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अनिल कपूर की गलत कोरोना रिपोर्ट की अफवाह पर भड़की सोनम कपूर, ट्वीट कर कही ये बात

कुछ समय पहल ही यह खबर आई थी कि अपककमिंग फिल्म ‘जुग जुग जियो”   की शूटिंग के दौरान अनिल कपूर कोरोना के चपेट में आ गए हैं उनके साथ काम कर रहे वरुण धवन औऱ नीतू कपूर की भी कोरोना रिपोर्ट पॉजिटीव आई है. जिसके बाद से लगातार सोशल मीडिया पर कई तरह की अफवाहें आने लगी है.

कुछ देर बात सच पता चला कि यह सब खबर अफवाह है ऐसा कुछ भी नहीं हुआ सभी लोग सुरक्षित है और रिपोर्ट निगेटीव है. जिसके बाद सोनम कपूर ने जमकर सोशल मीडिया पर सभी की क्लास लगाई.

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सोनम कपूर ने ट्वीट करते हुए कहा है कि आप लोग रिपोर्टिग करते समय जिम्मेदारी का ध्यान रखिए गलत खबरे खतरनाक साबित हो सकती है. मैं लंदन में बैठई हूं अभी तक मेरे फैमली से बात नहीं हुई है. आप अपन काम को जिम्मेदारी के साथ करिए.

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सोनम कपूर का यह ट्वीट सोशल मीडिया पर लगातार वायरल हो रहा है. फैंस भी सोनम के इस ट्वीट को सपोर्ट करते नजर आ रहे हैं. वहीं कुछ फैंस इस ट्वीट को लेकर सोनम कपूर को टारगेट करते नजर आ रहे हैं.

बता दें इन दिनों सोनम कपूर लंदन में पति आनंद के साथ क्वालिटी टाइम बीता रही हैं. आए दिन सोशल मीडिया पर सोनम पोस्ट शेयर करती रहती हैं.

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सोनम कपूर अपन खुले विचार के लिए जानी जाती हैं. सोनम कपूर आए दिन अपने सोशल मीडिया पर एक्टिव नजर आती हैं.

लौकी पोस्तो की सब्जी

वैसे तो लौकी स्वास्थ्य के लि बहुत ज्यादा लाभकारी होत है. अगर उसमं पोस्ता मिला दें तो उसके स्वाद और भी ज्यादा बढ़ जाते हैं. आइए जानते हैं लौकी और पोस्ता के सब्जी को कैसे बनाते हैं. लौकी और पोस्ता मिक्स बहुत स्वादिष्ट बनता है.

समाग्री

लौकी

हरी मिर्च

घी

जीरा

हींग

हल्दी पाउडर

लाल मिर्च

धनिया पाउडर

गर्म मसाला

नमक

पोस्ता दाना

हरा धनिया

विधि

-लौकी का तना काटकर हटा ल फिर लौकी को धोकर मनचाहे अकार में काट लें. अब कड़ाही में तेल या घी गर्म करें फिर उसमें जीरा को डालें.

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-अब उसमें लौकी के टुकड़े और पोस्ता दाना मिलाकर कुछ देर तक चलाकर भूने. कुछ देर के बाद उसमें नमक धनिया पाउडर, लाल मिर्च डालकर अच्छे से भूनें.

-ध्यान रखें पोस्ता दाना को पिसकर ही डालें इससे पोस्ता का स्वाद अच्छा आता है. लौकी को ज्यादा न गलाएं. लौकी खड़ा ही अच्छा लगता हैं.

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-कुछ देर तक ढ़ककर पकाएं ढ़कने के बाद उसमें गरम मसाला ऊपर से डालकर अच्छे मिलान के बाद गैस को बंद कर दें अब कड़ाही से निकारकर थाली में परोसें.

 

मुक्ति : जिंदगी मिली है तो जीना ही पड़ेगा

फोन की घंटी रुकरुक कर कई बार बजी तो जया झुंझला उठी. यह भी कोई फोन करने का समय है. जब चाहा मुंह उठाया और फोन घुमा दिया. झुंझलातीबड़बड़ाती जया ने हाथ बढ़ा कर टेबिल लैंप जलाया. इतनी रात गए किस का फोन हो सकता है? उस ने दीवार घड़ी की ओर उड़ती नजर डाली तो रात के 2 बजे थे. जया ने जम्हाई लेते हुए फोन उठाया और बोली, ‘‘हैलो.’’ ‘‘मैं अभिनव बरुआ बोल रहा हूं,’’ अभिनव की आवाज बुरी तरह कांप रही थी.

‘‘क्या बात है? तुम इतने घबराए हुए क्यों हो?’’ जया उद्विग्न हो उठी. ‘‘सुनीता नहीं रही. अचानक उसे हार्टअटैक पड़ा और जब तक डाक्टर आया सबकुछ खत्म हो गया,’’ इतना कह कर अभिनव खामोश हो गया.

जया स्वयं बहुत घबरा गई लेकिन अपनी आवाज पर काबू रख कर बोली, ‘‘बहुत बुरा हुआ है. धीरज रखो. अपने खांडेकरजी और मुधोलकरजी को तुरंत बुला लो.’’ ‘‘इतनी रात को?’’

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‘‘बुरा वक्त घड़ी देख कर तो नहीं आता. ये अपने सहयोगी हैं. इन्हें निसंकोच तुरंत फोन कीजिए. इस के बाद अपने घर और रिश्तेदारों को सूचना देना शुरू करो. यह वक्त न तो घबराने का है और न आपा खोने का.’’ ‘‘मेरा दिमाग काम नहीं कर रहा है.’’

‘‘तुम खुद घबराओगे तो बच्चों को कौन संभालेगा? क्रियाकर्म तो करना ही है.’’ टेबिल लैंप बिना बंद किए जया पलंग पर धम्म से बैठ गई. अभिनव की अभी उम्र ही क्या होगी? यही कोई 50 वर्ष. 4-5 साल में बच्चे अपनीअपनी घरगृहस्थी में रम जाएंगे तब वह बेचारा कितना अकेला हो जाएगा. आज भी तो वह कितना अकेला और असहाय है? उस के दोनों बच्चे बाहर इंजीनियरिंग में पढ़ रहे हैं. घर में ऐसी घटना से अकेले जूझना कितना त्रासद होगा?

जया के दिमाग में एक बार सोच का सिलसिला चला तो चलता ही रहा. आजकल मानवीय संवेदनाएं भी तो कितनी छीज गई हैं. किसी को भी दूसरे के सुखदुख से कोई लेनादेना नहीं है. उसे इस मुसीबत की घड़ी में कोई अपना नहीं दिखाई दिया. कहने को तो उस के अपनों का परिवार कितना बड़ा है…भाईबहन, मांबाप, रिश्तेदार, पड़ोसी, सहकर्मी और न जाने कौनकौन. मुसीबत में तो वही याद आएगा जिस से सहायता और सहानुभूति की उम्मीद हो. उस ने सब से पहले फोन उसी को किया तो क्या उसे किसी अन्य से सहायता की उम्मीद नहीं है? वह क्या सहायता कर सकती है? एक तो महिला फिर रात के 2 बजे का वक्त. जो भी हो इस वक्त अभिनव के पास सहायता तो पहुंचानी ही होगी. मगर कैसे? वह तो स्वयं इस शहर में अकेली है. अब तो अपना कहने को भी कुछ नहीं बचा है. भाईबहन अपनीअपनी जिंदगी में ऐसे रम गए हैं कि सालों फोन तक पर बात नहीं होती. उन दोनों की जिंदगी तो संवर ही चुकी है. अब बड़ी बहन जिए या मरे…उन्हें क्या लेनादेना है?

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एक जन्मस्थान वाला शहर है, वहां भी अब अपना कहने को क्या रह गया है? जब पिता का देहांत हुआ था तब वह बी.ए. में पढ़ रही थी. घर में वह सब से बड़ी संतान थी. घर में छोटे भाईबहन भी थे. मां अधिक पढ़ीलिखी नहीं थीं. मां को मिलने वाली पारिवारिक पेंशन परिवार चलाने के लिए अपर्याप्त थी. यों तो भाई भी उस से बहुत छोटा न था. सिर्फ 2 साल का फर्क होगा. उस समय वह इंटर में पढ़ रहा था और इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा की तैयारी कर रहा था. मां सोचती थीं कि वंश का नाम तो लड़का ही रौशन करेगा अत: भाई की पढ़ाई में कोई रुकावट न आए. परंपरागत रूप से हल का जुआ बैल की गरदन पर ही रखा जाता है लेकिन यहां पारिवारिक जिम्मेदारी का जुआ उस के ऊपर डाल दिया गया और भाई को भारमुक्त कर दिया गया.

पिता के फंड व बीमा के मिले रुपए भी मां ने भाई की पढ़ाई के लिए सुरक्षित बैंक में जमा कर दिए. वह मेधावी छात्रा तो थी ही. उस ने समझ लिया कि संघर्ष का रास्ता कठोर परिश्रम के दरवाजे से ही निकल सकता है. वह ट्यूशन कर के घरखर्च में सहयोग भी करती और मेहनत से पढ़ाई भी करती. एकएक पैसे के लिए संघर्ष करतेकरते अभाव का दौर भी गुजर ही गया, लेकिन यह अभावग्रस्त जीवन मन में काफी कड़वाहट घोल गया. पिता के किसी भी मित्र या रिश्तेदार ने मदद करना तो दूर, सहानुभूति के दो शब्द भी कभी नहीं बोले. समय अपनी चाल चलता रहा. उस ने एम.ए. में विश्वविद्यालय टौप किया. शीघ्र ही उसे अपने विभागाध्यक्ष के सहयोग से एक महाविद्यालय में प्रवक्ता के पद पर नियुक्ति भी मिल गई. यद्यपि उस की नियुक्ति अपने शहर से लगभग 200 किलोमीटर दूर हुई थी फिर भी उस की खुशी का पारावार न था. चलो, इस लंबे आर्थिक और पारिवारिक संघर्ष से तो मुक्ति मिली.

आर्थिक संघर्ष ने उसे सिर्फ तोड़ा ही नहीं था, कई बार आहत और लज्जित भी किया था. उस का अभिनव से परिचय भी महाविद्यालय में ही हुआ था. वह भी इतिहास विभाग में ही प्रवक्ता था. नई उम्र, नया जोश और अनुभव का अभाव जया की कमजोरी भी थे और ताकत भी. महाविद्यालय की गोष्ठी, सेमिनार, वार्षिकोत्सव जैसे अवसरों पर उस की अभिनव से अकसर भिड़ंत हो जाती थी. उसे लगता कि उस के जूनियर होने के कारण अभिनव उस पर हावी होना चाहता है. महाविद्यालय के वार्षिकोत्सव के स्टेज शो की प्रभारी कमेटी में ये दोनों भी शामिल थे. जया विद्यार्थी जीवन से ही स्टेज शो में हिस्सा लेती रही थी अत: उसे स्टेज शो की अच्छी जानकारी थी. अभिनव अपनी वरिष्ठता और पुरुष अहं के कारण जया की सलाह को अकसर जानबूझ कर नजरअंदाज करने की कोशिश करता. जया कहां बरदाश्त करने वाली थी. वह रणचंडी बन जाती और तीखी नोकझोंक के बाद अभिनव को हथियार डालने के लिए मजबूर कर देती. अभिनव खिसिया कर रह जाता.

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सोचतेसोचते जया की आंख लग गई. फोन की घनघनाहट ने नींद में पुन: बाधा डाली. खिड़की के खुले परदों से कमरे में सुबह की धूप बिखर रही थी. घड़ी 8 बजा रही थी. इतनी देर तक तो वह कभी नहीं सोती. अनुमान सही निकला. यह अभिनव की ही काल थी. ‘‘सभी नजदीकी रिश्तेदारों को फोन कर दिया है. मैं ने न जाने किस मुहूर्त में सिलीगुड़ी से आ कर पूना में नौकरी की थी. सारे रिश्तेदार तो वहीं हैं. कोई भी कल शाम से पहले नहीं आ पाएगा.’’

‘‘तो फिर?’’ ‘‘क्रियाकर्म तो इंतजार नहीं कर सकता. सारी व्यवस्था अभी करनी है.’’

‘‘सब हो जाएगा. आखिर महा- विद्यालय परिवार किस दिन काम आएगा?’’ ‘‘प्रिंसिपल साहब आ चुके हैं, 20-25 स्टाफ के लोग भी आ चुके हैं.’’

‘‘तब क्या मुश्किल है?’’ ‘‘क्रियाकर्म के पहले सुनीता का स्नान और सिंगार भी होना है. तुम आ जातीं तो फोन कर के स्टाफ की दोचार महिलाएं ही बुला लेतीं.’’

‘‘ठीक है, मैं 15-20 मिनट में पहुंचती हूं,’’ जया के पास हां कहने के अलावा कोई विकल्प भी तो न था. विषम परिस्थितियों में अपने लोगों पर स्वत: विशेषाधिकार प्राप्त हो जाता है. तब संकोच का स्थान भी कहां बचता है? क्या आज अभिनव का यह विशेषाधिकार पूरे महाविद्यालय परिवार पर नहीं है? प्राचार्य तो अनुभवी हैं और सामाजिक परंपराओं से अच्छी तरह परिचित भी हैं. तो उन्होंने स्वयं इस समस्या का समाधान क्यों नहीं निकाला? वहां बैठे हुए अन्य सहकर्मी भी बेवकूफ तो नहीं हैं. वे संवेदनशून्य क्यों बैठे हैं? आखिर अर्थी उठने के पहले की रस्में तो महिलाएं ही पूरा करेंगी. अब ये महिलाएं आएंगी कहां से? इस के लिए या तो महिला सहकर्मी आगे आएं या पुरुष सहकर्मियों के परिवारों से महिलाएं आएं. शुभअशुभ जैसी दकियानूसी बातों से तो काम चलेगा नहीं. अभिनव तो बाहरी व्यक्ति है और किराए के मकान में रह रहा है अत: महल्ले में सहयोग की अपेक्षा कैसे कर सकता है?

आज के दौर में नौकरी के लिए दूरदूर जाना सामान्य बात है. मौके बेमौके घरपरिवार वाले मदद करना भी चाहें तो भी आनेजाने की लंबी यात्रा और समय के कारण ये तुरंत संभव नहीं है. फिर दूर की नौकरी में परिवार से मेलमिलाप भी तो कम हो जाता है. ऐसे में संबंधों में वह ताप आएगा कहां से कि एकदूसरे की सहायता के लिए तुरंत दौड़ पड़ें. ऐसे में अड़ोस- पड़ोस और सहकर्मियों से ही पारिवारिक रिश्ते बनाने पड़ते हैं. क्या अभिनव ऐसे कोई रिश्ते नहीं बना पाया जो दुख की इस घड़ी में काम आते? रिश्ते तो बनाने पड़ते हैं और उन्हें जतन से संजोना पड़ता है. और अधिकार बोध? ये तो मन के रिश्तों से उपजता है.

जया को याद आया. 10-12 वर्ष पुरानी घटना होगी. उस समय भी वह गर्ल्स होस्टल की वार्डेन थी. रात के 1 बजे होस्टल की एक छात्रा को भयंकर किडनी पेन शुरू हो गया. वह दर्द से छटपटाने लगी. होस्टल की सारी छात्राएं आ कर वार्डेन के आवास पर जमा हो गईं. वह रात को 1 बजे करे भी तो क्या? अगर कोई अनहोनी हो गई तो कालिज में बवंडर तय है. उस से भी बड़ी बात तो मानवीय सहायता और गुरुपद की गरिमा की थी. उस ने आव देखा न ताव, सीधा अभिनव को फोन घुमा दिया. 15 मिनट के अंदर अभिनव टैक्सी ले कर होस्टल के गेट पर खड़ा हो गया. उस दिन सारी रात अभिनव भी नर्सिंगहोम में जमा रहा.

जया ने अभिनव को धन्यवाद कहा तो अभिनव दार्शनिकों की भांति गंभीर हो गया. ‘धन्यवाद को इतना छोटा मत बनाइए. जिंदगी के न जाने किस मोड़ पर किस को किस से क्या सहायता की जरूरत पड़ जाए?’ टैक्सी और नर्सिंगहोम का भुगतान भी अभिनव ने ही किया था.

रिकशा अभिनव के दरवाजे पर जा कर रुका. जया का ध्यान टूटा. दरवाजे पर 40-50 आदमी जमा हो चुके थे, लेकिन कोई महिला सहकर्मी वहां नहीं थी. उसे थोड़ा संकोच हुआ. सामान्यत: ऐसे मौकों पर पुरुषों का ही आनाजाना होता है. सिर्फ परिवार, रिश्तेदार और पारिवारिक संबंधी महिलाएं ही ऐसे मौके पर आतीजाती हैं अत: अभिनव के घर महिलाओं का न पहुंचना स्वाभाविक ही था. वह सीधी प्राचार्य के पास पहुंची और बोली, ‘‘सर, अब क्या देर है?’’

‘‘दोचार महिलाएं होतीं तो लाश का स्नान और सिंगार हो जाता.’’ जया को महाविद्यालय परिवार याद आया तो उस ने पूछ लिया, ‘‘महा- विद्यालय परिवार कहां गया?’’

प्राचार्य गंभीर हो कर बोले, ‘‘आमतौर पर महिला सहकर्मी ऐसे अशुभ मौकों पर नहीं आती हैं.’’ जया को मन ही मन क्रोध आया लेकिन मौके की नजाकत देख कर उस ने वाणी में अतिरिक्त मिठास घोली, ‘‘सर, यह सामान्य मौका नहीं है. अभिनव अपने घर से कोसों दूर नौकरी कर रहा है. इतनी जल्दी परिवार वाले तो आ नहीं सकते. क्रियाकर्म तो होना ही है.’’

प्राचार्य ने चुप्पी साध ली. अगल- बगल बैठे सहकर्मी भी बगलें झांकने लगे. जया की समझ में अच्छी तरह से आ गया कि महाविद्यालय परिवार की अवधारणा स्टाफ से काम लेने के लिए है, स्टाफ के काम आने की नहीं. जया प्राचार्यजी के पास से उठ कर सीधी अंदर चल दी. मानवीय संवेदना के आगे परंपराएं और सामाजिक अवरोध स्वत: बौने हो गए. फिर यह चुनौती मानवीय संवेदना से कहीं आगे की थी. अगर एक नारी ही दूसरी नारी की गरिमा और अस्मिता की रक्षा नहीं कर सकती है तो इस रूढि़वादी सड़ीगली मानसिकता वाली भीड़ से क्या अपेक्षा की जा सकती है?

जातेजाते जया ने एक उड़ती हुई नजर वहां मौजूद जनसमूह पर भी डाली. भीड़ में ज्यादातर सहकर्मी ही थे जो छोटेछोटे समूहों में बंट कर इधरउधर गप्पें मार रहे थे. अभिनव भी जया के पीछेपीछे अंदर जाने लगा. अभिनव की आंखों में बादल घुमड़ रहे थे, जो किसी भी क्षण फटने को तैयार थे. जया ने आंखों के इशारे से ही अभिनव को रोक दिया. इस रोकने में समय की न जाने कितनी मर्यादाएं छिपी हुई थीं.

अभिनव दरवाजे के बाहर से ही लौट गए. जया ने गीले कपड़े से पोंछ कर सुनीता को प्रतीक स्नान कराया. सुनीता के चेहरे पर योगिनी जैसी चिर शांति छाई हुई थी. जया सुनीता का रूप सौंदर्य देख कर विस्मित हो गई, तो अभिनव ने इतनी रूपसी पत्नी पाई थी? अभिनव ने पहले कभी पत्नी से मुलाकात भी तो नहीं कराई और आज मुलाकात भी हुई तो इस मोड़ पर. जया गमगीन हो गई. कभी अभिनव ने उस के सामने भी तो विवाह का प्रस्ताव रखा था. उस समय वह रोंआसी हो कर बोली थी, ‘अभिनव, ये मेरा सौभाग्य होता. तुम बहुत अच्छे इनसान हो लेकिन परिवार की जिम्मेदारियां रहते मैं अपना घर नहीं बसा सकती. हो सके तो मुझे माफ कर देना.’

फिर भी अभिनव ने कई वर्ष तक जया का इंतजार किया. वैसे उन दोनों के बीच प्रेमप्रसंग जैसी कोई बात भी नहीं थी. पारिवारिक जिम्मेदारियां समाप्त होतेहोते बहुत देर हो गई. उस के बाद अगर वह चाहती तो आासनी से अपना घर बसा लेती लेकिन उस के मन ने किसी और से प्रणय स्वीकार ही नहीं किया.

अभी पिछले हफ्ते ही तो अभिनव उसे समझा रहा था, ‘जया, जिद छोड़ो, अपनी पसंद की शादी कर लो. युवावस्था का अकेलापन सहन हो जाता है, प्रौढ़ावस्था का अकेलापन कठिनाई से सहन हो पाता है. मगर वृद्धावस्था में अकेलेपन की टीस बहुत सालती है.’

जया ने हंस कर बात टाल दी थी, ‘अब इस उम्र में मुझ से शादी करने के लिए कौन बैठा होगा? फिर अगर आज शादी कर भी ली जाए तो 10-5 साल बाद मियांबीवी बैठ कर घुटनों में आयोडेक्स ही तो मलेंगे. अब यह भी क्या कोई मौजमस्ती की उम्र है? इस उम्र में तो आदमी अपने बच्चों की शादी की बात सोचता है.’ अभिनव ने प्रतिवाद किया था, ‘10 साल बाद की बात छोड़ो, वर्तमान में जीना सीखो. हम सुबह घूमने जाते हैं, उगता हुआ सूरज का गोला देखते हैं, फूल देखते हैं, सृष्टि के अन्य नजारे देखते हैं. मन में कैसा उजास भर जाता है. कुछ पलों के लिए हम जिंदगी के सभी अभावों को भूल कर प्रफुल्लित हो जाते हैं. क्या यह जीवन की उपलब्धि नहीं है?’

जया का ध्यान टूटा…सामने अभिनव की पत्नी की मृत देह पड़ी थी. वह धीमेधीमे सुनीता का सिंगार करने लगी. उसे लगा जैसे मन पूछ रहा है कि आज वह इस घर में किस अधिकार से अंदर चली आई? नहीं, वह इस घर में अनधिकार नहीं आई है. आज अभिनव को उस की बेहद जरूरत थी. ‘और अगर अभिनव को कल भी उस की जरूरत हुई तो?’ अचानक उस के मन में प्रश्न कौंधा.

जया ने हड़बड़ा कर सुनीता की मृत देह की ओर देखा : अब वह उस मृत देह का शृंगार कर के, अंतिम बार निहार कर बाहर आ गई. अन्य लोग उस की अंतिम क्रिया की तैयारी करने लगे.

प्याज बीज उत्पादन की वैज्ञानिक विधि

सभी फसलों में अच्छे बीजों का होना अधिक उत्पादन के लिए बहुत जरूरी  है. शुद्ध व विश्वसनीय बीज भारत में बहुत कठिनाई से मिलते  हैं, क्योंकि बीजोत्पादन वैज्ञानिक ढंग से नहीं किया जाता. प्याज के शुद्ध व विश्वसनीय बीज पैदा करने के लिए सही कृषि क्रियाओं, प्रजातियों, छंटाई, कीड़ों व बीमारियों की रोकथाम, परागण, कटाई, सुखाई, मड़ाई, बीज की सफाई, भराई व भंडारण के बारे में सही ज्ञान होना बहुत जरूरी  है. बीज उत्पादन के लिए प्याज को 2 वर्षीय कहा गया  है. सभी जातियों का (जो भारत में उगाई जाती  हैं) बीज उत्पादन मैदानी क्षेत्रों में आसानी से किया जाता  है.

प्याज के बीजोत्पादन की विधि

कंद से बीज उत्पादन विधि  : इस विधि में कंदों को बनने के बाद उखाड़ लिया जाता  है और अच्छी तरह चुन कर के दोबारा खेतों में रोपा जाता  है. इस विधि से गाठों की  छंटाई संभव होती है, शुद्ध बीज बनता है और उपज भी ज्यादा होती  है. लेकिन इस विधि में लागत ज्यादा आती  है और समय अधिक लगता है.

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1 वर्षीय विधि  : इस विधि में बीजों को मईजून में बोया जाता  है और पौधों की रोपाई जुलाईअगस्त में की जाती  है. कंद नवंबर में तैयार हो जाते  हैं. कंदों को उखाड़ कर छांट लिया जाता  है. अच्छे कंदों को 10-15 दिनों बाद दोबारा दूसरे खेत में लगा दिया जाता  है. इस विधि से मई तक बीज तैयार हो जाते हैं. क्योंकि इस से 1 साल में ही बीज बन जाते  हैं, लिहाजा इसे 1 वर्षीय विधि कहते  हैं. इस विधि से खरीफ प्याज की प्रजातियों का बीजोत्पादन होता है.

2 वर्षीय विधि : इस विधि में बीज अक्तूबनवंबर में बोए जाते  हैं और पौधे दिसंबर के आखिर या जनवरी के शुरू में खेत में लगाए जाते  हैं. कंद मई के अंत तक तैयार हो जाते  हैं. चुने हुए कंद अक्तूबर तक भंडार में रखे जाते हैं. नवंबर में फिर चुन कर अच्छे कंद खेत में लगा दिए जाते है. क्योंकि इस विधि के द्वारा बीज पैदा होने में तकरीबन डेढ़ साल लग जाते हैं, इसलिए इसे 2 वर्षीय विधि कहते  हैं. इस विधि से रबी प्याज की प्रजातियों का बीजोत्पादन करते हैं.

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प्याज कंद उगाने की उन्नत विधि

सही जलवायु : अच्छी पैदावार के लिए 14-21 डिगरी सेल्सियस तापमान, 10 घंटे लंबे दिन और 70 फीसदी आर्द्रता मुनासिब होती है. जमीन और उस की तैयारी : बलुई दोमट, सिल्टी दोमट और गहरी भुरभुरी 6.5-7.5 पीएच वाली मिट्टी प्याज के लिए अच्छी होती है. 3-4 जुताइयां कर के खेत की अच्छी तैयारी कर लेते हैं.

बोआई और रोपाई का समय

खरीफ के प्याज की बोआई जूनजुलाई और रोपाई जुलाईअगस्त में करनी चाहिए. रबी के प्याज की बोआई अक्तूबरनवंबर और रोपाई दिसंबरजनवरी में करनी चाहिए.

दूरी : रोपाई करते समय लाइन से लाइन की दूरी 15 सेंटीमीटर और लाइन में पौधों की दूरी 10 सेंटीमीटर रखते  हैं. रोपाई के फौरन बाद हलकी सिंचाई कर देनी चाहिए.

बीज की मात्रा : 1 हेक्टेयर की रोपाई के लिए 6-8 किलोग्राम बीज सही होता  है.

खाद : गोबर की खाद 50 टन, कैल्सियम अमोनियम नाइट्रेट 400 किलोग्राम या यूरिया 200 किलोग्राम, सिंगल सुपर फास्फेट 300 किलोग्राम और म्यूरेट आफ पोटाश 100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से डालनी चाहिए. नाइट्रोजन खाद को 2 भागों में रोपाई के 30 और 45 दिनों के अंतर पर देना चाहिए.

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सिंचाई  : सिंचाई समय पर जरूरत के मुताबिक 8-15 दिनों के अंतर पर करते  हैं.

खरपतवार निकालना  : अच्छी फसल के लिए शुरू में 2-3 बार खरपतवार निकालना आवश्यक होता  है. रोपाई के 3 दिनों बाद या रोपाई से पहले 3.5 लीटर स्टांप खरपतवारनाशी 800 लीटर पानी में डाल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करने से खरपतवार खत्म करने में मदद मिलती है.

फसल सुरक्षा  : प्याज में थ्रिप्स नामक कीट लगने पर 500 लीटर पानी में 750 मिलीलीटर मैलाथियान या 375 मिलीलीटर मोनोक्राटोफास या सैंडोविट मिला कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करते  हैं. स्टेमफिलियम झुलसा और पर्पल ब्लाच रोग से बचाव के लिए डाईथेन एम 45 या इंडोफिल एम 45 की 2.5 किलोग्राम मात्रा या कवच की 2 किलोग्राम मात्रा का प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करते  हैं.

खुदाई : 50 फीसदी पत्तियां जमीन पर गिरने के 1 हफ्ते बाद खुदाई करने से भंडारण में होने वाली हानि कम होती  है. खुदाई कर के पौधों को कतारों में रख कर सुखा लेते हैं. पत्तों को गर्दन से 2.5 सेंटीमीटर ऊपर से अलग कर लेते  हैं और फिर 1 हफ्ते तक सुखाते हैं. कंदों को सीधे सूर्य की रोशनी में नहीं सुखाना चाहिए और भीगने से बचाना चाहिए, वरना भंडारण में काफी नुकसान होता है.

भंडारण : अच्छी, समान रंग की पतली गर्दन वाली, दोफाडे़ रहित प्याजों का  भंडारण करते हैं. 4.5 सेंटीमीटर से 6.5 सेंटीमीटर व्यास के प्याज कंद बीज उत्पादन के लिए सही होते  हैं. उन्हीं का  भंडारण करते  हैं. इस से  छोटे व बड़े कंदों को बाजार में बेच देना चाहिए.

गांठों का चयन और बोआई : बीजोत्पादन के लिए 4.5 से 6.5 सेंटीमीटर व्यास वाले कंद लगाने से पैदावार अच्छी होती है. कंद एक जैसे और स्वस्थ होने चाहिए. बीजोत्पादन के लिए कंदों को लगाने का समय : नवंबर का पहला हफ्ता या दिसंबर के मध्य तक का समय बीज उत्पादन के लिए होता है. रबी प्रजातियों को नवंबर के मध्य और खरीफ की प्रजातियों को दिसंबर मध्य तक लगाना चाहिए. चुने हुए कंदों का एक तिहाई हिस्सा काट कर गांठों को 0.1 फीसदी कार्बेंडाजिम के घोल में डुबा कर लगाया जाता है. कंदों को अच्छी तरह तैयार किए गए खेतों में समतल क्यारियों में 45×30 सेंटीमीटर की दूरी पर 1.5 सेंटीमीटर गहरा लगाया जाना चाहिए. बोआई के बाद हलकी सिंचाई करनी चाहिए.

1 हेक्टेयर जमीन में लगने के लिए तकरीबन 25-30 क्विंटल कंद काफी होते  हैं. खरीफ के प्याज को लगाने से पहले कंदों को 1 फीसदी केएनओ के  घोल में मिला कर रखें, इस से अंकुरण अच्छा होता  है.

खाद व उर्वरक : कंदों को लगाने से 20-25 दिनों पहले 20 टन गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में मिला देनी चाहिए. बाद में 100 किलोग्राम यूरिया, 300 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट व 100 किलोग्राम म्यूरेट आफ पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में कंदों के लगाने के स्थान पर खुरपी से बनाए गए गड्ढों में अच्छी तरह मिलाने के बाद कंदों को लगाते हैं. यदि ऐसा न किया जाए तो कंद खाद के संपर्क में आने पर सड़ने शुरू हो जाते  हैं. कंदों के लगाने के 30 दिनों बाद 100 किलोग्राम यूरिया या 200 किलोग्राम किसान खाद प्रति हेक्टेयर के हिसाब से पौधों की जड़ों के पास मिला देते  हैं.

राष्ट्रीय बागबानी अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान ने अपने प्रयोगों द्वारा पूसा रेड की गांठों को 30×45 सेंटीमीटर की दूरी पर लगा कर और 60 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर दे कर करनाल और नासिक क्षेत्रों में सब से अच्छी बीज की पैदावार हासिल की है. नासिक में एग्रीफाउंड डार्क रेड प्रजाति के बीजोत्पादन में 30×30 सेंटीमीटर दूरी रखने और 120 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर की दर से  डालने से  ज्यादा पैदावार मिली है. खेत में 10 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से पीएसबी का इस्तेमाल भी करना चाहिए. खरपतवारनाशक दवाओं का इस्तेमाल  : स्टांप प्रति हेक्टेयर 3.5 लीटर की दर से कंद लगाने से पहले  क्यारियों में छिड़कते  हैं. 1 बार खरपतवारों को हाथों से निकालते  हैं, इस से खरपतवारों पर नियंत्रण रहता है और पैदावार भी अच्छी होती है.

सिंचाई व फसल की देखभाल : मौसम व मिट्टी के अनुसार हर 7-10 दिनों के अंतर पर बराबर सिंचाई करनी चाहिए. बोआई के 2 महीने बाद पौधों की जड़ों के पास मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए. इस से उन्हें सहारा मिलता है और फूल निकलते समय गिरने से बच जाते  हैं. ड्रिप इरीगेशन से भी प्याज का बीजोत्पादन किया जाता  है.

अलगाव दूरी : प्याज में परपरागण होता  है, इसलिए जब 2 जातियों के प्रमाणित बीज पैदा करने हों, तो उन के बीच में कम से कम 500 मीटर की दूरी होनी चाहिए.

खराब पौधों की छंटाई  : रोगग्रस्त और उन पौधों को जो उस जाति से अलग दिखाई पड़े जिस का बीज बनाया जा रहा है, फूल आने से पहले ही निकाल देना चाहिए. इस से शुद्ध बीजोत्पादन में मदद मिलती है.

परागण को सुधारने के लिए ध्यान देने वाली बातें  : प्याज में परपरागण होता है, इसलिए मधुमक्खियों का अधिक संख्या में होना जरूरी होता  है. अच्छी तरह पर परागण के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए:

* मधुमक्खियों की कालोनी खेत के बीच में रखनी चाहिए.

* फूल आने के समय और बीज बनने के समय सिंचाई बराबर करनी चाहिए.

* फूल आने के समय किसी ऐसी दवा का छिड़काव नहीं करना चाहिए, जो मधुमक्खियों के लिए हानिकारक हो.

* अधिक तेज हवा से  भी मधुमक्खियां फूलों पर बैठ नहीं पाती इस से परागण अच्छी तरह नहीं होता.

तेज हवा से बचाने के लिए प्याज बीजोत्पादन के खेत के चारों तरफ ऊंचे पौधों की बाड़ लगानी चाहिए.

फसल की सुरक्षा : थ्रिप्स और शीर्ष छेदक कीटों के आक्रमण के समय इंडोसल्फान या जोलोन की 2 मिलीलीटर मात्रा का प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करना चाहिए.

बैगनी धब्बा और स्टेमफिलियम झुलसा रोग की रोकथाम के लिए मैंकोजेब की 2 किलोग्राम मात्रा को प्रति 800 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 15 दिनों के अंतर पर छिड़काव करना चाहिए. दवा छिड़कने से पहले घोल में चिपकने वाली दवा अवश्य मिला दें. नासिक और करनाल में मैंकोजेब 0.25 फीसदी और मोनोक्रोटाफास 0.05 फीसदी का 5-6 बार छिड़काव करने से रोगों का नियंत्रण अच्छा रहा और उत्पादन बढ़ा. कटाई, मड़ाई, बीज की सफाई, सुखाई, भंडारण और पैकिंग : बोआई के 1 हफ्ते बाद अंकुरण शुरू हो जाता  है. तकरीबन ढाई महीने बाद फूल वाले डंठल बनने शुरू हो जाते  हैं. फूल गुच्छ बनने के 6 हफ्ते के अंदर ही बीज पक जाते हैं. गुच्छोें का रंग जब मटमैला हो जाए और 20 फीसदी कैपसूल के काले बीज दिखाई देने लगें, तो गुच्छों को कटाई लायक समझना चाहिए.

फूलों के गुच्छे समान रूप से नहीं पकते, इसलिए उन्हीं गुच्छों को काटना चाहिए जिन के बीज छितरने वाले हों. कटे हुए गुच्छों को कैनवास के कपड़े पर या हवादार और छायादार जगह पर बने पक्के फर्श पर फैला कर सुखाना चाहिए. इस के बाद बीजों की सफाई मशीन से कर देनी चाहिए. यदि बीज अच्छी तरह साफ न हो पाएं तो ग्रेविटी सेपरेटर से दोबारा साफ करने चाहिए. साफ बीजों को यदि टीन के डब्बों, अल्यूमिनियम फायलों या मोटे प्लास्टिक के लिफाफों में भरना हो, तो उन्हें 5 फीसदी नमी तक सुखाना चाहिए. सुखाने के बाद बीजों को 2-3 ग्राम थाइरम से प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित कर के लिफाफे या डब्बों में बंद करना चाहिए.

अगर बीजों को अच्छी तरह से सुखा कर बंद डब्बों या मोटे प्लास्टिक के लिफाफे में भरा गया हो, तो 18 से 20 डिगरी सेल्सियस तापमान और 30 से 40 फीसदी नमी में 2 सालों तक सुरक्षित रखा जा सकता  है.

] डा. अनंत कुमार, डा. वीरेंद्र पाल व डा. पूनम कश्यप

(कृषि विज्ञान केंद्र, गाजियाबाद, हस्तिनापुर व पीडीएफएसआर मेरठ)

जब माफ करते न बने

लेखिका-वंदना वाजपेयी

हमारे साथ जब कोई बुरा व्यवहार करता है, धोखा देता है या इमोशनल ब्लैकमेल करता है तो चोट खाए एक बच्चे की तरह हमारा मन विलाप करने लगता है.

कई बार हम चाहते हैं कि उसे भी वैसा ही दंड मिले, तो कई बार हम जानते हैं कि परिस्थिति और पोजीशन के कारण उसे वैसा दंड नहीं मिल सकता और मन उसे माफ करने को बिलकुल तैयार नहीं होता.

माफ करो और आगे बढ़ो

अकसर जब कोई हमारे साथ बुरा करता है तो हमारे आसपास के लोग हम से यही कहते हैं. कई बार कहा जाता है कि तुम अपने लिए माफ करो, क्योंकि तुम माफ नहीं करोगे तो उस घटना को भूल नहीं पाओगे.

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हमारा भुक्तभोगी से जितना गहरा रिश्ता होता है, हम जितनी जल्दी उस को खुश देखना चाहते हैं, हमारा यह दवाब उतना ही ज्यादा होता है.

यह सही है कि माफ करना जरूरी है पर यह अनायास नहीं हो सकता. ऐसे में दवाब बनाना बेईमानी है.

कई बार यह अन्याय सा लगता है जैसेकि हम विक्टिम की छाती पर माफ करने का पत्थर रख दें और कहें कि तुम्हारे साथ चाहे जितना भी गलत हुआ हो अब माफ करने की जिम्मेदारी भी तुम्हारी है.

कई बार स्थिति इतनी बगड़ती है कि भुक्तभोगी को लगता है कि वह माफ ना कर पाने का भी दोषी है.

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कुछ समय पहले एक ऐसी ही दोस्त  का फोन आया. वह काफी विचलित थी. लंबे समय से खाए जा रहे धोखे को भूल पाने में असमर्थ थी. सब से ज्यादा कष्ट उन्हें इस बात का था कि उन के अपने उसे माफ कर आगे बढ़ने की सलाह दे रहे थे.

क्या कहते हैं विशेषज्ञ

मनोवैज्ञानिकों का इस संबंध में अलग मत है. उन का मानना है कि हर धोखे से मन पर घाव लगते हैं और ये घाव उतने ही गहरे होते हैं जितना आप का उस व्यक्ति के साथ भावनात्मक जुङाव होता है क्योंकि ये घाव बाहर से नहीं दिखते इसलिए संबंधित व्यक्ति ही बता सकता है कि उस का घाव कब भर गया है और वह कब माफ करने को तैयार है.

इस मामले में बीके शिवानी एक किस्सा सुनाया करती हैं. किस्सा कुछ इस तरह है कि एक औरत का पति उसे छोड़ कर अपनी सहायिका के साथ अमेरिका चला गया. यह जान कर उसे गहरा धक्का लगा. उस के लिए जिंदगी जीना मुश्किल हो गया. उस के पास धन की भी कमी थी, उसे बच्चों की परवरिश भी करनी थी. शिवानी को रोरो कर उस ने सारी बातें बताईं. उस की मदद करने के लिए उन्होंने बस इतना कहा कि तुम बस पूरे विश्वास से ‘सब ठीक है’ कहो.

उस को यह बात थोङी अजीब तो लगी पर उस ने मान ली. करीब 1 महीने बाद वह फिर वहां आई और उस ने कहा कि मेरी नौकरी एक स्कूल में लग गई है. अब मैं आर्थिक रूप से स्वतंत्र व व्यस्त हूं.

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“और तुम्हारा पति?”

“वह अभी वहीं है पर अब मुझे इतनी तकलीफ नहीं होती.”

शिवानी ने राहत की सांस ली. उन्होंने उसे वही बात आगे भी दोहराते रहने को कहा.

करीब 3 महीने बाद वह फिर आई. उस ने शिवानी को बताया कि उस के पति की मित्र ने उसे धोखा दे दिया है. वह वापस आना चाहता है.

“तो तुम्हारा क्या उत्तर है?”

मैं भी उसे वापस चाहती हूं,” उस ने कहा.

“तो फिर ठीक है, आगे बढ़ो…”

सहीगलत का फैसला

यह एक औरत का किस्सा है पर हो सकता है कि कोई दूसरी औरत इस बात के लिए तैयार ना हो. ऐसे में वह उसे फिर से स्वीकारने के दवाब में आ जाएगी. इस में से कोई अच्छा या बुरा नहीं है. कोई सही या गलत नहीं है.

मैं ने ऐसे लोगों का दर्द देखा है जो इस दबाव से जूझते हैं. इसलिए अपनी परिचित से आदत के अनुसार मैं ने बिलकुल भी नहीं कहा कि तुम माफ कर के आगे बढ़ो.

मैं ने उस से सिर्फ इतना कहा,”तुम सिर्फ आगे बढ़ो, अपनी जिंदगी में आगे बढ़ो. धीरेधीरे यह दर्द तुम्हारी जिंदगी के कैनवास पर बहुत बड़े काले गोले से खुदबखुद छोटे से काले डौट में परिवर्तित हो जाएगा, तब शायद तुम उसे माफ कर सको और नहीं भी कर सको तो खुद को दोष मत देना.

कुछ गांठे कभी खुलती नहीं. कुछ सवाल कभी हल नहीं होते. जिंदगी ऐसी ही है और इसे ऐसे ही स्वीकार कर लेनी चाहिए.

याद रखिए कि अगर आप भी किसी को माफ नहीं कर पा रहे हैं तो यह मत सोचिए कि यह आप की जिम्मेदारी बनती है या यह माफ करना आप के अपने लिए है.

जो भी हो अगर आप अभी मानसिक तौर पर माफ करने के लिए सहज नहीं हैं तो अपने ऊपर ज्यादा दवाब मत डालिए बल्कि अपनी जिंदगी में आगे बढ़ने की कोशिश करें. जब सहज हो जाए तो उस व्यक्ति को संभव हो सके तो माफ कर दीजिए पर उस से सिखाए हुए पाठ को कभी मत भूलिए.

 

बिग बॉस 14: राहुल वैद्या कि गर्लफ्रेंड दिशा परमार ने दिया रुबीना दिलाइक को करारा जवाब, कह दी ये बात

बीते कुछ समय में ही रुबीना दिलाइक के गुस्से के शिकार बहुत लोग हुए हैं. दो दिन पहले बिग बॉस ने घर वालों को डांटते हुए कहा था कि लोग घर में हो रहे गेम में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं. इस दौरान बिग बॉस ने एक वीडियो भी दिखाया था.

दिखाए गए वीडियो में घर के सभी मेंबर सुस्त नजर आ रहे थें. जबसे बिग ब़ॉस ने फटकार लगाई है तबसे रुबीना दिलाइक के तेवर कुछ ज्यादा ही बदले से लगने लगे हैं.

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सबसे पहले रुबीना दिलाइक ने कविता कौशिक से जमकर लड़ाई की उसके बाद रुबीना का सामना हुआ राहुल वैद्या और निक्की तम्बोली से जिसे रुबीना ने अपने गुस्से का शिकार बनाया.

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बीते दिन रुबीना दिलाइक राहुल वैद्या से बिना वजह के लड़ते दिखाई दी और फिर वह बहुत सारा ज्ञान राहुल वैद्या को देने लगी और बार बार औकात की बात कह रही थीं. जिसके बाद राहुल वैद्या कि गर्लफ्रेंड दिशा परमार को भी यह बात हजम नहीं हुई और दिशा परमार ने गुस्से में रुबीना दिलाइक को लेकर सोशल मीडिया पर कह दी ये बात

दिशा ने ट्वीट करते हुए लिखा जिनके खुद के घर शीशे के होते हैं वह दूसरों के घर में पत्थर नहीं मारा करते हैं. तुम लोग इस शो में किसी की भलाई नहीं चाहते अपना ध्यान खुद ही रखों.

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इसके बाद क्या था सोशल मीडिया पर दिशा परमार का ट्वीट वायरल होने लगा सभी फैंस दिशा के ट्वीट पर कमेंट करने लगें.

दिशा परमार और राहुल वैद्या का रिलेशन कुछ वक्त पहले ही चर्चा में आया है. वहीं राहुल वैद्या कि मां भी दिशा को बहुत ज्यादा पसंद करती हैं. उन्होंने भी अपनी तरफ से दिशा के लिए हां कर दिया है.

आदित्य सील ने इंटरव्यू में कहा ‘डेटिंग एप्स का संसार मेरी समझ से परे है’

‘‘मेरे कैरियर में काफी उतार चढ़ाव व संघर्ष रहे..’’‘‘सीरियल किलर का किरदार निभाना चाहता हूं..’
-आदित्य सील

बीस वर्ष पहले 2002 में 13 वर्ष की उम्र में आदित्य सील ने उस वक्त की सफलतम अदाकारा मनिषा कोईराला के प्रेमी के रूप में शशीलाल नायर निर्देषित फिल्म ‘एक छोटी सी लव स्टोरी’में अभिनय किया था.बोल्ड कंटेंट व प्रेम कहानी प्रधान इस फिल्म को जबरदस्त सफलता मिली थी.उस वक्त आदित्य सील स्टार बन गए थे.पर वह उम्र के ऐसे पड़ाव पर थे,जब वह दूसरी फिल्मों में हीरो बनकर नही आ सकते थे.इसलिए उन्होने कुछ दिन अभिनय से दूरी बना ली थी.2006 में उन्होने किशोर वय के लड़के व लडकियों की फिल्म ‘वी आर फ्रेंड’ में अभिनय किया था,जिसे खास सफलता नही मिली थी.फिर 2014 में वह सैम्यूअल लाॅरेस की फिल्म‘‘पुरानी जींस’’में हीरो बनकर आए,मगर इससे उनका कैरियर आगे नहीं बढ़ा.फिर उन्होने ‘तुम बिन-दो’,‘नमस्ते इंग्लैंड’ जैसी फिल्में की,पर परिणाम ढाक के तीन पात ही रहा.

मगर फिल्म ‘स्टूडेंट आफ द ईअर’ में आदित्य सील ने टाइगर श्रॉफ को जबरदस्त टक्कर दी,तो अचानक वह एक बार फिर सूर्खियों में छा गए. अब वह किआरा अडवाणी के संग लेखक व निर्देशक अबीर सेन गुप्ता की फिल्म ‘इंदू की जवानी’ को लेकर काफी उत्साहित हैं,जो कि 11 दिसंबर को सिनेमाघरों में पहुंचेगी.

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प्रस्तुत है आदित्य सील संग हुई एक्सक्लूसिब बातचीत के अंश..अब तक के अपने कैरियर को आप किस तरह से देखते हैं?
-अब तक कैरियर काफी संघर्षमय रहा है.काफी उतार चढ़ाव रहे है.कई मायनों में अच्छा भी रहा.बहुत कुछ सीखा है.बहुत कुछ सीखना बाकी है.फिर भी एक अच्छी यात्रा रही है.मुझे गर्व है कि मैं एकदम जमीनी सतह से शुरूआत की थी और जहां भी पहुॅचा हूं,उसके लिए मुझे अपने आप पर गर्व है.क्योंकि यह सब मेरी अपनी मेहनत,लगन व परिश्रम की ही बदौलत मिला है.

क्या चैदह वर्ष की उम्र में मिनिषा कोईराला के साथ आपने एक फिल्म ‘एक छोटी सी लव स्टोरी’ की थी, उसका भी साइड इफेक्ट रहा?

नहीं…मैंने यह फिल्म चैदह वर्ष की उम्र में की थी.इसकी काफी चर्चा हुई थी.पर चैदह वर्ष की उम्र के बालक को कौन सी फिल्म मिलती है?इसलिए कोई साइड इफेक्ट नहीं था.बल्कि हकीकत यह है कि आज जब भी मैं किसी से इस फिल्म का जिक्र करता हूं,तो लोग मुझे पहचानते है और प्रशंसा  करते हैं.लोगों को यह फिल्म याद है.मुझे याद है कि मैं कुछ वर्ष पहले एक बड़े कलाकार से मिला था.उन्हे भी मैं इसी फिल्म की वजह से याद था.इस हिसाब से इस फिल्म के अच्छे इफेेक्ट ही रहे.

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लंबे समय के बाद आपको ‘स्टूडेंट आफ द ईअर 2’’से शोहरत मिली.इसका आपके कैरियर में कितना योगदान रहा?

बहुत बड़ा व अच्छा योगदान रहा.वैसे तो मैने इस फिल्म से भी ज्यादा अच्छा व बेहतर अभिनय अपनी दूसरी फिल्मों में भी किया था.मगर उन फिल्मों के साथ समस्या यही हुई थी कि उन फिल्मों को ज्यादा दर्षक नहीं मिले थे.फिल्में भी अच्छी थी,पर वह फिल्में दर्षकों के साथ नहीं जुड़ पायी थीं.इसके अलावा ‘तुम बिन 2’के समय डिमाॅनीटाइजेशन भी हो गया था.लेकिन ‘स्टूडेंट आफ द ईअर 2’’को दर्शक मिले.लोगों का ध्यान मेरी परफार्मेंस की तरफ गया.इसी वजह से मुझे फिल्म ‘इंदू की जवानी’मिली.

‘‘इंदू की जवानी’किस तरह की फिल्म है?
-यह एक फनी फिल्म है.काॅमेडी आफ एअरर कह सकते हैं.इसमें एक सोशल नाॅड पर भी बात की गयी है.सटीक उदाहरण न देते हुए कहूं कि अगर हमारे दिमाग में किसी इंसान या कम्यूनिटी या किसी रंग के इंसान को लेकर एक जजमेंट घर कर गया होता है,उसको तोड़ने का यह फिल्म एक प्रयास है.यह फिल्म साफ साफ कहती है कि किसी किताब के संबंध में उसका ‘कवर’ देखकर कोई निर्णय नहीं लेना चाहिए,बल्कि उसके अंदर के पन्नों को पढ़ने के बाद ही निर्णय लेना चाहिए.

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फिल्म‘‘इंदू की जवानी’के अपने समर के किरदार को किस तरह से परिभाषित करेंगे?
-मैं जिस मोड की बात कर रहा हूं,उस चीज से समर काफी उपर है.वह जब तक किसी को अच्छी तरह से जानता नही है,तब तक उसके बारे में  कोई राय नही बनाता है.वह किसी तरह की राय बनाने से पहले उस इंसान को भलीभांति जानना चाहेगा.वह किसी भी क्षेत्र से आता हो,पर वह पूरी दुनिया घूम चुका है.बहुत तरीके के लोगों से मिल चुका है.पूरे संसार को लेकर उसके विचार बहुत अलग हैं.

समर के किरदार को निभाना कितना आसान रहा?

-सर जी,समर के किरदार को निभाना मेरे लिए आसान नही,बल्कि काफी कठिन और चुनौती रही.इसके लिए मुझे बहुत ज्यादा होमवर्क की जरुरत पड़ी.मुझे इस किरदार को निभाने के लिए ‘मेंटल ब्लाॅक’से निकलना आवश्यक था,जो कि मुझसे हो ही नहीं पा रहा था.मैं जिस तरह के मेंटल ब्लाॅकिंग की बात कर रहा हूं. वह समाज के जो कायदे कानून है,उसकी वजह से जाने अनजाने आपके अंदर भी है,मेरे अंदर भी है.उसको तोड़कर समर के किरदार में घुसना मेरे लिए आसान नहीं था.क्योंकि इस किरदार को निभाने के लिए मुझे अपने दिमागी यकीन को तोड़ना था.मुझे अच्छी तरह से याद है कि जब मैं अपने निर्देशक के साथ पटकथा की रीडिंग कर रहा था,तब मैं अंदर से कंफीडेंट नहीं था.मैं  उनसे बार बार कहता था कि मैं नहीं कर पा रहा हॅूं.इसमें मेरा ‘इनपुट’कुछ भी नही है.क्योंकि यह किरदार मेरे अंदर से ही नहीं आ रहा है.फिर मैं कुछ दिन के लिए छुट्टियां  मनाने पेरिस चला गया,जब वहां से वापस लौटा,तब तक मेरा दिमाग खुल चुका था.उसके बाद भी काफी मेहनत व लगन के साथ इस किरदार को निभाया.

मैने सुना है कि फिल्म‘‘इंदू की जवानी’’ में ‘डेटिंग एप्स’का भी मसला हैं?डेटिंग एप्स से आप कितना इत्तफाक रखते हैं?

बहुत साल पहले ऐसा कुछ करते थे.अभी तो मैं किसी भी डेटिंग एप्स पर नही हॅूं.लगभग दो वर्ष पहले मैं एक डेटिंग एप्स पर गया था,महज यह देखने के लिए इसमें  क्या होता है,तो मेरी समझ में आया कि यह संसार मेरी समझ के बाहर का है.मुझे यह भी पता है कि मेरे कई दोस्त इन ‘डेटिंग एप्स’पर हैं.मेरे कुछ दोस्त इन डेटिंग एप्स के माध्यम से षादी के बंधन में भी बंधे हैं.पर मेरी समझ से परे है. मैं थोड़ा सा सोषियली आक्वर्ड भी हूं. मैं जल्दी से लोगांे के साथ घुलमिल नही पाता.इसलिए भी डेटिंग एप्स मेरे लिए नहीं बना है.

कौन सी चीजे हैं,जिनकी वजह से आप सोषियली आक्वर्ड महसूस करते हैं?
-अब मैं इसे परिभाषित कैसे करुं.मैं लोगों से बात करने की कोशिश  करता हॅूं,तो कई बार नर्वस हो जाता हूं.वजह पता नही. मैं  कभी इसके मनोविज्ञान के अंदर घुसा नहीं हॅूं.यदि सामने वाला ज्यादा बात नहीं करता है,तो मेरी समझ में नहीं आता है कि क्या बात की जाए?मैं खुद  किसी से बात करने की शुरूआत करना नहीं जानता.

किसी भी किरदार को निभाने से पहले होमवर्क के तहत आत्म चिंतन करना या कोई फिल्म देखना या उससे संबंधित किताबें पढ़ना फायदेमंद होता है?
-आत्मचिंतन भी फायदेमंद होता है.मगर यह जरुरी नहीं है कि किरदार की जरुरत के अनुरूप आपकी जिंदगी में भी वह अनुभव हुआ हो.मसलन- फिल्म की कहानी के अनुरूप किसी का दिल टूटा है,पर यदि आपकीे कोई गर्लफें्रड ही नही रही होगी,तो फिर दिल टूटने का आत्म चिंतन कैसे करेेगें?कहने का अर्थ है कि जब तक आपको अनुभव नहीं होगा,तब तक आप आत्म चिंतन नहीं कर सकते.इसलिए मेरी राय में कुछ फिल्म वगैरह देखना और अधिक से अधिक पढ़ना मददगार साबित होता है.

बौलीवुड में आप खुद को कितना सुरक्षित महसूस करते हैं?
-मेरे अंदर असुरक्षा की भावना ही नही है.मैं किसी भी तरह की हीनग्रथि का षिकार नही हूं.मुझे प्रतिस्पर्धा का डर नही सताता.मुझे दूसरों की सफलता की कहानियां सुनकर खुशी मिलती है.मैं सकारात्मक सोच रखता हूं.मुझे यकीन है कि मेरी राह में भी सफलता के फूल विखरेंगे,मेरे हिस्से भी बेहतरीन व चुनौती किरदार आते रहेंगें.
अब आप किस तरह के किरदार निभाना चाहते है?
-मैं एक सीरियल किलर का किरदार निभाना चाहता हॅूं.मुझे लगता है कि इस तरह के किरदार को मैं बेहतर तरीके से निभा सकता हूं.वैसे इसकी वजह मुझे भी नहीं पता.लेकिन हकीकत यह है कि मैं अंदर से भी हिंसात्मक इंसान नही हूं.मैने आज तक किसी पर भी हाथ नहीं उठाया है.

आपके शौक?
-गिटार बजाना पसंद है.फिलहाल गिटार बजाना सीख रहा हूं.इसके अलावा मार्षल आर्ट भी कर रहा हूं.मैं तायकोंडे में विश्व चैपियन रह चुका हूं.भारत के लिए मैने गोल्डमैडल जीते हैं.
सोशल मीडिया पर आप कितना व्यस्त रहते हैं और क्या लिखना पसंद करते हैं?
-मैं सिर्फ इंस्टाग्राम पर तस्वीरें डालता रहता हूं और दूसरों की तस्वीरें भी देखता रहता हूं.यह महज टाइम पास है.ट्वीटर पर राजनीति की बातें ज्यादा होती हैं,जिसमें मेरी कोई रूचि नहीं है.

इंसाफ की डगर पे : गार्गी के सामने कौन से दो रास्ते थे

‘टिंगटौंग’ दरवाजे की घंटी बजी. टू बीएचके फ्लैट के भूरे रंग के दरवाजे के ऊपर नाम गुदे हुए थे- डा. भाष्कर सेन, श्रीमती गार्गी सेन, आईपीएस. अधपके बालों वाली एक प्रौढ़ा ने दरवाजा खोला और मुसकराते हुए कहा, ‘‘दीदी, आज बड़ी देर कर दी तुम ने. दादाबाबू तो कब के आए हुए हैं. काफी थकीथकी दिख रही हो,’’ कहतेकहते उस ने महिला के हाथों से बैग ले लिया और फिर कहा, ‘‘तुम जाओ कपड़े बदल लो, मैं खाना गरम करती हूं.’’ ये हैं श्रीमती गार्गी सेन, जौइंट कमिश्नर औफ पुलिस, (क्राइम), आईपीएस 1995 बैच और इस घर की मालकिन. गार्गी जूते उतार कर बैडरूम की तरफ बढ़ गई. बैडरूम में उस के पति भाष्कर बिस्तर पर सफेद पजामा और कुरता पहने, आंखों पर चश्मा लगाए पैरासाइकोलौजी की किताब पढ़ रहा था.

गार्गी के पैरों की आहट सुनते ही उस ने आंखें किताब से ऊपर उठाईं और आंखों से चश्मा उतारा. किताब को बिस्तर के पास रखी साइड टेबल पर रखते हुए कहा, ‘‘आज लौटने में बहुत देर हो गई तुम्हें, उस नए मामले को ले कर उलझी हो क्या?’’ गार्गी उस के प्रश्न का उत्तर दिए बिना ही बिस्तर पर उस की बगल में जा बैठी. भाष्कर ने उस की तरफ देखा और उस के गालों पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘बहुत अपसेट लग रही हो, जाओ यूनिफौर्म बदलो, फ्रैश हो कर आओ, डिनर टेबल पर मिलते हैं.’’

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गार्गी ने बिना कुछ कहे सिर हिला कर हामी भरी. बड़ी मुश्किल से रोंआसी आवाज में उस के मुंह से निकला, ‘‘हूं.’’ फिर एक लंबी सांस ले कर भाष्कर की तरफ आंखें उठाईं. उस की आंखों में आंसू लबालब भरे हुए थे, मानो अभी छलकने को तैयार हों. भाष्कर ने पहले ही उस की परेशानी भांप ली थी. उस ने गार्गी को आलिंगन किया और उसे अपने बाहुपाश में जोर से जकड़ते हुए 2-3 दफे उस की पीठ ठोकी.

गार्गी ने अपना सिर भाष्कर के कंधे पर रखते हुए कहा, ‘‘तुम कैसे बिना कुछ कहे ही सब समझ जाते हो.’’ भाष्कर ने उस के कंधे पर फिर एक बार थपकी दी और कहा, ‘‘जाओ, हाथमुंह धो कर आओ, बहुत भूख

लगी है.’’ गार्गी ने जबरन अपने होंठों को चीर कर बनावटी मुसकराने की कोशिश की और उठ कर बाथरूम की ओर बढ़ गई.

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कुछ देर बाद कपड़े बदल कर जब वह डाइनिंग टेबल पर आई तो भाष्कर पहले से ही वहां मौजूद था. सामने टीवी चल रहा था. गार्गी भाष्कर की बगल वाली सीट पर आ कर बैठ गई और रिमोट ले कर टीवी चैनल बदल दिया. इतने में प्रौढ़ा अंदर से आई और खाना परोसने लगी.

टीवी पर एक न्यूज चल रही थी और दिनभर की महत्त्वपूर्ण खबरों को एक ही सांस में न्यूज रीडर पढ़े जा रही थी, ‘‘चांदनी चौक कांड का आज 5वां दिन. मंत्री आशुतोष समाद्दार के भतीजे मंटू समाद्दार और उस के 3 साथियों को पुलिस हिरासत में लिया गया. डैफोडिल अस्पताल के सीएमओ डा. नीतीश शर्मा ने बताया कि नाबालिग लड़की की हालत नाजुक. शरीर पर चोटों के कई निशान पाए गए हैं. हमारे संवाददाता से बातचीत में मंत्री आशुतोष समाद्दार ने बताया, ‘मेरा भतीजा निर्दोष है, उसे फंसाया जा रहा है. लड़की का चालचलन ठीक नहीं है. उस की पारिवारिक पृष्ठभूमि भी सही नहीं है. उस की मां के पेशे के बारे में तो आप सब जानते ही होंगे, मैं और क्या कहूं. ऐसे में आप ऐसी लड़कियों से क्या आशा रख सकते हैं?’’ संवाददाता बोला, ‘पर ऐसा क्यों किया उस ने? व्यक्तिगत स्तर पर आप से कोई दुश्मनी है या विरोधी पार्टी का काम है, आप का क्या मानना है?’

मंत्री बोले, ‘कुछ कह नहीं सकते, विरोधी पार्टी का हाथ इस के पीछे है या नहीं, यह पता लगाना तो पुलिस का काम है. मैं बस इतना ही कहूंगा कि मेरा भतीजा निर्दोष है, उसे पैसों के लिए फंसाया जा रहा है. ऐसी लड़कियों के लिए यह पैसे कमाने का एक जरिया है.’ न्यूज रीडर ने अब कहा, ‘‘आइए जानते हैं कि इस मामले में पुलिस का क्या कहना है. जौइंट सीपी (क्राइम) गार्गी सेन से हमारे संवाददाता ने बात की.’’ ‘मामले की छानबीन हो रही है, मैडिकल रिपोर्ट आने से पहले कुछ कहा नहीं जा सकता. हम अपनी तरफ से मामले की सचाई तक पहुंचने की पूरी कोशिश कर रहे हैं.’

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संवाददाता ने अपना अंदेशा जाहिर किया, ‘मुख्यमंत्री के करीबी रह चुके आशुतोष समाद्दार की राजनीतिक क्षेत्र में पहुंच काफी तगड़ी है. इसलिए यह आशंका जाहिर की जा रही है कि वे अपनी राजनीतिक ताकत का इस्तेमाल कर सुबूतों के साथ छेड़छाड़ करने या पुलिस जांच को प्रभावित करने की कोशिश कर सकते हैं. कैमरामैन रंजन मुखोपाध्याय के साथ मौमिता राय, सी टीवी न्यूज, बंगाल.’ समाचार खत्म होते ही गार्गी और ज्यादा परेशान दिखने लगी. भाष्कर ने परिस्थिति को भांपते हुए झट से अपने हाथ में रिमोट ले कर चैनल बदल दिया. फिर धीमी आवाज में कहा, ‘‘पिछले 4-5 दिनों से यह खबर सभी अखबारों व टीवी चैनलों पर छाई हुई है. मैं रोज इस का फौलोअप देखता रहता हूं. मैं जानता हूं तुम…’’ अभी बात पूरी भी नहीं हुई थी कि इतने में गार्गी ने थाली आगे की ओर सरकाते हुए आवाज लगाई, ‘‘बेनु पीसी, मेरी प्लेट उठा लो, खाने का मन नहीं है.’’

प्रौढ़ा रसाईघर से दौड़ती हुई आई और विनय भाव से कहने लगी, ‘‘क्या हुआ दीदीभाई, क्यों खाने का मन नहीं, खाना अच्छा नहीं बना है क्या?’’ भाष्कर ने गार्गी के हाथ पर अपना हाथ रखते हुए कहा, ‘‘खा लो, वरना तबीयत खराब हो जाएगी.’’ और प्रौढ़ा की ओर मुड़ कर बोले, ‘‘पीसी, जरा रसोई से गुड़ ले आओ, इस का स्वाद बदल जाएगा.’’

गार्गी रोंआसी हो गई. उस ने नजरें उठा कर भाष्कर की आंखों में देखा. उन आंखों में आश्वासन था, समर्थन था और थी एक सच्चे साथी की प्रेमभावना जिस ने हर परिस्थिति में साथ रहने का वादा किया है. उस के मुंह से बस इतना निकला, ‘‘तुम नहीं जानते, भाष्कर कितना पौलिटिकल प्रैशर है.’’ भाष्कर ने इतने में उस के मुंह में निवाला ठूंस दिया और कहा, ‘‘मैं कुछ नहीं जानता, पर मैं सबकुछ समझ सकता हूं. पहले खाना खत्म करो.’’

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गार्गी ने आंखों की पलकों से अपने आंसुओं को छिपाने की भरसक कोशिश करते हुए कहा, ‘‘मैं क्या करूं भाष्कर, एक तरफ मेरा कैरियर, दूसरी तरफ मेरा जमीर. अगर मैं समझौता नहीं करती हूं तो वे मेरे कैरियर को बरबाद कर देंगे. ऐसे में मुझे क्या

करना चाहिए?’’ भाष्कर ने कहा, ‘‘मैं तुम्हें सालों से जानता हूं. मुझे तुम पर पूरा भरोसा है. चाहे कुछ भी हो जाए तुम कुछ गलत कर ही नहीं सकतीं. तुम सच्ची हो और मैं यह भी जानता हूं कि तुम सचाई के साथ ही रहोगी, और तुम्हारे साथ रहेगा हम सब का विश्वास, मेरे व तुम्हारे शुभचिंतकों का प्रेम और सहयोग. मैं जानता हूं इन सब के साथ तुम जरूर अपनी लड़ाई में विजयी होगी, चाहे विपक्ष कितना ही शक्तिशाली क्यों न हो. और देखो, बातोंबातों में कैसे खाना भी खत्म हो गया.’’

गार्गी ने देखा, सामने प्लेट खाली थी. उस ने कहा, ‘‘सच, तुम कब मेरे मुंह में निवाला भरते रहे, मुझे पता ही नहीं चला. तुम सचमुच मेरी बच्चों की तरह केयर करते हो. मैं तुम जैसा पति पा कर बहुत खुश हूं. पापा के बाद, बस, तुम ही तो हो जिसे हर मुसीबत में मेरा मार्गदर्शन करते हुए पाती हूं. थैंक्यू.

‘‘आज बहुत दिनों बाद पापा बारबार याद आ रहे हैं. मैं जब छोटी थी वे अकसर कहा करते थे, ‘बेटा, जब भी जीवन में किसी मोड़ पर कोई दुविधा हो तो अपने जमीर की सुनना. ऐसे मोड़ पर तुम्हें 2 रास्ते मिलेंगे. बेईमानी का रास्ता आसान होगा पर अगर तुम लंबी दौड़ में विजयी होना चाहती हो और अपने जीवन में सुखचैन चाहती हो तो कभी भी उस रास्ते को मत अपनाना वरना अपनी ही नजरों में सदा के लिए छोटी हो जाओगी.’’’ बात खत्म होते ही भाष्कर ने कहा, ‘‘चलो, अब बहुत रात हो गई है,

हमें सो जाना चाहिए. कल फिर तुम्हें सुबह उठना भी तो है. ड्यूटी पर जाना है न.’’

गार्गी ने हामी भरते हुए सिर हिलाया. उस के होंठों पर मंद मुसकराहट थी और चेहरे पर बेफिक्री का भाव. अगले दिन शाम को 6 बजे दरवाजे की घंटी बजी. अंदर से बेनु पीसी आई और दरवाजा खोला. गार्गी के चेहरे पर सुकून और अजीब सी खुशी झलक रही थी. अंदर घुस कर जूते उतारते हुए उस ने कहा, ‘‘बेनु पीसी, अलमारी के ऊपर से मेरा सूटकेस उतार कर रखना. ट्रैवल बैग स्टोर में रखा हुआ है, उस में मेरी रोजमर्रा की जरूरत की चीजें और कुछ ड्राईफ्रूट्स डाल देना.’’

प्रौढ़ा ने पूछा, ‘‘क्यों, कहीं जा रही हो क्या?’’ गार्गी बाथरूम की ओर बढ़ती हुई बोली, ‘‘हूं, पहाड़ी इलाका है. परसों निकलूंगी. समझबूझ कर सारा सामान रख देना.’’

प्रौढ़ा प्रश्नों की बौछार करने ही वाली थी, मसलन, ‘कितने दिनों के लिए जाओगी, कब तक लौटोगी, दादाबाबू भी साथ जाएंगे या नहीं…’ पर इतने में गार्गी वहां से बैडरूम की तरफ जा चुकी थी. बैडरूम में पहुंच कर गार्गी ने भाष्कर को फोन किया और कहा, ‘‘जल्दी घर आओ, तुम से कुछ कहना है. नहीं, कुछ नहीं हुआ…न, कुछ नहीं चाहिए. बस, तुम आ जाओ.’’ घंटाभर बाद भाष्कर घर लौटने के बाद कपड़े बदल कर टीवी के सामने बैठ गए. गार्गी उन के पास वाली कुरसी पर जा बैठी. टीवी पर न्यूज चल रही थी, ‘‘ब्रेकिंग न्यूज, चांदनी चौक कांड ने लिया नया मोड़. मामले की देखरेख कर रहे आला पुलिस अधिकारी का मानना है कि मंटू समाद्दार और उस के साथी हैं दोषी. जौइंट सीपी (क्राइम) गार्गी सेन ने प्रैस को दिया बयान, ‘मैडिकल रिपोर्ट के अनुसार दुराचार किया गया है. हम ने नाबालिग लड़की का बयान लिया है. आरोपियों की पहचान हो गई है. कानून अपना काम करेगा. दोषी कोई भी हों, उन के खिलाफ आईपीसी की धाराओं के तहत कार्यवाही की जाएगी. पीडि़ता को इंसाफ जरूर मिलेगा. मैं ने अपनी रिपोर्ट जमा कर दी है और चार्जशीट भी कोर्ट में पेश किए जाने के लिए तैयार है.’ ’’

न्यूज रीडर ने आगे खबर पढ़ी, ‘‘जौइंट सीपी साहिबा के इस बयान के कुछ ही घंटों में उत्तरी बंगाल के किसी दूरस्थ पहाड़ी इलाके में उन के तबादले की घोषणा हुई. इस संबंध में तरहतरह की अटकलें लगाई जा रही हैं. यह तबादला क्या उन की सच्ची बयानबाजी की सजा है? क्या राजनीतिक दिग्गजों की स्वार्थसिद्धि न होने के परिणामस्वरूप प्रभाव का इस्तेमाल कर के यह तबादला करवाया गया. अब चलते हैं मौके पर मौजूद संवाददाता के पास. हां, मौमिता, इस मामले में पुलिस का क्या कहना है?’’ संवाददाता मौमिता बताती है, ‘पुलिस का तो यह कहना है कि यह रूटीन तबादला था. इस फैसले पर गार्गी सेन की कोई प्रतिक्रिया नहीं मिल पाई है.

‘अब सवाल यह उठता है कि क्या इस से पुलिस की छानबीन पर कोई प्रभाव पड़ेगा, क्या राजनीतिक प्रभाव का इस्तेमाल कर सुबूतों के साथ छेड़छाड़ करने की कोशिश की जा सकती है? ऐसी परिस्थिति में क्या पीडि़ता को इंसाफ मिल जाएगा? कैमरामैन रंजन मुखोपाध्याय के साथ मौमिता राय, सी टीवी न्यूज, बंगाल.’ समाचार खत्म होते ही गार्गी और भाष्कर दोनों ने एकदूसरे की तरफ देखा. गार्गी ने भाष्कर से पूछा, मैं ने सही किया न?’’

भाष्कर ने उस का हाथ अपने हाथों में लिया और अपनी उंगलियां उस की उंगलियों में फंसा कर मुसकराते हुए हामी भर कर सिर हिला दिया. गार्गी ने अपने सिर का बोझ उस के कंधे पर रख कर आंखें बंद कर लीं. उस की आंखों से आंसुओं की धारा टपक रही थी.

भाष्कर ने उस के कंधे पर हाथ रख कर कहा, ‘‘यह क्या, तुम रो रही हो? आज तो विजय दिवस है, झूठ पर सच की विजय, बुराई पर अच्छाई की विजय. आज से तुम आजाद हो, तुम्हें और ग्लानि का बोझ वहन नहीं करना पड़ेगा.’’ गार्गी ने आंसू पोंछते हुए कहा, ‘‘कुछ नहीं, ये तो कई दिनों से अंदर जमा थे, आज बाहर आए हैं. कोई और अफसोस नहीं, बस, तुम से दूर…’’ भाष्कर ने बात बीच में काटते हुए कहा, ‘‘अब तो हम और ज्यादा करीब हो गए. साथ रहने का अर्थ क्या हमेशा पास रहना है? अगर मेरी गार्गी बदल जाती तो शायद मैं उसे पहले जैसा प्यार न दे पाता और पास रहने के बावजूद उस से काफी दूर हो जाता. तुम सचाई के साथ हो और सदा रहना, मैं सदैव तुम्हारे साथ रहूंगा.’’

इतने में बेनु पीसी ने आ कर टीवी का चैनल बदल दिया था. टीवी पर संगीत बज रहा था, ‘‘इंसाफ की डगर पे…अपने हो या पराए, सब के लिए हो न्याय. देखो, कदम तुम्हारा, हरगिज न डगमगाए, रस्ते बड़े कठिन हैं, चलना संभलसंभल के…इंसाफ की डगर पे…’’

Crime Story: साजन की सहेली

इस कहानी का घटनाक्रम कुछकुछ श्रीदेवी और उर्मिला मातोंडकर की फिल्म ‘जुदाई’ जैसा था. काश…

या‘कांटा बुरा करैत का और भादों की घाम, सौत बुरी हो चून की और साझे का काम’.

कहावत सौ फीसदी सच है लेकिन 36 वर्षीय हनीफा बेगम पर यह कहावत लागू नहीं हुई. उस के पति अंसार शाह ने जब वंदना सोनी के बारे में उसे बताया कि उस से उस के शारीरिक संबंध हैं और वह भी बीवी जैसी ही है तो न जाने क्यों हनीफा उस पर भड़की नहीं थी, न ही उस ने मर्द जात को कोसा था. और न ही उस के सुहाग पर डाका डालने वाली वंदना को भलाबुरा कहा था. भोपाल इंदौर हाइवे के बीचोबीच बसे छोटे से कस्बे आष्टा को देख गंगाजमुनी तहजीब की यादें ताजा हो जाती हैं. इस कस्बे के हिंदू मुसलिम बड़े सद्भाव से रहते हैं और आमतौर पर दंगेफसाद और धार्मिक विवादों से उन का कोई लेनादेना नहीं है.

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मारुपुरा आष्टा का पुराना घना मोहल्ला है. अन्नू शाह यहां के पुराने बाशिंदे हैं, जिन्हें इस कस्बे में हर कोई जानता है. उन का बेटा अंसार शाह बस कंडक्टर है. अंसार बहुत ज्यादा खूबसूरत तो नहीं लेकिन आकर्षक व्यक्तित्व का मालिक है. 3 बच्चों के पिता अंसार की जिंदगी में सब कुछ ठीकठाक चल रहा था, लेकिन करीब 3 साल पहले वंदना उस की जिंदगी में आई तो जिंदगी के साथसाथ दिल में भी तूफान मचा गई.

34 वर्षीय वंदना भरेपूरे बदन की मालकिन होने के साथ सादगी भरे सौंदर्य की भी मिसाल थी. मूलरूप से भोपाल के नजदीक मंडीदीप की रहने वाली वंदना ने इस उम्र में आ कर भी शादी नहीं की थी. वह अभी घरगृहस्थी के झंझट में इसलिए भी नहीं पड़ना चाहती थी ताकि घर वालों की मदद कर सके. उस के परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी. दोनों बड़ी बहनों की शादियों में मांबाप का जमा किया हुआ सारा पैसा लग गया था.

पढ़लिख कर वंदना ने नौकरी के लिए हाथपांव मारे तो उसे स्वास्थ्य विभाग में अपनी मां की तरह एएनएम के पद पर नौकरी मिल गई. एएनएम गैरतकनीकी पद है जिसे आम लोग नर्स ही कहते और समझते हैं. आजकल सरकारी नौकरी चाहे जो भी हो, किसी भी बेरोजगार के लिए किसी वरदान से कम नहीं होती. नौकरी लग गई तो वंदना जिंदगी भर के लिए बेफिक्र हो गई. एएनएम की नौकरी हालांकि बहुत आसान नहीं है, क्योंकि इस में अपने क्षेत्र के गांवगांव जा कर काम करना पड़ता है.

वंदना को इस में कोई खास कठिनाई नहीं हुई क्योंकि उसे इस नौकरी के बारे में बहुत कुछ पहले से ही मालूम था. कठिनाई तब पेश आई जब उस का तबादला आष्टा हो गया. चूंकि मंडीदीप में रह कर कोई 75 किलोमीटर दूर आष्टा में नौकरी करना मुश्किल था, इसलिए वंदना ने आष्टा में ही किराए का मकान ले लिया. कुछ ही दिनों में उसे आष्टा के सरकारी अस्पताल और शहर की आबोहवा समझ आ गई.

सरकारी योजनाओं के प्रचारप्रसार और ग्रामीणों को स्वास्थ्य जागरुकता के लिए प्रेरित करने के लिए उसे आसपास के गांवों में भी जाना पड़ता था. कई गांव ऐसे थे, जहां वह अपनी स्कूटी से नहीं जा सकती थी, इसलिए उस ने बस से आनाजाना शुरू कर दिया.

फील्ड की नौकरी करने वाली अधिकांश लड़कियां बस से ही सफर करती हैं, यही वंदना भी करने लगी. यह भी इत्तफाक की बात थी कि जिन गांवों की जिम्मेदारी उसे मिली थी, वहां वही बस जाती थी, जिस में अंसार कंडक्टर था. बस से अपडाउन करने वाली लड़कियों की एक बड़ी परेशानी सीट और जगह का न मिलना होती है, जिसे उस के लिए अंसार ने आसान कर दिया.

जब भी वंदना बस में चढ़ती थी तो अंसार बड़े सम्मान और नम्रता से उस के लिए सीट मुहैया करा देता था. इतना ही नहीं, बस स्टैंड के अलावा सफर के दौरान भी वह वंदना का पूरा खयाल रखता था कि उसे किसी किस्म की दिक्कत न हो. चायपानी वगैरह का इंतजाम वह दौड़ कर करता था, जिस से वंदना का दिल खुश हो जाता था. जैसा कि आमतौर पर होता है, साथ चलते और वक्त गुजारते दोनों में बातचीत होने लगी.

एक अविवाहित युवती जिस ने पहले कभी प्यार न किया हो, वह पुरुष के जिन गुणों पर रीझ सकती है वे सब अंसार में थे. धीरेधीरे कैसे और कब वह उस की तरफ आकर्षित होने लगी, इस का अहसास भी उसे नहीं हुआ. प्यार शायद इसीलिए अजीब चीज कही जाती है कि इस के होने का अहसास अकसर होने के बाद ही होता है. इधर अंसार भी देख रहा था कि वंदना मैडम का झुकाव उस की तरफ बढ़ रहा है तो पहले वह हिचकिचाया.

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कम पढ़ेलिखे अंसार की हिचकिचाहट की वजहें भी वाजिब थीं. पहली वजह तो यह कि वह मुसलमान था, दूसरी यह कि वह शादीशुदा और 3 बच्चों का बाप था और तीसरी यह कि सरकारी नौकरी वाली लड़की का इश्क की हद तक झुकाव ही उस के लिए ख्वाब सरीखा था. शायद उस के बारे में जान कर अपने पांव पीछे खींच ले, इसलिए उस ने वंदना को पहले ही अपने बारे में सब कुछ बता दिया था.

अंसार के प्यार में अंधी हो चली वंदना अपनीजिंदगी के पहले और अनूठे अहसास की हत्या शायद नहीं होने देना चाहती थी, इसलिए उस ने सब कुछ कबूल कर लिया.

आग दोनों तरफ बराबरी से लगी हो तो इश्क की आंधी में अच्छेअच्छे उड़ जाते हैं. यही वंदना और अंसार के साथ हो रहा था. दोनों अब बेतकल्लुफ हो कर एकदूसरे से हर तरह की बातें करने लगे थे. मिलने की तो कोई दिक्कत थी ही नहीं. दोनों बसस्टैंड और बस में साथ रहते थे.

चाहत जब बातचीत, हंसीमजाक और कसमों वादों से आगे बढ़ते हुए शरीर की जरूरत तक आ पहुंची तो दोनों को लगा कि मोहब्बत का अलिफ बे तो बहुत पढ़ लिया, लेकिन अब मोहब्बत को उस के मुकम्मल सफर तक पहुंचा दिया जाए.

लेकिन वहां तक पहुंचने के लिए एकांत का होना जरूरी था, जिस से दोनों पूरी तरह एकदूसरे के हो सकें यानी एकदूसरे में समा सकें. छोटे घने कस्बे में एकांत मिलना आसान काम भी नहीं था, लेकिन छटपटाते इन आशिकों ने उस का भी रास्ता निकाल लिया.

अंसार ने पेशकश की कि अगर वंदना उस के मकान में बहैसियत किराएदार रहने लगे तो सारी मुरादें पूरी हो जाएंगी. दोनों चौबीसों घंटे एकदूसरे की नजरों के सामने रहेंगे और जब भी मौका मिलेगा तब एकांत में मिल भी लिया करेंगे.

जिंदगी के सुखद अनुभवों में से एक को तरस रही वंदना को भला इस पर क्या ऐतराज हो सकता था, लिहाजा वह झट तैयार हो गई. देखते ही देखते वह अब अपने आशिक के मकान में किराएदार के रूप में रहने लगी.

एकांत में मिलने के खतरों और खलल से वंदना तो ज्यादा वाकिफ नहीं थी, लेकिन अंसार को अंदाजा था कि आज नहीं तो कल पकड़े जाएंगे. क्योंकि पास घर होने पर पत्नी हनीफा और बच्चों की नजर उन पर पड़ सकती थी. लिहाजा उस ने बड़े ही शातिराना अंदाज से इस समस्या का भी तोड़ निकाल लिया.

अंसार ने हनीफा को सच बता दिया साथ ही यह इशारा भी कर दिया कि वंदना अपनी सारी पगार उस के घरपरिवार पर खर्च करेगी. उस का मकसद तो महज मौजमस्ती करना है.

हनीफा को सौदा बुरा नहीं लगा क्योंकि अंसार की आमदनी से उस की जरूरतें तो पूरी हो जाती थीं लेकिन सब कुछ खरीद लेने की ख्वाहिशें पूरी नहीं होती थीं. इस के अलावा वह इस बात से भी बेफिक्र थी कि वंदना चूंकि हिंदू है इसलिए अंसार उस से शादी करने की हिम्मत नहीं जुटा पाएगा.

लिहाजा उस ने फिल्म ‘जुदाई’ की श्रीदेवी की तर्ज पर कुछ हजार रुपयों के लिए शौहर का बंटवारा मंजूर कर लिया क्योंकि श्रीदेवी की तरह करोड़ों में सोचने और पति को बेचने की उस की हैसियत नहीं थी.अब उर्मिला मातोंडकर बनी वंदना ठाठ से उस के घर के बगल में आ कर रहने लगी. खुद हनीफा ने उसे यह कहते अंसार से जिस्मानी ताल्लुकात बनाने की इजाजत दे दी थी कि अगर अंसार और वह एकदूसरे के साथ तनहाई का कुछ वक्त गुजारना चाहते हैं तो उसे कोई ऐतराज नहीं.

अब दोनों सहेलियों की तरह रहने लगीं. अकसर खुद हनीफा इस बात का खयाल रखने लगी थी कि जब अंसार वंदना के पास हो तो कोई अड़ंगा पेश न आए. नए अहसास और आनंद के सागर में गोते लगा रही वंदना अब अंसार को ही पति मानने लगी थी और उस के घर पर खुले हाथों से खर्च करती थी. अब वंदना और हनीफा ‘मैं तुलसी तेरे आंगन की’ की नूतन और आशा पारेख की तरह रह रही थीं.

अंसार के तो दोनों हाथों में लड्डू थे. बासी हो चली हनीफा और ताजीताजी वंदना में जमीनआसमान का फर्क था. लेकिन बीवी से बेईमानी करने का उस का कोई इरादा नहीं था, जिस ने उस की चाहत में कोई रोड़ा नहीं अटकाया था, उलटे मददगार ही बनी थी. लिहाजा जिंदगी मजे से कट रही थी. दिन भर वह बस पर रहता था और वंदना अस्पताल में लेकिन रात होते ही दोनों एक कमरे में एक पलंग पर देह सुख ले रहे होते थे.

कुछ महीने तो मौजमस्ती में गुजरे लेकिन जाने क्यों वंदना को लगने लगा था कि अंसार उस का हो कर भी उस का नहीं है और हनीफा ने कोई दरियादिली नहीं दिखाई है बल्कि उस ने उस के पैसों के लिए पति का सौदा किया है.

यह बात जेहन में आते ही वंदना परेशान हो उठी कि आखिर कब तक वह अंसार की रखैल बन कर रहेगी या फिर उसे रखैल बना कर रखेगी. अंसार पर अपना सब कुछ लुटा चुकी वंदना को लगने लगा था कि अंसार बीवीबच्चों की चाहत में शायद ही उस से शादी करे, लिहाजा उस ने उस के परिवारपर पैसा खर्च करना बंद कर दिया.

इस का नतीजा वही हुआ जिस की वंदना को उम्मीद थी. जब पैसा मिलना बंद हो गया तो हनीफा उस से न केवल खिंचीखिंची रहने लगी बल्कि बेरुखी से भी पेश आने लगी. हनीफा के बदले तेवर देख वंदना ने अंसार पर शादी के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया. इस बाबत वह धर्म परिवर्तन करने को भी तैयार हो गई थी.

जल्द ही दोनों में लड़ाई होने लगी और दोनों एकदूसरे को कोसने लगीं. अब हनीफा के दिल में भी यह डर बैठ गया था कि कहीं ऐसा न हो कि दुनियाजहान को धता बताते हुए अंसार वंदना से शादी कर ही डाले. नए कानून के तहत वह इस बात को ले कर तो बेफिक्र थी कि अंसार उसे तलाक नहीं दे सकता, लेकिन दूसरी शादी तो कर ही सकता था.

इधर अंसार की हालत दो पाटों के बीच पिसने वाले अनाज की तरह होने लगी थी. वह न तो वंदना को छोड़ पा रहा था और न ही हनीफा को. ऐसे में उस ने वंदना से शादी करने को कहा तो वंदना इस जिद पर अड़ गई कि पहले हनीफा को तलाक दो फिर हमारी शादी होगी.

जब बात नहीं बनी तो रोजाना की कलह से बचने के लिए वंदना अलग मकान ले कर रहने लगी. लेकिन इस से अंसार का उस के यहां आनाजाना बंद या कम नहीं हुआ. अब दोनों का डर खत्म हो चला था इसलिए दोनों वंदना के नए घर में मिलने लगे.

वंदना में कशिश भी थी और वह सरकारी नौकरी भी करती थी, इसलिए अंसार को लगा कि क्यों न इस से शादी कर ली जाए. पर वंदना की हनीफा से तलाक की शर्त पूरी कर पाना उस के लिए मुश्किल लग रहा था. जब यह तय हो गया कि दोनों में से किसी एक हाथ का लड्डू तो उसे छोड़ना पड़ेगा, तब उस ने हनीफा से तलाक की बात की.

इस पर हनीफा कांप उठी. अब उसे ‘जुदाई’ की श्रीदेवी की तरह अपनी गलती समझ आ रही थी, लेकिन उस वक्त उस के हाथ में सिवाय पछताने के कुछ नहीं बचा था. अभी तो शौहर ने कहा ही है लेकिन कल को तलाक दे ही दे तो वह क्या कर लेगी, यह सोचते ही हनीफा के दिमाग में एक खतरनाक इरादा पनपने लगा.

आष्टा से सटा जिला है शाजापुर, जिस का एक कस्बा है बेरछा, जो मावा उत्पादन के लिए प्रदेश भर में मशहूर है. बीती पहली फरवरी को सुबह बेरछा के गांव धुंसी के चौकीदार इंदर सिंह बागरी ने थाने में इत्तला दी कि जगदीश पाटीदार नाम के किसान के खेत में एक जली हुई लाश पड़ी है.

बेरछा थाने की तेजतर्रार प्रभारी दीप्ति शिंदे खबर मिलते ही पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर जा पहुंचीं. एसपी शैलेंद्र सिंह के निर्देश पर एफएसएल अधिकारी आर.सी. भाटी भी वहां पहुंच चुके थे. लाश इतनी जल चुकी थी कि उसे किसी भी तरह पहचानना नामुमकिन था.

बारीकी से जांच करने पर लाश के नीचे से चाबियों का गुच्छा और अधजला थरमस मिला. लाश के दाहिने पांव में बिछिए और बाएं हाथ की कलाई में चूडि़यां मिलने से यह भर तय हो पाया कि लाश किसी महिला की है. आसपास उड़ कर गिरे. कई अधजले कागज भी बरामद हुए. इन कागजों की लिखावट को लेंस से पढ़ने पर जो शब्द पुलिस वालों को समझ आए वे मुगलई रोड, श्रमिक, जिला स्वास्थ्य अधिकारी, इनवास, इंजेक्शन की बौटल और चिकित्सक आदि थे.

इन शब्दों से अंदाजा लगाया गया कि मृतका का संबंध जरूर स्वास्थ्य विभाग से है. साफ दिख रहा था कि महिला की हत्या कर उस की लाश को पहचान छिपाने की गरज से जलाया गया है. अब तक गांव वालों की भीड़ घटनास्थल पर लग गई थी जिन से पूछताछ करने पर पता चला कि एक दिन पहले एक मारुति वैन इस इलाके में देखी गई थी.

इन साक्ष्यों से पुलिस वालों के हाथ कुछ खास नहीं लग रहा था. ऐसे में मुगलई रोड गांव को आधार बना कर पुलिस जांच आगे बढ़ी तो मालूम हुआ कि यह गांव सीहोर जिले की आष्टा तहसील का है.

आष्टा थाने में पूछताछ करने पर पुलिस का मकसद पूरा हो गया, जहां से पता चला कि मंडीदीप निवासी 2 महिलाएं नीलम और सुनंदा सोनी ने स्वास्थ्य विभाग में कार्यरत अपनी बहन वंदना सोनी की गुमशुदगी दर्ज कराई है. इन दोनों बहनों ने बिछिए और चूडि़यां देख कर वंदना के होने की पुष्टि कर दी.

लाश पहचान में आ गई लेकिन हत्यारे गिरफ्त से बाहर थे, लिहाजा इंसपेक्टर दीप्ति शिंदे सीधे आष्टा अस्पताल पहुंचीं और सीसीटीवी फुटेज निकलवाए, जिन से पता चला कि 31 जनवरी की दोपहर 12 बजे तक वंदना अस्पताल में थी और आखिरी बार किसी एक महिला व बच्ची के साथ बाहर जाती हुई दिखी थी.

पुलिसिया पूछताछ में यह बात भी उजागर हुई कि वंदना कुछ दिन पहले ही बजरंग कालोनी सोनी लौज के पास एक मकान में रहने के लिए आई थी, इस के पहले वह मारूपुरा में अन्नू शाह के मकान में रह रही थी और इस परिवार से उस के बेहद अंतरंग और घनिष्ठ संबंध थे. लेकिन कुछ दिनों से वंदना और हनीफा में लड़ाई होने लगी थी.

सुनंदा और नीलम ने अपने बयानों में बता दिया कि वंदना और अंसार के बीच प्रेम प्रसंग था, जिस के चलते हनीफा उसे परेशान कर रही थी. यह बात वंदना ने फोन पर अपनी बहनों को बताई थी.

शक होने पर पुलिस जब अंसार के घर पहुंची तो पता चला कि हनीफा मायके गई हुई है. इस से पुलिस का शक यकीन में बदलता नजर आया. पुलिस काररवाई आगे बढ़ती, इस के पहले ही स्वर्णकार समाज ने आरोपियों की गिरफ्तारी को ले कर अधिकारियों व मुख्यमंत्री को ज्ञापन दिए और जुलूस भी निकाला.

इसी दौरान आष्टा पुलिस को उस वैन ड्राइवर का पता चल गया जो बेरछा में देखी गई थी. पूछताछ में ड्राइवर ने बताया कि हनीफा और उस का एक साथी वैन में कुछ सामान भर कर ले गए थे. हनीफा के साथी का नाम गुड्डू उर्फ रामचरण पता चला, जो पेशे से तांत्रिक भी था.

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अब करने को कुछ नहीं रह गया था. पुलिस ने जल्द ही अंसार सहित हनीफा और रामचरण को गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में हैरानी की बात अंसार द्वारा खुद को वंदना का कातिल बताना थी. जब पुलिस ने इस हादसे का रिक्रिएशन यानी नाट्य रूपांतरण कराया तो अंसार गड़बड़ाता दिखा.

अब हनीफा से सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने सच उगल दिया कि घटना वाले दिन वह अस्पताल गई थी और वंदना को झांसा दे कर घर ले आई थी. उस का किराएदार गुड्डू पहले से ही तैयार था. वंदना और हनीफा के बीच की बातचीत जब तकरार और तूतूमैंमैं में बदली तो हनीफा ने वंदना के सिर पर रौड दे मारी. वंदना बेहोश हो गई तो गुड्डू और हनीफा ने गला रेत कर उस की हत्या कर दी.

वंदना की लाश दोनों ने प्लास्टिक के एक ड्रम में ठूंसी और उसे वैन में रख कर 85 किलोमीटर दूर बेरछा के लिए निकल गए. वैन ड्राइवर को हालांकि इन पर शक हो रहा था कि कुछ गड़बड़ है लेकिन अपनी ड्यूटी बजाते हुए उस ने ज्यादा पूछताछ नहीं की. ड्राइवर ने ड्रम गुड्डू की बताई जगह उतार दिया और आष्टा वापस आ गया.

लाश वाले ड्रम को हनीफा के पास छोड़ कर गुड्डू गांव के पैट्रोल पंप से 2 लीटर पैट्रोल लाया और दोनों ने मिल कर वंदना की लाश को जला दिया. जलाने के बाद गुड्डू भोपाल अपने एक दोस्त देवेंद्र ठाकुर के पास आ गया. उसे भी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है. हनीफा वापस आष्टा आ गई थी.

इन दोनों का अंदाजा था कि जली लाश पुलिस पहचान नहीं पाएगी और दोनों पकड़ से बाहर रहेंगे. हत्या के समय अंसार बस में ड्यूटी पर था जो हनीफा को बचाने के लिए कत्ल का इलजाम अपने ऊपर ले कर पुलिस को गुमराह कर रहा था.

आरोपी यानी हत्यारे अब सलाखों के पीछे हैं. वंदना ने जमाने की परवाह न करते हुए एक शादीशुदा मर्द से प्यार कर उस के साथ ही जीने की जिद करने की गलती की थी तो हनीफा पैसों के लालच में आ कर पति का सौदा करने की चूक कर बैठी थी.

बाद में जब अंसार वंदना से शादी करने पर उतारू हो गया तो उस ने सौतन को ठिकाने लगा दिया. अंसार ने खूब मौज की हालांकि वह भूल गया था कि बीवीबच्चों के होते हुए एक कुंवारी लड़की से इश्क लड़ाना जुर्म नहीं पर गलत बात जरूर है.

वो कोना : क्यों काले हो गए नीरा की जिंदगी के कुछ पुराने पन्ने

कामवाली बाई चंदा से गैस्टरूम की सफाई कराते समय जैसे ही नीरा ने डस्टबिन खोला, उस में पड़ी बीयर की बोतलों से आ रही शराब की बदबू उस के नथुनों में जा घुसी. इस से उस का पारा सातवें आसमान पर जा पहुंचा. वह तमतमाती हुई कमरे से बाहर निकली और जोर से चिल्लाई, ‘‘रोहन…रोहन, जल्दी नीचे आओ. मुझे अभी तुम से बात करनी है.’’ उस का तमतमाया चेहरा देख कर चंदा डर के कारण एक कोने में खड़ी हो गई. रोहन के साथसाथ दोनों बेटियां 9 वर्षीया इरा और 12 वर्षीया इला भी हड़बड़ाती सी कमरे से बाहर आ गईं. ‘‘ये बीयर की बोतलें घर में कहां से आईं रोहन?’’ नीरा ने क्रोध से पूछा.

‘‘आशीष लाया था, पर तुम इतने गुस्से में क्यों हो? आखिर हुआ क्या?’’ हमेशा शांत और खुश रहने वाली नीरा को इतना आक्रोशित देख कर रोहन ने हैरान होते हुए पूछा. ‘‘ये बीयर की बोतलें मेरे घर में क्यों आईं और किस ने डिं्रक की?’’ नीरा ने फिर गुस्से से चीखते हुए पूछा.

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‘‘अरे, कल तुम मम्मी के यहां गई थीं न, तब मेरे कुछ दोस्त यहां आ गए. उन में से एक का जन्मदिन था. तो खापी कर चले गए. पर इस में इतना आसमान सिर पर उठाने की क्या बात है?’’ रोहन ने तनिक झुंझलाते हुए कहा. ‘‘रोहन, तुम्हें पता है कि मुझे ये सब बिलकुल भी पसंद नहीं है. और मेरे ही घर में, मेरा ही पति.’’ नीरा चीखती हुई बोली और जोरजोर से रोने लगी. नीरा का रौद्र रूप देख कर सभी हैरान थे. थोड़ी देर बाद इरा और इला चुपचाप तैयार हो कर अपने स्कूल चली गईं. नाश्ता कर के रोहन औफिस जाने से पहले नीरा से बोला, ‘‘चंदा के जाने के बाद तुम थोड़ा आराम कर लेना, तुम्हारी तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही.’’

नीरा बिना कोई उत्तर दिए शांत बैठी रही. चंदा के जाने के साथ ही घर का काम भी खत्म हो गया. डायनिंग टेबल पर खाना लगा कर नीरा आंखें बंद कर के लेटी ही थी कि बड़ी बेटी इला स्कूल से आ गई. दरवाजा खोल कर वह फिर बिस्तर पर आ लेटी. इला अपना खाना ले कर मां के पास ही आ कर बैठ गई.

नीरा का मूड कुछ ठीक देख कर वह धीरे से बोली, ‘‘मां, सुबह आप को इतना गुस्सा क्यों आ गया था. इतना गुस्सा होते मैं ने आप को कभी नहीं देखा.’’

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‘‘तो इस से पहले तुम्हारे पापा ने भी तो ऐसा काम नहीं किया था,’’ नीरा दुखी होती हुई बोली. ‘‘मम्मा, पापा तो कभी नहीं पीते, हो सकता है कोई और ले कर आ गया हो. आजकल तो यह फैशन माना जाता है, मां.’’

‘‘फैशन को स्थायी आदत बनते देर नहीं लगती, बेटा. अब तू जा और अपनी पढ़ाई कर. तेरी इस सब में पड़ने की उम्र नहीं है,’’ नीरा ने इला को टालने की गरज से कहा. ‘‘मां, आप भी न,’’ इला ने तुनक कर कहा और अपने रूम में चली गई.

नीरा सोचने लगी, इला को तो उस ने समझा दिया, वह बहल भी गई पर अपने मन के उस कोने को वह कहां ले जाए जहां सिर्फ दुख ही दुख था. वह अपने बचपन में बहुत कुछ देख चुकी थी. उस के पापा रेलवे में थे और कभीकभार पीना उन के शौक में शामिल था. वे जब भी पी कर आते, मम्मीपापा दोनों में जम कर लड़ाई होती. 7 साल की बच्ची नीरा डर कर एक कोने में खड़ी हो कर दोनों को झगड़ते देखती और फिर सो जाती. अगली सुबह मांपापा को प्यार से बातें करते देखती तो फिर खुश हो जाती. धीरेधीरे नीरा को समझ आने लगा था कि मां को पापा का शराब पीना बिलकुल भी पसंद नहीं था. पापा मां से कभी न पीने का प्रौमिस करते और कुछ दिनों बाद फिर पी कर आ जाते और मां गुस्से से पागल हो जातीं.

उस समय वह 10 साल की थी जब मामा की शादी में वे लोग आगरा गए थे. पापा उस दिन कुछ ज्यादा ही पी कर आ गए थे, इतनी कि उन से ठीक से खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा था. नाना के घर में ये सब मना था. मामा और नाना की आंखों से मानो क्रोध के अंगारे निकल रहे थे. मां एक कोने में खड़ी आंसू बहा रही थीं. आज तक उन्होंने मायके में किसी को पापा के शराब पीने के बारे में नहीं बताया था. पर आज पापा ने उन्हें सब के सामने बेइज्जत कर दिया था. मामा किसी तरह उन्हें बैड पर लिटा कर आ गए थे. तब से उस के मन में भी शराब के प्रति नफरत भर गई थी.

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अचानक इला की आवाज से वह पुरानी बातों से बाहर निकली. ‘‘मां, पापा आ गए हैं, चाय बना दी है, आप भी आ कर पी लीजिए.’’

वह उठ कर डायनिंग टेबल पर आ कर बैठ गई और खामोशी से चाय पीने लगी.

‘‘कैसी तबीयत है अब नीरा?’’ रोहन ने प्यार से पूछा. ‘‘मेरी तबीयत को क्या हुआ है?’’ नीरा तुनक कर बोली.

‘‘वह सुबह, तुम…’’ रोहन कुछ बोलता उस से पहले ही नीरा ने रोहन का हाथ अपने हाथ में ले लिया और बोली, ‘‘रोहन, प्लीज दोबारा ऐसा मत करना. तुम तो कभी नहीं पीते थे, फिर अब ये दोस्तों को घर ला कर पीनापिलाना कैसे शुरू कर दिया?’’ ‘‘अरे, मैं कहां पीता हूं. आज शादी को 15 साल हो गए, तुम्हें कभी शिकायत का मौका मिला? पर हां, परहेज भी नहीं है. कालेज में कभीकभार पी लेता था. तुम्हें तो पता ही है कि पिछले महीने मेरा कालेज का दोस्त आशीष तबादला हो कर यहीं आ गया है. उसे लगा कि मैं अभी भी…सो, वही ले कर आ गया. कुछ और मित्र भी थे उस के साथ. तुम थीं नहीं तो यहीं खापी कर चले गए. झूठ नहीं कहूंगा, उन के साथ मैं ने भी थोड़ी सी ली थी. पर मुझे नहीं लगता कि वह इतनी बड़ी बात है जिस के लिए तुम इतनी ज्यादा परेशान हो,’’ रोहन ने प्यार से नीरा को समझाने की कोशिश करते हुए यह कहा तो नीरा की आंखों से झरझर आंसू बहने लगे.

वह भर्राए हुए स्वर में बोली, ‘‘रोहन, आज तक कभी ऐसा अवसर आया ही नहीं जो मैं तुम्हें बताती कि इस शराब के कारण मेरा बचपन, मेरे मातापिता का प्यार सब गुम हो गया और मैं समय से बहुत पहले ही बड़ी हो गई.’’ ‘‘क्या मतलब, पापाजी?’’ रोहन हैरानी से बोला.

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‘‘हां रोहन, पापा डिं्रक करते थे, पर कभीकभार. मां ने अपने घर में कभी ऐसा कुछ नहीं देखा था. पर फिर भी शुरू में उन्होंने अनदेखा किया और पापा से शराब छोड़ने के लिए कहा. पहले जब भी पापा पी कर आते थे, तो चुपचाप आ कर सो जाते थे. धीरेधीरे पापा का पीना बढ़ता गया. जब भी पापा पी कर आते, मां का गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुंचता. दोनों में जम कर बहस होती और हमारा घर महाभारत का मैदान बन जाता था,’’ कहते हुए नीरा एक बार फिर अतीत में पहुंच गई. ‘‘तुम्हें पता है रोहन, जब मैं 12वीं की फाइनल परीक्षा दे रही थी तो एक दिन पापा पी कर घर आ गए. मम्मीपापा में उस दिन बात हाथापाई तक पहुंच गई. पापा गुस्से में घर से बाहर चले गए और रातभर वापस नहीं आए. दोनों को याद भी नहीं रहा कि कल उन की बेटी का एग्जाम है. नतीजा यह हुआ कि अगले दिन होने वाला मेरा कैमिस्ट्री का पेपर शराब की भेंट चढ़ गया. मैं पूरी रात रोती ही रही,’’ नीरा ने उदासी भरे स्वर में कहा.

‘‘ओह, तो इसलिए तुम सुबह गुस्से में थीं. पर आज तक तुम ने इस बारे में कभी बताया ही नहीं,’’ रोहन ने गंभीर स्वर में कहा. ‘‘मैं जब शादी के बाद यहां आई तो सब से ज्यादा खुश इसी बात से थी कि तुम्हारे यहां शराब को कोई हाथ भी नहीं लगाता था. मैं तुम्हें ये बातें बता कर अपने पापा की इमेज खराब नहीं करना चाहती थी. पर आज…’’ नीरा ने गहरी सांस लेते हुए बात अधूरी ही छोड़ दी.

‘‘चलो, अब दुख देने वाली यादों को दिल से निकाल दो. ये बंदा तुम्हारा दीवाना है, जो तुम कहोगी वही करेगा. चलो, हम दोनों मिल कर डिनर की तैयारी करते हैं,’’ रोहन ने हंसते हुए कहा और नीरा को ले कर किचन में चला गया. ‘‘रोहन, तुम सच कह रहे हो न?’’ पहले के अनुभवों से डरी नीरा गैस पर कुकर चढ़ाती हुई बोली.

‘‘हां भई, हां. पर एक बात कहूं नीरा, बुरा मत मानना. चूंकि तुम्हारे पापाजी तो हमारी शादी के 6 माह बाद ही गुजर गए थे पर जितना मैं ने उन्हें तुम्हारे बाबत जाना है, उस से लगता है कि वे सुलझे हुए इंसान थे. फिर उन को पीने की इतनी लत कैसे लग गई कि वे छोड़ ही नहीं पाए. जरूर तुम्हारी मम्मी तुम्हारे पापा को अपना दीवाना नहीं बना पाई होंगी. देखो, तुम ने कैसे मुझे अपने प्यार के जाल में बांध रखा है,’’ रोहन ने माहौल को हलका करने की गरज से नीरा को छेड़ते हुए कहा. ‘‘हां, रोहन, तुम काफी हद तक सही हो. मां ने पापा को कभी समझने की कोशिश नहीं की. पापा अपने परिवार को बहुत चाहते थे और मां उन के परिवार से उतनी ही नफरत करती थीं. अकसर इन्हीं मुद्दों पर बहस शुरू होती, जो झगड़े का रूप ले लेती. पापा गुस्से में घर से बाहर चले जाते और शराब का सहारा ले लेते. हमारे घर में रुपयापैसा सबकुछ था. बस, शांति नहीं थी.

‘‘इसीलिए तो मैं कह रही थी रोहन कि कभीकभार पीना कब हमेशा की लत बन जाती है, इंसान को पता ही नहीं चलता. तुम्हें ताज्जुब होगा कि पापा मेरी शादी के दिन भी खुद को कंट्रोल नहीं कर पाए थे और विदाई से पहले पी कर आए थे. उन का अंत भी शराब से ही हुआ. एक रात नशे में गाड़ी चला कर आ रहे थे कि एक ट्रक ने टक्कर मार दी. उस समय चूंकि मेरी नईनई शादी हुई थी, इसलिए उन की मौत को सिर्फ दुर्घटना के रूप में ही प्रस्तुत किया गया. परंतु सचाई यह थी कि वे शराब के नशे में गाड़ी चला रहे थे,’’ बोलतेबोलते नीरा सिसकने लगी. ‘‘बस, अब और दुखी होने की जरूरत नहीं है. खाना खाते हैं चल कर,’’ रोहन ने नीरा का मूड बदलने की कोशिश करते हुए कहा.

‘‘हां, इला और इरा को भी आवाज लगा दो, तब तक मैं खाना लगाती हूं,’’ नीरा ने आंसू पोंछते हुए कहा और टेबल पर खाना लगाने लगी. ‘‘अरे वाह, आलू के परांठे,’’ इरा कैसरोल में आलू के परांठे देख कर खुशी से चहकती हुई बोली.

‘‘वेरी अनएक्सपैक्टिड, वरना मां का सुबह से मूड देख कर तो मुझे लगा था कि आज खाने में खिचड़ी या दलिया ही मिलने वाला है. पापा, आप ने खाना बनाया?’’ इरा ने मुसकराते हुए तिरछी नजरों से रोहन की ओर देखते हुए पूछा. ‘‘अरे, नहीं भाई, तुम्हारी मम्मी ने ही बनाया है. तुम्हारी मम्मी की यही तो खासियत है कि परिस्थितियां कैसी भी हों, यह अपने बच्चों और पति को नहीं भूलती. क्यों, है न नीरा?’’ रोहन ने मुसकराते हुए उस की ओर देखते हुए कहा तो वह भी अपनी मुसकान को नहीं रोक सकी.

दोनों बेटियां खाना खा कर चली गईं तो रोहन ने नीरा का हाथ अपने हाथ में ले लिया और प्यार से बोला, ‘‘मेरे दिल की रानी, इतनी पीड़ा, इतना दुख अपने मन में समेटे थी और मुझे आज तक आभास ही नहीं हुआ. कैसा पति हूं मैं?’’ रोहन ने उस की आंखों में झांकते हुए कहा.

‘‘नहीं रोहन, ऐसा मत कहो. खुद को जरा भी दोष मत दो. तुम्हारे जैसा समझदार और प्यार करने वाला पति, फूल सी प्यारी 2 बेटियां और इतने अच्छे सासससुर को पा कर मैं अपनी दुखतकलीफ भूल गई थी. पर आज ये बोतलें देख कर लगा कि अतीत की काली परछाइयां एक बार फिर मुझे घेरने आ गई हैं,’’ नीरा गंभीर स्वर में बोली. ‘‘आज से, बल्कि अभी से ही यह बंदा तुम से प्रौमिस करता है कि शराब या उस से जुड़ी किसी भी चीज को ताउम्र हाथ नहीं लगाएगा. खुश…’’ रोहन ने प्यार से नीरा के गाल थपथपाते हुए कहा, ‘‘दरअसल नीरा, हम पुरुष बड़े अलग मिजाज के होते हैं. हम से जो काम प्यार से करवाया जा सकता है, वह गुस्से और अहं से बिलकुल मुमकिन नहीं है. बस, शायद मम्मीजी से यहीं चूक हो गई. वे प्यार और समझदारी से काम लेतीं तो शायद बात कुछ और होती. वे पापा को समझ नहीं पाईं, पर इस का मतलब यह भी नहीं कि पापा शराब पी कर घर के माहौल को और खराब करते. कभी अच्छे पलों में वे भी तो मां को समझाने की कोशिश कर सकते थे. उन्होंने खुद कभी इसे छोड़ने के बारे में क्यों नहीं सोचा?’’ रोहन बरतन सिंक में रखते हुए धीरे से बोला.

‘‘ऐसा नहीं है रोहन, पापा ने कई बार छोड़ने की कोशिश की पर शायद उन्हें घर में वह कोना ही नहीं मिल पाता था जहां वे सुकून तलाशते थे. दादी, चाचा, बूआ या परिवार के दूसरे सदस्यों के लिए जब भी पापा कुछ करना चाहते, मां बिफर जातीं. पापा घर से दूर और शराब के नजदीक होते गए. न मां खुद को बदल पा रही थीं और न पापा. ऐसा नहीं कि दोनों में प्यार की कोई कमी थी, बस, जैसे ही शराब बीच में आ जाती, घर का पूरा माहौल ही बदल जाता था.’’ ‘‘अरे, बाप रे, 12 बज गए. सुबह मुझे औफिस भी जाना है,’’ कह कर रोहन उसे बैडरूम में ले गया.

जब वह बिस्तर पर लेटी तो रोहन ने उस का सिर अपने सीने पर रख लिया और बोला, ‘‘आज के बाद इस घर में ऐसी कोई चर्चा नहीं होगी.’’ नीरा बरसों से मन में दबी कड़वाहट, दुख, तकलीफ सब भूल कर चैन की नींद सो गई.

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