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Hindi Kahani : आकाश में मचान – आखिर क्यों नहीं उसने दूसरी शादी की ?

Hindi Kahani : भाभी ने रुपयों का बटुआ गायब कर के हमें दोराहे पर ला खड़ा किया. भाई के संरक्षण में धोखा मेरे पति को पच नहीं रहा था. पर भला हो संतोषजी का जिन्होंने न केवल हमें मुसीबत से उबार लिया, बल्कि अनजान संबंधों को रिश्ते का नाम भी दिया.

सबकुछ हंसीखुशी चल रहा था. लेकिन एक दिन डा. अनिल ने मेरे पति के गंभीर रोग के बारे में बताते हुए इन्हें शहर के किसी अच्छे डाक्टर को दिखाने की सलाह दी. मेरी सहूलियत के लिए उन्होंने किसी डाक्टर शेखर के नाम एक पत्र भी लिख कर दिया था.

बड़े भैया दिल्ली में रहते हैं. उन से फोन पर बात कर के पूछा तो कहने लगे, ‘‘अपना घर है, तुम ने पूछा है, इस का मतलब हम लोग गैर हो गए,’’ और न जाने कितना कुछ कहा था. इस के बाद ही हम लोगों ने दिल्ली जाने का कार्यक्रम बनाया. यद्यपि मैं जेठानीजी को सही रूप से पहचानती थी, पर ये तो कहते नहीं थकते थे कि दिल्ली वाली भाभी बिलकुल मां जैसी हैं, तुम तो बेवजह उन पर शक करती हो. फिर भी मैं अपनी तरफ से पूरी तरह तैयार हो कर आईर् थी कि जो भी कुछ होगा उस का सामना करूंगी.

हम दोनों लगभग 2 बजे दिन में दिल्ली पहुंच गए. स्टेशन से घर पहुंचने में कोई परेशानी नहीं हुई. नहाधो कर खाना खाने के बाद ये आराम करतेकरते सो गए और मैं बरतन, झाड़ू में व्यस्त हो गई. यद्यपि सफर की थकान से सिरदर्द हो रहा था, फिर भी रसोई में लग गई, ताकि भाभी को कुछ कहने का मौका न मिले.

शाम को 7 बजे अस्पताल जा कर चैकअप कराना है. यह बात मेरे दिमाग में घूम रही थी. मैं ने एक घंटा पहले ही जरूरी कागजों तथा डा. अनिल के लिखे पत्र को सहेज कर रख लिया था. चूंकि पहला दिन था और कनाट प्लेस जाना था, इसलिए एक घंटा पहले ही घर से निकली थी.

हमें डा. शेखर का क्लीनिक आसानी से मिल गया था. मैं ने दवाई का पुराना परचा और चिट्ठी पकड़ा दी, जिसे देख कर उन्होंने कहा था, ‘‘ ज्यादा चिंता की बात नहीं है. 15-20 दिनों के इलाज से देखेंगे, संभावना है, ठीक हो जाएंगे, वरना इन का औपरेशन करना पड़ेगा. परंतु डरने की कोई बात नहीं. सुबहशाम सैर करें और नियमित यहां से इलाज कराएं.’’

हम लोग उन की बातों से आश्वस्त हो कर पूछतेपूछते बसस्टौप तक आए. वहां से घर तक के लिए बस मिल गई थी.

एक दुकान से केक, बिस्कुट और कुछ फल खरीदे तथा घर के लिए चल दिए. मेरे हाथों में इतना सारा सामान देख कर जेठानीजी बोली थीं, ‘‘इस तरह फुजूलखर्ची मत करो, घर के घी से बने बेसन के लड्डू तो लाई हो, गुझियां भी हैं, फिर इन्हें खरीदने की जरूरत क्या…’’ उन की बात काटते हुए मैं ने कहा, ‘‘शहर के बच्चे हैं, घर में बनी मिठाई तो खाएंगे नहीं, इसलिए केक, बिस्कुट ले लिए हैं.’’

‘‘ठीक है’’, कह कर उन्होंने एक लंबी सांस भरी.

भैया औफिस से आ गए थे. हम लोगों को देख कर भैया और बच्चे खिल से गए. हम लोगों ने भैया के पैर छुए और बच्चों ने हम लोगों के. भाभी बैठेबैठे पालक काट रही थीं.

मैं बहुत थकान महसूस कर रही थी, थोड़ा आराम करना चाहती थी, पर तभी पता चला कि भाभी की तबीयत ठीक नहीं है. मैं ने भाभी से कहा, ‘‘आप आराम कर लीजिए, रसोई मैं बना लूंगी.’’

दूसरे दिन सुबह सूरज निकलने से पहले इन्हें सैर कराने ले गई. जैसा भैया ने बताया था, लेन पार करते ही पार्क दिखाई दिया. यहां यह देख कर बहुत अच्छा लगा कि इधरउधर घास पर लोग चहलकदमी कर रहे थे.

हम दोनों एक बैंच पर बैठे ही थे कि एक सज्जन ने इन्हें उठाया और बोले, ‘‘चलिए, उठिए, आप घूमने आए हैं या बैठने.’’ हम लोग उन के साथ थोड़ी देर तक घूमफिर कर वापस उसी बैंच पर आ कर बैठ गए. फिर हम लोगों ने एकदूसरे का परिचय लिया. उन्होंने अपना नाम संतोष बताया. उन की बेटी राधिका 9वीं कक्षा में पढ़ रही है तथा उन की पत्नी ने आत्महत्या की थी.

यह पूछने पर कि दूसरा विवाह क्यों नहीं किया. वे बोले, ‘‘दूसरे विवाह के लिए कोई उपयुक्त साथी नहीं मिला.’’ उन का दुख एक मौनदुख था, क्योंकि पत्नी की आत्महत्या से रिश्तेदार व अन्य लोग उन्हें शक की नजर से देखते थे. वे अपनेआप को अस्तित्वहीन सा समझ रहे थे. मेरे पति ने उन्हें समझाया, ‘‘देखिए संतोषजी, आप की बेटी ही आप की खुशी है. वही आप के अंधेरे जीवन में खुशी के दीप जलाएगी.’’

हम लोग घर वापस आए तो भाभी अभी अपने कमरे से बाहर नहीं निकली थीं. भैया उस समय मंजन कर रहे थे. मैं फौरन चाय बनाने रसोई में चली गई. चाय बनाने के बाद मैं उपमा बनाने की तैयारी करने लगी. बच्चे कह रहे थे, ‘‘चाची आ गईं और मम्मी का ब्लडप्रैशर बढ़ गया.’’

मैं उन की बातें सुन कर मुसकराई और भाभी का हालचाल लेने उन के कमरे में चली गई. भाभी उस समय पत्रिका पढ़ रही थीं. मुझे देखते ही थोड़ी संकुचित सी हो गई, बोलीं, ‘‘आओआओ, जरा शरीर भारी हो रहा है, डाक्टर ने आराम करने के लिए कहा है. बीपी बढ़ा है.’’

‘‘अरे भाभी, आप भी कैसा संकोच कर रही हैं, मैं हूं न, निश्चिंत रहिए’’, मैं ने शब्दों को भारी कर कहा, जैसे कह रही हूं, आप का ब्लडप्रैशर हमेशा बढ़ा रहे.

अब मैं थकती नहीं हूं. सबकुछ दिनचर्या में शामिल हो गया है. डा. शेखर के क्लीनिक जाना और लौटते समय सब्जी, फल, दूध, ब्रैड आदि लाना. उन सब में खर्च इलाज से भी ज्यादा हो रहा है. मुझे चिंता इस बात की है कि अब पैसे भी गिन कर ही बचे हैं और दवाखाने का बिल चुकाना बाकी है.

इन्हीं तनावों से घिरी होने के कारण आज मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था, क्योंकि कपड़े बदलते समय रुपयों का पुलिंदा वहीं कमरे में ही छूट गया था और जो छूट गया सो गया. बस, गलती यह  हुई कि चाय बनाने की जल्दी में वह रुपयों का पुलिंदा उठाना भूल गई. यद्यपि मुझे याद आया, मैं वह पुलिंदा लेने भागी, मेरे कपड़े तो वैसे ही पडे़ थे पर वह पुलिंदा नहीं था. मुझे काटो तो खून नहीं. मुझे ऐसा लगा जैसे मैं चक्कर खा कर गिर जाऊंगी. ये ड्राइंगरूम में बैठे टैलीविजन देख रहे थे, पर उस समय मैं ने इन से कुछ नहीं कहा.

टहलने के लिए जब बाहर निकले तो मुझे गुमसुम देख कर इन्होंने पूछा, ‘‘क्या बात है?’’ मैं चुप रही. कैसे कहूं. समझ में नहीं आ रहा था. मैं चक्कर खा कर गिरने ही वाली थी कि इन्होंने संभाल लिया और समझाने के लहजे से कहा, ‘‘देखो, तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है, घर में आराम करो, मैं घूमफिर कर आ जाऊंगा.’’

इस बात से इन्हें भी तो धक्का लगेगा, यह सोच कर मेरी आंखों में आंसू आ गए.

‘‘अरे, क्या हुआ, सचमुच तुम बहुत थक गई हो, मेरी देखभाल के साथ घर का सारा काम तुम्हें ही करना पड़ रहा है.’’

‘‘नहीं, यह बात नहीं है.’’

‘‘तो क्या बात है?’’

‘‘चलो, वहीं पार्क में बैठ कर बताती हूं.’’

फिर सारी बात मैं ने इन्हें बता दी. ये बोले, ‘‘चिंता मत करो, जो नहीं होना था वह हो गया. अब समस्या यह है कि आगे क्या करें और कैसे करें. भैया से उधार मांगने पर पूछेंगे कि तुम तैयारी से क्यों नहीं आए? यदि सही बात बताई तो बात का बतंगड़ बनेगा.’’

फिर ये चुप हो गए. गहरी चिंता की रेखाएं इन के चेहरे से साफ झलक रही थीं. मुझे धैर्य तो दिया पर स्वयं विचलित हो गए.

संतोषजी भी हर दिन की तरह चेहरे पर मुसकान लिए अपने समय पर आ गए. हम लोगों ने झिझकते हुए उन्हें अपनी समस्या बताई तथा मदद करने के लिए कहा.

वे कुछ देर खामोश सोचते रहे, फिर बोले, ‘‘मैं मदद करने को तैयार हूं, आप परदेसी हैं, इसलिए एकदम से भरोसा भी तो नहीं कर सकता. आप अपनी कोईर् चीज गिरवी रख दें. जब 3 माह बाद आप लोग यहां दोबारा दिखाने के लिए आएंगे, तब पैसे दे कर अपनी चीज ले जाना. हां, इन पैसों का मैं कोई ब्याज नहीं लूंगा.’’

मरता क्या न करता. हम लोग तैयार हो गए. मेरे गले में डेढ़ तोले की चेन थी, उसे दे कर रुपया उधार लेना तय हो गया.

संतोषजी अपने घर गए और 5 हजार रुपए ला कर इन की हथेली पर रख दिए. मैं ने उन का उपकार माना और सोने की चेन उन्हें दे दी.

इस घटना के बाद इन की आंखों में उदासीनता गहरा गई. मुझे भलाबुरा कहते, डांटते. मेरी इस लापरवाही के लिए आगबबूला होते तो शायद इन का मन हलका हो जाता, पर भाई के संरक्षण में यह धोखा इन्हें पच नहीं रहा था. संतोषजी दुनियादारी की बातें, रिश्तेनातों के खट्टेमीठे अनुभव सुनाते रहे, समझाते रहे पर इन्होंने एक शब्द भी नहीं कहा.

घर जा कर मैं ने रात में इन को समझाया, ‘‘समझ लो चेन कहीं गिर गई या रुपयों का पुलिंदा ही कहीं बाहर गिर गया. इस तरह मन उदास करोगे तो इलाज ठीक से नहीं हो पाएगा. तनाव मत लो, बेकार अपनेआप को परेशान कर रहे हो. अब यह गलती मुझ से हुई है, मुझे ही भुगतना पड़ेगा.’’

कुछ दिन और बीत गए. संतोषजी उसी तरह मिलते, बातें करते, हंसतेहंसाते रहे. बातोंबातों में मैं ने उन्हें बताया कि कल डाक्टर ने एक्सरे लेने को कहा है. रिपोर्ट ठीक रही तो 5वें दिन छुट्टी कर देंगे. संतोषजी को अचानक जैसे कुछ याद आ गया, बोले, ‘‘आज से 5वें दिन तो मेरा जन्मदिन

है. जन्मदिन, भाभी, जन्मदिन.’’ उन का इस तरह चहकना मुझे बहुत अच्छा लगा.

‘‘उस दिन 16 तारीख है न, आप लोगों को मेरे घर भोजन करना पड़ेगा,’’ फिर गंभीरता से इन का हाथ अपने हाथ में ले कर बोले, ‘‘पत्नी की मृत्यु के बाद पहली बार मेरे मुंह से जन्मदिन की तारीख निकली है.’’

16 तारीख, यह जान कर मैं भी चौंक पड़ी, ‘‘अरे, उस दिन तो हमारी शादी की सालगिरह है.’’

‘‘अरे वाह, कितना अच्छा संयोग है. संतोषजी, उस दिन यदि रिपोर्ट अच्छी रही तो आप और आप की बेटी हमारे साथ बाहर किसी अच्छे रैस्टोरैंट में खाना खाएंगे,’’ हंसते हुए इन्होंने कहा.

‘‘मेरा मन कहता है कि आप की रिपोर्ट अच्छी ही आएगी, पर भोजन तो आप लोगों को मेरे घर पर ही करना पड़ेगा. इसी बहाने आप लोग हमारे घर तो आएंगे.’’

मैं ने इन की ओर देखा, तो ये बोले, ‘‘ठीक है’’, फिर बात तय हो गई. संतोषजी खिल उठे. अब तक की मुलाकातों से उन के प्रति एक अपनापन जाग उठा था. अच्छा संबंध बने तो मनुष्य अपने दुख भूलने लगता है. हम लोग भी खुश थे.

समय बीता. एक्सरे की रिपोर्ट के अनुसार हड्डी में पहले जितना झुकाव था, उस से अब कम था. डाक्टर का कहना था कि ऐसी ही प्रगति रही तो औपरेशन की जरूरत नहीं पड़ेगी. नियमित व्यायाम और संतुलित भोजन जरूरी है. इन्हीं 2 उपायों से अपनेआप को ठीक से दुरुस्त करना होगा. मुझे अंदर ही अंदर बड़ी खुशी हुई. औपरेशन का बड़ा संकट जो टला था. डाक्टर ने दवाइयां लिख दी थीं, 3 माह बाद एक्सरे द्वारा जांच करानी पड़ेगी. डाक्टर का कहना था, हड्डी को झुकने से बचाना है. मैं ने बिल चुकाया और डाक्टर को धन्यवाद दिया.

कुछ दवाइयां खरीदीं और फिर वहीं एक नजदीकी दुकान से संतोषजी को जन्मदिन का उपहार देने के लिए कुरतापाजामा और मिठाई का डब्बा खरीदा. फिर हमेशा की तरह सब्जी वगैरह ले कर हम घर आ गए.

इन्होंने भाभी से रिपोर्ट के बारे में बताया और कल सुबह लौटने की बात कही. भाभी पहले तो तटस्थ बैठी थीं, फिर चौंक कर बोलीं, ‘‘अरे, चले जाना, 2-4 दिन और रह लो’’, फिर अफसोस जाहिर करती हुई बोलीं, ‘‘इस बार तो सब तुम्हें ही करना पड़ा. तुम न होतीं तो पता नहीं कैसे चलता. ऐसे समय नौकरानी भी छुट्टी ले कर चली गई. कहते हैं न, मुसीबत चौतरफा आती है.’’

‘‘अरे भाभी, किया तो क्या हुआ, अपने ही घर में किया’’, मेरी आवाज में कुछ चिढ़ने का लहजा आ गया था.

शाम को हम लोग संतोषजी के घर गए. साफसुथरा, सजा हुआ प्यारा सा घर. फिल्मी हीरोइन जैसी सुंदर बेटी राधिका. देखते ही उस ने हाथ जोड़ कर हम लोगों से नमस्ते किया.

मैं ने तो उसे अपने गले से लगा लिया और एक चुंबन उस के माथे पर जड़ दिया. इन्होंने उस के सिर पर हाथ फिराते हुए आशीर्वाद दिया.

मैं अपनी नजरों को चारों ओर दौड़ा रही थी, तभी संतोषजी की आवाज गूंज उठी और सब ने एकदूसरे को बधाइयां दीं. मैं ने मिठाई का डब्बा राधिका के हाथ में और कुरतापाजामा का पैकेट संतोषजी के हाथ में थमा दिया.

भोजन टेबल पर लगा था. हंसते, मजाक करते हम लोग भोजन का आनंद ले रहे थे. हर चीज स्वादिष्ठ बनी थी. हम लोग सारी औपचारिकताएं भूल कर आप से तुम पर आ गए थे.

संतोषजी कह रहे थे कि 3 माह बाद जब दोबारा आना, तब यहीं ठहरना. देखो भाई, संकोच मत करना. और एक पैकेट हमारे हाथ में थमा दिया.

‘‘जरूरजरूर आएंगे. आप के रुपए देने तो जरूर आएंगे. कोशिश करेंगे, अगली बार ही रुपए वापस कर दें, और यदि नहीं हुआ तो क्षमा करना, भाई,’’ इन्होंने बड़े प्रेम से कहा तो संतोषजी ने इन के हाथों को अपने हाथों में ले लिया और बोले, ‘‘कैसी बातें करते हैं. दोस्ती की है तो इसे निभाऊंगा भी, चाहो तो आजमा के देख लेना.’’

तब तक मैं ने पैकेट खोल लिया था. एक सुनहरी डब्बी में मेरी वाली सोने की चेन रखी थी. एक पल आंख मुंदी और सारी स्थिति समझ में आ गई.

मेरी आंखों में आंसू आ गए. कितने महान हैं वे – संकट से उबारा भी और रिश्ते के बंधन में भी बांधा. मैं उन के चरणों में झुकी ही थी कि उन्होंने मुझे बीच में ही रोक लिया और बोले, ‘‘नहीं बहन, नहीं’’, संतोषजी की आंखें सजल हो गईं. उन के मुंह से आगे कुछ न निकल सका.

राधिका अपने पापा से लिपट गई. ‘‘पापा, आप कितने अच्छे हैं.’’ फिर हम लोगों के पास आ कर वह खड़ी हो गई. ऐसा लगा जैसे समुद्र के तट पर फैले बैंगनी रंग ने जीवन के आकाश में मचान बना दी हो.

Hindi Story : मिसेज मेघना राघव गुप्ता – खेल सरनेम का

Hindi Story : खूबसूरत और खिलीखिली सी मेघना औफिस में सब के आकर्षण का केंद्र बनी हुई है. जब से शाखा में मेघना ने ज्वाइन किया है, तब से ही पुरुषों को गुलाब और महिलाओं को कांटे की अनुभूति दे रही है. अरे नहीं भई, मेघना कोई फैशनपरस्त आधुनिक बाला नहीं है, जो अपने विशेष परिधानों से सब का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करे, वह तो कंधे तक कटे बालों की पोनी बनाए, कभी आरामदायक सूट तो कभीकभार जींस और शार्ट कुरती में नजर आने वाली आम सी लड़की है, लेकिन उस की बड़ीबड़ी कजरारी आंखें… उफ्फ, किसी को भी अपने भीतर बंदी बना लें.

मेघना का रंग बेशक गोरा नहीं है, लेकिन सलोना अवश्य है. ठीक वैसा ही जैसा सावन में काले बादलों का होता है. मनोहारी… सम्मोहक और अपनी तरफ खींचने वाला…

सिर्फ रूप और लावण्य ही नहीं, बल्कि एक अन्य कारण भी है, जो सब को मेघना की तरफ खींचता है. वो है उस का नाम… नहीं नहीं, नाम नहीं, बल्कि उपनाम… दरअसल, मेघना अपने नाम के साथ कोई उपनाम या जाति यानी सरनेम नहीं लगाती. भला आज के समय में भी ऐसा कहीं होता है भला? जब गलीगली में जातिधर्म के नाम पर लोग बंट रहे हैं, ऐसे में किसी साधारण आदमी का अपनी जाति के प्रति मोह नहीं दिखाना कोई साधारण बात तो नहीं.

स्टाफ की महिला कार्मिकों ने अपने तमाम प्रयास कर देख लिए, लेकिन मजाल है कि मेघना अपनी जाति के बारे में कोई सच उगल दे.

“आप को मेरी जाति में इतना इंटरेस्ट क्यों है? क्या मेरा खुद का होना काफी नहीं है?” अकसर ऐसे ही प्रतिप्रश्न दाग कर मेघना सामने वाले को बोलती बंद करने की कोशिश करती थी, लेकिन जनसाधारण की बोलती किसी पालतू तोते की जबान है क्या, जिसे आसानी से नियंत्रित कर के जब चाहो तब बंद किया जा सके? जितने मुंह उतनी बातें… शाखा में मेघना का सरनेम उस से कहीं अधिक चर्चा का विषय होने लगा था.

यह एक राष्ट्रीयकृत बैंक की मुख्य शाखा थी, जो जयपुर महानगर में स्थित थी. मेघना की पहली पोस्टिंग यहां सहायक ब्रांच मैनेजर के रूप में हुई थी. मृदु स्वभाव की मल्लिका मेघना हर समय अपने चेहरे पर आभूषण की तरह मुसकान सजाए हर ग्राहक का काम बड़ी तत्परता से निबटाती और दबाव के पलों में भी अपनेआप को सहज और सामान्य बनाए रखती. यह विशेषता भी उस के व्यक्तित्व की गरिमा को सवाया करती थी.

ब्रांच में काम करने वाली अन्य महिलाओं के लिए मेघना एक पहेली की तरह थी, जिसे बूझना तो सब चाहते थे, लेकिन शुरुआत करने की हिम्मत कोई नहीं जुटा पा रहा था. एक दिन नव्या ने जरा साहस दिखाया. वह मेघना की हमउम्र भी थी, इसलिए भी उसे मेघना के आवरण में घुसपैठ करने में ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ी. लेनदेन के समय के बाद के कुछ सुस्त पलों में मेघना अपने मोबाइल फोन में व्यस्त थी, तभी नव्या उस के पास आई और बोली, “हेलो मेघना, तुम तो यहां नई हो ना? जयपुर घूमा क्या?” नव्या ने बात की शुरुआत करते हुए आत्मीयता दिखाई.

“घूम लेंगे. जयपुर कहां भागा जा रहा है. और वैसे भी जब 2-3 साल यहीं रहना है, तो फिर जल्दी क्या है?” मेघना ने उदासीनता से कहा, तो नव्या थोड़ी निराश हुई.

“कल छुट्टी है, चलो तुम्हें गोविंद देव के दर्शन करवा लाती हूं,” नव्या ने प्रस्ताव दिया, लेकिन मेघना ने कहीं और बिजी होने की कह कर नव्या का प्रस्ताव ठुकरा दिया.

2 दिन बाद बैंक की महिला मंडली में यही हौट टौपिक था.

“अरे, मंदिर में जाने की हिम्मत ही नहीं हुई होगी उस की. मुझे तो पहले से ही उस की जाति पर शक था,” मिसेज कपूर ने दावा किया.

“लेकिन, आजकल मंदिर में कहां कोई किसी से जातिधर्म पूछता है?” नव्या ने मिसेज कपूर की बात का विरोध किया.

“नहीं पूछता, लेकिन कहते हैं ना कि चोर की दाढ़ी में तिनका. मन ही नहीं माना होगा उस का, इसलिए खुद से ही मना कर दिया,” मीनाक्षी ने भी अपना तर्क रखा.

“कल उसे लंच पर अपने साथ बिठाते हैं, तभी कुछ पता चलेगा उस के बारे में,” नव्या ने फैसला सुनाया और सभा बरखास्ता हो गई.

अगले दिन नव्या ने कहीं और लंच पर जाने की बात कह कर एक बार फिर से महिला मंडली का प्रस्ताव खारिज कर दिया.

महिलाओं को ये उन का भारी अपमान लगा. सब ने मिल कर मेघना के खिलाफ मोरचा खोल दिया. एक तरह का असहयोग आंदोलन चलने लगा था औफिस में.

“हेलो फ्रेंड्स, कल मेरे घर पर एक छोटी सी गेट टुगेदर है. आप सब इंवाइटेड हो,” मेघना ने औफिस छोड़ने से पहले घोषणा की, तो सब का चौंकना लाजिमी था.

मेघना को तो किसी ने जवाब नहीं दिया, लेकिन सब के भीतर गहरी उथलपुथल मची हुई थी. इस में कोई शक नहीं था.
सब ने मिल कर मेघना की पार्टी अटेंड करने का फैसला किया. किसी की सचाई बाहर लाने के लिए इतना तो करना ही पड़ेगा ना?

तय समय पर पूरा महिला स्टाफ मेघना के घर मौजूद था. मेघना ने भी आगे बढ़ कर बहुत ही आत्मीयता के साथ उन का स्वागत किया और अपने पूरे परिवार से मिलवाया.

मेघना के परिवार में उस के मम्मीपापा और एक छोटी बहन थी. यह गेट टुगेदर मेघना के मम्मीपापा की शादी की सालगिरह का था.
मेघना जब अन्य मेहमानों में व्यस्त हो गई, तो महिला मंडली उस के घर का अवलोकन करने लगी. दीवार पर लगी बाबा साहेब अंबेडकर की तसवीर देखते ही मिसेज कपूर चौंक गईं. वे नव्या और अन्य महिलाओं को लगभग खींचती हुई सी वहां ले कर आईं.

“ये देखो, मैं न कहती थी कि यह लड़की उस जाति की है,” मिसेज कपूर ने आंखें नचाते हुए कहा. वे अपनी सफलता का श्रेय किसी दूसरे को नहीं लेने देना चाहती थीं. सब ने आंखें फाड़फाड़ कर देखा. वे कभी तसवीर तो कभी मेघना को देख रही थीं.

“शक तो मुझे भी हुआ था, जब ये सब से घुलनेमिलने में आनाकानी करती थी. फिर मुझे लगा कि शायद नई है, इसलिए संकोच करती है. अब पता चला इस के संकोच का कारण. हिम्मत ही नहीं होती होगी सच का सामना करने की,” नव्या ने अपनी दलील रखी.

“अब तो सबकुछ सामने है. क्या अब भी यहां कुछ खानापीना करोगी? वापस चलें क्या?” मीनाक्षी ने कहा. सब एकदूसरे की तरफ देखने लगे. आखिर सब को यों अकारण वहां से ना जाना ही सही लगा और फिर सब की सब महिलाएं एक कोने में कुरसी ले कर बैठ गईं.

“अरे, आप लोग यहां कोने में क्यों बैठी हैं? कुछ लीजिए ना?” कहते हुए मेघना ने उन के सामने सौफ्ट ड्रिंक से भरे गिलासों वाली ट्रे कर दी. सब ने एकदूसरे की तरफ देखा, लेकिन गिलास की तरफ हाथ किसी ने भी नहीं बढ़ाया. किसी ने गला खराब होने, तो किसी ने ठंडे से एलर्जी को कारण बताया. हालांकि असल कारण से मेघना अनजान नहीं थी, इसलिए उस ने भी अधिक आग्रह नहीं किया.

खाना टेबल पर लगने की आहट होते ही महिलाओं का दल देरी होने का बहाना बनाते हुए वहां से खिसक लिया.

असली कहानी तो अब शुरू होती है. मेघना की जाति का आभास होते ही अब औफिस में उस का बायकट शुरू हो गया. न उसे लंच टाइम में इनवाइट किया जाता और ना ही उस के साथ अन्य किसी प्रकार की अंतरंगता रखी जा रही थी. औफिशियल काम के लिए जरूरी बातचीत के अतिरिक्त उन में आपस में कोई संवाद भी नहीं होता. सिर्फ नव्या ही थी, जो मेघना और शेष महिलाओं के बीच बातचीत का सेतु बनी हुई थी.

इन सब के बावजूद भी मेघना सब की बातों का मुख्य केंद्र अभी भी बनी हुई थी. कारण था उस की सहज मुसकान और बैंक के ग्राहकों में उस की बढ़ती लोकप्रियता. जो भी ग्राहक मेघना के काउंटर पर जाता, वह संतुष्ट हो कर ही लौटता था. नतीजा ये हुआ कि बैंक ने अपने स्थापना दिवस पर कुछ कर्मठ कर्मचारियों को संभाग स्तर पर सम्मानित करने का निर्णय लिया, जिन में से एक नाम मेघना का भी था.

कहना न होगा कि इस समारोह के बाद मेघना का सामाजिक दायरा और भी अधिक बढ़ गया. उस के मोबाइल में फोन नंबरों की सूची और भी अधिक लंबी हो गई और सोशल मीडिया पर आने वाले संदेशों के कारण उस के मोबाइल पर घड़ीघड़ी मैसेज अलर्ट भी पहले से कुछ अधिक बजने लगे, जिन्हें मजबूरन उसे साइलेंट करना पड़ा.

मेघना का लंच टाइम खाने के साथसाथ मिस्ड काल्स और मैसेज का जवाब देने में बीतने लगा. वैसे भी औफिस में उस के अधिक दोस्त तो थे नहीं, इसलिए वह ये काम बड़ी आसानी से कर पा रही थी. फोन पर बात करती हुई मेघना भी पूरे स्टाफ की निगाहों में रहती थी. फोन पर बात करते समय उस के चेहरे के हावभाव से हर कोई अपनी तरफ से कयास लगाता कि वह किस से बात कर रही होगी.

“आज तो मेघना मैडम के चेहरे की ललाई बता रही है कि बातचीत किसी बेहद दिल के करीब व्यक्ति से हो रही है,” एक दिन नव्या ने अंदाजा लगाया.

“हो सकता है. आखिर शादी की उम्र तो हो ही चली है. और अब तो नौकरी भी सेटल है. कोई न कोई मिल गया होगा,” मिसेज कपूर ने मुंह टेढ़ा करते हुए अपना मत रखा.

“होगा कोई भीम आर्मी का सिपाही,” मीनाक्षी के इतना कहते ही एक मिलजुला ठहाका गूंज गया.

“चलो, फाइनली मेघना को एक सरनेम तो मिलेगा,” कह कर नव्या ने ठहाके को आगे बढ़ाया.

नव्या चूंकि मेघना की हमउम्र थी, इसलिए भी उस के भीतर चल रहे परिवर्तनों को आसानी से समझ सकती थी. इन दिनों उसे महसूस हो रहा था मानो मेघना प्रेम में है. उस ने मेघना को बाथरूम में किसी के साथ वीडियो चैट करते देखा था. हालांकि नव्या उस व्यक्ति का चेहरा नहीं देख पाई थी, क्योंकि उस की आंखों के सामने मोबाइल की पीठ थी. मेघना का चेहरा उस के सामने था और उसी की भावभंगिमा से वह अंदाजा लगा पाई थी कि यह कोई प्रेमालाप चल रहा है. जैसे ही मेघना की निगाह नव्या से टकराई, उस ने झेंपते हुए वीडियो बंद कर दिया था.

“आज मैडम रंगेहाथों पकड़ी गई. अभीअभी बाथरूम में लाइव टेलीकास्ट देख कर आ रही हूं,” नव्या ने जैसे ही यह बम फोड़ा, हर तरफ अफरातफरी मच गई. सब की जिज्ञासा चरम पर पहुंच गई, लेकिन नामपता मालूम न होने के कारण यह एटम बम टांयटांय फिस्स हो गया.

ये वार चाहे खाली गया हो, लेकिन इस घटना ने नव्या को जासूस बना दिया. अब वह हर समय मेघना पर निगाह रखने लगी, लेकिन मेघना ने भी कच्ची गोलियां नहीं खेली थीं, वह नव्या को हवा भी नहीं लगने दे रही थी.

“अब यार शादीवादी कर लो. तुम कहो तो देखें तुम्हारे लिए कोई?” एक दिन नव्या ने मेघना को छेड़ा.

“हांहां, क्यों नहीं. जरूर देखो. दोस्त लोग नहीं देखेंगे तो फिर और कौन देखेगा?” मेघना ने भी मुसकरा कर उत्तर दिया.

“कैसा लड़का चाहती हो अपने लिए?” नव्या ने पूछा.

“बिलकुल वैसा ही जैसा तुम अपने लिए उचित समझती हो,” कह कर मेघना ने नहले पर दहला मारा.

“यार, दिल की बात कहूं तो मुझे सांगानेर ब्रांच वाला मैनेजर राघव गुप्ता बहुत जमता है. क्या पर्सनैलिटी है यार. देखते ही दिल धक से हो जाता है, लेकिन तुम्हारे लिए… दरअसल, पता नहीं वह तुम्हारी जाति की लड़की से… मेरा मतलब समझ रही हो ना?” नव्या कहतेकहते रुकी, फिर टुकड़ोंटुकड़ों में अपनी बात पूरी की. उस की बात खत्म होते ही मेघना ठहाका लगा कर हंस पड़ी.

“बात तो तुम्हारी सही है दोस्त, लेकिन पूछने में हर्ज ही क्या है?” मेघना ने कहा और नव्या को हक्कीबक्की छोड़ अपनी सीट पर चल दी.

दिन गुजरते रहे, समय बीतता रहा… आजकल मेघना हर दिन पहले से अधिक निखरी और तरोताजा नजर आने लगी थी. एक दिन उस की उंगली में सोने की अंगूठी देख कर नव्या चहक उठी.

“अरे वाह, तुम तो छुपी रुस्तम निकली. कौन है वो किस्मत वाला?” नव्या ने उत्सुकता से पूछा. मेघना केवल मुसकरा दी. उन का शोर सुन कर मीनाक्षी और मिसेज कपूर भी वहां आ गईं. वे भी मेघना की अंगूठी को छू कर देखने लगी. सोने की अंगूठी में जड़ा हीरा उन में जलन पैदा कर रहा था.

“जरूर बताएंगे और मिलवाएंगे भी. जरा सांस तो ले मेरे यार… जरा सब्र तो कर दिलदार…” मेघना ने खिलखिला कर कहा और अपनी सीट की तरफ बढ़ गई.

एक दिन दोपहर को बैंक का लेनदेन समय समाप्त होने के बाद मेघना ने सब को हाल में इकट्ठा किया. सब ने देखा उस के हाथ में मिठाई का डब्बा था. मेघना ने एकएक कर सब को मिठाई खिलाई और शेष डब्बा वहां रखी टेबल पर रख दिया. मेघना रहस्यमई मुसकान के साथ सब को मिठाई खाते हुए देख रही थी.

“अब मिठाई का राज खोल भी दो. किस खुशी में मुंह मीठा करवाया जा रहा है?” बैंक मैनेजर ने पूछा.

“इस की शादी पक्की हो गई होगी,” मिसेज कपूर ने अंदाजा लगाते हुए कहा, तो मेघना के होंठों की मुसकान और भी अधिक चौड़ी हो गई. इतनी अधिक कि उस की सफेद दंतपंक्ति झिलमिलाने लगी.

“आप ने सही अनुमान लगाया मिसेज कपूर. अगले सप्ताह शनिवार को मेरी शादी है. आप सब लोगों को जरूर आना है,” कहती हुई मेघना के चेहरे का गुलाबी रंग किसी से छिपा नहीं था.

मेघना ने एक बैग में से शादी के कार्डों का बंडल निकाला और एकएक कर सब के हाथों में थमाती गई. जैसे ही मेघना ने मिसेज कपूर को कार्ड दिया, उन्होंने लपक कर उसे थाम लिया और सब से पहले होने वाले वर का नाम पढ़ने लगी.

“राघव गुप्ता, बैंक मैनेजर, सांगानेर ब्रांच…” नाम देखते ही उन की आंखें आश्चर्य से चौड़ी हो गईं. उधर नव्या और मीनाक्षी का भी यही हाल था. मेघना अब भी मुसकरा रही थी.

“यदि आप अनुमति दें तो मैं आज जरा जल्दी घर जाना चाहती हूं, मुझे शादी के लिए शापिंग करनी है.”

मेघना ने बैंक मैनेजर से आग्रह किया. उन के हां के इशारे के बाद मेघना महिला मंडली की तरफ मुड़ी और कहा, “आशा करती हूं कि आप लोगों को मेरे यहां खानेपीने में कोई परेशानी नहीं होगी. अब तो मैं मिसेज मेघना राघव गुप्ता होने जा रही हूं,” मेघना ने कहा और सब को धन्यवाद कहती हुई बैंक से बाहर निकल गई.

सब मिसेज मेघना राघव गुप्ता को जाते हुए अवाक देख रही थीं.

Romantic Story : दिल चाहता है – दिल पर क्यों नहीं लग पाता उम्र का कोई बंधन

Romantic Story : जुलाई का महीना है. सुबह की सैर  से वापस आ कर मैं ने कपड़े  बदले. छाता होने के बाद भी कपड़े कुछ तो भीग ही जाते हैं. चाय का अपना कप ले कर मैं बालकनी में आ कर चेयर पर बैठ गई और सुबहसुबह नीचे खेल रही छोटी बच्चियों पर नजर डाली. मन में स्नेह की एक लहर सी उठी. बहुत अच्छी लगती हैं मुझे हंसतीखेलती छोटीछोटी बच्चियां. जब भी इन्हें देखती हूं, दिल चाहता है सब छोड़ कर नीचे उतर जाऊं और इन बच्चियों के खेल में शामिल हो जाऊं, पर जानती हूं यह संभव नहीं है.

इस उम्र में बारिश में भीगते हुए छोटी बच्चियों के साथ पानी में छपाकछपाक करते हुए सड़क पर कूदूंगी तो हर कोई मुझे पागल समझेगा, कहेगा, इस उम्र में बचपना दिखा रही है, खुद को बच्ची समझ रही है. अब अपने मन में छिपे बच्चे के बचपन की इस कसक को दिखा तो सकती नहीं, मन मार कर बच्चियों को खेलते देखते रह जाती हूं. कितने सुहाने लगते हैं इन के खेल, कितने भरोसे के साथ हाथ पकड़ते हैं ये एकदूसरे का लेकिन बड़े होने पर न तो वे खेल रहते हैं न खिलखिलाहट, न वैसा विश्वास और साथ, कहां चला जाता है यह सब?

अभी सैर पर थी तो पार्क में कुछ युवा जोड़े एकदूसरे में खोए बैठे थे. मुंबई में जगह की कमी शायद सब से ज्यादा इन्हीं जोड़ों को खलती है. सुबहसुबह भी लाइन से बैठे रहते हैं. बराबर वाला जोड़ा क्या कर रहा है, इस की चिंता उन्हें नहीं होती. हां, देखने वाले अपने मन में, कितने बेशर्म हैं ये युवा, सोचते कुढ़ते हुए अपनी सैर पूरी करते हैं, लोगों का ध्यान अकसर उन्हीं पर होता है लेकिन वे जोड़े किसी की चिंता में अपना समय खराब नहीं करते. सैर की मेरी साथी भी जब अकसर उन्हें कोस रही होती है, मैं मन ही मन सोच रही होती हूं कि आह, यह उम्र क्यों चली गई, मीठेमीठे सपनों, सुंदर एहसासों की उम्र, अब क्यों हम अपनी जिम्मेदारियों में इतने व्यस्त हो जाते हैं कि यह सबकुछ बेमानी हो जाता है.

मेरा तो आज भी दिल यही चाहता है कि अनिरुद्ध जब भी अपने काम से फ्री हों, हम दोनों ऐसे ही बाइक पर घूमने निकल जाएं, उन की कमर में हाथ डाल कर बैठना कितना अच्छा लगता था. अब तो कार में गाने सुनते हुए, कभी चुपचाप, कभी दोचार बात करते हुए सफर कटता है और हम अपना काम निबटा कर घर लौट आते हैं.

कई बार मैं स्नेहा और यश से जब कहती हूं, ‘चलो, अपना फोन और कंप्यूटर बंद करो, कहीं बाहर घूमने चलते हैं. थोड़ा साथ बैठेंगे या पिकनिक की बात करती हूं तो दोनों कहेंगे, ‘स्टौप इट मौम, क्या बच्चों जैसी बात करती हैं आप, इस उम्र में पिकनिक का शौक चढ़ा है आप को, हमें और भी काम हैं.’

मैं पूछती हूं, ‘क्या काम हैं छुट्टी के दिन?’ तो उन के काम यही होते हैं, सोना, टीवी देखना या अपने दोस्तों के साथ किसी मौल में घूमना. फिर मेरा दिल जो चाहता है, वह दिल में ही रह जाता है. कालेज से लौटती हुई अपने घर जाने से पहले सड़क पर खड़ी लड़कियों को कहकहे लगाती देखती हूं तो दिल चाहता है अपनी सहेलियों को बुला कर ऐसे ही खूब दिल खोल कर हंसू, ठहाके लगाऊं लेकिन अब न वे सहेलियां हैं न वह समय.

अब तो हमें वे मिलती भी हैं तो बस पति और बच्चों की शिकायतें, अपनीअपनी बीमारियों की, महंगाई की, रिश्तेदारों की परेशानियां क्यों हम ऐसे खुश रहना, बेफिक्री से समय बिताना भूल जाती हैं.

पिछले संडे की बात है. अनिरुद्ध नाश्ते के बाद फ्री थे. मैं ने कहा, ‘चलो, अनि, आज कार छोड़ कर बारिश में कहीं बाइक पर चलते हैं.’

फट से जवाब आया, ‘पागल हो गई हो क्या, नीरा? हड्डियां तुड़वानी हैं क्या? बाइक स्लिप हो गई तो, कितनी बारिश हो रही है?’

‘अनि, पहले भी तो जाते थे हम दोनों.’

‘पहले की बात और थी.’

‘क्यों, पहले क्या बात थी जो अब नहीं है?’ कह कर मैं ने उन के गले में बांहें डाल दीं, ‘अनि, मेरा दिल करता है हम अब भी बारिश में थोड़ा घूम कर रोमांस करें, एकदूसरे में खो जाएं.’

अनि हंसते हुए बोले, ‘यह सब तो रात में भी हो सकता है, उस के लिए बारिश में भीगने की क्या जरूरत है.’

‘कुछ चैंज होगा, अनि.’

‘क्या चैंज होगा? यही कि मुझे जुकाम हो जाएगा और मुंबई की सड़कों पर बाइक पर बैठ कर तुम्हें कमरदर्द. डार्लिंग, दिल को काबू में रखो, दिल का क्या है.’

मैं मन मार कर चुप रह गई थी. यह नहीं समझा पाई थी कि दिल करता है हम भीग जाएं, थोड़ी ठंड लगे, आ कर कपड़े बदल कर साथ कौफी पीएं, फिर बैडरूम में चले जाएं, फिर बस, इस के आगे नहीं समझा पाऊंगी.

कभीकभी तो हद हो जाती है, दिल करता है खुद ही अकेले कार ले कर लौंगड्राइव पर निकल जाऊं, कहीं दूर खुले रेस्तरां में बैठ कर कौफी पीऊं, फिर वहां कोई मिल जाए जो मेरा अच्छा दोस्त बन जाए, बस एक दोस्त, इस के आगे कुछ नहीं, जो मुझ से ढेर सी बातें करे, जो मेरी ढेर सी बातें सुने, अभी मैं और पता नहीं क्याक्या सोचती कि जम्हाई लेते हुए अनिरुद्ध आए और बोले, ‘‘यहां क्या कर रही हो सुबहसुबह? चाय मिलेगी?’’ और मैं यह सोचती हुई कि सच ही तो कहते हैं अनि, दिल का क्या है, दिल तो पता नहीं क्याक्या सोचता है, उठ कर अपने रोज के कामों में व्यस्त हो गई.

Love Story : खूबसूरत – असलम को कैसे हुआ मुमताज की खूबसूरती का एहसास

Love Story : असलम ने धड़कते दिल के साथ दुलहन का घूंघट उठाया. घूंघट के उठते ही उस के अरमानों पर पानी फिर गया था.

असलम ने फौरन घूंघट गिरा दिया. अपनी दुलहन को देख कर असलम का दिमाग भन्ना गया था. वह उसे अपने ख्वाबों की शहजादी के बजाय किसी भुतहा फिल्म की हीरोइन लग रही थी.

असलम ने अपने दांत पीस लिए और दरवाजा खोल कर बाहर निकल गया. बड़ी भाभी बरामदे में टहलते हुए अपने रोते हुए मुन्ने को चुप कराने की कोशिश कर रही थीं. असलम उन के पास चला गया.

‘‘मेरे साथ आइए भाभी,’’ असलम भाभी का हाथ पकड़ कर बोला.

‘‘हुआ क्या है?’’ भाभी उस के तेवर देख कर हैरान थीं.

‘‘पहले अंदर चलिए,’’ असलम उन का हाथ पकड़ कर उन्हें अपने कमरे में ले गया.

‘‘यह दुलहन पसंद की है आप ने मेरे लिए,’’ असलम ने दुलहन का घूंघट झटके से उठा कर भाभी से पूछा.

‘‘मुझे क्या पता था कि तुम सूरत को अहमियत दोगे, मैं ने तो सीरत परखी थी,’’ भाभी बोलीं.

‘‘आप से किस ने कह दिया कि सूरत वालों के पास सीरत नहीं होती?’’ असलम ने जलभुन कर भाभी से पूछा. ‘‘अब जैसी भी है, इसी के साथ गुजारा कर लो. इसी में सारे खानदान की भलाई है,’’ बड़ी भाभी नसीहत दे कर चलती बनीं.

‘‘उठो यहां से और दफा हो जाओ,’’ असलम ने गुस्से में मुमताज से कहा.

‘‘मैं कहां जाऊं?’’ मुमताज ने सहम कर पूछा. उस की आंखें भर आई थीं.

‘‘भाड़ में,’’ असलम ने झल्ला कर कहा.

मुमताज चुपचाप बैड से उतर कर सोफे पर जा कर बैठ गई. असलम ने बैड पर लेट कर चादर ओढ़ ली और सो गया. सुबह असलम की आंख देर से खुली. उस ने घड़ी पर नजर डाली. साढ़े 9 बज रहे थे. मुमताज सोफे पर गठरी बनी सो रही थी.

असलम बाथरूम में घुस गया और फ्रैश हो कर कमरे से बाहर आ गया.

‘‘सुबहसुबह छैला बन कर कहां चल दिए देवरजी?’’ कमरे से बाहर निकलते ही छोटी भाभी ने टोक दिया.

‘‘दफ्तर जा रहा हूं,’’ असलम ने होंठ सिकोड़ कर कहा.

‘‘मगर, तुम ने तो 15 दिन की छुट्टी ली थी.’’

‘‘अब मुझे छुट्टी की जरूरत महसूस नहीं हो रही.’’

दफ्तर में भी सभी असलम को देख कर हैरान थे. मगर उस के गुस्सैल मिजाज को देखते हुए किसी ने उस से कुछ नहीं पूछा. शाम को असलम थकाहारा दफ्तर से घर आया तो मुमताज सजीधजी हाथ में पानी का गिलास पकड़े उस के सामने खड़ी थी. ‘‘मुझे प्यास नहीं है और तुम मेरे सामने मत आया करो,’’ असलम ने बेहद नफरत से कहा.

‘‘जी,’’ कह कर मुमताज चुपचाप सामने से हट गई.

‘‘और सुनो, तुम ने जो चेहरे पर रंगरोगन किया है, इसे फौरन धो दो. मैं पहले ही तुम से बहुत डरा हुआ हूं. मुझे और डराने की जरूरत नहीं है. हो सके तो अपना नाम भी बदल डालो. यह तुम पर सूट नहीं करता,’’ असलम ने मुमताज की बदसूरती पर ताना कसा.

मुमताज चुपचाप आंसू पीते हुए कमरे से बाहर निकल गई.

इस के बाद मुमताज ने खुद को पूरी तरह से घर के कामों में मसरूफ कर लिया. वह यही कोशिश करती कि असलम और उस का सामना कम से कम हो. दोनों भाभियों के मजे हो गए थे. उन्हें मुफ्त की नौकरानी मिल गई थी.

एक दिन मुमताज किचन में बैठी सब्जी काट रही थी तभी असलम ने किचन में दाखिल हो कर कहा, ‘‘ऐ सुनो.’’

‘‘जी,’’ मुमताज उसे किचन में देख कर हैरान थी.

‘‘मैं दूसरी शादी कर रहा हूं. यह तलाकनामा है, इस पर साइन कर दो,’’ असलम ने हाथ में पकड़ा हुआ कागज उस की तरफ बढ़ाते हुए कहा.

‘‘क्या…?’’ मुमताज ने हैरत से देखा और सब्जी काटने वाली छुरी से अपना हाथ काट लिया. उस के हाथ से खून बहने लगा.

‘‘जाहिल…,’’ असलम ने उसे घूर कर देखा, ‘‘शक्ल तो है ही नहीं, अक्ल भी नहीं है तुम में,’’ और उस ने मुमताज का हाथ पकड़ कर नल के नीचे कर दिया.

मुमताज आंसुओं को रोकने की नाकाम कोशिश कर रही थी. असलम ने एक पल को उस की तरफ देखा. आंखों में उतर आए आंसुओं को रोकने के लिए जल्दीजल्दी पलकें झपकाती हुई वह बड़ी मासूम नजर आ रही थी. असलम उसे गौर से देखने लगा. पहली बार वह उसे अच्छी लगी थी. वह उस का हाथ छोड़ कर अपने कमरे में चला गया. बैड पर लेट कर वह देर तक उसी के बारे में सोचता रहा, ‘आखिर इस लड़की का कुसूर क्या है? सिर्फ इतना कि यह खूबसूरत नहीं है. लेकिन इस का दिल तो खूबसूरत है.’

पहली बार असलम को अपनी गलती का एहसास हुआ था. उस ने तलाकनामा फाड़ कर डस्टबिन में डाल दिया. असलम वापस किचन में चला आया. मुमताज किचन की सफाई कर रही थी.

‘‘छोड़ो यह सब और आओ मेरे साथ,’’ असलम पहली बार मुमताज से बेहद प्यार से बोला.

‘‘जी, बस जरा सा काम है,’’ मुमताज उस के बदले मिजाज को देख कर हैरान थी.

‘‘कोई जरूरत नहीं है तुम्हें नौकरों की तरह सारा दिन काम करने की,’’ असलम किचन में दाखिल होती छोटी भाभी को देख कर बोला.

असलम मुमताज की बांह पकड़ कर अपने कमरे में ले आया, ‘‘बैठो यहां,’’  उसे बैड पर बैठा कर असलम बोला और खुद उस के कदमों में बैठ गया.

‘‘मुमताज, मैं तुम्हारा अपराधी हूं. मुझे तुम जो चाहे सजा दे सकती हो. मैं खूबसूरत चेहरे का तलबगार था. मगर अब मैं ने जान लिया है कि जिंदगी को खूबसूरत बनाने के लिए खूबसूरत चेहरे की नहीं, बल्कि खूबसूरत दिल की जरूरत होती है. प्लीज, मुझे माफ कर दो.’’

‘‘आप मेरे शौहर हैं. माफी मांग कर आप मुझे शर्मिंदा न करें. सुबह का भूला अगर शाम को वापस आ जाए तो उसे भूला नहीं कहते,’’ मुमताज बोली.

‘‘थैंक्स मुमताज, तुम बहुत अच्छी हो,’’ असलम प्यार से बोला.

‘‘अच्छे तो आप हैं, जो मुझ जैसी बदसूरत लड़की को भी अपना रहे हैं,’’ कह कर मुमताज ने हाथों में अपना चेहरा छिपा लिया और रोने लगी.

‘‘पगली, आज रोने का नहीं हंसने का दिन है. आंसुओं को अब हमेशा के लिए गुडबाय कह दो. अब मैं तुम्हें हमेशा हंसतेमुसकराते देखना चाहता हूं.

‘‘और खबरदार, जो अब कभी खुद को बदसूरत कहा. मेरी नजरों में तुम दुनिया की सब से हसीन लड़की हो,’’ ऐसा कह कर असलम ने मुमताज को अपने सीने से लगा लिया. मुमताज सोचने लगी, ‘अंधेरी रात कितनी भी लंबी क्यों न हो, मगर उस के बाद सुबह जरूर होती है.’

Best Romantic Story : अकेलापन – क्या राजेश दूर कर पाया उस का अकेलापन ?

Best Romantic Story : आज मेरा 32वां जन्मदिन था और मैं यह दिन राजेश के साथ गुजारना चाहती थी. उन के घर 10 बजे तक पहुंचने के लिए मैं ने सुबह 6 बजे ही कार से सफर शुरू कर दिया.

राजेश पिछले शनिवार को अपने घर गए थे लेकिन तेज बुखार के कारण वह सोमवार को वापस नहीं लौटे. आज का पूरा दिन उन्होंने मेरे साथ गुजारने का वादा किया था. अपने जन्मदिन पर उन से न मिल कर मेरा मन सचमुच बहुत दुखी होता.

राजेश को अपने प्रेमी के रूप में स्वीकार किए मुझे करीब 2 साल बीत चुके हैं. उन के दोनों बेटों सोनू और मोनू व पत्नी सरोज से आज मैं पहली बार मिलूंगी.

राजेश के घर जाने से एक दिन पहले हमारे बीच जो वार्तालाप हुआ था वह रास्ते भर मेरे जेहन में गूंजता रहा.

‘मैं शादी कर के घर बसाना चाहती हूं…मां बनना चाहती हूं,’ उन की बांहों के घेरे में कैद होने के बाद मैं ने भावुक स्वर में अपने दिल की इच्छा उन से जाहिर की थी.

‘कोई उपयुक्त साथी ढूंढ़ लिया है?’ उन्होंने मुझे शरारती अंदाज में मुसकराते हुए छेड़ा.

उन की छाती पर बनावटी गुस्से में कुछ घूंसे मारने के बाद मैं ने जवाब दिया, ‘मैं तुम्हारे साथ घर बसाने की बात कर रही हूं.’

‘धर्मेंद्र और हेमामालिनी वाली कहानी दोहराना चाहती हो?’

‘मेरी बात को मजाक में मत उड़ाओ, प्लीज.’

‘निशा, ऐसी इच्छा को मन में क्यों स्थान देती हो जो पूरी नहीं हो सकती,’ अब वह भी गंभीर हो गए.

‘देखिए, मैं सरोज को कोई तकलीफ नहीं होने दूंगी. अपनी पूरी तनख्वाह उसे दे दिया करूंगी. मैं अपना सारा बैंकबैलेंस बच्चों के नाम कर दूंगी… उन्हें पूर्ण आर्थिक सुरक्षा देने…’

उन्होंने मेरे मुंह पर हाथ रखा और उदास लहजे में बोले, ‘तुम समझती क्यों नहीं कि सरोज को तलाक नहीं दिया जा सकता. मैं चाहूं भी तो ऐसा करना मेरे लिए संभव नहीं.’

‘पर क्यों?’ मैं ने तड़प कर पूछा.

‘तुम सरोज को जानती होतीं तो यह सवाल न पूछतीं.’

‘मैं अपने अकेलेपन को जानने लगी हूं. पहले मैं ने सारी जिंदगी अकेले रहने का मन बना लिया था पर अब सब डांवांडोल हो गया है. तुम मुझे सरोज से ज्यादा चाहते हो?’

‘हां,’ उन्होंने बेझिझक जवाब दिया था.

‘तब उसे छोड़ कर तुम मेरे हो जाओ,’ उन की छाती से लिपट कर मैं ने अपनी इच्छा दोहरा दी.

‘निशा, तुम मेरे बच्चे की मां बनना चाहती हो तो बनो. अगर अकेली मां बन कर समाज में रहने का साहस तुम में है तो मैं हर कदम पर तुम्हारा साथ दूंगा. बस, तुम सरोज से तलाक लेने की जिद मत करो, प्लीज. मेरे लिए यह संभव नहीं होगा,’ उन की आंखों में आंसू झिलमिलाते देख मैं खामोश हो गई.

सरोज के बारे में राजेश ने मुझे थोड़ी सी जानकारी दे रखी थी. बचपन में मातापिता के गुजर जाने के कारण उसे उस के मामा ने पाला था. 8वीं तक शिक्षा पाई थी. रंग सांवला और चेहरामोहरा साधारण सा था. वह एक कुशल गृहिणी थी. अपने दोनों बेटों में उस की जान बसती थी. घरगृहस्थी के संचालन को ले कर राजेश ने उस के प्रति कभी कोई शिकायत मुंह से नहीं निकाली थी.

सरोज से मुलाकात करने का यह अवसर चूकना मुझे उचित नहीं लगा. इसलिए उन के घर जाने का निर्णय लेने में मुझे ज्यादा कठिनाई नहीं हुई.

राजेश इनकार न कर दें, इसलिए मैं ने उन्हें अपने आने की कोई खबर फोन से नहीं दी थी. उस कसबे में उन का घर ढूंढ़ने में मुझे कोई दिक्कत नहीं हुई. उस एक- मंजिला साधारण से घर के बरामदे में बैठ कर मैं ने उन्हें अखबार पढ़ते पाया.

मुझे अचानक सामने देख कर वह पहले चौंके, फिर जो खुशी उन के होंठों पर उभरी, उस ने सफर की सारी थकावट दूर कर के मुझे एकदम से तरोताजा कर दिया.

‘‘बहुत कमजोर नजर आ रहे हो, अब तबीयत कैसी है?’’ मैं भावुक हो उठी.

‘‘पहले से बहुत बेहतर हूं. जन्मदिन की शुभकामनाएं. तुम्हें सामने देख कर दिल बहुत खुश हो रहा है,’’ राजेश ने मिलाने के लिए अपना दायां हाथ आगे बढ़ाया.

राजेश से जिस पल मैं ने हाथ मिलाया उसी पल सरोज ने घर के भीतरी भाग से दरवाजे पर कदम रखा.

आंखों से आंखें मिलते ही मेरे मन में तेज झटका लगा.

सरोज की आंखों में अजीब सा भोलापन था. छोटी सी मुसकान होंठों पर सजा कर वह दोस्ताना अंदाज में मेरी तरफ देख रही थी.

जाने क्यों मैं ने अचानक अपने को अपराधी सा महसूस किया. मुझे एहसास हुआ कि राजेश को उस से छीनने के मेरे इरादे को उस की आंखों ने मेरे मन की गहराइयों में झांक कर बड़ी आसानी से पढ़ लिया था.

‘‘सरोज, यह निशा हैं. मेरे साथ दिल्ली में काम करती हैं. आज इन का जन्मदिन भी है. इसलिए कुछ बढि़या सा खाना बना कर इन्हें जरूर खिलाना,’’ हमारा परिचय कराते समय राजेश जरा भी असहज नजर नहीं आ रहे थे.

‘‘सोनू और मोनू के लिए हलवा बनाया था. वह बिलकुल तैयार है और मैं अभी आप को खिलाती हूं,’’ सरोज की आवाज में भी किसी तरह का खिंचाव मैं ने महसूस नहीं किया.

‘‘थैंक यू,’’ अपने मन की बेचैनी के कारण मैं कुछ और ज्यादा नहीं कह पाई.

‘‘मैं चाय बना कर लाती हूं,’’ ऐसा कह कर सरोज तेजी से मुड़ी और घर के अंदर चली गई.

राजेश के सामने बैठ कर मैं उन से उन की बीमारी का ब्योरा पूछने लगी. फिर उन्होंने आफिस के समाचार मुझ से पूछे. यों हलकेफुलके अंदाज में वार्तालाप करते हुए मैं सरोज की आंखों को भुला पाने में असमर्थ हो रही थी.

अचानक राजेश ने पूछा, ‘‘निशा, क्या तुम सरोज से अपने और मेरे प्रेम संबंध को ले कर बातें करने का निश्चय कर के यहां आई हो?’’

एकदम से जवाब न दे कर मैं ने सवाल किया, ‘‘क्या तुम ने कभी उसे मेरे बारे में बताया है?’’

‘‘कभी नहीं.’’

‘‘मुझे लगता है कि वह हमारे प्रेम के बारे में जानती है.’’

कुछ देर खामोश रहने के बाद मैं ने अपना फैसला राजेश को बता दिया, ‘‘तुम्हें एतराज नहीं हो तो मैं सरोज से खुल कर बातें करना चाहूंगी. आगे की जिंदगी तुम से दूर रह कर गुजारने को अब मेरा दिल तैयार नहीं है.’’

‘‘मैं इस मामले में कुछ नहीं कहूंगा. अब तुम हाथमुंह धो कर फ्रैश हो जाओ. सरोज चाय लाती ही होगी.’’

राजेश के पुकारने पर सोनू और मोनू दोनों भागते हुए बाहर आए. दोनों बच्चे मुझे स्मार्ट और शरारती लगे. मैं उन से उन की पढ़ाई व शौकों के बारे में बातें करते हुए घर के भीतर चली गई.

घर बहुत करीने से सजा हुआ था. सरोज के सुघड़ गृहिणी होने की छाप हर तरफ नजर आ रही थी.

मेरे मन में उथलपुथल न चल रही होती तो सरोज के प्रति मैं ज्यादा सहज व मैत्रीपूर्ण व्यवहार करती. वह मेरे साथ बड़े अपनेपन से पेश आ रही थी. उस ने मेरी देखभाल और खातिर में जरा भी कमी नहीं की.

उस की बातचीत का बड़ा भाग सोनू और मोनू से जुड़ा था. उन की शरारतों, खूबियों और कमियों की चर्चा करते हुए उस की जबान जरा नहीं थकी. वे दोनों बातचीत का विषय होते तो उस का चेहरा खुशी और उत्साह से दमकने लगता.

हलवा बहुत स्वादिष्ठ बना था. साथसाथ चाय पीने के बाद सरोज दोपहर के खाने की तैयारी करने रसोई में चली गई.

‘‘सरोज के व्यवहार से तो अब ऐसा नहीं लगता है कि उसे तुम्हारे और मेरे प्रेम संबंध की जानकारी नहीं है,’’ मैं ने अपनी राय राजेश को बता दी.

‘‘सरोज सभी से अपनत्व भरा व्यवहार करती है, निशा. उस के मन में क्या है, इस का अंदाजा उस के व्यवहार से लगाना आसान नहीं,’’ राजेश ने गंभीर लहजे में जवाब दिया.

‘‘अपनी 12 सालों की विवाहित जिंदगी में सरोज ने क्या कभी तुम्हें अपने दिल में झांकने दिया है?’’

‘‘कभी नहीं…और यह भी सच है कि मैं ने भी उसे समझने की कोशिश कभी नहीं की.’’

‘‘राजेश, मैं तुम्हें एक संवेदनशील इनसान के रूप में पहचानती हूं. सरोज के साथ तुम्हारे इस रूखे व्यवहार का क्या कारण है?’’

‘‘निशा, तुम मेरी पसंद, मेरा प्यार हो, जबकि सरोज के साथ मेरी शादी मेरे मातापिता की जिद के कारण हुई. उस के पिता मेरे पापा के पक्के दोस्त थे. आपस में दिए वचन के कारण सरोज, एक बेहद साधारण सी लड़की, मेरी इच्छा के खिलाफ मेरे साथ आ जुड़ी थी. वह मेरे बच्चों की मां है, मेरे घर को चला रही है, पर मेरे दिल में उस ने कभी जगह नहीं पाई,’’ राजेश के स्वर की उदासी मेरे दिल को छू गई.

‘‘उसे तलाक देते हुए तुम कहीं गहरे अपराधबोध का शिकार तो नहीं हो जाओगे?’’ मेरी आंखों में चिंता के भाव उभरे.

‘‘निशा, तुम्हारी खुशी की खातिर मैं वह कदम उठा सकता हूं पर तलाक की मांग सरोज के सामने रखना मेरे लिए संभव नहीं होगा.’’

‘‘मौका मिलते ही इस विषय पर मैं उस से चर्चा करूंगी.’’

‘‘तुम जैसा उचित समझो, करो. मैं कुछ देर आराम कर लेता हूं,’’ राजेश बैठक से उठ कर अपने कमरे में चले गए और मैं रसोई में सरोज के पास चली आई.

हमारे बीच बातचीत का विषय सोनू और मोनू ही बने रहे. एक बार को मुझे ऐसा भी लगा कि सरोज शायद जानबूझ कर उन के बारे में इसीलिए खूब बोल रही है कि मैं किसी दूसरे विषय पर कुछ कह ही न पाऊं.

घर और बाहर दोनों तरह की टेंशन से निबटना मुझे अच्छी तरह से आता है. अगर मुझे देख कर सरोज तनाव, नाराजगी, गुस्से या डर का शिकार बनी होती तो मुझे उस से मनचाहा वार्तालाप करने में कोई असुविधा न महसूस होती.

उस का साधारण सा व्यक्तित्व, उस की बड़ीबड़ी आंखों का भोलापन, अपने बच्चों की देखभाल व घरगृहस्थी की जिम्मेदारियों के प्रति उस का समर्पण मेरे रास्ते की रुकावट बन जाते.

मेरी मौजूदगी के कारण उस के दिलोदिमाग पर किसी तरह का दबाव मुझे नजर नहीं आया. हमारे बीच हो रहे वार्तालाप की बागडोर अधिकतर उसी के हाथों में रही. जो शब्द उस की जिंदगी में भारी उथलपुथल मचा सकते थे वे मेरी जबान तक आ कर लौट जाते.

दोपहर का खाना सरोज ने बहुत अच्छा बनाया था, पर मैं ने बड़े अनमने भाव से थोड़ा सा खाया. राजेश मेरे हावभाव को नोट कर रहे थे पर मुंह से कुछ नहीं बोले. अपने बेटों को प्यार से खाना खिलाने में व्यस्त सरोज हम दोनों के दिल में मची हलचल से शायद पूरी तरह अनजान थी.

कुछ देर आराम करने के बाद हम सब पास के पार्क में घूमने पहुंच गए. सोनू और मोनू झूलों में झूलने लगे. राजेश एक बैंच पर लेटे और धूप का आनंद आंखें मूंद कर लेने लगे.

‘‘आइए, हम दोनों पार्क में घूमें. आपस में खुल कर बातें करने का इस से बढि़या मौका शायद आगे न मिले,’’ सरोज के मुंह से निकले इन शब्दों को सुन कर मैं मन ही मन चौंक पड़ी.

उस की भोली सी आंखों में झांक कर अपने को उलझन का शिकार बनने से मैं ने खुद को इस बार बचाया और गंभीर लहजे में बोली, ‘‘सरोज, मैं सचमुच तुम से कुछ जरूरी बातें खुल कर करने के लिए ही यहां आई हूं.’’

‘‘आप की ऐसी इच्छा का अंदाजा मुझे हो चुका है,’’ एक उदास सी मुसकान उस के होंठों पर उभर कर लुप्त हो गई.

‘‘क्या तुम जानती हो कि मैं राजेश से बहुत प्रेम करती हूं?’’

‘‘प्रेम को आंखों में पढ़ लेना ज्यादा कठिन काम नहीं है, निशाजी.’’

‘‘तुम मुझ से नाराज मत होना क्योंकि मैं अपने दिल के हाथों मजबूर हूं.’’

‘‘मैं आप से नाराज नहीं हूं. सच तो यह है कि मैं ने इस बारे में सोचविचार किया ही नहीं है. मैं तो एक ही बात पूछना चाहूंगी,’’ सरोज ने इतना कह कर अपनी भोली आंखें मेरे चेहरे पर जमा दीं तो मैं मन में बेचैनी महसूस करने लगी.

‘‘पूछो,’’ मैं ने दबी सी आवाज में उस से कहा.

‘‘वह 14 में से 12 दिन आप के साथ रहते हैं, फिर भी आप खुश और संतुष्ट क्यों नहीं हैं? मेरे हिस्से के 2 दिन छीन कर आप को कौन सा खजाना मिल जाएगा?’’

‘‘तुम्हारे उन 2 दिनों के कारण मैं राजेश के साथ अपना घर  नहीं बसा सकती हूं, अपनी मांग में सिंदूर नहीं भर सकती हूं,’’ मैं ने चिढ़े से लहजे में जवाब दिया.

‘‘मांग के सिंदूर का महत्त्व और उस की ताकत मुझ से ज्यादा कौन समझेगा?’’ उस के होंठों पर उभरी व्यंग्य भरी मुसकान ने मेरे अपराधबोध को और भी बढ़ा दिया.

‘‘राजेश सिर्फ मुझे प्यार करते हैं, सरोज. हम तुम्हें कभी आर्थिक परेशानियों का सामना नहीं करने देंगे, पर तुम्हें, उन्हें तलाक देना ही होगा,’’ मैं ने कोशिश कर के अपनी आवाज मजबूत कर ली.

‘‘वह क्या कहते हैं तलाक लेने के बारे में?’’ कुछ देर खामोश रह कर सरोज ने पूछा.

‘‘तुम राजी हो तो उन्हें कोई एतराज नहीं है.’’

‘‘मुझे तलाक लेनेदेने की कोई जरूरत महसूस नहीं होती है, निशाजी. इस बारे में फैसला भी उन्हीं को करना होगा.’’

‘‘वह तलाक चाहेंगे तो तुम शोर तो नहीं मचाओगी?’’

मेरे इस सवाल का जवाब देने के लिए सरोज चलतेचलते रुक गई. उस ने मेरे दोनों हाथ अपने हाथों में ले लिए. इस पल उस से नजर मिलाना मुझे बड़ा कठिन महसूस हुआ.

‘‘निशाजी, अपने बारे में मैं सिर्फ एक बात आप को इसलिए बताना चाहती हूं ताकि आप कभी मुझे ले कर भविष्य में परेशान न हों. मेरे कारण कोई दुख या अपराधबोध का शिकार बने, यह मुझे अच्छा नहीं लगेगा.’’

‘‘सरोज, मैं तुम्हारी दुश्मन नहीं हूं, पर परिस्थितियां ही कुछ…’’

उस ने मुझे टोक कर अपनी बात कहना जारी रखा, ‘‘अकेलेपन से मेरा रिश्ता अब बहुत पुराना हो गया है. मातापिता का साया जल्दी मेरे सिर से उठ गया था. मामामामी ने नौकरानी की तरह पाला. जिंदगी में कभी ढंग के संगीसाथी नहीं मिले. खराब शक्लसूरत के कारण पति ने दिल में जगह नहीं दी और अब आप मेरे बच्चों के पिता को उन से छीन कर ले जाना चाहती हैं.

‘‘यह तो कुदरत की मेहरबानी है कि मैं ने अकेलेपन में भी सदा खुशियों को ढूंढ़ निकाला. मामा के यहां घर के कामों को खूब दिल लगा कर करती. दोस्त नहीं मिले तो मिट्टी के खिलौनों, गुडि़या और भेड़बकरियों को अपना साथी मान लिया. ससुराल में सासससुर की खूब सेवा कर उन के आशीर्वाद पाती रही. अब सोनूमोनू के साथ मैं बहुत सुखी और संतुष्ट हूं.

‘‘मेरे अपनों ने और समाज ने कभी मेरी खुशियों की फिक्र नहीं की. अपने अकेलेपन को स्वीकार कर के मैं ने खुद अपनी खुशियां पाई हैं और मैं उन्हें विश्वसनीय मानती हूं. उदासी, निराशा, दुख, तनाव और चिंताएं मेरे अकेलेपन से न कभी जुड़ी हैं और न जुड़ पाएंगी. मेरी जिंदगी में जो भी घटेगा उस का सामना करने को मैं तैयार हूं.’’

मैं चाह कर भी कुछ नहीं बोल पाई. राजेश ठीक ही कहते थे कि सरोज से तलाक के बारे में चर्चा करना असंभव था. बिलकुल ऐसा ही अब मैं महसूस कर रही थी.

सरोज के लिए मेरे मन में इस समय सहानुभूति से कहीं ज्यादा गहरे भाव मौजूद थे. मेरा मन उसे गले लगा कर उस की पीठ थपथपाने का किया और ऐसा ही मैं ने किया भी.

उस का हाथ पकड़ कर मैं राजेश की तरफ चल पड़ी. मेरे मुंह से एक शब्द भी नहीं निकला, पर मन में बहुत कुछ चल रहा था.

सरोज से कुछ छीनना किसी भोले बच्चे को धोखा देने जैसा होगा. अपने अकेलेपन से जुड़ी ऊब, तनाव व उदासी को दूर करने के लिए मुझे सरोज से सीख लेनी चाहिए. उस की घरगृहस्थी का संतुलन नष्ट कर के अपनी घरगृहस्थी की नींव मैं नहीं डालूंगी. अपनी जिंदगी और राजेश से अपने प्रेम संबंध के बारे में मुझे नई दृष्टि से सोचना होगा, यही सबकुछ सोचते हुए मैं ने साफ महसूस किया कि मैं पूरी तरह से तनावमुक्त हो भविष्य के प्रति जोश, उत्साह और आशा प्रदान करने वाली नई तरह की ऊर्जा से भर गई हूं.

Movie Review : ‘बी हैप्पी’, निराशा जनक

Movie Review : रेटिंग – एक स्टार

हाल ही में अमिताभ बच्चन ने इस बात पर नाराजगी जाहिर की थी कि लोग उन के प्रतिभाशाली बेटे अभिषेक बच्चन को नेपोकिड के नाम पर हाशिए पर ढकेल रहे हैं. बौलीवुड से जुड़े ढेर सारे लोग मानते हैं कि अगर अमिताभ बच्चन पिता की बनिस्बत एक कलाकार के तौर पर अभिषेक बच्चन की प्रतिभा का आकलन करते तो शायद उन की प्रतिक्रिया कुछ अलग होती. शुद्ध हिंदी में बात करने के साथ ही भाषा को ले कर हमेशा सही बात कहने वाले अमिताभ बच्चन के बेटे अभिषेक बच्चन को हिंदी से कम प्यार नजर आता है. पिता पुत्री के रिश्ते पर अभिषेक बच्चन पिछले दिनों ‘आई वांट टू टौक’ में नजर आए थे और अब 14 मार्च से प्राइम वीडियो पर स्ट्रीम हो रही पिता पुत्री के रिश्ते पर केंद्रित फिल्म ‘बी हैप्पी’ में भी अभिषेक बच्चन नजर आ रहे हैं.

काश इन दोनों फिल्मों का नाम हिंदी में होता! नाम जब अंगरेजी में हैं, तो स्वाभाविक तौर पर इन दोनों फिल्मों के फिल्मकार पिता पुत्री के रिश्ते और दर्शकों की संवेदना को समझने में विफल रहे हैं. ‘आई वांट टू टौक’ को फिल्म आलोचकों ने पंसद किया था, पर यह फिल्म दर्शकों का मनोरंजन करने में पूरी तरह से विफल रही थी. हर इंसान जानता है कि कैमरा इंसान के अंदर के भावों को भी पकड़ने में सफल रहता है. अभिषेक बच्चन पिछले 25 वर्षों से बेहतरीन कलाकार के रूप में खुद को स्थापित करने के लिए प्रयासरत हैं, इस के बावजूद वह आज भी वहीं हैं, जहां 25 साल पहले थे, ऐसा क्यों? इस पर खुद अभिषेक बच्चन को विचार करना चाहिए.

अफसोस रेमो डिसूजा निर्देशित फिल्म ‘बी हैप्पी’ काफी निराश करती है. रेमो डिसूजा बेहतरीन कोरियोग्राफर थे, हैं और आगे भी रहेंगे, मगर बतौर फिल्म निर्देशक वह बुरी तरह से मात खा चुके हैं.

फिल्म की शुरुआत एक स्वप्न दृश्य से होती है. एक छोटी बच्ची धरा (इनायत वर्मा ) के डांसर बनने के सपने से. वह सिंगल पेरैंट्स बच्ची है, उस की मां रोहिणी (हरलीन सेठी ) की दुर्घटना में मौत हो चुकी है. धरा का पालनपोषण दो पुरुषों, उस के पिता शिव रस्तोगी (अभिषेक बच्चन) और उस के नाना नादर (नासर) द्वारा किया जा रहा है. खुद को प्रतिभाशाली बताने वाली धरा कोरियोग्राफर मैगी (नोरा फतेही) को अपना आदर्श मानती है. मैगी बच्चों को सब से बड़े डांसिंग रियालिटी शो इंडियाज डांसिंग सुपरस्टार में भाग लेने के लिए प्रशिक्षित करती है. स्कूल के एक डांस समारोह में धरा रतोगी भी डांस करती है, जहां मैगी मैम जज होती हैं. धरा का डांस देख कर मैगी, धारा को मुंबई ले जा कर अपनी अकादमी में ‘इंडियाज सुपर डांसर’ प्रतियोगिता के लिए प्रशिक्षित करने का प्रस्ताव शिव रस्तोगी के सामने रखती है. पर बैंक कर्मी शिव रस्तोगी इस प्रस्ताव को ठुकरा देता है. शिव को धरा के डांस करने पर एतराज नहीं है, पर वह चाहता है कि धरा पढ़ाई पर ज्यादा ध्यान दे.

लेकिन धरा ठहरी जिद्दी बेटी. वह बारबार अपनी मृत मां का नाम ले कर अपने पिता को मनाने और भावनात्मक रूप से ब्लैकमेल करने के लिए हर संभव कोशिश करती है. वह कहती है, ‘मम्मी होती तो वह मना न करती.’ दूसरी तरफ धरा के नाना अपनी नातिन के प्रति नाना की तरह अपनी प्यारी ड्यूटी निभाते हुए हर कदम पर धरा का साथ देते हैं. वह भी शिव को राजी करते हैं कि धरा को मुंबई ले जाना चाहिए और शिव का ट्रांसफर मुंबई ब्रांच में कर देते हैं.

मुंबई पहुंच कर धरा खुश है. वह डांस सीखने के साथ ही पढ़ाई पर भी ध्यान देती है. ‘इंडियाज सुपर डांसर’ के कई राउंड में वह अपना झंडा गाड़ देती है, पर अंतिम राउंड से पहले ‘फैमिली राउंड’ खत्म होते ही धरा स्टेज पर गिर जाती है. यहीं से कहानी में एक बड़ा मोड़ आता है. पर अहम सवाल यह है कि हमेशा आशा व उम्मीद की बात करने वाली धरा क्या हार मान जाएगी? धरा ‘इंडियाज सुपर डांसर’ बन सकेगी या नहीं? इस के लिए तो फिल्म देखनी पड़ेगी.

मशहूर कोरियोग्राफर फिल्म ‘फालतू’ से फिल्म निर्देशक बने रेमो डिसूजा ने ‘एबीसीडी’ (एनी बडी कैन डांस) और ‘एबीसीडी 2’ जैसी नृत्य आधारित फिल्में निर्देशित की थी. इन फिल्मों में जो कहानी उन्होने परोसी थी, उसी को वह आज तक निचोड़ते आ रहे हैं. बाद में फिल्म ‘स्ट्रीट डांसर 3 डी’ बना कर खुद ही हाशिये पर चले गए.

इस के बाद उन्होने ‘टाइम टू डांस’ का केवल निर्माण किया और अब पूरे पांच साल बाद अभिषेक बच्चन और इनायत वर्मा को ले कर एक असंवेदनशील और बीमारी का मजाक बना देने वाली फिल्म ‘बी हैप्पी’’ले कर आए हैं, जिस के वह केवल निर्देशक नहीं है,बल्कि रेमो डिसूजा ने तुशार हीरानंदानी, कनिष्क देव और चिराग गर्ग के साथ मिलकर लिखा भी है.

फिल्म की कहानी व पटकथा काफी कमजोर है. फिल्म में कुछ भी नयापन नहीं है. पिता व बेटी के बीच रिश्ता भी बहुत हल्कापन लिए हुए हैं, कहीं कोई गंभीरता नहीं है. यह फिल्म महज डांस पर आधारित रियालिटी शो के अलावा कुछ नहीं है.

रेमो डिसूजा ने इस फिल्म के कथानक को नृत्य और प्रतिस्पर्धा के ही इर्द गिर्द सीमित कर इसे टीवी का डांस रियालिटी शो बना डाला. फिल्म में इमोशन का घोर अभाव है. फिल्म की कहानी किरदारों की प्रेरणाओं, भावनाओं और रिश्तों को उजागर करने में इस कदर विफल रहती है, कि दर्शक खुद को फिल्म के साथ जोड़ ही नहीं पाता. क्लामेक्स देख कर दर्शक अपना माथा पीट लेता है कि उस ने इस घटिया फिल्म के लिए अपने दो घंटे से अधिक का समय क्यों बरबाद किया? किसी भी किरदार के जीवन की गहराई तक जाना फिल्मकार ने उचित नहीं समझा.

धरा को बारह तेरह साल की उम्र का बताया गया है, यानी कि वह अपरिपक्व किशोरावस्था में है. मगर वह बातें परिपक्व व बीस साल से बड़ी उम्र की लड़कियों की तरह करती है? धरा अपने पिता शिव के मोबाइल में डेटिंग ऐप डाउनलोड कर उन से जिंदगी में दूसरा प्यार ढूढ़ने के लिए कहती है. फिल्म के एक दृश्य में मैगी का नृत्य को ले कर संवाद है, ‘‘नृत्य पैसे या प्रतिस्पर्धा के बारे में नहीं है, बल्कि व्यक्तिगत अभिव्यक्ति के बारे में है.” इस पर यदि निर्देशक ने अमल किया होता, तो फिल्म के लिए अच्छा होता.

फिल्म की कहानी के ऊटी से मुंबई पहुंचते ही फिल्म बिखर जाती है. मुंबई पहुंचते ही लेखक व निर्देशक पिता और बेटी के बीच के रिश्ते की बजाय छोटे बच्चे के डांस रियालिटी शो में भाग लेने और ग्रैंड फिनाले में प्रदर्शन करने तक सीमित हो जाते हैं. सच यही है कि इंटरवल के बाद फिल्म पटरी से उतर कर केवल टीवी का डांस रियालिटी शो बन कर रह जाती है. धरा के जीवन को बदलने वाली मैडिकल इमरजेंसी के दृश्य भी ठीक से उभर नहीं पाते हैं. लेखक व निर्देशक ने तो इंसान के जीवन व मरण को भी मजाक बना दिया है.

इसे एडिटिंग टेबल पर कसा जाना चाहिए था. फिल्म में जौनी लीवर का हास्य का ट्रैक जबरन ठूसा हुआ और भयानक नजर आता है. अगर इस फिल्म से जौनी लीवर के सभी दृश्य हटा दिए जाएं, तो भी कहानी पर असर नहीं पड़ने वाला. इसी तरह फिल्म में गणपति विसर्जन का दृश्य व लंबा गाना है, जो कि फिल्म के प्रवाह व कहानी को बाधित करता है, इसे हटा दिया जाना चाहिए था.

धरा के किरदार में बेबी इनायत वर्मा ही इस फिल्म की असली जान है. इनायत की विचित्रता और आकर्षण से कहानी आप को तुरंत आकर्षित कर लेती है. इनायत अव्वल दर्जे की बाल कलाकार हैं. अपनी पत्नी के खोने का गम सह रहे धरा के पिता शिव रस्तोगी के किरदार में अभिषेक बच्चन ने फिर निराश किया है. उन के अंदर का गुरुर व उन की शारीरिक भाषा उन की मेहनत पर पानी फेर देता है. उन के चेहरे पर भाव नहीं आते. उन के अभिनय से यह बात उभर कर आती है जैसे कि उन्हें रिश्तों की कोई समझ ही न हो. जबकि वह निजी जीवन में स्वयं एक बेटी के पिता हैं. उन्हें कहानियों की भी समझ नहीं है. इस की वजह यह है कि शायद वह हिंदी की बजाय अंगरेजी में सोचते हैं. अभिषेक बच्चन को खुद को नए सिरे से तलाशने की जरुरत है. फिल्म में अभिषेक बच्चन और इनायत वर्मा की कैमेस्ट्री अच्छी बन पड़ी है. इस से पहले दोनों की जोड़ी फिल्म ‘लूडो’ में भी पसंद की जा चुकी है. धरा के नाना नादर के किरदार नासर के एक्टिंग टैलेंट पर तो उंगली उठाई ही नहीं जा सकती. वह हर फ्रेम में जान डाल देते हैं.

धरा की मां के छोटे किरदार में हरलीन सेठी याद रह जाती हैं. डांसर मैगी के किरदार में नोरा फतेही बाजी मार ले जाती है, इस की मूल वजह यह है कि नोरा फतेही मूलतः डांसर हैं और वह कई फिल्मों में आइटम डांस कर अपना जलवा दिखा चुकी हैं. लेकिन सच यह भी है कि नोरा फतेही अच्छा अभिनय नहीं कर पाती. उन्हें अभिनय की बेहतर ट्रेनिंग लेने ओर काम करने की जरुरत है. जौनी लीवर का व्यापक कौमेडी ट्रैक भयानक है.

Box Office रहा सुनसान, खाली हौल दर्शकों को तरस गए

Box Office : मार्च माह का पहला सप्ताह खाली गया. जी हां! सात तारीख से शुरु हुए मार्च माह के पहले सप्ताह में एक भी नई फिल्म रिलीज नहीं हुई और अगले एक माह तक किसी बड़ी फिल्म के रिलीज होने की उम्मीद भी नहीं है. क्योंकि अब स्कूल व कालेज में परीक्षाओं का दौर शुरू हो चुका है. ऐसे में फिल्मकारों का आत्मविश्वास पूरी तरह से हिल चुका है.

बहरहाल, मार्च माह के पहले सप्ताह में फिल्म ‘छावा’ के निर्माता ने कुछ स्क्रीन्स पर इस की रिलीज बरकरार रखी. इस सप्ताह इसे दर्शक तो नहीं मिले, मगर ‘छावा’ के निर्माता एक रिकार्ड बनाने के लिए कुछ ब्लाक बुकिंग आदि के सहारे इसे टिका रहे हैं. जिस के बाद पूरे एक माह के अंदर ‘छावा’ द्वारा बौक्स औफिस पर 546 करोड़ एकत्र करने के दावे किए गए. इस राशि में से निर्माता की जेब में करीबन 170 करोड़ जाएंगे. पर ब्लौक बुकिंग वगैरह की राशि इस में से घट जाएगी.

तो वहीं पूरे 15 दिन के अंदर सोहम शाह की फिल्म ‘क्रेजी’ ने 11 करोड़ 85 लाख रूपए एकत्र कर लिए. इस में से निर्माता की जेब में बामुश्किल 4 करोड़ रूपए ही जाएंगे. ‘क्रेजी’ के निर्माता पर भी ब्लौक बुकिंग यानी कि फर्जी कलेक्शन के आरोप लगे हैं. यह कितनी अजीब बात है कि 20 करोड़ रूपए की लागत में बनी फिल्म ‘क्रेजी’ की इतनी बुरी दुर्गति है.

तो वहीं सब से बुरा हाल फरहान अख्तर व रितेश सिद्धवानी निर्मित फिल्म ‘सुपर ब्वौयज औफ मालेगांव’ का हुआ. पंद्रह दिनों के अंदर यह फिल्म बौक्स औफिस पर 3 करोड़ 28 लाख रूपए ही एकत्र कर सकी.

‘क्रेजी’ और ‘सुपर ब्वौयज औफ मालेगांव’ के निर्माताओं ने वैसे भी फिल्म के निर्माता मे धन खर्च जरुर किया, मगर फिल्म को दर्शकों तक पहुंचाने में कंजूसी बरती. इन का अपना नुकसान हुआ, पर सब से बड़ा नुकसान तो सिनेमा का हुआ, फिल्म इंडस्ट्री का हुआ. छोटेछोटे कर्मियों का हुआ. सभी जानते हैं कि फिल्म के असफल होने पर फिल्म से जुड़े छोटे कर्मियों की बकाया राशि डूब जाती है. पर इन दोनों फिल्मों से ‘पैड रिव्यू’ और ‘पैड आर्टिकल’ छापने वाले पब्लिकेशन फायदे में रहे.

Online Hindi Story : मेरा पिया घर आया – रवि के जीवन में कैसे आई नीरजा

Online Hindi Story : रवि अपनी भाभी कविता और उन की सहेली निशा की सारी दलीलों को नजरअंदाज करते हुए शादी न करने की जिद पर कायम रहा, ‘‘मानवी से जुड़ी यादों के कारण अब किसी लड़की की तरफ देखने का मेरा मन नहीं करता,’’ शादी न करने का मुख्य कारण दोहराते हुए रवि का गला भर आया था.

‘‘पर मानवी अब जिंदा नहीं है,’’ निशा ने उत्तेजित लहजे में उसे याद दिलाया, ‘‘जिंदगी में हुए किसी एक हादसे के कारण इंसान को अपनी जीवनधारा को रोक नहीं देना चाहिए.’’

‘‘मैं मानवी की यादों के सहारे सारा जीवन गुजारने का फैसला कर चुका हूं, निशा भाभी.’’

कविता ने एकाएक नियंत्रण खो दिया और गुस्से से भरी आवाज में अपनी सहेली से कहा, ‘‘निशा, इन जनाब के साथ मगज मारने से कोई फायदा नहीं. अच्छा ही है कि ये शादी करने से इनकार कर रहे हैं. इन जैसे जिद्दी और नासमझ इंसान के साथ शादी कर के कोई लड़की खुश रह भी नहीं सकती.’’

अब तक खामोश बैठी निशा की छोटी बहन नीरजा एकाएक भावुक लहजे में बोल पड़ी, ‘‘ऐसा मत कहो कविता दीदी. इन जैसे संवेदनशील इंसान की जीवनसंगिनी बन कर कोई भी लड़की खुद पर गर्व करेगी.’’

निशा और कविता को उस का शरमातेलजाते अंदाज में अपनी बात कहने का यह ढंग हैरान कर गया. रवि भी उस के चेहरे को उलझन भरे अंदाज में पढ़ने की कोशिश कर रहा था.

‘‘नीरजा, तुम तो मानवी से जुड़ी सारी कहानी अच्छी तरह जानती हो. अगर तुम्हारे लिए इस का रिश्ता आए, तो क्या तुम हां कह दोगी?’’ कुछ देर की खामोशी के बाद कविता ने मजाकिया लहजे में नीरजा से यह सवाल पूछ ही लिया.

‘‘मैं तो फौरन हां कह दूंगी,’’ नीरजा ने भावुक लहजे में ऐसा जवाब दिया तो तीनों को यह बात एकदम समझ आ गई कि वह रवि को मन ही मन प्यार करने लगी है.

कविता ने इस बार संजीदा हो कर अगला सवाल पूछा, ‘‘यह तो बता कि तू ने ऐसा क्या खास गुण देख लिया रवि में जो इसे अपना दिल दे बैठी?’’

नीरजा भावुक लहजे में बोली, ‘‘कुछ दिन पहले जब दीदी के बेटे मोहित की तबीयत खराब हुई, तो इन से उस की पीड़ा नहीं देखी गई थी. सब के रोकने के बावजूद ये ही उसे फौरन अस्पताल ले गए थे.’’

‘‘भाभी, आप या दीदी वक्तबेवक्त इन्हें कुछ भी काम बताओ, ये उसे करने में बिलकुल नानुकर नहीं करते. गुस्सा तो जैसे इन के स्वभाव में है ही नहीं. सब से हंस कर मिलते हैं. मैं ने इन्हें गरीब लोगों से भी हमेशा प्यार और इज्जत के साथ पेश आते देखा है. इन की तो जितनी तारीफ की जाए कम है.’’

रवि ने माथे पर बल डाल कर कहा, ‘‘ऐसी बातें सोचने का कोई फायदा नहीं, क्योंकि मुझे तो कभी शादी ही नहीं करनी है.’’

‘‘इस मामले में मेरा अपने दिल पर कोई नियंत्रण नहीं रहा है,’’ नीरजा ने शरमाते हुए जवाब दिया.

‘‘तुम पागल हो क्या? क्यों इन सब की हंसी का पात्र न रही हो?’’

‘‘आप जैसा संवेदनशील और नेकदिल जीवनसाथी मुझे ढूंढ़ने पर नहीं मिलेगा,’’ वह अपनी धुन में बोली, मानो उस ने रवि की बात सुनी ही न हो.

रवि को बिलकुल नहीं सूझा कि वह नीरजा से आगे क्या कहे. उसे यों बेबस देख निशा और कविता खुल कर मुसकराए जा रही थीं.

‘‘निशा, मुझे तो तेरी छोटी बहन को अपनी देवरानी बनाने में कोई एतराज नहीं…’’

‘‘भाभी, प्लीज. हम अभी आए,’’ ऐसा कह कर रवि ने नीरजा का हाथ पकड़ा और उसे उन के बीच से उठा कर बाहर लौन में ले आया.

‘‘तुम सब के सामने ऐसी पागलपन वाली बातें कर के अपना और मेरा मजाक मत उड़वाओ,’’ रवि नाराज नजर आ रहा था.

‘‘आप इस दुनिया को छोड़ कर जा चुकी मानवी के अलावा किसी और लड़की से प्रेम नहीं करते हो न?’’ नीरजा एकदम संजीदा हो गई.

‘नहीं.’’

‘‘तो मुझ से शादी कर लो.’’

‘‘तुम मेरी मजबूरी समझो, प्लीज. मैं मानवी को प्यार करता था, करता हूं और करता रहूंगा.’’

‘‘मुझे बिलकुल आप के जैसा ही जीवनसाथी चाहिए. अपनी मृत प्रेमिका के प्रति आप अगर इतने वफादार हो तो यकीनन मेरे प्यार के प्रति भी पूरी तरह से ईमानदार और वफादार रहोगे.’’

‘‘मैं मानवी से कभी बेवफाई नहीं करूंगा,’’ नाराजगी भरे अंदाज में उठ कर रवि अपने घर की तरफ चल पड़ा.

‘‘और मेरा दिल कह रहा है कि हमारी शादी जरूर हो कर रहेगी,’’ नीरजा की इस घोषणा का कोई जवाब देने के लिए रवि रुका नहीं था.

रवि का दिल जीतने की कोशिशें नीरजा ने उसी दिन से बड़े उत्साह के साथ शुरू कर दीं. पड़ोस में घर होने के कारण वह सुबहशाम खूब सजधज कर रवि से मिलने पहुंच जाती.

‘‘मैं कैसी लग रही हूं?’’ रवि के सामने आते ही वह उस से यह सवाल तब तक पूछती रहती जब तक वह उस की तारीफ नहीं कर देता.

अपने फोन के कैमरे से वह रवि के हर किसी के साथ खूब फोटो खींचती. उस का हर काम भागभाग कर खुद करती. उस के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताने के लिए वह अकसर रात का खाना उसी के घर खाने लगी थी.

वह अकसर, ‘अपने पिया की मैं तो बनी रे दुलहनिया…’ और ‘मेरा पिया घर आया…’ जैसे गाने मस्त अंदाज में गाती हुई दोनों घरों में घूमती नजर आती, तो रवि के अलावा सब खूब दिल खोल कर हंसते.

परेशान रवि हर किसी से फरियाद करता, ‘‘कोई इस पगली को समझाओ, प्लीज. यह अपनी भावनाओं पर काबू रखे, नहीं तो बाद में इसे दुख होगा.’’

‘‘उसे समझाना हमारे बस की बात नहीं. वह तो तुम्हारे प्यार में पागल हो चुकी है, रवि,’’ हर किसी से कुछ ऐसा ही जवाब पा कर रवि की खीज निरंतर बढ़ती जाती थी.

आने वाले कुछ दिनों में नीरजा ने अपने उत्साहपूर्ण व्यवहार से रवि के पिता कैलाश, मां सावित्री और बड़े भाई राजीव के दिलों को भी जीत लिया. उन सब के मन में यह उम्मीद बंध  गई कि कभी शादी न करने के रवि के फैसले को शायद नीरजा बदलने में कामयाब हो जाएगी.

नीरजा की मां कांता ने विकास नाम के एक बिजनैसमैन के साथ नीरजा का रिश्ता पक्का करने का मन बना रखा था. जब नीरजा के रवि को दिल देने की खबर उन के कानों तक पहुंची, तो वे अपने पति रमेश के साथ अगले ही दिन मेरठ से दिल्ली आ गईं.

नीरजा को सामने बैठा कर उन्होंने सख्त लहजे में उसे समझाना शुरू किया, ‘‘शादी के बाद किसी भी लड़की की खुशियां सुनिश्चित करने में पैसा बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है. तुझे तो इस बात से खुश होना चाहिए कि इतने अमीर घर की बहू बनने का मौका मिल रहा है.’’

‘‘पर मैं रवि को पसंद करती हूं… उसे दिल की गहराइयों से प्यार करती हूं,’’ नीरजा ने रोंआसे स्वर में उन्हें अपने दिल की बात बता दी.

‘‘पैसा सबकुछ नहीं होता, कांता. हमें इस की पसंद नापसंद का भी खयाल रखना चाहिए,’’ रमेश ने अपनी बेटी का पक्ष लिया.

‘‘तुम तो अपना मुंह बंद ही रखो जी,’’ कांता एकदम गुस्से से फट पड़ीं, ‘‘तुम्हारे साथ पिछले 30 साल से मैं अपने मन को मार कर कैसे जी रही हूं, यह मैं ही जानती हूं. कभी न मनचाहा पहना, न कहीं घूमीफिरी. बजट बना कर जीते हुए मेरी सारी जिंदगी बेकार हो गई.’’

रमेशजी ने आगे कुछ न बोलने में ही अपनी भलाई समझी. कांता ने उन से ध्यान हटाया और अपनी बेटी को गुस्से से घूरते हुए कहने लगीं, ‘‘अपने इस प्यार और पसंद के पागलपन को गोली मार और मुझे बता कि विकास के मुकाबले क्या है इस रवि के पास? 3 कमरों का फ्लैट, जिस में वह भैयाभाभी के साथ रहता है और खटारा सी पुरानी कार. अरे, रवि जितना सालभर में कमाता है, उतनी तो विकास की फैक्टरी एक महीने में उसे कमा कर देती है. तू जिंदगीभर ऐश करेगी उस के साथ.’’

नीरजा चिढ़ कर बोली, ‘‘मां, मेरी नजरों में विकास एक अहंकारी और रूखा इंसान है, जो अपनी तारीफ खुद कर के सब को बहुत बोर करता है.’’

‘‘उस काबिल लड़के में जबरदस्ती बेकार के नुक्स मत निकाल. देख, उन्हें सुंदर लड़की चाहिए और ऊपर से तेरी मौसी यह रिश्ता कराने के लिए खूब भागदौड़ कर रही है. तुझ में थोड़ी सी भी अक्ल है, तो फौरन विकास से शादी करने को हां कह दे.’’

‘‘शादी के मामले में किसी ने मेरे साथ जबरदस्ती की तो मैं आत्महत्या कर लूंगी,’’ ऐसी चेतावनी दे कर नीरजा उन के सामने से हट गई.

कुछ देर तक अपनी बेटी को कोसने के बाद कांता ने नीरजा पर दबाव बढ़ाने के लिए विकास को फौरन अगले दिन सुबह मेरठ से दिल्ली आने का हुक्म फोन कर के सुना दिया.

सफल बिजनैसमैन विकास बड़बोला इंसान था, जिसे अपनी अमीरी पर बहुत घमंड था. उसे पूरा विश्वास था कि नीरजा उस के साथ शादी करने से कभी इनकार नहीं करेगी.

‘‘नीरजा को मैं सारी दुनिया घुमाऊंगा… मेरी मां शादी में इतने जेवर चढ़ाएंगी कि देखने वालों की आंखें फटी की फटी रह जाएंगी… हनीमून मनाने के लिए मैं ने स्विट्जरलैंड जाने का मन बना रखा है…’’ हर वक्त ऐसी डींगें मार कर उस ने कांता के अलावा सब को परेशान कर रखा था.

रवि ने अगले ही दिन नीरजा से अकेले में कहा, ‘‘इस विकास के साथ शादी करने को तुम हां मत करना. वह बोर इंसान तुम्हें अपने ढंग से कभी जीने नहीं देगा.’’

‘‘मैं तो आप की हमसफर बनना चाहती हूं, पर आप हो कि हां…’’

‘‘वह बात मत शुरू करो, प्लीज. मैं तुम से शादी नहीं कर सकता,’’ रवि ने उसे फौरन टोक दिया.

‘‘आप मेरी आंखों में देखो और बताओ कि वहां आप को अपने लिए गहरा प्यार दिखाई दे रहा है या नहीं,’’ नीरजा एकदम से रवि के बहुत करीब आ गई थी.

‘‘वह सब तो ठीक है, पर…’’

‘‘मानवी के साथ आप ने सच्चा प्यार किया, पर अब वह इस दुनिया में नहीं है. उस की यादों से जुड़े रह कर मेरे सच्चे प्रेम को अपने दिल में जगह न देने का फैसला करना कहां की समझदारी है,’’ नीरजा का गला एकदम से भर आया.

‘‘मैं मजबूर हूं.’’

‘‘तो मैं भी मजबूर हूं. अगर आप ने हां नहीं की, तो मैं परसों शाम को होने वाली अपनी जन्मदिन पार्टी में विकास के साथ शादी करने को हां जरूर कह दूंगी,’’ नीरजा ने अपना फैसला सुनाने के बाद भावुक अंदाज में उस का हाथ चूमा और अपने कमरे की तरफ चली गई.

उस शाम को विकास के वापस मेरठ लौटने से पहले नीरजा ने सब के सामने उस से कहा, ‘‘मैं शादी को ले कर अपनी पक्की हां या ना आप को 2 दिन के अंदर जरूर बता दूंगी.’’

नीरजा की इस घोषणा के बाद सभी रवि की तरफ आशा भरी नजरों से देखने लगे. उस के गुस्से से डर कर कोई कुछ कह तो नहीं रहा था, पर उन सब की खामोशी भी रवि के ऊपर नीरजा से शादी के लिए हां कहने को जबरदस्त दबाव बना रही थी.

नीरजा की आशा के विपरीत रवि ने शादी को ले कर कोई बात नहीं की. वह तो अपने घर से सुबह से देर रात तक के लिए 2 दिन ऐसा गायब रहा कि उन दोनों की अगली मुलाकात उस की जन्मदिन पार्टी में ही हुई.

पार्टी में शामिल होने के लिए जैसे ही रवि ने ड्राइंगरूम में कदम रखा, तो उस से बेहद खफा नजर आ रही नीरजा ने ऊंची आवाज में सब को संबोधित किया, ‘‘अपने मातापिता की खुशी की खातिर मैं ने विकास से शादी करने का फैसला…’’

रवि ने ऊंची आवाज में टोक कर उसे अपना वाक्य पूरा नहीं करने दिया, ‘‘नीरजा, तुम उस घमंडी इंसान के साथ कभी खुश नहीं रह सकोगी.’’

‘‘तो आप क्यों परेशान हो रहे हैं,’’ गुस्सा करना भूल कर नीरजा एकदम से रोंआसी हो उठी.

कविता ने भी चुभते लहजे में अपने देवर को डांटा, ‘‘यह बिलकुल ठीक कह रही है. तुम्हारे प्रेम में पागल इस प्यारी सी… इस भोली सी…इस सुंदर सी लड़की के सुखदुख की तुम्हें कोई चिंता करने की जरूरत नहीं है. तुम तो जिंदगीभर अपनी मृत महबूबा को नाराज न करने की फिक्र ही करते रहना.’’

‘‘अब बस भी करो, भाभी. आप सब लोगों के ताने सुनसुन कर मैं इतना तंग आ गया हूं कि मैं ने…मुझे नीरजा से शादी करना मंजूर है,’’ रवि की इस घोषणा को सुन नीरजा के अलावा वहां उपस्थित हर इंसान तालियां बजा उठा.

सब की नजरों का केंद्र बन गई नीरजा ने उदास लहजे में अपने मन की बात कही, ‘‘शादी के मामले में मुझे इन की दया या एहसान नहीं चाहिए. ऐसी शादी करने का क्या फायदा कि इन के सामने मैं रहूं, पर ये मानवी के विचारों में खोए रहें?’’

‘‘पहले तुम ही शादी करने को मेरे पीछे हाथ धो कर पड़ी हुई थी, तो अब क्यों इनकार कर रही हो?’’ रवि ने उस के पास आ कर मुसकराते हुए पूछा.

‘‘मुझे लगता है कि मेरे साथ शादी करने का फैसला आप ने खुश हो कर नहीं किया है.’’

‘‘मेरे मन में क्या है, अब यह भी तुम बताओगी?’’

‘‘मुझे ही क्या, यह तो सब को पता है कि आप के दिलोदिमाग पर मानवी का कब्जा है.’’

‘‘तो तुम्हारे साथसाथ और सब भी कान खोल कर सुन लो कि मानवी ने ही मुझे तुम से शादी करने की इजाजत दी है,’’ रवि ने अपना पर्स खोल कर सब को दिखाया.

पर्स में अब तक मानवी का फोटो सभी ने लगा देखा था, पर इस वक्त वहां नीरजा की तसवीर लगी नजर आई.

एकाएक बेहद भावुक हो कर रवि नीरजा से बोला, ‘‘मानवी ने ही कल रात मुझे देर तक समझाया कि अब से तुम मेरे सुखदुख का खयाल रखोगी. कल रात के बाद से मैं आंखें बंद करता हूं, तो उस की जगह अब मुझे तुम नजर आती हो. मुझ से शादी न कर के क्या तुम मानवी को कष्ट पहुंचाना चाहोगी?’’

‘‘मैं भला ऐसा गलत काम क्यों करूंगी? हमारी शादी जरूर होगी,’’ नीरजा किसी छोटी बच्ची की तरह खुशी से तालियां बजाती उछली और फिर शरमाते हुए रवि की छाती से जा लगी.

Hindi Story : हम बेवफा न थे – आखिर क्या थी उसकी सच्चाई

Hindi Story : ‘‘अरे, आप लोग यहां क्या कर रहे हैं? सब लोग वहां आप दोनों के इंतजार में खड़े हैं,’’ हमशां ने अपने भैया और होने वाली भाभी को एक कोने में खड़े देख कर पूछा.

‘‘बस कुछ नहीं, ऐसे ही…’’ हमशां की होने वाली भाभी बोलीं.

‘‘पर भैया, आप तो ऐसे छिपने वाले नहीं थे…’’ हमशां ने हंसते हुए पूछा.

‘काश हमशां, तुम जान पातीं कि मैं आज कितना उदास हूं, मगर मैं चाह कर भी तुम्हें नहीं बता सकता,’ इतना सोच कर हमशां का भाई अख्तर लोगों के स्वागत के लिए दरवाजे पर आ कर खड़ा हो गया.

तभी अख्तर की नजर सामने से आती निदा पर पड़ी जो पहले कभी उसी की मंगेतर थी. वह उसे लाख भुलाने के बावजूद भी भूल नहीं पाया था.

‘‘हैलो अंकल, कैसे हैं आप?’’ निदा ने अख्तर के अब्बू से पूछा.

‘‘बेटी, मैं बिलकुल ठीक हूं,’’ अख्तर के अब्बू ने प्यार से जवाब दिया.

‘‘हैलो अख्तर, मंगनी मुबारक हो. और कितनी बार मंगनी करने की कसम खा रखी है?’’ निदा ने सवाल दागा.

‘‘यह तुम क्या कह रही हो? मैं तो कुछ नहीं जानता कि हमारी मंगनी क्यों टूटी. पता नहीं, तुम्हारे घर वालों को मुझ में क्या बुराई नजर आई,’’ अख्तर ने जवाब दिया.

‘‘बस मिस्टर अख्तर, आप जैसे लोग ही दुनिया को धोखा देते फिरते हैं और हमारे जैसे लोग धोखा खाते रहते हैं,’’ इतना कह कर निदा गुस्से में वहां से चली गई.

सामने स्टेज पर मंगनी की तैयारी पूरे जोरशोर से हो रही थी. सब लोग एकदूसरे से बातें करते नजर आ रहे थे. तभी निदा ने हमशां को देखा, जो उसी की तरफ दौड़ी चली आ रही थी.

‘‘निदा, आप आ गईं. मैं तो सोच रही थी कि आप भी उन लड़कियों जैसी होंगी, जो मंगनी टूटने के बाद रिश्ता तोड़ लेती हैं,’’ हमशां बोली.

‘‘हमशां, मैं उन में से नहीं हूं. यह सब तो हालात की वजह से हुआ?है…’’ निदा उदास हो कर बोली, ‘‘क्या मैं जान सकती हूं कि वह लड़की कौन है जो तुम लोगों को पसंद आई है?’’

‘‘हां, क्यों नहीं. वह देखो, सामने स्टेज की तरफ सुनहरे रंग का लहंगा पहने हुए खड़ी है,’’ हमशां ने अपनी होने वाली भाभी की ओर इशारा करते हुए बताया.

‘‘अच्छा, तो यही वह लड़की है जो तुम लोगों की अगली शिकार है,’’ निदा ने कोसने वाले अंदाज में कहा.

‘‘आप ऐसा क्यों कह रही हैं. इस में भैया की कोई गलती नहीं है. वह तो आज भी नहीं जानते कि हम लोगों की तरफ से मंगनी तोड़ी गई?है,’’ हमशां ने धीमी आवाज में कहा.

‘‘मगर, तुम तो बता सकती थीं.

तुम ने क्यों नहीं बताया? आखिर तुम भी तो इसी घर की हो,’’ इतना कह कर निदा वहां से दूसरी तरफ खड़े लोगों की तरफ बढ़ने लगी.

निदा की बातें हमशां को बुरी तरह कचोट गईं.

‘‘प्लीज निदा, आप हम लोगों को गलत न समझें. बस, मम्मी चाहती थीं कि भैया की शादी उन की सहेली की बेटी से ही हो,’’ निदा को रोकते हुए हमशां ने सफाई पेश की.

‘‘और तुम लोग मान गए. एक लड़की की जिंदगी बरबाद कर के अपनी कामयाबी का जश्न मना रहे हो,’’ निदा गुस्से से बोली.

‘‘नहीं, ऐसी बात नहीं?है. मैं अच्छी तरह से जानती हूं कि मम्मी की कसम के आगे हम सब मजबूर थे वरना मंगनी कभी भी न टूटने देते,’’ कह कर हमशां ने उस का हाथ पकड़ लिया.

‘‘देखो हमशां, अब पुरानी बातों को भूल जाओ. पर अफसोस तो उम्रभर रहेगा कि इनसानों की पहचान करना आजकल के लोग भूल चुके हैं,’’ इतना कह कर निदा ने धीरे से अपना हाथ छुड़ाया और आगे बढ़ गई.

‘‘निदा, इन से मिलो. ये मेरी होने वाली बहू के मम्मीपापा हैं. यह इन की छोटी बेटी है, जो मैडिकल की पढ़ाई कर रही है,’’ अख्तर की अम्मी ने निदा को अपने नए रिश्तेदारों से मिलवाया.

निदा सोचने लगी कि लोग तो रिश्ता टूटने पर नफरत करते हैं, लेकिन मैं उन में से नहीं हूं. अमीरों के लिए दौलत ही सबकुछ है. मगर मैं दौलत की इज्जत नहीं करती, बल्कि इनसानों की इज्जत करना मुझे अपने घर वालों ने सिखाया है.

‘‘निदा, आप भैया को माफ कर दें, प्लीज,’’ हमशां उस के पास आ कर फिर मिन्नत भरे लहजे में बोली.

‘‘हमशां, कैसी बातें करती हो? अब जब मुझे पता चल गया है कि इस में तुम्हारे भैया की कोई गलती नहीं है तो माफी मांगने का सवाल ही नहीं उठता,’’ निदा ने हंस कर उस के गाल पर एक हलकी सी चपत लगाई.

कुछ देर ठहर कर निदा फिर बोली, ‘‘हमशां, तुम्हारी मम्मी ने मुझ से रिश्ता तोड़ कर बहुत बड़ी गलती की. काश, मैं भी अमीर घर से होती तो यह रिश्ता चंद सिक्कों के लिए न टूटता.’’

‘‘मुझे मालूम है कि आप नाराज हैं. मम्मी ने आप से मंगनी तो तोड़ दी, पर उन्हें भी हमेशा अफसोस रहेगा कि उन्होंने दौलत के लिए अपने बेटे की खुशियों का खून कर दिया,’’ हमशां ने संजीदगी से कहा.

‘‘बेटा, आप लोग यहां क्यों खड़े हैं? चलो, सब लोग इंतजार कर रहे हैं. निदा, तुम भी चलो,’’ अख्तर के अब्बू खुशी से चहकते हुए बोले.

‘‘मुझे यहां इतना प्यार मिलता है, फिर भी दिल में एक टीस सी उठती?है कि इन्होंने मुझे ठुकराया है. पर दिल में नफरत से कहीं ज्यादा मुहब्बत का असर है, जो चाह कर भी नहीं मिटा सकती,’ निदा सोच रही थी.

‘‘निदा, आप को बुरा नहीं लग रहा कि भैया किसी और से शादी कर रहे हैं?’’ हमशां ने मासूमियत से पूछा.

‘‘नहीं हमशां, मुझे क्यों बुरा लगने लगा. अगर आदमी का दिल साफ और पाक हो, तो वह एक अच्छा दोस्त भी तो बन सकता है,’’ निदा उमड़ते आंसुओं को रोकना चाहती थी, मगर कोशिश करने पर भी वह ऐसा कर नहीं सकी और आखिरकार उस की आंखें भर आईं.

‘‘भैया, आप निदा से वादा करें कि आप दोनों जिंदगी के किसी भी मोड़ पर दोस्ती का दामन नहीं छोड़ेंगे,’’ हमशां ने इतना कह कर निदा का हाथ अपने भैया के हाथ में थमा दिया और दोनों के अच्छे दोस्त बने रहने की दुआ करने लगी.

‘‘माफ कीजिएगा, अब हम एकदूसरे के दोस्त बन गए हैं और दोस्ती में कोई परदा नहीं, इसलिए आप मुझे बेवफा न समझें तो बेहतर होगा,’’ अख्तर ने कहा.

‘‘अच्छा, आप लोग मेरे बिना दोस्ती कैसे कर सकते हैं. मैं तीसरी दोस्त हूं,’’ अख्तर की मंगेतर निदा से बोली.

निदा उस लड़की को देखती रह गई और सोचने लगी कि कितनी अच्छी लड़की है. वैसे भी इस सब में इस की कोई गलती भी नहीं है.

‘‘आंटी, मैं हमशां को अपने भाई के लिए मांग रही हूं. प्लीज, इनकार न कीजिएगा,’’ निदा ने कहा.

‘‘तुम मुझ को शर्मिंदा तो नहीं कर रही हो?’’ अख्तर की अम्मी ने पलट कर पूछा.

‘‘नहीं आंटी, मैं एक दोस्त होने के नाते अपने दोस्त की बहन को अपने भाई के लिए मांग रही हूं,’’ इतना कह कर निदा ने हमशां को गले से लगा लिया.

‘‘निदा, आप हम से बदला लेना चाहती?हैं. आप भी मम्मी की तरह रिश्ता जोड़ कर फिर तोड़ लीजिएगा ताकि मैं भी दुनिया वालों की नजर में बदनाम हो जाऊं,’’ हमशां रोते हुए बोली.

‘‘अरी पगली, मैं तो तेरे भैया की दोस्त हूं, दुख और सुख में साथ देना दोस्तों का फर्ज होता है, न कि उन से बदला लेना,’’ निदा ने कहा.

‘‘नहीं, मुझे यह रिश्ता मंजूर नहीं है,’’ अख्तर की अम्मी ने जिद्दी लहजे में कहा.

तभी अख्तर के अब्बू आ गए.

‘‘क्या बात है? किस का रिश्ता नहीं होने देंगी आप?’’ उन्होंने पूछा.

‘‘अंकल, मैं हमशां को अपने भाई के लिए मांग रही हूं.’’

‘‘तो देर किस बात की है. ले जाओ. तुम्हारी अमानत है, तुम्हें सौंप देता हूं.’’

‘‘निदा, आप अब भी सोच लें, मुझे बरबाद होने से आप ही बचा सकती हैं,’’ हमशां ने रोते हुए कहा.

‘‘कैसी बहकीबहकी बातें कर रही हो. मैं तो तुम्हें दिल से कबूल कर रही हूं, जबान से नहीं, जो बदल जाऊंगी,’’ निदा खुशी से चहकी.

‘‘हमशां, निदा ठीक कह रही हैं. तुम खुशीखुशी मान जाओ. यह कोई जरूरी नहीं कि हम लोगों ने उस के साथ गलत बरताव किया तो वह भी ऐसी ही गलती दोहराए,’’ अख्तर हमशां को समझाते हुए कहने लगा.

‘‘अगर वह भी हमारे जैसी बन जाएगी, तब हम में और उस में क्या फर्क रहेगा,’’ इतना कह कर अख्तर ने हमशां का हाथ निदा के भाई के हाथों में दे दिया.

‘‘निदा, हम यह नहीं जानते कि कौन बेवफा था, लेकिन इतना जरूर जानते हैं कि हम बेवफा न थे,’’ अख्तर नजर झुकाए हुए बोला.

‘‘भैया, आप बेवफा न थे तो फिर कौन बेवफा था?’’ हमशां शिकायती लहजे में बोली. उस की नजर जब अपने भैया पर पड़ी तो देख कर दंग रह गई. उस का भाई रो रहा था.

‘‘भैया, मुझे माफ कर दीजिए. मैं ने आप को गलत समझा,’’ हमशां अख्तर के गले लग कर रोने लगी.

सच है कि इनसान को हालात के आगे झुकना पड़ता है. अपनों के लिए बेवफा भी बनना पड़ता है.

Hindi kahani : वह लड़का – जाने अनजाने जब सपने देख बैठा जतिन

Hindi kahani : रिवोली थिएटर, थिएटर के सामने एक सुंदर पार्क, पार्क में हर तरफ बिखरी हुई फूलों की छटा, सीमेंटकंकरीट के जंगलों सी फैली ऊंचीऊंची इमारतों के बीच, मुंबई की उमस से थोड़ी सी राहत पाने की एक जगह. शाम के समय घूमते हुए कुछ बुजुर्ग, शोर मचा कर खेलते हुए बच्चे. कुछ युवकयुवतियां हाथ में हाथ लिए, पार्क की बैंचों पर, जगहजगह सटे बैठे, अपने प्यार के सुखद लमहों को जीते हुए और कुछ लफंगे युवक इधरउधर ताकझांक करते हुए.

कामना पार्क के एक बैंच पर अकेली बैठी थी. पार्क के ये नजारे भी उस के अकेलेपन को दूर नहीं कर पा रहे थे. उस के ठीक सामने वाली बैंच पर एक लड़का भी अकेला बैठा हुआ था. कामना पिछले 10 मिनट से देख रही थी कि वह उसे नजरें चुराचुरा कर देख रहा है.

कामना उठी और उस लड़के के पास आ कर खड़ी हुई. जतिन समझ नहीं पाया कि वह लड़की क्यों खड़ी है. उस ने अपने आसपास और आगेपीछे देखा. उस के अलावा वहां कोई और जानपहचान का नहीं था. जब यह निश्चित हो गया कि वह लड़की उसी से मिलने आई है तो वह सकपका गया. शरीर के रोंगटे खड़े हो गए.

23-24 साल की जिंदगी में उस के साथ ऐसा पहले कभी नहीं हुआ. पैदल चलते, बसों में, मुंबई की लोकल ट्रेनों में सफर करते समय, उस ने सैकड़ों लड़कियों के रूप को आंखों से भरते हुए मन में उतारा था. पर कभी कोई लड़की उसे इस प्रकार घूरते हुए देख कर खुद पास नहीं चली आई. उसे पहली नजर में वह लड़की शरीफ घराने की लगी थी. फिर शंका हुई कि वह कहीं चालचलन में खराब तो नहीं है. पर मन नहीं माना. वह जरूर शरीफ घराने की ही है, उस ने अपने मन को समझाया. अब लगा कि यदि उस की सोच सही है तो कहीं वह उसे थप्पड़ मारने का इरादा तो नहीं कर रही है? पार्क में उपस्थित लोगों के सामने शर्मिंदा तो नहीं करना चाहती? एकबारगी जी चाहा कि पार्क छोड़ कर चला जाए पर अंत में वह हिम्मत जुटा कर उस के सामने जा कर खड़ा हो गया.

‘‘बैठो,‘‘ बैंच पर खाली जगह पर बैठते हुए कामना बोली.

जतिन की सांसें जो कुछ देर पहले रुकने लगी थीं, फिर चल पड़ीं. जो कुछ उस ने लड़की के बारे में सोचा था, गलत सिद्ध हो गया. वह शरीफ घराने से ही थी. थप्पड़ मारने और शर्मिंदा करने का उस का कोई इरादा नहीं दिखाई दिया.

‘‘आप बहुत सुंदर हैं,’’ बैठते हुए जतिन ने कहा, ‘‘लाख कोशिशों के बावजूद भी मैं आप के चेहरे से अपनी नजरें नहीं हटा पा रहा था.’’

‘‘सच,’’ कामना ने अपनी नीलीनीली आंखें उस के चेहरे पर गड़ा दीं.

‘‘आप को वहां अकेले नहीं बैठना चाहिए था. ये जो लड़के आप के आसपास मंडरा रहे हैं, अच्छे नहीं हैं,’’ वह बोला.

‘‘मैं जानती हूं पर ये मुझे नहीं छेड़ते. मैं यहां रोज जो आती हूं. वैसे तुम्हारा नाम…’’

‘‘जतिन, और आप का?’’

‘‘कामना,’’ उसे गौर से देखते हुए कामना बोली, ‘‘जतिन, जानते हो मैं तुम्हारे पास क्यों आई? तुम में एक गजब का आकर्षण है. तुम्हें देख कर मुझे लगा, जैसे मेरी बरसों की तलाश पूरी होने जा रही है.’’

‘‘फ्लर्टिंग? ’’ जतिन को अपनी तारीफ सुन कर विश्वास नहीं हुआ.

‘‘बिलकुल नहीं,’’ कामना ने कहा.

‘‘सच तो यह है कि आप जैसी सुंदर लड़की मैं ने इस पार्क में पहले कभी नहीं देखी,’’ जतिन बोला.

‘‘अब तुम फ्लर्ट कर रहे हो?’’

‘‘बिलकुल नहीं.’’

‘‘गुड, मुझे साफ बात करने वाले लड़के ही पसंद हैं. एक बार मुझे फिर से देख कर बताओ कि मैं कैसी लग रही हूं? कोई लड़का यदि लड़की की तारीफ करे तो उसे अच्छा लगता है.’’

जतिन ने इस बार कामना को ऊपर से नीचे तक देखा. ‘‘स्मार्ट, सैक्सी, पार्टीवियर आउटफिट. बिलकुल बेपरवाह हुस्न,’’ उस ने कहा.

‘‘थैंक यू,’’ कामना ने पूछा, ‘‘वैसे करते क्या हो?’’

‘‘एमए कर चुका हूं. अच्छी नौकरी की तलाश में हूं.’’

‘‘मैं ने भी ग्रैजुएशन किया है. मेरी नौकरी करने की मजबूरी नहीं है. पिता हैं नहीं, सिर्फ मां हैं और पिताजी का छोड़ा हुआ खूब पैसा है. सारा दिन सजीसंवरी रहती हूं, दिन में 10 बार सुंदर से सुंदर आउटफिट चेंज करती हूं, मौजमस्ती करती हूं और पैसे लुटाती हूं. बस, यही मेरी जिंदगी है,’’ कामना कुछ गंभीर दिखाई दी.

‘‘फिर यहां पार्क में, अकेले?’’ जतिन ने झिझकते हुए पूछा.

‘‘मां शादी के लिए पीछे पड़ी हैं. न कोई अच्छा लड़का उन्हें मेरे लिए मिला है और न ही मुझे, जिसे मैं पसंद कर सकूं. जब तनाव बढ़ जाता है तो यहां आ कर बैठ जाती हूं. तुम पहले लड़के हो, जो मुझे अच्छे लगे हो. खैर छोड़ो इन बातों को. यह बताओ कि कालेज में सिर्फ फ्लर्टिंग ही की या कभी किसी लड़की के साथ डेटिंग भी की?’’

जतिन ने कामना के पास खिसकते हुए कहा, ‘‘डियर, किस दुनिया में जी रही हो. फ्लर्टिंग, डेटिंग आज आउटडेटिड हो चुके हैं. जवान लोगों की नई मंजिल है, लिव इन रिलेशन की. वैसे अभी तक मुझे डेटिंग का मौका नहीं मिला पर तुम चाहो तो यह संभव हो सकता है,’’ जतिन अब खुलने लगा था.

‘‘कहां ले चलोगे? मुझे तेज रफ्तार पसंद है. पार्क के बाहर मेरी औडी खड़ी है. उसी से यहां आतीजाती हूं. मुश्किल से 50 किलोमीटर की स्पीड आ पाती है. सब तरफ कीड़ेमकोड़ों की तरह इंसानों की भीड़. 100 किलोमीटर से ऊपर स्पीड आए तो आए कैसे? तुम्हारे पास बाइक है? उसी पर चलेंगे. ड्राइव मैं करूंगी,’’ कामना बोली.

जतिन कामना के थोड़ा और करीब खिसक आया और बोला, ‘‘महाबलेश्वर कैसा रहेगा?’’

‘‘नाइस, परसों चलते हैं, लेकिन अभी से मेरे इतने नजदीक मत आओ. मुझ से इतना चिपक कर मत बैठो. मैं काफी समय से पार्क में आ रही हूं. बहुत लोग मुझे जानने लगे हैं. उन्हें थोड़ा अजीब लगेगा.’’

जतिन ने खिसक कर अपने और कामना के बीच फिर से उतनी ही दूरी बना ली, जितनी पहले थी.

‘‘पानीपूरी खाओगे?’’

‘‘श्योर, लेकिन एक शर्त पर.‘‘

‘‘कैसी शर्त?’’

‘‘पैसे मैं दूंगा.’’

‘‘नहीं, पैसे मैं दूंगी. जिंदगी में सिर्फ तुम हो, जो मुझे एक नजर में ही पसंद आ गए हो. क्या मैं इस खुशी को भी सैलिब्रेट नहीं कर सकती? इच्छा तो है किसी फाइवस्टार होटल में चलें. पर जल्दबाजी में कदम नहीं उठाने चाहिए. गिरने का डर रहता है.’’

‘‘पानीपूरी कहां खाओगी?’’

‘‘पार्क के बाहर एक चाट वाला है. वहीं चलते हैं,’’ कहते हुए कामना ने कलाई घड़ी की तरफ निगाह डाली. साढ़े 7 बज रहे थे. ‘‘ओफ, डेढ़ घंटा हो गया,’’ उस के मुंह से  निकला.

‘‘कहीं और जाना है क्या?’’ जतिन ने पूछा.

‘‘नहीं, मां ज्यादा चिकचिक न करें, यही खयाल रहता है. अभी वक्त है. चलो, चलते हैं,’’ कामना बैंच से उठ गई. जतिन भी उस के साथ ही उठ गया.

पानीपूरी खातेखाते जतिन सोच रहा था कि उस की तो लौटरी लग गई है. एक बार इस के दिल में पूरी तरह से समा गया तो फिर चांदी ही चांदी है. अजगर हो जाऊंगा. अजगर कहां नौकरी करते हैं? आराम ही आराम. ऐश और सिर्फ ऐश.

‘‘चलो, अब थोड़ा पार्क में घूमते हैं,’’ पानीपूरी खा कर लौटते हुए कामना ने कहा. दोनों पार्क में आ कर एक छोर से दूसरे छोर तक घूमने लगे. थोड़ी देर बाद कामना ने चुप्पी तोड़ी, ‘‘मुझ से शादी करोगे?’’

जतिन बोला, ‘‘तुम अच्छी तो लगने लगी हो पर मुझे जिंदगी में सैटल होने में अभी कुछ वक्त लगेगा. अच्छी नौकरी मिलना भी तो आसान नहीं है.’’

‘‘लेकिन मैं ज्यादा इंतजार नहीं कर सकती. नौकरी न भी करोगे तो चलेगा. मुझे मां की चिकचिक हमेशा के लिए खतम कर के उन्हें खुश करना है.’’

‘‘फिर तो कोई समस्या ही नहीं है. मैं शादी के लिए तैयार हूं.’’

‘‘एक दिन में जिंदगी के फैसले तो नहीं किए जा सकते. कुछ तुम्हें, मुझे समझना है और कुछ मुझे, तुम्हें. थोड़ा समय तो लगेगा. इसीलिए तो मैं ने डेटिंग के

लिए हामी भरी थी. बस, कुछ दिन डेटिंग, फिर फैसला.’’

‘‘तो फिर एक काम क्यों न करें?

1-2 महीने लिव इन रिलेशनशिप में रह लेते हैं. आजकल तो ट्रायल औफर्स का जमाना है. बिल्डर मकान बना कर बेचते हैं तो एक महीने तक का ट्रायल औफर देते हैं. महीने भर ट्रायल लो. पसंद आए तो खरीदो वरना नहीं. डाक्टर्स ट्रीटमैंट में ट्रायल औफर देते हैं तो होटल खाने में. आजकल हर फील्ड में ट्रायल औफर्स की भरमार है. कालेज में भी तो यही चलन लड़के और लड़कियों के बीच था. इस से एकदूसरे को समझने का मौका मिल जाएगा. बात जमी तो शादी, वरना रास्ते अलगअलग और एकदूसरे को अलविदा. कोई कानूनी कार्यवाही नहीं.’’

‘‘नहीं, यह असंभव है. अब मैं ऐसा कुछ नहीं कर सकती, लाइफ  में मैच्योरिटी आ गई है. ऐसा करते हैं, मैं तुम्हें अपनी मां से मिलवाती हूं. तुम्हारे बारे में उन की राय भी तो जरूरी है, कल एक अच्छी सी ड्रैस पहन कर आ जाना, बाल आज के फैशन के हिसाब से कटवा लेना. उन्हें आधुनिक लड़के पसंद हैं. बाकी मैं संभाल लूंगी,’’ कामना ने जतिन को समझाया.

‘‘कल कितने बजे?’’

‘‘7 या 8 बजे. क्यों टाइम सूट करेगा न? फोन नंबर और पता मैं तुम्हें दे दूंगी.’’

‘‘तो चलो, फिर इसी खुशी में एक मूवी देख ली जाए. डर्टी पिक्चर रिवोली में ही लगी है. क्या बोल्ड डायलौग हैं और विद्या बालन की ऐक्टिंग, एकदम धांसू. तुम्हें पसंद आएगी.’’ जतिन ने शाम को रंगीन बनाने के लिए सुझाव दिया.

‘‘यह पिक्चर तो मैं जरूर देखूंगी, पर तुम्हारे साथ नहीं,’’ कामना ने कहा.

तभी एक सुंदर युवक दोनों के सामने आ खड़ा हुआ. उसे देखते ही कामना रुक गई.

कामना ने युवक से कहा, ‘‘सुहास, इन से मिलो. ये मेरे दोस्त हैं, जतिन. हम दोनों ने शादी करने का फैसला किया है. वास्तव में हम पिछले 2 घंटे से अपनी वैडिंग ही प्लान कर रहे थे.’’

सुहास ने बढ़ कर जतिन से हाथ मिलाया और उसे शादी के लिए बधाई दी.

अब कामना जतिन की तरफ मुड़ी. बोली, ‘‘जतिन, तुम्हारे और मेरे बीच पिछले 2 घंटे में जो कुछ बातें हुईं, सब मनगढ़ंत थीं. सिर्फ टाइमपास. सुहास के यहां पहुंचने तक के लिए. न तो मैं रईस हूं और न ही मेरी मां मेरी शादी के लिए किचकिच करने वाली हैं. मैं भी तुम्हारी तरह ही मध्यवर्गीय परिवार से हूं और सुहास मेरे मंगेतर हैं. जल्दी ही हमारी शादी होने वाली है.

आज मैं इन के साथ यहां डेटिंग के लिए आई हूं. रिवोली में हम डर्टी पिक्चर देखेंगे और डिनर करेंगे. इसीलिए तो मैं ने तुम से थोड़ी देर पहले कहा था कि मैं यह पिक्चर देखूंगी जरूर, पर तुम्हारे साथ नहीं.’’ कामना ने जतिन के चेहरे को पढ़ा, ठगे जाने के हजारों भाव उस के चेहरे पर आजा रहे थे. वह हक्काबक्का, बेजान सा खड़ा कामना की बातें सुने जा रहा था. उस के कानों से गरमगरम लावा बहने लगा था.

कामना ने आगे कहा, ‘‘दरअसल, आज सुहास और मेरी मुलाकात में इतनी देर इसलिए हो गई क्योंकि मैं यहां कुछ जल्दी पहुंच गई और सुहास की लोकल टे्रन लेट हो गई. पार्क में समय गुजारने के लिए जब मैं बैंच पर आ कर बैठी तो कई लफंगे युवकों को अपने आसपास चक्कर लगाते हुए पाया. मैं उन्हें देख कर डर गई.

अचानक मेरी निगाह तुम पर पड़ी. तुम भी मुझे घूर रहे थे. मैं एक नजर में ही पहचान गई कि तुम गुंडे किस्म के लड़के नहीं हो. फिर क्या था? मैं ने तुरंत एक कहानी गढ़ डाली. तुम्हें कहानी का नायक बनाते हुए, हाथ के इशारे से तुम्हें अपने पास बुला डाला. उस के बाद जो कुछ हुआ, तुम्हें बताने की जरूरत नहीं है.’’

‘‘बहुत मजेदार,’’ सुहास बोल उठा.

कामना अब सुहास के हाथों में हाथ डाल कर चल पड़ी. जाते समय जतिन के हाथों में एक चाकलेट पकड़ा दी. उस के गाल पर हलकी सी चपत लगाते हुए बोली, ‘‘बच्चे, जिस कालेज से तुम पढ़ कर निकले हो, वहां मैं प्रोफैसर हूं.’’

कामना जब सुहास के साथ पार्क से बाहर निकल गई तो जतिन की तंद्रा टूटी.

उस के मुंह से कालेज के दिनों वाली गालियां निकलती चली गईं, ‘‘साली… धोखेबाज… लुच्ची… लफंगन.’’

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