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Family Story : अंतिम पड़ाव का सुख-भाग 3

‘अगर उन्हें किसी मर्द की जरूरत थी तो पहले ही विवाह कर लेतीं. अब इस उम्र में यह सब करना क्या ठीक है?’ लता कुछ रुष्ट होते हुए बोली.

‘अगर पहले विवाह कर लेतीं तो आज सुधीर की दशा कुछ और ही होती. लता, समझने की कोशिश करो. तुम भी एक औरत हो. मर्द हो या औरत, जवानी के दिन तो फिर भी निकल जाते हैं, पर प्रौढ़ावस्था में ही एकदूसरे की जरूरत महसूस होती है. हो सकता है, यही जरूरत उन दोनों को करीब लाई हो. जवानी तो संघर्षों के कारण बीत गई, पर अब जब सुधीर भी अपने पद पर स्थायी हो गया है, सुमन भी अपनी हमउम्र सहेलियों के साथ व्यस्त हो गई है तो अकेलापन तो तुम्हारी मां को ही महसूस होता होगा.’

‘तुम बेकार की बातें कर रही हो,’ सुधीर बोला, ‘दुनिया क्या कहेगी कि जवान बेटी घर पर बैठी है और मां की शादी हो रही है.’

‘कभी तो समाज का भय छोड़ कर अपने प्रियजनों के हित के बारे में सोचने की आदत डालो. समाज का क्या है, वह तो राई का पहाड़ बना देता है, शादी हो जाने के बाद कोई कुछ नहीं कहेगा. अगर कोई कहेगा तो थोड़े दिन बोलेगा, फिर अपनेआप ही सब चुप हो जाएंगे.’

‘लोग चुप नहीं होंगे, उलटे, सुमन की शादी करनी मुश्किल हो जाएगी.’

‘ठीक है, तुम्हें अगर सिर्फ यही फिक्र है तो सुमन की शादी के बाद सोच लेना. उस व्यक्ति से बात तो कर के देखो.’

‘उस का नाम मत लो. उस को देखते ही मुझे नफरत होने लगती है. और उसे मैं बाप बोलूंगा, हरगिज नहीं.’

‘मैं मानती हूं कि एकाएक उसे पिता का स्थान देना बहुत कठिन है, पर धीरेधीरे कोशिश करने पर सब सामान्य हो जाएगा. शादी के बाद सप्ताह में एक बार मुलाकात करना, फिर देखना तुम्हारी नफरत कैसे मिट जाती है. अपरिचित व्यक्ति भी कुछ दिन साथ रहने पर अपना लगने लगता है, फिर वह तो कुछ हक भी रखेगा.’

‘हक? मैं उसे कोई हक नहीं देने वाला,’ सुधीर अभी भी अपनी बात पर अड़ा हुआ था.

‘मैं जानती हूं कि हम जिसे प्यार करते हैं, उस पर किसी और की हिस्सेदारी बरदाश्त नहीं कर पाते. पर तुम एक बार अपनी मां के बारे में सोचो, सिर्फ एक बार,’ मैं उसे समझाते हुए बोली.

‘ठीक है, कभी सोचेंगे,’ सुधीर हथियार डालते हुए बोला.

‘अच्छा, मेरी बातों पर गौर करना.’

‘हां, भई हां, तुम्हारी मूल्यवान बातों को मैं कैसे भूल सकता हूं. खैर, कब वापस जा रही हो?’

‘अगले मंगलवार को.’

‘बस, इतने ही दिन?’

‘हां, मेरे पति के चाचा जा रहे हैं, उन का साथ मिल जाएगा.’

‘हम तुम्हें छोड़ने के लिए एयरपोर्ट आएंगे,’ सुधीर ने कहा.

इतने में सुमन के टीचर भी चले गए. फिर हम काफी देर तक बातें करते रहे. करीब 6 बजे मैं घर लौटी.

समय अपनी गति से चल रहा था. मेरे जाने का समय भी आ गया था. भावभीनी विदाई के बाद मैं विमान में चढ़ गई. अपनी गलियों, महल्लों को छोड़ते बहुत दुख हो रहा था. पति के यहां स्थायी रूप से रहने के कारण मुझे भी यहां रहना पड़ रहा था, वरना मन तो हमेशा भारत में ही भटकता रहता था.

सुधीर का यह तीसरा पत्र था. 2 पत्र वह पहले भी भेज चुका था. पहले पत्र में अपनी उन्नति के बारे में लिखा था और दूसरे पत्र में सुमन के विवाह के बारे में.

मैं ने फिर से उस पत्र को गौर से देख कर पढ़ना शुरू किया, जिस में लिखा था:

‘‘प्रिय रेखा,

‘‘असीम याद

‘‘आशा है, तुम पूरी तरह स्वस्थ व सुखी होगी. तुम्हें याद है, एक साल पहले की वह घटना, जब तुम ने मां की शादी करने के लिए लंबाचौड़ा भाषण दिया था.

‘‘आज तुम्हारा दिया हुआ वह भाषण काम आ गया है. तुम्हें जान कर हार्दिक खुशी होगी कि मैं ने मां का विवाह उसी व्यक्ति के साथ संपन्न करा दिया है. तुम सोच रही होगी कि यह सब कैसे हुआ.

‘‘दरअसल, बात यह थी कि सुमन की शादी के बाद मां रूखीरूखी सी रहने लगी थीं. धीरेधीरे उन का स्वास्थ्य गिरने लगा. इधर मैं भी अधिक व्यस्त हो चुका था, इसलिए मां को पूरा वक्त नहीं दे पाया.

‘‘मां की बीमारी के चलते लता भी काफी दुखी रहने लगी. वह मुझ पर जोर देती रही कि रेखा की बात मान लो. फिर मां ने जो बिस्तर पकड़ा तो 3 दिनों तक उठ ही न पाईं.

‘‘वह व्यक्ति भी मां से मिलने आया. पहले तो मुझे थोड़ा गुस्सा आया, पर लता के जोर देने पर मैं ने उस से बात की. वह शादी करने को तैयार हो गया. फिर मैं ने मां का विवाह कोर्ट में जा कर करा दिया. सुमन, उस का पति और जापान से उस व्यक्ति का बेटा भी आया था. मैं तुम्हें बता नहीं सकता कि मां उस दिन कितनी सुंदर लग रही थीं. अंतिम पड़ाव में मिले सुख के कारण वे भावविभोर हो गईं. शर्म के चलते वे मुझ से कुछ कह न पाईं और न ही मैं कुछ बोल पाया.

‘‘जापान से आया उस व्यक्ति का बेटा भी मेरे प्रति कृतज्ञता प्रकट करने लगा. उस ने कहा कि वह अब बेफिक्र हो कर जापान में काम कर सकता है. अब हम हर रविवार को मिलते हैं.

‘‘तुम ने सच ही कहा था कि साथ रहने से अपरिचित व्यक्ति भी अपना लगने लगता है. वास्तव में मुझे अब वे अच्छे लगने लगे हैं. उन की गंभीर बातें मेरे दिलोदिमाग में उतर जाती हैं. वे हमारा पूरा खयाल रखते हैं. अगर हम किसी दूसरे को पलभर के लिए भी खुशी दे सकें तो उस से बढ़ कर दूसरा कोई सुख नहीं, फिर मां तो मेरी अपनी ही हैं.

‘‘मेरा लंबाचौड़ा खत पढ़ कर शायद तुम बोर हो गई होगी. पर मैं और लता तुम्हारे प्रति हमेशा कृतज्ञ रहेंगे. जो कुछ तुम ने किया, उस के लिए बहुतबहुत धन्यवाद.

‘‘तुम्हारा दोस्त,

‘‘सुधीर.’’

पत्र मेज पर रख मैं आंखें मूंद कर लेट गई. मुझे खुशी थी कि मैं अपनी जिंदगी में कम से कम एक व्यक्ति को तो सच्ची खुशी प्रदान कर सकी.

मानसून आया खुशिया लाया …

“मौसम विभाग के अनुसार दिल्ली में 20 जून तक मानसून दस्तक देगा और ताजनगरी आगरा के साथ-साथ प्रदेश की राजधानी लखनऊ में भी 20 जून से 25 जून के बीच मानसूनी हवाए धरती का प्यास बुझाने लगेगी . ”

* मानसून ने केरल तट पर दस्तक दिया :- एक हफ्ते की देरी के बाद दक्षिण पश्चिमी मानसून ने केरल तट पर शनिवार को दस्तक दे दिया है. दक्षिण पश्चिम मानसून ही उत्तर और मध्य भारत सहित देश के अधिकांश इलाकों में लगभग चार महीने तक चलने वाली बारिश की ऋतु का वाहक माना जाता है. देश में मानसून के दस्तक देने की खबर, भीषण गर्मी, किसानों की समस्या और जलाशयों के तेजी से गिरते जलस्तर की चिंता से राहत देने वाली साबित होगी.

* मॉनसून के लिए अनुकूल स्थितियां बन रही है :- देश में दक्षिण-पश्चिम मानसून अपनी सामान्य रफ्तार से आगे बढ़ रहा है. अबतक दक्षिण भारत के कई राज्यों के तटीय इलाकों में मानसून की झमाझम बारिश देखी गई है. भारत मौसम विभाग के अनुसार, अगले 24 घंटे में बंगाल की खाड़ी में एक निम्न दबाव का क्षेत्र बन सकता है. मौसम विभाग का कहना है कि दक्षिण-पश्चिम मॉनसून के लिए अनुकूल स्थितियां बन रही है. अगर ऐसा ही रहा तो महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना समेत देश के कई हिस्सों में बारिश हो सकती है. वहीं, दक्षिण पश्चिम मॉनसून अगले दो दिन में बंगाल की खाड़ी, पूर्वोत्तर के राज्यों, सिक्किम, ओडिशा के कुछ हिस्सों और गंगीय पश्चिम बंगाल में आगे बढ़ने के साथ बारिश भी हो सकती है. तटीय कर्नाटक और केरल के बाद पिछले दो दिनों में दक्षिणी आंतरिक कर्नाटक, तमिलनाडु के अधिकांश हिस्सों और रायलसीमा और दक्षिण तटीय आंध्र प्रदेश के कुछ हिस्सों में मानसून ने दस्तक दे दिया. पूर्वोत्तर भारत में मानसून अगले दो-तीन दिनों में दस्तक दे सकता है. इसके अलावा, कोंकण, महाराष्ट्र, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के बाकी हिस्सों में भी मानसून आगे बढ़ेगा.

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* अगले सप्ताह बिहारझारखंड में दस्तक :-  बंगाल की खाड़ी पर जल्द ही एक निम्न दबाव का क्षेत्र बनने की संभावना है. बंगाल की खाड़ी में यह पहला मानसून सिस्टम होगा. मानसून के शुरुआती समय में जब भी ऐसे मौसमी सिस्टम बनते हैं तो यह बहुत दूर तक नहीं जाते हैं. अनुमान है कि यह सिस्टम देश के पूर्वी तटों और इसके आसपास के पूर्वी भारत के भागों पर ही रहने की संभावना है. एजेंसी के अनुसार, दक्षिण-पश्चिम मॉनसून 15 जून तक बिहार और झारखंड तक आ जाता है. यह मौसमी सिस्टम 12 जून को ओडिशा के तटों को पार करने के बाद पूर्वी भारत के ओर मुड़ सकता है और बिहार, झारखंड तथा पश्चिम बंगाल के ऊपर पहुंच जाएगा. आगे यह तराई क्षेत्रों में जा सकता है.

* तेज बारिश होने की संभावना:- अरब सागर पर दक्षिण-पश्चिमी हवाओं के सक्रिय होने के कारण आने वाले समय में मानसून कर्नाटक और रायलसीमा के भागों को पार करते हुए तेलंगाना पहुंच जाएगा. साथ ही मुंबई समेत महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र और मध्य महाराष्ट्र क्षेत्र में भी जल्द ही मानसून के आने की अच्छी खबर मिलेगी. आने वाले दिनों में मानसून के आगे बढ़ने के साथ ओडिशा, गंगीय पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और महाराष्ट्र में 10 से 16 जून के बीच तेज बारिश होने की संभावना है. कृषि क्षेत्र के लिए मानसून की तरफ से अब तक सकारात्मक संकेत मिल रहे हैं.

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* मानसूनी वर्षा कृषि क्षेत्र के लिए अत्यंत आवश्यक हैं :-   हमारा देश एक कृषि प्रधान देश है. आज भी हमारे देश में मानसून का बहुत महत्त्व है. आज भी हमारे का बहुत बड़ा इलाकों की पैदावार मानसून पर निर्भर करती है. मानसूनी वर्षा होना भारतीय कृषि क्षेत्र के लिए अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि सिंचाई सुविधाओं के अभाव में यहां की कृषि मुख्यत, मानसून पर ही निर्भर है. देश का 60 प्रतिशत खेतीबाड़ी का इलाका आज भी प्राकृतिक सिचाई स्त्रोतों पर निर्भर रहा है, और बाकि बचे 40 प्रतिशत सिचाई के स्त्रोत अप्रत्यक्ष रूप से आश्रित है. किसी साल अगर वर्ष नहीं होती है, तो यह चालीस फीसदी वाले सिचाई स्त्रोत भी जवाब देने लगते है. जैसे कि वर्षा कम होने पर धरती का  जलस्तर  भी नीचे चला जाता है, जिसके फलस्वरूप नलकूप भी अधिक समय तक कम नही करते, ठीक वही होता है नदियों और नहरों के साथ वर्षा ना होने पर उनका जल स्तर नीचे गिरने लगता है, जिससे बंधो पर असर पड़ता है. मानसूनी वर्षा अधिक होने पर भारतीय किसानो के जीवन में खुशहाली का नवदीप जलाता है . अच्छी वर्षा होती है तो अच्छा पैदावार होता है और जब पैदावार उम्मीद के अनुसार होता है, तो खुशिया का आना ही होता है.

* मानसूनी वर्षा और भारत की अर्थव्यवस्था –  देश की अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा कृषि पर टिकी हुई है और कृषि का साठ फीसदी भाग मानसून पर निर्भर है. यानि जिस साल मानसून बेहतर होगा उस साल की खेतीबाड़ी उत्तम होगी और रिकार्ड तोड़ पैदवार होगा. बीते दो सालो में मानसून के कारण ही खाद्यान्न का रिकॉर्ड उत्पादन हुआ. अगर इस मानसून बेहतर रहा तो इस साल भी रिकार्ड उत्पादन होगा. रिकार्ड तोड़ उत्पादन से देश की अर्थव्यवस्था भी बेहतर होगा.

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*क्या है मानसूनी हवा मई-जून में देश के उत्तर-पश्चिमी भारत में भीषण गर्मी पड़ती है,  तब वहाँ कम दाव का क्षेत्र बनता है. इस कम दाव वाले क्षेत्र की ओर दक्षिणी गोलार्ध से भूमध्य रेखा के निकट से हवाएं दौड़ती हैं. दूसरी तरफ धरती की परिक्रमा सूरज के गिर्द अपनी धुरी पर जारी रहती है. निरंतर चक्कर लगाने की इस प्रक्रिया से हवाओं में मंथन होता है और उन्हें नई दिशा मिलती है. इस तरह दक्षिणी गोलार्ध से आ रही दक्षिणी-पूर्वी हवाएं भूमध्य रेखा को पार करते ही पलटकर कम दबाव वाले क्षेत्र की ओर गतिमान हो जाती हैं. ये हवाएं भारत में प्रवेश करने के बाद हिमालय से टकराकर दो हिस्सों में विभाजित होती हैं. इनमें से एक हिस्सा अरब सागर की ओर से केरल तट में प्रवेश करता है और दूसरा बंगाल की खाड़ी की ओर से प्रवेश कर उड़ीसा, पश्चिमी बंगाल, बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल हरियाणा और पंजाब तक बरसती हैं. अरब सागर से दक्षिण भारत में प्रवेश करने वाली हवाएं आन्ध्रप्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश और राजस्थान में बरसती है. इन मानसूनी हवाओं पर भूमध्य और कश्यप सागर के ऊपर बहने वाली हवाओं के मिजाज का प्रभाव भी पड़ता है. प्रशांत महासागर के ऊपर प्रवाहमान हवाएं भी हमारे मानसून पर असर डालती हैं. वायुमंडल के इन क्षेत्रों में जब विपरीत परिस्थिति निर्मित होती है तो मानसून के रुख में परिवर्तन होता है और वह कम या ज्यादा बरसात के रूप में भारतीय सीमा के अन्दर बरसती है.

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* कैसे किया जाता है पूर्वानुमान मानसून का समय 1 जून से 30 सितंबर तक होता है यानी मानसून का पूरा समयावधि चार महीने की होती है. लेकिन इससे संबंधित भविष्यवाणी 16 अप्रैल से 25 मई के बीच कर दी जाती है. मानसून की भविष्यवाणी के लिए भारतीय मानसून विभाग कुल 16 तथ्यों का अध्ययन करता है. 16 तथ्यों को चार भागों में बांटा गया है और सारे तथ्यों को मिलाकर मानसून के पूर्वानुमान निकाले जाते हैं. पूर्वानुमान निकालते समय तापमान, हवा, दबाव और बर्फबारी जैसे कारकों का ध्यान रखा जाता है. भारत के विभिन्न भागों के तापमान का अलग- अलग अध्ययन किया जाता है. मार्च में उत्तर भारत का न्यूनतम तापमान और पूर्वी समुद्री तट का न्यूनतम तापमान, मई में मध्य भारत का न्यूनतम तापमान और जनवरी से अप्रैल तक उत्तरी गोलार्ध की सतह का तापमान नोट किया जाता है. तापमान के अलावा हवा का भी अध्ययन किया जाता है. वातावरण में अलग-अलग महीनों में छह किलोमीटर और 20 किलोमीटर ऊपर बहने वाली हवा के रुख को नोट किया जाता है. इसके साथ ही वायुमंडलीय दबाव भी मानसून की भविष्यवाणी में अहम भूमिका निभाता है. वसंत ऋतु में दक्षिणी भाग का दबाव और समुद्री सतह का दबाव जबकि जनवरी से मई तक हिंद महासागर विषुवतीय दबाव को मापा जाता है. इसके बाद बर्फबारी का अध्ययन किया जाता है. जनवरी से मार्च तक हिमालय के खास भागों में बर्फ का स्तर, क्षेत्र और दिसंबर में यूरेशियन भाग में बर्फबारी मानसून की भविष्यवाणी में अहम किरदार निभाती है. सारे तथ्यों के अध्ययन के लिए आंकड़े उपग्रह द्वारा एकत्र किए जाते हैं. इन सब काम में मौसम विभाग अपने सभी सभी केन्द्रों का मदद लेते है .

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* आधुनिक संसाधनों का निरंतर विस्तार हो रहा है :- हमारे देश में 1875 में मौसम विभाग की बुनियाद रखी गई थी. आजादी के बाद से मौसम विभाग में आधुनिक संसाधनों का निरंतर विस्तार होता चला आ रहा है. विभाग के पास 550 भू-वेधशालायें, 63 गुब्बारा केन्द्र, 32 रेडियो पवन वेधशालायें, 11 तूफान संवेदी और 8 तूफान सचेतक रडार केन्द्र हैं, 8 उपग्रह चित्र प्रेषण और ग्राही केन्द्र हैं. इसके अलावा वर्षा दर्ज करने वाले 5 हजार पानी के भाप बनकर हवा होने पर निगाह रखने वाले केन्द्र, 214 पेड़ पौधों की पत्तियों से होने वाले वाष्पीकरण को मापने वाले, 35 तथा 38 विकिरणमापी एवं 48 भूकम्पमापी वेधशालाएं हैं. इसके अलावा अंतरिक्ष में छोड़े गये उपग्रहों के माध्यम से सीधे मौसम की जानकारी कम्प्यूटरों में दर्ज होती रहती है. जिनके मदद से मौसम विभाग मौसम संबंधित आकंडे एकत्र करते है और पूर्वानुमान लगाते है. इन सारे तथ्यों की जांच पड़ताल में थोड़ी सी असावधानी या मौसम में किन्हीं प्राकृतिक कारणों से बदलाव का असर मानसून की भविष्यवाणी पर पड़ता है .

डाक्टर की मेहरबानी: कौनसी गलती कर बैठी थी आशना?

एकदिन गौतम अपनी मोटरसाइकिल से आशना को ले कर शहर से कुछ दूर स्थित एक पार्क में पहुंचा.  झील के किनारे एकांत में दोनों प्रेमी पैर पसारे बैठे थे. उन्हें लगा दूरदूर तक उन्हें देखने वाला कोई नहीं है.

तभी  झील के पानी में छपाक की धीमी सी आवाज हुई, तो आशना बोली, ‘‘लगता है किसी ने पानी में पत्थर फेंका है… कोई आसपास है और हमें देख रहा है.’’

‘‘अरे, ऐसा कुछ नहीं है. कभीकभी मछलियां ही पानी के ऊपर उछलती रहती हैं. यह उन्हीं की आवाज है,’’ गौतम बोला.

आशना के बालों से उठती भीनीभीनी मादक खुशबू से गौतम को बिन पीए ही अजीब सा नशा हो रहा था. उस ने पूछा, ‘‘तुम कौन से ब्रैंड का तेल लगाती हो?’’

आशना मुसकरा दी और फिर उस ने धीरेधीरे गौतम की जांघ पर अपना सिर रख दिया. गौतम उस के लंबे बालों को हाथों में ले कर

कभी सूंघता तो कभी सहलाता. मौसम भी खुशनुमा था. वह आशना के चेहरे पर देर से निगाहें टिकाए था.

आशना ने पूछा, ‘‘क्या देख रहे हो?’’

‘‘तुम्हारे मृगनयनों को.’’

‘‘अब चलें? शाम हो चली है. अंधेरा होने से पहले घर पहुंचना होगा,’’ कह वह धीरेधीरे उठ खड़ी हुई और अपनी साड़ी की सलवटें ठीक करने लगी. आसमानी रंग की प्लेन साड़ी उस पर अच्छी लग रही थी. तभी हवा का एक झोंका आया और उस के आंचल ने उड़ कर गौतम के चेहरे को ढक लिया.

गौतम ने उस के पल्लू को पकड़ लिया तो वह बोली, ‘‘छोड़ दो आंचल.’’

‘‘मौसम है आशिकाना और आज प्यार करने को जी चाह रहा है.’’

‘‘छोड़ो, देर हो रही है.’’

‘‘चलो आज छोड़ देता हूं,’’ कह आशना की कमर के खुले हिस्से को अपनी बांह के घेरे में ले कर उसे कस कर अपनी ओर खींच लिया और फिर सट कर दोनों बाइक की तरफ चल पड़े.

गौतम और आशना की इन हरकतों को थोड़ी ही दूर बैठा एक दंपती देख रहा था. डाक्टर प्रेम लाल और डाक्टर शीला माथुर. उस पार्क से थोड़ी दूर उन का अस्पताल था. कभीकभी अस्पताल से छूटने पर अपना तनाव और थकान कम करने के लिए वे भी इसी झील के किनारे बैठते थे.

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उन दोनों प्रेमियों के जाने पर शीला बोलीं, ‘‘मैं इस लड़के को जानती हूं. कुछ दिनों तक मैं उस के महल्ले में रही थी. एकदम आवारा लड़का है. अमीर बाप का बिगड़ा लड़का है. कालेज में एक ही क्लास में 3 साल से फेल होता आ रहा है और नईनई लड़कियों को फंसाता है. एक लड़की ने इस के दुष्कर्मों के चक्कर में पड़ कर आत्महत्या का भी प्रयास किया था.’’

डाक्टर प्रेम ने कहा, ‘‘छोड़ो, हमें क्या लेनादेना है इन लोगों से.’’

इस घटना के करीब 4-5 महीने बाद डाक्टर दंपती की नाइट ट्यूटी थी. अचानक एक औटोरिकशा से एक दंपती ने एक लड़की को सहारा दे कर उतारा. वे उस लड़की के साथ इमरजैंसी रूम में डाक्टर के पास गए. औरत बोली, ‘‘डाक्टर साहब, यह मेरी बेटी है. आज दोपहर से ही इस के पेट में बहुत दर्द हो रहा है और ब्लीडिंग भी हो रही है.’’

डाक्टर ने लड़की का ब्लड प्रैशर चैक किया और तुरंत फोन पर कहा, ‘‘डाक्टर शीला, आप तुरंत यहां आ जाएं. एक इमरजैंसी केस है.’’

2 मिनट के अंदर ही स्त्रीरोग विशेषज्ञा शीला वहां आ गईं. उन्होंने रोगी को बैड पर लिटा कर परदा लगा दिया. कुछ देर बाद वे बोलीं, ‘‘इसे तो बहुत ज्यादा ब्लीडिंग हो रही है. फौरन औपरेशन थिएटर में ले जाना होगा… मु झे लगता है औपरेशन करना होगा.’’

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औपरेशन का नाम सुन कर उस लड़की के मातापिता घबरा उठे. पिता ने पूछा, ‘‘डाक्टर साहिबा, खतरे की कोई बात तो नहीं है?’’

‘‘अभी कुछ नहीं कहा जा सकता है. आप लोग ओटी के बाहर इंतजार करें,’’ कह वे अपने पति डाक्टर प्रेम के साथ औपरेशन थिएटर में गईं.

थोड़ी देर बार एक नर्स ने बाहर आ कर पूछा, ‘‘इस लड़की के गार्जियन आप लोग हैं?’’

उस के पिता उठ कर बोले, ‘‘हां, मैं उस का पिता हूं.’’

नर्स ने एक पेपर देते हुए कहा, ‘‘आप जल्दी से इस पर साइन कर दें, लड़की का औपरेशन करना है, अभी तुरंत.’’

‘‘क्या बात है सिस्टर?’’

‘‘अभी बात करने का वक्त नहीं है. बाकी बातें औपरेशन के बाद डाक्टर से पूछ लेना. आप को डिस्चार्ज से पहले एक बोतल खून ब्लड बैंक में जमा कराना होगा. अभी हम अपने स्टौक से खून चढ़ा रहे हैं.’’

उस आदमी ने ब्लड बैंक में जा कर अपना खून जमा किया और वापस आ कर ओटी के बाहर बैंच पर बैठते हुए पत्नी से कहा, ‘‘पता नहीं बैठेबैठाए आशना बिटिया को अचानक क्या हो गया है?’’

औपरेशन टेबल पर डाक्टर ने आशना से पूछा, ‘‘क्या यह उसी लड़के के साथ का नतीजा है, जिस के साथ अकसर तुम लेक पार्क में जाती हो?’’

आशना ने रोते हुए कहा, ‘‘जी डाक्टर, पर मेरी एक गलती का अंजाम यह होगा, मैं नहीं जानती थी. आप मेरी जान बचाने की कोशिश न करें, मुझे मरने दें.’’

‘‘मैं तुम्हारी तरह बेवकूफ और गैरजिम्मेदार नहीं हूं… मैं अपनी ड्यूटी जानती हूं.’’

‘‘पर मैं इस कलंक के साथ जी कर क्या करूंगी? अगर मु झे बचा भी लेती हैं तो भी मैं सुसाइड करने वाली हूं… मेहरबानी कर मुझे मरने दें.’’

‘‘तुम घबराओ नहीं, मैं तुम्हें बदनाम नहीं होने दूंगी और तुम यहां से सहीसलामत घर जाओगी. आगे अपनी पढ़ाई पर ध्यान देना और अपने मातापिता की इज्जत का खयाल करना.’’

‘‘जी, डाक्टर.’’

‘‘बस, अब तुम पर ऐनेस्थीसिया का असर होगा और मैं औपरेशन करने जा रही हूं.’’

करीब 2 घंटे बाद डाक्टर शीला ओटी से बाहर आईं. उन्हें देखते ही आशना के मातापिता दौड़े आए. पूछा, ‘‘अब कैसी है हमारी बेटी?’’

‘‘आप बेटी को सही समय पर अस्पताल ले आए वरना और ज्यादा ब्लीडिंग होने से जान का खतरा था. आप की बेटी का औपरेशन सफल रहा और खतरे की कोई बात नहीं है.’’

‘‘पर उसे हुआ क्या है?’’ आशना के पिता ने पूछा.

‘‘आप मेरे साथ मेरे कैबिन में आएं.’’

दोनों मातापिता डाक्टर के कैबिन में गए, तो डाक्टर शीला ने पेशैंट के पिता से पूछा, ‘‘आप ने फाइल में बेटी की उम्र 17 साल लिखी है यानी वह नाबालिग है… माफ करना आशना गर्भवती थी?’’

‘‘पर यह कैसे संभव है?’’

‘‘यह तो आप की बेटी ही बता सकती है. उस का एक फर्टलाइज्ड एग गर्भाशय तक नहीं पहुंच सका और फैलोपियन ट्यूब में ही ठहर गया था. जब गर्भ बड़ा हो गया तो उस की नली फट गई और ब्लीडिंग होने लगी. उस नली को हम ने काट कर निकाल दिया है. अब चिंता की कोई बात नहीं है.’’

आशना के मातापिता ने आश्चर्य से डाक्टर की तरफ देखा और फिर शर्म से सिर  झुका लिया.

आशना को 1 सप्ताह बाद डिस्चार्ज होना था. डाक्टर शीला की सहायक ने पूछा, ‘‘डिस्चार्ज फाइल में क्या लिखें मैम? आप ने कहा था डिस्चार्ज फाइल तैयार करते समय आप से पूछने को?’’

‘‘पेशैंट को देने वाली डिस्चार्ज स्लिप पर तुम पूरा सच लिखना और हौस्पिटल की फाइल में लिखना दाहिनी साइड की फैलोपियन ट्यूब फट गई थी, जिसे औपरेशन कर निकाल दिया गया है. आगे एक नोट लिख देना कि डिटेल रिपोर्ट्स औफ सर्जरी गायनोकोलौजिस्ट की फाइल में है और यह डिटेल पेपर्स की फाइल मुझे दे देना, साथ ही यह बात बस हमारे बीच ही रहे. तुम भी एक औरत हो, समझ सकती हो.’’

शीला के पति डाक्टर प्रेम भी तब तक वहां आ गए थे. उन्होंने कहा, ‘‘शीला, यह तुम क्या कर रही हो? हौस्पिटल फाइल में ही औपरेशन नोट्स रहने दो. तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए, पेशैंट के प्रति हमदर्दी का यह मतलब नहीं है कि तुम अस्पताल के नियम तोड़ दो.’’

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‘‘तरीके से तो आप सही कह रहे हैं, पर इस नाबालिग बच्ची की नाजायज प्रैगनैंसी की खबर और लोगों के बीच फैल सकती है जिस से लड़की की बदनामी होगी. इस के भविष्य पर भी प्रतिकूल असर हो सकता है. मैं डाक्टर के साथ एक औरत भी हूं और इस लड़की का दर्द समझ सकती हूं.’’

फिर वे आशना के पिता से बोलीं, ‘‘मुझे आप की फाइल में सच लिखना पड़ेगा. यह फाइल आप की है, आप चाहें तो इसे नष्ट करें या रखें. आप की बेटी के हित में जितना मुझसे हो सकता था, मैंने वही किया है.’’

मां ने पूछा, ‘‘आशना भविष्य में मां बन सकती है या नहीं?’’

‘‘हां, बन सकती है. उस की एक फैलोपियन ट्यूब बिलकुल सही सलामत है.’’

‘‘पर इसके औपरेशन का दाग तो पेट पर रह जाएगा? शादी के बाद कहीं पति को कोई शक की संभावना तो नहीं रहेगी?’’

‘‘मैं ने लैप्रोस्कोपिक विधि से औपरेशन किया है. बहुत ही छोटा सा चीरा लगाया है. उस के पेट पर कोई बड़ा निशान नहीं रहेगा. जो है वह भी जल्दी भर जाएगा. आशना की शादी में अभी काफी समय बाकी है. मैं ने उस से बात की है. वह अपनी भूल पर शर्मिंदा है और बता रही थी कि अब वह पढ़ाई पर सीरियस होगी और एमए करने के बाद ही शादी करेगी.’’

आशना जब डिस्चार्ज हो कर घर आई तो उस ने मां से कहा, ‘‘अब मैं किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रही… जी कर क्या करूंगी?’’

‘‘खबरदार जो ऐसी बेवकूफी की बातें दिमाग में लाई. इसे एक हादसा समझ कर भूल जाओ. आगे किसी से इस की चर्चा भी नहीं करना. पति से भी नहीं. मन लगा कर पढ़ोलिखो. हम तुम्हारी शादी धूमधाम से करेंगे.’’

फिर मां ने अपने पति से कहा, ‘‘आप अब आशना से इस बारे में कुछ न कहेंगे. मैंने उस से बात की है. वह अपनी भूल पर बहुत शर्मिंदा है. वह अब पूरा ध्यान पढ़ाई पर लगाएगी.

‘‘भला हो उस लेडी डाक्टर का जिस ने हमारी इज्जत बचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी.’’

इस घटना के 7 साल बाद आशना फिर डाक्टर शीला के अस्पताल में आई. इस बार वह शादीशुदा थी और अपने पति के साथ थी. वह गर्भवती थी और चैकअप के लिए आई थी. शीला ने उस के पति को बाहर इंतजार करने के लिए कहा और आशना को अंदर बुलाया.

डाक्टर शीला ने आशना से पूछा, ‘‘तुम्हारे पेट का दाग लगभग मिट गया है. अभी कौन सा महीना चल रहा है?’’

‘‘5वां महीना चल रहा है मैम.’’

चैक करने के बाद डाक्टर शीला बोलीं, ‘‘बच्चा एकदम ठीक है. बस अपने खानपान पर ध्यान देना और थोड़ा ऐक्टिव रहने की कोशिश करना. इस से नैचुरल प्रसव में आसानी होगी. कंप्लीट रैस्ट की कोई जरूरत नहीं है. तुम्हारे पति बाहर बेचैन हो रहे हैं, तुम से बहुत प्यार करते हैं न?’’

‘‘जी मैम, मैं ने अपने पास्ट की बात उन्हें नहीं बताई है. मैं तो आत्महत्या करने की सोच रही थी, आप ने मुझे मरने से बचा लिया और मेरा भविष्य भी संवार दिया. आप के आभार के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं,’’ और उस की आंखें भर आईं.

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‘‘यह गुड न्यूज जल्दी से अपने पति को दो,’’ डाक्टर शीला बोलीं.

आशना कैबिन से बाहर निकली तो उस की आंखें अभी तक गली थीं. उस के पति ने पूछा  ‘‘क्या बात है आशना, सब ठीक है न? तुम्हारी आंखें गीली क्यों हैं?’’

‘‘ये खुशी के आंसू हैं… जच्चाबच्चा दोनों ठीक हैं. मिठाई खिलाना न भूलना आशना,’’ डाक्टर शीला ने कहा.

आशना और उस के पति दोनों ने हंस कर डाक्टर को थैंक्स कहा.

इन 6 फूलो में छुपा है सेहत का खजाना

सब्जियों और फलो में सेहत के छुपे खजाने के बारे में लगभग सभी जानते है, लेकिन फूलो में छुपे सेहत के खजाने के बारे में बहुत कम ही लोग जानते है. तो आईये आज जानते है। फूलों में छुपे सेहत के खजाने के बारे में …

प्रकृति की अनमोल देन है फूल .यदि आप चाहें तो इनका उपयोग करके शारीरिक व मानसिक रूप से स्वस्थ, सुंदर व आकर्षक रह सकते है. फूलों में फाइबर,कैल्शियम विटामिन, प्रोटीन और मिनरल का भंडार होता है जिनकी जरूरत शरीर को होती है.इसमें कई तरह के पोषक तत्वों की मौजूदगी रहती है. ये पोषक तत्व कई बीमारियों को शरीर से दूर रखते हैं. फूलों में फाइबर, कैल्शियम, विटामिन प्रोटीन और मिनरल का भंडार होता है, जिनकी जरूरत शरीर को होती है.

* गुलाब : गुलाब फूलों का राजा है यह फूल के साथ-साथ एक जड़ी बूटी भी है इसमें शरीर के विकास के लिए जरूरी विटामिन, अम्ल और रसायन है. गुलाब की पंखुडि़यों से गुलाब का शर्बत, इत्र,गुलाबजल और गुलकन्द बनाया जाता है.आंखों की जलन और खुजली दूर करने के लिए गुलाबजल का प्रयोग किया जाता है. मुंह में छाले होने पर गुलाब के फूलों का काढ़ा बनाकर कुल्ला करने से छाले दूर होते हैं.

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* गुड़हल : गुडहल का फूल देखने में ही सुंदर नहीं होता बल्कि इसमें सेहत का खजाना है इसे हम हिबिसकस भी कहते हैं. इसका इस्तेमाल खाने-पीने या दवाओं के लिए किया जाता है. इससे कॉलेस्ट्रॉल, मधुमेह हाई ब्लडप्रेशर, और गले के संक्रमण जैसे रोगों का इलाज किया जाता है. यह विटामिन सी, कैल्शियम, वसा, फाइबर, आयरन का बढि़या स्रोत हैं.

* कमल : कमल के फूल फोड़े-फुंसी आदि को दूर करता है।.शरीर पर विष का कुप्रभाव कम होता है. इसकी पंखुडि़यों के खाने से मोटापा कम होता है रक्त विकार दूर होते हैं और मन प्रसन्न रहता है.

* मोगराः यह गर्मियों का एक खास खुशबूदार फूल है.इन फूलों को अपने पास रखने से पसीने की दुर्गंध नहीं आती है.  मोगरे के फूल मसलकर स्नान करने से त्वचा में सनसनाती प्राकृतिक ठंडक का एहसास होने लगेगा.

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* गेंदा:  अपने घरों में गेंदे के फूल जरूर लगाना चाहिए क्योंकि इसके फूलों को घाव भरने का सर्वश्रेष्ठ मरहम माना जाता है. गेंदे के फूलों को तुलसी के पतों के साथ पीस कर मलहम बनाया जाता है।.चर्म रोग या शरीर के किसी हिस्से में सूजन आ जाने पर इन फूलों को पीसकर लगाने से फायदा होता है. गेंदे के रस से कुल्ला करने पर दांत दर्द और कान में डालने से कान का दर्द ठीक होता है.

* चमेलीः खुशबू से भरे ये फूल बेहद नाजुक होते हैं। चमेली के फूलों से बना तेल चर्म रोग दंत रोग, घाव आदि पर गुणकारी है. चमेली के पत्ते चबाने से मुंह के छालों में तुरंत राहत मिलती है. ये त्वचा व बालों के लिए भी उपयोगी है रात को पानी में भीगो दीजिए,सुबह पीस लीजिए व गुलाब जल मिला दीजिए. इसे बालों में लगाने से चमक व चेहरे पर लगाने से त्वचा में निखार आता है.

 

रिश्तों का अल्पविराम

Romantic Story :दिल के रिश्ते-भाग 4

जल्दी से नीचे आ कर उस ने गेट खोला और फिर से वही बात अशोक से बोली, ‘‘आज इतनी जल्दी कैसे?’’

अशोक गाड़ी से नाश्ते का समान निकालते हुए बोले, ‘‘मेरे एक मित्र अभी आ रहे हैं, इसलिए आज जल्दी आना पड़ा. वे जर्नलिस्ट हैं, कल ही उन्हें वापस दिल्ली जाना है, इसीलिए उन्हें आज ही घर पर बुलाना पड़ा. तुम से बताने का समय भी नहीं मिला. जल्दी से आरती के साथ मिल कर तैयारी कर लो. बस, वे आते ही होंगे.’’ बात करते हुए दोनों भीतर आ गए थे.

पुष्पा ने जल्दी से आरती को आवाज दी और खुद ड्राइंगरूम सही करने में जुट गई. इतने में अशोक ने पुष्पा को इशारे से बैडरूम में बुला कर धीरे से कहा, ‘‘ध्यान से देख लेना, मैं चाहता हूं कि किसी तरह आरती का विवाह इस से करा सकूं. वरना इस उम्र में आरती के लिए कोई भी अविवाहित लड़का मिलना बहुत मुश्किल है.’’

‘‘अच्छा, तो यह बात है,’’ पुष्पा खुशी से चहक उठी. अशोक ने मुंह पर उंगली रख कर उसे चुप रहने को कहा और गेट की तरफ बढ़ गया.

पुष्पा की खुशी का ठिकाना नहीं था. वह इन 6-7 दिनों में ही आरती से बहुत घुलमिल गईर् थी. लग ही नहीं रहा था कि वे दोनों पहली बार मिली थीं. एक दोस्ती का रिश्ता बन गया था दोनों में. दोनों ने मिल कर तैयारी कर ली थी.

थोड़ी देर बाद ही सफेद रंग की लंबी सी गाड़ी दरवाजे पर आ कर रुकी. पुष्पा समझ गई, वे आ गए थे जिन की प्रतीक्षा हो रही थी. पुष्पा ने आरती को कोल्डड्रिंक ले कर जाने की जिम्मेदारी सौंप दी थी और खुद कौफी बनाने की तैयारी में लग गई. वह चाहती थी कि ज्यादा से ज्यादा आरती को मौका मिले उसे देखने का ताकि उसे विवाह के लिए राजी किया जा सके.

थोड़ी देर बाद अशोक ने पुष्पा को आवाज दिया. पुष्पा ने कौफी की ट्रे आरती को दी और खुद दूसरी ट्रे में नमकीन ले कर उस के पीछे चल दी. और जैसे ही पुष्पा ने ट्रे मेज पर रख कर दोनों हाथ जोड़ कर अभिवादन के लिए सामने बैठे व्यक्ति के ऊपर नजर डाली, उस के दिमाग को एक झटका लगा. कुछ यही हाल उस व्यक्ति का भी था. वह भी उसे देख कर सन्न रह गया था. दोनों हाथ जोड़े हैरान से खड़े थे. पर उन के मुंह से एक शब्द भी नहीं निकला. उन दोनों को यों खड़े देख कर अशोक ने दोनों का परिचय कराया, ‘‘ये पुष्पा, मेरी पत्नी और ये मेरे मित्र किशोर राजवंशी.’’

पुष्पा का दिल जोरजोर से धड़क रहा था. समय ने फिर से उन दोनों को एकदूसरे के सामने ला खड़ा किया था. उस ने तो दिल के दरवाजे किशोर के लिए सदा के लिए बंद कर दिए थे, फिर कुदरत ने दोबारा उसे मेरे सामने ला कर क्यों खड़ा कर दिया. मन में एक बेचैनी और उलझन लिए पुष्पा किशोर की आवभगत में लगी रही.

यही हाल किशोर का भी था. जिसे भुलाने की लाख कोशिशों के बाद भी वह उसे भुला नहीं सका था वह फिर से एक बार उस के सामने थी. थोड़ी देर बार किशोर ‘किसी काम के लिए जल्दी जाना है,’ कह कर चला गया. अशोक उसे बाहर तक छोड़ने गए.

पुष्पा के मन में भी हजारों विचार आ रहे थे. अभी 2 महीने पहले ही तो अचानक किशोर से मुलाकात हुई थी तब उस ने सोचा था कि यह आखिरी मुलाकात होगी. पर दोबारा यों अपने ही घर में…उस ने सोचा भी नहीं था. किसी तरह उस ने काम समेटा. उस के सिर में दर्द होने लगा था. वह आ कर अपने कमरे में लेट गईर्. जैसे ही उस ने अपनी आंखें बंद कीं उस के सामने वर्षों पहले की सारी यादें फिर से चलचित्र की भांति घूमने लगीं.

सोचतेसोचते अचानक ही पुष्पा की आंखें चमक उठीं. वह कुछ सोच कर बहुत खुश हो गई.

दोनों ने मिल कर आरती को किशोर से विवाह करने के लिए राजी कर लिया था. उस के घर में भी सब को बता दिया गया था. सभी लोग बहुत खुश थे इस रिश्ते से.

किशोर की बात अब हमेशा घर में होने लगी थी. कई बार पुष्पा ने सोचा कि वह अशोक को सब बता दे, पर न जाने क्या सोच कर हर बार चुप रह जाती. अब जबतब किशोर का फोन भी आने लगा था.

एक दिन अशोक, आरती और बच्चे सभी मिल कर लौन में बैडमिंटन खेल रहे थे. पुष्पा सब्जी काटते हुए टीवी पर सीरियल देख रही थी. इतने में अशोक का मोबाइल बज उठा. पुष्पा ने मोबाइल उठा कर देखा. किशोर का फोन था. उस ने कुछ सोचा, फिर फोन उठा लिया, कहा, ‘‘हैलो.’’

‘‘कैसी हो?’’ उधर से किशोर की गंभीर आवाज आई.

एक बार फिर से पुष्पा का दिल धड़का पर वह अच्छी तरह से जानती थी अपनी हालत. उस ने अपनी आवाज को संभाल कर जवाब दिया, ‘‘मैं अच्छी हूं, तुम कैसे हो?’’

‘‘मैं भी ठीक हूं पुष्पा, मैं इस जीवन में किसी और से विवाह की सोच भी नहीं सकता. कैसे मना करूं मैं अशोक को? मैं तो सपने में भी नहीं सोच सकता था कि तुम से इस तरह से कभी जीवन में फिर से मुलाकात होगी.’’

‘‘किशोर, हम दोनों जीवन में बहुत आगे बढ़ चुके हैं. और तुम ने ही तो कहा था कि हम एकदूसरे के जीवन में हों या न हों, पर एकदूसरे के दिल में हमेशा रहेंगे, तो अब पीछे क्यों हट रहे हो. मैं अपने पति से बहुत प्रेम करती हूं और अपनी गृहस्थी में बहुत खुश हूं तो तुम क्यों खुद को सजा दे रहे हो. हमारा प्रेम सच्चा था. हम ने एकदूसरे से कुछ नहीं मांगा था, न ही कुछ चाहा था. कुदरत ने एक मौका दिया है, तो हम एक अच्छे मित्र बन कर क्यों नहीं रह सकते. और अब तो हमारा एक रिश्ता भी बनने जा रहा है. क्या तुम्हें आरती में कोई कमी दिख रही है या वह तुम्हारे लायक नहीं?’’ पुष्पा ने कहा.

‘‘नहीं पुष्पा, आरती बहुत अच्छी लड़की है. मैं कैसे कह दूं कि वह मेरे लायक नहीं है. शायद, मैं ही नहीं उस के लायक,’’ कुछ मायूस स्वर में किशोर ने कहा.

‘‘नहीं किशोर, ऐसा मत कहो. तुम से बहुत कम समय के लिए मिली हूं. पर इतना तो समझ ही गई हूं कि तुम एक अच्छे और नेकदिल इंसान हो. आरती भी बहुत अच्छी लड़की है. किशोर, हम इस नए रिश्ते को कुदरत की मरजी मान कर पूरे सम्मान से अपना लेते हैं,’’ पुष्पा ने किशोर को समझाते हुए कहा.

‘‘ठीक है, जैसी तुम्हारी इच्छा. मुझे कोई एतराज नहीं इस रिश्ते से,’’ किशोर ने कहा.

यह सुन कर पुष्पा खुश हो गई, बोली, ‘‘किशोर, मैं बहुत खुश हूं. मेरे दिल पर एक बोझ था, वह आज उतर गया. मैं बहुत खुश हूं, किशोर. बहुत खुश. और हां, अब हम कभी एकदूसरे से अलग नहीं होंगे क्योंकि अब हम रिश्तेदार के साथसाथ अच्छे मित्र भी हैं. वादा करो किशोर कि अब तुम इस मित्र का हाथ कभी नहीं छोड़ोंगे. वादा करो किशोर, वादा करो.’’ यह सब बोलते हुए पुष्पा की आवाज कांप गई, आंखों से दो बूंद आंसू उस के गालों पर लुढ़क पड़े.

‘‘वादा रहा, पुष्पा, वादा रहा,’’ कहते हुए किशोर का गला भर्रा गया.

 

 

रिश्तों का अल्पविराम : भाग 2

उन के द्वारा कही बातों का कोई प्रतिउत्तर नहीं था नूपुर के पास. यह तो वह भी नहीं जानती थी कि मधुर क्यों नहीं आया था. मां और पापा के उलाहनों ने उस के कान छलनी कर डाले थे. “अब निर्णय तुम्हारे हाथ में है. चाहो तो उस के पास चली जाओ…””और हमारी नाक कटवा दो,” मां पापा की बात को बीच में काटते हुए बोल पड़ी थीं.

उन को चुप रहने का इशारा कर पापा ने आगे कहा था, “चाहो तो इसी घर में रह कर उस का इंतजार करती रहो…”“और हमारी छाती पर मूंग दलो,” मां फिर बीच में बोल पड़ी थीं, “छोड़ोजी, अंधे के आगे रोने में अपनी ही आंखों का घाटा है.”

“या फिर जहां हम कहें वहां अपना घर बसाओ. कहो, क्या निर्णय है तुम्हारा?” पापा की बात आज भी नूपुर के मन में ऐसी हरी है, जैसे आज ही शाम घटा कोई किस्सा हो. काश, तब आज की तरह हाथ में मोबाइल फोन होता तो झट पता कर लेती कि क्या कारण था जो मधुर उस शाम नहीं आ पाया था. चलो, आज तो है हाथ में मोबाइल फोन, परंतु क्या आज भी वह मधुर को फोन कर पा रही है?

कुछ सोचविचार कर वह स्टडीरूम में अपने लैपटौप को खोल कर कुछ टाइप करने बैठ गई. एक लंबी ईमेल लिखने के पश्चात उस के नेत्रों में बचीखुची नींद भी गायब हो गई. जब वह अपने कमरे में लौटी तो बिस्तर पर संजीव को नींद की आगोश में चैन से समाया देख मुसकराई, “कितने निश्चल लगते हैं संजीव सोते हुए, बिलकुल बच्चे की तरह. और जब जाग जाते हैं तो एक बार फिर बच्चों की मानिंद एक्टिव हो उठते हैं.”

संजीव को पति के रूप में पा कर नूपुर का जीवन संवर गया था. फिर आंगन में किलकारियां गूंजीं और नूपुर अपनी गृहस्थी की लहरों में प्रसन्नता के अतिरेक में बहती चली गई. सुख की स्वर्णकिरणों से ओजस अपने संसार को नूपुर बहुत सहेज कर रखती आई है. तभी तो हर बात में टचवुड कह लकड़ी की किसी वस्तु को हाथ लगाती फिरती है. उस की इस अदा पर मधुर भी उस की खिंचाई करते नहीं थकता. “जल्दी से टचवुड कर लो,” उस के हंसते ही मधुर उसे छेड़ता है.

मधुर का खयाल आते ही नूपुर के चेहरे पर मिलेजुले भाव तैरने लगे – कभी मधुर के साथ बिताए आनंद वाले पल तो कभी संजीव के साथ चलती सुखमय जिंदगी.इन्हीं विचारों में उलझे नूपुर के दिमाग की नसें तड़कने लगीं. वह इतना थक गई कि कब सो गई, उसे पता ही नहीं हुआ.

“मुझे मिलना है तुम से. केवल चैट कर लेने से मेरा मन नहीं भरता, ये बात तुम जानती हो,” मधुर कह रहा था.“जानती हूं, पर तुम भी तो जानते हो कि मेरी एक गृहस्थी है – पति है, बेटा है. यों ही उठ कर तुम से मिलने नहीं आ सकती मैं. याद है न, पिछली बार क्या हुआ था?” नूपुर ने कहा ही था कि इस स्वप्न ने उस की नींद उचाट डाली. मधुर के साथ ये संवाद उस के मन की उपज थे या फिर उन दोनों के दिलों की भावनाओं को शब्द मिल गए थे. अब जो होगा देखा जाएगा, जो करना था वो कर चुकी है नूपुर. एक बार फिर स्वयं को नींद के हवाले करने के हठ से उस ने फिर आंखें मूंद लीं.

कोई और दिन होता तो नूपुर संजीव के सो जाने के पश्चात अपने तकिए के नीचे से अपना फोन निकालती और चैट विंडो खोल कर मधुर को टैक्स्ट कर लेती. करीब 15-20 मिनट चैटिंग कर लेने के पश्चात नूपुर का मन तरोताजा हो जाता और वह संजीव की कमर में अपनी बांह सरकाते हुए सो जाती. किंतु अब बात भिन्न है. आज से नूपुर को इस चैटिंग से मिलती शीतलता से स्वयं प्रगमन करना होगा.

अगली सुबह नूपुर संजीव के अबोले व्यवहार से कुछ क्षुब्ध अवश्य हुई, परंतु उस ने संजीव पर ऐसा व्यक्त नहीं होने दिया. सारे काम विधिपूर्वक करती रही.नाश्ता कर के संजीव अपनी फैक्टरी चला गया. तेज भी अपने कालेज चला गया. अब नूपुर हर लिहाज से मुक्त थी – घर के काम से और अपनों की दृष्टि से. कुछ सोच कर वह पुनः अपने लैपटौप पर बैठ गई, शायद मधुर ने उस की ईमेल पढ़ ली हो, और उस का कोई प्रतिउत्तर आया हो. कैसा होगा वो प्रतिउत्तर? क्या लिखेगा वह? क्या स्वीकार लेगा उस के निर्णय को? यदि नहीं तो क्या करेगी नूपुर? कैसे मनाएगी उसे कि वह नूपुर की बात मान ले? ढेरों चिंताओं की लकीरों को अपने माथे पर बिछाए वह अपनी ईमेल चेक करने लगी. हां, मधुर की ईमेल आई है. एक क्षण को दिल धक्क से रह गया. हिम्मत कर उस ने मेल खोली.

 

xxx

 

यह ईमेल लिखने के लिए मधुर को जितनी एकाग्रता की आवश्यकता है, वह उसे न तो घर में बीवीबच्चों के मध्य मिल सकती थी और न ही औफिस की आपाधापी में. तभी तो अपनी अगली मीटिंग को स्थगित कर वह केफेटेरिया में सब की ओर पीठ घुमा कर बैठा था, या यों कह सकते हैं कि छुपने का प्रयास कर रहा था. काश, उसे आज निर्जन एकांत प्राप्त हो पाता. शरीर भले ही उस का यहां उपस्थित था, किंतु मनप्राण से वह आज अतीत, वर्तमान और भविष्य के झूलों में डगमगा रहा था. कितनी बार उंगलियां फोन पर नूपुर का नंबर मिलाते हुए ठिठक चुकी थीं. उस की आवाज सुनेगा तो स्वयं को रोक नहीं सकेगा. इसलिए यही सही निर्णय था कि उसे ईमेल कर दिया जाए. मधुर ने ड्राफ्ट तैयार कर रखा था. उस में कुछ बदलाव, सुधार कर उस ने मेल सेंड की थी कि उसे अपने इनबौक्स में नूपुर की मेल दिखाई दी. आश्चर्य से उस ने मेल पढ़नी आरंभ कर दी.

 

“मेरे प्रियतम,

तुम से मिल कर कहना चाहती थी… पर हिम्मत ने साथ न दिया. तुम जानते हो न कि तुम्हारे सामने आते ही मैं किस कदर दीवानी हो जाती हूं. अपनी उम्र भूल बैठती हूं, तुम्हारी भी. लगने लगता है जैसे अब भी हम कालेज के विद्यार्थी हैं. समय पूरी रफ्तार से पीछे दौड़ने लगता है. परिपक्वता बिसरा देती हूं, इसलिए सही बात सही ढंग से शायद कह नहीं सकूंगी, सो तुम्हें मेल करना ही उचित लगा. तुम सोच रहे होगे कि आखिर ऐसी क्या बात होगी.

 

“याद है मधुर, जब हम दोनों कालेज के दिनों में मिले थे. वो हमारी पहली मुलाकात, जब रैगिंग के दौरान मेरी घिग्घी बंध गई थी. तुम भी तो थे उन रैगिंग करने वाले झुंड में.

 

“तुम्हारे आतंक के मारे सभी फ्रेशर्स कांप रहे थे. मुझे भी सब की बातें सुन कर तुम से डर लगने लगा था. लेकिन मेरी बारी आने पर जब तुम ने मुझे रूम से चले जाने का इशारा किया था, तब जा कर मेरी जान में जान आई थी. अपने सहपाठियों के शोर मचाने पर तुम्हारा एक उंगली का इशारा सब को कैसे चुप करवा गया था. बस, उसी पल मैं तुम्हारी दीवानी हो उठी थी.”

रिश्तों का अल्पविराम : भाग 1

नूपुर ने बाल संवारे और शीशे के सामने से हटने ही वाली थी कि ध्यान पहनी हुई साड़ी पर चला गया. कितना समय हो गया इस साड़ी को खरीदे, पर आज भी जब वह इसे पहनती है, तो मधुर इस साड़ी के हलके तोतिया रंग पर फिदा हो जाता है. कहर ढाती हो आज भी – ऐसा ही कुछ कहने लगता है. कितने वर्ष बीत गए नूपुर को मधुर की हुए, अब तो उस ने गिनती रखनी भी छोड़ दी है. लेकिन आज भी जब दोनों एकदूसरे के सामने होते हैं, तो वही नूतन पल्लवित प्यार की भावना उस के अंदर अंगड़ाई लेने लगती है, जैसे अब भी वह षोडशी हो और मधुर उस का पहला प्यार… मन की मुसकान अधरों तक छलक गई.

खयालों में खोई नूपुर की उंगलियां अपनी केशलटों से खेलने लगीं कि तेज की पुकार पर उस का ध्यान भटका, “मुझे लेट हो रहा है, मौम, प्लीज हरी अप.”सारे खयालों को वहीं आईने की मेज पर छोड़ नूपुर किचन में आ गई. तेज को उस का टिफिन पकड़ाया और स्वयं अपने औफिस के लिए निकल गई.

दिल्ली की भीड़ में आज कार ले कर भिड़ने का मन नहीं किया. सो, उस ने कैब बुला ली. जब मन ढीला अनुभव करता है तो शरीर भी स्वतः सुस्तप्राय हो जाता है. फिर आज शाम जल्दी घर लौटना भी है, इसलिए टाइम से औफिस जाना जरूरी है. शाम को संजीव बेंगलुरु से वापस लौट आएगा. उस के आने से पहले नूपुर उस की पसंद का खाना बना कर फ्री हो जाना चाहती है, ताकि बेंगलुरु की गपें सुनने के लिए उस के पास समय रहे. अपने परिवार के साथ समय व्यतीत करना नूपुर को बेहद भाता है.

शाम तक सारा काम निबटा कर नूपुर ने लिविंग रूम में बैठ कर एक कप चाय पी. संजीव को तो फिल्टर कौफी पसंद है. सो, उस के आने पर वही बना देगी. तभी डोरबेल बजी. मुसकराते हुए उस ने दरवाजा खोला. किंतु संजीव ने एक फीकी सी मुसकराहट के साथ प्रवेश किया और सीधा अपने कमरे की तरफ बढ़ गया. हर बार की भांति उस ने न तो नूपुर को प्यार से संबोधित किया और न ही उस के हाथ में अपना बैग पकड़ाया. नूपुर के दिल में खंजर उतर गया. उसे अनायास ही संजीव का पिछला टूर याद आ गया, जब वह इसी तरह लौटा था. तब कैसे उस ने “हाय लव” कहते हुए नूपुर के गाल पर एक हलका सा चुंबन अंकित किया था.

तभी तेज भी वहां पहुंच गया था. “ये पीडीए बेडरूम के लिए रख लो आप दोनों.” तेज के कहने पर नूपुर जरा लजा गई थी और संजीव बोला था, “क्यों भाई, आखिर कानूनन पतिपत्नी हैं, जहां चाहे प्यार जताएं.” लेकिन आज, रात्रि भोजन के पश्चात संजीव का देर तक तेज के साथ बातों का सिलसिला चलता रहा. संजीव बेंगलुरु के अपने औफिस की बातें विस्तार से सुनाता रहा. हर बार उस के इन किस्सों का रुख नूपुर की ओर ही हुआ करता था किंतु इस बार… पर फिर भी नूपुर पूरे ध्यान से वहीं डटी रही. व्यापार की बारीकियों में नूपुर चाहे बोर भी हो जाए, परंतु चेहरे से वह ये बात कभी भी संजीव पर जाहिर नहीं होने देती. उसे यही आभास करवाती कि नूपुर को उस की बातों में विशेष रुचि है.

तेज के बड़े होने के साथ वह अपनी अलग दुनिया में मस्त रहने लगा है. ऐसे में नूपुर के पास संजीव और उस का साथ ही तो है. उस ने संजीव की ओर देखा. बिस्तर के दूसरे कोने पर वह थक कर खर्राटों के हवाले हो चुका था. संजीव के सिवा उस का है ही कौन के विचार के साथ ही उस के मन ने स्वयं को टोका “और मधुर…?”मधुर का जिक्र मन ने छेड़ा, तो नूपुर के विचारों के घोड़े सरपट दौड़ने लगे. और वह अपने विचारों के घोड़ों पर बैठ कर स्वतंत्रता से धावने लगी.

“पापा प्लीज, मेरी बात समझने की कोशिश तो करिए. मैं उस से प्यार करती हूं, उस के साथ अपना जीवन बिताना चाहती हूं,” बीस वर्ष पूर्व नूपुर की रोरो कर हिचकी बंध गई थी.“निर्लज्ज कहीं की… बाप के सामने अपने मुंह से प्यार की बात करते शर्म नहीं आ रही. छी: छी:,” मां को पिता की उपस्थित में बेटी द्वारा अपने दिल का हाल कहना रास नहीं आ रहा था. आखिर पित्रसत्ता की घुट्टी जो इस संसार में आंख खोलते ही जबान पर शहद के साथ चटा दी जाती है, और जिस की खुराक उम्र बढ़ने के साथ अधिक होती चली जाती है, उस की गहरी पकड़ छूटे तो कैसे. “उस पर विजातीय के साथ… छी: छी:,” मां को नूपुर से आती घिन तीव्र होती जा रही थी.

“ये बेचारे सारी उम्र घरगृहस्थी के लिए मशक्कत करते रहे और बदले में मिला तो क्या, बेटी की मुंहजोरी. इस से अच्छा तो तू पैदा होते ही मर गई होती,” मां न जाने क्याक्या अनापशनाप कहती चली गई थीं. पापा कह तो कुछ नहीं रहे थे, किंतु उन की नजरों को नूपुर की ओर देखना भी गवारा नहीं था. काफी देर जब घर में क्लेश चलता रहा, तो उसे थामने के लिए पापा ने ही पूर्णविराम लगाया था.

“तुम्हारे कहने पर एक बार हम उस नीच से मिलने को भी तैयार हो गए थे. पर, फिर क्या हुआ? क्या वह समय पर आया? स्वयं मुलाकात की तारीख और समय निश्चित कर वह नहीं आया और तुम चाहती हो कि… तुम ने अपने जीवन को डुबोने का निश्चय कर लिया है क्या? ऐसे नीच के पल्ले बंधना चाहती हो, जो शायद तुम से अपना पीछा छुड़ाना चाहता है, वरना क्या वजह हो सकती है जो वह कह कर भी नहीं आया, बताओ.”

नूपुर ने बाल संवारे और शीशे के सामने से हटने ही वाली थी कि ध्यान पहनी हुई साड़ी पर चला गया. कितना समय हो गया इस साड़ी को खरीदे, पर आज भी जब वह इसे पहनती है, तो मधुर इस साड़ी के हलके तोतिया रंग पर फिदा हो जाता है. कहर ढाती हो आज भी – ऐसा ही कुछ कहने लगता है. कितने वर्ष बीत गए नूपुर को मधुर की हुए, अब तो उस ने गिनती रखनी भी छोड़ दी है. लेकिन आज भी जब दोनों एकदूसरे के सामने होते हैं, तो वही नूतन पल्लवित प्यार की भावना उस के अंदर अंगड़ाई लेने लगती है, जैसे अब भी वह षोडशी हो और मधुर उस का पहला प्यार… मन की मुसकान अधरों तक छलक गई.

खयालों में खोई नूपुर की उंगलियां अपनी केशलटों से खेलने लगीं कि तेज की पुकार पर उस का ध्यान भटका, “मुझे लेट हो रहा है, मौम, प्लीज हरी अप.” सारे खयालों को वहीं आईने की मेज पर छोड़ नूपुर किचन में आ गई. तेज को उस का टिफिन पकड़ाया और स्वयं अपने औफिस के लिए निकल गई.

दिल्ली की भीड़ में आज कार ले कर भिड़ने का मन नहीं किया. सो, उस ने कैब बुला ली. जब मन ढीला अनुभव करता है तो शरीर भी स्वतः सुस्तप्राय हो जाता है. फिर आज शाम जल्दी घर लौटना भी है, इसलिए टाइम से औफिस जाना जरूरी है. शाम को संजीव बेंगलुरु से वापस लौट आएगा. उस के आने से पहले नूपुर उस की पसंद का खाना बना कर फ्री हो जाना चाहती है, ताकि बेंगलुरु की गपें सुनने के लिए उस के पास समय रहे. अपने परिवार के साथ समय व्यतीत करना नूपुर को बेहद भाता है.

शाम तक सारा काम निबटा कर नूपुर ने लिविंग रूम में बैठ कर एक कप चाय पी. संजीव को तो फिल्टर कौफी पसंद है. सो, उस के आने पर वही बना देगी. तभी डोरबेल बजी. मुसकराते हुए उस ने दरवाजा खोला. किंतु संजीव ने एक फीकी सी मुसकराहट के साथ प्रवेश किया और सीधा अपने कमरे की तरफ बढ़ गया. हर बार की भांति उस ने न तो नूपुर को प्यार से संबोधित किया और न ही उस के हाथ में अपना बैग पकड़ाया. नूपुर के दिल में खंजर उतर गया. उसे अनायास ही संजीव का पिछला टूर याद आ गया, जब वह इसी तरह लौटा था. तब कैसे उस ने “हाय लव” कहते हुए नूपुर के गाल पर एक हलका सा चुंबन अंकित किया था.

तभी तेज भी वहां पहुंच गया था. “ये पीडीए बेडरूम के लिए रख लो आप दोनों.”तेज के कहने पर नूपुर जरा लजा गई थी और संजीव बोला था, “क्यों भाई, आखिर कानूनन पतिपत्नी हैं, जहां चाहे प्यार जताएं.”

लेकिन आज, रात्रि भोजन के पश्चात संजीव का देर तक तेज के साथ बातों का सिलसिला चलता रहा. संजीव बेंगलुरु के अपने औफिस की बातें विस्तार से सुनाता रहा. हर बार उस के इन किस्सों का रुख नूपुर की ओर ही हुआ करता था किंतु इस बार… पर फिर भी नूपुर पूरे ध्यान से वहीं डटी रही. व्यापार की बारीकियों में नूपुर चाहे बोर भी हो जाए, परंतु चेहरे से वह ये बात कभी भी संजीव पर जाहिर नहीं होने देती. उसे यही आभास करवाती कि नूपुर को उस की बातों में विशेष रुचि है.

तेज के बड़े होने के साथ वह अपनी अलग दुनिया में मस्त रहने लगा है. ऐसे में नूपुर के पास संजीव और उस का साथ ही तो है. उस ने संजीव की ओर देखा. बिस्तर के दूसरे कोने पर वह थक कर खर्राटों के हवाले हो चुका था. संजीव के सिवा उस का है ही कौन के विचार के साथ ही उस के मन ने स्वयं को टोका “और मधुर…?”मधुर का जिक्र मन ने छेड़ा, तो नूपुर के विचारों के घोड़े सरपट दौड़ने लगे. और वह अपने विचारों के घोड़ों पर बैठ कर स्वतंत्रता से धावने लगी.

“पापा प्लीज, मेरी बात समझने की कोशिश तो करिए. मैं उस से प्यार करती हूं, उस के साथ अपना जीवन बिताना चाहती हूं,” बीस वर्ष पूर्व नूपुर की रोरो कर हिचकी बंध गई थी.

“निर्लज्ज कहीं की… बाप के सामने अपने मुंह से प्यार की बात करते शर्म नहीं आ रही. छी: छी:,” मां को पिता की उपस्थित में बेटी द्वारा अपने दिल का हाल कहना रास नहीं आ रहा था. आखिर पित्रसत्ता की घुट्टी जो इस संसार में आंख खोलते ही जबान पर शहद के साथ चटा दी जाती है, और जिस की खुराक उम्र बढ़ने के साथ अधिक होती चली जाती है, उस की गहरी पकड़ छूटे तो कैसे. “उस पर विजातीय के साथ… छी: छी:,” मां को नूपुर से आती घिन तीव्र होती जा रही थी.

“ये बेचारे सारी उम्र घरगृहस्थी के लिए मशक्कत करते रहे और बदले में मिला तो क्या, बेटी की मुंहजोरी. इस से अच्छा तो तू पैदा होते ही मर गई होती,” मां न जाने क्याक्या अनापशनाप कहती चली गई थीं. पापा कह तो कुछ नहीं रहे थे, किंतु उन की नजरों को नूपुर की ओर देखना भी गवारा नहीं था.काफी देर जब घर में क्लेश चलता रहा, तो उसे थामने के लिए पापा ने ही पूर्णविराम लगाया था.

“तुम्हारे कहने पर एक बार हम उस नीच से मिलने को भी तैयार हो गए थे. पर, फिर क्या हुआ? क्या वह समय पर आया? स्वयं मुलाकात की तारीख और समय निश्चित कर वह नहीं आया और तुम चाहती हो कि… तुम ने अपने जीवन को डुबोने का निश्चय कर लिया है क्या? ऐसे नीच के पल्ले बंधना चाहती हो, जो शायद तुम से अपना पीछा छुड़ाना चाहता है, वरना क्या वजह हो सकती है जो वह कह कर भी नहीं आया, बताओ.”

मानसून में क्या खाएं और क्या नहीं

बरसात के मौसम में थोड़ी-सी लापरवाही से बैक्टीरिया तुरंत शरीर को नुकसान पहुँचाते हैं. इसके अलावा फ्रिज में रखा खाना एकदम नहीं खाना चाहिए. अगर खाना भी है तो पहले निकालकर रखना चाहिए. इसके अलावा जितना हो सके पानी पिएँ और बाहर के खुले खाने के परहेज करना चाहिए. तो  आइए जानते हैं ऐसी कौन-सी चीजें है जो मानसून में आपको फिट रखेंगी  और किस किस से बच कर आप फिट रह सकते है .

इनके सेवन है फायदेमंद   :-

हल्दी : हल्दी हमारे शरीर को कीटाणुओं से बचाती है. हर रोज एक ग्राम हल्दी आपके स्वास्थ्य को बनाए रखेगी और इन्फेक्शन को आपके पास भी फटकने नहीं देगी. थोड़ी-सी हल्दी में कुछ बूँद पानी मिलाकर उसकी गोली बनाकर खाना भी बहुत मददगार साबित होगा.

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शहद : शहद आपकी पाचन क्रिया को ठीक रखने में मदद करता है. रोजाना दो चम्मच शहद आपको तो फिट रखेगा, साथ ही, इससे नींद भी अच्छी आती है.

लहसुन : लहसुन हमारे शरीर को कभी नुकसान नहीं पहुँचाता. आप लहसुन की चटनी बनाकर तो खा ही सकते हैं, साथ ही, कैप्सूल की तरह भी ले सकते हैं. यह शरीर के कीटाणुओं को मारता है और आपके शरीर को रोग रहित बनाता है. इस मौसम में पत्तेदार सब्जियाँ, कुछ फल और बहुत देर पहले बना हुआ खाना खाने से बचना चाहिए.

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इनके सेवन से बचे   :-

*मानसून में पाचन क्रिया धीमी हो जाती है और इन्फेक्शन से लड़ने की क्षमता कम हो जाती है. पत्तेदार सब्जियों में सेल्यूलोस होता है जो ठीक से पचता नहीं है.

* बरसात में विशेष तौर पर कटे और खुले में रखे हुए फल नहीं खाने चाहिए.

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* इस मौसम में पीने के पानी का सावधानी से इस्तेमाल करें. पानी को जहाँ तक हो सके उबाल कर पिएँ.

* बरसाती मौसम में बच्चों को तरह-तरह की बीमारियां घेर लेती हैं. बारिश में भीगने के अलावा बच्चे बाहर की खुली चीजों को खाने से भी परहेज नहीं करते हैं.

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ऐसे में सर्दी, जुकाम, बुखार और इन्फेक्शन हो जाना आम बात है. बच्चों को इस तरह की बीमारियों से बचाने के लिए उन्हें हाइजीन होने के फायदे बताएं. खाने से पहले बच्चों को अच्छी तरह हाथ धेने की हिदायत दें. इन छोटी-छोटी तरकीबों के बल पर आप अपना और परिवार का ध्यान रख सकती हैं . बरसात के मौसम में थोड़ी सी भी लापरवाही बीमारियों का शिकार बना सकती है .

Bade Ache Lagte Hai-2 में दिखेगी Diyanka Tripathi और Nakuul Mehta की जोड़ी

सीरियल बड़े अच्छे लगते हैं टीवी का पसंदीदा शो में से एक है, इस सीरियल को लगभग हर कोई पसंद करता है. अब इस सीरियल के 10 साल पूरे हो चुके हैं. खबर है कि अब एकता कपूर ने इस सीरियल का सीक्वल बनाने के बारे में सोच रही हैं.

जिसके लिए उन्हें प्रिया और राम मिल चुके हैं. इसी बीच खबर ये भी आ रही है कि इस सीरियल के दूसरे पार्ट में राम और प्रिया के किरदार में दिव्यांका त्रिपाठी और नकुल मेहता नजर आएंगे. दिव्यांका त्रिपाठी का नाम इस सीरियल के लिए फाइनल कर लिया गया है. जिससे दिव्यांका के फैंस काफी ज्यादा खुश हैं.

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दरअसल राम के किरदार में नकुल मेहता नजर आने वाले है, खबरों कि माने तो मेकर्स की पहली पसंद करण पटेल थे, लेकिन करण का फाइनल नहीं हो पाया तो नकुल मेहता को फाइनल किया गया.

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बता दें कि करण पटेल दिव्यांका त्रिपाठी के साथ सीरियल ये है मोहब्बते में काम कर चुके हैं, इसलिए वह लोगों कि पहली पसंद थे. नकुल मेहता और दिव्यांका त्रिपाठी ने कभी भी स्क्रिन शेयर नहीं किया है साथ में , दिव्यांका त्रिपाठी की बात करें तो कुछ समय पहले ही वह खतरों की खिलाड़ी सीजन 11 की शूटिंग करके वापस लौटी हैं.

अब कयास लगाए जा रहे हैं कि दिव्यांका त्रिपाठी जल्द इस शो में वापसी करेंगी. दिव्याकां त्रिपाठी की एक्टिंग को फैंस काफी ज्यादा पसंद करते हैं. शायद यही वजह है कि दिव्यांका त्रिपाठी को प्रिया के किरदार में देखने के लिए फैंस काफी ज्यादा खुश हैं.

दिव्यांका अपने रियल में अपनी  फैमली को काफी ज्यादा महत्व देती हैं. मौका मिलते ही वह फैमली टाइम स्पेंड करती हैं.

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