उत्तराखंड में पलायन इस कदर बढ़ गया था कि गांव के गांव खाली हो गए थे, यहां तक कि कई गांवों में तो बस एकआध बुजुर्ग ही बचा था या फिर वह परिवार जो बाहर रोजगार नहीं करता था, लेकिन लॉकडाउन के बाद प्रवासियों की घर वापसी से उत्तराखंड की वादियों में फिर रौनक लौट आई है.

युवाओं में बढ़ा स्वरोजगार का जनून

प्रवासी लोगों ने अब स्वरोजगार के लिए कमर कस ली है. उन का मानना है कि बजाय नौकरी करने के अपना ही कुछ छोटामोटा धंधा शुरू किया जाए. इन में अधिकतर युवा होटल, मॉल और छोटीमोटी फैक्टरी या फिर दुकानों में काम करते थे. ये युवा गांव में या तो मनरेगा के अंतर्गत चल रही योजनाओं में काम कर रहे हैं और कुछ बंजर पडी जमीन में उगी कंटीली झाड़ी को काटकर उसे समतल और उपजाऊ
बना रहे ह

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मिलजुल कर करना चाहते हैं काम

पौड़ी गढ़वाल के पोखड़ा और थैलीसैन  ब्लॉक के  बुरांसी गांव के युवाओं ने 8-8, 10-10 के ग्रुप में ऑर्गेनिक खेती शुरू कर दी है और उन्हें उम्मीद है कि वे लोग इस काम में सक्षम होंगे.यहां पर तिलहन और ऑर्गेनिक सब्जियां आसानी से उगाई जा सकती हैं, क्योंकि यहां  सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी भी है. लेकिन
यहां पर सब से बड़ी समस्या है इन के लिए बाजार तलाशने की, क्योंकि आसपास कोई सब्जी मंडी या बड़ा बाजार नहीं है.

राज्य सरकार ने दिखाए सपने

राज्य सरकार को चाहिए कि इन युवाओं को सब्जियां मंडी तक पहुंचाने के लिए उचित व्यवस्था की जानी चाहिए, तभी ये लोग अपना स्वरोजगार कर पाएंगे. उत्तराखंड सरकार ने पिछले दिनों पलायन रोकने के लिए की योजनाएं बनाई और प्रवासियों को कई तरह की सुविधाएं देने की भी बात कही. यही नहीं मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह ने इस कार्य को सुचारू रूप से आगे बढ़ाने के लिए पलायन आयोग का ही गठन कर दिया, लेकिन अब देखना होगा कि राज्य सरकार इन प्रवासियों को कितनी मदद करती है, कहीं हाथी के दांत दिखाने के और व खाने के और तो नहीं.

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