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लिव इन की इनिंग ओवर : भाग 1

‘‘ऋतु, आज नाश्ते में क्या बनाया है?’’ सार्थक ने अपनी शेविंग किट बंद करते हुए पूछा.

‘‘ब्रैड, बटर, जैम तथा उबले अंडे हैं,’’ ऋतु ने तनिक ठंडे स्वर में कहा.

‘‘क्या? आज फिर वही नाश्ता, कुछ ताजा भी बना लिया करो कभीकभी,’’ सार्थक ने मुंह बनाते हुए कहा.

ऋतु का पारा चढ़ गया, ‘‘हुंह, रोब तो जनाब ऐसे मारते हैं मानो मुझे ब्याह कर लाए हों. मैं कोई तुम्हारी ब्याहता तो हूं नहीं कि दिनरात तुम्हारी सेवा में लगी रहूं. तुम तो 8 बजे से पहले उठते नहीं हो और उठते ही चाय की गुहार लगाने लगते हो. बालकनी में बैठ कर चाय पीते हुए पेपर पढ़ते हो जबकि मुझे तो काम करते हुए ही चाय पीनी पड़ती है. थोड़ी मदद कर दिया करो तो तुम्हें रोज ही मनचाहा नाश्ता मिले,’’ ऋतु ने भी झल्लाते हुए कहा.

‘‘हांहां, यही तो रह गया है, मैं भी कोई तुम्हारा पति तो हूं नहीं जो जर खरीद गुलाम बन जाऊं और तुम्हारे हुक्म की तामील करूं,’’ सार्थक ने मुंह बनाते हुए कहा और तौलिया उठा कर बाथरूम में नहाने चला गया. ऋतु ने जल्दीजल्दी कमरे को ठीक किया. अपना बैड वह उठते ही सैट कर लेती थी, लेकिन सार्थक का बैड तो बेतरतीब पड़ा हुआ था. जरा भी काम का ढंग नहीं था. सफाई की तो वह परवा ही नहीं करता था. अभी तक मेड भी नहीं आई थी. आखिर वह कितना काम करे, शादी न करने का मन बना कर कहीं उस ने गलती तो नहीं की थी. अब बिना शादी किए ही उसे गृहस्थी चलानी पड़ रही है. फिर मातापिता की ही बात मान ली होती, कम से कम अपना घरपरिवार तो होता. तब तो आधुनिकता का भूत सवार था, जिम्मेदारियां नहीं उठाना चाहती थी, परिवार जैसी संस्था से उस का विश्वास ही उठ गया था.

एमबीए करते ही उसे जौब के औफर आने लगे थे, मातापिता उस की शादी करना चाहते थे. दोएक जगह से अच्छे रिश्ते आए भी लेकिन उस ने मना कर दिया और दिल्ली में एक मल्टीनैशनल कंपनी जौइन कर ली. विवाह न करने के पूर्वाग्रह का कारण भी था. उस की बड़ी बहन श्वेता का जो हश्र हुआ था उस ने उस की अंतरात्मा को हिला दिया था. श्वेता बहुत खूबसूरत तथा काफी पढ़ीलिखी लड़की थी. उस का मेरठ के एक बहुत संपन्न तथा प्रतिष्ठित परिवार में विवाह हुआ था. उस का पति अनुज इंजीनियर था. विवाह के 2 वर्ष बाद ही एक सड़क दुर्घटना में अनुज की मृत्यु हो गई, उस की मृत्यु के 15 दिन बाद ही उस के ससुराल वालों ने उसे दूध की मक्खी की भांति घर से बाहर कर दिया और वह अपनी एक साल की बेटी वान्या के साथ मायके आ गई. उस की सास ने कहा, ‘‘बेटा होता तो यह यहां रह सकती थी, किंतु बेटी जन कर उस ने अपना यह अधिकार भी खो दिया,’’ और उन लोगों ने श्वेता को बैरंग वापस भेज दिया.

मातापिता ने खामोशी से सबकुछ सह लिया. ऋतु ने श्वेता को ससुराल वालों पर केस करने की सलाह दी, लेकिन श्वेता  ने यह कह कर साफ मना कर दिया कि यदि वह मुकदमा जीत जाती है तो भी वह उस घर में नहीं जाएगी जहां उस का तथा उस की बेटी का जीवन खतरे में हो और इस प्रकार इस कहानी का पटाक्षेप हो गया, लेकिन इस घटना का ऋतु पर इतना गहरा असर पड़ा कि अब वह विवाह जैसे बंधन में बंधना ही नहीं चाहती थी. उस ने दिल्ली में एक मल्टीनैशनल कंपनी में आवेदन किया. शीघ्र ही उस का चयन हो गया और वह दिल्ली चली आई. शुरू में तो वह एक गर्ल्स होस्टल में रही, लेकिन वहां उस के मनमुताबिक कुछ भी न था. यों तो अपने घर जैसी सुविधा तथा रहनसहन कहीं भी नहीं मिल सकता था, लेकिन यहां तो वह लौकी, तुरई या राजमाचावल खातेखाते ऊब गई थी. औफिस में अपने सहयोगी सार्थक से उस की अच्छी मित्रता थी. दोनों ही उन्मुक्त विचारों के थे, अविवाहित थे. लंचब्रेक में दोनों कैंटीन में एकसाथ लंच करते थे. शाम को एकसाथ औफिस से निकलते और दूरदूर तक घूमने चले जाते थे या कभी कोई मूवी एकसाथ देखने निकल जाते थे. रात्रि में दोनों अपनेअपने ठिकाने की ओर चल देते थे.

एक दिन सार्थक ने लिव इन रिलेशनशिप का प्रस्ताव रखा तो ऋतु भौचक रह कर उस का मुंह देखने लगी, उस ने सुन तो रखा था कि बड़े शहरों में अविवाहित युवकयुवतियां एकसाथ रहते हैं, लेकिन उसे स्वयं इस अनुभव से दोचार होना पड़ेगा, इस की उस ने कभी कल्पना भी नहीं की थी, उस ने 2 दिन का समय मांगा सोचने के लिए और अपने होस्टल चली आई. इन 2 दिन में उस ने खूब मनन किया, उसे समय भी मिल गया था, क्योंकि 2 दिन औफिस बंद था, वह ऊहापोह में फंसी थी. क्या उसे सार्थक का प्रस्ताव स्वीकार कर लेना चाहिए? कुछ गलत हो गया तो? कुछ गलत क्या होगा, उसे अपने पर पूरा विश्वास था. वह कोई कमजोर महिला तो थी नहीं और फिर पिछले 6 महीने से वह सार्थक को जानती है, कभी भी उस ने कुछ गलत फायदा उठाने की कोशिश नहीं की. पर यदि घर वालों को इस बात का पता चला तो क्या होगा? इस से समाज में उस के परिवार की बदनामी होगी, लेकिन घर वालों को इस बारे में बताने की आवश्यकता ही क्या है?

लिव इन की इनिंग ओवर : भाग 3

‘‘तुम जानो, तुम्हारा काम जाने, मैं तो चला. हां, यदि तुम चाहो तो मैं तुम्हारे साथ डाक्टर रमेश के नर्सिंगहोम तक चल सकता हूं. ज्यादा समय नहीं लगेगा शाम तक फारिग हो कर घर आ जाओगी, और फिर अब तो गर्भपात वैध भी हो गया है,’’ सार्थक ने दुष्टता से मुसकराते हुए कहा और चला गया.

वह सोच में डूब गई, क्या करे क्या न करे, जो कुछ भी हुआ उस में इस बच्चे का क्या दोष. क्या वह भ्रूण हत्या का पाप भी अपने सिर पर ले. सार्थक तो पल्ला झाड़ कर किनारे हो गया. फंसी तो वह थी. यदि मातापिता की बात मान कर शादी कर ली होती, तो आज गर्व से सिर ऊंचा कर के रहती. वैसे भी सोसायटी में सब उसे अजीब नजरों से देखते थे. यों तो दिल्ली में यह कोई नई बात नहीं थी, लेकिन फिर भी अड़ोसपड़ोस में किसी से उस की बात शुरू से नहीं होती थी. फिर भी उस ने सामने वाले फ्लैट में रहने वाली मिसेज सुनीता से बातचीत करनी चाही, लेकिन उन्होंने एक अव्यक्त रुखाई का ही परिचय दिया और उसे ज्यादा तवज्जो नहीं दी. वह दिल्ली के मुकाबले कानपुर जैसे छोटे शहर से आई थी. वह भी सब से घुलमिल कर रहना चाहती थी, लेकिन निराशा ही हाथ लगी और वह धीरेधीरे हीनता का शिकार होती गई, अब यदि उस की इस अवस्था की भनक किसी को लग गई तो क्या होगा? वह गहन सोच में डूब गई थी.

शाम को दोनों ने एकसाथ औफिस छोड़ा तो सार्थक ने थोड़ा शांत लहजे में कहा, ‘‘देखो ऋतु, अब भी समय है, मेरी बात मान लो, मैं डाक्टर से बात कर लूंगा. किसी को कानोंकान खबर तक न होगी और फिर सबकुछ यथावत हो जाएगा,’’ बहुत सोचविचार कर उस ने हामी भर दी. दूसरे दिन दोनों ने छुट्टी ले ली. सार्थक उसे नर्सिंगहोम ले गया. 3-4 घंटे की प्रक्रिया के बाद वह उसे ले कर घर आ गया. ऋतु का चेहरा एकदम पीला पड़ गया था, ग्लानि से उस का हृदय भरा हुआ था, सार्थक ने उसे गरम कौफी पिलाई, जब वह उठने लगी तो बोला, ‘लेटी रहो, खाना बाहर से ले आता हूं,’ और वह चला गया.

ऋतु को अचानक रोना आ गया. वह तकिए में मुंह छिपा कर खूब रोई. आज उसे मातापिता, दीदी, सभी की बहुत याद आ रही थी. उसे लग रहा था कि उन की बात न मान कर उस ने कितनी बड़ी गलती की थी. काश, उस ने शादी कर ली होती तो आज वह अपने अजन्मे शिशु की हत्या के पाप की भागीदार तो न होती. उसे सार्थक के आने की आहट सुनाई दी तो वह चुपचाप शांत हो कर लेट गई. किसी प्रकार एकदो निवाले खा लिए और करवट बदल कर सोने की चेष्टा करने लगी. जब भी छुट्टियों में घर जाती, सभी पूछते, ‘‘कैसे मैनेज करती हो अकेले? कहां रहती हो?’’

‘‘गर्ल्स होस्टल में,’’ वह उत्तर देती, ‘‘बड़ा अच्छा है. आंटी बड़ा ध्यान रखती हैं, बस किसी को वहां आने की इजाजत नहीं है. यहां तक कि यदि घर वाले भी आना चाहें तो उन की व्यवस्था किसी होटल में करनी पड़ती है और दिल्ली के होटल, बाप रे बाप बड़े महंगे हैं,’’ और इस प्रकार वह अपने घर वालों को समझा देती थी. इस वर्ष जब वह दीवाली पर घर गई तो मां ने उसे विराज का फोटो दिखाया जो बेंगलुरु में सौफ्टवेयर इंजीनियर था, उन लोगों को बचपन से ही ऋतु बहुत पसंद थी. वे लोग मिलने भी आए थे. विराज आकर्षक व्यक्तित्व का धनी था तथा पद की गरिमा उस के चेहरे पर झलक रही थी. एकांत में उस ने ऋतु से पूछा, ‘‘शादी के विषय में क्या सोचा?’’

वह सकपका गई इस आकस्मिक प्रश्न से, ‘‘शादी, नहीं करनी है,’’ उस ने लड़खड़ाते शब्दों में कहा.

‘‘जीवन का सफर बहुत लंबा है, उसे कैसे पूरा करोगी?’’ विराज ने मुसकराते हुए कहा. मानो उसे खिझा रहा हो, लेकिन ऋतु के चेहरे पर जो तटस्थता का भाव था उसे देख कर उस ने इतना ही कहा, ‘‘कोई बात नहीं, मैं इंतजार कर लूंगा,’’ और ऋतु को अपना विजिटिंग कार्ड थमा कर चला गया. ऋतु भी दिल्ली लौट आई. समय फिर एक ढर्रे पर आ गया था. दोनों उसी प्रकार रहने लगे, हां, लेकिन अब ऋतु थोड़ी सतर्क रहने लगी, अब वह पिछली गलतियों को दोहराना नहीं चाहती थी.

आज जब वह औफिस से निकलने लगी तो सार्थक को उस के कैबिन में नहीं पाया. ‘कहां चला गया होगा?’ वह सोचने लगी, ‘कोई बात नहीं, किसी काम से चला गया होगा’ और वह औटो ले कर घर आ गई.

फ्लैट की एक चाबी उस के पास भी थी. उस ने दरवाजा खोला. सामने टेबल पर चाय के 2 जूठे कप रखे थे, ‘कौन आया होगा,’ वह सोचने लगी तभी उसे बैडरूम से हंसी की आवाज आई. सार्थक के साथ किसी स्त्री का भी स्वर था, ‘‘हम लोग यहां ऐसी दशा में पड़े हैं, तुम्हारी पत्नी आ गई तो?’’ स्त्री का स्वर सुनाई दिया.

‘‘पत्नी? मेरी कोई पत्नी नहीं है वह तो मैं ने ऋतु के साथ फ्लैट शेयर किया है और साथ में रह रहे हैं, हां, हम दोनों में संबंध भी बने हैं, लेकिन वह तो इन बातों को सहज भाव से लेती ही नहीं है. पिछली बार मुझ से बोली, चलो शादी कर लें, नहीं तो बड़ी बदनामी होगी.

’’अब बच्चा ठहर गया तो इस में मैं क्या करूं. मैं ने तो नहीं कहा था बवाल पालने को. इन्हीं सब झंझटों से बचने के लिए ही मैं ने विवाह नहीं किया. मैं जीवन का पूरा लुत्फ उठाना चाहता हूं रश्मि, अगर तुम मेरा साथ दो तो हम दोनों इसी प्रकार रह सकते हैं. मैं अब उस के साथ रहना नहीं चाहता हूं, अब वह बासी हो गई है. हर समय संस्कारों की दुहाई देती रहती है, इतनी रूढि़वादिता मुझे बरदाश्त नहीं है. अब धीरेधीरे मैं उस से ऊब गया हूं.’’ ऋतु ने सब सुन लिया. उस का सर्वांग सुलग उठा. उस ने गुस्से में भड़ाक से कमरे का दरवाजा खोल दिया, ‘‘तो यह बात है, तुम मुझे अपनी भोग्या समझते रहे और मैं तुम्हें अपना सच्चा हमदर्द.’’ उसे अचानक सामने देख कर दोनों चौंक गए, ‘‘ऋतु, तुम?’’

‘‘ हां, मैं. रश्मि मुझे तुम से यह उम्मीद नहीं थी,’’ ऋतु अब रश्मि से मुखातिब थी. वह भी ऋतु के ही औफिस में काम करती थी, ‘‘मैं नहीं जानती कि तुम यह सब क्यों कर रही हो, जबकि तुम्हारा पूरा परिवार यहां दिल्ली में है, और तुम्हें इस प्रकार रहना भी नहीं है. बस, एक बात गांठ बांध लो, इस व्यक्ति का पल भर का भी विश्वास न करना. यह नारी को भोग्या समझता है. जितनी जल्दी तुम यह बात समझ लो, तुम्हारे लिए उतना ही अच्छा होगा. ‘‘हां सार्थक, मैं तुम्हारे साथ रही जरूर, हमारातुम्हारा संबंध भी बना लेकिन अमर्यादित संबंध मुझे पसंद नहीं. इसलिए मैं अभी इसी समय तुम से सारे रिश्ते तोड़ कर जा रही हूं, अपना त्यागपत्र मैं औफिस में भेज दूंगी, मुझे दिल्ली में अब रहना ही नहीं है. तुम कितने निकृष्ट हो, यह अब मुझे समझ आ गया है.

‘‘तुम्हारी आजादी, उन्मुक्तता तुम्हें ही मुबारक हो. तुम्हारे ही कारण मैं अपने ही अंश की हत्यारिन बनी, नहीं, बस अब और नहीं,’’ कहते हुए उस ने बैग में अपना सामान ठूंस लिया और फ्लैट से बाहर आ गई.

अब वह कानपुर वापस जा रही थी. ट्रेन में आरक्षण तो इतनी जल्दी मिलता नहीं, सो उस ने बस से ही यात्रा करने की ठानी. पापा को फोन कर के बता दिया, ‘‘मैं सबकुछ छोड़छाड़ कर आ रही हूं आप सब के पास, मेरे भविष्य का जो भी फैसला आप करेंगे मुझे स्वीकार होगा.’’ जब वह कानपुर बसस्टैंड पर उतरी तो उस ने विराज को प्रतीक्षा करते पाया. वह मुसकरा रहा था.

‘‘तुम यहां?’’ वह चौंकते हुए बोली.

‘‘हां, मैं… मुझे अंकल ने फोन पर सब बता दिया था, बस अब घर चलो, परसों हमारी शादी है. अब तुम्हें बांधना जरूरी है. पता नहीं तुम कब फुर्र से उड़ जाओ,’’ विराज ने उस का सिर सहलाते हुए कहा.

‘‘लेकिन विराज, तुम मेरे विषय में क्या जानते हो? मेरा दिल्ली में अपने एक पुरुष सहकर्मी के साथ प्रेम संबंध था. लेकिन अब ब्रेकअप हो गया है. एक भटके हुए पक्षी की तरह जिसे एक नीड़ की तलाश है,’’ ऋतु का गला भर आया.

‘‘मैं जानता हूं कि तुम उस लड़के के साथ घूमतीफिरती रहती थी, बड़े मौडर्न खयालों की लड़की हो, लेकिन जिस प्रकार एक उफनती नदी को भी बांध कर एक ठहराव दिया जाता है, उसी प्रकार तुम्हें भी एक ठहराव की आवश्यकता है और अब तुम्हारी भटकन समाप्त हो गई है. वैसे भी सुबह का भूला यदि शाम को घर पर आ जाए तो वह भूला नहीं कहलाता. समझी मेरी भटकी गौरैया,’’ विराज ने शरारत से मुसकराते हुए उसे देख कर कहा और कार को तीव्र गति से घर की ओर बढ़ा दिया.

लिव इन की इनिंग ओवर : भाग 2

वह खुद ही प्रश्न करती और स्वयं ही उत्तर भी देती. काफी सोचविचार के बाद उस ने सार्थक को हां कहने का मन बना लिया. जल्द ही दोनों ने रोहिणी में एक छोटा सा फ्लैट किराए पर ले लिया. घर की जरूरतों का थोड़ाबहुत सामान भी खरीद लिया. 2 सिंगल बैड खरीदे और इस प्रकार उन्होंने एकसाथ रहना शुरू कर दिया. घर की साफसफाई के लिए एक मेड भी रख ली तथा घरखर्च दोनों ने आधाआधा बांट लिया. कुछ ही समय बाद ऋतु को सार्थक का व्यवहार थोड़ाथोड़ा बदला सा नजर आने लगा, ऐसा लगता था मानो वह खुद को ऋतु पर हावी करना चाहता है, गाहेबगाहे उस पर पति की तरह रोब भी झाड़ता था. लेकिन ऋतु सबकुछ चुपचाप बरदाश्त कर लेती थी. सार्थक की हर बात को वह शांति से सह लेती थी, लेकिन उस के व्यवहार को देख कर आज तो वह भी बिफर गई थी और उस पर सोने पर सुहागा यह कि काम वाली अभी तक नहीं आई थी. अब वह घर के सारे काम करे अथवा जैसेतैसे छोड़ कर औफिस चली जाए, समय कम था. सार्थक एकदम तैयार हो कर नाश्ते की टेबल पर आ गया था. ऋतु को अस्तव्यस्त दशा में देख कर उस का पारा चढ़ गया, ‘‘यह क्या ऋतु, तुम अभी तक तैयार नहीं हुई. क्या कर रही थी अब तक?’’

‘‘झक मार रही थी, तुम्हें देर हो रही है तो नाश्ता लगा है और टिफिन भी तैयार है, तुम जा सकते हो, मैं थोड़ी देर से आ जाऊंगी, मेड भी अभी तक नहीं आई है,’’ वह बौखला उठी. सार्थक झल्ला कर नाश्ता करने लगा. ऋतु बड़बड़ाती हुई अपने कपड़े ले कर बाथरूम में घुस गई. इन बाइयों का क्या, तुम्हें गरज है तो रखो नहीं काम तो इन्हें बहुत से मिल जाएंगे. आते ही वह बड़बड़ाने लगती थी, ‘कितनी देर हो गई आप के घर का ही काम करतेकरते, अभी चार घरों में और जाना है, कैसे होगा रे बाबा.‘

‘तो थोड़ा जल्दी आ जाया करो,’ ऋतु कहती.

‘हांहां, क्यों नहीं, कहो तो यहीं बस जाऊं, मेरा भी घरवाला है, बच्चे हैं, उन का भी तो काम रहता है. यह तो समय की मार है नहीं तो काम करने जाती मेरी जूती, वैसे मेमसाहबजी, आप लोगों के नखरे भी बहुत हैं. ऐसे काम करो, वैसे काम करो,’ और वह कमर पर हाथ रख कर खड़ी हो जाती. ऋतु के पास चुप रहने के अलावा और कोई रास्ता भी न बचता. आधे घंटे बाद वह बाथरूम से बाहर आई. अब वह जानबूझ कर सार्थक को खिझा रही थी. पिछले 3 वर्ष से दोनों दिल्ली में एकसाथ रह रहे थे. दोनों ही विवाह नहीं करना चाहते थे तथा एक ही कंपनी में कार्यरत थे. सार्थक में आई तबदीली को वह भलीभांति समझ रही थी. शायद वह अब उस से ऊब गया था और कुछ चेंज चाहता था या शायद ऋतु की कामना करने लगा था, शायद यही सच था. लेकिन ऋतु का तटस्थ व्यवहार उसे निराश कर देता था. ऋतु ने शुरू में ही इस आशंका को व्यक्त किया था, तब सार्थक ने कहा था, ‘‘क्या ऋतु, तुम मुझे या स्वयं को इतना कमजोर समझती हो. आखिर संयम भी कोई चीज है,’’ और तब ऋतु आश्वस्त हो चली थी. लेकिन क्या संयम रह पाया?

ऋतु आज भी उस बरसात की रात को नहीं भूलती. रविवार का दिन था, सार्थक ने कहीं बाहर चलने का कार्यक्रम बनाया, लेकिन ऋतु ने कहा कि आज घर को थोड़ा साफ कर लेते हैं, सार्थक नहीं माना और अकेला ही अपने मित्रों के साथ घूमनेफिरने चला गया. रात के 10 बजे थे, उसे नींद भी आ रही थी. उस ने सार्थक का खाना टेबल पर लगा दिया और स्वयं खापी कर अपने बैड पर लेट गई. जल्द ही उसे नींद आ गई. वह गहरी नींद में सो रही थी, तभी उसे लगा कि उस के बैड पर कोई है, नाइट बल्ब की धीमी रोशनी में उस ने देखा सार्थक उस की बगल में लेटा है.

‘‘तुम यहां,’’ वह चौंक उठी.

तभी सार्थक ने उसे बांहों में भर लिया और फुसफुसाते हुए बोला, ‘‘कब तक दूरी रहेगी, जबकि हम दोनों एकदूसरे को पसंद करते हैं तो फिर एक रिश्ता बना लेने में क्या हर्ज है, मैं बहुत दिनों से तुम्हें पाना चाहता था लेकिन पहल करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था. आखिर कब तक मन को मारता. आज की बरसात ने मन की इन कामनाओं को जगा दिया और मैं खुद पर नियंत्रण न रख सका,’’ कहते हुए सार्थक ने उसे अपनी बांहों के बंधन में कस कर जकड़ लिया और ऋतु कुछ न कह सकी. शायद इस रूमानी रात में उस की भी कामनाएं जाग उठी थीं और उस ने सार्थक के सामने अपने को समर्पित कर दिया. फिर तो दोनों का यह नियम बन गया था, जब भी सार्थक चाहता वह उस की बांहों में होती, एक दिन उस ने कहा भी, ‘‘यदि कुछ गड़बड़ हो गई तो मैं कहीं मुंह दिखाने के काबिल नहीं रहूंगी,’’ लेकिन सार्थक ने यह कह कर उस का मुंह बंद कर दिया कि तब की तब देखी जाएगी. हम लोग यदि सावधानी बरतेंगे तो कुछ भी खतरा नहीं होगा, लेकिन जिस का डर था वही हुआ.

अकस्मात ऋतु को अपने शरीर में एक और जीव के आने की सुगबुगाहट महसूस होने लगी. वह परेशान हो गई. उस ने सार्थक को बताया तो वह बौखला उठा, ‘‘यह क्या मूर्खता कर बैठी. तुम्हें पता है न कि हमारा रिश्ता क्या है, और क्या हम ने यह फैसला नहीं लिया था कि हम इन झंझटों से दूर रहेंगे. शादीवादी के बंधन में इसीलिए तो नहीं बंधे कि इन सब जिम्मेदारियों से हम दूर ही रहना चाहते थे फिर यह कैसे हो गया?’’ ऋतु का चेहरा तमतमा उठा, ‘‘क्या सब मेरी ही गलती है? क्या इस में तुम्हारा कोई हाथ नहीं है और फिर पिछले 3 वर्ष से हम एकसाथ रह रहे हैं. हर दिन तुम मुझे भोगते रहे तो कभी न कभी तो यह होना ही था?’’ वह अपने स्वर को संयत करते हुए बोली.

‘‘मेरी कोई जिम्मेदारी नहीं है. तुम अपने कर्मों का फल खुद ही भुगतो,’’ सार्थक बोला.

वह अवाक् रह गई. कितना पत्थरदिल इंसान है सार्थक. आखिर इस बच्चे में उस का ही तो अंश है, फिर वह ऐसे कैसे मना कर सकता है. फिर भी उस ने समझौता करने वाले अंदाज में कहा, ‘‘चलो, शादी कर लें. आखिर हम पतिपत्नी की तरह ही तो इतने वर्षों से रह रहे हैं. एकदूसरे को अच्छी तरह जानते हैं, समझते हैं, अब यदि हम गृहस्थी बसा कर रहें तो ज्यादा ठीक होगा न. वैसे भी मम्मीपापा शादी के लिए जोर दे रहे हैं, उन्हें तो इस बात का अनुमान तक नहीं है कि हम इस तरह रह रहे हैं. यदि मेरी इस दशा की उन्हें भनक भी लग गई तो सोचो, मेरा क्या होगा?’’

 

सेहत के लिए जरुरी है सही मात्रा में फाइबर का सेवन

इन दिनों कोरोना का कहर पूरे देश में फैला हुआ है. पूरा विश्व इस महामारी से डरा हुआ है. लेकिन आपको डरने की जरूरत नहीं है आपको अपने इम्यूनिटी पर ध्यान देना है तो ऐसे में हम आपको बताने जा रहे हैं कुछ ऐसी खाने की चीजों के बारे में जो आपकी इम्यूनिटी के लिए अच्छी होगी.

फाइबर कार्बोहाइड्रेट का एक ऐसा प्रकार है, जो प्राय: पौधों की पत्तियों, तने और जडों में पाया जाता है. इसके अलावा चोकर, साबुत अनाजों और बींस प्रजाति की सब्जियों में भी फाइबर मौजूद होता है.फाइबर यानी रेशा हमारे भोजन का अहम हिस्सा है. रेशा पौधों से मिलने वाला वह भाग है, जिसे मानव शरीर में मौजूद एंजाइम पचा नहीं पाते. शरीर में पहुंच कर यह रेशा नमी को ग्रहण कर अपशिष्ट पदार्थों को शरीर से बाहर निकलने में मदद करता है. दिनभर में 30 ग्राम फाइबर का सेवन उपयुक्त होता है. फाइबर प्राकृतिक तरीके से शरीर की सफाई करने में मदद करता है.साथ ही साथ यह हमें प्रचुर मात्रा में ऊर्जा और शक्ति प्रदान करता है, तभी तो फाइबरयुक्त चीजें खाने के बाद आपको कुछ देर तक भूख नहीं लगती.

फाइबर युक्त भोजन को चबाने में अधिक समय लगता है. ऐसे में एक ओर खाना खाने की गति में कमी आती है तो दूसरी ओर खाने से मिलने वाली संतुष्टि बढ़ जाती है. फाइब से शरीर की वसा और शर्करा को ग्रहण करने की प्रक्रिया में सुधार होता है. पाचन प्रक्रिया धीमी होती है, जिससे शर्करा धीरे-धीरे रक्त में पहुंचती है.इससे बार-बार भूख नहीं लगती और शर्करा की कमी के कारण होने वाली थकावट व कमजोरी नहीं होती. फाइबर से अपशिष्ट पदार्थ मलाशय से बाहर निकलने में कम समय लेते हैं.इससे प्राकृतिक तरीके से आंतों की सफाई हो जाती है और कोलेस्ट्रॉल का अवशोषण कम होने के कारण कोलेस्ट्रॉल लेवल स्थिर रहता है.फाइबर की कमी से मल शुष्क व कड़ा हो जाता है, जिसमें विभिन्न दवाओं, विषाक्त व हानिकारक रसायन आदि कई तरह के संक्रमणों की मौजूदगी होती है.

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मूलतः फाइबर दो प्रकार के होते हैं, जो शरीर के लिए अलग तरह से काम करते हैं. पहले तरह का अघुलनशील फाइबर चोकर, मूंगफली, सूखे मेवों और पत्तेदार हरी सब्जियों में पाया जाता है. इसकी बनावट मोटी और खुरदरी होती, इसलिए यह पानी में नहीं घुल पाता और पाचन क्रिया के अंत तक साबुत रहता है। यह उत्सर्जन प्रक्रिया द्वारा शरीर से बाहर निकल जाता है और कब्ज दूर करने में सहायक होता है.

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फाइबर के उत्तम स्रोतों का सेवन कैलोरी तो नहीं देता पर इससे व्यक्ति पेट भरा हुआ महसूस करता है क्योंकि फाइबर के स्रोतों को अधिक चबाने की जरूरत होती है जिससे लार की मात्रा भी बढ़ती है और व्यक्ति पेट भरा महसूस करता है. अधिक रेशेदार भोजन व्यक्ति की भूख को जल्दी शांत करते हैं जिससे वह अधिक नहीं खाता और इसमें वसा की मात्रा तो न के बराबर होती है इसलिए व्यक्ति का वजन पर नियंत्रण रहता है और हृदय रोगों की संभावना भी कम होती है.

फाइबर के लाभ
– पाचन प्रकिया नियमित होती है
– वजन घटने में मददगार
– गुदे के कैंसर को दूर करता है।
– अपशिष्ट पदार्थ देर तक आंतों में जमा रहकर टॉक्सिन नहीं फैलाते।
– कोलेस्ट्रॉल लेवल कम होता है व हृदय रोगों में लाभकारी है।

फाइबर का सेवन न करने से-
फाइबर का सेवन न करने से व्यक्ति को कोलोन कैंसर, कब्ज, उच्च रक्ताच, मोटापा, बवासीर और पेट, गुर्दा और आंतों से संबंधित कई बीमारियां हो सकती हैं. जहां इसका कम सेवन व्यक्ति को कई रोगों का शिकार बना सकता है वहां इसकी बहुत अधिक मात्रा भी हानिकारक है और डायरिया, पेट फूलना, वृद्ध व्यक्तियों में आंतों के ब्लाकेज आदि का कारण भी बन सकती है.

इनसे पाया जाता है प्राकृतिक फाइबर –

बींस – बींस (राजमा और लोबिया) में सबसे अधिक फाइबर पाया जाता है। एक कप राजमा व लोबिया में 15 ग्राम से अधिक फाइबर मिलता है.
दाल – मसूर की दाल में फाइबर प्रचुर मात्रा में पाया जाता है.
हरी पत्तेदार सब्जियां व फल – हरी पत्तेदार सब्जियों में फाइबर अच्छी मात्रा में पाए जाते हैं। इसके साथ ही इनमें लोह तत्व, बेटा केरोटीन की मात्रा भी पर्याप्त होती है. एक कप उबली हुई हरी सब्जियां जैसे पालक, पत्तेदार शलजम और चुकंदर में 4 से 5 ग्राम फाइबर मिलता है. सब्जियों में मटर में सबसे अधिक फाइबर होता है.

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नाशपाति और सेब – इनमें भी फाइबर मिलता है। एक बड़े सेब से जहां 3.3 ग्राम फाइबर मिलता है, वहीं मध्यम आकार की नाशपाति से 5.1 ग्राम फाइबर मिल जाता है.
बादाम, पिस्ता और अखरोट – बादाम, पिस्ता और अखरोट में केवल प्रोटीन ही नहीं होता, उसमें फाइबर भी प्रचुर पाया जाता है. किशमिश – किशमिश में सॉल्यूबल और नॉन सॉल्यूबल दोनों तरह के फाइबर होते हैं.किशमिश से शरीर को तुरंत ऊर्जा मिलती है.

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रागी- रागी में सेल्युलॉस पाया जाता है, जो भी एक तरह का फाइबर है। रागी का नियमित सेवन कब्ज को दूर रखता है. इसके अलावा रागी में कैल्शियम, लोहा और प्रोटीन भी प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं. रागी का सेवन मधुमेह और मोटापे के शिकार लोगों के लिए भी फायदेमंद रहता है, क्योंकि इसका पाचन धीरे-धीरे होता है, जिससे रक्त में ग्लूकोज का स्त्राव धीमा हो जाता है.

फाइबर कोलेस्ट्रॉल खत्म करता है

जई -जई में फाइबर का पर्याप्त मात्रा पाया जाता हैं. इसके अतिरिक्त इसमें आयरन, प्रोटीन और विटामिन बी 1 पाया जाता है.जई में वसा कम होती है, इससे शरीर में अतिरिक्त कोलेस्ट्रॉल को घटाने में मदद मिलती है. इससे कार्डियोवस्कुलर रोगों को कम करने में मदद मिलती है.

आज कल बाजार में कृत्रिम फाइबर भी विभिन्न खाद्य-पदार्थो में मिलता है, जिन्हें फाइबर की बहुत कमी होती हो वह इसका सेवन करते है.लेकिन विशेषज्ञों की माने तो प्राकृतिक स्त्रोत ही फाइबर का मुख्य स्त्रोत है . अगर सेहत है ख्याल तो नित्य खाईये, फाइबर युक्त भोजन.

संपादकीय

कोविड सेक्ट ने लाखों घरों की जमापूंजी समाप्त कर दी है. जो एक बार बिमार पड़ गया उस की जमापूंजी का बड़ा हिस्सा डाक्टरों, हस्पतालों को गया समझो. डेढ़ करोड़ लोग जो देश में बिमार पड़ चुके हैं उन के घरवालों की बड़ी संपत्ति कोविड के इलाज में जा चुकी है. हालांकि सरकारें बड़ीबड़ी बातें करती रही हैं पर सच यही है कि लोगों को जमापूंजी लुटानी पड़ी है.

यह भरपाई होगी यह भी अब दिख नहीं रही. आंकड़ेबाजी के बावजूद लग रहा है कि कोराना वायरस के बारबार के आक्रमण सरकार को तो खोखला नहीं कर रहे पर आम घरों को पूरी तरह खोखला कर देंगे. सरकार के आंकड़े तो कहते हैं कि वे अधिक कर वसूल जमा कर रहे हैं पर वह संभव है कि पैसा अब कुछ हाथों में ज्यादा जमा हो रहा हो. बाजार ठप्प होने से नहीं लगता कि एक आम भारतीय को कहीं से राहत मिल रही हो.

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असल में घर परिवार को हमेशा ही खासी बचत डाक्टरों और वकीलों के लिए रखनी चाहिए. यह ऐसा फंड होना चाहिए जो बेटी की शादी या बच्चों की पढ़ाई पर भी खर्च न हो. लोग अपनी बचत शानदार गाड़ी, बड़ा मकान, बढिय़ा मोबाइल, एक लंबी हौलीडे लेेने से नहीं कतराते. यह गलत है. बचत का एक बड़ा हिस्सा मेडिकल या कानूनी आपदाओं के लिए रखा जाना चाहिए. आज कम में जी लें पर इन 2 मदों पर जब जरूरत पड़ेगी कोई आगे नहीं आएगा.

जो लोग बचत के आधार पर मकान खरीद लेते हैं और उस के लिए कर्ज ले लेते हैं वे अक्सर बेघरबार होते दिखते हैं. कर्ज पर ली गई गाडिय़ां लौटानी पड़ती हैं. इन के पास मैडिकल या लीगल आपदाओं के लिए पैसा नहीं बचता.

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अब जरूरी है कि  लोग अपना पैसा चाहे नकद या सोने में या बैंक में रखें जो 2-3 माह लंबी चलने वाली बिमारी या 2-3 साल चलने वाले कानूनी मुकदमे के बिल पे कर सके. इस पैसे का उपयोग और किसी काम में न हो. इस सरकार से तो उम्मीद नहीं है पर आगे की किसी सरकार से कहा जा सकता है कि इस बचत पर मिलने वाला इंट्रस्ट असल में आय माना ही नहीं जाए. यह सरकार के लिए सुविधाजनक होगा क्योंकि उसे जनता के मुफ्त इलाज के लिए अस्पतालों पर कम खर्च करना पड़ेगा.

बचत का यह पैसा हरगिज पंडेपुजारियों, मंदिरों और तीर्थ यात्राओं पर खर्च होना नहीं चाहिए. यह बात गांठ में बांध लें.

एक सुखद एहसास

लेखक-अमिता सक्सेना 

आज बड़ी उम्र के लोग कहते हैं कि फादर डे और डौटर डे जैसे त्योहार चोंचले हैं, पैसे कमाने के तरीके हैं. पुराने जमाने में यह सब नहीं होता था. यह सही है कि व्यावसायिक रूप से तो यह वाकई नहीं होता था पर भावनात्मक दो सौ प्रतिशत होता था. बस, हम लोगों ने कभी इस तरफ ध्यान नहीं दिया. मैं एक छोटी सी घटना आप को कहानी के रूप में सुनाऊंगी, तब आप सम?ा पाएंगे. मधु ने परीक्षा का रिजल्ट देखा, तो खुशी से उछल पड़ी. पर वह खुशी ज्यादा देर नहीं टिकी. एक घबराहट उस के अंदर समा गई क्योंकि अब उसे ट्रेनिंग के वास्ते 7-8 महीने के लिए दिल्ली जाना था.

मधु कभी घर से अलग नहीं रही थी. घर के लोग भी चिंतित थे, विशेषकर पापा. मधु बचपन से ही नाजुक प्रकृति की थी, जल्दीजल्दी बीमार हो जाती थी. अब वहां उसे कौन देखेगा? यह सोच कर पापा थोड़े उदास हो गए थे पर बेटी के भविष्य को देख वे अपनी चिंता चेहरे पर नहीं ला रहे थे. खैर, वह दिन भी आ गया जब मधु पापा के साथ दिल्ली के लिए निकल पड़ी. ट्रेनिंग सैंटर पर पापा के साथ 2 दिन गैस्ट हाउस में रह कर वह होस्टल में शिफ्ट हो गई और पापा घर लौट गए. अब मधु की असली परीक्षा शुरू हुई. एक दिन बाद सभी कैंडिडेट्स को एक हौल में इकट्ठा किया गया.

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नौकरी में चयन होने के बाद कैंडिडेट्स को कुछ फौर्म पोस्ट किए गए थे जिन में से कुछ को भर कर तुरंत संस्थान को भेजने थे. लेकिन 10-12 पेजेज उन्हें सैंटर में ही प्रबंधन समिति (मैनेजमैंट टीम) के साथ भरने थे. हौल में सब को उन्हीं फौर्म्स के साथ बुलवाया गया. जरूरी कार्यवाही में मोबाइल बाहर रखवा दिए जाते हैं, इसलिए किसी के पास मोबाइल नहीं था और कोई भी हौल से बाहर नहीं जा सकता था जब तक प्रक्रिया पूरी न हो जाए. सभी कैंडिडेट्स 21 वर्ष से कम थे. उस फौर्म में नौकरी और लोन जैसे कई पेचीदे अनुबंध के पन्ने थे जिन को उन्हें तभी भर कर देना था. सभी घबरा गए थे.

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आखिर वे 20-22 साल के ही तो थे. मधु घबराई क्योंकि निर्देश देने वाले बहुत तेजी से आगे बढ़ रहे थे और सभी कैंडिडेट्स फौर्म भरने में पीछे छूट रहे थे. इस कारण से फौर्म भरने में सब को परेशानी हो रही थी. मधु के तो हाथपैर फूलने लगे. तभी उस ने देखा, उस के फौर्म पर बहुत हलकी पैंसिल से कुछ लिखा दिख रहा है. अरे यह क्या, उस का पूरा फौर्म पापा ने हलकी पैंसिल से भर दिया था. क्लासरूम में उस की आंखों से आंसू छलक पड़े. उसे याद आया कि जब उसे फौर्म मिला था, तब पापा ने पढ़ने के लिए मांगा था. अभी एक दिन पहले जब वह पापा के साथ गैस्ट हाउस में थी, तब वे रातभर जग कर फौर्म भर गए थे.

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वह रोती जा रही थी और अपना फौर्म भरती जा रही थी. अब उस को किसी की मदद की जरूरत न थी उस के पापा जो उस के साथ थे. थोड़ी देर बाद आसपास के कैंडिडेट्स ने उसे फौर्म तेजी से भरते देखा तो सब ने अपनी कुरसियां उस की तरफ मोड़ लीं और उस के फौर्म की मदद से अपना फौर्म भरने लगे. सभी कैंडिडेट्स फौर्म भरने में व्यस्त थे और मधु पापा की याद में. यह था उस की जिंदगी का वह फादर्स डे सैलिब्रेशन जिसे वह कभी नहीं भूलेगी. ऐसे क्षण सभी की जिंदगी में आते हैं. ऐसे लमहों को ही मनाना चाहिए. हमें दिखावा करने की जरूरत नहीं है. सब का कोई न कोई अजीज होता है, सब को यह अनुभूति होती है, सिर्फ महसूस करने की बात है. ऐसे लमहों के साथ यह पल मनाइए जरूर, मगर सचाई से.

मोदी-केजरीवाल ‘प्रोटोकौल’ को आड़े हाथों लेते ट्विटर यूजर्स

लेखक- शाहनवाज

कोविड-19 के बढ़ते प्रकोप से आज के समय कौन वाकिफ नहीं है. भारत में आज सभी को पता है की कोरोना की फिलहाल चलने वाली दुसरी लहर से भारत की जनता बेहद त्रस्त और परेशान है. कोरोना की यह दूसरी लहर जो इस साल लगभग फरवरी से फैलना शुरू हुई थी, वह पिछले साल 2020 के मुकाबले ज्यादा खतरनाक और ज्यादा घातक है.

इस बार यह कोरोना संक्रमण पिछले साल के मुकाबले 3 गुना ज्यादा तेजी से फैल रहा है और संक्रमण तेजी से फैलने के कारण कोविड से मरने वालों की संख्या में भी तेजी से इजाफा हो रहा है.

हालिया स्थिति तो यह है की संक्रमण से ग्रसित और गंभीर मरीजों की संख्या में इतनी तेजी से इजाफा हो रहा है की देश की राजधानी दिल्ली के लगभग सभी अस्पतालों में मौजूद सभी बेड, मरीजों से भर चुके हैं. क्योंकि यह संक्रमण मरीजों के फेफड़ों में ज्यादा असर करता है इसीलिए उन्हें औक्सीजन का सहारा ही होता है. ऐसे में औक्सीजन का हर समय मौजूद होना ही बहुसंख्यक मरीजों के ठीक होने की संभावना पैदा करता है.

स्थिति इतनी खराब हो चुकी है की औक्सीजन का स्टौक लगभग देश के सभी राज्यों में खत्म होता जा रहा है. ये सब तो तब की स्थिति है जब लोग कोरोना से संक्रमित है और गंभीर अवस्था में है. हाल तो यहां इतने खराब हो गए हैं की कोरोना से मरने वालों की भी अंतिम विदाई बेहद ही अमानवीय हो गई है. दिल्ली में शमशानघाटों और कबरिस्तानों में मृतकों की अंतिम संस्कार के लिए परिजनों को टोकन ले कर नंबर लगाना पड़ रहा है. जो की बेहद दुखःद है.

और कोरोना के इस बढ़ते कोहराम के बीच राजनीति का खेल भी काफी गर्म है. केंद्र और राज्य सरकारों के बीच टग औफ वौर (रस्सा कस्सी) होते हुए साफ देखा जा सकता है. शुक्रवार 23 अप्रैल को यही हुआ जब देश के प्रधानमंत्री ने ऐसे 11 राज्यों जिन में सब से ज्यादा कोरोना के मामले फैल रहे हैं, जिस में प्रमुखतः दिल्ली, छत्तीसगढ़, गुजरात, राजस्थान, केरल, महाराष्ट्र इत्यादि राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ एक मीटिंग की. यह मीटिंग सुबह 11 बजे शुरू हुई थी.

मीटिंग में सब कुछ ठीक चल रहा था, सब बारी बारी से कोरोना के कारण अपनेअपने राज्यों की स्थिति को पीएम के सामने बयान कर रहे थे. कुछ इसी तरह से ही दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल की बारी आई और उन का पीएम को यह संबोधन विवाद का कारण बन गया. मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने प्रधानमंत्री मोदी से अपील की कि देश में और दिल्ली में इस समय औक्सीजन की काफी ज्यादा कमी है, सरकार को देश के औक्सीजन प्लांट को कंट्रोल में लेकर सेना को सौंप देना चाहिए ताकि सभी राज्यों को औक्सीजन तुरंत मिल पाए.

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केजरीवाल ने अपील की है कि हवाई मार्ग से भी औक्सीजन मिलनी चाहिए, जबकि औक्सीजन एक्सप्रेस की सुविधा दिल्ली में भी शुरू होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि अगर औक्सीजन के संकट को दूर नहीं किया गया, तो दिल्ली में बड़ी त्रासदी हो सकती है. उन्होंने यह भी कहा की देश में वैक्सीन सभी के लिए एक ही दाम पर मिलनी चाहिए, केंद्र-राज्य को अलग-अलग दाम में वैक्सीन नहीं मिलनी चाहिए.

यह मामला तब गंभीर हो गया जब केजरीवाल पीएम से यह सारी अपील कर रहे थे उस समय उन्होंने अपने लाइव भाषण का एक लिंक एक न्यूज एजेंसी को भेज दिया, जिस से हुआ यह की उन का यह भाषण टीवी में सभी न्यूज चैनलों में लाइव प्रसारित होने लगा की वह क्या बोल रहे हैं. केजरीवाल के भाषण के बीच में ही पीएम मोदी ने उन्हें टोक कर आपत्ति जता दी. मोदी ने कहा, “ये हमारी जो परंपरा है, हमारे जो प्रोटोकौल है, उस के बहुत खिलाफ हो रहा है की कोई मुख्यमंत्री ऐसी इन-हाउस मीटिंग को लाइव टेलीकास्ट करे. ये उचित नहीं है, ये हमें हमेशा से ही पालन करना चाहिए.”

पीएम मोदी के इन शब्दों में आपत्ति जताने के बाद केजरीवाल ने ओन-रिकौर्ड लाइव मोदी से माफी भी मांग ली. केजरीवाल के मोदी के सामने उठाए गए सवालों और की गई अपील से नाराज केद्र सरकार के नुमाइंदे इस बात से बेहद नाखुश हुए और एकएक कर मुख्यमंत्री केजरीवाल की इन अपीलों का भांडाफोड़ करते हुए ट्विटर पर ट्वीट करने लगे. वह ट्वीट कर यह बताने लगे की किस तरह से अरविन्द केजरीवाल को संकट की ऐसी विपरीत घड़ी में भी राजनीति करने के बारे में ही सूझता है.

ट्विटर पर लोगों के रिएक्शन्स

यह मसला ट्विटर पर आग की तरह फैला और देखते ही देखते ट्विटर दो खेमों में बंट गया. एक तरफ से बीजेपी का आईटीसेल हैशटैग केजरीवाल का प्रयोग कर आम आदमी पार्टी के द्वारा दिल्ली में कोरोना से फैले अव्यवस्था और उन के नेताओ द्वारा इस मुश्किल घड़ी में राजनीति करने का आरोप लगाते हुए ट्विटर पर अपनी मौजूदगी दिखाने लगे. तो वहीं दुसरी तरफ केजरीवाल के समर्थन में भी लोगों का हुजूम ट्विटर पर मोदी और भाजपा की कोरोना नीतियों के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करने लगे.

ट्विटर पर मौजूद भाजपाई और तमाम आईटीसेल के लोग केजरीवाल को कई तरह के हैशटैग का प्रयोग कर घेरते रहे. केजरीवाल फेल्ड दिल्ली, केजरीवाल एक्सपोज्ड, दिल्ली नीड्स औक्सीजन, औक्सीजन शोर्टेज, केजरीवाल बेट्रेड दिल्ली इत्यादि हैशटैग का प्रयोग कर भाजपाइयों ने केजरीवाल पर निशाना साधा.

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बीजेपी आईटीसेल के प्रमुख अमित मालवीय ने दिल्ली हाई कोर्ट के एक आर्डर को कोट कर के कहते हैं, “केजरीवाल दिल्ली में औक्सीजन की कमी के लिए जिम्मेदार हैं.” भाजपा के प्रवक्ता संबित पात्रा ने ट्वीट कर कहा, “राजनीतिक तौर पर इस मुद्दे का फायदा उठाने के लिए अपनी पूरी स्पीच को सार्वजनिक कर दिया.”

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बड़ी राजनीतिक हस्तियों के साथसाथ आम यूजर्स ने भी कई तरह से ट्विटर पर केजरीवाल को रोस्ट करने लगे. ट्विटर पर मौजूद एक यूजर ने ट्वीट कर कहा, “274 करोड़ रूपए फेक एडवरटीसमेंट पर खर्च किए, 94 करोड़ रूपए सेक्युलर हज के लिए और 0 रूपए नए हौस्पिटल्स पर खर्च किए. ये है दिल्ली की जनता के लिए आदरणीय केजरीवाल का हेल्थ मौडल.” एक और यूजर ने लिखा, “वर्ल्ड क्लास मोहल्ला क्लिनिक कहां है?” एक यूजर औक्सीजन की अनापूर्ति के लिए केजरीवाल के साथसाथ दिल्ली बौर्डर पर आंदोलनरत किसानों को जिम्मेदार ठहराने लगे.

इस पूरी कड़ी में केजरीवाल का बचाव करने आए लोग भी पीछे नहीं थे. शुरुआत में तो ट्विटर पर भाजपा का आईटीसेल ही हावी था लेकिन समय के साथसाथ लोग केजरीवाल के बचाव में ट्विटर पर एक के बाद एक लगातार ट्वीट कर मोदी की नीतियों को घेरते रहे. मोदी की नीतियों के खिलाफ लोगों ने प्रोटोकौल, मोदी अबैनडन इंडिया, वेलडन केजरीवाल, मोदी औक्सीजन दो, बीजेपी डिसट्रोयड इंडिया, औक्सीजन क्राइसिस, भाषणबाज मोदी, प्रोटोकौलजीवी इत्यादि हैशटैग का प्रयोग कर ट्वीट्स की बौछार कर दी. शाम होने तक इन में से कुछ हैशटैग तो ट्विटर पर ट्रेंड करने लगे.

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एक यूजर कहते हैं, “मैं गुजराती व्यापारी हूं मित्रो मुझे आपदा में भी व्यापार चाहिए.” एक और यूजर ट्वीट करते हैं, “पिछली बार खुद लाइव कर रहे थे तो कुछ नहीं. इस बार केजरीवाल ने कर दिया तो गुस्सा गए.” कोई कहता है, “अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बंगलादेश के हिंदुओं को नागरिकता देने वाले, अपने देश के हिंदू-मुस्लिम को आक्सीजन नहीं दे पा रहे हैं.” एक यूजर ट्वीट कर पीएम मोदी पर कटाक्ष करते हुए लिखते हैं, “लाखों की रैलियों में बिना मास्क और वीडियो कॉन्फ्रेंस में मास्क. एक ही तो दिल है, कितनी बार जीतोगे मोदी जी.”

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कटाक्ष और सटायर कर ट्विटर पर प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ माहौल बनने लगा. इसी तरह से मोदी और केजरीवाल के इस टसल को अनिल कपूर और अमरीश पूरी की क्लासिक फिल्म ‘नायक’ से जोड़ दिया और तरहतरह के ट्वीट्स इसी के इर्द गिर्द घुमने लगे. सही मायनों में कहें तो मोदी और बीजेपी को ट्विटर पर लोगों ने बुरी तरह से रौंद कर रख दिया.

मोदी की नीतियों के खिलाफ लोग पहले से ही थे

जब से कोविड की दुसरी लहर भारत में फैली है तभी से ही हर दिन ट्विटर पर लोगों के रिएक्शन्स देखते ही बनते हैं. हर दिन ट्विटर पर मोदी की कोविड को ले कर नीतियों के खिलाफ लोगों का रोष इतना दिखाई देता है की लगभग हर दिन कोई न कोई मोदी और बीजेपी के खिलाफ हैशटैग ट्विटर पर ट्रेंड करता ही रहता है.

ऐसे में जब मुख्यमंत्री केजरीवाल ने लाइव मोदी के सामने शिकायत की तो पहले से ट्विटर पर मेहनत कर रहे लोगों को एक और मौका मिल गया और उन्होंने इस मौके का सम्पूर्ण फायदा भी उठाया. रात होने तक ट्विटर पर भाजपाइयों का हाल यह था की कहीं पर भी उन के किए ट्वीट्स नजर ही नहीं आ रहे थे. हर जगह या तो केजरीवाल का सपोर्ट किया जा रहा था या फिर मोदी की नीतियों के खिलाफ ट्वीट किए जा रहे थे.

हालांकि कोरोना वायरस को ले कर मोदी की नीतियों में पहले से ही काफी रोष था. याद हो तो गुरुवार 22 अप्रैल को कोविड-19 के बढ़ते संक्रमण को देखते हुए पीएम मोदी ने जनता के नाम आम संदेश में यह कहा था की, “आज की स्थिति में हमें देश को लौकडाउन से बचाना है. मैं राज्यों से भी अनुरोध करूंगा की वे लौकडाउन को अंतिम विकल्प के रूप में ही इस्तेमाल करे.” ऐसे में लोगों का यह सवाल उठाना बिलकुल जायज है की यदि लौकडाउन को अंतिम विकल्प के रूप में ही इस्तेमाल करना था तो पिछले साल केंद्र सरकार ने सब से पहले ही क्यों लौकडाउन लगा दिया?

इसी के साथसाथ मोदी सरकार की हिपोक्रेसी भी सभी के सामने आ चुकी है. मुख्यमंत्री केजरीवाल को घेरते हुए जिस प्रकार से ट्विटर पर भाजपाइयों ने सवाल खड़े किए, वे सभी सवाल कहीं न कहीं खुद मोदी सरकार के सामने भी खड़े किए जा सकते हैं. उदाहरण के लिए यही की पिछले एक साल से भारत में कोविड ने अपने पैर पसारे हैं, यदि सरकार ने इस वायरस को सीरियसली लिया होता तो कोविड की चल रही इस दुसरी लहर से लोगों की कमर नहीं टूटती. हालत तो यह हो चुकी है की लोगों की कमर तो टूटी ही साथ ही विभिन्न राज्य सरकारों के हेल्थ सिस्टम भी कोलाप्स (ढहती) जा रही है.

बेशक इन सब में सिर्फ केंद्र सरकार ही दोषी नहीं है. राज्य सरकारों को आड़े हाथों लेना भी जरुरी है. लेकिन केंद्र सरकार या कोविड के प्रति रवैय्या बेहद ही असंवेदनशील और अमानवीय है. यदि केंद्र सरकार बीते साल कोविड से फैली अस्त-व्यस्तता से कुछ सीख लेती तो देश में अस्पतालों के निर्माण पर जोर दिया जाता न की नए संसद के निर्माण में.

केजरीवाल का औक्सीजन को ले कर मोदी से शिकायत करने के पीछे की कुछ भी राजनीति क्यों न हो, लेकिन हालात अभी के समय यही है की देश में लोग कोरोना की वजह से कम औक्सीजन की किल्लत से ज्यादा मर रहे हैं. कोरोना को कितना कंट्रोल किया जा सकता है यह तो लोगों के ऊपर है लेकिन देश में औक्सीजन की कमी यही दर्शाती है की केंद्र सरकार को आम लोगों के जीवन से कुछ लेना देना नहीं है. यदि होता तो सरकार का ध्यान बंगाल और अन्य राज्यों में चुनाव जीतने पर नहीं होता बल्कि कोविड से बिगड़ती सूरत को ठीक करने पर होता.

देश में कोरोना का कहर और ऑक्सीजन का अकाल

देश के हर राज्य, हर शहर में कोरोना संक्रमण के चलते हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं. सबसे बुरा हाल राजधानी दिल्ली का है, जहाँ ऑक्सीजन की कमी के कारण मरीजों की सामूहिक मौतें हो रही हैं. दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में 22 और 23 अप्रैल को 25 मरीज अचानक ख़त्म हो गए. हालांकि गंगाराम प्रबंधन सभी मौतों को ऑक्सीजन की कमी से हुई नहीं मान रहा है, उसका कहना है कि मरीज़ों की हालत काफी गंभीर थी, मगर मृतकों के परिवारीजनों का आरोप है कि मौतें ऑक्सीजन ना मिलने की वजह से ही हुई हैं. गंभीर मरीज़ों को भी अस्पताल ऑक्सीजन नहीं दे पा रहा है.

बीती रात जयपुर गोल्डन अस्पताल में 20 मरीजों ने ऑक्सीजन की कमी से दम तोड़ दिया. वहां 200 से अधिक जिंदगियां अभी भी खतरे में हैं. यदि ऑक्सीजन जल्दी ना मिली तो और मौतें निश्चित हैं. कई अन्य अस्पतालों में भी मरीज़ों की सांसें हलक में अटकी हुई हैं. दिल्ली के अस्पतालों में ऑक्सिजन की कमी मरीजों के तीमारदारों की धड़कनें बढ़ा रही है. वो ऑक्सीजन की जुगाड़ में इधर से उधर भागते फिर रहे हैं. लोग रसूखदारों को फ़ोन मिला रहे हैं, उनके आगे गिड़गिड़ा रहे हैं मगर ऑक्सीजन सिलिंडर का जुगाड़ नहीं हो पा रहा है.

दिल्ली के एक और अस्पताल सरोज अस्पताल में भी ऑक्सीजन की भारी किल्लत हो गई है. अस्पताल की ओर से कहा गया कि हम ऑक्सीजन की कमी की वजह से नई भर्तियां नहीं कर रहे और हम मरीजों को डिस्चार्ज कर रहे हैं.

शनिवार 24 अप्रैल की सुबह जब साउथ दिल्ली के मूलचंद अस्पताल में बस आधे घंटे की ऑक्सिजन बची तो मेडिकल डायरेक्टर मधु हांडा बेबसी बयां करते-करते रो पड़ीं. अपनी बेबसी जाहिर करते हुए उन्होंने कहा कि अस्पताल के पास सिर्फ 30 मिनट की ऑक्सिजन बची है. मूलचंद अस्पताल कई दिनों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से लेकर एलजी तक से ऑक्सीजन सप्लाई पहुंचाने की गुहार लगा रहा है, मगर सप्लाई नहीं पहुंच रही है.

महाराजा अग्रसेन अस्पताल ने ऑक्सीजन दिलाए जाने की मांग लेकर दिल्ली हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. उनका कहना है कि हमारे अस्पताल में 106 गंभीर मरीज हैं. हमें तुरंत ऑक्सीजन नहीं मिली तो मजबूरी में अस्पताल को उन्हें डिस्चार्ज करना होगा.

मूलचंद के साथ बत्रा अस्पताल ने भी ऑक्सीजन की अर्जेंट अपील कोर्ट में की है. बत्रा अस्पताल में 300 से ज्यादा मरीज भर्ती हैं, जिसमे से 48 आईसीयू में हैं. उन्हें तुरंत ऑक्सीजन की दरकार है. बत्रा अस्पताल को 7000 लीटर ऑक्सीजन की ज़रूरत है, फिलहाल उनके पास ऑक्सीजन का एक कंटेनर पहुंचा है जिससे 500 लीटर की आपूर्ति की गयी है और स्थिति थोड़ी संभली है.

ये हालत देश की राजधानी दिल्ली के अस्पतालों की है. बाकी देश में स्थितियां कितनी गंभीर हैं इसका अनुमान लगाया जा सकता है. मगर सत्ता साँसों पर सियासत करने में जुटी है. देश भर के अस्पतालों में ऑक्सीजन की फौरी ज़रुरत कैसे पूरी हो, ऑक्सीजन के लिए हांफ रहे मरीजों को कैसे राहत मिले, इस बारे में अभी तक कोई बड़ी तैयारी या कोई नीति नहीं बनी है. अभी तक सिर्फ आरोपों प्रत्यारोपों का दौर चल रहा है.

कोरोना तेजी से खा रहा है ऑक्सीजन

कोरोना का नया वायरस शरीर से ऑक्सीजन तेजी से कम कर रहा है. इसके नए वेरिएंट ने डॉक्टरों को हैरान कर रखा है. तीन से चार दिन के संक्रमण में ही मरीज़ों के शरीर में ऑक्सीजन का स्तर खतरनाक तरीके से नीचे गिर रहा है. कई बार तो यह चंद घंटों में ही हो रहा है.

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के पांडेय हाता निवासी 22 वर्षीय युवक को तीन दिन पहले बुखार हुआ. तीसरे दिन ही उसे सांस लेने में तकलीफ होने लगी और दोपहर तक उसकी हालत बिगड़ गई. ऑक्सीजन सेचुरेशन 65 से 70 के बीच चला गया. उसे निजी अस्पताल के आईसीयू में भर्ती कराया गया है. जहाँ ऑक्सीजन मिलने पर हालत स्थिर हुई.

फेफड़े नहीं सोख पा रहे हैं ऑक्सीजन

बीआरडी मेडिकल कॉलेज के टीबी एंड चेस्ट के विभागाध्यक्ष डॉ. अश्वनी मिश्रा कोरोना के नए वेरिएंट के इंसानी शरीर पर हमले की बाबत कहते हैं कि संक्रमण के बाद यह वायरस फेफड़े के अंदर तेजी से परत बना रहा है. इससे फेफड़े हवा की ऑक्सीजन को सोख नहीं पा रहे हैं और खून को ऑक्सीजन नहीं मिल पा रहा है. सांस द्वारा शरीर को मिलने वाली ऑक्सीजन को ऑक्सीडेशन होना कहते हैं, जो कोरोना के गंभीर लक्षणों वाले मरीजों में नहीं हो रहा है. मरीज के खून में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ाने के लिए उसे 60 लीटर प्रति मिनट की स्पीड से ऑक्सीजन देना पड़ रहा है. जबकि सामान्य तौर पर यह 8 से 10 लीटर प्रति मिनट की दर से दिया जाता है. इस वजह से संक्रमितों के इलाज में ऑक्सीजन की खपत 5 से 6 गुना बढ़ गई है. कोविड वार्ड में भर्ती करीब 40 फीसदी मरीज युवा है. युवाओं की हालत इसमें ज्यादा गंभीर हो रही है. उनकी सीटी स्कैन थोरेक्स की स्कोरिंग 15 से अधिक आ रही है. यह गंभीर संक्रमण की निशानी है. कुछ मरीज तो 20 से 22 स्कोरिंग तक के पहुंचे हुए हैं.

क्या बताता है सीटी थोरेक्स

कोरोना मरीजों को डॉक्टर सिटी स्कैन करवाने को कह रहे हैं. गले और सीने की सही हालत सिटी थोरेक्स के ज़रिये ही पता चलती है. कोरोना की पहचान व इलाज में सीटी स्कैन थोरेक्स का रोल अहम हो गया है. इसमें गले व सीने का स्कैन किया जाता है. यह उनके अंदर संक्रमण के कारण हुए असर की तस्वीर बताता है. इसे स्कोरिंग कहते हैं. अधिकतम स्कोरिंग 25 तक होती है. इसमें संक्रमण जितना अधिक होगा स्कोरिंग उतना ही ज्यादा होती है.

वायरस का नया स्ट्रेन यह चार दिन में ही फेफड़े तक पहुंच कर उसे पूरी तरह संक्रमित कर जाम कर रहा है. फेफड़े के अंदर मौजूद एल्बुलाई और खून की धमनियों के बीच यह वायरस दीवार बना रहा है. जिससे खून में ऑक्सीजन की आपूर्ति कम हो जाती है. यह प्रक्रिया बेहद तेजी से हो रही है. कई बार तो मरीज को समझने का मौका भी नहीं मिल पाता और देखते ही देखते वह मौत के दरवाज़े पर पहुंच जाता है.

पुस्तकों के बिना सब सूना

पुस्तकें ज्ञान की संदेशवाहक है, नैतिकता की अखंड सम्पत्ति है, किसी तर्क का औजार हैं, किसी काल, सभ्यता एवं संस्कृति की एक खिड़की है, तो किसी वाद-विवाद के लिए कारगर हथियार है.मानव जीवन में सभ्यता के शुरूआती काल से आज तक पुस्तकों का काफी महत्त्व रहा है और आने वाले भविष्य में भी यह महत्त्व बना रहेगा. इसकी महत्ता और सत्ता को कायम रखने के लिए 23 अप्रैल को विश्व पुस्तक एवं कॉपीराइट दिवस दुनियाभर में मनाया जाता है .

* यूनेस्को 1995 से मना रहा है यह दिवस :-  पुस्तकों  के संरक्षण और विकास के लिए मनाये जाने वाले इस दिवस का इतिहास काफी पुराना है, लेकिन अंतर्राष्ट्रीय संगठन यूनेस्को ने 1995 में विश्व पुस्तक एवं एकाधिकार दिवस  (वर्ल्ड बुक एंड कॉपीराइट डे) मनाने का निर्णय लिया था. तक से लेकर हर वर्ष 23 अप्रैल को  यह दिवस मनाया जाता है.

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* कई महान लेखको का जन्मदिन और पुण्यतिथि :- 23 अप्रैल को ही यह दिवस  मनाने पीछे कई वजह हैं। इस दिन इस सृष्टि के कई महान लेखको का जन्मदिन और पुण्यतिथि पड़ता है. विश्व प्रसिध्द नाटककार एवं सॉनेट विद्या के प्रणेता विलियम शेक्सपीयर का जन्मदिन और पुण्यतिथि 23 अप्रैल को ही पडती है.  इसके साथ ही इसी दिन लेखक मौसिस ड्रुओन, ब्लादिमीर नाबाकोव, मैनुएल मेत्रिया वेल्लोजो और हॉलडोर लैक्सनेस का जन्मदिन पडता है और इसी दिन लेखक मिगुएल डि सरवेंटेस, इंका गार्सिलासो डि ला वेगा की पुण्यतिथि भी पडती है.

आज से तकरीबन नौ दशक पहले स्पेन से विश्व पुस्तक दिवस मनाने की परंपरा की शुरुआत हुई. स्पेन के पुस्तक विक्रेताओं ने 1923 में अपने देश के लोकप्रिय लेखक मिगुएल डि सरवेंटेस के सम्मान में की. 23 अप्रैल को ही मिगुएल का निधन हुआ था. कैटालोनिया में इसी दिवस को सेंट जॉर्ज की जयंती मनाई जाती है. इस परम्परा की शुरुआत मध्यकाल में हुई. इस दिन पुरुष अपनी प्रेमिका को गुलाब देते हैं.वर्ष 1925 में एक प्रथा और जुड ग़ई. इस दिवस को महिलाएं गुलाब के बदले अपने प्रेमी को किताब देने लगीं. इस प्रथा का लाभ यह हुआ कि कैटालोनिया में किताबों की बिक्री तेजी से बढी. इस दिवस पर वहां कैटालोनिया में अमूमन 400,000 किताबें बिक जाती हैं और उतनी ही संख्या में गुलाब के फूल भी बिक जाते हैं.

 मौलिक कृतियों को संरक्षित करने की जरूरत :-  लेखकों को अपनी मौलिक कृतियों को संरक्षित करने की भी जरूरत पडती है, ताकि उनकी किताब की कोई नकल न कर ले या अनधिकृत प्रतियां न प्रकाशित कर ले. ऐसा होने पर लेखक या अधिकृत प्रकाशक अपने एकाधिकार का दावा पेशकर दोषी को सजा दिलवा सकते हैं. इसके लिए उन्हें एकाधिकार अधिनियम (कॉपीराइट एक्ट) का सहारा लेना पडता है.जिससे रचनात्मक कलाकारों के स्वामित्व की रक्षा भी होती है.  विश्व के कई देशो में लेखको एवं रचनाकारों के उनके मौलिक कृतियों को संरक्षित करने के लिए कानून बनाये गये है.हमारे देश में भी इस तरह का कानून लागू है , इस  कानून का उल्लंघन करने पर दंड का प्रावधान है और यह पुलिस को आवश्यक कार्रवाई के लिए प्राधिकृत करता है. विश्व बौध्दिक सम्पदा संगठन (डब्ल्यूआईपीओ) इस क्षेत्र में संयुक्त राष्ट्र संघ की विशिष्ट एजेंसी है.यह एजेंसी कॉपीराइट और बौध्दिक सम्पदा अधिकार के मामलों का निपटान करती है. भारत भी इसका सदस्य है.

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* 150 अधिक देशों में मनाया जाता है यह दिवस  :- वर्तमान में करीबन 150 अधिक देशों में लाखों नागरिक, सैकड़ों स्वयंसेवी संगठन, शैक्षणिक, सार्वजनिक संस्थाएँ, व्यावसायिक समूह तथा निजी व्यवसाय से जुड़े व्यक्ति ‘विश्व पुस्तक तथा कॉपीराइट दिवस’ मनाते हैं. इस पृष्ठभूमि तथा वर्तमान सामाजिक एवं शैक्षणिक वातावरण के परिणामस्वरूप विश्व पुस्तक तथा कॉपीराइट दिवस का ऐतिहासिक महत्व हो गया है. इस दिवस के अपवाद के रूप में इंग्लैंड और आयरलैंड में यह दिवस स्थानीय कारणों से  3 मार्च को ही मनाया जाता है.

 * आजादी के बाद अपने देश में भी लागू है कॉपीराइट अधिनियम :- भारत में कॉपीराइट अधिनियम 1957 लागू है , जो बौध्दिक सम्पदा अधिकार (आईपीआर) से जुड़े कई अधिनियमों में से एक है. इस कानून की निगरानी की जिम्मेदारी मानव संसाधन विकास मंत्रालय के पास है. भारत में  कॉपीराइट की नीव  1958 में  की गई  थी, इसी वर्ष  नई दिल्ली के संसद मार्ग स्थित जीवनदीप भवन में कॉपीराइट कार्यालय की स्थापना की गई थी. इसी कार्यालय  के अन्दर साहित्यिक रचनात्मक कार्यों के अलावा चित्रकला, सिनेमैटोग्राफी, ध्वनि रिकार्डिंग और कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर का पंजीकरण भी होता है.1994 में भारतीय कॉपीराइट अधिनियम में व्यापक संशोधन किया गया. संशोधित अधिनियम 10 मई 1995 से लागू हुआ.वर्ष 1999 में इस अधिनियम में आगे भी संशोधन हुए और यह नए रूप में 15 जनवरी 2000 से प्रभावी हुआ.कॉपीराइट अधिनियम की धारा 11 के प्रावधानों के अंतर्गत भारत सरकार ने कॉपीराइट बोर्ड का गठन किया है. यह बोर्ड एक अर्धन्यायिक निकाय है, जिसमें अध्यक्ष के अलावा कम से कम दो और अधिकतम 14 सदस्य होते हैं.

हर पांच वर्ष पर इस बोर्ड का पुनर्गठन किया जाता है.यह बोर्ड रचनात्मक कार्यों को लाइसेंस प्रदान करता है और संबंधित मामलों की सुनवाई करता है.

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