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पश्चिम बंगाल चुनाव : ओवैसी के साथ हुआ असली ‘खेला’

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव ने भाजपा को करारी चोट पहुंचाई है, जिसका दर्द लम्बे समय तक बना रहेगा और इसका असर अलगे साल कई अन्य राज्यों में होने वाले चुनाव पर भी दिखेगा, खासकर उत्तर प्रदेश के चुनाव पर.

बंगाल में चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा के तमाम बड़े नेता सिर्फ मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर ही पिले रहे. बंगाल की बेटी के लिए वहां के मंच से प्रधानमंत्री मोदी का बार बार ‘दीदी ओ दीदी’ जैसा कटु और व्यंगात्मक सम्बोधन बंगाल की जनता को कतई रास नहीं आया.

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दीदी ने कहा ‘खेला होबे’ तो भाजपा के साथ बंगाल में ‘खेला’ हो गया, मगर इससे बड़ा खेला हुआ भाजपा की बी-टीम के नाम से पुकारी जाने वाली असद्दुदीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम के साथ.

बिहार की चार सीटों पर जीत का परचम लहराने के बाद अति उत्साह में बंगाल के रण में उतरने वाले असदुद्दीन ओवैसी को बंगाल में जो करारी शिकस्त मिली है उसकी उन्होंने कल्पना भी नहीं की होगी. बिहार के रास्ते पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में सियासी राह तलाशने उतरे असदुद्दीन ओवैसी के सारे सपने धराशाही हो गए. मुस्लिम समुदाय ने असदुद्दीन ओवैसी पर रत्ती भर भरोसा नहीं जताया. बंगाल के मुसलमानों ने ओवैसी भाईजान को इतनी बुरी तरह से नकारा कि उन्हें सिर्फ 0.01% ही वोट हासिल हुए जबकि ओवैसी से ज्यादा वोट तो मायावती की पार्टी बीएसपी को बंगाल में मिल गए. बीएसपी ने बंगाल में 0.39% वोट हासिल किये हैं.

बंगाल के मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में असदुद्दीन ओवैसी ने इस उम्मीद से अपने सात मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे कि ये सीटें तो हर हाल में उनको हासिल हो जाएंगी, मगर बंगाल के मुसलमानों ने ओवैसी को इस बुरी तरह दुत्कारा कि उनके सातों उम्मीदवारों को अपनी जमानत बचाने भर के वोट हासिल नहीं हो पाए. ओवैसी को चुनाव से पहले फुरफुरा शरीफ ने झटका दिया था, तो चुनाव के बाद मतदाताओं ने उन्हें ‘सातों’ खाने चित कर दिया और सभी सीटों पर उनकी पार्टी के प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गयी.

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सच पूछें तो दुनिया में बोली और पहनावे का रिश्ता बड़ा मजबूत होता है. देश के कुछ राज्यों ने इस रिश्ते को बखूबी सम्भाला हुआ है. इसमें एक राज्य पश्चिम बंगाल भी है. बंगाल का मुसलमान बंगाल के हिन्दू की तरह ही बांग्लाभाषी है. भाषा और संस्कार को लेकर वह एक दूसरे में ऐसे रचे बसे हैं कि लाठी मार कर इस पानी को कोई अलग नहीं कर सकता है. टीएमसी सांसद और अभिनेत्री नुसरत जहाँ का उदाहरण ले लीजिये. नुसरत जहाँ और किसी बंगाली हिन्दू स्त्री के पहनावे, श्रृंगार, बोली-भाषा में कोई फर्क नहीं कर सकते हैं. बंगाली मुसलमान नुसरत जहाँ को अपने ज़्यादा निकट देखता है और ओवैसी की दाढ़ी-टोपी वाली शख्सियत से डरता है, जो कि साम्प्रदायिकता का खुला प्रदर्शन हैं.

बंगाली आदमी मन का मीठा और मोहब्बती होता है. बंगाली हिन्दू और बंगाली मुसलमानों के बीच कितने ही विवाह सम्बन्ध होते रहते हैं मगर वहां लव जिहाद जैसी घटिया और ओछी बातें कभी सुनने में भी नहीं आतीं. बंगाल में दुगापूजा-कालीपूजा में मुसलामानों के योगदान को कम करके नहीं आंका जा सकता है. ये पूजा समारोह मुसलामानों के बगैर पूरे ही नहीं हो सकते हैं. बंगाल में हज़ारों मूर्तिकार मुस्लिम हैं जिनके हाथों से माँ दुर्गा और माँ काली की मूर्तियां गढ़ी जाती हैं. देवी के परिधानों की सिलाई मुस्लिम दर्जियों के द्वारा होती है. उनके आभूषण मुस्लिम जोहरी द्वारा बनाये जाते हैं. मुसलमान मालियों द्वारा दुर्गापूजा के भव्य पंडालों को पूरी श्रद्धा के साथ लाखों फूलों से सजाया जाता है और देवी पर चढ़ने वाली खूबसूरत फूलमालाएं मुस्लिम घरों से बन कर आती हैं.

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ऐसे में बंगाल की बेटी ममता बैनर्जी का दुलार हिन्दुओं और मुसलमानों पर बराबर है और इस अपनत्व और प्रेम को साम्प्रदायिकता के रंग में रंगा कोई ‘बाहरी’ समझ ही नहीं सकता है. ममता बनर्जी ने कभी बंगाल में जाति-धर्म की ओछी राजनीति नहीं की. उन्होंने कभी धर्म के नाम पर समाज को बांटने का काम नहीं किया. मगर भाजपा और ओवैसी जैसे नेता समाज को बाँट कर, एक धर्म को दूसरे धर्म से लड़वा कर अपना राजनितिक उल्लू सीधा करते हैं.

चुनाव नतीजों ने यह साफ़ कर दिया है कि बंगाल का मुसलमान जहाँ भाजपा से नफरत करता है वहीँ ओवैसी की साम्प्रदायिक बातों को भी वह बखूबी समझता है. बंगाली मुसलमान बंगाल में ‘हिन्दू-मुस्लिम’ विभाजन नहीं चाहता, इसलिए ओवैसी को वहां से दुत्कार कर भगाया गया है.

बता दें कि एआईएमआईएम ने चुनाव में उन सात क्षेत्रों को चुना था जहाँ मुसलमानो की संख्या पचास फीसदी से ज़्यादा है. इन सातों जगहों पर उसने अपने मुस्लिम उम्मीदवार उतारे. इतहार सीट पर मोफाककर इस्लाम, जलंगी सीट पर अलसोकत जामन, सागरदिघी सीट पर नूरे महबूब आलम, भरतपुर सीट पर सज्जाद हुसैन, मालतीपुर सीट पर मौलाना मोतिउर रहमान, रतुआ सीट पर सईदुर रहमान और आसनसोल उत्तर सीट से दानिश अजीज को मैदान में थे. मगर मुस्लिम बहुल क्षेत्र होने के बावजूद ओवैसी के प्रत्याशियों को यहाँ हज़ार वोटों के भी लाले पड़ गए.

मोफाककर इस्लाम को 1000 से भी कम वोट मिले. सागरदिघी सीट पर 65 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं, लेकिन यहाँ नूरे महबूब आलम को पांच सौ वोट भी नहीं मिले. वहीं, मालतीपुर सीट पर 37 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं, लेकिन पार्टी प्रत्याशी मौलाना मोतिउर रहमान भी हजार का आंकड़ा नहीं पार कर सके. रतुआ विधानसभा इलाके में 41 फीसदी, भरतपुर में 58 फीसदी,  आसनसोल उत्तर में 20 फीसदी तो जांगली विधानसभा इलाके में 73 फीसदी मुस्लिम मतदाना हैं. लेकिन किसी भी सीट पर पार्टी के प्रत्याशी 1000 का आंकड़ा पार नहीं कर सके.

साफ़ है कि बंगाल का मुसलमान अपना नफ़ा-नुकसान खूब समझता है. उसकी आने वाली पीढ़ियों के लिए कौन लोग ठीक हैं और कौन नहीं, वह अच्छी तरह समझ रहा है. वह बांग्ला भाषी को जहाँ तवज्जो देता है, वहीँ धर्म के नाम पर किसी के उकसावे में भी नहीं आता है. ये बातें बंगाल को ताकत देती हैं. इसी के साथ यह भी ध्यान में रखना होगा कि बंगाल में बहुतेरे बांग्लादेशी हों मगर इतने सालों में वह भारत की माटी में इतने रच बस चुके हैं कि इस मिटटी को छोड़ कर जाने की बजाय यहाँ मर जाना पसंद करेंगे. बंगाली हिन्दुओं के साथ उनके रोटी-बेटी के सम्बन्ध बन चुके हैं. रोज़गार-कारोबार के रिश्ते हैं. ऐसे में जब भाजपा सीएए और एनआरसी की बात करती है तो इनसे बंगालियों को दहशत होती है. वहीँ आदिवासी समूह हैं जिन्हे जबरन ‘हिन्दू’ लिखा जाने लगा है. इस जबरदस्ती ने उन्हें संघ और भाजपा के प्रति नफरत से भर दिया है. इन सबको उनकी निजी स्वतंत्रता के साथ अगर कोई साथ ले कर चलने का बूता रखता है तो वह हैं – ममता बनर्जी. भाजपा, ओवैसी या पीरजादा जैसे साम्प्रदायिक सोच रखने वाले बंगाल की नब्ज़ कभी पकड़ ही नहीं सकते.

 

कोरोना महामारी में ऐसे मदद करेगा यशराज फिल्म्स, करवाएगा 30 हजार लोगों का वैक्सीनेशन

भारत में कोरोना महामारी को देखते हुए कई सीरियल्स और फिल्म्स की शूटिंग पर रोक लगा दिया गया है. महाराष्ट्र सरकार ने भी लॉकडाउन लगा दिया है. जिसके बाद सभी लोग घर के अंदर बंद हो गए हैं. इसी बीच वैक्सीनेशन का नया फेज भी शुरू होने वाला है.

ऐसे में यशराज फिल्म्स ने इंडस्ट्री के मेंबर्स का मुफ्त में टीका लगवाने का फैसला लिया है. FWICE के रिपोर्ट के मुताबिक यशराज फिल्म्स करीब इंडस्ट्री के 30 हजार लोगों को मुफ्त में टीका लगवाएंगी. दिए गए लेटर में यशराज फिल्म्स ने लिखा है कि कई काम करने वाले मजदूर बहुत ज्यादा परेशान है. ऐसे में अगर उन्हें समय से टीका लगवाया जाएगा तो वह जल्द काम पर वापस आ जाएंगे और रुक हुए काम फिर से शुरू हो जाएंगे.

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इसके साथ ही लेटर में यशराज फाउनडेंशन ने उद्धव ठाकरे से रिक्वेस्ट किया है कि उन्हें वैकशिन खरीदनें कि अनुमति दें, पैसे यशराज फिल्म्स की तरफ से दिया जाएगा.

वहीं FWICE ने भी मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से रिक्वेस्ट किया है कि उन्हें वैंकशिनेशन के लिए अनुमति दी जाए. साथ ही मेंबर्स ने जल्द वैक्सीनेेटेंड होने कि बात कही है. उन्होंने लेटर में लिखा है कि वैक्सीनेशल न बीमारी को कम करेगा राज्य में कम होती इकॉनामी को भी कम करेंगा.

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वहीं इस खबर के बाद से कई कलाकार काफी ज्याजा एक्साइटेड नजर आ रहे हैं.सभी लोग वैक्सीनेशन लगवाने के लिए तैयार हैं. कुछ लोगों ने इसपर कमेंट करते हुए कहा है कि मैं काम करने के लिए तैयार हूं वैक्सीनेशन के बाद. वहीं इस पहल को सराहनीय बताया जा रहा है जो यशराज फिल्म्स की तरफ से उठाया गया है.

‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में नया टर्न, कार्तिक की कार तोड़ेगा रणवीर!

स्टार प्लस के सुपरहिट धारावाहिक ये रिश्ता क्या कहलाता है में आए दिन कुछ न कुछ धमाकेदार देखने को मिलते रहता है. इस सीरियल में रणवीर की एंट्री कराने के बाद से इसमें ट्विस्ट आ गया है. जिसकी वजह से दर्शकों की चांदी हो गई है.

अब तक सीरियल में दिखाया गया है कि रणवीर कार्तिक और सीरत की सगाई को देखने के बाद गुस्से से चला जाएगा. रणवीर गुस्से में एक्सीडेंट कर बैठता है और फिर वह अस्पताल में भर्ती हो जाता है जिसके बाद से दोनों को पता चलता है और वह दोनों रणवीर को ठीक करने के लिए चाहते हैं.

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सीरत लगातार रणवीर को देखते हुए  यह सोच रही है कि आखिरकर इसने ऐसा क्यों किया. आने वाले एपिसोड़ में यह दिखाया जाएगा कि रणवीर को होश आ जाएगा और वह गुस्से से लाल नजर आ जाएगा.

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रणवीर का गुस्सा इतना ज्यादा बढ़ जाएगा कि वह बिना सोचे-समझे कार्तिक के कार पर हमला कर देगा. और कार्तिक के कार को तोड़ने के बाद से पुलिस उसे गिरफ्तार कर लेगी.

अब रणवीर की हरकतों को इसकी क्या सजा मिलेगी, वह आपको अलगे एपिसोड़ में दिखाया जाएगा. अब रणवीर के गिरफ्तारी के बाद से कार्तिक और सीरत परेशान हो जाएगा.

रणवीर की इस हरकत से कार्तिक और सीरत के शादी पर क्या असर पड़ेगा, इस बाद का अंदाजा शायद किसी को भी नहीं है. अब दर्शकों के लिए यह देखना काफी ज्यादा दिलचस्प होगा कि आखिर कर जब इस बात का पता गोयनका परिवार को लगेगा तो क्या होगा.

ममता बनर्जी ने पकड़ा ‘राजसूय यज्ञ का घोडा‘

प्रधानमंत्री के अश्वमेघ यज्ञ का घोडा ममता बनर्जी ने पकड लिया. ममता ने बता दिया कि बाकी राज्यों ने भले ही दासता स्वीकार कर ली पर बंगाल केन्द्र की गलत नीतियो के खिलाफ खडा रहेगा. 2024 के लोकसभा चुनाव में विपक्ष को जिस चेहरे की जरूरत थी ममता बनर्जी के रूप में मिल गया है. ममता ने भी एलान कर दिया है कि ‘एक पैर से बंगाल जीता है दो पैर से दिल्ली जीतेगी‘.

जिस राजा को चक्रवर्ती सम्राट बनना होता है. पुराणों के अनुसार उसको ‘राजसूय यज्ञ‘ सम्पन्न कराकर एक अश्व यानि घोडा छोडना पडता है. वह घोडा अलग अलग राज्यों और प्रदेशों में घूमता फिरता है. जो भी राज्य अश्व को अपने राज्य से जाने देता था उसका मतलब होता था कि उसने ‘अश्व’ के मालिक राजा की दासता को स्वीकार कर ली है. जो राज्य ‘अश्व’ को पकड लेता था उसको ‘अश्व’ के पीछे चलने वाली राजा की सेना से मुकाबला करना होता था. इसको ‘अश्वमेघ यज्ञ’ भी कहा जाता था. पुराणों में बताया गया है कि चक्रवर्ती सम्राट बनने के लिये राजा को ‘राजसूय यज्ञ’ कराना पडता था. इसके बाद यज्ञ को अश्व छोडा जाता था. जब यज्ञ का अश्व वापस अपने राज्य की सीमा में आ जाता था तब यज्ञ को पूरा माना जाता था और राजा को चक्रवर्ती सम्राट माना जाता था. महाभारत काल में युद्विष्ठिर और रामायण काल में राजा रामचन्द्र ने ‘राजसूय यज्ञ’ किया था. इस कारण इनको चक्रवर्ती सम्राट कहा जाता है.

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लोकतंत्र में राजा भले ही नहीं रहे हो पर राजाओ के जैसी चाहत रखने वाले नेता तो है ही. राज्य के विस्तार की आकांक्षा इन नेताओं में भी होती है. खासतौर पर जो नेता पुराणों को आदर्श मानकर चलता हो. भारतीय जनता पार्टी में जब जनसंघ हुआ करती थी तब से उसके मन में भारत में ‘हिन्दूराष्ट्र’ स्थापित करने की कल्पना थी. भाजपा की नींव कही जाने वाले राष्ट्रीय स्वय सेवक संघ यानि आरएसएस ने अपने तीन प्रमुख लक्ष्य को सामने रखकर काम करना शुरू किया था. यह तीन लक्ष्य अयोध्या में राम मंदिर, कश्मीर से धारा 370 को हटाना और समान नागरिक संहिता कानून को बनाना था.

2014 के लोकसभा चुनाव के बाद जब केन्द्र में नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बने तब यह लगा  की अब संघ के तीनो लक्ष्यों को पूरा करने का समय आ गया है. इन लक्ष्यों को पूरा करने के लिये मोदी की सरकार ने इसके रास्ते में बाधा खडी करने वाली संस्थाओं को भी कमजोर करना शुरू किया. संघ को यह लगने लगा था कि मोदी ही ऐसे नेता है जिनके कार्यकाल में हिन्दूराष्ट्र का सपना पूरा हो सकता है. ऐसे में चक्रवर्ती सम्राट के रूप में मोदी की ताजपोशी जरूरी थी. उसके लिये भारत विजय यानि राजसूय यज्ञ का पूरा होना जरूरी था.

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चक्रवर्ती सम्राट बनने की ललक:
2014 का लोकसभा चुनाव जीतने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद की छवि को अंतर्राष्ट्रीय नेता के रूप में स्थापित करने का काम शुरू किया. देश के अंदर भी अपनी छवि को अलग तरह से बनाने का काम किया. नरेन्द्र मोदी का अपनी इमेज मेंकिग पर पूरा ध्यान भी था. वह एक ऐसे नेता के रूप में दिखाई देना चाहते थे जो किसी से हारे नहीं. हर काम कर ले. 2019 का लोकसभा चुनाव जीतने के बाद उनकी यह इच्छा कुछ ज्यादा ही बलवती होने लगी. इस को पूरा करने के लिये भाजपा ने अपनी सरकार के कामों की प्राथमिकता में काम की जगह चुनाव जीतने को प्रमुखता दी. हर काम की सफलता को चुनावी जीत से जोडना शुरू किया. जैसे नोटबंदी ककी जब आलोचना शुरू हुई तो उसके बाद उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव जीत कर भाजपा नेताओ ने तर्क दिया कि अगर जनता नोटबंदी से नाराज होती तो वोट कैसे देती ? जब कोरोना काल में 3 माह का लौकडाउन की आलोचना हुई तो बिहार चुनाव जीत कर वही तर्क दोहराया गया. चुनाव जीतने की चाह में वह विकास के कामों को प्राथमिकता देने में चूकने लगी.

इसी दौर में कोरोना का हमला हुआ. यहां भी भाजपा ने कोरोना पर नियंत्रण की जगह पर अपनी इमेज मेकिंग का काम जारी रखा. 2020 में जब कोरोना ने दबे पांव भारत में घुसना शुरू किया तो नरेन्द्र मोदी अमेरिका के प्रधानमंत्री डोनाल्ड टंªप के साथ नमस्ते टंªप का आयोजन कर रहे थे. कोरोना नियंत्रण से पहले उस समय भी मध्य प्रदेश में उलटफेर को प्राथमिकता दी गई. कोरोना संकट के दौरान ही बिहार प्रदेश के भी चुनाव हुये. एक तरफ केन्द्र सरकार 3 माह लंबे लौकडाउन को लगाकर कोरोना को रोकने की बात करती रही दूसरी तरफ चुनाव दर चुनाव अपनी राह पर चलती रही.

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2021 में  जब कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर शुरू हुई उस समय भी केन्द्र सरकार ने जनता की मुश्किलो को कम करने की जगह पर अपनी विजय यात्रा को जारी रखने के लिये चुनाव को रोकना उचित नही समझा. जिस समय सरकार की पूरी मशीनरी को कोरोना से लडने पर लगना चाहिये था उस समय सरकार चुनाव लडने में व्यस्त रही. लिहाजा देश की हालत खराब हो गई. जब पूरा देश त्राही़़त्राही कर रहा था तब प्रधानमंत्री अपने ‘राजसूय यज्ञ’ को पूरा करने में लगे थे. युद्व में जीत हार किसी कह हो पर लाशे जनता की ही गिरती है. कोरोना  महामारी में लोग मरते रहे और राजा का विजय अभियान जारी था. भाजपा का यह राजसूय यज्ञ तो पूरा नहीं हुआ लेकिन जनता के मरने के शमशान भर गये.

जिस समय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को जनता का हित देखना था वह अपनी जीत के सपने देखते रहे. प्रधानमंत्री का सपना तो पूरा नहीं हुआ उल्टे उनकी जो छवि बनी थी वह भी धूमिल हो गई. उनको जनता के सेवक की जगह एक महत्वाकांक्षी नेता के रूप में देखा जाने लगा जिसे जनता से अधिक अपनी छवि की चिता थी. अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उनकी आलोचना शुरू हुई. बंगाल चुनाव में मिली हार से चुनावी विजय यात्रा रूक ही गई. उनके अश्वमेघ यज्ञ के घोडे को एक कमजोर महिला ने पकड लिया. उसने चक्रवर्ती राजा के सामने घुटने टेकने से मना कर दिया. इसका प्रभाव 2024 के लोकसभा चुनाव पर पडेगा. विपक्ष को अपनी अगुवाई करने वाला नेता ममता बनर्जी के रूप में मिल गया है. भाजपा को विजय तो मिली ही नहीं देश को कोरोना के सक्रमण मे ढकेलने का अपयश भी मिल गया.

हिन्दू राष्ट्र का अश्व धीरेधीरे मोदी सरकार ने यह तीनो लक्ष्य हासिल कर लिये. अब सामने एक ही लक्ष्य था देश को हिन्दूराष्ट्र बनाने का. भाजपा ने मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस को पूरी तरह से हाशिये पर ढकेल दिया था. एक एक कर देश के ज्यादातर प्रदेशों में भाजपा की सरकार बन चुकी थी. जिन प्रदेशों में भाजपा की सरकार नहीं बनी वहां के नेताओं को भाजपा ने अपने हिसाब से घुटने टेकने को मजबूर कर दिया. इसका सबसे बडा उदाहरण जनता दल यूनाइटेड के नेता नीतीश कुमार का है. 2014 के लोकसभा चुनाव के नीतीश कुमार को तीसरे मोर्चे के प्रधानमंत्री पद के दावेदार के रूप में देखा जाता था. इसका प्रमुख कारण यह भी था कि नीतीश कुमार ने ही नरेन्द्र मोदी का खुलकर विरोध किया था. कुछ ही समय में भाजपा ने ऐसी हालत नीतीश कुमार के सामने खडी कर दी कि वह भाजपा के सामने घुटने टेक कर खडे हो गये.
बात केवल नीतीश कुमार तक ही सीमित नहीं रही उत्तर प्रदेश में मायावती, मुलायम सिंह यादव, पंजाब में अकाली दल, कश्मीर में फारूख अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती दिल्ली में अरविंद केजरीवाल, महाराष्ट्र में शिवसेना जैसे दल और उनके नेता या तो घुटने टेकने को मजबूर हो गये या भाजपा के विरोध की राजनीति को चुपचाप स्वीकार कर लिया. 2019 में लोकसभा चुनाव जीतने के साथ ही साथ भाजपा में इस बात का अहम बन गया कि अब भारत में उसको विरोध करने वाले नेता नहीं रह गये है. जिन राज्यो से विरोध के स्वर उठने की उम्मीद थी वहां के नेताओं को उनके प्रदेशों में ही उलझाकर रखने का काम किया गया. केन्द्र सरकार ने ऐसी नीतियां बनानी शुरू कर दी जिसमें प्रदेशों की ताकत खत्म हो जाये और वह केन्द्र की सरकार के सामने घुटने टेक दे. भाजपा की योजना थी कि 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले सभी राज्यों में ऐसा माहौल बन जाय. जिससे 2024 के लोकसभा चुनाव में विरोध करने वाले न रहे.

ममता ने पकडा अश्वमेघ यज्ञ का घोडा: 2021 में सबसे बडे राज्य पश्चिम बंगाल में विधानसभा का चुनाव था. भाजपा को लगा कि यह समय सबसे उचित है जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को चक्रवर्ती सम्राट बनाया जा सकता है. इस लक्ष्य को हासिल करने के लिये भाजपा ने चुनाव रूपी ‘अश्वमेघ का घोडा’ छोड दिया. यह घोडा पश्चिम बंगाल की तरफ चल पडा. अब तक पश्चिम बंगाल ही ऐसा राज्य था जिसने केन्द्र सरकार के सामने घुटने नहीं टेके थे. पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की पिछले 10 साल से सरकार चल रही थी. तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी वहां मुख्यमंत्री  थी. भाजपा ने अपने ‘अश्वमेघ का घोडा‘ जब छोडा तब उसके लिये पश्चिम बंगाल जीतना जरूरी था.

2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को वहां अच्छी सफलता मिल चुकी थी. ऐसे में भाजपा को पक्का यकीन था कि वह पश्चिम बंगाल जीतने में सफल होगी और उसके अश्वमेघ यज्ञ का घोडा वापस दिल्ली आ जायेगा. भाजपा ने अपने अश्वमेघ यज्ञ के चुनावी घोडे को पश्चिम बंगाल विजय के लिये छोडा तो उसके पीछे अपनी पूरी सेना भी तैयार कर दी. इस चुनावी विजय यात्रा को सफल बनाने के लिये भाजपा ने अपने 3 लाख कार्यकर्ताओं को पश्चिम बंगाल में लगा दिया था. इसके साथ ही साथ चक्रवर्ती सम्राट बनने की राह पर चलने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले गृहमंत्री अमित शाह, भगवाधारी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के हाथ में प्रचार की कमान थी. इसके साथ ही साथ केन्द्र की तमाम एजेंसी भी इसमें मदद करने को तैयार खडी थी.

चुनाव रूपी अश्वमेघ यज्ञ का घोडा जैसे ही पश्चिम बंगाल में पहंुचा वहां की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने घोडा पकड लिया. ममता बनर्जी ने भाजपा के ‘अश्वमेघ के घोडे’ के सामने झुकने से इंकार कर उसकी लगाम थाम ली. घोडे की लगाम थामते ही पीछे चल रही सेना ने चुनावी युद्व का ऐलान कर दिया. पश्चिम बंगाल के चुनावी इतिहास में सबसे अधिक समय तक 8 चरणों में चुनाव चला. एक तरफ चतुरर्णी सेना थी तो दूसरी तरफ ममता बनर्जी अकेले थी. उनके पैर में चोट लगी थी. वह व्हीलचेयर पर थी. सूती धोती और पैर में हवाई चप्पल पहन कर पूरे चुनाव अभियान को चलाने में लगी रही.

भाजपा ने इस ‘अश्वमेघ यज्ञ’ को जीतने के लिये चक्रव्यूह की रचना की और ममता बनर्जी को उनके निर्वाचन क्षेत्र नंदीग्राम में घेरने का पूरा काम किया. ममता बनर्जी को पता था कि अगर उन्होने नंदीग्राम बचाने पर ध्यान दिया तो पश्चिम बंगाल की लडाई नहीं लड पायेगी. ममता बनर्जी ने अपने प्रचार को महत्व ना देकर पूरे चुनाव पर ध्यान दिया. ममता बनर्जी नंदीग्राम हार गई पर भाजपा के चुनावी विजय अभियान को रोक दिया. पश्चिम बंगाल में भाजपा के राजसूय यज्ञ के घोडे को पकड लिया गया.

मदर्स डे स्पेशल : काश, मेरी बेटी होती-भाग 3

‘‘कैसा महिला सशक्तीकरण?’’ वह आश्चर्य से कहती और जयंति व शोभा के आगे बड़बड़ा कर अपनी भड़ास निकालती. उस की यह विचारधारा उन दोनों शिक्षित महिलाओं को भी प्रभावित करती, पर बाहरी तौर पर. क्योंकि, वे सीधीतौर पर तीसरी पीढ़ी से अभी प्रभावित नहीं हो रही थीं. पर शोभा उन दोनों के अनुभव सुनसुन कर बहू के बारे में तरहतरह के पूर्वाग्रहों से ग्रस्त हो बैठी थी.

पहले तो बेटा ही इतना नखरेबाज था, ऊपर से बहू न जाने कैसी हो. बहू की मनभावन काल्पनिक तसवीर उस ने अपने मस्तिष्क के कैनवास से पूरी तरह मिटा दी थी. रक्षा ठीक कहती है, आजकल की ऐसी बिगड़ैल बेटियां ही तो बहुएं बन रही हैं. आखिर, ऊपर से थोड़े ही न उतरेंगी. उस का वर्षों का मासूम सा सपना भी दिल ही दिल में दम तोड़ चुका था. जब वह सोचा करती थी कि काश, उस की भी बेटी होती. बेटी तो नहीं हुई पर बड़े होते बेटे को देख कर वह नन्हा सा ख्वाब पालने लगी थी कि उस की प्यारी सी बहू आएगी और उस का वर्षों का बेटी का सपना पूरा हो जाएगा. पर रक्षा की बातों से उस ने यह उम्मीद भी छोड़ दी थी.

अब वह मन ही मन हर आने वाले संकट के लिए तैयार हो गई थी. वह उम्र में उन दोनों से थोड़ी छोटी थी. पति की अच्छी आय के चलते उस का घर भी उन दोनों से बड़ा था. उस ने सोच लिया था कि बहू के साथ ज्यादा मुश्किल हुई तो बेटेबहू को ऊपर के पोर्शन में शिफ्ट कर देगी. रक्षा सही कहती है हमारे लिए महिला सशक्तीकरण के माने कब आकार लेगा.

बेटे ने 31वें साल में कदम रख दिया था. अब वह भी चाह रही थी कि बेटे का विवाह कर वह अपनी जिम्मेदारियों से निवृत्त हो जाए. शोभा के पति सुकेश भी सोचते थे कि उन के रिटायरमैंट से पहले बेटे का विवाह निबट जाए तो अच्छा है. पर जैसे ही बेटे से विवाह की बात छेड़ते, बेटा बहाने बना कर उठ खड़ा होता. जब भी किसी रिश्ते के बारे में बात चलती, बेटा हवा में उड़ा देता. जब भी किसी लड़की की तसवीर दिखाई जाती तो परे खिसका देता. यह देखतेदेखते एक दिन वह उखड़ ही गई, ‘‘ऐसा कब तक चलेगा ऋषभ? कब तक शादी नहीं करेगा तू?’’

‘‘अभी जल्दी क्या है मम्मी? आप तो, बस, शादी के पीछे ही पड़ जाते हो,’’ वह उठते हुए बोला. ‘‘मैं तु झे आज उठने नहीं दूंगी. 30 साल का हो गया, अभी शादी की उम्र नहीं हुई, तो कब होगी?’’

‘‘मम्मी. यह आप की ढूंढ़ी लड़कियां आखिर मु झे क्या पता कि ये कैसी हैं. एकदो मुलाकातों में किसी के बारे में कुछ पता थोड़े ही न चलता है.’’ ‘‘तो फिर कैसे देखेगा तू लड़की?’’

‘‘मैं जब तक लड़की को 2-4 साल देखपरख न लूं, हां नहीं बोल सकता.’’ ‘‘क्या मतलब?’’ शोभा आश्चर्यचकित हो बोली. ‘‘मतलब साफ है, मैं अरैंज्ड मैरिज नहीं करूंगा.’’

‘‘तो क्या तू ने कोई लड़की पसंद की हुई है?’’ ऋषभ बिना जवाब दिए अपने कमरे में चला गया. शोभा उस के पीछेपीछे दौड़ी, ‘‘बोल ऋषभ, तू ने कोई लड़की पसंद की हुई है?’’

‘‘हां.’’ ‘‘तो फिर बताता क्यों नहीं, इतने दिनों से हमें बेवकूफ बना रहा है.’’ ‘‘बेवकूफ नहीं बना रहा हूं. बता इसलिए नहीं रहा था कि मेरी पसंद को आप लोग पसंद कर पाओगे या नहीं.’’

‘‘तेरी पसंद अच्छी होगी तो क्यों नहीं पसंद करेंगे. पर तू विस्तार से बताएगा उस के बारे में.’’ ‘‘क्या सुनना है आप को? लड़की सुंदर है, शिक्षित है. मेरी तरह इंजीनियर है. ठीकठाक सा परिवार है पर…’’‘‘पर क्या?’’

‘‘अगर आप के शब्दों में कहूं तो वह छोटी जाति की है. उसी जाति की जिन जातियों के आरक्षण का मुद्दा हमेशा चर्चा का विषय बना रहता है और जिन जातियों पर देश की राजनीति हमेशा गरम रहती है और पापा का ब्राह्मणवाद… वह तो घर के नौकरचाकरों तक पर हावी रहता है. वे तो चाहते हैं कि घर में नौकर भी हो तो ब्राह्मण हो. ऐसी स्थिति में…? और मैं कहीं दूसरी जगह शादी कर नहीं सकता. इसलिए आप मेरी शादी की बात तो भूल ही जाओ.’’

शोभा का मुंह खुला का खुला रह गया. उस की स्थिति देख कर ऋषभ परिहास सा करता हुआ बोला, ‘‘इसीलिए कहता हूं मु झे ही बेटा व बहू दोनों सम झ लो और मस्त रहो,’’ कह कर वह कमरे से बाहर चला गया.

शोभा जड़ खड़ी रह गई. रक्षा और जयंति के बच्चों ने तो उन का सुखचैन ही छीना था पर उस के बेटे ने तो उसे जीतेजी ही मार दिया. घर से भी साधारण और जाति से भी छोटी. जिस लड़की के आने से पहले ही दिल में फांस चुभ गई हो, दिलों में दीवार खड़ी होने की पूरी संभावना पैदा हो गई. उस के घर में आने पर क्या होगा, सोचा जा सकता है. बेटा तो फिर से अपनी दिनचर्या में मस्त और व्यस्त हो गया पर उसे ज्वालामुखी के शिखर पर बैठा गया. उसे पता था, बेटे के हाथ पीले करने हैं तो बात तो माननी ही पड़ेगी. वह पति से बात करने की कूटनीति तैयार करने लगी. बहुत मुश्किल था सुकेश के ब्राह्मणवाद से लड़ना. कई बार तो उस की खुद की भी बहस हो जाती थी इस बात पर सुकेश से. पर उसे नहीं पता था कि ऋषभ उसे इस नैतिक दुविधा में डाल देगा.

खैर डरतेघबराते जब उस ने सुकेश को बताया तो घर कुरुक्षेत्र का मैदान बन गया. युद्ध का आगाज हो जाने के कारण वह बिना किसी जतन के बेटे के पाले में फेंक दी गई. और सुकेश अपने पाले में अकेले रह गए. नित तोपगोले दागे जाते. दोनों पक्ष व्यंग्यबाणों से एकदूसरे को घायल करने में कोताही न बरतते. कई तरह के तर्कवितर्क होते पर महिला सशक्तीकरण का भूत कुछकुछ शोभा के दिमाग को वशीभूत कर चुका था, इसलिए वह डटी रही. आखिर सुकेश को अपने तीरतरकश जमीन पर रखने ही पड़े. असहाय शत्रु की तरह वे शरण में आ गए इस शर्त पर कि विवाह के बाद बेटेबहू ऊपर के पोर्शन में रहेंगे. इस बात को ऋषभ व शोभा दोनों मान गए और दोनों पक्षों की सफल वार्त्ता के बाद विवाह विधिविधान से संपन्न हो गया.

 

Anushka Sharma ने बर्थ डे पर फैंस को कहा शुक्रिया, कोरोना को लेकर कही ये बात

बीते शनिवार को अनुष्का शर्मा ने अपना 33वां जन्मदिन मनाया है. इस खास मौके पर फैंस ने अनुष्का शर्मा को ढ़ेर सारी बधाईयां दी है. अनुष्का शर्मा ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर इसके लिए अपने फैंस का शुक्रिया अदा किया है.

अनुष्का ने शुक्रिया अदा करते हुए लिखा है कि इस  साल मैंने अपना दन्मदिन नहींं मनाया है क्योंकि मैं कोरोना महामारी कि वजह से परेशान हू और विराट भी इस महामारी से काफी ज्यादा दुखी है. लेकिन आप सभी लोगों ने मुझे इतना प्यार दिया इसके लिए तहे दिल से शुक्रिया अदा.

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उन्होंने कहा कि मैं और विराट इस महामारी में मदद के लिए आगे आने वाले हैं लोगों कि मदद करेंगे तो हमें बहुत ज्यादा खुशी मिलेगी. इसकी जानकारी हम आपको बहुत जल्द देंगे. कोरोना महामारी कि वजह से हमारा पूरा देश परेशान चल रहा है. ऐसे में हमें आगे आकर अपने देश की मदद करनी चाहिए.

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कुछ वक्त पहले ही अनुष्का और विराट एक प्यारी सी बच्ची के पापा और मम्मी बने हैं. इस बात से विराट काफी ज्यादा खुश हैं. वह इन दिनों अपनी बेटी वामिका के साथ काफी ज्यादा समय बीताते नजर आते हैं.

 

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विराट और अनुष्का को बॉलीवुड का क्यूट कपल कहा जाता है. वह दोनों एक दूसरे के साथ एकदम परफेक्ट लगते हैं. दोनों को एक साथ फैंस भी खूब ज्यादा पसंद करते हैं.

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तो वहीं अनुष्का भी सोशल मीडिया पर काफी ज्यादा एक्टिव रहती हैं. फैंस को भी उनके नए पोस्ट का इंतजार रहता है.

Dilip Kumar को मिली अस्पताल से छुट्टी, Saira Banu ने फैंस को किया शुक्रिया

दिग्गज एक्टर दिलीप कुमार के हेल्थ पर अब उम्र का असर दिखने लगा है. हाल ही में दिलीप कुमार को रूटीन चेकअप के लिए अस्पताल में भर्ती करवाया गया है. अब उन्हें अस्पताल से छुट्टी मिल गई है. और वो ठीक हैं. इसकी जानकारी उनकी पत्नी सायरा बानो ने खुद अपने सोशल मीडिया अकाउंट के जरिए दिया है.

उन्होंने बताया कि अब वह ठीक हो गए हैं और उन्हें डिस्चार्ज कर दिया गया है. दिलीप कुमार को डॉक्टर्स की देख-रेख में अस्पताल में भर्ती करवाया गया था. सायरा बानो ने एक रिपोर्ट में जानकारी दी है कि अब उन्हें कोई दिक्कत नहीं है. उन्हें रूटीन चेकअप के लिए अस्पताल में भर्ती करवाया गया है.

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कोरोना की वजह से दिलीप कुमार किसी से मिल नहीं पा रहे हैं. बीते साल उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाया गया था. बीते साल दिलीप कुमार ने न अपना जन्मदिन मनाया न अपना एनीवर्सरी मनाया. बीते साल दिलीप कुमार के साथ बहुत बुरा हुआ बीते साल उन्होंने हमेशा के लिए अपने दो छोेटे भाइयों को हमेशा के लिेेए खो दिया.

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उनके भाई असलम खान और एहसान खान का निधन कोरोना से हो गया. जिस वजह से वह पिछले साल बहुत ज्यादा दुखी थे. जिस वजह से दिलीप कुमार खासा परेशान रहे और उन्होंने सालगिरह न मनाने का फैसला किया.

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खैर दिलीप कुमार के फैंस उनके सलामति के लिए दुआ कर रहे हैं. आए दिन फैंस उनके फोटो को लाइक करते रहते हैं. और कमेंट करते रहते हैं. एक जमाने में फैंस दिलीप कुमार के दीवाने हुआ करते थें.

Crime Story : संंबंधों की कच्ची दीवार

लेखक-जगदीश प्रसाद शर्मा ‘देशप्रेमी’ छाया-राजेश वर्मा

सौजन्या- सत्यकथा

36 वर्षीया रीता मनचली भी थी और महत्त्वाकांक्षी भी. कस्बे के तमाम लोग उस से नजदीकियां बढ़ाना चाहते थे. मगर पिछले 4 सालों से उस के मन में बसा हुआ था, पड़ोस में रहने वाला 41 वर्षीय राजेंद्र सिंह. वह उस का रिश्तेदार भी था और हर समय उस का ध्यान भी रखता था.

शादीशुदा होते हुए भी रीता और राजेंद्र के संबंध बहुत गहरे थे. राजेंद्र 3 बच्चों का बाप था तो रीता भी 2 बच्चों की मां थी. राजेंद्र और रीता का पति मनोज दोनों ईंट भट्ठे पर काम करते थे. वहीं पर दोनों के बीच नजदीकियां बनी थीं.राजेंद्र व रीता के संबंधों की जानकारी रीता के पति मनोज को भी थी और कस्बे के लोगों को भी. इस बाबत रीता के पति मनोज ने दोनों को समझाने का काफी प्रयास भी किया था, मगर न तो रीता मानी और न ही राजेंद्र. उन दोनों का आपस में मिलनाजुलना चलता रहा. दोनों का लगाव इस स्थिति तक पहुंच गया था कि दोनों एकदूसरे के बगैर नहीं रह सकते थे.

इसी दौरान 16 मार्च, 2021 को रीता गायब हो गई. उस के पति मनोज ने उसे सभी संभावित जगहों पर ढूंढा. वह नहीं मिली तो वह झबरेड़ा थाने जा पहुंचा. थानाप्रभारी रविंद्र कुमार को उस ने बताया, ‘‘साहब, कल मेरी पत्नी रीता काम से अपनी सहेली हुस्नजहां के साथ बैंक गई थी लेकिन आज तक वापस नहीं लौटी है. मैं उसे आसपास व अपनी सभी रिश्तेदारियों में जा कर तलाश कर चुका हूं, मगर उस का कुछ पता नहीं चल सका.’’

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थानाप्रभारी रविंद्र कुमार ने रीता की बाबत मनोज से कुछ जानकारी ली. साथ ही उस का मोबाइल नंबर भी नोट कर लिया. पुलिस ने रीता की गुमशुदगी दर्ज कर मनोज को घर भेज दिया. थानाप्रभारी रविंद्र कुमार ने रीता की गुमशुदगी को गंभीरता से लिया. उन्होंने रीता के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई और इस प्रकरण की जांच थाने के तेजतर्रार थानेदार संजय नेगी को सौंप दी. मामला महिला के लापता होने का था, इसलिए रविंद्र कुमार ने इस बाबत सीओ पंकज गैरोला व एसपी (क्राइम) प्रदीप कुमार राय को जानकारी दी.

अगले दिन रीता के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स पुलिस को मिल गई. संजय नेगी ने विवेचना हाथ में आते ही क्षेत्र में लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली. सीसीटीवी कैमरों की फुटेज में रीता अपने पड़ोसी राजेंद्र के साथ बाइक पर बैठ कर जाती दिखाई दी. इस के बाद शक के आधार पर एसआई संजय नेगी ने राजेंद्र को हिरासत में ले लिया और उस से रीता के लापता होने के बारे में गहन पूछताछ की. पूछताछ के दौरान राजेंद्र पुलिस को बरगलाते हुए कहता रहा कि उस की रीता से रिश्तेदारी है और उस ने 2 दिन पहले रीता को थोड़ी दूर तक बाइक पर लिफ्ट दी थी. लेकिन अब रीता कहां है, उसे इस बाबत कोई जानकारी नहीं है.

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शाम तक राजेंद्र इसी बात की रट लगाए रहा. शाम को अचानक ग्रामीणों ने पुलिस को सूचना दी कि सैदपुरा के पास गंगनहर में एक महिला का शव तैर रहा है. इस सूचना पर थानेदार संजय नेगी अपने साथ रीता के पति मनोज को ले कर वहां पहुंचे. संजय नेगी ने ग्रामीणों की मदद से शव को गंगनहर से बाहर निकलवाया. मनोज ने शव को देखते ही पहचान लिया कि वह शव उस की पत्नी रीता का ही है. शव के गले पर निशान थे. पुलिस ने मौके की काररवाई निपटा कर शव पोस्टमार्टम के लिए राजकीय अस्पताल रुड़की भेज दिया. रीता का शव बरामद होने की सूचना पा कर एसपी (क्राइम) प्रदीप कुमार राय थाना झबरेड़ा पहुंचे.

राय ने जब राजेंद्र से पूछताछ की तो वह अपने को बेगुनाह बताने लगा. राय व थानाप्रभारी रविंद्र कुमार ने जब सख्ती से राजेंद्र से पूछताछ की तो वह टूट गया. उस ने रीता की हत्या करना स्वीकार कर लिया और उस से पिछले कई सालों से चल रहे आंतरिक संबंधों को भी कबूल कर लिया. रीता की हत्या करने की राजेंद्र ने पुलिस को जो जानकारी दी, वह इस तरह थी. राजेंद्र जिला हरिद्वार के कस्बा झबरेड़ा स्थित एक ईंट भट्ठे पर पिछले 20 साल से काम कर रहा था. उस के परिवार में उस की पत्नी सुनीता, बेटी प्रिया (21), दूसरी बेटी खुशी (15) व बेटा कार्तिक (12) था. ईंट भट्ठे पर काम कर के राजेंद्र को 15 हजार रुपए प्रतिमाह की आमदनी हो जाती थी. इस तरह से राजेंद्र के परिवार की गाड़ी अच्छी से चल रही थी. उसी ईंट भट्ठे पर रीता का पति मनोज भी काम करता था.

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साथ काम करतेकरते मनोज और राजेंद्र में दोस्ती हो गई. फिर दोनों का एकदूसरे के घर आनाजाना शुरू हो गया. इस आनेजाने में रीता और राजेंद्र के बीच नाजायज संबंध बन गए. वह दोनों आपस में दूर के रिश्तेदार भी थे. दोनों के संबंधों की खबर उन के घर वालों को ही नहीं बल्कि गांव वालों को भी हो गई थी. इस के बावजूद उन्होंने एकदूसरे का साथ नहीं छोड़ा. उन के संबंध करीब 7 सालों तक बने रहे. पिछले साल अचानक राजेंद्र व रीता के जीवन में एक ऐसा मोड़ आ गया कि दोनों के बीच में दूरियां बढ़ने लगीं. 30 मार्च, 2020 का दिन था. उस समय देश में लौकडाउन चल रहा था. उस दिन जब राजेंद्र से रीता मिली तो उस ने राजेंद्र के सामने शर्त रखी कि वह उस के साथ शादी कर के अलग घर में रहना चाहती है. रीता की बात सुन कर राजेंद्र सन्न रह गया. उस ने रीता को समझाया कि अब इस उम्र में यह सब करना हम दोनों के लिए ठीक नहीं होगा, क्योंकि हम दोनों पहले से ही शादीशुदा व बड़े बच्चों वाले हैं. अलग रहने से हम दोनों के परिवार वालों की जगहंसाई होगी. हम किसी परेशानी में भी पड़ सकते हैं.

राजेंद्र के काफी समझाने पर भी रीता नहीं मानी और राजेंद्र से शादी करने के लिए जिद करने लगी. खैर उस वक्त तो राजेंद्र किसी तरह से रीता को समझाबुझा कर वापस आ गया. इस के बाद उस ने रीता से दूरी बनानी शुरू कर दी. उस ने उस का मोबाइल अटैंड करना कम कर दिया और उस से कन्नी काटने लगा.
अपनी उपेक्षा से आहत रीता घायल शेरनी की तरह क्रोधित हो गई. उस ने मन ही मन में राजेंद्र से बदला लेने का निश्चय कर लिया. उस दौरान राजेंद्र अपनी बड़ी बेटी प्रिया की शादी के लिए वर की तलाश में था. राजेंद्र अपनी बिरादरी के लोगों से शादी के लिए प्रिया के संबंध में बात करता रहता था.जब इस बात का पता रीता को चला कि राजेंद्र अपनी बेटी के लिए लड़का तलाश रहा है तो उस ने राजेंद्र की बेटी की शादी में अड़ंगा लगाने का निश्चय किया. इस के बाद जो भी लोग प्रिया को शादी के लिए देखने आते रीता उन लोगों से संपर्क करती और उन्हें बताती कि राजेंद्र की बेटी प्रिया का किसी से चक्कर चल रहा है.

रीता के मुंह से यह सुन कर राजेंद्र की बेटी से शादी करने वाले लोग शादी का विचार बदल देते थे. इस तरह रीता ने प्रिया से शादी करने वाले 2 परिवारों को झूठी व भ्रामक जानकारी दे कर प्रिया के रिश्ते तुड़वा दिए थे. जब इस बात की जानकारी राजेंद्र को हुई तो वह तिलमिला कर रह गया. धीरेधीरे समय बीतता गया. वह 28 फरवरी, 2021 का दिन था. उस दिन अचानक एक ऐसी घटना घट गई, जिस से राजेंद्र तड़प उठा और उस ने रीता की हत्या करने की योजना बना डाली.

हुआ यूं कि 28 फरवरी, 2021 को कस्बे में रविदास जयंती मनाई जा रही थी. उस समय राजेंद्र की छोटी बेटी खुशी ट्यूशन पढ़ कर वापस घर जा रही थी. तभी रास्ते में उसे रीता का बेटा सौरव खड़ा दिखाई दिया.
खुशी कुछ समझ पाती, इस से पहले ही सौरव ने खुशी के साथ अश्लील हरकतें करनी शुरू कर दीं. इस पर खुशी ने शोर मचा दिया. खुशी के शोर मचाने पर सौरव वहां से भाग गया. खुशी ने घर आ कर इस छेड़खानी की जानकारी अपने पिता राजेंद्र को दी. इस के बाद राजेंद्र ने रीता को रास्ते से हटाने की योजना बनाई. राजेंद्र रीता की हत्या का तानाबाना बुनने लगा. दूसरी ओर रीता राजेंद्र के इस खतरनाक इरादे से बेखबर थी.

योजना के तहत राजेंद्र ने 15 मार्च, 2021 को रीता को फोन कर के कहा कि वह उसे 20 हजार रुपए देना चाहता है, इस के लिए उसे मंगलौर आ कर मिलना पड़ेगा. उस की इस बात पर लालची रीता राजी हो गई. 16 मार्च को रीता उस के साथ बाइक पर बैठ कर मंगलौर के लिए चल पड़ी. जब दोनों सैदपुरा की गंगनहर पटरी पर पहुंचे तो राजेंद्र ने बाइक रोक कर रीता से कहा, ‘‘मैं तुम्हें सरप्राइज दे कर 20 हजार रुपए देना चाहता हूं, तुम जरा मुंह दूसरी ओर घुमा लो.’’ जैसे ही रीता ने मुंह दूसरी ओर घुमाया तो राजेंद्र ने रीता के गले में लिपटी चुन्नी से उस का गला घोंट दिया. रीता की हत्या के सबूत मिटाने के लिए उस ने उस का मोबाइल व चुन्नी गंगनहर के पानी में फेंक दिए. फिर वह बाइक से अपने घर लौट आया.

पुलिस ने राजेंद्र के बयान दर्ज कर लिए और इस प्रकरण में उस के खुलासे के बाद इस मुकदमे में धारा 302 व 201 बढ़ा दी. एसआई संजय नेगी ने अभियुक्त की निशानदेही पर गंगनहर की पटरी से सही झाडि़यों में फंसी रीता की चुन्नी बरामद कर ली. रीता की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में उस की मौत का कारण गला घोंटने से दम घुटना बताया गया. राजेंद्र से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उसे कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

Mother’s Day 2023: मां की शादी- भाग 3

‘‘अच्छी बात है, बेटा.’’

‘‘मम्मा, वे दिल के भी बहुत अच्छे हैं, कई गरीबों का मुफ्त इलाज करते हैं.’’

‘‘करना ही चाहिए, आखिर समाज के प्रति भी हमारे कुछ कर्तव्य हैं कि नहीं.’’

‘‘हां मम्मा, उन का स्वभाव आप से बहुत मेल खाता है. जिस तरह आप दूसरों की सहायता करने के लिए तैयार रहती हैं, वे भी.’’ कुछ पल रुक कर वह फिर बोली, ‘‘मम्मा, वे हैं भी बहुत स्मार्ट. उन को देख कर नहीं लगता कि उन की इतनी बड़ीबड़ी बेटियां होंगी, जैसे आप को देख कर कोई नहीं समझ सकता कि मेरे उम्र की आप की बेटी है मम्मा, आप…’’ इतने में सोमू का फोन बज उठा. वह उस में व्यस्त हो गई.

इस इतवार, सोमू ने अपनी फ्रैंड कीर्ति के घर चलने का प्रोग्राम बनाते हुए कहा, ‘‘मम्मा, कीर्ति का बर्थडे है, उस ने घर पर ही छोटी सी पार्टी रखी है. आप को भी बुलाया है. अच्छा है कि इतवार है. आप चलेंगी न?’’

‘‘बेटा, मैं तुम बच्चियों के बीच क्या करूंगी. तुम ही चली जाना. बस, रात में समय से लौट आना. मेरे रहने से तुम लोग खुल कर मस्ती भी नहीं कर सकोगी,’’ मैं ने हंसते हुए कहा.

‘‘ओह, मम्मा, वह मुझे कच्चा खा जाएगी. उस ने बहुत कहा है कि आंटी को जरूर लाना. मम्मा, वह आप से मिलने का बहाना ढूंढ़ती रहती है. प्लीज, चलिएगा मम्मा, उस का दिल टूट जाएगा.’’

‘‘ठीक है, चलूंगी. उसे उपहार क्या देना है. मैं सोचती हूं, वह चांदी और अमेरिकन डायमंड वाला सैट दे देते हैं.’’

‘‘ठीक है मम्मा, उस की मिल्की व्हाइट रंगत पर जंचेगा भी बहुत.’’

इतवार को सोमू मेरी साजशृंगार में लग गई. ऐसा हेयरस्टाइल तो ऐसा मेकअप, ये ड्रैस तो वह ज्वैलरी, तो यह सैंडिल, बड़ी मुश्किल से बीच का रास्ता अपना कर मैं तैयार हुई.

मुझे एकटक देखती हुई बोली, ‘‘सच कहूं मम्मा, आप से तो मुझे तक जलन हो रही है, औरों का क्या हाल होगा.’’

‘‘ओह, मेरी बिटिया, तू बहुत बातें बनाने लगी है. तुझ नवयौवना के सामने मुझ प्रौढ़ा की क्या बिसात, फिर तेरामेरा रिश्ता तुलना करने या ईर्ष्या करने का है भी नहीं.’’

‘‘सच कहती हूं मम्मा, आप की उम्र में मैं न जाने कैसी लगूंगी, आप की फिगर तो परफैक्ट है, न एक इंच ज्यादा, न ही एक इंच कम.’’

काम करने के लिए बिंदिया आ गई थी. सो, हम मांबेटी की छेड़छाड़ में विराम लग गया. बिंदिया को काम बता कर मैं सोमू के कमरे की तरफ आ गई. वह फोन पर लगी हुई थी. बारबार मेरे नाम की ध्वनि आने के कारण मैं ध्यान से सुनने लगी, ‘‘हां यार, मम्मा तो लाजवाब लगती ही हैं. आज मेरा मन रखते हुए उन्होंने थोड़ा मेकअप भी कर लिया है. गजब ढा रही हैं यार, आज तो. और हां, चाचाजी समय पर पहुंच रहे हैं न. हांहां, उन के पहुंचतेपहुंचते मैं और मम्मा भी पहुंच जाएंगे. हां, यही ठीक रहेगा. खेल के बहाने मम्मा और चाचाजी का एकसाथ डांस करवा देंगे. यह आइडिया परफैक्ट है न. जरूर बात बन जाएगी.’’

मैं बातें सुन कर अवाक थी. आखिर माजरा क्या है? मैं ने सोमू से कहा, ‘‘क्या बात है बेटा, मेरे बारे में क्या बात हो रही है?’’

उस की मानो चोरी पकड़ी गई हो, किंतु स्वयं को संभालते हुए बोली, ‘‘कुछ भी तो नहीं, मम्मा.’’

‘‘नहीं, बेटा, कुछ बात तो है, यह चाचाजी कौन हैं, फिर उन के साथ डांस वाली क्या बात है?’’

‘‘ओह मम्मा, कुछ भी नहीं, हम फ्रैंड्स तो कुछ भी आपस में बात करते हैं. आप बिंदिया से कहिए कि वह जल्दी काम खत्म करे. हमें निकलना चाहिए. हम लेट हो रहे हैं.’’

‘‘सोमू, सब से पहले कीर्ति को फोन से कह दो कि हम लोगों को थोड़ी देर हो जाएगी. गैस्ट आ गए हैं या कुछ भी कारण बोल दो. और मुझे मेरे सवालों का जवाब चाहिए वरना मैं नहीं जाने वाली.’’ मेरा यह अल्टीमेटम सुन सोमू एकदम शांत, मुझे एकदम देखने लगी. मैं ने उसे गले से लगा कर सस्नेह कहा, ‘‘क्या बात है बेटा, जब से मैं ने तेरी शादी पक्की की है, तब से मैं देख रही हूं, तू मेरी साजशृंगार पर बहुत ध्यान देने लगी है. फिर कभी किसी के विधुर पापा, तो कभी सर्जन भैया, फिर आज यह चाचाजी, बात क्या है बेटा, तेरे दिल में क्या चल रहा है, अपनी मम्मा को नहीं बताएगी?’’

सोमू ने धीरे से कहा, ‘‘मम्मा, मुझे आप की बहुत चिंता है. मेरी शादी के बाद आप एकदम अकेली हो जाएंगी. मैं ने आप को इन लोगों से इसीलिए मिलवाया कि आप इन में से किसी से शादी करने के लिए तैयार हो जाएं. मम्मा, हर उम्र में अपने हमउम्र साथी की आवश्यकता होती है, जो हमारी बात सुने और समझे, जिस के साथ हम सुखदुख बांट सकें. जीवन जीने का कुछ उत्साह तथा मकसद तो होना चाहिए न, मम्मा.’’

उस ने झिझकते हुए कहा, ‘‘मम्मा, आप ने मेरी सारी आवश्यकताओं की पूर्ति तत्परता से की है. कभी पापा की कमी महसूस होने नहीं दी. किंतु मैं ने आप के अकेलेपन के लिए कभी सोचा ही नहीं. कुछ दिनों बाद मेरी शादी होने वाली है. सैक्स मेरे जीवन का अहम हिस्सा बन जाएगा, आज मुझे यह बात बहुत कचोटती है कि आप ने मेरे लिए अपनी इच्छा का दमन कर लिया होगा. प्लीज मम्मा, बुरा नहीं मानिएगा मेरी बातों का.’’

‘‘अरे बेटा, तू मेरे लिए कितना सोचती है, एक बार तो मुझ से कहा होता. देख बेटा, समीर की मृत्यु के बाद मेरे सारे हितैषियों ने मुझे पुनर्विवाह की  सलाह दी थी. किंतु मैं स्वयं को दूसरे विवाह के लिए तैयार नहीं कर पा रही थी. एक तो दिलोदिमाग में समीर ही छाए हुए थे तथा कई बार अकेलेपन से घबरा कर पुनर्विवाह का विचार करती तो यह भय उठ खड़ा होता कि नया जीवनसाथी मेरी सोमू को, या सोमू अपने नए पापा को स्वीकार कर पाएगी या नहीं. इस के अलावा पढ़नेसुनने को कभीकभी मिल जाता है कि सौतेला पिता, जवान होती सौतेली बेटी पर ही बुरी नजर रखने लगता है. मेरी सोमू को किसी तरह का कष्ट हो, यह मुझ से बरदाश्त नहीं होता. मुझे तो अपनी सोमू का सही पालनपोषण कर एक योग्य नागरिक बनाना था. सो, मैं ने पुनर्विवाह का विचार ही छोड़ दिया था.’’

मैं ने रहस्य खोलते हुए कहा, ‘‘बेटा, सोमू, जब आज यह विषय तू ने छेड़ ही दिया है तो मैं तुझे अपने जीवन की एक सचाई बता देना उचित समझती हूं. मेरे कालेज में रमेशजी, गणित के प्रोफैसर हैं. तू उन से कई बार मिल चुकी है तथा उन की बहुत बड़ी फैन है और तुझे मालूम ही है कि 4 साल पहले कार ऐक्सिडैंट में उन की पत्नी की मृत्यु हो गई थी. उन के दोनों बेटे पवन और पीयूष अमेरिका में सैटल हो गए हैं. उन्हीं रमेश ने मुझ से शादी करने की इच्छा व्यक्त की थी. मैं ने भी उन्हें यह कहते हुए सहमति दी थी कि मैं, समीरा की शादी के बाद ही आप से शादी कर सकूंगी. मुझे लगा था कि मेरी बिटिया असहज न महसूस करे, किंतु मुझे क्या मालूम था कि मेरी बिटिया, मेरे लिए वर की तलाश कर रही है.’’ मैं ने ये सब सोमू की आंखों में झांकते हुए कहा. सोमू, प्रसन्नचित्त मुद्रा में बैठी, मुझे निहारने लगी. मैं ने कहा, ‘‘रमेशजी काफी सभ्य एवं शालीन स्वभाव के हैं. उन का यही स्वभाव मुझे आकर्षित कर गया. उन्होंने मुझ से शादी का प्रस्ताव रखा, मैं ने तेरी शादी तक इंतजार करने को कहा. हां, जब मैं तेरी शादी तय करने लगी, तब उन्होंने मुझ से कहा, ‘मीरा, हम साथ हो जाते हैं, यह जिम्मेदारी ज्यादा कुशलता से पूरी कर सकेंगे,’ किंतु मैं हां नहीं कर सकी, तेरी सकुचाहट थी मुझे.

‘‘यह सत्य है कि पिछले लगभग 2 सालों से हम अपने दिल की बातें आपस में कह लेते हैं, पारिवारिक मुद्दों पर भी हम खुल कर बातें करते हैं. उन के दोनों बेटों ने उन से फोन पर बात करनी तक बंद कर दी है. वे दोनों अपनी दुनिया में व्यस्त और मस्त हैं. रमेशजी उन लोगों के व्यवहार से बहुत दुखी भी हैं. मैं अपनी समझ एवं सामर्थ्य से उन्हें सांत्वना देती हूं. उन का अकेलापन मुझे भी अखर जाता है, दिल करता है उन का हाथ थाम लूं.’’

मैं आज सब बोल देना चाहती थी, ‘‘जब मैं ने तेरे लिए सार्थक को पसंद किया, उन्हें विस्तार से सब बताया किंतु वे सार्थक को देखना एवं उस से मिलना चाहते थे. इसी विचार से मैं ने सार्थक से मिलने के लिए सैंट्रल मौल को उचित समझा एवं उन्हें भी वहां बुला लिया, जिस से वे भी उसे…’’

सोमू ने मुझे बीच में ही टोकते हुए कहा, ‘‘मम्मा, एक मिनट, मुझे अच्छे से याद है उस दिन मौल में रमेश अंकल भी मिल गए थे. हम सब ने समझा यह मात्र सुखद इत्तफाक है, किंतु वह आप का और अंकल का तय प्रोग्राम था. एमआई राइट, मम्मा?’’

‘‘ऐब्सोल्यूटली राइट, बेटा,’’ मैं ने हंसते हुए कहा.

‘‘अंकल हमारे साथ पूरे समय रहे थे तथा उन्होंने सार्थक से एवं उस के मम्मीपापा से भी खूब बातें की थीं. मम्मा, सार्थक व उस के परिवार को भी अंकल बहुत पसंद आए थे. मम्मा, अब आप उन्हें सहमति दे दीजिए. अब हम एकसाथ एक घर में रहेंगे तथा पूरे उत्साह एवं समर्पण से एकदूसरे का साथ निभाएंगे.’’ सोमू ने अति उत्साह से कहा.

‘‘ठीक है बेटा, यही सही, मेरे कालेज में सारे सहकर्मी हमारे रिश्ते से परिचित हैं. हमारे शालीन व्यवहार की सभी प्रशंसा करते हैं तथा हमारे निर्णय का सभी ने स्वागत किया है. किंतु बेटा, मुझे तामझाम नहीं चाहिए, कुछ अपने परिचितों की उपस्थिति में कोर्ट मैरिज कर ली जाए,’’ मैं ने अपने विचार रखे. ‘‘ठीक है मम्मा, जैसी आप की मरजी. मुझे तो अपने पापा का साथ चाहिए. कितना मजा आएगा. मम्मा, आप ने तो मेरी सारी चिंता ही खत्म कर दी,’’ कहते हुए वह मेरे गले लग गई.

मैं ने प्यार से उसे थपथपाते हुए कहा, ‘‘चल बेटा, कीर्ति की बर्थडे पार्टी में चला जाए. दो बार उस का फोन भी आ चुका है. वह हमारा इंतजार कर रही होगी.’’ हम दोनों हंसते हुए कार में जा बैठीं.

 

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