दुनिया कितनी छोटी है, इस का अंदाजा महाबलेश्वर में तब हुआ, जब बारिश में भीगने से बचने के लिए दुकान की टप्परों के नीचे शरण लेती रेवती को देखा. जयपुर में वह और रेवती एक ही औफिस में काम करते थे.आज काफी समय बाद पर्यटन स्थल की अनजान जगह पर रेवती से मिलना एक बड़ा इत्तिफाक और रोमांचकारी था. खुशी से बौराती सौम्या रेवती के गले लगते हुए बोली, “कहां रही इतने दिन…? कितना फोन लगाया तुझ को, लगता ही नहीं था… कैसी हो तुम?”
“मैं बिलकुल ठीक हूं… हां, इधर बहुत व्यस्त रही… बेटी रिया की शादी में अपना होश ही नहीं था.”“बड़ी खराब हो… बेटी की शादी में निमंत्रण तक नहीं भेजा…” सौम्या की शिकायत पर वह मुसकरा दी.“आप लोग बातें करो. मैं गरमागरम भुट्टे ले आता हूं…” सौम्या के पति सलिल ने भुट्टे के बहाने दोनों सहेलियों को अकेले छोड़ना बेहतर समझा.
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“हाय, कित्ते दिन बाद मिले हैं… समझ नहीं आ रहा, कहां से बातें शुरू करूं… यहां कब तक हो और कैसे आई हो…”“आज ही निकलना है… मैं कैब का इंतजार कर रही हूं… दरअसल, यहां एक रिश्तेदार के पास आई थी… फंक्शन था…”“अकेले…” सौम्या ने आश्चर्य से पूछा.
“और क्या, इन के पास समय कहां है, जब देखो बिजनैस… अब बेटे ने संभाल लिया है, तो इन्हें कुछ आराम है.”“सुन न रेवती, मेरे होटल चलते हैं, गप्पें मारेंगे…”नहीं यार सौम्या, बिलकुल समय नहीं है….” कहते हुए वह मोबाइल पर अपने कैब की लोकेशन देखने लगी और हड़बड़ा कर बोली, “कैब आ गई…” रेवती मोबाइल से कैब वाले को अपनी लोकेशन बताने लगी.
“हां भैया, लोकेशन पर ही हूं. हां… हां… बस थोड़ा सा आगे आइए, मैं आप को देख रही हूं…” रेवती को अपने कैब ड्राइवर को दिशानिर्देश देते हुए सौम्या ने उसे अजीब नजरों से देखा.सौम्या की ओर देखे बगैर ही रेवती ने बैग में अपने मोबाइल को सरकाते हुए कहा, “यहां की चाय ले जाना और स्ट्राबेरी भी… वैसे, कहांकहां घूमी हो. छोटी सी तो जगह है… बरसात में तो लगता है हम बादलों में हैं…” कह कर वह कैब की ओर देखने लगी.
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सौम्या उस से ढेर सारी बातें करना चाहती थी, पर दोनों सहेलियों के बीच वो कैब ड्राइवर किसी खलनायक सा आ गया.कैब ड्राइवर के आते ही रेवती उस के कंधे पर हाथ रखती हुई, “चलो, फिर मिलते हैं.” कह कर चलती बनी.अरसे बाद मिलने पर क्या कैब छोड़ी नहीं जा सकती थी, यह क्षोभ मिलने की खुशी पर भारी पड़ गया.
“अरे, तुम अकेली खड़ी हो, तुम्हारी सहेली कहां गई…” दोनों हाथों में भुट्टा पकड़े सलिल पूछ रहे थे, “चली गई, उसे कुछ ज्यादा ही जल्दी थी…”“चलो, तुम दोनों भुट्टे खा लो…” कहते हुए सलिल ने उसे भुट्टा पकडाया.
बारिश थम चुकी थी. सलिल आसपास के खूबसूरत नजारों में खो गए. पर, सौम्या का व्यथित मन रेवती के उदासीन व्यवहार का आकलन करने में लगा हुआ था. संपर्क सूत्र का आदानप्रदान हुए बगैर कब मिलेंगे, कैसे मिलेंगे? जैसे अनुत्तरित प्रश्न उस के पाले में डाल कर यों हड़बड़ी में निकल जाना उसे बड़ा अजीब लगा. लगा ही नहीं, कभी दोनों में घनिष्ठता थी. न कुछ जानने की ललक… न बताने की उत्सुकता… रेवती का अतिऔपचारिक व्यवहार सौम्या को अच्छा नहीं लगा.
जयपुर से दिल्ली शिफ्ट होने के बाद वह जब भी रेवती को फोन करती, वह पूरे उत्साह के साथ अपने सुखदुख उस से साझा करती… फोन पर लंबीलंबी बेतकल्लुफ बातचीत में जहां सौम्या दिल्ली जैसी नई जगह पर मन न लगने का रोना रोती, वहीं रेवती अपनी नौकरी की व्यस्तता की भागादौड़ी के बारे में बताती.
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रिटायरमेंट का समय नजदीक आने पर लोग जहां भविष्य की चिंता में डूबते हैं, वहीं रेवती खुश थी कि रिटायरमेंट के बाद खूब आराम करेगी… रिटायरमेंट के पलों को सुकून से जिएगी और अपने पति आकाश के साथ खूब घूमेगी. इधर कुछ सालों से रेवती से उस का संपर्क टूट गया. जो नंबर उस के पास था, उस से उस का फोन नहीं लगता था.
सौम्या को पुराने दिन याद आए. उस के और रेवती के बीच कितनी अच्छी मित्रता थी. दोनों एकदूसरे के सुखदुख की साझीदार थीं.जब सलिल का ट्रांसफर दिल्ली हुआ, तो वह बहुत दुखी हुई. उस वक्त रेवती ने उसे समझाया, “परिस्थितियोंवश हमें कोई निर्णय लेना हो, तो उस के पीछे खुश होने के कारण ढूंढ़ लेने चाहिए.
‘‘अब देखो न, आकाश मेरे घर में खाली बैठने के खिलाफ हैं. उन का मानना है कि काम सिर्फ पैसों के लिए नहीं किया जाता. काम करने से क्रियाशीलता बनी रहती है.
“आकाश औरत की आजादी के पक्ष में हैं. क्या इतना मेरे लिए काफी नहीं… उन की सकारात्मक सोच के चलते मैं अलवर से जयपुर अपडाउन कर पाती हूं.
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“मैं खुश हूं कि आकाश खुले विचारों के हैं. वहीं दूसरी ओर तुझे नौकरी छोड़नी पड़ रही है, क्योंकि सलिल को दूसरे शहर में तबादले पर जाना है. इस समझौते के पीछे सकारात्मक सोच यह होनी चाहिए कि सलिल और तुम्हें टुकड़ोंटुकड़ों में जीवन जीने को नहीं मिलेगा.”
“तुम कुछ भी कहो, मैं तो खालिस समझौता ही कहूंगी… एक मिनट को मेरी बात छोड़ दो… उधर आकाश क्या चाहते हैं, ये भी छोड़ दो. बस दिल से कहो, अपने लिए तुम्हारा अपना मन क्या कहता है,” सौम्या की बात सुन कर रेवती फीकी हंसी हंस कर बोली, “इस भागदौड़ में क्या रखा है… कहने को आजाद हूं. आकाश जैसी खुली विस्तृत सोच वाला पति मिला है, फिर भी जीवन आसान कहां है. 60-65 किलोमीटर रोज के आनेजाने में कब दिन शुरू होता है, कब खत्म, कुछ पता ही नहीं चलता.
“कभीकभी मन में कसक उठती है कि कब वो दिन आएगा, जब मैं रिटायरमेंट के बाद उन्मुक्त जीवन जिऊंगी. चिड़ियों की चहचहाहट सुनूंगी, चाय के कप से धीमेधीमे चुसकियां भरूंगी. बरसती बूंदों की टपटप सुनूंगी.
‘‘अपने जानपहचान के लोगों से संपर्क बढ़ाऊंगी. कुछ छूटा हुआ समेटूंगी. कुछ बेवजह यों ही छोड़ दूंगी. ऐसे में जब बच्चे हायर स्टडीज के लिए बाहर हैं… आकाश के साथ बिना प्लानिंग कहीं निकल जाऊंगी… एकदूसरे का अकेलापन दूर करते हुए सुकून से जिऊंगी.
‘‘आकाश का बस चले, तो रिटायरमेंट के बाद भी मुझे व्यस्त रखें… जबकि मैं सुकून चाहती हूं. अब तो उस दिन का इंतजार है, जब मेरा फेयरवेल होगा…” कह कर रेवती अपने फुरसती दिनों की कल्पना में डूब गई.
“क्या हुआ…? तुम इतनी चुपचुप सी क्यों हो…” सलिल के टोकने पर मन का पंक्षी अतीत से वर्तमान में फुदक कर आ गया.
“थकान सी हो रही है सलिल, होटल चल कर आराम करते हैं…” सौम्या के कहने पर सलिल उस के साथ वापस होटल में आ गए.
रात को डिनर के लिए डाइनिंग एरिया की ओर जाते समय सहसा ही सलिल के मुंह से निकला, “अरे, आज तो वाकई इत्तिफाक का दिन है.”
सलिल के इशारे पर सौम्या की नजरें उठीं, तो बुरी तरह चौंक गई… कौरीडोर में रेवती अपने रूम का लौक खोलती दिखी. पीठ उन की तरफ होने से रेवती सौम्या और सलिल को देख नहीं पाई…
सलिल उस की बेचैनी देख कर बोले, “अगर तुम्हें लगता है कि वह तुम्हें एवौइड कर रही है, तो समझदारी इसी में है कि तुम उन की भावनाओं का खयाल करते हुए उन्हें शर्मिंदा न करो…”
पर, सौम्या को चैन कहां था. रात 9 बजे वह रेवती के कमरे का दरवाजा खटखटा आई.
दरवाजा खुलते ही विस्मय, शर्मिंदगी और हड़बड़ाहट भरे भाव लिए खड़ी रेवती को परे धकेलती वह बेधड़क अंदर आ गई और नाराजगी भरे भाव में व्यंग्यात्मक स्वर में बोली, “तू तो अपने रिश्तेदार के यहां आई है. वहां जगह नहीं होगी, तभी शायद होटल में रुकी है. वह भी उस होटल में, जिस में हम ठहरे हैं. शायद वे… तू तो आज निकलने वाली थी न…”
“तू क्या लेगी, चाय बनाऊं…” रेवती के कहने पर सौम्या उस का हाथ पकड़ कर कहने लगी, “इतने दिनों बाद मुझ से मिली है. क्या मन नहीं करता बातें करने का… जान सकती हूं, वजह क्या है मुझे एवौइड करने की…”
वह सकपकाते हुए बोली, “ऐसी कोई बात नहीं है यार… क्यों एवौइड करूंगी तुझे? रिश्तेदार से मिलने जरूर आई थी, पर रुकी होटल में हूं. इस में कौन सी बड़ी बात है.”
यह सुन कर दो पल के लिए सौम्या रेवती को घूरती रही, फिर सहसा ही उस का हाथ पकड़ कर बोली, “क्या हुआ है तुझे, सब ठीक तो है न…”
“हां… हां, बिलकुल ठीक है…”
“सच बता, अकेले आई है क्या?”
“हां, बिलकुल…”
“बच्चे और पति कहां हैं?”
“बताया तो… बेटी रिया की शादी हो गई और बेटा रोहन एमबीए कर के फैमिली बिजनैस में है.
“और पति आकाश…”
“बिलकुल बढ़िया हैं आकाश…”
उस के बाद कुछ पल के लिए चुप्पी छा गई, एक अनावश्यक सी चुप्पी… सौम्या उस के चेहरे को ध्यान से देखने लगी. दोपहर बाद की चंद पलों की मुलाकात में वह हंसी तो थी, पर उस की हंसी आंखों तक नहीं पहुंची थी.
अजीब सी गंभीरता ओढ़े, मुरझाया चेहरा और सूखी भावहीन आंखें, औपचारिकता में लिपटा रूखासूखा व्यवहार देख कर वह फुसफुसाई, “चेहरा कैसा मुरझा गया है. कहां गया तेरा सुकून वाला फंडा… मैं समझती हूं कि एक बार काम करने की आदत पड़ जाए न, तो घर बैठना बिलकुल नहीं सुहाता… आकाशजी अपने बिजनैस में व्यस्त होंगे और तू खालीपन सा महसूस करती होगी…”
यह सब सुन कर रेवती मुसकराती रही… उसे ध्यान से देख कर सौम्या बोली, “मत मुसकरा इतना… कुछ चल रहा है तेरे दिल में तो बता दे…”
इतना सुन मुसकराती रेवती के भीतर जमा दर्द सखी के स्नेहिल स्पर्श से झरझर आंसू छलकने लगे. सौम्या उसे रोते देख हैरान रह गई, फिर बिना पूछे ही उसे सीने से लगा लिया.
कुछ देर तक दोनों सहेलियां मौन रहीं. फिर कुछ देर बाद रेवती बोली, “क्या कहूं तुझ से, और कह के भी क्या फायदा…”
“मन हलका होगा और क्या…” सौम्या के कहते ही जब दर्द का गुबार निकला, तो वह सन्न रह गई, लगा जैसे पैरों के नीचे से धरती सरक गई…
रेवती अतीत के अवांछित प्रसंग को उस के साथ साझा कर रही थी…
रेवती के औफिस का आखिरी दिन था… वह बड़े उमंगों से भरी घर से निकली. औफिस पहुंचने पर उस का जोरदार स्वागत हुआ.
भावभीनी विदाई की पार्टी के बाद तकरीबन 12 बजे बौस ने कहा, “मुझे अलवर में कुछ काम है. तुम चाहो तो मैं तुम्हें घर छोड़ सकता हूं, लेकिन तुम को अभी निकलना होगा…’’
फूलों के हार, बुके और गिफ्ट को देखते हुए उसे बौस के साथ जाने में ही समझदारी लगी… आखिरी दिन उस को जल्दी घर जाने की छूट मिलना कौम्प्लीमैंट्री था. उस ने झट से हां कर दी.
वह जल्दी घर पहुंच कर आकाश को सरप्राइज करना चाहती थी. पर, खुद सरप्राइज हो गई, जब बड़ी देर तक घंटी बजाने के बाद आकाश ने दरवाजा खोला. शाम के साढ़े 6 और 7 बजे के बीच आने वाली पत्नी को 2 बजे दरवाजे पर देख कर उस के बोल नहीं फूटे…
रेवती घर के भीतर गई, तो बेडरूम में अपने ही बिस्तर पर अपनी कालोनी की एक औरत को देख गुस्से से पागल हो गई… आकाश और उस औरत के अस्तव्यस्त कपड़े और हुलिए को देखने के बाद किसी सफाई की कोई आवश्यकता नहीं रह गई थी.
आकाश का यह रूप और राज जान कर उस का वह ‘अस्तित्व’ हिल गया, जिसे सुरक्षित रखने के लिए आकाश उसे नौकरी करने के लिए प्रेरित करता था. नौकरी की प्रेरणा के पीछे इतना घिनौना उद्देश्य जान कर वह विक्षिप्त सी हो गई… जिस आकाश को देख कर वह जीती थी, उस आकाश ने उसे जीतेजी मार दिया था. नौकरी करने वह जाती थी और आजादी आकाश को मिलती थी ऐयाशियां करने की.
रेवती को फूटफूट कर रोते देख सौम्या ने उस के कंधे को पकड़ कर जोर से हिला कर पूछा, “तू ने इतना घिनौना सच जानने के बाद भी उस के साथ रहने का निर्णय क्यों लिया…
“मैं ने उस का चुनाव नहीं किया सौम्या, मैं ने उस पद प्रतिष्ठा और बच्चों की शांति के लिए उन के भविष्य का चुनाव किया है, जिस को कमाने में मेरी पूरी उम्र लग गई. दुनिया के सामने वह मेरे आदर्श पति थे और आज भी हैं… जबकि हम एक घर में दो अजनबी हैं. हम दोनों एकदूसरे का इस्तेमाल सामाजिक प्रतिष्ठा के चलते ही करते हैं.”
“क्या उसे अपनी गलती का एहसास है?”
“पकड़े जाने के बाद गलती का एहसास किसे नहीं होगा… उसे भी वही डर है, जो मुझे है कि ये बात बाहर आई तो समाज में क्या प्रतिष्ठा रह जाएगी? इसलिए वह अपनी गलती मान कर माफी मांग रहा है, पर मैं कैसे मान लूं कि जिस पति पर आंख मूंद कर मैं ने भरोसा किया, उस ने मेरी पीठ पर छुरा भोंका है… मेरे साथ विश्वासघात किया है… अपने दिल में उस के दिए नागफनी के कांटे ले कर मैं जगहजगह सुकून की तलाश में भटक रही हूं, पर सुकून नहीं मिलता है.
सोतेजागते उस का छल, उस के कुचक्र के कांटे मेरे दिल को घायल कर देते हैं. जिन सुकून के दो शब्द उस से बतियाने को तरसती थी, वो अब ख्वाब बन गए…
मैं ने अपने फोन के सिम को तोड़ कर फेंक दिया था इस भय से कि कहीं किसी जानने वाले का फोन न आ जाए… कहीं वह मेरी आवाज से मेरे मन के भीतर चल रहे तूफान को भांप न जाए… कहीं भावावेश में मैं वो सब न उगल दूं, जिसे छिपाने के लिए हम जद्दोजेहद कर रहे हैं.
मेरे स्वाभाविक स्वभाव के विपरीत उपजते कसैलेपन को भांप कर आज लोग यहां तक कि मेरे अपने बच्चे बढ़ती उम्र की देन मानने लगे हैं.
रेवती की आपबीती सुन कर वाकई सौम्या का दिल भर आया था. वह उस के हाथों को सहलाती हुई बोली, “खुद को शांत रखना अपने हाथों में है. जब साथ रह ही रहे हो, तो जो हो गया उसे भूलने की कोशिश करो.”
“कहना आसान है. आदत के अनुरूप उस के प्रति अपनत्व कभी उभरता भी है, तो अतीत की कंटीली झाड़ियां मुझे लहूलुहान कर देती हैं. मैं दूसरों के सामने हंसतीमुसकराती जरूर हूं, पर सच यह है कि मैं जहां भी रहूं, कुछ भी करूं, नागफनी के दंशों की पीड़ा से मुक्ति नहीं पाती हूं… जब भी उस से बात होती है तब… क्यों, कब, कैसे जैसे प्रश्नों में उलझ कर रह जाती हूं. हम जब भी बात करते हैं, अतीत में उलझ कर रह जाते हैं और कड़वा अतीत नासूर बन कर रिसता है,” रेवती की मनोदशा देख कर सौम्या ने बात बदलने की चेष्टा करते हुए पूछा, “अच्छा, ये तो बता कि तुम महाबलेश्वर कैसे आई हो? कोई है क्या यहां…?”
“अरे, कोई नहीं है यहां… मैं अकसर यहां की शांत वादियों में अपने अशांत मन को सुकून पहुंचाने की कोशिश में आ जाती हूं… आकाश भी चाहते हैं कि मेरा मन शांत हो, मैं फिर से पहले वाली हो जाऊं…
‘‘उन्होंने मुझे विश्वास दिलाने की पूरी कोशिश की कि मेरी जगह उन के दिल में वही है, जो पहले थी. तू बता कि मैं इस छलावे को कैसे सच मान लूं.
“जो मैं वाकई उस के दिल में होती, तो वो मेरे लिए अपने बहकते कदमों को रोक लेता, पर मेरी नौकरी में उस ने सुविधा ढूंढ़ कर मेरे साथ छल किया.
“तू बता, उस के लंबे समय तक चले आ रहे सोचेसमझे छल को कैसे भूल जाऊं…”
रहरह कर रेवती के मन के घाव रिसते रहे. विगत के दोहराव से छाई मनहूसियत दूर करने के लिए सौम्या ने रेवती के दोनों बच्चो की बातें आरंभ कीं, तो उस के चेहरे पर रौनक आ गई.
सौम्या को अच्छा लगा कि उस के मन का एक हिस्सा अभी भी जिंदा है. शायद इस हिस्से के भरोसे जीवन बीत जाए. एकदूसरे को अपनीअपनी कहसुन लेने के बाद अब दोनों शांत थीं.
रेवती कौफी बनाने लगी, तो सौम्या की नजर दीवार पर लगी पेंटिंग पर टिक गई. पेंटिंग में उफनती लहरों के बीच एक स्त्री अकेली नाव खे रही थी… उस पेंटिंग में नदी के किनारे नहीं दिख रहे थे.
उसे लगा, मानो नाव में रेवती हो और वह अपने जीवन की नैया को किनारे लगाने में पूरी शक्ति झोंक रही हो… किनारा देखते ही उस के चेहरे पर खुशी की झलक आई, थकावट से भरे मनमस्तिष्क, शरीर विश्राम करने को बेकल हो गए, पर नाव का किनारों पर पहुंचना उस की किस्मत में शायद नहीं था. नाव किनारे लगती, उस से पहले ही किनारों ने डूबना आरंभ कर दिया था. उस स्त्री की विडंबना देख सौम्या की आंखों में न चाहते हुए भी आंसू भरते चले गए.