स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती उर्फ कृष्णपाल सिंह ने कंधे पर पड़े रामनामी को उतार कर झाड़ा और मुसकरा कर फिर से अपने गले में लपेट लिया, मानों साफे पर थोड़ी गंद पड़ गई थी, जो झटकते ही साफ हो गई.
होंठों पर विजयी मुसकान लिए और ऐंठ के साथ चलते चिन्मयानंद की भावभंगिमा यह बताने के लिए काफी थी कि हम भले ही आकंठ पाप के समंदर में उतर जाएं, लेकिन हमारा कोई कुछ नहीं बिगाङ सकता.
दरअसल, भारत में धर्म की ढाल, पैसे की ताकत, सत्ता में रसूख और अंधभक्तों का समर्थन घोर से घोर पापियों को भी सजा से बचा लेता है.
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बलात्कार के आरोपी स्वामी चिन्मयानंद को भी सत्ता और पैसे की ताकत ने आखिरकार बचा ही लिया.
यह कोई पहला मौका नहीं है जब संत के लबादे में छिपे कामुक भेड़िए को सत्ता की मेहरबानियों ने बड़ी ही आसानी से उबार लिया. इस से पहले के मामलों में भी उन का बाल बांका नहीं हुआ है.
संत का चोला ओढ़ कर असंतई करने वाले बाबा के खिलाफ मुकदमों की फाइलें विभागों और अदालतों के खानों में पड़ी धूल फांकती रहीं और स्वामी अपनी यौन पिपासाओं की शांतिक्रिया में रत रहे.
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पीङिता का यूटर्न
भाजपा नेता और पूर्व केंद्रीय गृह राज्यमंत्री स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती पर बीते साल बलात्कार का आरोप लगाने वाली कानून की छात्रा ने कोर्ट में यूटर्न लेते हुए उन पर लगाए बलात्कार के आरोप को वापस ले लिया है.
एमपी एमएलए विशेष कोर्ट में उस ने जज के सामने कहा,”चिन्मयानंद ने उस:के साथ कोई बलात्कार नहीं किया है.”
कितनी अचंभित करने वाली बात है कि कानून की एक छात्रा जिस ने 1 साल पहले मय सुबूतों के स्वामी चिन्मयानंद पर यह आरोप लगाया था कि वह उस का बलात्कार करता है, उस को धमकाता है. इतना ही नहीं उस ने बाकायदा एक वीडियो भी रिलीज किया था जिस में चिन्मयानंद नग्नावस्था में उस के साथ मौजूद है. तब छात्रा ने यह भी कहा था कि चिन्मयानंद सिर्फ उस का ही बलात्कार नहीं करते, बल्कि कालेज की अन्य लड़कियों को भी डराधमका कर उन का शोषण करते हैं. बावजूद तमाम जांचों, सुबूतों और गवाहों के इस लड़की ने जज के सामने अपने आरोपों को वापस ले लिया.
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वायरल हुआ था वीडियो
गौरतलब है कि बीते साल इस मामले को ले कर खूब होहल्ला मचा था. चिन्मयानंद के नंगे जिस्म की मालिश करती पीड़िता का वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ था. दुनियाभर ने देखा कि कैसे नग्नावस्था में बैठे पूर्व केंद्रीय गृह राज्यमंत्री और खुद को संत कहलाने वाले चिन्मयानंद उस कानून की छात्रा से अपने गुप्तांगों की मालिश करवा रहे हैं.
कानून की यह छात्रा शाहजहांपुर स्थित स्वामी सुखदेवानंद विधि महाविद्यालय से एलएलएम कर रही थी. उल्लेखनीय है कि इस ला कालेज के मालिक स्वामी चिन्मयानंद ही हैं.
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बलात्कार का आरोप लगाने और वीडियो जारी करने के बाद यह छात्रा अचानक गायब भी हो गई थी. तब उस के पिता ने 28 अगस्त, 2019 को शाहजहांपुर स्थित कोतवाली में अपनी पुत्री की गुमशुदगी और बलात्कार का दोषी चिन्मयानंद को ठहराते हुए उस के खिलाफ मुकदमा दर्ज करवाया था. वहीं थोड़े दिनों बाद 5 सितंबर, 2019 को पीड़िता ने दिल्ली पहुंच कर नई दिल्ली के थाना लोधी कालोनी में चिन्मयानंद के खिलाफ बलात्कार का केस रजिस्टर करवाया था. इस एफआईआर को उस के पिता की ओर से शाहजहांपुर में दर्ज कराई गई पहली एफआईआर के साथ संबद्ध कर दिया गया था.
जब मामले ने तूल पकङा
इस मामले के तूल पकड़ने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः इस का संज्ञान लिया. सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट की 2 सदस्यीय विशेष बैंच गठित करवा कर पूरे मामले की जांच के लिए एसआईटी गठित करने का निर्देश दिया था. कोर्ट के आदेश से मामले की तफ्तीश के लिए उत्तर प्रदेश सरकार को आईजी स्तर के अधिकारी की अध्यक्षता में एसआईटी का गठन करना पड़ा था. सालभर एसआईटी की जांच चली.
20 सितंबर, 2019 को एसआईटी ने उत्तर प्रदेश पुलिस के साथ मिल कर आश्रम से चिन्मयानंद को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. इस मामले में 4 नवंबर, 2019 को एसआईटी ने चिन्मयानंद के खिलाफ कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की, जिस में उन पर आईपीसी की धारा 376(सी), 354(डी), 342 व 506 लगाई गई थी. 13 पन्ने की चार्जशीट में 33 गवाहों के नाम व 29 दस्तावेजी साक्ष्यों की सूची संलग्न की गई.
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3 फरवरी, 2020 को इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश के बाद केस की सुनवाई शाहजहांपुर जिला अदालत से लखनऊ एमपी एमएलए विशेष कोर्ट में स्थानांतरित हुई.
तब एसआईटी प्रमुख नवीन अरोड़ा ने कहा था,”स्वामी ने लगभग वे सारी चीजें स्वीकार कर ली हैं जो आरोप पीड़िता ने उन पर लगाए हैं. उन्होंने वीडियो में अपनी मौजूदगी स्वीकारी है, उन्होंने अश्लील बातचीत करना स्वीकारा है, उन्होंने उस से बौडी मसाज कराना भी स्वीकारा है, लेकिन रेप की बात नहीं स्वीकारी है.”
संगीन अपराध पर खामोशी
एसआईटी अधिकारियों का कहना है कि चिन्मयानंद लड़की से रेप करने के सवाल पर जवाब नहीं देते और खामोश रहते हैं. जब तक वे स्वीकार नहीं करते तब तक एफआईआर दर्ज होने से कोई आरोप साबित नहीं होता. इसलिए चिन्मयानंद पर रेप की बजाय आईपीसी की दफा 376सी के तहत केस दर्ज हुआ है. दफा 376सी का मतलब है किसी संस्था के संरक्षक द्वारा किसी लड़की या महिला के साथ दुराचार करना.
उन पर लगीं अन्य धाराएं भी संगीन थीं. मसलन धारा 354-डी का मतलब किसी महिला का पीछा करना, धारा 342 सदोष किसी महिला को रोकना, धारा 506 आपराधिक धमकी देना और इन सभी धाराओं में अपराधी को अधिकतम 7 साल की सजा होती है.
रेप की धाराओं में केस दर्ज नहीं होने पर तब पीड़ित छात्रा ने गंभीर आपत्ति जताते हुए कहा था,”जब मैं एसआईटी के सामने 161 का बयान देने गई थी, मैं ने उस दिन बता दिया था कि मेरे साथ रेप हुआ है, किस तरीके से हुआ है, सबकुछ बताया था. इस के बावजूद चिन्मयानंद पर 376 सी लगाई गई, जिस चीज का डर था वही हुआ.”
यानी तब तक पीड़िता अपने आरोपों पर दृढ़ थी कि चिन्मयानन्द ने उस का रेप किया है. वह चिन्मयानंद को सजा दिलवाना चाहती थी, लेकिन फिर ऐसा क्या हुआ कि उस ने आरोप वापस ले लिए?
चिन्मयानंद प्रकरण की जांच करने वाली एसआईटी टीम ने इस केस में भाजपा के 2 अन्य नेताओं को भी आरोपी बना कर आरोपपत्र दाखिल किया था, जिस में सहकारी बैंक के अध्यक्ष, डीपीएस राठौर तथा भाजपा नेता अजित सिंह के नाम का जिक्र था. आरोप है कि उन्होंने पीड़िता से राजस्थान के दौसा में, जब पीड़िता बरामद हुई थी, तब उस से वह पैनड्राइव छीन ली थी जिस में लड़की द्वारा स्वामी चिन्मयानंद का मालिश वाला वीडियो था. लेकिन इतना सब होने के बाद नतीजा वही ढाक के तीन पात ही निकला.
जब पीङिता मुकर गई
जब पीड़िता अपने आरोपों से ही मुकर गई और जज के सामने कह गई कि उस के साथ स्वामी चिन्मयानन्द ने कोई बलात्कार नहीं किया है तो एसआईटी की पूरी मेहनत बेकार साबित हो गई. सुबूत, गवाह सब झूठे साबित हो गए और स्वामीजी काजल की कोठरी से कोरे निकल आए.
आखिर क्या वजह है कि पीड़िता कोर्ट में अपने आरोपों से मुकर गई? क्या वह और उस का परिवार आरोपी चिन्मयानन्द के हाथों बिक गया? क्या उस पर और उस के परिवार पर राजनितिक दबाव है? क्या उस को जान से मारने की धमकियां मिल रही थीं? क्या वह लंबी कानूनी प्रक्रिया से उकता गई ? क्या कानून और अदालत पर उस का विश्वास खत्म हो गया?
सवाल यह भी है कि यदि सत्ता में बैठे ताकतवर अपराधी अपनी दहशत और बाहुबल से पीड़ितों के मुंह ऐसे ही बंद करवाते रहेंगे, उन्हें अपने आरोप वापस लेने के लिए मजबूर करते रहेंगे, तो देश में कानून का राज बचेगा कहां? पुलिस और अदालतें आखिर करेंगी क्या?
सत्ता और पैसे का खेल
इस केस में भी सत्ता और पैसे का बड़ा खेल हुआ है. दरअसल, जिस वक्त पीड़िता ने स्वामी चिन्मयानंद पर बलात्कार का आरोप लगाया था और उस की ताकत और रसूख को देखते हुए शाहजहांपुर से अपनी जान बचा कर भागी थी, उस समय चिन्मयानंद के वकील ओम सिंह की तरफ से छात्रा और उस के कुछ साथियों के खिलाफ एक एफआईआर दर्ज करवाई गई कि वे स्वामी चिन्मयानंद से फोन पर ₹5 करोड़ मांग रहे हैं. यानी आरोप लगाने वाली लड़की और उस के साथी चिन्मयानंद को ब्लैकमेल कर रहे हैं. चूंकि चिन्मयानंद राजनीति के मंझे हुए खिलाङी हैं तो उन की एफआईआर पर तेजी से काररवाई हुई. पुलिस लड़की और उस के दोस्तों की तलाश में जुट गई.
कुछ ही समय में राजस्थान से लड़की और उस के 3 साथियों संजय सिंह, विक्रम सिंह और सचिन सेंगर को गिरफ्तार कर पुलिस ने जेल भेज दिया. अब यह मामला दोतरफा हो गया. एक ओर बलात्कार के आरोपी स्वामी चिन्मयानंद जिन को सत्ता, पुलिस, समर्थक, भाजपा सभी का समर्थन था, तो दूसरी ओर जेल में बंद एक अकेली लड़की और बाहर उस का भयभीत परिवार था.
5 महीने जेल में रहने के बाद चिन्मयानंद को तो 3 फरवरी, 2020 को इलाहाबाद हाई कोर्ट से जमानत मिल गई, मगर पीड़िता अभी तक जेल में है.
इस 1 साल के दौरान उस ने और उस के परिवार ने न जाने कितनी धमकियों, दबावों और प्रताड़नाओं का सामना किया होगा, इस का अंदाज़ा कोई भी आसानी से लगा सकता है.
यही वजह है कि एक कानून की छात्रा ने कानून के मंदिर में खड़े हो कर कानून को धता बता दिया. उस ने बता दिया कि देश के संविधान में, कानून में उस को रत्तीभर भी विश्वास नहीं है. उस ने बता दिया कि उसे जब लंका में ही रहना है तो रावण से समझौते के अलावा कोई चारा नहीं है. इस के बिना उस का और उस के परिवार का जीवित रहना शायद संभव नहीं है. न्यायालय से उसे कोई न्याय नहीं चाहिए, कोर्ट के बाहर आरोपी से समझौता ज्यादा फायदेमंद है.
सूत्रों की माने तो बेतरह दबाव और कोई ₹2 करोड़ खर्च कर के स्वामी ने लड़की की जबान अपने हक में मोड़ ली और अपने दामन पर लगे बलात्कार के दाग को धो डाला.रामनामी साफा एक बार फिर चमक उठा.
यह पहला मौका नहीं था कि जब स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती पर बलात्कार का आरोप लगा. ऐसा जघन्य अपराध वे पहले भी कर चुके हैं. इस से पहले उन्होंने अपने ही आश्रम की एक साध्वी को अपनी हवस का शिकार बनाया था. स्वामी पर वह केस अभी भी लंबित है.
चिन्मयानंद की ताकत
पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वामी चिन्मयानंद की संत समाज से ले कर राजनीतिक क्षेत्र तक में मजबूत पकड़ है. वे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के अति निकटतम लोगों में से हैं. 3 बार सांसद और केंद्र में गृह राज्यमंत्री रहने के अलावा वे ऋषिकेश के परमार्थ निकेतन और राम मंदिर आंदोलन से भी जुड़े रहे हैं. यही नहीं, अधर्म की राह पर चलने वाले स्वामी कई धार्मिक किताबें भी लिख चुके हैं.
स्वामी चिन्मयानंद 80 के दशक में शाहजहांपुर आए थे और स्वामी धर्मानंद का शिष्य बन कर उन्हीं के मुमुक्षु आश्रम में रहने लगे थे. मुमुक्षु आश्रम की स्थापना धर्मानंद के गुरू स्वामी शुकदेवानंद ने की थी. 80 के दशक में स्वामी धर्मानंद के बाद स्वामी चिन्मयानंद ने इस आश्रम और उस से जुड़े संस्थानों का प्रबंधन संभाला.
चिन्मयानंद ने शाहजहांपुर में मुमुक्षु शिक्षा संकुल नाम से एक ट्रस्ट बनाया जिस के जरीए कई शिक्षण संस्थाओं का संचालन किया जाता है. इन में पब्लिक स्कूल से लेकर पोस्ट ग्रैजुएट स्तर के कालेज तक शामिल हैं. यही नहीं, मुमुक्षु आश्रम में ही स्वामी शुकदेवानंद ट्रस्ट का मुख्यालय है, जिस के माध्यम से परमार्थ निकेतन ऋषिकेश और हरिद्वार स्थित परमार्थ आश्रम संचालित किए जाते हैं.
ऋषिकेश स्थित परमार्थ निकेतन के प्रबंधन और संचालन की ज़िम्मेदारी चिदानंद मुनि के हाथों में है जबकि हरिद्वार वाले आश्रम का जिम्मा चिन्मयानंद के पास है.
राजनीतिक रसूख का फायदा
80 के दशक के अंतिम हिस्से में जब देश में राम मंदिर आंदोलन जोर पकड़ रहा था तब विश्व हिंदू परिषद से जुड़े तमाम साधुसंत पहले इस आंदोलन से जुड़े और फिर भारतीय जनता पार्टी के जरीए राजनीति में आ गए. उन्हीं संतों में से एक थे स्वामी चिन्मयानंद.
मंदिर आंदोलन के समय चिन्मयानंद ने महंत अवैद्यनाथ के साथ मिल कर राम मंदिर मुक्ति यज्ञ समिति बनाई और इसी के जरीए इन लोगों ने मंदिर आंदोलन में अपने पैर जमाए. बाद में रामविलास वेदांती और रामचंद्र परमहंस को भी जोड़ लिया गया. इस के अलावा अपने मुमुक्षु आश्रम के जरीए स्वामी चिन्मयानंद ने बड़ी संख्या में संतों को राम मंदिर आंदोलन से जोड़ा.
महंत अवैद्यनाथ के बेहद करीबी होने के कारण उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से चिन्मयानंद के बहुत अच्छे संबंध रहे हैं. वैसे भी दोनों ठाकुर बिरादरी से आते हैं और एकदूसरे का सम्मान करते हैं.
मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ मुमुक्षु युवा महोत्सव में हिस्सा लेने के लिए शाहजहांपुर के मुमुक्षु आश्रम गए, जबकि उस वक्त स्वामी चिन्मयानंद मुमुक्षु आश्रम की ही एक साध्वी के यौन शोषण के केस का सामना कर रहे थे. इस महोत्सव के दौरान ही एक वीडियो भी वायरल हुआ था जिस में शाहजहांपुर के कुछ प्रशासनिक अधिकारी साध्वी के बलात्कारी संत चिन्मयानंद की आरती उतार रहे थे.
केंद्रीय मंत्री रहते हुए स्वामी चिन्मयानंद लालकृष्ण आडवाणी के भी बेहद करीब आ गए थे, लेकिन राजनाथ सिंह के विरोधी के तौर पर उन की पहचान बनी. हालांकि योगी आदित्यनाथ और भाजपा के दूसरे ठाकुर नेताओं से उन के बहुत ही करीबी रिश्ते हैं. महंत अवैद्यनाथ पर जब डाक टिकट जारी हो रहा था, उस कार्यक्रम में स्वामी चिन्मयानंद सब से आगे की पंक्ति में रहने वालों में से थे. पार्टी में उन का सक्रिय प्रभाव तब थोड़ा कम हुआ जब साध्वी से बलात्कार के आरोप ने ज्यादा तूल पकड़ा. हालांकि राज्य में भाजपा की सरकार बनने के बाद सरकार ने उन के खिलाफ लगे इस मुकदमे को वापस ले लिया. लेकिन पीड़ित पक्ष ने सरकार के इस फैसले को अदालत में चुनौती दी है. फिलहाल हाई कोर्ट से स्वामी चिन्मयानंद को इस मामले में स्टे मिला हुआ है.
सलाखों में कैसे कैद होंगे बलात्कारी
अब जबकि कानून की छात्रा ने भी चिन्मयानंद पर लगाए अपने आरोपों से पलटी मार ली है तो स्वामी के हौसले और बुलंद हो गए हैं. हालांकि छात्रा के आरोपों से मुकरने से अभियोजन ने उसे पक्षद्रोही घोषित करते हुए अदालत में उस के खिलाफ धारा 340 के तहत झूठा बयान देने के आरोप में मुकदमा चलाने की अरजी दाखिल की है. सरकारी वकील अभय त्रिपाठी की ओर से छात्रा के खिलाफ धारा 340 के तहत दी गई अरजी में लिखा है कि 5 सितंबर-2019 को छात्रा ने खुद नई दिल्ली के थाना लोधी कालोनी थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई थी. जिसे पीड़िता के पिता द्वारा शाहजहांपुर में दर्ज कराई गई रिपोर्ट के साथ जोड़ दिया गया था. इस के बाद एसआईटी ने पीड़िता का बयान दर्ज किया था. इस के बाद शाहजहांपुर में मजिस्ट्रेट के सामने उस का कलमबंद बयान दर्ज हुआ था. इन दोनों बयानों में छात्रा ने घटना को सही बताया था. लेकिन बीते 9 अक्तूबर, 2020 को कोर्ट में इस मामले की गवाही में उस ने जानबूझ कर अपना बयान बदल दिया है. लगता है, उस ने अभियुक्त के साथ समझौता कर लिया है. लिहाजा, उस के खिलाफ सीआरपीसी की धारा 340 के तहत काररवाई की जाए.
लेकिन यह महज सांप निकलने के बाद लाठी पीटने वाली बात है. जब पीड़ित और अपराधी के बीच आउट औफ कोर्ट इतना बड़ा सौदा हो गया, तो बाकी तो छोटेमोटे सौदा हैं, निबटा ही लिए जाएंगे.
खैर, कानूनी काररवाई जो भी हो, अगर कोर्ट के बाहर पैसे ले कर आरोपी और पीड़िता के बीच अनैतिक समझौता हो ही गया है तो अब दोनों पक्ष इत्मीनान में होंगे. मगर 1 साल चले इस मामले की आपाधापी ने पुलिस और कोर्ट का जो बहुमूल्य समय बरबाद किया, कानून का जो मखौल बनाया और जनता के समक्ष जो उदाहरण प्रस्तुत किया, उस ने देश में लोकतंत्र की नींव पर फिर एक बार चोट की है और देश में कानून के राज की क्या स्थिति है, उस का परदाफाश किया है.
जब नहीं रही न्याय की आस
राजनीतिक ताकत रखने वाले किस तरह संगीन जुर्म कर के भी निष्कलंक साबित हो जाते हैं यह केस इस का उदाहरण है. स्वामी चिन्मयानंद अकेले नहीं हैं जो अपने राजनीतिक रसूख के चलते बलात्कार के आरोप से बेदाग निकल गए. इन से पहले अखिलेश सरकार की अगुआई वाली समाजवादी पार्टी की सरकार में 2012 से 2017 तक मंत्री रहे गायत्री प्रजापति पर भी बलात्कार का आरोप लगा था और पैसे और सत्ता की ताकत ने इस केस की पीड़िता को भी अपने बयान बदलने के लिए मजबूर किया था.
चित्रकूट की एक महिला ने गायत्री प्रजापति के खिलाफ दर्ज अपनी एफआईआर में कहा था कि प्रजापति ने नौकरी और एक घर देने के बहाने उसे लखनऊ बुलाया था और वहां अपने साथियों के साथ उस से दुष्कर्म किया था. उस ने कहा कि प्रजापति ने उसशसे ही नहीं, बल्कि उस की नाबालिग बेटी से भी दुष्कर्म किया और उन का वीडियो बना कर उन्हें ब्लैकमेल करता रहा.
गौरतलब है कि एक राजनितिक व्यक्ति के खिलाफ इस पीड़िता की एफआईआर जब उत्तर प्रदेश पुलिस नहीं लिख रही थी, तब भी सुप्रीम कोर्ट ने इस का संज्ञान लिया था और सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर पीड़िता की एफआईआर दर्ज हुई थी. बाद में गायत्री प्रजापति को गिरफ्तार भी किया गया था.
लेकिन इस पीड़िता पर भी राजनितिक दबाव, धमकी और लालच का इतना दबाव पड़ा कि उस ने भी कोर्ट में कह दिया कि मंत्रीजी तो मेरे पिता सामान हैं, उन्होंने मेरे साथ कुछ नहीं किया बल्कि कुछ षड्यंत्रकारियों ने हमारे रिश्ते को कलंकित किया है.
महिला यहीं नहीं रुकी. उस ने कहा कि जब उस ने आरोप लगाया था तो पुलिस के पास क्या सुबूत था, जो उन्हें गिरफ्तार कर लिया है. वह निर्दोष हैं. यही नहीं उस महिला ने अपने वकील पर ही इस केस की साजिश रचने का आरोप लगा दिया.
संतों और राजनेताओं से जुड़े हाईप्रोफाइल केसों में सरकार और सत्ता का आरोपी के साथ खड़े होने के कई मामले हाल के सालों में देखे गए हैं. कई जगह पीड़ित को ही बारबार प्रताड़ित होते हुए भी देखा गया है. उन्नाव का चर्चित माखी कांड शायद ही कोई भूल पाए. दोषी कुलदीप सेंगर को जिस तरह बचाने के लिए पूरी मशीनरी एक हो गई, नेता पीड़िता का चरित्रहनन करने लगे, कई बार इसे पीड़िता की साजिश तक करार दिया गया. लेकिन आखिरकार सच सामने तो आया लेकिन पीड़िता ने इस दौरान अपने परिवार के कई सदस्यों को खो दिया, अनेक बार जिल्लतें सहीं, न्याय के लिए दरदर भटकी.
हाथरस मामले में भी बलात्कार के आरोप को जातीय और संप्रदायिक मामले का रंग देने की कोशिश की जा रही है. ऐसे में निश्चित ही बलात्कार पीड़िताओं को न्याय की आस दूर ही नजर आएगी. शायद यही कारण है कि कानून की पढ़ाई करने वाली पीड़िता का कानून पर विश्वास खंडित हो गया और आरोपी से सौदेबाजी करने में उसे ज्यादा फायदा नजर आया.