Hindi Story Telling : बहू चाहिए सर्वगुण संपन्न यानी कि वह घरपरिवार, परंपराओं के साथ चले. शिक्षित होने का उस पर ठप्पा भी लगा लो. प्रियंका सोचने पर मजबूर थी कि कर्तव्यों की कसौटी पर बहू ही क्यों खरी उतरे, बेटे से यह उम्मीद क्यों नहीं की जाती?

राहुल सुबह से 3 बार पढ़ चुके अखबार में सिर डाल कर बैठे हुए थे. प्रियंका मेज पर खाना लगा रही थी, तभी राहुल के फोन की घंटी बजी.
‘‘नमस्ते मामाजी.’’
‘‘खुश रहो मयंक और सुनाओ, क्या हालचाल हैं?’’ राहुल ने बड़े बिंदास लहजे में कहा.
प्रियंका के चेहरे पर हलकी मुसकान आ गई. राहुल और मयंक, कहने को तो मामाभांजा थे पर मयंक राहुल से कुछ ज्यादा ही लगा हुआ था. मयंक बड़ी ननद का बेटा था और राहुल घर में सब से छोटे थे.

दीदी की शादी के वक्त राहुल मुश्किल से 10-12 साल के ही थे. राहुल अकसर बताते थे, मयंक जब छोटा था, हमेशा उन्हीं के इर्दगिर्द घूमता रहता था. मयंक राहुल के लिए एक गोलमटोल खिलौने की तरह था. छोटे मामा की उंगली पकड़े वह सारा बाजार घूम आता. गरमी की छुट्टियों में मयंक के आगमन से पहले ही फोन पर सारी योजना बन जाती थी.
दीदी से छिप कर राहुल ने मयंक को स्कूटी चलाना भी सिखाया था. सच पूछो तो कहने को तो उन में मामाभांजे का रिश्ता था पर उन सब से ऊपर एक मित्रता का भाव भी जुड़ा हुआ था. शायद इसी भाव के कारण ही वह एकदूसरे से खुल कर बात कर लेते थे.
‘‘और भाई शादीवादी का क्या विचार है, करनी है कि नहीं?’’
मयंक राहुल की बात सुन खिलखिला कर हंस पड़ा.
‘‘करनी है, करनी है मामाजी, वह भी कर ही लेंगे. पहले कुछ कमा तो लें वरना आप की बहू को कहां रखेंगे, क्या खिलाएंगे.’’

मयंक शुरू से ही पढ़ने में होशियार था. इंजीनियरिंग करने के बाद कैंपस प्लेसमैंट हो गया. नौकरी करने के साथसाथ उस ने एमबीए भी कर लिया. एमबीए करने के बाद मयंक की लंदन में एक अच्छी सी कंपनी में नौकरी लग गई थी. अभी 2 साल भी नहीं हुए थे, सब शादी के लिए हल्ला मचाने लगे थे. मयंक से सभी चुटकी लेते थे, ‘अरे भाई, कोई हो तो बता देना.’ पर न जाने क्यों एक अनदेखा डर सब के मन में बैठा हुआ था. ‘कहीं सचमुच वह किसी गोरी मेम को ले कर खड़ा न कर दे,’ राहुल ने हवा में तीर छोड़ा, ‘‘कोई लड़कीवड़की देख रखी हो तो पहले ही बता दो, फिर न कहना मामा ने पूछा नहीं. तुम्हारे नाना पीछे पड़े हैं. तुम बता दो वरना हम लोग लड़की देखें.’’
तभी पीछे से प्रियंका चिल्लाई, ‘‘मयंक, पहले बता देना, अचानक से सरप्राइज मत देना. कम से कम अपनी मामी को तैयारी करने का मौका तो दे ही देना वरना तेरी बीवी कहेगी किन लोगों के बीच आ गई.’’

प्रियंका ने राहुल से फोन ले लिया. मयंक न जाने क्यों शरमा गया.
‘‘मयंक, कैसे हो बेटा?’’
‘‘प्रणाम मामीजी, मैं बिलकुल ठीक हूं. आप बताइए, आप लोग कैसे हैं?’’
‘‘हम भी ठीक हैं, बस, वही दालरोटी के चक्कर में फंसे हुए हैं. तुम बताओ, कोई लड़कीवड़की देखी कि हम लोग देखें.’’
‘‘आप भी मामीजी!’’
‘‘अरे, मुझसे क्या शरमाना, जो भी हो साफसाफ बता देना.’’
मयंक ने वही रटारटाया जवाब दिया. मनुष्य का एक स्वभाव होता है, वह चाहे कितना भी समझदारी का ढोंग कर ले, पेट में शक की मरोड़ उठती ही रहती है. प्रियंका ने एक दिन सोशल मीडिया पर मयंक को अपनी साथी महिला कर्मचारियों के साथ पार्टी करने की फोटो देख ली थी. छोटेछोटे कपड़ों में लड़कियां हाथ में रंगीन गिलासों के साथ तितली की तरह खिलखिला रही थीं. न जाने क्यों तब से ही प्रियंका के दिमाग में शक का कीड़ा घुस गया था.

वह बहुत दिनों से इसी फिराक में थी कि मयंक से बात कैसे निकलवाई जाए, प्रियंका ने अपनी आवाज को गंभीर बना कर कहा, ‘‘मयंक, शादी तो करनी ही है और हर आदमी तुम से कुछ न कुछ कहेगा ही पर निभाना तुम को है. इन सब चीजों में दूसरों की नहीं, खुद की सुनो. कल कोई ऊंचनीच हुई तो सब पल्ला ? झाड़ लेंगे. तुम्हें कैसी लड़की चाहिए, इस का निर्णय तुम को लेना होगा.’’
मामी की बात सुन कर मयंक के दिल में छिपे विचारों को मानो बल मिल गया. शायद आज से पहले किसी ने उस से इस ढंग से बात नहीं कही थी, किसी ने कभी उस का दृष्टिकोण जानने का प्रयास ही नहीं किया था.

‘‘मयंक, कहना तो नहीं चाहिए, सब मेरे अपने ही हैं पर तुम्हारे घर या फिर यहां तुम्हारी नानी के घर का माहौल ऐसा नहीं है कि नए जमाने की लड़कियां अपनेआप को एडजस्ट कर लें. सच पूछो तो वह वक्त के साथ बदलना भी नहीं चाहते. हम लोगों की बात छोड़ो, हम ने तो जैसेतैसे निभा लिया पर तुम्हारी पीढ़ी यह सब नहीं  झेल पाएगी.
‘‘सच कह रही हो, मामी. घर पर पापा, मम्मी, दादी, ताऊ, ताईजी सब शादी के पीछे पड़े हैं. हर दूसरेतीसरे दिन मम्मी एक फोटो ले कर खड़ी हो जाती हैं. मैं उन से खुल कर कह भी नहीं पाता कि आचारमुरब्बा वाली लड़की मुझे नहीं चलेगी.’’

मयंक की बात सुन कर प्रियंका खिलखिला कर हंस पड़ी. प्रियंका सोचने लगी, सच ही तो कह रहा था मयंक, उस की शादी के समय पापा ने भी तो शौक में यही सब तो लिखवाया था. मयंक ने बड़ी लापरवाही से आगे कहा, ‘‘मामीजी, आजकल के जमाने में यह सब खाता कौन है, सब तो फिगर कौन्शस हैं. वैसे भी, आजकल तो बाजार में सबकुछ मिल जाता है.’’
‘‘फिर भी बेटा…’’ प्रियंका के शब्द गले में ही अटक कर रह गए. यही मयंक खाने के लिए बचपन में दीदी को कितना नाच नचाता था. दीदी हाथ में थाली लिए मयंक के पीछे भागतेभागते हार जाती थीं. गलत तो नहीं कहा था मयंक ने, मम्मीजी अकसर कहती थीं आजकल की लड़कियां कुछ नहीं करना चाहतीं. ऊपर से तुर्रा यह कि पढ़ाई कर रहे हैं, खाना बनाने के लिए तो पूरी जिंदगी पड़ी है. प्रियंका सोचने लगी, उस के पापा ने भी तो उस की शादी के वक्त कुछ इसी तरह के शौक और विशेषताएं लिखवाई थीं. कुछ तो ऐसी भी चीजें शामिल थीं जिन का उस से दूरदूर तक नाता नहीं था.
उन दिनों कुकरीबेकरी बड़े लोगों की चीज हुआ करती थी, पापा ने वह भी लिखवा दिया. शायद, लड़के वालों के सामने वे अपनी बेटी को कमतर नहीं दिखाना चाहते थे या शायद यह भी हो सकता है कि वे किसी भी आधार पर बेटी के ऊपर रिजैक्शन का ठप्पा नहीं लगवाना चाहते थे.
पर इतने जतन और टोटके के बाद भी 2 जगह से रिजैक्शन का ठप्पा लगने के बाद प्रियंका की शादी राहुल से हो पाई थी. वक्त बदल गया था पर वक्त के साथ लड़कियों के लिए सोच का दायरा नहीं बदला था. लड़कियों को आज भी रिजैक्ट किया जाता था. पर हां, समय ने करवट जरूर ली थी. अब लड़कियां भी लड़कों की तरह लड़कों को रिजैक्ट करने लगी हैं.
‘‘हैलोहैलो!’’
प्रियंका मयंक की आवाज सुन कर अपनी सोच के घेरे को तोड़ बाहर आ गई, ‘‘सुन रही हूं बेटा, बोलो.’’
‘‘मामीजी, मैं खुद भी नहीं चाहता कि जिस किसी से भी मेरी शादी हो, वह दिनभर घर पर बैठ कर मेरे लिए खाना बनाए.’’
‘जिस किसी’ प्रियंका का शंकित मन सोशल नैटवर्किंग पर मयंक के साथ की लड़कियों की तसवीरों में उस ‘जिस किसी’ को तेजी से टटोल रहा था.
‘‘मयंक, ठीक कह रहे हो, जितना बड़ा शहर उतने ही खर्चे. दोनों नहीं कमाएंगे तो काम कैसे चलेगा.’’
‘‘बात कमाने की नहीं है, मामीजी. मैं इतना कमा लेता हूं कि अच्छे से जिंदगी कट जाएगी पर इस शहर में, घर में दिनभर अकेली पड़ी रहे, यह तो मैं भी नहीं चाहूंगा.’’

प्रियंका हंस पड़ी, क्या जवाब देती. आज उस की डिग्रियां उस को मुंह चिढ़ा रही थीं. राहुल ने शादी की पहली ही रात कह दिया था, ‘मु?ो घर संभालने वाली लड़की चाहिए, नौकरी के चक्कर में घर की शांति भंग नहीं कर सकता. आखिर, घर में और भी महिलाएं हैं. प्रियंका ने दूसरे ही दिन उन सपनों को कहीं गहरे तहखाने में दबा कर रख दिया था.
‘‘मयंक, कह तो तुम सही रहे हो, शायद तुम को अच्छा न लगे पर तुम्हारे घर का जो माहौल है वहां तुम्हारी बीवी से साड़ी पहनने की उम्मीद की जाए, खाने में 3 तरह की सब्जियों की उम्मीद की जाए तो वह बेचारी कैसे कर पाएगी.’’

‘‘साड़ी मामीजी, इन 2 सालों में मैं ने किसी को सलवारसूट में भी नहीं देखा. आप साड़ी की बात कर रही हैं. आप 3 सब्जियों की बात कर रहीं हैं, मैं तो यह भी उम्मीद नहीं करता कि उसे खाना बनाना भी आता हो. जब मुझे बनाना नहीं आता, अगर उसे बनाना नहीं आता हो तो कौन सी बड़ी बात हो जाएगी. वैसे भी, वह सब तो मैनेज हो ही जाता है.’’
मयंक की बेबाकी कहीं न कहीं उसे अंदर तक भेद गई थी. कहीं न कहीं वह अपने भविष्य के लिए भी भयभीत हो रही थी. कुछ वर्षों बाद वह भी तो उसी दहलीज पर खड़ी होगी जहां आज दीदी खड़ी थीं. प्रियंका हतप्रभ थी, क्या वाकई में जमाना इतना बदल गया है. प्रियंका की आंखों के सामने दीदी का चेहरा घूम गया, बहू के लिए देखे गए वे अनगिनत सपने कहीं न कहीं उसे चूर होते दिख रहे थे जिन की किरचें उसे चुभती महसूस हो रही थीं. प्रियंका कहीं भी घूमने जाती तो ननद के लिए उस शहर की कोई प्रसिद्ध चीज ले कर आती. कई बार तो दीदी ने भी मनुहार कर के अपनी भावी बहू के लिए भी साड़ी मंगवाई थी. ‘प्रियंका, एकसाथ कुछ नहीं हो पाता, धीरेधीरे कर के इकट्ठा करती चलूंगी तभी तो मयंक की शादी कर पाऊंगी, बनारसी, कांजीवरम, चंदेरी और न जाने क्याक्या.’ मां तो मां ही होती है.

महीनों की जद्दोजेहद के बाद आखिर मयंक के लिए एक अच्छी लड़की ढूंढ़ ही ली गई. लड़की मल्टीनैशनल कंपनी में काम करती थी, मयंक के बराबरी की थी. दीदी अपनी चांद सी बहू के गुण गाते नहीं थक रही थीं.
‘‘जानती हो प्रियंका, रुचिका मयंक से पहले से नौकरी करती है. मयंक से कहीं ज्यादा अच्छा पैकेज है उस का.’’
‘‘दीदी, आप की तो ऐश है, दोनों हाथ लड्डू में. सुंदर और कमाऊं बहू मिल रही है आप को.’’
दीदी की भाषा और व्यवहार में अचानक से कमाऊ बहू की ठसक दिखने लगी थी.
‘‘दीदी. साडि़यां और लेनी हैं तो बता दीजिएगा,’’ प्रियंका ने भाभी होने का फर्ज निभाते हुए कहा.
‘‘प्रियंका, सुन, पीहर से भात के लिए सिर्फ मेरे और जीजाजी का ही कपड़ा लाना और मयंक को मैं देख लूंगी. नए जमाने के बच्चे हैं, पता नहीं क्या पसंद आए क्या नहीं. हम लोगों का तो सब चल जाता है.’’
‘‘नहींनहीं दीदी, ऐसे कैसे, यह तो पीहर वालों की जिम्मेदारी है,’’ प्रियंका ने अपनी आवाज में रस घोलते हुए कहा. आखिर शादी का दिन भी आ गया. सब बहुत खुश थे. खुश तो दीदी भी थीं पर शायद मयंक की वापसी की बात सोचसोच उन की आंखें भर आ रही थीं. दीदी शायद यह भूल गई थीं, कहीं न कहीं इन सब की जिम्मेदार वे खुद थीं. मयंक की पीठ पर आज जो सपनों के पंख हैं वे उन्होंने खुद ही रोपे थे. आज मयंक के बचपन की एकएक घटना को याद कर उन का आंचल भीगा जा रहा था. वक्त की आंच में स्मृतियां मोम की तरह पिघलपिघल कर आंखों से टपटप चू रही थीं. कहीं न कहीं हम अपने बच्चों को अपने खुद के अधूरे सपनों को पूरा करने का जरिया बना लेते हैं.
? झालर की रोशनी से नहाया दीदी का घर कितना खूबसूरत लग रहा था, शादी बड़ी धूमधाम से संपन्न हो गई. बहू के आगमन के साथ मेहमानों की रवानगी शुरू हो गई. प्रियंका भी अपना सामान बांध रही थी. तभी पीछे से दीदी ने आ कर प्रियंका को चौंका दिया, उन के हाथों में कुछ रंगीन लिफाफे और कपड़ों के बंडल थे.
‘‘प्रियंका, आती रहना, मयंक अगले महीने तक चला जाएगा. रुचिका अभी यहीं रहेगी, वीजा की औपचारिकता पूरी होते ही वह भी मयंक के पास चली जाएगी.’’
न जाने क्यों दीदी यह सब कहतेकहते उदास हो गईं, कितने मन से जीजाजी ने दोमंजिला घर बनवाया था. एकएक चीज दीदी और मयंक की पसंद की लगवाई थी पर आज उस घर में रहने के लिए दीदीजीजाजी के सिवा कोई न था. प्रियंका दीदी से आने का वादा कर अपने घर वापस आ गई.
गृहस्थी की उठापटक से जूझती प्रियंका समय निकाल कर अकसर दीदी से बात कर लेती. शुरूशुरू में तो सब ठीक था पर कमाऊ बहू की सास होने की ठसक धीरेधीरे न जाने कहां गुम होने लगी थी. वीजा का इंतजार करतेकरते सालभर होने को आ गया था. शुरूशुरू में तो सबकुछ ठीक था. एक बार साड़ी में पैर फंस जाने की वजह से रुचिका गिरतेगिरते बची थी. दीदी ने उसी दिन फरमान जारी कर दिया, ‘तुम सूट पहनो. कहीं चोटवोट लग जाए तो फिर कौन सेवा करेगा.’
प्रियंका सोच में पड़ गई, वक्त के साथ दीदी कितनी बदल गई थीं. शादी के 5 वर्षों बाद जब उस ने दबे स्वर में सलवारकमीज पहनने की इजाजत मांगी तो घर में कितना हंगामा मचा था. दीदी ने भी कितना कुछ सुनाया था, ‘भले घर की बहूबेटियों को यह सब शोभा नहीं देता.’ पर आज!
रुचिका को तो मानो खुला आसमान मिल गया, वह घर में गाउन पहन कर आराम से सासससुर के सामने डोलने लगी थी. चीजें बिगड़ रही थीं और चीजों के बिगड़ने के साथ दीदी के फोन आने का सिलसिला भी बढ़ता जा रहा था. प्रियंका उन के फोन को उठाने से बचने लगी थी पर बचती भी तो कब तक.

घर में शायद कुछ ज्यादा ही बवाल हो गया था. दीदी का सुबहसुबह ही फोन आ गया था, ‘‘प्रियंका, देख, क्या जमाना आ गया, गिनती के 3 लोग हैं पर महारानी से 3 लोगों का भी खाना नहीं बन पाता. कहती है कि नौकरी करूं या खाना बनाऊं. इन की नौकरी से हमें क्या लेनादेना, कौन सा एक चवन्नी हमारे हाथ पर धर देती है. तीजत्योहार पर दे भी दिया तो उस से क्या पेट भर जाएगा. कहती है, कमाने का फायदा क्या जब एक खाना बनाने वाली भी नहीं रख सकते. अब यही रह गया कि घर में दोदो औरतों के रहने के बावजूद नौकरों के हाथ का खाना खाया जाए.’’
प्रियंका चुपचाप ननद की बात सुनती रही और सोचती रही कि दीदी को बहू से उम्मीद करने या कोसने से पहले एक बार अपने बेटे से भी पूछना चाहिए था कि उसे कैसी बीवी चाहिए थी. रुचिका ही हर बार अच्छी बहू होने का प्रमाण क्यों देती फिरे. आखिर मयंक कब आ कर यह कहेगा कि उसे तो ऐसी ही जीवनसाथी चाहिए थी. आखिर रुचिका ही कर्तव्यों की कसौटी पर क्यों और कब तक पिसती रहेगी. क्या सचमुच मयंक कभी यह कह पाएगा, प्रियंका सोचती रही, क्या इस सवाल का जवाब कभी कोई दे पाएगा. सच कहा है किसी ने, समाज स्त्रियों के लिए कभी नहीं बदलता. सवालों के सुलगते अंगार पर न जाने स्त्रियों को कब तक जलना है.

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