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Narendra Modi : क्या प्रधानमंत्री को इतिहास से कोई भय नहीं है?

Narendra Modi : सूचना के दायरे में प्रधानमंत्री को ले कर किस तरह की जानकारियां हासिल की जा सकती हैं, यह विवाद का विषय बना हुआ है. डिग्री मामला और पीएम केयर फंड को ले कर सवाल उठते रहे हैं पर संतुष्टि भरे जवाब मिल नहीं पाए.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की शिक्षा संदर्भित जानकारी सूचना अधिकार के तहत नहीं ली जा सकती. यह विवाद आज एक ऐसे चौराहे पर खड़ा है जहां कहा जा सकता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शायद अमिताभ बच्चन के इस डायलोग को याद कर लिया है, “हम जहां से खड़े होते हैं लाइन वहीं से शुरू होती है.”

यानी की हम जो कहेंगे वही सही है, चाहे वह कानून की किताब में लिखी हो या न, समाज की किताब में लिखी हो या न, दुनियादारी में उचित हो या न. अरे भाई…! अमिताभ बच्चन का यह डायलोग एक फिल्मी मात्र है. अमिताभ के पास जब कभी यह बात आती है तो हंस कर टाल जाते हैं और सारी दुनिया जानती है की फिल्म और हकीकत की दुनिया में बेहद अंतर होता है.

आज जब नरेंद्र मोदी की शिक्षा संबंधी जानकारी को कोई लेना चाहता है तो उसे यह कह कर टाल दिया जा रहा है कि यह उन की व्यक्तिगत जानकारियां हैं जबकि सारी दुनिया जानती है कि प्रधानमंत्री या जो भी सार्वजनिक शख्स हैं उन की हर वह जानकारी सार्वजनिक है जिस से उन का कोई अहित न होता हो. ऐसा लगता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इतिहास से अपनेआप को ऊपर समझते हैं. वे भूल जाते हैं कि इतिहास नीर क्षीर विवेचन के साथ दुनिया के बड़े से बड़े शहंशाह को भी जमीन पर ला कर खड़ा कर देता है.

ऐसे में देश में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की किसी डिग्री को न दिया जाए उस के लिए पूरी सत्ता की ताकत अगर लग गई है तो उस का क्या अर्थ है. यह तो बच्चाबच्चा समझ सकता है.

दरअसल, हाल ही में, दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) ने दिल्ली हाई कोर्ट में एक मुद्दा उठाया है. डीयू ने कहा है, “सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून का उद्देश्य किसी तीसरे पक्ष की जिज्ञासा को संतुष्ट करना नहीं है, बल्कि सार्वजनिक प्राधिकारों के कामकाज में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करना है.”

इस मामले में, केंद्रीय सूचना आयोग ने 21 दिसंबर, 2016 को उन सभी छात्रों के अभिलेख के निरीक्षण की अनुमति दी थी, जिन्होंने 1978 में बीए परीक्षा उत्तीर्ण की थी. लेकिन डीयू ने कहा है कि यह आदेश ‘मनमाना’ और ‘कानून की दृष्टि से अस्थिर’ है क्योंकि जिस जानकारी का खुलासा करने की मांग की गई वह ‘तीसरे पक्ष की व्यक्तिगत जानकारी’ है.

यह मुद्दा हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि आरटीआई कानून कैसे रोका जा रहा है. यह कानून हमारे देश में पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देने के लिए बनाया गया था. इस मामले में, डीयू ने कहा है कि आयोग के आदेश का याचिकाकर्ता और देश के सभी विश्वविद्यालयों के लिए ‘दूरगामी प्रतिकूल परिणाम’ होंगे, जिन के पास करोड़ों छात्रों की डिग्री है. यह एक गंभीर मुद्दा है जिस पर हमें ध्यान देना होगा.

इसलिए, हमें आरटीआई कानून का दुरुपयोग रोकने के लिए सख्त कदम उठाने होंगे. हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि यह कानून हमारे देश में पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देने के लिए उपयोग किया जाता है, न कि किसी तीसरे पक्ष की जिज्ञासा को संतुष्ट करने के लिए.

यहां यह समझने वाली बात है कि प्रधानमंत्री एक सार्वजनिक व्यक्ति होने के नाते, उन की कई जानकारियां सार्वजनिक रूप से उपलब्ध होती हैं. लेकिन, यह भी महत्वपूर्ण है कि कुछ जानकारियां, व्यक्तिगत और संवेदनशील हो सकती हैं, जिन्हें सार्वजनिक नहीं किया जाना चाहिए.

प्रधानमंत्री कार्यालय की वेबसाइट पर उन के बारे में कई जानकारियां उपलब्ध हैं, जैसे कि उन के कार्यकाल, उन की उपलब्धियां, और उन के सार्वजनिक भाषण. लेकिन, उन की व्यक्तिगत जानकारियां जैसे उन के स्वास्थ्य स्थिति के बारे में, या उन के व्यक्तिगत वित्तीय मामलों के बारे में, सार्वजनिक नहीं की जाती हैं. यह भी ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि प्रधानमंत्री कार्यालय में कई जानकारियां सार्वजनिक नहीं की जाती हैं क्योंकि वे राष्ट्रीय सुरक्षा, विदेश नीति, या अन्य संवेदनशील मामलों से संबंधित हो सकती हैं. इसलिए, कुछ जानकारियां व्यक्तिगत और संवेदनशील हो सकती हैं.

अगर शिक्षा संदर्भित जानकारी को व्यक्तिगत माना जाएगा, तो यह फर्जीवाड़ा और धोखाधड़ी को बढ़ावा दे सकता है. लोग अपनी योग्यता और डिग्री के बारे में झूठ बोल सकते हैं और इस का फायदा उठा सकते हैं.

यह एक बड़ा खतरा है क्योंकि इस से न केवल व्यक्तिगत रूप से बल्कि समाज और देश के लिए भी नुकसान हो सकता है. अगर कोई व्यक्ति फर्जी डिग्री के साथ डाक्टर या इंजीनियर बन जाता है, तो इस से लोगों की जान जोखिम में पड़ सकती है.

इसलिए, यह जरूरी है कि शिक्षा संदर्भित जानकारी को सार्वजनिक किया जाए ताकि लोगों को अपनी योग्यता और डिग्री के बारे में सही जानकारी मिल सके. इस से फर्जीवाड़ा और धोखाधड़ी को रोकने में मदद मिलेगी और समाज में विश्वास और पारदर्शिता बढ़ेगी.

अगर कोई व्यक्ति वकील होने का दावा करता है और उस की वकालत की डिग्री कोई नहीं देख सकता, तो इस से कई समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं.

यह न्यायपालिका की विश्वसनीयता को कम कर सकता है. अगर कोई व्यक्ति वकील होने का दावा करता है और उस की योग्यता की जांच नहीं की जा सकती, तो इस से न्यायपालिका की विश्वसनीयता कम हो सकती है. यह समाज में अव्यवस्था और भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे सकता है.

इसलिए, यह जरूरी है कि वकालत की डिग्री और अन्य योग्यताओं की जांच की जा सके. इस से न्यायपालिका की विश्वसनीयता बढ़ेगी, लोगों के अधिकारों का उल्लंघन नहीं होगा और समाज में अव्यवस्था और भ्रष्टाचार को रोकने में मदद मिलेगी.

अगर प्रधानमंत्री की डिग्री को नहीं बताया जाएगा, तो इस से कई परेशानियां उत्पन्न हो सकती हैं. लोगों को अपने नेताओं की योग्यता और शैक्षिक पृष्ठभूमि के बारे में जानने का अधिकार है, और अगर यह जानकारी छिपाई जाती है तो इस से लोगों का विश्वास टूट सकता है. लोग अपनी योग्यता और डिग्री के बारे में झूठ बोल सकते हैं और इस का फायदा उठा सकते हैं.

दरअसल, विपक्षी दलों और कुछ मीडिया संगठनों ने आरोप लगाया था कि मोदी ने अपनी शैक्षिक योग्यता के बारे में झूठ बोला है. विवाद का केंद्र बिंदु यह था कि मोदी ने अपने चुनावी हलफनामे में दावा किया था कि उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में स्नातक की डिग्री प्राप्त की है. हालांकि, जब विपक्षी दलों और मीडिया संगठनों ने दिल्ली विश्वविद्यालय से मोदी की डिग्री की प्रति मांगी तो विश्वविद्यालय ने कहा कि वह इस जानकारी को सार्वजनिक नहीं कर सकता है.

इस के बाद, केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) ने दिल्ली विश्वविद्यालय को निर्देश दिया कि वह मोदी की डिग्री की जानकारी सार्वजनिक करे. हालांकि, दिल्ली विश्वविद्यालय ने इस आदेश को चुनौती देते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर की. उच्च न्यायालय ने इस मामले में सुनवाई की और कहा कि दिल्ली विश्वविद्यालय को मोदी की डिग्री की जानकारी सार्वजनिक करनी चाहिए. हालांकि, यह मामला अभी भी न्यायालय में लंबित है.

इस विवाद के बारे में बात करते हुए, यह कहा जा सकता है कि यह एक राजनीतिक मुद्दा है जिसे विपक्षी दलों और मीडिया संगठनों ने उठाया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को स्वयं सामने आ कर के अपनी सारी जानकारी सार्वजनिक कर देनी चाहिए और यह उदाहरण पेश करना चाहिए कि प्रधानमंत्री देश का होता है उस का एकएक पैसा और सभी जानकारियां कोई भी देख और समझ सकता है.

Best Hindi Story : तेरी सास तो बहुत मौडर्न है

Best Hindi Story : शादी के समय ही रिश्तेदारों व जानपहचान वालों ने कहना शुरू कर दिया कि तेरी सास तो बड़ी मौडर्न है. पर नियति ही जानती है कि उस की सास उस के लिए कितनी केयरिंग है. सास के कहने पर जब नियति मायके आई तो क्या वह अपनी उन के प्रति मां की सोच बदल पाई…?

आज सुबहसुबह जैसे ही नियति का फोन श्रीकांतजी के मोबाइल पर आया, उन की पत्नी लीला ने उन्हें फोन स्पीकर पर डालने का इशारा किया और उन्होंने स्पीकर औन कर दिया.

नियति हंसती हुई बोली, “हैलो पापा, आप ने स्पीकर औन कर लिया हो और मम्मी आ गई हों तो मैं अपनी बात शुरू करूं.”

पिछले 2 महीनों से यही चल रहा है. नियति का फोन जब भी आता है, श्रीकांतजी स्पीकर औन कर देते हैं क्योंकि नियति और उस की मां लीला की बातचीत तब से बंद है, जब से नियति ने अपना निर्णय सुनाया है कि वह शादी अपने कलिग और स्कूल फ्रैंड विकल्प से ही करना चाहती है. यह बात जानते ही दोनों मांबेटी के बीच अबोलेपन ने अपना स्थान ले लिया. लेकिन जब भी नियति का फोन आता है, लीला अपने सारे काम छोड़ कर फोन के करीब आ जाती है, यह जानने के लिए कि नियति क्या कह रही है.

नियति की बातों को सुन कर लीला के चेहरे के हावभाव बनतेबिगड़ते रहते हैं, क्योंकि लीला किसी हाल में नहीं चाहती कि उन की बेटी किसी विजातीय लड़के से ब्याह करे.

वैसे, लीला क‌ई दफा विकल्प की मां मिसेज चंद्रा से नियति के स्कूल फंक्शन और पैरेंट्स टीचर मीटिंग में मिल चुकी है. मिसेज चंद्रा मौडर्न और स्वतंत्र विचारधारा की महिला है.

लीला को लगता है कि मिसेज चंद्रा जरूरत से ज्यादा ही मौडर्न है. मिस्टर चंद्रा इंडियन नेवी में वरिष्ठ अधिकारी के पद पर थे. उन का घर ग्वालियर के पौश एरिया में है और काफी आलीशान भी है. नौकरचाकर सब हैं. किसी चीज की कोई कमी नहीं है. उन के घर का वातावरण, रहनसहन थोड़ा भिन्न है, जो लीला को शुरू से ही अटपटा लगता आया है. क्योंकि लीला जहां रहती है, वहां की औरतें ना तो मिसेज चंद्रा की भांति बिना आस्तीन का ब्लाउज पहनती हैं और ना ही बिना सिर पर पल्लू लिए घर से बाहर निकली हैं. ऊपर से इन का पूरा परिवार शुद्ध शाकाहारी और उन के घर पर बिना अंडा, मांस, मछली के काम ही नहीं चलता.

श्रीकांतजी एक सुलझे हुए और सरल व्यक्तिव के धनी हैं. उन्हें इस रिश्ते से कोई एतराज नहीं, क्योंकि उन के लिए तो नियति की खुशी ही सब से बड़ी है. उन का मानना है कि जातिपांति, धर्म कुछ नहीं होता, मनुष्य की बस एक ही जाति है और एक ही धर्म होता है और वह है मानवता का धर्म. श्रीकांतजी को मिसेज चंद्रा के मौडर्न होने से भी कोई तकलीफ नहीं है.

श्रीकांतजी ने भी हंसते हुए कहा, “हां बोलो, तुम्हारी मम्मी आ गई हैं.”

“पापा, कल मैं और विकल्प ग्वालियर आ रहे हैं, फिर शाम को विकल्प के मौमडैड आप और मम्मी से हमारी शादी की बात करने आएंगे.”

श्रीकांतजी नियति को आश्वस्त करते हुए बोले, “तुम चिंता मत करो. सब ठीक होगा.”

यह सुनने के बाद नियति ने कहा, “थैंक्यू पापा, मुझे आप से एक बात और शेयर करनी है. मैं ने और विकल्प ने कंपनी चेंज कर ली है. हमारी न‌ई कंपनी का सबडिविजनल औफिस ग्वालियर में भी है तो शादी के बाद हम दोनों ग्वालियर आ जाएंगे.”

“यह तो और भी अच्छी बात है. हमारी बेटी शादी के बाद भी इसी शहर में रहेगी, हमें और क्या चाहिए. यह खबर सुनते ही तुम्हारी भाभी बहुत खुश हो जाएगी.”

भाभी का नाम सुनते ही नियति चहकती हुई बोली, “पापा, भाभी कहां है. बात तो कराइए.”

“इस वक्त तो वह किचन में व्यस्त है.”

नियति थोड़ा नाराज होती हुई बोली, “पापा, मैं ने मम्मी से कितनी बार कहा है कि एक फुल टाइम मैड रख लो, सुबह से ले कर रात तक भाभी बेचारी घर के कामों में ही उलझी रहती है. यहां तक कि उन के पास अपने खुद के लिए भी समय नहीं होता. और मम्मी हैं कि कुछ समझती ही नहीं. उन्हें लगता है कि घर का सारा काम बहू का ही है. ऊपर से भाभी को सारे काम साड़ी पहन कर करने पड़ते हैं. उन्हें काम करने में कितनी असुविधा होती है.

“पापा आप मम्मी को समझाइए, वक्त तेजी से बदल रहा है. अब मम्मी को भी थोड़ा बदलना होगा. अच्छा पापा, अब मैं फोन रखती हूं.”

ऐसा कह कर नियति ने फोन रख दिया.

नियति के फोन रखते ही लीला के चेहरे का रंग गुस्से से लाल हो गया और वह बड़बड़ाती हुई कहने लगी, “लो… अब ये छोरी सिखाएगी मुझे बहू से क्या काम करवाना है और क्या नही. खुद को तो ढेलेभर की अक्ल नहीं. एक ऐसी औरत की बहू बनने को उतावली हुए जा रही है, जिसे हमारी संस्कृति का जरा सा भी ज्ञान नहीं. ना तो वह अपने सिर पर पल्लू लेती है और ना ही उसे छोटेबड़े का लिहाज है. शादी हो जाने दो, फिर पता चलेगा मौडर्न सास कैसी होती है.”

लीला को अपनी स्वयं की बेटी के लिए इस प्रकार मुंह से आग उगलता देख श्रीकांतजी बोले, “अब बस भी करो लीला, मिसेज चंद्रा मौडर्न हैं, इस का मतलब यह नहीं कि वे बुरी हैं या फिर बुरी सास ही साबित होगी, कम से कम अपनी बेटी के लिए तो अच्छा सोचो और अच्छा बोलो. विकल्प अपने पैरेंट्स के साथ हम से मिलने आ रहा है. कल न‌ए रिश्तों की नींव पड़ने वाली है. मैं नहीं चाहता कि किसी भी रिश्ते की शुरुआत खटास से हो.”

श्रीकांतजी के ऐसा कहते ही लीला कोई प्रतिक्रिया व्यक्त किए बगैर वहां से चली गई.

दूसरे दिन नियति आ गई. शाम की पूरी तैयारियां जोरों पर थीं. वह वक्त भी आ गया, जब विकल्प अपने पैरेंट्स के साथ नियति के घर पहुंचा.

मिसेज चंद्रा की खूबसूरती आज भी बरकरार थी. उसे देखते ही लीला मन ही मन कुड़कुड़ाने लगी. जवान बेटे की मां और ये साजोसिंगार, अपनी उम्र तक का लिहाज नहीं. आग लगे ऐसे मौडर्ननेस को, लेकिन मिसेज चंद्रा इन सब से बेखबर, घर के सभी सदस्यों के साथ बड़ी आत्मीयता से मिल रही थी. बातों ही बातों में मिसेज चंद्रा ने कहा, “मैं बड़ी खुश किस्मत हूं, जो मुझे नियति जैसी खूबसूरत और समझदार बहू मिल रही है. मैं ढूंढ़ने भी निकलती तो नियति जैसी बहू मुझे नहीं मिलती.”

मिसेज चंद्रा के ऐसा कहने पर लीला व्यंग्यात्मक लहजे में बोली, “खूबसूरत, समझदार के साथसाथ कमाऊ बहू भी मिल रही है मिसेज चंद्रा, ये कहना भूल ग‌ईं आप.”

लीला का ऐसा कहना श्रीकांतजी, नियति और उस के भैयाभाभी को बड़ा अटपटा और बुरा लगा, लेकिन मिसेज चंद्रा बड़े सहज भाव से लीला की बातों को हंसी में उड़ा गई. उस के कुछ सप्ताह बाद नियति और विकल्प की शादी बड़े धूमधाम से हो गई.

शादी में आए सभी मेहमानों द्वारा शादी में किए गए शानदार इंतजाम को ले कर खूब तारीफ हुई, साथ ही साथ नियति व विकल्प की भी काफी प्रशंसा हुई. इन सब के अलावा सभी की जबान पर एक और बात की चर्चा जोरों पर थी और वह थी मिसेज चंद्रा की लेटेस्ट ज्वेलरी, स्टाइलिस साड़ी और हेयर स्टाइल.

लीला के सभी सगेसंबंधी और सहेलियां उस से यह कहने से नहीं चूकीं कि लीला बहन तुम ने तो दामाद के संग समधन भी बड़ी जोरदार पाई है. नियति की सास तो बड़ी मौडर्न है. इस उम्र में इतना स्टाइल, कमाल है… तुम्हारी समधन तो काफी स्टाइलिश है.

सभी के मुंह से बस एक ही बात सुन कर कि नियति की सास तो बड़ी मौडर्न है, लीला के कान पक गए और जब नियति शादी के बाद पहली बार घर आई तो लीला नियति की खैरखबर लेने के बजाय उस से कहने लगी, “कैसी है तेरी मौडर्न सास..? सजनेसंवरने के अलावा भी कुछ करती है या बस सारा दिन केवल आईने के सामने ही बैठी रहती है.”

अपनी मां का इस तरह बातबेबात नियति को उस की सास के मौडर्न होने का ताना देना उसे अच्छा नहीं लगता, इसलिए धीरेधीरे अब नियति अपने मायके आने से कतराने लगी. बस फोन पर ही अपने पापा और भाभी से बात कर लेती.

औफिस का भी यही हाल था. नियति के हर फैंड्स और कलीग्स को बस यही जानना होता है कि उस की सास का उस के साथ व्यवहार कैसा है..? उसे परेशान तो नहीं करती है…? नियति अपनी सास के होते हुए इतना फ्री कैसे रहती है…? क्योंकि सभी को लगता है कि नियति की सास बड़ी तेजतर्रार, स्टाइलिश और मौडर्न है.

नियति को यह बात समझ ही नहीं आ रही थी कि लोग सभी को एक ही तराजू पर क्यों तौलते हैं. ऐसा जरूरी तो नहीं कि जो महिला स्टाइलिश हो, मौडर्न हो, वह तेजतर्रार और बुरी सास ही होगी और जो देखने में सिंपल हो, सीधीसादी लगती हो, वह अच्छी सास ही होगी.

एक शनिवार नियति अपने मायके में फोन कर अपनी मम्मी से बोली, “मम्मी, इस वीकेंड पर हम पिकनिक पर जा रहे हैं. मौम कह रही थीं कि आप सब भी हमारे साथ चलते तो एक अच्छा फैमिली पिकनिक हो जाएगा. आप भैयाभाभी से भी चलने को कह देना.”

नियति का इतना कहना था कि लीला भड़क उठी और कहने लगी, “हमें कहीं नहीं जाना तेरी मौडर्न सास के साथ और ना ही हमारी बहू जाएगी तुम लोगों के साथ. तुम सासबहू दोनों घूमो जींसपेंट घटका कर पूरे शहर में. तुम्हें ना सही, पर हमें तो है लोकलाज का खयाल.

“वैसे भी तुम्हारी भाभी अपने मायके इंदौर गई है और तुम्हारा पत्नीभक्त भाई उस के साथ ही गया है. दोनों यहां होते भी तो हम में से कोई ना जाता तुम्हारे मौडर्न परिवार के साथ कहीं, क्योंकि उस दिन मेरे गुरुजी का जन्मदिन है, इसलिए हमारी समिति की ओर से इस अवसर पर भव्य सत्संग रखा है. उस दिन गुरुजी सभी को दर्शन और आशीर्वाद देंगे, जो जीवन की सद्गति के लिए बहुत जरूरी है. यह सब तेरी मौडर्न सास क्या समझेगी.”

लीला का इतना कहना था कि नियति ने गुस्से में फोन काट दिया.

निर्धारित दिन पर नियति अपने पूरे परिवार के साथ इधर पिकनिक के लिए निकल पड़ी, उधर लीला और श्रीकांतजी भी गुरुजी से आशीष लेने सत्संग के लिए निकल पड़े.

आज पूरा दिन परिवार के संग इतना अच्छा समय बिता कर नियति काफी खुश थी. उसे बस इस बात का अफसोस था कि आज की इस खुशी का हिस्सा उस के अपने मम्मीपापा केवल उस की मौम की संकुचित मानसिकता की वजह से नहीं बन पाए थे.

पिकनिक से लौटते वक्त नियति इन्हीं सब बातों में गुम थी कि अचानक उस का मोबाइल बजा. फोन किसी अनजान नंबर से था. फोन रिसीव करते ही नियति की आंखों से अविरल अश्रुधारा प्रवाहित होने लगी.

यह देख नियति की सास ने उस से कारण जानना चाहा, तो नियति रोती हुई बोली, “मम्मी का फोन था. सत्संग से लौटते हुए मम्मीपापा का एक्सीडेंट हो गया है. पापा गंभीर रूप से घायल हो गए हैं. मम्मी को ज्यादा चोटें नहीं आई हैं. मोबाइल भी टूट गया है, इसलिए उन्होंने किसी दूसरे के मोबाइल से फोन किया था. भैयाभाभी भी शहर से बाहर हैं और वहां सिटी अस्पताल में पुलिस प्रक्रिया में देर होने की वजह से पापा का इलाज शुरू नहीं हो पा रहा है. मम्मी बहुत घबराई हुई हैं और परेशान हैं.”

इतना सुनते ही मिसेज चंद्रा बोलीं, “तुम्हें रोने या परेशान होने की जरूरत नहीं बेटा, शहर के डीएसपी से मेरा बहुत अच्छा परिचय है. मैं अभी उन्हें फोन कर देती हूं और अस्पताल में भी फोन कर देती हूं. वहां भी मेरी पहचान के काफी सीनियर डाक्टर हैं, वे सब संभाल लेगें. तुम्हें चिंता करने की जरूरत नहीं और कुछ घंटों में तो हम भी शहर पहुंच ही जाएंगे.”

ऐसा कहती हुई मिसेज चंद्रा ने अपने क‌ई मित्रों और पहचान के नामीगिरामी हस्तियों को फोन कर नियति के मम्मीपापा को हर संभव मदद करने को कह दिया.

जब नियति अपने पूरे परिवार के साथ अस्पताल पहुंची, तो उस के मम्मीपापा का इलाज शुरू हो गया था. पुलिस और अस्पताल के डाक्टर व स्टाफ अपना पूरा सहयोग दे रहे थे.

यह देख एक बार फिर नियति की आंखें नम हो गईं और उस के चेहरे पर अपनी सास के प्रति आदर और कृतज्ञता के भाव उभर आए.

नियति की मम्मी 3 दिनों तक अस्पताल में एडमिट रहीं और उस के पापा 15 दिनों तक, मिसेज चंद्रा पूरी आत्मीयता से हर रोज अस्पताल में मिलने जाती. उन की वजह से नियति के मम्मीपापा को अस्पताल में कभी कोई परेशानी नहीं हुई. वहां उन का विशेष ध्यान रखा गया और अस्पताल के डाक्टरों व स्टाफ के द्वारा भरपूर सहयोग मिला. उस के बावजूद मिसेज चंद्रा के प्रति लीला के विचार और बरताव में कोई फर्क नहीं आया.

लीला अब भी अपने स्वस्थ होने और सही समय पर इलाज मिलने का श्रेय अपने गुरुजी की कृपा और आशीर्वाद को ही दे रही थी.

मिसेज चंद्रा को लीला अपने गुरुजी के द्वारा भेजा गया केवल एक माध्यम समझ रही थी, जबकि गुरुजी का इस बात से कोई वास्ता ही नहीं था.

लीला की इस प्रकार अंधभक्ति देख और बारबार अपनी ही मां से अपनी सास के लिए अपमान भरे शब्द सुनसुन कर नियति ने यह तय कर लिया कि वह अब ना तो अपने मायके जाएगी और ना ही अपनी मम्मी को फोन करेगी.

काफी दिनों तक जब नियति अपने मायके नहीं गई, तो एक दिन नियति की सास ने उस से कहा, “नियति बेटा, तुम बहुत दिनों से अपने मायके नहीं गई हो, इस संडे समय निकाल कर उन से मिल आओ. उन्हें तुम्हारी चिंता होती होगी.”

नियति अपनी सास की बात टालना नहीं चाहती थी और ना ही उन्हें सच बता कर उन का दिल दुखाना चाहती थी, इसलिए वह बोली, “जी. इस संडे चली जाऊंगी.”

संडे को जब नियति अपने मायके पहुंची, तो पापा उसे वरांडे में आरामकुरसी पर बैठे किताब पढ़ते मिल गए. काफी देर पापा के पास बैठने के बाद जब नियति अंदर गई तो उस ने देखा कि उस की मम्मी अपनी सहेलियों के साथ बैठी हंसीठिठोली कर रही है और उस की भाभी भागभाग कर सब के लिए चायनाश्ता और पानी की व्यवस्था कर रही है.

यह देख नियति अपनी भाभी का हाथ बंटाने किचन की ओर बढ़ी ही थी कि वहां बैठी उस की मम्मी की सहेलियों में से एक ने कहा, “अरे नियति, तुम कब आई? इधर आ… हमारे पास बैठ. मैं ने तो सुना है कि तेरी सास बड़ी मौडर्न है, तुम अपनी सास के साथ ससुराल में कैसे निभा रही हो?”

नियति चुप रही, फिर क्या था एक के बाद एक सभी ने नियति की सास का मजाक उड़ाना शुरू कर दिया. कोई उन की लिपिस्टिक पर फिकरे कसने लगा, तो कोई हेयर स्टाइल पर, किसी को उन का इस उम्र में जींस पहनना गलत लग रहा था, तो किसी को उन के लहराते हुए आंचल से आपत्ति थी.

सभी की अनर्गल बातें सुन कर नियति से रहा नहीं गया और वह सब पर बरस पड़ी और कहने लगी, “हां, मेरी सास बड़ी मौडर्न है. वह केवल मौडर्न ड्रेस ही नहीं पहनती, उन की सोच भी मौडर्न है. वे अपनी बहू को चारदीवारी में घूंघट के पीछे घुटनभरी जिंदगी नहीं, खुली हवा में आजादी की सांस लेने देती है.

“यहां आप में से कितनी सास अपनी बहू को उन की मरजी से जीने देती है…?अपनी बहू का बेटी की तरह मां बन कर ध्यान रखती है..? लेकिन मेरी मौडर्न सास मेरा खयाल अपनी बेटी की तरह रखती है और मुझे उन के मौडर्न होने पर गर्व है. क्योंकि वह मुझे केवल बेटी बुलाती ही नहीं, अपनी बेटी समझती भी हैं. और सब से बड़ी बात यह कि बुरे वक्त में साथ खड़ी रहती हैं. ऊपर वाले की इच्छा कह कर अपना पल्ला नहीं झाड़ लेती हैं.”

नियति की बातें सुन कर सब की आंखें शर्म से झुक गईं और नियति के पापा वरांडे में बैठे मंदमंद मुसकरा रहे थे.

Social Hindi Story : किटी पार्टी

Social Hindi Story :  पौश कालोनी का एक इलाका. उस में मिसेज खुशबू की एक दोमंजिला आलीशान कोठी. उस में नीचे वह स्वयं रहती हैं और ऊपर के पोर्शन को अपनी सामाजिक गतिविधियों और मेहमानों के लिए खाली रखती हैं. उन की एक ‘महिला सत्संग’ नाम की संस्था है. उसी के तहत वह महिलाओं की किटी पार्टी करती हैं. अगर यह कहा जाए कि ‘महिला सत्संग’ का मतलब किटी पार्टी ही है, तो गलत न होगा.

किटी पार्टी में शामिल होने वाली महिलाएं हालांकि आती तो संभ्रांत परिवारों से हैं, पर असल में वे बैठीठाली महिलाएं हैं, जिन के पति या तो हैं नहीं या फिर वे बाहर रहते हैं और अकसर वे महिलाएं अकेली रहती हैं.

मिसेज खुशबू भी अकेली रहती हैं. लेकिन उन के बारे में चर्चा यह है कि उन के पति का देहांत हो चुका है, और वह इस शहर में एक प्रतिष्ठित मिशन स्कूल में टीचर रह चुकी हैं. नौकरी से मुक्त होने के बाद वह अपने मूल शहर वापस नहीं गईं, और इसी शहर में अपनी कोठी बना कर बस गईं.

शाम के 6 बजे थे. मिसेज खुशबू ने चाय के लिए अपनी मेड को आवाज दी. उसी समय दरवाजे की बेल बजी. मिसेज खुशबू ने बाहर का गेट खोला, देखा, एक खूबसूरत स्त्री हाथ में बेग लिए खड़ी है. उन्होंने नीचे से ऊपर तक इस स्त्री पर नजर डाली, टौप और नीली जींस में, आंखों पर काला चश्मा लगाए एक गौर वर्ण की खूबसूरत युवती खड़ी है. मिसेज खुशबू ने मुसकरा कर हेलो किया, फिर पूछा, ‘जी, बताइए?’

‘मैं राधिका हूं. क्या मैं आप से मिल सकती हूं?’

‘ओ… यस, कम… कम,’ और मिसेज खुशबू राधिका को अंदर ड्राइंगरूम में ले गईं.

मेड को आवाज दे कर पानी लाने और एक कप चाय और बना कर लाने के लिए कहा.

चाय पर बातचीत शुरू हुई. मिसेज खुशबू ने पूछा, ‘हां तो बताइए, आप क्या बात करना चाहती थीं?’

‘दरअसल मैम, मैं आप के क्लब की मेंबर बनना चाहती हूं,’ राधिका ने जवाब दिया.

‘ओह, नाइस. क्या करती हैं आप?’

‘जी मेम, मैं भी टीचर हूं.’

‘मैं भी का क्या मतलब…? कोई और भी है?’

‘जी, आप भी टीचर थीं ना?’

‘ओह,’ मिसेज खुशबू मुसकराईं.

‘कहां पढ़ाती हैं आप?’

‘जी, गवर्नमेंट गर्ल्स कालेज में.’

‘क्यों मेंबर बनना चाहती हैं?’

राधिका ने विनम्रता से कहा, ‘क्या है कि मैम, कुछ मेलजोल बढ़ेगा, विचारों के आदानप्रदान से लाभ होगा, और समय भी कटेगा.’

मिसेज खुशबू ने कागजी कार्यवाही पूरी कर के राधिका को ‘महिला सत्संग’ का सदस्य बना लिया. फिर कहा, ‘वैसे तो हर महीने के दूसरे और आखिरी वीकेंड पर हमारी सभा होती है. लेकिन कभीकभी खास सभाएं होती हैं, तो फोन से सब को सूचित कर दिया जाता है.’

कोई एक हफ्ते बाद राधिका के फोन पर मिसेज खुशबू का मैसेज आया, ‘इसी संडे को कुछ नए सदस्यों का परिचय कराने के लिए पार्टी रखी गई है. आप शाम 6 बजे आइएगा.’

राधिका ने मैसेज पढ़ा और ओके लिख कर रिप्लाई सेंड कर दिया.

उस दिन राधिका ने सारे जरूरी काम शाम 5 बजे से पहले ही निबटा लिए. वह ठीक शाम के 6 बजे मिसेज खुशबू की कोठी पर पहुंच गई.

पार्टी ऊपर के कमरे में थी. राधिका ने प्रवेश किया तो देखा कि कई महिलाएं सोफे पर विराजमान थीं. वह उन में से किसी को नहीं जानती थी. उस ने सभी उपस्थित महिलाओं को सिर झुका कर हाथ जोड़ कर नमस्कार कहा और एक खाली सोफे पर बैठ गई. कुछ देर में संस्था की बाकी सदस्य भी आ गईं. सब से अंत में आईं, मिसेज खुशबू. उन्होंने पार्टी की कुछ औपचारिक कार्यवाही के बाद नए सदस्यों का परिचय कराना शुरू किया, ‘ये मिस कल्पना हैं. आकाशवाणी में ये अनाउंसर थीं. अब सोशल वर्कर हैं. ये मिसेज नीलम सिंह हैं, फ्रीलांसर हैं. ये मिसेज मधु हैं, इन का खुद का गारमेंट बिजनेस है और सिलाईकढ़ाई का केंद्र भी चलाती हैं. ये हैं हमारी संस्था की सब से महत्वपूर्ण मेंबर सविता भटनागर, स्त्री मामलों की विशेषज्ञ और मशहूर वकील. फिर वह मेरी तरफ मुखातिब हो कर बोलीं, ‘और ये हैं ब्यूटीफुल लेडी राधिका, जो गवर्नमेंट कालेज में अंगरेजी पढ़ाती हैं और खुले विचारों की हैं.’

‘खुले विचारों से मतलब…?’ मनीषा त्रिपाठी ने पूछा.

राधिका ही बोल पड़ी, ‘प्रगतिशील और वैज्ञानिक भी.’

‘तो क्या हम प्रगतिशील नहीं हैं?’ स्वाति मिश्रा ने सवाल किया.

‘जरूर हो सकती हो. क्यों नहीं हो सकती?’ राधिका ने जवाब दिया.

इस के बाद मनीषा त्रिपाठी ने सभी सदस्यों को रामनवमी की अग्रिम बधाई दी. राधिका ने पूछा, ‘अगर कोई रामनवमी न मनाता हो तो…?’

‘क्या आप रामनवमी नहीं मनाती हैं?’ स्वाति ने पूछा.

‘नहीं, मैं क्यों रामनवमी मनाऊं?’ राधिका ने जवाब दिया.

‘क्या आप हिंदू नहीं हैं?’ मनीषा त्रिपाठी ने पूछा.

‘जरूर हिंदू हूं, पर मैं अंधविश्वासी नहीं हूं,’ राधिका ने जवाब दिया.

‘इस में अंधविश्वास कहां से आ गया? राम कल के दिन पैदा हुए थे,’ मनीषा ने बताया.

राधिका ने शांत हो कर कहा, ‘देखिए, बुरा न मानिए. पहले तो राम ऐतिहासिक नहीं हैं, जैसे बुद्ध हैं, महावीर हैं. दूसरी बात यह कि जो जन्म लेता है, वह भगवान कैसे हुआ? वह तो मनुष्य ही हुआ.’

‘हां, वह मनुष्य रूप में अवतार थे विष्णु के,’ मनीषा ने बताया.

‘उन्हें मनुष्य रूप में अवतार लेने की जरूरत क्यों पड़ी?’

‘रावण और राक्षसों का वध करने के लिए उन्हें अवतार लेना पड़ा था.’

‘रावण और राक्षस लोग विष्णु का क्या नुकसान कर रहे थे, जो उन को मारने के लिए उन्हें धरती पर आना पड़ा?’

‘आप को इतना भी नहीं पता,’ स्वाति ने कहा, ‘रावण और राक्षस लोग ब्राह्मणों के शत्रु थे, उन्हें सताते थे और मार कर खा जाते थे.’

‘ओह, तो इस का मतलब यह हुआ कि राम का अवतार ब्राह्मणों की रक्षा के लिए हुआ था, मनुष्य मात्र के कल्याण के लिए नहीं. जैसे बुद्ध ने संपूर्ण मानवता को करुणा, मैत्री और अहिंसा का संदेश दिया था.’

फिर राधिका ने आगे कहा, ‘ये राम ब्राह्मणों के भगवान थे, फिर तो आप ने ठीक ही उन की पूजा की.’

मिसेज खुशबू ने देखा, मनीषा और स्वाति के चेहरों पर विषाद की रेखाएं उभर आई थीं. वातावरण में तनाव पैदा हो गया था. उन्होंने तनाव को हलका करने के लिए मधु को गजल सुनाने को कहा, पर तनाव के बीच ही मनीषा और स्वाति पार्टी से उठ कर चली गईं.

‘वादविवाद तो किटी पार्टी का हिस्सा है. इस से गुस्सा हो कर जाना तो ठीक नहीं,’ राधिका ने कहा.

मिसेज खुशबू ने कहा, ‘किटी पार्टी का मतलब सिर्फ पीनाखाना ही नहीं है, वरन इस का उद्देश्य हर तरह के विषयों पर तार्किक बहस चलाना भी है. यहां आज तक ऐसे विषयों पर कभी बहस ही नहीं हुई. सिर्फ खानापीना और घरगृहस्थी की निजी बातें ही ज्यादा हुई हैं.

‘आज पहली बार राधिका के आने से किटी पार्टी में विमर्श की शुरुआत हुई है. और पहली बार मुझे पता चला कि यह कुछ सदस्यों को पसंद नहीं आया.’

‘लेकिन मैम, मैं ने तो ऐसा कुछ कहा ही नहीं, जिस से वे नाराज हो कर चली गईं?’ राधिका ने कहा.

मिसेज खुशबू ने कहा, ‘इट्स ओके.’

इस के बाद पार्टी समाप्त हो गई.

दूसरे दिन मिसेज खुशबू के घर की घंटी फिर बजी. मिसेज खुशबू ने दरवाजा खोला, तो सामने स्वाति मिश्रा को देख कर चौंकी.

‘ओह स्वाति आप? कैसे आना हुआ?’ मिसेज खुशबू ने पूछा.

‘मेम, मुझे कुछ बात करनी है आप से,’ स्वाति ने कहा.

‘ओह, कम… कम,’ मिसेज खुशबू उन्हें घर में ले गईं. ड्राइंगरूम में बैठा कर पूछा, ‘हां बताओ, क्या बात करनी है?’

‘मेम, आप जानती हैं, ये राधिका कौन है?’ स्वाति ने पूछा.

‘ओह, राधिका. वह हमारे ‘महिला सत्संग’ की नई सदस्य बनी हैं. लेकिन तुम इतना परेशान क्यों लग रही हो?’

‘मेम, वह कोटे वाली है,’ स्वाति ने कहा.

‘वाट…? कोठेवाली…? क्या कह रही हो? तुम होश में तो हो? वह टीचर है गवर्नमेंट स्कूल में. कोठेवाली कैसे हो सकती है?’ मिसेज खुशबू ने आश्चर्य के साथ पूछा.

‘सौरी मेम, कोठेवाली नहीं, कोटे वाली.’

‘मतलब…?’

‘मतलब, वह दलित जाति से है. डा. अंबेडकर को मानने वाली है. इसीलिए तो वह राम को नहीं मानती.’

‘तो क्या हुआ? हमारी संस्था यह सब नहीं मानती. हम न तो किसी की जाति पूछते हैं और न ही लिखवाते हैं. आप ने हमारी संस्था के फार्म में जाति का कालम देखा है क्या?’ मिसेज खुशबू ने कठोरता से कहा.

स्वाति ने परेशान हो कर कहा, ‘लेकिन मेम, हम उस के साथ सहज नहीं रह पाएंगे.’

‘क्यों…?’

‘इसलिए कि हम ब्राह्मण हैं… और वह अछूत.’

‘यह क्या ब्राह्मणअछूत लगा रखी है? कौन सी दुनिया में जी रही हो तुम स्वाति ?’ मिसेज खुशबू ने थोड़ा कठोर हो कर कहा.

‘लेकिन, तुम कैसे कह सकती हो, तुम ब्राह्मण हो?’ खुशबू ने पूछा.

स्वाति एकदम चौंक गई. फिर बोली, ‘आप ऐसा कैसे कह रही हैं?’

‘क्यों नहीं कहूं? आप एक सुंदर और सुशिक्षित महिला को अपनी नफरत के काबिल समझती हैं कि वह दलित है? और आप अपने को सम्मान के काबिल समझती हैं कि आप ब्राह्मण हैं? किधर से आप ब्राह्मण हैं और किधर से राधिका दलित है?’ खुशबू ने थोड़ा नाराज हो कर कहा.

स्वाति को इस तरह के सवाल की बिलकुल भी उम्मीद नहीं थी. वह यही समझती थी कि समाज में ब्राह्मण ही सब से ऊंचा वर्ग है और दलित सब से नीचा. उसे अपने घरपरिवार में इसी तरह के भेदभाव वाले संस्कार मिले थे. एक नीच स्त्री की इतनी हैसियत नहीं कि वह किटी पार्टी में धर्म पर बहस करे और मिसेज खुशबू हैं कि ब्राह्मण और दलित में कोई भेद ही नहीं कर रही हैं. कहीं मिसेज खुशबू भी तो दलित नहीं हैं? उस के मन में संदेह पैदा हुआ. उस ने सोचा कि क्यों न संदेह मिटा लिया जाए. अत: स्वाति ने पूछा, ‘मैम, आप किस जाति की हैं?’

मिसेज खुशबू जरा भी विचलित नहीं हुईं. शुरू में वह ऐसे सवालों से जरूर परेशान होती थीं, लेकिन अब नहीं होतीं. उन्हें समझ में आ गया था कि अगर समाज को बदलना है, तो जाति के बंधन से मुक्त होना जरूरी है. इसलिए उन्होंने स्वाति से ही पूछ लिया, ‘आप ही बताओ, मेरी जाति क्या हो सकती है? मैं पेड़ हूं? पक्षी हूं? पशु हूं या मनुष्य हूं?’

‘औफ कोर्स मैम, आप मनुष्य हैं,’ स्वाति ने जवाब दिया.

‘फिर आप जाति क्यों पूछ रही हैं? जातियां तो पशुपक्षियों में होती हैं.’

‘मैम, जातियां मनुष्यों में भी होती हैं.’

खुशबू ने कहा, ‘मुझे तो मनुष्यों में जातियां नहीं दिखाई देतीं. अगर आप को लगता है कि जातियां होती हैं, तो अलगअलग जातियों की कुछ फिजिकली पहचान भी जरूर होनी चाहिए. यह क्या पहचान है, जरा हमें भी बताइए कि किस चीज से कोई ब्राह्मण होता है, और कोई दलित?’

स्वाति इस सवाल से परेशान सी हो गई थी, पर उस ने अपनी परेशानी को छिपाते हुए पूछा, ‘क्या पहचान…? मैं समझी नहीं.’

खुशबू ने दोहराया, ‘मेरे कहने का मतलब यह है कि आप के पास ब्राह्मण होने की क्या पहचान है, जो राधिका के पास नहीं है. और राधिका के पास दलित होने की क्या पहचान है, जो आप के पास नहीं है?’

स्वाति मौन हो गई. खुशबू ने समझाने के लहजे में फिर कहा, ‘क्या स्वाति, आप का और राधिका का रंग अलगअलग है?’

स्वाति ने कहा, ‘नहीं.’

खुशबू ने फिर कहा, ‘तब क्या शरीर की बनावट अलगअलग है? आप की नाक कहीं और जगह लगी है, और राधिका की कहीं और जगह?’

स्वाति ने जवाब दिया, ‘नहीं.’

खुशबू पूछने लगी, ‘तब क्या आप के और राधिका के हाथपैरों की बनावट में कोई अंतर है यानी आप के हाथपैर बड़े हों और राधिका के छोटे?’

स्वाति सहमते हुए बोली, ‘नहीं मैम, ऐसा कुछ नहीं है. सब बराबर हैं.’

खुशबू ने अपनी बात फिर दोहराई, ‘फिर क्या पहचान है…? आप अपने ब्राह्मण होने की कुछ तो पहचान बताइए.’

स्वाति मौन.

खुशबू ने कहा, ‘अच्छा अपनी पहचान नहीं बताना चाहती, तो मत बताओ. पर, कम से कम आप राधिका के ही दलित होने की पहचान बता दीजिए कि आप ने कैसे पहचाना कि वह दलित है?’

स्वाति के पास कोई जवाब नहीं था, पर वह मिसेज खुशबू की कोई भी दलील मानने को तैयार नहीं थी. अगर मानती तो उसे अपनी उच्चता की भावना छोड़नी पड़ती, जिस का मिथ्या दंभ उस की नसनस में भरा हुआ था. उसे वह छोड़ना नहीं चाहती थी. इसलिए उस ने मिसेज खुशबू से कहा, ‘मैम, मैं अब आप के महिला मंडल में नहीं रहना चाहूंगी. मुझे इजाजत दीजिए, मैं चलती हूं, अपना इस्तीफा भिजवा दूंगी.’

मिसेज खुशबू ने कहा, ‘आप ने सही फैसला किया है. आप जैसी जातिवादी और मनुष्य विरोधी अशिक्षित महिला की मेरे ‘महिला सत्संग’ में जरूरत भी नहीं है. और केवल मेरे ‘महिला सत्संग’ को ही नहीं, आप किसी भी संस्था, समाज के लिए अवांछित तत्व हैं.’

Online Hindi Story : बिंदास लड़की

Online Hindi Story : बुजुर्गों की तरफ से तो रिश्ता तय हो चुका था. कुंडली मिलान, लेनदेन सब कुछ. बस, अब सब लड़कालड़की की आपसी बातचीत पर निर्भर था. बुजुर्गों ने तय किया कि लड़कालड़की आपस में बात कर एकदूसरे को समझ लें. कुछ पूछना हो तो आपस में पूछ लें. उन्हें एकांत दिया गया.

लड़के को शांत देख लड़की ने कहा, ‘‘आप कुछ पूछना चाहते हैं?’’ लड़का शरमीला था. मध्यमवर्गीय परिवार से था. उस ने कहा, ‘‘नहीं, बुजुर्गों ने तो सब

देखपरख लिया है. उन्होंने तय किया है तो सब ठीक ही होगा. आप दिखने में अच्छी हैं. मुझे पसंद हैं, बस इतना पूछना था कि…’’ लड़का पूछने में लड़खड़ाने लगा तो उस पढ़ीलिखी सभ्य लड़की ने कहा, ‘‘पूछिए, निस्संकोच पूछिए, आखिर हमारीआप की जिंदगी का सवाल है.’’

लड़के ने पूछा, ‘‘यह शादी आप की मरजी से… मेरे कहने का अर्थ यह है कि आप राजी हैं, आप खुश हैं न.’’

‘‘हां, लड़की ने बड़ी सरलता और सहजता से कहा. नहीं होती तो पहले ही मना कर देती.’’ लड़का चुप रहा. अब लड़की ने कहा, ‘‘मैं भी कुछ पूछना चाहती हूं आखिर मेरी भी जिंदगी का सवाल है. उम्मीद है कि आप बुरा नहीं मानेंगे.’’

‘‘नहींनहीं, निस्संकोच पूछिए,’’ लड़के ने कहा. वह मन ही मन सोचने लगा, ‘लड़की पढ़ीलिखी है तो तेज तो होगी ही लेकिन इतनी बिंदास और बेबाक.’

‘‘आप का शादी के पहले कोई चक्कर, मेरा मतलब कोई अफेयर था क्या?’’

‘‘क्या,’’ लड़के ने लड़की की तरफ देखा.

‘‘अरे, आप घबरा क्यों गए? कालेज में पढ़े हो. इश्क वगैरा हो जाता है. इस में आश्चर्य की क्या बात है? सच बताना. एकदूसरे से क्या छिपाना?’’

‘‘जी, वह एक लड़की से. बस, यों ही कुछ दिन तक. अब सब खत्म है,’’ लड़के ने झेंपते हुए कहा.

‘‘मेरा भी था,’’ लड़की ने बेझिझक कहा.

‘‘अब नहीं है.’’

लड़का लड़की का मुंह ताकने लगा.

‘‘क्यों, क्या हुआ? जब आप ने कहा तब मैं ने तो ऐसा रिएक्ट नहीं किया जैसा आप कर रहे हैं. आप ने तो पूछने पर बताया, मैं ने तो ईमानदारी से बिना पूछे ही बता दिया.’’

‘‘अच्छा, यह बताओ कि महीने में कितना कमा लेते हो?’’ लड़की ने आगे पूछा.

‘‘जी, 10 हजार रुपए.’’

‘‘मैं ने वेतन नहीं पूछा, टोटल कमाई पूछी है.’’

‘‘जी, मैं घूस नहीं लेता,’’ लड़के ने ताव से कहा.

‘‘अच्छा, पैदाइशी हरिश्चंद्र हो या अन्ना आंदोलन का असर है या फिर, डरते हो’’ लड़की हंस कर बोली.

‘‘यह क्या कह रही हैं आप?’’

‘‘तो आप ईमानदार हैं.’’

‘‘जी, बिलकुल.’’

‘‘फिर घर कैसे चलाएंगे 10 हजार रुपए में, खासकर शादी के बाद. कम से कम 5 हजार रुपए तो मेरे ऊपर ही खर्च होंगे. क्या शादी के बाद अपनी पत्नी को घुमाने नहीं ले जाएंगे. बाजार, सिनेमा, कपड़े, जेवर वगैरावगैरा.’’

लड़के बेचारे के तो होश गुम थे. अच्छाखासा इंटरव्यू हो रहा था उस का. अब उसे लड़की बड़ी बेशर्म और उजड्ड मालूम हुई.

लड़की ने कहा, ‘‘देखो, शादी के बाद मुझे कोई झंझट नहीं चाहिए. अपनी मांबहन को पहले ही समझा कर रखना. मुझे सुबह आराम से उठने की आदत है और हां, शादी के बाद अकसर लड़झगड़ कर लड़के अलग हो जाते हैं. और सारी गलती बहुओं की गिना दी जाती है. सो अच्छा है कि हम पहले ही तय कर लें कि किसी भी बहाने से बिना लड़ाईझगड़े के अलग हो जाएं. तुम्हारा तो सरकारी जौब है, ट्रांसफर करा लेना. दूसरी बात रही पहनावे की तो मुझे साड़ी पहनने की आदत नहीं है. कभी शौक से, कभी मजबूरी में पहन ली तो और बात है. मैं सलवारसूट, जींस पहनती हूं और घर में बरमूड़ा, रात में नाइटी. बाद की टैंशन नहीं चाहिए, यह मत पहनो, वह मत करो, पहले ही बता देती हूं कि पूजापाठ मैं करती नहीं.’’

लड़की कहे जा रही थी और लड़का सुने जा रहा था. लड़के को लगा कि वह भी क्या समय था कि जब लड़की लजाते, शरमाते उत्तर देती थी, हां या न में. लड़का पूछता था, खाना बनाना आता है, गाना गाना जानती हो, कोई वाद्ययंत्र गिटार, सितार वगैरा बजा लेती हो, सिलाईबुनाई आती है, मेरे मातापिता का ध्यान रखना होगा और लड़की जीजी, हांहां करती रहती थी और अब जमाना इतना बदल गया.

उसे तो यह लगा मानो वह साक्षात्कार दे रहा हो. यह भी सही है कि अधिकतर जोड़े शादी के बाद अलग हो जाते हैं. दुल्हनें अपनी मांगों पर अड़ कर परिवार के 2 टुकड़े कर देती हैं. फिर अपनी मनमरजी का ओढ़नेपहनने से ले कर खाने में नमक, मिर्च कम ज्यादा होने पर सासबहू की खिचखिच शुरू हो जाती है. यह कह तो ठीक ही रही है, लेकिन शादी से पहले ही इतनी बेखौफ और निडर हो कर बात कर रही है तो बाद में न जाने क्या करेगी? यह तो नीति और मर्यादा के विरुद्ध हो गया. अभी पत्नी बनी नहीं और पहले से ही ये रंगढंग. लड़का तो फिर लड़का था. उस ने भी कहा, ‘‘शादी से पहले का भी बता दिया और शादी के बाद का भी. तुम से शादी करने का मतलब मांबाप, भाईबहन सब छोड़ दूं, तुम्हारे शौक पूरे करता रहूं. कर्तव्य एक भी नहीं और अधिकार गिना दिए. यह क्या बात हुई?’’

लड़की ने कहा, ‘‘जो होता ही है वह बता दिया तो क्या गुनाह किया. सच ही तो कहा है, इस में क्या जुर्म हो गया.’’

‘‘यह कोई तरीका है कहने का. यह कहती कि तुम्हारा घर संभालूंगी, बड़ेबूढ़ों का आदर करूंगी, सब का ध्यान रखूंगी तो अच्छा लगता.’’

‘‘ये सब तो आया के काम हैं. बाई है घर पर काम वाली या हमेशा मुझ से ही सब करवाने के चक्कर में हो. धोबिन भी मैं, बरतन, झाड़ूपोंछा वाली भी मैं. पत्नी चाहिए या नौकरानी,’’ लड़का भी उत्तर देने लगा, ‘‘क्या जो पत्नियां अपने घर का काम करती हैं वे नौकरानी होती हैं?’’

‘‘अरे, आप तो नाराज हो गए,’’ लड़की ने अपनी हंसी दबाते हुए कहा. सरकारी नौकरी में हो, ऊपरी कमाई तो होगी ही. फिर मेरे पिता दहेज में वाशिंग मशीन तो देंगे ही, कपड़े धुलाई का काम आसान हो जाएगा. मैं तो कुछ बातें पहले से ही स्पष्ट कर रही हूं जैसे मुझे 3-4 सीरियल देखने का शौक है और उन्हें मैं कभी मिस नहीं करती. अब ऐसे में कोई काम बताए तो मैं तो टस से मस नहीं होने वाली, अपने दहेज के टीवी पर देखूंगी. चिंता मत करना. किसी और के मनपसंद सीरियल के बीच में नहीं घुसूंगी.

लड़के के चेहरे के बदलते रंग को देख कर लड़की ने कहा, ‘‘आप को बुरा तो लग रहा होगा, लेकिन ये सब नौर्मल बातें हैं जो हर घर में होती हैं. मेरी ईमानदारी और साफगोई पर आप को खुश होना चाहिए और आप हैं कि नाराज दिख रहे हैं.’’

‘‘नहीं, मैं नाराज नहीं हूं मुझे कुछ कहना है,’’ लड़के ने कहा.

‘‘हां, मुझे गोलगप्पे, चाट, पकोड़ी खाने का बड़ा शौक है, कम से कम हफ्ते में एक बार तो ले ही जाना होगा.’’

लड़की बोले जा रही थी, बोले जा रही थी. बेवकूफ थी, कमअक्ल थी. समझ नहीं आ रहा था लड़के को.

लड़की ने फिर पूछा, ‘‘सुनो, तुम शराब, सिगरेट तो नहीं पीते. तंबाकू तो नहीं खाते.’’

‘‘जी…जी…’’ लड़के की जबान फिर लड़खड़ाई.

‘‘जी…जी, क्या हां या नहीं,’’ लड़की ने थोड़े तेज स्वर में पूछा.

अब आप ने इतना सच बोला है तो मैं भी क्यों झूठ बोलूं. कभीकभी दोस्तों के साथ पार्टी वगैरा में.

‘‘देखो, मुझे शराब और सिगरेट से सख्त नफरत है. इस की बदबू से जी मिचलाने लगता है. तंबाकू खा कर बारबार थूकने वालों से तो मुझे घिन आती है. सब छोड़ना होगा. पहले सोच लो. तुम्हारे मातापिता को ये सब पहले बताना चाहिए था, वे तो कह रहे थे कि लड़का बड़ा शरीफ और सज्जन है. झूठ बोलने की क्या जरूरत थी?’’

‘‘आप मेरे मातापिता को अभी से झूठा कह रही हैं,’’ लड़के ने गुस्से में कहा. आप में शर्म नाम की कोई चीज ही नहीं है. लड़की भी गुस्से में बोली, ‘‘शराबीकबाबी, तुम झूठे और तुम्हारे मांबाप भी. शर्म तुम्हें आनी चाहिए कि मुझे. तगड़ा दहेज भी चाहिए. लड़की भी ऐसी चाहिए कि तुम कुछ भी करो. लड़की मुंह बंद कर के रहे. कल शराब पी कर हाथ भी उठाओगे. फिर सुबह माफी मांगोगे कि नशे में हो गया. ये सब मैं सहने वाली नहीं. सीधा रिपोर्ट करूंगी. सब के सब अंदर हो जाओगे. नए जमाने की पढ़ीलिखी लड़की हूं. अपने राइट्स जानती हूं.’’

इस से ज्यादा सुनना लड़के के बस में नहीं था. वह गुस्से से बाहर निकल आया. मांबाप कुछ समझतेपूछते कि उस ने कहा, ‘‘यह शादी नहीं हो सकती. फौरन वापस चलिए,’’ लड़का गाड़ी में बैठ गया.

‘‘क्या हुआ? क्या हुआ?’’ कहते हुए लड़की के परिवार वाले दौड़े.

लड़के ने कहा, ‘‘अपनी लड़की से पूछ लेना.’’

लड़का अपने परिवार के साथ गाड़ी में बैठ कर उड़नछू हो गया.

‘‘अरे, अभागिन, क्या कह दिया तूने,’’ लड़की की मां ने गुस्से से लड़की से कहा. इतना अच्छा रिश्ता हाथ से निकल गया. जन्मपत्री भी मिल रही थी. सरकारी नौकरी वाला लड़का मिलता कहां है आजकल.

लड़की ने अपने बचाव में कह दिया लागलपेट कर, ‘‘अरे मां, अच्छा हुआ, बात करवा दी आप ने. लड़का एक नंबर का शराबीकबाबी है. किसी लड़की से अफेयर की बात भी कह रहा था और भी न जाने क्याक्या बताया मां उस ने.’’

लड़की के मांबाप ने मान भी लिया. जब अपनी ही लड़की बताए तो मांबाप विश्वास क्यों नहीं करेंगे. फिर कौन सी लड़की होगी जो अपनी शादी अपने हाथ से तोड़ कर अपना भविष्य बरबाद करेगी.

रात को लड़की ने अपने कमरे में जा कर मोबाइल लगाया.

‘‘हाय, जानेमन कैसे हो?’’

‘‘क्या हुआ?’’

‘‘होना क्या था. उलटे पांव भगा दिया साले को.’’

‘‘वैरी गुड डार्लिंग, लेकिन अब आगे?’’

‘‘आगे क्या? प्यार करते हो तो आ कर बात करो मेरे मांबाप से.’’

‘‘नहीं माने तो.’’

‘‘नहीं माने तो हमें कौन सा लैलामजनूं बन कर भटकना है. कोर्ट मैरिज कर लेंगे.’’

‘‘लेकिन उस में 1 महीना लगता है. उस के पहले कोई और आ गया तो.’’

‘‘तो ठीक है यार, मंदिर में कर लेंगे.’’

‘‘लेकिन यह बताओ, आखिर तुम ने कहा क्या उस लड़के से जो वह भाग गया.’’

‘‘सच कहा, केवल सच.’’

‘‘सच सुन कर भाग गया.’’

‘‘अरे, आजकल सच बरदाश्त कौन करता है.’’

‘‘और तुम्हारा सच बरदाश्त कर लेता तो.’’

‘‘तो कर लेती.’’

‘‘क्या…क्या…कहा?’’

‘‘हां, कर लेती यार, आजकल सच्चा आदमी मिलता कहां है?’’

‘‘और मेरा क्या होता?’’

‘‘तुम कौन से देवदास बने घूमते. ढूंढ़ लेते कोई और.’’

‘‘बहुराष्ट्रीय कंपनियों में काम करतेकरते हम सचमुच कितने प्रैक्टिकल हो गए हैं. दिल तो जैसे है ही नहीं. न आत्मा, न मन, न जमीन, बस मुनाफा मोटी तनख्वाह, कितनी बेशर्म और बेहया हो गई है हमारी सोच. बिलकुल मशीन हो गए हैं हम लोग,’’ उधर से पे्रमी का दार्शनिक स्वर सुनाई दिया.

लड़की ने कहा, ‘‘ओए, ज्यादा जज्बातजमीर की बातें मत कर. जल्दी से कंपनी का टारगेट पूरा कर. 4 भोलेभाले, भविष्य की चिंता करने वालों को सपने दिखा, कमा, लूट और अपनी जगह पक्की कर.’’

‘‘मान लो, मैं किसी वजह से तुम से शादी न कर सकूं, मना कर दूं किसी मजबूरी के कारण या कोई और पसंद आ जाए, तब क्या होगा तुम्हारा,’’ पे्रमी का स्वर गंभीर था.

‘‘तो क्या होगा कुछ नहीं, मुझे पुरानी फिल्मों की मीनाकुमारी समझ रखा है क्या? तुम नहीं तो और सही, नहीं तो…’’

‘‘अच्छा, ठीक है. अब यह बकवास बंद कर. रात बहुत हो गई है. आई लव यू बोल और फोन रख,’’ लड़का हंसते हुए बोला.

‘‘ओ के कल मिलते हैं.’’

‘‘ओ के, बाय गुडनाइट.’’

‘‘बाय, स्वीट ड्रीम्स’’

‘‘और दोनों तरफ से मोबाइल बंद हो गया.’’

Hindi Kahani : कैसे बदली आयशा की जिंदगी?

Hindi Kahani : आएशा का सपना था कि वह बड़ी हो कर कंप्यूटर के क्षेत्र में अपना नाम कमाए. इसी सपने को ले कर वह अपने गांव से इलाहाबाद के एक प्रसिद्ध कालेज पहुंची थी, पर वहां सीनियर्स को देख कर अचकचा गई. उसे कुछ ऐसा महसूस होने लगा जैसे वे सब उस से अलग हैं. उन के व्यक्तित्व के आगे वह खुद को बौना महसूस करती. उस के पास गिनेचुने 3-4 सलवारसूट थे. अन्य लड़कियां जींस और टौप पहन कर घूमतीं.

आएशा को अंगरेजी उतनी ही आती थी जितनी कंप्यूटर प्रोग्राम लिखने के लिए जरूरी होती है जबकि उस के अन्य सहपाठी फर्राटेदार अंगरेजी बोलते. लड़कियों के बाल भी मौडर्न स्टाइल में कटे होते. आएशा के बाल लंबे थे. वह 2 चोटियों के अलावा कोई और स्टाइल बनाना जानती ही नहीं थी.

अपने इन खयालों की वजह से वह किसी से बातचीत करने में भी अचकचाती थी. वैसे भी हौस्टल में उस की रूममेट आलिया को किसी कारणवश कालेज जौइन करते ही घर जाना पड़ गया था. पहले से वह किसी को जानती नहीं थी, इसलिए ज्यादातर वह अकेली ही रहती. कक्षा में अन्य छात्र उसे अकसर चिढ़ाते. कभीकभी सीधे कटाक्ष भी करते थे. वह काफी उदास रहने लगी. हालांकि वह पढ़ाई में बहुत होशियार थी, पर उस का ध्यान इन चीजों की वजह से पढ़ाई में लगना कुछ कम हो गया था.

एक दिन आएशा अपने कमरे में इसी तरह उदास बैठी थी कि अचानक दस्तक हुई. ‘उस के कमरे में कौन आ गया’, यह सोचते हुए उस ने दरवाजा खोला. सामने एक खूबसूरत लड़की खड़ी थी. उस ने हाथ आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘‘हाय, आई

एम आलिया, योर रूममेट. तुम जरूर आएशा होगी?’’

डर के मारे एक क्षण के लिए आएशा के मुंह से कुछ नहीं निकला. उस ने यह तो सोचा ही नहीं था कि उस की रूममेट को भी उसे झेलना पड़ेगा. उस के मन में यही विचार चलने लगे थे कि यह आलिया भी उस का मजाक बनाएगी. उस ने सहमते हुए अपना हाथ आलिया से मिलाया पर आलिया के चेहरे पर फैली मुसकान देख कर वह अपना डर कुछ भूल गई.

आलिया ने कहा, ‘‘मैं ने सुना है कि तुम बहुत होशियार हो और 12वीं में तुम्हारे बहुत अच्छे नंबर आए थे. भई, मैं तो पढ़ाई में बहुत पीछे हूं. मुझ से अंगरेजी कितनी ही बुलवा लो, पिक्चरों की कहानियां कितनी ही पूछ लो और लेटैस्ट फैशन स्टाइल के बारे में कुछ भी जान लो, पर पढ़ाई में तो मेरा हाल बड़ा ही बुरा है. मैं तो यह जान कर खुश हो गई कि तुम मेरी रूममेट हो. खूब जमेगी अपनी,’’ कह कर आलिया ने आएशा को गले लगा लिया. उस का चुलबुलापन देख कर आएशा भी मुसकराए बिना रह न सकी. दोनों ने मिल कर कुछ देर तक बातें की और फिर दोनों सो गईं.

आलिया में न जाने क्या बात थी कि वह जल्दी ही आएशा की दोस्त बन गई पर आलिया के अन्य दोस्तों से वह कभी दोस्ती नहीं कर सकी. वह ऐसी जगहों पर आलिया के पास जाती ही नहीं थी, जहां पर उस के अन्य दोस्त होते.

आलिया की खास सहेलियां तारा और शिवानी तो उसे खासकर अच्छी नहीं लगती थीं. वह अकसर उस का और उस के कपड़ों का खूब मजाक बनाती थीं. उस के बोलने के तरीके पर तो वे कई बार उस के सामने ही उस का मजाक उड़ा दिया करती थीं.

एक दिन आएशा पढ़ने में व्यस्त थी. आलिया अपना मोबाइल छोड़ कर कहीं गई हुई थी. मोबाइल बारबार बज रहा था. उस ने देखा कि उस पर डैडी लिखा आ रहा है. आएशा को लगा कि हो सकता है, कोई जरूरी फोन हो. वह आलिया को ढूंढ़ने लगी. ढूंढ़तेढूंढ़ते वह तारा और शिवानी के कमरे के पास पहुंची. अंदर से आवाजें आ रही थीं, ‘‘यार, आलिया तेरी कोई बात समझ में नहीं आती. तू खुद तो इतनी मस्त है पर उस आएशा को अपने साथ क्यों टांगे रखती है?’’ शायद यह तारा और शिवानी की मिलीजुली आवाजें थीं.

आलिया ने जवाब दिया, ‘‘यार, तुम लोग हर किसी को एक ही नजरिए से देखते हो, जबकि हर किसी में कुछ न कुछ खासीयत होती है. वह हमारी तरह मौडर्न भले ही न हो, पर पढ़नेलिखने में हम से बहुत आगे है. उस की देखादेखी मैं भी थोड़ाबहुत पढ़ने लगी हूं.’’

ये सब बातें सुन कर आएशा की आंखें भर आईं. तभी आलिया का फोन एक बार फिर बज उठा. आलिया और उस की सहेलियों का ध्यान एकदम से फोन लाने वाले की ओर गया. आएशा ने आलिया से कहा, ‘‘मैं तुम्हें तुम्हारा मोबाइल देने आई थी.’’

आलिया ने उस की आंखों के आंसू देख लिए थे. वह अपना मोबाइल ले कर और सहेलियों को बाय कह कर अपने कमरे में आ गई.

आलिया की मम्मी की तबीयत ठीक नहीं चल रही थी. पिछली बार भी उस को इसी वजह से घर जाना पड़ा था. उस की मम्मी उस से बात करना चाह रही थीं. बात खत्म होने के बाद उस ने आएशा को देखा. वह बिस्तर पर लेट कर किताब पढ़ने की कोशिश करने कर रही थी आलिया समझ गई कि उस का ध्यान पढ़ाई की तरफ नहीं है. वह सोचने लगी कि यदि इस तरह उस का ध्यान भटकता रहा तो उस की पढ़ाई ठीक तरह से नहीं हो पाएगी. वह अब तक उसे अच्छे से जाननेसमझने लगी थी.

आलिया उस के पास जा कर बैठी. उस ने सब से पहले उस की किताब उठा कर साइड में रख दी, फिर उस का काले फ्रेम वाला चश्मा निकाल दिया. उस की दोनों चोटियों को खोल दिया. आएशा उसे ध्यान से देख रही थी. वह समझ नहीं पा रही थी कि आलिया करना क्या चाह रही है.

आलिया उसे उठा कर शीशे के आगे ले गई और कहा, ‘‘देखो आएशा, तुम कितनी सुंदर हो. तुम कैसी दिखती हो, इस से मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता, पर मैं यह देख रही हूं कि हमारी अन्य क्लासमेट्स को इस से फर्क पड़ता है और तुम को भी पड़ने लगा है. तो क्यों न इस बार  कुछ ऐसा कर दें कि उन का भी मुंह बंद हो जाए और तुम को भी अपने पर कुछ एतबार हो जाए. बोलो, हो तैयार?’’

आएशा के यह कहने पर कि उसे इन सब से कोई फर्क नहीं पड़ता आलिया उसे चुपचाप देखती और सुनती रही. लेकिन अचानक आएशा फट पड़ी और जोर से चिल्लाई, ‘‘हां, पड़ता है मुझे फर्क. तुम्हारे अलावा हर कोई मुझ से बात करने से कतराता है. आज मैं ने सुना कि तुम्हारी सहेलियां भी किस तरह मेरा मजाक उड़ा रही थीं. मुझे सब फूहड़गंवार समझते हैं,’’ वह रोती हुई बिस्तर पर औंधे मुंह लेट कर सुबकने लगी.

आलिया उस के पास आ कर बैठी और धीरे से बोली, ‘‘अगर कोई और तुम्हें कुछ नहीं समझता है तो यह उस की दिक्कत है. पर मेरे पास एक आइडिया है. तुम्हें मेरे अनुसार ही चलना होगा. 2 महीने बाद हमारे कालेज में ब्यूटी क्वीन का चुनाव होना है. तुम उस में भाग लोगी और तुम्हारी पूरी टे्रनिंग मेरे जिम्मे है. वैसे मैं फ्री में कोई काम नहीं करती हूं. इस के बदले तुम्हें मुझे पढ़ाना होगा.’’

आएशा उस की ओर देखती हुई बोली, ‘‘ब्यूटी क्वीन और मैं? दिमाग तो नहीं फिर गया है तुम्हारा?’’

आलिया ने उस के होंठों पर उंगली रखते हुए कहा, ‘‘मैडम… तुम को कुछ बोलना नहीं है, सिर्फ करना है. यह बात अभी हम किसी को नहीं बताएंगे.’’

अब आलिया रोज शाम को पहले आएशा से कंप्यूटर सीखती और फिर उस को अंगरेजी बोलना सिखाती, उस को चलने व बात करने का तरीका और न जाने किनकिन चीजों पर लैक्चर देती. 2 महीने में आएशा काफी फर्राटेदार अंगरेजी बोलना सीख गई थी.

प्रतियोगिता के एक दिन पहले उसे ले जा कर आलिया ने उस के बाल स्टाइलिश तरीके से कटवा दिए. खुद के अच्छे कपड़े आएशा को पहना कर उसे ट्राई करवाती रहती थी. उस ने अपनी सब से अच्छी डै्रस प्रतियोगिता के दिन आएशा को पहनने को दी.

जब प्रतियोगिता के दिन आएशा को ले कर आलिया पहुंची तो कुछ क्षण के लिए किसी ने आएशा को पहचाना ही नहीं. प्रतियोगिता में तारा और शिवानी भी भाग ले रही थीं, पर सभी आएशा को देख कर आश्चर्यचकित थे. मन ही मन दोनों सोच रही थीं, ‘रूप अच्छा बना लिया, पर भाषा का क्या करेगी?’

थोड़ी ही देर में जब जजेस ने प्रश्न पूछे तो उस के उत्तर सुन कर वे काफी प्रभावित हुए.

आएशा जब ब्यूटी क्वीन चुन ली गई तो आएशा के साथसाथ आलिया की खुशी का भी ठिकाना न था. वह खुशी से झूम उठी. तारा और शिवानी ने उसे आ कर बधाई दी और अपने व्यवहार के लिए माफी मांगी.

कार्यक्रम खत्म होने के बाद आएशा जब वापस अपने कमरे में पहुंची तो  आलिया को धन्यवाद देने लगी. आलिया ने कहा, ‘‘मैडम, इस के बदले आप को अभी मुझे बहुत पढ़ाना है. मुझे भी तुम्हारी ही तरह जीत हासिल करनी है.’’

फिर आलिया धीरे से मुसकराती हुई बोली, ‘‘जिस क्षेत्र को हम ने चुना है, उसे  मैं बहुत अच्छी तरह जानती हूं कि आगे बढ़ने के लिए रूप से ज्यादा दिमाग की जरूरत पड़ेगी. पर चूंकि लोग तुम पर कमैंट मारते थे और तुम भी थोड़ी सी उदास रहने लगी थी, इसलिए मैं ने बस, तुम्हारी थोड़ी सी मदद की, पर मेहनत और गुण तो तुम्हारे ही थे. अब इन बातों में तुम भी कभी ध्यान नहीं दोगी, यह मैं जानती हूं. मैं अपने उन दोस्तों को भी अच्छी तरह जानती हूं जो तुम्हारा मजाक बनाते थे. देख लेना कल ही तुम से दोस्ती करने आ जाएंगे.’’

सुबह उठते ही उन के दरवाजे पर दस्तक हुई. आलिया सो रही थी. आएशा ने दरवाजा खोला तो सामने तारा और शिवानी बुके लिए हुए खड़ी थीं. वे उस के गले लग कर उस से एक बार फिर माफी मांगती हुई बोलीं, ‘‘आएशा, क्या तुम हमें भी अपना दोस्त बना सकती हो?’’

आएशा वापस 2 चोटियों में आ गई थी, पर उस के चेहरे पर एक नए आत्मविश्वास का तेज था. उस ने कहा, ‘‘क्यों नहीं, आखिर तुम दोनों मेरी सब से अच्छी सहेली की दोस्त जो हो.’’

आलिया भी तब तक जग गई थी और उन की बातें सुन मुसकरा उठी.

Donald Trump : US में भी पनप रहा है, ब्राह्मण और बनिया गठजोड़

Donald Trump : डोनाल्ड ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह के साथ ही अमेरिका में एक नए दौर की शुरुआत हो चुकी है जिसे ले कर हर कोई आशंकित है कि अब लोकतंत्र को हाशिये पर रख धार्मिक एजेंडे पर अमल होगा.

जातेजाते राष्ट्र के नाम अपने विदाई भाषण में जो बिडेन ने अपनी सरकार की उपलब्धियां गिनाने के अलावा जो कहा उस में रत्ती भर भी व्यक्तिगत भड़ास डोनाल्ड ट्रंप या रिपब्लिकंस के प्रति नहीं थी. बल्कि अमेरिका के आने वाले कल की भयावह तस्वीर का सटीक चित्रण था.

इतना परिपक्व संबोधन अमेरिका और अमेरिकंस फिर कभी सुन पाएंगे या नहीं यह तो कहा नहीं जा सकता लेकिन जो चिंताएं और खतरे बिडेन ने व्यक्त किए हैं उन से जाहिर होता है कि वहां भी ब्राह्मण बनिया गठजोड़ आकार और विस्तार ले रहा है. जो लोकतंत्र के लिए आखिरकार बेहद खतरनाक और बेहद घातक साबित होता है.

बिडेन ने किस तरह अमेरिका के गौरवशाली इतिहास को अंडरलाइन करते हुए भविष्य की भयावहता को व्यक्त किया, उसे उन के भाषण के इन बिंदुओं से आसानी से समझा जा सकता है.
– अमेरिका में सुपर रिच लोगों का बोलबाला बढ़ रहा है कुछ लोगों के पास ज्यादा पैसा होना लोकतंत्र को नुकसान पहुंचा सकता है.
– इस प्रतिमा ( स्टेच्यू औफ लिबर्टी ) की तरह अमेरिका का विचार केवल एक व्यक्ति की उपज नहीं है. बल्कि इसे दुनिया भर के अलगअलग पृष्ठभूमि के लोगों ने मिल कर सींचा है.
– अमेरिका होने का मतलब है लोकतान्त्रिक संस्थाओं का सम्मान करना. खुला समाज और फ्री प्रैस इस की आधारशिला हैं. शक्तियों और कर्तव्यों का संतुलन बनाए रखना हमेशा अच्छा होता है.
– वर्तमान समय में सही सूचनाओं का अभाव है. आज प्रैस पर भारी दबाव बढ़ गया है, स्वतंत्र मीडिया खत्म होने के कगार पर है.

अमेरिका होने के माने

आज हर कोई अमेरिका को ले कर आशंकित वेवजह नहीं है यहां तक कि खुद वे वोटर भी नहीं जिन्होंने डोनाल्ड ट्रंप को दोबारा चुना है. हालांकि खुल कर कोई कुछ नहीं बोल रहा यह और बात है. यही वह बिंदु है जो अमेरिका से उस के अमेरिका होने के माने छीनता है. अमेरिका में अब बोलने की पहले सी आजादी नहीं रही है जिस की मिसाल दुनिया देती थी. डोनाल्ड ट्रंप कैसे और क्यों चुने गए यह सरिता की कवर स्टोरी में बहुत तथ्यात्मक तरीके से स्पष्ट किया है. (शीर्षक – अमेरिका चर्च के शिकंजे में. अंक नवम्बर द्वितीय 2024)
अमेरिका कुछ साल पहले तक जाना जाता था खुली हवा के लिए जहां दुनिया भर के लोग आ कर या बस कर बेफिक्री की सांस लेते थे. विविधता अमेरिका की एक और खूबी थी. वहां के दरवाजे सभी के लिए खुले रहते थे जहां आ कर मेहनतकश लोगों को वाजिब दाम अपने काम के मिलते थे. उन्हें हर तरह की आजादी आम अमेरिकनों की तरह थी. इस देश में आ कर किसी को असुरक्षा और परायापन महसूस नहीं होता था. दुनिया के सब से शक्तिशाली और लोकतान्त्रिक देश में आ कर वहीं के हो जाने का अहसास अपने वतन की यादें अगर भुलाता नहीं था तो उन्हें याद कर रुलाता भी नहीं था. अमेरिका के विभिन्न वर्गों के बीच एक भाईचारा एक शेयरिंग और न दिखने वाली एक बौंडिंग हुआ करती थी.
इस का बेहतर उदाहरण अमेरिका में रह रहे 50 लाख से भी ज्यादा भारतीय हैं जो पूरे आत्मविश्वास से कहते हैं कि हमें वहां सम्मान मिलता है. वहां तरक्की की राह में धर्म जात पात रोड़ा नहीं हैं. हमारी मेहनत और लगन की कद्र अमेरिका में है उतनी ही जितनी कि एक अमेरिकन की हुआ करती है. इस जज्बे को साल 1999 में राजेश खन्ना अभिनीत और ऋषि कपूर निर्देशित फिल्म ‘आ अब लौट चलें’ में दिखाया भी गया है.

लेटिनो का क्यों बदला रुख

यह ठीक है कि अभी भी अमेरिका के भारतीय बहुत ज्यादा चिंतित या भयभीत नहीं हैं लेकिन उन की यह बेफिक्री 4 दिन की चांदनी भी साबित हो सकती है. इस बात से वे इंकार करने की भी स्थिति मे नहीं हैं. लेकिन लेटिन और अफ्रीकी लोग 2014 से ही एक बड़े तनाव से जूझ रहे हैं जिस का नाम डोनाल्ड ट्रंप है और हैरानी की बात यह है कि इन वोटरों ने भी 2024 के चुनाव में रिपब्लिकन पार्टी को बड़ी तादाद में वोट किया जबकि परंपरागत रूप से इन की पहली और आखिरी पसंद डैमोक्रेटिक पार्टी हुआ करती थी.
लेकिन इस चुनाव में ऐसा क्या हो गया था जो अश्वेत और लेटिनों ने रिपब्लिकन पार्टी को वोट किया. इस सवाल का एक जवाब तो बहत साफ है कि ये समुदाय धार्मिक उन्माद और चरमपंथी चुनाव प्रचार के असर में आ गए थे. ठीक वैसे ही जैसे भारत में 2014 और 2019 के चुनाव में दलित पिछड़े और आदिवासी आ गए थे.

यह प्रभाव आस्था नहीं बल्कि एक तरह का खौफ ही था जिस ने उन समुदायों को भी आस्थावान से कट्टर बना दिया जो उदारवादी लेकिन पूजापाठी थे. यानी इन्हें धरमकरम की राजनीति से कोई लेनादेना नहीं था. इस बात का खुलासा करते बराक ओबामा और जौर्ज डब्ल्यू बुश के सलाहकार रहे एक पादरी सैमुअल रोड्रिगेज जो नैशनल हिस्पैनिक क्रिश्चियन लीडरशिप कांफ्रेंस के अध्यक्ष भी हैं ने मीडिया को बताया था कि ‘मेरा मानना है कि इस का मुख्य कारण आस्था से जुड़ा है. लेटिनो हर साल ज्यादा से ज्यादा इंजील हुए जा रहे हैं और रिपब्लिकन पार्टी को वोट कर रहे हैं.’
बकौल सैमुअल रोड्रिगेज यह इन्जीलवादी लोकाचार उन्हें उन मूल्यों को अपनाने के लिए प्रेरित करेगा जिन्हें आप रूढ़िवादी मानेंगे, जिन्हें हम बाइबिल द्वारा प्रमाणित सत्य मानते हैं. यह वही धार्मिक सत्य है जो भारत में रामचरित मानस और श्रीमद्भागवत गीता में पाया जाता है. इस सत्य का श्रवण अब नोटों और वोटों के लिए उन लोगों को भी सुनाया जाने लगा है जिन्हें धर्म ग्रंथ पढ़ने और सुनने की सख्त मुमानियत कभी थी और जो मोक्ष के अधिकारी नहीं थे इन में सवर्ण महिलाएं भी शुमार हैं. भारत का इन्जील्वाद ब्राह्मणवाद है जिस के ठेकेदार कुछ दिनों से मुसलमानों को छोड़ सब को साथ ले कर चलने का नारा बुलंद कर रहे हैं.

डोनाल्ड ट्रंप पर खुला और साबित आरोप उन के कट्टर ईसाई होने के साथसाथ स्त्री विरोधी होने का भी चस्पा है. वे अव्वल दर्जे के उद्दंड, उजड्ड और व्यभिचारी भी हैं. वे महिला सम्मान में भरोसा नहीं करते. इस की गवाही प्रचार के दौरान उन के भाषण हैं जिस में उन्होंने अपनी प्रतिद्वंदी कमला हैरिस सहित सभी डैमोक्रेट महिलाओं के लिए अभद्र और असंसदीय भाषा का खुल कर इस्तेमाल किया. कुछ उदाहरण देखें जिन में उन्होंने कमला हैरिस को निशाने पर लिया था –
– कमला मानसिक रूप से विक्षिप्त है. ( 29 सितम्बर 2024 )
– मैं कमला हैरिस से कहीं ज्यादा सुंदर हूं ( 17 अगस्त 2024 ) ( आशय यह था कि काली होने के नाते कमला एक बदसूरत महिला हैं ).
– लोग उसे पसंद नहीं करते, कोई भी उसे पसंद नहीं करता. वह कभी भी पहली महिला राष्ट्रपति नहीं बन सकती, वह कभी नहीं बन सकती. यह हमारे देश का अपमान होगा. ( 8 सितम्बर 2020 )
अकेली हैरिस नहीं बल्कि ट्रंप हर उस डैमोक्रेटिक महिला से असभ्यता और अभद्रता से पेश आ कर यह जताने की कोशिश करते रहे कि मागा यानी मेक अमेरिका ग्रेट अगेन अमरीकी मनु स्मृति से कमतर नहीं होगा. इस लिस्ट में निक्की हैली, एलेन चाओ, सनी होस्टिंन, व्हूपी गोल्डवर्ग, फुल्टन काउंटी, नेन्सी पेलोसी, एलेक्जेंड्रिया ओकसियो और स्टार्मी डेनियल्स भी शामिल हैं जिन के बारे में उन्होंने कभी कहा था कि मुझे कभी भी उस का घोड़े जैसा चेहरा पसंद नहीं आया. ऐसा कोई भी नहीं है.

निशाने पर ट्रांसजेंडर्स और अबौर्शन

शपथ लेने से पहले ही ट्रंप ने साफ कर दिया था कि ट्रांसजेंडर्स से उन्हें कोई हमदर्दी नहीं है क्योंकि ईश्वर ने सिर्फ दो ही लिंग बनाए हैं. एलजीबीटीक्यू पर भी वे अप्रिय रूप से उतने ही सख्त रहे हैं जितना कि किसी चर्च का पादरी हो सकता है. यानी अब अमेरिका में डैमोक्रेट्स की बनाई ट्रांसजेंडर पोलिसी भी खत्म कर दी जाएगी. इस तबके को सेना और स्कूलों से दूर रखने की उन की घोषणा बताती है कि अमेरिका में मानवअधिकार अतीत की अप्रिय बात है. चौंकाने वाली बात यह है कि अमेरिका में वहां की आबादी के लगभग 30 लाख लोग ट्रांसजेंडर हैं. या वे लोग हैं जो खुद को नान वायनरी मानते हैं.

गौरतलब है कि साल 2015 में अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसजेंडर्स की शादी को जायज करार दिया था. इस से रूढ़िवादी और चर्चवादी लोग चिढ़े हुए थे क्योंकि यह बात ईसाइयत यानी बाइबिल से मेल नहीं खाती.
क्रिश्चिनियटी के ठेकेदारों को चिढ़ और नफरत गर्भपात से भी है क्योंकि बाइबिल इस की इजाजत नहीं देता. उस में कई जगह गर्भपात को अनैतिक अपराध और पाप करार दिया गया है. देखें एक वीभत्स और खौफनाक बानगी –

यदि उस ने अपनेआप को अशुद्ध कर अपने पति के प्रति विश्वासघात किया है तो इस का परिणाम यह होगा, जब उसे वह जल पिलाया जाएगा जो अभिशाप लाता है और कठोर पीड़ा देता है तो वह उस के भीतर जाएगा उस का पेट फूल जाएगा और उस का गर्भ गिर जाएगा और वह अभिशाप बन जाएगी.
तथापि यदि स्त्री ने स्वयं को अशुद्ध नहीं किया है बल्कि शुद्ध है तो वह दोषमुक्त हो जाएगी और बच्चे पैदा करने में सक्षम होगी. ( गिनती 5 27 – 28 ) गिनती बाइबिल की किताबों में से एक का नाम है. बाइबिल की पहली 5 किताबों को टोरा कहा जाता है इन में से एक गिनती भी है.)

इन और ऐसी बातों को डोनाल्ड ट्रंप ने रिपब्लिकन पार्टी का चुनावी एजेंडा बना डाला और कट्टरवादियों को खुश कर दिया. जिस से सारे गोरे इसाई उन की अय्याशियों और बदतमीजियों को भूल उन्हें अपना हितेषी और आदर्श मानने लगे. हालांकि यहां ट्रंप का रोल धार्मिक उपदेशक और उन पादरियों सरीखा ही था जो विकट के व्यभिचारी और यौन शोषक होते हैं. खासतौर से इंजील ईसाईयों ने खुल कर डोनाल्ड ट्रंप का साथ दिया क्योंकि वे चर्च नीति पर चलने लगे थे.

दरअसल, अपने पहले ही कार्यकाल में ट्रंप ने ट्रांसजेंडर्स के खिलाफ अपना रुख साफ कर दिया था. उन्होंने कई ऐसे ( लगभग 200 ) रूढ़िवादी जजों को नियुक्ति दी थी जो घोषित तौर पर ट्रांसजेंडर्स से नफरत करने के लिए जाने जाते थे. यही वे जज हैं जो अबौर्शन को पाप मानते हैं. चुनाव प्रचार के दौरान ट्रंप इस संवेदनशील मुद्दे पर गोलमोल बातें करते एक तरह से मुंह में दही जानबूझ कर जमाए रहे थे. लेकिन हैरानी नहीं होनी चाहिए अगर अगले 4 साल में अमेरिका में गर्भपात कुछ शर्तों के साथ अपराध करार दे दिया जाए.
अपने चुनाव प्रचार के दौरान ट्रंप अबौर्शन पर स्पष्ट बोलने से बचते रहे थे. मीडिया के पूछने पर उन्होंने इसे राज्यों का विषय कह कर अपनी जिम्मेदारी पूरी हुई मान ली थी. गर्भपात अमेरिका में मुद्दत से पेचीदा क़ानूनी मसला है जिस पर जरूरत तो एक केंद्रीय या राष्ट्रीय कानून की है जो इसे महिलाओं का अधिकार करार देते उन्हें आजादी दे. लेकिन अब डर इस के ठीक उल्टा होने का है कि कहीं इसे राष्ट्रीय अपराध ही न घोषित कर दिया जाए.

यों पनप रहा गठजोड़

ट्रंप अब कुछ भी कर सकते हैं क्योंकि देश और लोकतंत्र के साथसाथ वे मानव अधिकारों पर एक गैरजिम्मेदार राष्ट्रपति हैं जिस का काम कट्टर धार्मिक नेताओं के इशारे पर नाचना है. उन की हैसियत वही है जो भारत में नरेंद्र मोदी की है, एक मुलाजिम की जो राजाओं की तरह रहता है पर जी हुजूरी दक्षिणपंथी संगठनों की करता है. दोनों ही जनता को मूर्ख बनाने के लिए राष्ट्रीय गौरव का राग अलापते रहते हैं. वहां अमेरिका को फिर से ग्रेट बनाने का नारा दिया जाता है तो यहां भारत 11 साल से विश्वगुरु बन रहा है.
व्यक्तिगत स्वभाव और जिंदगी को छोड़ दें तो ट्रंप और मोदी में कई समानताएं हैं दोनों ही धार्मिक एजेंडे को चलाने वालों के दास हैं. अमेरिका में चुनाव नतीजों से पहले एलन मस्क सुर्ख़ियों में थे क्योंकि उन्होंने करोड़ोंअरबों का दांव ट्रंप पर लगाया था और प्रचार में बेशुमार दौलत बांटी थी. भारत में यह थोड़ा ढके मुंदे होता है. मस्क अमेरिकी बनिए हैं, पादरीगण ब्राह्मण हैं, यजमान जनता है जो चढ़ावा भी चर्चों में चढ़ा रही है और अब कुछ बोल भी नहीं पा रही.

एलन मस्क टैक्नोलौजी के मालिक हैं जो अब तक तो दोनों हाथों से पैसा बटोर रहे थे अब कम्बल ओढ़ कर पी रहे हैं. वे पूरी दुनिया को अमेरिकी ताकत के दम पर हड़का रहे हैं खासतौर से यूरोप और जरमनी के लोकतंत्र में उन्हें खोट नजर आने लगी है.

खोट दरअसल में अब अमेरिकी लोकतंत्र में आ रही है जहां अप्रवासी हैरान परेशान हो रहे हैं. बहुसंख्यकवाद वहां भी सर चढ़ कर बोलने लगा है. जैसे भारत की प्रशासनिक नब्ज 4 फीसदी ब्राह्मणों के हाथ में है वैसे ही अमेरिका के 40 फीसदी गोरे ईसाई अमेरिका को अपनी जागीर समझने लगे हैं.

अब हो यह रहा है कि जो जातिवाद काबू में था वह बेलगाम होता जा रहा है. अमेरिका में जातिवाद भारत की तरह वर्ण व्यवस्था वाला या धर्म आधारित कम नस्लीय ज्यादा है. इस बारे में कई अंतर्राष्ट्रीय पुरुस्कारों से नवाजी गई प्रतिष्ठित लैटिनअमेरिकी लेखिका इसाबेल विल्करसन का चर्चित उपन्यास कास्ट स्पष्ट करता है कि जाति और नस्ल न तो एक समान अर्थ वाले शब्द हैं और न ही एकदूसरे से जुड़े हुए हैं. वे समान संस्कृति में एकदूसरे के साथ मिल कर रह सकते हैं और एकदूसरे के साथ मिल कर काम भी कर सकते हैं. संयुक्त राज्य अमेरिका की नस्लीय प्रजाति का अदृश्य ताकत का दृश्य एजेंट है जाति चमड़ी से बनी है जाति चमड़ी से बनी है.

मसलन लेटीनो और अश्वेत अब ज्यादा तिरस्कार के शिकार हो रहे हैं. होते वे पहले भी थे पर अब बात और है. मोदी के शासन काल में दलितों और पिछड़ों का आत्मविश्वास तेजी से गिरा है जिसे नापने का कोई पैमाना किसी के पास नहीं है. इसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है. आदिवासियों और मुसलमानों की तो गिनती ही मानव मात्र में नहीं होती. भारत में कुछ दलित, पिछड़े भाजपाई क्यों हो गए यह सवाल अमेरिका के हालातों पर भी मौजू है कि वहां दोनों श्वेत और गैर श्वेत ईसाई रिपब्लिकन पार्टी के क्यों हो गए.

जवाब साफ है कि यह ब्राह्मणबनिया गठजोड़ की करामत है जो ताकतवरों के शिकंजे में शुरू से ही रही है. बल्कि यह कहना बेहतर होगा कि अब हर कहीं यही सब से बड़ी ताकत है जिस ने लोकतंत्र का चोला ओढ़ लिया है. लोगों को धर्म, जाति, नस्ल और क्षेत्र, रंग वगैरह के नाम पर प्रताड़ित कर उन्हें भगवान का डर दिखा कर हफ्ता वसूली करना इस गैंग की रोजीरोटी हमेशा से ही है. दूसरे शब्दों में कहें तो भय बिन होत न प्रीत वाली कहावत पर अमल कर रहे हैं.

इस और ऐसी बातों को जस्टिफाई के लिए करने किसी लंबीचौड़ी रिसर्च या उदाहरणो और हादसों को गिनाने की जरूरत नहीं. भारत की तरह अमेरिका में भी दर्जनों जाति और भेदभाव विरोधी कानून मौजूद हैं जिन्हें कमजोर करने के लिए ट्रंप और मोदी जैसे नेता देश की सब से बड़ी कुर्सी पर बैठाए जाते हैं. वे अपने हिस्से का राज योग भोगते हैं और हकीकत से मुंह मोड़ रखते हैं इसीलिए वे आमतौर पर बौखलाए और झल्लाए रहते हैं. यह शेर की सवारी सरीखा है कि उस की पीठ पर बैठे रहो उतरे तो शेर खा जाएगा.

यह शेर कौनकौन हैं यह हर कोई जानता है कि ये मंदिरों, मसजिदों, मठों और चर्चों में रहते हैं. धर्म ग्रंथ इन के हथियार हैं और संविधान भी हैं. कमजोर लोकतंत्र ही इन की ताकत होता है जिसे बनाए रखने और इस्तेमाल करने के लिए इन्हें डोनाल्ड ट्रंप और एलन मस्क जैसे मोहरों की दरकार रहती है जो हर देश में आसानी से मिल जाते हैं.

International : South Korea के राष्ट्रपति की गिरफ्तारी, दुनिया के नेताओं लिए संदेश

International : दक्षिण कोरिया के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी राष्ट्रपति को गिरफ्तार किया गया है. यह घटना देश की राजनीतिक स्थिरता के लिए एक बड़ी चुनौती पेश करती है.

दक्षिण कोरिया में एक ऐतिहासिक घटना घटी है, जहां राष्ट्रपति यून सुक येओल को महाभियोग का सामना करने के बाद गिरफ्तार कर लिया गया है. यह घटना आज के समय में दुनिया भर के देश और उस के चुने हुए चेहरों के लिए एक ऐसा संदेश है जिसे समझना चाहिए. आमतौर पर जब कोई राजनीतिक दल और उस के प्रमुख देश की सत्ता पर काबिज हो जाते हैं तो यह समझने लगते हैं कि देश की जागीर है और वह धीरेधीरे तानाशाह बनने लगते हैं, मनमरजी फैसले लेने लगते हैं. भारत जैसे देश में यह और भी ज्यादा प्रासंगिक और एक बड़ा संदेश ले कर आया है.
महत्वपूर्ण तथ्य है कि यह पहली बार है दक्षिण कोरिया के किसी राष्ट्रपति को पद पर रहते हुए गिरफ्तार किया गया है. इस घटना ने दक्षिण कोरिया के राजनीतिक परिदृश्य को पूरी तरह से बदल दिया है. यह देश के लिए एक नए युग की शुरुआत हो सकती है, जहां न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच संघर्ष की स्थिति समाप्त हो सकती है.
लेकिन यह घटना कई सवाल भी उठाती है. क्या यह गिरफ्तारी दक्षिण कोरिया के लोकतंत्र के लिए एक खतरा है? क्या यह घटना देश की राजनीतिक स्थिरता को प्रभावित करेगी?
इन सवालों के जवाब के लिए हमें दक्षिण कोरिया के राजनीतिक परिदृश्य को गहराई से समझना होगा. इस घटना से यह स्पष्ट होता है कि दक्षिण कोरिया में न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच संघर्ष की स्थिति बनी हुई है. यह देश के लिए एक चुनौतीपूर्ण समय है, जहां लोगों को अपने नेताओं की जवाबदेही और न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए लड़ना होगा.
दक्षिण कोरिया के राजनीतिक इतिहास को देखिए, दक्षिण कोरिया ने पिछले कई दशकों में तेजी से आर्थिक विकास किया है, लेकिन इस विकास के साथसाथ भ्रष्टाचार और राजनीतिक अस्थिरता भी बढ़ी है.
यह घटना दक्षिण कोरिया के लोगों की भ्रष्टाचार और राजनीतिक अस्थिरता के खिलाफ लड़ने की इच्छा को दर्शाती है. लेकिन यह घटना कई चुनौतियों को भी पैदा करती है. दक्षिण कोरिया को अब एक नए राष्ट्रपति का चयन करना होगा, जो देश के राजनीतिक और आर्थिक मुद्दों का सामना कर सके. इस के अलावा, दक्षिण कोरिया को अपने राजनीतिक और न्यायिक प्रणाली को मजबूत करना होगा, ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं न हों.
यह भी देखना दिलचस्प होगा कि दक्षिण कोरिया के लोग इस घटना के बाद क्या करेंगे. क्या वे अपने नए राष्ट्रपति का समर्थन करेंगे? क्या वे अपने राजनीतिक और न्यायिक प्रणाली को मजबूत करने के लिए काम करेंगे? यह सब तो आगेपीछे होगा ही मगर दक्षिण अफ्रीका ने एक बड़ा संदेश दुनिया भर को दे दिया है कि नेता और शासक भी लोकतांत्रिक एवं संवैधानिक दायरे में रह कर रहें, अन्यथा जनता और देश की अन्य ताकतें किसी न किसी तरह उन्हें रास्ते पर ले ही आएंगे.

 

भारत के परिप्रेक्ष्य में

 

दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति की गिरफ्तारी का भारत और विश्व पर प्रभाव पड़ सकता है. सब से पहले, यह घटना एशियाई क्षेत्र में राजनीतिक अस्थिरता को बढ़ा सकती है, जिस से अंतर्राष्ट्रीय संबंधों पर असर पड़ सकता है.
भारत के लिए, यह घटना उस के दक्षिण कोरिया के साथ आर्थिक और रणनीतिक संबंधों पर असर डाल सकती है. भारत और दक्षिण कोरिया के बीच आर्थिक संबंध मजबूत हैं और दोनों देशों ने कई क्षेत्रों में सहयोग किया है, जैसे कि व्यापार, प्रौद्योगिकी और रक्षा. इस के अलावा, यह घटना विश्व भर में लोकतंत्र और मानवाधिकारों की स्थिति पर भी असर डाल सकती है. दक्षिण कोरिया भी भारत की तरह एक लोकतांत्रिक देश है, और उस के राष्ट्रपति की गिरफ्तारी यह दर्शाती है कि लोकतंत्र में नेताओं को भी जवाबदेह ठहराया जा सकता है.
यह घटना विश्व भर में राजनीतिक नेताओं के लिए एक सबक हो सकती है कि उन्हें अपने देशों के हित में काम करना चाहिए, न कि अपने व्यक्तिगत हितों में. दरअसल, लोग सत्ता संभालते ही यह भूल जाते हैं कि उन्हें जनता ने चुना है संविधान के संरक्षण में उन्हें काम करना है. दुनिया भर में आजकल नेता संविधान को किसी न किसी तरह कमजोर करने में लगे हैं और चाहते हैं कि उन की सत्ता सदैव के लिए बनी रहे, उन का बस चले तो वे संविधान की जगह तानाशाही ले आएं.

Hindi Story Telling : बहू सर्वगुण संपन्न ही क्यों चाहिए?

Hindi Story Telling : बहू चाहिए सर्वगुण संपन्न यानी कि वह घरपरिवार, परंपराओं के साथ चले. शिक्षित होने का उस पर ठप्पा भी लगा लो. प्रियंका सोचने पर मजबूर थी कि कर्तव्यों की कसौटी पर बहू ही क्यों खरी उतरे, बेटे से यह उम्मीद क्यों नहीं की जाती?

राहुल सुबह से 3 बार पढ़ चुके अखबार में सिर डाल कर बैठे हुए थे. प्रियंका मेज पर खाना लगा रही थी, तभी राहुल के फोन की घंटी बजी.
‘‘नमस्ते मामाजी.’’
‘‘खुश रहो मयंक और सुनाओ, क्या हालचाल हैं?’’ राहुल ने बड़े बिंदास लहजे में कहा.
प्रियंका के चेहरे पर हलकी मुसकान आ गई. राहुल और मयंक, कहने को तो मामाभांजा थे पर मयंक राहुल से कुछ ज्यादा ही लगा हुआ था. मयंक बड़ी ननद का बेटा था और राहुल घर में सब से छोटे थे.

दीदी की शादी के वक्त राहुल मुश्किल से 10-12 साल के ही थे. राहुल अकसर बताते थे, मयंक जब छोटा था, हमेशा उन्हीं के इर्दगिर्द घूमता रहता था. मयंक राहुल के लिए एक गोलमटोल खिलौने की तरह था. छोटे मामा की उंगली पकड़े वह सारा बाजार घूम आता. गरमी की छुट्टियों में मयंक के आगमन से पहले ही फोन पर सारी योजना बन जाती थी.
दीदी से छिप कर राहुल ने मयंक को स्कूटी चलाना भी सिखाया था. सच पूछो तो कहने को तो उन में मामाभांजे का रिश्ता था पर उन सब से ऊपर एक मित्रता का भाव भी जुड़ा हुआ था. शायद इसी भाव के कारण ही वह एकदूसरे से खुल कर बात कर लेते थे.
‘‘और भाई शादीवादी का क्या विचार है, करनी है कि नहीं?’’
मयंक राहुल की बात सुन खिलखिला कर हंस पड़ा.
‘‘करनी है, करनी है मामाजी, वह भी कर ही लेंगे. पहले कुछ कमा तो लें वरना आप की बहू को कहां रखेंगे, क्या खिलाएंगे.’’

मयंक शुरू से ही पढ़ने में होशियार था. इंजीनियरिंग करने के बाद कैंपस प्लेसमैंट हो गया. नौकरी करने के साथसाथ उस ने एमबीए भी कर लिया. एमबीए करने के बाद मयंक की लंदन में एक अच्छी सी कंपनी में नौकरी लग गई थी. अभी 2 साल भी नहीं हुए थे, सब शादी के लिए हल्ला मचाने लगे थे. मयंक से सभी चुटकी लेते थे, ‘अरे भाई, कोई हो तो बता देना.’ पर न जाने क्यों एक अनदेखा डर सब के मन में बैठा हुआ था. ‘कहीं सचमुच वह किसी गोरी मेम को ले कर खड़ा न कर दे,’ राहुल ने हवा में तीर छोड़ा, ‘‘कोई लड़कीवड़की देख रखी हो तो पहले ही बता दो, फिर न कहना मामा ने पूछा नहीं. तुम्हारे नाना पीछे पड़े हैं. तुम बता दो वरना हम लोग लड़की देखें.’’
तभी पीछे से प्रियंका चिल्लाई, ‘‘मयंक, पहले बता देना, अचानक से सरप्राइज मत देना. कम से कम अपनी मामी को तैयारी करने का मौका तो दे ही देना वरना तेरी बीवी कहेगी किन लोगों के बीच आ गई.’’

प्रियंका ने राहुल से फोन ले लिया. मयंक न जाने क्यों शरमा गया.
‘‘मयंक, कैसे हो बेटा?’’
‘‘प्रणाम मामीजी, मैं बिलकुल ठीक हूं. आप बताइए, आप लोग कैसे हैं?’’
‘‘हम भी ठीक हैं, बस, वही दालरोटी के चक्कर में फंसे हुए हैं. तुम बताओ, कोई लड़कीवड़की देखी कि हम लोग देखें.’’
‘‘आप भी मामीजी!’’
‘‘अरे, मुझसे क्या शरमाना, जो भी हो साफसाफ बता देना.’’
मयंक ने वही रटारटाया जवाब दिया. मनुष्य का एक स्वभाव होता है, वह चाहे कितना भी समझदारी का ढोंग कर ले, पेट में शक की मरोड़ उठती ही रहती है. प्रियंका ने एक दिन सोशल मीडिया पर मयंक को अपनी साथी महिला कर्मचारियों के साथ पार्टी करने की फोटो देख ली थी. छोटेछोटे कपड़ों में लड़कियां हाथ में रंगीन गिलासों के साथ तितली की तरह खिलखिला रही थीं. न जाने क्यों तब से ही प्रियंका के दिमाग में शक का कीड़ा घुस गया था.

वह बहुत दिनों से इसी फिराक में थी कि मयंक से बात कैसे निकलवाई जाए, प्रियंका ने अपनी आवाज को गंभीर बना कर कहा, ‘‘मयंक, शादी तो करनी ही है और हर आदमी तुम से कुछ न कुछ कहेगा ही पर निभाना तुम को है. इन सब चीजों में दूसरों की नहीं, खुद की सुनो. कल कोई ऊंचनीच हुई तो सब पल्ला ? झाड़ लेंगे. तुम्हें कैसी लड़की चाहिए, इस का निर्णय तुम को लेना होगा.’’
मामी की बात सुन कर मयंक के दिल में छिपे विचारों को मानो बल मिल गया. शायद आज से पहले किसी ने उस से इस ढंग से बात नहीं कही थी, किसी ने कभी उस का दृष्टिकोण जानने का प्रयास ही नहीं किया था.

‘‘मयंक, कहना तो नहीं चाहिए, सब मेरे अपने ही हैं पर तुम्हारे घर या फिर यहां तुम्हारी नानी के घर का माहौल ऐसा नहीं है कि नए जमाने की लड़कियां अपनेआप को एडजस्ट कर लें. सच पूछो तो वह वक्त के साथ बदलना भी नहीं चाहते. हम लोगों की बात छोड़ो, हम ने तो जैसेतैसे निभा लिया पर तुम्हारी पीढ़ी यह सब नहीं  झेल पाएगी.
‘‘सच कह रही हो, मामी. घर पर पापा, मम्मी, दादी, ताऊ, ताईजी सब शादी के पीछे पड़े हैं. हर दूसरेतीसरे दिन मम्मी एक फोटो ले कर खड़ी हो जाती हैं. मैं उन से खुल कर कह भी नहीं पाता कि आचारमुरब्बा वाली लड़की मुझे नहीं चलेगी.’’

मयंक की बात सुन कर प्रियंका खिलखिला कर हंस पड़ी. प्रियंका सोचने लगी, सच ही तो कह रहा था मयंक, उस की शादी के समय पापा ने भी तो शौक में यही सब तो लिखवाया था. मयंक ने बड़ी लापरवाही से आगे कहा, ‘‘मामीजी, आजकल के जमाने में यह सब खाता कौन है, सब तो फिगर कौन्शस हैं. वैसे भी, आजकल तो बाजार में सबकुछ मिल जाता है.’’
‘‘फिर भी बेटा…’’ प्रियंका के शब्द गले में ही अटक कर रह गए. यही मयंक खाने के लिए बचपन में दीदी को कितना नाच नचाता था. दीदी हाथ में थाली लिए मयंक के पीछे भागतेभागते हार जाती थीं. गलत तो नहीं कहा था मयंक ने, मम्मीजी अकसर कहती थीं आजकल की लड़कियां कुछ नहीं करना चाहतीं. ऊपर से तुर्रा यह कि पढ़ाई कर रहे हैं, खाना बनाने के लिए तो पूरी जिंदगी पड़ी है. प्रियंका सोचने लगी, उस के पापा ने भी तो उस की शादी के वक्त कुछ इसी तरह के शौक और विशेषताएं लिखवाई थीं. कुछ तो ऐसी भी चीजें शामिल थीं जिन का उस से दूरदूर तक नाता नहीं था.
उन दिनों कुकरीबेकरी बड़े लोगों की चीज हुआ करती थी, पापा ने वह भी लिखवा दिया. शायद, लड़के वालों के सामने वे अपनी बेटी को कमतर नहीं दिखाना चाहते थे या शायद यह भी हो सकता है कि वे किसी भी आधार पर बेटी के ऊपर रिजैक्शन का ठप्पा नहीं लगवाना चाहते थे.
पर इतने जतन और टोटके के बाद भी 2 जगह से रिजैक्शन का ठप्पा लगने के बाद प्रियंका की शादी राहुल से हो पाई थी. वक्त बदल गया था पर वक्त के साथ लड़कियों के लिए सोच का दायरा नहीं बदला था. लड़कियों को आज भी रिजैक्ट किया जाता था. पर हां, समय ने करवट जरूर ली थी. अब लड़कियां भी लड़कों की तरह लड़कों को रिजैक्ट करने लगी हैं.
‘‘हैलोहैलो!’’
प्रियंका मयंक की आवाज सुन कर अपनी सोच के घेरे को तोड़ बाहर आ गई, ‘‘सुन रही हूं बेटा, बोलो.’’
‘‘मामीजी, मैं खुद भी नहीं चाहता कि जिस किसी से भी मेरी शादी हो, वह दिनभर घर पर बैठ कर मेरे लिए खाना बनाए.’’
‘जिस किसी’ प्रियंका का शंकित मन सोशल नैटवर्किंग पर मयंक के साथ की लड़कियों की तसवीरों में उस ‘जिस किसी’ को तेजी से टटोल रहा था.
‘‘मयंक, ठीक कह रहे हो, जितना बड़ा शहर उतने ही खर्चे. दोनों नहीं कमाएंगे तो काम कैसे चलेगा.’’
‘‘बात कमाने की नहीं है, मामीजी. मैं इतना कमा लेता हूं कि अच्छे से जिंदगी कट जाएगी पर इस शहर में, घर में दिनभर अकेली पड़ी रहे, यह तो मैं भी नहीं चाहूंगा.’’

प्रियंका हंस पड़ी, क्या जवाब देती. आज उस की डिग्रियां उस को मुंह चिढ़ा रही थीं. राहुल ने शादी की पहली ही रात कह दिया था, ‘मु?ो घर संभालने वाली लड़की चाहिए, नौकरी के चक्कर में घर की शांति भंग नहीं कर सकता. आखिर, घर में और भी महिलाएं हैं. प्रियंका ने दूसरे ही दिन उन सपनों को कहीं गहरे तहखाने में दबा कर रख दिया था.
‘‘मयंक, कह तो तुम सही रहे हो, शायद तुम को अच्छा न लगे पर तुम्हारे घर का जो माहौल है वहां तुम्हारी बीवी से साड़ी पहनने की उम्मीद की जाए, खाने में 3 तरह की सब्जियों की उम्मीद की जाए तो वह बेचारी कैसे कर पाएगी.’’

‘‘साड़ी मामीजी, इन 2 सालों में मैं ने किसी को सलवारसूट में भी नहीं देखा. आप साड़ी की बात कर रही हैं. आप 3 सब्जियों की बात कर रहीं हैं, मैं तो यह भी उम्मीद नहीं करता कि उसे खाना बनाना भी आता हो. जब मुझे बनाना नहीं आता, अगर उसे बनाना नहीं आता हो तो कौन सी बड़ी बात हो जाएगी. वैसे भी, वह सब तो मैनेज हो ही जाता है.’’
मयंक की बेबाकी कहीं न कहीं उसे अंदर तक भेद गई थी. कहीं न कहीं वह अपने भविष्य के लिए भी भयभीत हो रही थी. कुछ वर्षों बाद वह भी तो उसी दहलीज पर खड़ी होगी जहां आज दीदी खड़ी थीं. प्रियंका हतप्रभ थी, क्या वाकई में जमाना इतना बदल गया है. प्रियंका की आंखों के सामने दीदी का चेहरा घूम गया, बहू के लिए देखे गए वे अनगिनत सपने कहीं न कहीं उसे चूर होते दिख रहे थे जिन की किरचें उसे चुभती महसूस हो रही थीं. प्रियंका कहीं भी घूमने जाती तो ननद के लिए उस शहर की कोई प्रसिद्ध चीज ले कर आती. कई बार तो दीदी ने भी मनुहार कर के अपनी भावी बहू के लिए भी साड़ी मंगवाई थी. ‘प्रियंका, एकसाथ कुछ नहीं हो पाता, धीरेधीरे कर के इकट्ठा करती चलूंगी तभी तो मयंक की शादी कर पाऊंगी, बनारसी, कांजीवरम, चंदेरी और न जाने क्याक्या.’ मां तो मां ही होती है.

महीनों की जद्दोजेहद के बाद आखिर मयंक के लिए एक अच्छी लड़की ढूंढ़ ही ली गई. लड़की मल्टीनैशनल कंपनी में काम करती थी, मयंक के बराबरी की थी. दीदी अपनी चांद सी बहू के गुण गाते नहीं थक रही थीं.
‘‘जानती हो प्रियंका, रुचिका मयंक से पहले से नौकरी करती है. मयंक से कहीं ज्यादा अच्छा पैकेज है उस का.’’
‘‘दीदी, आप की तो ऐश है, दोनों हाथ लड्डू में. सुंदर और कमाऊं बहू मिल रही है आप को.’’
दीदी की भाषा और व्यवहार में अचानक से कमाऊ बहू की ठसक दिखने लगी थी.
‘‘दीदी. साडि़यां और लेनी हैं तो बता दीजिएगा,’’ प्रियंका ने भाभी होने का फर्ज निभाते हुए कहा.
‘‘प्रियंका, सुन, पीहर से भात के लिए सिर्फ मेरे और जीजाजी का ही कपड़ा लाना और मयंक को मैं देख लूंगी. नए जमाने के बच्चे हैं, पता नहीं क्या पसंद आए क्या नहीं. हम लोगों का तो सब चल जाता है.’’
‘‘नहींनहीं दीदी, ऐसे कैसे, यह तो पीहर वालों की जिम्मेदारी है,’’ प्रियंका ने अपनी आवाज में रस घोलते हुए कहा. आखिर शादी का दिन भी आ गया. सब बहुत खुश थे. खुश तो दीदी भी थीं पर शायद मयंक की वापसी की बात सोचसोच उन की आंखें भर आ रही थीं. दीदी शायद यह भूल गई थीं, कहीं न कहीं इन सब की जिम्मेदार वे खुद थीं. मयंक की पीठ पर आज जो सपनों के पंख हैं वे उन्होंने खुद ही रोपे थे. आज मयंक के बचपन की एकएक घटना को याद कर उन का आंचल भीगा जा रहा था. वक्त की आंच में स्मृतियां मोम की तरह पिघलपिघल कर आंखों से टपटप चू रही थीं. कहीं न कहीं हम अपने बच्चों को अपने खुद के अधूरे सपनों को पूरा करने का जरिया बना लेते हैं.
? झालर की रोशनी से नहाया दीदी का घर कितना खूबसूरत लग रहा था, शादी बड़ी धूमधाम से संपन्न हो गई. बहू के आगमन के साथ मेहमानों की रवानगी शुरू हो गई. प्रियंका भी अपना सामान बांध रही थी. तभी पीछे से दीदी ने आ कर प्रियंका को चौंका दिया, उन के हाथों में कुछ रंगीन लिफाफे और कपड़ों के बंडल थे.
‘‘प्रियंका, आती रहना, मयंक अगले महीने तक चला जाएगा. रुचिका अभी यहीं रहेगी, वीजा की औपचारिकता पूरी होते ही वह भी मयंक के पास चली जाएगी.’’
न जाने क्यों दीदी यह सब कहतेकहते उदास हो गईं, कितने मन से जीजाजी ने दोमंजिला घर बनवाया था. एकएक चीज दीदी और मयंक की पसंद की लगवाई थी पर आज उस घर में रहने के लिए दीदीजीजाजी के सिवा कोई न था. प्रियंका दीदी से आने का वादा कर अपने घर वापस आ गई.
गृहस्थी की उठापटक से जूझती प्रियंका समय निकाल कर अकसर दीदी से बात कर लेती. शुरूशुरू में तो सब ठीक था पर कमाऊ बहू की सास होने की ठसक धीरेधीरे न जाने कहां गुम होने लगी थी. वीजा का इंतजार करतेकरते सालभर होने को आ गया था. शुरूशुरू में तो सबकुछ ठीक था. एक बार साड़ी में पैर फंस जाने की वजह से रुचिका गिरतेगिरते बची थी. दीदी ने उसी दिन फरमान जारी कर दिया, ‘तुम सूट पहनो. कहीं चोटवोट लग जाए तो फिर कौन सेवा करेगा.’
प्रियंका सोच में पड़ गई, वक्त के साथ दीदी कितनी बदल गई थीं. शादी के 5 वर्षों बाद जब उस ने दबे स्वर में सलवारकमीज पहनने की इजाजत मांगी तो घर में कितना हंगामा मचा था. दीदी ने भी कितना कुछ सुनाया था, ‘भले घर की बहूबेटियों को यह सब शोभा नहीं देता.’ पर आज!
रुचिका को तो मानो खुला आसमान मिल गया, वह घर में गाउन पहन कर आराम से सासससुर के सामने डोलने लगी थी. चीजें बिगड़ रही थीं और चीजों के बिगड़ने के साथ दीदी के फोन आने का सिलसिला भी बढ़ता जा रहा था. प्रियंका उन के फोन को उठाने से बचने लगी थी पर बचती भी तो कब तक.

घर में शायद कुछ ज्यादा ही बवाल हो गया था. दीदी का सुबहसुबह ही फोन आ गया था, ‘‘प्रियंका, देख, क्या जमाना आ गया, गिनती के 3 लोग हैं पर महारानी से 3 लोगों का भी खाना नहीं बन पाता. कहती है कि नौकरी करूं या खाना बनाऊं. इन की नौकरी से हमें क्या लेनादेना, कौन सा एक चवन्नी हमारे हाथ पर धर देती है. तीजत्योहार पर दे भी दिया तो उस से क्या पेट भर जाएगा. कहती है, कमाने का फायदा क्या जब एक खाना बनाने वाली भी नहीं रख सकते. अब यही रह गया कि घर में दोदो औरतों के रहने के बावजूद नौकरों के हाथ का खाना खाया जाए.’’
प्रियंका चुपचाप ननद की बात सुनती रही और सोचती रही कि दीदी को बहू से उम्मीद करने या कोसने से पहले एक बार अपने बेटे से भी पूछना चाहिए था कि उसे कैसी बीवी चाहिए थी. रुचिका ही हर बार अच्छी बहू होने का प्रमाण क्यों देती फिरे. आखिर मयंक कब आ कर यह कहेगा कि उसे तो ऐसी ही जीवनसाथी चाहिए थी. आखिर रुचिका ही कर्तव्यों की कसौटी पर क्यों और कब तक पिसती रहेगी. क्या सचमुच मयंक कभी यह कह पाएगा, प्रियंका सोचती रही, क्या इस सवाल का जवाब कभी कोई दे पाएगा. सच कहा है किसी ने, समाज स्त्रियों के लिए कभी नहीं बदलता. सवालों के सुलगते अंगार पर न जाने स्त्रियों को कब तक जलना है.

Faith vs Business : भक्तों की भावनाएं या व्यापार का खेल

Faith vs Business : धर्म का धंधा सिर्फ पंडेपुजारियों की वजह से ही नहीं फलफूल रहा, इस धंधे से दूसरे बहुत से भी लाभ उठाते हैं. धर्म के धंधे के बने रहने से वर्णव्यवस्था बनी रहती है और गरीब, परेशान, बीमार, कर्ज में डूबा, मुनाफाखोरों से पीडि़त बजाय विरोध करने के, इसे अपने जन्म का दोष मानता है, पिछले जन्मों के कर्मों का फल मानता है, भगवान के दरबार में सही ढंग से भक्ति की भेंट पूजा न कर पाने की अपनी कमी को मानता है.

धर्म के धंधे में पंडेपुजारियों के साथसाथ हजारों मंदिर और लोग भी लगे हैं (ये भारतीय जनता पार्टी के अवैतनिक कार्यकर्ता भी हैं). इन लोगों में दुकानदार, टैक्सी वाले, घोड़े वाले, पहाडि़यों पर बने तीर्थस्थलों में डांडी ले जाने वाले भी शामिल हैं. जम्मू में वैष्णो देवी के तीर्थ पर दुकानदारों ने हड़ताल का तरीका अपनाया क्योंकि वहां का बोर्ड कटरा के पास एक जगह से रोपवे बनाना चाह रहा है ताकि वैष्णो देवी गुफा तक बिना चढ़ाई पर चढ़े पहुंचा जा सके.

अब इस पैदल रास्ते पर बहुत सी दुकानें बनी हैं. इन दुकानों से हजारों भक्त हर रोज भरपूर सामान खरीदते हैं. ये दुकानदार चाहते हैं कि उन का धंधा बरकरार रहे क्योंकि धर्मस्थल पर दुकानदार कैसा ही सामान कितने भी दामों पर बेच सकता है. ब्रेनवाश किया हुआ भक्त ज्यादा भावताव नहीं करता. उन्हें 250 करोड़ रुपए के रोपवे से ईर्ष्या होनी स्वाभाविक है क्योंकि तब उन का सारा पैसा रोपवे के मालिक की जेब में जाएगा. रोपवे वालों को भी कुछ दुकानें खोलने की इजाजत दी जाती है. उन दुकानों का किराया भी रोपवे मालिकों की जेबों में जाएगा.

मजेदार बात यह है कि दुकानदारों के मुखिया रोपवे को हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला काम बता रहे हैं. रोपवे तो धर्मांधों को जल्दी अपने लक्ष्य पर पहुंचा कर उन्हें पुण्य दिलाने का काम करेगा, इसे भी अगर धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना कहा जाएगा तो मतलब साफ है कि ये भावनाएं धार्मिक नहीं होतीं, दरअसल ये आर्थिक होती हैं.
वास्तव में दुनियाभर के सभी धर्म आमभक्तों और अनुयायियों की जेबों को खाली कराने में लगे रहते हैं. वैष्णो देवी के मार्ग पर बैठे दुकानदार भी यही कर रहे हैं.

Hindi Story : हर्षा को कोई और मिल गया था?

Hindi Story : हर्षा जिस दिन से मायके से लौटी थी उल्लास उसे कुछ बदलाबदला पा रहा था. औफिस जाते समय पहले तो वह उस की हर जरूरत का ध्यान रखती. नाश्ता, टिफिन, घड़ी, मोबाइल, वालेट, पैन, रूमाल कहीं कुछ रह न जाए. वह नहा कर निकलता तो धुले व पै्रस किए कपड़े, पौलिश किए जूते उसे तैयार मिलते. रोज बढि़या डिनर, संडे को स्पैशल लंच, सुंदर सजासंवरा घर, मुसकान से खिलीखिली हर वक्त आंखों में प्यार का सागर लिए उस की सेवा में बिछी रहने वाली हर्षा के रंगढंग उस दिन से कुछ अलग ही नजर आ रहे थे.

अब उसे कोई चीज टाइम पर जगह पर नहीं मिलती. पूछता तो उलटे तुरंत जवाब मिल जाता कि कुछ खुद भी कर लिया करो. अकेली कितना करूं. उल्लास इधरउधर दिमाग के घोड़े दौड़ाने लगा था.

‘उस दिन औफिस की पुरानी सैक्रेटरी बीमार जान कर उसे देखने घर चली आई. कहीं इस कारण हर्षा को कुछ फील तो नहीं हो गया या  हर्षा की नई भाभी पारुल ने तो कहीं उसे पट्टी पढ़ा कर नहीं भेजा, बहुत तेज लगती है वह या फिर औफिस में बिजी रहने के कारण आजकल कम टाइम दे पाता हूं. घर में अकेले पड़ेपड़े बोर हो जाती होगी शायद. मायके में जौइंट फैमिली जो है… बच्चा भी तो नहीं अभी कोई, जो उसी से मन लग जाता. 2-3 साल बाद बच्चे का प्लान खुद ही तो मिल कर बनाया था. पूछने पर तो सही जवाब भी नहीं देती आजकल,’ उल्लास सोचे जा रहा था.

‘‘उल्लास खाना बना दिया है, निकाल कर खा लेना. बाकी फ्रिज में रख देना. मुझे शायद आने में देर हो जाए. फ्रैंड के घर किट्टी पार्टी है,’’ हर्षा का सपाट स्वर सुनाई दिया.

‘‘संडे को कौन किट्टी पार्टी रखता है? एक ही दिन तो सभी जैंट्स घर पर होते हैं?’’

‘‘और हम जो रोज घर में रहतीं हैं उन का क्या? कल से तुम्हारे कपड़े बैड पर फैले हैं. उन्हें समेट कर रख लेना. मेरी समझ नहीं आता मेरे लिए क्यों छोड़ कर जाते हो?’’ और धड़ाम से दरवाजा बंद कर वह चली गई.

उल्लास सोचने लगा कि वह पहले भी तो यों छोड़ जाता था… तब उस के काम खुशीखुशी कर देती थी, तो अब उस ने ऐसा क्या कर दिया जो हर्षा उस से रूठीरूठी सी रहने लगी है? वह उस पर और बर्डन नहीं डालेगा. अपने काम खुद कर लिया करेगा.

उल्लास ने जैसेतैसे बेमन से खाना खा  लिया. हर्षा का खाना बेस्वाद तो कभी नहीं बना, भले ही खिचड़ी बनाए. इसी कारण उस का बाहर का खाना बिलकुल छूट गया था… पर अब तो कभी नमक ज्यादा तो कभी कम. कच्ची सब्जी, जलीजली रोटियां. हुआ क्या है उसे? वह हैरान था. उस की समझ में कुछ नहीं आ रहा था.

फिर मन ही मन बुदबुदाया कि चल बेटा होस्टल डेज याद कर और आज कुछ बना डाल हर्षा को खुश करने के लिए. जब तक वह घर लौटे बढि़या सा डिनर तैयार कर ले उस के लिए… हमेशा वही बनाती है उसे भी तो कभी कुछ करना चाहिए. फिर सोचने लगा कि हर्षा को आमिर खान पसंद है. अत: पहले ‘दंगल’ मूवी के टिकट बुक करा लिए जाएं नाइट शो के. फिर औनलाइन टिकट बुक किए. दोनों की पसंद का खाना तैयार किया.

हर्षा आई तो उस का प्रयास देख कर मन ही मन खुश हुई. करी को थोड़ा सा ठीक किया, पर बाहर जाहिर नहीं होने दिया. यही तो चाहने लगी थी कि उल्लास किसी भी बात के लिए उस पर निर्भर न रहे. डिनर भी चुपचाप हो गया. मूवी में भी हर्षा चुपचुप रही.

उस की चुप्पी उल्लास को अखरने लगी थी. अत: बोला, ‘‘कोई बात है हर्षा तो मुझे बताओ… मुझ से कुछ गलत हो गया या मेरा साथ तुम्हें अब अच्छा नहीं लगता?’’

‘‘जब तुम हिंदी मूवी पसंद नहीं करते हो, तो मेरी पसंद के टिकट नहीं लाने चाहिए थे. प्रत्यूष और धनंजय को ले कर अच्छा होता कोई अपनी पसंद की इंग्लिश मूवी ऐंजौय करते… जबरदस्ती मेरे कारण देखने की क्या जरूरत है?’’

उल्लास देखता रह गया कि जो हर्षा रातदिन उसे दोस्तों के साथ न जाने और अपने साथ ही हिंदी मूवी देखने की जिद करती थी वही आज उलटी बात कर रही है… क्यों उस से कट रही है हर्षा? क्या किसी और के लिए दिल में जगह बना ली है? फिर उस ने सिर झटका कि वह ऐसा सोच भी कैसे सकता है? उसे दीवानों की तरह चाहने वाली हर्षा ऐसा कभी नहीं कर सकती. वह चाहती है न कि वह अपने सारे काम खुद करे तो करेगा. तब तो खुश होगी. उसे पहले वाली हर्षा मिल जाएगी.

2-3 महीने में उल्लास ने अपने को काफी बदल लिया. अपने कपड़े हर संडे धो डालता. कुछ खुद प्रैस करता कुछ को बाहर से करवा लेता. घड़ी, वालेट, मोबाइल, चार्जर वगैरह ध्यान से 1-1 चीज रख लेता. हर्षा को इस के लिए परेशान न करता. पेट भरने लायक खाना भी बनाना आ गया था. औफिस जाने से पहले अपना कमरा ठीक कर जाता.

अब तो खुश हो हर्षा? वह पूछता तो हर्षा हौले से मुसकरा देती, पर अंदर से उसे अपने कामों को स्वयं करता देख बहुत दुखता, पर वह ऐसा करने के लिए मजबूर थी.

‘‘उल्लास इंगलिश की नईर् मूवी लगी है, जाओ अपने दोस्तों के साथ देख आओ.’’

‘‘हर्षा तुम मुझे ऐसे अपने से दूर क्यों कर रही हो. मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि यह कैसी खुशी है तुम्हारी? क्या मुझे अपने लायक नहीं समझती अब?’’

‘‘उल्लास तुम तो लायक हो और तुम्हारे लिए वह लाली मौसी ने सही लड़की चुनी थी उन की ननद की बेटी संजना. बिलकुल तुम्हारे लिए हर तरह से सही मैच… उस ने अभी तक शादी नहीं की. मेरी वजह से उस से रिश्ता होतेहोते रह गया था तुम्हारा… लाली मौसी इसी कारण अभी तक नाराज हैं. उन की नाराजगी तुम दूर कर सकते हो तो बताओ…’’

‘‘कहां इतनी पुरानी बात ले कर बैठ गई तुम… हम दोनों ने एकदूसरे को

पसंद किया, प्यार किया, शादी की. अब यह बात कहां से आ गई… अच्छा औफिस को देर हो रही है. मैं निकलता हूं शाम को बात करते हैं रिलैक्स,’’ और फिर हमेशा की तरह बाहर निकलते हुए उस के माथे पर चुंबन जड़ दिया, ‘‘तुम कुछ भी कर लो, कह लो तुम्हें प्यार करता रहूंगा. सी यू हनी.’’

‘‘यही तो मैं अब नहीं चाहती उल्लास… तुम्हें कुछ कह भी तो नहीं सकती,’’ हर्षा देर तक रोती रही. कल ही उसे मुंबई के लिए निकलना था कभी न लौटने के लिए. उस ने अपनेआप को किसी तरह संभाला. छोटे से बैग में सामान पैक कर लिया. उल्लास आया तो उसे बताने की हिम्मत न हुई. रात बेचैनी से करवटें बदलते बीत गई.

‘‘तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं लग रही हर्षा,’’ उल्लास कभी पानी, कभी चाय तो कभी कौफी बना लाता. कभी माथा सहलाता.

‘‘डाक्टर को बुलाऊं क्या?’’

‘‘कुछ नहीं थोड़ा सिरदर्द है. सुबह तक ठीक हो जाएगा. तुम अब सो जाओ.’’

मगर उल्लास माना नहीं तेल की शीशी उठा लाया. ढक्कन खोला तो वह फिसल कर बैड के नीचे पहुंच गया. वह झुका तो पैक्ड बैग नजर आया.

‘‘अरे यह बैग कैसा है? कौन जा रहा है?’’

‘‘हां, उल्लास मुझे कल ही जाना पड़ रहा है मुंबई. अभि मुझे लेने कल सुबह यहां पहुंच जाएगा. वह मेरी सहेली रुचि की बहन की शादी है. उस का कोई है नहीं. घबरा रही है, डिप्रैशन में अस्पताल में दाखिल भी रही. सारी तैयारी करनी है. अत: मां से रिक्वैस्ट की कि अभि को भेज कर मुझे बुला लें. मेरे पास भी तुम से रिक्वैस्ट करने के लिए फोन आया था. मैं ने कह दिया उल्लास मुझे मना नहीं करेंगे… 1 महीना क्या 6 महीने रख लो. सारे काम खुद करने की आदत डाल ली है. अब उल्लास को कोई परेशानी नहीं होगी अकेले. सही है न?’’ वह हलके से मुसकराई. पर इतना प्यार करने वाले पति उल्लास से सब मनगढ़ंत कहने के लिए मजबूर वह अंदर तक हिल गई.

‘‘मगर… कितने दिन… मैं अकेले कैसे… कुछ बताया तो होता?’’

‘‘अकेले की आदत तो डाल ही लेनी चाहिए… आत्मनिर्भर होना चाहिए हर तरह से… अचानक कोई चल पड़े तो रोता ही फिरे दूसरा, कुछ कर ही न पाए,’’ वह हंसी थी.

‘‘चुप करो… कैसी बेसिरपैर की बातें कर रही हो… जा रही हो तो मैं तुम्हें रोक नहीं रहा… कब लौटोगी यह बताओ. शादी के लिए 10 दिन बहुत हैं, 1 महीना जा कर क्या करोगी पर ठीक है जाओ… हर दिन मुझे फोन करोगी. चलो अब सो जाओ.’’

8 बज चुके थे. तभी अभि आ गया, ‘‘कहां हो दीदी?’’

‘‘अभी उठी नहीं. कल तबीयत कुछ ठीक नहीं थी उस की… कुछ अजीब सी बातें कर रही थी, इसलिए अभी उठाया नहीं.’’

‘‘1 बजे की फ्लाइट है जीजू, देर न हो जाए.’’

‘‘हां, मैं उठाने ही जा रहा था. मुझे रात को ही मालूम हुआ… चाय बन गई, तुम उठा दो मैं चाय डाल कर लाता हूं.’’

‘‘दीदी उठो. मैं आ भी गया. चलना नहीं क्या? देर हो जाएगी,’’ अभि ने उसे उठाया.

‘‘जितनी देर होनी थी अभि हो चुकी अब और क्या होगी?’’ कहते हुए हर्षा उठ बैठी.

‘‘क्यों नहीं आप वहां रुकीं इलाज करवाने… कोशिश तो की ही जा सकती थी… क्यों नहीं बताने दिया जीजू को?’’ छोटा भाई अभि उस के कंधे पकड़ लाचारगी से बैठ गया. आंखों में बूंदें झलकने लगीं.

‘‘वक्त बहुत कम था मेरे पास, कितना इलाज हो पाता… तुझे तो पता ही है, तेरे जीजू को तैयार भी तो करना था मेरे बिना रहने के लिए… तू शांत हो जा बस,’’ हर्षा उस के आंसू पोंछने लगी जो रुक ही नहीं रहे थे.

उल्लास के कदमों की आहट कमरे की ओर आने लगी, तो अभि ने झट अपने आंसू दोनों हाथों से पोंछ डाले और सामान्य दिखने की कोशिश करने लगा.

हर्षा जातेजाते उल्लास को ठीक से रहनेखाने की तमाम हिदायतें दिए जा रही थी. अधिक फोन मत करना… वहां सब मुझे छेड़ेंगे कि उल्लास तेरे बिना रह ही नहीं पा रहा.

अब उदास, परेशान मत हो… तुम्हीं ने तो लंबा प्रोग्राम बनाया है. दोस्त के यहां शादी में जा रही हो. खुशीखुशी जाओ, मेरी चिंता बिलकुल छोड़ दो. मैं सब मैनेज कर लूंगा… ठाट से रहूंगा, देखना.’’

एअरपोर्ट से अंदर जाने के लिए हर्षा ने उल्लास का हाथ छोड़ा तो लगा उस की सारी दुनिया ही छूट गई. उल्लास को आखिरी बार जी भर कर देख लेना चाह रही थी. बड़ी मुश्किल से अपने को संभाला और हौले से बाय कहा. मुसकरा कर हाथ हिलाया और फिर झटके से चेहरा घुमा लिया. आंखों में उमड़ते बादलों को बरसने से रोक पाना उस के लिए असंभव था.

2 दिन ही बीते थे हर्षा को गए हुए औफिस में उल्लास को पता चला उस की अगले फ्राईडे को मुंबई में मीटिंग है. वह खुशी से उछल पड़ा. उस ने 2-3 बार ट्राई किया कि हर्षा को बता दे पर फोन नहीं मिला. फिर सोचा अचानक उसे सरप्राइज देगा.

‘‘फोन ही नहीं मिल रहा हर्षा का. यहां मेरी मीटिंग है आज 3 बजे. सोच रहा हूं हर्षा को सरप्राइज दूं. उस की सहेली रुचि का जल्दी पता बता अभि.’’

अभि उसे हैरानपरेशान सा देख रहा था.

‘‘जीजू आप…’’ उस ने पैर छुए, ‘‘मैं वहीं जा रहा हूं आइए. 1 मिनट रुको. अंदर अम्मांजी से तो मिल लूं.’’

‘‘सब वहीं हैं जीजू,’’ वह धीरे से बोला.

‘‘कहां खोया है तू… लगता है तेरी भी जल्दी शादी करनी पड़ेगी,’’ उल्लास अकेले ही बोले जा रहा था.

‘‘अरे कहां ले आया तू टाटा मैमोरियल… कौन है यहां कुछ तो बोल… अभि कहीं हर्षा…’’ वह आशंका से व्याकुल हो उठा.

अभि बिना कुछ बोले उस का हाथ पकड़ सीधे हर्षा के पास ले आया, ‘‘सौरी दी… मैं आप को दिया प्रौमिस पूरा नहीं कर पाया,’’ और फिर फूटफूट कर रो पड़ा.

दिल से न चाहते हुए भी हर्षा की आंखें जैसे उल्लास का ही इंतजार कर रही थीं.

मानो कह रही हों तुम्हें देख अब तसल्ली से जा सकूंगी. उल्लास के हाथ को कस कर थामे उस की हथेलियों की पकड़ ढीली पड़ने लगी. वह बेसुध हो गई.

‘‘हर्षाहर्षा तुम्हें कुछ नहीं होने दूंगा. तुम ने मुझे क्यों नहीं पता लगने दिया? डाक्टर… सिस्टर…’’

‘‘आप बाहर आइए प्लीज, हिम्मत से काम लीजिए… मैं ने इन्हें 2-3 महीने पहले ही बता दिया था… बहुत लेट आए थे… कैंसर की लास्ट स्टेज थी. अब कुछ नहीं हो सकता…’’

‘‘ऐसे कैसे कह सकते हैं डाक्टर? आप लोग नहीं कर पा रहे यह बात और है… मैं अमेरिका ले जाऊंगा… फौरन डिस्चार्ज कर दीजिए. मैं तुम्हें कुछ नहीं होने दूंगा हर्षा मैं अभी आया,’’ और वह बाहर भागा.

जी जान लगा कर उल्लास ने आननफानन में अमेरिका जाने की व्यवस्था कर ली. 2 दिन बाद वह हर्षा को ले कर लुफ्थांसा विमान में इसी उम्मीद की उड़ान भर रहा था.

‘‘तेरे बिन नहीं जीना मुझे हर्षा,’’ उस ने उस के कानों में धीरे से कहा और हमेशा की तरह उस के माथे पर चुंबन अंकित कर दिया, परंतु इस बार वह आंसुओं में भीगा था.

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