्मक पहल और छात्रों के सुझाव दोनों पसंद आए.

सब से पहले सीमा ने स्कूल ऐसेंबली  में अपनी कक्षा के छात्रों की मदद से स्कूल के सभी छात्रों से टौयलेट की साफसफाई सीमित संसाधनों से कराने के सुझाव दिए. इस के लिए उन्होंने सभी से सुझाव भी मांगे.

सुझाव मिलने के बाद सीमा ने विद्यालय में छात्र समिति का गठन किया. यह छात्र समिति विद्यालय

और अभिभावक संघ के बीच एक सेतु की तरह कार्य करने लगी और उन की मदद से कम खर्च में ही रेन वाटर हार्वेस्टिंग स्ट्रक्चर की स्थापना विद्यालय में हुई. इस तकनीक के सहारे काफी हद तक टौयलेट में पानी की समस्या समाप्त हो गई थी.

जागरूकता अभियान

बाथरूम की साफसफाई के लिए अलग से एक डिपार्टमैंट का गठन हुआ. जब सीमा और छात्रों ने उन से बातचीत की तो पता चला कि अधिकतर छात्र बाथरूम को बहुत गंदे ढंग से इस्तेमाल करते हैं, जिस कारण बारबार साफसफाई के कारण पानी, फिनाइल इत्यादि की बहुत बरबादी होती है.

सीमा और उस की टीम की मदद से पूरे स्कूल में एक जागरूकता अभियान चलाया गया. अब तक छात्र सोचते थे कि टौयलेट की साफसफाई बस सफाई कर्मचारियों की जिम्मेदारी है. पर जब हरएक छात्र को इस के लिए जिम्मेदार बनाया गया तो टौयलेट की व्यवस्था में कुछ हद तक सुधार आ गया था.

स्कूल के लैबोरैट्री में हाथ धोने के लिए साबुन रखा गया और लेबोरैट्री में ही साबुन बनाने की विधि विकसित कर छात्रों से साबुन बनवाए गए.

जागरूकता की लहर ने अब पूरे स्कूल को सराबोर कर दिया है. कुछ समाजिक संस्थाओं ने खुद स्कूल में आ कर छात्रों को ऐसी तकनीकों की जानकारी दी हैं जिन से वे गंदे पानी को रीसाइकल कर टौयलेट में इस्तेमाल कर सकते हैं.

हर स्तर और कक्षा से छात्रों ने टौयलेट की नियमित सफाई के लिए एक समिति भी बना ली है. हर समिति में अध्यापकों की भी अग्रणी भूमिका है.

बस एक ही नारा

इस स्कूल के छात्रों ने नारा दिया है,’स्कूल की सफाई है न्यारी, क्योंकि टौयलेट की स्वच्छता अब जिम्मेदारी है हमारी…

स्कूल का वही टौयलेट जहां छात्र जाना तक पसंद नही करते थे, अब मेलमिलाप का अड्डा बन गए हैं.

सीमा ने अध्यापिका के रूप में बस उस दबी हुई चिनगारी को हवा दी थी.

टीचर्सडे पर सीमा को बैस्ट टीचर की उपाधि से नवाजा गया और साथ में एक प्रशस्तिपत्र भी दिया गया.

अब स्कूल एक मौडल स्कूल की तरह दूसरे विद्यालयों की लिए एक उदाहरण बन चुका है.

सच है, साफसफाई की जिम्मेदारी किसी एक की नहीं सब की है. अगर हम घर के साथसाथ बाहर भी अपनी जिम्मेदारियों को समझें और साफसफाई के प्रति जागरूक रहें तो न सिर्फ हमें स्वच्छ वातावरण मिलेगा, बल्कि हम स्वस्थ भी रहेंगे.

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