लेखक- डा. सिद्धार्थ साहा, प्रधान वैज्ञानिक

जब भी बहुत ज्यादा गरम नम या गरम शुष्क वातावरण होता है, तब पशु सामान्यतौर पर जीभ बाहर निकाल कर और अधिक से अधिक पसीना निकाल कर अपनी ऊर्जा को खर्च करते हैं, जिस से उन के शरीर का तापमान नियंत्रित रहता है. यह पशुओं के लिए जो एक स्वाभाविक और प्राकृतिक क्रिया है, लेकिन कभीकभी पशुओं के शरीर ऊष्मा बाहर निकालने की क्षमता, पसीना निकालना, जीभ बाहर निकलना जैसी प्राकृतिक क्रियाओं से भी शारीरिक तापमान नियंत्रित नहीं हो पाता, जिसे ऊष्मीय तनाव कहा जाता है.

तापमान, जिस के ऊपर ऊष्मीय तनाव हो सकता है : संकर और विदेशी नस्ल की गायों में : 26० सैंटीग्रेड से ऊपर. देशी नस्ल की गायों में 33० सैंटीग्रेड से ऊपर. भैंसों में 36० सैंटीग्रेड से ऊपर. ऊष्मीय तनाव से पशुपालकों को कई प्रकार से माली नुकसान हो सकता है, जैसे :

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* दूध उत्पादन में कमी.

* कम प्रजनन दक्षता.

* मंदहीनता.

* गर्भधारण दर में कमी. संवेदनशील पशु देशी नस्ल की गायों की अपेक्षा संकर और विदेशी नस्ल की गाय ऊष्मीय तनाव के प्रति ज्यादा संवेदनशील होती हैं. भैंसों की मोटी व काली चमड़ी होने और गायों की तुलना में कम पसीना ग्रंथि होने के कारण भैंस ऊष्मा का खर्च ठीक प्रकार से नहीं कर पाती, जिस से उन में ऊष्मीय तनाव का ज्यादा बुरा असर होता है. ऊष्मीय तनाव को कम करने के लिए उचित प्रबंधन इस प्रकार है :

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