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पहचान-भाग 2: रामलाल चाचा के घर आने से बच्चे क्यों उत्साहित थे?

इस घटना के बाद मैं ने उन के प्रति अपना यही रुख बनाए रखा. किसी नापसंद व्यक्ति के साथ जब हम पहली बार दुर्व्यवहार करते हैं, हमारा अंतर्मन हमें कचोटता है पर बाद में वही दुर्व्यवहार हमारी आदत बन जाता है. जो व्यक्ति अब तक मजाक उड़ाने लायक लगता था, वह अब घृणा का पात्र बन गया.

उन का हाथ बांध कर खड़े होना, पान की पीक से हरदम सने हुए दांत, तेल चुपड़े बाल, उन की हर बात ही मुझे काट खाने दौड़ती. वे भी देर से ही सही पर मेरी बेरुखी ताड़ गए. अब उन का घर पर आना काफी कम हो गया. विवेक जब घर पर होते, तभी वे आते और मुझ से नाश्ते के अलावा कोई बात न करते. मैं ने राहत की सांस ली. वक्तबेवक्त का चायनाश्ता सब कुछ बंद हो गया.

उस रोज घंटी बजने पर जैसे ही मैं ने दरवाजा खोला, सामने रामलालजी को खड़ा पाया. पसीने से तर उन की काया देख कर मुझे सदा की भांति नफरत हो आई.

‘‘विवेक घर पर नहीं हैं,’’ कहते हुए मैं दरवाजा बंद करने को हुई. उन्होंने इशारे से मुझे रोकना चाहा. मैं ने मन ही मन उन्हें कोसते हुए पूरा दरवाजा खोल दिया.

‘‘भाभीजी, बच्चे कहां हैं?’’

‘‘स्कूल गए हैं, और कहां जाएंगे इस वक्त?’’ मैं ने लापरवाही से कहा.

उन्होंने एक गहरी सांस ली और बोले, ‘‘आप इसी वक्त मेरे साथ चलिए, भैया दुर्घटनाग्रस्त हो गए हैं.’’

सुनते ही मुझे गश सा आ गया. वे संभाल कर मुझे अंदर ले आए.

‘‘भाभीजी, आप घबराइए नहीं, उन्हें ज्यादा चोट नहीं आई है,’’ उन्होंने कहा पर मुझे उन की बात पर विश्वास नहीं हो रहा था. ऐसे समय तो लोग झूठ भी बोलते हैं. मौत की खबर तक छिपा जाते हैं.

लड़खड़ाते कदमों से मैं किसी तरह अस्पताल जाने के लिए निकली. रामलाल जी ने ही ताला लगाया. मुझे तो किसी चीज का होश ही नहीं था.

‘‘एक बच्चा दौड़ता हुआ भैया के स्कूटर के सामने आ गया. उसे वे बचाने लगे तो स्कूटर का संतुलन बिगड़ गया तो खुद ही गिर पड़े. स्कूटर भी उन्हीं पर गिरा. उठ भी नहीं पा रहे थे,’’ रामलालजी स्कूटर से मुझे ले जाते हुए सारी घटना सुना रहे थे. मेरी आंखों में आंसुओं का सैलाब उमड़ता जा रहा था. हृदय में हड़कंप मचा था और सांसों में बवंडर.

‘‘10-15 मिनट से भैया वैसे ही पड़े रहे थे पर एक भी भले आदमी की इनसानियत नहीं जागी. वह तो गनीमत थी कि उसी वक्त मैं वहां से गुजरा…’’

मुझे उन के शब्द भी ठीक से सुनाई नहीं दे रहे थे. बारबार दिल यही मना रहा था कि वे ठीक हों.

‘‘भाभीजी, आप भैया के सामने खुद को संभाले रहिएगा. आप तो जानती हैं कि वे अस्पताल के नाम से ही घबरा उठते हैं,’’ उन्होंने समझाते हुए मुझ से कहा पर दूर से ही विवेक को बिस्तर पर पड़े देखा तो रुलाई फूट पड़ी.

‘‘आप इन की पत्नी हैं?’’ डाक्टर पूछ रहा था, ‘‘देखिए, घबराने की कोई बात नहीं है. इन के पैर में फ्रैक्चर हो गया है, और अंदरूनी चोट नहीं है.’’

डाक्टर के शब्द मुझे तसल्लीबख्श लग रहे थे. मन में अब तक उठती हुई भयानक आशंकाओं पर विराम लग गया था. डाक्टर ने रामलालजी को दवाओं की परची दे दी.

‘‘सुजाता,’’ इन की आंखें खुलीं.

‘‘मैं यहीं हूं, आप के पास,’’ मैं ने इन के कंधे को हौले से दबाया.

ये कराह उठे, ‘‘सुजाता, बहुत तकलीफ हो रही है.’’

‘‘सब ठीक हो जाएगा. आप घबराइए मत,’’ मैं ने कांपती हुई आवाज में कहा और भागीभागी नर्स के पास गई. उस ने इन्हें दर्द से राहत दिलाने के लिए इंजैक्शन लगाया. थोड़ी ही देर में इन की आंख लग गई.

‘‘भाभीजी, ये दवाएं ले आया हूं,’’ रामलालजी न जाने कब आए थे, ‘‘ये कुछ फल वगैरह भी रखे हैं. जब डाक्टर कहें, भैया को दे दीजिएगा,’’ वे कह रहे थे.

रामलालजी के जाने के बाद मुझे बच्चों का खयाल आया. हड़बड़ाहट में मुझे ध्यान ही नहीं रहा. अब तक तो दोनों घर आ चुके होंगे, ताला देख कर कहां जाएंगे, मुझे कुछ भी सूझ नहीं रहा था. फिर अचानक खयाल आया कि पड़ोस की मधुलिका के यहां फोन कर के उसे बच्चों के बारे में बताया जा सकता है.

मैं ने फोन कर के मधुलिका को वस्तुस्थिति से अवगत कराया.

‘‘ओह, यह तो बड़े अफसोस की बात है. भाई साहब दुर्घटनाग्रस्त हो गए. वैसे कोई ज्यादा चोट तो नहीं लगी?’’

‘‘पैर में फ्रैक्चर हो गया है.’’

‘‘बुरा हुआ,’’ वह बोली, ‘‘हमारी ओर से कोई मदद वगैरह तो नहीं चाहिए?’’

वह ‘नहीं’ शब्द पर जोर देती हुई बोली. उस का लहजा सुन कर मुझे रोना आने लगा.

‘‘जरा बच्चों को देखना था, वे आ जाएं तो…’’ मैं समझ नहीं पा रही थी कि उस से कैसे कहूं कि आज रात बच्चों को अपने घर रख ले.

‘‘आप फिक्र मत कीजिए, वह बेरुखी से बोली, ‘‘बच्चे आ जाएंगे तो मैं उन्हें बता दूंगी कि आप लोग नौरोजाबाद के अस्पताल में हैं,’’ कह कर उस ने फोन रख दिया.

मैं बोझिल कदमों से इन के बिस्तर तक आई. यों बच्चे बिलकुल छोटे तो नहीं थे पर अपनों की दुर्घटना की खबर तो अच्छेअच्छों के पैरों तले जमीन खिसका देती है. फिर ये तो अनुभवहीन बच्चे हैं. मधुलिका जैसी रोज घर आने वाली अंतरंग सहेली का यह व्यवहार है तो बाकियों से क्या उम्मीद की जाए.

तभी विचारों की धुंध छंट गई. सामने रामलालजी खड़े थे.

‘‘भाभीजी, आप के घर की चाबी मैं अखिलेश को स्कूल में ही दे आया हूं. उसे सबकुछ समझा दिया है कि वह सुरभि को इस बारे में अभी कुछ न बताए. वह मेरे ही साथ आना चाहता था पर मैं ने उसे बताया कि इस वक्त उस का सब से बड़ा काम सुरभि को बहलाए रखना है,’’ रामलालजी कह रहे थे.

मुझे याद आ रही थीं अखिलेश की टिप्पणियां, उस का रामलालजी का मजाक उड़ाना, उन के चलनेबोलने की नकल उतारना, सुरभि का उन्हें टाल कर बाहर खिसक जाना आदि.

‘‘भाईसाहब, आप ने तो मेरी बहुत बड़ी चिंता दूर कर दी. मैं बच्चों के ही विषय में सोच रही थी,’’ मैं ने कृतज्ञ स्वर में कहा तो वे बोले, ‘‘मुझे भी खासकर सुरभि की ही बड़ी चिंता थी. अब अखिलेश सब संभाल लेगा.’’

‘‘अब आप घर जा कर आराम कर लीजिए. रातभर भैया के पास मैं रहूंगा. मैं खाना बना कर आप के घर रख आया हूं.’’

मुझे एकएक कर के वे सारी घटनाएं याद हो आईं, जब कदमकदम पर मैं ने उन का अपमान किया था. खासकर वह घटना, जब उन के द्वारा चाय की फरमाइश किए जाने पर मैं ने दूध न होने का बहाना बनाया था. पश्चात्ताप से मेरा हृदय फट जाना चाहता था.

मुझे मौन देख कर वे सांत्वना भरे स्वर में बोले, ‘‘धीरज रखिए, भाभीजी, शुक्र है कि भैया सहीसलामत हैं.’’

घर आने पर देखा, सुरभि ने रोरो कर आसमान सिर पर उठा लिया है. अखिलेश से पता चला कि मधुलिका अपना फर्ज पूरा कर गई है. उस ने सुरभि को दुर्घटना की खबर सुना दी थी. मैं ने सुरभि को समझाबुझा कर संभाल लिया. अखिलेश खाना खा कर अस्पताल चला गया.

अगले दिन कालोनी में इस दुर्घटना की खबर फैल गई थी. मैं थर्मस में चायनाश्ता ले कर अस्पताल जाने के लिए तैयार खड़ी थी कि घर में भीड़ लग गई.

मैं ने वह अनदेखी घटना सब को बता दी.

‘‘ओह, बुरा हुआ, लोग देख कर नहीं चलते क्या?’’

‘‘ट्रैफिक के नियम तो यहां कोई जानता ही नहीं.’’

‘‘बच्चों को अपने साथ रखना चाहिए, न कि खुला छोड़ना चाहिए.’’

‘‘समय का कोई भरोसा नहीं.’’

चर्चा अपने पूरे रंग पर थी. एक विषय से दूसरा विषय निकलता जा रहा था. अस्पताल जाने की जल्दी थी पर कोई उठने का नाम भी तो ले. तभी रामलालजी ने आ कर मुझे इस विषम परिस्थिति से उबार लिया.

‘‘भाभीजी, चलिए, आप तैयार हैं न?’’ वे आते ही बोल पड़े.

‘‘जी, चलिए,’’ थैला संभालते हुए मैं उठ खड़ी हुई.

‘‘रामलालजी तो कर ही रहे हैं आप के लिए. फिर भी हमारे लायक कोई सेवा हो तो बताइएगा,’’ भीड़ में से कोई आवाज आई.

‘‘हांहां, जरूर बताइएगा,’’ 2-4 दबीदबी सी आवाजें आईं.

रामलालजी मुझे और सुरभि को स्कूटर पर बिठा कर अस्पताल ले गए.

शाम को कई परिचित पड़ोसी मित्र इन्हें देखने आए. ‘‘किसी चीज की जरूरत तो नहीं?’’ चलते समय हर कोई औपचारिकता जरूर निभाता और सोचती, कोई यह क्यों नहीं कहता, निसंकोच हो कर हमें काम बताएं. किसी चीज की आवश्यकता हो तो अवश्य बताएं.

पहचान-भाग 1: रामलाल चाचा के घर आने से बच्चे क्यों उत्साहित थे?

‘‘मां, रामलाल चाचा आए हैं,’’ सुरभि ने दरवाजे से ही आवाज देते हुए कहा. फिर उस ने बैठक में ही टंगा रैकेट उठाया और बाहर खेलने भाग गई.

‘‘ओफ्फोह, बोर करने आ गए साहब,’’ अखिलेश झट कुरसी खींच कर बैठ गया और कोर्स की किताब में मुंह छिपा लिया. उन की बातें सुनने से अच्छा उसे पढ़ाई करना लगता था. यों तो वह किसी के कहनेसुनने से शायद ही कभी पढ़ने बैठता था. मेरे पति भी अभी दफ्तर से लौटे नहीं थे.

हालांकि मैं भी ब्रैडरोल का मसाला तैयार करने में व्यस्त थी. पर रसोईघर तक आने में उन्हें कोई संकोच थोड़े ही होता. अत: काम छोड़ कर चुपचाप सिंक में हाथ धोने लगी. अभी हाथ पोंछ ही रही थी कि जनाब सीधे चौके तक आ पहुंचे. सारा तामझाम देख कर, मसालों की चटकदार खुशबू नथुनों में भरते हुए बोले, ‘‘वाहवाह, लगता है आज ब्रैडरोल बनेंगे.’’

‘‘हां, बच्चों को भूख लग रही है, इसलिए बना रही हूं.’’

‘‘ठीक है, बच्चों के साथ हम भी खा लेंगे, उन में और हम में कोई फर्क है क्या?’’ वह इस तरह ठहाका लगा कर हंसे मानो अभीअभी चुटकुला सुनाया हो.

मैं ने हार कर कड़ाही चढ़ाई और ब्रैडरोल तलने लगी. तब तक वे अखिलेश के कमरे में जा चुके थे. ‘‘अच्छा, तो साहबजादे पढ़ाई कर रहे हैं. कीजिएकीजिए, हम बिलकुल बाधा नहीं डालेंगे,’’ कहते हुए वे बाहर निकल आए और जोरजोर से कोई लोकगीत की धुन दोहराने लगे.

अखिलेश का उन की बातों से बचने का यह आजमाया हुआ सफल नुस्खा था. इस बार भी वह कामयाब रहा. मैं ने ब्रैडरोल की प्लेट उन्हें पकड़ाई और उन की बातें सुनने के लिए अपनेआप को मानसिक रूप से तैयार कर लिया. अपने गांव, खेतखलिहान, पगडंडियां, वही घिसापिटा रिकौर्ड, अखिलेश तो सुनसुन कर तंग आ चुका था.

‘‘इतनी याद आती है अपने गांव की तो यहां क्यों नौकरी कर रहे हैं? जाते क्यों नहीं अपने गांव?’’ वह अकसर खीज कर कहता.

‘‘मजबूरियां थीं, बेटे. खेत, घर कुछ रहा नहीं, सो यहां आ गए. आगे बढ़ने की लगन थी, दिमाग भी ठीकठाक था सो छात्रवृत्ति के बल पर इंजीनियर बन गए.’’

‘‘दिमाग अच्छा था, यह बताना पड़ रहा है…’’ अखिलेश जबतब उन का मजाक उड़ाता.

उन की बातें अकेले सुनते हुए मुझे अखिलेश की टिप्पणियां याद कर के बेहद हंसी आ रही थी और वे शायद अपने पिता की मृत्यु का 10 बार सुनाया हुआ प्रसंग फिर सुना रहे थे. उन्हें मेरी बेवक्त की हंसी बेहद खली.

मुझे इस बात का ध्यान आया तो मैं ने फौरन होंठ सिकोड़ लिए.

‘‘भाभीजी, भैया तो आए नहीं. मैं सोच रहा था, उन के साथ बैठ कर चाय पीएंगे,’’ उन्होंने चायपान की भूमिका बांधी. अत: मैं चुपचाप जा कर चाय चढ़ा आई.

एकडेढ़ घंटा दिमाग चाट कर जब वे गए, सिर बुरी तरह चकरा रहा था. अखिलेश के कमरे में जा कर देखा था, हथेली पर होंठ टिकाए बैठा था.

‘‘मां, रामलाल चाचा के घर आने का एक फायदा तो है,’’ वह दार्शनिक मुद्रा बना कर बोला, ‘‘मेरा एक कठिन पाठ आज पूरा हो गया.’’

मेरा दिमाग उन की बातों से इतना बोझिल हो चुका था कि उस की इस बात पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त करने की भी क्षमता मुझ में नहीं बची थी.

जब पति विवेक घर आए तो मेरे क्रोध का ज्वालामुखी फूट पड़ा, ‘‘कैसेकैसे लोगों के साथ दोस्ती कर रखी है आप ने. पूरी कालोनी में जिसे कोई पूछता तक नहीं था, यहां आएदिन मुंह उठाए चला आता है.’’

‘‘रामलाल आया था क्या?’’ वे कुछ अपराधी स्वर में बोले.

‘‘और नहीं तो क्या. डेढ़ घंटे से बैठे थे. यह नहीं कि आप घर पर नहीं हैं तो चलते बनें. चायनाश्ता जब हुआ, तब गए.’’

‘‘कुछ दिनों की बात है, उस के बीवीबच्चे आ जाएंगे तो अपनेआप आनाजाना कम हो जाएगा. अकेला आदमी है, कर भी लिया चायनाश्ता तो कौन सा आसमान टूट पड़ा,’’ इन्होंने लापरवाही से कहा.

‘हुंह, खुद झेलते तो पता चलता,’ मैं ने बड़बड़ाते हुए गैस चालू की.

‘‘चाचा चले गए?’’ सुरभि ने बाहर से आते ही पूछा, ‘‘मैं तो घबरा ही गई थी कि मेरे घर लौटने तक टलते भी हैं या नहीं. सचमुच बड़े ‘बोर’ हैं.’’

11 साल की सुरभि के शब्दकोश में जब से यह शब्द आया था, वह जबतब इस का प्रयोग करती. रामलालजी वाकई इस शब्द के साथ न्याय भी करते थे. 4-6 दिनों में एक चक्कर तो जरूर लगता था उन का. भोपाल से स्थानांतरित हो कर नएनए आए थे, तब अखिलेश और सुरभि भी उन के पास बैठ जाते. लेकिन जल्दी ही उन की घिसीपिटी बातों से ऊब गए. उन का परिवार अभी भोपाल में ही था और शैक्षणिक सत्र पूरा होने पर ही वे लोग आने वाले थे. तब तक ये महाशय हमारे ही जिम्मे थे.

मेरी पड़ोसी मधुलिका का भी जवाब नहीं. जब भी आएगी, बड़ी मासूमियत से पूछेगी, ‘‘क्या सुजाता, आज रामलालजी नहीं आए?’’ जैसे कि रोज आते हों.

फिर कहेगी, ‘‘आप भी खूब हैं. न जाने कैसे सह लेती हैं ऐसेवैसे लोगों को. निपट देहाती लगते हैं और विवेक साहब को ‘भैया’ कहते हैं. सुन कर ही हमें तो बड़ा अटपटा लगता है.’’

एक रोज रामलालजी आए. आते ही उन्होंने फिर चायपान की भूमिका बांधी, ‘‘भाभीजी, ठंड बहुत है.’’

‘‘हां, सो तो है,’’ मैं ने उन की बात सुन कर शुष्क स्वर में कहा.

‘‘जरा एक कप चाय पिलाइए.’’

मैं ने लाचारी दिखाते हुए कहा, ‘‘भाई साहब, दूध तो खत्म हो चुका है.’’

‘‘अरे,’’ वह आननफानन रसोई तक पहुंच गए, ‘‘दूध तो है भाभीजी. लगता है, आप को ध्यान नहीं रहा.’’

लेकिन आज मैं भी जिद पर अड़ी थी, ‘‘दूध तो है पर अभी बच्चों ने नहीं पीया.’’

‘‘बच्चों ने नहीं पीया?’’

‘‘तब तो हम चाय नहीं पीएंगे. बच्चों को दूध पिलाना पहले जरूरी है. हमें ही लीजिए, बचपन में तो खूब दूध पीया, बाद में कुछ रहा नहीं…’’ वे अपनी रौ में बहने लगे.

‘‘भाई साहब, मुझे काम से बाहर जाना है,’’ मैं ने ताला हाथ में उठाते हुए कहा.

‘‘अच्छी बात,’’ उन का मुंह उतर आया और वह चल पड़े.

सर्दियों का उम्दा हरा चारा जई

जई जाड़े की एक खास चारे की फसल है. इस की खेती सिंचित व कम सिंचाई वाले रकबों में आसानी से की जा सकती है. इस का हरा चारे बहुत ही जायकेदार, पौष्टिक व पाचक होता है. यह दुधारू पशुओं के लिए बहुत ही लाभदायक होता है. खेती में काम आने वाले पशुओं के लिए भी यह बढि़या चारा है. अधिक पैदावार लेने के लिए निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिए:

खेत की तैयारी : जई के लिए रेतीली दोमट मिट्टी अच्छी है. लवणीय जमीन में इस की खेती नहीं करनी चाहिए. 2 से 3 जुताइयां कर के सुहागा लगा कर बराबर करना चाहिए.

उन्नतशील प्रजातियां

बीज की मात्रा व बोआई का समय : बोआई के लिए छोटे बीज वाली किस्मों के 30 किलोग्राम व मोटे बीज वाली किस्मों के 40 किलोग्राम बीज प्रति एकड़ इस्तेमाल करें. ज्यादा कटाई वाली किस्मों की बोआई अक्तूबर के आखिर तक कर देनी चाहिए, जबकि 1 कटाई लेने के लिए नवंबर तक बोआई की जा सकती है. चारे के लिए 1 कटाई लेने के बाद बीज बनाना है, तो ऐसी दशा में नवंबर के पहले हफ्ते तक बोआई कर सकते हैं.

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खाद : 1 कटाई वाली फसल में 16 किलोग्राम नाइट्रोजन, 35 किलोग्राम यूरिया, 12 किलोग्राम फास्फोरस व 75 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फोरस प्रति एकड़ की दर से बोआई के समय देनी चाहिए. 16 किलोग्राम नाइट्रोजन पहली सिंचाई के तुरंत बाद देनी चाहिए. ज्यादा कटाई वाली फसल में 16 किलोग्राम नाइट्रोजन की अतिरिक्त मात्रा पहली कटाई के बाद डालनी चाहिए. जई के बीजों को बोआई से पहले एजोटोबैक्टर के टीके से उपचारित करें. इस से 6 से 8 किलोग्राम नाइट्रोजन की प्रति एकड़ की बचत होती है.

सिंचाई : पहली सिंचाई बोआई के 1 महीने बाद करनी चाहिए. इस के बाद 25 दिनों के अंतराल पर जरूरत के मुताबिक सिंचाई करें. ज्यादा कटाई वाली फसल में कटाई के बाद सिंचाई करना बहुत जरुरी है.

कटाई : 1 कटाई वाली फसल में बोआई के 90 से 100 दिनों बाद 50 फीसदी फूल आने पर कटाई करें. ज्यादा कटाई वाली फसल में पहली कटाई 60 से 70 दिनों बाद और दूसरी कटाई 50 फीसदी फूल आने पर कर लेनी चाहिए. फसल की अच्छी बढ़वार और दूसरी कटाई में ज्यादा हरा जारा हासिल करने के लिए पहली कटाई जमीन से 8 से 10 सेंटीमीटर ऊपर से करनी चाहिए.

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चारे की पैदावार : अच्छे फसल इंतजाम द्वारा 1 कटाई देने वाली किस्मों से 200 से 220 क्विंटल और कई कटाई वाली किस्मों से 240 से 260 क्विंटल हरा चारा प्रति एकड़ मिल जाता है.

बीजों की पैदावार : जई की फसल चारे के लिए न काटी जाए तो 7 से 8 क्विंटल बीज प्रति एकड़ हासिल हो जाते हैं. ज्यादा कटाई वाली किस्मों की 70 दिनों पर चारे की 1 कटाई लेने के बाद छोड़ी हुई फसल से 5 से 6 क्विंटल बीज प्रति एकड़ हासिल किए जा सकते हैं.

जई के खास कीड़े

कर्तन कीट (एग्राटिस एप्सिलान) : मादा कीट अपने अंडे जमीन में देती है. अंडों से गिडारें निकल कर जमीन पर पड़ी पत्तियों पर रहती हैं. गिडारें पौधों की जड़ों को जमीन की सतह से काट देती हैं, जिस के कारण पौधे सूख जाते हैं. दिन के समय में गिडारें जमीन की दरारों व पत्तियों में छिप जाती हैं और रात में दरारों से निकल कर फसल को नुकसान पहुंचाती?हैं.

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रोकथाम

* खेतों के पास प्रकाश प्रपंच 20 फेरोमोन ट्रैप प्रति हेक्टेयर की दर से लगा कर प्रौढ़ कीटों को लुभा कर खत्म किया जा सकता है.

* खेतों के बीचबीच में घासफूस के छोटेछोटे ढेर शाम के समय लगा देने चाहिए. रात में जब सूंडि़यां खाने को निकलेंगी तो बाद में इन्हीं में छिपेंगी, जिन्हें घास हटा कर आसानी से खत्म किया जा सकता है.

* प्रकोप बढ़ने पर क्लोरपायरीफास

20 ईसी 1 लीटर प्रति हेक्टेयर या नीम का तेल 3 फीसदी की दर से छिड़कें.

दीमक (ओडोंटोटर्मिस ओबेसेस) : दीमक कीट से असिंचित रकबों में जौ की फसल को काफी नुकसान होता?है. दीमक फसल की छोटी दशा में जमाव के समय से फसल पकने तक नुकसान करती है. यह जमीन की सतह से कुछ नीचे पौधों को काट कर नुकसान करती है, जिस से पूरा पौधा सूख जाता है. ज्यादा प्रकोप होने पर कभीकभी फसल की दोबारा बोआई भी करनी पड़ती है.

रोकथाम

* 1 किलोग्राम बिवेरिया और 1 किलोग्राम मेटारिजयम को तकरीबन 25 किलोग्राम गोबर की सड़ी हुई खाद में अच्छी तरह मिला कर छाया में 10 दिनों के लिए छोड़ दें. इस के बाद दीमक वाले खेत में प्रति एकड़ बोआई से पहले डालें.

* सिंचाई के समय इंजन से निकले हुए तेल की 2-3 लीटर मात्रा का प्रति एकड़ की दर से इस्तेमाल करें.

* प्रकोप ज्यादा होने पर क्लेरोपाइरीफास 20 ईसी की 3-4 लीटर

मात्रा को बालू में मिला कर प्रति हेक्टेयर

की दर से इस्तेमाल करें.

* बीजों को बोआई से पहले इमिडाक्लोप्रिड 70 डब्लूएस 0.1 फीसदी से साफ कर लेना चाहिए.

गुलाबी तना छेदक कीट : इस कीट के गिडार तने में घुस कर अंदर के भागों को खाते रहते हैं, जिस से तना सूख जाता है.

मादा पतंगी पत्तियों की निचली सतह व तने पर अंडे देती है. अंडे छोटे, गोल व सफेद

रंग के होते हैं, जो बाद में गुलाबी रंग के हो

जाते है.

रोकथाम

*  खेत में 20 फेरोमोन ट्रैप प्रति हेक्टेयर के हिसाब से लगाएं ताकि तना छेदक के प्रौढ़ नर ट्रैप में इकट्ठे हो कर मरते रहें.

* यदि तना छेदक कीट का हमला न रुके तो कारटाप हाइड्रोक्लोराइड 4 जी की 18 किलोग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर के हिसाब से सूखी रेत या राख में मिला कर खेत में बिखेर देना चाहिए.

माहू कीट : जई की फसल पर माहू कीट का हमला जनवरी के दूसरे हफ्ते तक होता है. माहू छोटा, कोमल शरीर वाला हरे मटमैले, भूरे रंग का कीट होता?है, जिस के झुंड पत्तियों, फूलों, डंठलों व पौधों के दूसरे भागों पर चिपके रहते हैं और रस चूस कर नुकसान पहुंचाते?हैं.

रोकथाम

* माहू का हमला होने पर पीले चिपचिपे ट्रैप का इस्तेमाल करें, ताकि माहू ट्रैप पर चिपक कर मर जाए.

* परभक्षी काक्सीनेलिड्स या सिरफिड या क्राइसोपरला कार्निया का संरक्षण कर के 50,000-10,0000 अंडे या सूंडि़यां प्रति हेक्टयर की दर से छोडें.

* 5 फीसदी नीम का अर्क या 1.25 लीटर नीम का तेल 100 लीटर पानी में मिला कर छिड़कें.

* बीटी का 1 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.

* इंडोपथोरा व वरटिसिलयम लेकानाई इंटोमोपथोजनिक फंजाई (रोग कारक कवक) का छिड़काव करें.

* जरूरत होने पर इमिड़ाक्लोप्रिड 17.8 एसएल की 0.5 मिलीलीटर या मैलाथियान 50 ईसी या डाइमेथोएट 30 ईसी या मेटासिसटाक्स 25 ईसी की 1.25-2.0 मिलीलीटर मात्रा का प्रति लीटर की दर से छिड़ाव करें.

जई की खास

बीमारियां

जई का गेरुई या रतुआ रोग : यह 2 प्रकार का होता है यानी पीला गेरुई रोग व काला गेरुई रोग. इस रोक के लक्षण जनवरीफरवरी में दिखाई देते हैं.

पत्तियों पर पीले व भूरे रंग का चूर्ण भर जाता है, जो हवा में फट कर फैल जाता है और दूसरे पौधों को भी रोगी कर देता?है.

रोकथाम

* इंडोफिल 2.5 किलोग्राम या वेविस्टीन 1 किलोग्राम या वेलेटान 1 किलोग्राम या मेथमेजेव 2.5 किलोग्राम या जिनेव 2.5 किलोग्राम 1000 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए.

* रोगरोधी किस्में उगानी चाहिए.

जई का कंडुआ रोग : यह 2 प्रकार का होता है. आवृत्त कंडुआ व अनावृत्त कंडुआ. इस के लक्षण बालियां निकलने के बाद दिखाई पड़ते हैं. बलियां निकलने से पहले कंडुआ झिल्ली से पूरी तरह से ढका रहता है.

अनावृत्त कंडुआ से झिल्ली कुछ ही दिनों में फट जाती है और फफूंदी के तमाम बीजाणु हवा में फैल जाते हैं. आवृत्त कंडुआ अंदरूनी बीज जनित होता है.

रोकथाम

* जहां तक मुमकिन हो, रोगी पौधों को उखाड़ कर गड्ढों में गाड़ दें या उन्हें जला कर खत्म कर दें.

* कार्बंडाजिम या कार्बाक्सिन या वीटावैक्स की 2.5 ग्राम मात्रा में बीजों को प्रति किलोग्राम की दर से उपचारित करें.

Crime Story: गलतफहमी

लेखिका- बरखा सिन्हा अग्रवाल 

भीकाजी बोर्डे का घर औरंगाबाद के चिखनठाना की चौधरी कालोनी में था.बोर्डे परिवार में कुल जमा 3 सदस्य थे. भीकाजी बोर्डे, पत्नी कमलाबाई और बेटा भगवान दिनकर बोर्डे. भीकाजी की एक बेटी भी थी विमल, जिस की वह शादी कर चुके थे. विमल 2 बच्चों की मां थी और पति से चल रहे किसी विवाद की वजह से मायके में रह रही थी. उस के दोनों बच्चे पति के पास रह रहे थे.

23 वर्षीय अमोल बोर्डे भगवान दिनकर बोर्डे का दोस्त था. उस का घर बोर्डे परिवार के घर से कुछ दूरी पर था. दोनों हमउम्र थे. दोस्ती के नाते दोनों का एकदूसरे के घर आनाजाना था.

जब से भीकाजी की बेटी विमल मायके आई थी, तब से अमोल भीकाजी के घर कुछ ज्यादा ही आने लगा था. उसे इस बात की जानकारी थी कि विमल और उस के पति के बीच तनातनी चल रही है और वह हालफिलहाल पति के पास जाने वाली नहीं है. दरअसल, अमोल अभी अविवाहित था, इसलिए दोस्त की बहन को दूसरी नजरों से देखने लगा था.

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भाई का दोस्त होने के नाते विमल उसे भी भाई समझती थी. वह बात भी उसी अंदाज में करती थी. वैसे भी विमल बातूनी लड़की थी. जब विमल और अमोल के बीच बातों का सिलसिला जुड़ा तो अमोल ने बातों के कुछ शब्दों को ऐसा रंग देना शुरू कर दिया कि उस की चाहत नजर आए. उस के ऐसे शब्दों पर या तो विमल ने ध्यान नहीं दिया या दिया भी तो उस की बातों को गंभीरता से नहीं लिया.

अमोल ने मीठीमीठी बातों से विमल को शीशे में उतारने की काफी कोशिश की, लेकिन सफलता नहीं मिली. बहुत कुछ समझ कर भी विमल अमोल को ऐसा कुछ नहीं कहना चाहती थी जिस से भाई भगवान दिनकर और अमोल की दोस्ती में दरार पड़े. लेकिन वह कब तक यह सब सहन करती.

आखिर एक दिन सब्र का प्याला छलक ही गया. हुआ यह कि उस दिन विमल घर पर अकेली थी. अमोल को पता चला तो वह मौके का फायदा उठाने की सोच कर उस के घर पहुंच गया.

विमल ने उसे बैठने के लिए कुरसी दी और उस के लिए चाय बनाने चली गई. उस समय वह घर में अकेली थी. अमोल ने अपनी मनमरजी करने के लिए इस मौके को उचित समझा. वापस लौट कर विमल ने चाय का प्याला अमोल को दिया तो उसी समय अमोल ने उस का हाथ पकड़ लिया.

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उस की इस हरकत पर विमल चौंक गई. उस की नीयत में खोट देख कर उसे गुस्सा आ गया. उस ने अपना हाथ छुड़ाने के बाद चाय का प्याला मेज पर रखा, फिर उसे जम कर लताड़ा और उसी समय घर से भगा दिया.

अमोल को इस बात की उम्मीद भी नहीं थी कि विमल उस की इतनी बेइज्जती करेगी. विमल के हंसहंस कर बात करने से वह तो यही सोचता था कि विमल भी उसे चाहती है. इसी का फायदा उठाने के लिए वह आया भी था. लेकिन उसे उलटे विमल के गुस्से का सामना करना पड़ा. बेइज्जती सह कर वह उस समय वहां से चला गया.

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घर पहुंचने के बाद भी विमल द्वारा की गई बेइज्जती अमोल के दिमाग में घूमती रही. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि इस स्थिति में वह क्या करे.

उधर शाम के समय विमल के मातापिता और भाई घर लौटे तो विमल ने अमोल की हरकत मां कमलाबाई को बता दी. कमलाबाई को बहुत गुस्सा आया. अमोल उस के बेटे का दोस्त था इसलिए वह उसे भी अपने घर का सदस्य समझती थी, लेकिन उस की सोच इतनी घटिया थी, वह नहीं समझ पाई थी. घर की बदनामी को देखते हुए कमलाबाई ने इस बात का शोरशराबा तो नहीं किया लेकिन बेटी को उस से सतर्क रहने की सलाह जरूर दे दी.

अगले दिन अमोल को अपने दोस्त यानी विमल के भाई भगवान दिनकर बोर्डे की याद आई. वह उस के साथ घूमता और गप्पें मारता था, इसलिए उस का मन दोस्त से मिलने के लिए कर रहा था. विमल ने जिस तरह उसे लताड़ा था, वह बात भी उस के दिमाग में घूम रही थी.

अमोल यह समझ रहा था कि उस ने विमल के साथ जो हरकत की थी, उस के बारे में विमल अपने घर वालों से चर्चा तक नहीं करेगी, क्योंकि ज्यादातर लड़कियां इस तरह की बातें शुरुआत में अपने तक ही छिपा कर रखती हैं. मातापिता को ये बातें बताने में उन्हें शर्म महसूस होती है.

यही सोच कर अमोल बिना किसी डर के अपने दोस्त भगवान दिनकर बोर्डे से मिलने उस के घर पहुंच गया. विमल अमोल की हरकत मां को पहले ही बता चुकी थी. लिहाजा विमल की मां कमलाबाई ने अमोल को आड़े हाथों लिया.

उस ने भी अमोल को जम कर खरीखोटी सुनाई. इतना ही नहीं, उसे बेइज्जत करते हुए धमकी दी कि वह इसी समय वहां से चला जाए और आइंदा उस के घर में कदम न रखे.

बेइज्जती सह कर अमोल वहां से उलटे पांव लौट आया. इस अपमान की ज्वाला उस के सीने में दहकने लगी थी. उस ने तय कर लिया कि विमल और उस की मां ने उस की जो बेइज्जती की है, वह उस का बदला जरूर लेगा. बदले की भावना उस के मन में घर कर गई.

बात 25 सितंबर, 2019 की है. अमोल अपने घर पर ही था. उस के दिमाग में बेइज्जती वाली बातें ही घूम रही थीं. वह सोच रहा था कि इस अपमान का बदला कैसे ले.

रात के 8 बजे थे. उस समय अमोल को भूख लगी थी. उस ने अपनी मां से खाना परोसने को कहा. मां खाना परोस कर ले आई.

निवाला तोड़ कर वह खाने को हुआ, तभी उस के दिमाग में बदला लेने वाली बात फिर आ गई. अमोल ने खाना छोड़ दिया और किचन की तरफ चल दिया.

उस की मां ने बिना खाना खाए उठने की वजह पूछी, लेकिन वह कुछ नहीं बोला. अमोल ने किचन से चाकू उठा कर अपनी जेब में रख लिया. उस की मां पूछती रही, लेकिन उस ने कोई जवाब नहीं दिया. वह घर के बाहर निकल गया. मां पूछने के लिए उस के पीछेपीछे आ रही थी, लेकिन अमोल ने घर का दरवाजा बाहर से बंद कर दिया ताकि मां घर से बाहर न आए. उस की मां, पिता और भांजी घर में ही बंद रह गए. वे समझ नहीं पा रहे थे कि अमोल ने ऐसा क्यों किया.

अपने घर से करीब 70 मीटर दूर वह सीधे विमल के घर में घुस गया. घर में घुसते ही उस ने मुख्य दरवाजा बंद कर दिया. उस समय वह बहुत गुस्से में था. विमल के मांबाप ने जब अमोल को अपने घर में देखा तो उन्होंने उस से वहां आने की वजह पूछी. तभी अमोल ने जेब में रखा चाकू निकाल लिया और अपने दोस्त दिनकर बोर्डे की तरफ बढ़ा.

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अमोल को गुस्से में देख कर भगवान बोर्डे अपनी जान बचाने के लिए भागा. अमोल ने दौड़ कर भगवान को पकड़ लिया और उस की गरदन पर चाकू से वार कर दिया. तभी भगवान के मातापिता भी वहां आ गए. बेटे के खून के छींटें उन के ऊपर भी गए. दिनकर भगवान बोर्डे वहीं गिर गया और कुछ ही देर में उस की मृत्यु हो गई.

इस के बाद अमोल बोर्डे ने दिनकर की मां कमलाबाई पर हमला किया. फिर उस ने उस के पिता को भी निशाने पर ले लिया. इस तरह उस ने परिवार के 3 लोगों की हत्या कर दी. इस दौरान विमल दरवाजा खोल कर बाहर भाग गई थी. विमल ने यह बात पड़ोसियों को बताई तो वे घरों से बाहर निकल आए.

3 हत्याएं करने के बाद अमोल खून सना चाकू ले कर घर से बाहर निकला तो कई लोग वहां खड़े थे. लेकिन अमोल की आंखों में तैर रहे गुस्से और खून सने चाकू को देख कर कोई भी कुछ कह नहीं सका और वह वहां से चला गया.

किसी ने इस तिहरे हत्याकांड की खबर पुलिस को दे दी थी. सूचना मिलने पर एमआईडीसी सिडको थाने के प्रभारी सुरेंद्र मोलाले थोड़ी देर में दिनकर बोर्डे के घर पहुंच गए. तभी लोगों ने पुलिस को अमोल बोर्डे के बारे में जानकारी दी कि वह चौराहे पर खड़ा है.

यह सूचना मिलने के बाद पुलिस ने चौराहे पर खड़े अमोल बोर्डे को हिरासत में ले लिया. थानाप्रभारी सुरेंद्र मोलाले ने अभियुक्त अमोल से ट्रिपल मर्डर के बारे में पूछताछ की तो उस ने सारी कहानी बता दी.

उस ने कहा कि उस ने अपनी बेइज्जती का बदला लेने के लिए इस वारदात को अंजाम दिया. अमोल बोर्डे से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उसे कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

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दीवाली 2020: दीवाली के दिन अंकिता लोखेंडे ने अपने ब्यॉफ्रेंड के लिए किया सोलह श्रृंगार , फैंस ने किया कमेंट

टीवी अदाकारा अंकिता लोखंडे के लिए ये दीवाली बहुत सारा खुशियां लेकर आई है. अंकिता लोखंडे ने यह दीवाली अपे ब्यॉफ्रेंड विक्की जैन के साथ मनाया है. अंकिता इस दीवाली पर बहुत ज्यादा खुश और खूबसूरत नजर आ रही थीं. अंकिता लोखंडे ने दीवाली के खास मौके पर लाल रंग का लहंगा पहना हुआ था.

जिसमें वह बला कि खूबसूरत लग रही थीं. अंकिता लोखंडे के इस लुक की तारीफ सभी लोग करते नजर आ रहे हैं. दरअसल, अंकिता लोखंडे और विक्की जैन दोनों ट्रेडिशनल लुक में जर आ रहे थें.

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इस साल की दीवाली अंकिता लोखंडे बेहद ही कूल लुक में दीवाली मना रही हैं. अंकिता लोखंडे के इस नए लुक को सभी खूब ज्यादा पसंद कर रहे हैं.

 

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अंकिता लोखंडे ने दीवाली के मौके पर अपने ब्यॉफ्रेंड विक्की जैन के लिए सोलह श्रृंगार किया है. जिसमें वह बला की खूबसूरत लग रही हैं.

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वहीं दीवाली के जश्न के दिन अंकिता लोखंडे अपने बॉयफ्रेंड के साथ रोमांटिक पोज देती नजर आई. तस्वीर में दोंनों की जोड़ी कमाल की लग रही हैं. इस तस्वीर में अंकिता लोखंडे प्यारी स्माइल करती जर आ रही हैं. अंकिता कि इस तस्वीर को लोग खूब ज्यादा पसंद कर रहे हैं.

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वहीं दीवाली के खास मौके पर अंकिता ने गोल्डन और लाल रंग का लहंगा पहना हुआ है. अंकिता ने गले में जो नेकलेस पहना हुआ है, वह लोगों को खूब पसंद आ रहा है.

श्वेता तिवारी और दिशा परमार ने दीवाली के दिन पहना एक जैसा सूट , फैंस ने किया कमेंट

टीवी स्टार श्वेता तिवारी एपे लुक्स को लेकर बहुत ज्यादा चर्चा में ही रहती हैं. ऐसा ही कुछ इस बार भी हुआ दीवाली के खास मौके पर . श्वेता तिवारी  ने बेहद शानदार नीले रंग की सूट पहनी थी. जिसमें वह बेहद खूबसूरत लग रही थीं.

दरअसल, इस बार हुआ कुछ ऐसा कि श्वेता तिवारी ने जैसा ड्रेस पहना हुआ था वैसा ही सूट राहुल वैद्या कि गर्लफ्रेंड दिशा परमार  भी पहना हुआ था.

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इन दोंनों की तस्वीर को देखने के बाद आप देख सकते हैं. फैंस लगातार इन दोनों की तस्वीर को देखे के बाद कमेंट कर रहे हैं. फैंस का कहना है कि दोनों बहुत ज्यादा क्यूट लग रही हैं.

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वैसे कुछ स्टार्स ने दीवाली के मौके पर डार्क कलर का सूट पहनना पसंद किया. वहीं इन दोनों स्टार्स ने लाइट कलर का सूट पहना हुआ है.

 

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इन दोनों स्टार्स ने लाइट कलर के सूट में अपना खास मेकअप किया हुआ है. बता दें कि राहुल वैद्या कि गर्लफ्रेंड के लुक को बेहद पसंद किया जा रहा है. राहुल वैद्या ने बिग बॉस 14 में दिशा परमार को प्रपोज किया है.

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दिशा परमार ने सोशल मीडिया के जरिए अपने रिंग को फ्लांट किया था जिसमें दिशा  ने राहुल वैद्या द्वारा दिए गए रिंग को पहना हुआ था.

इन दिनों राहुल वैद्या बिग बॉस के घर में हैं जहां पर अपनी मन कि बात कही हैं. वहीं दिशा परमार के साथ रिश्ते के लेकर राहुल परमार की मां ने भी बयान दिया था.

सुबह की सैर से हो दिन की शुरुआत, इन बातों का रखें ध्यान

दिन का पहला घंटा ही अकसर यह तय कर देता है कि हमारे बाकी 23 घंटे कैसे बीतेंगे. बहुत सी घटनाएं और स्थितियां अकसर हमारे नियंत्रण से बाहर होती हैं. हम उठते ही सुबह सब से पहले क्या करते हैं, इस का प्रभाव हमारी सोच और दृष्टिकोण पर अवश्य पड़ता है.

यदि हम आत्मविश्वास की ओर ध्यान देना चाहते हैं तो काफी बातों का ज्ञान रखना जरूरी है. अपनी सुबह को नियंत्रित कर पूरा दिन हम नियंत्रित कर सकते हैं. सुबह का ऐसा रूटीन रखें जो आप को शारीरिक व मानसिक रूप से ताजगी पहुंचाने वाला हो.

समय पर जागें

दिन की अच्छी शुरुआत के लिए सब से पहले समय पर उठें. देर से उठने से आप को भागदौड़ करनी पड़ सकती है, जिस से चिंता और बेचैनी बढ़ेगी और आप तनाव में आ जाएंगे.

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अलार्म लगाएं

सुबह समय पर उठने के लिए अलार्म लगाएं. यह सुनिश्चित कर लें कि कैसे समय पर उठा जाए कि जिस से आप अपने दिन की शुरुआत शांति से कर सकें.

पर्याप्त नींद लें

वैसे तो हमें अलार्म की जरूरत नहीं पड़नी चाहिए. हम प्राकृतिक रूप से ऐसी नींद लें जिस से जब हमारा शरीर और दिमाग पर्याप्त नींद ले लें, तो हम प्राकृतिक रूप से जाग जाएंगे. पर यह आजकल संभव नहीं हो पा रहा है, हमें एक निश्चित समय पर सो जाना चाहिए.

अगर सोने में परेशानी हो रही है तो आप को अपनी कंप्यूटर संबंधी आदतों को बदलने की जरूरत है. खराब पोस्चर मांसपेशियों को तनाव देता है. वैब ब्राउजिंग, वीडियो गेम्स, कैफीन आप के दिमाग को ज्यादा देर तक ऐक्टिव रख सकते हैं. सब से महत्त्वपूर्ण बात, इलैक्ट्रौनिक साधनों जैसे कंप्यूटर, मौनीटर्स व टैलीविजन स्क्रीन से आप के दिमाग को दिन होने का भ्रम हो सकता है.

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स्ट्रैचिंग करें, फिट रहें

दिमाग को खुश व शांत रखने के लिए आप को अपना शरीर स्वस्थ रखना होता है. ये दोनों साथसाथ चलते हैं. दिनभर कंप्यूटर के सामने बैठने से आप का पोस्चर खराब होता है, आप की आंखों को थकान महसूस होती है, शरीर का लचीलापन कम होता है जो आप को नुकसान पहुंचाता है. थोड़ी सी स्ट्रैचिंग और तेज कदमों से की गई सैर आप के मानसिक स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभकारी है. सुबह सैर के लिए समय जरूर निकालें. इस के फायदे पूरे दिन देखने को मिलेंगे.

सकारात्मक सोचें

सकारात्मक सोचने की आदत डालें. जीवन में जब भी उतारचढ़ाव आएंगे, सकारात्मक दृष्टिकोण हमेशा आप की मदद करेगा.

रिलैक्स रहें, आनंद लें

सुबह उठते ही सब से पहले आप अपना फोन तो नहीं उठाते या उठते ही कंप्यूटर पर तो नहीं बैठ जाते? कुछ पल जागने के बाद सुबह का आनंद लें, सूर्योदय देखें, कौफी पिएं. यह आप पर निर्भर है कि आप कितनी देर में रिलैक्स होते हैं.

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समय निर्धारित करें

आप मोबाइल पर अपने ईमेल, मैसेज देखने के लिए बेचैन रहते हैं. थोड़ी देर यह सब चैक करने के लिए बैठ जाएं पर एक बात का ध्यान रखें कि इस के लिए एक समयसीमा जरूर निर्धारित करें.

अच्छी आदतें डालने के लिए अनुशासन की जरूरत होती है. जो आसान नहीं होता. सुबह समय पर उठने का रूटीन बनाना आसान नहीं लगेगा पर कोशिश अवश्य करें. अच्छी आदतों से आप को लाभ ही होगा.

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ये अच्छी आदतें तन और मन दोनों को दिनभर स्वस्थ व खुश रखेंगी, दिन की शुरुआत अच्छी करने से पूरा दिन अच्छा बीतने की संभावना हो तो देरी किस बात की.

जैविक खती

लेखक- मनीष अग्रहरि

ट्रा इकोडर्मा जैविक खेती में उपयोगी एक हरफनमौला मित्र कवक है. यह मिट्टी से उत्पन्न होने वाले रोगों विशेष रूप से विल्ट रोग, उकठा रोग, म्लानि रोग के लिए एक कुशल जैविक नियंत्रक के रूप में काम करता है. इस के साथ ही यह जैव उर्वरक के रूप में भी काम करता है, जिस से उत्कृष्ट पौधे की वृद्धि होती है. यह सभी तरह की फसलों, सब्जियों, फलों और फूलों में इस्तेमाल किया जा सकता है.

प्रयोग की विधि बीज उपचार : बीज उपचार के लिए प्रति किलोग्राम बीज में 5 ग्राम से 10 ग्राम ट्राइकोडर्मा पाउडर को मिश्रित कर छाया में सुखा लें, फिर बोआई करें.

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कंद उपचार : 10 ग्राम ट्राइकोडर्मा प्रति लिटर पानी में डाल कर घोल बना लें. इस घोल में कंद को 30 मिनट तक डुबा कर रखें, फिर उसे छाया में आधा घंटा रखने के बाद बोआई करें.

नर्सरी उपचार : 5 ग्राम ट्राइकोडर्मा उत्पाद प्रति लिटर पानी में घोल कर नर्सरी बैड में प्रयोग करें. पौधा उपचार : प्रति लिटर पानी में 10 ग्राम ट्राइकोडर्मा पाउडर को घोल कर पौधे के जड़ क्षेत्र को भिगोएं.

पौधों पर छिड़काव : कुछ खास तरह के रोग जैसे पर्ण चित्ती, ?ालसा आदि की रोकथाम के लिए पौधे में रोग के लक्षण दिखाई देने पर 5 ग्राम से 10 ग्राम ट्राइकोडर्मा पाउडर प्रति लिटर पानी में घोल कर छिड़काव करें.

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फलदार वृक्ष : पेड़ के छत्रक की बाहरी सीमा से लगभग एक फुट अंदर की तरफ मिट्टी में 100 ग्राम से 200 ग्राम प्रति पेड़ (उम्र के हिसाब से) ट्राइकोडर्मा को 3 किलोग्राम से 5 किलोग्राम गोबर की सड़ी हुई खाद या वर्मी कंपोस्ट में मिला कर पेड़ के चारों तरफ 30 सैंटीमीटर की चौड़ाई में छिड़क दें और उसे कुदाल से मिलाएं. मिट्टी में नमी की मात्रा पर्याप्त होनी चाहिए. अगर नहीं हो, तो ट्राइकोडर्मा डालने के बाद हलकी सिंचाई कर दें.

मृदा शोधन : एक किलोग्राम ट्राइकोडर्मा पाउडर को 25 किलोग्राम गोबर की सड़ी खाद में मिला कर एक हफ्ते तक छायादार जगह पर रख कर उसे गीले बोरे से ढकें, ताकि इस के बीजाणु अंकुरित हो जाएं. इस कंपोस्ट को एक एकड़ क्षेत्र में फैला कर मिट्टी में मिला दें, फिर बोआई या रोपाई करें. हरी खाद के लिए : अच्छी हरी खाद के लिए ढांचा को मिट्टी में पलटने के बाद 5 किलोग्राम ट्राइकोडर्मा प्रति हेक्टेयर की दर से डाल कर जुताई कर दें. ट्राइकोडर्मा के प्रयोग से लाभ

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* यह रोगकारक जीवों की वृद्धि को रोकता है या उन्हें मार कर पौधे को रोग मुक्त करता है या पौधों की रासायनिक प्रक्रियाओं को बदलने के साथसाथ पौधों में रोग रोधी क्षमता को बढ़ाता है.

* यह मिट्टी में कार्बनिक पदार्थों के अपघटन की दर बढ़ाता है, इसलिए यह जैव उर्वरक की तरह काम करता है.

* यह पौधों की वृद्धि को बढ़ाता है, क्योंकि यह फास्फेट और दूसरे सूक्ष्म पोषक तत्त्वों को घुलनशील बनाता है. ट्राइकोडर्मा के प्रयोग में सावधानियां

* ट्राइकोडर्मा कल्चर 6 महीने से ज्यादा पुराना न हो.

* बीज या पौधों के उपचार का काम छायादार और सूखी जगह पर करें.

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* ट्राइकोडर्मा के साथसाथ कवकनाशी रसायनों का प्रयोग न करें.

* ट्राइकोडर्मा के प्रयोग के 4 से 5 दिनों के बाद तक रासायनिक कवकनाशी का प्रयोग न करें.

* ट्राइकोडर्मा से उपचारित बीज को सूरज की सीधी किरणें न लगने दें.

* कार्बनिक खाद में मिलाने के बाद उसे लंबी अवधि के लिए न रखें.

नोट : ट्राइकोडर्मा की संगतता-ट्राइकोडर्मा रासायनिक कवकनाशी मेटैलैक्सिल और थीरम द्वारा उपचारित बीज के साथ प्रयोग किया जा सकता है, पर दूसरे किसी भी रासायनिक कवकनाशी के साथ नहीं.

बिछुड़े सभी बारीबारी

Crime Story: फरेबी के प्यार में

अंजलि ने सोचा था कि वह आसिफ उर्फ राज से निकाह कर के खुश रहेगी लेकिन निकाह के बाद आसिफ ने उस का खूब शोषण किया. फिर उसे छोड़ कर सऊदी अरब चला गया. बेसहारा अंजलि को आसिफ के घर वालों ने भी नहीं स्वीकारा तो वह न्याय पाने के लिए पुलिस के पास गई. जब पुलिस ने भी उस की मदद नहीं की तो आखिर अंजलि ने…

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ का हजरतगंज इलाका, कई मायनों में महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है. इसे लखनऊ का दिल भी कहा जाता है. हजरतगंज क्षेत्र में ही विधानसभा भवन, भारतीय जनता पार्टी का प्रदेश मुख्यालय, कुछ दूरी पर दारुलशफा में विधायक आवास के अलावा कई सरकारी भवन हैं.
उस दिन अक्तूबर महीने की 13 तारीख थी. दोपहर 12 बजे विधानसभा भवन के सामने बीजेपी राज्य मुख्यालय के गेट नंबर 2 पर लगभग 35-36 वर्ष की एक महिला ईरिक्शा से उतरी. कुछ दूर वह चली, उस के बाद उस ने अपने चारों तरफ निगाह डाली. किसी की नजर अपने पर पड़ती न देख वह निश्चिंत हो गई. उस के हाथ में एक फाइल थी. कंधे पर एक पर्स लटका हुआ था. उस ने पर्स को खोला तो उस में एक बोतल रखी हुई थी. बोतल में केरोसिन भरा हुआ था.

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महिला ने केरोसिन से भरी बोतल का ढक्कन खोल दिया. केरोसिन बोतल से निकल कर पूरे पर्स में फैल गया. महिला ने देर न करते हुए तुरंत माचिस की तीली जला कर पर्स में डाल दी. केरोसिन ने आग पकड़ी तो महिला का शरीर उस की चपेट में आ गया. उस वक्त महिला ने अपना दिल इतना मजबूत कर रखा था कि उस आग की जलन का दर्द भी उसे टस से मस नहीं कर पाया. वह एक कदम भी नहीं हटी. महिला को जलता देख कर वहां मौजूद पुलिसकर्मी उस ओर दौड़ पडे़. सिपाही सिद्धार्थ सेंगर पुलिस चौकी से तौलिया उठा लाया और उस से आग बुझाने की कोशिश करने लगा. महिला सिपाही निशा पाल, दरोगा नरेंद्र राय और कृष्णकांत राय ने कंबल से महिला को ढक दिया. काफी प्रयासों के बाद आग बुझाई जा सकी.
सूचना मिलने पर हजरतगंज थाना पुलिस भी वहां पहुंच गई. आननफानन में इंसपेक्टर अंजनी पांडेय ने उस महिला को सिविल अस्पताल के बर्न वार्ड में भरती कराया. महिला 90 फीसदी तक जल चुकी थी. गंभीर हालत में भरती महिला का इलाज शुरू किया गया.

जांच में पता चला कि उस महिला का नाम अंजलि तिवारी उर्फ आयशा है. वह महराजगंज जिले की रहने वाली थी. उस ने उसी दिन महराजगंज के महिला थाने में आत्मदाह करने का नोटिस भिजवाया था. जिस के बाद से महिला थाने की एसओ मनीषा सिंह उस की खोजखबर में लगी थीं. लेकिन उन्हें अंजलि का कोई पता नहीं लग सका.

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पुलिस को दिया था नोटिस

घटना से 15 मिनट पहले ही एसओ मनीषा सिंह ने हजरतगंज इंसपेक्टर अंजनी पांडेय को अंजलि के आत्मदाह कर लेने के नोटिस के बारे में बताया था. इस से पहले कि सुरक्षा व्यवस्था और चाकचौबंद होती, अंजलि ने अपने आप को आग के हवाले कर दिया था.लखनऊ पुलिस ने महराजगंज पुलिस से संपर्क किया. वहां से महिला के संबंध में पूरी जानकारी जुटाई तो कई अहम बातें पता चलीं. लखनऊ पुलिस ने अंजलि के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई. काल डिटेल्स में घटना से पहले जिन नंबरों पर अधिक बात हुई थी, उन की जांच की गई.

उन में एक नंबर पर पुलिस की निगाह टिक गई. वह नंबर यूपी दलित कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष आलोक प्रसाद का था. आलोक प्रसाद बराबर फोन के जरिए अंजलि के संपर्क में था. घटना के समय उस की लोकेशन भी घटनास्थल के पास की मिली. महराजगंज के एसपी प्रदीप गुप्ता ने भी लखनऊ पुलिस को जो इनपुट दिया था, उस में आलोक प्रसाद के बारे में काफी कुछ बताया गया था. उस के साथ कुछ और लोग भी शामिल थे.

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आलोक प्रसाद महराजगंज में रहता था. उस का आवास लखनऊ के गोमतीनगर में भी था. वह राजस्थान के पूर्व राज्यपाल स्वर्गीय सुखदेव प्रसाद का बेटा था. साक्ष्य मिलने के बाद हजरतगंज पुलिस ने कोतवाली में आलोक प्रसाद व अन्य अज्ञात के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने, साजिश रचने की धाराओं में मुकदमा दर्ज कर लिया. 14 अक्तूबर की सुबह आलोक प्रसाद को उस के गोमतीनगर स्थित आवास से गिरफ्तार कर लिया.

उधर बुरी तरह जल चुकी अंजलि ने 14 अक्तूबर की शाम सवा 7 बजे इलाज के दौरान इस उम्मीद से अंतिम सांस ली कि जो न्याय उसे जीते जी न मिला, शायद मरने के बाद मिल जाए. अंजलि किन हालात, किस दर्द से गुजर रही थी और किस तरह लचर कानून व्यवस्था से लड़ते हुए वह इस दुनिया से चली गई, इस बारे में भी जान लेते हैं.

अंजलि झारखंड राज्य के जिला पलामू के चेपात की रहने वाली थी. 8 साल पहले उस का विवाह उत्तर प्रदेश के महराजगंज जिले के गांव पचरूखिया के रहने वाले अखिलेश तिवारी के साथ हुआ था.
सीधेसादे सरल स्वभाव की अंजलि बड़े अरमान ले कर अपनी सुसराल आई. लेकिन कुछ ही दिनों में उस के अरमान मिट्टी में मिल गए. जिस जीवनसाथी के साथ उस ने जिंदगी जीने की कल्पना की थी, वह उस के बिलकुल विपरीत था. वह एक नंबर का नशेड़ी था. उसे नशे की ऐसी बुरी लत थी कि उसे हर रोज नशा चाहिए होता था.

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पति की इस आदत से अंजलि परेशान होती. वह पति से इस बात को ले कर बहस करती तो वह उसे पीट देता था. शादी के कुछ समय में ही ऐसे हालात बन गए कि अंजलि को मजबूरन ससुराल छोड़नी पड़ी.
पति का घर छोड़ कर अंजलि महराजगंज शहर के वीरबहादुर नगर में किराए पर रहने लगी. अपनी जीविका चलाने के लिए वह साड़ी के एक शोरूम में काम करने लगी.वीरबहादुर नगर में ही आसिफ रजा उर्फ राज रहता था. वह प्राइवेट जौब करता था. वह दिखने में काफी स्मार्ट था. उस ने सिर्फ इंटरमीडिएट तक ही पढ़ाई की थी. लेकिन उस की बातों से कभी नहीं लगता था कि वह उच्च शिक्षित नहीं है.

आसिफ से हुई मुलाकात

एक ही मोहल्ले में होने से आसिफ और अंजलि एकदूसरे को जान गए थे. मोहल्ले में कोई खूबसूरत महिला वह भी अकेले किराए पर रहने आ जाए तो पूरे मोहल्ले के युवकों की नजर उस पर टिक जाती है. ऐसे युवकों में आसिफ भी था. आसिफ को अंजलि की खूबसूरती भा गई थी. वह उस पर फिदा हुआ तो उस से बातें करने की कोशिश करने लगा.

अंजलि को भी महसूस हो गया था कि आसिफ उस में दिलचस्पी ले रहा है. आसिफ देखने में काफी अच्छा लगता था. वह स्वयं उस के नजदीक आने की कोशिश कर रहा था. अंजलि ने सोचा कि उसे अपनी कसौटी पर परखने में क्या बुराई है. और फिर पति को छोड़ कर आने के बाद जिंदगी में उसे वैसे भी ११किसी का हाथ तो पकड़ कर चलना ही था, पूरी जिंदगी अकेले तो नहीं काटी जा सकती. इसलिए उस ने भी आसिफ की उस से मिलने की कोशिशों को आसान करने का फैसला कर लिया.

एक दिन जब वह अपनी नौकरी पर जाने के लिए निकली तो उस का सामना आसिफ से हो गया. आसिफ उसे खड़ा निहार रहा था. वह कुछ कहना चाहता था लेकिन कह नहीं पा रहा था. उस की हालत देख कर मुसकराते हुए अंजलि आगे बढ़ गई. लेकिन कुछ दूर जा कर वह रुकी और पलट कर आसिफ को देखा, फिर वापस उस के पास आ कर बोली, ‘‘मुझे आप को देख कर ऐसा लगा कि आप मुझ से कुछ कहना चाहते हैं, लेकिन कह नहीं पा रहे हैं.’’

आसिफ पहले तो हड़बड़ाया लेकिन फिर संभलते हुए बोला, ‘‘हां आप से आप के बारे में जानना चाह रहा था.’’‘‘क्यों…’’ अंजलि मंदमंद मुसकराते हुए उस से पूछने लगी, ‘‘क्या करेंगे मेरे बारे में जान कर.’’
‘‘हम एक मोहल्ले में ही रहते हैं. इसलिए एकदूसरे के बारे में जानकारी तो होनी ही चाहिए.’’ वह बोला.
‘‘केवल यही बात है या कुछ और…’’ इस बार अंजलि ने आसिफ की आंखों में झांकते हुए पूछा.
आसिफ की एक पल को जुबान लड़खड़ाई लेकिन अगले ही पल वह संभलते हुए बोला, ‘‘और क्या बात हो सकती है.’’‘‘वही बात जो खूबसूरत लड़की से दोस्ती करने के लिए की जाती है. तुम मुझ से दोस्ती करना चाहते हो..है ना?’’

आसिफ समझ गया कि वह जो चाहता है, अंजलि उसे बखूबी जान गई है. वह फ्रैंक है, तभी तो बेधड़क उस से सवालजवाब कर रही है. आसिफ उस के अंदाज का कायल हो गया और बोला, ‘‘आप ने सही सोचा. ऐसा ही है, मैं आप से दोस्ती करना चाहता हूं.’’‘‘मैं जानती थी कि तुम क्या चाहते हो और हर रोज किस उम्मीद से मेरे सामने आते हो. लेकिन तुम्हे दोस्त बनाने से पहले मैं तुम्हारे साथ कुछ समय बिताऊंगी. इस के बाद ही फैसला कर पाऊंगी कि तुम मेरे दोस्त बन सकते हो या नहीं.’’

आसिफ ने सहमति दे दी. आसिफ जानता था कि अंजलि को उस की दोस्त बनने से कोई नहीं रोक सकता. दोस्त बनने के बाद आगे बढ़ने की राह और आसान हो जाएगी. इस के बाद दोनों खाली समय में मिलने लगे. उन के बीच बातें होतीं, साथ बाजार जाते, घूमतेफिरते. आसिफ उस की हर तरह से मदद करता. धीरेधीरे अंजलि को आसिफ पर विश्वास होने लगा, जिस से आसिफ अंजलि का दोस्त बन गया. दोस्ती का अगला पायदान प्यार होता है. प्यार में डूबने के लिए उन के दिलों का मिलना जरूरी था. दिलों में तो पहले से ही एकदूसरे के लिए जगह बन गई थी. दोस्ती करने के दौरान ही अंजलि आसिफ पर दिल हार बैठी थी. बाद में वह उस के साथ जिंदगी बिताने के सपने भी देखने लगी. आसिफ तो उसे चाहता ही था.
एक दिन आसिफ अंजलि से मिलने उस के कमरे पर पहुंचा तो उस के हाथ में अंजलि के लिए एक तोहफा था. आसिफ ने अंजलि को वह तोहफा दिया तो वह खुश हो गई.

आसिफ के कहने पर उस ने पैकिंग खोली तो उस में एक खूबसूरत तोहफा था. एक प्रेमी अपनी प्रेमिका के सामने प्रणय निवेदन कर रहा था. वह लाइट से घूमने वाला आइटम था. अंजलि ने उस के प्लग को लाइट बोर्ड के सौकेट में लगाया तो वह तोहफा रोशनी से जगमगा उठा और मधुर संगीत बजने के साथ ही प्रेमीप्रेमिका की वह मूर्तियां गोल घेरे में घूमने लगीं.

प्रणय निवेदन किया स्वीकार

तोहफे में जो मूर्तियों की स्थिति थी उस के हिसाब से एक युवक ने बांया घुटना जमीन पर टिका रखा था, जबकि दाहिना पंजा जमीन पर था. उस ने बायां हाथ दिल पर रखा हुआ था और दाहिने हाथ से लाल गुलाब सामने मुसकराती खड़ी युवती को भेंट कर रहा था. युवती का हाथ गुलाब की ओर बढ़ा हुआ था, जिस से प्रतीत हो रहा था कि उस ने युवक का प्रेमनिवेदन स्वीकार कर लिया है.अंजलि ने उन मूर्तियों की भावनाओं से अपने तार जोड़े तो मानो उस में खो गई. आसिफ की ओर से उस का ध्यान ही हट गया. उस की तंद्रा तब टूटी जब लाइट जाने से मूर्तियों ने घूमना बंद कर दिया. जब वह पीछे की तरफ घूमी तो पीछे खड़े आसिफ को मूर्ति वाले युवक के अंदाज में जमीन पर घुटने टेके बैठा पाया. लेकिन उस के हाथ में कागज का लाल गुलाब था. जोकि उस ने अलमारी में रखे गुलदान से निकाल लिया था. आसिफ के इस अंदाज को देख कर वह हतप्रभ रह गई.

आसिफ बोला, ‘‘अंजलि फूल कागज का है, इसलिए इस में खुशबू नहीं है, पर मेरी भावनाएं मोहब्बत के फूलों की खुशबू से भरी हुई हैं. कागज के फूल को नहीं, मेरी भावनाओं को समझो.’’कुछ देर अंजलि अपलक उसे निहारती रही, फिर मूर्ति वाली नायिका की तरह मुस्कराते हुए आसिफ के हाथ से कागज का फूल ले लिया.आसिफ के होंठों पर मुसकान आ गई. वह खड़ा होता हुआ बोला, ‘‘अंजलि, फूल तो तुम ने ले लिया, पर उस का अर्थ भी जानती हो?’’

‘‘अर्थ न जानती तो फूल लेती ही क्यों!’’ अंजलि मुसकराने लगी. उस के गालों पर हया की लाली फैल गई.
आसिफ ने बांहें फैला दीं, ‘‘अगर तुम बुरा न मानो तो इस प्यार की शुरुआत गले लगा कर करना चाहता हूं.’अंजलि आगे आई और उस की बांहों में समा गई. इस तरह दोनों के प्यार की शुरूआत हो गई. प्यार हुआ तो कुछ महीनों बाद शादी के बारे में बात हुई. आसिफ ने अंजलि से अपने धर्म को अपनाने को कहा लेकिन अंजलि ने मना कर दिया और कहा कि बिना धर्म परिवर्तन के भी वह उस से निकाह कर के उस के साथ रह सकती है. आसिफ ने उस की बात मान ली और उस से निकाह कर लिया. निकाह के बाद अंजलि आयशा बन गई.

निकाह के बाद आसिफ उसे अपने घर नहीं ले गया. अंजलि घर ले चलने को कहती तो आसिफ उसे कह देता कि अभी घर वाले उसे घर में रखने को तैयार नहीं होंगे क्योंकि वह इस निकाह से नाराज हैं. अंजलि को उस की बात माननी पड़ी. आसिफ उस के साथ था, इसलिए उस ने परवाह नहीं की.आसिफ उसे गोरखपुर ले गया और वहीं रहने लगा. आयशा 2 बार गर्भवती हुई लेकिन दोनों बार आसिफ ने उस का गर्भपात करवा दिया. पहले 2016 में फिर 2018 में. आसिफ आयशा पर अपना धर्म कुबूल करने के लिए दबाब बनाने लगा. अब वह अंजलि को इस के लिए प्रताडि़त भी करने लगा था.

2 साल पहले एक दिन आसिफ अचानक उसे अकेला छोड़ कर सऊदी अरब चला गया. वह वहां से खर्चे के लिए आयशा को पैसे भेजता था. लेकिन 6 महीने तक पैसे भेजने के बाद उस ने पैसे भेजने बंद कर दिए.
अब पैसा न मिलने से आयशा के सामने आर्थिक संकट खड़ा हो गया. एक दिन वह महराजगंज में आसिफ के घर पहुंच गई और आसिफ के घर वालों से घर में रखने की जिद करने लगी. घर वाले इस के लिए तैयार नहीं हुए और उन्होंने उसे वहां से भगा दिया.

लव जिहाद का शिकार हुई अंजलि

आयशा की समझ में आ गया कि जिस लव जिहाद के बारे में अभी तक वह सुनती आई थी, वह खुद उसी का शिकार हो गई है. लेकिन उस ने हिम्मत नहीं हारी, अपना हक लेने के लिए उस ने लड़ना जारी रखा. उस ने महराजगंज के महिला थाने और पुलिस अधिकारियों के सामने न्याय की गुहार लगाई, लेकिन किसी ने उस की एक न सुनी. 4 अक्तूबर, 2020 को वह आसिफ के घर के सामने धरना दे कर बैठ गई. पुलिस को सूचना दी गई तो महिला थानाप्रभारी मनीषा सिंह मौके पर पहुंच गईं और उसे समझाबुझा कर महिला थाने ले आई.

आयशा ने उन को अपने उत्पीड़न की पूरी कहानी सुनाई, लेकिन थानाप्रभारी ने सभी आरोपों को नजरअंदाज कर दिया. समझौते की बात शुरू हुई तो आयशा ने इसे मानने से इंकार कर दिया. बहरहाल, थाने में आयशा के आरोपों पर किसी तरह का केस दर्ज नहीं किया गया. न्याय पाने के लिए आयशा कुछ राजनैतिक लोगों से मिली तो उन्होंने आयशा को लखनऊ जा कर आत्मदाह करने के लिए उकसाना शुरू कर दिया. उन्होंने कुछ इस तरह आयशा का ब्रेनवाश किया कि वह उस के लिए तैयार हो गई.

11 अक्तूबर को वह गोरखपुर से लखनऊ के लिए निकली. लखनऊ पहुंच कर उस ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिलने की कोशिश की, लेकिन उसे मिलने नहीं दिया गया. हर तरफ से निराश हो कर उस ने विधान भवन के सामने बीजेपी राज्य मुख्यालय के गेट नंबर 2 पर आत्मदाह का फैसला कर लिया.
कुछ राजनैतिक लोग उस से फोन पर संपर्क बनाए हुए थे. वही लोग उसे आगे का रास्ता दिखा रहे थे कि कैसे क्या करना है. अपने राजनीतिक फायदे के लिए वे लोग आयशा की जिंदगी छीन लेने को आतुर थे.
आखिर 13 अक्तूबर को दोपहर 12 बजे आयशा ने आत्मदाह कर लिया. 14 अक्तूबर को वह न्याय पाने की आस लिए इस दुनिया से विदा हो गई. लखनऊ की हजरतगंज थाना पुलिस आत्मदाह के लिए उकसाने वाले लोगों पर काररवाई कर रही थी.

आसिफ और उस के घरवालों के खिलाफ काररवाई की बात पर हजरतगंज पुलिस ने कहा कि यह काम महराजगंज पुलिस करेगी. पुलिस काररवाई से यही लगता है कि जहां उसे जीतेजी न्याय नहीं मिल सका, वहां उस के मरने के बाद न्याय मिलने की उम्मीद कम ही है.

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