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Food Preservation-भाग 3: घर पर ऐसे प्रिजर्व करें आलू, अदरक, आम और आंवला

आलू को धो कर छील लें. उस की चिप्स बना लें व उबलते हुए पानी में डालें. मुलायम होने पर पानी में से निकाल लें व सुखा दें. चिप्स को सफेद बनाने के लिए पानी में फिटकरी घुमा दें. पानी निकाल कर धूप में सुखाएं. पाउडर बनाने के लिए आलू के छोटेछोटे टुकड़े कर पानी में मुलायम बना लें व सुखाने के बाद पीस लें और पाउडर को सूखे डब्बों में भर दें.

सूखी अदरक-सौंठ बनाना
सूखी अदरक पीसने के बाद मसाले के रूप में उपयोग में ली जाती है. इस के अलावा वाष्पशील तेल और ओलियोरेसिन निकालने के लिए भी काम में ली जाती है. इसे निम्न प्रकार से तैयार किया जाता है : * अदरक के पके हुए व स्वस्थ प्रकंद ले कर साफ पानी से धोएं.

* प्रकंदों को चाकू से छील लें व साफ पानी से धो लें. * प्रकंदों को 2 टुकड़ों में काट लें. साफसुथरी जगह पर सौलर शुष्कक या सूरज की धूप में सुखा लें. जब प्रकंदों के टुकड़ों में 10 प्रतिशत नमी रह जाए, सुखाना बंद कर दें.

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* सूखे अदरक के टुकड़ों को प्लास्टिक कंटेनर या पौली प्रोपाइलीन बैग्स में सील बंद कर के कमरे के तापमान पर सालभर तक भंडारित किया जा सकता है.

* सौंठ बनाने के लिए साबुत प्रकंदों को सुखा लें. सूखने के बाद गांठों को चमकाने के लिए पौलिशिंग की जाती?है, जिस से उस का विपणन मूल्य बढ़ाया जा सके. कटाई के बाद प्रौद्योगिकी केंद्र, उदयपुर द्वारा एक मशीन बनाई गई?है, जिस से अदरक की छिलाई, धुलाई व सूखने के बाद पालिशिंग का काम भी किया जा सकता है. मशीन द्वारा समय व श्रम की बचत कर काम को अधिक सुगमता व दक्षता द्वारा संपन्न किया जा सकता है.

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अमचूर बनाना ताजा कच्ची केरी का चुनाव करें. धो कर छील लें व पतलेपतले स्लाइस बना लें. उबलते पानी या भाप में 3 से 4 मिनट तक विवर्णीकरण करने के बाद 10 मिनट तक पोटैशियम मेटाबाइ सल्फाइट के ठंडे घोल में उपचार करते हैं. घोल से निकालने के बाद पानी से धोएं और धूप या सौर शुष्कक में सुखाएं. 5-7 फीसदी नमी रहने पर डब्बों में संग्रहित करें.

आंवला आंवलों को पानी में उबालें व फांकें अलग कर लें. 10-15 दिन तक धूप में सुखाएं. पूरी तरह सूखने पर साफ बरनी में भर दें. आंवले के परिरक्षित पदार्थों में विटामिन ‘सी’ नष्ट नहीं होता है.

गरमी के मौसम में जब आहार में विटामिन ‘सी’ की साधारणतया कमी हो रही है, ऐसे समय में इन खाद्यों का आहार में प्रयोग विटामिन ‘सी’ की दैनिक जरूरत की पूर्ति करता है.

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परिरक्षित कर आंवलों का मूल्य संवर्धन किया जा सकता है. नमकीन आंवला बनाने के लिए सौंफ, जीरा व अजवाइन को हलका सेक कर पीस लें. शक्कर व पिसा मसाला आंवलों की फांकों में डाल कर अच्छी तरह मिलाएं. 10-15 दिन तक धूप में सुखाएं.

Romantic Story: मानिनी – भाग 1

तनु रवि के दिल से उतर गई थी. विवाह करना चाहता था वह उस से लेकिन विदेश में रहते हुए भी धर्म, जाति, रिवाजों में जकड़े रवि के मातापिता विजातीय तनु को बहू बनाने के लिए हरगिज तैयार न थे. क्या रवि थोथी मान्यताओं के आगे  झुक गया?

उस दिन प्रतीक के परिवार ने एक धमाकेदार पार्टी दी थी. पूरा परिवार अपने दोस्तों और अमेरिका में बसे नजदीकी रिश्तेदारों के साथ जश्न मना रहा था. पार्टी घर पर ही रखी थी. लगभग 70 लोग थे. उन का घर भी तो आलीशान महल जैसा ही था. कैलिफोर्निया के फ्रीमौंट शहर की ऊंची पहाड़ी पर एक कालोनी में उन का बंगला था. पहाड़ी पर बीचबीच में कुछ जंगली पेड़ थे. डरहम रोड पर बसी थी उन की कालोनी. कभीकभी दिन में भी मेन रोड पर जंगल से निकल कर हिरण दौड़ते दिखता था.

पार्टी की वजह प्रतीक के इकलौते बेटे रवि का इंजीनियरिंग कालेज में ऐडमिशन होना था. वे अपनी पत्नी और 2 साल के बेटे रवि के साथ लगभग 18 साल पहले कैलिफोर्निया आए थे. कैलिफोर्निया अपने सिलिकौन वैली और हौलीवुड के लिए विख्यात है. यहां दोनों मियांबीवी सौफ्टवेयर इंजीनियर थे. रवि 20 साल का हो चुका था. उस के भी कुछ दोस्त पार्टी में आए थे. पार्टी के लिए कुछ खाना तो होटल से मंगवाया था, पर ज्यादातर घर पर ही बनवाया था. सभी लोग खाने की तारीफ कर रहे थे. नौर्थ इंडियन, साउथ इंडियन और गुजराती व्यंजन सभी का मिश्रण था खाने में. ‘इडली, ढोकला, खट्टामीठा भात, दूधपाक, मिठाइयां आदि विशेष आकर्षण थे.

रवि के अमेरिकी मित्र ने पूछा, ‘‘इतना सारा तुम लोग घर पर कैसे मैनेज कर लेते हो?’’

रवि बोला, ‘‘मेरे यहां 12 साल से एक गुज्जू (गुजराती) मेड है जो सभी प्रकार के इंडियन खाने बनाने में ऐक्सपर्ट हैं.’’

उसी समय एक बुजुर्ग महिला और एक युवती अपने हाथों में टे्र ले कर आईं. जो बाउल खाली हो चले थे उन में उन दोनों ने और पकवान ला कर भर दिए. रवि ने बुजुर्ग महिला की ओर इशारा कर मित्र को बताया कि हमारे यहां का ज्यादातर खाना यही बनाती हैं. तभी वे दोनों महिलाएं रवि के पास से गुजरीं. रवि ने बुजुर्ग महिला को रोक कर कहा, ‘‘आशा, बहुत स्वादिष्ठ खाना बनाया है आप ने. मेरा अमेरिकी दोस्त भी काफी तारीफ कर रहा है.’’

आशा थैंक्स बोल कर जाने लगी तभी रवि ने उन से पूछा, ‘‘आप के साथ यह लड़की कौन है? आज पहली बार देख रहा हूं.’’

‘‘यह मेरी बेटी तनुजा है. हम इसे प्यार से तनु कह कर बुलाते हैं. यह स्कूल के फाइनल ईयर में है. कल से यही पार्टटाइम काम करेगी. यह भी बहुत अच्छा खाना बनाती है.’’

रवि तनुजा को ऊपर से नीचे तक देखता रहा. तनुजा उन दोनों को हाय कर के चली गई. रवि उसे जाते हुए देखता रहा. उस के मित्र ने कहा, ‘‘यार, कहां खो गए? वह तो गई. पर मैं भी इस टिपिकल इंडियन ब्यूटी को सैल्यूट करता हूं, यार.’’

रवि बोला, ‘‘कोई बात नहीं. वह तो कल से रोज ही आएगी.’’

तनु की मां प्रतीक के यहां 3 घंटे रोज काम करती थीं, 20 डौलर प्रति घंटे के रेट से. किसी दिन काम ज्यादा होता तो कुछ और देर तक काम करना होता था. वह खाना बनाने के अलावा लौंड्री करती (औटोमैटिक मशीन में कपड़े धोने और पूरी तरह सुखाने का काम. यहां खुले में या धूप में कपड़े डालने का चलन नहीं है), घर की सफाई का काम करतीं और किचन के बरतन डिशवाशर में रख देतीं और अगर मशीन भर गई होती थी तो उसे औन कर दिया करती थीं. वे सिर्फ खाना बनाने वाले बरतन ही डिशवाशर में डालती, जूठे बरतन धोना उन का काम नहीं था.

आशा ने तनु को पूरा काम सम झा दिया था. रवि की मां प्रभा को भी बोल गई थीं कि कल से तनु ही आएगी. इंडियन स्टोर के किचन में काम मिल गया, सो, वहां ज्यादा टाइम देना पड़ेगा. और तनु भी कुछ महीने बाद कालेज जाएगी तो खर्च भी बढ़ जाएगा.

तनु के पिता भी फ्रीमौंट में उसी इंडियन ग्रौसरी स्टोर में काम करते थे. पतिपत्नी दोनों की आमदनी मिला कर परिवार चलाने लायक हो जाती थी. तनु मातापिता की इकलौती संतान थी. तनु भी बहुत दुलारी बेटी थी. देखनेसुनने में अति सुंदर, लाखों में एक, लड़के तो लड़के, लड़कियां भी उस की सुंदरता पर मुग्ध थीं.

पार्टी के अगले दिन से तनु ही प्रतीक के यहां आने लगी थी. प्रतीक का परिवार कट्टर ब्राह्मण था, यहां तक कि घर में लहसुनप्याज भी नहीं आते थे. गुजराती को प्रतीक ने काम पर खासकर इसलिए रखा था कि उस का परिवार भी शुद्ध शाकाहारी था.

जब रवि छोटा था तो उस की मां उसे स्कूल में ड्रौप कर देती थी. तनु की मां आशा दोपहर में अपनी कार से ले कर आतीं, उसे खाना खिलातीं, उस के कपड़े बदलतीं और उसे कुछ ऐक्स्ट्रा क्लासेज, स्विमिंग आदि के लिए अपनी कार से ड्रौप कर देती थीं. शाम को मां ही पिक कर लेती थीं.

अब तनु सुबह में बस एक घंटे आती, फिर दोपहर स्कूल से लौट कर 2 घंटे बाकी काम करती थी. वह अपनी कार से ही आती थी. अभीअभी 18 वर्ष की हुई थी, तब उसे ड्राइविंग लाइसैंस मिला था. तनु के आने के बाद रवि उस से फरमाइश कर गुजराती खाना बनवाता था. वह उस की सुंदरता पर फिदा था. तनु उस के कमरे को काफी साफसुथरा और सजा कर रखती थी. रवि उस के काम से बहुत खुश था. रोज किसी न किसी बहाने तनु से कुछ बात कर लिया करता था.

तब समर वैकेशन था. अमेरिका में जून से अगस्त तक लगभग 3 महीने का समर वैकेशन होता है. एक दिन दोपहर में तनु आई. वह घर का वैक्यूम कर रही थी. रवि उस के पास जा कर बोला, ‘‘हाय, तुम बहुत सुंदर हो.’’

हालांकि वैक्यूम की तेज आवाज में भी वह सुन चुकी थी, फिर भी अनजान बनते हुए कहा, ‘‘व्हाट?’’

रवि बोला, ‘‘यू आर टू ब्यूटीफुल.’’

एक बार फिर अनजान बन कर धीमी मुसकराहट के साथ तनु ने कहा, ‘‘व्हाट?’’

इस बार रवि ने अपने पैर से वैक्यूम का बटन दबा कर औफ कर दिया और कहा, ‘‘तुम बेहद खूबसूरत हो.’’

‘‘यह तो मैं जानती हूं. सभी कहते हैं. और कोई बात?’’

‘‘तुम खाना भी अच्छा बनाती हो.’’

‘‘यह भी मैं जानती हूं.’’

तब उस के सिर पर धीरे से थपकी देते हुए रवि ने कहा, ‘‘और कुछ नहीं, मेरी नानी. जाओ, थोड़ी कौफी पिलाओ. तुम अपने लिए भी बना लाओ.’’

तनु बोली, ‘‘नहीं, मैं नहीं पिऊंगी.’’

थोड़ी देर में वह कौफी बना कर रख गई और काम में लग गई. रवि ने पूछा, ‘‘तुम्हारी मम्मी बोल रही थीं कि फौल सौमेस्टर में तुम कालेज जौइन कर रही हो.’’

तनु बोली, ‘‘हां, मैं यहीं फ्रीमौंट के ओलन कालेज में अकाउंटिंग का कोर्स करूंगी.’’

‘‘यह तो मिशन बुलवार्ड पर है. बिलकुल घर के पास, एक मील की दूरी पर. वैसे तुम्हारी अकाउंटिंग की चौइस अच्छी है,’’ रवि बोला.

‘‘कालेज पास में है, इसीलिए तो कालेज में पढ़ने का साहस किया है. वरना कहीं बाहर भेज कर पढ़ाने की हैसियत पापा की नहीं है.’’

इसी तरह इन दोनों में धीरेधीरे बातचीत बढ़ती गई. एक दिन रवि ने तनु से कहा, ‘‘मु झे तुम गैराज तक ड्रौप कर सकती हो? मेरी कार मेकैनिक के पास है. सुबह छोड़ कर आया था. उस समय मम्मी ने वापस घर पर ड्रौप कर दिया था. वैसे कोई प्रौब्लम है, तो रहने दो, मैं  कैब बुला लूंगा.’’

अंतरिक्ष में इतिहास रचेगी कल्पना के बाद भारत की दूसरी बेटी सिरिशा, 11 जुलाई को शुरू होगा मिशन

 

र्जिन गैलेक्टिक के मालिक और मशहूर उद्योगपति रिचर्ड ब्रेनसन अंतरिक्ष की सैर करने जा रहे हैं। रिचर्ड आगामी 11 जुलाई को अंतरिक्ष के सफर पर रवाना होंगे. रिचर्ड ब्रेनसन समेत छह लोग इस उड़ान का हिस्सा होंगे. इस उड़ान में उनके साथ भारत में जन्‍मी सिरिशा बांदला भी जा रही हैं. सिरिशा बांदला वर्जिन गैलेक्टिक कंपनी में सरकारी मामलों और शोध कार्य से जुडीं अधिकारी हैं. भारत में जन्‍मी सिरिशा कल्पना चावला के बाद दूसरी ऐसी महिला हैं जो अंतरिक्ष के खतरनाक सफर पर जा रही हैं.

भारत की ओर से राकेश शर्मा सबसे पहले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने अंतरिक्ष की सैरकी थी. इसके बाद कल्‍पना चावला गई थीं. वहीं भारतीय मूल की सुनीता विलियम्‍स ने भी अंतरिक्ष में कदम रखा था. बता दें कि अमेरिकी अंतरिक्षयान कंपनी वर्जिन गैलेक्टिक के रिचर्ड ब्रेनसन अपने साथी अरबपति कारोबारी जेफ बेजोस से नौ दिन पहले अंतरिक्ष यात्रा पर जाने की योजना बना रहे हैं.

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कौन हैं सिरिशा बांदला ?
गुंटूर आंध्र प्रदेश में जन्मी बांदला (34) अंतरिक्ष में जाने वाली दूसरी भारतीय मूल की महिला होंगी. तेलुगु मूल की ये वैज्ञानिक ह्यूस्टन, टेक्सास में पली- बढ़ी है. बांदला ने 2015 में वर्जिन गेलेक्टिक में एक सरकारी मामलों के मैनेजर के रूप में अपना करियर शुरू किया और बाद में कंपनी के रैंकों के माध्यम से प्रगति की. वह अब वर्जिन गैलेक्टिक के लिए सरकारी मामलों की प्रेजिडेंट हैं. बांदला वर्जिन ऑर्बिट के लिए वाशिंगटन ऑपरेशन की मैनेजमेंट टीम का भी हिस्सा थी. टीम ने हाल ही में एक 747 विमान का उपयोग करके अंतरिक्ष में एक उपग्रह लॉन्च किया.

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बांदला ने पर्ड्यू विश्वविद्यालय से एरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन किया है. उन्होंने जॉर्ज टाउन यूनिवर्सिटी से मास्टर ऑफ बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन की डिग्री भी हासिल की है. अपनी ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी करने के बाद, उन्होंने कमर्शियल स्पेसफ्लाइट फेडरेशन (CSF) में एक अंतरिक्ष नीति की नौकरी के लिए काम किया. सीएसएफ में शामिल होने से पहले, उन्होंने ग्रीनविले, टेक्सास में एल-3 कम्युनिकेशंस में एक एयरोस्पेस इंजीनियर के रूप में सोफिस्टिकेटेड एयरक्राफ्ट कॉम्पोनेन्टस को डिजाइन करने के लिए काम किया. वह वर्तमान में अमेरिकन एस्ट्रोनॉटिकल सोसाइटी और फ्यूचर स्पेस लीडर्स फाउंडेशन के बोर्ड ऑफ़ डायरेक्शन के सदस्य के रूप में कार्य कर रही है. वह पर्ड्यू यूनिवर्सिटी की यंग प्रोफेशनल एडवाइजरी काउंसिल की सदस्य भी हैं.

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चालक दल के सभी सदस्य कंपनी के कर्मचारी
ब्रेनसन की कंपनी ने बृहस्पतिवार की शाम घोषणा की उसकी अगली अंतरिक्ष उड़ान 11 जुलाई को होगी और इसके संस्थापक समेत छह लोग उस उड़ान का हिस्सा होंगे. यह अंतरिक्ष यान न्यू मेक्सिको से उड़ान भरेगा जिसमें चालक दल के सभी सदस्य कंपनी के कर्मचारी होंगे. वर्जिन गैलेक्टिक के लिए यह अंतरिक्ष तक जाने वाली चौथी उड़ान होगी. इस खबर से कुछ घंटे पहले बेजोस की कंपनी ब्लू ओरिजिन ने कहा था कि बेजोस 20 जुलाई को अंतरिक्ष में जाएंगे और उनके साथ एयरोस्पेस जगत की एक अग्रणी महिला होंगी, जिन्होंने वहां जाने के लिए 60 वर्षों तक इंतजार किया है.

इसराईल-फिलिस्तीन युद्ध: धर्म के हाथों तबाह मध्यपूर्व एशिया

इसराईल और फिलिस्तीन के बीच 11 दिनों तक चला खूनी संघर्ष थम गया. अंतर्राष्ट्रीय दबाव के चलते आखिरकार इसराईल ने गाजा पट्टी में सैन्य अभियान को रोकने के लिए 21 मई से सीजफायर का ऐलान कर दिया. गाजा पट्टी से हमास के अधिकारियों ने भी लड़ाई रोकने की पुष्टि कर दी. इसराईल और फिलिस्तीन के बीच जारी जंग को खत्म करने के लिए अमेरिका का भारी दबाव इसराईल पर था. पहले इसराईल ने अमेरिकी अपील को नकार दिया था और लड़ाई को निर्णायक मोड़ तक ले जाने की बात कही थी लेकिन बाद में इसराईल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की हाईलैवल सिक्योरिटी कैबिनेट के मंत्रियों ने सर्वसम्मति से गाजा में सीजफायर के समर्थन में वोट किया.

इसराईल के रक्षा अधिकारियों ने मंत्रियों के सामने ब्रीफिंग करते हुए कहा कि इसराईल ने फिलिस्तीनी आतंकी समूह हमास के खिलाफ तटीय इलाके में सभी संभावित उपलब्धियों को हासिल कर लिया है (जैसा कि उस की मंशा थी). हमारे हमलों से हमास काफी डर गया है और उसे काफी चोट पहुंची है.

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इसराईल और फिलिस्तीन के बीच भीषण संघर्ष की शुरुआत तो पहली रमजान को ही हो गई थी जब इसराईली पुलिस ने येरुशलम की अलअक्सा मसजिद में घुस कर तोड़फोड़ मचाई और वहां लगे लाउडस्पीकर के केबल काट कर पूरे परिसर में तांडव किया था. इस का बदला लेने के लिए फिलिस्तीन की गाजा पट्टी से हमास, जिसे आतंकी संगठन कहा जाता है, ने इसराईल के खिलाफ मोरचा खोल दिया. इसराईल को शायद इसी मौके का इंतजार था. देखते ही देखते उस के लड़ाकू विमान फिलिस्तीन पर मिसाइल हमले कर के तबाही मचाने लगे. वहीं, गाजा पट्टी से हमास भी लगातार इसराईल पर रौकेटों की बारिश करने लगा.

गौरतलब है कि तकरीबन 2 हफ्ते की ताजा लड़ाई में फिलिस्तीन में 230 लोग मारे गए और इसराईल में 12 लोगों ने अपनी जानें गंवाईं. फिलिस्तीन के 41 बच्चों की जानें भी इस खूनी संघर्ष में चली गईं. संघर्ष के चलते करीब 58 हजार फिलिस्तीनियों ने पलायन किया है. गाजा में हमास के मुखिया याह्या अल सिनवार के घर को इसराईली मिसाइलों ने मिट्टी के ढेर में बदल दिया है. वहीं अरब और यहूदियों की मिश्रित आबादी वाले इसराईली शहरों में भी नागरिकों के बीच काफी झड़पें व हिंसा हुई है, जबकि अमूमन उन के बीच शांति और सौहार्द का माहौल रहता था.

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हालिया संघर्ष से पहले इसराईल और फिलिस्तीन के बीच लंबे वक्त तक शांति बनी रही. इस की वजह इसराईल पर अंतर्राष्ट्रीय दबाव था. हालांकि कभीकभी राजनयिक स्तर पर कुछ विवाद उभरते थे, मगर जल्दी ही दब भी जाते थे. लेकिन अप्रैलमई में अचानक जंग के हालात पैदा हो गए और संभावना ऐसी बनने लगी कि अगर हालात काबू से बाहर हुए और जंग येरुशलम तक पहुंची तो दुनिया तीसरे विश्व युद्ध के मुहाने पर खड़ी होगी.

झगड़े का इतिहास 

इसराईल और फिलिस्तीन यानी यहूदी और मुसलमान का सारा झगड़ा धर्म, वर्चस्व, जमीन हथियाने व तेल के कुओं के इर्दगिर्द ही है. यहूदी और मुसलमान दोनों के धर्मों का मूल स्रोत एक ही है. बावजूद इस के, ये दोनों एकदूसरे की जान के प्यासे हैं. दरअसल, दुनिया में धर्म ही हर झगड़े, हर फसाद की जड़ है. धर्म मासूमों की जानें लेता है. धर्म देशों को तबाह करता है. पूरे मध्यपूर्व एशिया को धर्म ने तबाह कर डाला. अमेरिका पर आतंकी हमले के पीछे धर्म और उस से उपजी कुंठा ही वजह थी. अफगानिस्तान, पाकिस्तान, हिंदुस्तान हर जगह धर्म मानवजाति के विनाश पर उतारू है. धर्म धरती का सब से बड़ा बोझ है. मगर कोई इस बोझ को उतार फेंकने को तैयार नहीं है.

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यहूदी और मुसलमान हमेशा से एकदूसरे की जान के प्यासे रहे हैं. वहीं, मुसलमानों और ईसाइयों के बीच भी नफरत की कई मिसालें हैं. जबकि इसलाम और ईसाई दोनों धर्मों की उत्पत्ति यहूदी धर्म से हुई है. ये तीनों ही धर्म एकदूसरे के खिलाफ हैं, जबकि तीनों ही धर्म मूलरूप में एकसमान ही हैं. आज पूरा मध्य एशिया यहूदी, ईसाई और मुसलमानों के बीच जारी जंग से तबाह और बरबाद है.

उल्लेखनीय है कि 613 में जब हजरत मुहम्मद ने उपदेश देना शुरू किया तब मक्का, मदीना सहित पूरे अरब में यहूदी धर्म, पेगन, मुशरिक, सबायन, ईसाई आदि धर्म थे. हजरत मुहम्मद द्वारा पहले से मौजूद धर्मों में बदलाव लाने के लिए एक नए धर्म को शुरू करना यहूदियों और ईसाइयों को पसंद नहीं आ रहा था.

मुहम्मद के कुछ समर्थक थे और कुछ विरोधी. विरोध करने वालों में यहूदी सब से आगे थे. यहूदी नहीं चाहते थे कि धर्म को बिगाड़ा जाए, जबकि हजरत मुहम्मद के अनुसार, वे इसलाम की शुरुआत कर के मौजूदा धर्मों में सुधार लाने की कोशिश कर रहे थे. बस, यहीं से यहूदियों, मुसलमानों और ईसाईयों के बीच फसाद व जंग की नींव पड़ी.

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सन 622 में हजरत मुहम्मद अपने समर्थकों के साथ मक्का से मदीना चले गए. इसे ‘हिजरत’ कहा जाता है. मदीना में हजरत मुहम्मद ने लोगों को इकट्ठा कर के इसलामिक फौज तैयार की, सैनिकों के लिए कई कड़े नियम बनाए जिन में 30 दिन का रोजा और दिन में 5 वक्त की नमाज जैसी चीजें शामिल थीं. इसे हर सैनिक के लिए अनिवार्य किया गया और इस के बाद शुरू हुआ जंग का सफर. इसलामिक फौज ने जल्दी ही खंदक, खैबर, बदर और फिर मक्का को फतह कर लिया. ये लड़ाइयां अरसे तक चलती रहीं.

632 ईसवी में हजरत मुहम्मद के जाने के वक्त तक और उस के अगले सौ सालों में लगभग पूरे अरब में मुसलामानों का वर्चस्व कायम हो गया. इस के बाद मुसलमानों ने यहूदियों को अरब से बाहर खदेड़ दिया. हालत यह हो गई कि यहूदी इसराईल और मिस्र में सिमट कर रह गए. मगर वहां भी वे या तो मुसलिम शासन के अंतर्गत रहते या ईसाइयों के शासन में. 1096-99 में पहले कू्रसेड यानी धर्मयुद्ध और 1144 में दूसरे क्रूसेड के बाद यहूदियों को अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए लगातार दरबदर रहना पड़ा.

फिलिस्तीन में भी यहूदी शरणार्थी के तौर पर रहते थे. 1948 में फिलिस्तीन के बंटवारे से पहले तक फिलिस्तीन पर सौ फीसदी फिलिस्तीनियों यानी अरबों का कब्जा था. मगर धीरेधीरे यहूदियों ने अपने लिए अलग मुल्क की मांग उठानी शुरू कर दी. इस मामले में ईसाईयों ने यहूदियों का साथ दिया और 1948 में अंगरेजों ने फिलिस्तीन के 2 टुकड़े कर दिए. जमीन का 55 फीसदी टुकड़ा फिलिस्तीन यानी अरबों के हिस्से में आया और 45 फीसदी इसराईल के रूप में यहूदियों को सौंप दिया गया. 14 मई, 1948 को इसराईल ने खुद को एक आजाद देश घोषित कर दिया और इस तरह पहली बार एक यहूदी देश दुनिया के नक्शे पर आया.

मगर येरुशलम को ले कर लड़ाई जारी रही क्योंकि इसराईल और फिलिस्तीन दोनों येरुशलम को अपनी राजधानी बनाना चाहते थे. धार्मिक लिहाज से येरुशलम न सिर्फ मुसलिम और यहूदी बल्कि ईसाइयों के लिए भी बेहद खास है. ऐसे में संयुक्त राष्ट्र बीच में आया और उस ने फिलिस्तीन का एक टुकड़ा और अलग कर दिया. अब येरुशलम का 8 फीसदी हिस्सा संयुक्त राष्ट्र के कंट्रोल में आ गया, जबकि 48 फीसदी जमीन का टुकड़ा फिलिस्तीन और 44 फीसदी टुकड़ा इसराईल के हिस्से में रह गया.

येरुशलम पर नजर 

इसराईल येरुशलम पर अपना कब्जा चाहता है क्योंकि यह यहूदियों की आस्था का केंद्र है. यहां कभी यहूदियों का पवित्र सुलेमानी मंदिर हुआ करता था जो अब एक दीवार मात्र है. यहीं पर मूसा ने यहूदियों को धर्म की शिक्षा दी थी. मगर येरुशलम पर ईसाई धर्म और इसलाम भी अपना दावा रखते हैं क्योंकि यही शहर ईसा मसीह की कर्मभूमि रहा है तो माना जाता है कि यहीं से हजरत मुहम्मद जन्नत की ओर रवाना हुए थे.

प्रताड़ना के शिकार रहे हैं यहूदी

आज अपने अस्तित्व को बचाने व वर्चस्व को बढ़ाने के लिए यहूदी अपनी सारी ताकत लगाए हुए हैं तो इस के पीछे उन का वह अतीत जिम्मेदार है जिस में वे अन्य धर्मों को मानने वालों के हाथों लंबे समय तक जुल्म, प्रताड़ना, भटकाव और भयावह मौतों का शिकार बनते रहे. सदियों तक यहूदी यूरोप में भटकते रहे, पिटते रहे और मारे जाते रहे. नाजी हिटलर ने तो ‘फाइनल सोल्यूशन’ के नाम पर यहूदियों की पूरी कौम को ही खत्म करने का संकल्प ले लिया था. उन्हें मारने के लिए उस ने बाकायदा गैस चैंबर बनवाए थे.

आज अगर यहूदी ताकतवर हैं, दुनिया के पैसे पर उन का बड़ा कब्जा है और वे मुसलमानों व ईसाईयों के प्रति कट्टरता का परिचय दे रहे हैं तो इस के लिए उन का वह इतिहास और अन्य धर्मों के वे लोग जिम्मेदार हैं जिन्होंने उन पर लंबे समय तक हिंसा की.

नाजी जरमनी के अलावा भी कई सरकारों ने कैंप सिस्टम और टैक्नोलौजी का सहारा लिया और दुनिया के ज्यादातर हिस्से में यहूदियों का कत्ल किया जाता रहा. हालांकि सब से भयानक तरीका जरमन तानाशाह एडोल्फ हिटलर ने इख्तियार किया.

एडोल्फ हिटलर ने यहूदियों की तुलना कीटाणुओं से की. उस ने कहा कि जब तक आप उन के कारणों को नष्ट नहीं करते, बीमारियों को नियंत्रित नहीं किया जा सकता है. उस का मानना था कि यहूदियों का प्रभाव तब तक नहीं हटेगा जब तक हम हमारे बीच से यहूदियों को ही न खत्म कर दें.

हिटलर ने यहूदियों को सब-ह्यूमन करार दिया था और उन्हें इंसानी नस्ल का हिस्सा नहीं माना. 1939 में जरमनी द्वारा विश्व युद्ध भड़काने के बाद हिटलर ने यहूदियों को जड़ से मिटाने के लिए अपने फाइनल सोल्यूशन को अमल में लाना शुरू किया. उस के सैनिक यहूदियों को कुछ खास इलाकों में ठूंसने लगे. उन से काम करवाने, उन्हें एक जगह इकट्ठा करने और मार डालने के लिए विशेष कैंप स्थापित किए गए जिन में सब से कुख्यात था औस्चविट्ज.

यहूदियों को इन शिविरों में लाया जाता और वहां बंद कमरों में जहरीली गैस छोड़ कर उन्हें मार डाला जाता. जिन्हें काम करने के काबिल नहीं समझा जाता, उन्हें मौत के घाट उतार दिया जाता. जबकि बाकी बचे यहूदियों में से ज्यादातर भूख और बीमारी से दम तोड़ देते. युद्ध के बाद सामने आए दस्तावेजों से पता चलता है कि हिटलर का मकसद दुनिया से एकएक यहूदी को खत्म कर देना था.

युद्ध के 6 वर्षों के दौरान नाजियों ने तकरीबन 60 लाख यहूदियों की हत्या की जिन में 15 लाख बच्चे थे. यहूदियों को जड़ से मिटाने के अपने मकसद को हिटलर ने इतने प्रभावी ढंग से अंजाम दिया कि दुनिया की एकतिहाई यहूदी आबादी खत्म हो गई. यह नरसंहार संख्या, प्रबंधन और क्रियान्वयन के लिहाज से विलक्षण था.

एडोल्फ हिटलर सिर्फ जरमनों को पवित्र रक्त वाला मानता था. इसलिए उस ने उन लोगों को भी खत्म किया जिन्हें कोई आनुवंशिक या लंबी बीमारी थी. हिटलर ने 1920 के दशक में जो विचार विकसित किए थे वे 1945 में उस की मृत्यु तक कमोबेश एकजैसे ही रहे.

जमीन पर कब्जे की रणनीति पर आगे बढ़ रहे हैं यहूदी 

2 देश बनने के बावजूद यहूदियों और अरबों के बीच छिटपुट जंग चलती रही. वर्ष 1956, 1967, 1973 और 1982 में इसराईल और फिलिस्तीन के बीच कई झड़पें हुईं और उन झड़पों के दौरान इसराईल लगातार अपना दायरा बढ़ाता रहा और फिलिस्तीन की जमीन पर कब्जा करता रहा.

1967 में इसराईल ने फिलिस्तीन के कुछ उन हिस्सों पर भी कब्जा कर लिया जहां ज्यादातर अरब मूल के लोग रहते थे. आज इसराईल के कब्जे वाले क्षेत्र में रहने वाले अरब खासी मुश्किलों का सामना कर रहे हैं. इन लोगों के पास न तो इसराईली नागरिकता है और न वोटिंग का अधिकार. इन पर कई तरह के प्रतिबंध हैं. कई बार इन के घर तोड़ दिए जाते हैं और शहर से बाहर जाने के लिए भी इन्हें इसराईली सरकार से मंजूरी लेनी पड़ती है.

फिलिस्तीन पर इसराईल के बढ़ते कब्जे से नौबत यह हो गई कि पहले 55 फीसदी और फिर 48 फीसदी से सिमटते हुए 22 फीसदी और अब 12 फीसदी जमीन के टुकड़े पर ही फिलिस्तीन सिमट कर रह गया है. जबकि आधिकारिक रूप से येरुशलम को छोड़ कर इसराईल लगभग बाकी के 80 फीसदी इलाके पर कब्जा कर चुका है. लेदे कर फिलिस्तीन के नाम पर अब 2 ही इलाके बचे हैं, एक गाजा और दूसरा वेस्ट बैंक.

वेस्ट बैंक अमूमन शांत रहता है जबकि गाजा में भयंकर उथलपुथल मची रहती है क्योंकि गाजा पर एक तरह से हमास का कंट्रोल है. गाजा किसी सूरत में इसराईल के दबाव में आने को तैयार नहीं है. मौजूदा तनाव इसी गाजा और इसराईल के बीच है. गाजा को बचाए रखने वाले हमास को अंतर्राष्ट्रीय समूह एक आतंकी संगठन के तौर पर देखता है. लेकिन इस संगठन को अरब युवाओं का भारी समर्थन हासिल है. वहीं, ईरान भी हमास को सपोर्ट करता है. सारे रौकेट और बम हमास द्वारा इसी गाजा से इसराईल पर गिराए जाते हैं और इसराईल इसी गाजा पर बमबारी कर रहा है.

गौरतलब है कि हमास और इसराईल के बीच  पिछला बड़ा संघर्ष 7 वर्षों पहले हुआ था. दोनों के बीच अब तक 16 बार हिंसक झड़पें हो चुकी हैं. दरअसल इसराईली किसी तरह अरबों का येरुशलम पर हक छीन लेना चाहते हैं. वे उन्हें येरुशलम से बाहर खदेड़ देना चाहते हैं. 1948 से यह कोशिश हो रही है मगर कोई अपना जन्मस्थान नहीं छोड़ना चाहता. इसराईली पुलिस जबजब फिलिस्तीनी मुसलमानों को प्रताडि़त करती है, उन्हें वहां से खदेड़ने की कोशिश करती है तो हमास उस का बदला लेने के लिए उठ खड़ा होता है.

हालिया जंग की वजह

फिलिस्तीनियों पर इसराईली पुलिस की दमनात्मक कार्रवाई ने ही एक बार फिर दोनों मुल्कों के बीच जंग का सिलसिला शुरू किया. 10 मई को हमास ने इसराईल की सरजमीं पर पहला रौकेट दागा था. इस के पीछे वजह यह थी कि 27 दिनों पहले यानी 13 अप्रैल को इसराईली पुलिस येरुशलम की पवित्र अलअक्सा मसजिद में मय हथियार घुस आई थी.

अलअक्सा मसजिद दुनियाभर के मुसलमानों की आस्था का केंद्र है. यहां घुस कर इसराईली पुलिस ने पहले तो लोगों से बहस की और फिर उन के साथ मारपीट की. उस ने वहां लगे लाउडस्पीकर की तमाम केबल्स काट दीं और फिर पूरा परिसर ही तबाह कर दिया.

उल्लेखनीय है कि 13 अप्रैल को मुसलिमों के पवित्र रमजान माह का पहला दिन था. मसजिद में तमाम नमाजी इबादत के लिए इकट्ठा हुए थे जब इजराइली पुलिस ने वहां घुस कर तांडव मचाया.

अलअक्सा मसजिद में इसराईली पुलिस क्यों घुसी

13 अप्रैल को इसराईल का मैमोरियल डे होता है. यह उन सैनिकों की शहादत को याद करने के लिए मनाया जाता है जिन्होंने इसराईल को बनाने में योगदान दिया था. 13 अप्रैल को जब इसराईली राष्ट्रपति रेवन रिवलिन यहां स्पीच देने आने वाले थे तो इसराईल प्रशासन ने अलअक्सा मसजिद के लाउडस्पीकर को राष्ट्रपति की स्पीच के वास्ते इस्तेमाल करने का आदेश दिया था लेकिन मस्जिद की देखरेख करने वालों ने इस आदेश का पालन नहीं किया क्योंकि वह रमजान का पहला दिन था और समय नमाज का था. इस के बाद पुलिस ने मसजिद में छापा मारा और लाउडस्पीकर के तमाम केबल काट कर पूरी मसजिद में बवाल मचाया.

मसजिद के शेख साबरी कहते हैं, ‘‘इजराइली पुलिस मसजिद का सम्मान नहीं कर रही थी. वह भी तब जबकि यह माह ए रमजान था.’’

एक महीने बाद रिऐक्शन

अलअक्सा चूंकि मुसलिम समुदाय की आस्था का केंद्र है और इसराईली पुलिस ने रमजान के दौरान यहां घुस कर तांडव मचाया था तो उस का विरोध होना लाजिमी था. पूरे गाजा में अंदर ही अंदर इस हरकत के खिलाफ आग भड़कने लगी. मुसलिम युवाओं का समर्थन पा कर हमास जवाबी कार्रवाई की तैयारी में जुट गया और ठीक एक महीने बाद उस ने रौकेट से इसराईल पर हमला कर दिया. वहीं, इसराईल के कुछ शहरों में अरब और यहूदियों के बीच दंगे शुरू हो गए जहां अमूमन नहीं होते थे.

येरुशलम के मुफ्ती शेख करीम कहते हैं, ‘‘अलअक्सा मसजिद में पुलिसिया कार्रवाई ही जंग के लिए जिम्मेदार है.’’

इसराईल की मंशा

इसराईल जानबूझ कर फिलिस्तीन से जंग चाहता है क्योंकि इस से उस को फायदा होता है. इसराईल ने जबजब फिलिस्तीन से जंग की उस ने फिलिस्तीन की जमीन पर कब्जा बढ़ाया और इस बार भी उस ने यही किया है. जानकार मानते हैं कि इसराईल और फिलिस्तीन की जंग गाजा या वेस्ट बैंक तक सीमित रहे, तो ही ठीक है क्योंकि अगर यह मामला येरुशलम तक पहुंच गया तो दुनिया तीसरे विश्वयुद्ध की दहलीज पर खड़ी नजर आएगी क्योंकि येरुशलम यहूदियों, मुसलमानों और ईसाईयों तीनों की धार्मिक आस्था का केंद्र है.

इसराईल पर अंतर्राष्ट्रीय दबाव  

इस वक्त दुनिया के कुछ देश इसराईल के साथ खड़े हैं तो कुछ फिलिस्तीन के साथ, मगर तमाम देश चाहते ह क यह मसला शांति से सुलझ जाए ताकि कोरोना महामारी से परेशान दुनिया और ज्यादा आफत में न पड़े. इसराईल जिस तरह अलअक्सा मसजिद पर अपना कब्जा जमाना चाह रहा है उस से मुसलिम देश खासे खफा हैं. बीते दिनों इसलामिक देशों के संगठन और्गेनाइजेशन औफ इसलामिक कोऔपरेशन ने आपात बैठक कर इसराईल को चेतावनी दी कि वह अलअक्सा मसजिद पर कब्जा करने की कोशिश करेगा तो इस के नतीजे भयानक होंगे. यह मीटिंग सऊदी अरब ने बुलाई थी. उसी सऊदी अरब ने जिस ने अमेरिकी जेट फाइटर को अपनी जमीन इसलिए दे रखी है ताकि जरूरत पड़ने पर अमेरिका इसराईल की मदद के लिए उस का इस्तेमाल कर सके. मगर अलअक्सा मसजिद में इसराईल की नापाक हरकत से सऊदी अरब खफा हो गया है जिस का असर अब अमेरिका सहित इसराईल को समर्थन देने वाले अन्य मुल्कों पर भी देखा जा रहा है.

इसराईल को ईरान का डर

दुनिया की सब से चतुर खुफिया एजेंसी, दुनिया के सब से ताकतवर हथियारों से लैस और दुनिया की सब से बेखौफ सेना होने का दावा करने वाले इसराईल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू से जब भी पूछा जाता है कि आप के देश के लिए 3 सब से बड़े खतरे कौन से हैं? तो उन का जवाब होता है, ‘‘ईरान, ईरान और ईरान.’’

आर्थिक, राजनीतिक और सामरिक तौर पर ईरान को पंगु बनाने की अमेरिका, यूरोपियन देशों और इसराईल की तमाम कोशिशों के बाद भी अरब में अगर कोई मुल्क सीना तान के खड़ा है तो वह ईरान है. वरना इराक, लीबिया और ट्यूनीशिया की मिसालें सामने हैं जिन्हें इन देशों ने मिल कर तबाह कर दिया.

आज अगर इसराईल और अमेरिका जैसे दुनिया के सब से शक्तिशाली देशों को मिडिल ईस्ट में कोई टक्कर दे सकता है तो वह और कोई नहीं, बल्कि ईरानी हुकूमत है. आज हमास अगर इसराईल सेना का मुकाबला कर पा रहा है तो उस की बड़ी वजह ईरान ही है जिस का खुला समर्थन हमास को हासिल है.

ईरान कई मौकों पर साफ कह चुका है कि जब तक वह है तब तक येरुशलम की अलअक्सा मसजिद को कोई हाथ भी नहीं लगा सकता. मौजूदा विवाद में भी शियाबहुल ईरान, सुन्नी बहुल फिलिस्तीन के साथ ही खड़ा है. खुद हमास नेता इस्माइल हनीयेह ने उन के समर्थन के लिए ईरान का शुक्रिया अदा किया है. हनीयेह का कहना है कि इसराईल के खिलाफ लड़ाई सिर्फ हमास की नहीं, बल्कि पूरी इसलामी दुनिया की है.

तीन तरफ से घिरा इसराईल

इसराईल को ईरान से खतरा है तो उस की 3 बड़ी वजहें हैं, वह भी 3 तरफ से. पहली वजह राजधानी तेल अवीव के पश्चिम में गाजा पट्टी पर मौजूद फिलिस्तीनी संगठन हमास जिस के साथ ईरान शियासुन्नी का फर्क मिटा कर पूरी शिद्दत से खड़ा है. उसे न सिर्फ पैसों से, बल्कि अत्याधुनिक हथियारों से भी लैस कर रहा है.

ईरान से इसराईल के खौफ की दूसरी वजह है उत्तर दिशा में उस के पड़ोसी मुल्क लेबनान में मौजूद राजनीतिक संगठन हिजबुल्लाह, जिस के लीडर हसन नसरुल्लाह के एक इशारे पर लाखों लेबनानी लोग इसराईल पर टूटने के लिए आमादा रहते हैं. हिजबुल्लाह अकसर इसराईली सेना पर रौकेट लौंचरों से हमला करता रहता है. इसे भी ईरान का समर्थन हासिल है और इस के लीडर नसरुल्लाह ईरानी सुप्रीम लीडर अयातुल्ला खामनाई को अपना लीडर मानते हैं.

इसराईल के खौफ की तीसरी वजह है पूरब में मौजूद सीरिया, जहां के सरहदी इलाकों में ईरानी शिया मिलिशिया की मौजूदगी है और जो हमेशा इसराईल के लिए खतरा बनी रहती है. इसराईल अपनी तमाम कोशिशों के बावजूद सीरिया में ईरान की मौजूदगी को खत्म नहीं कर पा रहा है. मिडिल ईस्ट में अमेरिकी दबाव के बाद भी इसराईल इस कोशिश में नाकाम रहा है.

ईरान की इस ताकत के पीछे उस की अपनी कोशिशें तो हैं ही, साथ ही, चीन और रूस जैसे देशों की दोस्ती ने भी उसे कई मौकों पर मदद की है. रूस और चीन की बात करें तो चीन खासकर मिडिल ईस्ट में अपना दबदबा बढ़ाने की कोशिश कर रहा है. पिछले कुछ सालों में उस ने कई अरब देशों के साथ बिलियन डौलर डील्स साइन की हैं. ईरान के साथ उस ने 400 बिलियन डौलर के समझौते किए हैं. मगर चीन अरब में यह सब कर क्यों रहा है, उस की मंशा क्या है?

दूसरे विश्वयुद्ध के बाद से ही चीन मिडिल ईस्ट में ऐक्टिव हो गया था. मगर उस दौर में तेल और गैस की खोज होने के बाद अमेरिका यहां कूद पड़ा और तब से इस पूरे क्षेत्र में अशांति का दौर शुरू हो गया. जिन देशों ने अमेरिका की मनमानी को माना, वे उस के दोस्त बन गए और जिन्होंने उसे नकार दिया वहां गृहयुद्ध या किसी न किसी और बहाने से अमेरिका ने या तो हमला कर दिया या वहां की सरकारों को सत्ता से बेदखल करवा दिया. आज भी मिडिल ईस्ट में अशांति की जो सब से बड़ी वजह है, वह तेल ही है. जानकार मानते हैं कि जब इन देशों में तेल खत्म होना शुरू होगा, यहां फिर से शांति की बहाली होना शुरू हो जाएगी.

पूरे मामले पर भारत की चुप्पी

उल्लेखनीय है कि बीते दिनों इसराईल और फिलिस्तीन के बीच जारी युद्ध पर दुनिया का हर देश अपने विचार जाहिर कर रहा था और युद्ध को जल्द से जल्द खत्म करने का दबाव बना रहा था. लेकिन आश्चर्जनकरूप से भारत ने इस मामले में चुप्पी ओढ़ रखी थी. इस चुप्पी का क्या राज है और भारत किस के साथ है?

दरअसल भारत के सामने 2 मुश्किलें हैं. भारत इसराईल का समर्थन नहीं कर सकता क्योंकि इसराईल को खुश करने का मतलब है अरब देशों से रिश्ते खराब करना, जो भारत हरगिज नहीं चाहता. भारत का अरब देशों के साथ करीब 121 अरब डौलर का व्यापार है जो भारत के कुल विदेशी व्यापार का करीब 19 फीसदी है. तेल का सब से ज्यादा आयात भी हम इन्हीं से करते हैं. इस के अलावा भारत के करीब एक करोड़ लोग अरब के अलगअलग शहरों में नौकरियां करते हैं. वहीं, इसराईल के साथ हमारा व्यापार सिर्फ 5 अरब डौलर का है. इसलिए भारत फिलहाल इस मसले पर हर कदम फूंक कर उठा रहा है.

भारत फिलिस्तीनी जमीन पर इसराईल के कब्जे का समर्थन भी नहीं कर सकता क्योंकि ऐसा करने से पाकिस्तान के कब्जे वाले पाक अधिकृत कश्मीर और चीन के कब्जे वाले अक्साई चिन को वापस हासिल करने में अड़चनें आ सकती हैं. क्योंकि जब हम दूसरों के अवैध कब्जे को सही ठहराएंगे, तो पाकिस्तान और चीन को पीओके और अक्साई चिन को कब्जाने का मौका मिल जाएगा. इसीलिए भारत की शुरू से यह नीति रही है कि उस ने फिलिस्तीन पर इसराईल के कब्जे का हमेशा विरोध किया है.

1948 के बाद से ही येरुशलम संयुक्त राष्ट्र के अधीन है. वहां न तो इसराईल की सत्ता है और न ही फिलिस्तीन की. हालांकि डोनाल्ड ट्रंप के शासनकाल में अचानक इसराईल ने येरुशलम को अपनी राजधानी बनाने की कोशिश की थी. इतना ही नहीं, उस ने अमेरिकी दूतावास को तेल अवीव से येरुशलम शिफ्ट कर दिया था. लेकिन इस घटना को ले कर खासा हंगामा हुआ. संयुक्त राष्ट्र ने इसराईल के इस कदम की कड़ी निंदा की. निंदा में तमाम देशों के साथ भारत भी शामिल था.

हालांकि भारत में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी में एक धड़ा ऐसा है जो इसराईल से मजबूत रिश्तों की हिमायत करता है और फिलिस्तीन के मुसलमानों से उसे नफरत है मगर सरकार की मजबूरी तेल और व्यापार है जिस के चलते वह इसराईल से नजदीकी दिखा कर अरब देशों को नाराज नहीं कर सकती है. इसलिए इस मामले में ज्यादा कुछ बोलने से बेहतर है खामोश रहना.

Kundali Bhagya: गोदभराई के बाद शर्लिन खो देगी अपना बच्चा, परिवार वालों को लगेगा झटका

एकता कपूर के टीवी सीरियल ‘कुंडली भाग्य ‘ की कहानी  इन दिनों शर्लिन के इर्द गिर्द घूम रही है. शर्लिन ने सबसे ये कहा है कि यह बच्चा ऋषभ का है और घर वालों से यह बात छिपा ली है.

प्रीता को इस बात की सच्चाई पता है और उसने शर्लिन को कह दिया था, कि मैं तुम्हारा सच जान चुकी हूं कि यह बच्चा पृथ्वी का है, बीते एपिसोड में प्रीता ने शर्लिन को कह दिया था कि मैं तुम्हारा भंडा फोड़ कर रख दूंगी, लेकिन अब इसके अगले एपिसोड में दिखाया जाएगा कि शर्लिन अपना बच्चा खो देगी, जिससे शर्लिन पर लगा दाग धूल जाएगा.

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इस बात का खुलासा शर्लिन की लेटेस्ट तस्वीर में खुलासा हुआ है, शर्लिन अपने पार्टनर पृथ्वी से इस बारे में बात करती नजर आ रही है. जिस तस्वीर में शर्लिन का बेबी बंप नजर नहीं आ रहा है. एक खबर में खुलासा हुआ है कि गोदभराई की रस्म के बाद शर्लिन का एक्सीडेंट हो जाएगा औऱ शर्लिन अपना बच्चा खो देगी. जिसके बाद उसके ऊपर  लगा दाग भी धूल जाएगा, हालांकि इस घटना के बाद से लूथरा परिवार काफी ज्यादा दुखी हो जाएगा.

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हालांकि इन सभी ड्रामा को देखने को लिए आपको कुंडली भाग्य के आने वाले एपिसोड को देखना होगा, जिसमें ये सभी ड्रामा आपको देखने को मिलेगा. जिससे प्रीता के प्लानिंग पर एक बार फिर पानी फिर जाएगा. अब देखना यह है कि शर्लिन और पृथ्वी मिलकर क्या प्लानिंग करते हैं.

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प्रीता घरवालों को इनकी सच्चाई बता पाएगी या नहीं या फिर कृतिका को अपने होने वाले पति के बारे में सच का पता चल पाएगा या नहीं.

वन महोत्सव में लगेंगे करोड़ो पेड़

वन महोत्‍सव के वृक्षारोपण महाअभियान के अन्‍तर्गत मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ ने सुलतानपुर में पूर्वांचल एक्‍सप्रेस वे के किनारे 100 करोड़वां पौधा लगाया गया. मुख्‍यमंत्री ने कहा कि पांच साल में यूपी सरकार ने वृक्षारोपण अभियान में रिकार्ड कायम किया है. अब तक प्रदेश में वन विभाग के सहयोग से 100 करोड़ पेड़ लगाए जा चुके हैं, अ‍भी यह अभियान 7 जुलाई तक चलेगा. वहीं प्रदेश सरकार ने  विभिन्‍न जनपदों व गांवों में रविवार को 25 करोड़ पौधे लगाकर रिकार्ड बना दिया.  सीएम ने कहा कि पूर्वांचल एक्‍सप्रेस वे को ध्‍यान में रखते हुए पांच औद्योगिक स्‍थानों पर पांच औद्योगिक गलियारे विकसित किए जाएंगे, जहां पर उद्योग लगेंगे. इससे पूर्वांचल के युवाओं को नौकरी के लिए कहीं जाना नहीं पड़ेगा. उनको अपने ही शहर में नौकरी मिल जाएगी.  वृक्षारोपण अभियान के तहत राज्‍यपाल आनंदीबेन पटेल ने झांसी में वृक्षारोपण किया.

मुख्‍यमंत्री ने कहा कि वृक्षारोपण के इस महाअभियान में सरकार कई रिकार्ड बनाने जा रही है. उस रिकार्ड के तहत यूपी में पिछले 5 साल में 100 करोड़ वृक्ष लगाए जा चुके हैं. एक जुलाई से सुबह 10 बजे तक 9 करोड़ पेड़ लगा दिए गए है. वहीं रविवार शाम तक प्रदेश के विभिन्‍न जनपदों में 25 करोड़ पौधे लगाए गए. यूपी में 7 जुलाई तक वन महोत्‍सव का आयोजन किया जाएगा. इस दौरान पूरे प्रदेश में 30 करोड़ से अधिक वृक्ष लगाए जाएंगे. मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ ने कहा कि यहां पर 100 वर्ष पुराना एक बरगद का वृक्ष है. जिसको हेरिटेज वृक्ष के रूप में संरक्षित किया गया है. सीएम ने कहा कि वृक्षों को संरक्षित करके ही हम एक स्‍वच्‍छ समाज दे सकते हैं. एक्‍सप्रेस वे के किनारे पंचवटी, नक्षत्र वाटिका समेत अन्‍य औषधीय वाटिकाएं भी बनाई जाए.

मुख्‍यमंत्री ने कहा कि पूर्वांचल एक्‍सप्रेस वे के किनारे वृक्षारोपण कार्यक्रम का आयोजन किया गया है. यहां पर 2-3 साल पहले खेत हुए करते थे. यहां पर आज एक्‍सप्रेस वे है. जो पूर्वी उत्‍तर प्रदेश के अर्थव्‍यवस्‍था की रीढ़ बनने जा रहा है. एक्‍सप्रेस वे के निर्माण के बाद यूपी को व्‍यापक रोजगार, नौकरी व औद्योगिकीकरण की दिशा में आगे बढ़ने में मदद मिलेगी . सीएम ने कहा कि पूर्वांचल एक्‍सप्रेस वे  देश की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में स्थापित होगा. इससे पूर्वांचल वासियों व युवाओं को अपने शहर में रोजगार मिलेगा. यूपी समृद्ध होगा.

पांच औद्योगिक कलस्‍टर होंगे विकसित

मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ ने कहा कि एक्‍सप्रेस वे ध्‍यान में रखते हुए सरकार पूर्वांचल एक्‍सप्रेस के किनारे पांच औद्योगिक स्‍थानों पर 5 औद्योगिक कलस्‍टर विकसित करने जा रही है. यहां पर आईटी पार्क, ओडीओपी व टेक्सटाइल पार्क के साथ अन्‍य उद्योग लगाए जाएंगे. इन उद्योगों के जरिए लाखों युवाओं को रोजगार मिलेगा. यूपी का युवा अपने ही शहर में नौकरी हासिल कर सकेगा. जो स्‍वावलंबन के पथ पर चल कर यूपी के विकास में अपना योगदान देगा. पीएम मोदी की मंशा के अनुरूप यूपी एक बिलियन डॉलर की इकोनॉमी बन सकेगा. मुख्‍यमंत्री ने कहा कि यह सिर्फ औद्योगिक गलियारा नहीं बनेगा बल्कि पर्यावरण संरक्षण का आधार भी साबित होगा.

स्‍मृति वाटिकाएं अपनों की यादें संजोने की एक अच्‍छी पहल

मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ ने कहा कि कोरोना कमजोर हुआ है लेकिन अभी खत्‍म नहीं हुआ है. इसलिए सोशल डिस्‍टेसिंग व मास्‍क का उपयोग बहुत जरूरी है. सीएम ने कहा कि आप खुद भी वैक्‍सीन लगवाए और अपने परिवार व आसपास के लोगों को वैक्‍सीन लगवाने के लिए जागरूक करें. मुख्‍यमंत्री ने कहा कि कोरोना में दिवंगत आत्माओं की याद में जो यहां स्‍मृति वाटिका बनाई गई है. उसके लिए जिला प्रशासन को बधाई. हर गांव व जिले में इस तरह की वाटिका बनाई जाए. उन दिवंगत आत्‍माओं को नमन व उनके याद में लगाए वृक्ष हमेशा उनकी याद संजोये रहेंगे.

पति की प्रेयर मीट के बाद मंदिरा बेदी ने चेंज किया इंस्टाग्राम प्रोफाइल, फैंस को हो रही है चिंता

टीवी एक्ट्रेस मंदिरा बेदी के ऊपर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है. 30 अप्रैल को मंदिरा बेदी के पति राज कौशल का देहांत हो गया है. इस खबर के बाद से मंदिरा बेदी के सभी फैंस को बहुत बड़ा झटका लगा है. सभी चाहने वाले को इस खबर ने हिलाकर रख दिया है.

पति के मौत के बाद मंदिरा बेदी ने प्रेयर मीट रखा था, जिसमें मंदिरा के परिवार वाले और करीबी दोस्त आए थें, मंदिरा बेदी पति के जाने के बाद बुरी तरह से टूट चुकी हैं. राज कौशल के प्रेयर मीट के बाद मंदिरा बेदी ने अपना इंस्टाग्राम अकाउंट डिलीट कर दिया है.

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वहीं मंदिरा बेदी को लेकर सोशल मीडिया पर ट्रोल किया जा रहा है. मंदिरा बेदी को लेकर कुछ लोग यही बात कह रहे हैं कि उन्होंने अपने पति की अर्थी को कंधा क्यों लगाया इसके साथ यह भी कहा जा रहा है कि उन्हें ढंग के कपड़े पहनने चाहिए थें, इस तरह कि बातों को लेकर सोशल मीडिया पर लगातार लोग ट्रोल कर रहे हैं.

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यूजर्स का कहना है कि मंदिरा को अंतिम संस्कार के दौरान सूट पहनना चाहिए था, जबकी इस वक्त मंदिरा बेदी पूरी तरह से टूट चुकी हैं. वहीं राज कौशल के मौत के बारे में म्यूजिक डायरेक्टर सुलेमान चटर्जी ने बड़ा बयान दिया है उन्होंने बताया है कि राज कौशल ने मंदिरा बेदी को बताया था कि उन्हें हार्ट अटैक हो रहा है जिसके बाद से मंदिरा बेदी ने आशीष चौधरी को फोन किया था, मंदिरा और आशीष ने राज को कार में अस्पताल लेकर गए तक तक राज बेहोश हो चुके थें, इसके बाद से अस्पताल पहुंचने के बाद से खुलासा हुआ कि मंदिरा बेदी के पति राज कौशल नहीं रहे.

संपादकीय

जनवरी-फरवरी 2020 के दिल्ली के उत्तरपूर्व इलाके में हुए दंगों में बहुत से मुसलमानों को आज भी बेबात में बिना कोई गुनाह साबित हुए जेलों में बंद कर रखा है. दिखावे के लिए कुछ ङ्क्षहदू नेता और उन के पिछलग्गू भी बंद हैं. नागरिक संशोधन कानून का विरोध कर रहे लोगों के घर जलाने से ले कर ङ्क्षजदा जलाने तक के कांड इस मामले में हुए पर गुनाहगार मान कर पुलिस और अदालतों ने वहशी बने ङ्क्षहदूओं को तो छोड़ दिया पर भीड़ का हिस्सा बने मुसलमानों को आज तक जेलों में बंद कर रखा है.

बड़ी मुश्किलों से एकएक कर के कुछ छूट पा रहे हैं और इन सबको बाहर निकाल कर अदालत की जय बोलना पड़ता है क्योंकि सरकार तो उन्हें ङ्क्षजदगी भी उदाकरण के तौर पर बंद ही रखना चाहती है. अब अदालतें कहने लगी हैं कि विरोध करने का हक सबको है पर विरोधी जब तक कोई अपराध न करें उन्हें गिरफ्तार नहीं करा जा सकता. जो छूटे हैं वे बरी नहीं हुए हैं. सिर्फ जमानत मिली है उन्हें क्योंकि मोटे तौर पर उन के खिलाफ कुछ खास सुबूत नहीं थे.

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इसी ढील का फायदा वे चंद ङ्क्षहदू पिछलग्गू भी उठाना चाहते है जो साफसाफ हत्या, आगजनी, तोडफ़ोड़ और लूट में शामिल थे. एक मामले में 3 अभियुक्त जो ङ्क्षहदुत व्हाट्सएप गु्रप के हिस्से थे कह रहे थे कि उन के खिलाफ कोई सीसीटीवी फूटेज नहीं है, सिर्फ गवाह हैं इसलिए उन्हें छोड़ दिया जाए. अदालत ने अपनी बात नहींं मानी पर जल्दी या देर से पुलिस दबाव डालना छोड़ देगी.

सरकार के खिलाफ आंदोलनों को दबाने के लिए 2014 से पहले भी कानूनों का भरपूर दुरुपयोग किया गया है. जो सत्ता में होता है वह अपने विरोधियों पर ऐसेतैसे आरोप लगा कर उन्हें बंद करा देता है और फिर वे जज जो अपना कैरियर शुरू कर रहे होते हैं. सरकार की सुनते हुए जमानत ही अॢजयों को कूढ़े की बालटी में फेंक देते हैं.

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ब्रिटीश सरकार का बताया गया क्रिमीनल प्रोलिजर कोड अपने आप में अद्भुत कानून था जिस में पहली बार इस देश में शासन की लाठी पुलिस पर ही सैंकड़ों बंदिशे लगाई थीं. उन दिनों मजिस्ट्रेट अंग्रेज अफसर होते थे और वे समक्क्ष पुलिस सुपरिटेंडट या ङ्क्षहदुस्तानी पुलिस अफसर की नहीं सुनते थे. जेलों की हालत जो भी हो, जमानत पाना आसान था.

आज स्थिति बिगड़ गई है. आज एफआईआर दर्ज होने का मतलब है कि जेल होगी ही. बहुत ही कम मामले ऐसे है जिस में पुलिस पहले ही दिन जमानत दे देने को राजी होती होगी. अगर वकौल बड़ा सक्षम हो तो ही एफआईआर करे जाने के बाद जेल से बचा जा पाता है क्योंकि नएनए मजिस्ट्रेट बने युवा सरकार की निगाहों में कांटा नहीं बनना चाहते.

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इस का एक उपाय यह है कि जमानत देने का या न देने का अधिकार सबसे छोटे मजिस्ट्रेट के हाथों से ले लिया जाए. यह अधिकार केवल हाईकोई जजों के पास हो या फिर जमानत के फैसले रिटायर्ड हाईकोर्ट जजों की एक नई संस्था करे जो जिला स्तर पर नियुक्त हो और पहली अपील कोर्ट का काम करे.

यह मामले का फैसला नहीं करेगी. सिर्फ जमानत दी जाए या न दी जाए इतना फैसला करेगी, इस के पास बहुत मामले नहीं आएंगे. अगर पुलिस को अहसास होगा कि वास्तव में डेढ़ सौ साल पुराना कानून लागू होगा तो वे ट्रायल मजिस्ट्रेट से ही जमानत दिला देंगे. पुलिस करप्शन को रोको का यह एक अच्छा तरीका हो सकता है.

अपराध : नीलकंठ और सुरमा में किस बात के लिए लड़ाई हो रही थी

एंबुलैंस का सायरन बज रहा था.

लोग घबरा कर इधरउधर भाग रहे

थे. छुट्टी का दिन होने से अस्पताल का आपातकालीन सेवा विभाग ही खुला था, शोरशराबे से डाक्टर नीलकंठ की तंद्रा भंग हो गई.

घड़ी पर निगाह डाली, रात के 10 बज कर 20 मिनट हो रहे थे. उसे ऐलिस के लिए चिंता हो रही थी और उस पर क्रोध भी आ रहा था. 9 बजे वह उस के लिए कौफी बना कर लाती थी. वैसे, उस ने फोन पर बताया था कि वह 1-2 घंटे देर से आएगी.

‘‘सर,’’ वार्ड बौय ने आ कर कहा, ‘‘एक गंभीर केस है, औपरेशन थिएटर में पहुंचा दिया है.’’

‘‘आदमी है या औरत?’’ नीलकंठ ने खड़े होते हुए पूछा.

‘‘औरत है,’’ वार्ड बौय ने उत्तर दिया, ‘‘कहते हैं कि आत्महत्या का मामला है.’’

‘‘पुलिस को बुलाना होगा,’’ नीलकंठ ने पूछा, ‘‘साथ में कौन है?’’

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‘‘2-3 पड़ोसी हैं.’’

‘‘ठीक है,’’ औपरेशन की तैयारी करने को कहो. मैं आ रहा हूं. और हां, सिस्टर ऐलिस आई हैं?’’

‘‘जी, अभीअभी आई हैं. उस घायल औरत के साथ ही ओटी में हैं,’’ वार्ड बौय ने जाते हुए कहा.

राहत की सांस लेते हुए नीलकंठ ने कहा, ‘‘तब तो ठीक है.’’

वह जल्दी से ओटी की ओर चल पड़ा. दरअसल, मन में ऐलिस से मिलने की जल्दी थी, घायल की ओर ध्यान कम ही था.

ऐलिस को देखते ही वह बोला, ‘‘इतनी देर कहां लगा दी? मैं तो चिंता में पड़ गया था.’’

‘‘सर, जल्दी कीजिए,’’ ऐलिस ने उत्तर दिया, ‘‘मरीज की हालत बहुत खराब है. और…’’

‘‘और क्या?’’ नीलकंठ ने एप्रन पहनते हुए पूछा, ‘‘सारी तैयारी कर दी है न?’’

‘‘जी, सब तैयार है,’’ ऐलिस ने गंभीरता से कहा, ‘‘घायल औरत और कोई नहीं, आप की पत्नी सुरमा है.’’

‘‘सुरमा,’’ वह लगभग चीख उठा.

सुबह ही नीलकंठ का सुरमा से खूब झगड़ा हुआ था. झगड़े का कारण ऐलिस थी. नीलकंठ और ऐलिस का प्रणय प्रसंग उन के विवाहित जीवन में विष घोल रहा था. सुबह सुरमा बहुत अधिक तनाव में थी, क्योंकि नीलकंठ के कोट पर 2-4 सुनहरे बाल चमक रहे थे और रूमाल पर लिपस्टिक का रंग लगा था. सुरमा को पूरा विश्वास था कि ये दोनों चिह्न ऐलिस के ही हैं. कुछ कहने को रह ही क्या गया था? पूरी कहानी परदे पर चलती फिल्म की तरह साफ थी.

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झुंझला कर क्रोध से पैर पटकता हुआ नीलकंठ बाहर निकल गया.

जातेजाते सुरमा के चीखते शब्द कानों में पड़े, ‘आज तुम मेरा मरा मुंह देखोगे.’

ऐसी धमकियां सुरमा कई बार दे

चुकी थी. एक बार नीलकंठ ने

उसे ताना भी दिया था, ‘जानेमन, जीना जितना आसान है, मरना उतना ही मुश्किल है. मरने के लिए बहुत बड़ा दिल और हिम्मत चाहिए.’

‘मर कर भी दिखा दूंगी,’ सुरमा ने तड़प कर कहा था, ‘तुम्हारी तरह नाटकबाज नहीं हूं.’

‘देख लूंगा, देख लूंगा,’ नीलकंठ ने विषैली मुसकराहट के साथ कहा था, ‘वह शुभ घड़ी आने तो दो.’

आखिर सुरमा ने अपनी धमकी को हकीकत में बदल दिया था. उन का घर 5वीं मंजिल पर था. वह बालकनी से नीचे कूद पड़ी थी. इतनी ऊंचाई से गिर कर बचना बहुत मुश्किल था. नीचे हरीहरी घास का लौन था. उस दिन घास की कटाई हो रही थी. सो, कटी घास के ढेर लगे थे. सुरमा उसी एक ढेर पर जा कर गिरी. उस समय मरी तो नहीं, पर चोट बहुत गहरी आई थी.

शोर मचते ही कुछ लोग जमा हो गए, उन्होंने सुरमा को पहचाना और यही ठीक समझा कि उसे नीलकंठ के पास उसी के अस्पताल में पहुंचा दिया जाए.

काफी खून बह चुका था. नब्ज बड़ी मुश्किल से पकड़ में आ रही थी. शरीर का रंग फीका पड़ रहा था. नीलकंठ के मन में कई प्रश्न उठ रहे थे, ‘सुरमा से पीछा छुड़ाने का बहुत अच्छा अवसर है. इस के साथ जीवन काटना बहुत दूभर हो रहा है. हमेशा की किटकिट से परेशान हो चुका हूं. एक डाक्टर को समझना हर औरत के वश की बात नहीं, कितना तनावपूर्ण जीवन होता है. अगर चंद पल किसी के साथ मन बहला लिया तो क्या हुआ? पत्नी को इतना तो समझना ही चाहिए कि हर पेशे का अपनाअपना अंदाज होता है.’

सहसा चलतेचलते नीलकंठ रुक गया.

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‘‘क्या हुआ, सर?’’ ऐलिस ने चिंतित स्वर में पूछा, ‘‘आप की तबीयत तो ठीक है न?’’

‘‘मैं यह औपरेशन नहीं कर सकता,’’ नीलकंठ ने लड़खड़ाते स्वर में कहा, ‘‘कोई डाक्टर अपनी पत्नी या सगेसंबंधी का औपरेशन नहीं करता, क्योंकि वह उन से भावनात्मक रूप से जुड़ा होता है. उस के हाथ कांपने लगते हैं.’’

‘‘यह आप क्या कह रहे हैं?’’ ऐलिस ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘जल्दी से डाक्टर जतिन को बुला लो,’’ नीलकंठ ने वापस मुड़ते हुए कहा. वह सोच रहा था कि औपरेशन में जितनी देर लगेगी, उतनी जल्दी ही सुरमा इस दुनिया से दूर चली जाएगी.

‘‘यह कैसे हो सकता है?’’ ऐलिस ने तनिक ऊंचे स्वर में कहा, ‘‘डाक्टर जतिन को आतेआते एक घंटा तो लगेगा ही. लेकिन इतना समय कहां है? मैं मानती हूं कि आप के लिए पत्नी को इस दशा में देखना बड़ा कठिन होगा और औपरेशन करना उस से भी अधिक मुश्किल, पर यह तो आपातस्थिति है.’’

‘‘नहीं,’’ नीलकंठ ने कहा, ‘‘यह डाक्टरी नियमों के विरुद्ध होगा और यह बात तुम अच्छी तरह जानती हो.’’

‘‘ठीक है, कम से कम आप कुछ देखभाल तो करें,’’ ऐलिस ने कहा, ‘‘मैं अभी डाक्टर जतिन को संदेश भेजती हूं.’’

डाक्टर नीलकंठ जब ओटी में घुसा तो आंखों के सामने अंधेरा छा रहा था, कितने ही उद्गार मन में उठते और फिर बादलों की तरह गायब हो जाते थे.

सामने सुरमा का खून से लथपथ शरीर पड़ा था, जिस से कभी उस ने प्यार किया था. वे क्षण कितने मधुर थे. इस समय सुरमा की आंखें बंद थीं, एकदम बेहोश और दीनदुनिया से बेखबर. इतना बड़ा कदम उठाने से पहले उस के मन में कितना तूफान उठा होगा? एक क्षण अपराधभावना से नीलकंठ का हृदय कांप उठा, जैसे कोई अदृश्य शक्ति उस के शरीर को झंझोड़ रही हो.

नीलकंठ ने कांपते हाथों से सुरमा के बदन से खून साफ किया. उस का सिर फट गया था. वह कितने ही ऐसे घायल व्यक्ति देख चुका था, पर कभी मन इतना विचलित नहीं हुआ था. वह सोचने लगा, क्या सुरमा की जान बचा सकना उस के वश में है?

लेकिन डाक्टर जतिन के आने से पहले ही सुरमा मर चुकी थी. नीलकंठ सूनी आंखों से उसे देख रहा था, वह जड़वत खड़ा था.

जतिन ने शव की परीक्षा की और धीरे से नीलकंठ के कंधे पर हाथ रख कर कहा, ‘‘मुझे दुख है, सुरमा अब इस दुनिया में नहीं है. ऐलिस, नीलकंठ को केबिन में ले जाओ, इसे कौफी की जरूरत है.’’

ऐलिस ने आहिस्ता से नीलकंठ का हाथ पकड़ा और लगभग खींचते हुए ओटी से बाहर ले गई. कमरे में ले जा कर उसे कुरसी पर बैठाया.

‘‘सर, मुझे दुख है,’’ ऐलिस ने आहत स्वर में कहा, ‘‘सुरमा के ऐसे अंत की मैं ने कभी स्वप्न में भी कल्पना नहीं की थी. मैं अपने को कभी माफ नहीं कर सकूंगी.’’

नीलकंठ ने गहरी सांस ले कर कहा, ‘‘तुम्हारा कोई दोष नहीं, कुसूर मेरा है.’’

नीलकंठ आंखें बंद किए सोच रहा था, ‘शायद सुरमा को बचा पाना मेरे वश से बाहर था, पर कोशिश तो कर ही सकता था. लेकिन मैं टालता रहा, क्योंकि सुरमा से छुटकारा पाने का यह सुनहरा अवसर था. मैं कलह से मुक्ति पाना चाहता था. अब शायद ऐलिस मेरे और करीब आ जाएगी.’

ऐलिस सामने कौफी का प्याला लिए खड़ी थी. वह आकर्षक लग रही थी.

पुलिस सूचना पा कर आ गई थी. औपचारिक रूप से पूछताछ की गई. यह स्पष्ट था कि दुर्घटना के पीछे पतिपत्नी के बिगड़ते संबंध थे, परंतु नीलकंठ का इस दुर्घटना में कोईर् हाथ नहीं था. नैतिक जिम्मेदारी रही हो, पर कानूनी निगाह से वह निर्दोष था. पोस्टमार्टम के बाद शव नीलकंठ को सौंप दिया गया. दोनों ओर के रिश्तेदार सांत्वना देने और घर संभालने आ गए थे. दाहसंस्कार के बाद सब के चले जाने पर एक सूनापन सा छा गया.

नीलकंठ को सामान्य होने में सहायता दी तो केवल ऐलिस ने. अस्पताल में ड्यूटी के समय तो वह उस की देखभाल करती ही थी, पर समय पा कर अपनी छोटी बहन अनीषा के साथ उस के घर भी चली जाती थी. चाय, नाश्ता, भोजन, जैसा भी समय हो, अपने हाथों से बना कर देती थी. धीरेधीरे नीलकंठ के जीवन में शून्य का स्थान एक प्रश्न ने ले लिया.

कई महीनों के बाद नीलकंठ ने एक दिन ऐलिस से कहा, ‘‘मैं तुम्हारे जैसी पत्नी ही पाना चाहता था. तुम मुझे पहले क्यों नहीं मिलीं. यह सोच कर कभीकभी आश्चर्य होता है.’’

‘‘सर,’’ ऐलिस बोली, ‘‘सर.’’

नीलकंठ ने टोकते हुए कहा, ‘‘मैं ने कितनी बार कहा है कि मुझे ‘सर’ मत कहा करो. अब तो हम दोनों अच्छे दोस्त हैं. यह औपचारिकता मुझे अच्छी नहीं लगती.’’

‘‘क्या करूं,’’ ऐलिस हंस पड़ी, ‘‘सर, आदत सी पड़ गई है, वैसे कोशिश करूंगी.’’

‘‘तुम मुझे नील कहा करो,’’ उस ने ऐलिस की आंखों में झांकते हुए कहा, ‘‘मुझे अच्छा लगेगा.’’

ऐलिस हंस पड़ी, ‘‘कोशिश करूंगी, वैसे है जरा मुश्किल.’’

‘‘कोई मुश्किल नहीं,’’ नीलकंठ हंसा, ‘‘आखिर मैं भी तो तुम्हें ऐलिस कह कर बुलाता हूं.’’

‘‘आप की बात और है,’’ ऐलिस ने कहा, ‘‘आप किसी भी संबंध से मुझे मेरे नाम से पुकार सकते हैं.’’

‘‘तो फिर किस संबंध से तुम मेरा नाम ले कर मुझे बुलाओगी?’’ नीलकंठ के स्वर में शरारत थी.

‘‘पता नहीं,’’ ऐलिस ने निगाहें फेर लीं.

‘‘तुम जानती हो, मेरे मन में तुम्हारे लिए क्या भावना है,’’ नीलकंठ ने कहा, ‘‘मैं चाहता हूं कि तुम मेरे सूने जीवन में बहार बन कर प्रवेश करो.’’

‘‘यह तो अभी मुमकिन नहीं,’’ ऐलिस ने छत की ओर देखा.

‘‘अभी नहीं तो कोई बात नहीं,’’ नीलकंठ ने कहा, ‘‘पर वादा तो कर सकती हो?’’ नीलकंठ को विश्वास था कि ऐलिस इनकार नहीं करेगी, शक की कोई गुंजाइश नहीं थी.

‘‘यह कहना भी मुश्किल है,’’ ऐलिस ने मेज पर पड़े चम्मच से खेलते हुए कहा.

‘‘क्यों?’’ नीलकंठ ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘आखिर हम अच्छे दोस्त हैं?’’

‘‘बस, दोस्त ही बने रहें तो अच्छा है,’’ ऐलिस ने कहा.

‘‘क्या मतलब?’’ नीलकंठ ने खड़े होते हुए पूछा, ‘‘तुम कहना क्या चाहती हो?’’

‘‘यही कि अगर शादी कर ली तो इस बात की क्या गारंटी है,’’ ऐलिस ने एकएक शब्द तोलते हुए कहा, ‘‘कि मेरा भी वही हश्र नहीं होगा, जो सुरमा का हुआ? आखिर दुर्घटना तो सभी के साथ घट सकती है?’’

यह सुनते ही नीलकंठ को मानो सांप सूंघ गया. उस ने कुछ कहना चाहा, पर जबान पर मानो ताला पड़ गया था. ऐलिस ने साथ देने से इनकार जो कर दिया था.

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