‘अगर उन्हें किसी मर्द की जरूरत थी तो पहले ही विवाह कर लेतीं. अब इस उम्र में यह सब करना क्या ठीक है?’ लता कुछ रुष्ट होते हुए बोली.
‘अगर पहले विवाह कर लेतीं तो आज सुधीर की दशा कुछ और ही होती. लता, समझने की कोशिश करो. तुम भी एक औरत हो. मर्द हो या औरत, जवानी के दिन तो फिर भी निकल जाते हैं, पर प्रौढ़ावस्था में ही एकदूसरे की जरूरत महसूस होती है. हो सकता है, यही जरूरत उन दोनों को करीब लाई हो. जवानी तो संघर्षों के कारण बीत गई, पर अब जब सुधीर भी अपने पद पर स्थायी हो गया है, सुमन भी अपनी हमउम्र सहेलियों के साथ व्यस्त हो गई है तो अकेलापन तो तुम्हारी मां को ही महसूस होता होगा.’
‘तुम बेकार की बातें कर रही हो,’ सुधीर बोला, ‘दुनिया क्या कहेगी कि जवान बेटी घर पर बैठी है और मां की शादी हो रही है.’
‘कभी तो समाज का भय छोड़ कर अपने प्रियजनों के हित के बारे में सोचने की आदत डालो. समाज का क्या है, वह तो राई का पहाड़ बना देता है, शादी हो जाने के बाद कोई कुछ नहीं कहेगा. अगर कोई कहेगा तो थोड़े दिन बोलेगा, फिर अपनेआप ही सब चुप हो जाएंगे.’
‘लोग चुप नहीं होंगे, उलटे, सुमन की शादी करनी मुश्किल हो जाएगी.’
‘ठीक है, तुम्हें अगर सिर्फ यही फिक्र है तो सुमन की शादी के बाद सोच लेना. उस व्यक्ति से बात तो कर के देखो.’
‘उस का नाम मत लो. उस को देखते ही मुझे नफरत होने लगती है. और उसे मैं बाप बोलूंगा, हरगिज नहीं.’
‘मैं मानती हूं कि एकाएक उसे पिता का स्थान देना बहुत कठिन है, पर धीरेधीरे कोशिश करने पर सब सामान्य हो जाएगा. शादी के बाद सप्ताह में एक बार मुलाकात करना, फिर देखना तुम्हारी नफरत कैसे मिट जाती है. अपरिचित व्यक्ति भी कुछ दिन साथ रहने पर अपना लगने लगता है, फिर वह तो कुछ हक भी रखेगा.’
‘हक? मैं उसे कोई हक नहीं देने वाला,’ सुधीर अभी भी अपनी बात पर अड़ा हुआ था.
‘मैं जानती हूं कि हम जिसे प्यार करते हैं, उस पर किसी और की हिस्सेदारी बरदाश्त नहीं कर पाते. पर तुम एक बार अपनी मां के बारे में सोचो, सिर्फ एक बार,’ मैं उसे समझाते हुए बोली.
‘ठीक है, कभी सोचेंगे,’ सुधीर हथियार डालते हुए बोला.
‘अच्छा, मेरी बातों पर गौर करना.’
‘हां, भई हां, तुम्हारी मूल्यवान बातों को मैं कैसे भूल सकता हूं. खैर, कब वापस जा रही हो?’
‘अगले मंगलवार को.’
‘बस, इतने ही दिन?’
‘हां, मेरे पति के चाचा जा रहे हैं, उन का साथ मिल जाएगा.’
‘हम तुम्हें छोड़ने के लिए एयरपोर्ट आएंगे,’ सुधीर ने कहा.
इतने में सुमन के टीचर भी चले गए. फिर हम काफी देर तक बातें करते रहे. करीब 6 बजे मैं घर लौटी.
समय अपनी गति से चल रहा था. मेरे जाने का समय भी आ गया था. भावभीनी विदाई के बाद मैं विमान में चढ़ गई. अपनी गलियों, महल्लों को छोड़ते बहुत दुख हो रहा था. पति के यहां स्थायी रूप से रहने के कारण मुझे भी यहां रहना पड़ रहा था, वरना मन तो हमेशा भारत में ही भटकता रहता था.
सुधीर का यह तीसरा पत्र था. 2 पत्र वह पहले भी भेज चुका था. पहले पत्र में अपनी उन्नति के बारे में लिखा था और दूसरे पत्र में सुमन के विवाह के बारे में.
मैं ने फिर से उस पत्र को गौर से देख कर पढ़ना शुरू किया, जिस में लिखा था:
‘‘प्रिय रेखा,
‘‘असीम याद
‘‘आशा है, तुम पूरी तरह स्वस्थ व सुखी होगी. तुम्हें याद है, एक साल पहले की वह घटना, जब तुम ने मां की शादी करने के लिए लंबाचौड़ा भाषण दिया था.
‘‘आज तुम्हारा दिया हुआ वह भाषण काम आ गया है. तुम्हें जान कर हार्दिक खुशी होगी कि मैं ने मां का विवाह उसी व्यक्ति के साथ संपन्न करा दिया है. तुम सोच रही होगी कि यह सब कैसे हुआ.
‘‘दरअसल, बात यह थी कि सुमन की शादी के बाद मां रूखीरूखी सी रहने लगी थीं. धीरेधीरे उन का स्वास्थ्य गिरने लगा. इधर मैं भी अधिक व्यस्त हो चुका था, इसलिए मां को पूरा वक्त नहीं दे पाया.
‘‘मां की बीमारी के चलते लता भी काफी दुखी रहने लगी. वह मुझ पर जोर देती रही कि रेखा की बात मान लो. फिर मां ने जो बिस्तर पकड़ा तो 3 दिनों तक उठ ही न पाईं.
‘‘वह व्यक्ति भी मां से मिलने आया. पहले तो मुझे थोड़ा गुस्सा आया, पर लता के जोर देने पर मैं ने उस से बात की. वह शादी करने को तैयार हो गया. फिर मैं ने मां का विवाह कोर्ट में जा कर करा दिया. सुमन, उस का पति और जापान से उस व्यक्ति का बेटा भी आया था. मैं तुम्हें बता नहीं सकता कि मां उस दिन कितनी सुंदर लग रही थीं. अंतिम पड़ाव में मिले सुख के कारण वे भावविभोर हो गईं. शर्म के चलते वे मुझ से कुछ कह न पाईं और न ही मैं कुछ बोल पाया.
‘‘जापान से आया उस व्यक्ति का बेटा भी मेरे प्रति कृतज्ञता प्रकट करने लगा. उस ने कहा कि वह अब बेफिक्र हो कर जापान में काम कर सकता है. अब हम हर रविवार को मिलते हैं.
‘‘तुम ने सच ही कहा था कि साथ रहने से अपरिचित व्यक्ति भी अपना लगने लगता है. वास्तव में मुझे अब वे अच्छे लगने लगे हैं. उन की गंभीर बातें मेरे दिलोदिमाग में उतर जाती हैं. वे हमारा पूरा खयाल रखते हैं. अगर हम किसी दूसरे को पलभर के लिए भी खुशी दे सकें तो उस से बढ़ कर दूसरा कोई सुख नहीं, फिर मां तो मेरी अपनी ही हैं.
‘‘मेरा लंबाचौड़ा खत पढ़ कर शायद तुम बोर हो गई होगी. पर मैं और लता तुम्हारे प्रति हमेशा कृतज्ञ रहेंगे. जो कुछ तुम ने किया, उस के लिए बहुतबहुत धन्यवाद.
‘‘तुम्हारा दोस्त,
‘‘सुधीर.’’
पत्र मेज पर रख मैं आंखें मूंद कर लेट गई. मुझे खुशी थी कि मैं अपनी जिंदगी में कम से कम एक व्यक्ति को तो सच्ची खुशी प्रदान कर सकी.