Emotional Story : मैं जो था, वह मैं अच्छी तरह समझता और महसूस करता था. बाबा यह सब स्वीकार करते हुए शायद शर्मिंदगी महसूस करते थे लेकिन मां ने मुझे जगजाहिर कर मुझे मेरी नजरों में ‘अनमोल’ बना दिया था. ‘‘संतोष, कितना आसान है न, सारी गलतियों का बो झ महिलाओं पर डालना. क्या कभी तुम ने मेरे नजरिए से कुछ देखनेसम झने की कोशिश की है?’’ आई कहने लगीं.इस पर खी झ कर बाबा ने कहा, ‘‘रेणु, तुम औरतों का तो काम ही है कि अपनी गलती कभी मानो ही न और दूसरों को सम झाती रहो कि वह तुम्हें सम झे. खैर, मु झे तुम से बहस ही नहीं करनी. तुम हो ही ऐसी. एक तो औलाद भी ऐसी दी है जिस ने कही मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा. उलटा, मु झे ही शर्म आ जाए और ऊपर से तुम्हारी बकबक. कितना प्रैशर होता है दिमाग पर तुम्हें पता भी नहीं होगा. तुम तो घर में रहती हो, कभी बाहर जा कर खुद कमाओ तो पता चले. आई कान्ट बियर बोथ औफ यू एनीमोर. आई रियली कान्ट बियर दिस. मैं जा रहा हूं और सीधे कल सुबह ही आऊंगा एक नया बम फोड़ने.’’ और गुस्से से दरवाजे को जोर से बंद करते हुए चले गए. एक तरफ जहां मुंबई जैसे बड़े शहर के एक छोटे से इलाके में हर रोज किसी को ट्रैफिक के शोर की आवाज, किसी को रेडियो, तो किसी को अपने देर होने की घंटी सुनाई देती, तो कोई अपने में मग्न रहता है. यहां देश के सब से अमीर लोग रहते हैं जिन के करोड़ों के बंगले हैं तो गरीबों की सब से बड़ी बस्ती भी
यहीं ही है लेकिन मजाल इन अमीरों की कि इस शहर को आदर्श कहा जाए. वही किचकिच, मगजमारी, तूतूमैंमैं. आर्थिक राजधानी तो यह शहर बन गया है लेकिन लगता है अमीरों के लिए, बाकी गरीबों के लिए तो लोकल ट्रेन के थर्ड क्लास के डब्बे भर रह गए हैं जिन में खचाखच भीड़, उमस और सड़न है. सड़न हर तरह की है, कभी ऊंचनीच की, कभी अमीरगरीब की तो कभी लिंगभेद की. इन सब के बीच एक मैं हूं, जिसे लोग ‘बीच’ का कह देते हैं, जानते हो बीच का क्या होता है? हिजड़ा, किन्नर, छक्का. मेरे जीवन में रोजरोज की ये सारी चीजें ऐसे घुस गई हैं जैसे मेरी बुक का मोस्ट इंपौर्टैंट क्वैश्चन हो जो इस साल के 12वीं बोर्ड एग्जाम में जरूर पूछा जाएगा. मु झे लगता है कि बाबा आई से नहीं बल्कि मु झ से नाराज हैं. शायद आई और बाबा को लगता है कि मु झे इस बात से फर्क नहीं पड़ता पर मु झे भी बाबा की बातें बुरी लगती हैं. आई एम नौट ए किड एनीमोर पर आई को रोता देख मैं कभी अपनी फीलिंग्स नहीं बता पाता. मु झे याद है बचपन में जब मैं ने पहली बार आई से पूछा था कि औलाद क्या होती है और जवाब में मु झे आई ने बताया था कि जो बच्चा सम झदार हो और मातापिता को तंग न करे वह अच्छी औलाद है और मैं मन ही मन उस समय खुश हुआ करता था कि मैं एक अच्छी औलाद हूं. लेकिन बाबा की तरफ से तो मु झे सिर्फ नफरत का एहसास होता रहा है.
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