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डस्ट- भाग 3 : धूल तो साफ हो जाएगी पर मन कैसे साफ करेंगे

18 वर्ष की मेरी कच्ची उम्र से ही मेरा दैहिक शोषण कर रही हैं. मैं क्या करूं?’’ ये सब इतने भावुक और रोने वाले अंदाज में कहा कृष्णकांत ने कि पूनम की आंखे भर आईं. पूनम ने कहा, ‘‘शादी का कोई प्रूफ है?’’

‘‘रमा के पास हो सकता है.’’ ‘‘तुब सब नष्ट कर दो और उस से अलग हो जाओ. अगर वह तुम्हें कोर्टकचहरी की धमकी दे, तो तुम भी दे सकते हो. मैं खड़ी हूं तुम्हारे साथ. कुछ न हो तो तलाक तो ले ही सकते हो.’’

‘‘तुम अपनाओगी न मुझे?’’ ‘‘हां, क्यों नहीं, मैं आप से प्यार करती हूं और किसी भी हद तक जाने को तैयार हूं.’’

कृष्णकांत आश्वस्त हुआ. गवाहों का तो अतापता नहीं था. बरसों पुरानी बात थी. शादी के सुबूत रमा की अलमारी में थे. जिन्हें तलाश कर कृष्णकांत ने नष्ट कर दिए.

रमा को जब पूनम के साथ कृष्णकांत ज्यादा समय गुजारते दिखने लगा तो रमा ने उसे लंपट, आवारा, नीच कहा. कृष्णकांत ने पलट कर कहा, ‘‘तुम क्या हो? तुम ने अपनी दैहिक जरूरतों के लिए मुझे फंसा कर रखा. शर्म आनी चाहिए तुम्हें. तुम सैक्स की भूखी हो.’’ ‘‘मैं तुम्हें कोर्ट में घसीटूंगी, दैहिक शोषण का आरोप लगा कर जेल भिजवाऊंगी.’’

‘‘और मैं छोड़ दूंगा तुम्हें. मैं भी तुम पर दैहिक शोषण का आरोप लगा सकता हूं. तुम्हारे घर वालों को, अपने घर वालों को बता दूंगा सबकुछ. लोग तुम पर हंसेंगे, न कि मुझ पर.’’ ‘‘शादी हुई है हमारी.’’

‘‘सुबूत कहां हैं? कोर्ट मंदिर में की गई शादी नहीं मानता और उस समय मेरी उम्र 18 वर्ष भी नहीं हुई थी. अवयस्क उम्र के लड़के से विवाह करने के अपराध में तुम्हें सजा भी हो सकती है. सारा शहर तमाशा देखेगा. यदि शादी साबित कर भी देती हो तुम, तब भी मैं तलाक तो मांग ही सकता हूं. अब तुम पर है कि हंगामा खड़ा करना है या शांति से मसले को सुलझाना है.’’ रमा समझ चुकी थी कि तीर कमान से निकल चुका है. अब कुछ नहीं हो सकता. फिर बेमेल संबंधों को कब तक खींचा जा सकता है. अच्छा यह हुआ कि सावधानी रखने के कारण उन की कोई संतान नहीं थी.

रमा के मातापिता भी अब कहने लगे थे, ‘बेटी, अपना फर्ज निभा लिया. भाईबहनों को पढ़ालिखा कर कामधंधे में लगा दिया. उन का विवाह कर दिया. अब कोई अपने हिसाब का लड़का तलाश और शादी कर ले.’ रमा वापस अपने शहर आ गई. उस ने कृष्णकांत से जुड़ी सारी यादें मिटा दीं. शादी के और उस के बाद के सारे फोटो नष्ट कर दिए. कृष्णकांत भी आजाद हो गया.

पूनम को देख कर कृष्णकांत सोचता, ‘इसे कहते हैं लड़की. पता नहीं क्यों मैं रमा के आकर्षण में बंध गया था? प्यार करने लायक तो पूनम है. सांचे में ढला हुआ दुबलापतला, आकर्षक शरीर. चेहरे पर चमक. जिस्म के पोरपोर में जवानी की महक. यही है उस के सपनों की रानी.’ आज पेड़ काटे जा रहे हैं. पौधे नष्ट किए जा रहे हैं. जंगल उजाड़े जा रहे हैं. सड़कों का डामरीकरण, चौड़ीकरण हो रहा है. देश का विकास अंधाधुंध तरीके से हो रहा है. विकास के लिए नएनए कलकारखाने और कारखानों से इन की गंदगी नदियों में बड़ीबड़ी पाइपलाइनों के जरिए जा रही है. नीचे पानी प्रदूषित हो रहा है व ऊपर आसमान और बीच में फंसा बेवकूफ मनुष्य, बस, बातें कर रहा है प्रदूषण के बारे में, जहरीली वायु के बारे में. जंगल नष्ट किए जा रहे हैं उद्योगों के लिए. शहर के हर कोने में बोर मशीनें चल रही हैं जमीन से पानी निकालने के लिए.

वातावरण में डस्ट बढ़ती जा रही है. गरमी बढ़ती ही जा रही है. सब अपनीअपनी सुखसुविधाओं में डूबे हैं. प्रकृति असंतुलित हो रही है. यही हाल मानवीय मूल्यों और रिश्तों का भी है. रिश्ते प्रदूषित हो रहे हैं. रमा के पिता ने कहा, ‘‘बेटी, बहुत रिश्ते आएंगे. तुम आर्थिकरूप से निर्भर हो. अच्छा वेतन है तुम्हारा. सुरक्षित भविष्य है. कितनी बेरोजगारी फैली है. एक नहीं कईर् आदमी मिलेंगे शादी के लिए.

‘‘सुरक्षित भविष्य की चाह में कोई प्राइवेट जौब वाला, अस्थायी नौकरी वाला शादी के लिए तैयार हो जाएगा. प्रैक्टिकल बनो. मुझे तुम्हारे और कृष्णकांत के बारे में सब पता था लेकिन मैं ने तुम्हें कभी टोका नहीं. मैं जानता था अपनी जरूरतों के लिए तुम उस से जुड़ी हो. जो हुआ सो हुआ. लेकिन शादी अपनी जातिसमाज में ही करना उचित रहेगा.’’ कितना प्रदूषण है पिता की बातों में. रमा ने आश्चर्य से पिता की तरफ देखा. उसे पिता के चेहरे पर डस्ट जमी हुई दिखाई दी. फिर उस ने सोचा, ‘यह डस्ट तो सब के चेहरों पर है. बाजार में कितनी क्रीम, टोनर, साबुन, फेसवाश आ गए हैं डस्ट से बचने के लिए. इन फालतू की बातों में उलझ कर जीवन क्यों बरबाद करना. आगे बढ़ना ही जीवन है. उस ने डस्ट से भरा चेहरा साफ किया और नए जीवन की शुरुआत के लिए कोशिश शुरू कर दी.

कृष्णकांत के पिता रमाकांत क्लर्क थे. नौकरी के अंतिम बचे 2 वर्षों में अधिक से अधिक कमा लेना चाहते थे. लेकिन एक दिन रिश्वत लेते रंगेहाथों पकड़े गए. अधिकारी ने कहा, ‘‘मिलबांट कर खाना चाहिए. चोरी करने के लिए किस ने मना किया है? सरकारी नौकरी होती ही, कमाने के लिए है?

5 लाख रुपए का इंतजाम करो? इस मामले से तुम्हें निकालने की कोशिश करता हूं.’’ रमाकांत ने बेटे को सारी बात बता कर कहा, ‘‘बेटा, 2 लाख रुपए की मदद करो. 3 लाख रुपए का इंतजाम है मेरे पास.’’

कृष्णकांत ने कहा, ‘‘पिताजी, आप ने रिश्वत ली.’’ रमाकांत ने गुस्से में कहा, ‘‘मदद मांगी है, उपदेश नहीं. वेतन से मात्र घर चलता है, वह भी 20 दिनों तक. बेटी की शादी, मकान, ऐशोआराम की जिंदगी बिना रिश्वत लिए नहीं चलती. रिश्वत मैं ने कोई पहली बार नहीं ली. हमेशा से लेता आया हूं. सब लेते हैं. बस, पकड़ा पहली बार गया हूं. मदद करो कहीं से भी.’’

‘‘मैं कहां से करूं?’’ कृष्णकांत ने असहाय भाव से कहा. ‘‘रमा से मांग लो,’’ पिता की यह बात सुन कर कृष्णकांत सन्नाटे में आ गया. मतलब पिता को, घर में सब को मालूम था.

‘‘रमा को मैं ने छोड़ दिया है,’’ कृष्णकांत ने कहा. ‘‘बेवकूफ, दुधारू गाय को कोई छोड़ता है, भला. मन भर गया था तो किसी दूसरे के पास चला जाता या दूसरी ढूंढ़ता, तो कमाई वाली ढूंढ़ता. नहीं कर सकता तो मेरे कहने से शादी कर. 5 लाख रुपए दहेज दे रहे हैं लड़की वाले. जल्दी आ जा. चट मंगनी पट ब्याह करा देते हैं.’’

‘‘मैं एक जगह बात कर के देखता हूं.’’ ‘‘जो करना है जल्दी करना.’’

‘‘जी.’’ कृष्णकांत ने फोन काट दिया. क्या पिता है? सब मालूम था और ऐसे बने रहे कि जैसे कुछ मालूम न हो. रिश्तों में लालच की कितनी डस्ट जमी हुई है. चारों तरफ प्रदूषण फैला हुआ है. पैसा ही सबकुछ हो गया. इंसानी रिश्ते, भावनाएं सब में डस्ट जम गईर् है. पैसों और जरूरतों के आगे सब कचरे का ढेर हो गया है. कचरे के ढेर में आग लगाओ और जहरीला धुआं वातावरण में फैलने लगता है. कृष्णकांत ने खुद क्या किया? वही जो रमा ने किया. लेकिन कृष्णकांत को पिता की यह बात ठीक लगी कि दुधारू गाय है. क्यों छोड़ दी? लेकिन पिता को क्या बताए? दुधारू गाय का भी दूध ज्यादा निकालो तो वह भी सींग मारने लगती है. पैर झटकने लगती है.

कृष्णकांत ने पूनम से बात की. पूनम ने अपने पिता सेठ महेशचंद्र से मिलवाया. शादी की बात की. साथ में 2 लाख रुपए मदद की भी बात रख दी. सेठ महेशचंद्र गुस्से में आ गए. उन्होंने कहा, ‘‘मैं दहेज के खिलाफ हूं. फिर तुम्हारी नौकरी कौन सी स्थायी है? न जाने कब छूट जाए?’’

फिर उन्होंने अपनी बेटी को समझाते हुए कहा, ‘‘अपनी बराबरी वालों से रिश्ता करना चाहिए. दोस्ती तक ठीक है. शादी के पहले 2 लाख रुपए मांग रहा है. बाद में 50 लाख रुपए मांग सकता है. शादी के लिए तुम्हें यही लड़का मिला था. मैं अपनी अमीर बिरादरी में क्या मुंह दिखाऊंगा लोगों को. ‘‘लोग क्या कहेंगे कि सेठ महेशचंद्र ने अपनी बेटी की शादी एक अस्थायी नौकरी वाले लड़के से कर दी. मैं तो तुम्हें होशियार समझता था, बेटी, लेकिन तुम भी प्रेम के नाम पर बेवकूफ बन गई. शादी अपने बराबर वाले से भविष्य की सुरक्षा व सुखों को ध्यान में रख कर की जाती है.’’

फिर उन्होंने कृष्णकांत से कहा, ‘‘एक फोन पर तुम्हारी नौकरी चली जाएगी. मेरी बेटी से दूर रहना.’’ सेठ ने अब बेटी से कहा, ‘‘अमेरिका जाने की तैयारी करो आगे की पढ़ाई के लिए. प्रेम जैसे वाहियात शब्द से दूर रहो.’’

बाद में पूनम ने कहा, ‘‘कृष्णकांत, मैं अपने पिता की बात नहीं ठुकरा सकती.’’ कृष्णकांत उदास हो कर घर आ गया. उस ने कहा, ‘‘पिताजी, मैं आप के कहे अनुसार शादी करने को तैयार हूं. पिता ने 5 लाख रुपए सगाई में ले कर रिश्ता पक्का कर दिया. वे रिश्वत लेते पकड़े गए, रिश्वत दे कर छूट गए.

कितने प्रकार के प्रदूषण हैं इस देश में. हैं तो पूरी धरती पर, लेकिन देश में ज्यादा है. वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, जल प्रदूषण, रिश्तों में प्रदूषण. नित नए कड़वे होते रिश्ते. विकास और सुरक्षित भविष्य के लिए सब अनदेखा कर रहे हैं. घर में गाड़ी, टीवी के लिए सब एकदूसरे को चूस रहे हैं. सेठ महेशचंद्र चोरी का माल खरीदतेबेचते करोड़पति बन गए. लेकिन कैसे बने, इस बात की उन्हें रत्तीभर परवा नहीं थी. बने और सेठ कहलाए, इस गर्व से भरे हुए थे वे. पूनम ने प्रेम तो किया था लेकिन सुरक्षित भविष्य के डर से वह कृष्णकांत से दूर हो गई.

रमा, कृष्णकांत, पूनम, रमाकांत, रमा के पिता, सेठ महेशचंद्र जैसे लोग भ्रष्ट व्यवस्था के हिस्से बने हुए हैं. उन के सारे शरीर पर भ्रष्टाचार की डस्ट जमी हुई है. चेहरा तो वे साफ कर लेते हैं, मन कैसे साफ करेंगे? यह शायद वे कभी सोचते भी नहीं होंगे. वाटर फिल्टर से पानी शुद्ध तो कर लेते हैं लेकिन उन नदियों का, जमीन के नीचे बोरि ंग मशीन लगा कर निकाले गए पानी का क्या? उन की शुद्धता के बारे में लोग क्यों नहीं सोचते. अब तो हवा शुद्ध करने के लिए एयर प्योरीफायर भी आ गया है. लेकिन जमीन, आसमान से ज्यादा दिमाग पर फैली हुई उस डस्ट का क्या, उस प्रदूषण का क्या? उसे साफ करने के लिए क्यों कुछ नहीं किया जाता? जब आदमी अंदर से बेईमान हो तो सारे प्रदूषण, सारे अधर्म, सारे पाप दूसरों के सिर पर मढ़ कर मुक्त हो जाता है. लेकिन इस दोषारोपण से क्या आप बच पाएंगे? आप की आने वाली नस्लों का क्या होगा? जिस दिन प्रकृति व रिश्ते हिसाब करेंगे, सिवा बरबादी के कुछ नहीं होगा.

डस्ट- भाग 2 : धूल तो साफ हो जाएगी पर मन कैसे साफ करेंगे

‘तो फिर मेरे हिसाब से चलो. इस छोटे शहर में तो हमारे प्रेम का मजाक उड़ाया जाएगा. हम दूसरे शहर चलते हैं. मैं अपना ट्रांसफर करवाए लेती हूं. छोड़ सकते हो घर अपना.’ कृष्णकांत को तो मानो मनमांगी मुराद मिल गई थी. एक पुरोहित को पैसे दिए. 2 गवाह साथ रखे और शादी के फोटोग्राफ लिए. मंदिर में शादी की और दोनों घर में झूठ बोल कर हनीमून के लिए निकल गए. कृष्णकांत ने जैसी स्त्री के सपने देखे थे, ठीक वैसा ही रमा में पाया और वर्षों पुरुष संसर्ग को तरसती रमा पर भरपूर प्यार की बरसात की कृष्णकांत ने. दोनों तृप्त थे.

रमा ने अपना तबादला करवा लिया. घर में किसी को कुछ नहीं बताया. घर के लोग हंगामा खड़ा कर सकते थे. कृष्णकांत ने भी घर में झूठ बोला कि उस का ऐडमिशन कृषि महाविद्यालय में हो गया है. 12वीं तक की पढ़ाई उस ने कृषि विज्ञान से की थी. आगे की पढ़ाई के लिए पिता ने उसे अपनी आर्थिक स्थिति का हवाला दे कर दूसरे शहर में पढ़ाने से इनकार कर दिया था, लेकिन जब कृष्णकांत ने कहा कि उस ने प्रवेश परीक्षा क्लियर कर ली है और पढ़ाई का खर्च वह छात्रवृत्ति से निकाल लेगा तो घर में किसी ने विरोध नहीं किया.

रमा ने भी घर में कह दिया कि जब तक उसे सरकारी क्वार्टर नहीं मिल जाता, वह घर में किसी सदस्य को नहीं ले जा सकती. पैसे मनीऔर्डर से हर माह भिजवा दिया करेगी. लेकिन मेरे अपने खर्च भी होंगे. इसलिए मैं आधी तनख्वाह ही भेज पाऊंगी. दूसरे शहर में आ कर दोनों पतिपत्नी की तरह रहने लगे. कृष्णकांत का सारा खर्च रमा ही उठाती. उस के लिए नएनए कपड़े खरीदती. एक बाइक भी खरीदी जिस में कृष्णकांत रमा को ले कर कालेज जाता. कृष्णकांत बीए में ही पढ़ रहा था.

कालेज में कृष्णकांत से कोई लड़की बात करती और रमा देख लेती तो वह ढेरों प्रश्न पूछती. रमा भी किसी प्रोफैसर या पिं्रसिपल के साथ कहीं जाती या उन से हंसते हुए बात करती तो वह भी प्रश्नों की झड़ी लगा देता. 3-4 वर्षों के भरपूर वैवाहिक आनंद लूटने के बाद रमा शंकित रहने लगी कृष्णकांत की तरफ से और कृष्णकांत का रमा के प्रति आकर्षण धीरेधीरे कमजोर होने लगा. एमए में पहुंचने पर कृष्णकांत को अपने रोजगार की चिंता सताने लगी. शायद इसीलिए वह रमा की पूछताछ और संदेहभरे प्रश्नों को झेल जाता कि रमा नहीं होगी तो उस की आर्थिक जरूरतें कैसे पूरी होंगी. वह रमा से जुड़ा रहा. रमा ने उस पर लगाम लगाए रखी ताकि घोड़े को बिदकने का मौका न मिले.

एक समय वह भी आया जब उसी

कालेज में अस्थायी रूप से कृष्णकांत को असिस्टैंट प्रोफैसर की नौकरी मिल गई. रमा ने दबाव बनाया कि वह अपने घर वालों को अपनी शादी के बारे में बता दे. कृष्णकांत ने कहा, ‘कोई स्वीकार नहीं करेगा इस शादी को. पता चल गया तो तलाक करवा कर मानेंगे. अच्छा है कि यह बात घर तक न पहुंचे.’

‘और तुम्हारे घर वालों ने तुम्हारी शादी कहीं और तय कर दी, तब क्या होगा?’ ‘ऐसा तो वे करेंगे ही. उन्हें हमारी शादी के बारे में थोड़े पता है. लेकिन मैं करूंगा नहीं. तुम स्वयं को असुरक्षित महसूस करना बंद कर दो.’

‘मैं क्यों असुरक्षित महसूस करने लगी भला. पक्की सरकारी नौकरी है मेरे पास. मैं आर्थिकरूप से स्वतंत्र हूं. तुम कालेज की लड़कियों से बहुत घुलमिल कर बातें करते हो. मुझे पसंद नहीं.’ ‘तुम भी तो करती हो.’

‘तो क्या मैं चरित्रहीन हो गई बात करने से?’ ‘तो क्या मैं हो गया?’

‘तुम क्यों होने लगे. मर्द जो ठहरे. यह ठप्पा तो हम स्त्रियों पर ही लगता है.’ ‘तुम बात का बतंगड़ बना रही हो.’

‘जो देख रही हूं, वही कह रही हूं.’ ‘तुम चाहती क्या हो? मैं ने सब तुम्हारे हिसाब से किया.’

‘मैं ने भी सब तुम्हारे हिसाब से किया.’ ‘फिर पहले जैसा प्यार क्यों नहीं करते? कहां गया वह जोश?’

‘शारीरिक संबंध बनाना ही प्यार नहीं है.’ ‘पहले जैसी प्यारभरी बातें भी तो नहीं करते. खिंचेखिंचे से रहते हो.’

‘तुम्हें शक की बीमारी है.’ ‘शक नहीं, यकीन है मुझे.’

‘हुआ करे. मैं क्या कर सकता हूं.’ ‘हां, अब तो तुम जो भी करोगे, पूनम के लिए ही करोगे.’

‘खबरदार, जो पूनम का नाम बीच में लाई तो.’ ‘क्यों, मिर्ची लगी क्या?’

‘पूनम अच्छी लड़की है.’ ‘वह तुम्हारी स्टूडैंट है.’

‘लेकिन हमउम्र भी है.’ आएदिन दोनों में तकरार बढ़ती रहती. कृष्णकांत के पिता उस के रिश्ते की खबर कई बार पहुंचा चुके थे. आ जाओ, लड़की देख लो. कृष्णकांत हर बार टालता रहता था. रमा के साथ उस ने

12 वर्ष गुजार दिए थे. बाद के कुछ वर्षों में वह रमा से बचने लगा था. उस के आकर्षण का केंद्र थी पूनम. रमा की तरफ से उस का आकर्षण पूरी तरह खत्म हो चुका था.

वह समझ चुका था कि रमा से उसे जो प्यार था वह मात्र दैहिक आकर्षण था. प्यार तो उसे अब पूनम से था, जिस की उम्र 27 वर्ष के आसपास थी. जो एमए फाइनल की छात्रा थी. पूनम उसे और वह पूनम को छिपछिप कर देखते थे शुरू में. फिर नजरें बारबार मिलतीं और वे मुसकरा देते. यह अच्छा था कि रमा ने कालेज में स्वयं नहीं बताया था कि कृष्णकांत उस का पति है ताकि लोग उम्र के इस अंतर को मजाक न बनाएं. रमा समझ रही थी कि उस ने कृष्णकांत के साथ अपनी जिस्मानी जरूरतें पूरी कर ली हैं. वह यह भी जानती थी कि उम्र के इस अंतर को मिटाया नहीं जा सकता. वह 45 साल की मोटी, सांवली, अधेड़ औरत लगती है और कृष्णकांत 30 वर्ष का जवान. लेकिन फिर भी वह अपना शिकंजा कसने की भरपूर कोशिश करती, लेकिन वह जानती थी कि एक न एक दिन यह शिकंजा ढीला पड़ ही जाएगा.

कृष्णकांत ने एक दिन पूनम से कहा, ‘‘मैं तुम से अकेले में कुछ जरूरी बात करना चाहता हूं. अपने विषय में.’’ पूनम ने खुश हो कर तुरंत ‘हां’ कह दी. दोनों शाम को शहर के बाहर बने कौफीहाउस में मिले. कृष्णकांत ने कहा, ‘‘पूनम, मुझे बचा लो रमा मैडम से. मैं 18 वर्ष का था जब रमा ने मुझे अपने दैहिक आकर्षण में फंसा लिया था. मुझे कोर्टकचहरी की धमकी दी. मैं मजबूर हो गया. घर में गरीब मांबाप हैं. रमा ने मुझ से जबरदस्ती शादी की. वे

प्रदूषण और एलर्जी: सेहत के दुश्मन

प्रदूषण चाहे हवा का हो, पानी का हो या जमीन का, रोगों के पनपने का बड़ा कारण है. यह प्रकृति के नियमों में परिवर्तन करता है, प्रकृति के क्रियाकलाप में बाधा डालता है. प्रदूषण हवा, पानी, मिट्टी, रासायनिक पदार्थ, शोर या ऊर्जा किसी रूप में भी हो सकता है. इन सभी तत्त्वों का हमारे परिस्थितिकी तंत्र पर बुरा असर  पड़ता है जिस का प्रभाव मनुष्य के साथसाथ जानवरों और पेड़पौधों पर भी पड़ता है. चूंकि बच्चे और बुजुर्ग ज्यादा संवेदनशील होते हैं, इसलिए इन जहरीले तत्त्वों का असर उन पर सब से अधिक पड़ता है.

प्रदूषण कई प्रकार के होते हैं, जैसे वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, मिट्टी का प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण. इन से कई प्रकार की खतरनाक बीमारियां और एलर्जी भी होती है.

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वायु प्रदूषण की मार

वायु प्रदूषण में सौलिड पार्टिकल्स और कई तरह की गैसें शामिल होती हैं. दरअसल, एयर पौल्युटैंट हमारे शरीर में रेस्पिरेटरी ट्रैक्ट (श्वास नली) और लंग्स (फेफड़ों) द्वारा प्रवेश करते हैं. इन्हें रक्तवाहिकाएं सोख लेती हैं, जो शरीर के अन्य अंगों तक प्रसारित हो जाते हैं.

वायु प्रदूषण कई रोगों का कारण बनता है जिस की शुरुआत एलर्जी के रूप में आंख, नाक, मुंह और गले में साधारण खुजली या एनर्जी लेवल के कम होने, सिरदर्द आदि से हो सकती है. इस से गंभीर समस्याएं भी उत्पन्न हो सकती हैं.

रेस्पिरेटरी और लंग्स डिजीज : किसी व्यक्ति में वायु प्रदूषण के चलते समस्या शुरू हो गई है तो उसे रेस्पिरेटरी और लंग्स डिजीज अपनी चपेट में ले सकती हैं.

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इन के अंतर्गत अस्थमा अटैक, क्रोनिक औब्सट्रैक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी), लंग्स का कम काम करना, पल्मोनरी कैंसर, (एक खास तरह का लंग कैंसर मेसोथेलियोमा जिस का संबंध आमतौर पर एस्बेस्टोस की चपेट में आने से है आमतौर पर इस की चपेट में आने के 20-30 साल बाद यह नजर आता है), निमोनिया आदि बीमारियां आती हैं.

कार्डियोवैस्क्युलर डिजीज, हार्ट डिजीज और स्ट्रोक : सैकंडहैंड स्मोक के बारे में देखा गया है कि यह हृदय रोग को बढ़ाता है. कार्बन मोनोऔक्साइड और नाइट्रोजन डाईऔक्साइड भी इस में सहयोग देते हैं. वायु प्रदूषण को हृदय रोग का एक प्रमुख कारण माना जाता है क्योंकि एयर पौल्युटैंट लंग्स में प्रवेश करते हैं और रक्तवाहिकाओं में घुल जाते हैं जो इंफ्लेमेशन का कारण बनते हैं और हृदय की गति को बढ़ाते हैं. ये अस्थमा और लंग्स व सांस की एलर्जी का कारण बनते हैं.

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न्यूरो बिहेवियरल (शारीरिक और मानसिक) डिसऔर्डर : वायु में उपस्थित विषाक्त तत्त्व जैसे मरकरी आदि न्यूरोलौजिकल समस्याएं और विकास में बाधा का कारण बनते हैं.

लिवर और दूसरे तरह का कैंसर : कार्सिनोजेनिक वोलाटाइल कैमिकल में सांस लेने से लिवर की समस्या और कैंसर हो सकता है. यह भी वायु प्रदूषण के चलते ही होता है. एक अध्ययन के मुताबिक, धुएं और विभिन्न कैमिकल्स के चलते होने वाले वायु प्रदूषण के चलते प्रतिवर्ष लगभग 30 लाख लोगों की मृत्यु हो जाती है.

जल प्रदूषण के खतरे

जीवन के लिए जल जितना आवश्यक है उतना ही प्रदूषित जल हमारे जीवन के लिए खतरनाक साबित होता है. जल प्रदूषण से कई खतरनाक बीमारियां और एलर्जी होती हैं जो अकसर जानलेवा भी साबित होती हैं.

इंफेलाइटिस, पेट में मरोड़ और दर्द, उलटी, हेपेटाइटिस, रेस्पिरेटरी एलर्जी, लिवर का डैमेज होना आदि बीमारियां जल प्रदूषण के चलते हो सकती हैं. प्रदूषित जल में पाए जाने वाले कैमिकल्स के संपर्क की वजह से किडनी भी खराब हो सकती है.

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दूषित जल के प्रयोग से कई प्रकार की एलर्जी भी हो सकती है जिस में त्वचा में जलन, लाल चकत्ते पड़ना और फुंसियां होना आम बात है.

न्यूरोलौजिकल समस्याएं : पानी में आमतौर पर पैस्टिसाइड्स  (जैसे डीडीटी) जैसे कैमिकल्स की उपस्थिति के कारण नर्वस सिस्टम क्षतिग्रस्त हो सकता है.

?प्रजनन संबंधी समस्या : प्रदूषित पानी के सेवन के चलते जिस्म के अंदरूनी तंत्र के क्षतिग्रस्त होने से लैंगिक विकास में बाधा, बांझपन, इम्यून फंक्शन का कमजोर होना, उर्वरता की क्षमता कम होना जैसी बीमारियां भी हो सकती हैं.

जल प्रदूषण बढ़ने की वजह से मलेरिया का ब्रीडिंग ग्राउंड बन जाता है. यह मच्छरों द्वारा फैलता है. इस की वजह से दुनियाभर में प्रतिवर्ष लगभग 10.2 लाख लोगों की मौत हो जाती है.

जल प्रदूषण के कारण कुछ सामान्य रोग भी होते हैं जो ज्यादा गंभीर नहीं होते, जैसे समुद्र प्रदूषित पानी में नहाना जिस से कई प्रकार की एलर्जी हो सकती है, जैसे रैशैज, कान में दर्द, आंखों का लाल होना आदि.

मिट्टी के प्रदूषण

हैवी मैटल्स, पैस्टिसाइड्स, सौल्वैंट्स और दूसरे मानव निर्मित कैमिकल्स, लेड और तेल की गंदगी आदि कुछ सामान्य तत्त्व हैं जो मिट्टी को प्रदूषित करने में अपना योगदान देते हैं. मिट्टी का प्रदूषण मिट्टी की प्राकृतिक गुणवत्ता को नष्ट कर देता है, उपयोगी सूक्ष्मजीवों को मार देता है और एक प्रकार से पैथोजैनिक सौइल इनवायरमैंट का निर्माण करता है.

मिट्टी प्रदूषण से होने वाले रोग प्रत्यक्षरूप से इस को प्रदूषित करने वाले तत्त्वों के संपर्क में आने से होते हैं, जैसे वायु में उत्पन्न तत्त्व में सांस लेना, फसलों पर ऐसे पानी का छिड़काव या ऐसी मिट्टी में फसल उगाना आदि. हालांकि मिट्टी प्रदूषण की चपेट में आना वायु और जल प्रदूषण की चपेट में आने जितना गंभीर नहीं होता. इस का खतरनाक असर बच्चों पर हो सकता है जो आमतौर पर जमीन पर खेलते हैं और इन जहरीले तत्त्वों के सीधे संपर्क में होते हैं.

प्रदूषित मिट्टी के कारण कई तरह की स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं, जैसे सिरदर्द, चक्कर आना, थकान के अलावा त्वचा पर रैशेज, आंखों में खुजली और बाद में इन की गंभीर स्थिति वाली एलर्जी भी हो सकती है.

मस्तिष्क को क्षति : जब बच्चे लेड से प्रभावित मिट्टी के संपर्क में आते हैं तो उन के मस्तिष्क और नर्वस सिस्टम में क्षति हो सकती है. इस से उन के मस्तिष्क और न्यूरोमस्क्यूलर विकास प्रभावित होते हैं.

किडनी और लिवर को क्षति : मिट्टी में लेड की मिलावट लोगों को किडनी डैमेज के खतरे में डालती है. ऐसी मिट्टी के संपर्क में आना जिस में मरकरी और साइक्लोडाइन्स का मिश्रण हो, तो वह कभी न ठीक होने वाले किडनी रोग का कारण बन सकता है.

मलेरिया : जिन  क्षेत्रों में ज्यादा बारिश होती है और वहां पानी निकलने की ठीक से व्यवस्था नहीं होती तो वहां पानी के साथ मिट्टी मिल जाती है जिस से वहां के लोगों का प्रत्यक्षरूप से मलेरिया के संपर्क में आना सामान्य बात है. मलेरिया प्रोटोजोआ के कारण होता है जो मिट्टी में पैदा होता है. बरसात का पानी प्रोटोजोआ और मच्छरों को आगे बढ़ाने में मदद करता है जिस का परिणाम मलेरिया होता है.

ध्वनि प्रदूषण के साइड इफैक्ट्स

ध्वनि प्रदूषण मनुष्य को चिड़चिड़ा बना देता है. ध्वनि प्रदूषण का मनुष्य पर कई रूपों में प्रभाव पड़ता है.

दक्षता की कमी : कई तरह के शोधों के बाद यह बात साबित हुई है कि मनुष्य के काम करने की क्षमता शोर के कम होने से ज्यादा बढ़ती है. कारखानों का शोर अगर कम कर दिया जाए तो वहां के काम करने वालों की दक्षता को बढ़ाया जा सकता है. इस से यह साबित होता है कि मनुष्य के काम करने की दक्षता का संबंध शोर से है.

एकाग्रता में कमी : कार्य के बेहतर परिणाम के लिए एकाग्रता की आवश्यकता होती है. तेज आवाज की वजह से ध्यान भंग होता है. बड़े शहरों में आमतौर पर दफ्तर मुख्य मार्गों पर स्थित होते हैं, ट्रैफिक का शोर या विभिन्न प्रकार के हौर्न्स की तेज आवाजें दफ्तर में काम करने वाले लोगों की एकाग्रता को भंग करती हैं.

थकान : ध्वनि प्रदूषण के कारण लोग अपने काम में एकाग्रता नहीं ला पाते. परिणामस्वरूप उन्हें अपना काम पूरा करने में ज्यादा वक्त लगता है जिस की वजह से उन्हें थकान महसूस होती है.

गर्भपात : गर्भावस्था के दौरान शांत और सुकून देने वाला वातावरण आवश्यक होता है. अनावश्यक शोर किसी भी महिला को चिड़चिड़ा बना सकता है. कई बार शोर गर्भपात की भी वजह बनता है.

ब्लडप्रैशर : शोर व्यक्ति पर कई प्रकार से हमला करता है. यह व्यक्ति के मस्तिष्क की शांति पर हमला करता है. आधुनिक जीवनशैली के चलते पहले से तनाव में रह रहे व्यक्ति के शोर तनाव को बढ़ाने का काम करता है. तनाव की वजह से कई प्रकार के रोग पैदा होते हैं, जैसे ब्लडप्रैशर, मानसिक रोग, डायबिटीज के अलावा दिल की बीमारी आदि. इसलिए तनाव से व्यक्ति को दूरी बना लेने में ही भलाई है.

अस्थायी या स्थायी बहरापन : मैकेनिक्स, लोकोमोटिव ड्राइवर्स, टैलीफोन औपरेटर्स आदि सभी को कानों में तेज ध्वनि सुननी पड़ती है. हम सभी लगातार शोर की चपेट में रहते हैं. 80 से 100 डैसिबिल की ध्वनि असुरक्षित होती है. तेज आवाज अस्थायी या स्थायी बहरेपन का कारण भी बन सकती है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से कराए गए एक अध्ययन के अनुसार, हृदय रोगों के लिए जिम्मेदार कारकों में से एक ध्वनि प्रदूषण को माना जाता है. इस के अलावा ध्वनि प्रदूषण के कारण अनिद्रा और गंभीर चिड़चिड़ापन जैसे रोग भी होते हैं.

(लेखक नई दिल्ली स्थित सरोज सुपरस्पैशलिटी अस्पताल के इंटरनल मैडिसिन विभाग के अध्यक्ष हैं.)

मूंग की उन्नत खेती

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मूंग की खेती जायद के मौसम में अकेली फसल के रूप में या मिलवां फसल के रूप में की जाती है. खरीफ में भी इस की खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है. हालांकि खरीफ में मौसम नम रहने के कारण इस फसल में पीला मौजेक नामक बीमारी का खतरा होता?है, जिस से पैदावार कम हो जाती है. खेत का चयन व तैयारी : दोमट व हलकी दोमट मिट्टी जिस में जल निकास की सही व्यवस्था हो, मूंग की फसल के लिए अच्छी रहती है. खेत की तैयारी के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल या हैरो से करें. उस के बाद 2-3 जुताई कल्टीवेटर से कर के पाटा लगा दें. इस तरह खेत बोआई के लिए तैयार हो जाता है.

बोआई का समय : मूंग की बोआई फरवरीमार्च से ले कर अगस्त के तीसरे हफ्ते तक की जा सकती है. खरीफ की मूंग जुलाई के पहले हफ्ते से अगस्त के तीसरे हफ्ते तक बोई जाती?है.

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बीज की मात्रा : 12-15 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करें.

बोआई की विधि : बोआई कूंड में हल के पीछे करनी चाहिए. कूंड से कूंड की दूरी 30-35 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 15-20 सेंटीमीटर रहनी चाहिए.

बीज शोधन व बीजोपचार : बोआई से पहले कवकनाशी से बीजों का शोधन करना व राइजोबियम कल्चर से उन को उपचारित करना बहुत ही जरूरी?है. बीज शोधन के लिए 2.5 ग्राम थीरम या 2.5 ग्राम कार्बेंडाजिम का प्रति किलोग्राम बीज की दर से इस्तेमाल करे. बीज शोधन हमेशा बीजोपचार से पहले करें.

उर्वरक : 20 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस व 20 किलोग्राम पोटाश की प्रति हेक्टेयर की दर से मूंग की फसल को होती है. उर्वरकों की पूरी मात्रा बोआई के समय खेत में डालें.

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सिंचाई : मूंग की फसल यदि खरीफ

में ली जा रही हो, तो सिंचाई की जरूरत नहीं होती है.

निराईगुड़ाई

पहली निराईगुड़ाई बोआई के 20-25 दिनों बाद और दूसरी उस के 20 दिनों बाद करनी चाहिए. बोआई से पहले रासायनिक विधि से खरपतवार नियंत्रण के लिए फ्लूकोलोरालिन 45 ईसी नामक रसायन की 2 लीटर मात्रा 700 से 800 लीटर पानी में मिला कर प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करें.

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फसल सुरक्षा : मूंग की अच्छी पैदावार लेने के लिए फसल को कीटों व बीमारियों से बचाना बेहद जरूरी है.

कुंडली मिलान प्रथा: समाज को बांटे रखने का महत्वपूर्ण हथियार

साल था जनवरी 2018 का, जब मेरे दोस्त मोनू के बड़े भाई राजीव की शादी के लिए जगहजगह लड़की तलाशने के लिए लोगों के घर जाया जा रहा था. उन के घर वाले एक ऐसी बहू की तलाश में थे, जो की सुंदर हो, सुशील हो, घर का काम करना आता हो, पढ़ीलिखी हो वगैरह.

खानदान के पंडित बड़ी मेहनत से कुंआरी लड़कियों के रिश्ते का पता करते और एक के बाद एक लड़के की कुंडली के अनुसार लड़कियों को छांटते रहे.

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घर वालों ने तो पंडितजी से साफ कह दिया था कि लड़कालड़की की कुंडली में कम से कम 24 गुण तो मिलने ही चाहिए. राजीव की कुंडली के अनुसार घर के पंडित का लड़की ढूंढ़ना थोड़ा मुश्किल होने लगा, तो घर वालों ने अपने गांव के कुछ और पंडितों को भी लड़की ढूंढ़ने के इस काम में शामिल कर लिया.

आखिरकार पंडितों के काफी तलाशने के बाद एक ऐसी लड़की मिल ही गई, जिस से राजीव की कुंडली से 36 में से 32 गुणों का मिलान हो गया. राजीव के घर वाले बहुत खुश हुए और जल्द ही लड़की वालों से मिल कर रिश्ते की बात भी पक्की कर आए.

अप्रैल तक आतेआते राजीव की शादी हो गई और नया जोड़ा हनीमून के लिए कुछ दिनों के लिए शिमला चला गया. मेरे दोस्त मोनू ने अपने बड़े भाई के बारे में बताया कि राजीव और कल्पना की शादी को कुछ ही महीने बीते थे कि इन दोनों के बीच छोटीमोटी बातों को ले कर अनबन शुरू हो गई. पहले बात केवल एकदूसरे के प्रति नाराजगी तक थी, लेकिन कुछ समय बाद ये अनबन छोटेमोटे झगड़ों का रूप लेने लगी.

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मोनू ने बताया कि घर वाले उन के बीच इन छोटे झगड़ों को इग्नोर किया करते थे और कहते थे कि ‘जिन पतिपत्नी के बीच झगड़ा होता है, उन के बीच प्यार भी उतना ही होता है’.

अब यह बात कितनी सही थी, कितनी गलत, ये तो बाद में ही समझ आया, जब छोटेमोटे झगड़े इतने बढ़ने लगे कि सभी को चिंता होने लगी. झगड़ों की क्या वजह थी, यह तो मोनू ने नहीं बताया, क्योंकि उसे खुद को ही नहीं पता था.

जैसेतैसे राजीव और कल्पना की शादी को 7-8 महीने गुजर गए. मोनू ने बताया कि उन का कोई भी दिन ऐसा नहीं गुजरता था, जब वे झगड़ा न करते हों. साल 2019 की शुरुआत में ही वे दोनों एकदूसरे से इतने परेशान हो गए कि उन दोनों ने ही अपने परिवार की न मानते हुए एकदूसरे को तलाक देने का फैसला कर लिया और अप्रैल, 2019 के आतेआते वे दोनों कानूनी तरीके से अलग हो गए.

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मोनू के ये सबकुछ बताने के बाद कुछ सवाल मेरे दिमाग में बनने लगे कि जिस जोड़े की कुंडली में 36 में से 32 गुणों का मिलान हो जाए, लेकिन उस के बाद भी अगर शादी के बाद इतनी समस्याएं हों, तो इस में किस का दोष है? क्या कुंडली मिलान करने वाले पंडित से गलती हुई? या फिर यह संपूर्ण कुंडली वाला सिस्टम ही इस के पीछे का दोषी है? क्या शादी से पहले कुंडली देखना और गुणों का मिलान करना महज एक ढकोसला है या फिर इस के पीछे समाज को बांटे रखने वाली मानसिकता काम करती है?

एक पल के लिए अगर हम मान भी लें कि कुंडली मिलाने वाले पंडित की गलती के कारण ये सभी समस्याएं नवविवाहित जोड़े को सहनी पड़ीं, लेकिन हम ने अपने जीवन में कई ऐसे उदाहरण देखें हैं, जिस में सर्वगुण संपन्न कुंडली मेल के बाद भी विवाहत जोड़ा अपना वैवाहिक जीवन सफल नहीं बना पाता.

यह भी देखा है कि कुंडली मेल बिलकुल भी न होने पर कई जोड़े बेहद सुखद वैवाहिक जीवन गुजारते हैं. ऐसे में कुंडली मिलान की परंपरा पर सवाल उठाना अधिक उचित हो जाता है कि जब इस के मिलने या न मिलने से विवाहित जोड़े के जीवन में कोई असर नहीं पड़ता, तो अभी भी बहुसंख्यक शादीविवाह में इस परंपरा को इतना अधिक मोल क्यों दिया जाता है.

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क्या है कुंडली मिलान?

कुंडली आप की ऊर्जा प्रणाली और उस पर ग्रहों की प्रणाली के प्रभावों का वर्णन करती है. सीधेसीधे शब्दों में कहें, तो हर व्यक्ति के अंदर एक प्रकार की ऊर्जा विद्यमान होती है, और यह ऊर्जा पृथ्वी से बाहर हमारे सौरमंडल के अन्य ग्रहों की ऊर्जा से प्रभावित होती है. इस वजह से हमारे जीवन पर इन का प्रत्यक्ष असर पड़ता है. कुंडली इसी ऊर्जा और इस पर पड़ने वाले प्रभाव का आकलन करना है. कुंडली मिलान को ज्योतिष विद्या में गिना जाता है, जिसे अंगरेजी में एस्ट्रोलौजी कहते हैं.

विवाह के समय लड़के और लड़की की जन्म कुंडलियों को मिला कर देखा जाता है. कुंडली मिलान की इस विधि में 36 गुण होते हैं और विवाह की मान्यता के लिए 36 में से कम से कम 18 गुणों का मिलान होना चाहिए. इन 18 गुणों के अंतर्गत आने वाले सब से महत्वपूर्ण पहलू मानसिक अनुकूलता, मांगलिक दोष, प्रस्तावित संबंधों के स्थायित्व, एकदूसरे के विपरीत होने वाली प्रवृत्तियां, उन के रवैए और दृष्टिकोण में समानता, बच्चे, स्वास्थ्य, यौन संगतता और दूसरे पहलुओं का आकलन किया जाता है. परंतु यह सब अगर वैज्ञानिक नजरिए से देखें, तो कुंडली मिलान अपनेआप में वैज्ञानिक नहीं है.

सब से पहले तो एस्ट्रोलौजी को ही वैज्ञानिक नहीं माना गया है. वैज्ञानिकों में इस मुद्दे को ले कर बहस भी मौजूद है कि ज्योतिष विद्या विज्ञान है या नहीं.

कुंडली मिलान क्यों बन गया जरूरी?

यदि हम कुंडली मिलान प्रथा को और इस की प्रक्रिया को ध्यान से अध्ययन करें तो हम पाएंगे कि इस मिलान की 36 गुणों में से सब से महत्वपूर्ण गुण (जिसे गुण नहीं माना जाना चाहिए) वर्ण कूट है.

वर्ण कूट से अभिप्राय वर्ण व्यवस्था से है, अर्थात, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र. और इन्हीं वर्ण से ही जातियों का उत्थान होता है. और तो और वर्ण कूट को कुंडली मिलान की प्रक्रिया में सब से पहला स्थान दिया गया है.

कुंडली मिलान की यह प्रक्रिया समाज में तब से ही चलती आ रही है, जब से समाज में जाति व्यवस्था आई. पुराने समय में कुंडली मिलान की उपयोगिता केवल बेहतर साथी की तलाश के लिए (जिस की कोई गारंटी अभी भी नहीं है) ही नहीं, बल्कि जाति व्यवस्था को कायम रखने के लिए भी किया गया.

वर्ण व्यवस्था समाज में एक तरह की छतरी के समान होता है, जिस के अंदर अलगअलग जातियों का समावेश होता है. हिंदू धर्म में जाति व्यवस्था को बेहद अहम स्थान दिया गया है. ब्राह्मण का विवाह ब्राह्मण से, क्षत्रिय का विवाह क्षत्रिय से, वैश्य का विवाह वैश्य से और शूद्र का विवाह शूद्र से ही हो. इस व्यवस्था को बनाए रखने का दारोमदार कुंडली मिलान की प्रक्रिया से ही संभव था.

भारत में जाति व्यवस्था ने समाज को हमेशा बांट कर रखा. उस के पीछे सब से बड़ा कारण समाज में कुछ लोगों के पास ही सब से अधिक संसाधन और सब से अधिक अधिकारों को अपने हाथों में बनाए रखना था. और यह सब समाज में बिना धर्म के लागू करना संभव ही नहीं था.

चंद मुठ्ठीभर लोग, जिन के हाथों में संसाधन और अधिकारों का केंद्रीयकरण हो गया, वह समाज को अपने आने वाली पीढ़ियों में हस्तांतरित करना चाहते थे. तभी तो समाज में लोगों के पेशे के अनुसार उन्हें विभाजित कर दिया गया. किसी दूसरी जाति का व्यक्ति किसी अन्य जाति के साथ संबंध न बना ले, इसीलिए तरहतरह की पाबंदियां लगा दी गईं. ये केवल संबंध बनाने की बात नहीं थी, बल्कि एक जाति का खून दूसरी जाति में मिश्रित न हो जाए. इस के ऊपर कंट्रोल करने के लिए कुंडली मिलान की प्रथा सब से अहम थी.

आज के समय में भी शादी से पहले कुंडली मिलान की यह प्रथा आम घरों में बेहद आम है. चाहे लड़के के लिए लड़की तलाशनी हो या फिर लड़की के लिए लड़का, कुंडली में जब तक 18 गुण नहीं मिल जाते, तब तक शादी के लिए मंजूरी नहीं मिलती है.

कुंडली मिलान की यह प्रथा पढ़ाईलिखाई से वंचित लोगों के साथसाथ खूब पढे़लिखे लोग भी अपनी शादी के लिए योग्य वर या वधू की तलाश के लिए प्रयोग करते हैं. कुंडली के अनुसार संबंध बनाने की कोई गारंटी नहीं है, क्योंकि ज्योतिष विद्या या एस्ट्रोलौजी किसी तरह का कोई विज्ञान नहीं है, इसीलिए इसी का एक हिस्सा यानी कुंडली मिलान का भी किसी तरह का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है.

कुंडली प्रथा में जिस तरह ग्रहोंनक्षत्रों के मेल या अमेल से किसी व्यक्ति के लिए कौन योग्य है और कौन नहीं, इस का आकलन करने की नाटकनौटंकी की जाती है, उस से यह कहीं से भी न तो वैज्ञानिक लगता है और न ही यह कोई विज्ञान है. मामला केवल जाति व्यवस्था को बनाए रखना है, बाकी सब तो मदारी के खेल जैसा है. जिस से लोगों को लगता है कि ज्योतिषी जो भी राहू, केतु, शनि, मंगल कर रहा है, वह सब ठीक ही होगा. और कुंडली मिलान से बनाए जाने वाले संबंध अपने वैवाहिक जीवन में सफल हो, इस की भी कोई गारंटी नहीं है.

मसलन, मेरे मित्र मोनू के बड़े भाई राजीव का ही उदाहरण ले लीजिए. 36 में से 32 गुणों के मिलान के बावजूद भी शादी का एक साल भी पूरा नहीं हुआ और दोनों को तलाक तक ले लेना पड़ा.

उसी प्रकार मेरा एक अन्य दोस्त रवि की शादी का किस्सा है. कालेज के दिनों में हम साथ में पढ़ते थे. रवि को उन दिनों कालेज में एक लड़की से प्यार हो गया. लड़की का नाम बुशरा हसन था. बुशरा और रवि ने अपने घर पर एकदूसरे के बारे में बताया, लेकिन कोई बात नहीं बनी. अंत में रवि और बुशरा ने कानूनी तरीके से कोर्ट में जा कर शादी कर ली.

हालफिलहाल ही में जब उन से मुलाकात हुई, तो वे एकदूसरे के साथ बेहद खुश नजर आए. यदि हम पौराणिक कथाओं की बात करें, तो भगवान राम और देवी सीता की जोड़ी के समय जब उन की कुंडली का मिलान महर्षि गुरु वशिष्ठ द्वारा किया गया था, तो कहा जाता है कि उन की जोड़ी में 36 में से 36 गुणों का ही मिलान हो गया था. परंतु जब 36 गुणों का मेल हो ही गया था, तो अंत में देवी सीता को क्यों धरती में समाना पड़ा?

कहने का मतलब यह है कि कुंडली मिलान की जो प्रथा पहले के समय हुआ करती थी, उस की प्रकृति आज के आधुनिक समय में इतनी नहीं है. आज का समय पहले की तुलना में अधिक वैज्ञानिक है. हालांकि धार्मिक अंधविश्वास, पोंगापन, रूढ़िवाद अभी भी समाज में फैला हुआ है, लेकिन आज के समय किसी भी चीज को लोगों को विश्वास दिलाने के लिए विज्ञान के नाम का सहारा लिया जाता है. लेकिन पहले ऐसा नहीं हुआ करता था, पहले के समय में धर्म ही सर्वश्रेष्ठ कानून हुआ करता था, इसीलिए कुंडली प्रथा से 100 प्रतिशत ये दावा नहीं किया जा सकता कि गुण मिलने पर नवविवाहित जोड़ा खुशहाल ही रहेगा. यदि कोई तुक्का भिड़ जाए तो बात अलग है.

कुंडली प्रथा कितनी व्यावहारिक?

जाहिर सी बात है कि कुंडली मिलान की प्रथा केवल समाज में पहले से मौजूद जाति व्यवस्था को मजबूती देता है. इस से यह सवाल बनता है कि आज के आधुनिक समाज में कुंडली मिलान अपनी कितनी व्यवहारिकता रखता है?

उदाहरण के लिए, मेरे दोस्त रवि और बुशरा की जोड़ी को ही ले लीजिए. यदि हम नाम से दोनों के धर्म का अंदाजा लगाएं, तो रवि हिंदू धर्म से है और बुशरा मुसलिम धर्म से अपना ताल्लुक रखती है. इस हिसाब से तो रवि का मेल किसी भी तरीके से बुशरा के साथ होना ही नहीं चाहिए. लेकिन सचाई कुछ और ही बयान करती नजर आ रही है कि दोनों एकदूसरे के साथ बेहद खुश हैं.

उसी प्रकार एक सवाल यह भी बनता है कि जिन धर्मों में कुंडली मिलान जैसी प्रथाओं को नहीं स्वीकारा जाता, क्या उन के यहां रिश्ते होते ही नहीं? या फिर क्या उन में शादियां होती ही नहीं? और अगर होती भी हैं, तो क्या उन के रिश्ते टूट जाते हैं?

आज के आधुनिक समाज में एस्ट्रोलौजी, होरोस्कोप इत्यादि पर भरोसा करना खुद को वक्त के हिसाब से पीछे धकेलने जैसा है. एक तरफ दुनिया में विज्ञान तेजी से प्रगति के रास्ते पर है, तो वहीं कुछ लोग धर्म का चश्मा लगा कर दुनिया को पीछे धकेलने का काम कर रहे हैं.

इस रेस में बाकी भी नहीं हैं पीछे

यदि यह सब पढ़ कर आप को यह लगने लगा है कि केवल हिंदू धर्म में ही कुंडली मिलान की प्रथा विद्यमान है, तो आप बहुत बड़ी गफलत में हैं. कुंडली मिलान की प्रक्रिया समाज में एक जाति को दूसरी जाति से रिश्ते जोड़ने से रोकता है, एक तरह से ये बैरिकेड की तरह काम करता है.

जब बात धर्म में जातियों की होती है, तो भारत के मुसलिम समुदाय के लोग अपना आंगन बड़ा साफसुथरा दिखाने की कोशिश करते हैं. कहते हैं कि मुसलिमों में किसी तरह की कोई जाति नहीं होती, सब बराबर होते हैं वगैरह. मुसलिम समुदाय में जाति होती है कि नहीं, यह जानने के लिए सब से सीधा और आसान तरीका इंटरनैट पर ही मिल जाता है.

इंटरनैट खोलिए. गूगल पर मुसलिम मैट्रिमनी टाइप कीजिए. किसी भी एक वैबसाइट पर विजिट कीजिए और थोड़ा सा सर्फिंग कीजिए. शेख, सिद्दीकी, अनवर, आरिफ, मलिक, अली इत्यादि कर के आप को मुसलिमों में जातियों की एक लंबी लिस्ट देखने को मिल जाएगी.

बेशक, कुंडली मिलान जैसी कोई प्रक्रिया नहीं अपनाई जाती, लेकिन जाति का ध्यान तो रखा जाता है. मुसलिम समुदाय में अशरफ (मुगल, पठान, सैयद, शेख इत्यादि) नहीं चाहते कि उन की शादी अज्लफ (पिछड़े मुसलिम) और अरजल (दलित मुसलिम) के घर में हो. अब आप खुद से यह सवाल कर सकते हैं कि जब यह इंटरनैट पर किसी मैट्रिमनी वैबसाइट पर मौजूद हो सकता है, तो क्या ये विभाजन समाज में नहीं मौजूद हो सकता?

जाहिर सी बात है कि ये समाज में भी मौजूद होता है, लेकिन किसी ऊंची जाति के मुसलिम से यदि आप पूछ लेंगे कि क्या वे अपने बच्चों की शादी भंगी (अछूत मुसलिम) के घर करेंगे, तो संभावना है कि उन का जवाब न में ही होगा.

वैसे बता दें कि मुसलिम समुदाय में यह दावा किया जाता है कि वे छुआछूत प्रैक्टिस नहीं करते. परंतु कह देने में किस का क्या जाता है. भारत में वैसे तो मुसलिम समुदाय अल्पसंख्यक हैं, लेकिन इसी समुदाय का बहुसंख्यक मुसलिम आबादी गरीब है, पिछड़ी है.

जाहिर सी बात है कि भारत के मुसलिम समुदाय का बहुसंख्यक हिस्सा अज्लफ है और दलित है, जो कि समाज में अलगअलग पेशों में लगा हुआ है. इसीलिए जब शादीब्याह की बात होती है, तो मुसलिम समुदाय में जाति व्यवस्था क्लियर कट नजर नहीं आता.

कुछ ऐसा ही हाल सिख समुदाय का भी है. कुंडली मिलान यहां भी प्रैक्टिस नहीं किया जाता, लेकिन जाति व्यवस्था तो कायम है. इंटरनैट पर ही सिख मैट्रिमनी टाइप करने और किसी वैबसाइट पर विजिट करने भर से मालूम हो जाएगा कि यहां भी जाति के अनुसार ही लोग अपने घर के लड़केलड़कियों की शादी तय करते हैं.

जाट, राजपूत, सैनी, अरोड़ा, भाटिया, बत्रा इत्यादि अपने या अपने से ऊपर की जातियों में अपने बच्चों की शादी करवाना चाहते हैं, लेकिन अपने से निचली जाति में नहीं.

क्या करना चाहिए?

बात सिर्फ कुंडली मिलान तक ही सीमित नहीं है. कुंडली मिलान समाज में एक धर्म में ही मुख्य रूप से प्रैक्टिस की जाती है, लेकिन वैसी ही प्रक्रिया अन्य धर्मों में भी तो विद्यमान है. एक तरफ तो पहले ही ज्योतिष ज्ञान (एस्ट्रोलौजी) को वैज्ञानिक नहीं माना गया है, वहीं दूसरी ओर इन को मानने वाले लोगों की संख्या समाज में बहुत बड़ी है, अर्थात वे सभी अवैज्ञानिक चीजों पर भरोसा करते हैं. जिस की वजह से ये आधुनिक समाज की ये ट्रेन आज भी कहीं न कहीं उन्हीं पुरानी अवैज्ञानिक, रुढ़िवादी, अंधविश्वास की पटरी पर सवार है, जो कि अकसर जातिवाद के स्टेशन पर ही प्रस्थान करती है.

भारत को आजाद हुए 74 साल हो चुके हैं, परंतु आज भी हमारे समाज से जातिवाद खत्म नहीं हुआ. इस की वजह केवल एक है, हमारे दादादादी, नानानानी, हमारे मांबाप ने इस जाति व्यस्था को कायम किया हुआ है, अपनी जाति में बच्चों की शादियां करवा के.

अगर हम भी अपने पूर्वजों के किए हुए काम को करेंगे, तो हमें कोई हक नहीं ये सवाल करने का कि “भारत में जाति कभी क्यों नहीं जाती?” इस जाति व्यवस्था के खात्मे के लिए यह जरूरी है कि हम इस कुंडली मिलान की सब से पहली सीढ़ी को ही न चढ़ें. इसीलिए जरूरी है कि हम एक कदम आगे बढ़ कर पुरानी मानसिकता को चैलेंज करें.

समाज को विज्ञान के आधार पर चलाएं, न कि धार्मिक अंधविश्वास की पटरी पर. भविष्य में आना वाला समय विज्ञान का होगा, न कि धार्मिक अंधविश्वास और पोंगेपन का. इसीलिए हम क्यों न अभी से ही खुद को तैयार कर लें और अपने बच्चों को एक बहतर भविष्य प्रदान करें.

डस्ट- भाग 1 : धूल तो साफ हो जाएगी पर मन कैसे साफ करेंगे

वह शाम को घर वापस आया. चेहरे पर अजीब सी चिपचिपाहट का अनुभव हुआ. उस ने रूमाल से अपना चेहरा पोंछा और रूमाल की तरफ देखा. सफेद रूमाल एकदम काला हो गया था. इतना कालापन. मैं तो औफिस जा कर कुरसी पर बैठता हूं. न तो मैं फील्डवर्क करता हूं न ही किसी खदान में काम करता हूं. रास्ते में आतेजाते ट्रैफिक तो होता है, लेकिन मैं अपनी बाइक से जाता हूं और हैलमेट यूज करता हूं. फिर इतनी डस्ट कैसे? उस ने टीवी पर समाचारों में देखा था कि महानगरों, खासकर दिल्ली में इतना ज्यादा प्रदूषण है कि लोगों को सांस लेने में तकलीफ होती है. दीवाली जैसे त्योहारों पर जब पटाखों का जहरीला धुआं वातावरण में फैलता है तो लोगों की आंखों में जलन होने लगती है और सांस लेने में दम घुटता है. ऐसे कई स्कूली बच्चों को मास्क लगा कर स्कूल जाते हुए देखा है.

महानगरों की तरह क्या यहां भी प्रदूषण अपनी पकड़ बना रहा है. घर से वह नहाधो कर तैयार हो कर निकलता है और जब वापस घर आता है तो नाककान रुई से साफ करने पर कालापन निकलता है. यह डस्ट, चाहे वातावरण में हो या रिश्तों में, इस के लिए हम खुद जिम्मेदार हैं. रिश्ते भी मर रहे हैं. प्रकृति भी नष्ट हो रही है. नीरस हो चुके हैं हम सब. हम सिर्फ एक ही भाषा सीख चुके हैं, फायदे की, मतलब की. ‘दुनिया जाए भाड़ में’ तो इस तरह कह देते हैं जैसे हम किसी दूसरी दुनिया में रहते हैं.

उसे पत्नी पर शक है और पत्नी को भी उस पर शक है. इस शक के चलते वे अकसर एकदूसरे पर आरोपप्रत्यारोप लगाते रहते हैं. पत्नी का शक समझ में आता है. कृष्णकांत ने अपनी उम्र से 15 वर्ष बड़ी महिला से शादी की थी. वह 30 वर्ष का है और उस की पत्नी 45 वर्ष की. जब वह 18 वर्ष का था तब उस ने रमा से शादी की थी. शादी से पहले प्यार हुआ था. इसे कृष्णकांत प्यार कह सकता था उस समय क्योंकि उस की उम्र ही ऐसी थी. रमा कालेज में प्रोफैसर थी. कृष्णकांत तब बीए प्रथम वर्ष का छात्र था. रमा घर में अकेली कमाने वाली महिला थी. परिवार के लोग, जिन में मातापिता, छोटा भाई, छोटी बहन थी, कोई नहीं चाहता था कि रमा की शादी हो. अकसर सब उसे परिवार के प्रति उस के दायित्वों का एहसास कराते रहते थे. लेकिन रमा एक जीतीजागती महिला थी. उस के साथ उस के अपने शरीर की कुछ प्राकृतिक मांगें थीं, जिन्हें वह अकसर कुचलती रहती थी, लेकिन इच्छाएं अकसर अपनी जरूरतों की पूर्ति के लिए मुंहबाए उस के सामने खड़ी हो जातीं.

कृष्णकांत की उम्र में अकसर लड़कों को अपने से ज्यादा उम्र की महिलाओं से प्यार हो जाता है. पता नहीं क्यों? शायद उन की कल्पना में भरीपूरी मांसल देह वाली स्त्रियां ही आकर्षित करती हों. कृष्णकांत को तो करती थीं.

नई उम्र का नया खून ज्यादा जोश मारता है. शरीर का सुख ही संसार का सब से बड़ा सुख मालूम होता है और कोई जिम्मेदारी तो होती नहीं इस उम्र में. पढ़ने के लिए भी भरपूर समय होता है और नौकरी करने की तो अभी उम्र मात्र शुरू होती है. मिल जाएगी आराम से और रमा मैडम जैसी कोई नौकरीपेशा स्त्री मिल गई तो यह झंझट भी खत्म. हालांकि उसे रमा की तरफ उस का आकर्षक शरीर, शरीर के उतारचढ़ाव और खूबसूरत चेहरा, जो था तो साधारण लेकिन उस की दृष्टि में काफी सुंदर था, उसे खींच रहा था. औरतें नजरों से ही समझ जाती हैं पुरुषों के दिल की बात. रमा ने भी ताड़ लिया था कि कृष्णकांत नाम का सुंदर, बांका जवान लड़का उसे ताकता रहता है. फिर उसे टाइप किए 3-4 पत्र भी मिले जिस में किसी का नाम नहीं लिखा था. बस, प्यारभरी बातें लिखी थीं. रमा समझ गई कि ये पत्र कृष्णकांत ने ही उसे लिखे हैं. रमा ने उस से कालेज के बाहर मिलने को कहा. रमा के बताए नियत स्थान व समय पर वह वहां पहुंचा.

अंदर से डरा और सहमा हुआ था कृष्णकांत. लेकिन रमा के शरीर में उस के पत्रों को पढ़ कर चिंगारिया फूट रही थीं. वह तो केवल कालेज में प्रोफैसर थी सब की नजरों में. घर में कमाऊ पूत. जो कुछ इश्कविश्क की बातें थीं वो उस ने फिल्मों में ही देखी थीं. उस का भी मन होता कि कोई उस से प्यारभरी बातें करे, लेकिन अफसोस कि ऐसा कभी हुआ नहीं और आज जब हुआ तो कालेज के छात्र से. कोई दूर या पास से देख भी लेता तो यही सोचता कि छात्र और प्रोफैसर बात कर रहे हैं. रमा ने कृष्णकांत से कहा, ‘ये पत्र तुम ने लिखे हैं?’ कृष्णकांत चुप रहा, तो रमा ने आगे कहा, ‘मैं जानती हूं कि तुम ने ही लिखे हैं. डरो मत, स्पष्ट कहो और सच कहो. मैं किसी से नहीं कहूंगी.’

‘जी, मैं ने ही लिखे हैं.’ ‘क्यों, प्यार करते हो मुझ से?’

‘जी.’ ‘उम्र देखी है अपनी और मेरी.’

कृष्णकांत चुप रहा. तो रमा ने ही चुप्पी तोड़ी और कहा, ‘क्या चाहते हो मुझ से, शादी, प्यार या सैक्स.’ ‘जी, प्यार.’

‘और उस के बाद?’ कृष्णकांत फिर चुप रहा.

‘शादी नहीं करोगे, बस मजे करने हैं,’ रमा की यह बात सुन कर कृष्णकांत भी खुल गया. उस ने कहा, ‘‘शादी करना चाहता हूं. प्यार करता हूं आप से.’’

‘कौन तैयार होगा इस शादी के लिए? तुम्हारे घर वाले मानेंगे. मेरे तो नहीं मानेंगे.’ ‘मैं इस के लिए सारी दुनिया से लड़ने को तैयार हूं,’ कृष्णकांत ने कहा.

‘सच कह रहे हो,’ रमा ने उसे तोलते हुए कहा. ‘जी.’

लूडो:जीवन,कर्म,भाग्य व विश्वास के हर रंग का संगम

फिल्म समीक्षाः फिल्म समीक्षाः

रेंटिंग- साढ़ें तीन स्टार

निर्माताः अनुराग बसु और टी सीरीज निर्माताः अनुराग बसु और टी सीरीज
लेखक,निर्देशक व कैमरामैनः अनुराग बसु लेखक,निर्देषक व कैमरामैनः अनुराग बसु लेखक,निर्देशक व
कलाकारःअभिषेक बच्चन,आदित्य राॅय कपूर,राज कुमार राव,फातिमा सना
शेख,सानिया ईरानी,पंकज त्रिपाठी, रोहित सराफ,पर्लमा शेख,सानिया ईरानी,पंकज त्रिपाठी, रोहित सराफ,पर्ल माने,इनायत वर्मा, ,इनायत वर्मा

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अवधिः दो घंटे 29 मिनट
ओटिटि प्लेटफार्म 12 नवंबर

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वाले चार अलग -अलग लोगों की यात्राओं की कहानी है.लेकिन यह यात्राएँ केवल यात्राएँ नहीं
है ,बल्कि यह एक संयुक्त  रोलर कास्टर राइड है,जिन्हे देखते हुए दर्शक इंज्वाॅय करते है.ढाई घंटे की
अवधि वाली फिल्म ‘लूडों ’12 नवंबर से ओटीटी प्लेटफार्म ‘नेटफ्लिक्स’पर देखी जा सकती है

कहानी:
एक नदी के किनारे लूडों  के खेल के साथ दो शख्स पाप व पुण्य पर चर्चा कर रहे हैं . और यह
फिल्म की चार कहानियों के सूत्रधार है .यह चारों कहानियां लूडो की चार रंग  की गोटियों के अनुसार ही
है .प्यार  और  गुस्से का प्रतीक लाल रंग बटुकेष्वर तिवारी उर्फ बिट्टू (अभिषेक बच्चन) की कहानी है.
शांत त, खुश  धूप के प्रतीक पीला रंग है,डॉ.आकाश चौहाण(आदित्य रॉय कपूर) की कहानी का ट्रैक है जबकि आशावाद और पवित्रता का प्रतिनिधित्व करने वाले नीले रंग की कहानी राहुल(रोहित सराफ)
और बीजा  (पियरले माने) की है.तो वहीं है अप्रत्याषित का प्रतीक हरा रंग आलोक कुमार गुप्ता उर्फ
आलू (राजकुमार राव)की कहानी है,जो  कि राहुल सत्येंद्र त्रिपाठी उर्फ सत्तू भईया (पंकज त्रिपाठी) की
कहानी को आगे बढ़ाने वाले पासा हैं.उनके गले में लटके हुए पास  में बहुत सूक्ष्म सुराग है.
कहानी रांची की है.सत्तू भईया अपराध के बादशा ह हैं.पुलिस उन तक पहुॅच नहीं  पाती.वह लोगों
की मदद करते हैं ,मगर झूठ,फरेब उन्हे पसंद नही.चारो कहानियां  किसी न किसी ढंग से सत्तू भईया के
संग  जुड़ती है .एक बिल्डर ब्रिदेंर व उसकी पत्नी की हत्या कर आगे बढ़ते हैं.रास्ते में वह आशा  के
तथाकथित पति को अपने साथ ले जाते हैं और  आशा  से कहते हैं  कि उन्हे पता है कि बिट्टू जेल से
वापस आ गया है,पर वह मुझसे  मिलने नहीं आया,उसे भेज देना.रास्ते में ही वह राहुल को भी उठाकर
अपने अड्डे पर पहुॅचते हैं.

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इसमें एक प्रेम कहानी है डॉ .आकाश  चौहाण और  श्रुति की.आकाश  चौहाण वॉयस आर्टिस्ट के
रूप में काम करते हैं आशा  व रूही की जिंदगी से दूर चले जाते हैं.
तीसरी अनूठी कहानी अपराध को छोडंकर अपना ढाबा खोलने वाले आलोक कुमार गप्ता  उर्फ
आलू और पिंकी की है.आलू मौका मिलने पर रामलीला में  संपूर्ण  खा का किरदार भी निभाते हैं.आलू
बचपन से ही पिंकी से पर करने लगे थे.वह खुद  फेल होते,पर नकल करवाकर पिंकी को पास करवातेमगर पिंकी ने उन्हे ठुकराकर मनु से विवाह कर लिया.एक दिन पिंकी होता है कि उनका पति
किसी दूसरी औरत के चक्कर में है.वास्तव में मनु हमेशा   से  मिलने जाते हैं.एक दिन फंस जाते
हैं और  बिरेंदर की हत्या के आरोप में पुलिस उन्हें पकड़ लेती है.तब पुलिस स्टेश न में मनु,पिंकी से सच
कबूल कर बताते है कि वह उस रात बीरेंदर के यहां नही

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स्टेशन में यह बात कबूल कर ले,तो वह रिहा हो जाएंगे.पिंकी मदद मांगने अपने बच्चे छह माह के बच्चे
के साथ आलू के पास पहुॅचती है.आलू अपना सब कुछ लुटाकर पिंकी की मदद करते हैं
तो  वहीं यह कहानी केरला से रांची के अस्पताल में नर्स की नौकरी कर रही शाजा और राहुल
की प्रेम कहानी है.पर षीजा हिंदी नहीं आती.जब बिट्टू,सत्तू भईया से मिलने पहुॅचता है,तभी सत्तू भईया किसी से राहुल से चाय बनाने के
लिए कहते है .बिट्टू वहां से वापस निकलते है और  इधर सत्तू भईया के अड्डे पर विस्फोट के साथ
आग लग जाती है.एम्बूलेंस आती है,जिसमें नर्स षीजा भी होती है.इस एम्बूलेंस में राहुल व सत्तू के
साथ चार लोग होते हैं. .सत्तू अपनी सारी कमाई दो  सूटकेस में भरकर साथ में ले जाते हैं रास्ते में कई
घटनाक्रम तेजी से बदलते हैं और  राहुल व षीजा,सत्तू भईया को बांधकर नदी में फेंक

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भईया के किरदार को अपने उत्कृष्ट अभिन से जीवंतता प्रदान करने में अभिनेता पंकज
त्रिपाठी ने कोई कसर नही छोड़ी है.यहां  तक कि ‘मिर्जा पुर’के कालीन भईया से  अलग इस फिल्म के
सत्तू भईया को  पंकज त्रिपाठी ने एक नया आयाम दिया है.मानवीय और भावनात्मक बिट्टू के  किरदार
में अभिषेक बच्चन ने काफी अच्छा अभिनय किया है.बेटी से दूर होने का दर्द उनके चेहरे पर अच्छे ढंग
से  उभरकर आता है.लंबे समय बाद उनके अभिनय में निखार नजर आया है.आदित्य राय कपूर ठीक
ठाक हैं .राज कुमार राव ने आलू के किरदार में जबरदस्त परफार्मेस दी है.उन्होंने  पुनः साबित कर
दिखया कि वह बेहतरीन अभिनेता है .पिंकी के किरदार मंे फातिमा सनाख ने काफी सध हुआ
अभिनय किया है.परदे पर फातिमा सना शेख और राज कुमार राव की  केमेस्ट्री  काफी अच्छी बन पड़ी
है.सानिया ईरानी काफी खूबसूरत  नजर आयी है,पर उनका अभिनय ठीक ठाक ही है.राहुल अवस्थी का
किरदार निभाने वाले अभिनेता रोहित सराफ को अभी काफी मेहनत करने की जरुरत है शीजा  के
किरदार में  पियरले माने का अभिनय ठीकठाक है.

बिग बॉस 14: जब राहुल वैद्य ने प्रपोज किया दिशा परमार को तो मां ने दिया यूं रिएक्शन

बिग बॉस 14 के घर में नजर आ रहे राहुल वैद्या ने बीती रात अपनी गर्लफ्रेंड दिशा परमार को प्रपोज कर दिया है. बीती रात राहुल वैद्य अपनी गर्लफ्रेंड से बात करते नजर आएं. राहुल वैद्य का यह अंदाज देखने के बाद बिग बॉस के घर में सभी लोग मस्ती करते नजर आ रहे थें.

राहुल के प्रपोज करने के बाद दिशा परमार भी झूमती हुई नजर आई थीं. वैसे राहुल वैद्य के खुलासे के बाद फैंस हैरान हो गए हैं. वैसे कुछ फैंस राहुल वैद्य के फैसले से बहुत ज्यादा खुश भी नजर आ रहे हैं. वैसे अभी तक राहुल वैद्य ने दिशा परमार को अपना दोस्त ही बताया था अचानक अपनी दिल की बात कह दी. यह फैंस को समझ नहीं आ रहा है.

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वहीं राहुल वैद्य कि मां भी इस विषय पर खुलकर बात करती नजर आ रही हैं. राहुल वैद्य कि मां का कहना है कि मैं अपने बेटे के फैसला से बहुत ज्यादा खुश हूं लेकिन अभी तक मुझे यहीं पता था कि दिशा परमार और राहुल एक- दूसरे के दोस्त है लेकिन मुझे अच्छा लगा कि मेरे बेटे ने दिशा परमार को चुना है.

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दिशा परमार बहुत अच्छी लड़की है. मैं उससे मिल चुकी हूं. जब राहुल की मां से शादी के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि मैं अपने बेटे के आने के बाद इस विषय पर खुलकर बात करुंगी.

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अभी मेरे लिए कुछ भी कहना जल्दबाजी होगा. अब यह साफ हो गया है कि राहुल वैद्य कि मां को दिशा परमार पसंद आ चुकी हैं. उन्होंने अपनी तरफ से रिश्ते पर सहमति जता दी है.

 

ये रिश्ता क्या कहलाता है: करवाचौथ पर गायब होगा कार्तिक तब नायरा लेगी यह फैसला

सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है में जल्द ही गोयनका परिवार एक –दूसरे के साथ मिलकर खुशिया बांटने वाला है. ऐसे में सभी परिवार वाले एक –दूसरे के साथ जश्न मनाते नजर आएंगे. बता दें कि करवाचौथ का सेलिब्रेशन गोयनका परिवार करने वाला हैं. इसकी तैयारी जोरो पर चल रही है.

वहीं परिवार के बच्चे भी अपने मम्मी पापा के लिए कुछ सरप्राइज प्लान कर रहे हैं. यह बात शायद आफको भी पता होगा कि आज तक गोयनका परिवार में सबकुछ ठीक-ठाक से मना नहीं है. तो भला करवाचौथ का सेलिब्रेशन ठीक से कैसे हो सकता है.

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दरअसल, करवाचौथ के दिन कुछ ऐसा होगा जिससे गोयनका परिवार में खलबली मच जाएगी. दरअसल, कैरव कार्तिक और नायरा से कुछ नया डिमांड करेगा. अगले एपिसोड में दिखाया जाएगा कि कैरव कार्तिक और नायरा ,से कहेगा कि उसके मम्मी-पापा दुल्हा-दुल्हन की तरह सजे. वहीं नायरा और कार्तिक दोनों की डिमांड को पूरा करने के चक्कर में मुसीबत में फंस जाएंगे.

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वहीं कार्तिक भी कुछ अलग करता हुआ नजर आएगा वह गाजे- बाजे के साथ गोयनका हाउस पहुंचने की प्लानिंग करेगा. लेकिन तभी बीच रास्ते में उसकी गाड़ी खराब हो जाएगी. ऐसे में वह तय समय पर गाड़ी लेकर नहीं पहुंच पाएगा.

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कार्तिक के समय से नहीं पहुचने पर नायरा दादी के कहने पर कार्तिक को फोन लगाएगी लेकिन कार्तिक और नयारा कि बात नहीं हो पाएगी. जिससे वह परेशान हो जाएगी साथ ही घर वाले भी परेशान हो जाएंगे.

नायरा यह फैसला लेगी की जब तक कार्तिक घर नहीं आएगी तब तक वह अपना व्रत नहीं खोलेगी. नायरा के इस बात से पूरा गोयनका परिवार कार्तिक को ढूंढ़ने में लग जाएगा.

 

वह पूनम की रात

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