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मदर्स डे स्पेशल : अनमोल उपहार -भाग 2

बिस्तर पर लेटी दादीमां अतीत की धुंध भरी गलियों में अनायास भागती चली गईं.

‘अम्मां, मनहूस किसे कहते हैं?’ 4 साल के विश्वनाथ ने पूछा तो सरस्वती चौंक पड़ी थी.

‘बूआ कहती हैं, तुम मनहूस हो, मैं तुम्हारे पास रहूंगा तो मैं भी मर जाऊंगा,’ बेटे के मुंह से यह सब सुन कर सरस्वती जैसे संज्ञाशून्य सी हो गई और बेटे को सीने से लगा कर बोली, ‘बूआ झूठ बोलती हैं, विशू. तुम ही तो मेरा सबकुछ हो.’

तभी सरस्वती की ननद कमला तेजी से कमरे में आई और उस की गोद से विश्वनाथ को छीन कर बोली, ‘मैं ने कोई झूठ नहीं बोला. तुम वास्तव में मनहूस हो. शादी के साल भर बाद ही मेरा जवान भाई चल बसा. अब यह इस खानदान का अकेला वारिस है. मैं इस पर तुम्हारी मनहूस छाया नहीं पड़ने दूंगी.’

‘पर दीदी, मैं जो नीरस और बेरंग जीवन जी रही हूं, उस की पीड़ा खुद मैं ही समझ सकती हूं,’ सरस्वती फूटफूट कर रो पड़ी थी.

‘क्यों उस मनहूस से बहस कर रही है, बेटी?’ आंगन से विशू की दादी बोलीं, ‘विशू को ले कर बाहर आ जा. उस का दूध ठंडा हो रहा है.’

बूआ गोद में विशू को उठाए कमरे से बाहर चली गईं.

सरस्वती का मन पीड़ा से फटा जा रहा था कि जिस वेदना से मैं दोचार हुई हूं उसे ये लोग क्या समझेंगे? पिता की मौत के 5 महीने बाद विश्वनाथ पैदा हुआ था. बेटे को सीने से लगाते ही वह अपने पिछले सारे दुख क्षण भर के लिए भूल गई थी.

सरस्वती की सास उस वक्त भी ताना देने से नहीं चूकी थीं कि चलो अच्छा हुआ, जो बेटा हुआ, मैं तो डर रही थी कि कहीं यह मनहूस बेटी को जन्म दे कर खानदान का नामोनिशान न मिटा डाले.

सरस्वती के लिए वह क्षण जानलेवा था जब उस की छाती से दूध नहीं उतरा. बच्चा गाय के दूध पर पलने लगा. उसे यह सोच कर अपना वजूद बेकार लगता कि मैं अपने बच्चे को अपना दूध नहीं पिला सकती.

कभीकभी सरस्वती सोच के अथाह सागर में डूब जाती. हां, मैं सच में मनहूस हूं. तभी तो जन्म देते ही मां मर गई. थोड़ी बड़ी हुई तो बड़ा भाई एक दुर्घटना में मारा गया. शादी हुई तो साल भर बाद पति की मृत्यु हो गई. बेटा हुआ तो वह भी अपना नहीं रहा. ऐसे में वह विह्वल हो कर रो पड़ती.

समय गुजरता रहा. बूआ और दादी लाड़लड़ाती हुई विश्वनाथ को खिलातीं- पिलातीं, जी भर कर बातें करतीं और वह मां हो कर दरवाजे की ओट से चुपचाप, अपलक बेटे का मुखड़ा निहारती रहती. छोटेछोटे सपनों के टूटने की चुभन मन को पीड़ा से तारतार कर देती. एक विवशता का एहसास सरस्वती के वजूद को हिला कर रख देता.

विश्वनाथ की बूआ कमला अपने परिवार के साथ शादी के बाद से ही मायके में रहती थीं. उन के पति ठेकेदारी करते थे. बूआ की 3 बेटियां थीं. इसलिए भी अब विश्वनाथ ही सब की आशाओं का केंद्र था. तेज दिमाग विश्वनाथ ने जिस दिन पब्लिक सर्विस कमीशन की परीक्षा पास की सारे घर में जैसे दीवाली का माहौल हो गया.

‘मैं जानती थी, मेरा विशू एक दिन सारे गांव का नाम रोशन करेगा. मां, तेरे पोते ने तो खानदान की इज्जत रख ली.’  विश्वनाथ की बूआ खुशी से बावली सी हो गई थीं. प्रसन्नता की उत्ताल तरंगों ने सरस्वती के मन को भी भावविभोर कर दिया था.

विश्वनाथ पहली पोस्टिंग पर जाने से पहले मां के पांव छूने आया था.

‘सुखी रहो, खुश रहो बेटा,’ सरस्वती ने कांपते स्वर में कहा था. बेटे के सिर पर हाथ फेरने की नाकाम कोशिश करते हुए उस ने मुट्ठी भींच ली थी. तभी बूआ की पुकार ‘जल्दी करो विशू, बस निकल जाएगी,’ सुन कर विश्वनाथ कमरे से बाहर निकल गया था.

समय अपनी गति से बीतता रहा. विशू की नौकरी लगे 2 वर्ष बीत चुके थे. उस की दादी का देहांत हो चुका था. अपनी तीनों फुफेरी बहनों की शादी उस ने खूब धूमधाम से अच्छे घरों में करवा दी थी. अब उस के लिए अच्छेअच्छे रिश्ते आ रहे थे.

एक शाम सरस्वती की ननद कमला एक लड़की की फोटो लिए उस के पास आई. उस ने हुलस कर बताया कि लड़की बहुत बड़े अफसर की इकलौती बेटी है. सुंदर, सुशील और बी.ए. पास है.

‘क्या यह विशू को पसंद है?’ सरस्वती ने पूछा.

‘विशू कहता है, बूआ तुम जिस लड़की को पसंद करोगी मैं उसी से शादी करूंगा,’ कमला ने गर्व के साथ सुनाया, तो सरस्वती के भीतर जैसे कुछ दरक सा गया.

 

आशीष पंत की फिल्म ‘उलझन‘‘द नॉट‘ के दीवाने हुए विदेशी पत्रकार

‘इफला इंटरनेशनल फिल्मफेस्टिवल’ के प्रतियोगिता खंड मेंआशीष पंत की फिल्म ‘उलझन‘ ‘द नॉट‘ का हुआ चयन ‘द फिल्मलैंड‘, ‘अंधे घोड़ेदादान‘, ‘द फोर्थडाइरेक्शन‘, ‘सोनी‘ तथा ‘कन्हौर‘ जैसी चर्चित व पुरस्कृत फिल्मों के निर्माता कार्तिकेय नारायण सिंह की फिल्म ‘‘उलझन’’‘द नाट’’ अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में जबरदस्त परचम लहरा रही है.

‘‘सांता बार बरा इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल’’में काफी वाह वाही बटोरने के बाद फिल्म ‘उलझन दनॉट‘ को ‘इफला फिल्म फेस्टिवल’ में प्रतियोगिता खंड के लिए चुना गया है.कार्तिकेय नारायण सिंह ने अपनी इस फिल्म का निर्माण क्रिस्टो फरजल्ला के सहयोग से ‘रूट वन प्रोडक्शंस’के तहत किया है.
नवोदित निर्देषक आशीष पंत निर्देषित फिल्म ‘उलझन दनॉट‘ की कहानी एक विवाहित जोड़े, सलोनी बत्रा (सोनी) तथा विकास कुमार (हामिद) के इर्द गिर्द घूमती है. गीता और शिरीष से एक दुर्घटना हो जाती है. इस दुर्घटना के बाद उनके जीवन मेें भूचाल आ जाता है और दोनों किस तरह अपने जीवन में घटित होने वाले व्यावहारिक और भावनात्मक प्रभावों से निपटते हैं, उसी की दास्तान है यह फिल्म.

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मूल रूप से लखनऊ निवासी आशीष पंत वर्तमान समय में न्यूयॉर्क में अभिनय की शिक्षा दे रहे हैं. जब हमने निर्देषक आशीष पंत से उनकी फिल्म ‘‘उलझन द नाॅट’’ की चर्चा की,तो उन्होने कहा-“एनएफडीसी द्वारा साउथ एशियन फिल्म्स के लिए सबसे बड़े को-प्रोडक्शन मार्केट फिल्म बाजार में आवेदन करने के बाद मेरी पहली फिल्म ‘उलझन दनॉट‘ की यात्रा की शुरूआत हुई.‘उलझन दनॉट‘ की पटकथा को-प्रोडक्शन मार्केट के लिए चुनी गई 18 परियोजनाओं में से एक थी. वहीं पर मेरी मुलाकात कार्तिकेय नारायण सिंह से हुई .मैंउ नकी फिल्मों का हमेशा से प्रशंसक रहा हूँ.

मेरे विशेष आग्रह पर ही उन्होंने पटकथा पढ़ने के लिए अपनी सहमति व्यक्त की और मेरा ‘उलझन द नॉट‘ का सपना साकार हुआ.‘‘जबकि फिल्म निर्माता कार्तिकेय नारायण सिंह ने कहा-“मैं हमेशा उभरती हुई नई नई प्रतिभाओं की तलाश में रहता हूँ. एनएफडीसी फिल्म बाजार में स्क्रिप्ट पढ़ने और आशीष से मिलने के बाद, मैंने तुरंत पहचान लिया किआशीष, ईमानदारी, फोकस, कड़ी मेहनत और कला कौशल से प्रेरित प्रतिभावान शख्स है. एक निर्माता के रूप में मैं सदैव उन निर्देशकों की तलाश में रहता हूँ जिनमें कला और परिश्रम का सही संतुलन हो.मेरा मानना है एक ही विचार धारा के दो लोगों की सही बैठक के साथ शुरू हुई कहानी के अलावा सभी पर एक साथ काम किया जा सकता है.‘‘

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मशहूर विदेशी पत्रकार डेविडस्टार्क ने ‘‘सांता बार बरा इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल’’ मेें इस फिल्म को देखने के बाद समीक्षात्मक टिप्पणी करते हुए लिखा है-‘‘शिरीष और गीता को कुमार और बत्रा ने बखूबी चित्रित किया है.दोनों में न सिर्फ जबरदस्त के मिस्ट्री है,बल्कि जिस सहजता से दोनों स्क्रीन पर नजर आए हैं,वह काबिले तारीफ है. ‘द नॉट‘ एक दुर्भाग्य पूर्ण दुर्घटना के माध्यम से बदलते भारत की जाति गत तस्वीर को पात्रों के अलग-अलग दृष्टिकोण की पड़ताल करती है.‘‘

जबकि एक अन्य पत्रकार लिजविहटेमोर ने ‘‘सांता बार बरा इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल’’में फिल्म‘उलझन/दनाॅट’को देखने के बाद लिखा-‘‘फिल्म के कलाकारों का प्रदर्शन अद्भुत है. फिल्म का लुक काफी रसीला है.पंत ने जातिका चित्रण करने के लिए जिस तरह भाषा,संगीत और बोली में सूक्ष्म बदलाव किया है वह भी सराहनीय है.यह एक बुद्धिमान और साहसिक स्क्रीन प्ले है.‘द नॉट‘एक विस्फोट क समापन समेटे हुए है.

अंत में यही कहूंगा कि सिनेमैटोग्राफी और चैथी दीवार का टूटना काफी डरावना है. ‘‘
पत्रकार लाॅरी कोकर ने ‘‘सांता बार बरा इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल’’में देखने के बाद लिखा-‘‘फिल्म द नॉट‘, शक्तिशाली कलाकारों, जबरदस्त साउंडट्रैक, और व्यक्तिगत कैमरा कोण के साथ बनी एक खूबसूरत फिल्म है जिसके चरित्र भारत के जातिगत ढाँचे को बड़ी ही खूबसूरती से प्रतिबिंबित करते हैं.‘‘

कपिल शर्मा की ऑनस्क्रीन बुआ उपासना सिंह ने बनाया कोरोना का मजाक, हो सकती हैं गिरफ्तार!

टीवी इंडस्ट्री के मशहूर कॉमेडियन कपिल शर्मा की ऑनस्क्रीन बुआ उपासना सिंह ने हाल ही में कोरोना के नियमों को तोड़ा   है. जिस वजह से वह चर्चा में बनी हुई है. खबर है कि कोरोना वायरस के नियमों को तोड़ने की वजह से पुलिस ने उनके खिलाफ केस दर्ज कर लिया है.

दरअसल, इस वक्त पंजाब में पूर्ण लॉकडाउन है और उपासना सिंह इस वक्त अपनी अपकमिंग फिल्म की शूटिंग वहां कर रही थी, जिस वजह से उनके खिलाफ पुलिस को एक्शन लेना पड़ा है. पुलिस ने तुरंत शूटिंग लोकेशन पर जाकर छापा मारी थी.

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रिपोर्ट्स कि माने तो पुलिस ने उपासना सिंह से कई सवाल भी किए हैं कि उन्होंने रुल्स को क्यों तोड़ा. पुलिस ने उनके खिलाफ कई धराओं पर मामला दर्ज किया है.

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बता दें कि  उपासना सिंह से पहले एक्टर जिम्मी शेरगिल और गिप्पी ग्रेवाल पर मामला दर्ज हुआ था कि दोनों पंजाब में अपनी फिल्म की शूटिंग कर रहे थें. पंजाब के बढ़ते मामलों को देखकर इस समय वहां पूर्ण लॉकडाउन लगाया गया है.

 

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इस समय देशभर में हर दिन 3 लाख से ज्यादा मामले सामने आ रहे हैं. पंजाब के बढ़ते मामलों को देखने के बाद पंजाब सरकार ने लॉकडान लगाने का फैसला लिया है.

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हर घंटे हजार की तदाद में लोगों की मौते हो रही हैं. ऐसे वक्त में खुद को बचाए रखऩा सबसे ज्यादा जरुरी है. उपासना सिंह को कपिल शर्मा के शो में खूब पसंद किया जाता था. इसके अलावा भी वह कई फिल्मों में नजर आ चुकी हैं.

कई फिल्मों मेंं उपासना की एक्टिंग को बहुत ज्यादा पसंद किया जाता है.

ट्विटर अकाउंट सस्पेंड होने पर कंगना रनौत ने कही ये बात

ट्विटर इंडिया ने मंगलवार को अदाकारा कंगना रनौत का अकाउंट सस्पेंड कर दिया है. कंगना रनौत ने बंगाल हिंसा की कुछ वीडियो अपने अकाउंट पर शेयर कर दी थी. जिसके बाद से उनका अकाउंट सस्पेंड कर दिया गया.

इसके बाद से कंगना रनौत ने अपने इंस्टाग्राम पर अपनी वीडियो शेयर करते हुए ट्विटर इंडिया को जवाब देते हुए कहा है कि मेरे पास कई सारे प्लेटफॉर्म है जहां पर मैं अपनी बातों को रख सकती हूं. कंगना ने अपनी बातों को रखते हुए कहा है कि ट्विटर ने मेरा प्वाइंट सही साबित कर दिया है.

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अमेरिकन्स को लगता है कि ब्राउन इंसान उनकी गुलामी के लिए है, जबकी ऐसा बिल्कुल भी नहीं है. उन्हें लगता है कि हम उनके अनुसार सोचे बोले और उनके इशारे पर काम करें तो ऐसा बिल्कुल भी संभव नहीं है. आगे कंगना ने कहा कि मेरा दिल उन लोगों के लिए रो रहा है जिन्होंने इस हिंसा को झेला है.

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कंगना रनौत अक्सर अपने अकाउंट से ऐसे ट्विट करती हैं जिससे विवाद खड़े होते रहते हैं. लेकिन इस बार अदाकारा ने ट्विटर की गाइडलाइन्स को क्रॉस कर लिया है जिससे विवाद खड़े हो गए हैं, और कंगना का अकाउंट सस्पेंड हो गया है.

 

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वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जो कंगना का अकाउंट सस्पेंड होने पर जश्न मना रहे हैं. ऐसे लोगों का कुछ नहीं हो सकता है. जैसे ही कंगना का अकाउंट सस्पेंड हुआ वैसे ही मीम्स वायरल होने शुरू हो गए और कुछ लोगों ने कहा कि चलो कुछ वक्त तक ट्विटर पर शांति तो रहेगी.

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कंगना के वर्कफ्रंट की बात करें तो जल्द ही कंगना जयललिचा की बॉयोपिक थलाइवी में नजर आने वाली हैं.जल्द ही फिल्म के मेकर्स रिलीज डेट का अनाउंस करेंगे.

हल्दी की खेती के फायदे अनेक

लेखक- प्रो. रवि प्रकाश मौर्य, डा. सुमन प्रसाद मौर्य आचार्य नरेंद्र देव

रवि प्रकाश मौर्य ने हल्दी की उपयोगिता और एक परिवार के लिए कम क्षेत्रफल में खेती करने की सलाह दी. उपयोगिता हल्दी का उपयोग प्राचीन काल से विभिन्न रूपों में किया जाता रहा है, क्योंकि इस में रंग, महक व औषधीय गुण पाए जाते हैं. हल्दी में जैव संरक्षण और जैव विनाश दोनों ही गुण विद्यमान हैं. भोजन में सुगंध व रंग लाने में, अचार आदि भोज्य पदार्थों में इस का उपयोग करते हैं. हल्दी भूख बढ़ाने और उत्तम पाचक में सहायक होती है. यह रंगाई के काम में भी उपयोग होती है. दवाओं में भी इस का उपयोग किया जाता है. साथ ही, कौस्मैटिक चीजें बनाने में भी इस का उपयोग किया जाता है. एक परिवार के लिए जरूरत एक सामान्य परिवार को प्रतिदिन 15-20 ग्राम हलदी की जरूरत रहती है.

इस तरह से महीने में 600 ग्राम, साल में 7 किलोग्राम सूखी हलदी की जरूरत होती है. मिलावटी हल्दी की पहचान बाजार में ज्यादातर मिलावटी हल्दी आ रही है, जिस में पीला रंग मिला रहता है. यदि हल्दी का दाग कपड़े पर लगता है, तो साबुन से धोने से उस का रंग लाल हो जाता है और धूप में डालने पर दाग हट जाता है. अगर मिलावट है, तो दाग बना रहता है. हल्दी में मिलावट से बचने के लिए कम क्षेत्रफल एक बिस्वा/कट्ठा (125 वर्गमीटर) में हलदी की खेती की तकनीकी जानकारी दी जा रही है : मिट्टी हल्दी की खेती करने के लिए दोमट मिट्टी, जिस में जीवांश की मात्रा अधिक हो, अति उत्तम है. मुख्य प्रजातियां, अवधि और उत्पादकता राजेंद्र सोनिया, सुवर्णा, सुगंधा, नरेंद्र हलदी-1, 2, 3, 98 व नरेंद्र सरयू मुख्य किस्में हैं, जो 200 से 270 दिन में पक कर तैयार होती हैं. उत्पादन क्षमता 250 से 300 किलोग्राम प्रति बिस्वा और सूखने पर 25 फीसदी हल्दी मिलती है. बोआई का समय और खेत की तैयारी हल्दी के लिए रोपाई का उचित समय मध्य मई से जून का महीना होता है.

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बोआई करने से पहले खेत की 4-5 जुताई कर उस में पाटा लगा कर मिट्टी को भुरभुरा व समतल कर लिया जाना चाहिए. बीज की मात्रा और बोआई की विधि 25 से 30 किलोग्राम प्रकंद प्रति बिस्वा लगता है. हर प्रकंद में कम से कम 2-3 आंखें होनी चाहिए. 5 सैंटीमीटर गहरी नाली में 30 सैंटीमीटर पर कतार से कतार और 20 सैंटीमीटर प्रकंद की दूरी रख कर रोपाई करें. सिंचाई हलदी की फसल में रोपाई के 20-25 दिन बाद हलकी सिंचाई की जरूरत पड़ती है. गरमी में 7 दिन के अंतर पर और सर्दियों में 15 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए. खाद व उर्वरक मिट्टी जांच के आधार पर खाद व उर्वरक का प्रयोग करें. 250 किलोग्राम कंपोस्ट या गोबर की खूब सड़ी हुई खाद प्रति बिस्वा की दर से जमीन में मिला देनी चाहिए. रासायनिक उर्वरक सिंगल सुपर फास्फेट 6.25 किलोग्राम व म्यूरेट औफ पोटाश 1.06 किलोग्राम रोपाई के समय जमीन में मिला दें.

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यूरिया की 1.37 किलोग्राम मात्रा 2 बार रोपाई के 45 व 90 दिन बाद मिट्टी चढ़ाते समय डालें. मल्चिंग हल्दी की रोपाई के बाद हरी पत्ती, सूखी घास क्यारियों के ऊपर फैला देनी चाहिए. अंत:फसल अंत:फसल के रूप में बगीचों में आम, कटहल, अमरूद वगैरह में इसे लगा कर अतिरिक्त आय प्राप्त की जा सकती है. खुदाई हल्दी फसल की खुदाई 7 से 10 महीने में की जाती है. यह बोई गई प्रजाति पर निर्भर करता है. अकसर जनवरी से मार्च महीने के मध्य खुदाई की जाती है. जब पत्तियां पीली पड़ जाएं और ऊपर से सूखना शुरू कर दे, तब खुदाई कर लें. खुदाई के पहले खेत में घूमघूम कर निरीक्षण कर लें कि कौनकौन से पौधे बीमारी से युक्त हैं, उन्हें चिह्नित कर खुदाई कर अलग कर दें और बाकी को अगले साल की बोआई के लिए बीज रखें. खुदाई कर के उसे छाया में सुखा कर मिट्टी वगैरह साफ करें.

मदर्स डे स्पेशल : काश, मेरी बेटी होती-भाग 5

हाथ पोंछ कर माधवी चली गई. एक हफ्ता गुजर गया. आज रात की ट्रेन से सुकेश आने वाले थे. सुबह चाय पी कर शोभा गेट का ताला खोलने के लिए बाहर जा रही थी कि बरामदे की सीढ़ी से पैर लड़खड़ा गया. एक चीख मार कर वह वहीं बैठ गई. उस की जोर की चीख सुन कर ऋषभ और माधवी भागतेदौड़ते नीचे उतर कर उस के पास पहुंच गए. वह अपना पैर पकड़ कर कराह रही थी.

क्या हुआ मां? माधवी बोली.

‘‘अचानक से पैर लड़खड़ा गया सीढ़ी पर. दाएं पैर में बहुत दर्द हो रहा है.’’

‘‘ओह, कहीं फ्रैक्चर न हो गया हो,’’ कह कर ऋषभ शोभा को उठा कर अंदर ले आया. माधवी उस के पैरों के पास बैठ कर हलके हाथों से मलहम लगाती हुई बोली, ‘‘अभी डाक्टर के पास ले चलते हैं मां. चिंता मत करो, सब ठीक हो जाएगा.’’ उस ने उस के पैर में कस कर क्रेप बैंडेज बांध दी.

दोनों उसे अस्पताल ले गए. एक्सरे में फ्रैक्चर नहीं आया. मोच आ गई थी. डाक्टर ने कुछ दिन आराम करने के लिए कहा. सबकुछ करा कर उसे घर छोड़ कर ऋषभ औफिस चला गया. लेकिन माधवी थोड़ी देर बाद उस के पास जा कर बैठ गई.

तू औफिस नहीं गई? वह आश्चर्य  से बोली.

नहीं मां, ऐसी हालत में आप को छोड़ कर औफिस कैसे चली जाऊं मैं. फिलहाल कुछ दिन की छुट्टी ले ली है. पापा भी आ जाएंगे आज. ऐसे में खाना भी कैसे बनाएंगी आप?’’

कुछ न बोला गया शोभा से. मन भर आया और आंखें भी. सुकेश के डर पर दिल के उद्गार भारी पड़ गए. ‘मेरी बेटी होती तो ऐसी ही होती,’ उस ने सोचा, ‘नहींनहीं, ऐसी ही क्यों होती, बल्कि यही है मेरी बेटी.’

उस ने माधवी का हाथ पकड़ कर अपनी तरफ खींचा. माधवी ने आश्चर्य से उस की आंखों में देखा. पर शोभा की आंखों में वात्सल्य का अनंत महासागर हिलोरें ले रहा था. वह हुलस कर शोभा की बांहों में समा गई. शोभा का वर्षों का सपना पूरा हो गया था.

माधवी ने उस के घर व उस के दिल में तो प्रवेश पा लिया था पर सुकेश के दिल में प्रवेश पाना टेढ़ी खीर था. रात की ट्रेन से सुकेश आए. शोभा के पैर में पट्टी बंधी देख कर परेशान हो गए. पर शोभा के चेहरे पर दर्द व परेशानी का नामोनिशान न था. वह आराम से पलंग पर पीछे तकिया लगा पीठ टिकाए बैठी मुसकरा रही थी. न यह शिकायत कि एक हफ्ता तुम्हारे बिना मन नहीं लगा वगैरहवगैरह.

‘‘कुछ तो गड़बड़ है,’’ सुकेश अपनी उधेड़बुन में कपड़े बदल कर नहाने चले गए. बाथरूम से फ्रैश हो कर लौटे,

‘‘दर्द तो नहीं हो रहा तुम्हें?’’

‘‘बिलकुल नहीं,’’ शोभा मुसकराते हुए बोली.

‘‘कुछ खाना तो बना नहीं होगा. बाहर से और्डर कर देता हूं.’’

तभी दरवाजे पर आहट हुई. देखा, तो माधवी 2 प्लेटों में खाना लिए खड़ी थी. मुसकराती हुई आगे बढ़ी, एक प्लेट माधवी को पकड़ा दी. बिना  िझ झके, सुकेश से बिना डरे शोभा ने प्लेट पकड़ ली. सुकेश आश्चर्य से माधवी को देख रहे थे. माधवी ने  िझ झकते हुए दूसरी प्लेट साइड टेबल पर रखी और वापस चली गई. शोभा इत्मीनान से खाना खाने लगी.

‘‘तुम कब से खाने लगी हो इस के हाथ का?’’ सुकेश के स्वर में क्रोध भरा था.

‘‘तरीके से बात करो सुकेश. वह तुम्हारे बेटे की पत्नी है और इस घर की बहू. अब जो जाति हमारी वही उस की,’’ शोभा तनिक रोष में बोली.

शोभा के रोष को भांप कर सुकेश थोड़ा आराम से बोले, ‘‘ठीक है, पर मेरे घर में यह सब नहीं चलेगा. तुम से पहले ही बात हो गई थी. यह शादी मैं ने सिर्फ ऋषभ की जिद के कारण की थी. वरना, इतनी छोटी जाति में… तुम जानती हो.’’

‘‘मुझे तो चोट लगी थी. खाना बना नहीं सकती थी. और वैसे भी, मैं तो कभी ब्राह्मणवाद के पीछे इतनी पागल भी नहीं रही हूं. पर तुम खाना बाहर से और्डर कर लो अपने लिए. लेकिन ध्यान रखना, जिस जगह और्डर करो, वहां किचन में खाना किस ने बनाया है, उस के ब्राह्मण होने का प्रमाणपत्र अवश्य ले लेना,’’ शोभा विर्दूप स्वर में बोली.

सुकेश ठगे से शोभा को देखने लगे.

‘‘हांहां, ऐसे क्या देख रहे हो. ब्याहशादियों में जाते हो. खाना बनाने वालों का, स्नैक्स सर्व करने वाले वेटरों की जाति भी पूछी है तुम ने कभी? सड़क मार्गों से लंबीलंबी यात्राएं करते हो औफिशियल दौरों के लिए, रास्तेभर रुकतेरुकाते, खातेपीते जाते हो, क्या वहां पर सब की जाति पूछ कर खातेपीते हो? उन सब की जाति पूछ लो. अगर वे सब ऊंची जाति के हों तो मैं अपनी ऐसी सुघढ़, सल्लज और प्यारी बहू के हाथ का खाना बंद कर दूंगी, वादा है तुम से. पर तब तक तुम मु झे टोकना मत,’’ कह कर शोभा खाना खाने लगी.

सुकेश थोड़ी देर किंकर्तव्यविमूढ़  से खड़े रह गए. शोभा के तर्कों  में दम था. अधिकतर शोभा उन की बात हंसीखुशी मान जाती थी पर जब वह किसी बात पर अड़ती थी तो उसे डिगाना मुश्किल होता था. वे खड़े सोचते रहे. बात तो सच है, इतनी जगह खाना खाते हैं क्या जाति पूछ कर. माधवी तो उन की बहू है. बेटे ने, शोभा ने उसे सहज अपना लिया. उन की वंशवेल उसी से आगे बढ़ेगी और  झूठे दंभ व  झूठी जिद्द के कारण वे उसे अपना नहीं पा रहे हैं.

उन्होंने खाने की प्लेट उठाई और शोभा की बगल में बैठ गए. पलभर के लिए दोनों की नजरें टकराईं. सुकेश ने रोटी का टुकड़ा तोड़ कर सब्जी में डुबोया और मुंह में डाल लिया. अंदर की मुसकराहट व दिल की पुलक अंदर ही दबाए शोभा चुपचाप खाना खाती रही. दोनों ने खाना खत्म किया ही था कि माधवी फिर आ गई.

‘‘मां, कुछ चाहिए तो नहीं?’’ पर पापा को खाते देख वह अचंभित सी हो गई. बिना छेड़े चुपचाप वापस पलट गई.

‘‘रुको माधवी,’’ सुकेश अपनी जगह पर खड़े हो गए, ‘‘बहुत अच्छा खाना बनाया तुम ने बेटा. इंजीनियरिंग करतेकरते कैसे सीख लिया इतना सबकुछ?’’

हतप्रभ हो माधवी अचल खड़ी हो गई. उस से यह सब संभल नहीं पा रहा था. भावविह्वल स्वर में बोली, ‘‘आप को अच्छा लगा पापा?’’

‘‘हां,  बहुत अच्छा लगा. आज पहली बार तुम्हारे हाथ का खाना  खाया है, इसलिए इनाम तो बनता है,’’ सुकेश ने अलमारी से कुछ रुपए निकाल कर माधवी के हाथ में रखे, ‘‘मांपापा की तरफ से अपने लिए कुछ ले लेना.’’

‘‘जी पापा,’’ वह भरी आंखों से पैरों में  झुक गई. सुकेश ने  झुकी हुई माधवी को उठा कर छाती से लगा लिया, ‘‘माफी चाहता हूं तुम से बेटा. कभीकभी बड़ों से भी गलतियां हो जाती हैं.’’

‘‘नहीं पापा, कुछ मत बोलिए, मु झे कोई शिकायत नहीं है.’’

जाति को ले कर बिना कोई तर्कवितर्क किए माधवी ने सुकेश के ब्राह्मणवाद के किले को फतेह कर लिया था. दोनों -पिता और बहूरूपी पुत्री – सजल नेत्रों से गले लिपटे हुए थे. तभी ऋषभ माधवी को ढूंढ़ता हुआ नीचे उतर आया. कमरे में आया तो पितापुत्री को गले लगे देखा. प्रश्नवाचक दृष्टि मां पर डाली पर वहां भी सजल मुसकराहट में सारे उत्तर थे. गरदन हिलाता हुआ वह भी मुसकरा दिया और उलटे पैरों वापस लौट गया, शायद ऊपर से अपना बोरियाबिस्तर समेटने के लिए.

मदर्स डे स्पेशल : काश, मेरी बेटी होती-भाग 4

ऋषभ ने अपने कपड़ों की अटैची उठाई और दान में मिले पलंग व 4 बरतनों के साथ एक गैस का चूल्हा खरीदा और ऊपर के पोर्शन में अपनी गृहस्थी बसा ली. शोभा तो बहू को ले कर पहले ही कई तरह के पूर्वाग्रहों से ग्रस्त थी, ऊपर से छोटी जाति की लड़की. हालांकि वह बहुत ज्यादा जातिवाद नहीं मानती थी पर फिर भी इस स्तर की जाति तक जाना, रुढ़ीवादिता से ग्रसित उस का मन भी बहुत खुल कर बहू को अपना नहीं पा रहा था.  इसलिए उस ने भी पति सुकेश को मनाने की कोशिश नहीं की. बहूबेटे विवाह के अगले दिन 10 दिन के हनीमून ट्रिप पर निकल गए. उस ने भी विवाह के बाद के कार्य, रिश्तेदारों में मिठाईकपड़े वगैरह का लेनदेन निबटाया. अपने निकट रिश्तेदारों का इस विवाह में मूड जो उखड़ा था, उखड़ा ही रहा. वे कर भी क्या सकते थे. ‘बेटे की मरजी थी’ कह कर उन्होंने हाथ  झाड़ दिए थे. बच्चों के वापस आने का दिन पास आ रहा था. इसी बीच सुकेश औफिस की तरफ से एक हफ्ते की ट्रेनिंग के लिए चेन्नई चले गए. उस के अगले दिन बेटेबहू हनीमून से वापस आ गए.

सुबह शोभा की देर से नींद खुली. उठ कर वह बाथरूम में फ्रैश होने चली गई. मुंह धो कर वह तौलिए से पोंछती हुई बाहर आ रही थी कि सुबहसुबह कोयल सी कुहुक कानों में मधुर संगीत घोल गई.

‘‘मां, चाय लाई हूं आप के लिए,’’ मुखड़े पर मीठी मुसकान की चाशनी घोले माधवी ट्रे लिए खड़ी थी. सुबहसुबह की धूप से उज्ज्वल मुखड़े पर स्निग्ध चांदनी छिटकी हुई थी.

‘‘पर तुम क्यों लाईं चाय, मैं खुद ही बना लेती,’’ शोभा को एकाएक सम झ नहीं आया, क्या बोले.

‘‘वो, ऋषभ ने कहा कि पापा नहीं हैं तो… आप पी लेंगी. नहीं पीना चाहती हैं तो कोई बात नहीं. मैं वापस ले जाती हूं.’’ मुखड़े की चांदनी जैसे मलिन हो गई. शोभा का हृदय द्रवित हो गया.

‘‘नहींनहीं, रख दो, मैं पी लूंगी.’’ खुश हो माधवी ने ट्रे साइड टेबल पर रख दी. मुखड़ा फिर से लकदक करने लगा. शोभा का दिल किया, बहू को खींच कर छाती से लगा ले पर नहीं, उंगली पकड़ कर उस की गृहस्थी में उस का अनाधिकार प्रवेश? सुकेश कभी भी बरदाश्त नहीं करेंगे. वह 2 मिनट खड़ी रही, फिर चली गई.

शोभा सुबह उठती और चाय की ट्रे ले कर माधवी उस के पास खड़ी हो जाती. न जयंति की बेटी सुबह उठती है न रक्षा की बहू. माधवी भी इंजीनियर है पर यह कैसे? अगले दिन रविवार था. लंच के समय माधवी कढ़ी का कटोरा लिए हाजिर हो गई. ‘‘मां, मैं ने कढ़ी बनाई है आज. खा कर देखिए, कैसी बनी है?’’

कढ़ी खाते हुए शोभा सोच रही थी, ‘इतनी स्वादिष्ठ कढ़ी? इंजीनियरिंग करतेकरते यह लड़की कब गृहस्थी के काम सीख गई. रात को भी माधवी कमल ककड़ी के कोफ्ते रख गई. उस की सुघढ़ता देख कर शोभा के दिल में सुनीसुनाई आजकल की बिगड़ैल बेटीबहुओं की छवि गड्डमड्ड हो रही थी. लड़की माधवी जैसी भी होती है. पर उसे ज्यादा भाव नहीं देना चाह रही थी क्योंकि सुकेश का ब्राह्मणवाद उस के समूचे प्यार व सपनों पर हावी हो रहा था.

दूसरे दिन कामवाली ने छुट्टी ले ली यह कह कर कि उसे अपने भाई के घर जाना है, शाम तक आ जाएगी. ऊपर भी वही काम करती थी. सुबह माधवी चाय रख गई. अभी शोभा चाय पी ही रही थी कि उसे किचन में बरतनों की खटरपटर की आवाज सुनाई दी. वह किचन में गई तो देखा, माधवी जल्दीजल्दी रात के बरतन धो रही है. यह क्या कर रही हो माधवी?

‘‘मां, आज कामवाली दीदी ने छुट्टी की है न, इसलिए बरतन धो रही हूं. ऊपर के तो मैं ने उठते ही धो लिए थे.’’

शोभा आश्चर्य व ममता से माधवी को निहारने लगी, तु झे औफिस के लिए देर नहीं हो रही?

‘‘नहीं, अभी तो टाइम है. बस, तैयार हो जाऊंगी जल्दी से,’’ बरतन रख कर, सिंक धो कर वह उस की तरफ पलटती हुई बोली.

जयंति और रक्षा को तो कितनी शिकायतें हैं अपनी बेटी और बहू से. पर माधवी, कितनी अलग है. उस की खुद की बेटी होती तो क्या ऐसी ही होती या उन के जैसी होती. दिल फिर किया, बहू को छाती से लगा ले, मनभर कर दुलार कर ले. पर सुकेश की बड़ीबड़ी गुस्सैल आंखें याद आ गईं. ‘नहींनहीं, शादी करा दी किसी तरह. बस, दोनों खुश रह लें आपस में. अब नहीं उल झना उसे.’

 

Crime Story: ठग बाबा, सोने की चाह में

सौजन्या-सत्यकथा

तथाकथित तांत्रिक रोशन ने किरण को झांसा दिया कि उस के घर में करोड़ों रुपए का सोना दबा हुआ है. पूजापाठ के नाम पर रोशन और उस के चेलों ने किरण से करीब 45 लाख रुपए तो ठगे, साथ ही उस के साथ दुष्कर्म भी करते रहे. इस के बाद जो हुआ…

अकसर हम अखबारों में तंत्रमंत्र, वशीकरण, जमीन में गड़ा धन दिलाने के नाम पर कई तांत्रिक
बाबाओं द्वारा लोगों को ठगे जाने के समाचार पढ़तेसुनते रहते हैं. इस के बाद भी कई लोग इन बाबाओं के झांसे में आ कर अपनी गाढ़ी कमाई गंवाते हैं.ठग बाबा भोलीभाली महिलाओं से दुष्कर्म भी करते हैं. कुछ लोग तो इन की बातों और अंधविश्वास में इस कदर वशीभूत हो जाते हैं कि अपनी संतान तक की बलि दे देते हैं.

ऐसा ही एक मामला थाना सिरयारी, जिला पाली, राजस्थान में 14 फरवरी, 2021 को तब सामने आया. जब किरण नाम की एक महिला ने तांत्रिक रोशन बाबा उर्फ साजिद सिद्दीकी और उस के शिष्य राजूराम मेघवाल व फरजी क्राइम ब्रांच इंसपेक्टर आरिफ खान के खिलाफ केस दर्ज कराया. किरण ने आरोप लगाया कि आरापियों ने घर में दबा सोना निकालने का झांसा दे कर उस से पौने 2 साल में करीब 45 लाख रुपए हड़प लिए. खुद को रोशन बाबा कहने वाले आरोपी साजिद सिद्दीकी व राजू मेघवाल ने उस के साथ दुष्कर्म भी किया.

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केस दर्ज होने के बाद पाली के एसपी कालूराम ने मामले की गंभीरता को देखते हुए सीओ (सोजत) डा. हेमंत कुमार की अगुवाई में एक विशेष पुलिस टीम का गठन कर आरोपियों की जल्द से जल्द गिरफ्तारी का आदेश दिया. जांच में पता चला कि मुख्य आरोपी रोशन बाबा बिहार भाग गया है. सिरयारी थाने के एएसआई किशनाराम व हैडकांस्टेबल शेरसिंह को रोशन बाबा की गिरफ्तारी के लिए बिहार भेजा गया. रोशन का मोबाइल फोन भी स्विच्ड औफ आ रहा था.

वह मूलरूप से बिहार के मुबारकपुर के सलखुआ बाजार, सहरसा का रहने वाला था. स्थानीय पुलिस के सहयोग से आखिर राजस्थान पुलिस ने 47 वर्षीय रोशन बाबा उर्फ साजिद सिद्दीकी को उस घर से धर दबोचा. राजस्थान पुलिस की टीम उसे स्थानीय अदालत में पेश कर के ट्रांजिट रिमांड पर थाना सिरयारी ले आई. उस से पूछताछ के बाद पुलिस ने 2 मार्च, 2021 को अन्य आरोपियों राणावास, पाली निवासी राजूराम मेघवाल एवं हिम्मतनगर खैरवा, पाली निवासी आरिफ गिरफ्तार कर लिया. तीनों ठगों से पुलिस अधिकारियों ने एक साथ बैठा कर पूछताछ की.

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पूछताछ के बाद पता चला कि आऊवा के रहने वाले वसील कादरी ने रोशन बाबा को बिना कोई आईडी देखे अपने यहां रहने की जगह दी थी. बदले में रोशन ने उसे अपने पैसों से खरीदा गया हजारों रुपए का सामान दिया था. लिहाजा पुलिस ने वसील को भी गिरफ्तार कर लिया. ठगी के रुपयों से खरीदी जीप रोशन बाबा ने वसील कादरी की बेटी को दी थी. वसील कादरी के घर में फ्रिज, टीवी, कूलर, वाशिंग मशीन, पलंग, सोफे और अन्य तमाम सामान मिला.

वसील कादरी को पता था कि रोशन बाबा ठगी कर के यह सामान उसे फ्री में ला कर दे रहा है. वसील आंखें मूंद कर सामान रखता गया. सारा सामान और जीप पुलिस ने जब्त कर ली. वसील कादरी ने पूछताछ में बताया कि वह रोशन बाबा से घर का किराया नहीं लेता था. उस के घर में वह सन 2014 से 2020 तक रहा. रोशन बाबा उस के यहां पहली मंजिल पर रहता था. जबकि वसील कादरी का परिवार ग्राउंड फ्लोर पर रहता था.

रोशन बाबा उर्फ साजिद सिद्दीकी अपने आप को मौलवी और तांत्रिक बताता था. रोशन अपने गांव बिहार के सहरसा के सलखुआ बाजार से सन 2010 में पाली आ गया था. पाली आने के बाद रोशन सिरयारी गांव की मसजिद में 2010 से 2014 तक मौलवी रहा. लेकिन उस की कारगुजारियां देख कर समाज के सदर अल्लाबख्श समेत अन्य लोगों ने उसे भगा दिया था. तभी से वह आऊवा गांव में वसील कादरी के घर में आ कर रहने लगा था. मसजिद से निकाले जाने के बाद रोशन बाबा ने खुद को तांत्रिक बता कर प्रचार किया. अंधविश्वासी लोग उस के पास आते थे. वह तंत्रमंत्र के नाम पर गंडाताबीज करने लगा. बाद में उस ने यह प्रचारित करना शुरू किया कि वह तंत्रमंत्र से जमीन में गड़ा धन, सोना चांदी निकाल देता है.

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रोशन का छोड़ा यह शिगूफा काम कर गया. रोशन बाबा अकसर अकेली और विधवा औरतों को फंसाता था. इस के साथ ही सरकारी नौकरी पाने की लालसा रखने वालों को भी फंसा लेता था. जांच में पता चला कि रोशन बाबा के खिलाफ पाली के जेतारण, मारवाड़ जंक्शन, फालना में भी कई मामले दर्ज हुए थे.
वसील न केवल रोशन का रिश्ते में दूर का भाई है, बल्कि उस ने मुख्य आरोपी रोशन को अपने आऊवा स्थित घर में बगैर आईडी ठिकाना दे रखा था. वसील कादरी, राजूराम मेघवाल, आरिफ और मुख्य आरोपी रोशन बाबा उर्फ साजिद सिद्दीकी से पूछताछ में पुलिस को जो जानकारी मिली, उस से कहानी कुछ इस तरह बनी.

किरण की शादी करीब 12 साल पहले राजस्थान के पाली जिले के सोजत क्षेत्र के सिरयारी थाने के अंतर्गत एक गांव में हुई थी. किरण भोलीभाली थी. वह अंधविश्वासी परिवार से आई थी. वह समझती थी कि तंत्रमंत्र से तांत्रिक, बाबा एवं मौलवी कुछ भी कर सकते हैं. उस ने अपने अंधविश्वासी परिवार में भी भूतप्रेत भगाना या टोनाटोटका करने वाले भोपे, तांत्रिक देखे थे. वह नहीं जानती थी कि इन ठगों का काम लोगों में भूतप्रेत का डर दिखा कर अपनी झोली भरना मात्र होता है. किरण को शादी के 2 साल बाद एक बेटा पैदा हुआ, जिस का नाम उस ने गुड्डू रखा. गुड्डू इस समय 10 साल का है. किरण के ससुर और पति दक्षिण भारत में अपना बिजनैस करते हैं. उन का वहां जमाजमाया धंधा है. वह डेढ़दो बरस में घर आते हैं. किरण यहां पर एकलौते बेटे के साथ रहती थी.

किरण ने गांव में एक अच्छा मकान बनवाया था. मकान निर्माण का काम पाली जिले के राणावास निवासी राजूराम मेघवाल ने किया था. राजू ने किरण के घर कई महीने तक काम किया था. वह उसे अच्छी तरह जानता था. किरण भी उसे पहचानती थी. राजू को पता था कि किरण का पति और ससुर परदेस में रहते हैं और उन के पास लाखों रुपए हैं. राजू की मुलाकात जब रोशन बाबा उर्फ साजिद सिद्दीकी से हुई तब वह उस से बहुत प्रभावित हुआ और उस का शिष्य बन गया. हिम्मतनगर, खैरवा, पाली का रहने वाला आरिफ खान भी रोशन का चेला था. वह पेशे से ड्राइवर था. वह भी रोशन के ठगी के धंधे में शामिल हो गया.

रोशन, राजू और आरिफ ने तंत्रमंत्र द्वारा जमीन में गड़ा धन निकालने, पत्थरों को सोना बनाने और सरकारी नौकरी की तलाश करने वाले युवकों से ठगी करनी शुरू की. राजू और आरिफ गांव ढाणी में ऐसी महिलाओं की तलाश करते जो अकेली रहतीं या विधवा होती थीं. उन अकेली महिलाओं को रोशन के चेले झांसा देते थे कि रोशन बाबा बहुत पहुंचे हुए तांत्रिक हैं. वह घर में दबा धन निकाल देते हैं. बाबा रोशन ने सैकड़ों लोगों के घर से करोड़ों का धन सोना निकाल कर दिया है.

जो महिला इस झांसे में फंस जाती. उस के घर में रोशन और उस के चेले रात में तंत्रमंत्र किया करते थे. वे उस महिला पर वशीकरण करते. फिर उस को नग्न कर के उस के साथ दुष्कर्म करते थे. महिला अगर दुष्कर्म के बाद इन से कुछ कहती तो उसे पिस्तौल दिखा कर डराया जाता. नहीं मानने पर फरजी क्राइम इंसपेक्टर बने आरिफ से धमकवाया जाता. जेल भेजने का डर दिखाया जाता. इस तरह ये लोग उस से रुपए ऐंठ कर चलते बनते.

सरकारी नौकरी की तलाश करने वालों को रोशन बाबा की ऊंची पहुंच का हवाला दे कर लाखों रुपए ठगे जाते. एक युवक से रोशन बाबा और उस के शागिर्दों ने करीब 10 लाख रुपए ठगे थे. इस का मुकदमा फालना थाने में दर्ज हुआ था. बाबा रोशन ने जून, 2019 में राजूराम से कहा, ‘‘राजू, कोई बड़ी मछली फंसाओ, जिस से हमें लाखों रुपए मिलें.’’ ‘‘ठीक है, बाबाजी. मैं देखता हूं.’’ राजू ने उस से कहा.
राजूराम ने किरण का मकान बनाया था. वह जानता था कि किरण बहुत पैसे वाली है और उस का पति और ससुर बाहर काम करते हैं. वह घर में एक बच्चे के साथ रहती है. किरण को अपने जाल में फांसने के लिए राजू जून 2019 में एक दिन किरण के घर जा पहुंचा. राजू ने रोशन बाबा की तंत्रविद्या का खूब बखान किया और उसे तंत्रमंत्र से घर में दबा करोड़ों का सोना निकाल कर देने का झांसा दिया.

किरण उस के झांसे में आ गई. किरण ने राजू से कहा कि यह बात किसी को पता न चले वरना पुलिस तंग करेगी. किरण ने किसी से जिक्र नहीं किया. वह राजू के साथ जुलाई 2019 में बाबा रोशन से मिली. रोशन ने किरण को धर्मबेटी बना लिया और कहा, ‘‘हम बेटी को करोड़पति बना देंगे.’’ किरण ने सोचा रोशन बाबा भले आदमी हैं. उन्होंने उसे धर्मबेटी बनाया है. अब घर में गड़ा धन निकाल कर उसे मालामाल कर देंगे.

अगली शाम रोशन बाबा और राजू किरण के घर पहुंच गए. घर में आ कर रोशन बाबा ने कहा कि तुम्हारे घर में तो करीब 10 करोड़ का सोना दबा है. तंत्रमंत्र काफी दिन करना पड़ेगा. रोशन की बात सुन कर किरण बहुत खुश हुई. बात करोड़ों रुपए के सोने की थी. वह अपने घर में पूजा कराने को तैयार हो गई. इस के बाद किरण के घर में तंत्रमंत्र का झूठा खेल शुरू हो गया. किरण के बेटे को अलग कमरे में सुला कर इन पाखंडियों ने दूसरे कमरे में किरण की मौजूदगी में तांत्रिक क्रियाएं शुरू की. किरण पर वशीकरण किया. किरण के होशोहवास ठिकाने नहीं रहे. फिर रोशन और राजू ने किरण को नग्न कर के उस के साथ दुष्कर्म किया.

वशीकरण खत्म हुआ तो किरण को होश आया, तब उसे महसूस हुआ कि इन लोगों ने उस के साथ दुष्कर्म किया है. इस की शिकायत उस ने उन दोनों से की और कहा कि मैं सब को आप लोगों की करतूत बताऊंगी. फिर रोशन और राजू ने एयरगन पिस्तौल से किरण को जान से मारने की धमकी दी. इतना ही नहीं, उसने फरजी क्राइम ब्रांच इंसपेक्टर बने अपने चेले आरिफ से फोन पर किरण की बात कराई. आरिफ ने भी उसे चुप रहने की धमकी दी और कहा कि वह उसे किसी मामले में फंसा कर जेल भेज देगा. इन लोगों की धमकी से किरण ने अपना मुंह बंद कर लिया.

बाद में रोशन ने किरण को समझाया कि गड़ा धन निकालने में यह भी एक पूजा का हिस्सा है. इस के बाद अकसर तंत्रमंत्र के नाम पर किरण का वशीकरण कर के दुष्कर्म किया जाने लगा. किरण से रुपए भी ऐंठे जाने लगे. एक रोज उन्होंने किरण की गैरमौजूदगी में कमरे की खुदाई की. खुदाई में निकली मिट्टी और पत्थर वगैरह बोरी में डाल दिए. पत्थरों पर सोने के रंग जैसा कैमिकल लगा कर पत्थर सुनहरे कर दिए गए थे और बोरी गड्ढे में रख कर किरण को बुलाकर पत्थर दिखा कर कहा, ‘‘देखो, इन पत्थरों को. ये सोने के बन रहे हैं.’’

भोली किरण फिर भी नहीं समझी. वह इज्जत और धन लुटाती रही. एक दिन आरिफ आया. रोशन बाबा ने किरण को बताया, ‘‘यह क्राइम ब्रांच इंसपेक्टर हैं. इन्हें पता चल गया है कि इस घर में से गड़ा धन निकला है. पुलिस का झंझट हो जाएगा, इसलिए इन्हें 3 लाख रुपए दे दो. वैसे भी करोड़ों का सोना है. 3 लाख के क्या मायने.’’ तब किरण ने 3 लाख रुपए आरिफ खान को दे दिए. काफी दिन बाद भी जब पत्थर सोना नहीं बने तो किरण ने बाबा से पूछा कि क्या बात है. पत्थर तो वैसे ही हैं, जैसे पहले थे. तब बाबा रोशन बोला, ‘‘तुम्हें अपने बेटे की बलि देनी होगी. तब यह पत्थर सोना बनेंगे. इन पत्थरों के सोने में बदलने के बाद तुम्हें सोना बेचने पर करोड़ों रुपए मिल जाएंगे.’’

बेटे की बलि की बात सुन कर किरण बोली, ‘‘मैं बेटे की बलि नहीं दूंगी. मुझे मेरे अब तक दिए 45 लाख रुपए वापस करो.’’ रोशन बाबा ने उसे फिर पिस्तौल दिखा कर डराया. वह रात में वीडियो काल कर के कहता, ‘‘मैं जन्नत में हूं और वापस आ जाऊंगा. ऐसे ही बलि के बाद तेरा बेटा भी जीवित हो जाएगा.’’
कमरे में लाइट इफैक्ट से वह किरण को बरगलाता था. जन्नत में हूं. झूठा नाटक कर के किसी तरह से बेटे को मरवाना चाहता था. मगर किरण ने बलि देने से इनकार कर दिया और पैसा मांगने लगी.

किरण ने ज्यादा दबाव बनाया तब अक्तूबर, 2020 में रोशन बाबा और उस के चेले राजू, आरिफ भाग खड़े हुए. किरण समझ गई कि उस के साथ बहुत बड़ी ठगी हुई है. बारबार अस्मत लूटी गई और 45 लाख रुपए भी ठग लिए. फरवरी, 2021 में जब किरण का पति घर आया. तब किरण ने अपने साथ घटी घटना बताई. पति किरण के साथ सिरयारी थाने पहुंचा और तीनों आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज कराया. रोशन ने ठगी के रुपयों से अपने नाम कुछ नहीं खरीदा. उस ने दूसरों के नाम से ही प्रौपर्टी खरीदी थी. पूछताछ पूरी होने पर कोर्ट के आदेश पर सभी आरोपियों को न्यायिक अभिरक्षा में भेज दिया गया. इस मामले की जांच सीओ डा. हेमंत जाखड़ कर रहे थे.

मैं खेती करना चाहता हूं, जबकि मेरी गर्लफ्रेंड चाहती है कि मैं जौब करूं, मुझे क्या करना चाहिए?

सवाल

मैं 23 वर्षीय युवक हूं. और एक लड़की से प्यार करता हूं जो न केवल मुझे से 2 साल बड़ी है बल्कि मुझ से ज्यादा पढ़ीलिखी भी है. वह भी मुझ से बहुत प्यार करती है और हम दोनों जल्द ही वैवाहिक बंधन में बंधने वाले हैं. मैं एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करता हूं लेकिन मैं कृषि क्षेत्र में अपना काम करना चाहता हूं जबकि वह लड़की चाहती है कि मैं नौकरी ही करूं. मुझे समझ नहीं आ रहा मैं क्या करूं? लड़की की बात मान कर प्राइवेट कंपनी की नौकरी ही करता रहूं या अपनी इच्छानुसार कृषि क्षेत्र में खुद का व्यवसाय करूं. समस्या का समाधान करें.

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जवाब

क्या आप ने उस लड़की से जानने की कोशिश की कि वह क्यों चाहती है कि आप प्राइवेट कंपनी की नौकरी ही करें? आप के नौकरी के बजाय कृषि क्षेत्र में जाने से उसे क्या परेशानी है? पहले यह जानने की कोशिश करें. उस की बात जानने के बाद भी अगर आप कृषि क्षेत्र में ही अपना कैरियर बनाना चाहते हैं तो उसे कृषि क्षेत्र में अपना काम करने के फायदे गिनवाएं और उस की राय बदलने का प्रयास करें. उसे समझाएं कि जिस काम में आप की रुचि है, आप उसे ज्यादा बेहतर ढंग से कर पाएंगे. इन तरीकों से हो सकता है आप उसे समझाने की अपनी कोशिश में सफल हो जाएं और आप की समस्या का समाधान भी हो जाए.

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पश्चिम बंगाल में भाजपा की हार  

पश्चिमी बंगाल ही नहीं, तमिलनाडू और करेल में भी भारतीय जनता पार्टी की हार से यह साबित हो गया है कि भारतीय जनता पार्टी का ऊंचनीच और भेदभाव वाला खेल कम से कम कुछ राज्यों में तो नहीं चलेगा. पश्चिमी बंगाल जिस तरह से छोटी सी, अकेली सी, कमजोर सी ममता बैनर्जी भारतीय जनता पार्टी के खातेपीते दिखते लोगों की धन्ना सेठों की बरात का मुकाबला किया यह काबिले तारीफ था. 214 सीटें जीत कर उस ने भाजपा का इस बार 200 से घर का सपना धराशाई कर डाला.

तमिलनाडू और केरल में भारतीय जनता पार्टी इतनी बेचैन भी नहीं थी. प्रधानमंत्री और गृहमंत्री दिल्ली में कामधाम छोड़छाड़ कर पश्चिमी बंगाल में दिन में 3-3, 4-4 रैलियां करते फिरे जिन में दिखने को सारी भीड़ थी. कुछ ने बताया भी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने करीब 100,000 लोग वेतन पर 4 साल से बंगाल में हर जिले में फैला रखे थे जो रैलियों में भीड़ बढ़ाते थे. अब भीड़ में क्या पता चलता है कि यह बाहरी है या बंगाल का.

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ममता की खासियत रही कि उस ने हिम्मत नहीं हारी, वह रोई गिड़गिड़ाई नहीं. वह दूसरी पाॢटयों के पीछे भी नहीं भागी. उस ने अपने विधायकों और सांसदों की ब्लैकमेल के जरिए चोरी को सीना तानकर सहा, उस की पार्टी ने सीबीई और एनफौर्समैंट डिपाईवैंट का कहर झेला, उस ने चुनाव आयोग का साफ दिखता एकतरफा केंद्र सरकार की जी हजूरी देखी. पर यह बंगाल की जनता भी देख रही थी.

बंगाल को समझ आ गया था कि भाजपा का मकसद तो पूजापाठी लोगों को सत्ता में बैठना है. जो जमींदारी पहले अंग्रेजों ने थोपी थी, वह अब मंदिरों सरकारी दफ्तरों, सरकार के तलूए चाटते धन्ना सेठों को सौंपनी है. ममता छोटे मकान में खुश है, नरेंद्र मोदी और अमित शाह अपने लिए राजपत्र को तुड़वा कर विशाल बंगले जिन में गुफाएं भी होंगी बनवा रहे हैं. बंगाल की भूखी जनता को मालूम था कि ये लोग देने, बांटने नहीं लेने व छीनने आ रहे हैं.

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देश के दूसरे राज्य में अगर भाजपा का पैर जमा है तो इसलिए कि भाजपा के बहुत से लोग छीन और लूट कर मजबूत हो गए हैं और वे जातजात, धर्मधर्म में अलगाव करा के लोगों के कर्म का फल गीता के उपदेश पर डकार रहे हैं. भाजपा ने हर जाति को हर गांव में एक छोटा मंदिर बनवा दिया है जो भाजपा कार्यालय का काम भी करता है और सरकार के अत्याचारों के समय जनता का मुंह बंद रखने का काम भी करता है. सदियों से इस देश में केवट, छींवर, निषाद, एकलव्य बस देते रहे हैं. लेना तो एक तरफा रहा है. पश्चिमी बंगाल में यह रुका है हालांकि कोई बड़ा बदलाव नहीं होने वाला.

यह देश उसी तरह चलता रहेगा. तानाशाही चाहे दिल्ली की हो, कोलकाता, चेन्नई की हो या गली के महाजन चालू रहेगी. जब तक आम मेहनत क्या धर्म और जाति की दीवारें नहीं तोड़ता, पूजापाठ के फंदे के नहीं निकलता, ये चुनाव नतीजे रेगिस्तान में बारिश से ज्यादा नहीं है. सारा पानी कुछ ही देर में रेत में जज्ब हो जाएगा.

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