लेखिका-वंदना वाजपेयी
हमारे साथ जब कोई बुरा व्यवहार करता है, धोखा देता है या इमोशनल ब्लैकमेल करता है तो चोट खाए एक बच्चे की तरह हमारा मन विलाप करने लगता है.
कई बार हम चाहते हैं कि उसे भी वैसा ही दंड मिले, तो कई बार हम जानते हैं कि परिस्थिति और पोजीशन के कारण उसे वैसा दंड नहीं मिल सकता और मन उसे माफ करने को बिलकुल तैयार नहीं होता.
माफ करो और आगे बढ़ो
अकसर जब कोई हमारे साथ बुरा करता है तो हमारे आसपास के लोग हम से यही कहते हैं. कई बार कहा जाता है कि तुम अपने लिए माफ करो, क्योंकि तुम माफ नहीं करोगे तो उस घटना को भूल नहीं पाओगे.
ये भी पढ़ें- छोटा घर: बाहर जाने के अवसर कम, पति पत्नी के बीच कलह
हमारा भुक्तभोगी से जितना गहरा रिश्ता होता है, हम जितनी जल्दी उस को खुश देखना चाहते हैं, हमारा यह दवाब उतना ही ज्यादा होता है.
यह सही है कि माफ करना जरूरी है पर यह अनायास नहीं हो सकता. ऐसे में दवाब बनाना बेईमानी है.
कई बार यह अन्याय सा लगता है जैसेकि हम विक्टिम की छाती पर माफ करने का पत्थर रख दें और कहें कि तुम्हारे साथ चाहे जितना भी गलत हुआ हो अब माफ करने की जिम्मेदारी भी तुम्हारी है.
कई बार स्थिति इतनी बगड़ती है कि भुक्तभोगी को लगता है कि वह माफ ना कर पाने का भी दोषी है.
ये भी पढ़ें- चोरों के निशाने पर शादी समारोह
कुछ समय पहले एक ऐसी ही दोस्त का फोन आया. वह काफी विचलित थी. लंबे समय से खाए जा रहे धोखे को भूल पाने में असमर्थ थी. सब से ज्यादा कष्ट उन्हें इस बात का था कि उन के अपने उसे माफ कर आगे बढ़ने की सलाह दे रहे थे.
आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें
डिजिटल

सरिता सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं
- सरिता मैगजीन का सारा कंटेंट
- देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
- 7000 से ज्यादा कहानियां
- समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

सरिता सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं
- सरिता मैगजीन का सारा कंटेंट
- देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
- 7000 से ज्यादा कहानियां
- समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
- 24 प्रिंट मैगजीन