Donald Trump : अमेरिका के नए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप वही कर रहे हैं जो भारत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पार्टी कर रही है- अलगाव की राजनीति. भारत में यह अलगाव हिंदूमुसलिम का है तो अमेरिका में यह गोरों और बाहरियों, इमीग्रैंट्स का है. ट्रंप के कट्टरवादी, चर्च पिट्ठू, गोरे, आधे पढ़े, लड़ाकू, झगड़ालू, मागा (मेक अमेरिका ग्रेट अगेन) समर्थक अमेरिका को गोरों का देश बनाने के लिए हर कदम उठा रहे हैं. मजेदार बात यह है कि बहुत से भारतीय मूल के सफल अमेरिकी उन का साथ दे रहे हैं.
अब भारत से अमेरिका का एस-1 वीजा ले कर अमेरिका में नौकरी करने वाले असमंजस में हैं कि वे कब तक वहां काम कर पाएंगे. अमेरिकी वेतनों के आदी हो गए ये भारतीय युवा अब भारत के काम के नहीं रह गए हैं और अमेरिका में हर रोज इन पर तलवार लटकी महसूस होगी.
अमेरिका की महानता के पीछे उस का दुनियाभर से टैलेंट जमा करना रहा है. कालों की गुलामी के बंधन में 200 वर्ष रखने वाले देश ने एक गृहयुद्ध कर के वह गलती खत्म कर दी और कालों को गुलामी से मुक्ति दिला दी तो लगा कि अगर किसी देश में जीने की आजादी मिल सकती है तो वह अमेरिका है. अमेरिका को यूरोप से आए गोरों का लाभ तो मिला ही, एशिया और अफ्रीका से आए मजदूरों का लाभ भी मिला.
इन मजदूरों की संतानें आज अमेरिकी समाज में ऊंची जगहों पर हैं और अमेरिका इन की मेहनत का लाभ उठा रहा है. अब ट्रंप के आने के बाद यह लाभ मिलेगा या नहीं, पता नहीं. जैसे भारत में सारी शक्ति, पूंजी, प्रचार, सरकार का ध्यान धर्म, मंदिर, पूजापाठ पर लग गया है, वैसे ही ट्रंप सरकार का ध्यान इमीग्रैंट्स को सीमाओं से बाहर खदेडऩे पर लगने वाला है. इस की जमीन बनाने के लिए ट्रंप सरकार गोरों की कंपनियों को हर तरह का संरक्षण देगी, उन का टैक्स कम करेगी, क्लाइमेट चेंज की मांग को कूड़े में फेंक देगी ताकि अमेरिकी गोरे अमीर बने रहें.
यह एकदो पीढ़ी को बड़ा लाभ दे सकता है पर पक्का इस दौरान न केवल यूरोप बल्कि चीन, जापान, कोरिया, वियतनाम जैसे देश भी, जहां धर्म और बाहरी लोगों के विवाद आज न के बराबर है, सब से ज्यादा लाभ उठाएंगे. भारतीय मूल के कुछ लोग, जो फिलहाल ट्रंप के तलवे चाट रहे हैं, कब निकाल बाहर किए जाएंगे, पता नहीं.
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