ऋषभ ने अपने कपड़ों की अटैची उठाई और दान में मिले पलंग व 4 बरतनों के साथ एक गैस का चूल्हा खरीदा और ऊपर के पोर्शन में अपनी गृहस्थी बसा ली. शोभा तो बहू को ले कर पहले ही कई तरह के पूर्वाग्रहों से ग्रस्त थी, ऊपर से छोटी जाति की लड़की. हालांकि वह बहुत ज्यादा जातिवाद नहीं मानती थी पर फिर भी इस स्तर की जाति तक जाना, रुढ़ीवादिता से ग्रसित उस का मन भी बहुत खुल कर बहू को अपना नहीं पा रहा था. इसलिए उस ने भी पति सुकेश को मनाने की कोशिश नहीं की. बहूबेटे विवाह के अगले दिन 10 दिन के हनीमून ट्रिप पर निकल गए. उस ने भी विवाह के बाद के कार्य, रिश्तेदारों में मिठाईकपड़े वगैरह का लेनदेन निबटाया. अपने निकट रिश्तेदारों का इस विवाह में मूड जो उखड़ा था, उखड़ा ही रहा. वे कर भी क्या सकते थे. ‘बेटे की मरजी थी’ कह कर उन्होंने हाथ झाड़ दिए थे. बच्चों के वापस आने का दिन पास आ रहा था. इसी बीच सुकेश औफिस की तरफ से एक हफ्ते की ट्रेनिंग के लिए चेन्नई चले गए. उस के अगले दिन बेटेबहू हनीमून से वापस आ गए.
सुबह शोभा की देर से नींद खुली. उठ कर वह बाथरूम में फ्रैश होने चली गई. मुंह धो कर वह तौलिए से पोंछती हुई बाहर आ रही थी कि सुबहसुबह कोयल सी कुहुक कानों में मधुर संगीत घोल गई.
‘‘मां, चाय लाई हूं आप के लिए,’’ मुखड़े पर मीठी मुसकान की चाशनी घोले माधवी ट्रे लिए खड़ी थी. सुबहसुबह की धूप से उज्ज्वल मुखड़े पर स्निग्ध चांदनी छिटकी हुई थी.
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