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नूपुर ने बाल संवारे और शीशे के सामने से हटने ही वाली थी कि ध्यान पहनी हुई साड़ी पर चला गया. कितना समय हो गया इस साड़ी को खरीदे, पर आज भी जब वह इसे पहनती है, तो मधुर इस साड़ी के हलके तोतिया रंग पर फिदा हो जाता है. कहर ढाती हो आज भी – ऐसा ही कुछ कहने लगता है. कितने वर्ष बीत गए नूपुर को मधुर की हुए, अब तो उस ने गिनती रखनी भी छोड़ दी है. लेकिन आज भी जब दोनों एकदूसरे के सामने होते हैं, तो वही नूतन पल्लवित प्यार की भावना उस के अंदर अंगड़ाई लेने लगती है, जैसे अब भी वह षोडशी हो और मधुर उस का पहला प्यार… मन की मुसकान अधरों तक छलक गई.

खयालों में खोई नूपुर की उंगलियां अपनी केशलटों से खेलने लगीं कि तेज की पुकार पर उस का ध्यान भटका, “मुझे लेट हो रहा है, मौम, प्लीज हरी अप.”सारे खयालों को वहीं आईने की मेज पर छोड़ नूपुर किचन में आ गई. तेज को उस का टिफिन पकड़ाया और स्वयं अपने औफिस के लिए निकल गई.

दिल्ली की भीड़ में आज कार ले कर भिड़ने का मन नहीं किया. सो, उस ने कैब बुला ली. जब मन ढीला अनुभव करता है तो शरीर भी स्वतः सुस्तप्राय हो जाता है. फिर आज शाम जल्दी घर लौटना भी है, इसलिए टाइम से औफिस जाना जरूरी है. शाम को संजीव बेंगलुरु से वापस लौट आएगा. उस के आने से पहले नूपुर उस की पसंद का खाना बना कर फ्री हो जाना चाहती है, ताकि बेंगलुरु की गपें सुनने के लिए उस के पास समय रहे. अपने परिवार के साथ समय व्यतीत करना नूपुर को बेहद भाता है.

शाम तक सारा काम निबटा कर नूपुर ने लिविंग रूम में बैठ कर एक कप चाय पी. संजीव को तो फिल्टर कौफी पसंद है. सो, उस के आने पर वही बना देगी. तभी डोरबेल बजी. मुसकराते हुए उस ने दरवाजा खोला. किंतु संजीव ने एक फीकी सी मुसकराहट के साथ प्रवेश किया और सीधा अपने कमरे की तरफ बढ़ गया. हर बार की भांति उस ने न तो नूपुर को प्यार से संबोधित किया और न ही उस के हाथ में अपना बैग पकड़ाया. नूपुर के दिल में खंजर उतर गया. उसे अनायास ही संजीव का पिछला टूर याद आ गया, जब वह इसी तरह लौटा था. तब कैसे उस ने “हाय लव” कहते हुए नूपुर के गाल पर एक हलका सा चुंबन अंकित किया था.

तभी तेज भी वहां पहुंच गया था. “ये पीडीए बेडरूम के लिए रख लो आप दोनों.” तेज के कहने पर नूपुर जरा लजा गई थी और संजीव बोला था, “क्यों भाई, आखिर कानूनन पतिपत्नी हैं, जहां चाहे प्यार जताएं.” लेकिन आज, रात्रि भोजन के पश्चात संजीव का देर तक तेज के साथ बातों का सिलसिला चलता रहा. संजीव बेंगलुरु के अपने औफिस की बातें विस्तार से सुनाता रहा. हर बार उस के इन किस्सों का रुख नूपुर की ओर ही हुआ करता था किंतु इस बार… पर फिर भी नूपुर पूरे ध्यान से वहीं डटी रही. व्यापार की बारीकियों में नूपुर चाहे बोर भी हो जाए, परंतु चेहरे से वह ये बात कभी भी संजीव पर जाहिर नहीं होने देती. उसे यही आभास करवाती कि नूपुर को उस की बातों में विशेष रुचि है.

तेज के बड़े होने के साथ वह अपनी अलग दुनिया में मस्त रहने लगा है. ऐसे में नूपुर के पास संजीव और उस का साथ ही तो है. उस ने संजीव की ओर देखा. बिस्तर के दूसरे कोने पर वह थक कर खर्राटों के हवाले हो चुका था. संजीव के सिवा उस का है ही कौन के विचार के साथ ही उस के मन ने स्वयं को टोका “और मधुर…?”मधुर का जिक्र मन ने छेड़ा, तो नूपुर के विचारों के घोड़े सरपट दौड़ने लगे. और वह अपने विचारों के घोड़ों पर बैठ कर स्वतंत्रता से धावने लगी.

“पापा प्लीज, मेरी बात समझने की कोशिश तो करिए. मैं उस से प्यार करती हूं, उस के साथ अपना जीवन बिताना चाहती हूं,” बीस वर्ष पूर्व नूपुर की रोरो कर हिचकी बंध गई थी.“निर्लज्ज कहीं की… बाप के सामने अपने मुंह से प्यार की बात करते शर्म नहीं आ रही. छी: छी:,” मां को पिता की उपस्थित में बेटी द्वारा अपने दिल का हाल कहना रास नहीं आ रहा था. आखिर पित्रसत्ता की घुट्टी जो इस संसार में आंख खोलते ही जबान पर शहद के साथ चटा दी जाती है, और जिस की खुराक उम्र बढ़ने के साथ अधिक होती चली जाती है, उस की गहरी पकड़ छूटे तो कैसे. “उस पर विजातीय के साथ… छी: छी:,” मां को नूपुर से आती घिन तीव्र होती जा रही थी.

“ये बेचारे सारी उम्र घरगृहस्थी के लिए मशक्कत करते रहे और बदले में मिला तो क्या, बेटी की मुंहजोरी. इस से अच्छा तो तू पैदा होते ही मर गई होती,” मां न जाने क्याक्या अनापशनाप कहती चली गई थीं. पापा कह तो कुछ नहीं रहे थे, किंतु उन की नजरों को नूपुर की ओर देखना भी गवारा नहीं था. काफी देर जब घर में क्लेश चलता रहा, तो उसे थामने के लिए पापा ने ही पूर्णविराम लगाया था.

“तुम्हारे कहने पर एक बार हम उस नीच से मिलने को भी तैयार हो गए थे. पर, फिर क्या हुआ? क्या वह समय पर आया? स्वयं मुलाकात की तारीख और समय निश्चित कर वह नहीं आया और तुम चाहती हो कि… तुम ने अपने जीवन को डुबोने का निश्चय कर लिया है क्या? ऐसे नीच के पल्ले बंधना चाहती हो, जो शायद तुम से अपना पीछा छुड़ाना चाहता है, वरना क्या वजह हो सकती है जो वह कह कर भी नहीं आया, बताओ.”

नूपुर ने बाल संवारे और शीशे के सामने से हटने ही वाली थी कि ध्यान पहनी हुई साड़ी पर चला गया. कितना समय हो गया इस साड़ी को खरीदे, पर आज भी जब वह इसे पहनती है, तो मधुर इस साड़ी के हलके तोतिया रंग पर फिदा हो जाता है. कहर ढाती हो आज भी – ऐसा ही कुछ कहने लगता है. कितने वर्ष बीत गए नूपुर को मधुर की हुए, अब तो उस ने गिनती रखनी भी छोड़ दी है. लेकिन आज भी जब दोनों एकदूसरे के सामने होते हैं, तो वही नूतन पल्लवित प्यार की भावना उस के अंदर अंगड़ाई लेने लगती है, जैसे अब भी वह षोडशी हो और मधुर उस का पहला प्यार… मन की मुसकान अधरों तक छलक गई.

खयालों में खोई नूपुर की उंगलियां अपनी केशलटों से खेलने लगीं कि तेज की पुकार पर उस का ध्यान भटका, “मुझे लेट हो रहा है, मौम, प्लीज हरी अप.” सारे खयालों को वहीं आईने की मेज पर छोड़ नूपुर किचन में आ गई. तेज को उस का टिफिन पकड़ाया और स्वयं अपने औफिस के लिए निकल गई.

दिल्ली की भीड़ में आज कार ले कर भिड़ने का मन नहीं किया. सो, उस ने कैब बुला ली. जब मन ढीला अनुभव करता है तो शरीर भी स्वतः सुस्तप्राय हो जाता है. फिर आज शाम जल्दी घर लौटना भी है, इसलिए टाइम से औफिस जाना जरूरी है. शाम को संजीव बेंगलुरु से वापस लौट आएगा. उस के आने से पहले नूपुर उस की पसंद का खाना बना कर फ्री हो जाना चाहती है, ताकि बेंगलुरु की गपें सुनने के लिए उस के पास समय रहे. अपने परिवार के साथ समय व्यतीत करना नूपुर को बेहद भाता है.

शाम तक सारा काम निबटा कर नूपुर ने लिविंग रूम में बैठ कर एक कप चाय पी. संजीव को तो फिल्टर कौफी पसंद है. सो, उस के आने पर वही बना देगी. तभी डोरबेल बजी. मुसकराते हुए उस ने दरवाजा खोला. किंतु संजीव ने एक फीकी सी मुसकराहट के साथ प्रवेश किया और सीधा अपने कमरे की तरफ बढ़ गया. हर बार की भांति उस ने न तो नूपुर को प्यार से संबोधित किया और न ही उस के हाथ में अपना बैग पकड़ाया. नूपुर के दिल में खंजर उतर गया. उसे अनायास ही संजीव का पिछला टूर याद आ गया, जब वह इसी तरह लौटा था. तब कैसे उस ने “हाय लव” कहते हुए नूपुर के गाल पर एक हलका सा चुंबन अंकित किया था.

तभी तेज भी वहां पहुंच गया था. “ये पीडीए बेडरूम के लिए रख लो आप दोनों.”तेज के कहने पर नूपुर जरा लजा गई थी और संजीव बोला था, “क्यों भाई, आखिर कानूनन पतिपत्नी हैं, जहां चाहे प्यार जताएं.”

लेकिन आज, रात्रि भोजन के पश्चात संजीव का देर तक तेज के साथ बातों का सिलसिला चलता रहा. संजीव बेंगलुरु के अपने औफिस की बातें विस्तार से सुनाता रहा. हर बार उस के इन किस्सों का रुख नूपुर की ओर ही हुआ करता था किंतु इस बार… पर फिर भी नूपुर पूरे ध्यान से वहीं डटी रही. व्यापार की बारीकियों में नूपुर चाहे बोर भी हो जाए, परंतु चेहरे से वह ये बात कभी भी संजीव पर जाहिर नहीं होने देती. उसे यही आभास करवाती कि नूपुर को उस की बातों में विशेष रुचि है.

तेज के बड़े होने के साथ वह अपनी अलग दुनिया में मस्त रहने लगा है. ऐसे में नूपुर के पास संजीव और उस का साथ ही तो है. उस ने संजीव की ओर देखा. बिस्तर के दूसरे कोने पर वह थक कर खर्राटों के हवाले हो चुका था. संजीव के सिवा उस का है ही कौन के विचार के साथ ही उस के मन ने स्वयं को टोका “और मधुर…?”मधुर का जिक्र मन ने छेड़ा, तो नूपुर के विचारों के घोड़े सरपट दौड़ने लगे. और वह अपने विचारों के घोड़ों पर बैठ कर स्वतंत्रता से धावने लगी.

“पापा प्लीज, मेरी बात समझने की कोशिश तो करिए. मैं उस से प्यार करती हूं, उस के साथ अपना जीवन बिताना चाहती हूं,” बीस वर्ष पूर्व नूपुर की रोरो कर हिचकी बंध गई थी.

“निर्लज्ज कहीं की… बाप के सामने अपने मुंह से प्यार की बात करते शर्म नहीं आ रही. छी: छी:,” मां को पिता की उपस्थित में बेटी द्वारा अपने दिल का हाल कहना रास नहीं आ रहा था. आखिर पित्रसत्ता की घुट्टी जो इस संसार में आंख खोलते ही जबान पर शहद के साथ चटा दी जाती है, और जिस की खुराक उम्र बढ़ने के साथ अधिक होती चली जाती है, उस की गहरी पकड़ छूटे तो कैसे. “उस पर विजातीय के साथ… छी: छी:,” मां को नूपुर से आती घिन तीव्र होती जा रही थी.

“ये बेचारे सारी उम्र घरगृहस्थी के लिए मशक्कत करते रहे और बदले में मिला तो क्या, बेटी की मुंहजोरी. इस से अच्छा तो तू पैदा होते ही मर गई होती,” मां न जाने क्याक्या अनापशनाप कहती चली गई थीं. पापा कह तो कुछ नहीं रहे थे, किंतु उन की नजरों को नूपुर की ओर देखना भी गवारा नहीं था.काफी देर जब घर में क्लेश चलता रहा, तो उसे थामने के लिए पापा ने ही पूर्णविराम लगाया था.

“तुम्हारे कहने पर एक बार हम उस नीच से मिलने को भी तैयार हो गए थे. पर, फिर क्या हुआ? क्या वह समय पर आया? स्वयं मुलाकात की तारीख और समय निश्चित कर वह नहीं आया और तुम चाहती हो कि… तुम ने अपने जीवन को डुबोने का निश्चय कर लिया है क्या? ऐसे नीच के पल्ले बंधना चाहती हो, जो शायद तुम से अपना पीछा छुड़ाना चाहता है, वरना क्या वजह हो सकती है जो वह कह कर भी नहीं आया, बताओ.”

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