Download App

युवाओं में बढ़ रहा हार्ट फेल्योर का रिस्क

भारत में इस समय तकरीबन 50.4 लाख हार्ट फेल्योर रोगी हैं और जिस तरह से इस के मामलों में बढ़ोतरी हो रही है, उसे देख कर लगता है कि अब हार्ट फेल्योर युवाओं को भी अपनी चपेट में ले रहा है. इस ?के बढ़ते मामलों की वजह लोगों में हार्ट फेल्योर के बारे में जानकारी की कमी है और लोग इसे  हार्ट अटैक से जोड़ कर देखते हैं.

कुछ ऐसा ही मामला मेरे पास आया था. विपिन सैनी जब अस्पताल में भरती हुए थे तो उन्हें सांस लेने में दिक्कत हो रही थी, पैरों और टखनों में सूजन थी, चक्कर आ रहे थे और जब भी खांस रहे थे तो बलगम हलके गुलाबी रंग का था. करीब डेढ़ साल पहले उन्हें हार्ट अटैक आया था और इस के बाद ही पता चला कि विपिन हार्ट फेल्योर की समस्या से ग्रस्त हैं.

ये भी पढ़ें- नींद लें, न कम न ज्यादा

दरअसल, विपिन की प्रोफैशनल जिंदगी में बहुत तनाव था और लगातार काम करते रहना व अस्वस्थ खानपान के चलते उन में हार्ट फेल्योर के लक्षण दिखाई देने लगे थे.

हार्ट फेल्योर

हार्ट फेल्योर लंबी चलने वाली गंभीर बीमारी है. इस में हृदय इतना रक्तपंप नहीं कर पाता कि जिस से शरीर की जरूरतों को पूरा किया जा सके. इस से पता चलता है कि हृदय की मांसपेशियां पंपिंग करने के लिए जिम्मेदार होती हैं जो समय के साथ कमजोर हो जाती हैं या अकड़ जाती हैं. इस से दिल की पंपिंग पर प्रभाव पड़ता है और शरीर में रक्त (औक्सीजन व पोषक तत्त्वों से युक्त) की गति सीमित हो जाती है. इस वजह से रोगी को सांस लेने में तकलीफ होने लगती है और उस के टखनों में सूजन आने लगती है. यह बीमारी हार्ट अटैक से बिलकुल अलग है.

लक्षण भी जानें

हार्ट फेल्योर होने के कई कारण होते हैं जिन में पहले हार्ट अटैक होना सब से महत्त्वपूर्ण कारक हो सकता है. विपिन के मामले में भी ऐसा ही हुआ था. हार्ट अटैक के बाद विपिन में हार्ट फेल्योर के लक्षण सामने आए थे. इस के अलावा दिल से जुड़ी बीमारियां, ब्लडप्रैशर, संक्रमण या शराब या ड्रग की वजह से हृदय की मांसपेशियों का क्षतिग्रस्त होना शामिल हो सकता है. दिल के क्षतिग्रस्त होने की वजह डायबिटीज, उच्च रक्तचाप, मोटापा, किडनी की बीमारी और थायरायड में विकार हो सकते हैं. कई मामलों में हार्ट फेल्योर के एक या इस से ज्यादा कारण भी हो सकते हैं.

ये भी पढ़ें- लंबे समय तक फोन पर चैटिंग-टैक्स्ट, नेक पेन का कारण

क्या कहते हैं आंकड़े

दुनियाभर के आंकड़ों पर गौर करें तो यूरोप में 140.9 लाख लोग और अमेरिका में 50.7 लाख लोग हार्ट फेल्योर की समस्या से जूझ रहे हैं. भारत में हाल ही जर्नल औफ प्रैक्टिस औफ कार्डियोवैस्कुलर साइंसैज में प्रकाशित एम्स की स्टडी के अनुसार, हार्ट फेल्योर से अमेरिका व यूरोप में 4 -7 प्रतिशत के मुकाबले भारत में 30.8 फीसदी मृत्यु होती है. अगर संपूर्ण बीमारी का बोझ देखें तो पता चलता है कि दुनिया की आबादी में भारत आंकड़ों में 16 फीसदी है तो दुनिया के क्रोनोरी हार्ट डिसीज बोझ में यह 25 फीसदी है.

दुनियाभर के मुकाबले भारत में क्रोनोरी आर्टरी डिसीज (सीएडी) से युवा ज्यादा प्रभावित हैं. आमतौर पर सीएडी पुरुषों में अगर 55 साल से पहले और महिलाओं में 65 साल से पहले हो जाए तो उसे प्रीमैच्योर सीएडी कहा जाता है, लेकिन अगर यह बीमारी 40 साल से पहले हो तो माना जाता है कि यह युवाओं को अपनी चपेट में ले रही है.

क्या है फर्क

सब से महत्त्वपूर्ण हार्ट अटैक और हार्ट फेल्योर के अंतर को समझना है. हार्ट अटैक अचानक होता है और हृदय की मांसपेशियों को रक्त पहुंचाने वाली धमनियों में ब्लौकेज होने से आकस्मिक हार्ट अटैक हो सकता है जबकि हार्ट फेल्योर लगातार बढ़ने वाली बीमारी है जिस में हृदय की मांसपेशियां समय के साथ कमजोर होती जाती हैं.

ये भी पढ़ें- Winter Special: प्रेग्नेंसी के दौरान जरूर कराएं ये 5 टेस्ट

कैंसर, अल्जाइमर्स, सीओपीडी और ऐसी कई बीमारियों की तरह हार्ट फेल्योर भी लगातार बढ़ने वाली बीमारी है. इसलिए इस के लक्षणों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए और दिल की मांसपेशियों के क्षतिग्रस्त होने से पहले इसे चेक कराना बहुत महत्त्वपूर्ण है. हार्ट फेल्योर में यह जानना बेहद जरूरी है कि क्षतिग्रस्त मांसपेशियों को दोबारा रिकवर नहीं किया जा सकता, इलाज की मदद से सिर्फ दिल व शरीर के दूसरे महत्त्वपूर्ण अंगों को अधिक खराब होने से बचाया जा सकता है.

हार्ट फेल्योर को लगातार अनदेखा करना बहुत रिस्की है क्योंकि जो लोग इस बीमारी की पहचान नहीं कर पाते या इलाज नहीं कराते, उन की अचानक मृत्यु होने का रिस्क बढ़ सकता है और वे बेहतर जिंदगी भी नहीं बिता पाते. बीमारी की काफी देर बाद पहचान होने के परिणाम काफी घातक होते हैं. इस वजह से एकतिहाई रोगियों की अस्पताल में भरती होने पर मृत्यु हो जाती है और एकचौथाई की पहचान होने के 3 महीनों में मृत्यु हो जाती है.

जीवनशैली है बड़ा कारण

लगातार शराब, धूम्रपान, ड्रग्स का सेवन, तनाव, कसरत न करने जैसी अस्वस्थ जीवनशैली हार्ट फेल्योर के कारण हो सकते हैं. इस से मोटापा, ब्लडप्रैशर बढ़ना, डायबिटीज जैसे रोग हो सकते हैं. ये बीमारियां दिल की मांसपेशियों को कमजोर करती हैं और इस से हृदय की कार्यक्षमता प्रभावित होती है.

अस्वस्थ जीवनशैली का उदाहरण हाल ही में एक मामले में देखने को मिला. 20 साल का लड़का सत्यम शर्मा जब परामर्श के लिया आया तो उसे बहुत थकान, सांस लेने में तकलीफ और बहुत ज्यादा पसीना निकलने की समस्या थी. जब जांच की गई तो उस में शुरुआती हार्ट फेल्योर के लक्षण नजर आए. इस उम्र में हार्ट फेल्योर के लक्षणों का कारण लगातार बहुत ज्यादा शराब पीना था.

हार्ट फेल्योर का इलाज

हार्ट फेल्योर की पहचान करना ज्यादा मुश्किल नहीं है. इस की पहचान मैडिकल हिस्ट्री की जांच कर के, लक्षणों की पहचान, शारीरिक जांच, रिस्क फैक्टर जैसे उच्च रक्तचाप, क्रोनोरी आर्टरी बीमारी या डायबिटीज होने और लैबोरेटरी टैस्ट से की जा सकती है. इकोकार्डियोग्राम, छाती का एक्सरे, कार्डियेक स्ट्रैस टैस्ट, हार्ट कैथेटराइजेशन और एमआरआई से इस समस्या की सही पहचान की जा सकती है.

पहचान न कर पाने या स्क्रीनिंग में दिक्कत होने के बावजूद हार्ट फेल्योर का इलाज आधुनिक तकनीकों से बेहतर तरीके से किया जा सकता है. इस बीमारी को नियंत्रित करने के लिए जीवनशैली में बदलाव करना बहुत जरूरी है.

इस के साथ कई थेरैपियों की मदद से हार्ट फेल्योर का उपचार किया जा सकता है. इस से लक्षणों को कम, जिंदगी की गुणवता में सुधार और मृत्युदर को कम किया जा सकता है.

इस के इलाज में बीटा ब्लौकर, एसीई इनहिबिटर जैसी दवाइयों, हाई बीपी या डायबिटीज जैसी बीमारियों का इलाज कर के, कार्डियेक उपकरण जैसे कार्डियेक रिस्नक्रोनाइजेशन थेरैपी (सीआरटी) व इंट्रा कार्डियेक डिफिबरालेटर (आईसीडी) और क्रोनोरी आर्टरी बीमारी के मामलों में सर्जरी व वौल्व के रिपेयर या रिप्लेसमैंट का सुझाव दिया जाता है.

नई उम्मीदें

हार्ट फेल्योर के इलाज के कई बेहतरीन विकल्प हैं. पिछले साल यूएस फूड व ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने नई दवाई इवाब्राडाइन को मंजूरी दी थी जो भारत में काफी समय से उपलब्ध है. इसी तरह ड्रग की नई श्रेणी एंजियोटेनसिन-रिस्पेटरब्लौकर निपरिलसिन इंहिबिटर (एआरएनआई) है.

2 संयोजकों से बनी यह दवाई मौजूदा ब्लडप्रैशर को कम करने में मदद करती है और यह काफी प्रभावी साबित हुई थी. इस से 20 फीसदी तक मृत्यु में कमी और बारबार अस्पताल में भरती होने में कमी आई थी, जोकि फिलहाल मौजूद थेरैपियों के मुकाबले काफी फायदेमंद है.

(लेखक नई दिल्ली स्थित एम्स में कार्डियोलौजिस्ट हैं)

 

किसान आंदोलन उस पार

लेखक- रोहित और शाहनवाज

इंट्रो- इस पुरे संघर्ष में किसान जरा सा भी पीछे हटने को तैयार नहीं है. जिस ने सरकार की नाक में दम कर के रख दिया है. इस आंदोलन के अंत में जो भी परिणाम निकले. यह इसलिए याद रखा जाएगा कि घमंडी सरकार को घुटने के बल बैठा दिया ?

दिल्ली-गाजीपुर बोर्डर जिसे दिल्ली गेट भी कहा जाता है, इन दिनों अपना इतिहास फिर से लिख रहा है. तीन पीढ़ियों का एक साथ एक जगह बैठ कर, अपनी एक मांग के लिए लड़ना ऐतिहासिक है. आंदोलन की खासियत अब यह नहीं है कि ये अड़ियल सरकार को चुनौती दे रहे हैं बल्कि यह कि यहां अनुभव, दक्षता और जोश का जबरदस्त तालमेल बन चुका है.

ये भी पढ़ें- किसान आंदोलनों का डेरा

आंदोलन में युवा, जिन की उम्र कोई 18-25 है, वालिंटियर हैं. दोड़तेभागते हैं, लंगर बांटते हैं. लेकिन बिना थके खुश रहते हैं. आंदोलन के पुराने तौरतरीकों से थोड़ा अलग खुद को पाते हैं तो ट्रोली में लगे स्पीकर पर देशप्रेमी गाने सुन कर खुद में मस्त भी रहते हैं.

मंच, बातविचार, और रणनीति की जिम्मेदारी वे प्रोढ़ आंदोलनकारियों के कंधो पर है, जो अब खेतों में मुख्य रूप से किसान हैं. जिन के ऊपर घरों की जिम्मेदारी है, जो अब अपने परिवार में मुखिया के तौर पर स्थापित हो रहे हैं. ये आंदोलन में बीच की कड़ी हैं. जो युवाओं के बीच में भी हैं और बुजुर्गों में भी. नियंत्रण और समझाना बुझाना इन्ही पर है. ये अपने साथ ढोलमजीरा, आंदोलनकारी गानों की किताब ले कर आए तो हैं, लेकिन युवाओं के डीजे की घमक पर भी कभीकभी थिरक लेते हैं, उन के साथ उठबैठ जाते हैं. उन्हें आंदोलन की दशोदिशा समझते समझाते हैं.

ये भी पढ़ें- किसान आंदोलन में यूपी किसानों का अगर मगर

वहीँ, सब से मजबूत कड़ी वे बुजुर्ग हैं जो इस आंदोलनों को नीव दे रहे हैं. उन का यहां होना ही सभी का खुद पर विश्वास को बनाए रखना है. यह विश्वास शब्दों के माध्यम से पिरोना मुश्किल है, इस के लिए उन तमाम किसान धरना स्थलों की धूल को महसूस करने की जरूरत है जहां इन्होने अपना मौजूदा आशियाना बनाया हुआ है. आंदोलन में उन का आदर सत्कार किसान मौजूदा आंदोलन को ले कर कई जवाब दे देते हैं. इस के लिए जरुरी नहीं कि किसी बड़े लेखक की सिधान्त्वादी किताब को उठाया जाए. सब से पहली जरुरत यह कि उन धरना स्थलों पर जाया जाए, जहां मीलोंमील तक आज अन्नदाता बैठने पर मजबूर हुए हैं.

कोई आंदोलन कब सफल हो सकता है? यह सवाल पेचीदा है. इस के लिए वाइट कालर बुद्धिजीवी तबका अपने पास कई सैधांतिक जवाब रखता है. इस का जवाब देने वाले बहुत बार खुद सवालों के घेरे में आए, या खुद सवाल बनते चले गए. लेकिन गाजीपुर बोर्डर पर मौजूद किसान हीरा सिंह कहते हैं, “आंदोलन में सफलता तभी संभव है जब भरोसा सरकार पर नहीं अपनों पर हो, और हम इस समय सरकार पर बिलकुल भरोसा नहीं कर रहे हैं.”
यह जवाब कितना सटीक है इस पर बात हो सकती है, लेकिन आंदोलन की गरज और 2014 के बाद से बहुमत वाली घमंडी मोदी सरकार को उस की जगह इस आंदोलन ने जरूर दिखा दी है.

ये भी पढ़ें- किसान आन्दोलन के समर्थन में उमड़े किसान

कृषि कानूनों के खिलाफ बीते 9 दिनों से दिल्ली की सीमाओं पर डटे किसानों ने अब अपना रुख और कड़ा कर लिया है. यही हाल गाजीपुर बोर्डर पर भी देखने को मिला है. पहले के मुकाबले वहां किसान अपनी मांगो पर ज्यादा अडिग और मजबूत दिखाई दिए हैं. संख्याबल में भी बढ़ोतरी देखने को मिली है. जहां पहले भारतीय किसान यूनियन ही उस आन्दोलन को संचालित कर रही थी, अब उस जगह बाकी यूनियनें भी केन्द्रित होना शुरू हो चुकी हैं. 3 तारीख से पहले उन्हें प्रशासन ने फ्लाईओवर के नीचे समेट कर रखा था, लेकिन समय के साथ उन्होंने अपनी ताकत बढ़ाई और यूपी से दिल्ली घुसने वाले फ्लाईओवर पर अपना कब्जा जमा लिया है. जिस सरकार को यह आंदोलन बिना नेतृत्व के बिखरा हुआ दिखाई दे रहा था और इसी बात पर आंदोलन का कुप्रचार कर रही थी, वही सरकार दो बार की वार्ता अब तक किसानों के बीच कर चुकी है.
गाजीपुर में मंच की भी अब अहम् भूमिका बनती जा रही है. यूनियन लीडर के प्रतिनिधि अपनी बातों को तो रख ही रहे हैं, लेकिन अब जमीन पर बैठे श्रोता किसान भी वक्ता के तौर पर उभर रहे हैं.

72 वर्षीय ओमवीर उत्तर प्रदेश के हापुड़ जिले से श्यामपुर गांव से 35 किलोमीटर दूर दिल्ली-गाजीपुर बोर्डर पर डटे हुए हैं. सर पर गमछा, हाथ में लाठी, धोती कुर्ता पहने, कमजोर सूखी नाड़ियों के साथ ठीक वही आभास करवा रहे हैं जैसा सरकार और एसी कमरों में बैठे शहरी लोग किसानों में ढूंढने की कोशिश कर रहे हैं.

ओमवीरजी यहां सिर्फ कानूनों में खामियों के चलते नहीं आए, बल्कि उन की यूपी राज्य में किसानों से जुडी कई समस्याए हैं.

ये भी पढ़ें- फिजा बदलने के इंतजार में कश्मीर

वे कहते हैं, “किसान वह कौम है, जिस का अगर घर का छप्पर चू रहा हो फिर भी बारिश की ही कामना करेगा. श्यामपुरा में हमारी सिर्फ 2 एकड़ जमीन है. हमारे गांव में इतने छोटे किसान हैं कि किसी के पास इतनी जमीन भी होना बड़ी बात है. हम अपनी फसल सरकारी मंडी में भी बेचने जाते हैं तो हमें वहां से तरहतरह के बहाने कर के भगा दिया जाता है. कभी कहते हैं कि गोदाम भर गए हैं, तो कभी आजकल आजकल कर के 4-4 दिन तक तैयार फसल को मंडी के बाहर सड़ने छोड़ दिया जाता है. फिर हमें मजबूरी में वहीँ मौजूद बिचौलियों को अपनी फसल सस्ते दाम में बेचना पड़ता है. फिर वही बिचौलियों सरकारी अधिकारियों के साथ सांठगांठ कर उसे सरकारी दामों पर बेच देते हैं.

“यह कालाबाजारी खुले आम होती है. सभी को इस के बारे में पता होता है. यहां तक की सरकार भी इसे जानती है, लेकिन इस पर कार्यावाही करने की जगह कह रही है कि अब हम कालाबाजारी को ही कानूनी कर रहे हैं.”

वे आगे कहते हैं, “यूपी में किसी किसान के लिए बिजली की बड़ी समस्या है. सरकार कहती है कि हम ने गांवगांव तक बिजली पहुंचा दी है, लेकिन यह नहीं बताती कि किस दाम में लोगों को मुहैया करवा रहे हैं. उत्तर प्रदेश में घर के 2 बल्ब और एक पंखा चलाने का बिजली बिल 1500-2000 तक बैठ जाता है. अगर हमारे खेत में साढ़े 7 किलोवाट का ट्यूबवेल का मोटर लगा है तो उस का खर्चा 2400 तक आ जाता है. किसान इतना पैसा कैसे दे पाएंगे?”

ओमवीरजी यहां अपने 7 चौपाली दोस्तों के साथ 27 तारीख को आ गए थे. चौपाल यानी वह जगह जहां गांव के बड़े बुजुर्ग बैठा करते हैं, समय बिताते हैं, जहां वे दीनदुनिया में क्या चल रहा उस पर बातविचार करते हैं, और मजा करते हैं. लेकिन ट्रेक्टर के ऊपर बैठे बुजुर्ग ओमवीर और उन के दोस्तों की मदमस्त हंसने की आवाज यह साफ बता गई कि जगह और समय कोई भी हो, जहां हम यार बैठ जाते हैं, वहां सिक्का हमारा ही चलेगा.
कब वे वहां श्रोता से वक्ता बन गए इस का उन्हें खुद आभास नहीं. वे कहते हैं, “जो हम यहां से से कह रहे हैं वह हमारी पीड़ा है. और यह पीड़ा सब की है, जिसे यहां किसान अपनी आवाज मानते हैं, लेकिन मौजूदा सरकार सुनना नहीं चाहती. हम ने सरकार में मोदी’योगी चुनी है जिन के बाल बच्चन नहीं हैं तो वे क्या जाने कि उन की पढ़ाई कैसी होती है?”

स्वाभिमान के खातिर

3 तारीख को किसानों के नेतृत्व की केंद्र से दुसरे दौर की मीटिंग हुई थी. जाहिर है मीटिंग के दरमियान कुछ तस्वीरें सोशल मीडिया पर काफी वायरल हुई, जिस में किसान नेता सरकारी लजीज खाना ठुकरा कर अपने साथ लाए लंगर का खाना खाते दिखे. यह होना भी अपनेआप में एक ऐतिहासिक मिसाल है. इस कारण नहीं कि ऐसा कर के उन्होंने सरकार को अपने इरादों का स्पष्ट जवाब दिया हो, बल्कि इसलिए कि ऐसा कर उन्होंने अपने लोगों के साथ इमानदार होने का वचन दिया. भारत के लोगों को इस बात से यह समझना चाहिए कि एक लंबे समय के बाद ही आंदोलन का ऐसा चेहरा हमारे सामने उभर कर आया है जहां बात स्वाभिमान की हो, नैतिक-अनैतिक की हो, जहां मसला नाक का हो, और विश्वास का हो.

इस आंदोलन को समझने के लिए जरुरी नहीं कि हम शहरी लोगों के लिए यही मात्र एक उदाहरण है. इस के लिए तो दिल्ली के बोर्डरों में स्थित किसी भी चक्केजाम पर जा कर महसूस किया जा सकता है. वहां एकदुसरे के प्रति सेवाभाव और विश्वास साफ देखी जा सकती है. आन्दोलनकारियों ने धरनास्थलों पर एक व्यवस्था बना ली है. मानों अब वे इस का अभ्यस्त हो चुके हैं.

मंच, खानापीना, रजाईकंबल, स्वास्थ्य जांच के लिए डाक्टर यहां तक कि आंदोलन में शामिल होने की शिफ्ट बन चुकी है, मानो वे एकदुसरे को बहुत करीब से जानतेपहचानते हैं. यह दिखाता है कि वे सिर्फ हंगामा खड़ा करने, या हुल्लड़बाजी के लिए नहीं आए हैं बल्कि कोशिश यही कि मौजूदा हालत बदलें.

किसान समस्या गहरी

बिजनौर जिला, अफजलगढ़ के नजदीक गांव सोह्वाला से 44 वर्षीय जशपाल सिंह, अपने 2 बेटों के साथ इस आंदोलन में शुरू के दिन से ही जुड़े हुए हैं. वे लगभग 200 किलोमीटर से यहां पहुंचे हैं. उन से जब पूछा कि अब तो सरकार ने एमएसपी देने का की मांग पूरी कर दी है तो क्या समस्या है.

जशपाल कहते हैं, “हम धरती का सीना चीरना जानते हैं तो एमएसपी छीनना भी, अभी तो यह किसान विरोधी कानून वापस भी लेने होंगे. लेकिन हम छोटे किसानों के लिए एमएसपी का फायदा तभी होगा, जब यह सब जगह लागू होगा. एफसीआई की मंडी में तो हम पहले भी अपनी फसल बेच नहीं पाते थे. लेकिन अब तो लग रहा है जो बचाकूचा हक भी था वो भी छिन्न रहा है. अब किसान अपनी हकों के लिए अदालत का दरवाजा भी नहीं खटखटा सकता. अब अगर उसे कहे मुताबिक़ दाम व्यापारी से नहीं मिलेगा, तो ज्यादा से ज्यादा वह एसडीएम के पास जा सकता है. और इतना तो सब जानते हैं एसडीएम किस की जेब में रहेगा.”

वे आगे कहते हैं, “यह सरकार बेरोजगारी मुक्त, गरीबी मुक्त, अच्छे दिन वाले भारत की बात करते हुए आई थी, लेकिन इस ने तो गरीबों को ही सरकार से मुक्त कर दिया है. सरकार सत्ता में आते कहती है हम ने किसानों का इतना कर्जा माफ़ कर दिया, इतना फंड दे दिया. मेरा कहना यह कि अगर हमें फसल का उचित दाम मिल जाए तो हमें फंड की जरुरत नहीं. बल्कि उल्टा हम हीं सरकार को फंड कर दे देंगे.”

जशपाल के पास अपनी निजी 2 हेक्टयर यानी, सरल हिसाब यह कि 5 एकड़ जमीन है. पिछले वर्ष उन्होंने अपने खेत में मुंजी बोई थी. जिसे पंजाब, हरियाणा और बाकि राज्यों में धान कहा जाता है. अपनी जमीन में उगाई धान में 120 किलो गेहूं बोई. जिस में बीज का खर्चा 4-5 हजार रूपए बैठा. फिर उस के ऊपर पड़ने वाली खाद, जुताई का कुल खर्च 10,000 रूपए का पड़ा. सिंचाई के लिए 20 लीटर डीजल का खर्चा 1000 रूपए पड़ा. और यह सिंचाई 21 दिन बाद और फिर 15 दिन बाद 3 बार करनी पड़ती है. यह तो शुरूआती है, इस के फसल को बेहतर बनाने के लिए यूरिया, जिंक इत्यादि का खर्चा भी अच्छा खासा बेठ जाता है.

यह सब होने के बाद, कटाई, घाई (दाना निकालना), भूसा छंटवाना कई खर्चे हैं. इस के बाद यह पैदावार मंडी में जा कर इतनी कम कीमत पर बिकती है कि 6 महीने की कमाई में बच्चों को पालना मुश्किल हो जाता है. ऊपर से इन सब खर्चों के लिए जगहजगह से कर्जा लेना पड़ता है. अगर कमाई नहीं होगी तो उस कर्जे को चुका कैसे पाएंगे?” यशपाल यह हिसाब बताते हुए हंसते हैं, और मेरी और देख कर कहते हैं, “यह आप नहीं समझोगे. आप शहरी हो.”

अब यह हकीकत है कि किसान आन्दोलन अपना जोर पकड़ चुका है. आगे आने वाले समय में अगर सरकार यूँही किसानों को टालती रही तो यह आंदोलन और भी ज्यादा जोर पकड़ेगा, जिसे सरकार को संभालना मुश्किल होगा. शहरी तबके भी अब किसानों की समस्या को समझते हुए किसानों को समर्थन दे रहा है. छात्र अपनी जिम्मेदारी समझते हुए किसानों के साथ काँधे से कंधा मिलाते देखे जा सकते हैं. सरकार इस पुरे आन्दोलन के चलते बेकफुट पर दिखाई दे रही है.

सरकार द्वारा किसानों पर तमाम कीचड़ उछालने के बाद उलटी किरकिरी होनी शुरू हो चुकी है. दो बार की बैठकें वैसे ही फ़ैल हो चुकी हैं, और तीसरी वार्ता शनिवार को शुरू हुई. किसानों ने सरकार को आगाह कर दिया है अगर बात नहीं मानी गई तो 8 तारीख को भारत बंद कर दिया जाएगा. जाहिर है, समय बढ़ने के साथ किसानों का हुजूम भी तमाम बोर्डरों पर दिखाई दे रहा है और देगा. टीकरी में कथित तौर पर किसानों का रोड ब्लाक बोर्डर से होते हुए बहादुरगढ़ के रास्ते सांपला गांव तक लंबा हो चूका है, जिस की कुल लंबाई 40 किलोमीटर बताई जा रही है. इस पुरे संघर्ष में किसान जरा सा भी पीछे हटने को तैयार नहीं है. लेकिन इस आंदोलन के अंत में जो परिणाम निकले. अंत में सवाल इस आन्दोलन के ऊपर यही खड़ा होगा कि छोटे दर्जे के किसानों को यह आंदोलन क्या बदलाव दे पाया?

यह कैसा इंसाफ : पूनम और मोहित दोनों को मिली सजा

14 साल की पूनम ने हाईस्कूल की परीक्षा अच्छे नंबरों से पास कर ली थी और आगे की पढ़ाई के लिए उसी स्कूल में 11वीं का फार्म भर दिया था. बोर्ड की परीक्षा पास करने के बाद दूसरे स्कूलों के स्टूडेंट भी पूनम के स्कूल में एडमिशन के लिए आए थे. पूनम की कक्षा में कई नए छात्र थे.

हमारी जिंदगी में रोजाना कई चेहरे आते हैं और बिना कोई असर छोड़े चले जाते हैं. लेकिन जिंदगी के किसी मोड़ पर कोई ऐसा भी आता है, जिस की एक झलक ही दिल की हसरत बढ़ा देती है. कुछ ऐसा ही पूनम के साथ भी हुआ था.

उस की क्लास में मोहित ने भी एडमिशन लिया था. पूनम की उस से दोस्ती हुई तो कुछ ही दिनों में वह उसे दिल दे बैठी थी. फतेहपुर की पूनम और नूरपुर के मोहित दो अलगअलग गांवों में पलेबढ़े थे. लेकिन उन का स्कूल एक ही था और यहीं दोनों ने एकदूसरे से कुछ वादे किए.

ये भी पढ़ें- सोने का पिंजरा : कैसे एक पिंजरे में कैद हो कर रह गई निशी

पहले तो दोनों के बीच कोई बातचीत नहीं होती थी, सिर्फ नजरें मिलने पर मुसकरा कर खुश हो जाया करते थे, लेकिन जल्द ही मोहब्बत के अल्फाजों ने इशारों की जगह ले ली जो एक नया एहसास दिलाने लगे. पहली नजर में किसी को प्यार होता है या सिर्फ चंद दिनों की चाहत होती है, इस का नतीजा निकालना थोड़ा मुश्किल होता है. लेकिन कुछ नजरें ऐसी भी होती हैं जो दिलों में हमेशा के लिए मुकाम बना लेती हैं.

पूनम ने अपने प्यार का पहले इजहार नहीं किया था, क्योंकि वह प्यारमोहब्बत के चक्कर में नहीं पड़ना चाहती थी. लेकिन कभीकभी ऐसा होता है कि जो न चाहो वही होता है. पूनम भी इसी चाहत का शिकार हो गई और मोहित से दिल के बदले दिल का सौदा कर बैठी.

पूनम और मोहित का प्यार भले ही 2 नाबालिगों का प्यार था, लेकिन उन के प्यार में पूरा भरोसा  और यकीन था. उसी प्यार की गहराई में डूब कर पूनम सब कुछ छोड़ कर मोहित का हाथ थामे प्यार में गोते लगाती चली गई.

ये भी पढ़ें- रिश्तों का सच -भाग 1: क्या दोनों के मन की गांठें कभी खुल सकीं

2 प्यार करने वाले भले ही ऊंचनीच, दौलत शोहरत न देखें, लेकिन घर और समाज के लोग यह सब जरूर देखते हैं. इसी ऊंचनीच के फेर में दोनों बुरी तरह फंस कर उलझ गए. पूनम सवर्ण थी तो मोहित दलित परिवार से ताल्लुक रखता था.

पूनम का भरापूरा परिवार जरूर था, जिस में मांबाप और बड़े भाई साथ रहते थे. लेकिन उसे कभी घर वालों का प्यार नहीं मिला. आए दिन छोटीछोटी गलतियों की वजह से उसे मारपीट और गालीगलौज के दौर से गुजरना होता था. ये सब कुछ वह चुपचाप बरदाश्त करती थी.

लेकिन उसे इस बात की खुशी थी कि स्कूल में उसे मोहित का प्यार मिल रहा था. मोहित को देखते ही उस का सारा दुखदर्द छूमंतर हो जाता था. एक दिन उस ने मोहित से अपने साथ की जाने वाली मारपीट की पूरी बात बताई. उस की कहानी सुन कर मोहित द्रवित हो गया. बाद में एक दिन पूनम और मोहित घर से भाग गए.

ये भी पढ़ें- मुक्ति : जिंदगी मिली है तो जीना ही पड़ेगा

जिस समय मोहित और पूनम घर से भागे, उस वक्त दोनों नाबालिग थे. पहले तो दोनों के घर वालों ने भागने की बात को छिपा लिया, लेकिन उसे कब तक छिपाए रखते. कहते हैं कि दीवारों के भी कान होते हैं. देखते ही देखते यह बात पूनम के गांव से होते हुए मोहित के गांव तक जा पहुंची.

अब हर ओर उन्हीं दोनों की चर्चा हो रही थी. कुछ लोग इसे सही ठहरा रहे थे, जबकि कुछ का यह कहना भी था कि मोहित ने ठीक किया. इस से पूनम के घर वाले अब समाज में सिर उठा कर नहीं बोल सकेंगे. बड़ी दबंगई दिखाते थे. बेटी ने नाक कटवा कर सारी दबंगई निकाल दी.

अफवाहों के भले ही पर नहीं होते, लेकिन परिंदों से भी ज्यादा तेजी से उड़ती हैं. आसपास के गांवों में पूनम और मोहित के भागने की खबर फैल गई. आखिर पूनम के घर वालों ने पुलिस थाने में जा कर मोहित के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवा दी. इस के बाद पुलिस उन दोनों को तलाश करने लगी. लेकिन उसे कामयाबी नहीं मिली. पुलिस वालों ने दूसरे जिलों के थानों में भी खबर कर दी थी.

ये भी पढ़ें-स्नेह मृदुल : स्नेहलता और मृदुला के प्यार का क्या निकला अंजाम

काफी दिन बाद पूनम और मोहित दिल्ली पुलिस को मिल गए. दिल्ली पुलिस ने उन की गिरफ्तारी की सूचना संबंधित थाने को दे दी तो उस थाने की पुलिस दोनों को अपने साथ ले गई. क्योंकि पूनम के पिता मोहित के खिलाफ पहले ही पूनम को भगाने और रेप की एफआईआर दर्ज करवा चुके थे.

पुलिस के हत्थे चढ़ने पर पूनम मोहित को ले कर बहुत परेशान थी क्योंकि उसे मालूम था कि उस के घर वाले पुलिस से मिल कर मोहित के साथ क्या करवाएंगे. इस के अलावा उस की जिंदगी भी घर में नरक बन जाएगी. यही सोचसोच कर पूनम रो रही थी क्योंकि उस के बाद जो होना था, उस का उसे अंदाजा था.

मोहित को पुलिस ने हवालात में डाल दिया और पूनम को उस के घर वालों के सुपुर्द कर दिया. जबकि वह उन के साथ नहीं जाना चाहती थी. वह मोहित के साथ ही रहना चाहती थी. लेकिन मजबूर थी. क्योंकि उन लोगों ने मोहित के खिलाफ मामला दर्ज करवा दिया था.

घर पहुंच कर पिता और भाई ने पूनम को जम कर पीटा और उसे धमकाया कि अगर उस ने कोर्ट में मोहित के खिलाफ बयान नहीं दिया तो उसे और मोहित को जान से मार डालेंगे. पूनम घर वालों की धमकियों से बहुत डर गई. लेकिन अपने लिए नहीं, बल्कि मोहित के लिए वह घर वालों के कहे अनुसार बयान देने को राजी हो गई.

घर वालों ने पूनम को दबाव में ला कर कोर्ट में जबरदस्ती बयान दिलवाया कि मोहित उसे जबरदस्ती भगा कर ले गया था और उस ने उस के साथ रेप भी किया था.

पूनम के लिए यह बहुत बुरा दौर था. उसे उसी के पति के खिलाफ झूठी गवाही के लिए मजबूर किया जा रहा था. उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि उसे प्यार करने की इतनी बड़ी सजा क्यों दी जा रही है. एक तरफ पूनम अपने घर में ही रह कर बेगानी थी तो वहीं दूसरी तरफ मोहित पर पुलिस का सितम टूट रहा था.

जब पूनम और मोहित घर से भागे थे, तभी उन्होंने शादी कर ली थी. पुलिस ने जब दोनों को दिल्ली से पकड़ा तब मोहित बालिग हो चुका था, जबकि घर से भागे थे तब दोनों नाबालिग थे. पुलिस ने मोहित को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

पूनम के घर वालों ने पुलिस से सांठगांठ कर के मोहित पर अत्याचार करवा कर अपनी बेइज्जती का बदला तो लिया ही साथ ही अपना प्रभाव भी दिखाया.

पूनम के घर वालों में से कोई भी उस के साथ हमदर्दी तक नहीं दिखा रहा था. इस दुनिया में मां ही ऐसी होती है, जिसे अपने बच्चों से सब से ज्यादा प्यार होता है. लेकिन उस की मां सरिता एकदम पत्थरदिल हो गई थी. उसे अपनी बेटी की जरा भी परवाह नहीं थी.

अगर परवाह थी तो अपने परिवार की इज्जत की, जो पूनम ने सरेबाजार नीलाम कर दी थी. बल्कि सरिता तो उसे ताने देते हुए यही कह रही थी कि अगर उसे प्यार ही करना था तो क्या दलित ही मिला था. क्या बिरादरी में सब लड़के मर गए थे. यही बात सोचसोच कर उस की आंखों में शोले भड़कने लगते थे.

करीब 5 महीने बाद मोहित के केस की सेशन कोर्ट में काररवाई शुरू हुई तो हर सुनवाई से पहले पूनम को उस के घर वाले समझाते कि उसे कोर्ट में क्या बोलना है और क्या नहीं बोलना. बाप और भाई के रूप में राक्षसों के जुल्मोसितम के आगे पूनम ने घुटने टेक दिए थे. उस से जो कहा जाता वही वह अदालत में कहती. ये पूनम की गवाही का ही नतीजा था कि मोहित को हाईकोर्ट से जमानत मिलने में 22 महीने लगे.

मोहित जब जमानत पर जेल से बाहर आया तो किसी तरह पूनम को भी उस की खबर लग गई. वह मोहित को एक नजर देखने के लिए बेकरार हो गई. लेकिन उस के लिए मिलना तो नामुमकिन सा था. पूनम को मोहित के घर वालों का नंबर अच्छी तरह से याद था. एक दिन अकेले कमरे में किसी तरह से मोबाइल ले कर उस ने नंबर डायल कर दिया. दूसरी ओर फोन की घंटी बज रही थी, लेकिन उस से तेज पूनम के दिल की धड़कनें बढ़ चुकी थीं.

वह यही चाह रही थी कि मोहित ही फोन रिसीव करे तो अच्छा रहेगा. आखिर उस की आरजू पूरी हुई और मोहित ने ‘हैलो’ बोला, जिसे सुन कर पूनम सुधबुध खो बैठी. कई बार उधर से हैलो की आवाज से उसे होश आया और रुंधे गले से सिर्फ लरजती आवाज में बोल पाई मोहित. मोहित उस की आवाज को पहचान गया और ‘पूनम पूनम’ कह कर चीख पड़ा.

खैर, उस दिन दोनों के बीच थोड़ी बातचीत हुई. इस के बाद एक बार फिर से पहले की तरह सब कुछ चलने लगा. फोन पर बातें होती रहीं और दोनों ने एक बार फिर पहले की तरह साथ रहने का फैसला कर लिया. तय वक्त पर पूनम और मोहित दोबारा घर से भाग गए और गांव से दूर आर्यसमाज मंदिर में शादी कर ली, जिस का उन्हें प्रमाणपत्र भी मिला. पहले जब उन्होंने शादी की थी, उस समय वे नाबालिग थे.

उन्होंने शादी तो कर ली, लेकिन पूनम के घर वालों ने उसे हमेशा के लिए छोड़ दिया. क्योंकि उस ने दोबारा से उन्हें समाज में मुंह दिखाने के काबिल नहीं छोड़ा था. काफी अरसे तक पूनम ने अपने घर वालों से कोई बातचीत नहीं की, जबकि मोहित के घर वालों ने उन दोनों को अपना लिया था.

पूनम मोहित के घर पर ही रह रही थी. मोहित के पिता की मौत पहले ही हो चुकी थी. अब घर में सास और एक ननद थी. उन के बीच ही वह हंसीखुशी से रह रही थी. पूनम को अब एक खुशी मिलने वाली थी, क्योंकि वह मां बनने वाली थी. उस ने एक खूबसूरत बच्ची को जन्म दिया, जिस से पूरा घर खुश था. अब सब सामान्य था लेकिन उस का एक जख्म भरता नहीं था कि दूसरा बन जाता था.

अभी उस की मासूम बच्ची ने सही तरह से आंखें भी नहीं खोली थीं कि उस के ऊपर मुसीबतों का एक और पहाड़ टूट पड़ा. हुआ यूं कि मोहित पर पहले का जो केस चल रहा था, उस का फैसला आ गया, जिस में सेशन कोर्ट ने मोहित को 7 साल की सजा और 5 हजार रुपए जुरमाने का आदेश दिया.

इस फैसले से पूनम के पैरों तले से जैसे जमीन ही खिसक गई. उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि जब मोहित से उस ने शादी कर ली और वह बालिग भी है, तब क्यों ऐसा फैसला आया. इस से तो हमारा पूरा परिवार ही बिखर जाएगा. उस ने कोर्ट में इंसानियत के नाते मोहित को छोड़ने की गुजारिश की, पर कोई लाभ नहीं मिला.

पूनम को अपनी बेटी पर बड़ा तरस आ रहा था, जिसे बिना किसी कसूर के इतनी बड़ी सजा मिल रही है, जो उसे 7 सालों तक बाप के प्यार से दूर रहना पड़ेगा. इस दुधमुंही की क्या गलती थी, जो इसे हमारे किए की सजा मिलेगी.

मैं एक लड़की से प्यार करता हूं ,जब मैंने शादी का प्रस्ताव रखा तो उस ने मेरा मजाक बनाया, क्या करूं?

सवाल
मैं एक आईटी कंपनी में जौब करता हूं और मेरी सैलरी अच्छीखासी है. वहां पास की एक सौफ्टवेयर कंपनी में काम करने वाली 33 वर्षीया युवती से मेरा अफेयर हो गया. वह बहुत ही सुंदर है, मैं उस की सुंदरता का दीवाना हो गया हूं.

वह आएदिन मुझ से गिफ्ट्स की डिमांड करती थी जिसे मैं खुशीखुशी पूरा कर देता था लेकिन जब मैं ने उस के सामने शादी का प्रस्ताव रखा तो उस ने मेरा यह कह कर मजाक बनाया कि तुझ गंजे से कौन शादी करेगा. यह सुन मुझे बहुत दुख हुआ लेकिन मैं उसे चाह कर भी नहीं भूल पा रहा हूं?

ये भी पढ़ें- मैं इस रिश्ते से खुश नहीं हूं, क्या मेरी जिंदगी ऐसी ही चलेगी कुछ समझ नहीं आ रहा है कि क्या करूं?

जवाब
जो प्यार किसी की सीरत से नहीं बल्कि सूरत देख कर किया जाता है वह प्यार नहीं बल्कि सिर्फ उस से मतलब साधने के लिए ही किया जाता है और आप के साथ भी ऐसा ही हुआ है. आप का पैसा देख कर और यह जानकर कि आप उस से बेइंतहा प्यार करते हैं इसी का उस ने फायदा उठाया है और आप से महंगेमहंगे गिफ्ट्स ऐंठे.

जब शुरुआत में ही गिफ्ट्स मांगने का प्रचलन बढ़ा था तभी आप को सख्ती बरतनी चाहिए थी. आप की ढील का ही नतीजा है कि उस की डिमांड बढ़ी और अब जब उसे लगने लगा है कि आप रिलेशन के प्रति सीरियस हैं तो वह आप को गंजा कह कर बेइज्जत कर रही है. ऐसे में आप इस समय को बुरा वक्त समझ कर भूल जाएं और उस से यह कहना भी न भूलें कि रिश्ता दिल से निभाया जाता है न कि चेहरा देख कर.

ये भी पढ़ें…

शादी से पहले जरूर करवा लें ये 8 टैस्ट

कई फिल्मों में शादी के लिए कुंडली मिलान बहुत जरूरी बताया जाता है और कुंडली न मिलने पर पक्का रिश्ता भी टूट जाता है, लेकिन अधिकतर देखा गया है कि कुंडली मिला कर की गई शादियों में भी तलाक की दर बहुत अधिक है, इसलिए अब लोगों की सोच बदलने लगी है और उन्हें लगता है कि शादी के लिए कुंडली से ज्यादा जरूरी है कि दोनों एकदूसरे के लायक हों और शारीरिक रूप से फिट हों ताकि शादी के बाद किसी तरह की कोईर् परेशानी न आए.

शादी से पहले युवकयुवती को एकदूसरे के बारे में सबकुछ पता हो तो आगे चल कर सिचुएशन हैंडिल करने में काफी आसानी रहती है और दोनों एकदूसरे को उस की कमियों के साथ स्वीकारने की हिम्मत रखते हैं तो ऐसा रिश्ता काफी मजबूत बनता है. इसलिए दूल्हादुलहन शादी से पहले कई तरह के मैडिकल टैस्ट कराने से भी नहीं हिचकिचाते. आइए जानें, ये मैडिकल टैस्ट कौन से हैं और कराने क्यों जरूरी हैं :

एचआईवी टैस्ट

यदि युवक या युवती में से किसी एक को भी एचआईवी संक्रमण हो तो दूसरे की जिंदगी पूरी तरह से बरबाद हो जाती है. इसलिए शादी से पहले यह टैस्ट करवाना बहुत जरूरी है.  इस में आप की सजगता और समझदारी है.

उम्र का परीक्षण

कई बार शादी करने में काफी देर हो जाती है और उम्र अधिक होने के कारण युवतियों में अंडाणु बनने कम हो जाते हैं तथा बच्चे होने में परेशानी आ सकती है. इसलिए यदि बढ़ती उम्र में शादी कर रहे हैं तो टैस्ट जरूर कराएं.

प्रजनन क्षमता की जांच जरूरी

जिन कपल्स को शादी के बाद बच्चे पैदा करने में समस्या आती है, उन्हें प्रजनन क्षमता का टैस्ट जरूर कराना चाहिए ताकि पता चल सके कि कमी युवक में है या युवती में. वैसे तो यह टैस्ट शादी से पहले ही होना चाहिए, जिस से पता चल सके कि वे दोनों संतान पैदा करने योग्य हैं भी या नहीं.

ओवरी टैस्ट

इस टैस्ट को युवतियां कराती हैं ताकि पता चल सके कि उन्हें मां बनने में कोई मुश्किल तो नहीं है. कई युवतियां इस टैस्ट को कराने में हिचकिचाती हैं कि यदि कोईर् कमी पाई गई तो उन का रिश्ता होना मुश्किल हो जाएगा, जबकि ऐसा नहीं है. आज तो मैडिकल साइंस में हर चीज का इलाज है. अच्छा तो यह है कि समय रहते आप को प्रौब्लम के बारे में पता चल जाएगा. यदि टैस्ट सही आया तो आप को वैवाहिक जीवन में कोई तकलीफ नहीं होगी.

सीमन टैस्ट

इस टैस्ट में युवकों के वीर्य की जांच होती है कि वह बच्चा पैदा करने के लिए पूरी तरह से सक्षम है या नहीं और अगर कोई प्रौब्लम है तो उस का इलाज करवा कर पूरी तरह स्वस्थ हुआ जा सकता है. यह टैस्ट इसलिए करवाया जाता है ताकि पहले ही परेशानी के बारे में पता चल जाए और उसी के हिसाब से इलाज करवा कर बंदा शादी के लिए पूरी तरह से परफैक्ट हो जाए.

यौन परीक्षण

कुछ बीमारियां संक्रमित होती हैं, जो शारीरिक संपर्क के दौरान बढ़ती हैं. इन बीमारियों को सैक्सुअली ट्रांसमिटेड बीमारियां कहा जाता है और ये संभोग के बाद पार्टनर को भी बड़ी आसानी से लग जाती हैं. इसलिए ऐसी किसी भी बीमारी से बचने के लिए शादी से पहले ही यह जांच करवा लें ताकि भविष्य में किसी गंभीर बीमारी से पार्टनर और आप दोनों ही बच सकें.

ब्लड टैस्ट

ब्लड टैस्ट कराने से पता चल जाता है कि कहीं ब्लड में कोई ऐसी प्रौब्लम तो नहीं है, जिस का सीधा असर होने वाले बच्चे पर पड़ेगा. हीमोफीलिया या थैलेसीमिया ऐसे खतरनाक रोगों में से एक हैं जिन में बच्चा पैदा होते ही मर जाता है. इस में दोनों के ब्लड की जांच कराना आवश्यक है जिस से आर एच फैक्टर की सकारात्मकता व नकारात्मकता का पता चल सके. यह टैस्ट शादी से पहले कराना अतिआवश्यक है.

जैनेटिक टैस्ट

इस तरह के टैस्ट को परिवार की मैडिकल हिस्ट्री भी कहा जाता है. इस से जीन के विषय में पता चल जाता है कि आप को जैनेटिक डिजीज है भी या नहीं. इस टैस्ट से आनुवंशिक बीमारियों के बारे में भी पता चल जाता है जो पार्टनर को कभी भी हो सकती हैं.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem 

लोबिया की करी ऐसे बनाएं

लोबिया को सेहत के लिए हमेशा से फायदेमंद बताया गया है. लोबिया खाने से आप  खुद को कई तरह की खतरनाक बीमारियों से दूर रखते हैं. ता आइए आपको बताते है लोबिया से छोले बनाने कि विधि

समाग्री

लबिया

नमक

बड़ी इलायची

प्याज

टमाटर

अदरक

हरी मिर्च

घी

धनिया पाउडर

लाल मिर्च

गरम मसाला

ये भी पढ़ें- लौकी पोस्तो की सब्जी

विधि

सबसे पहले लोबिया को बिनकर धो ले और रातभर पानी में भिंगोकर रख दें. अब अगले दिन लोबिया को कुकर में डालकर एक सीटी मारवा लें. लोबिया के साथ कुकर में डालकर उबालें. लोबिया एक सिटी में आराम से गल जाता है.

प्याज और अदरक का हिस्सा निकालकर धूल लें साथ ही हरी मिर्च का डंटल निकालकर पिस लें. टमाटर को काट कर चार टुकड़े में पीस लें.

ये भी पढ़ें- बिस्कुट केक को बनाते समय इन बातों का रखें ध्यान

एक कड़ाही में तेल घी गर्म करें उसमें जीरा डालें साथ ही उसमें हरी मिर्च भी डालकर अच्छे से लाल होने तक भूनें. अब इसमें गर्म मसाला , धनिया पाउडर , लाल मिर्च पाउडर बाकी सभी पाउडरों को मिक्स करके भूनें.

ये भी पढ़ें- बच्चों के लिए इस तरह बनाएं सूखी मूंग दाल , सेहत के लिए भी है फायदेमंद

सभी मसाले को अच्छे से मिलाकर भूनने के बाद से उसमें लोबिया को डालें, लोबिया को डालने के बाद अच्छे से मिक्स करके कुछ दर तक उसे भूनें. फिक पानी डालकर उसे उबाल अच्छे से कुछ देर तक चलाएंच जब पानी कुछ जल जा तो गैस को ऑफ करके उसे धनिया पत्ता के साथ सर्व करें.

 

गरम हवा के ठंडे झोंके

गरम हवा के ठंडे झोंके -भाग 3: किस मुहाने पर थी अशरफ की जिंदगी

एक खूनखराबा हिंदुस्तान के बंटवारे के वक्त हुआ था जिस की कड़वाहट आज तक नासूर बन दोनों कौमों के दिलों में पल रही है. क्या अशरफ फिर उस इतिहास को दोहराने का सबब बनेगा? नहीं, मैं ऐसा नहीं होने दूंगा. कभी भी ऐसा नहीं होने दूंगा.

माणिकचंद ने सगीर के सामने दोनों हाथ जोड़ दिए, ‘‘मुझे एक बार अशरफ से मिलने दो, जिंदगीभर तुम्हारा एहसानमंद रहूंगा.’’

पूरी रात करवट बदलते कटी. सुबहसुबह सगीर के गांव जाने के लिए माणिकचंद स्कूटर निकालने लगे. तभी एक औटोरिक्शा गेट के सामने रुका. 80 वर्षीय उन के दारजी के साथ चाईजी उतरती दिखाई दीं. माणिकचंद ने पैर छू कर उन का सामान उठा लिया.

नाश्ते के बाद उन्हें बाहर जाते देख कर चाईजी ने आवाज लगाई, ‘‘पुत्तर, हम सिर्फ 2 दिनों के लिए ही आए हैं. अमृतसर की प्रौपर्टी के बंटवारे के लिए मशवरा करना है.’’ न चाहते हुए भी माणिकचंद को उन्हें अशरफ के बारे में बतलाना पड़ा. दारजी का सवाल उन की आंखों में टंग गया, ‘‘तो क्या तुम मुसलमान लड़के को अपने घर में पनाह देना चाहते हो?’’ माणिकचंद की चुप्पी उन की मौनस्वीकृति थी.

‘‘यह जानते हुए भी कि दंगे की वजह से यहां कर्फ्यू लगा. कितने हिंदूमुसलमानों को जान से हाथ धोना पड़ा. पूरा शहर मजहबी लड़ाई में बारूदी पहाड़ के मुहाने पर बैठा सियासी पलीते का इंतजार कर रहा है. ऐसे में दोनों को अपने घर में रखना सुलगती लपटों में जानबूझ कर अपने हाथ होम करना होगा. लड़की के मातापिता ने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करा दी होगी. पुलिस सूंघते हुए तुम्हारे घर आ पहुंचेगी. अशरफ के बहनोई ने उन्हें घर में घुसने नहीं दिया, तो तुम्हें क्या जरूरत है ओखली में सिर देने की. दफा करो मामला.’’

‘‘यह आप क्या कह रहे हैं दारजी? भूल गए बंटवारे के वक्त आप ने अपने पड़ोसी मेराज साहब के परिवार को 2 महीने तक पड़ोसी हिंदुओं की नजरों से छिपा कर रखा था. तब आप ने ही तो दादाजी को दलील दी थी कि खूनी रिश्तों से ज्यादा ऊंचा होता है इंसानियत का रिश्ता. मैं तो सिर्फ उस रिश्ते की कमजोर होती जड़ों में खादपानी डालने का काम कर रहा हूं. मुझे ताज्जुब ही नहीं, सख्त अफसोस हो रहा है कि आप की सोच इतनी तंग और कुंठित कैसे हो गई है?’’

‘‘नहीं, मेरी सोच नहीं बदली. लेकिन पिछले 65 सालों के हादसों ने नजरिया बदलने के लिए मजबूर कर दिया है.’’

‘‘वह क्यों दारजी?’’ माणिकचंद ने जानना चाहा.

‘‘पुत्तर, उस वक्त के मुसलमान नेक, वफादार और ईमान वाले थे. हिंदुओं को भाई समझते थे. उन के दिलों में वतन के लिए मोहब्बत और कुरबानी का जज्बा था. तुम्हें दादाजी ने बताया नहीं कि मेराज साहब का परिवार किसी भी कीमत पर हिंदुस्तान की मिट्टी से जुदा नहीं होना चाहता था. लेकिन सियासी करार ने उन्हें पराई मिट्टी में रहने के लिए मजबूर कर दिया. आज हिंदुस्तान के गुमराह मुसलमान सियासी हुक्मरानों की तुरुप चाल में फंस कर मुल्क के साथ गद्दारी करने से गुरेज नहीं करते. उन की हरकतों की वजह से आज उन्हें शक की नजर से देखा जाता है. लोगों का भरोसा उठ गया है इस कौम पर से.’’

‘‘नहीं दारजी, आप का सच, आधा सच है. पूरा सच यह है कि मुसलमान बरसों से अपने मजहबी रहनुमाओं द्वारा गुमराह किया जा रहा है. तालीम की कमी के चलते यह कौम तरक्कीपसंद समाज से काफी पिछड़ गई है. बड़े परिवार, सीमित आय ने उन की खुशहाली पर ग्रहण लगा दिया है. बदहाली इतनी है कि मुसलमान आज कुआं खोदता है तो पानी पीता है. ऐसे में भटके मुसलमान पैसों के लालच में जिहाद के नाम पर बाहरी लोगों की कठपुतलियां बन जाते हैं. सरकारी सहूलियतों के नाम पर उन्हें सिर्फ छला जाता है. राजनीतिक दल कुरसी के लिए हिंदूमुसलिम दंगों को हवा देते हैं.

‘‘लेकिन पढ़ालिखा मुसलमान आज भी अपनी वतनपरस्ती की मिसाल कायम कर रहा है. चंद लोगों की नासमझी की वजह से हम पूरी कौम को कठघरे में खड़ा नहीं कर सकते.’’

माणिकचंद की अर्थपूर्ण व तर्कपूर्ण बातों ने अपर्णा का हौसला बढ़ाया. उस ने पहली बार ससुर के सामने मुंह खोला, ‘‘पापाजी, याद है जब आप अल्सर के दर्द से छटपटा रहे थे तो इसी मुसलमान लड़के ने आप को गोद में उठा कर अस्पताल की तीसरी मंजिल पर पहुंचाया था. अस्पताल की बिजली गुल हो गई थी. अशरफ ने एक महीने तक आप की सेवा में दिनरात एक कर दिए थे. तब आप को उस की वफादारी पर शक क्यों नहीं हुआ. आप का उस से कोई खूनी रिश्ता नहीं था, आप उस के किसी काम नहीं आ सकते थे. फिर भी उस ने क्यों तीमारदारी की. उस ने ये सब इसलिए किया क्योंकि वह एक अच्छा इंसान है.’’

कड़वी सचाई ने दारजी को कुछ लमहों के लिए तो चुप करा दिया, लेकिन सांप्रदायिकता का काला सांप कुंडली मार कर बैठा था उन के जेहन में, बोल पड़े, ‘‘एक नौजवान भावुकता में बह कर किसी बुजुर्ग की सेवा कर देता है तो क्या उसे पूरी कौम का प्रतिनिधि समझ लिया जाए? मुसलमान हमारे साथ रहते जरूर हैं लेकिन अपने रहनसहन, खानपान और संस्कृति के कारण वे हम से बिलकुल भिन्न हैं. इसलिए इन के साथ मेलजोल तो रखा जा सकता है लेकिन इन के साथ रहा नहीं जा सकता है.’’

‘‘दारजी, यों तो 2 भाई भी इकट्ठे नहीं रह सकते, लेकिन जहां दिल मिलते हों वहां हर अलगाव में भी एकता दिखाई पड़ती है,’’ माणिकचंद हार मानने के मूड में नहीं थे.

‘‘ये सब कोरी, किताबी बातें हैं. तुम नहीं जानते, आज दोनों कौमों के बीच कितनी नफरत की आग धधक रही है. ऐसे में तुम्हारा अशरफ की मदद करना तुम्हारे परिवार पर भारी पड़ जाएगा,’’ कह कर दारजी हांफने लगे थे.

‘‘दारजी, अशरफ इस वक्त बिलकुल अकेला पड़ गया है. वह ड्यूटी पर जा नहीं रहा है, तो पैसों से भी मजबूर हो गया होगा. गांव में रह रहा है, साथ में पत्नी है. पता नहीं किनकिन परेशानियों को झेल रहा होगा. उस को हमारी मदद की जरूरत है,’’ माणिकचंद की पत्नी अपर्णा नम्रता से बोली.

‘‘जो जी में आए करो बहू. लेकिन कहे देती हूं, अगर दंगाइयों ने हमला बोल दिया तो अशरफ सीना तान कर तुम लोगों को बचाने के बजाय पीछे के दरवाजे से खिसक जाएगा. जो कौम अपने मुल्क की नहीं हुई, वह तुम्हारी क्या होगी,’’ इस बार चाई जी ने सीधे दिल पर चोट की.

‘‘बस, बस. आप लोग मेरे और अशरफ के बीच पनपी मोहब्बत व वफादारी की मजबूत जड़ों को हिलाने की कोशिश न कीजिए. मुझे मानवता से भरे इंसान के खिलाफ बरगलाएं नहीं,’’ माणिकचंद ने साफ कहा.

‘‘मैं तुम्हें आने वाले तूफान से आगाह कर रहा हूं,’’ दारजी भी हार मानने को तैयार नहीं थे.

‘‘दारजी, मैं अशरफ जैसे दोस्त के लिए समाजी, सियासी, मजहबी हर अत्याचार सहने के लिए तैयार हूं. मैं जातीयता की संकरी दीवार को तोड़ कर हिंदूमुसलमानों के बीच आपसी सौहार्द का एक मजबूत पुल बनाना चाहता हूं.’’ माणिकचंद ने एक झटके से किक मारी और स्कूटर सगीर के गांव की तरफ मुड़ गया.

दारजी सफेद पलकों से बेटे की पीठ पर नजरें जमाए उस के हौसले और हिम्मत की दाद देते हुए 65 साल पहले की टीस की चुभन को शिद्दत से महसूस कर तड़प गए. काश, मेराज साहब की बेटी शम्सून से किए गए साथ जीनेमरने के वादे को पूरा करने के लिए वे भी बेटे की तरह अड़ कर खड़े हो जाते तो मेराज परिवार को पाकिस्तान जाने के लिए दुनिया की कोई भी ताकत मजबूर नहीं कर सकती थी. उन की हवेली में आदमियों के स्वर गूंज उठते, न कि धर्म के अंधविश्वासियों के नारे. मुल्क के बंटवारे की गरम हवा मोहब्बत के प्यारे मुकाम को छू कर ठंडी हवा के झोंकों में तबदील हो जाती.

 

गरम हवा के ठंडे झोंके -भाग 2: किस मुहाने पर थी अशरफ की जिंदगी

‘‘मेरे घर में तो वह अब कदम भी नहीं रख सकता.’’

‘‘क्यों, ऐसा क्या कर दिया उस ने? क्या गुनाह हो गया उस से?’’

‘‘गुनाह की तो सजा होती है माणिकचंद, लेकिन उस की हरकत ने मेरे पूरे खानदान को समाज से बाहर कर देने की वजह बना दी है.’’

‘‘आखिर क्या किया है अशरफ ने, साफसाफ बताइए न मंजूर साहब,’’ माणिकचंद चिंतित हो गए.

‘‘आप के अशरफ ने शादी कर ली है.’’

‘‘दैट्स गुड.’’ बांछें खिल गईं माणिकचंद परिवार की. ‘‘कब? कहां? किस से?’’ माणिकचंद ने जानना चाहा.

‘‘उस नालायक ने एक महीने पहले नासिक में गैरकौम की लड़की से शादी कर के हमारे मुंह पर कालिख पोत दी है.’’ मंजूर के ये चुभते शब्द सुन कर अशरफ की बहन के चेहरे पर उदासी के बादल घिर गए.

‘‘लड़की किस धर्म की है?’’ माणिकचंद बोले.

मंजूर ने बीवी की तरफ देखा, ‘बतलाएं कि नहीं? लेकिन बतलाना तो पड़ेगा ही.’ बीवी की आंखों में अपील थी. ‘‘लड़की हिंदू है,’’ मंजूर के शब्द धमाके की तरह गूंजे.

कड़ाके की सर्दी में भी माणिकचंद के माथे पर पसीना चुहचुहा गया. बड़ी मुश्किल से खुद को संभाल कर होंठों पर जबान फेर कर बोले, ‘‘कहां की है लड़की?’’

‘‘नासिक की है. निकाह कर के घर पर ले कर आया तो इन्होंने उसे घर में घुसने नहीं दिया क्योंकि इन की भांजी के साथ अशरफ की बात पक्की हो गई थी. इन्होंने कह दिया कि हिंदूमुसलिम फसाद की वजह से पहले ही शहर की हवा गरम है. तुम हिंदू लड़की को ले कर हमारे घर में रहोगे, तो हिंदू हमारा घर फूंक देंगे,’’ कहती हुई अशरफ की बहन हिचकियां ले कर रो पड़ी.

‘‘हांहां, मैं ने उसे घर से निकाल दिया. मेरी 2-2 जवान बेटियां हैं. कब तक हिंदू लड़की को छिपा कर रखते. मुसलमान हमें जाति से बाहर कर देंगे और हिंदू हमें जिंदा जला देंगे,’’ मंजूर की दहाड़ सुन कर माणिकचंद के घर की दीवारें भी दहल गईं.

‘‘बड़ी आस ले कर सहारा मांगने आया था मेरा भाई, लेकिन इन्होंने उसे घर में घुसने ही नहीं दिया,’’ अशरफ की बहन की दर्दीली आवाज ने माणिकचंद की रगों का खून जमा दिया. अपनी मुखालफत सुन कर मंजूर ने बीवी को कच्चा खा जाने वाली नजरों से घूरा.

माणिकचंद के घर में मौत का सा सन्नाटा पसर गया. अपर्णा गहरी चिंता में बैठी, फर्श पर बिछे कालीन को एकटक देख रही थी.

‘‘अपनी बीवी को ले कर कहां गया होगा अशरफ,’’ होंठों में ही बुदबुदाए माणिकचंद.

‘‘वो मर जाए, हमारी बला से. हमें उस से कोई मतलब नहीं है. उस नालायक ने न तो हमारी इज्जत का खयाल रखा, न ही मुझे अपनी बहन के सामने मुंह दिखाने के काबिल छोड़ा. अगर मुझे अपने बच्चों की फिक्र न होती तो इन भाईबहनों को जान से मार डालता. इस दुष्ट खानदान ने पूरी कौम के लिए हिंदुओं के दिलों में नफरत की आग फैला दी है,’’ पत्नी की ओर देख कर मंजूर फिर भड़के. माणिकचंद खामोश थे.

‘‘मैं ने क्या किया है भला? मुझे तो पता भी नहीं था,’’ अशरफ की बहन घिघियाई.

‘‘खामोश रहो. ज्यादा नाटक करने की जरूरत नहीं. माणिकचंद, यह औरत इस साजिश में शामिल है. ये मेरी बहन से चिढ़ती है, इसलिए अपने भाई की शादी गुपचुप तरीके से होने दी. ये अच्छी तरह जानती है कि इस उम्र में मैं इसे तलाक नहीं दे सकता.’’ मंजूर की अपनी पत्नी को दी जा रही यह धमकी सुन कर माणिकचंद सन्न रह गए.

इतना बेदर्द फैसला. क्या खूनी रिश्ते इतने निष्ठुर होते हैं कि कुटुंब के किसी व्यक्ति के निजी फैसले से नाखुश हो कर उस को दंडित करने के लिए उस के पूरे परिवार से ही रिश्ता तोड़ दें. क्या परिवार के आश्रित लोगों के जज्बात और एहसास की कोई कीमत नहीं. क्या 21वीं सदी में भी नौजवान पीढ़ी अपने बुजुर्गों की उंगली पकड़ कर ही चलती रहेगी. मजहब और कौम के नाम पर वह अपनी मोहब्बतों को कुरबान करती रहेगी. क्या उसे अपने तरीके से जीने और खुशियां हासिल करने का हक नहीं है.

कर्फ्यू लगने का वक्त हो रहा था, इसलिए मंजूर ने स्कूटर स्टार्ट कर दिया, अशरफ की बहन चुपचाप सिर झुकाए पीछे की सीट पर बैठ गई.

वह रात माणिकचंद के लिए कत्ल की रात थी. अपनी तमन्नाओं को खुशियों में तबदील करने की कोशिश अशरफ को घर से निकल कर फुटपाथ पर खड़ा कर देगी, इस तूफान का इल्म नहीं था उन्हें. न जाने कहां, किस हाल में होगा अशरफ? मेरे घर क्यों नहीं आया, क्या मुझ पर एतबार नहीं था उसे? हजारों सवाल दिलोदिमाग में बवंडर उठाते रहे.

पूरा शहर दंगे की आग में धूधू कर रहा था, उस पर मुसलमान लड़के का हिंदू लड़की से शादी करना, जले में नमक छिड़कने की तरह होगा. सियासी पार्टियां मजहब के तवे पर अपने स्वार्थ की रोटियां सेकेंगी और चूल्हे की लकडि़यों की तरह धूधू कर जलेंगे बेकुसूर लोगों के मासूम ख्वाब. कट्टरपंथी और फिरकापरस्त चिंगारी को हवा दे कर अशरफ का चमन खिलने से पहले ही जला कर खाक कर देंगे. हमेशा हंसते रहने वाला अशरफ जिंदगी की अंधेरी खोहों में गुमनामी की जिंदगी जीने के लिए मजबूर हो जाएगा.

माणिकचंद जिंदगी की कंटीली झाडि़यों से गुजरे हुए, जख्म खाए, तजरबेकार व्यक्ति थे. नाजुक दौर के इस संवेदशील मसले पर सोचते हुए पूरी रात कट गई.

यह नौजवान पीढ़ी तो भावनाओं को अहमियत देती है. इस पीढ़ी के युवा इंसान की कद्र और पहचान उस की जबान, कौम, मजहब से नहीं, बल्कि उस के किरदार से करते हैं. ये तो दिल के सौदागर हैं. जिस से दिल मिल जाए, उस के लिए जान निछावर. लेकिन बुजुर्गों की तंग और अडि़यल सोच कभी खानदान की इज्जत के नाम पर तो कभी भाईबहनों के भविष्य के नाम पर उन को मानसिक चोटें देने से बाज नहीं आती.

कर्फ्यू 3 दिनों बाद खुला. माणिकचंद ने अशरफ के औफिस जा कर पूछा, लेकिन वहां से भी कोई सूचना नहीं मिली. कहीं अशरफ अपनी पत्नी के साथ वापस नासिक तो नहीं चला गया, अपनों के दिल से निकाले गए लोगों के पास भटकने के सिवा और क्या रास्ता होता है.

माणिकचंद और अपर्णा चिंता व बेचैनी के अंधेरे में भटक रहे थे कि रोशनी की किरण की तरह अशरफ का एक पुराना दोस्त सगीर, जो शहर से 50 किलोमीटर दूर रहता है, बाजार में मिल गया. पहले तो उस ने इनकार किया, लेकिन माणिकचंद ने अपर्णा के बीमार हो जाने की वजह बताई तो वह कुछ पसीजा, ‘‘अशरफ अपनी पत्नी के साथ हमारा मेहमान है.’’ यह सुन कर वे खुश हुए लेकिन उन की खुशी तब काफूर हो गई जब उस ने यह बताया कि वह अपने मातापिता, बीवीबच्चों के साथ 2 कमरों के कच्चे मकान में रहता है. जहां टाटपट्टी के घेरे में ईंटों के फर्श पर बैठ कर नहाया जाता है. और सुबह मुंहअंधेरे टौयलेट के लिए खेतों में जाया जाता है. हिंदुओं की उस बस्ती में 8-10 घर मुसलमानों के हैं. अगर किसी को कानोंकान भी खबर हो जाती कि मुसलमानों ने हिंदू लड़की को छिपा कर रखा है तो मुसलमान टोला लाशों का ढेर बन जाता है. गरीब मुसलमान दोस्त के परिवार ने टिकुली लगाने और एडि़यों को महावर से सजाने वाली बहू को कैसे बुरके में छिपाया होगा, यह सोच कर माणिकचंद सहम गए.

दिसंबर महीने के जरूरी काम

सर्दी वाले गन्ने में अगर पिछले महीने सिंचाई नहीं की है, तो सिंचाई जरूर करें. गन्ने के साथ तोरिया, राई वगैरह की बोआई की है, तो निराईगुड़ाई कर लें. दिसंबर महीने में गन्ने की तकरीबन सभी किस्में कटाई के लिए तैयार हो जाती हैं. चीनी मिल की मांग के अनुसार कटाई का काम शुरू करें. अभी अगर गेहूं की बोआई नहीं की है, तो 15 दिसंबर तक पूरी कर लें. इस समय बोआई के लिए ज्यादा पैदावार देने वाली पछेती किस्मों का चुनाव करें. बीज की मात्रा 125 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर इस्तेमाल करें. अगर गेहूं की बोआई किए हुए 20-25 दिन हो चुके हैं, तो पहली सिंचाई कर दें. फसल के साथ उगे खरपतवारों को खत्म करें.

जौ की बोआई नहीं की गई है, तो फौरन बोआई करें. पिछले महीने बोई गई फसल 30-35 दिन की हो गई हो, तो सिंचाई जरूर करें. सरसों की फसल में खरपतवारों को न पनपने दें. सरसों की फसल में जरूरत से ज्यादा पौधे उग आए हों, तो उन्हें उखाड़ कर पशुओं के लिए चारे के तौर पर इस्तेमाल करें. फसल पर कीटबीमारी का हमला दिखाई दे, तो फौरन जरूरी व कारगर दवाओं का छिड़काव करें. मटर की फसल में फूल आने से पहले हलकी सिंचाई करें. मटर के तना छेदक कीट की रोकथाम के लिए डाइमिथोएट 30ईसी दवा की 1 लीटर मात्रा व फलीछेदक कीट की रोकथाम के लिए मोनोक्रोटोफास 36 ईसी की 750 मिलीलीटर मात्रा 800 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करें. रतुआ बीमारी को काबू में करने के लिए मैंकोजेब दवा की 2 किलोग्राम मात्रा 800 सौ लीटर पानी में घोल कर खड़ी फसल पर छिड़काव करें. मसूर की बोआई इस महीने में भी कर सकते हैं. लिहाजा ज्यादा पैदावार देने वाली किस्मों को बोआई के लिए चुनें.

ये भी पढ़ें- प्याज बीज उत्पादन की वैज्ञानिक विधि

इस महीने मिर्च की फसल पर डाईबैक बीमारी का अकसर हमला देखा जाता है. इस की रोकथाम के लिए डाइथेन एम 45 या डाइकोफाल 18 ईसी दवा का छिड़काव करें. अगर प्याज की पौध तैयार हो गई हो, तो इस महीने के आखिरी हफ्ते में रोपाई का काम पूरा कर लें. आलू की फसल में जरूरत के मुताबिक सिंचाई करें. बीमारियों से बचाव के लिए मैंकोजेब दवा का छिड़काव करें. अगर आसमान में बादल छाए हैं और नमी है, तो सायमोक्जेनिल 8 फीसदी व मैंकोजेब 64 फीसदी को मिला कर छिड़काव करें. आम के बागों की साफसफाई करें. 10 साल या इस से ज्यादा उम्र के पेड़ों में प्रति पेड़ 750 ग्राम फास्फोरस, 1 किलोग्राम पोटाश थालों में दें. इस के साथ ही नए लगाए गए छोटे पौधों को पाले से बचाने का इंतजाम भी करना चाहिए.

ये भी पढ़ें- कपास को कीड़ों से बचाएं

मिलीबग कीट की रोकथाम के लिए तने के चारों तरफ 2 फुट की ऊंचाई पर 4 सौ गेज वाली 30 सेंटीमीटर पौलीथिन की पट्टी बांधें. इस पट्टी के नीचे की तरफ वाले किनारे पर ग्रीस का लेप कर दें.  अगर मिलीबग कीट तने पर दिखाई दे, तो पेड़ के थालों की मिट्टी में क्लोरोपाइरीफास पाउडर की 250 ग्राम मात्रा प्रति पेड़ के हिसाब से छिड़कें. नए लगाए बागों के छोटे पेड़ों को पाले से बचाने के लिए फूस के छप्पर का इंतजाम करें व सिंचाई करें. इस आखिरी महीने की ठंड पशुओं के लिए काफी जोखिमभरी होती है. लिहाजा पशुओं को कमरों में बंद कर के रखें और रोशनी का उचित प्रबंध करें. इस ठंड का असर मुरगीपालन के कारोबार पर भी पड़ता है. ठंड से मुरगियों को बचाने का भी उचित प्रबंध करना बहुत जरूरी होता है.

ये भी पढ़ें- सूरजमुखी की उन्नत खेती

पहाड़ी इलाकों में आलू के खेत में निराईगुड़ाई करें. नाइट्रोजन की बाकी बची एक तिहाई मात्रा यूरिया या कैल्शियम अमोनियम नाइट्रेट के रूप में खेत में डाल कर मोटी मेंड़ बना कर मिट्टी चढ़ाएं. नारियल की खेती में बलुई व दोमट मिट्टी में टीले बनाएं और खेत की जुताई करें. नारियल की जड़ के आसपास की मिट्टी को नारियल के छिलकों से ढक दें ताकि नमी बनी रहे.

जी रिश्ते अवॉर्ड्स 2020: सुशांत सिंह राजपूत को यादकर इमोशनल हुई अंकिता लोखंडे और ऊषा नाडकर्णी

अंकिता लोखंडे इन दिनों सोशल मीडिया पर डांस रिहर्लस की पोस्ट डालती रहती हैं. इस पोस्ट को दखने के बाद आपके मन में भी यह सवाल उठता होगा कि आखिर यह पोस्ट किस लिए अंकिता इन दिनों शेयर कर रही हैं.

बता दें कि अंकिता लोखंडे यह पोस्ट जी रिश्ते अवार्ड 2020 की तैयारी करत हुए डाल रही हैं. जी रिश्ते अवार्ड में अंकिता लोखंडे स्पेशल पर्फॉर्मेश देने वाली है जिसमें वह सुशांत सिंह राजूपत को ट्रीब्यूट करती देती नजर आएंगी.

ये भी पढ़ें- बिग बॉस 14: राहुल वैद्या कि गर्लफ्रेंड दिशा परमार ने दिया रुबीना दिलाइक को करारा जवाब, कह दी ये बात

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Ankita Lokhande (@lokhandeankita)

रिहर्सल के दौरान बीच- बीच मं अंकिता लोखंडे काफी इमोशनल हो जाती हैं. जिसके बाद बीच- बीच में अंकिता लोखंड़े ब्रेक लेकर काम करती हैं. इसी बीच अंकिता से मिलने पहुंची सुशांत सिंह राजपूत की ऑनस्क्रीन मां ऊषा नाडकर्णी .

ये भी पढ़ें- आदित्य सील ने इंटरव्यू में कहा ‘डेटिंग एप्स का संसार मेरी समझ से परे है’

सीरियल पवित्र रिश्ता में वह सुशांत की मां का किरदार निभाया करती थीं. सुशांत की ऑनस्क्रीन मां अंकिता लोखंडे से मिलने के बाद काफी ज्यादा इमोशनल हो गई.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Ankita Lokhande (@lokhandeankita)

सीरियल पवित्र रिश्ता खत्म होने के बाद इन दोनों ने कभी एक –दूसरे से मुलाकात नहीं किया था. दोनों ने अपने पुराने दिन और पुरानी बातों को याद करके रोने लगी. उषा की बातों से लग रहा था कि वह सुशांत को बहुत ज्यादा मिस करती हैं.

ये भी पढ़ें- मुख्यमंत्री योगी आदित्यानाथ और अक्षय कुमार की खास मुलाकात, फिल्म

अंकिता लोखंडे के साथ वहां उनकी मां वंदना लोखंडे भी मौजूद थी. उषा सुशांत के साथ बहुत ज्यादा घूल मिल गए थें. दोनों साथ मं काफी ज्यादा वक्त बीताते थें.

उषा के आंखों से आंसू छलक गए पुरानी यादों को ताजा करते हुए. दोनों ने बहुत ज्यादा समय एक-दूसरे के साथ बिताया था.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें