Download App

Best Hindi Story : दिल को देखो – क्या श्रेया ने प्रतीक को अपनाया?

Best Hindi Story : सुबह से ही अनिलजी ने पूरे घर को सिर पर उठा रखा था, ‘‘अभी घर की पूरी सफाई नहीं हुई. फूलदान में ताजे फूल नहीं सजाए गए, मेहमानों के नाश्तेखाने की पूरी व्यवस्था नहीं हुई. कब होगा सब?’’ कहते हुए वे झुंझलाए फिर रहे थे. अनिलजी की बेटी श्रेया को इतने बड़े खानदान के लोग देखने आ रहे थे. लड़का सौफ्टवेयर इंजीनियर था. बहन कालेज में लैक्चरर और पिता शहर के जानेमाने बिजनैसमैन. अनिलजी सोच रहे थे कि यहां रिश्ता हो ही जाना चाहिए. अनिलजी आर्थिक रूप से संपन्न थे. सरकारी विभाग में ऊंचे पद पर कार्यरत थे. शहर में निजी फ्लैट और 2 दुकानें भी थीं. पत्नी अध्यापिका थीं. बेटा श्रेयांश इंटरमीडिएट के बाद मैडिकल की तैयारी कर रहा था और श्रेया का बैंक में चयन हो गया था. फिर भी लड़के के पिता विष्णुकांत के सामने उन की हैसियत कम थी. विष्णुकांत के पास 2 फैक्ट्रियां, 1 प्रैस और 1 फौर्महाउस था, जिस से उन्हें लाखों की आमदनी थी. इसी कारण से उन के स्वागतसत्कार को ले कर अनिलजी काफी गंभीर थे.

दोपहर 1 बजे कार का हौर्न सुनाई दिया तो अनिलजी तुरंत पत्नी के साथ अगवानी के लिए बाहर भागे. थोड़ी ही देर में ड्राइंगरूम में विष्णुकांत अपनी पत्नी और बेटी के साथ पधारे, परंतु श्रेया जिसे देखना चाहती थी, वह कहीं नजर नहीं आ रहा था. तभी जोरजोर से हंसता, कान पर स्मार्टफोन लगाए एक स्टाइलिश युवक अंदर आया. लंबे बाल, बांहों पर टैटू, स्लीवलैस टीशर्ट और महंगी जींस पहने वह युवक अंदर आते ही अनिलजी व उन की पत्नी को हैलो कह कर सोफे पर बैठ गया.

‘‘श्रेया,’’ मां ने आवाज दी तो श्रेया नाश्ते की ट्रे ले कर ड्राइंगरूम में पहुंची.

‘‘बैठो बेटी,’’ कह कर विष्णुकांत की पत्नी ने उसे अपने पास ही बैठा लिया. उन्होंने परिचय कराया, ‘‘प्रतीक, इस से मिलो, यह है श्रेया.’’

‘ओह तो प्रतीक है इस का नाम,’ सोचते हुए श्रेया ने उस पर एक उड़ती नजर डाल कर बस ‘हाय’ कह दिया. खुशनुमा माहौल में चायनाश्ते और लंच का दौर चला. सब की बातचीत होती रही, लेकिन प्रतीक तो जैसे वहां हो कर भी नहीं था. वह लगातार अपने स्मार्टफोन पर ही व्यस्त था. ‘‘अच्छा अनिलजी, अब हम चलते हैं. मुलाकात काफी अच्छी रही. अब प्रतीक और श्रेया एकदूसरे से दोचार बार मिलें और एकदूसरे को समझें, तभी बात आगे बढ़ाई जाए,’’ कह कर विष्णुकांतजी सपरिवार रवाना हो गए.

उन के जाते ही श्रेया भुनभुनाने लगी, ‘‘क्या पापा, यह कैसा लड़का चुना है आप ने मेरे लिए. कितना बिगड़ा हुआ लग रहा था.’’ अनिलजी श्रेया को समझाते हुए बोले, ‘‘ऐसा नहीं है बेटा, किसी की सूरत से उस की सीरत का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता. उस से दोचार बार मिलोगी तो उसे समझने लगोगी.’’ इस के 3 दिन बाद श्रेया सुबह बैंक जा रही थी. देर होने के कारण वह स्कूटी काफी तेज गति से चला रही थी कि तभी सड़क पर अचानक सामने आ गए एक कुत्ते को बचाने के चक्कर में उस की स्कूटी सड़क पार कर रहे एक बुजुर्ग से जा टकराई. स्कूटी एक ओर लुढ़क गई और श्रेया उछल कर दूसरी ओर सड़क पर गिरी. श्रेया को ज्यादा चोट नहीं लगी, पर बुजुर्ग को काफी चोट आई. उन का सिर फट गया था और वे बेहोश पड़े थे. श्रेया का तो दिमाग ही काम नहीं कर रहा था कि क्या करे. तभी प्रतीक वहां से गाड़ी से गुजर रहा था. उस ने यह दृश्य देखा तो वह फौरन अपनी गाड़ी से उतर कर श्रेया के पास आ कर बोला, ‘‘आर यू ओके.’’ फिर वह उन बुजुर्ग की ओर लपका, ‘‘अरे, ये तो बहुत बुरी तरह घायल हैं.’’

सुनसान सड़क पर मदद के लिए कोई नहीं था. अपनी चोटों की परवा न करते हुए श्रेया उठी और घायल बुजुर्ग को गाड़ी में डालने में प्रतीक की मदद करने लगी. ‘‘आइए, आप भी बैठिए. आप को भी इलाज की जरूरत है. मैं अपने मैकेनिक को फोन कर देता हूं, वह आप की स्कूटी ले आएगा.’’ श्रेया को भी गाड़ी में बैठा कर प्रतीक बड़ी तेजी से नजदीक के जीवन ज्योति हौस्पिटल पहुंचा. ‘‘डाक्टर अंकल, एक ऐक्सीडैंट का केस है. घायल काफी सीरियस है. आप प्लीज देख लीजिए.’’

‘‘डौंट वरी, प्रतीक बेटा, मैं देखता हूं.’’ डाक्टर साहब ने तुरंत घायल का उपचार शुरू कर दिया. एक जूनियर डाक्टर श्रेया के जख्मों की मरहमपट्टी करने लगी. प्रतीक जा कर कैंटीन से 2 कप चाय ले आया. चाय पी कर श्रेया ने राहत महसूस की.

‘‘हैलो पापा, मेरा एक छोटा सा ऐक्सीडैंट हो गया है पर आप चिंता न करें. मुझे ज्यादा चोट नहीं लगी पर एक बुजुर्ग को काफी चोटें आई हैं. आप जल्दी से आ जाइए. हम यहां जीवन ज्योति हौस्पिटल में हैं,’’ श्रेया ने पापा को फोन पर बताया. अब वह अपने को कुछ ठीक महसूस कर रही थी.

‘‘थैंक्यू वैरी मच, आप ने ऐनवक्त पर आ कर जो मदद की है, उस के लिए तो धन्यवाद भी काफी छोटा महसूस होता है. मैं आप का यह एहसान जिंदगी भर नहीं भूलूंगी.’’

‘‘अरे नहीं, यह तो मेरा फर्ज था. मैं ने डाक्टर अंकल को कह दिया है कि वे पुलिस को इन्फौर्म न करें. हौस्पिटल में सब मुझे जानते हैं, मेरे पिता इस हौस्पिटल के ट्रस्टी हैं.’’ तभी अनिलजी भी पत्नी सहित वहां पहुंच गए. श्रेया ने उन्हें घटना की पूरी जानकारी दी तो वे बोले, ‘‘प्रतीक बेटा, यदि आप वहां न होते तो बहुत मुसीबत हो जाती. थैंक्यू वैरी मच.’’

अनिलजी डाक्टर से बोले, ‘‘इन बुजुर्ग के इलाज का पूरा खर्च मैं दूंगा. प्लीज, इन से रिक्वैस्ट कीजिए कि पुलिस से शिकायत न करें.’’

‘‘डौंट वरी अनिलजी. विष्णुकांतजी इस हौस्पिटल के ट्रस्टी हैं. आप को कोई पैसा नहीं देना पड़ेगा,’’ डा. साहब मुसकराते हुए बोले. अगली शाम श्रेया कुछ फलफूल ले कर बुजुर्ग से मिलने हौस्पिटल पहुंची. उस ने उन से माफी मांगी. उस की आंखें भर आई थीं. ‘‘नहीं बेटी, तुम्हारी गलती नहीं थी. मैं ने देखा था कि तुम कुत्ते को बचाने के चक्कर में स्कूटी पर से नियंत्रण खो बैठी थी, तभी यह ऐक्सीडैंट हुआ. और फिर तुम्हें भी तो चोट लगी थी.’’

‘‘अरेअरे श्रेयाजी, रोइए मत. सब ठीक है,’’ तभी अंदर आता हुआ प्रतीक बोला.

‘‘आइए, कैंटीन में कौफी पीते हैं. यू विल फील बैटर,’’ दोनों कैंटीन में जा बैठे. कौफी पीने और थोड़ी देर बातचीत करने के बाद श्रेया घर वापस आ गई. फिर तो मुलाकातों का सिलसिला चल पड़ा. एक दिन जब श्रेया और प्रतीक रैस्टोरैंट में बैठे थे कि

तभी प्रतीक का एक दोस्त भी वहां आ गया. वे दोनों किसी इंस्टिट्यूट के बारे में बात करने लगे. श्रेया के पूछने पर प्रतीक ने बताया कि वह और उस के 3 दोस्त हर रविवार को एक कोचिंग इंस्टिट्यूट में मुफ्त पढ़ाते हैं, जहां होनहार गरीब छात्रों को इंजीनियरिंग की तैयारी कराई जाती है. यही नहीं वे लोग उन छात्रों की आर्थिक सहायता भी करते हैं. श्रेया यह सुन कर अवाक रह गई. उस दिन घर पहुंच कर प्रतीक के बारे में ही सोचती रही. सुबह काफी शोरगुल सुन कर उस की आंख खुली तो बाहर का नजारा देख कर उस की जान ही निकल गई. उस ने देखा कि पापा को खून की उलटी हो रही है और मम्मी रो रही हैं. श्रेयांश किसी तरह पापा को संभाल रहा था. किसी तरह तीनों मिल कर अनिलजी को अस्पताल ले गए. जीवन ज्योति हौस्पिटल के सीनियर डाक्टर उन्हें देखते ही पहचान गए. तुरंत उन का उपचार शुरू हो गया. श्रेया को तो कुछ समझ नहीं आ रहा था कि पापा को अचानक क्या हो गया है. उस ने प्तीक को भी फोन कर दिया था. आधे घंटे में प्रतीक भी वहां पहुंच गया.

डाक्टरों ने अनिलजी का ब्लड सैंपल ले कर जांच के लिए भेज दिया था और शाम तक रिपोर्ट भी आ गई. रिपोर्ट देख कर डाक्टर का चेहरा उतर गया. प्रतीक को कुछ शक हुआ तो वह वार्ड में अलग ले जा कर डाक्टर साहब से रिपोर्ट के बारे में पूछने लगा. डा. साहब ने अनिलजी की ओर देखा और उन्हें सोता समझ कर धीरे से बोले, ‘‘अनिलजी को ब्लड कैंसर है, वह भी लास्ट स्टेज पर. अब कोई इलाज काम नहीं कर सकता.’’

प्रतीक को बड़ा धक्का लगा. उस ने पूछा, ‘‘फिर भी अंकल, क्या चांसेज हैं? कितना समय है अंकल के पास?’’

‘‘बस महीना या 15 दिन,’’ वे बोले.

तभी आहट सुन कर दोनों ने पलट कर देखा. अनिलजी फटी आंखों से उन की ओर देख रहे थे. दोनों समझ गए कि उन्होंने सबकुछ सुन लिया है. अनिलजी की आंखों से आंसू बह निकले, ‘‘ओह, यह क्या हो गया? अभी तो मेरे बच्चे ठीक से बड़े भी नहीं हुए. अभी तो मैं श्रेया को डोली में बैठाने का सपना देख रहा था. अब क्या होगा?’’ तभी विष्णुकांतजी भी पत्नी सहित वहां आ पहुंचे, ‘‘अनिलजी, आप पहले ठीक हो जाइए, शादीवादी की बात बाद में देखेंगे,’’ वे बोले.

‘‘मेरे पास ज्यादा समय नहीं है, मैं ने सब सुन लिया है. प्रतीक और श्रेया एकदूसरे को पसंद करते हैं. उन की शादी जल्दी हो जाए तो मैं चैन से मर सकूंगा.’’

‘‘कैसी बातें करते हैं आप? शादी की तैयारियों के लिए समय चाहिए. आखिर हमारी कोई इज्जत है, समाज में,’’ विष्णुकांतजी रुखाई से बोले. ‘‘नहीं पापा, मुझे धूमधाम वाली शादी नहीं चाहिए. इतने खराब हालात में इज्जत की चिंता कौन करे. अंकल आप चिंता न करें. यह शादी आज ही और यहीं अस्पताल में होगी,’’ श्रेया का हाथ पकड़ कर अंदर आता प्रतीक तेज स्वर में बोला. श्रेया हैरानी से प्रतीक का मुंह देख रही थी कि तभी वार्डबौय के मोबाइल की रिंगटोन बज उठी, ‘दिल को देखो, चेहरा न देखो… दिल सच्चा और चेहरा झूठा…’ श्रेया के होंठों पर फीकी मुसकान दौड़ गई. पापा सच ही कह रहे थे कि किसी की सूरत से उस की सीरत का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता. दिखने में मौडर्न प्रतीक कितना संवेदनशील इंसान है. प्रतीक के तेवर देख कर विष्णुकांतजी भी नरम पड़ गए. पूरे अस्पताल को फूलों से सजाया गया. वार्ड में ही प्रतीक और श्रेया की शादी हुई. अस्पताल का हर कर्मचारी और मरीज इस अनोखी शादी में शामिल हो कर खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहा था.

Love Story : बेनाम रिश्ता – क्या किशन के दिल में वह अभी तक बसी थी ?

Love Story : अपने विवाह के बाद किसी रिश्तेदार के विवाह समारोह में मेरा जाना हुआ. वहां जा कर मैं ने देखा कि तमाम रिश्तेदारों के साथसाथ मेरी चचेरी भाभी भी आई हुई थीं. उन से मेरा 40 वर्षों बाद मिलना हुआ था. रात को भोजन के बाद मैं भाभी के पास बैठी उन से बातें कर रही थी.

उन्होंने बताया कि चाचा की मृत्यु के तुरंत बाद ही वे ससुराल छोड़ कर अपने इकलौते बेटे व बहू के साथ अपने मायके लखनऊ जा कर बस गईर् थीं.

मैं बहुत ध्यान से उन की बातें सुन रही थी और साथ ही साथ विस्तार से जानने की जिज्ञासा भी प्रकट कर रही थी.

उन्होंने आगे बताया कि उन का भाई किशन भी लखनऊ में अपने पैतृक मकान में परिवार सहित रह कर पुश्तैनी व्यवसाय संभाल रहा था.

इतना सुनने के बाद मेरे लिए आगे कुछ और जानने की जिज्ञासा का कोई औचित्य नहीं था, क्योंकि वे मेरे और किशन के रिश्ते से अनभिज्ञ नहीं थीं. मेरी आंखों के सामने एक धुंधला सा चेहरा तैर गया, जो वक्त के बहाव में धूमिल होतेहोते मिट सा गया था. मैं नहीं चाहती थी कि मेरे मन में जो चल रहा है, उस को मेरे चेहरे के भाव से भाभी पढ़ लें, इसलिए मैं आंखें बंद कर के सोने का उपक्रम करने लगी और उन से विदा ले कर अपने कमरे में चली आई. दिनभर की भागदौड़ से थकी होने के कारण तुरंत ही मैं सो गई.

तमाम मेहमानों के साथ भाभी ने भी विदा ली. जातेजाते वे अपना मोबाइल नंबर देना और मेरा लेना नहीं भूलीं. इस मुलाकात ने हमारी आत्मीयता को पुनर्जीवित कर दिया था. मैं दिल्ली लौट आई और अपनी दिनचर्या में व्यस्त हो गई.

मुझे आए हुए 20 दिन बीते कि एक दिन मेरा मन भाभी से बात करने को हुआ, लेकिन यह सोच कर टाल दिया कि कहीं किशन भी आसपास न बैठा हो. मैं बुझी हुई आग को दोबारा सुलगाना नहीं चाहती थी. लेकिन फिर भी परोक्षरूप से उस से संपर्क करने की इच्छा का ही तो परिणाम था कि मैं उन से बात करना चाह रही थी.

अभी 3 दिन ही बीते कि अचानक अपने मोबाइल में एक मैसेज और उस को भेजने वाले का नाम पढ़ कर मैं बुरी तरह चौक गई. जो मैं नहीं चाहती थी, वही हुआ. भाभी के भाई किशन का मैसेज था, ‘‘कैसी हो अमृता,’’ मैसेज पढ़ते हुए मैं ने अपने चारों और ऐसे देखा, जैसे मैं कोई चोरी कर रही हूं.

मेरे मन में अजीब सी हलचल होने लगी. पलक झपकते ही मैं समझ गई कि किशन ने भाभी से ही मेरा मोबाइल नंबर लिया होगा. मेरे मन में भाभी से मिलने के बाद उस का खयाल आना और उस का मैसेज आना, टैलीपैथी ही तो थी, सच ही कहा गया है किसी से मिलने के पीछे भी कोई न कोई कारण होता है. तो क्या भाभी से मिलने का कारण भी मेरा किशन से दोबारा संपर्क होना था, मैं सोच रही थी.

मेरा मन अशांत हो चला था. मैं अपने मस्तिष्क को 40 वर्ष पहले अतीत में घटित घटना की यादों में धकेलने के लिए मजबूर हो गई थी, जो मेरे मानस पटल से समय के बहाव में धुलपुंछ गए थे और जिन का मेरे जीवन में अब कोई अस्तित्व ही नहीं था. अतीत के पन्ने एकएक कर के मेरी आंखों के सामने खुलने लगे.

मेरी भाभी अपनी मां और भाई के साथ मथुरा में हमारे घर आई थीं. तब मेरी उम्र 21-22 वर्ष की रही होगी. भाभी के आग्रह पर जहांजहां वे घूमने गए, मैं भी उन के साथ गई. साथसाथ घूमते हुए भाभी के भाई की गहरी निगाहों की कब मैं शिकार हो गई, मुझे पता ही नहीं चला. उस की मंदमंद मुसकान और बोलती हुई बड़ीबड़ी भूरी आंखों ने मुझे मूक प्रेमनिमंत्रण देने में जरा भी संकोच नहीं किया. जिस को स्वीकार करने से मैं अपनेआप को रोक नहीं पाई.

वह बहुत कम बोलता था, लेकिन उस की आंखों की भाषा से कुछ भी अनकहा नहीं रहता था. किसी ने ठीक ही कहा है खामोशियों की भी जबां होती है. परिवार वालों से हट कर जब भी मौका मिलता था, वह मेरा हाथ पकड़ लेता था और मैं ने भी कभी हाथ छुड़ाने का प्रयास नहीं किया था. हम दोनों मंत्रमुग्ध से एकदूसरे का साथ पाने के लिए आतुर रहते थे. और वह होली का दिन, कैसे भूल सकती हूं… वह सब. यंत्रचालित हम एकदूसरे के पीछे भागते रहते थे.

20 दिनों के साथ के बाद अंत में बिछुड़ने का दिन आ गया. भाभी मुझ से खिंचीखिंची ही रहीं. इस से मुझे आभास हो गया था कि उन से कुछ भी छिपा नहीं है, मौका पा कर किशन ने मेरे हाथ में एक छोटी सी पर्ची थमा दी, जिस में उस का पता लिखा था. कुछ भी कहनेसुनने का हम दोनों को कभी मौका नहीं मिला. आज के विपरीत वह जमाना ही ऐसा था, जब अपने हावभाव से ही प्रेम की अभिव्यक्ति होती थी, उसे शब्दों का जामा पहनाने में इतना विलंब हो जाता था कि समय के बहाव में परिस्थितियां ही बदल जाती थीं.

मुझे याद है, उस के जाने के बाद अगले दिन अपनी सहेली से लिपट कर मैं कितना रोई थी. किशन से लगभग 3 महीने तक पत्रव्यवहार हुआ. फिर अचानक उस का पत्र आना बंद हो गया. मैं ने पत्र लिख कर कारण पूछा, लेकिन कोई जवाब नहीं आया.

समय बीतता गया और किशन के साथ बिताए गए दिनों की यादें समय की परतों के नीचे दबती चली गईं. और आज अचानक इतने वर्षों बाद उस का यह अप्रत्याशित मैसेज. मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं?

अपने पति की मृत्यु के बाद से जीवन अकेलेपन और खालीपन के एहसास के नीचे दब कर दम तोड़ रहा था और एक बोझ सा बन गया था, लेकिन जीना तो था न. बच्चे बहुत व्यस्त रहते थे, मैं हमेशा उन के सामने मुसकराहट का मुखौटा ओढ़े रहती थी, लेकिन रात में अकेले, साथी की कमी को बहुत शिद्दत से महसूस करती थी और कई बार तो रातभर नींद नहीं आती थी, यह सोच कर कि  पहाड़ सा जीवन कैसे काटूंगी.

वर्तमान परिस्थितियां देखते हुए मेरा मन किशन से बात करने के लिए व्याकुल हो गया. कुछ देर के आत्ममंथन के बाद हमारे जमाने के विपरीत जब पति के अतिरिक्त किसी भी पुरुष से आत्मीयता का संबंध रखना पाप समझा जाता था, इस जमाने की बदली हुई सोच, नई टैक्नोलौजी द्वारा उपलब्ध संपर्क साधन के कारण और पहले प्यार की अनुभूति की पुनरावृत्ति की मिठास को पाने के लोभ ने आग में घी डालने का कार्य किया और मेरा मन, मन की सीमारेखा को तोड़ने के लिए मजबूर हो गया.

मैं ने अपने मन को यह कह कर समझाया, ‘देखिए आगेआगे होता है क्या.’ और मैं ने जवाब दिया, ‘‘ठीक हूं, तुम बताओ?’’ वह जैसे मेरे जवाब का इंतजार ही कर रहा था. प्रत्युत्तर में उस ने औपचारिकतापूर्ण मेरे परिवार के बारे में विस्तार से पूछा और अपने परिवार के बारे में बताया कि उस के परिवार में उस की पत्नी और 2 बेटियां हैं, दोनों बेटियों का विवाह हो चुका है.

वर्षों बाद उस की आवाज सुन कर मैं बहुत रोमांचित हुई, ऐसा लगा कि जैसे हमारे अतीत के मूकप्रेम को वाणी मिल गई. वार्त्तालाप में साथसाथ बिताए गए वे दिन, जो धरातल में कही समा गए थे, पुनर्जीवित हो गए. बहुत सारी घटनाएं किशन ने याद दिलाईं, जो मैं भूल चुकी थी.

मैं ने पूछा, ‘‘तुम्हें तो सब याद है.’’

वह बोला, ‘‘मैं भूला ही कब था?’’

‘‘तो फिर तुम ने पत्र लिखना क्यों बंद कर दिया?’’

क्या करता दीदी ने सबकुछ पिताजी को बता दिया. और उन के आदेश पर मुझे ऐसा करना पड़ा. वह जमाना ही ऐसा था, जब बड़ों का वर्चस्व ही सर्वोपरि होता था.’’

‘‘काश, उस समय मोबाइल होता.’’ मेरी इस आवाज का मर्म उसे अंदर तक आहत कर गया.

‘‘चलो, अब तो मोबाइल है. अब तो बात कर सकते हैं,’’ उस ने मुझे सांत्वना देते हुए कहा.

उस से बात कर के मुझे अपने पर नाज हो आया कि आज इतने सालों बाद भी मैं किसी की यादों में बसी हूं. विवाह एक सामाजिक बंधन है, जो शरीर को तो कैद कर सकता है, लेकिन मन तो आजाद पंछी की तरह अरमानों के गगन में जब चाहे उड़ सकता है. बहुत बार विवाह के समय हवन की अग्नि भी प्यार की तपिश को अक्षुण्ण नहीं कर पाती. उस की बातों से स्पष्ट हो गया था कि वह भी अपने परिवार के प्रति समर्पित है, लेकिन मेरी तरह उस के भी दिल का एक कोना खाली ही रहा. प्रसिद्ध शायर फराज ने ठीक ही कहा है, ‘‘कुछ जख्म सदियों के बाद भी ताजा रहते हैं फराज, वक्त के पास भी हर मर्ज की दवा नहीं होती.’’

मुझे किशन की बातें बहुत रोमांचित करती थीं. लेकिन कभीकभी मेरा मन नैतिकता और अनैतिकता के झूले में झूलता हुआ रिश्ते के स्थायित्व के बारे में सोच कर उद्विग्न हो जाता था. लेकिन धीरेधीरे उस से बातें कर के मुझे एहसास हो चला था कि हमारा प्रेम परिपक्व उम्र की अंतरंग मित्रता में परिवर्तित हो गया है. इस नए रिश्ते को बनाने में किशन का बहुत सहयोग था.

पहले उस की जो बातें मुझे रोमांचित करती थीं, अब अजीब सा सुकून देने लगी थीं. अब हम दोनों की बातचीत में किसी कारण लंबा अंतराल भी आ जाता था, तो मुझे उस के दोबारा खो जाने की बात सोच कर बेचैनी नहीं होती थी. हम दोनों ही वार्त्तालाप के दौरान एक बार मिलने की इच्छा व्यक्त करते थे.

एक दिन उस ने मुझे यह कह कर चौंका दिया कि वह एक बार मिलने के लिए बहुत बेचैन है और वह जल्दी ही किसी बहाने से मुझ से मिलने दिल्ली आएगा. यह सुन कर मुझे सुखद आश्चर्य हुआ. उस से मिलने की कल्पना ही मुझे बहुत रोमांचित कर रही थी. सोच में पड़ गई. 40 वर्षों में उस में जाने कितना परिवर्तन आ गया होगा, पता नहीं, मैं उस के साथ सहज हो पाऊंगी या नहीं.

वह दिन भी आ गया जब उसे दिल्ली आना था. किशन से इतने सालों बाद मिलना, मेरे लिए, सपने का वास्तविकता में बदलने से कम नहीं था. समय और परिस्थितियां बहुत बदल गई थीं. इसलिए उस से मिलने के लिए अपनी मनोस्थिति को तैयार करने में मुझे बहुत समय लगा.

उस से मिलने पर मुझे लगा कि हम दोनों के सिर्फ बाहरी आवरण पर ही उम्र ने छाप छोड़ी थी, लेकिन अंदर के एहसास में रत्तीभर भी परिवर्तन नहीं आया था. इतने सालों बाद मिलने पर समझ ही नहीं आ रहा था कि बातों का सिलसिला कहां से आरंभ किया जाए, अभी भी बिना कुछ कहे ही जैसे हम ने आपस में सबकुछ कह दिया था.

किशन ने मेरे हाथों को अपने हाथों में लेते हुए बात आरंभ की, ‘‘अमृता, जरूरी नहीं कि हम जिस से प्यार करें, उस से शादी भी हो जाए और जिस से शादी हो उस से प्यार हो जाए, क्योंकि प्यार किया नहीं जाता, हो जाता है, इसलिए इन दोनों का आपस में कोई संबंध नहीं है.

‘‘हमारी आपस में शादी नहीं हुई, लेकिन आपस के प्यार के एहसास के रिश्ते को अच्छे दोस्त बन कर तो जिंदा रख सकते हैं. वैसे भी, उम्र के इस पड़ाव में इस से अधिक चाहिए ही क्या? मेरे जीवन में तुम्हारी जगह कोई नहीं ले सकता.’’

मुझे ऐसा लग रहा था. जैसे मैं किसी दूसरी दुनिया में विचरण कर रही हूं. हमारे पुरुषप्रधान समाज में तो ऐसी सोच वाला पुरुष मिलना असंभव नहीं, तो कठिन जरूर है, जिस ने मेरे प्यार को दीये की लौ की तरह अभी तक अपने दिल में छिपा रखा था. मैं अपने को धन्य समझ कर, भावातिरेक में उस से लिपट गई और मेरी आंखों से आंसू बह निकले.

उस ने मुझे अपने बाहुपाश में थोड़ी देर के लिए जकड़े रखा. किशन के पहली बार के इस स्पर्श ने मुझे अलौकिक सुकून दिया. मुझे लगा कि मेरे एकाकी जीवन में किसी साथी ने दस्तक दे दी थी और मुझे जीने का सबब मिल गया था.

पति और पत्नी का रिश्ता कानूनी है, लेकिन यह बेनाम रिश्ता, क्योंकि इस ने समाज की स्वीकृति की मुहर प्राप्त नहीं की है, अवैध माना जाता है. समाज को अपनी सोच बदलने की आवश्यकता है, क्योंकि यह बेनाम रिश्ता इतना खूबसूरत होता है कि जीवन के लिए संजीवनी से कम नहीं होता और ताउम्र खुशी देता है.

शायर गुलजार ने इस बेनाम रिश्ते को अपनी कलम से बहुत खूबसूरत तरीके से उकेरा है, ‘हाथ से छू के इस रिश्ते को इलजाम न दो.’

उस ने मुझ से कहा कि हमारा मिलना आसान नहीं है, लेकिन फोन पर एकदूसरे के संपर्क में रह कर हमेशा एकदूसरे से जुड़े रहेंगे. किशन ने एक ऐसा एहसास दे कर, जिस के कारण हजारों मील की दूरियां भी बेमानी हो गई थीं, मुझ से विदा ली. इन दोनों के बीच की दूरी अब कोई माने नहीं रखती थी. दिल से दिल जुड़ गए थे. यह रिश्ता दिल का था. समाज की मुहर की जरूरत भी नहीं थी इसे.

Romantic Story : चमत्कार – क्या पूरा हो पाया नेहा और मनीष का प्यार

Romantic Story : ड्राइंगरूम में बैठे पापा अखबार पढ़ रहे थे और उन के पास बैठी मम्मी टीवी देख रही थीं. मैं ने जरा ऊंची आवाज में दोनों को बताया, ‘‘आप दोनों से मिलने मनीष 2 घंटे के बाद आ रहा है.’’

‘‘किसलिए?’’ पापा ने आदतन फौरन माथे पर बल डाल लिए.

‘‘शादी की बात करने.’’

‘‘शादी की बात करने वह हमारे यहां क्यों आ रहा है?’’

‘‘क्या बेकार का सवाल पूछ रहे हैं आप?’’ मम्मी ने भी आदतन तीखे लहजे में पापा को झिड़का और फिर उत्तेजित लहजे में मुझ से पूछा, ‘‘क्या तुम दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया है?’’

‘‘हां, मम्मी.’’

‘‘गुड…वेरी गुड,’’ मम्मी खुशी से उछल पड़ीं.

‘‘बट आई डोंट लाइक दैट बौय,’’ पापा ने चिढ़े लहजे में अपनी राय जाहिर की तो मम्मी फौरन उन से भिड़ने को तैयार हो गईं.

‘‘मनीष क्यों आप को पसंद नहीं है? क्या कमी है उस में?’’ मम्मी का लहजा फौरन आक्रामक हो उठा.

‘‘हमारी नेहा के सामने उस का व्यक्तित्व कुछ भी नहीं है. जंचता नहीं है वह हमारी बेटी के साथ.’’

‘‘मनीष कंप्यूटर इंजीनियर है. उस के पिताजी आप से कहीं ज्यादा ऊंची पोस्ट पर हैं. वह फ्लैट नहीं बल्कि कोठी में रहता है. मुझे तो वह हर तरह से नेहा के लिए उपयुक्त जीवनसाथी नजर आता है.’’

‘‘तुझे तो वह जंचेगा ही,’’ पापा गुस्से में बोले, ‘‘क्योंकि मैं जो उसे पसंद नहीं कर रहा हूं. मेरे खिलाफ बोलते हुए ही तो तू ने सारी जिंदगी गुजारी है.’’

‘‘पापा, आई लव मनीष. मुझे अपना जीवनसाथी चुनने…’’

मम्मी ने मुझे अपनी बात पूरी नहीं कहने दी और पापा से भिड़ना जारी रखा, ‘‘मैं ने आप के साथ जिंदगी गुजारी नहीं, बल्कि बरबाद की है. रातदिन की कलह, टोकाटाकी और बेइज्जती के सिवा कुछ नहीं मिला है मुझे पिछले 25 साल में.’’

‘‘इनसान जिस लायक होता है उसे वही मिलता है. बुद्धिहीन इनसान को जिंदगी भर जूते ही खाने को मिलेंगे.’’

‘‘आप के पास भी जहरीली जबान ही है, दिमाग नहीं. क्या यह समझदारी का लक्षण है कि बेटी शादी करने की अपनी इच्छा बता रही है और आप क्लेश करने पर उतारू हैं.’’

‘‘मैं अपनी बेटी के लिए मनीष से कहीं ज्यादा बेहतर लड़का ढूंढ़ सकता हूं.’’

‘‘पहली बात तो यह कि आज तक आप ने नेहा के लिए एक भी रिश्ता नहीं ढूंढ़ा है. दूसरी बात कि जब नेहा मनीष से प्रेम करती है तो शादी भी उसी से करेगी या नहीं?’’

‘‘यह प्रेमव्रेम कुछ नहीं होता. जो फैसला बड़े सोचसमझ और ऊंचनीच देख कर करते हैं, वही बेहतर होता है.’’

‘‘प्रेम के ऊपर आप नहीं तो और कौन लेक्चर देगा?’’ मम्मी ने तीखा व्यंग्य किया, ‘‘शादी के बाद भी आप प्रेम के क्षेत्र में रिसर्च जो करते रहे हैं.’’

‘‘मैं किसी भी औरत से हंसूंबोलूं, तो तुझे हमेशा चिढ़ ही हुई है. जिस आदमी की पत्नी लड़झगड़ कर महीने में 15 दिन मायके में पड़ी रहती थी वह अपने मनोरंजन के लिए दूसरी औरतों से दोस्ती करेगा ही.’’

‘‘मेरी गोद में नेहा न आ गई होती तो मैं ने आप से तलाक ले लिया होता,’’ अब मम्मी की आंखों में आंसू छलक आए थे.

‘‘बातबात पर पुलिस बुला कर पति को हथकडि़यां लगवा देने वाली पत्नी को तलाक देने की इच्छा किस इनसान के मन में पैदा नहीं होगी? मैं भी इस नेहा के सुखद भविष्य के कारण ही तुम से बंधा रहा, नहीं तो मैं ने तलाक जरूर…’’

‘‘अब आप दोनों चुप भी हो जाओ,’’ मैं इतनी जोर से चिल्लाई कि मम्मी और पापा जोर से चौंक कर सचमुच खामोश हो गए.

‘‘घर में आप का होने वाला दामाद कुछ ही देर में आ रहा है,’’ मैं ने उन दोनों को सख्त स्वर में चेतावनी दी, ‘‘अगर उसे आप दोनों ने आपस में गंदे ढंग से झगड़ने की हलकी सी झलक भी दिखाई, तो मुझ से बुरा कोई न होगा.’’

‘‘मैं बिलकुल चुप रहूंगी, गुडि़या. तू गुस्सा मत हो और अच्छी तरह से तैयार हो जा,’’ मम्मी एकदम से शांत नजर आने लगी थीं.

‘‘मैं भी बाजार से कुछ खानेपीने का सामान लाने को निकलता हूं,’’ नाखुश नजर आ रहे पापा मम्मी को गुस्से से घूरने के बाद बैडरूम की तरफ चले गए.

अपने कमरे में पहुंचने के बाद मेरी आंखों में आंसू भर आए थे. अपने मातापिता को बचपन से मैं बातबात पर यों ही लड़तेझगड़ते देखती आई हूं. अपनी- अपनी तीखी, कड़वी जबानों से दोनों ही एकदूसरे के दिलों को जख्मी करने का कोई मौका नहीं चूकते हैं.

वे दोनों ही मेरे भविष्य का निर्माण अपनेअपने ढंग से करना चाहते थे. अकसर उन के बीच झड़पें मुझे ले कर ही शुरू होतीं.

मम्मी चाहती थीं कि उन की सुंदर बेटी प्रभावशाली व्यक्तित्व की स्वामिनी बने. उन्होंने मुझे सदा अच्छा पहनाया, मुझे डांस और म्यूजिक की ट्रेनिंग दिलवाई. मेरी हर इच्छा को पूरी करने के लिए वे तैयार रहती थीं. वे खुद कमाती थीं, इसलिए मुझ पर पैसा खर्च करने में उन्हें कभी दिक्कत नहीं हुई.

पापा का जोर सदा इस बात पर रहता कि मेरा कैरियर बड़ा शानदार बने. वे मुझे डाक्टर या आई.ए.एस. अफसर बनाना चाहते थे. मेरे स्वास्थ्य की भी उन्हें फिक्र रहती. मैं खूब जूस और दूध पिऊं और नियमित रूप से व्यायाम करूं, ऐसी बातों पर उन का बड़ा जोर रहता.

वैसे सचाई यही है कि मेरी मम्मी के साथ ज्यादा अच्छी पटती रही क्योंकि पापा को खुश करना मेरे खुद के लिए टेंशन का काम बन जाता था. पापा की डांट से बचाने के लिए मम्मी मेरी ढाल हमेशा बन जाती थीं.

मुझे ले कर उन के बीच सैकड़ों बार झगड़ा हुआ होगा. जब एक बार  दोनों का मूड बिगड़ जाता तो अन्य क्षेत्रों में भी उन के बीच टकराव और तकरार का जन्म हो जाता. मम्मी ने 5-6 साल पहले ऐसे ही एक झगड़े में पुलिस बुला ली थी. मुझे वह सारी घटना अच्छी तरह से याद है. उस दिन डर कर मैं खूब रोई थी.

मैं न होती तो वे दोनों कब के अलग हो गए होते, ऐसी धमकियां मैं ने हजारों बार उन दोनों के मुंह से सुनी थीं. अब मनीष से शादी कर मैं सिंगापुर जाने वाली थी. मेरी गैरमौजूदगी में कहीं इन दोनों के बीच कोई अनहोनी न घट जाए, इस सोच के चलते मेरा मन कांपना शुरू हो गया था.

मनीष आया तो मम्मी ने प्यार से उसे गले लगा कर स्वागत किया था. पापा भी जब उस से मुसकरा कर मिले तो मैं ने मन ही मन बड़ी राहत महसूस की थी.

‘‘हम दोनों अगले हफ्ते शादी करना चाहते हैं क्योंकि 15 दिन बाद मुझे सिंगापुर में नई कंपनी जौइन करनी है. अभी शादी नहीं हुई तो मामला साल भर के लिए टल जाएगा,’’ मनीष ने उन्हें यह जानकारी दी, तो मम्मीपापा दोनों के चेहरों पर टेंशन नजर आने लगा था.

‘‘सप्ताह भर का समय तो बड़ा कम है, मनीष. हम सारी तैयारियां कैसे कर पाएंगे?’’ मम्मी चिंतित हो उठीं.

‘‘आंटी, शादी का फंक्शन छोटा ही करना पड़ेगा.’’

‘‘वह क्यों?’’ पापा के माथे में फौरन बल पड़े तो उन्हें शांत रखने को मैं ने उन का हाथ अपने हाथ में ले कर अर्थपूर्ण अंदाज में दबाया.

‘‘सच बात यह है कि मेरे मम्मीपापा इस रिश्ते से बहुत खुश नहीं हैं. मैं ने इसी वजह से कल रात ही उन्हें नेहा से शादी करने की बात तब बताई जब नई कंपनी से मुझे औफर लैटर मिल गया. उन दोनों की नाखुशी के चलते बड़ा फंक्शन करना संभव नहीं है न, अंकल.’’

‘‘मेरी बेटी लाखों में एक है, मनीष. उन्हें तो इस रिश्ते से खुश होना चाहिए.’’

‘‘आई नो, अंकल, पर वे दोनों आप दोनों जितने समझदार नहीं हैं जो अपनी संतान की खुशी को सब से ज्यादा महत्त्वपूर्ण मानें.’’

मनीष की इस बात को सुन कर मुझे अचानक इतनी जोर से हंसी आई कि मुझे ड्राइंगरूम से उठ कर रसोई में जाना ही उचित लगा था.

उस पूरे सप्ताह खूब भागदौड़ रही. मम्मी व पापा को इस भागदौड़ के दौरान जब भी फुरसत मिलती, वे आपस में जरूर उलझ पड़ते. मैं दोनों पर कई बार गुस्से से चिल्लाई, तो कई बार आंखों से आंसू भी बहाए. जो रिश्तेदार इकट्ठे हुए थे उन्होंने भी बारबार उन्हें लड़ाईझगड़े में ऊर्जा बरबाद न करने को समझाया, पर उन दोनों के कानों पर जूं नहीं रेंगी.

हम ने फंक्शन ज्यादा बड़ा नहीं किया था, पर हर काम ठीक से पूरा हो गया. मेरी ससुराल में मेरे रंगरूप की खूब तारीफ हुई, तो मेरे सासससुर भी खुश नजर आने लगे थे.

हमारा हनीमून 3 दिन का रहा. मनाली के खुशगवार मौसम में अपने अब तक के जीवन के सब से बेहतरीन, मौजमस्ती भरे 3 दिन मनीष के संग बिता कर हम दिल्ली लौट आए.

वापस आने के 2 दिन बाद ही हम ने हवाईजहाज पकड़ा और सिंगापुर चले आए. अपने मम्मीपापा से विदा लेते हुए मैं रो रही थी.

‘‘आप दोनों एकदूसरे का ध्यान रखना, प्लीज. आप का लड़ाईझगड़ा अब भी चलता रहा, तो मेरा मन परदेस में बहुत दुखी रहेगा.’’

मैं ने बारबार उन से ऐसी विनती जरूर की, पर मन में भारी बेचैनी और चिंता समेटे ही मैं ने मम्मीपापा से विदा ली थी.

शुरुआत के दिनों में दिन में 2-2 बार फोन कर के मैं उन दोनों का हालचाल पूछ लेती.

‘‘हम ठीक हैं. तुम अपना हालचाल बताओ,’’ वे दोनों मुझे परेशान न करने के इरादे से यही जवाब देते, पर मेरा मन उन दोनों को ले कर लगातार चिंतित बना रहता था.

मनीष जब भी मुझे इस कारण उदास देखते, तो बेकार की चिंता न करने की सलाह देते. मैं खुद को बहुत समझाती, पर मन चिंता करना छोड़ ही नहीं पाता था.

बीतते समय के साथ मेरा मम्मीपापा को फोन करना सप्ताह में 1-2 बार का हो गया. मनीष की अपने बौस से ज्यादा अच्छी नहीं पट रही थी. इस कारण मुझे जो टेंशन होता, वही मैं फोन पर अपने मम्मीपापा से ज्यादा बांटता था.

मनीष ने कोशिश कर के अपना तबादला बैंकाक में करा लिया. वहां शिफ्ट होने से पहले उन्होंने 1 सप्ताह की छुट्टी ले ली. लगभग 6 महीने बाद इस कारण हमें इंडिया आने का मौका मिल गया था. सारा कार्यक्रम इतनी जल्दी बना कि अपने आने की सूचना मैं ने मम्मीपापा को न दे कर उन्हें ‘सरप्राइज’ देने का फैसला किया था.

मनीष और मैं एअरपोर्ट से टैक्सी ले कर सीधे पहले मेरे घर पहुंचे. 4 दिन बाद मेरे सासससुर की शादी की 30वीं वर्षगांठ थी, इसलिए पहले 3 दिन मुझे मायके में बिताने की स्वीकृति मनीष ने दे दी थी.

मनीष और मुझे अचानक सामने देख कर मेरे मम्मीपापा भौचक्के रह गए. मम्मी की चाल ने मुझे साफ बता दिया कि उन की कमर में तेज दर्द हो रहा है, पर फिर भी उन्होंने उठ कर मुझे गले से लगाया और खूब प्यार किया.

पापा की छाती से लग कर मैं अचानक ही आंसू बहाने लगी थी. उन को प्रसन्न अंदाज में मुसकराते देख मुझे इतनी राहत और खुशी महसूस हुई कि मेरी रुलाई फूट पड़ी थी.

‘‘आप दोनों को क्या हमारे आने की खबर थी?’’ कुछ संयत हो जाने के बाद मैं ने इधरउधर नजरें घुमाते हुए हैरान स्वर में सवाल किया.

‘‘नहीं तो. क्यों नहीं दी तू ने अपने आने की खबर?’’ मम्मी नकली नाराजगी दिखाते हुए मुसकराईं.

‘‘मुझे आप दोनों को ‘सरप्राइज’ देना था. वैसे पहले यह बताओ कि सारा घर फिर किस खुशी में इतना साफसुथरा… इतना सजाधजा नजर आ रहा है?’’

‘‘घर तो अब ऐसा ही रहता है, नेहा. हां, परदे पिछले महीने बदलवाए थे, सो इस कारण ड्राइंगरूम का रंग ज्यादा निखर आया है.’’

‘‘कमाल है, मम्मी. अपनी कमर दर्द की परेशानी के बावजूद आप इतनी मेहनत…’’

‘‘मेरी प्यारी गुडि़या, यह सारी जगमग तेरी मां की मेहनत का नतीजा नहीं है. आजकल साफसफाई का भूत मेरे सिर पर जरा ज्यादा चढ़ा रहता है,’’ पापा ने छाती चौड़ी कर मजाकिया अंदाज में अपनी तारीफ की तो हम तीनों खिलखिला कर हंस पड़े.

‘‘आप और घर की साफसफाई…आई कांट बिलीव यू, पापा.’’

‘‘अरे, अपनी मम्मी से पूछ ले.’’

मैं मम्मी की तरफ घूमी तो उन्होंने हंस कर कहा, ‘‘मैं ने अब इन्हें गृहकार्यों में अच्छी तरह से ट्रेंड कर दिया है, नेहा. कुछ देर में ये हम सब को देखना कितने स्वादिष्ठ गोभी और मूली के परांठे बना कर खिलाएंगे.’’

‘‘गोभी और मूली के परांठे पापा बनाएंगे?’’ मेरा मुंह खुला का खुला रह गया.

‘‘साफसफाई और किचन पापा ने संभाल लिया है, तो घर में आप क्या करती हो?’’ मैं ने आंखें मटकाते हुए मम्मी से सवाल पूछा.

‘‘आजकल जम कर ऐश कर रही हूं,’’ मम्मी ने जब अपने बालों को झटका दे कर बड़ी अदा से पीछे किया तो मैं ने नोट किया कि उन्होंने बाल छोटे करा लिए थे.

‘‘बाल कब कटवाए आप ने? बड़ा सूट कर रहा है आप पर यह नया स्टाइल,’’ मैं ने चारों तरफ घूम कर मम्मी के नए स्टाइल का निरीक्षण किया.

‘‘तेरे पापा को ही मुझे मेम बनाने का शौक चढ़ा और जबरदस्ती मेरे बाल कटवा दिए,’’ मम्मी ने अजीब सी शक्ल बना कर पापा की तरफ बड़े प्यार से देखा था.

‘‘चल, बाल तो मैं ने कटवा दिए, पर ज्यादा सुंदर दिखने को ब्यूटीपार्लर और जिम के चक्कर तो तुम अपनी इच्छा से ही लगा रही हो न,’’ पापा ने यह नई जानकारी दी, तो मैं ने मम्मी की तरफ और ज्यादा ध्यान से देखा.

उन्होंने अपना वजन सचमुच कम कर लिया था और उन के चेहरे पर भी अच्छाखासा नूर नजर आ रहा था.

‘‘आप दोनों 6 महीने में कितना ज्यादा बदल गए हो. मम्मी, आप सचमुच बहुत सुंदर दिख रही हो,’’ मैं ने प्यार से उन का गाल चूम लिया.

‘‘स्वीटहार्ट, तुम बेकार ही सिंगापुर में मम्मीपापा की चिंता करती रहती थीं. ये दोनों बहुत खुश नजर आ रहे हैं,’’ मनीष की इस बात को सुन कर मैं झेंप उठी थी.

‘‘हमारी फिक्र न किया करो तुम दोनों, परदेस में तुम तो हमारी गुडि़या का पूरापूरा ध्यान रखते हो न, मनीष?’’ पापा ने अपने दामाद के कंधे पर हाथ रख दोस्ताना अंदाज में सवाल पूछा.

‘‘रखता तो हूं… पर शायद उतना अच्छी तरह से नहीं जितना आप मम्मी का रखते हैं,’’ मनीष की यह बात सुन कर हम सब फिर से हंस पड़े.

‘‘कैसे हो गया यह चमत्कार,’’ मेरी हंसी थमी, तो मैं ने पापा और मम्मी का हाथ प्यार से पकड़ कर हैरान सी हो यह सवाल मानो खुद से ही पूछा था.

‘‘मुझे कारण पता है,’’ मनीष किसी स्कूली बच्चे की तरह हाथ उठा कर बोले तो हम तीनों बड़े ध्यान से उन का चेहरा ताकने लगे थे.

हमारे ध्यान का केंद्र अच्छी तरह बन जाने के बाद उन्होंने शरारती अंदाज में मुसकरातेशरमाते हुए कहा, ‘‘मेरी समझ से इस घर में दामाद के पैरों का पड़ना शुभ साबित हुआ है.’’

फिर हम चारों के सम्मिलित ठहाके से ड्राइंगरूम गूंज उठा.

Indian Women : ‘आर्थिक शोषण की शिकार महिलाएं’ अहम सिलबट्टा नहीं, सिलबट्टी मानसिकता है

Indian Women :  वे थकान की शिकार हो रही हैं, बीमारियों से घिर रही हैं लेकिन उफ भी नहीं कर रहीं, समानता की मांग नहीं कर रहीं. वे यह भी नहीं पूछ पा रहीं कि मेरे कमाए पैसों पर पूरा हक मेरा क्यों नहीं.

पिछले दिनों ओटीटी पर रिलीज हुई हिंदी फिल्म मिसेज मलयालम फिल्म ‘द ग्रेट इंडियन किचन’ की रीमेक है. इस फिल्म को मीडिया ने उतना भाव दिया नहीं जिस की वह हकदार थी. कोई नहीं चाहता खासतौर से मनुवादी मीडिया तो रत्तीभर भी नहीं कि समाज के पौराणिक सचों को उजागर करते साहित्य और फिल्मों पर बात की जाए. यह भक्तमीडिया दलित, शूद्रों की बात करते डरता है. वह स्त्री विमर्श से भी डरता है क्योंकि ये और ऐसे विषय धर्म की रूढ़ियों की और पितृसत्ता की पोल खोलते हैं.

मिसेज इस का अपवाद नहीं है. कैसे और क्यों इस की भरसक अनदेखी की गई. इस से पहले इस की विषयवस्तु थोड़े में ही समझें तो लगता है कि निर्देशक आरती कदव ने रियल लाइफ को रील में ज्यों का त्यों उतार दिया है. कुछ अतिश्योक्तियों के साथ ही सही लेकिन यह केवल पेशे से डांसर ऋचा की ही नहीं बल्कि लगभग हरेक औरत की कहानी है.

ऋचा जब शादी कर पति के घर आती है तो उसे एहसास होता है कि यह परिवार बेहद परंपरावादी है, जिस में घर के पुरुष खाट तोड़ते रहते हैं और महिलाएं घरेलू कामकाज में गुलामों की तरह खटती रहती हैं. यानी परिवार पूरी तरह पितृसत्तात्मक है. वह नौकरी करना चाहती है लेकिन ससुर इस की इजाजत नहीं देता क्योंकि इस से मुफ्त की नौकरानी हाथ से निकल जाती और बहू कमाऊ हो तो शोषण के खिलाफ विद्रोह भी कर सकती है.

एक दृश्य में बड़ी सहजता से दिखाया गया है कि सास कुर्सी तोड़ते ससुर के टूथब्रश में पेस्ट लगा कर देती है. घर की औरतों को मर्दों से पहले खाने की इजाजत नहीं. मुद्दे की बात ससुर का इस बात पर ऋचा को कोसना या नसीहत देना है कि वह सिलबट्टे पर पिसी चटनी ही खाएगा मिक्सी की नहीं. यहां हर कोई या कोई भी सासससुर का पक्ष लेते यह दलील देते फेमिनिज्म का विरोध कर सकता है कि अब तो सिलबट्टा रसोई से गायब है. इस्तेमाल मिक्स्चर ग्राइंडर का ही होता है. बात सही है लेकिन निर्देशक की मंशा दरअसल में सिलबट्टी मानसिकता का उकेरने की है और वह इस में कामयाब भी रही हैं.

कैसे पुरुषों ने महिलाओं की भूमिका सीता और सावित्री तक सीमित कर रखी है. इसे अंतरंग दृश्यों के जरिए भी दिखाया गया है. ऋचा का पति पेशे से डाक्टर है लेकिन फिर भी सैक्स में फोरप्ले की अहमियत नहीं समझता. सहवास के दौरान ऋचा को दर्द होता है तो वह कुछ देर पति को फोरप्ले करने को कहती है, इस पर पति चाहता है कि इस के लिए भी ऋचा उसे उकसाए या उत्तेजित करे. उस का उल्टासीधा बेहूदा सा जबाब सुन कर ऋचा सुबकते हुए सो जाती है.

पीरियड्स के दिनों में भी उस के साथ वही बर्ताव किया जाता है जिस का वर्णन इफरात से धर्मग्रंथों में किया गया है कि इन दिनों में स्त्री अछूत शूद्र होती है. इसलिए उसे जमीन पर चटाई बिछा कर सोना चाहिए. किचन में नहीं जाना चाहिए, पूजापाठ नहीं करना चाहिए और तो और पति का स्पर्श भी नहीं करना चाहिए क्योंकि इस से उस की उम्र कम होती है वगैरहवगैरह.

यह सब बेवजह नहीं है इस के पीछे मंशा औरत को गुलाम बनाए रखने की है. यह ठीक है कि महिलाएं शिक्षित हुई हैं वे नौकरी और व्यापार भी कर रही हैं और हर क्षेत्र में पुरुषों की बराबरी कर रही हैं. लेकिन यह भी सच है कि इतना सब कुछ हो जाने के बाद भी वे पुरुष दासता से मुक्त नहीं हो पाई हैं. बल्कि उन्हें नएनए तौर तरीकों और टोटकों से घेर लिया गया है.

मिसेज तो यह इशारा भर करती है कि मर्दों की कोशिश औरतों को ज्यादा से ज्यादा वक्त रसोई में रखने की है. जिस से उन की ऊर्जा प्रतिभा और वक्त खाना बनाने और खिलाने में जाया हो और इस पर भी तुर्रा यह कि खाना अच्छा नहीं बना. वह ऐसा और वैसा नहीं बना ये ताने किसी भी महिला को गिल्ट से भर देने वाले होते हैं जिन से उस का आत्मविश्वास लड़खड़ाता है.

यही आत्मविश्वास तब भी लड़खड़ता है जब एक कमाऊ महिला के नाम जायदाद तो होती है लेकिन उसे इस का इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं होती. पहचान छिपाए रखने की शर्त का आग्रह करती भोपाल की 40 वर्षीय एक बैंक मैनेजर की माने तो उन की सैलरी एक लाख रुपए महीना है जिस का हिसाबकिताब पति रखते हैं. उन्हें उन के खर्च के लिए महज 20 हजार रुपए महीना दिए जाते हैं.

इस 20 हजार में से भी 8 हजार पैट्रोल में खर्च हो जाते हैं. बाकी 12 हजार में उन्हें अपनी व्यक्तिगत जरूरतें पूरी करनी होती हैं. जिन में मेकअप के अलावा बैंक की टी पार्टी से ले कर सैनेटरी नेपकिन तक के खर्च शामिल हैं. कंडोम अपनी इच्छा और जरूरत के मुताबिक पति ले आते हैं.

सभी नौकरीपेशा महिलाओं की यही हालत, वे तल्ख लहजे में बताती हैं कि बैंक में नौकरीपेशा महिलाओं के एकाउंट्स का लेनदेन अधिकतर पुरुष ही करते हैं. एक महिला प्रोफैसर का उदाहरण देते वे कहती हैं कि सैलरी डेढ़ लाख क्रेडिट होते ही एक लाख रुपए पति के एकाउंट में ट्रांसफर हो जाते हैं. बाकी बचे 50 हजार में से 15 हजार कार की किश्त के कट जाते हैं बचे 35 हजार में से प्रोफैसर साहिबा भी पैट्रोल, ब्यूटीपार्लर आदि पर खर्च करती हैं. इस के बाद भी उन के खाते में 8-10 हजार रुपए बच ही जाते हैं.

निश्चित रूप से किसी एक बैंक के एक या दो उदाहरणों को व्यक्तिगत रूप से हासिल कर यह सिद्ध नहीं किया जा सकता कि कमाऊ महिलाएं दूसरे कई शोषण के साथ आर्थिक शोषण का भी शिकार हैं. लेकिन यह नपातुला सच है कि नौकरीपेशा महिलाओं के नाम पर ज्यादा से ज्यादा लोन लिए जा रहे हैं इन में पर्सनल सहित कार और होमलोन भी शामिल हैं. इस से उन की कमाई किश्तों के जरिए ठिकाने लग जाती है जबकि खरीदी गई जायदाद का इस्तेमाल पुरुष करते हैं. इन में भी पति अव्वल हैं.

भोपाल के ही एक डाक्टर दंपति का उदाहरण इसे साबित करता है. इस मामले में दोनों की सैलरी लगभग बराबर है. लेकिन 40 लाख का होमलोन पत्नी के नाम पर लिया गया है जिस की इंस्टालमेंट 50 हजार रुपए महीने कटती है. खरीदे गए फ्लैट में पति के पेरेंट्स रहते हैं जबकि पतिपत्नी को सरकारी आवास मिला हुआ है.

डाक्टर पति अपना पैसा कहीं भी कैसे भी खर्च करे या जमा रखे इस पर टिप्पणी करना बेकार है पर उन की पत्नी एक तरह से सासससुर को 50 हजार रुपए महीने का दहेज ही दे रही है. अगर कभी वे अपने पेरेंट्स को शहर के फ्लैट में रखना चाहें तो क्या पति अपनी सैलरी पर 40 लाख का लोन ले कर 50 हजार रुपए की किश्त कटवाने तैयार होगा.

इसे बड़े फ्रेम में समझने आरबीआई का 28 फरवरी को जारी वह आंकड़ा काफी है. जिस में बताया गया है कि 2024-25 के 9 महीनों में बैंकों के गोल्ड लोन पोर्टफोलियो में 71.3 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. इस दौरान ज्वैलरी सहित गोल्ड लोन बढ़ कर 1.72 लाख करोड़ का हो गया है. यह बढ़ोतरी पिछले वित्त वर्ष में महज 17 फीसदी थी.

दो टूक कहा जाए तो यह महिलाओं को कंगाल करने या उन से पैसा छीनने का काम है. सदियों से पुरुष महिलाओं के गहनों पर नजर गड़ाए रहे हैं क्योंकि यही उन की संपत्ति होती थी जिसे कानूनन स्त्रीधन कहा जाता है.

कांग्रेस भले ही इस गोल्ड लोन को ले कर भाजपा सरकार को घेरे लेकिन उसे बयानबाजी के दायरे से बाहर लाने में नाकाम रही है. वह औरतों को यह हकीकत नहीं बता पा रही कि दरअसल आज भी पुरुष मनुस्मृति के इस सूत्र पर चल रहा है कि स्त्री को संपत्ति रखने का अधिकार नहीं. जबकि संविधान महिलाओं को संपत्ति का अधिकार देता है. इस पर जाने क्यों राहुल गांधी, मनुस्मृति और संविधान की तुलना नहीं कर पा रहे.

बड़ी तादाद में महिलाओं से सोना गहने छीन कर बैंकों में नहीं रखे जा रहे बल्कि महिलाओं का आत्मविश्वास गिरवी रखा जा रहा है और महिलाएं कुछ नहीं बोल पा रहीं. क्योंकि उन्हें घर नाम की इमारत की फिक्र ज्यादा है जिस के अंदर वे खुद को महफूज समझने का भ्रम पाले हुए हैं. वे कभी मिसेज फिल्म की ऋचा बनने का जोखिम नहीं उठा सकतीं जो फिल्म के आखिर में ससुर और पति के चेहरों पर रसोई का गंदा पानी फेंक कर चली गई थी और डांस टीचर बन गई थी.

रियल की औरतें घरों में पूजापाठ कर रही हैं और सड़कों पर कलश यात्रा में कलश ढो रही हैं. पति और बच्चों को उन के बिस्तर तक चायनाश्ता पहुंचा रही हैं. 8 घंटे रसोई और घर के कामकाज में खट रही हैं. अगर नौकरीपेशा हैं तो 9 घंटे दफतर में भी काम कर रही हैं. वे थकान की शिकार हो रही हैं, बीमारियों से घिर रही हैं लेकिन उफ भी नहीं कर रहीं. समानता की मांग नहीं कर रहीं. वे यह भी नहीं पूछ पा रहीं कि मेरे कमाए पैसों पर पूरा हक मेरा क्यों नहीं.

पंडालों में विराजे साधुसंत और बाबा उन्हें समझाते हैं कि स्त्री महान होती है, वह धरा है उस की सहनशक्ति असीम है. वह जननी है, आदिशक्ति है, वह पूज्यनीय है क्योंकि वह त्याग करती है. ठीक यही बातें 8 मार्च को देशभर में धर्म के ठेकेदारों की तरह फेमिनिज्म के ठेकेदारों ने भी घुमाफिरा कर अभिजात्य भाषा में कहीं थीं. उन का भी सार यही था कि जुती रहो, विद्रोह मत करो वह व्यर्थ जाएगा. हां भड़ास चाहे जितनी सम्मान के इन मंचों से निकाल लो उस से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला क्योंकि ये मंच असल में हैं ही इसीलिए.

USA : फिर अफगानिस्तान में अमेरिका

USA : अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अफगानिस्तान के बगराम एयरबेस पर अमेरिकी सेना को वापस भेजने का इरादा जताया है. एक तरफ तो खपती ट्रंप कहते हैं कि वे दूसरे देशों में अमेरिका को उलझाएंगे नहीं और दूसरी तरफ गाजा में अमेरिकी टूरिस्ट स्पौट बनाएंगे का सपना दिखा रहे हैं और अब कह रहे हैं कि अफगानिस्तान का पूर्व अमेरिकी बेस बगराम का नियंत्रण जो चीन के हाथ आ गया है वापस लेंगे. यह अमेरिका के लिए परेशानी पैदा कर सकता है. अमेरिका न सिर्फ बगराम पर अपना कब्जा चाहता है बल्कि उस ने अब तक अफगानिस्तान में जो खतरनाक हथियार भेजे अब उन्हें भी वापस पाने के लिए मांग कर रहा है. अमेरिका करीब 7 अरब डौलर के अमेरिकी सैन्‍य हथियार तालिबानी सेना के पास भागते हुए छोड़ गया था. इस में करीब 8 लाख राइफलें और 70 हजार आर्मर्ड ट्रक शामिल हैं.

बगराम बेस अफगानिस्तान के परवान प्रांत में स्थित है जो करीब 2 दशक तक अमेरिकी सेना का सब से बड़ा सैन्य अड्डा था. इस बेस को साल 1950 के दशक में शीतयुद्ध के दौरान सोवियत संघ ने बनाया था. अफगानिस्तान में साल 1979 में हमले के बाद यह बेस रूसी सेना का मुख्य ठिकाना बन गया था. सोवियत संघ के जाने के बाद अमेरिका ने साल 2001 में बगराम बेस पर कब्‍जा कर लिया था. बगराम में अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए द्वारा अलकायदा के आतंकवादियों से पूछताछ की जाती थी. इस विशाल बेस में 10,000 अमेरिकी सैनिकों के रहने की क्षमता थी, जिस में स्विमिंग पूल, सिनेमा, स्पा और बर्गर किंग जैसे रेस्तरां भी शामिल थे.

चीन की नजर भी अफगानिस्तान के अरबों डौलर के लिथियम भंडार और तेल तथा खनिजों पर है.

BJP : किस काम की इतनी कट्टरता ?

BJP : उत्तर प्रदेश की सरकार ने बलिया जिले में मैडिकल कालेज बनाने का फैसला लिया है. भाजपा विधायक केतकी सिंह ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को बधाई देते मांग की है कि मैडिकल कालेज में मुसलिमों के इलाज के लिए अलग विंग बने. केतकी सिंह ने 2022 में पहली बार बलिया के बांसडीह विधानसभा से चुनाव लड़ा था. समाजवादी पार्टी के दिग्गज रामगोविंद चौधरी को हराया था.

केतकी सिंह ने कहा, ‘मुसलमानों को होली, रामनवमी और दुर्गा पूजा में दिक्कत होती है, तो उन्हें इलाज करने में भी परेशानी हो सकती है. मैं महाराज जी से मांग करती हूं कि जब इतना खर्च हो ही रहा है, तो एक अलग बिल्डिंग या एक अलग विंग बना दी जाए जहां वे अपना इलाज कराएं.

‘इस तरह की व्यवस्था की जाए ताकि हिंदू समुदाय के लोग सुरक्षित महसूस कर सकें, क्योंकि न जाने किस पर क्या थूक-थूका कर हमें मिल जाए, तो इन सब से हम बच जाएं’. केतकी सिंह के इस बयान से राजनीतिक गलियारों में विवाद बढ़ गया. इस की तरहतरह से आलोचना होने लगी.

आमतौर पर महिलाओं के बारे में यह कहा जाता है कि वे कट्टरपन से दूर रहती हैं. धार्मिक कट्टरपन का सब से अधिक प्रभाव महिलाओं पर ही पडता है. खासतौर पर सवर्ण बिरादरी की महिलाओं को धर्म ने बेडियां पहना दी हैं. महिलाएं जब राजनीति में आती हैं तो उन को महिलाओं के हित में आवाज उठानी चाहिए. समाज में महिलाओं की हालत दलितों से बेहतर नहीं है.

इन महिलाओं को माहवारी के दिनों में अछूत बना कर रखा जाता है. राजनीति में ये केवल शोपीस बनी रहती हैं. उत्तर प्रदेश में भाजपा ने किसी महिला विधायक को कोई महत्त्वपूर्ण विभाग नहीं दिया है. पार्टी संगठन में कोई प्रभावी पद उन के पास नहीं है. प्रदेश में भाजपा ने कोई महिला मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष नहीं बनाया है.

बलिया का यह मैडिकल कालेज चित्तू पांडेय के नाम पर बन रहा है. विधायक केतकी सिंह ने सरकार के इस प्रयास को अपने बयान से धूमिल कर दिया है. चित्तू पांडे को ‘शेर ए बलिया’ के नाम से जाना जाता है. वे स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और बलिया में एक समानांतर सरकार बना ली थी.

चित्तू पांडे ने 1942 में बलिया को अंगरेजों की सत्ता से मुक्त कराने का प्रयास किया था. वे गांधीवादी विचारधारा से प्रभावित थे. उन के नाम मैडिकल कालेज बनने से होने वाली खुशी से कहीं अधिक दुख उन को विधायक केतकी सिंह के बयान को सुन कर हो रहा होगा.

Health Update : आयोडीन की कमी सेंधा नमक कितना जिम्मेदार ?

Health Update : व्रत रहने वाले लोग सेंधा नमक का बहुत प्रयोग करते है. कम लोगों को पता है कि सेंधा नमक में आयोडीन नहीं होता है. जो लोग सेंधा नमक का प्रयोग ज्यादा करते है उन में आयोडीन की कमी हो सकती है. जिस सेंधा नमक को सही माना जाता है वह सेहत के लिए उतना उपयोगी नहीं होता. आयोडीन की कमी बहुत पहले से चल रही है. इस के कारण ही देश में खुले नमक की बिक्री पर रोक लगा दी गई थी.

आज कई तरह के पैकेट वाले नमक बाजार में बिक रहे हैं. जो कीमत में सौ रुपए तक हैं. ये सभी शरीर में आयोडीन की मात्रा को पूरा करने का दावा करते हैं. नमक का बड़ा बाजार बन गया है. पैकेटबंद नमक के बाद भी लोगों को आयोडीन की कमी होने लगी है. भारत के सौल्ट कमिश्नर औफिस के अनुसार, देश के लगभग 20 करोड़ से ज्यादा लोगों को आयोडीन डैफिशिएंसी डिसऔर्डर का खतरा है.

7 करोड़ से ज्यादा लोग घेंघा से और आयोडीन की कमी से होने वाले अन्य डिसऔर्डर से जूझ रहे हैं. आयोडीन एक ऐसा मिनरल जो शरीर को बहुत कम मात्रा में चाहिए. इस के बावजूद, यह शरीर को स्वस्थ रखने में अहम भूमिका निभाता है. आयोडीन की कमी होने पर घेंघा रोग के पनपने का जोखिम बढ़ सकता है. ऐसा होने पर शरीर मूड स्विंग्स और चिड़चिड़ाहट जैसे इशारे करता है.

जानकार लोग 5 ग्राम नमक ही खाने की सलाह देते हैं. विश्व स्तर पर सब से अधिक 17 ग्राम नमक चीन के लोग खाते हैं. भारत के लोग 15 ग्राम, दक्षिण कोरिया के लोग 12 ग्राम, सिंगापुर 11 ग्राम, श्रीलंका, मलेशिया और जापान के लोग 10 ग्राम नमक का ही प्रयोग करते हैं. ज्यादा नमक का सेवन ब्लडप्रैशर को भी बढाता है. नमक शरीर के लिए जरूरी है पर इस की मात्रा का खयाल रखना चाहिए.

Online Hindi Story : जिंदगी की कश्मकश

Online Hindi Story : आज बेला सोच रही थी कि जिंदगी में कितनी कश्मकश है…एक प्रदीप है जो उससे बात नहीं करता है रिलेशन में होने के बावजूद और बेला को भी लगने लगा था कि शायद अब उसको अपनी जिंदगी में आगे बढ़ना चाहिए क्योंकि इस रिश्ते में कुछ भी नहीं रह गया है और प्रदीप उससे शादी भी नहीं करेगा….शायद इसलिए जब उसके औफिस में काम करने वाले राजेश ने बेला को प्रपोज किया और कहा कि वो उससे शादी करना चाहता है तो कुछ दिन सोचने के बाद बेला ने शादी के लिए हां कर दी थी. बेला ने अपनी दोस्त को सबकुछ बताया और उससे पूछा कि मैं क्या करूं बेला को उसकी दोस्त ने यही कहा कि बेला तुम अब इन सब प्यार- व्यार के झंझट से बाहर निकलो और लाइफ में आगे बढ़ो और अगर कमाने वाला एक ….वो इंग्लिश में कहते हैं न कि वेल सेटल्ड लड़का मिल रहा है तो उसे हां कर दो. ऐसे लड़के या रिश्ते बार-बार नहीं मिलते लेकिन…..बेला के मन  में  एक बात थी वो राजेश को जानती ही कितना थी जबकि प्रदीप के साथ उसका रिश्ता 4 सालों का था…

लेकिन बेला ने राजेश को हां करते वक्त कहा था कि वो शादी के लिए तैयार है लेकिन अब रिलेशन का झाम नहीं चाहिए जो होगा शादी के बाद होगा और इससे पहले वो नार्मल ही बात करेगी. अपनी जिंदगी में इन सारी कश्मकश से जूझ रही बेला बहुत तनाव में हो गई थी क्योंकि 4-5 दिन में प्रदीप भी कौल कर ही लेता था बेला को. बेला से प्रदीप की रोज बात न हो पाने के कारण जब राजेश जब बेला को फोन करता था तो बेला उससे बातें कर लेती थी और उसे अच्छा लगने लगा था.. लेकिन अपने पहले रिलेशन से निकलना बेला के लिए इतना आसान नहीं था. बेला नार्मल बातें करना चाहती थी राजेश से लेकिन राजेश उससे इतना प्यार करने लगा था कि प्यार भरी बातें ही करता था और बेला अभी उससे ऐसी बातें नहीं करना चाहती थी. ऐसा नहीं था कि राजेश को बेला के पहले रिलेशनशिप के बारे में पता नहीं था उसे सब पता था, लेकिन जब भी बेला उससे कहती की यार मैं अभी आपके साथ इतना नहीं खुल सकती तो राजेश कहता की उसे बुरा लगता है और उसकी फिलिंग हर्ट होती हैं. वो अपनी फिलिंग बता देता लेकिन जब भी बेला अपनी बातें बताती तो राजेश को लगता कि वो उसके सामने रिश्ते में शर्त रख रही है.

राजेश शायद नहीं समझ पा रहा था बेला स्थिति को उसने खुद भी कुछ शर्त रखी थी लेकिन उसे बस पता नहीं था कि उसने भी शर्त रखी है. हालांकि उसकी शर्त छोटी थी जो उसको सिर्फ बातें लग रही थीं…और इधर प्रदीप बेला को बिल्कुल भी समय नहीं दे रहा था इसलिए बेला उससे बिल्कुल दूर हो चुकी थी. बेला अब ये सोचने लगी थी कि जिंदगी में कितनी उलझनें हैं और कितनी कश्मकश है. वो सोचने लगी थी कि शायद अब वो किसी रिश्ते में नहीं रह पाएगी क्योंकि राजेश जब भी कुछ प्यार की बातें करता तो बेला कहती कि जो भी होगा शादी के बाद होगा और ये चीजें राजेश को बुरी लगती. राजेश बेला से कहता कि पता नहीं जिंदगी में आगे जिंदा रहूं ना रहूं, पता नहीं फ्यूचर में हालात कैसे होंगे? अभी जो जिंदगी है उसको जी लो….

बेला को फिर एक बार वही बात सुनने को मिली जो प्रदीप ने कह-कह कर उसके साथ चार साल बिता लिए थे और बेला तो शादी के सपने ही देखती रही. राजेश से तो बेला ने शादी के लिए हां कहा था ये सोचकर कि राजेश शादी करेगा क्योंकि राजेश ने कहा था की मैं तुम्हारे पापा से बात करूंगा,लेकिन एक बार फिर बेला उसी रिलेशनशिप के झाम में फसती हुई खुद को महसूस कर रही थी….और इस कश्मकश में फस चुकी थी…

Hindi Kahani : देवर – मंजू के सामने कैसे आई उस के देवर की असलियत

Hindi Kahani : प्रदीप को पति के रूप में पा कर मंजू के सारे सपने चूरचूर हो गए. प्रदीप का रंग सांवला और कद नाटा था. वह मंजू से उम्र में भी काफी बड़ा था. मंजू ज्यादा पढ़ीलिखी तो नहीं थी, मगर थी बहुत खूबसूरत. उस ने खूबसूरत फिल्मी हीरो जैसे पति की कल्पना की थी.

प्रदीप सीधासादा और नेक इनसान था. वह मंजू से बहुत प्यार करता था और उसे खुश करने के लिए अच्छेअच्छे तोहफे लाता था. मगर मंजू मुंह बिचका कर तोहफे एक ओर रख देती. वह हमेशा तनाव में रहती. उसे पति के साथ घूमनेफिरने में भी शर्म महसूस होती. मंजू तो अपने देवर संदीप पर फिदा थी. पहली नजर में ही वह उस की दीवानी हो गई थी.

संदीप मंजू का हमउम्र भी था और खूबसूरत भी. मंजू को लगा कि उस के सपनों का राजकुमार तो संदीप ही है. प्रदीप की नईनई नौकरी थी. उसे बहुत कम फुरसत मिलती थी. अकसर वह घर से बाहर ही रहता. ऐसे में मंजू को देवर का साथ बेहद भाता. वह उस के साथ खूब हंसीमजाक करती.

संदीप को रिझाने के लिए मंजू उस के इर्दगिर्द मंडराती रहती. जानबूझ कर वह साड़ी का पल्लू सरका कर रखती. उस के गोरे खूबसूरत बदन को संदीप जब चोर निगाहों से घूरता तो मंजू के दिल में शहनाइयां बज उठतीं. वह चाहती कि संदीप उस के साथ छेड़छाड़ करे मगर लोकलाज के डर और घबराहट के चलते संदीप ऐसा कुछ नहीं कर पाता था.

संदीप की तरफ से कोई पहल न होते देख मंजू उस के और भी करीब आने लगी. वह उस का खूब खयाल रखती. बातोंबातों में वह संदीप को छेड़ने लगती. कभी उस के बालों में हाथ फिराती तो कभी उस के बदन को सहलाती. कभी चिकोटी काट कर वह खिलखिलाने लगती तो कभी उस के हाथों को अपने सीने पर रख कर कहती, ‘‘देवरजी, देखो मेरा दिल कैसे धकधक कर रहा है…’’ जवान औैर खूबसूरत भाभी की मोहक अदाओं से संदीप के मन के तार झनझना उठते. उस के तनबदन में आग सी लग जाती. वह भला कब तक खुद को रोके रखता. धीरेधीरे वह भी खुलने लगा.

देवरभाभी एकदूसरे से चिपके रहने लगे. दोनों खूब हंसीठिठोली करते व एकदूसरे की चुहलबाजियों से खूब खुश होते. अपने हाथों से एकदूसरे को खाना खिलाते. साथसाथ घूमने जाते. कभी पार्क में समय बिताते तो कभी सिनेमा देखने चले जाते. एकदूसरे का साथ उन्हें अपार सुख से भर देता. दोनों की नजदीकियां बढ़ने लगीं. संदीप के प्यार से मंजू को बेहद खुशी मिलती. हंसतीखिलखिलाती मंजू को संदीप बांहों में भर कर चूम लेता तो कभी गोद में उठा लेता. कभी उस के सीने पर सिर रख कर संदीप कहता, ‘‘इस दिल में अपने लिए जगह ढूंढ़ रहा हूं. मिलेगी क्या?’’

‘‘चलो देवरजी, फिल्म देखने चलते हैं,’’ एक दिन मंजू बोली. ‘‘हां भाभी, चलो. अजंता टौकीज में नई फिल्म लगी है,’’ संदीप खुश हो कर बोला और कपड़े बदलने के लिए अपने कमरे में चला गया.

मंजू कपड़े बदलने के बाद आईने के सामने खड़ी हो कर बाल संवारने लगी. अपना चेहरा देख कर वह खुद से ही शरमा गई. बनठन कर जब वह निकली तो संदीप उसे देखता ही रह गया. ‘‘तुम इस तरह क्या देख रहे हो देवरजी?’’ तभी मंजू इठलाते हुए हंस कर बोली.

अचानक संदीप ने मंजू को पीछे से बांहों में भर लिया और उस के कंधे को चूम कर बोला, ‘‘बहुत खूबसूरत लग रही हो, भाभी. काश, हमारे बीच यह रिश्ता न होता तो कितना अच्छा होता?’’ ‘‘अच्छा, तो तुम क्या करते?’’ मंजू शरारत से बोली.

‘‘मैं झटपट शादी कर लेता,’’ संदीप ने कहा. ‘‘धत…’’ मंजू शरमा गई. लेकिन उस के होंठों पर मादक मुसकान बिखर गई. देवर का प्यार जताना उसे बेहद अच्छा लगा.

खैर, वे दोनों फिल्म देखने चल पड़े. फिल्म देख कर जब वे बाहर निकले तो अंधेरा हो चुका था. वे अपनी ही धुन में बातें करते हुए घर लौट पड़े. उन्हें क्या पता था कि 2 बदमाश उन का पीछा कर रहे हैं.

रास्ता सुनसान होते ही बदमाशों ने उन्हें घेर लिया और बदतमीजी करने लगे. यह देख कर संदीप डर के मारे कांपने लगा. ‘‘जान प्यारी है तो तू भाग जा यहां से वरना यह चाकू पेट में उतार दूंगा,’’

एक बदमाश दांत पीसता हुआ संदीप के आगे गुर्राया. ‘‘मुझे मत मारो. मैं मरना नहीं चाहता,’’ संदीप गिड़गिड़ाने लगा.

‘‘जा, तुझे छोड़ दिया. अब फूट ले यहां से वरना…’’ ‘‘मुझे छोड़ कर मत जाओ संदीप. मुझे बचा लो…’’ तभी मंजू घबराए लहजे में बोली.

लेकिन संदीप ने जैसे कुछ सुना ही नहीं. वह वहां से भाग खड़ा हुआ. सारे बदमाश हो… हो… कर हंसने लगे. मंजू उन की कैद से छूटने के लिए छटपटा रही थी पर उस का विरोध काम नहीं आ रहा था.

बदमाश मंजू को अपने चंगुल में देख उसे छेड़ते हुए जबरदस्ती खींचने लगे. वे उस के कपड़े उतारने की फिराक में थे. ‘‘बचाओ…बचाओ…’’ मंजू चीखने लगी.

‘‘चीखो मत मेरी रानी, गला खराब हो जाएगा. तुम्हें बचाने वाला यहां कोई नहीं है. तुम्हें हमारी प्यास बुझानी होगी,’’ एक बदमाश बोला. ‘‘हाय, कितनी सुंदर हो? मजा आ जाएगा. तुम्हें पाने के लिए हम कब से तड़प रहे थे?’’ दूसरे बदमाश ने हंसते हुए कहा.

बदमाशों ने मंजू का मुंह दबोच लिया और उसे घसीटते हुए ले जाने लगे. मंजू की घुटीघुटी चीख निकल रही

थी. वह बेबस हो गई थी. इत्तिफाक से प्रदीप अपने दोस्त अजय के साथ उसी रास्ते से गुजर रहा था. चीख सुन कर उस के कान खड़़े हो गए.

‘‘यह तो मंजू की आवाज लगती है. जल्दी चलो,’’ प्रदीप अपने दोस्त अजय से बोला. दोनों तेजी से घटनास्थल पर पहुंचे. अजय ने टौर्च जलाई तो बदमाश रोशनी में नहा गए. बदमाश मंजू के साथ जबरदस्ती करने की कोशिश कर रहे थे. मंजू लाचार हिरनी सी छटपटा रही थी.

प्रदीप और अजय फौरन बदमाशों पर टूट पड़े. उन दोनों ने हिम्मत दिखाते हुए उन की पिटाई करनी शुरू कर दी. मामला बिगड़ता देख बदमाश भाग खडे़ हुए, लेकिन जातेजाते उन्होंने प्रदीप को जख्मी कर दिया. मंजू ने देखा कि प्रदीप घायल हो गया है. वह जैसेतैसे खड़ी हुई और सीने से लग कर फूटफूट कर रो पड़ी. उस ने अपने आंसुओं से प्रदीप के सीने को तर कर दिया.

‘‘चलो, घर चलें,’’ प्रदीप ने मंजू को सहारा दिया. उन्हें घर पहुंचा कर अजय वापस चला गया. मंजू अभी भी घबराई हुई थी. पर धीरेधीरे वह ठीक हुई.

‘‘यह क्या… आप के हाथ से तो खून बह रहा है. मैं पट्टी बांध देती हूं,’’ प्रदीप का जख्म देख कर मंजू ने कहा. ‘‘मामूली सा जख्म है, जल्दी ठीक हो जाएगा,’’ प्रदीप प्यार से मंजू को देखते हुए बोला.

मंजू के दिल में पति का प्यार बस चुका था. प्रदीप से नजर मिलते ही वह शरमा गई. वह मासूम लग रही थी. उस का प्यार देख कर प्रदीप की आंखें छलछला आईं. बीवी का सच्चा प्यार पा कर प्रदीप के वीरान दिल में हरियाली छा गई. वह मंजू को अपनी बांहों में भरने के लिए मचल उठा.

इतने में मंजू का देवर संदीप सामने आ गया. वह अभी भी घबराया हुआ था. बड़े भाई के वहां से जाने के बाद संदीप ने अपनी भाभी का हालचाल पूछना चाहा तो मंजू ने उसे दूर रहने का इशारा किया. ‘‘तुम ने तो मुझे बदमाशों के हवाले कर ही दिया था. अगर मेरे पति समय पर न पहुंचते तो मैं लुट ही गई थी. कैसे देवर हो तुम?’’ जब मंजू ने कहा तो संदीप का सिर शर्म से झुक गया.

इस एक घटना ने मंजू की आंखें खोल दी थीं. अब उसे अपना पति ही सच्चा हमदर्द लग रहा था. वह अपने कमरे में चली गई और दरवाजा बंद कर लिया.

Best Hindi Story : लाइकेन – काम वाली गीता की अनोखी कहानी

Best Hindi Story : पटना से दिल्ली की द्वारका कालोनी के इस घर में शिफ्ट हुए 8 दिन हो गए थे. घर पूरी तरह सैट हो कर चमक रहा था. लेकिन मैं अस्तव्यस्त, बेरौनक हुई जा रही थी. वजह वही जो हर तबादले के बाद झेलती आई हूं. अच्छी कामवाली मिल नहीं पा रही थी. कुछ मुझे पसंद नहीं आ रही थीं, कुछ को मेरा ‘एक घर एक बाई’ वाला फार्मूला रास नहीं आ रहा था.

‘‘नहीं जी, एक घर से कैसे पेट भरेगा? 5 जगह काम करती हूं तो

5 जगह चायनाश्ता, तीजत्योहार में कपड़े, गिफ्ट वगैरह मिलते हैं.’’

‘हुंह, एक घर के काम का समय तो इन्हें एक घर से दूसरे घर जाने में ही निकल जाता है, यह उन्हें नहीं दिखता. ऊपर से 5 जगह दौड़ने में पैर घिसते हैं, थकान होती है, 5 जगह बातें सुननी पड़ती हैं, वह नहीं,’ कुढ़ती हुई मैं बुदबुदाई.

शादी के बाद जब मैं आई थी तो इन बाइयों ने उस वक्त भी मेरी नाक में दम कर रखा था. एक तो उम्र कम, फिर साफसफाई की बीमारी. वे हम से हैंडल ही नहीं हो पातीं.

‘‘आज वहां जल्दी जाना है. कल आप के यहां देर से आऊंगी. उन के यहां सामान ज्यादा है. बस, सामनेसामने पोंछा लगाना पड़ता है. आप के खाली घर में तो सफाई करने में ही थक जाती हूं. आप बरतन देखदेख कर जमवाती हैं. अरोड़ा मैम तो सोई रहती हैं, मैं सारा काम निबटा आती हूं.’’

सुनसुन कर मैं परेशान हो जाती. मैं तो अरोड़ा मैडम नहीं बन सकती. उस दिन उन के यहां गई थी. किचन का सिंक सड़ांध मार रहा था. जिस कप में चाय लाई, वह भी चिपचिपा था. मुझ से तो चाय पी ही नहीं गई.

फिर उन का भेदिये जैसा सवाल, ‘जमुना आप के यहां बरतन जमाती है? कपड़े मशीन में डालती है? शाम को किचन व हौल में पोंछा लगाती है?’ ‘हां’ बोलने पर जमुना शाम को मुंह फुलाए घुसती, ‘आप ने अरोड़ा मैडम को क्या बतलाया, अब वे भी सब काम करवाएंगी. अगर गलती से ना बोलो तब वे मैडम नाराज, ‘आप पैसा ज्यादा दे कर यहां का रेट बिगाड़ रही हैं.’

थक कर मैं ने एक अलग कामवाली रखने का निर्णय लिया. इस के लिए भले ही मुझे दोगुना या तीनगुना पैसे देने पड़े. अपने दूसरे खर्चों में मैं कटौती कर लूंगी.

इतवार की सुबह थी. सब अलसाए से सो रहे थे. मैं झाड़ू लगा रही थी कि तभी दरवाजे की घंटी बजी.

‘‘बिट्टू, दरवाजा खोलो, दूध वाला होगा.’’

साहबजादे कुनमुनाते हुए उठे और दिन होता तो मजाल था वह उठ जाए. वह तो अभी काम के ओवरलोड की वजह से मैं फुलचार्ज रहती थी. कभी भी किसी पर फट सकती थी, इसी कारण सब डरे रहते.

‘‘मम्मा, अनूप अंकल आए हैं.’’

अनूप, इन का ड्राइवर. आज इस वक्त, कहीं इन्हें आज भी तो नहीं जाना है. मेरा नाश्ता भी नहीं बना. इसी उधेड़बुन में बाहर आई.

‘‘नमस्ते मैडम, यह गीता है. काम ढूंढ़ रही है. बिहार की ही है, पास की ही बस्ती में रहती है.’’

अनूप ने ‘बिहार की ही है’ पर जोर देते हुए कहा. जैसे बिहार का नाम सुनते ही मैं किसी को भी सिरआंखों पर बैठा लूंगी.

‘‘नमस्ते आंटी,’’ आवाज सुन कर मैं ने उस की तरफ देखा, लंबी, छरहरी, सांवली सी, बड़ीबड़ी आंखों में हलका काजल, संवरी भौंहें, करीने से कढ़े बाल, सुंदर व कीमती सूट पहने 25-26 साल की लड़की मुसकराती हुई खड़ी थी.

‘यह कामवाली है,’ मैं ने मन ही मन सोचा और तब मुझे ध्यान आया कि मैं एक फटीचर नाइटी में अब तक हाथ में झाड़ू लिए खड़ी थी.

हड़बड़ा कर मैं ने झाड़ू नीचे पटकी. शुक्र है कि अनूप ने मुझ से पहले बात कर ली, नहीं तो ये तो मुझे बाई ही समझ बैठती.

अनूप को विदा कर गीता को भीतर बुलाया. रसोई में चाय उबल रही थी. उस के लिए भी थोड़ा पानी डाला. एक कप इन्हें कमरे में दे आई, 2 कप चाय उसे लाने को कह मैं सोफे पर बैठ गई.

‘‘एक ही घर में काम करना होगा,’’ मैं ने अपनी शर्त सुनाई.

‘‘हां जी, मैं तो एक घर से ज्यादा कर भी नहीं सकती. अपने घर का भी तो काम रहता है. वो तो क्या है कि  बाहर निकलने से थोड़ा मन भी बदल जाता है और थोड़ी कमाई भी हो जाती है,’’ बिलकुल दिल्ली वाले अंदाज में उस ने जवाब दिया.

‘‘शादी हो गई?’’

‘‘और क्या, 3 बच्चे हैं.’’

‘‘क्या, 3 बच्चे! कब हुई शादी, कितनी उम्र है तुम्हारी?’’

‘‘आंटी, हमारे यहां बेटी को 16 साल से ज्यादा कोई नहीं रखता. बहुत शिकायत होती है. मेरी शादी 15 वर्ष में हुई. 17 में गौना. 18 में बेटी. 2-2 साल के अंदर

2 और बेटे. 10 साल की बेटी है मेरी. यहां शहरों में 30-30 साल तक सब लड़की को घर में बैठाए रखते हैं,’’ कहती हुई उस ने ऐसा मुंह बनाया जैसे किसी ने उस के मुंह में पूरा नीबू निचोड़ दिया हो.

संयोग से उसी वक्त मेरी 17 वर्षीय बेटी धीगड़ी सी कानों में ईयर फोन लगाए गुनगुनाती हुई बाथरूम से बाहर निकली. उसे अभी इस वक्त गीता के सामने हाफपैंट और टौप में देख कर मैं ही बुरी तरह सकपका गई. शीघ्रता से बात खत्म कर के मैं ने उसे काम समझाया और बाथरूम में जा घुसी. इस लड़की की सजधज ने तो हमारे अंदर भी एक हीनभावना भर दी. पता नहीं काम कैसे करवाऊंगी.

जितनी उत्कृष्ट थी उस की साजसज्जा उतना ही उत्कृष्ट था उस का पहनावा. गजब की पसंद थी उस की. साड़ी हो या सलवारकमीज, एक बार नजर ठहर ही जाती थी. घर का पूरा काम करने के बाद भी मजाल है कि उस की साड़ी की एक भी मांग इधरउधर हो जाए. उस के कारण मुझे अपनेआप को बहुत बदलना पड़ा.

बच्चे मजाक भी करते, ‘‘पापा 26 साल में मां की आदत नहीं सुधार पाए लेकिन गीता ने 36 दिनों में ही उन्हें सुधार दिया, जय हो गीता की.’’

गीता को काम करते हुए 2 महीने ही हुए थे. देवरदेवरानी बच्चों के साथ आए. सुबहसुबह हौल में पूरा परिवार इकट्ठा धमाचौकड़ी मचा रहा था, तभी गीता दाखिल हुई. देवर सोफे पर लेटे थे, हड़बड़ा कर उठ बैठे. मैं आंखों से उन्हें मना कर रही थी तब तक उन्होंने हाथ जोड़ कर उसे नमस्ते कर दिया. सब अपनी हंसी दबाए बैठे रहे. बाद में तो बच्चों ने जम कर उन की खिंचाई की.

ऐसे तो गीता पर दोनों वक्त खाना बनाने के साथसाथ सुबह नाश्ते की भी जिम्मेदारी थी, लेकिन इन्हें साढ़े 8 बजे निकलना होता और दीपू की स्कूल बस तो 8 बजे ही आ जाती थी. इसी कारण सुबह मुझे रसोई में घुसना पड़ता. गीता ने सब्जी काट कर मुझे पकड़ाई और आटा निकालने गई तब तक मैं ने एकतरफ सब्जी छौंकी, दूसरी तरफ चाय चढ़ा दी.

‘‘आज फिर उस ने मारपीट की,’’ गीता बोली.

‘‘बच्चों ने?’’ मैं ने सहजता से पूछा.

‘‘नहीं, मेरे आदमी ने, पुलिस पकड़ कर ले गई.’’

‘‘क्या, अब क्या होगा?’’ मेरे स्वर में चिेंता थी.

‘‘होगा क्या, मालिक जाएंगे छुड़ाने. साल में 3 बार का यही धंधा है.’’ गूंधे आटे को मुट्ठी से और चोट दे कर मुलायम करती हुई उस ने बेफिक्री से कहा.

‘‘मालिक कौन?’’

‘‘वही, जिन के यहां रहती हूं.’’

‘‘किराए में रहती हो?’’

‘‘हां, यही समझ लीजिए. उन के दोनों बच्चों की देखभाल, घर का काम, खानाकपड़ा सब करती हूं.’’

‘‘तब उन की बीवी क्या करती है?’’ मैं ने चिढ़ते हुए पूछा.

‘‘नहीं है. 5 साल पहले मर गई. शुरूशुरू में गांव से बूढ़ी मां आई थी, मन नहीं लगा. तब से मैं ही संभाल रही हूं.’’

हमें दिल्ली आए 2 साल हो गए थे. बेटे का नामांकन एनआईटी वारंगल में हो गया था. बेटी यहीं एमकौम कर रही थी. हम लोगों को गीता की आदत सी हो गई थी, धीरेधीरे उस ने घर की पूरी जिम्मेदारी जो संभाल ली थी. उस की बेटी बड़ी हो गई थी, वह अपने घर का काम कर लेती थी.

जीवन में पहली बार कामवाली का ऐसा सुख मिला था. मैं अपने एनजीओ को पूरा समय दे पा रही थी.

रात का खाना निबटा कर किचन समेटा और सोने ही जा रही थी कि फोन आया, ‘‘आंटी, 20-30 हजार रुपए चाहिए.’’

‘‘30 हजार रुपए?’’ मैं ने चौंकते हुए पूछा. कम से कम 20 हजार रुपए तो देना ही होगा. प्लीज आंटी, बहुत जरूरी हैं. मालिक को दिल का दौरा पड़ा है. उन को अस्पताल में भरती करवा कर आ रही हूं. एक सप्ताह के  अंदर औपरेशन होगा.

‘‘ठीक है, देखती हूं,’’ कह कर मैं ने फोन काटा. राकेश से बिना पूछे मैं उसे आश्वस्त नहीं कर सकती थी. हालांकि 5 हजार के हिसाब से 3-4 महीने में ही पैसा चुकता कर देगी. पहले भी एकदो बार वह 4-5 हजार रुपए ले गई थी. कभी बच्चे के ऐडमिशन के लिए या किसी शादीब्याह में जाने के लिए. लेकिन 4-5 दिनों के अंदर ही लौटा जाती थी. राकेश पहले तो 20 हजार रुपए पर थोड़ा झिझके, मेरे समझाने पर 10 हजार रुपए देने को तैयार हुए. अपने पैसों में से छिपा कर 10 हजार रुपए मिला कर मैं ने दूसरे दिन उसे बुलवा कर पूरे 20 हजार रुपए दे दिए.

गीता तो आज पहचान में ही नहीं आ रही थी. शृंगारविहीन, कुम्हलाया चेहरा, पपड़ी पड़े होंठ, बिना कंघी किए बाल, सूजी आंखें. लगता था रातभर सोई नहीं थी. उस का ऐसा रूप पहली बार देख रही थी मैं. थोड़ा आश्चर्य भी हुआ, माना कि मकानमालिक अच्छा है, इन लोगों का खयाल भी रखता है, फिर भी है तो पराया ही. उस के लिए इतनी चिंता. उस दिन जब पति जेल गया तो यह बिलकुल सामान्य थी मानो कुछ हुआ ही न हो.

बहरहाल, 15 दिनों के लिए उस ने ही एक बाई ढूंढ़ कर लगा दी थी. मैं ने गीता को एक महीने की छुट्टी दे दी. महीनेभर बाद पुरानी गीता लौट आई. वही मुसकराता चेहरा, वही साजशृंगार.

‘‘कैसे हैं तुम्हारे मकानमालिक?’’

‘‘हां आंटी, अब ठीक हैं. कल से काम पर जाने लगे हैं. शुक्र है, सबकुछ समय रहते हो गया. मालिक के दोस्त का मैडिकल कालेज में कोई रिश्तेदार है, उस ने बहुत सहायता की वरना इतनी जल्दी औपरेशन कहां हो पाता.’’

‘‘तुम ने तो बहुत किया उस के लिए. पैसे से ले कर देखभाल, सेवासुश्रूषा तक. इतना तो अपने भी नहीं करते. उस के घर से कोई आया था?’’ न चाहते हुए भी मेरे स्वर में थोड़ा व्यंग्य आ गया था.

अचानक उस का हंसता चेहरा मुरझा गया. वह चुपचाप उठ कर अपने काम में लग गई. पोंछा लगातेलगाते मेरे पास आ कर बैठ गई, ‘‘आंटी, अब आप से क्या छिपाऊं. मैं मालिक के ही साथ रहती हूं.’’ इस बात को कहने के लिए इतनी देर में उस ने अपने को मानसिकरूप से तैयार किया था.

इन 3 सालों में इस सच का अंदाजा कुछकुछ मुझे हो ही गया था.

‘‘शादी कर ली है?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘फिर तुम्हारा पति?’’

‘‘वो भी वहीं रहता है. मालिक की मां जब गांव चली गई, मैं ने उन का काम करना शुरू किया. पहले चौकाबरतन, फिर खाना बनाना. मैं बहुत कष्ट में थी. अच्छे खातेपीते घर की लड़की हूं. मायके में जमीनजायदाद है. पिताजी की गांव में किराने की दुकान है.

‘‘लड़का दिल्ली में नौकरी करता है. इसी बात पर शादी हो गई. 3 बच्चे हो गए. यहां आने पर असलियत पता चली. तीन कमाता तेरह पी जाता है. घर में एक पैसा भी नहीं देता. ऊपर से रात में पिटाई करता. बच्चे भूख से बिलबिलाते थे. अंत में घर के पास में ही बन रही सोसायटी में ठेकेदारी में काम करने लगी. वहां भी स्थिति अच्छी नहीं थी. पूरे 8 घंटे काम, ठेकेदार की गंदी हरकतें, भद्दी गालियां. मिस्त्री का घिनौना स्पर्श, फिर भी पैसे मिल रहे थे, बच्चे पल रहे थे.

‘‘एक दिन मेरी बेटी किसी काम से हमारे पास आई. एक मजदूर उस का हाथ पकड़ने लगा. मैं ने गुस्से में पास रखे डंडे से उस के हाथ पर जोर से मारा. हंगामा हो गया. उसी वक्त मालिक वहां से गुजर रहे थे. उन्होंने सब को डांटडपट कर भगाया. मैं लगातार रोए जा रही थी.

‘‘यहां क्यों काम करती हो?’’

‘‘क्या करूं? बच्चे खाएंगे क्या?’’

‘‘खाना बनाना आता है?’’

‘‘बचपन से तो वही करती आई हूं. करम फूट गए थे जो यहां आई.’’

‘‘कल सुबह स्कूल के बगल वाले मकान में आना, चावला मैनेजर का नाम पूछोगी, कोई भी बता देगा.’’

‘‘दूसरे दिन सुबह जो गई, तो वहीं की रह गई. पूरे दिन काम कर के रात का खाना बना कर लौट आती थी. बच्चे बगल वाले सरकारी स्कूल में जाते थे. उन्हें दिन का खाना वहां मिल जाता था. शाम को मालिक कहते कि बच्चों को यहीं बुला कर खिला दिया करो.

‘‘उस रोज खाना बना कर मैं बरतन मांज रही थी कि बेटी दौड़ती हुई आई, ‘अम्मा, बाबू को पुलिस पकड़ कर ले गई. बिलावल के साथ मारपीट कर रहा था.’

2 दिनों तक मैं दौड़ती रही. पुलिस कुछ नहीं सुन रही थी. अंत में मालिक ही छुड़वा कर लाए. उसे भी बगीचे की सफाई, घर की रखवाली के लिए रख लिया. जो मनुष्य अपनी बीवीबच्चों का, खुद अपना भी ध्यान नहीं रख सकता तो घर की क्या रखवाली करता. आंगन की तरफ पिछवाड़े में एक कमरा था, वहीं पड़ा रहता. बाद में हम लोग भी थोड़ीबहुत गृहस्थी के सामान के साथ वहीं रहने लगे.

‘‘दोपहर में बच्चे स्कूल गए हुए थे. सब काम निबटा कर सोचा कि थोड़ा सुस्ता लूं. कमरे में घुसी तो देखती हूं कि मेरा आदमी मेरी एकमात्र अमानत मेरे बक्से का ताला तोड़ कर सारा सामान इधरउधर कर के कुछ ढूंढ़ रहा है. बेटी कितने दिनों से पायल के लिए जिद कर रही थी, मैं ने जोड़जाड़ कर 1 हजार रुपए जमा किए थे, उसे रूमाल में बांध कर बक्से में रखते हुए उस ने शायद देख लिया था.

‘‘बेटी के शौक पर पानी फिरते देख मैं जोर से चिल्लाई, क्या खोज रहे हो? वह बोला, ‘तुम से मतलब?’

‘‘‘मेरा बक्सा है, सामान मेरा है, तब मतलब किस को होगा,’ मैं ने कहा.

‘‘‘ठहर, अभी बतलाता हूं किस का सामान है, हक जताती है,’ एक भद्दी गाली देते हुए वह मुझ पर झपटा.

‘‘मैं पलट कर भागने के लिए मुड़ी ही थी कि मेरे कान की बाली उस की उंगलियों में फंस गई. उस ने जोर से खींचा. बाली उस के हाथों में चली गई और मेरे कान से खून बहने लगा.

‘‘शोर सुन कर मालिक आ गए थे. उन्होंने उसे धक्का दे कर अलग किया. मेरी हालत देख कर उन्होंने कहा, ‘इस आदमी के साथ कैसे रह लेती हो.’ बक्से से रुपए और मेरी सोने की एक बाली ले कर वह भाग गया.

‘‘20 दिनों के बाद वह लौटा. कुछ दिनों तक तो गेट पर बैठा रहता था, बाद में मालिक के पैर पकड़ कर गिड़गिड़ाने लगा. रहने की अनुमति तो उन्होंने दे दी लेकिन एक शर्त रखी कि मेरे ऊपर कभी हाथ उस ने उठाया तो वे उसे पुलिस को सौंप देंगे. वह तैयार हो गया लेकिन उस दिन के बाद से मैं ने अपने कमरे में जाना छोड़ दिया. फिर कब और कैसे मालिक के कमरे में मैं रहने लगी, पता ही नहीं चला.

‘‘दोनों को सहारे की जरूरत थी. पति से मैं ऊब चुकी थी. उस ने मार, तिरस्कार, दुख के सिवा मुझे दिया ही क्या था. आंटी, पतिपत्नी का संबंध तो समाज बनाता है. यह कोई खून का संबंध तो होता नहीं. अगर पति सातों वचनों में से एक भी नहीं निभाए तो क्या केवल पत्नी की ही जिम्मेदारी है कि उस के दिए सिंदूर को लगाए जीवनभर मरती रहे. पत्नी अगर कुल्टा होती है, बांझ होती है, लंगड़ी या लूली हो जाए, तो पति उसे तुरंत छोड़ देता है. फिर क्यों एक पत्नी उस की सारी यातनाओं को सहतेसहते मर जाए. औरत को भी तो जीने का हक है.

‘‘मालिक तो सच में बहुत अच्छे इंसान हैं. बच्चों के कारण ही उन्होंने शादी नहीं की. जिस ने मुझे जीवन दिया, मेरे बच्चों के मुंह में निवाला दिया, मेरे भविष्य की चिंता की, उस के प्रति मैं पूरी वफादार हूं. अब मेरा अपने आदमी के साथ कोई संबंध नहीं है.’’

‘‘आदमी कुछ नहीं कहता है?’’ मैं ने आश्चर्य से जानना चाहा.

‘‘शुरूशुरू में उस ने होहल्ला किया. अड़ोसपड़ोस वालों को जुटा लाया. लेकिन मैं शेरनी जैसी तन कर खड़ी हो गई, ‘खबरदार, मालिक को कोई कुछ बोला तो. यह मेरा पति जब पूरी रात मुझे मारता था, घर से निकाल देता था तब तुम लोग कहां थे? मेरे बच्चे भूख से छटपटाते थे, तब किसी ने उन का पेट क्यों नहीं भरा? जब मेरे साथ दुनिया वाले बदसुलूकी करते क्यों नहीं कोई मेरी रक्षा करने को आगे आया? उस वक्त तो मेरी मजबूरी का सब मजा लेते थे, खुद भी मुझे गिराने और नोचने की ताक में रहते थे. अब मुझे किसी की चिंता नहीं है. न अपने पति की, न समाज की. जिस को जो करना है, मैं निबट लूंगी सब से. मगर मालिक को बीच में मत घसीटना.’ पता नहीं कहां से मुझ में इतनी हिम्मत आ गई थी.

‘‘असल में अब मुझे मालिक का सहारा था, लगता था कुछ होगा तो वे संभाल लेंगे. पहले किस के भरोसे पर हिम्मत करती. आदमी ने भी बाद में समझौता कर लिया. कपड़ा वगैरह उसे मालिक दे देते हैं. कोई जिम्मेदारी नहीं, बैठेबिठाए खानाकपड़ा मिल रहा है स्वार्थी को. उसे यह सौदा अच्छा ही लगा.’’

बहुत ही सहजता से गीता ने अपनेआप को एक पत्नी, एक मां और रक्षिता में बांट लिया था. उस की बातें प्र्रवाहित थीं, ‘‘आंटी, औरत शादी ही इसलिए करती है कि उसे एक सुरक्षित छत, मजबूत सहारा और निश्चित भविष्य मिले. मुझे भी यही चाहिए था और कोई लालच मुझे नहीं था.

‘‘एक दिन तो मालिक ने अपनी पत्नी की सारी साडि़यां, गहने वगैरह भी मुझे थमा दिए थे. उन की साडि़यां तो मैं पहनती हूं, लेकिन गहने मैं ने जिद कर के बैंक के लौकर में रखवा दिए. इन पर उन की बेटी और बहू का ही हक है. उन्होंने मुझे सहारा दिया. मुझे और कुछ नहीं चाहिए.

‘‘औरत भले ही अपनी आजादी के लिए आंदोलन करती हो, आदमी पर आरोप लगाती हो कि उस को घर में बांध कर कैद कर के रखा है लेकिन आंटी, अगर हमें एकदम खुला भी छोड़ दिया जाए तो कुछ दिन तो यह आजादी हमें अच्छी लगेगी, आकाश में उड़ने का गुमान भी होगा लेकिन बाद में थक कर हमारे पंख टूट जाएंगे, बिखर जाएंगे. औरत को एक आधार, एक सहारा चाहिए ही. उसे बंधन पसंद है, उस की आदत है, उस का स्वभाव है यह.’’

मैं अवाक नारी सशक्तीकरण की धज्जियां उड़ाती उस की बातें सुन रही थी. अगर ईमानदारी से हर स्त्री अपने मन को टटोले तो क्या गीता गलत कह रही थी? यह एक महिला के सहज उदगार की व्याख्या थी. शायद हर स्त्री के भीतर दिल एकसा ही धड़कता है, उस की भावनाएं एकजैसी होती हैं. शिक्षा से भले ही उन के विचार बदल जाएं, भावनाएं नहीं बदलतीं. समाज के खोखले मापदंड के हिसाब से गीता की सोच, उस का चरित्र भले ही गलत हो, लेकिन मुझे तो वह किसी दृष्टिकोण से गलत नहीं लगी.

वनस्पति विज्ञान में एक पौधा होता है लाइकेन. कवक और शैवाल का मिला सत्य. उस पौधे में मौजूद कवक बाहरी आघातों से पौधे की रक्षा करता है जबकि शैवाल अपने हरे रंग के कारण प्रकाश संश्लेषण कर के पौधे को भोजन प्रदान करता है. दोनों एकदूसरे पर आश्रित, एकदूसरे से लाभान्वित. इस संबंध को सिम बायोसिस कहते हैं. गीता और मालिक का संबंध भी तो सिम बायोसिस ही है लाइकेन की तरह.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें