भारत में जन्मे जिम कौर्बेट ने नौकरी और अन्य काम करने के अलावा प्रकृति को करीब से जानासम झा. तभी तो जिम कौर्बेट नैशनल पार्क का नाम पूरी दुनिया में जाना जाता है, पर जिम कौर्बेट ने इस के पीछे छोड़ी है अपनी लगन, संघर्ष और वहां के लोगों का प्यार. जब हम जंगलों, झरनों, पहाड़ों में प्रकृति के नजदीक होते हैं तो खुद से भी कुछ संवाद यानी बात तो करते ही हैं, मगर यह संवाद और बात उस जज्बे, उस संघर्ष के इर्दगिर्द भी तो जरूर घूमनी ही चाहिए जिस ने प्रकृति के उस टुकड़े को इतना पावन बनाए रखने में अपना जीवन लगा दिया.

आजाद हिंदुस्तान के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू जब ऐसे ही एक जंगल से हो कर गुजरे, तो वहां की जड़ीबूटी, फूलों की प्राकृतिक महक, पंछियों का चहचहाना और निर्भय हो कर काम करते गांव वालों को देख कर उन के मन में यह जिज्ञासा पैदा हुई कि इस बीहड़ को सब के लिए इतना खूबसूरत बनाने वाला वह कौन था? और फिर उन के सामने जिम कौर्बेट की वह पूरी दास्तान, उस की समूची जीवनयात्रा आई. एक अंगरेज होते हुए भी किसी गोरे ने भारतवर्ष और भारतीयों से इतना अटूट प्रेम किया, नगर और शहर नहीं, बल्कि बीहड़ के पास रहने वाले गांव वालों से गहरा नाता जोड़ा. पंडित जवाहरलाल नेहरू तब उत्तराखंड में स्थित उस कौर्बेट नैशनल पार्क का भ्रमण कर रहे थे, जिस का नाम तब ‘रामगंगा उद्यान’ था.

ये भी पढ़ें- आपकी जिंदगी को आसान बना देंगे ये 7 किचन टिप्स

नेहरू को यह जानकारी मिली कि ‘माई इंडिया’ और ‘मैन ईटर्स औफ कुमाऊं’ नामक विश्वविख्यात किताबें लिखने वाले जिम कौर्बेट आजाद भारत से अब केन्या चले गए हैं और वहां पर भी हर्बल कौफी गार्डन विकसित कर रहे हैं, लगातार वन्य जीवों के लिए काम कर रहे हैं, मगर यहां उन को कोई याद करने वाला नहीं. साथ ही, यह भी जानकारी मिली कि अब जिम कौर्बेट भारत वापस लौट नहीं सकेंगे. तब वे खुश हुए यह जान कर कि जिम कौर्बेट की ‘मैन ईटर्स औफ कुमाऊं’ के आवरण भी सत्यजीत रे ने लगभग एक समय पर ही डिजाइन किए थे, जब वे उन की कालजयी कृति ‘डिस्कवरी औफ इंडिया’ के आवरण डिजाइन कर रहे थे. नेहरू की उन से मिलने की चाहत अधूरी रह गई, क्योंकि जिम कौर्बेट साल 1955 में केन्या के अपने घर में ही इस संसार को अलविदा कह गए. जिम कौर्बेट की जीवनगाथा को स्थानीय लोगों से जानने के बाद भारत सरकार द्वारा इस का नाम ‘जिम कौर्बेट नैशनल पार्क’ रखा गया.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...