लेखिका -कविता वर्मा
लेखिका -कविता वर्मा
लेखक व निर्देशक राम कमल मुखर्जी की बीस से अधिकराष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार जीत चुकी फिल्म ‘रिक्शावाला ’ का विश्व प्रीमियर बहुत जल्द ओटीटी प्लेटफार्म ‘बिगबैंग एम्यूजमेंट’पर होने वाला है. कस्तूरी चक्रबर्ती और अविनाश द्विवेदी के अभिनय से सजी फिल्म ‘ रिक्शावाला’ में कोलकता की सड़कों पर हाथ से रिक्शा खींचने वालों की मार्मिक दास्तान है. अविनाश द्विवेदी ने रिक्शावाला की शीर्ष भूमिका निभायी है.फिल्म के संवाद भोजपुरी और बंगला भाषा में हैं.
अपनी फिल्म ‘रिक्शावाला’ के ओटीटी प्लेटफार्म पर आने पर खुशी जाहिर करते हुए लेखक व निर्देशक रामकमल मुखर्जी कहते हैं-‘‘फिल्म ‘रिक्शावाला’ एक विशेष मोड़ के साथ एक अनोखी प्रेम कहानी है.यह फिल्म वास्तव में मेरे दिल के करीब है.इसके पात्रों की मानवता और यथार्थ वाद इसे प्रासंगिक बनाती है. मैं भी इस तरह की सकारात्मक वैश्विक प्रतिक्रिया से अभिभूत हूं और यह सभी पुरस्कार और प्रशंसा वास्तव में उत्साह जनक हैंऔर मैं यथार्थवाद और सापेक्षता के साथ कई और कहानियां बताने का प्रयास करता हूं.’’
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रामकमल आगे कहते हैं- ‘‘अविनाश द्विवेदी औ कस्तूरी चक्रवर्ती जैसे प्रतिभाशाली कलाकारों के साथ काम करना एक अद्भुत अनुभव था,जिन्होंने अपने किरदारों को जीवंत बनाने के लिए अपना पसीना और खून बहाया.मैं अविनाश को जुहू में एक जन्मदिन की पार्टी में मिला था.जब कि कस्तूरी एक प्रसिद्ध टेलीविजन अदाकारा हैं.मैं वास्तव में ओटीटी बिगबैंग एम्यूजमेंट’के साथ जुड़कर उत्साहित हूं.’’
जबकि ‘बिगबैंग एम्यूजमेंट’’ के संस्थापक और सीईओ सुदीप मुखर्जी ने कहा-“हम बिगबैंग एम्यूजमेंट के उद्देश्य से अपने दर्शकों की मदद करने के लिए उन्हें किसी भी समय और कहीं भी भरोसेमंद और सार्थक कहानियां लाकर देते हैं.हम अपने दर्शकों के लिए अंग्रेजी के साथ साथ दूसरी अलग-अलग भाषाओं और शैलियों की फिल्में व वेब सीरीज तलाशते रहते हैं. हमें रामकमलमुखर्जी और ‘एसोर्टेडमोशन पिक्चर्स जैसे प्रतिभाशाली निर्माता के साथ जुड़ने पर गर्व है कि हम अपनी सामग्री स्लेट पर पहली लघु-फिल्मका निर्माण कर सकें.
हम पुरस्कार विजेता ‘रिक्शावाला’;जैसी फिल्मों के साथ अपने प्लेटफार्म को लोकप्रिय बनाने की ख्वाहिश रखते हैं.’’मैड्रिड और स्पेन में आयोजित इमेजिन इंडिया उत्सव के लिए राइविंग शॉर्ट-फिल्म ने भी अपनी जगह बनाई और 13 वें अयोध्या अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता और सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का पुरस्कार भी प्राप्त किया.
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ठपपहह इंद हम नोरंजन जल्द ही लॉन्च करने के लिए तैयार है और दुनियाभर में अपने दर्शकों के मनोरंजन, प्रेरणादायक और मनोरंजक बनाने के उद्देश्य से एक प्रतिस्पर्धी और असमान सामग्रीस्लेट के साथ तैयार है. प्रीमियरपर अपने विचार साझा करते हुए, अविनाश द्विवेदी कहते हैं-‘‘हमारी फिल्म ‘रिक्शावाला’ निश्चित रूप सेमेरे लिए एक मील का पत्थर है.इस फिल्म ने मुझे 13 वें अयोध्या अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार के अलावा कार्डिफ और मेलबर्न में पुरस्कारों से नवाजा व एक अभिनेता के रूप में बढ़ावा.दादा (राम कमलमुखर्जी) से कथा सुनकर मैं इस फिल्म में काम करने को लेकर उत्साहित था. उनसे मिलने से पहले मैं उनकी वरिष्ठता को लेकर थोड़ा घबराया हुआ था, लेकिन उनसे मिलने के बाद,उन्होंने मुझे बहुत सहज महसूस कराया और हम एक पल में दोस्त बन गए.फिल्मका हर पहलू प्रासंगिक और मार्मिक है.
मैं वास्तव में फिल्म में अपने किरदार से जुड़ सकता था.यह रिक्षावाला ऐसा व्यक्ति है,जो अपने परिवार के लिए कुछ भी करेगा और वास्तव में अपने पेशे से प्यार करेगा.फिल्म आपको सोचने पर मजबूर कर देगी और आपको उन तरीकों से स्पर्श करेगी, जिन्हें आप भूल नहीं पाए हैं.मैं भोजपुरी संवादों के साथ सहज था,पर बंगाली भाषा से मैं बहुत परिचित नहीं था.फिर भी मैेन मेहनत की और मैने स्वयं भोजपुरी और बंगाली संवाद डब किए.’’
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अभिनेत्री कस्तूरी चक्रवर्ती कहती हैं-‘‘रामदा की फिल्म ‘रिक्शावाला’ का हिस्सा बनना समृद्ध और प्रेरणादायक था.यह उन लोगों के जीवन पर एक कठोर नजर रखता है,जो कुछ पाने के लिए अपने तरीके से संघर्ष करते हैं.मेरे चरित्र के मामले में, वह दिल टूटने की मीठी यातना से गुजरती हैजो कुछ ऐसा है जिसे मैंने व्यक्तिगत रूप से गहराई से महसूस किया है.
रामदा ने उस यात्रा को अपने पात्र के जीवन में उतारने के लिए प्रोत्साहित किया. मुझे लगता है कि यह फिल्म में लोगों की वास्तविकता और उनकी दृष्टिका अन फिल्टर्ड चित्रण है,जिसने इसे विश्वस्तर पर सभी प्रशंसा के योग्य बनाया.यह बहुत अच्छी बात है कि अब यह फिल्म विश्वभर के सभी सिनेमा प्रेमियों के लिए बिगबैंग एम्यूजमेंट’पर उपलब्ध होगी.’’
कोरोना वायरस से इस वक्त हमारा पूरा देश परेशान चल रहा है. हर दिन लगभग 3 लाख से ज्यादा केस आ रहे हैं. वहीं ज्यादातर लोगों कि मौत ऑक्सीजन और बेड की कमी के कारण हो रही है. इस वायरस का शिकार आम आदमी से लेकर सेलेब्स तक हो रहे हैं.
अब इस लिस्ट में बॉलीवुड के दिवंगत अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत के करीबी मित्र महेश शेट्टी का नाम भी अब शामिल हो गया है. महेश को माइल्ड कोरोना है. कुछ वकत् पहले वह कोरोना के मरीजों कि देखभाल कर रहे थें, इस दौरान वह भी चपेट में आ गए हैं.
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रिपोर्ट्स कि माने तो अभिनेता इस वक्त अपने घर पर क्वारेंटाइन हैं और घर पर ही रहकर डॉक्टर के सलाह से अपना इलाज ले रहे हैं. सोशल मीडिया अकाउंट के जरिए उन्होंने लोगों से मदद कि अपील की है.
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इतना ही नहीं महेश ने पीएम केयर फंड में भी अपने हैसियत के मुताबिक पैसा डाला है. महेश शेट्टी टीवी जगत के लोकप्रिय कलाकारों में से एक हैं. उन्होंने सीरियल ‘किस देश में है मेरा दिल ‘ से अपने कैरियर की शुरुआत की थी. जहां पर लोगों ने उन्हें खूब पसंद भी किया था.
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इस सीरियल के बाद महेश को सुशांत अंकिता के सीरियल ‘पवित्र रिश्ता ‘ में देखा गया था. इसके अलावा भी वह कई सीरियल्स में नजर आ चुके हैं. महेश जल्द सोनाक्षी सिन्हा के साथ भी नजर आने वाले हैं उनकी अपकमिंग फिल्म में.
कोरोना वायरस ने कई लोगों के अपनों से उन्हें दूर कर दिया है. कई टीवी सितारों ने भी अपनों को खो दिया जिसमें एक नाम निक्की तम्बोली का भी है. हाल ही में उन्होंने अपने छोेटे भाई को खोया है. जिसके बाद से वह काफी ज्यादा दुखी हैं.
निक्की तम्बोली के भाई जतिन तम्बोली कोरोना से संक्रमित थें. जिसके बाद उनका देहांत हो गया है. निक्की के भाई की हालात खराब होने पर उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाया गया, जिसके बाग लाख इलाज करवाने के बाद भी उन्होंने कोरोना से दम तोड़ दिया.
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भाई के जाने के बाद से निक्की तम्बोली बुरी तरह से टूट गई हैं. निक्की को अब अपने माता- पिता कि चिंता सताने लगी है. निक्की के माता- पिता को भी कोविड है इसलिए वह बहुत ज्यादा डरी हुईं हैं. वहीं निक्की तम्बोली हर दिन भगवान से एक ही प्रार्थना कर रही हैं कि भगवान उन्हें शक्ति दें कि उनके माता- पिता इस सदमें को बर्दाश्त कर सकें.
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कुछ वक्त पहले ही निक्की ने अपने माता-पिता की तस्वीर शेयर करते हुए लिखा है कि हे भगवान हमें शक्ति दें मैं और मेरे माता पिता इस सदमें से बाहर आ जाएं और मैं एक दिन अपने माता-पिता का नाम रौशन करुंगी.
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मैं उनके चेहरे पर खुशी लाने की पूरी कोशिश कर रही हूं मुझे समझ नहीं आ रहा है कि मेरे माता-पिता इस सदमें को कैसे बर्दाश्त कर रहे हैं. मेरे माता -पिता ने एक ही परिवार में दो लोगों को खोया है 14 दिन पहले मेरी दादी गुजर गई और उसके बाद भाई चला गया. मैं दुआ करती हूं कि भगवान मेरे मां बाप को इस दुख को झेलने की शक्ति दें.
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निक्की के इस ट्विट के बाद से लगातार उनके फैंस उन्हें सांत्वना दें रहे हैं. उन्हें समझा रहे हैं कि निक्की हिम्मत रखों.
इस बार माहमारी ने अमीरों को भी डसा है. कोविड ने लगता है कि अमीरों को ज्यादा बिमार किया है जो वायरस से मुकाबला करना नहीं जानते. जो पहले से गंदे मकानों, गंदी सडक़ों, गंदे पाखानों, गंदे कपड़ों के आदी है. उन्हें यह रोग या तो पकड़ नहीं पाया या फिर बिना पहचान कराए वे बिमार पड़े, मरे या ठीक हो गए पर अस्पताल नहीं गए, सरकारी नंबरों में शामिल नहीं हुए.
कोविड ने गरीबों को बेकारी से ज्यादा मारा है. पिछले मार्चअप्रैल 2020 में जब कारखाने बंद हुए और इस बार फिर जब दोबारा बंद होने लगे तो लाखों की नौकरियां या धंधे चौपट हो गए. फर्क तो अमीरों को भी पड़ा जिन की बचत खत्म हो गई पर वे सह सकते थे. उन्हें भी दर्द झेलना पड़ा क्योंकि वे इस के आदी नहीं थे. आम गरीब के लिए तो यह रोज की बात है.
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यह गनीमत है कि देश में जगहजगह अस्पताल बन चुके हैं. 2014 के बाद तो मंदिर ही बने रहे है पर पहले धड़ाधड़ स्कूल और क्लिनिक बने थे. गांवों कस्बों में स्कूलों को अस्पतालों की तरह इस्तेमाल करा जा रहा है और जो भी दबा मिल रही है वह ले कर बचने की कोशिश हो रही है. यह पक्का है कि दिल्ली में बैठी नरेंद्र मोदी की सरकार ने जिस हल्के से इस बिमारी का गरीबों पर पडऩे वाले असर को लिया, वह बेहद खलता है.
हारी बिमारी किसी को भी हो सकती है और इसलिए यह सरकार को मुफ्त देनी होगी. मुफ्त का मतलब सिर्फ इतना है कि सब थोड़ाथोड़ा पैसा टैक्स की शक्ल में देंगे. हर गांव कस्बे में एंबूलेंस और अस्पताल होने चाहिए चाहे केंद्र सरकार के हों, राज्य सरकार के या पंचायक के. जब थाने हर जगह बन सकते हैं तो हस्पताल क्यों नहीं. शायद इसलिए कि थानों के जरिए लोगों पर राज किया जाता है और अस्पताल में सेवा करनी हाोती है. सरकार के दिमाग में कहीं यह कीड़ा बैठा है कि वे राज करने के लिए हैं, लूटने के लिए, मंदिरों की तरह लेने के लिए हैं, किसी को कुछ देने के लिए नहीं.
अस्पताल खोलो तो नेताओं की मुसीबत आती है. शिकायतें शुरू हो जाती हैं कि डाक्टर समय पर नहीं आते, सफाई नहीं होती, दवाएं चोरी हो रही हैं, जगह कम है. थाना खोलो तो कोई शिकायत नहीं. पुलिस वालों का डंडा सबको ठीक कर देता है.
नरेंद्र मोदी की सरकार वैसे भी उस पौराणिक सोच पर चलती है कि एक बड़े हिस्से का काम सेवा करना है. कुछ पाना नहीं. हमारे पुराण कहीं भी गरीबों को दान देने की बात करते नजर नहीं आते. फिर कोविड जैसी बिमारी के लिए बेकारी के लिए या बिमारी के लिए दान की उम्मीद करना ही बेकार है. देश भर में गरीब यह मांग कर भी नहीं रहे. शहरी लोग ही औक्सीजन, वैंटीलेटर, बैड, रेमेडिसिवर को हल्ला मचा रहे हैं.
लेकिन यह न भूलें कि कोविड ने देश को 10-15 साल पीछे धकेल दिया है. सरकार टैक्स चाहे ज्यादा वसूल ले पर आम जनता गरीब हो गई है और गरीब और गरीब हो गया है. वह कोविड से चाहे मरे या न मरे खराब खाने और बेरोजगारी से जरूर मरेगा.