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वह खुद ही प्रश्न करती और स्वयं ही उत्तर भी देती. काफी सोचविचार के बाद उस ने सार्थक को हां कहने का मन बना लिया. जल्द ही दोनों ने रोहिणी में एक छोटा सा फ्लैट किराए पर ले लिया. घर की जरूरतों का थोड़ाबहुत सामान भी खरीद लिया. 2 सिंगल बैड खरीदे और इस प्रकार उन्होंने एकसाथ रहना शुरू कर दिया. घर की साफसफाई के लिए एक मेड भी रख ली तथा घरखर्च दोनों ने आधाआधा बांट लिया. कुछ ही समय बाद ऋतु को सार्थक का व्यवहार थोड़ाथोड़ा बदला सा नजर आने लगा, ऐसा लगता था मानो वह खुद को ऋतु पर हावी करना चाहता है, गाहेबगाहे उस पर पति की तरह रोब भी झाड़ता था. लेकिन ऋतु सबकुछ चुपचाप बरदाश्त कर लेती थी. सार्थक की हर बात को वह शांति से सह लेती थी, लेकिन उस के व्यवहार को देख कर आज तो वह भी बिफर गई थी और उस पर सोने पर सुहागा यह कि काम वाली अभी तक नहीं आई थी. अब वह घर के सारे काम करे अथवा जैसेतैसे छोड़ कर औफिस चली जाए, समय कम था. सार्थक एकदम तैयार हो कर नाश्ते की टेबल पर आ गया था. ऋतु को अस्तव्यस्त दशा में देख कर उस का पारा चढ़ गया, ‘‘यह क्या ऋतु, तुम अभी तक तैयार नहीं हुई. क्या कर रही थी अब तक?’’

‘‘झक मार रही थी, तुम्हें देर हो रही है तो नाश्ता लगा है और टिफिन भी तैयार है, तुम जा सकते हो, मैं थोड़ी देर से आ जाऊंगी, मेड भी अभी तक नहीं आई है,’’ वह बौखला उठी. सार्थक झल्ला कर नाश्ता करने लगा. ऋतु बड़बड़ाती हुई अपने कपड़े ले कर बाथरूम में घुस गई. इन बाइयों का क्या, तुम्हें गरज है तो रखो नहीं काम तो इन्हें बहुत से मिल जाएंगे. आते ही वह बड़बड़ाने लगती थी, ‘कितनी देर हो गई आप के घर का ही काम करतेकरते, अभी चार घरों में और जाना है, कैसे होगा रे बाबा.‘

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