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Satire : ट्रांसफर का सीजन

जैसे ही घर पहुंचा, पत्नी ने बताया कि अपनी कालोनी में मिस्टर गुलाटी के यहां चोरी हो गई है. मैं ने पूछा, ‘‘चोरों का कोई पता चला?’’

‘‘अभी तक तो मुझे कोई जानकारी नहीं मिली है,’’ पत्नी बोली, ‘‘आप आ गए हो तो सारी जानकारी मिल जाएगी. कोई कह रहा था कि चोरी हो गई और कोई बता रहा था डकैती पड़ी है. मुझे तो दोनों में अंतर ही पता नहीं चलता.’’

पत्नी के साथ यही दिक्कत है. अंतर करने से चूक जाती है. मुझे सीआईडी का आदमी समझती है. अखबारों में पढ़े समाचारों को कभी मनोरंजक और कभी खौफनाक ढंग से मिर्चमसाला लगा कर बता देता हूं. इसलिए पत्नी को ऐसा भ्रम हो जाता है कि मैं जासूसी भी करने लगा हूं.

मैं ने तुरंत पूछा, ‘‘तुम हालचाल जानने के लिए उन के घर गई थीं?’’

उस ने वर्षों पुराना घिसापिटा रिकार्ड दोहरा दिया, ‘‘घर के काम से फुर्सत नहीं मिली. बच्चे धींगामस्ती कर रहे थे. पड़ोसिन बैठने आ गई थीं.’’

मैं ने कहा, ‘‘क्या पड़ोसिन सुबह से शाम तक बैठी रही थीं. रही बात बच्चों की तो तुम्हीं बताओ, किस के घर के बच्चे धींगामस्ती नहीं करते. यह तो गनीमत है कि अपने बच्चे बाहर लड़तेझगड़ते नहीं. वरना दिनभर शिकायतों का ही तांता लगा रहता. तुम जानती नहीं, अपने पड़ोसी वर्माजी कितने परेशान रहते हैं बच्चों की कंपलेंट से.’’

चोरी और किसी के घर होती तो जाने, न जाने की बात अलग थी. गुलाटी का पारा तो इसी बात को ले कर 108 डिगरी तक पहुंच गया होगा कि न शर्माजी आए न उन की श्रीमतीजी. पिछली बार गुलाटी को फ्लू हो गया था. समाचार कुछ देर से मिला. हम दोनोें घर गए तो ठीक हो चुका था. देखते ही बरस पड़ा, ‘‘अब फुर्सत मिली है. अच्छा होने के बाद देखने आए हो. आधी कालोनी आ कर चली गई. अब कोई बहाना मत बनाना और मेरी अगली बीमारी का ध्यान रखना.’’

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चोरी तो हो चुकी थी लेकिन चोरों की तरह डरतेसहमते गुलाटी के घर पहुंचा. वह 4-5 अतिथियों से घिरे बैठे थे. उन के सामने की मेज पर अखबारों का ढेर पड़ा था. रसोईघर से कुछ बनने की महक कमरे में आ रही थी. मेरी ओर देख कर भी वह बिलकुल चुप थे. नाराज हो जाने  पर यह गुलाटी की खास किस्म की आदत थी यानी जिस से नाराज हो जाओ, उस की ओर देखो जरूर लेकिन बातों का सिलसिला शुरू न करो.

गुलाटी ने पड़ोसियों को विस्तार से डकैती का हाल बताया कि किधर से डकैत आए, किधर गए होंगे, संख्या कितनी रही होगी. डकैती के अभिनय से ले कर पुलिस की भूमिका तक सरगर्म चर्चा हो गई. इतने में नाश्ता आ गया. उस का तामझाम देख कर मुझे तो ऐसा लगा नहीं कि गुलाटी के यहां चोरी हुई है. नाश्ते की सजी हुई प्लेटों और उस के चेहरे के हावभाव से लग रहा था डैकती का माल बरामद हो चुका है. उसी के उपलक्ष्य में स्वल्पाहार का आयोजन है.

पड़ोसियों ने वही किया जो ऐसे मौके पर किया जाता है. नाश्ता ठूंसते हुए प्रशासन की जम कर आलोचना हुई. गुलाटी को सांत्वना और डकैतों के पकड़े जाने का आश्वासन देते हुए वे एकएक कर विदा हो गए. हालांकि उन्हें इशारा मिल जाता तो इसी विषय पर बहस करते हुए कम से कम 1 घंटा और जम सकते थे. पड़ोसियों के जाते ही गुलाटी ने खबरों का ढेर मेरी ओर पटक दिया और कहा, ‘‘कल चोरी हुई है और आज दर्शन दे रहे हो. अच्छी दोस्ती निभाते हो.’’

अखबार पलटते हुए मैं ने कहा, ‘‘भाई, शहर के बाहर था. पहुंचते ही पत्नी ने डकैती का समाचार बताया और तुरंत यहां आया हूं. पूरा समाचार तो अभी अखबार पढ़ कर ही जान पाया.’’

‘‘देख लिया न तुम ने अखबार वालों का हाल. पूरे 2 लाख की डकैती हुई है. पूरी कालोनी में सनसनी है. आनेजाने वालों का तांता लगा है और समाचार इतना छोटा. न्यूज देख कर तो ऐसा लगता है कि जैसे 100-50 मुरगियों की चोरी का हलकाफुलका समाचार हो.’’

मैं ने कहा, ‘‘ठीक कह रहे हो यार. सारा अखबार तो पी.एम. के समाचारों और तसवीरों से भरा है. कहीं उद्घाटन है, कहीं शिलान्यास. पूरे फ्रंट पेज पर उन के भाषण, स्वागत और झलकियों की झलक है. इसी वजह से डकैती के समाचार को स्थान ठीक से नहीं मिल सका.’’

मेरी बातें सुन कर गुलाटी हां में हां मिलाते हुए बोला, ‘‘मेरे साथ यही दिक्कत है. अखबारों ने कभी मेरे साथ न्याय नहीं किया. पिछली बार जब मैं मेयर पद का उम्मीदवार बना था तो अखबारों ने सतही ढंग से लिया. मेरी उम्मीदवारी का समाचार भी नहीं बना और जब 15 पार्षदों ने मेरे पक्ष में वातावरण बनाया, हस्ताक्षर अभियान चलाया तो अखबारों में भी हरकत बढ़ी तब कहीं फोटो सहित समाचार आया,’’ इतना कह कर उस ने राहत की सांस ली और 2 लाख की डकैती के दुख को कुछ कम किया.

मैं ने झिड़कते हुए कहा, ‘‘गड़े मुर्दे उखाड़ने से क्या फायदा, अतीत को छोड़ कर अपने वर्तमान में आजा और डकैती का सार संक्षेप में बता.’’

‘‘देख लो दुर्भाग्य, डकैतों ने भी कैसा दिन चुना. दिन भर पी.एम. नगर में रहे, रात में डकैत आए. 1-2 दिन आगेपीछे आ जाते तो अपने को इतना अफसोस नहीं होता,’’ इतना कह कर उस ने आज का अखबार दिखाया.

अखबार में पुलिस दल के निरीक्षण और डाकुआें का कोई सुराग न मिलने का समाचार छपा था. मैं ने कहा, ‘‘आज के अखबार में भी डकैती को विशेष स्थान नहीं मिला. सी.एम. की खबर से अखबार भरा पड़ा है.’’

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अपने घर की डकैती का समाचार तो पी.एम. और सी.एम. के दौरे के बीच दब कर दम तोड़ चुका है. पुलिस वाले भी देर से आए. 2 दिन के थकेहारे खानापूर्ति कर के चले गए. 2 पुलिस के नौसिखिए भी आए. एक तो पूछ रहा था कि डकैती का सही समय बताइए. उस की बात सुन किसी को भी गुस्सा आ सकता है. फिर भी अपने को संयत कर मैं ने कहा, ‘‘ठीक समय मालूम होता तो जान पर खेल कर पकड़ नहीं लेता डकैत को, डाकुओं के आने के लिए अलार्म लगा कर तो सोए नहीं थे. ठीक समय क्या बताएंगे. सो कर उठे तो मालूम हुआ, सुबह के 5 बज चुके थे.’’

दूसरे ने पूछा, ‘‘सुना है, कालोनी के कुछ लोगों ने डकैतों को भागते भी देखा है. क्या डकैत सशस्त्र थे?’’ मैं ने कह दिया, ‘‘यह आप उन्हीं से पूछ लीजिए, जिन्होंने देखा है. अब भला यह भी कोई पूछने की बात है कि डकैत सशस्त्र थे? सशस्त्र नहीं होंगे तो क्या चकलाबेलन ले कर रोटी बेलने आएंगे. यह हाल है अपने नए अफसरों का. फिल्मों में कामेडियन कम हो गए हैं पुलिस विभाग में ज्यादा.’’

पत्नी और बच्चे भी पहुंच चुके थे. वे लोग अंदर मिसेज गुलाटी के साथ नाश्ता करते हुए डकैतों के जाने के बाद का आंखोंदेखा हाल सुन रहे थे. बच्चों को मिस्टर गुलाटी का लड़का वह खिड़की दिखा रहा था जिधर से डकैत आए थे. मैं मिस्टर गुलाटी का साथ दे रहा था. कालोनी के अनेक परिचित अभी तक नहीं आ पाए थे. गुलाटी को इसी बात की चिंता सता रही थी. बारबार उस की नजर दरवाजे की ओर उठ जाती थी. वह स्वागत के लिए कमर कस कर बैठा था. तभी अचानक कुत्ते के भौंकने की आवाज आई. मैं ने कहा, ‘‘यार गुलाटी, तुम्हारी पामेरियन नस्ल का कुत्ता क्या कर रहा था. तेज कुत्ता है जरूर भौंका होगा डकैतों की आहट सुन कर.’’

खीजते हुए गुलाटी बोला, ‘‘पामेरियन और अल्सेशियन बस, नाम के रह गए हैं. हमारा जानी तो दिन में आनेजाने वालों को भौंकता है और रात को खर्राटे भरता है. दरअसल, विदेशी नस्ल का भी भारतीयकरण हो गया है. रात को बिलकुल ही नहीं भौंकता. मुझे तो लगता है कि यह कुत्ता डकैतों से मिला हुआ है.’’

मैं ने अपनी हंसी दबाते हुए कहा, ‘‘पुलिस के कुत्ते तो आए होंगे. उन्होंने क्या डिटेक्ट किया?’’

‘‘अरे, यार, पी.एम. और सी.एम. के दौरे में कुत्ता ज्यादा व्यस्त और सक्रिय रहा. सुना है 2-3 दिन से बीमार चल रहा है. एक पशु चिकित्सक की सतत निगरानी मेें है. उस के लिए राजधानी से इंजेक्शन आ रहे हैं.’’

मैं ने कहा, ‘‘तुम्हारी तो तकदीर ही खराब है. 2 लाख की डकैती हो गई, अभी तक पुलिस के जासूसी कुत्ते भी नहीं पहुंचे.’’

गुलाटी ने तैश में आ कर कहा, ‘‘शर्माजी, पैसा तो अपने हाथ में नाचता है. गहने और नकदी मिला कर 2 लाख के करीब गए हैं. ये तो ट्रांसफर के सीजन में फिर कमा लेंगे. मानसून के आनेजाने से मामले में धोखा हो सकता है. गरज के साथ सिर्फ छींटे पड़ सकते हैं लेकिन अपना सीजन ठीक समय में आता है. आंगन में अच्छी बारिश हो जाती है. इसलिए सवाल 2 लाख की डकैती का नहीं है. अपन तो अखबारों में ठीक कवरेज न आने से दुखी हैं.’’

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hindi online story : प्‍यार के जख्‍म

लेखक : कृष्ण कुमार भगत 

सुनील के निश्छल प्रणय निवेदन को रोजी उर्फ सीमा ने बड़ी बेदर्दी से ठुकरा दिया. बीते वक्त के साथ उस की जिंदगी में आई अनिता. सुनील के टूटे दिल के जख्म फिर हरे होने लगे ही थे कि एक दिन अचानक हुआ सीमा का आगमन, जिस ने उस के दिलोदिमाग को झकझोर कर रख दिया.

सीमा के संदर्भ में मैं ने एक कविता संग्रह ‘आओ, इस जर्जर घड़ी को बदल डालें’ शीर्षक से लिखा था, जिस की याद अब मुझे आ रही है और अनिता अक्षरश: उसे सुनाने लगी. मेरे अपने ही शब्द आज मुझे कितने भोथरे महसूस हो रहे हैं.

‘‘जितनी जल्दी हो सके…आओ इस जर्जर घड़ी को बदल डालें. वरना हरगिज माफ नहीं करेंगी हमें…आने वाली हमारी नस्लें…’’

सीमा, यानी अनिता की पुरानी सहेली, इतनी जल्दी वह घर आ धमकेगी, वह भी मेरी गैरमौजूदगी में, यह तो बिलकुल न सोचा था. कल शाम को बाजार में शौपिंग करते हुए अचानक वह मिल गई तो मैं चौंक उठा, जबकि उस के चेहरे पर ऐसा कोई भाव न उभरा था.

‘‘सुनील, यह सीमा है,’’ अनिता ने परिचय दिया, ‘‘मेरी प्रिय सखी.’’

‘‘बड़ी खुशी हुई आप से मिल कर,’’ औपचारिकता के नाते कहना पड़ा. कड़वा सच एकदम से उगला भी तो नहीं जाता.

‘‘किसी हसीन लड़की से साली का रिश्ता जुड़ जाने पर भला कौन खुश नहीं होगा,’’ निसंकोच सीमा ने कहा और हंस पड़ी. वही 3 साल पुराना चेहरा, वही रूपरंग, कातिल अदा, मोतियों से चमकते दांत, कुदरती गुलाबी होंठ और उसी तरह गालों को चूमती 2 आवारा लटें, कुछ भी तो न बदली थी वह. हां, उस का यह नाम जरूर पहली बार सुना और अपनी बात पर स्वयं ही खिलखिला उठना कतई न सुहाया. मन में दबी नफरत की चिंगारी भड़क उठी और ‘साली का संबोधन’ अंगारे की तरह अंदर जलाता चला गया.

‘‘अच्छा, मैं चलूं, अनिता,’’ सहसा वह बोली.

मैं उस से पूछना चाहता था कि इतना कह देने भर से ही क्या तुम छूट जाओगी और मेरी यादों के कैनवास पर से तुम्हारे चरित्र के दाग मिट जाएंगे?

‘‘ऐसी भी क्या जल्दी है,’’ अनिता ने कहा, ‘‘इतने बरसों बाद तो मिली हो, घर चलो, आराम से बैठ कर बातें करेंगे.’’

‘‘फिर कभी आऊंगी, अभी जल्दी में हूं, अपना पता दे दो.’’

अनिता ने उसे अपना विजिटिंग कार्ड थमा दिया था.

रात भर मैं यही सोचता रहा कि उस ने अनिता के सामने ऐसा क्यों जताया कि हम पहली बार मिले हैं. क्या वह मुझे उस पत्र से ब्लैकमेल करना चाहती है, जिस में प्रेम के साथसाथ मैं ने उस से विवाह करने की इच्छा भी जाहिर की थी? ऐसी लड़कियों का भरोसा ही क्या? आज सारा दिन आफिस में भी दिमाग अशांत रहा. शाम को थकाहारा घर लौटा तो अनिता ने ठंडे पानी के साथ गरमागरम खबर दी, ‘‘दोपहर में सीमा आई थी.’’

 

सुनते ही मैं सोफे पर से उछल पड़ा, कई सवाल दिमाग में कौंधे…क्यों वह मेरे शांत व सुखी घरेलू जीवन में तूफान लाने पर तुली है अनिता, अब तक मां नहीं बन सकी तो क्या हुआ, दोनों में अच्छा तालमेल तो है.

‘‘रहने की तलाश में है बेचारी,’’ अनिता ने बताया, ‘‘अपने पड़ोस में खाली पड़ा मकान तय करवा दिया है और कह रही थी, प्लीज जीजाजी से सिफारिश कर के कहीं काम पर रखवा देना.’’

मैं बोला, ‘‘देखूंगा.’’

‘‘देखूंगा नहीं,’’ अनिता ने जोर दिया, ‘‘उसे सर्विस दिलानी है, वह आप की बहुत प्रशंसा कर रही थी.’’

‘‘क्या कह रही थी?’’

‘‘ऐसा नेक पति भाग्य से मिलता है,’’ पत्नी के होंठों पर मंदमंद मुसकान देख…मेरा चोर मन बोला कि निश्चय ही यह सबकुछ जान कर…अब मजा ले रही है.

‘‘शोख और चंचल है ना, इसलिए मजाक भी कर रही थी.’’

‘‘क्या?’’

‘‘जानेमन, शादी से पहले अगर जनाब को देख लेती तो तुम्हारी जगह आज मैं होती,’’ शुक्र है, लेकिन तभी अनिता ने यह कह कर मुझे फिर झटका दिया, ‘‘मैं देख रही हूं…कल शाम से आप कुछ अपसेट हैं?’’

‘‘नहीं, मैं ठीक हूं,’’ स्वयं को संभालते हुए मैं ने कहा, ‘‘एक बात कहूं अनि, मानोगी?’’

‘‘कहो.’’

‘‘सीमा से अब तुम्हारा मेलजोल बढ़ाना ठीक नहीं.’’

‘‘क्यों?’’ वह सकपका गई, ‘‘क्या दोष है उस में?’’

दोष, यह पूछो, क्या दोष नहीं है उस में? पर इतना कह न पाते हुए मैं बोला, ‘‘हमारा स्तर उस से…’’

‘‘यह तो कोई बात न हुई,’’ अनिता ने एकदम से कहा, ‘‘आखिरकार वह मेरी पुरानी दोस्त है.’’

इस विषय को बदलने के लिए मैं कपड़े बदल कर हाथ में रिमोट ले कर टीवी खोलता हूं, पर यह क्या? हर चैनल पर सीमा मौजूद है. झल्ला कर रिमोट, मेज पर रखते हुए अपनी एक पत्रिका उठा लेता हूं, उस के पन्नों पर भी वही चेहरा दिखता है तो हार कर पत्रिका मेज पर पटक देता हूं और अपने दोनों पैर मेज पर फैला कर व सिर सोफे पर टिकाते हुए पलकें मूंद लेता हूं, तो सीमा, नहींनहीं, रोजी का चेहरा सजीव होने लगता है.

मुंबई के ‘प्रिंस’ होटल की रजत जयंती का मौका था. उस रात होटल में नृत्य का एक विशेष कार्यक्रम आयोजित हुआ था. कार्यक्रम शुरू होने में अभी कुछ देर थी. मैं डिनर ले कर अपनी मेज पर अकेला ही काफी पीने लगा. सहसा 2 नारी स्वरों ने चौंका दिया. कनखियों से उधर देखा तो बस, देखता ही रह गया. वहां 2 नव- युवतियां एक मेज पर बैठी नजर आईं, उन में एक सांवली सी गदराए बदन की बिल्लौरी आंखों वाली सामान्य लड़की थी, जिस ने कत्थई रंग की मैक्सी पहन रखी थी.

दूसरी, पहली बार में ही असामान्य लगी. गुलाबी साड़ीब्लाउज में सजासंवरा उस का मदमस्त यौवन लोगों के दिलों पर कहर ढा रहा था. कुछेक क्षणों के लिए तो मेरा दिल भी थम सा गया. यों लगा मानो वह नृत्य प्रोग्राम के बजाय, किसी सौंदर्य प्रतियोगिता में भाग लेने आई हो.

बीयर के जाम पर नाचती हुई उस की उंगलियां देख कर किसी नाजुक टहनी पर अधखिली कलियों के मंदमंद हवा में हिलने का भ्रम हुआ. उस ‘गुलाबी सुंदरी’ को अपनी सखी के साथ इस तरह अकेले बीयर पीते देख मैं ने उसे किसी बड़े घराने की माडर्न लड़की ही समझा. वह जितनी सुंदर उतनी ही चंचल लगी. मेरा ध्यान  अब तक उधर क्यों नहीं गया? इस का अफसोस तो हुआ ही, साथ में यह ताज्जुब भी कि वे दोनों डांस में मुझे अपना पार्टनर बनाने को आतुर हैं.

प्रोग्राम शुरू होने जा रहा है, जिन के पास निजी पार्टनर नहीं हैं, वे हाल में बैठे लोगों में से  अपना मनपसंद पार्टनर ढूंढ़ने लगे. कत्थई मैक्सी वाली को एक मनचले युवक ने आमंत्रित कर लिया, ‘गुलाबी रूपसी’ को उस का आफर ठुकराते देख मुझे एक अनजानी खुशी महसूस हुई.

सहसा तभी होटल मैनेजर ने स्टेज पर ताली बजाते हुए लोगों का ध्यान खींचा और माइक में बोला, ‘लेडीज एंड जेंटल मैन, जैसा कि आप सब जानते हैं, आज हम इस पिं्रस होटल की सिल्वर जुबली मनाने जा रहे हैं. पिछले अनेक सालों से निरंतर हमें आप का जो अपार स्नेह व भरपूर सहयोग मिलता रहा है, उस के लिए यह होटल आप सब का आभारी है, और आशा नहीं, पूर्ण विश्वास है कि भविष्य में भी हमें आप सब का इसी तरह सहयोग मिलता रहेगा.

‘आज के स्पेशल डांस प्रोग्राम में सर्वप्रथम आप बाल रूम डांस का लुत्फ उठाएंगे, फिर टैब डांस का और अंत में आर्केस्ट्रा की धुन में तेजी आ जाएगी, जो हर पल बढ़ती ही रहेगी. आखिर तक इस तीव्र धुन पर नाचने वाला जोड़ा, आज के डांस प्रोग्राम का विनर प्राइज हासिल करेगा.’

हाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा.

नृत्य आरंभ हो गया. आर्केस्ट्रा की धीमी व मीठी धुन हाल में रस घोलने लगी. चारों तरफ एक अजीब सा उन्माद छा गया. जवान क्या, बूढे़ भी एकदूसरे की कमर में बांहें डाल थिरकते हुए डांसिंग फ्लोर पर आ गए, धीमी गति के नृत्य का मधुर समां देखते ही बनता था.

रात के उस दौर में शराब और शबाब का अनूठा मेल पा कर मेरा सूफी मन भी उस में डूब जाने को मचल उठा. उस ‘गुलाबी प्रिया’ को यथावत बैठी देख मैं प्रसन्नता से झूमता चला गया.

‘आई एम सुनील कुमार,’ नाम बताते हुए उस से बोला, ‘क्या आप मेरे साथ डांस करेंगी?’

‘श्योर,’ वह मुसकरा दी, ‘मुझे रोजी कहते हैं.’

‘वेरी गुड,’ मैं चहका, ‘आप के पेरेंट्स ने बहुत सोचसमझ कर यह नाम रखा होगा?’

‘नहीं, ऐसा नहीं है,’ रोजी पुन: मुसकराने लगी और उठ कर अपना खूबसूरत एवं नाजुक हाथ बढ़ाते हुए बोली, ‘आइए, डांस करें.’

कहीं फिर न चूक जाऊं, इसलिए प्यार से उस का हाथ पकड़ते हुए मैं ने ‘थैंक्यू’ कहा. नृत्य में वह इस कदर खुल कर पेश आई मानो हम पहले से एकदूसरे को जानते हों. खैर, उस रात विशेष डांस प्रोग्राम में रोजी के साथ मुझे ही ‘ताजमहल’ मिला, लेकिन विदा होते समय जब उसे प्राइज सौंपा तो वह उदास लगी, मानो उस की उम्मीदों पर मैं खरा नहीं उतरा.

इस के बाद रोजी कई बार क्लब, होटल, सिनेमा, समंदर के किनारे आदि जगहों पर मिली लेकिन वह हमेशा जल्दी में होती जबकि मैं निरंतर महसूस करता कि वह जानबूझ कर ऐसा करती है. उस की चेष्टा कतरा जाने में रहती है. अचानक ही सामने आ जाने से उस के चेहरे पर नागवारी के जो भाव उभरते उन्हें आसानी से मैं पढ़ लेता. उसे मानो मेरा मिलना अखरता हो.

वह मेरे होशोहवास पर इस तरह छा गई कि मैं एकांत में छटपटा उठता और तब मुझे ऐसा लगता कि उस के बगैर वजूद अधूरा है. प्राय: मैं सोचता, ज्यों ही वह मिलेगी तो फौरन उस के आगे पे्रम का इजहार कर दूंगा, लेकिन रोजी की व्यस्तता और जल्दबाजी…कुछ कहने का मौका न देती.

एक दिन सोचा कि बात ऐसे नहीं बनेगी, अत: रोजी के वास्ते मैं ने एक पत्र लिखा, जिस में प्रेम के साथसाथ उस से विवाह रचाने की इच्छा भी प्रकट की और अब वह पत्र सदा जेब में रहता, ताकि मिलते ही उसे थमा दूं.

सहसा एक दिन शाम को वह सड़क पर भीड़ में जाती दिखाई दी. मैं ने जोर से नाम ले कर उसे पुकारा. उस ने चौंक कर पीछे देखा. मैं ने झट से गाड़ी फुटपाथ के साथ ले जा कर रोक दी तो उसे नजदीक आना ही पड़ा.

‘हाय, रोजी.’

‘हाय…’ मुसकराने के बावजूद उस के चेहरे पर बेरुखी उभर आई. सफेद पैंट और टौप पर खुली केश राशि में वह बिजलियां गिराती नजर आई.

मैं कह उठा, ‘आओ, जुहू पर टहलें.’

‘सौरी, आज फिर बिजी हूं,’ खेद भरे स्वर में वह बोली.

‘आओ तो सही, जहां कहोगी वहां उतार दूंगा.’

दिल की बात कहने के लिए इतना सफर ही बहुत होगा.

‘बेकार आप को परेशान…’

 

‘मैं फुरसत में हूं,’ उतावलेपन से मैं उस की बात बीच में काटते हुए बोला तो उस से इनकार करते न बन पड़ा.

कार का अगला गेट खोलते हुए वह चुपचाप मेरी बाजू में आ कर बैठ गई. उस के बदन का मधुर स्पर्श पाते ही बात कहां से शुरू करूं समझ में न आया और कुछेक क्षण यों ही निकल गए.

‘मुझे यहीं उतरना है,’ रोजी ने कहा.

‘ठहरो रोजी.’

जातेजाते वह पलटी. मैं ने पत्र निकाल कर उसे देते हुए भारी स्वर में कहा, ‘एकांत में इसे जरूर पढ़ लेना.’

रोजी उसे ले कर भीड़ में समा गई. मैं ने देखा, वह क्लब के सामने उतरी है.

अगली मर्तबा मिलते ही रोजी खिलखिला कर हंस पड़ी.

मैं अवाक् सा मोतियों की भांति चमकते उस के दांत देखता रह गया. हंसतेहंसते उस की आंखें नम हो गईं. थोड़ी देर बाद अपनी हंसी पर काबू पाते हुए वह बोली, ‘बस, इतनी सी बात के लिए कागज रंग डाला. कितनी बार तो मिली हूं? कभी भी कह दिया होता.’

‘तुम्हारी व्यस्तता और जल्दबाजी ने मौका ही कब दिया?’

एकाएक रोजी गंभीर हो गई. माथा सिलवटों से भर गया. मानो किसी उलझन में फंस गई हो…हां…कहेगी या ना? सोचते हुए मैं ने उसे टोका, ‘जवाब दो, रोजी.’

उस की चंचलता पुन: लौट आई और वह अपने आंसू इतनी सफाई से पी गई कि मैं देख कर दंग रह गया. ‘बेकार शादी के लफड़े में क्यों पड़े हो?’ जबरन हंसते हुए उस ने कहा, ‘मैं तो यों ही तुम्हारी बन जाने को तैयार हूं, चलो, कहां ले जाना चाहते हो मुझे?’

रोजी, अश्लीलता की सारी हदें पार कर गई थी. निर्लज्जता से भरा यह निमंत्रण पा कर मन में आया कि एक जोरदार थप्पड़ उस के गाल पर जड़ दूं, लेकिन कुछ सोचते हुए दुख, आश्चर्य व क्रोध से कसमसा कर रह गया.

‘मुझे तुम से यह उम्मीद नहीं थी, रोजी.’

‘गलती की, जो एक सेक्स वर्कर से आप कोई दूसरी उम्मीद कर बैठे.’

रोजी ने मानो पिघला हुआ शीशा कानों में उड़ेल दिया हो. सहज ही उस के शब्दों पर विश्वास न हुआ और मैं पागलों की भांति उसे देखता रह गया. यह खूबसूरत लड़की…बाजारू माल कैसे हो सकती है? नहीं…नहीं…पर जो पहले से था, उस पर यकीन करना ही पड़ा. उस के मुख से यह कड़वा सच सुन प्यार के साथसाथ अब उस के प्रति सहानुभूति भी उमड़ आई. जीवन में इस अंधेरी राह पर जाने के पीछे अवश्य कोई मजबूरी रही होगी. उसे जानने की इच्छा से ही मैं कातर स्वर में बोला, ‘इतनी सुंदर, पढ़ीलिखी और समझदार हो कर भी तुम ने यह लाइन क्यों पकड़ी, रोजी?’

‘अरे, तुम तो भावुक हो गए,’ वह उपहास उड़ाते हुए खिलखिला उठी, जबकि मैं उसे अपनी आंतरिक वेदना पर हंसी का लबादा ओढ़ते हुए साफसाफ देख रहा था.

‘मजाक नहीं रोजी, मैं अब भी तुम्हें अपना जीवनसाथी बनाना चाहता हूं,’ सचमुच भावुकता के वेग में मैं बहता ही चला गया, ‘तुम्हारे अतीत से मुझे कोई सरोकार नहीं…और न ही भविष्य में कभी कुछ पूछूंगा, मैं तो सिर्फ…तुम्हें इस अंधेरे से उजाले में ले जा कर एक नए जीवन की शुरुआत करना चाहता हूं, जहां हम दोनों और हमारी खुशियां होंगी.’

‘तुम्हारे विचार और भावनाओं की मैं कद्र करती हूं, सुनील,’ वह यथार्थ के कठोर धरातल से चिपकी रह कर ही बोली, ‘मगर अफसोस, तुम्हारा औफर ठुकराने पर मजबूर हूं, मेरे हालात ऐसे हैं कि लाख चाहने पर भी मैं उन के खिलाफ कोई फैसला नहीं ले सकती.’

‘मुझ पर भरोसा करो, रोजी,’ मैं ने तहे दिल से कहा, ‘हम हर मुश्किल आसान कर लेंगे, प्लीज, बताओ तो सही.’

‘यह नामुमकिन है, सुनील,’ कह कर उस ने एक गहरी सांस ली और फिर अपनी कलाई पर बंधी घड़ी देख कर बोली, ‘अच्छा, मैं अब चलूं.’

लेकिन जातेजाते ठहर गई. उसी कातिल अदा से पलट कर देखा और हंस कर बोली, ‘यों रास्ते में अचानक ही घेर कर मेरा धंधा खराब मत किया करो. पहले दिन भी तुम्हें अपना ग्राहक समझा था मैं ने और मेरी वह रात बेकार गई. खैर, कोई बात नहीं, तुम से मुझे न जाने क्यों अजीब सा लगाव हो गया है और उसे मैं कोई नाम नहीं देना चाहती. हां, अगर तुम चाहो तो हफ्ते में एक नाइट तुम्हारे साथ मुफ्त गुजार दिया करूंगी.’

‘‘रोजी…’’

‘‘क्या हुआ?’’ अनिता किचन से बाहर आ गई, ‘‘क्यों चिल्ला रहे हो? तबीयत ठीक तो है?’’

‘‘हां, मैं ठीक हूं,’’ कह कर माथे से पसीना पोंछते हुए बोला, ‘‘आज चाय नहीं दोगी?’’

‘‘एक मिनट, अभी लाई,’’ और वह लौट गई.

मैं फिर रोजी के बारे में सोचने लगा.

रोजाना आफिस आतेजाते सड़कों पर या जहांजहां उस के मिलने की संभावना थी वे सारे ठिकाने देख डाले पर रोजी नहीं मिली. फिर अचानक एक दिन भीड़ में वह नजर आ गई. फौरन कार फुटपाथ के एक ओर रोक कर मैं पैदल ही उस के पीछे हो लिया.

‘रोजी…’ हांफते हुए मैं ने पुकारा. पर वह अनजान सी आगे बढ़ती रही. मुझ से रहा न गया तो दौड़ कर उसे पकड़ लिया और फुटपाथ पर खींच लिया.

‘आखिर तुम चाहते क्या हो?’ पलटते ही वह एकदम गुर्राई, ‘क्यों हाथ धो कर मेरे पीछे पड़े हो?’

‘आई लव यू, रोजी.’

उस ने सहम कर इधरउधर देखा, फिर बोली, ‘देखो, मैं चिल्ला उठी तो यहां लोग जमा हो जाएंगे और वे सब तुम्हें इश्क का मतलब समझा देंगे, पुकारूं?’

मैं यह सोच कर सिर से पांव तक सिहर गया कि वह मेरे साथ ऐसा भी कर सकती है. उस की बांह पर कसा मेरा हाथ दूसरे ही क्षण ढीला पड़ता चला गया.

‘आइंदा यह हरकत मत करना, वरना…’ चेतावनी देते हुए उस ने हाथ छुड़ाया और भीड़ में खो गई, मैं पागलों की तरह खड़ा रह गया.

उस के बाद रोजी कभी नहीं मिली और न ही मन में कभी उस से मिलने का खयाल आया. जब कभी उसे ले कर मन घृणा से भरता तो मैं कविता के सहारे उसे हलका कर लेता.

काशीपुर में दीदी की ससुराल है. वह अकसर फोन करती रहतीं कि तेरे लिए एक लड़की देखी है, कभी आ कर हां, ना बता जा. मातापिता के बरसों पहले गुजर जाने के बाद इस जहान में वही तो हैं, उन की यह बात न रखी तो वह भी मुंह मोड़ लेंगी. सो, मैं एक माह की छुट्टियां ले कर काशीपुर आ गया.

कांता दीदी ने मेरी पसंद को ध्यान में रखा था. लड़की देखते ही रिश्ता पक्का हो गया. जीजाजी तो मानो पहले से ही पूरी तैयारियां किए बैठे थे. अनिता के साथ चट मंगनी, पट ब्याह होते ही मैं अनिता को ले कर हनीमून मनाने के लिए नैनीताल जा पहुंचा. ऊंचीऊंची पर्वत श्रेणियों से घिरा नैनीताल का सुंदर इलाका, सुंदरतम झील और हरीभरी वादियों में पता ही न चला कि छुट्टियां कब गुजर गईं. हम दोनों एक दूसरे के इतने करीब आ गए, जैसे बचपन से साथ रहे हों. नैनीताल से काशीपुर, 2 दिन दीदी के यहां रह कर हम मुंबई आ गए.

उन्हीं दिनों की बात है, जब गुप्ता इंटरप्राइजेज ने पुणे में भी अपनी शाखा खोली. चूंकि कंपनी के मालिक मेरी कार्यकुशलता व ईमानदारी से पूरी तरह संतुष्ट थे. इसलिए यहां की जिम्मेदारी भी मुझे ही सौंपी गई. यहां मुंबई के मुकाबले मुझे ज्यादा सुविधाएं मिलीं.

अनिता के साथ पिता न बन पाने के बावजूद चैन से हूं. उस की बच्चेदानी में इंफैक्शन है. डाक्टर का कहना है, शीघ्र ही उसे आपरेशन द्वारा निकाला नहीं गया तो अनिता की जान को खतरा हो सकता है.

कल शाम से सीमा ने हमारे दांपत्य जीवन में हलचल मचा दी. समझ में नहीं आ रहा कि आखिर वह चाहती क्या है? ऐसी बाजारू लड़कियों का भरोसा ही क्या? अपनी इज्जत तो नीलाम करती ही हैं, दूसरे की भी मिट्टी में मिला देती हैं. सीमा अगर अनि से कह दे कि 3 साल पहले मैं ने उसे न केवल पत्नी बनाना चाहा था, बल्कि उस के द्वारा विवाह का प्रस्ताव ठुकरा देने पर बुरी तरह अपमानित भी हुआ था, तो क्या मैं उस की निगाह में ठहर पाऊंगा? अगर सीमा ने कहीं अनिता को वह पत्र दिखा दिया तो क्या जवाब दूंगा? अगर उस ने यह भेद छिपाने की कीमत मांग ली तो कैसे अदा करूंगा? उफ.

 

‘‘बेशर्म, कमीनी,’’ क्रोध में मैं बड़बड़ा उठा.

‘‘किसे विभूषित किया जा रहा है, महोदय?’’ चायनाश्ता टे्र में लाते हुए अनिता ने पूछा तो मैं हड़बड़ा गया, मानो रंगेहाथों चोर पकड़ा गया हो.

‘‘क्षमा करें, बंदी से भूल हो गई,’’ अपने खास लहजे में उस ने चोट की.

‘‘सौरी.’’

‘‘भविष्य में ध्यान रहे,’’ वह महारानियों की तरह मुसकराई.

चाय से पहले, मुंह में चिप्स डाला तो मन में यह खयाल आया कि क्यों न अनिता को अपने अतीत के बारे में बता दूं और अपराधबोध से मुक्त हो जाऊं? यह तो मुझे अच्छी तरह समझती है. मेरी कविताओं की सहृदय पाठक ही नहीं, बल्कि समालोचक भी है. हां, इसी के सहयोग व प्रेरणा से तो ‘कायर नहीं हैं हम’ और ‘आओ, इस जर्जर घड़ी को बदल डालें’ कविता संग्रहों का प्रकाशन हुआ है.

‘‘सीमा को तुम कब से जानती हो, अनि?’’ रहस्योद्घाटन से पहले टोह लेना चाहा.

‘‘बचपन से,’’ उस ने बताया, ‘‘बाजपुर में उस का परिवार हमारे पड़ोस में ही रहता था, 9वीं में वह अपने मम्मीपापा के साथ वाराणसी चली गई थी. कुछ समय तक हमारे बीच फोन पर बातचीत होती रही, फिर वे लोग, भैया की शादी में नहीं आए, तो फोन आना बंद हो गया. उस के बाद वह कल शाम ही मिली, क्यों?’’

‘‘उसे नौकरी पर लगवाने के लिए पूछ रहा हूं. उस की योग्यता क्या है?’’

‘‘अंगरेजी से बी.ए. फाइनल नहीं कर सकी थी.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘हीरोइन बनने की गरज से अपने प्रेमी के साथ मुंबई भाग आई थी, फिर स्टूडियो के चक्कर लगातेलगाते हताश हो कर उस ने घर लौट जाने का फैसला कर लिया था. उस का वह प्रेमी उस के गहने व रुपए ले कर चंपत हो गया और जातेजाते उसे लड़कियों से जबरन धंधा कराने वाले एक गिरोह के एजेंट को बेच गया जिस के बौस के पास कई पुरुषों के साथ बेहोशी में शूट की गई उस की ब्लू फिल्म थीं.’’

‘‘कंप्यूटर तो जानती होगी?’’

‘‘हां, प्लीज…कोई जगह खाली हो तो उसे रख लो,’’ अनिता ने आग्रह किया.

‘‘मैं हंसा,’’ वह भी फ्री में…

‘‘उस के पास देने को है भी क्या?’’

‘‘है, जो हमारे पास नहीं है.’’

‘‘मतलब?’’ अनिता चौंकी थी.

‘‘कोख.’’

वह भी हंसी, ‘‘तो पापा बनने को व्याकुल हो. मैं जानती हूं.’’

‘‘अनि…क्या तुम उसे स्वीकार कर सकोगी. कहीं वह मुझ पर अधिकार न जता ले?’’

‘‘‘सीमा के संदर्भ में’ आओ, इस जर्जर घड़ी को बदल डालें, संग्रह की शीर्षक कविता याद आ रही है मुझे,’’ और वह अक्षरश: उसे सुनाने लगी.

दीवार घड़ी में थरथर कांप कर, आगे बढ़ती हुई सुइयों को निहारते हुए चुपचाप मैं सुनता रहा…उस की आवाज…और अंत में बोला, ‘‘स्पष्ट करो.’’

‘‘सीमा एक सेक्स वर्कर है, यह जान कर भी आप उसे अपनाने को तैयार हो गए थे, तो…’’

मैं दंग रह गया, ‘‘यानी…’’ मुख से बमुश्किल निकला.

‘‘हां, आज दोपहर सीमा…सबकुछ बता गई.’’

अपराधबोध से मैं दब गया.

‘‘लेकिन उस ने आप को ठुकरा  दिया क्यों? कभी सोचा आप ने.’’

‘‘हां, कई बार सोचा था,’’ पर किसी नतीजे पर न पहुंच सका.

‘‘दरअसल, वह आप से बेहद प्रभावित हुई थी,’’ अनिता बोली, ‘‘उसे एक अजीब सा लगाव हो गया था आप से, जिसे वह कोई नाम नहीं देना चाहती थी. एक और बात थी कि आप की भलाई भी उस के पांव की जंजीर बन गई.’’

अनिता ने एक नया रहस्य खोला तो मैं बोला, ‘‘उसे और स्पष्ट करो.’’

‘‘लड़कियों की नजरबंदी के लिए तैनात सुरक्षा गार्ड, अगर आप को सीमा के इर्दगिर्द ज्यादा समय तक देख लेते तो आप की जान चली जाती और इसीलिए जानबूझ कर सीमा ने आप के मन में अपने प्रति नफरत भर दी ताकि आप उस से दूर हो जाएं.’’

मैं आश्चर्य से भर कर पत्नी को देखने लगा तो वह आगे बोली.

‘‘यह तो समूचा विपक्ष एक हो जाने पर पिछले दिनों सरकार को उन दरिंदों के खिलाफ काररवाई करने के लिए पुलिस को सख्त आदेश देने पड़े. तब कहीं वह मुक्त हो पाई और घर जा सकी.

‘‘अंकल, सीमा के भाग जाने का आघात बरदाश्त न कर पाते हुए पहले ही चल बसे थे. उस पर बदनामी का दंश…बेचारी कब तक झेलती रहती? छोटे भाईबहन और बीमार मां के साथ तंग आ कर आखिर में वह वाराणसी से पूना चली आई.’’

‘‘पगली, इतना बड़ा त्याग कर डाला, सिर्फ मेरे लिए? क्या लगता हूं मैं उस का? मैं तो आज तक उस से घृणा करता रहा…उसे गलत समझता रहा… छि…छि…छि…’’

‘‘अब तो यही हो सकता है कि हम कुछ करें, सीमा जैसी लड़कियों के लिए,’’ अनिता ने मानो अंदर झांक लिया हो.

‘‘हां, अनि,’’ ये दो शब्द अनंत गहराइयों से निकले पर मुझे नहीं मालूम था कि यह फैसला सही है या गलत. अगर बच्चा हो गया तो क्या उसे अनिता स्वीकार करेगी. और क्या सीमा वास्तव में बच्चे को और मुझे छोड़ कर जाएगी. मैं ने गहरी सांस ली और सब कुछ अनिता पर छोड़ दिया.

Satire : सपेरे की शादी

पत्रकारिता के पेशे में हर दिन कुछ न कुछ नया देखने को मिलता है. यह एक ऐसा पेशा है, जिसमें आप कभी भी बोर नहीं हो सकते हैं. नये-नये लोगों से मिलना, नयी-नयी कहानियों से दो-चार होना, हर सुबह यह सोच कर घर से निकलना कि देखें आज कौन टकराता है. सरकारी नौकरी या किसी भी अन्य काम में इतना एक्साइटमेंट नहीं हो सकता, जितना पत्रकारिता में है. इसी वजह से मुझे अपना पेशा बहुत पसंद है और इसको छोड़ कर कुछ अन्य काम शुरू करने की बात कभी मेरे जहन में नहीं आयी.

मैंने कई शहरों में काम किया है. गांव, कस्बों, दलित बस्तियों के लोगों से मेरा जुड़ाव शुरू से बना रहा है. दिल्ली आने के बाद भी मैं अक्सर रिपोर्टिंग के दौरान गरीब बस्तियों में जाती थी और वहां की समस्याओं और कहानियों से रूबरू होती रहती थी. एक बार की बात है सपेरा जाति के विषय में मैं एक लेख तैयार कर रही थी. दिल्ली में पहले जंगल काफी थे, मगर अब काफी कम हो गये हैं. जंगल होने की वजह से यहां सपेरा जाति के काफी लोग रहते हैं. हालांकि अब ये लोग दिल्ली की सीमाओं पर छोटे-छोटे समूहों में बस्तियां बना कर रहते हैं. दिल्ली के सीमावर्ती जगहों जैसे रंगपुरी पहाड़ी, मांडी भाटी और शांति कैम्प में तम्बुओं और कच्ची झुग्गियों में गुजारा कर रहे इन लोगों के पास जीविका के साधन नाममात्र के हैं. जबसे देश में सांप पकड़ने, बंदर, भालू वगैरह पकड़ने और नचाने पर प्रतिबंध लगा है, तब से यह लोग भुखमरी का सामना कर रहे हैं. इनकी औरतें वेश्यावृत्ति के पेशे को अपनाने के लिए मजबूर हैं और आदमी मजदूरी वगैरह करके बच्चों का पेट पालते हैं.

 

सपेरा जाति की औरतों के बीच उठते-बैठते मुझे उनकी कई कहानियां पता चलीं. कुछ महिलाओं से मेरी अच्छी दोस्ती भी हो गयी. उसके बाद मैं अक्सर उनके बीच जाकर उनकी समस्याओं के बारे में पत्रिका में लिखने लगी.

एक दिन मुझे वहां एक परिवार से न्योता मिला. उनके बेटे की शादी दूसरे परिवार की बेटी से तय हुई थी. मुझे भी दावत में बुलाया गया था. दिन की शादी थी. मैं नियत समय पर पहुंच गयी. वहां शादी की रस्में बड़ी रोचक थीं. वहां तमाम औरतें ढोलक पर अपनी भाषा में गा-बजा रही थीं. दो घंटे में पूरी शादी निपट गयी और एक टैंट से दुल्हन विदा होकर अपने दूल्हे के साथ दूसरे टैंट की ओर पैदल ही चलने को हुई. तभी मैंने देखा कि दुल्हन के पिता ने दूल्हे के हाथों में एक बड़ा सा पिटारा लाकर रखा. मैं चौंक पड़ी. मुझे लगा कि शायद इसमें दूल्हे के लिए कपड़े और पैसा वगैरह होगा. पिटारा देखकर वर पक्ष खुशी से चीखने-चिल्लाने लगा. खूब शोर उठने लगा. मैं भी बड़ी उत्साहित हुई और यह देखने के लिए कि ससुर जी ने दामाद को क्या गिफ्ट दिया है, मैं सबसे आगे जाकर खड़ी हो गयी. दूल्हे ने अपने परिजनों के सामने वह पिटारा खोला. अन्दर से फुंफकारते हुए दो काले नाग अपना फन उठा कर खड़े हो गये. मैं बिदक कर दो कदम पीछे हो गयी. इतने खतरनाक और जहरीले नाग! मैंने साथ खड़े आदमी से पूछा, ‘ये सांप कहां से आये? सरकार ने तो सांप पकड़ने पर प्रतिबंध लगा रखा है?’

वह बोला, ‘सरकार सांप पकड़ने और नचाने पर रोक लगा सकती है, हमारे रिवाजों पर तो नहीं लगा सकती. सपेरा जाति में शादी तब तक पूरी नहीं होती, जब तक दुल्हन का पिता दूल्हे को जहरीले सांप की जोड़ी की पिटारी न दे. इन दोनों की शादी भी पिछले पांच साल से अटकी हुई थी कि काले नाग की जोड़ी न मिल रही थी. देखिए कितने सुंदर नाग मिले हैं दूल्हे को.’

 

दूल्हा खुशी-खुशी पिटारे को सिर पर रख कर आगे चल दिया और उसकी दुल्हन उसके पीछे-पीछे. सब खुश थे. नाग की जोड़ी देखकर वर की तरफ के लोग काफी प्रफुल्लित थे, तो वधु के माता पिता के चेहरे पर भी बेटी को ब्याह कर और दामाद को उसकी सौगात देकर भरपूर खुशी झलक रही थी. मगर मैं इस सोच में डूबी थी कि जब सांप नचाने पर प्रतिबंध है तो फिर नागों की इस जोड़ी का यह दूल्हा करेगा क्या?

Superstitions : सांप से जुड़े मिथक का सच

ज्ञान की क्रांति के बावजूद समाज में सांपों को ले कर अंधविश्वास फलफूल रहा है. अभी भी लोग दूसरों की कहीसुनी बातों पर यकीन कर झूठ को सच मान लेते हैं. इस से वे अपनी जान को जोखिम में डालते हैं. सांपों से जुड़े तथ्यों को जानें. मध्य प्रदेश के भोपाल के पास गनियारी गांव के 25 साल के नारायण सिंह खेतीबाड़ी के काम से अपने खेत गए हुए थे. 3 मई, 2022 की शाम 5 बजे उसे खेत में सांप ने डस लिया. जैसे ही नारायण के घर वालों को खबर लगी, वे उसे अस्पताल ले जाने के बजाय पास के ही गांव बेनीपुर में रहने वाले नाग बाबा के पास झाड़फूंक कराने ले गए.

गांव के लोगों का नाग बाबा के ऊपर इतना भरोसा था कि सांप का जहर वह झाड़फूंक के जरिए खत्म कर देता है. आसपास के कई गांवों के लोग बाबा के पास रोजाना उपचार के लिए जाते हैं. झाड़फूंक करने वाले नाग बाबा ने सर्प दंश से पीडि़त युवक के गले में एक माला पहनाई और धूप जला कर करीब 2 घंटे तक वह झाड़फूंक करता रहा, मगर नारायण की हालत सुधरने के बजाय बिगड़ने लगी. रात 8 बजे उसे भोपाल के नैशनल हौस्पिटल लाया गया, मगर तब तक देर हो चुकी थी.

नारायण की हालत देख कर डाक्टरों ने उसे हमीदिया अस्पताल रैफर कर दिया. रात 10 बजे हमीदिया अस्पताल के डाक्टर ने उसे मृत घोषित कर दिया. डाक्टरों ने घर वालों को बताया कि सांप का जहर पूरे शरीर में फैल चुका है, यदि उसे जल्द अस्पताल लाया जाता तो उस की जान बचाई जा सकती थी. सूचना और संचार तकनीक की क्रांति के बावजूद समाज में अभी भी सांपों को ले कर अंधविश्वास फलफूल रहा है. अभी भी लोग दूसरों की कहीसुनी बातों पर यकीन कर ?ाठ को सच मान लेते हैं.

इस तरह के अंधविश्वास को बढ़ावा देने का काम धर्म के दुकानदारों द्वारा कथाकहानियों में, टीवी पर दिखाए जाने वाले सीरियल और फिल्मों के माध्यम से बखूबी किया जा रहा है. टैलीविजन चैनलों पर दिखाए जाने वाले नागनागिन के सीरियल और ‘नागिन’, ‘नगीना’ जैसी दर्जनों फिल्मों में की गई नागलोक की कपोल कल्पना, इच्छाधारी नाग, बदला लेने वाले नाग, मणि रखने वाले नागों की कहानियां लोगों के दिलोंदिमाग में इस कदर बैठ गई हैं कि वे इन्हें सच मानने लगे हैं. सांपों से जुड़े अंधविश्वास हमारे समाज में सांपों को ले कर कई तरह के अंधविश्वास और भ्रम फैले हुए हैं. गांवदेहात में तो बाकायदा इन की देवीदेवताओं की तरह पूजा की जाती है. नागपंचमी के दिन इन्हें दूध पिलाने की परंपरा है.

सांपों को ले कर कई फिल्में भी बनी हैं जिन में दिखाया जाता है कि नागलोक एक अलग संसार है. ‘नागिन’, ‘नगीना’ जैसी कई फिल्मों में यह कहानी दिखाई गई है कि नाग नागिन के जोड़े में से किसी एक को मारने पर वे अपने साथी की मौत का बदला लेते हैं. इसी प्रकार इच्छाधारी सांप और मणि रखने वाले सांपों की कहानियां गंवई इलाकों में लोगों को सुना कर सांपों के प्रति डर दिखाया जाता है. वास्तव में विज्ञान कहता है कि न तो सांप दूध पीते हैं और न ही इच्छाधारी होते हैं. सांप बीन की धुन पर नाचते हैं, यह भी एक अंधविश्वास है, क्योंकि सांप के कान ही नहीं होते.

गांवदेहात में पंडेपुजारी भी नागपंचमी पर इन का पूजनपाठ करा के भोलेभाले लोगों से दानदक्षिणा बटोर कर अपनी जेबें भरने का काम करते हैं. फुटपाथ पर बिकने वाला साहित्य, हमारी फिल्में और धार्मिक पुराण अंधविश्वास से भरे पड़े हैं. सांप का दूध पीना, सांप का बदला लेना, बीन पर नाचना, मूंछों वाले सांप, दोमुंह वाले सांप, इच्छाधारी नाग, नागमणि होने जैसी बातों से जुड़ी कहानियों का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है. जीव विज्ञान के अनुसार सांप एक मांसाहारी जीव है जो मेंढक, चूहा, पक्षियों के अंडे व अन्य छोटेछोटे जीवों को खा कर अपना पेट भरते हैं. दूध इन का आहार नहीं है. संपेरों को जब भी सांप को दूध पिलाना होता है तो वे उन्हें भूखाप्यासा रखते हैं.

भूखेप्यासे सांप के सामने जब दूध लाया जाता है तो वह उसे पी लेता है. हमारे समाज में ऐसी भ्रांति है कि यदि कोई मनुष्य किसी सांप को मार दे तो मरे हुए सांप की आंखों में मारने वाले की तसवीर उतर आती है, जिसे पहचान कर सांप का साथी उस का पीछा करता है और उस को काट कर वह अपने साथी की हत्या का बदला लेता है. यह सांपों से जुड़ा एक ऐसा अंधविश्वास है जिस का हमारे यहां कहानियों और ढेर सारी फिल्मों में जम कर इस्तेमाल हुआ है. लेकिन यदि हम बात वैज्ञानिक दृष्टिकोण से करें तो इस में तनिक मात्र भी सचाई नहीं है. सांप अल्प बुद्धि वाले जीव होते हैं.

इन का मस्तिष्क इतना विकसित नहीं होता है कि ये किसी घटनाक्रम को याद रख सकें. वैज्ञानिक सिद्धांत के अनुसार जब कोई सांप मरता है तो वह अपने गुदाद्वार से एक खास तरह की गंध वाला तरल छोड़ता है जो उस प्रजाति के अन्य सांपों को आकर्षित करता है. इस गंध को सूंघ कर दूसरे सांप मरे हुए सांप के पास आते हैं जिन्हें देख कर यह सम?ा लिया जाता है कि दूसरे सांप अपने मरे हुए सांप की हत्या का बदला लेने आए हैं. कई बार जिस लाठीडंडे से सांप को मारा जाता है, उस में वह तरल पदार्थ चिपक जाता है. जब उस डंडे को घर के अंदर रखा जाता है तो दूसरे सांप उस गंध से आकर्षित हो कर घर में घुस जाते हैं और हम यह समझ लेते हैं कि सांप का दूसरा साथी बदला लेने आया है.

सड़कों पर खेलतमाशा दिखाने वाले कुछ लोग सांप को अपनी बीन की धुन पर नचाने का दावा करते हैं जबकि यह पूरी तरह से अंधविश्वास है क्योंकि सांप के कान ही नहीं होते. दरअसल यह बात सांपों की देखने व सुनने की शक्तियों और क्षमताओं से जुड़ी है. सांप हवा में मौजूद ध्वनि तरंगों पर प्रतिक्रिया नहीं दर्शाते पर धरती की सतह से निकले कंपनों को वे अपने निचले जबड़े में मौजूद एक खास हड्डी के जरिए ग्रहण कर लेते हैं. सांपों की नजर ऐसी है कि वे केवल हिलतीडुलती वस्तुओं को देखने में अधिक सक्षम हैं. संपेरे की बीन को इधरउधर लहराता देख कर नाग उस पर नजर रखता है और उस के अनुसार ही अपने शरीर को लहराता है और लोग सम?ाते हैं कि सांप बीन की धुन पर नाच रहा है.

 

सांपों से जुड़ी एक अन्य मान्यता यह है कि कई सांप मणिधारी होते हैं यानी इन के सिर के ऊपर एक चमकदार, मूल्यवान और चमत्कारी मणि होती है. यह मणि यदि किसी इंसान को मिल जाए तो उस की किस्मत चमक जाती है. यह मान्यता भी पूरी तरह से अंधविश्वास है क्योंकि दुनिया में अभी तक 3,000 से भी ज्यादा प्रजातियों के करोड़ों सांप पकड़े जा चुके हैं लेकिन किसी के पास भी इस प्रकार की कोई मणि नहीं मिली है. तमिलनाडु के इरुला जनजाति के लोग, जो सांप को पकड़ने में माहिर होते हैं, भी मणिधारी सांप के होने से इनकार करते हैं.

कभीकभी जेनैटिक चेंज की वजह से ऐसे सांप पैदा हो जाते हैं जिन के एक सिर की जगह 2 सिर होते हैं. ऐसा इंसान सहित इस धरती के किसी भी प्राणी के साथ हो सकता है. लेकिन ऐसा कोई भी सांप नहीं होता है जिस के दोनों सिरों पर मुंह होते हैं. होता यह है कि कुछ सांपों की पूंछ नुकीली न हो कर मोटी और ठूंठ जैसी दिखाई देती है. चालाक संपेरे ऐसे सांपों की पूंछ पर चमकीले पत्थर लगा देते हैं जो आंखों की तरह दिखाई देते हैं और देखने वाले को यह लगता है कि इस सांप के दोनों सिरों पर 2 मुंह हैं. सांपों की एक प्रजाति ‘हौर्नड वाइपर’ के सींग तो होते हैं पर सांप की किसी भी प्रजाति की मूंछें नहीं होती हैं क्योंकि सांप सरीसृप (रेप्टाइल) वर्ग के जीव हैं. इन के शरीर पर अपने जीवन की किसी भी अवस्था में बाल नहीं उगते. होता यह है कि सांप को कोई खास स्वरूप देने पर अच्छी कमाई हो सकती है.

इसी लालच में संपेरे घोड़े की पूंछ के बाल को बड़ी ही सफाई से सांप के ऊपरी जबड़े में पिरो कर सिल देते हैं. इस के अलावा जब कोई सांप अपनी केंचुली उतारता है तो कभीकभी केंचुली का कुछ हिस्सा उस के मुंह के आसपास चिपका रह जाता है. ऐसे में उस सांप को देख कर मूंछों का भ्रम होने लगता है. इसी तरह सांपों की किसी भी प्रजाति में उड़ने का गुण नहीं होता है. लेकिन भारत और दक्षिणपूर्वी एशिया के वर्षा वनों (रेन फौरेस्ट) में एक सांप पाया जाता है जिस का नाम फ्लाइंग स्नेक है. हालांकि इन में भी इन के नाम के अनुरूप उड़ने का गुण नहीं होता है. ये फ्लाइंग स्नेक अपना अधिकांश समय वर्षा वनों के ऊंचेऊंचे पेड़ों पर बिताते हैं. इन सांपों को जब एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर जाना होता है तो ये अपने शरीर को सिकोड़ कर छलांग लगा देते हैं. जब ये सांप उछल कर एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर जाते हैं तो ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे ये उड़ रहे हों. हालांकि इस तरह से यह 100 मीटर तक की दूरी तय कर लेते हैं.

एक बहुप्रचलित मान्यता जिस का कि हमारे फुटपाथ पर बिकने वाली किताबों और फिल्मों में जम कर प्रयोग हुआ है वह यह है कि कुछ सांप इच्छाधारी होते हैं यानी वे अपनी इच्छा के अनुसार अपना रूप बदल लेते हैं और कभीकभी ये मनुष्यों का रूप भी धारण कर लेते हैं. यह भी एक मान्यता मात्र है जोकि पूरी तरह से गलत है. जीव विज्ञान के अनुसार इच्छाधारी सांप सिर्फ मनुष्यों का अंधविश्वास और कोरी कल्पना है, इस से ज्यादा और कुछ नहीं. नाग से रचाई शादी इसी तरह की अंधविश्वासी कहानियों के फेर में पड़ कर नाग देवता से शादी रचाने का एक दिलचस्प मामला मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में देखने को मिला है. पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के गृहजिले छिंदवाड़ा के परासिया विधानसभा के आदिवासी अंचल के धमनिया पंचायत के गांव सित्ताढाना निवासी इंदर के 2 बेटे और 2 बेटियां हैं. जिन में 18 वर्षीया छोटी बेटी गीता 8वीं के बाद पढ़ाई छोड़ चुकी है.

गीता को नागपंचमी में सपने में घर और खेत पर सांप दिखाई देते थे. गीता की मानें तो उसे सपने में नाग देवता आते थे और उस से शादी करने की बात करते थे. यह बात गीता ने अपने घर वालों से कही तो पहले तो किसी को भरोसा ही नहीं हुआ. लेकिन जब गीता बारबार नाग देवता से शादी करने की बात कहने लगी और शादी नहीं होने पर जान देने की धमकी देने लगी तो बेटी की जिद के आगे अनपढ़ मातापिता को विवश हो कर उस की बात माननी पड़ी. 15 सितंबर, 2020 को लाल जोड़े में दुलहन बन कर आई गीता के परिवार के लोगों ने घर के पास बने नागदेवता के पूजन स्थल पर लोहे से बने नागदेवता के साथ रीतिरिवाजों के साथ गीता की शादी करवाई. जब लोग मानसिक बीमारियों के शिकार होते हैं तो वे भूतप्रेत, ?ाड़फूंक जैसे अंधविश्वास को मानने लगते हैं.

वास्तव में यह सच नहीं होता. नाग से शादी रचाने की यह अनूठी घटना भी एक प्रकार के मानसिक रोग से पीडि़त होने की कहानी ही है. छिंदवाड़ा के मनोचिकित्सक डा. आर एन साहू ने बताया कि ऐसा होना एक प्रकार का ट्रांसस्टेट है. जब हमारा अचेतन मन चेतन मन पर हावी हो जाता है तो फिर इंसान ऐसी गतिविधियां करता है. असल में इस दौरान ब्रेन का डिफैंस मैकेनिज्म कमजोर हो जाता है जिस से हम अचेतनता की बातों को सही मानने लगते हैं. छिंदवाड़ा की घटना में भी उस लड़की के साथ ऐसा ही हुआ है. सब से ज्यादा खतरा खेतों में खेतखलिहान में रातदिन काम करने वाले मजदूर, किसान को हर पल सावधान रहने की जरूरत है. खेतीबाड़ी से जुड़े कामों में सांप के काटने का खतरा हर पल बना रहता है. कई बार खेत में काम करते वक्त जहरीले जीवजंतुओं के काटने की घटनाएं सामने आती हैं.

खेतों में पाए जाने वाले सांप वैसे तो चूहों से फसलों की रक्षा करते हैं पर सांप को सामने देख कर डर के मारे सभी की घिग्घी बंध जाती है. अकसर खेत में उगी घनी फसल के बीच या खेत की मेड़ पर उगी झाडि़यों में सांप छिपे रहते हैं. अनजाने ही खेत में काम करने वाले के पैर सांप के ऊपर पड़ जाते हैं, तभी सांप अपने बचाव के लिए अपने फन से उसे डस भी लेते हैं. सांप के काटने के इलाज की सही जानकारी न होने से लोग झाड़फूंक के चक्कर में पड़ जाते हैं. यदि काटने वाला सांप जहरीला निकला तो जान से भी हाथ धोना पड़ता है. देश के ज्यादातर हिस्सों में सब से ज्यादा सर्पदंश की घटनाएं वर्षाकाल में सामने आती हैं पर ठंड और गरमी के मौसम में भी खेतों में लगी फसल में काम करते वक्त सर्पदंश से लोग प्रभावित हो जाते हैं. विटनरी कालेज,

जबलपुर के सर्प विशेषज्ञ गजेंद्र दुबे के मुताबिक, भारत में सांपों की लगभग 270 प्रजातियां पाई जाती हैं जिन में से लगभग 10 से 15 प्रजाति के सांप ही ज्यादा जहरीले होते हैं. भारत में करैत, कोबरा नाग, रसेल वाइपर, सा स्केल्ड वाइपर, किंग कोबरा, पिट वाइपर सब से जहरीले सांप हैं. देश में लगभग हर साल 50 हजार लोग सर्पदंश से प्रभावित होते हैं. कई बार सांप जहरीला न भी हो तो भी किसान सांप के काटने के भय से घबरा जाते हैं और हार्ट अटैक से मर जाते हैं. सांप काटने पर ?ाड़फूंक से बचें अकसर सांप के काटने पर लोग ?ाड़फूंक के चक्कर में जल्दी आ जाते हैं. किसानी महल्ला साईंखेड़ा के दरयाव किरार को जुलाई 2018 में धान के रोप लगाते समय सांप ने दाएं हाथ की उंगली में काट लिया.

उन्होने फौरन हाथ के ऊपरी हिस्से में कपड़ा बांध लिया और अपने सहयोगी के साथ झाड़फूंक करने वाले पंडा के पास पहुंच गए. करीब 5-6 घंटे ?ाड़फूंक करने के बाद शाम को घर आ गए. रात्रि में 11 बजे के लगभग जब उन्हें लगातार उल्टियां होने लगीं तो परिवार के लोग उन्हें अस्पताल ले कर गए जहां लगातार 5 दिन तक इलाज चलने के बाद उन की हालत में सुधार हुआ. माहिर लोग बताते हैं कि यदि सांप जहरीला नहीं होता तो पीडि़त व्यक्ति को कुछ नहीं होता. इस वजह से ?ाड़फूंक को लोग सही मान लेते हैं जिन लोगों का यह तरीका ठीक नहीं है. कभी किसी को सांप काटे तो तुरंत ही उसे अस्पताल ले जाना चाहिए. आजकल के नौजवान मोबाइल फोन में सोशल मीडिया की गलत जानकारी को सही मान कर गलतफहमी के शिकार हो जाते हैं और सांप के काटने पर गलत तरीके अपना लेते हैं. अक्तूबर 2019 में मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले के गांव चांदनखेड़ा में धान के खेत में दवा का छिड़काव कर रहे एक युवा किसान राजकुमार को सांप ने डस लिया.

राजकुमार ने व्हाट्सऐप पर आए एक मैसेज में पढ़ा था कि सांप के काटने पर उस स्थान पर कट लगा लेना चाहिए. सो, उस ने जल्दबाजी में सांप के जहर से बचने के लिए अपने पास रखे ब्लेड से हाथ में कट लगा लिया. उसे लगा कि खून के साथ सांप का जहर निकल जाएगा लेकिन ज्यादा खून बह जाने के कारण जब उस की हालत बिगड़ने लगी तो साथ में काम कर रहे उस के चाचा द्वारा उसे अस्पताल पहुंचाया गया. जहां डाक्टर ने उसे एंटी स्नेक वीनम इंजैक्शन लगा कर सांप के जहर से बचा लिया. सांप के काटने के इलाज की सही जानकारी जरूर रखनी चाहिए. सर्पदंश के इलाज में माहिर सरकारी अस्पताल में पदस्थ डाक्टर राशि राय बताती हैं कि विषैले सांप के काटने वाले स्थान पर तीव्र जलन, हाथपैरों में झनझनाहट, पसीना छूटना, मिचली आना, अनैच्छिक मलमूत्र त्याग, पलकों का गिरना, पुतलियों का विस्तारित होना जैसे लक्षण सामने आते हैं. कई बार सर्पदंश के शिकार ऐसे मरीज इलाज के लिए आते हैं जिन में ये लक्षण नजर नहीं आते तो यह माना जाता है कि सांप जहरीला नहीं था. सो, सांप के काटने पर हो सके तो मोबाइल से उस की फोटो खींच लें जिस से यह पहचान की जा सके कि सांप किस प्रजाति का है. सांप की पहचान नहीं होने पर डाक्टरों को लक्षणों के आधार पर इलाज करना पड़ता है क्योंकि यदि सांप जहरीला न हो तो एंटी स्नेक वीनम इंजैक्शन के गलत परिणाम भी सामने आते हैं.

सर्पदंश से बचने के लिए सावधानियां और सरकारी सहायता वर्षाकाल में हर सरकारी अस्पताल में प्रतिमाह औसतन 20 लोग सर्पदंश के इलाज हेतु आते हैं. जागरूकता के अभाव में कई बार झाड़फूंक में फंस कर अपनी जान से भी हाथ धो बैठते हैं. जिला अस्पताल नरसिंहपुर की सिविल सर्जन डा. अनीता अग्रवाल बताती हैं कि जिस अंग में सांप ने काटा है उसे पानी से साफ कर स्थिर रखने का प्रयास करें और अंग के पास किसी भी प्रकार का कट न लगाएं क्योंकि इस से टिटनैस होने का खतरा रहता है. सर्पदंश के स्थान पर कपड़े या धागे की पट्टी बांधते समय इस बात का ध्यान जरूर रखें कि वह इतनी टाइट न बांधें कि रक्तसंचार पूरी तरह बंद हो जाए. रक्तसंचार बिलकुल बंद होने से अंग के कटने की स्थिति बन सकती है.

सांप के काटने पर किसी तांत्रिक, गुनिया, पंडा या ओझा के पास जा कर झाड़फूंक करवाने के बजाय बिना समय गंवाए सीधे अस्पताल पहुंचना चाहिए. आजकल हर सरकारी अस्पताल में पर्याप्त संख्या में एंटी स्नेक वीनम इंजैक्शन मौजूद हैं. तमाम सावधानियां बरतने के बाद लोग सर्पदंश का शिकार हो जाते हैं और झाड़फूंक के फेर में पड़ कर या अपने घरेलू नुस्खे अपनाने की वजह से जान से हाथ धो बैठते हैं. सर्पदंश से मौत होने पर आजकल देश के अधिकांश राज्यों की सरकारें पीडि़त परिवार को सहायता उपलब्ध कराती हैं.

अलगअलग राज्यों में अलगअलग सहायता राशि देने का प्रावधान है. मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश में 4 लाख रुपए, पंजाब में 3 लाख, झारखंड में ढाई लाख रुपए की सरकारी सहायता देने का नियम है. यह सहायता राशि मृतक के निकटतम संबंधी या वारिस को प्रदान की जाती है. सर्पदंश से मृत्यु होने पर मृतक का पोस्टमार्टम कराना जरूरी होता है. सरकारी सहायता प्राप्त करने के लिए अपनी तहसील के राजस्व अधिकारी, एसडीएम या तहसीलदार दफ्तर में मृत्यु के 15 दिन के भीतर आवेदन करना जरूरी है. आवेदन के साथ राशनकार्ड, आधार कार्ड की प्रमाणित प्रति के साथ पोस्टमार्टम रिपोर्ट और मृत्यु प्रमाण पत्र जमा कराना अनिवार्य है.

PMO : नकली राष्‍ट्रीय सलाहकार बन करोड़ों की ठगी करने वाली शातिर औरत

उच्चशिक्षित 29 वर्षीय कश्मीरा संदीप पवार ऐसी शातिर युवती है, जो खुद को प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) की राष्ट्रीय सलाहकार बताती थी. अपना रुतबा दिखा कर उस ने पति गणेश गायकवाड़ के साथ मिल कर लोगों से लाखों रुपए इतनी आसानी से ठग लिए कि…

कोर्ट के नोटिस के बाद सतारा (महाराष्ट्र) पुलिस सक्रिय हुई और कश्मीरा और उस के पति गणेश के खिलाफ काररवाई शुरू कर दी. 82 लाख रुपए की ठगी करने की 3 शिकायतें मिलने के बाद 19 जून, 2024 को रात करीब 11 बजे सतारा पुलिस 29 वर्षीय कश्मीरा संदीप पवार और उस के पति 32 वर्षीय गणेश गायकवाड़ के घर पहुंची. 

कश्मीरा के बारे में आसपास रहने वाले लोग जानते थे कि वो पीएमओ में अधिकारी है, जहां वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सीधे बात करती है, वहीं गृहमंत्री अमित शाह के इतने करीब है कि वह उन्हें अंकल कहती है. पुलिस जब उस के घर पहुंची तो जो बात पता चली, उस से सभी हैरान रह गए. बात ही कुछ ऐसी थी. पता चला कि कश्मीरा पीएमओ में कोई अफसर नहीं, बल्कि एक जालसाज है. अब तक वह अपने पति के साथ मिल कर कई लोगों से लाखों रुपए की ठगी कर चुकी है. 

प्रधानमंत्री के नाम पर ठगी कोई नई बात नहीं है. पिछले साल भी किरण पटेल नाम के ठग ने अपने आप को आईएएस अफसर बताते हुए पीएमओ से जुड़ा होने की बात कही और अधिकारियों के साथ मीटिंग कर उन पर खूब रौब जमाया था. लेकिन आखिर में उस की हनक धरी की धरी रह गई. वह पुलिस द्वारा धरा गया और उसे जेल की हवा खानी पड़ी. 

वहीं संजय शेरपुरिया नाम के एक शातिर ठग ने लोगों से पीएमओ से जुड़ा होने की बात कह कर कारोबारियों, बैंकों व अन्य से करोड़ों रुपए की ठगी की. लेकिन बाद में उसे भी जेल की सलाखों के पीछे जाना पड़ा. 11 दिसंबर, 2017 को महाराष्ट्र के एक मराठी अखबार के मुख्यपृष्ठ पर एक खबर छपी थी. इस में कहा गया था कि महाराष्ट्र के सतारा की रहने वाली एक युवा महिला कश्मीरा संदीप पवार को पीएमओ (प्रधानमंत्री कार्यालय) ने अपना राष्ट्रीय सलाहकार मनोनीत किया है. कश्मीरा संदीप पवार अब सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बात कर के उन के साथ सलाहमशविरा कर सकती हैं.  

कुछ देर बाद एक मराठी चैनल पर ब्रेकिंग न्यूज चली. इस में दावा किया गया था कि 24 साल की कश्मीरा संदीप पवार सीधे अजीत डोभाल को रिपोर्ट करेंगी. चैनल के एक रिपोर्टर ने कश्मीरा का इंटरव्यू भी लिया. अपने साक्षात्कार में कश्मीरा ने बताया, ”पीएमओ में नियुक्ति के बाद मैं ने सतारा के जिला मजिस्ट्रेट कार्यालय से वीडियो कौन्फ्रैंसिंग के जरिए राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल व पीएमओ के शीर्ष अधिकारियों से भी संवाद किया.’’ कश्मीरा ने बताया, ”मैं पीएमओ से जुड़ कर ग्रामीण विकास विभाग में काम करूंगी.’’ 

साक्षात्कार में कश्मीरा ने यह भी बताया कि उस ने केंद्र सरकार के मेक इन इंडिया कार्यक्रम के तहत एक कौंपटिशन जीता है. इस के लिए उसे राष्ट्रपति के हाथों अवार्ड भी मिला है. उस के बनाए स्मार्ट विलेज प्रोजेक्ट पर उत्तर प्रदेश के 3 गांवों में काम हुआ है. उस ने बताया कि मैं पीएमओ से जुड़ कर अलगअलग फील्ड की स्कीम के बारे में केंद्र सरकार को सलाह दूंगी. कश्मीरा ने दावा किया कि एमपीएससी का एग्जाम पास कर उसे डिप्टी कलेक्टर पद पर नियुक्ति मिली थी, बाद में उसे पीएमओ से अटैच किया गया. कश्मीरा से पहला इंटरव्यू पत्रकार विनय कदम (परिवर्तित नाम) ने लिया था. 

कश्मीरा ने क्यों किया होटल पर कब्जा

होटल व्यवसायी फिलिप भंबल ने दिसंबर, 2022 में सतारा पुलिस में कश्मीरा और गणेश के खिलाफ शिकायत की थी. शिकायत में कहा गया था कि कश्मीरा और गणेश पूरे महाराष्ट्र में लोगों को पीएमओ में नियुक्ति के दस्तावेज और उत्तर प्रदेश, त्रिपुरा, नागालैंड और लोकसभा सचिवालय के टेंडर दिखा कर धोखा दे रहे हैं.

इतना ही नहीं, अपनी बात को बल देते हुए फिलिप ने अपनी शिकायत के साथ दस्तावेजों की प्रति भी संलग्न की थी. इस शिकायत की जांच करने के बाद सतारा सिटी पुलिस स्टेशन में 4 जनवरी, 2023 को भादंवि की धारा 170 (लोक सेवक के रूप में प्रतिरूपण करने के लिए दस्तावेजों का उपयोग करना) के अंतर्गत अज्ञात व्यक्ति के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज की गई थी.

इस से पहले भी 9 दिसंबर, 2020 को फिलिप भंबल ने सतारा में कश्मीरा और गणेश के खिलाफ भादंवि की धारा 380, 427, 454, 411 के अंतर्गत रिपोर्ट दर्ज कराई थी. व्यवसायी फिलिप ने रिपोर्ट में आरोप लगाया था कि परिचित होने के कारण उस ने कश्मीरा और गणेश को अपना होटल किराए पर दिया था. लेकिन उन लोगों ने होटल को गैरकानूनी गतिविधियों का अड्डा बना लिया और खाली करने से इंकार कर दिया.

शुरू हो गई कश्मीरा के बैंक अकाउंट की भी जांच

फिलिप के अनुसार जब उसे इस बात की जानकारी हुई कि कश्मीरा और गणेश लोगों के साथ धोखाधड़ी कर रहे हैं तो उस ने जिला कलेक्टर, सतारा पुलिस और पीएमओ में शिकायत दर्ज कराई थी. तारा सिटी थाने के इंसपेक्टर आर.बी. मस्के ने बताया कि अब तक 3 लोगों ने अपनी शिकायतें दर्ज कराई हैं. आरोप है कि दोनों आरोपियों ने 82 लाख रुपए की धोखाधड़ी उन के साथ की है. 

इंसपेक्टर मस्के के अनुसार आगे की जांच के बाद एफआईआर में भादंवि की धारा 420, 465, 468 और 471 को जोड़ा गया. दोनों की संलिप्तता की जांच के साथ ही पीएमओ से बात की गई. इस के साथ ही आरोपियों के बैंक खातों की जांच भी शुरू कर दी.17 जून, 2024 को पुणे के एक व्यवसायी गोरख मराल ने कश्मीरा और उस के पति गणेश के खिलाफ पुणे शहर के बंड गार्डन पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई थी. मराल ने दोनों पर सरकारी टेंडर दिलाने के बदले 50 लाख रुपए की धोखाधड़ी करने का आरोप लगाया था. 

मराल ने पुलिस को बताया कि आरोपियों ने दिसंबर, 2019 और मार्च 2022 के बीच 50 लाख रुपए के बदले वाट्सऐप पर उस के साथ टेंडर डाक्यूमेंट्स शेयर किए थे. व्यवसायी से कश्मीरा और गणेश कई बार काउंसिल हाल और पुणे के कई स्थानों पर मिले भी थे. गणेश ने उस से कश्मीरा की तारीफ में छपी औनलाइन रिपोर्ट दिखा कर और उन के साथ कई दस्तावेज साझा कर उस का विश्वास हासिल किया.

मराल ने बताया, 20 नवंबर, 2019 को वाट्सऐप पर एक लेटर साझा किया, जिस पर पीएम नरेंद्र मोदी के हस्ताक्षर थे. इस लेटर में कश्मीरा की पीएम के राष्ट्रीय सलाहकार और भारत के काउंसलर के रूप में नियुक्ति का उल्लेख था. 

क्यों भेजते थे राष्ट्रपति भवन के फरजी लेटर

कश्मीरा के पति गणेश ने रा (रिसर्च एंड एनालिसिस विंग, विदेशी खुफिया एजेंसी) के साथ संबंध होने का दावा किया और केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा उसे जारी किया गया एक हथियार लाइसैंस भी साझा किया. सतारा पुलिस ने उन दस्तावेजों की जांच शुरू कर दी है जो आरोपी ने व्यवसायी के साथ साझा किए थे.

दोनों शातिर ऐसे घूमते थे जैसे कि वे सरकार में वीआईपी हों. पीएमओ और राष्ट्रपति भवन के फरजी लेटर लोगों को भेजते थे. सरकारी नौकरी लगवाने के नाम पर मोटी रकम लेते थे. वहीं फरजी टेंडर डाक्यूमेंट्स भेज कर लोगों को फंसाते थे. ये अलगअलग राज्यों के टेंडर होते थे. मोदी व शाह से बात करने का नाटक करते थे. मीडिया रिपोर्टों ने भी उन के झूठे दावों को सही साबित करने में मदद की. दोनों के फरजीवाड़े के बारे में गोरख मराल ने पुलिस को बताया था, लेकिन लिखित शिकायत करने के बावजूद पुलिस ने दोनों के खिलाफ कोई काररवाई नहीं की. 9 सितंबर, 2020 को गोरख मराल ने केस दर्ज कराया था.

पुलिस ने कश्मीरा को सही मानते हुए उल्टा गोरख मराल व फिलिप भंबल के खिलाफ जबरन वसूली का केस दर्ज कर दिया. गोरख मराल परेशान हो गया. उसे न्याय नहीं मिल रहा था. इस पर वह वर्ष 2023 में हाईकोर्ट गया. हाईकोर्ट ने पीएमओ, कलेक्टर और सतारा पुलिस को नोटिस जारी किया. कोर्ट के आदेश पर सतारा पुलिस हरकत में आ गई और कश्मीरा संदीप पवार व उस के पति गणेश गायकवाड़ की तलाश शुरू कर दी. फिर पुलिस ने दोनों को धोखाधड़ी के आरोप में गिरफ्तार कर लिया. 20 जून, 2024 को दोनों को सतारा पुलिस ने न्यायालय के समक्ष पेश किया, जहां से उन्हें 2 दिन की पुलिस हिरासत में भेज दिया गया.

दोनों से पूछताछ के बाद पता चला कि फिलिप भंबले और गणेश गायकवाड़ एक ही कालेज में पढ़ते थे. इस के चलते दोनों में गहरी दोस्ती थी. गणेश को शराब की लत थी. वर्ष 2017 में फिलिप ने उसे रिहैबिलिटेशन सेंटर में भरती करवाया था. इस के बाद गणेश ने फिलिप को कश्मीरा से मिलवाया था. गणेश ने कहा था कि कश्मीरा पीएमओ में अधिकारी है. गणेश ने 6 मई, 2018 को सोशल मीडिया पर एक फोटो पोस्ट की थी, जिस में बताया था कि यह फोटो कश्मीरा की जौइनिंग वाले दिन की है.

कैसे हुई कश्मीरा और गणेश की शादी

तीनों अकसर मिलतेजुलते रहते थे. कश्मीरा और गणेश का फिलिप के होटल में आनाजाना भी रहता था. गणेश और कश्मीरा के बीच नजदीकियां बढ़ीं और साल 2020 में फिलिप ने दोनों की शादी महाबलेश्वर के एक मंदिर में करवा दी. चूंकि फिलिप कश्मीरा को बहन मानने लगा था, इस के चलते उस ने कश्मीरा का कन्यादान भी किया था. मजे की बात यह है कि पकड़े जाने पर कश्मीरा गणेश को अपना केवल दोस्त ही बताती थी. जबकि फिलिप के पास उन की शादी के फोटो भी हैं. एक दिन कश्मीरा और गणेश ने फिलिप से कहा कि वह अपना होटल उन्हें लीज पर दे दे. इस पर फिलिप ने दोनों को अपना होटल दे दिया. क्योंकि वह कश्मीरा को अपने परिवार के मेंबर की तरह ही मानता था. 

होटल को गणेश और कश्मीरा ने कुछ ही दिनों में अपराधियों का अड्डा बना दिया. जहां होटल में पहले रोजाना की आमदनी 70 हजार रुपए होती थी, वहीं वह घट कर मात्र 5 हजार रुपए रह गई. यह देख कर फिलिप ने उन से होटल वापस मांगा तो होटल से कब्जा छोडऩे को मना कर दिया. इतना ही नहीं, विवाद बढऩे पर उन दोनों ने मिल कर फिलिप के साथ मारपीट की.  

ठगों ने दर्ज कराया झूठा मामला

इस के बाद दोनों ने मिल कर होटल को हड़पने के लिए षडयंत्र रचा. गोरख मराल ने कश्मीरा और गणेश दोनों पर भरोसा किया था. उल्टा चोर कोतवाल को डांटे कहावत उस समय सच साबित हुई, जब सरकारी टेंडर दिलाने के नाम पर मराल द्वारा दिया गया अपना पैसा वापस मांगने तथा स्थानीय होटल व्यवसायी फिलिप द्वारा अपना होटल वापस करने की कहने पर उल्टा 10 जनवरी, 2023 को सतारा सिटी पुलिस स्टेशन में कश्मीरा ने जबरन वसूली का झूठा मामला दर्ज करा दिया. 

कश्मीरा ने मराल और स्थानीय होटल व्यवसायी फिलिप भंबल सहित 2 अन्य पर 50 लाख रुपए की मांग करने और उन के बीच विवाद के बाद जबरन 50 हजार रुपए लेने का आरोप लगाया था. हालांकि इस रिपोर्ट में कश्मीरा ने अपनी पीएमओ में नियुक्ति का कोई जिक्र नहीं किया था. इतना जरूर कहा गया था कि उस के पास समाजशास्त्र में मास्टर डिग्री है. 

कश्मीरा व गणेश की गिरफ्तारी के बाद एसपी (सतारा) समीर शेख ने प्रैस कौन्फ्रैंस में जानकारी दी कि कश्मीरा और गणेश सरकारी टेंडर दिलाने के नाम पर ठगी करते थे. दोनों के खिलाफ भादंवि की धारा 420 (धोखाधड़ी), 465 (जालसाजी), 468 (जाली दस्तावेज) या इलेक्ट्रास्निक रिकौर्ड तैयार करना, 471 (जाली दस्तावेजों का धोखाधड़ी से इस्तेमाल) में एफआईआर दर्ज कर पूछताछ शुरू हो गई.

एसपी ने बताया कि हम क्राइम में कश्मीरा और गणेश के शामिल होने की जांच कर रहे हैं. वेरिफिकेशन के लिए पीएमओ से संपर्क किया है. आरोपियों के बैंक खातों की जांच भी की जा रही है. पीडि़त 49 वर्षीय गोरख मराल बिल्डिंग मैटेरियल सप्लायर हैं. कश्मीरा और गणेश ने सरकारी टेंडर दिलाने के नाम पर उन से 50 लाख रुपए मांगे. मराल ने बताया कि दिसंबर, 2019 से मार्च 2022 के बीच कैश और औनलाइन रुपए दे दिए गए. इस के बाद कश्मीरा व गणेश ने वाट्सऐप पर उन्हें टेंडर डाक्यूमेंट शेयर किया.

40 से ज्यादा लोगों से ऐसे की ठगी

कश्मीरा का पहला इंटरव्यू पत्रकार विनय कदम ने लिया था. ये पत्रकार बताते हैं, कश्मीरा के पीएमओ का सलाहकार बनने की खबर कई अखबारों के फ्रंट पेज पर छपी थी. कश्मीरा के घर पहुंचने वाला वह पहला पत्रकार था. कश्मीरा अपने इंटरव्यू में इतनी आत्मविश्वास से भरपूर थी कि पत्रकार को लगा ही नहीं कि वह झूठ बोल रही है. 

विनय के अनुसार कश्मीरा ने जिन लोगों को अपनी ठगी का शिकार बनाया है, वे उस का 6 साल पुराना इंटरव्यू देख कर मुझ से संपर्क कर रहे हैं. इस हिसाब से एक अनुमान के अनुसार कश्मीरा और गणेश ने 40 से ज्यादा लोगों को शिकार बनाया है.

करोड़ों की लग्जरी कारें हैं कश्मीरा के पास

सतारा के वरिष्ठ पत्रकार विजय मांडके ने बताया कि कश्मीरा पवार ने सतारा के प्रसिद्ध निर्मला कौन्वेंट स्कूल से पढ़ाई की है. उस की इंंग्लिश अच्छी है. उस के मातापिता चाहते थे कि वह अधिकारी बने. इसलिए ग्रैजुएशन के बाद कश्मीरा एमपीएससी की तैयारी करने लगी. लेकिन वह इस परीक्षा को पास नहीं कर सकी. 

कश्मीरा ने अपने मातापिता को भी स्वयं के अधिकारी बनने और प्रधानमंत्री कार्यालय में सलाहकार नियुक्त होने का फरजी लैटर दिखाया था. इस के बाद प्रिंट व इलैक्ट्रौनिक मीडिया में खबरें आने के बाद सभी को कश्मीरा की बात पर पूरा भरोसा भी हो गया था.  कश्मीरा की मां एक स्कूल में प्रिंसिपल हैं, जबकि पिता जल आपूर्ति विभाग में कार्यरत हैं. कश्मीरा ने गणेश गायकवाड़ से प्रेम विवाह किया था. 

गणेश आदतन अपराधी है. दोनों पर टेंडर दिलवाने व सरकारी नौकरी दिलवाने के नाम पर लोगों से लाखों रुपए की ठगी करने का आरोप है. ठगी का शिकार हुए लोग रा (रिसर्च ऐंड एनलिसिस विंग) और पीएमओ का नाम सुन कर पुलिस से शिकायत करने से बचते रहे. कश्मीरा और उस के पति गणेश को लग्जरी कारों का शौक है. उन के पास रेंज रोवर, बीएमडब्लू और पोर्श जैसी मंहगी कारें हैं. इस के साथ ही उन के पास 27 लाख रुपए की एक बाइक भी है. फरेब का खेल खेल रहे कश्मीरा और गणेश दोनों वीआईपी की तरह घूमते थे. गणेश के पास वीवीआईपी बैज और फरजी डिप्लोमैटिक पासपोर्ट भी था. फरेब का यह खेल महाराष्ट्र के पुणे (पूना) में खेला गया.

लोगों के लालच की वजह से धोखेबाज व जालसाज ये बंटी और बबली 82 लाख की ठगी करने में सफल हो गए. लोगों को पहले इन के बारे में सही तथ्य जुटा लेने चाहिए थे कि जिस कार्यालय से वे जुड़ा होने का दावा करते हैं वास्तव में उस से जुड़े हैं या नहीं. जागरूक बन कर ही ऐसे ठगों के मंसूबों पर पानी फेरा जा सकता है.

फरेबी किरण याद आ गया 

ठगी की दुनिया में जब भी चर्चा होती है तो अब तक सब से पहला नाम नटवरलाल का आता था. लेकिन ये बात पुरानी हो गई. क्योंकि अब जो ठगी होती है उस में नटवरलाल पीछे रह जाता है. पिछले साल यानी 2023 में किरण पटेल नाम का एक फंदेबाज पीएमओ का बड़ा अधिकारी बन कर दिल्ली से कश्मीर तक सैकड़ों अधिकारियों को बेवकूफ बना कर अपना उल्लू सीधा करता रहा. जब 16 मार्च की रात को सोशल मीडिया पर उस का सच सामने आया तो दिल्ली में हड़कंप मच गया था. 

खुद को प्रधानमंत्री कार्यालय का एडीशनल डायरेक्टर बता कर किरण पटेल ने कश्मीर जा कर जेड प्लस श्रेणी की सिक्योरिटी ले ली. वीआईपी गाड़ी, सुरक्षा के लिए जैमर तथा साथ में सुरक्षा बल की 2 गाडिय़ां, ये था ठग किरण पटेल का काफिला.बताते चलें कि किरण पटेल ने अक्तूबर 2022 से मार्च 2023 तक खुद को पीएमओ का फरजी अफसर बता कर जम्मूकश्मीर में अधिकारियों के साथ गोपनीय मीटिंगें कीं. 

 किरण पटेल गुजरात में अहमदाबाद के दसक्रोई तहसील के नाज गांव का निवासी है. एक साल पहले उस ने अहमदाबाद के पौश इलाके सिंधुभवन के पास नया बंगला खरीदा. उस के भारतीय जनता पार्टी व मीडियाकर्मियों से अच्छे संबंध थे. भाजपा के कई बड़े नेताओं के साथ सोशल मीडिया पर उस की तसवीरें भी अकसर दिखाई दे जाती थीं. 

इन तसवीरों का इस्तेमाल वह अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए करता था. वह अकसर बीजेपी पार्टी कार्यालय में जब भी कोई बड़ा कार्यक्रम होता था तो वहां पर भी दिखाई देता था. वह लग्जरी कारों का शौकीन है. कश्मीर पहुंच कर उस ने खुद को पीएमओ का एडीशनल डायरेक्टर बता कर कुछ अधिकारियों से संपर्क किया और सुरक्षा हासिल कर ली थी. अधिकारियों को फटकारने व एक माह में 4 बार कश्मीर आने पर उस पर शक हुआ. 

जांच हुई तो पता चला कि वह फरजी है. वह श्रीनगर के फाइव स्टार होटल ललित के कमरा नंबर 1107 में ठहरा था. वहीं से उसे गिरफ्तार किया गया. भारत के सब से सुरक्षा वाले राज्य में यह ठग सभी की आंखों में धूल झोंकता रहा और जेड प्लस की सुरक्षा तक प्राप्त कर ली.

संजय शेरपुरिया ने ठगे 12 करोड़

गाजीपुर के शेरपुर का निवासी संजय प्रकाश राय उर्फ संजय शेरपुरिया खुद को प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) का अफसर बताता था. उस ने वरिष्ठ नौकरशाहों और राजनेताओं से नजदीकी का दावा कर कई लोगों को धोखा दे कर उन से मोटी रकम ठगी. पुलिस ने जालसाजी के आरोप में पिछले साल उसे गिरफ्तार किया था.

लखनऊ पुलिस द्वारा की गई प्राथमिकी के बाद प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने भी संजय शेरपुरिया के खिलाफ धनशोधन (मनी लांड्रिंग) के तहत आरोप पत्र दाखिल कर दिया था. पिछले साल 28 जुलाई को दिल्ली की पटियाला हाउस अदालत में विशेष पीएमएलए अदालत के समक्ष लखनऊ पुलिस ने शिकायत दर्ज कराई थी. 

ईडी ने 42 स्थानों पर छापे मारे थे, इन में प्रमुख रूप से नोएडा, दिल्ली, गुरुग्राम, गाजीपुर, फरीदाबाद, पुणे, गांधीधाम आदि शामिल हैं. इस के कुछ महीने बाद महाठग संजय को उत्तर प्रदेश के लखनऊ में विभूति खंड से एसटीएफ ने गिरफ्तार कर लिया.

संजय ने खुद को सामाजिक कायकर्ता और पीएमओ से जुड़ा हुआ बता कर झूठे वायदे करते हुए चुनाव में टिकट दिलवाने, अफसरों के ट्रांसफर व पोस्टिंग कराने, काले धन को सफेद धन में बदलने के नाम पर बिंदु फैशन प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक नवीन कुमार मल्होत्रा से एक करोड़, मेटा डिजायन सोल्यूशन प्राइवेट मिमिटेड के निदेशक सुनील चंद गोयल से 51.50 लाख की ठगी की थी. 

संजय शेरपुरिया ने ईडी की कररवाई को मैनेज कराने के लिए कारोबारी गौरव डालमिया की कंपनी से 6 करोड़ रुपए लिए थे, जो संजय के एनजीओ के खाते में आए थे. वह बैंक को भी करोड़ों रुपए का चूना लगाने में पीछे नहीं रहा. वह ठगी भी हाईटेक तरीके से करता था. उस ने दिल्ली में जहां आवास बनाया था, वहां लगे वाईफाई का नाम पीएम आवास लिख रखा था. अधिकतर लोगों को वह यही बताता था कि वह पीएमओ से संबंधित काम देखता है. यह आवास इसीलिए मिला है. 

संजय पर आरोप यह भी है कि वह एनजीओ में डोनेशन के नाम पर करोड़ों का घपला करता था. अलगअलग आईडी कार्ड दे कर ठगी करता था ताकि उस की वास्तविक पहचान उजागर न हो सके. भाजपा के शीर्ष नेताओं के साथ फोटो खिंचवा कर वह सोशल मीडिया पर खुद की ब्रांडिंग करता था. इस से लोग इस महाठग के मायाजाल में फंस जाते थे.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Divorce : धर्मेंद्र और हेमामालिनी वाली कहानी

Divorce : शादीशुदा राजेश से प्रेम होने पर अकेलेपन का दंश  झेल रही निशा घर बसा कर उस के बच्चों की मां बनने का सपना देखने लगी. लेकिन राजेश की पत्नी सरोज से मिलने के बाद अपने सपनों को हकीकत में बदलना क्या निशा के लिए आसान था?

 

 

आज मेरा 32वां जन्मदिन था और मैं यह दिन राजेश के साथ गुजारना चाहती थी. उन के घर 10 बजे तक पहुंचने के लिए मैं ने सुबह 6 बजे ही कार से सफर शुरू कर दिया.

 

राजेश पिछले शनिवार को अपने घर गए थे लेकिन तेज बुखार के कारण वह सोमवार को वापस नहीं लौटे. आज का पूरा दिन उन्होंने मेरे साथ गुजारने का वादा किया था. अपने जन्मदिन पर उन से न मिल कर मेरा मन सचमुच बहुत दुखी होता.

 

राजेश को अपने प्रेमी के रूप में स्वीकार किए मुझे करीब 2 साल बीत चुके हैं. उन के दोनों बेटों सोनू और मोनू व पत्नी सरोज से आज मैं पहली बार मिलूंगी.

 

राजेश के घर जाने से एक दिन पहले हमारे बीच जो वार्तालाप हुआ था वह रास्ते भर मेरे जेहन में गूंजता रहा.

 

‘मैं शादी कर के घर बसाना चाहती हूं…मां बनना चाहती हूं,’ उन की बांहों के घेरे में कैद होने के बाद मैं ने भावुक स्वर में अपने दिल की इच्छा उन से जाहिर की थी.

 

‘कोई उपयुक्त साथी ढूंढ़ लिया है?’ उन्होंने मुझे शरारती अंदाज में मुसकराते हुए छेड़ा.

 

उन की छाती पर बनावटी गुस्से में कुछ घूंसे मारने के बाद मैं ने जवाब दिया, ‘मैं तुम्हारे साथ घर बसाने की बात कर रही हूं.’

 

‘धर्मेंद्र और हेमामालिनी वाली कहानी दोहराना चाहती हो?’

 

‘मेरी बात को मजाक में मत उड़ाओ, प्लीज.’

 

‘निशा, ऐसी इच्छा को मन में क्यों स्थान देती हो जो पूरी नहीं हो सकती,’ अब वह भी गंभीर हो गए.

 

‘देखिए, मैं सरोज को कोई तकलीफ नहीं होने दूंगी. अपनी पूरी तनख्वाह उसे दे दिया करूंगी. मैं अपना सारा बैंकबैलेंस बच्चों के नाम कर दूंगी… उन्हें पूर्ण आर्थिक सुरक्षा देने…’

 

उन्होंने मेरे मुंह पर हाथ रखा और उदास लहजे में बोले, ‘तुम समझती क्यों नहीं कि सरोज को तलाक नहीं दिया जा सकता. मैं चाहूं भी तो ऐसा करना मेरे लिए संभव नहीं.’

 

‘पर क्यों?’ मैं ने तड़प कर पूछा.

 

‘तुम सरोज को जानती होतीं तो यह सवाल न पूछतीं.’

 

‘मैं अपने अकेलेपन को जानने लगी हूं. पहले मैं ने सारी जिंदगी अकेले रहने का मन बना लिया था पर अब सब डांवांडोल हो गया है. तुम मुझे सरोज से ज्यादा चाहते हो?’

 

‘हां,’ उन्होंने बेझिझक जवाब दिया था.

 

‘तब उसे छोड़ कर तुम मेरे हो जाओ,’ उन की छाती से लिपट कर मैं ने अपनी इच्छा दोहरा दी.

 

‘निशा, तुम मेरे बच्चे की मां बनना चाहती हो तो बनो. अगर अकेली मां बन कर समाज में रहने का साहस तुम में है तो मैं हर कदम पर तुम्हारा साथ दूंगा. बस, तुम सरोज से तलाक लेने की जिद मत करो, प्लीज. मेरे लिए यह संभव नहीं होगा,’ उन की आंखों में आंसू झिलमिलाते देख मैं खामोश हो गई.

 

सरोज के बारे में राजेश ने मुझे थोड़ी सी जानकारी दे रखी थी. बचपन में मातापिता के गुजर जाने के कारण उसे उस के मामा ने पाला था. 8वीं तक शिक्षा पाई थी. रंग सांवला और चेहरामोहरा साधारण सा था. वह एक कुशल गृहिणी थी. अपने दोनों बेटों में उस की जान बसती थी. घरगृहस्थी के संचालन को ले कर राजेश ने उस के प्रति कभी कोई शिकायत मुंह से नहीं निकाली थी.

 

सरोज से मुलाकात करने का यह अवसर चूकना मुझे उचित नहीं लगा. इसलिए उन के घर जाने का निर्णय लेने में मुझे ज्यादा कठिनाई नहीं हुई.

 

राजेश इनकार न कर दें, इसलिए मैं ने उन्हें अपने आने की कोई खबर फोन से नहीं दी थी. उस कसबे में उन का घर ढूंढ़ने में मुझे कोई दिक्कत नहीं हुई. उस एक- मंजिला साधारण से घर के बरामदे में बैठ कर मैं ने उन्हें अखबार पढ़ते पाया.

 

मुझे अचानक सामने देख कर वह पहले चौंके, फिर जो खुशी उन के होंठों पर उभरी, उस ने सफर की सारी थकावट दूर कर के मुझे एकदम से तरोताजा कर दिया.

 

‘‘बहुत कमजोर नजर आ रहे हो, अब तबीयत कैसी है?’’ मैं भावुक हो उठी.

 

‘‘पहले से बहुत बेहतर हूं. जन्मदिन की शुभकामनाएं. तुम्हें सामने देख कर दिल बहुत खुश हो रहा है,’’ राजेश ने मिलाने के लिए अपना दायां हाथ आगे बढ़ाया.

 

राजेश से जिस पल मैं ने हाथ मिलाया उसी पल सरोज ने घर के भीतरी भाग से दरवाजे पर कदम रखा.

 

आंखों से आंखें मिलते ही मेरे मन में तेज झटका लगा.

 

सरोज की आंखों में अजीब सा भोलापन था. छोटी सी मुसकान होंठों पर सजा कर वह दोस्ताना अंदाज में मेरी तरफ देख रही थी.

 

जाने क्यों मैं ने अचानक अपने को अपराधी सा महसूस किया. मुझे एहसास हुआ कि राजेश को उस से छीनने के मेरे इरादे को उस की आंखों ने मेरे मन की गहराइयों में झांक कर बड़ी आसानी से पढ़ लिया था.

 

‘‘सरोज, यह निशा हैं. मेरे साथ दिल्ली में काम करती हैं. आज इन का जन्मदिन भी है. इसलिए कुछ बढि़या सा खाना बना कर इन्हें जरूर खिलाना,’’ हमारा परिचय कराते समय राजेश जरा भी असहज नजर नहीं आ रहे थे.

 

‘‘सोनू और मोनू के लिए हलवा बनाया था. वह बिलकुल तैयार है और मैं अभी आप को खिलाती हूं,’’ सरोज की आवाज में भी किसी तरह का खिंचाव मैं ने महसूस नहीं किया.

 

‘‘थैंक यू,’’ अपने मन की बेचैनी के कारण मैं कुछ और ज्यादा नहीं कह पाई.

 

‘‘मैं चाय बना कर लाती हूं,’’ ऐसा कह कर सरोज तेजी से मुड़ी और घर के अंदर चली गई.

 

राजेश के सामने बैठ कर मैं उन से उन की बीमारी का ब्योरा पूछने लगी. फिर उन्होंने आफिस के समाचार मुझ से पूछे. यों हलकेफुलके अंदाज में वार्तालाप करते हुए मैं सरोज की आंखों को भुला पाने में असमर्थ हो रही थी.

 

अचानक राजेश ने पूछा, ‘‘निशा, क्या तुम सरोज से अपने और मेरे प्रेम संबंध को ले कर बातें करने का निश्चय कर के यहां आई हो?’’

 

एकदम से जवाब न दे कर मैं ने सवाल किया, ‘‘क्या तुम ने कभी उसे मेरे बारे में बताया है?’’

 

‘‘कभी नहीं.’’

 

‘‘मुझे लगता है कि वह हमारे प्रेम के बारे में जानती है.’’

 

 

कुछ देर खामोश रहने के बाद मैं ने अपना फैसला राजेश को बता दिया, ‘‘तुम्हें एतराज नहीं हो तो मैं सरोज से खुल कर बातें करना चाहूंगी. आगे की जिंदगी तुम से दूर रह कर गुजारने को अब मेरा दिल तैयार नहीं है.’’

 

‘‘मैं इस मामले में कुछ नहीं कहूंगा. अब तुम हाथमुंह धो कर फ्रैश हो जाओ. सरोज चाय लाती ही होगी.’’

 

राजेश के पुकारने पर सोनू और मोनू दोनों भागते हुए बाहर आए. दोनों बच्चे मुझे स्मार्ट और शरारती लगे. मैं उन से उन की पढ़ाई व शौकों के बारे में बातें करते हुए घर के भीतर चली गई.

 

घर बहुत करीने से सजा हुआ था. सरोज के सुघड़ गृहिणी होने की छाप हर तरफ नजर आ रही थी.

 

मेरे मन में उथलपुथल न चल रही होती तो सरोज के प्रति मैं ज्यादा सहज व मैत्रीपूर्ण व्यवहार करती. वह मेरे साथ बड़े अपनेपन से पेश आ रही थी. उस ने मेरी देखभाल और खातिर में जरा भी कमी नहीं की.

 

उस की बातचीत का बड़ा भाग सोनू और मोनू से जुड़ा था. उन की शरारतों, खूबियों और कमियों की चर्चा करते हुए उस की जबान जरा नहीं थकी. वे दोनों बातचीत का विषय होते तो उस का चेहरा खुशी और उत्साह से दमकने लगता.

 

हलवा बहुत स्वादिष्ठ बना था. साथसाथ चाय पीने के बाद सरोज दोपहर के खाने की तैयारी करने रसोई में चली गई.

 

‘‘सरोज के व्यवहार से तो अब ऐसा नहीं लगता है कि उसे तुम्हारे और मेरे प्रेम संबंध की जानकारी नहीं है,’’ मैं ने अपनी राय राजेश को बता दी.

 

‘‘सरोज सभी से अपनत्व भरा व्यवहार करती है, निशा. उस के मन में क्या है, इस का अंदाजा उस के व्यवहार से लगाना आसान नहीं,’’ राजेश ने गंभीर लहजे में जवाब दिया.

 

‘‘अपनी 12 सालों की विवाहित जिंदगी में सरोज ने क्या कभी तुम्हें अपने दिल में झांकने दिया है?’’

 

‘‘कभी नहीं…और यह भी सच है कि मैं ने भी उसे समझने की कोशिश कभी नहीं की.’’

 

‘‘राजेश, मैं तुम्हें एक संवेदनशील इनसान के रूप में पहचानती हूं. सरोज के साथ तुम्हारे इस रूखे व्यवहार का क्या कारण है?’’

 

‘‘निशा, तुम मेरी पसंद, मेरा प्यार हो, जबकि सरोज के साथ मेरी शादी मेरे मातापिता की जिद के कारण हुई. उस के पिता मेरे पापा के पक्के दोस्त थे. आपस में दिए वचन के कारण सरोज, एक बेहद साधारण सी लड़की, मेरी इच्छा के खिलाफ मेरे साथ आ जुड़ी थी. वह मेरे बच्चों की मां है, मेरे घर को चला रही है, पर मेरे दिल में उस ने कभी जगह नहीं पाई,’’ राजेश के स्वर की उदासी मेरे दिल को छू गई.

 

‘‘उसे तलाक देते हुए तुम कहीं गहरे अपराधबोध का शिकार तो नहीं हो जाओगे?’’ मेरी आंखों में चिंता के भाव उभरे.

 

‘‘निशा, तुम्हारी खुशी की खातिर मैं वह कदम उठा सकता हूं पर तलाक की मांग सरोज के सामने रखना मेरे लिए संभव नहीं होगा.’’

 

‘‘मौका मिलते ही इस विषय पर मैं उस से चर्चा करूंगी.’’

 

‘‘तुम जैसा उचित समझो, करो. मैं कुछ देर आराम कर लेता हूं,’’ राजेश बैठक से उठ कर अपने कमरे में चले गए और मैं रसोई में सरोज के पास चली आई.

 

हमारे बीच बातचीत का विषय सोनू और मोनू ही बने रहे. एक बार को मुझे ऐसा भी लगा कि सरोज शायद जानबूझ कर उन के बारे में इसीलिए खूब बोल रही है कि मैं किसी दूसरे विषय पर कुछ कह ही न पाऊं.

 

घर और बाहर दोनों तरह की टेंशन से निबटना मुझे अच्छी तरह से आता है. अगर मुझे देख कर सरोज तनाव, नाराजगी, गुस्से या डर का शिकार बनी होती तो मुझे उस से मनचाहा वार्तालाप करने में कोई असुविधा न महसूस होती.

 

उस का साधारण सा व्यक्तित्व, उस की बड़ीबड़ी आंखों का भोलापन, अपने बच्चों की देखभाल व घरगृहस्थी की जिम्मेदारियों के प्रति उस का समर्पण मेरे रास्ते की रुकावट बन जाते.

 

 

मेरी मौजूदगी के कारण उस के दिलोदिमाग पर किसी तरह का दबाव मुझे नजर नहीं आया. हमारे बीच हो रहे वार्तालाप की बागडोर अधिकतर उसी के हाथों में रही. जो शब्द उस की जिंदगी में भारी उथलपुथल मचा सकते थे वे मेरी जबान तक आ कर लौट जाते.

 

दोपहर का खाना सरोज ने बहुत अच्छा बनाया था, पर मैं ने बड़े अनमने भाव से थोड़ा सा खाया. राजेश मेरे हावभाव को नोट कर रहे थे पर मुंह से कुछ नहीं बोले. अपने बेटों को प्यार से खाना खिलाने में व्यस्त सरोज हम दोनों के दिल में मची हलचल से शायद पूरी तरह अनजान थी.

 

कुछ देर आराम करने के बाद हम सब पास के पार्क में घूमने पहुंच गए. सोनू और मोनू झूलों में झूलने लगे. राजेश एक बैंच पर लेटे और धूप का आनंद आंखें मूंद कर लेने लगे.

 

‘‘आइए, हम दोनों पार्क में घूमें. आपस में खुल कर बातें करने का इस से बढि़या मौका शायद आगे न मिले,’’ सरोज के मुंह से निकले इन शब्दों को सुन कर मैं मन ही मन चौंक पड़ी.

 

उस की भोली सी आंखों में झांक कर अपने को उलझन का शिकार बनने से मैं ने खुद को इस बार बचाया और गंभीर लहजे में बोली, ‘‘सरोज, मैं सचमुच तुम से कुछ जरूरी बातें खुल कर करने के लिए ही यहां आई हूं.’’

 

‘‘आप की ऐसी इच्छा का अंदाजा मुझे हो चुका है,’’ एक उदास सी मुसकान उस के होंठों पर उभर कर लुप्त हो गई.

 

‘‘क्या तुम जानती हो कि मैं राजेश से बहुत पे्रम करती हूं?’’

 

‘‘प्रेम को आंखों में पढ़ लेना ज्यादा कठिन काम नहीं है, निशाजी.’’

 

‘‘तुम मुझ से नाराज मत होना क्योंकि मैं अपने दिल के हाथों मजबूर हूं.’’

 

‘‘मैं आप से नाराज नहीं हूं. सच तो यह है कि मैं ने इस बारे में सोचविचार किया ही नहीं है. मैं तो एक ही बात पूछना चाहूंगी,’’ सरोज ने इतना कह कर अपनी भोली आंखें मेरे चेहरे पर जमा दीं तो मैं मन में बेचैनी महसूस करने लगी.

 

‘‘पूछो,’’ मैं ने दबी सी आवाज में उस से कहा.

 

‘‘वह 14 में से 12 दिन आप के साथ रहते हैं, फिर भी आप खुश और संतुष्ट क्यों नहीं हैं? मेरे हिस्से के 2 दिन छीन कर आप को कौन सा खजाना मिल जाएगा?’’

 

‘‘तुम्हारे उन 2 दिनों के कारण मैं राजेश के साथ अपना घर  नहीं बसा सकती हूं, अपनी मांग में सिंदूर नहीं भर सकती हूं,’’ मैं ने चिढ़े से लहजे में जवाब दिया.

 

‘‘मांग के सिंदूर का महत्त्व और उस की ताकत मुझ से ज्यादा कौन समझेगा?’’ उस के होंठों पर उभरी व्यंग्य भरी मुसकान ने मेरे अपराधबोध को और भी बढ़ा दिया.

 

‘‘राजेश सिर्फ मुझे प्यार करते हैं, सरोज. हम तुम्हें कभी आर्थिक परेशानियों का सामना नहीं करने देंगे, पर तुम्हें, उन्हें तलाक देना ही होगा,’’ मैं ने कोशिश कर के अपनी आवाज मजबूत कर ली.

 

‘‘वह क्या कहते हैं तलाक लेने के बारे में?’’ कुछ देर खामोश रह कर सरोज ने पूछा.

 

‘‘तुम राजी हो तो उन्हें कोई एतराज नहीं है.’’

 

‘‘मुझे तलाक लेनेदेने की कोई जरूरत महसूस नहीं होती है, निशाजी. इस बारे में फैसला भी उन्हीं को करना होगा.’’

 

‘‘वह तलाक चाहेंगे तो तुम शोर तो नहीं मचाओगी?’’

 

मेरे इस सवाल का जवाब देने के लिए सरोज चलतेचलते रुक गई. उस ने मेरे दोनों हाथ अपने हाथों में ले लिए. इस पल उस से नजर मिलाना मुझे बड़ा कठिन महसूस हुआ.

 

‘‘निशाजी, अपने बारे में मैं सिर्फ एक बात आप को इसलिए बताना चाहती हूं ताकि आप कभी मुझे ले कर भविष्य में परेशान न हों. मेरे कारण कोई दुख या अपराधबोध का शिकार बने, यह मुझे अच्छा नहीं लगेगा.’’

 

‘‘सरोज, मैं तुम्हारी दुश्मन नहीं हूं, पर परिस्थितियां ही कुछ…’’

 

उस ने मुझे टोक कर अपनी बात कहना जारी रखा, ‘‘अकेलेपन से मेरा रिश्ता अब बहुत पुराना हो गया है. मातापिता का साया जल्दी मेरे सिर से उठ गया था. मामामामी ने नौकरानी की तरह पाला. जिंदगी में कभी ढंग के संगीसाथी नहीं मिले. खराब शक्लसूरत के कारण पति ने दिल में जगह नहीं दी और अब आप मेरे बच्चों के पिता को उन से छीन कर ले जाना चाहती हैं.

 

‘‘यह तो कुदरत की मेहरबानी है कि मैं ने अकेलेपन में भी सदा खुशियों को ढूंढ़ निकाला. मामा के यहां घर के कामों को खूब दिल लगा कर करती. दोस्त नहीं मिले तो मिट्टी के खिलौनों, गुडि़या और भेड़बकरियों को अपना साथी मान लिया. ससुराल में सासससुर की खूब सेवा कर उन के आशीर्वाद पाती रही. अब सोनूमोनू के साथ मैं बहुत सुखी और संतुष्ट हूं.

 

‘‘मेरे अपनों ने और समाज ने कभी मेरी खुशियों की फिक्र नहीं की. अपने अकेलेपन को स्वीकार कर के मैं ने खुद अपनी खुशियां पाई हैं और मैं उन्हें विश्वसनीय मानती हूं. उदासी, निराशा, दुख, तनाव और चिंताएं मेरे अकेलेपन से न कभी जुड़ी हैं और न जुड़ पाएंगी. मेरी जिंदगी में जो भी घटेगा उस का सामना करने को मैं तैयार हूं.’’

 

मैं चाह कर भी कुछ नहीं बोल पाई. राजेश ठीक ही कहते थे कि सरोज से तलाक के बारे में चर्चा करना असंभव था. बिलकुल ऐसा ही अब मैं महसूस कर रही थी.

 

 

सरोज के लिए मेरे मन में इस समय सहानुभूति से कहीं ज्यादा गहरे भाव मौजूद थे. मेरा मन उसे गले लगा कर उस की पीठ थपथपाने का किया और ऐसा ही मैं ने किया भी.

 

उस का हाथ पकड़ कर मैं राजेश की तरफ चल पड़ी. मेरे मुंह से एक शब्द भी नहीं निकला, पर मन में बहुत कुछ चल रहा था.

 

सरोज से कुछ छीनना किसी भोले बच्चे को धोखा देने जैसा होगा. अपने अकेलेपन से जुड़ी ऊब, तनाव व उदासी को दूर करने के लिए मुझे सरोज से सीख लेनी चाहिए. उस की घरगृहस्थी का संतुलन नष्ट कर के अपनी घरगृहस्थी की नींव मैं नहीं डालूंगी. अपनी जिंदगी और राजेश से अपने प्रेम संबंध के बारे में मुझे नई दृष्टि से सोचना होगा, यही सबकुछ सोचते हुए मैं ने साफ महसूस किया कि मैं पूरी तरह से तनावमुक्त हो भविष्य के प्रति जोश, उत्साह और आशा प्रदान करने वाली नई तरह की ऊर्जा से भर गई हूं.

Married life : प्‍यार का अल्‍पविराम

 married life : शादी के 10 साल के बाद प्रेम क्या मर जाता है? रिश्ता भी विवाहित जोड़े क्या यंत्रचालित ढंग से निभाने लगते हैं? अब यह सब विवाहितों पर लागू होता है अथवा नहीं, यह तो वे ही जानें, स्वरा और आलोक के लिए तो यह पूर्णतया सत्य है. स्वरा और आलोक के विवाह को 9 साल से कुछ महीने ज्यादा ही हो गए थे. उन का एक 8 साल का प्यारा बेटा शिव था. आलोक एक उच्च पद पर कार्यरत था, इसलिए घर में वह सब कुछ मौजूद था, जो उसे आधुनिक और संपन्न बनाता था. शिव के जन्म के बाद स्वरा ने अपनी स्कूल की जौब छोड़ दी थी और अब जब शिव तीसरी कक्षा का छात्र है, वह अपना खाली समय शौपिंग, गौसिप वगैरह में गुजारती. आज वह घर में ही थी और इधरउधर की बातें सोचतेसोचते थक गई थी. शिव के आने में काफी समय था अभी. और आलोक के आने का कोई तय समय नहीं था. जब बैठेबैठे ऊब गई तो महाराज को खाना क्या बनाना है, बता कर गाड़ी ले कर निकल गई.

मौल में घूमते हुए उस का ध्यान कई जोड़ों पर गया. कितना समय बीत गया था आलोक और उसे ऐसे घूमे हुए. अब तो आलोक रोमांटिक बातों पर हंसता है और फैमिली आउटिंग को टालता है. प्रेम भी वे मशीनी तरीके से करते हैं और इस प्रेम का दिन भी फिक्स हो गया है, शनिवार की रात. अब तो हालत यह हो गई है कि शनिवार की रात जब आलोक उस की तरफ बढ़ता, तो उसे उबकाई आ जाती. वह कोई न कोई बहाना बनाने की कोशिश करती. कभीकभी वह जीत जाती, तो कभीकभी आलोक जीत जाता. तब वह सोचती कि प्रेम क्या कभी तय कर के किया जाता है? वह तो एक उन्माद की तरह आता है और सुख दे जाता है. लेकिन आलोक को यह बात कौन समझाए? वह तो प्रेम भी अपनी मीटिंग की तरह करने लगा था. ऐसा पहले तो नहीं था. क्या उसे अपना बाकी जीवन ऐसे ही गुजारना होगा?

 

‘‘मैडम, ऐक्सक्यूज मी, आप एक फौर्म भर देंगी?’’ एक युवक उस के पास आ कर बोला, तो उस की विचारों की तंद्रा भंग हुई और वह वर्तमान दुनिया में लौट आई.

‘‘क्या है यह?’’

‘‘यह हमारी कंपनी की स्पैशल स्कीम है. सभी फौर्म में से एक सिलैक्ट होगा और उसे भरने वाले को 3 दिन और 2 रातों का गोवा का पैकेज मिलेगा.’’

‘‘बाद में आना, अभी मैं बिजी हूं,’’ स्वरा ने उसे टालते हुए कहा.

‘‘परंतु मैं तो बिलकुल फ्री हूं,’’ कोई अचानक उन के बीच आ कर बोला तो स्वरा और वह लड़का दोनों चौंक गए.

अरे यह तो कमल है, उस के कालेज के दिनों का सहपाठी. स्वरा को याद आया, कितना स्मार्ट हो गया है यह लल्लू. फिर उस लड़के से उस का नंबर ले कर स्वरा ने उसे बाद में आने को कहा.

उस लड़के के जाने के बाद स्वरा और कमल मौल में ही एक रैस्टोरैंट में बैठे तो बात करतेकरते कब शाम हो गई उन्हें पता ही नहीं चला. अगले दिन मिलने का वादा कर के स्वरा घर आ गई, परंतु घर आ कर भी कमल की बातों को भूल नहीं पा रही थी. कितने दिनों के बाद किसी ने उस की इस तरह से तारीफ की थी. रात में खाना खा कर अभी वह लेटी ही थी कि फोन की घंटी बजी. फोन कमल का था. उस ने सोचा कि कमल को डांट दे कि अभी फोन करने का क्या मतलब? परंतु कर नहीं पाई. उन की बात जब खत्म हुई तो पता चला कि रात का 1 बज गया है.

फिर तो यह रोज का सिलसिला बन गया. या तो वे दिन में मिल लेते या घंटों फोन पर बातें करते रहते. स्वरा काफी खुश रहने लगी थी, क्योंकि कमल और उस की सोच काफी मिलती थी. वह कमल से उन सभी टौपिक पर बात करती, जिन पर वह अकेली बैठे सोचती रहती. फिर उसे लगता कि कमल आलोक से कितना अलग, कितना संवेदनशील है. ऐसा होने से दोनों ही एकदूसरे का साथ ज्यादा से ज्यादा चाहने लगे थे. एक दिन कमल ने अचानक स्वरा को फोन कर के मौल में बुला लिया और वह पहुंची तो बोला, ‘‘स्वरा, कल मैं कंपनी के काम से न्यू जर्सी जा रहा हूं. 1 महीने बाद आऊंगा.’’

‘‘क्या इतने दिन…’’

‘‘हां, लगेंगे तो इतने ही दिन. जाना तो मैं भी नहीं चाहता था पर तुम तो जानती ही हो मेरे बिजनैस की प्रौब्लम.’’

‘‘नहींनहीं कमल तुम जरूर जाओ. हम फोन पर तो बात करते रहेंगे.’’

‘‘स्वरा, मैं एक बात सोच रहा था.’’

‘‘हां, बोलो.’’

‘‘जाने से पहले तुम्हारे साथ कुछ वक्त गुजारना चाहता था.’’

‘‘गुजार तो रहे हो.’’

‘‘नहीं, ऐसे नहीं अकेले कहीं… तुम समझ रही हो न?’’

कुछ सोच कर स्वरा ने कहा, ‘‘बोलो, कहां चलें?’’

‘‘तुम कोई सवाल मत करो, बस चलो. मुझ पर तुम्हें भरोसा तो है न?’’

‘‘चलो, फिर चलें.’’

कमल ने गाड़ी एक आलीशान होटल के सामने रोकी.

‘‘ये कहां आ गए हम?’’ स्वरा गाड़ी से उतरते हुए बोली. वह खुद को असहज महसूस कर रही थी.

‘‘स्वरा, मुझे तुम से जो बात करनी है, उस के लिए एकांत जरूरी है.’’

होटल की लौबी से कमरे तक पहुंचने का रास्ता स्वरा को काफी लंबा महसूस हो रहा था, परंतु वह अंदर से एक अलग रोमांच का भी अनुभव कर रही थी. शादी के पहले कालेज बंक कर के जब स्वरा आलोक से मिलने जाया करती थी, तब भी कुछ ऐसा ही महसूस करती थी. परंतु एक अंतर यह था कि तब उस के कदम तेजी से बढ़ते थे, लेकिन आज बड़ी मुश्किल से उठ रहे थे.

‘‘आओ स्वरा, अंदर आओ. कहां खो गईं, भरोसा तो है न मुझ पर?’’

‘‘कमल, यह तुम ने दूसरी बार पूछा है. औफकोर्स है यार. न होता तो यहां तक आती क्या?’’

अंदर पहुंच कर कमल ने स्वरा को बिस्तर पर बैठाया और खुद उस के घुटनों के पास नीचे बैठ गया.

‘‘यह क्या कमल, तुम यहां क्यों बैठ रहे हो?’’

‘‘मुझे यहीं बैठने दो स्वरा, क्योंकि मुझे जो कहना है वह मैं तुम्हारी आंखों में आंखें डाल कर कहना चाहता हूं.’’

‘‘ऐसा क्या?’’

‘‘स्वरा, तुम से मिलने से पहले मैं सोचता था कि मेरी जिंदगी यों ही कट जाएगी. औफिस से घर व घर से औफिस. और एक ऐसी बीवी जो मुझ से ज्यादा किट्टी पार्टी और शौपिंग में रुचि रखती है. मैं शायद अपने दोनों बेटों की खातिर जी रहा था यह जिंदगी. लेकिन तुम मिलीं तो सब कुछ बदल गया. हम दोनों शादी की बेमजा जिंदगी में कैद हैं, इसलिए मैं तुम्हें अपना बनाना चाहता हूं,’’ ऐसा कहते हुए कमल स्वरा के एकदम करीब आ गया. इतना करीब कि उस की गरम सांसें स्वरा के कोमल

कपोलों को सुलगाने लगीं. स्वरा ने इस क्षण के आने के बारे में सोचा न हो ऐसा न था. वह सोचती थी कि जब यह क्षण आएगा तो वह रोमांचित हो जाएगी. जो रिक्तता उस की शादीशुदा जिंदगी में आ गई थी, शायद वह भर जाएगी. परंतु यह क्या? कमल का पास आना उसे बिलकुल अच्छा नहीं लगा. उसे ऐसा लगा जैसे आलोक की कोई बहुत प्यारी चीज, कमल उस से छीनना चाहता है और वह ऐसा होने नहीं देना चाहती. उसी पल उस को यह भी एहसास हुआ कि अंदरूनी रूप से तो वह कभी भी आलोक से दूर हुई ही नहीं थी.

एक झटके में वह कमल को पीछे कर के खड़ी हो गई.

‘‘क्या हुआ स्वरा, मुझ से कोई भूल हो गई?’’

‘‘भूल, नहीं कमल, हुआ तो यह है कि तुम्हारी वजह से मैं समझ पाई कि मैं आलोक से कितना प्यार करती हूं. हमारी शादी में एक अल्पविराम जरूर लग गया था, परंतु प्रयास कर के मैं उसे हटा दूंगी. अल्पविराम को पूर्णविराम समझने की भूल से उबारने के लिए धन्यवाद दोस्त.’’

कमल को जड़ छोड़ कर स्वरा होटल से बाहर आ गई और औटो में बैठ कर उस ने 3 फोन किए. पहला, टूअर पैकेज वाले लड़के को और उस से गोवा की अगले हफ्ते की बुकिंग करवाई. दूसरा, अपनी मां को ताकि शिव उस पूरे हफ्ते किसी भरोसेमंद के पास रहे और तीसरा फोन किया आलोक को.

Sad Story : बसंती की माताजी

‘‘माताजी, मैं जाऊं,’’ माताजी का सिर सहलाते बसंती ने पूछा तो वे क्षीण स्वर में बोलीं, ‘‘अभी मत जा…’’

बीमारी ने माताजी का शरीर जर्जर और मस्तिष्क कुंद कर दिया था. पिछले सवा साल से वे बिस्तर पर थीं. पहले जबान लड़खड़ाई, फिर कदम बेजान हो गए तो वे बिस्तर की हो कर रह गईं. जब तक वे थोड़ाबहुत चल पाती थीं, यही बसंती बाथरूम तक जाने में उन की मदद कर देती थी. उन का दिमाग ठीक था तो वे बसंती के हाथ में कुछ न कुछ रख देती थीं. कभी रुपए, कभी साड़ी, कभी कुछ और यानी उसे कभी खाली हाथ नहीं जाने देतीं. वे सोचतीं किस के लिए जोड़ना है. अब जो उन की सेवा कर दे, उसी को दे दें.

बसंती उन के घर में पिछले 20 साल से काम कर रही थी. उन की दोनों बहुएं भी उसी के सामने आई थीं. खुद बसंती भी तब 20 की थी अब 40 की हो गई थी.

बसंती भी कितनी देर तक रहती. दूसरे वह कई घरों में काम भी करती थी. धीरेधीरे माताजी इस लायक भी नहीं रह गईं कि अलमारी से निकाल कर उसे कुछ दे सकें. फिर भी बसंती उन का काम कर देती थी. घर में 2 बेटे, 2 बहुएं थीं. बेटों का अपनी बीवियों को नौकरी करने के लिए मना करने पर, माताजी की जिद व प्रयासों से वे नौकरी कर पाई थीं लेकिन आज जब वे बिस्तर की हो कर रह गईं तो बहुएं उन के कमरे में झांकती भी नहीं थीं. छोटी बहू आ कर दवाइयां सामने रख जाती थी…जब तक वे खुद खा पातीं, खा लेती थीं. जब नहीं खा पाईं तब बसंती का इंतजार करतीं. बड़ी बहू बेमन से भोजन की थाली रख जाती.

माताजी के कपड़े जब मलमूत्र से गंदे हो जाते तो उन्हें वैसे ही रह कर बसंती का इंतजार करना पड़ता. बहुएं कमरे में दवाई और खाना रखने आतीं तो बदबू के मारे नाकभौं सिकोड़ कर चली जातीं. बसंती सुबहशाम तो उन की सफाई कर देती पर दिनभर तो वह नहीं रहती थी. वे अकेले ही घर में पड़ी रहतीं. बहूबेटे घर पर ताला लगा कर चले जाते.

जिन नातेरिश्तेदारों से घर हमेशा भरा रहता था, जीवन के इस अंतिम समय में जैसे उन्होंने भी मुंह फेर लिया. कमरे की दुर्गंध की वजह से वे दरवाजे से झांक कर चले जाते. बीमारी की वजह से उन की याददाश्त कमजोर हो गई थी. इसलिए वे कुछ को पहचान पातीं, कुछ को नहीं. उन के मन में बारबार यही आता कि इस जीवन से तो अच्छी मौत है.

उन की इस दुर्गति को देख कर बेटों का दिल पसीजा तो दोनों ने मिल कर उन के लिए एक नर्स का प्रबंध कर दिया. चूंकि बैंक में उन का थोड़ाबहुत पैसा पड़ा था इसलिए कोई दिक्कत नहीं थी.

‘‘ठीक से देखभाल करना माताजी की…कोई शिकायत का मौका न देना,’’ बड़ा बेटा बोला.

‘‘जी, साब,’’ नर्स बोली.

छोटा बेटा आनेजाने वाले रिश्तेदारों से कहता, ‘‘हमें माताजी की बहुत चिंता रहती है, इसलिए नर्स रख दी है…’’

‘‘बहुत कर रहे हो…’’ रिश्तेदार कहते.

दिनभर घर में कोई नहीं रहता. नर्स सुबह सफाई करती और शाम को सब के घर आने से पहले कर देती, बाकी समय कुरसी पर बैठी या तो पत्रिका पढ़ती या स्वेटर बुनती रहती. बसंती इधरउधर से काम निबटा कर माताजी को देखने पहुंच जाती. कमरे में पहुंचती तो नर्स को अपनेआप में ही व्यस्त पाती.

‘‘गंध आ रही है, कहीं माताजी ने पौटी तो नहीं कर दी.’’

‘‘पता नहीं, अभी तो साफ की थी… माताजी को भी चैन नहीं…जब देखो, तब कपड़े खराब करती रहती हैं…सारा दिन यही काम है…’’

बसंती को देख कर माताजी की अधखुली आंखों में चमक आ जाती. वे किसी को पहचानें न पहचानें पर बसंती को अवश्य पहचान जातीं. जिंदगी भर शान से जीने वाली माताजी, एक नर्स की डांट खा कर, सहम कर और भी सिकुड़ जातीं.

‘‘देखो, पेशाब की थैली भर गई… गिर जाएगी…ये भी खाली नहीं की तुम ने…’’ बसंती नर्स को उस के काम की याद दिलाती.

‘‘तुझे क्या मतलब है,’’ नर्स तिलमिला कर कहती, ‘‘घर की मालकिन है क्या…मुझ से सवालजवाब करती रहती है…यह मेरा काम है, मैं देख लूंगी…’’

इतने में बसंती माताजी को पलटा कर देखने लग जाती तो पाती माताजी पूरी तरह गंदगी में सनी हुई हैं. नर्स वापस लौटती तो बसंती को चुपचाप सफाई करते हुए पाती. बसंती के चेहरे पर गुस्सा होता. पर जानती थी अभी कुछ बोलेगी तो झगड़ा हो जाएगा. बसंती को सफाई करते देख, नर्स को थोड़ा शर्मिंदगी का एहसास होता और वह कहती, ‘‘अभी तो सफाई की थी, फिर कर दी होगीं.’’

साब लोगों से बसंती नर्स की शिकायत नहीं कर पाती. सोचती दिनभर घर में कोई रहता नहीं है. डांट पड़ने पर नर्स भी भाग गई तो इस सूने घर में माताजी के साथ कोई भी न रहेगा. बसंती का हृदय माताजी के लिए करुणा से भर जाता.

इन बड़ीबड़ी महलनुमा कोठियों में ऐसा ही होता है. कई घरों का हाल देख चुकी है बसंती, बेटेबहुएं बड़ीबड़ी नौकरी करते हैं और दिनभर घर से गायब रहते हैं. बच्चे पढ़ने के लिए बाहर चले जाते हैं और बुजुर्ग इसी तरह एक कमरे में, बिस्तर पर अकेले पड़े हुए मौत का इंतजार करते हैं.

दिन बीतते जा रहे थे. धीरेधीरे माताजी की आवाज भी कम होने लगी. वे कभीकभार ही कुछ शब्द बोल पातीं, लेकिन बसंती को देख कर अभी भी उन की आंखें चमक जातीं और उन के होंठों के हिलने से लगता कि वे बसंती से कुछ बोल रही हैं. लेटेलेटे माताजी के पीछे की तरफ घाव होने लगे तो बसंती ने हिम्मत कर के छोटी बहू से कह दिया, ‘‘बहूजी, माताजी की पीठ में घाव होने लगे हैं…डाक्टर को दिखा दो…’’

‘‘वे तेरी सास हैं या मेरी…बड़ी फिक्र पड़ी है तुझे…’’ छोटी बहू कड़कती हुई बोलीं.

‘‘बहूजी, मैं तो सिर्फ बता रही थी.’’

‘‘तू ने कब देखा…नर्स ने तो कुछ नहीं बताया…नर्स किसलिए रखी है…अपनेआप देखेगी वह…सारा दिन लेटी रहती हैं, घाव तो होंगे ही…अब इस से ज्यादा कोई क्या करे…फुलटाइम नर्स तो रख दी है…’’

‘‘लेकिन बहूजी, सेवा तो अपने हाथ से होती है…आप लोग तो घर में रहते नहीं हो…नर्स थोड़े ही इतना करेगी,’’ बसंती किसी तरह हिम्मत कर बोल गई.

तभी बड़ी बहू बीच में बोल पड़ी, ‘‘तू जरा कम बोला कर और अपने काम पर ध्यान ज्यादा दिया कर.’’

‘‘अपने काम पर तो ध्यान देती हूं,’’ बसंती धीरेधीरे बुदबुदाती हुई अपने काम पर लग गई. फिर एक दिन बसंती से न रहा गया इसलिए बोल पड़ी :

‘‘बहूजी, आप जो खाना रख कर जाती हो वैसे ही पड़ा रहता है…माताजी से सब्जीरोटी कहां खाई जाती होगी, कुछ जूस, सूप, दलिया, खिचड़ी आदि बना दिया करो न उन के लिए…’’

‘‘हां, कई नौकर लगे हैं न यहां…और कोई काम तो है नहीं हमारे पास…सिवा एक काम के…’’ दोनों बहुएं एकसाथ बड़बड़ाने लगतीं और बसंती चुपचाप माताजी के क्षीण होते शरीर को देखती रहती.

माताजी के बैडसोर बड़े होने लगे थे. नर्स घावों की सफाई भी ठीक से नहीं करती, ऊपर से माताजी का पेट चलता तो दवाई भी ठीक से न दे पाती. कमरा सड़ांध से भरा रहता और बसंती उन की दुर्दशा पर चुपचाप आंसू बहाती रहती.

उस ने माताजी का वह समय देखा था, जब यहां काम करना शुरू किया था. तब वह माताजी को देख कर कितनी हुलसित हो जाती थी. कितनी शानदार लगती थीं माताजी तब…क्या शरीर था उन का… ममतामयी माताजी उसे बहुत ही अच्छी लगतीं. तब साहब भी जिंदा थे. पूरे घर की बागडोर माताजी के हाथ में थी. उन के दोनों बेटे उस के देखतेदेखते ही बड़े हुए थे.

उस के कितने ही सुखदुख में माताजी ने उस का साथ दिया और बदले में वह भी माताजी के पूरे काम आती. कितना देती- करती थीं माताजी उसे…उस के बच्चे बीमार पड़ते तो बिना काम के भी उसे रुपए पकड़ा देतीं. वह अपने शराबी आदमी से परेशान होती तो माताजी उसे धैर्य बंधातीं…सास के तानों से तारतार होती तो माताजी उसे पास बिठा कर समझातीं और इसी तरह उस की जीवन नैया पार लगी. आज बसंती के खुद के बच्चे भी बड़े हो गए हैं.

आज उन्हीं माताजी को तिलतिल कर मरते देख वह कुछ नहीं कर पा रही थी. हां, इतना जरूर था कि वह जब होती तो नर्स के साथ लग जाती. जब नहीं होती तो नर्स क्या करती, क्या नहीं करती वह नहीं जानती थी. एक दिन जब बसंती काम निबटा कर माताजी को देखने पहुंची तो कमरे से माताजी की कराहने की आवाज आ रही थी और नर्स की फोन पर बात करने की. वह कमरे में गई तो देखा, माताजी उघड़े बदन आधीअधूरी सफाई में वैसे ही ठंड में पड़ी हैं और नर्स फोन पर बात कर रही है. बसंती को देख कर उस ने फोन बंद कर दिया.

‘‘तुम काम छोड़ फोन पर बात कर रही हो और माताजी उघड़े बदन पड़ी हैं… उन्हें ठंड नहीं लग रही होगी,’’ बसंती का चेहरा गुस्से से तमतमा गया.

‘‘कर तो रही थी पर बीच में कोई फोन आ जाए तो क्या न उठाऊं.’’

‘‘तुम्हें यहां तनख्वाह माताजी का काम करने की मिलती है…फोन पर बात करने की नहीं…’’ बसंती अपने गुस्से को रोक नहीं पा रही थी.

‘‘तू जरा जबान संभाल कर बात किया कर…तू नहीं देती है मुझे तनख्वाह…’’

‘‘हां…जो तनख्वाह देते हैं, उन्हें तो पता नहीं कि तू क्या करती है…आज तो मैं कह कर रहूंगी.’’

‘‘जा…जा…कह दे, बहुत देखे तेरे जैसे…’’

नर्स भी कहां चुप रहने वाली थी. उस अकेले घर में बिस्तर पर असहाय बीमार पड़ी माताजी के सामने बसंती व नर्स की तूतू, मैंमैं होती रही. बसंती का मन उस दिन बहुत खराब हो गया. उस ने सोच लिया था कि अब चाहे काम छूटे या डांट पड़े, उसे माताजी के बहूबेटों को सबकुछ बताना ही पड़ेगा. रात भर वह सो न सकी. दूसरे दिन जब काम पर आई तो बड़ी बहू से बोली :

‘‘बहूजी, आप दोनों रहती नहीं…नर्स माताजी की ठीक तरह से देखभाल नहीं करती…’’

‘‘तो क्या करें अब…तू फिर शुरू हो गई…’’ बड़ी बहू को यह टौपिक बिलकुल भी पसंद नहीं था.

‘‘आप दोनों बारीबारी से छुट्टियां ले कर माताजी की देखभाल कर लो बहूजी…पुण्य लगेगा…अब…खाना तक तो छूट गया उन का…नर्स रखने भर से बुजुर्गों की सेवा नहीं होती. कितना प्यार दिया है माताजी ने आप लोगों को…इस समय उन्हें आप दोनों की बहुत जरूरत है,’’ स्वर में यथासंभव मिठास ला कर बसंती बोली.

‘‘तू हमें सिखाने चली है,’’ बड़ी बहू को गुस्सा आ गया, ‘‘बकवास बंद कर और अपना काम कर…और हां, अपनी औकात में रह कर बात किया कर…’’

‘‘ठीक है बहूजी…20 साल हो गए हैं आप के घर में काम करते हुए…माताजी ने कभी ऐसी तीखी बात नहीं कही…हमारी औकात ही क्या है…वह तो माताजी की ममता हमारे सिर चढ़ कर बोल जाती है, हम नहीं देख पाते हैं उन की यह दुर्दशा… आप कोई दूसरी ढूंढ़ लो…मुझ से नहीं हो पाएगा अब आप के घर का काम,’’ कह कर बसंती काम छोड़ कर चली गई.

अगले दिन उन्होंने दूसरी काम वाली ढूंढ़ ली. बसंती ने काम पर जाना तो छोड़ दिया लेकिन माताजी को देखने के लिए उस का दिल तड़पता रहता पर अब किस मुंह से जाए, मन ही मन तड़पती रह जाती. नर्स की तो अब और भी मनमानी हो गई. माताजी मृत्यु के थोड़ा और करीब पहुंच गई थीं.

एक दिन के लिए बोल कर नर्स छुट्टी पर गई तो दूसरे दिन भी नहीं आई. माताजी का कमरा ऐसा भभका मार रहा था कि दरवाजे पर खड़ा होना भी मुश्किल था. बहुओं ने, गंध बाहर न आए, इसलिए कमरे का दरवाजा बंद कर दिया. शाम को बेटे घर आए तो अपनी बीवियों से पूछा :

‘‘नर्स आई थी आज…’’

‘‘नहीं…’’

‘‘तो क्या, मां वैसे ही पड़ी हैं अब तक…किसी ने सफाई नहीं की…खाना नहीं खिलाया…’’

‘‘कौन करता सफाई…’’ बहुएं चिढ़ गईं.

‘‘अरे, बसंती को ही जा कर बुला लाते…मां के लिए वह आ जाती…’’

‘‘कौन बुलाता उस नकचढ़ी को… कैसे पैर पटक कर काम छोड़ कर गई थी… हम से न हो पाएगा यह सब…’’

बीवियों से भिड़ना बेकार था, यह दोनों बेटे जानते थे. बड़ा बेटा बसंती के घर गया और उसे बुला लाया.

माताजी का नाम सुन कर बसंती ने आने में एक पल भी नहीं लगाया. बहुओं ने उसे देख कर मुंह फेर लिया. बसंती ने पूरे मनोयोग से माताजी की सफाई की. गीले तौलिए से पूरे शरीर को पोंछा, मालिश की. उन की चादर और कपड़े बदले और सारे कपड़े धो कर सुखाने डाल दिए. फिर माताजी के लिए पतली खिचड़ी बनाई और मनुहार से खिलाई. बसंती के प्यारमनुहार से माताजी ने 1-2 चम्मच खिचड़ी खा ली.

बसंती को आज माताजी की हालत और दिनों से भी गिरी हुई लगी. अनुभवी आंखें समझ गईं कि माताजी कल का सूरज शायद ही देख पाएंगी. इसलिए वह बड़े बेटे से बोली :

‘‘साब, नर्स नहीं है तो आज रात मैं यहीं रुक जाती हूं…बहूबेटे खुश हो गए. रात बसंती माताजी के कमरे में सो गई. बसंती को सामने देख कर माताजी भी चैन से सो गईं. उन के सोने के बाद बसंती भी लेट गई.’’

सुबह माताजी की खांसी की आवाज सुन कर बसंती की नींद टूट गई. उन की इकहरी होती सांसों को सुन कर बसंती चौंक गई. भाग कर बहूबेटों का दरवाजा खटखटा आई और माताजी का सिर अपनी गोद में रख लिया. सांस लेतेलेते माताजी ने निरीह नजरों से अपने बेटेबहुओं को देखा, फिर बसंती के चेहरे पर जा कर उन की नजर टिक गई. उन का मुंह हलका सा कुछ बोलने को खुला और प्राणपखेरू उड़ गए. बसंती का विलाप उस बड़ी कोठी के बाहर भी सुनाई दे रहा था. दूसरे दिन माताजी की अंतिम यात्रा का प्रबंध हो गया. रिश्तेदार आए. बहूबेटों ने छुट्टी ली और पूरी औपचारिकता निभाई. शाम को बसंती जाने लगी तो बहुओं ने उस के काम के रुपए ला कर उस के हाथ में रख दिए.

‘‘यह क्या है?’’ बसंती ने पूछा.

‘‘तुम्हारे काम का पैसा है…माताजी तुम को बहुत चाहती थीं. इसलिए ज्यादा ही दिया है.’’

‘‘बहूजी…’’ बसंती कसैले स्वर में बोली, ‘‘माताजी तो मेरी अन्नदाता थीं… बहुत दिया है उन्होंने हमें जिंदगी भर…हम उन के प्यार का कर्ज तो कभी नहीं उतार पाएंगे…माताजी के लिए किए काम का हमें कुछ नहीं चाहिए…उन का आशीष मिल गया हमें…आखिरी समय उन के मुंह में अन्नजल डाल पाए…हमारे लिए यही बहुत है…यह रुपया आप संभाल कर रख लो…जब आप लोग बुढ़ापे में इस बिस्तर पर पड़ोगे, तब आया को देने के काम आएंगे…’’

यह कह सुबकती हुई बसंती, गुस्से में दनदनाती चली गई और एक अनपढ़, साधारण नौकरानी की बात को मन ही मन तोलते, चारों उच्च शिक्षित, तथाकथित सभ्य समाज के कर्णधार भौचक्के से खड़े एकदूसरे की शक्ल देखते रह गए.

Childhood : उसे पसंद थी बैंगन की सब्‍जी

अब इस की हत्या के अलावा और कोई विकल्प ही नहीं बचा मेरे पास. मैं क्या करूं, कुछ समझ नहीं पा रही हूं. इस मामले से छुटकारा पाने का बस एक ही तरीका दिख रहा है कि इस लड़की की हत्या कर दी जाए. मैं इस लड़की को अच्छी तरह से जान गई हूं. हल्ला मचा रखा है इस ने बैगन की सब्जी खाने के लिए. उस दिन मेरे औफिस में मेरी सहेली ने मुझे बैगन की सब्जी ला कर दी. बैगन मुझे बिलकुल पसंद नहीं हैं… बैगन यानी बेगुण. बचपन मेें हम अपनी कक्षा की एक सांवली लड़की रामकली को ऐसे ही चिढ़ाया करते थे- कालीकलूटी, बैगन लूटी.

मैं ने बहुत झिझकते हुए बैगन लिए थे, जबकि बैगन की सब्जी वास्तव में देखने में बहुत अच्छी दिख रही थी. बिलकुल ताजगी से भरी, जबकि जब भी मैं बैगन बनाती हूं तो वे बनने के बाद बिलकुल सिकुड़ जाते हैं. ठीक है, बैगन बहुत खूबसूरत दिख रहे थे पर खाने में तो बेस्वाद और कसैले ही होंगे न.

 

वैसे आप को बताऊं यदि मेरा बस चले तो मैं यह सब्जी कभी बनाऊं ही नहीं पर क्या करूं. घर में बाकी सब इसे बड़े शौक से खाते हैं और मैं भी मन मार के खा ही लेती हूं. अब कौन अपने लिए अलग से कुछ बनाए.

अरे मैं भी कहां की कहां पहुंच गई. हां तो जब मैं ने अपनी सहेली के बनाए बैगन झिझकते हुए खाए तो इतने स्वादिष्ठ लगे कि मैं पूरा डब्बा ही चट कर गई. बस मुझ से गलती यह हुई कि मैं ने इस लड़की को भी वह सब्जी खिला दी. कमबख्त बिना मुझे बताए मेरी सहेली से बैगन बनाने की पूरी विधि सीख आई.

तब से यह लड़की रोज मेरे पीछे पड़ी है. कहती है दीदी बैगन तो फ्रिज में रखे ही हैं. चलो बनाते हैं और तो और मेरी बचत के पैसों से गोडा मसाला भी खरीद लाई. पइस महंगाई के जमाने में जब अपने बच्चों की जरूरतें भी पूरी नहीं होतीं तो ऐसे में इस कमबख्त की जुर्रत तो देखिए.

मैं रोज इसे बहला रही हूं कि चल आज बच्चों की पसंद के भरवां बैगन बना लेते हैं या पति की पंसद के इमली दाल वाले बैगन बना लेते हैं पर यह कपटी लड़की मुझ से मनुहार करती है कि नहीं दीदी वैसे वाले बैगन बनाओ न जैसे आशा ने बनाए थे. अब बताइए सब की फरमाइशें पूरी करने के लिए मैं समय कहां से लाऊं.

 

मैं ने आप से बताया नहीं इस के बारे में अभी तक. मुझ से भूल हुई कि शादी के बाद मैं इसे भी अपने साथ ले आई ससुराल में. तूफान मचा रखा है इस ने मेरी जिंदगी में. जरा भी कहना नहीं मानती मेरा. क्याक्या बताऊं आप को इस के बारे में. मेरी तो जगहंसाई कराती है. कभी सड़क पर यह ऊंट सी लड़की गुनगुनाने लगती है तो कभी बच्चों की तरह किसी को भी देख कर बिना वजह मुसकराने लगती है.

तंग आ गई हूं इस से. मरी के अंदर कोलंबस कौंप्लैक्स भरा पड़ा है. नएनए रास्तों पर मुझे भी घुमा लाती है. बीच सड़क पर किसी से भी बतियाने लगती है. मुझ सदगृहस्थन की इतनी बदनामी कराती है. बहुत समझाया कि अच्छी लड़कियों की तरह सलीके से रह पर यह सुनती ही नहीं.

अब मैं इस की हत्या की योजना बना रही हूं. मरना ही होगा इसे. एक म्यान में एक ही तलवार रह सकती है. इस घर में या तो यह रहेगी या मैं. यह सोचते ही मेरे मन में ठंडक सी पड़ जाती है. यह जीएगी तो मैं रोज मरती रहूंगी और यह जब मर जाएगी तो मैं चैन की जिंदगी जी सकूंगी. आज बस इस की जिंदगी का आखिरी दिन होगा. कल से इस की आवाज भी नहीं सुननी पड़ेगी मुझे और इस की हत्या ऐसे करूंगी कि किसी को कानोंकान खबर भी नहीं पड़ेगी.

चलो इस के पहले मैं उस जी के जंजाल बैगन को बच्चों के पसंदीदा ढंग से बना कर चलता करूं. पड़ेपड़े मुरझा रहे हैं. कहीं इस नासपीटी ने मुझे देख लिया तो कहर ढाएगी कि वैसे वाले बैगन बनाओ. वैसे वाले…

 

मैं रसोई में पहुंची ही थी कि यह नासपीटी खिलखिलाती हुई मेरे पीछेपीछे आ पहुंची. बोली कि दीदी आज तो इतवार है. अब तो बनाओ न वैसे वाले बैगन. कैसे समझाऊं इस नासपीटी को कि हम कामकाजी औरतों का कौन सा इतवार होता है.

छुट्टी के दिन तो दोगुना काम होता है हमें. बच्चों की पसंद का, पति की पसंद का नाश्ता, खाना बनाओ, हफ्तेभर के पैंडिंग काम करो. सांस लेने की भी फुरसत नहीं मिलती. मैं झुंझला उठी. मेरा गुस्सा चरम सीमा पर पहुंच गया. पगली ने अपनी मौत को खुद न्योता दिया है.

मैं सिलबट्टे से इस का सिर फोड़ने जा ही रही थी कि इस ने पीछे से आ कर मेरे मुंह में कपड़ा ठूंस दिया. जकड़ दिया मेरे हाथपैरों को रस्सी से. मैं फटी आंखों से देखती रही… अपने मन की कर ही ली इस ने. बना ही लिए इस ने वैसे वाले बैगन जिस के लिए हफ्ते भर से किचकिच कर रही थी.

बैगन बना कर न केवल तसल्ली से उंगलियां चाटचाट कर खाए इस ने बल्कि मुझे भी जबरदस्ती खिला दिए. इस को खिलखिलाते देख कर में चौंक गई. आज तो मुझे इसे मार डालना था पर यहां तो सब उलटा पड़ गया. इस ने बड़ी चतुराई से खुद को भी बचा लिया और मुझे भी जिंदा छोड़ दिया.

यह लड़की मुझ से जीत गई. मेरी आंखें भर आईं… मैं कहां मारना चाहती हूं इसे. कितना प्यार करती हूं इस बच्ची से मैं… कितना छिपछिप कर दुलारती भी तो हूं इसे. कभी बाजार घुमा लाती हूं इसे तो कभी इस का जन्मदिन चुपचाप इस के साथ मनाती हूं. इसे इस की पसंद का उपहार भी देती हूं.

आप हैरान हो रहे होंगे न कि क्या लगती है यह लड़की मेरी जो पिछले 20 सालों से जोंक की तरह मेरे साथ चिपकी हुई है जो न खुद मरती है और न मुझे मरने देती है. जिस से मैं नफरत भी करती हूं और बेतहाशा प्यार भी. आखिर क्या रिश्ता है इस का और मेरा?

अरे, आप ने पहचाना नहीं इसे? यह लड़की मेरे भीतर की सदगृहस्थन के अंदर बैठी है… मेरी बालसुलभ अस्मिता जो अपने लिए भी जीना चाहती है और मुट्ठी भर खुशी भी ढूंढ़ती है अपने लिए. आम औरतों की तरह मैं ने भी इस लड़की को मारने की कोशिश तो की पर मार न सकी.

आज आम औरतें गहने बनवातीं और गहने तुड़वातीं, साडि़यां की सेल में घूमतीं, किट्टी पार्टियों में जातीं, पति और बच्चों की पसंद के नशे में अपने वजूद को मार डालती हैं. किताबों, पत्रपत्रिकाओं से रिश्ता ही तोड़ लेती है… अपनी पसंद को भूल जाती हैं.

शुक्र है कि वो लड़की मेरे भीतर अभी भी जिंदा है जो शादी के इतने सालों बाद भी खुल कर सांस लेने की कोशिश करती है और कभीकभी अपने लिए भी सोचती है. चाहे पल भर के लिए ही सही, खिलखिला कर हंसती है और जी हां, जिस ने मेरी पसंद के बैगन भी मुझे बना कर खिला दिए.

काश, हर औरत अपने भीतर की उस लड़की की हत्या न करे और हंसती रहे वो लड़की.

मौडर्न बहुओं की बैस्‍ट फ्रैंड बन गई हैं Mother in law

 

Mother in Law & Dauther in law Relation : मौडर्न समय में रिश्ते जोरजबरदस्ती से नहीं बल्कि आपसी तालमेल से बनाने पड़ते हैं. तालमेल ऐसा जिस में दबनेदबाने की भावना न हो और एकदूसरे के प्रति सम्मान हो. सासबहू को ले कर समाज में परसैप्शन है कि इन का नेचर आपस में लड़ने?ागड़ने का है पर आज के बदले समय में सासबहू में तालमेल दिखाई देने लगा है. इवनिंग वाक से वापस आते हुए लिफ्ट में मेरे सामने रहने वाली मिसेज मौली अपने बेटे की पत्नी के साथ मिल गईं. अकसर सासबहू की यह जोड़ी मुझे आतेजाते मिल ही जाती है. उन्हें यों एकसाथ देख कर मैं ने कहा, ‘‘कहां चली यह सासबहू की खूबसूरत जोड़ी?’’ ‘‘मेला, मूवी और बाहर ही डिनर ले कर घर आने का प्लान है आंटी,’’ बहू आरती ने अपनी सास की ओर मुसकरा कर देखते हुए कहा.

‘‘वाह, आदर्श सासबहू हो आप दोनों,’’ मैं ने कहा तो बहू खिलखिलाते हुए बोली, ‘‘बाय द वे आंटी, क्या हम सासबहू लगती हैं?’’ ‘‘रियली नहीं, मुझे तो हमेशा आप दोनों मांबेटी ही लगती हो. अभी ही देख लो, दोनों ही जींसटौप में हो. मांबेटी भी नहीं, बहनें ही अधिक लग रही हो,’’ मैं ने हंस कर कहा तो वे दोनों खुश होते हुए चली गईं. सच में आज सासबहू की परिभाषा पूरी तरह से उलट गई है. मुझे अपनी मां का बहू रूप आज भी याद है जब उन के मुख पर घूंघट हुआ करता था. उसी घूंघट में वे घर के समस्त कार्यों को निबटाती थीं. घरबाहर सभी जगह पर मजाल है कि उन का घूंघट जरा सा भी ऊंचा हो जाए. उन की अपनी कोई मरजी न थी. बस, दादी के निर्देशों का पालन भर करना होता था. जब मैं बहू बन कर अपनी ससुराल आई तो घूंघट का स्थान सिर के पल्ले ने ले लिया और हमें घरबाहर के विभिन्न मुद्दों पर अपनी राय सासुमां के सामने रखने का अधिकार तो था परंतु अंतिम निर्णय सासुमां का ही होता था जो अप्रत्यक्ष रूप से घर के मर्दों का ही हुआ करता था.

 

आज की daugher in law परिवार में समानता का अधिकार रखती है. उस के पहनावे में साड़ी का स्थान जींसटौप, कुरतेलैगिंग्स और अन्य आधुनिक परिधानों ने ले लिया है. वह अपने पति के साथ कंधे से कंधा मिला कर खड़ी है. परिवार में उस की राय बहुत माने रखती है. न केवल पति बल्कि सासससुर भी उस की राय को तवज्जुह देते हैं. यह बदलाव सासबहू के रिश्ते में भी परिलक्षित होता है. वे आज सासबहू कम, मांबेटी, बहनें या दोस्त अधिक हैं. जो एकदूसरे को बखूबी सम?ाती हैं, साथसाथ शौपिंग करती हैं, मूवी देखती और घूमती हैं. एकदूसरे के बारे में उस की उम्र के मानसिक स्तर पर जा कर सोचती हैं और एकदूसरे का खयाल रखना भी बखूबी जानती हैं.

छोटा होता परिवार का आकार इस बदलाव का सब से बड़ा कारण है परिवार का छोटा होता आकार. मेरी बूआ के 4 बेटे थे. बूआ सदैव एक न एक बहू को अपने साथ रखती थीं. एक बेटेबहू से बिगड़ जाने पर कोई न कोई उन की देखभाल के लिए उपलब्ध रहता ही था. परंतु आज परिवार में एक या दो संतानें ही होती हैं. श्रद्धा कहती है, ‘‘आज की कटु सचाई तो यह है कि हम सासबहुएं एकदूसरे की पूरक बन गई हैं क्योंकि पहले की तरह आज कई बच्चे तो होते नहीं कि एक के पास नहीं पट रही तो दूसरे या तीसरे के पास चले जाएंगे. एक ही बेटा है और एक ही बहू. हमें उन के साथ और उन्हें हमारे साथ ही रहना है तो फिर क्यों न हंसीखुशी रहा जाए.’’ इसी प्रकार एक मल्टीनैशनल कंपनी में सीए के पद पर कार्यरत प्रियंका कहती हैं, ‘‘हमें उन की जरूरत है और उन्हें हमारी. आज सोसाइटी में इतना अधिक एक्सपोजर है कि बच्चों को कदमकदम पर किसी मार्गदर्शक की आवश्यकता होती है और वह मार्गदर्शक उन के ग्रांडपेरैंट्स से बढ़ कर कोई नहीं हो सकता.

 

‘‘उन के सुरक्षित हाथों में अपने बच्चों को छोड़ कर हम निश्चिंतता से काम कर पाते हैं. आजीवन अपने बच्चों के लिए खटने वाले मातापिता के लिए भी यह अपनी मेहनत को सफल होते देखने का स्वर्णिम पल होता है. उन्हें भी इस उम्र में किसी सहारे की आवश्यकता होती है और वह सहारा उन के बच्चों से अच्छा कोई नहीं हो सकता. थोड़े उन के और थोड़े हमारे बदलने से बात बन जाती है. ‘‘मेरे विवाह के इन 7 वर्षों में हम ने छोटेबड़े सभी त्योहार, बर्थडे, एनिवर्सरी जैसे सभी अवसरों को सदैव एकसाथ ही सैलिब्रेट किया है. यदि हम नहीं जा पाते हैं तो उन यादगार पलों में मम्मीपापा हमारे साथ होते हैं क्योंकि वे हमारी जौब की विवशताओं को भलीभांति सम?ाते हैं.

मेरे दोनों बच्चे अपने ग्रांडपेरैंट्स के साथ ही पलेबढ़े हैं.’’ बेटी की कमी पूरी करती बहुएं वर्तमान समय में जिन परिवारों में बच्चों के नाम पर केवल एक या दो बेटे ही हैं वहां पर बेटियों के लिए तरसती मां के लिए बेटे की पत्नी अर्थात बहू उन की बेटी की कमी को पूरी करती है. बेटी को ले कर अपने समस्त अरमानों को वे अपनी बहू के जरिए पूरा कर रही हैं. बहुएं भी अपनी सास को मां समान ही मानती हैं. परिधान, हेयरस्टाइल और ज्वैलरी का निर्धारण कर अपनी सास को आधुनिक और स्टाइलिश बना रही हैं. 2 बेटों की मां मेरी चचेरी बहन नीता का ही उदाहरण ले लीजिए. वह कहती है, ‘‘दूसरे बेटे के समय मुझे  बेटी की बड़ी चाह थी परंतु दूसरा भी बेटा होने के बाद बेटी की चाह मन में ही रह गई पर जब से बड़े बेटे का विवाह हुआ है, बहू रागिनी के रूप में मुझे बेटी मिल गई है.

बेटी वाले सारे अरमान मैं अपनी बहू के जरिए पूरा कर रही हूं. ‘‘कई बार तो अपनी कुछ नितांत निजी बातें, जिन्हें मैं पति के साथ भी शेयर नहीं कर पाती, बहू के साथ सा?ा करती हूं. अपनी मजबूत अंडरस्टैंडिंग के कारण हम बिना कहे ही एकदूसरे की बातें सम?ा जाते हैं.’’ इस के अतिरिक्त आज की सासें अपनी बहू की इच्छाओं का मान रखना भी बखूबी जानती हैं. अंजू को मैंटेनैंस के कारण कौटन पहनना कभी नहीं भाया परंतु कल वह बड़ी ही सुंदर कौटन साड़ी में थी तो मैं ने कहा, ‘‘तुम्हें तो कौटन पसंद नहीं था, फिर आज यह खूबसूरत कौटन साड़ी?’’ ‘‘बहू की पसंद है, उस का कहना है कि कौटन मेरे ऊपर बहुत फबता है, इसलिए अब यह मेरा भी पसंदीदा फैब्रिक हो गया है,’’ अंजू ने अपनी बहू की प्रशंसा करते हुए कहा. आत्मनिर्भर होती बेटियां पहले जहां बेटी को पढ़ालिखा कर उस का विवाह कर देना ही मातापिता अपना मुख्य दायित्व समझते थे,

 

वहीं आज के मातापिता बेटों की ही भांति बेटियों को भी पूरी तरह शिक्षित कर आत्मनिर्भर बना कर ही विवाह करते हैं. यही बेटियां आगे चल कर आत्मनिर्भर बहुएं बनती हैं क्योंकि लड़के भी आज नौकरीपेशा पत्नी को ही प्राथमिकता दे रहे हैं जो कंधे से कंधा मिला कर न केवल आर्थिक बल्कि जीवन के प्रत्येक मोरचे पर अपने पति का साथ निभा सके. कुछ मामलों में लड़कियों को बच्चे होने के बाद नौकरी छोड़नी पड़ती है. ऐसे में घर पर रहने के साथसाथ अपने परिवार की संपूर्ण देखभाल करने का दायित्व भी बहू का ही होता है. गौरव एक मल्टीनैशनल कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत है. प्रतिदिन गाजियाबाद से अपने औफिस दिल्ली जाने के लिए उसे सुबह 8 बजे निकलना पड़ता है. रात को 9 बजे ही घर वापस आ पाता है. ऐसे में पीछे रह गए वृद्ध सासससुर के साथसाथ 9 वर्षीय बेटे की शिक्षा का दायित्व भी गौरव की पत्नी गरिमा के कंधों पर है. गौरव स्वयं कहता है,

‘‘गरिमा मु?ा से कहीं बेहतर ढंग से घरबाहर सभी कुछ मैनेज कर लेती है. मेरे औफिस जाने के बाद पापामम्मी को डाक्टर के पास ले जाने से ले कर बेटे को पढ़ाने तक का सारा काम वही संभालती है और इसीलिए मैं अपने काम पर बेहतर ढंग से कंसन्ट्रेट कर पाता हूं.’’ सम?ादार होती सास आज की सास शिक्षित हैं. वे जानती हैं कि प्रतिदिन औफिस जाने वाली बेटे के बराबर पैकेज लेने वाली बहू को किसी भी प्रकार के बंधन, फिर वह चाहे रहनसहन हो या खानपान में बांधना अनुचित है क्योंकि बंधन जहां रिश्ते में खटास उत्पन्न करेगा वहीं आजादी रिश्ते की डोर को मजबूत और रेशमी बनाएगी. वे सम?ाती हैं कि आज की बहुओं को बेटी जैसी ही आजादी और प्यार दे कर ही उन का प्यार पाया जा सकता है. सुनंदा के पति जब बेटे के विवाह के बाद उस के पोस्ंिटग स्थल पर गए तो बहू को शौर्ट्स पहने देख कर अचंभित रह गए. अपनी पत्नी से दबे स्वर में बोले, ‘‘तुम ने इसे कपड़ों के बारे में कुछ नहीं सम?ाया?’’ ‘‘नहीं, मैं ने उसे अपनी मरजी से ही पहनने को कहा है.’’

‘‘तुम्हें पता है न, इस तरह के कपड़े घर की बहू पहने, यह बिल्कुल भी पसंद नहीं है मु?ो,’’ पतिदेव बोले. ‘‘ठीक है, मैं उसे साड़ी या सूट पहनने को कह देती हूं. परंतु फिर जब भी हम अपने बेटे के पास आएंगे तो बहू को अपने स्वाभाविक रहनसहन में परिवर्तन करना पड़ेगा जो निश्चय ही उसे और बेटे को पसंद नहीं आएगा और हमारा आना उन्हें भारस्वरूप प्रतीत होगा. ‘‘हम उन के साथ लंबे समय तक खुशीखुशी रह सकें, इस के लिए आवश्यक है कि हम उन के जीने के अंदाज और तौरतरीकों में अनावश्यक हस्तक्षेप न करें. उन्हें उन की जिंदगी अपने ढंग से जीने दें. जब बेटी पहन सकती है तो बहू क्यों नहीं? उस की भी तो इच्छाएं हैं. फिर आप जैसा कहें,’’ सुनंदा अपने पति को सम?ाते हुए बोली. ‘‘हां, शायद तुम ठीक कह रही हो. तुम्हारी सम?ादारी पर मु?ो गर्व है,’’ उन्हें भी अपनी पत्नी की बात जंच गई. समधीसमधन भी हो रहे प्यारे आज की बेटियां अपने मातापिता को ले कर बहुत पजैसिव होती हैं. उन की देखभाल करना वे अपनी जिम्मेदारी सम?ाती हैं.

मेरी बहन अनुजा ने इस मर्म को भलीभांति सम?ा लिया था. उस के बेटे ने जब सिंगापुर घूमने के लिए सुनंदा और उस के पति से भी चलने के लिए कहा तो वह बोली, ‘‘हम केवल तभी तुम लोगों के साथ चलेंगे जब स्निग्धा भी अपने मांपापा को साथ चलने के लिए तैयार करे.’’ स्निग्धा को तो मनमांगी मुराद मिल गई. वह तो कब से यही सोच रही थी परंतु संकोच में कह नहीं पा रही थी. अपनी सास की बात सुन कर वह सास के गले से लग गई और बोली, ‘‘मां आप कैसे मेरे मन की बातें बिना बोले ही सम?ा लेती हो?’’ सुनंदा कहती है, ‘‘मेरे ऐसा करने से बहू की नजरों में मैं बहुत ऊंची उठ गई. आखिर मेरे बेटे की ही भांति अपने मातापिता के लिए वह भी तो कुछ करना चाहती है, उस ने भी उन्हें ले कर कुछ सपने देखे होंगे. आखिर उस के मातापिता ने भी अपनी बेटी को आत्मनिर्भर बनाने में उतनी ही मेहनत और खर्चा किया है जितना हम ने, फिर उस के मातापिता के साथ भेदभाव क्यों?

‘‘कोई भी बहू अपने सासससुर का तभी मन से सम्मान कर पाएगी जब हम उस के मातापिता को सम्मान देंगे. प्रारंभ से ही हम ने ऐसा नियम बनाया है कि जब भी हम बेटेबहू के साथ घूमने जाते हैं तो बहू के मातापिता सदैव साथ में होते हैं. इस से हमें कंपनी तो मिलती ही है, बहू भी अपने मातापिता की ओर से नि रहती है जिस का सीधा असर हमारे परिवार के वातावरण और आपसी संबंधों पर परिलक्षित होता है.’’ आज बेटाबेटी का भेद पूरी तरह समाप्त हो चुका है. ऐसे में बहू के मातापिता को हेय नजरों से देखना अथवा उन्हें अपने से निम्नस्तर का सम?ाना सर्वथा अनुचित है. दरअसल, आज की लड़कियां अपने सासससुर के साथ बेटी बन कर रहती हैं. उन की प्रत्येक छोटीछोटी आवश्यकता का ध्यान रखती हैं. परंतु इस के साथ ही वे अपने मातापिता के लिए भी ससुराल के सदस्यों से मान और सम्मान की अपेक्षा रखती हैं जो सर्वथा उचित भी है. परंतु समस्या तब आती है जब अभिभावक अपने ही बच्चों के साथ कोई सम?ाता करने को तैयार नहीं होते.

जैसे, जब सासें अपनी बहू की भावनाओं का मान रखने की अपेक्षा अपने ईगो को ही सर्वोपरि रखने लगती हैं, जब अभिभावक बेटे द्वारा किए गए समस्त अनुचित कार्यों का दायित्व बहू पर डाल देते हैं, जब सासें बहुओं से आवश्यकता से अधिक अपेक्षाएं रखना प्रारंभ कर देतीं हैं अथवा बहू जब केवल ससुराल के अन्य सदस्यों की अपेक्षा अपने पति से ही मतलब रखती है, जब बहू अपनी मां के आगे सास को कुछ नहीं सम?ाती, जब अपनी ससुराल में भी मां की राय के अनुसार कार्य करती है और जब इन्हीं छोटीछोटी बातों को तूल दे कर बड़ा कर दिया जाता है तो यही छोटी बातें कब बड़ी हो कर रिश्तों में जहर घोलना प्रारंभ कर देती हैं, हम समझ ही नहीं पाते.

सासबहू का रिश्ता बेहद नाजुक होता है जिस के लिए सास और बहू दोनों को ही मानसिक रूप से तैयारी करनी होती है. सास को जहां बहू के हाथों अपना बेटा छिनता प्रतीत होता है वहीं बहू अपने पति पर एकाधिकार चाहती है. बहू यदि सास को ले कर शंकित और भ्रमित होती है तो सास भी चिंतित होती है कि वह अपनी बहू की कसौटी पर खरी उतर भी पाएगी या नहीं. रिश्ता कोई भी हो, उस की सफलता परस्पर समझदारी, विश्वास, सहयोग और समर्पण में ही निहित होती है. छोटीछोटी बातों को इग्नोर कर, एकदूसरे को यथोचित मानसम्मान दे कर और 2 पीढि़यों के अंतर को भलीभांति समझ कर व वक्त के अनुसार स्वयं में थोड़ा सा बदलाव कर के सासबहू के रिश्ते को अधिक खूबसूरत, प्यारा और आदर्श बनाया जा सकता है.

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