Download App

उल्टा दांव : मालती ट्रेन में बैठे युवकों को डरना के लिए क्या कर रही थी

लेखक- परमादत्त  झा

पटना अहमदाबाद ऐक्सप्रैस ट्रेन अपनी पूरी गति से चली जा रही थी. पटना रेलवे स्टेशन पर इस ट्रेन पर सवार जितेंद्र अपनी बेटी मालती के साथ अहमदाबाद जा रहे थे. वहां उन्हें बेटी को मैडिकल ऐडमिशन के लिए टैस्ट दिलवाना था.

एक प्राइवेट फर्म के क्लर्क जितेंद्र के लिए यह एक अच्छा अवसर था. सो, वे खुशी से जा रहे थे. वहीं उन की 17 वर्षीया बेटी मालती की खुशी का ठिकाना नहीं था. स्टेशन पर उन की पत्नी और बाकी बच्चे उन्हें छोड़ने आए थे. वे गाड़ी पर चढ़ गए. उन के सामने की बर्थ पर

2 लड़के विराजमान थे, 24-25 वर्ष के रहे होंगे, जींसपैंट व शर्ट में कम के ही लग रहे थे.‘‘पापा, आजकल किसी ने कुछ उलटीसीधी हरकत की तो एक मैसेज रेलमंत्री को करने से अपराधी फौरन पकड़ा जाता है,’’ मालती शायद इन बातों से अपना डर कम कर रही थी या उन युवकों को सुना रही थी.

ये भी पढ़ें- Romantic Story: जो बीत गई सो बात गई

‘‘हां बेटा, आप ठीक कह रहे हो, हम अब पूरी तरह सुरक्षित हैं,’’ पिता बेटी की हां में हां मिला रहे थे.‘‘परंतु पापा, क्या वास्तव में कार्रवाई होती है या फिर नाम कमाने के लिए…’’ वह शायद बात को लंबा खींचना चाहती थी.

‘‘बेटा, कार्रवाई वास्तव में होती है और कई पकड़े भी जा चुके हैं,’’ यह पिता का स्वर था. इधर, ये दोनों युवक अपनी पुस्तक पढ़ने में लगे थे. एक बार भी उन की बातों की ओर ध्यान नहीं दिया था.

‘‘क्यों, आप दोनों का क्या मत है?’’ इन्होंने उन दोनों युवकों से प्रश्न किया. ‘‘जी, आप ने मु झ से कुछ कहा,’’ एक युवक बोला.‘‘हां, कार्य के संबंध में पूछा था,’’ जितेंद्र ने बात प्रारंभ करने की गरज से कहा. ‘‘सौरी, मैं सुन नहीं पाया था,’’ कहते वह इन की बात सुनने की मुद्रा में आ गया.

‘‘क्या रेलमंत्री को मैसेज करने पर कार्यवाही वास्तव में होती है?’’ यह मालती का स्वर था. ‘‘जी, अगर शिकायत सही हो तो, वरना गलत शिकायत करने पर उलटा पेनल्टी लगने की संभावना भी है,’’ इसी लड़के ने कहा और पढ़ने में खो गया.

ये भी पढ़ें- सबक-भाग 1: भावेश की मां अपनी बहू को हमेशा सताती रहती थी

इधर मालती को चैन नहीं आ रहा था. वह उभरे गले का टौप, नीचे टाइट जींस पहने हाथ में बैग हिलाती गाड़ी पर आई थी, जिस के पिता कुली के समान सामान ढोते आए थे. वह अपने पिता को मानो कुली सम झ रही थी, जबकि स्वयं को राजकुमारी. ऐसी दशा में पूरे 2 घंटे गाड़ी को दौड़ते हुए हो गए और इन दोनों लड़कों ने एक बार भी उस की ओर ध्यान नहीं दिया. सो, उसे गवारा नहीं हुआ या यों कहें कि वह पचा नहीं पा रही थी.

‘‘सुनिए,’’ मालती से जब नहीं रहा गया तो बोल उठी. ‘‘जी,’’ एक ने उस की ओर देखते कहा.‘‘पीने का पानी होगा आप के पास?’’ वह बोली. इस पर बिना कुछ बोले एक युवक ने पानी उस की ओर बढ़ा दिया. पानी पी कर मालती ने थैंक्स कहा तो वह बिना बोले मुसकरा कर अभिवादन स्वीकार करते, बोतल वापस बैग में रख फिर पढ़ने में खो गया.

डाक्टर राकेश, डाक्टर मोहन मिश्रा, टीटीई ने नाम ले कर पुकारा तो दोनों ने मुसकरा कर सिर हिला दिया.‘‘डाक्टर साहब, आप अहमदाबाद में?’’ टीटीई न जाने क्यों पूछ बैठा.‘‘हम दोनों वहां एमजीएमसी में कार्यरत हैं,’’ एक युवक ने संक्षिप्त उत्तर दिया. ‘‘डाक्टर साहब? तो क्या आप दोनों डाक्टर हैं?’’ जितेंद्र टीटीई के बाद बोल पड़े.

ये भी पढ़ें- सच के पैर: भैया-भाभियों की असलियत जानकर क्या था गुड्डी का फैसला

‘‘जी सर, हम दोनों भाई हाउस सर्जन के रूप में कार्यरत हैं और एमएस भी कर रहे हैं,’’ इस बार दूसरा युवक यानी डा. मोहन बोल उठा. ‘‘हम वहीं अपनी बिटिया का ऐडमिशन टेस्ट दिलवाने ले जा रहे हैं,’’ जितेंद्र बिना पूछे बोल उठे. ‘‘जी, परंतु मैडिकल की पढ़ाई तो पटना में भी हो सकती है. फिर इतनी दूर?’’ इस बार डा. राकेश ने प्रश्न किया.

‘‘बात यह है कि बाहर पढ़ने का मजा कुछ और है और वहां किसी की ज्यादा टोकाटाकी नहीं होती,’’ यह उन की बेटी मालती थी जो बीच में टपक पड़ी थी.‘‘अच्छा,’’ एक शब्द बोल दोनों फिर चुप हो गए.‘‘आप लोग कहां के रहने वाले हैं?’’ जितेंद्र ने पूछा.‘‘पटना का ही हूं. मेरे पिताजी पटना में ही नौकरी में हैं और वहीं से एमबीबीएस किया. फिर यहां नौकरी करने चले आए.’’

अब इन की आंखों में दूसरा स्वप्न तैरने लगा. एक जवान होती बेटी के पिता की आंखों में बेटी के भावी वर की तसवीर तैरती रहती है.‘‘आप लोग पटना के हैं, लगते तो नहीं?’’ यह मालती का प्रश्न था.‘‘हम लोग 2 साल से अहमदाबाद में काम कर रहे हैं. हो सकता है बोली में बदलाव आ गया हो,’’ डा. मोहन ने बात को खत्म करने की गरज से कहा.

ये भी पढ़ें- फादर्स डे स्पेशल : अम्मा बनते बाबूजी

‘‘मेरी बेटी कुछ ज्यादा ही बोलती है,’’ जितेंद्र ने बेटी का बचाव करते हुए कहा.‘‘ऐसा कुछ नहीं है. बड़े होने पर संभल जाएगी,’’ यहां भी दोनों बात को समाप्त कर फिर पढ़ने में खोते हुए बोले.अब दोनों बापबेटी इन दोनों से परेशान हो गए थे. ये लोग कभी भी कुछ भी बोलना नहीं चाहते. मात्र पढ़ते रहते हैं. बीच में चाय मंगा कर दोनों ने पी. एक बार भी नहीं पूछा.

जितेंद्र को  झट मौका मिल गया. जैसे ही मुगलसराय से गाड़ी आगे चली, एक चाय वाला चाय ले कर आया.उन्होंने 3 चाय का और्डर दिया. एक खुद के लिए और 2 उन दोनों डाक्टरों के लिए.‘‘नो थैंक्स, हम दोनों चाय पी चुके हैं,’’ दोनों स्पष्ट मना करते बोले.

‘‘मगर हम ने खरीद ली है. मैं पीने लगा तो सोचा आप को भी पिला दूं. आखिर आप पटना के हैं न,’’ इन्होंने बातों की कड़ी जोड़नी चाही.‘‘जी धन्यवाद, परंतु हम अभी चाय पी चुके हैं,’’ संक्षिप्त उत्तर दे कर दोनों चुप हो गए.जितेंद्र ने चाय का कप अन्य 2 पास की सीटों पर विराजमान लोगों को पकड़ा दिया. उन्हें बोलने की आदत थी, वहीं वे दोनों मानो न बोलने की कसम खाए बैठे थे.

इधर टे्रन अपनी गति से दौड़ती जा रही थी. अनायास ही एक फोन डाक्टर मोहन के पास आया, ‘‘जी, हम परसों सुबह पहुंच जाएंगे. दोपहर 1 बजे तक औपरेशन कर सकते हैं. आप पेशेंट को तब तक एक दवा दे कर रखें.’’ इस जवाब ने बाकी पैसेंजर्स को चौंका दिया. वे उन की ओर देख रहे थे.

डाक्टर मोहन फोन सुनने के बाद राकेश से कह रहे थे, ‘‘कुल 5 औपरेशन परसों करने हैं. पांचों मेजर हैं. तुम सफर के बाद…’’‘‘आप चिंता न करें. रिजर्व कूपे में आराम से जा रहे हैं. रात भरपूर नींद ले लेंगे. सो, मन ताजा रहेगा. अलबत्ता डिस्कस करना जरूरी है,’’ राकेश ने भी भाई की हां में हां मिलाई.

अब सारे पैसेंजर्स की निगाहों में मानो दोनों हीरो बने जा रहे थे.‘‘डाक्टर साहब, ट्रेन में एक को अटैक आ गया. क्या आप…’’ यह भागते आते टीटीई का स्वर था.‘‘बिलकुल, चलिए,’’ कहते अपना बैग उठाए दोनों डाक्टर चल दिए.

करीब 1 घंटे बाद दोनों लौटे. पसीने से तरबतर थे. डाक्टर का यह रूप यात्रियों ने नहीं देखा था.‘‘थैंक्स डाक्टर, आप ने उन की जान बचा ली. रेलवे पर एहसान किया है.’’‘‘थैंक्स कैसा सर, हम ने बस अपना फर्ज निभाया है. उन्हें अंडरकंट्रोल कर नींद का इंजैक्शन दे दिया है. जबलपुर या इटारसी कहीं भी हौस्पिटल में शिफ्ट कर दीजिएगा,’’ अत्यंत सरल स्वर में ये दोनों युवक बोल रहे थे.

थोड़ी देर बाद उस आदमी के साथ का अटैंडैंट इन के पास आया और फीस लेने का आग्रह करने लगा.‘‘नो थैंक्स, हम सरकारी डाक्टर हैं. पैसेंजर का इलाज करना हमारा फर्ज बनता है,’’ इन्होंने मना करते कहा.

अब तो टीटीई से ले कर टे्रन के सारे पैंसेजर इन दोनों डाक्टरों को पहचान गए थे. इधर जितेंद्र के दिमाग में अलग खिचड़ी पकने लगी. अपनी बिरादरी के हैं. काबिल डाक्टर हैं. उम्र भी ज्यादा से ज्यादा 25 की होगी. बेटी भी 18 की है, कौन सी छोटी है. फिर 7-8 साल का अंतर तो हर जगह रहता है.

‘‘क्यों डाक्टर साहब, आप के पूरे परिवार के सदस्य पटना में ही रहते हैं?’’ जितेंद्र ने सवाल पूछा.‘‘पूरे कहां, हम दोनों भाई अहमदाबाद में, शेष बचे मांपापा पटना में हैं,’’ डाक्टर ने बात पूरी की, या यों कहें कि जवाब दिया.

‘‘फिर उन की देखरेख?’’इस प्रश्न पर दोनों भाई मानो चौंक गए, ‘‘मेरे पितामाता दोनों पूरी तरह स्वस्थ हैं. पिताजी नौकरी में हैं.’’‘‘परंतु आप कभीकभार ही देख पाते होंगे न?’’ जितेंद्र ने फिर से प्रश्न किया.‘‘हम दोनों में से कोई एक 2-4 माह में आ ही जाता है. फिर पास में चाचाका परिवार है,’’ डा. मोहन का जवाब था.

नौकरी में दांवपेंच ज्यादा चलाने वाले, काम से कोसों दूर रहने वाले जितेंद्र अपना निश्चय लगभग कर चुके थे. वे 2 बार बाथरूम जाने के बहाने वहां से हट कर अपनी पत्नी को इन के बारे में बता चुके थे. पत्नी की राय भी यही थी कि लड़के के परिवार का पता ले लिया जाए तो एक लड़का अवश्य अपनी लड़की के लिए मांग लेंगे. अगर देने से मना किया तो पैसे दे कर…

उन्होंने टीटीई के पास जा कर उन्हें चाय पिला कर यात्रियों की सूची से इन दोनों का पता मालूम कर लिया था. बस, ट्रेन अहमदाबाद तो पहुंचे. वहां बेटी के बहाने इनका होस्टल देख लेंगे. और पटना लौट कर शादी भी पक्की कर लेंगे इतने काबिल डाक्टर दोनों भाई हैं कहीं किसी दूसरे ने इन्हें लपक लिया तो… 15-20 लाख में भी सस्ता सौदा होगा. मकान 3-4 साल बाद ले लेंगे या किराए में जिंदगी काट लेंगे.

यह सब सोचतेसोचते पता नहीं इन के खयालों की उड़ान कहां तक पहुंच जाती. सब से खराबी यह थी कि दोनों भाई एक शब्द नहीं बोले थे. बस, सवाल का जवाब दे रहे थे. यदि लड़का मान जाए तो पटना मेंइस का कौल फिक्स कर ही लाखों कमाया जा सकता है. बड़ा काबिल डाक्टर है.

पता नहीं वे कहां तक और क्याक्या सोचते, मगर उन की सोच पर पत्थर पड़ गया जब मोहन ने फोन पर अपनी पत्नी से बात की. ‘‘सुनो, परसों सुबह अहमदाबाद में हम लोग होंगे, दोपहर औपरेशन का टाइम दे रखा है. सो, परेशान मत होना.’’‘अच्छा, तो मोहन विवाहित है. तो कोई बात नहीं. दूसरा भाई यदि कुंआरा हो तो…’ टूटती उम्मीद के बीच एक चिराग उन्हें दिखने लगा.

‘‘आप दोनों भाई परिवार से इतनी दूर रहते हैं?’’ जितेंद्र न जाने क्यों यह पूछ बैठे.‘‘अकेले कहां हम दोनों अपने परिवार के साथ रहते हैं.’’ डा. मोहन के इस जवाब को सुनते ही जितेंद्र धम्म से बर्थ पर गिर पड़े.उन के शरीर को इस प्रकार पसीने से गीला देख कर दोनों हड़बड़ा गए, ‘‘क्या हुआ जितेंद्रजी, आप की तबीयत तो ठीक है न?’’

‘‘बस, घबराहट हो रही है,’’ वे अपने हृदय को दबाते बोले.‘‘आप लेटिए,’’ कहते हुए डाक्टरों ने उन्हें बैड पर लिटा दिया और उन का बीपी चैक करने लगे. टीटीई फिर आ गया. बीपी की दवा के साथ नींद की गोलियां भी खिला दीं.‘‘अब 4 घंटे बाद इन्हें होश आ जाएगा. हम अहमदाबाद में होंगे,’’ डा. मोहन टीटीई को बता रहे थे.‘‘मगर हुआ क्या?’’ टीटीई ने हैरानी से पूछा.

‘‘पता नहीं, जैसे ही मैं ने कहा कि मैं परिवार के साथ रहता हूं, सुनते ही ये धम्म से बिस्तर पर गिर पड़े.’’‘‘क्या आप के परिवार के बारे में पूछा था?’’ टीटीई ने प्रश्न किया.‘‘जी, पूरे रास्ते हमारे बारे में पूछते रहे हैं,’’ यह बताते हुए डाक्टर का चेहरा अजीब हो रहा था. वहीं टीटीई गंभीर स्वर में बोला, ‘‘कोई बात नहीं, इन की आस की डोर टूट गई है. हर बेटी का बाप आस की डोर टूटने पर ऐसे ही बिखरता है. वही बिखरन है.’’

‘‘क्या मतलब?’’ ये मुंहबाए पूछ बैठे.इस पर टीटीई ने कहा, ‘‘कुछ नहीं, उन्होंने आप में भावी दमाद देख लिया था. सो, आप की शादी की बात सुन कर झटका खा गए.’’

मैं एक लड़की से प्यार करता था, मैंने उसे किसी और लड़के के साथ देखा, समझ नहीं आ रहा कि क्या करूं?

सवाल
मैं 26 साल का युवक हूं. मेरा एक लड़की से अफेयर चल रहा था. मैं ने उसे किसी अन्य लड़के की बाइक पर बैठे देखा. मैं ने उस से सच्चा प्यार किया है और इस रिश्ते को ले कर सीरियस भी हूं लेकिन अब मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है कि मैं क्या करूं?

ये भी पढ़ें- बच्चा होने के कितने महीने बाद सेक्स करना चाहिए ?

जवाब
जिसे हम खुद से ज्यादा चाहें और वह हमें चीट करे तो दिल को चोट लगती है, लेकिन जो इंसान आप की भावनाओं की परवा नहीं करता उस के लिए कैसे इमोशंस.

जब आप ने उसे किसी अन्य लड़के की बाइक पर बैठे देख लिया है तो अब उस पर प्यार बरसाना बंद करें और उसे सख्त लहजे में बता दें कि आप को उस की असलियत पता चल गई है और अब वह आप को और चीट नहींकर सकती, लेकिन इस के लिए आप को पहले खुद स्ट्रौंग बनना पड़ेगा और भूल कर भी दोबारा उस की बातों में न आएं.

ये भी पढ़ें- मैं एक लड़के से प्यार करती हूं. वह भी प्यार करता था पर मेरी बेवकूफी की वजह से उस ने दूरी बना ली, क्या करूं?

 

Family Drama :गिद्ध -भाग 3

फिर उठ कर बड़की बैठकी के दरवाजे तक आ कर झांक आई कि कहीं कोई कान लगा कर न सुनता हो, फिर पास बैठ कर फुसफुसाई, ‘‘यह जो मझला पुलिस में है, उस की बीवी तो अपनेआप को घर में दारोगा से कम नहीं समझती. गालीगलौज और मारपीट सब हो चुकी है उस की अम्मा से. हमारे पिताजी जल्दी चले गए वरना वे सुधार कर रखते सब को.’’ फिर इधरउधर नजरें घुमाईं.

उस ने देखा बड़े भाई के खर्राटे गूंजने लगे हैं, तो फिर अपनी आवाज का सुर थोड़ा बढ़ा कर बोली, ‘‘छोटे बेटे से तो ज्यादा ही लगाव रहा अम्मा का. हर समय ‘छोटा है, अभी सुधर जाएगा’ कहती रहीं. मगर हुआ क्या? शादी करते ही सब से पहले उस ने अपनी गृहस्थी अलग कर ली. मझली को अम्मा ने ही अलग कर दिया था वही रोजरोज की मारपीट, धमकियों से तंग आ कर. बड़ी साथ में रही भी तो इतने खुरपेंच जानती थी कि रोटी का एक निवाला तोड़ना दूभर हो गया था अम्मा का. फिर तो खुद ही अपनी रसोई अलग कर ली अम्मा ने.’’

‘‘हां, मुझे सब पता है. तभी तो मैं ने भगवती को समझाया था कि तू बेटी के घर चली जा रहने को, उसे ही खर्चापानी देती रहना. तभी तो वह कुछ महीने के लिए तेरे घर चली गई थी,’’ लीला बोली.

‘‘अरे, वहां भी मन न लगा अम्मा का, हर समय यही कहें ‘एकएक ईंट जोड़ कर घर बनाया. आज मैं कुत्ते की तरह दूसरे की ड्योढ़ी पर पड़ी हूं.’ वहां से भी लौट आईं,’’ बड़की ने सफाई पेश की. तभी दीनानाथ कमरे में दाखिल हुआ. तो बड़की बड़े प्रेम से बोली, ‘‘चाची, तुम लोग अभी बैठो, मैं जरा भाइयों के लिए फल काट कर ले आऊं. इन्हें तो 12 दिनों तक एक समय ही भोजन करना है.’’

‘‘नहींनहीं,’’ दोनों ने एकसाथ कहा और घर से बाहर को चल दीं.

शाम को एक नया नाटक शुरू हो गया.

‘‘सुनो दीनू, अम्मा के हिस्से के खेत के कागज नहीं मिल रहे हैं, तुम ने संभाले क्या?’’ ये सोमनाथ थे, दीनानाथ के बड़े भाई.

‘‘अरे, इसी ने छिपा के रखे होंगे, सोचता होगा कि मैं तो पुलिस में हूं, कोई मेरा क्या बिगाड़ लेगा,’’ अब छोटा भाई रमेश भी ताल ठोंक कर लड़ाई के मैदान में कूद पड़ा.

‘‘अम्मा की जमीन में मेरा भी हिस्सा लगेगा. तुम तीनों अकेले हजम करने की न सोच लेना,’’ बड़की जिज्जी भी तुरंत बोल पड़ी. ऐसे भले ही कम सुनती हो, मगर जमीन, जायदाद, रुपयोंपैसों की बात तुरंत सुनाई पड़ जाती है.

‘‘तुम्हें तो अम्मा पहले ही खेत में हिस्सा दे चुकी हैं. अब दोबारा क्यों?’’ सोमनाथ चीखे.

‘‘मैं कुछ नहीं जानती, अगर हमें हिस्सा न मिला तो मैं कोर्टकचहरी करने से पीछे न हटूंगी. मैं  एकलौती बहन हूं, मुझे ही तुम लोग मायके में बरदाश्त नहीं कर पा रहे हो, 4-6 होतीं तो क्या करते?’’

‘‘तुम अकेली ही दस के बराबर हो. दस को विदा करना आसान है. मगर तेरी विदाई न जाने कब होगी. जमीन, जायदाद, रुपया, जेवर सब में सेंध लगा कर भी तुझे चैन कहां?’’

यह सुन कर बड़की क्रोध में आ गई. थोड़ी देर में ही घर कुरुक्षेत्र के मैदान में तबदील हो गया. एकदूसरे पर आरोपप्रत्यारोप लगने लगे.

‘‘अरे, कुछ तो शर्म करो. तुम्हारी मां ने क्या यही सोच कर धन इकट्ठा किया था कि तुम लोग धन के लिए एकदूसरे के शत्रु बन जाओ. अभी तो 13 दिन भी न हुए,’’ पड़ोसी बुजुर्ग महिला रुक्मणि ने आ कर सब को शांत किया. सब आपस में अबोला कर शांत बैठ गए, समाज को दिखाने के लिए.

दूसरे दिन भगवती के घर से लौटती रुक्मणि और लीला को उषा ने बाहर गेट के पास रोक लिया. ‘‘चाची, देखा न आप ने, कैसी संतानें हैं इन की. अरे अम्मा तो हमेशा हम बहुओं को ही कोसती रहीं कि ‘कैसे घर की हैं? कैसे संस्कार दिए तुम्हारे मांबाप ने?’ अब देख लो इन की संस्कारी औलादों को. अरे चाची, हम बहुएं रुपए, गहनों को ले कर झगड़ पड़े तो समझ आती है बात. मगर ये लोग तो एक ही मां की औलाद हैं, भाई, बहन है. एकदूसरे के कंधे पर सिर रख कर रोने के बजाय मां के मरते ही बैठ कर रुपयोंपैसों की लूट में जुट गए.’’

‘‘हां, कल रात को हल्लागुल्ला सुन कर मैं भाग कर आई थी,’’ रुक्मणि ने लीला को बताया.

‘‘मेरी शादी भी इसी लालच में की थी कि खूब दहेज मिलेगा. मेरे पिता तो दारोगा थे उस समय. बड़की जिज्जी की ससुराल से रिश्तेदारी है हमारी. एक बार मेरे पिताजी जुएं के अड्डे से छापा मार कर लौट रहे थे. मूसलाधार बारिश में उन की जीप पानी के गड्ढे में फंस कर बंद हो गई. एक जीप तो आगे थाने को निकल गई, जिस में जुआरी थे. पिताजी के पास रुपयों से भरा बैग और एक सिपाही ही रह गया. दूसरा मैकेनिक को लेने चला गया. पिताजी को याद आया कि ये घर दो फलांग की दूरी पर ही है तो वे सिपाही को गाड़ी के पास छोड़ कर यहां चले आए कि गाड़ी ठीक हो जाए तो चल पड़ेंगे. जानती हो चाची, फिर क्या हुआ?’’

‘‘हां, याद आया जब दीनानाथ पुलिस भरती की तैयारी कर रहा था, तभी उस की शादी तय कर दी थी,’’ लीला बोली.

‘‘हां चाची, तुम्हारी याददाश्त बहुत तेज है. उस समय पिताजी और बैग दोनों ही बुरी तरह से भीगे हुए थे. पिताजी ने अपने को तौलिए से पोंछ कर जब बैग खोल कर देखा, सारे नोट भीग गए थे. पिताजी ने तुरंत बैठकी के गद्दे में नोट बिछा दिए और नोट सुखाने को पंखा चला दिया. पता है कितने रुपए थे?’’

‘‘नहीं, यह बात तो नहीं पता हमें,’’ रुक्मणि जानने को बेताब थी.

‘‘एक लाख 10 हजार के  लगभग, इन सब की तो आंखें खुली की खुली रह गईं, सोचा, पुलिस की नौकरी में तो नोट ही नोट हैं. पिताजी ने बताया था कि  ये रुपए थाने में जमा करने के लिए हैं. मगर इन्हें लगा ये सब ऊपरी कमाई के हैं. अपने बेटे की शादी उसी दिन मेरे साथ तय कर दी. जिस से मैडिकल, साक्षात्कार में सहूलियत मिल जाए और दूसरा शादी में तगड़ा दहेज भी. अरे चाची, मुझे भी इन लोगों ने खूब सुनाया, ‘क्या लाई? कैसा लाई? हमारी खातिरदारी ठीक से नहीं हुई’ बहुत सुना मैं ने भी. जब एक दिन मेरे पिताजी का नाम ले कर अम्मा बोलीं कि ‘तेरे बाप ने तो कोरी लड़की विदा कर दी.’ बस, उसी दिन से मैं ने भी लिहाज करना छोड़ दिया. मैं ने कह दिया, ‘तुम्हारी बिटिया की तरह नहीं हूं कि हर सामान के लिए मायके में कटोरा ले कर खड़ी हो जाऊं. जितनी मेरे आदमी की कमाई है, उसी में घर चलाना जानती हूं.’ बस, चिढ़ कर मेरा चूल्हा अलग कर दिया. मेरी भी जान छूटी.’’

तभी सामने से बड़ी बहू किरण को आते देख, उषा वहां से खिसक ली.

‘‘क्या सुना रही थी उषा, कल रात का किस्सा?’’ आते ही उस ने पूछा.

‘‘नहीं, पुरानी यादें ताजा कर गई,’’ लीला व्यंग्य से बोली.

‘‘देखा न चाची, जरा सी जमीनजायदाद के लिए इतना झगड़ा? मेरे मायके में तो यहां से दसगुना ज्यादा जायदाद है. मां, पिताजी अब रहे नहीं. हमारे पिताजी हमें कुछ जमीनजायदाद तो दे नहीं गए. हमारी अम्मा भी यही बोली थीं कि तुम्हारा हिस्सा तुम्हारी शादी में खर्च हो गया. पिछले साल तो हम 2 बहनों ने सोचा कि चलो, अब कानून भी बन गया है, पिताजी वसीयत नहीं कर गए हैं, तो अपने मायके से कुछ कोर्ट में अर्जी लगा कर ही ले लें. केवल सोचा था, किया नहीं था. जानती हैं क्या हुआ तब, चाची.’’

‘‘नहीं,’’ दोनों बोल पड़ीं.

‘‘अरे इसी बड़की, जो अब अपनी मां के मरे दस दिन में ही चीखचीख कर कोर्टकचहरी करने की बात कर रही है, हम बहनों की चुगली सब जगह लगा दी. हमारे भाइयों तक बात पहुंच गई. हमारे मायके से संबंध भी खराब हो गए और मिला भी कुछ नहीं. यहां भी आ कर सौ बात सुना गई कि ‘हमारे मांबाप, खानदान का नाम डूब जाएगा जब इस घर की औरतें कोर्ट में खड़ी हो जाएंगी.’ मेरे आदमी को भी ‘जोरू का गुलाम’ और न जाने क्याक्या कह कर भड़काया. गुस्से में आ कर इन्होंने मेरा सिर दीवार में पटक दिया था. यह देखो यहां 3 टांके लगे हैं. अब अपनी बहन का सिर फोड़ कर दिखाएं. अब इन के खानदान की इज्जत में बट्टा नहीं लग रहा.’’

‘‘ठीक कहती हो बहन, यह बहुत ही शातिर औरत है. अपनी बारी आते ही गिरगिट की तरह रंग बदल लेती है. मेरी शादी की शौपिंग में क्या किया, पता है?’’ तीसरी बहू संध्या कब इस बातचीत के बीच में शामिल हो गई, उन्हें भान ही नहीं हुआ.

‘‘तुम तो चूल्हे में दूध उबाल रही थीं. गैस बंद कर दी?’’ किरण ने पूछा.

‘‘हां, बंद कर के आई हूं. हां, तो मैं क्या सुना रही थी?’’ संध्या ने पूछा.

‘‘शादी की शौपिंग बता रही थी,’’ लीला जानने की गरज से बोली.

‘‘मेरे आदमी की कोई खास कमाई तो होती नहीं थी दुकान से. नईनई दुकान होने के कारण शादी का खर्चा भी घर में नहीं दे सकते. अम्मा ने जिज्जी से ही सारी शौपिंग करवाई.’’

‘‘मुझ पर और उषा पर भरोसा ही कहां था अम्मा को.

अपनी बेटी को ही रुपए पकड़ाती थीं. ये ले आना, वो ले आना. जिज्जी ही तो भड़का के रखती थीं कि बहुएं पैसे मार लेंगी. हूं, अब देख लो हरिशचंद भाई और बहन को,’’ किरण बीच में बोल पड़ी.

‘‘अरे मेरी पूरी बात तो सुनो, मेरी शादी में गिनीचुनी 7 साडि़यां ससुराल से मिलीं. उन में से भी 2 साडि़यों में मैं ने फौल के पास जंग लगा देखा. जैसे लोहे के बक्से में साड़ी रखने से लग जाता है. मैं ने सभी से कहा, ‘ये साडि़यां पुरानी दे दी हैं दुकानदार ने, इसे बदलवा दो.’ जिज्जी ने तुरंत कहा ‘अब तो महीनाभर हो गया. अब दुकानदार न बदलेगा.’

बाद मैं मैं ने खुद दुकानदार से बात की तो वह हंसने लगा और बोला, ‘बहिनजी, इतनी बड़ी मेरी दुकान है, मैं पुरानी साड़ी नहीं बेचता हूं.’ मुझे सब समझ आ गया कि साड़ी जिज्जी ने ही बदल दी थी. तभी दोबारा दुकान जाने को तैयार न हुई,’’ संध्या गुस्से से बोली.

‘‘हां, तेरी शादी की साड़ी की बात तो मुझे भी अच्छे से याद है. मैं भी हैरान हो गईर् थी कि जिज्जी शौपिंग में कैसे ठग गई.’’ किरण हंसने लगी, ‘‘तूने गलती की, जब पता चल ही गया था तो साड़ी ला कर जिज्जी के मुंह पर दे मारती.’’

‘‘हम तो शुरू से लिहाज ही करते रह गए. उसी का नतीजा है कि आज भी हमारी छाती में मूंग दलने को बैठी है,’’ संध्या ने मुंह बनाया.

‘‘मूंग से याद आया, कल के लिए उड़द भिगोनी हैं अच्छा चाची, कल तेरहवीं के भोज में जरूर आना,’’ कह कर दोनों भीतर चली गई.

दिन का भोज खत्म होते ही बेटों ने तुरंत टैंट समेट दिया, लोगों को हाथ जोड़ कर विदा कर दिया. फिर से इकट्ठे हो कर सभी हिसाब लगाने में जुट गए. कितना खर्चा हो गया और कितना अभी वार्षिक श्राद्ध में करना बाकी है. सोमनाथ कहने लगे, ‘‘2 बार मैं ने मां को हौस्पिटल में भरती किया था, उस हिसाब को भी इस में जोड़ो.’’

‘‘यह हिसाब छोड़ो, पहले जो जमीन बची है, उसे बेच कर मेरा हिस्सा अलग करो.’’

‘‘जमीन का हिसाब बाद में, अभी इन 13 दिनों का हिसाब पहले करो. सब से ज्यादा मेरे रुपए खर्च हुए हैं.’’

‘‘लाओ मुझे दो, मैं सारा हिसाब लिख कर बताता हूं,’’ दीनानाथ हाथ में कागजपैन ले कर खड़े हो गए.

‘‘तुम तो रहने ही दो. पुलिस में हो न, कुछ भी उलटीसीधी रिपोर्ट बनाने में माहिर.’’

‘‘मैं यह हिसाबकिताब कुछ नहीं जानती, मेरा हिस्सा मुझे दो, बस.’’

फिर वही झगड़ा, वही जमीन, जायदाद को ले कर हंगामा शुरू हो गया. इस से पहले हाथापाई पर बात पहुंचती, बड़ी बहू के तानों से विराम लग गया.

‘‘मैं तो कहती हूं अम्माजी और पिताजी रहते तो यह सब देखतेसुनते. मैं ने तो खूब ताने सुने, सास, ससुर, ननद, देवर सभी के मुख से, हमेशा मेरे मांबाप को कोसा गया. कभी दहेज को ले कर, कभी मेरे चालचलन को ले कर. अब दोनों सासससुर मिल कर देखें अपनी औलादों को और उन के चालचलन को भी. तुम्हारे खानदान से तो लाख गुना बेहतर हमारा खानदान है.’’

‘‘तुम हमारे मांबाप तक कैसे पहुंच गईं?’’ बड़की चीखी.

‘‘तुम लोगों के लक्षण ही ऐसे हैं, जो मांबाप की परवरिश को बट्टा लगा रहे हैं,’’ यह उषा थी.

अब लड़ाई चारों महिलाओं के बीच शुरू हो गई.

तभी असिस्टैंट सब इंस्पैक्टर दीनानाथ शास्त्री, खाई में गिरी बस दुर्घटना की खबर मिलते ही दुर्घटनास्थल को रवाना हो गए. बस रात में 12 से 2 बजे के बीच दुर्घटनाग्रस्त हुईर् थी. इस समय सुबह के 5 बज रहे थे. अप्रैल के महीने में सुबह का हलका सा उजाला भर दिख रहा था. रातभर हुई बारिश से इस पहाड़ी रास्ते में जगहजगह चट्टान और मलबे के ढेर ने रुकावट डाल रखी थी. हर आधे घंटे की चढ़ाई के बाद जीप को रोकना पड़ता.

7 बजे तक जीप दुर्घटनास्थल तक पहुंची. चारों तरफ चीखपुकार, भीड़ और अफरातफरी का माहौल था. कुछ स्वयंसेवी संगठन, राहतबचाव कार्य में मुस्तैदी से डटे थे.

‘‘बचाओ, मार डाला.’’ का करुण क्रंदन गूंज उठा. दीनानाथ ने आवाज की ओर सिर घुमाया तो सामने से 2 युवाओं को तेजी से भागते हुए देखा.

‘‘रुक बे, इधर आ, कहां भागे जा रहे हो?’’ दीनानाथ चीखा.

‘‘साहिब, मोर माई को पानी चाही, वही लावे जात हैं,’’ उन में से एक युवक हड़बड़ा कर बोला.

‘‘झोले में क्या है?’’

‘‘माई का सामान है.’’

‘‘इधर दिखा बे,’’ झोले को उन के हाथों से छीनते हुए दीनानाथ को माजरा समझते देर न लगी.

दोनों युवकों ने फिर उलटी दिशा में दौड़ लगानी चाही, मगर दीनानाथ ने दबोच लिया.

‘‘झोले को पलटते ही उस में से कटी हुई उंगलियां, सोने की चूडि़यां, मंगलसूत्र, पाजेब आदि जेवर बिखर गए.

‘‘आदमखोर हो क्या, ये उंगलियां क्यों काटीं?’’ दीनानाथ ने घुड़का.

‘‘अंगूठी उंगली में फंसी हुईर् थी, निकली नहीं, तो काटनी पड़ीं.’’

‘‘चल तेरी भी खाल निकलवाता हूं,’’ कह कर दीनानाथ ने उन के हाथ बांधे.

‘‘अरे साहब, इन जैसे लुटेरे तो जहां ऐक्सिडैंट की खबर सुनते हैं तुरंत घायलों व मुर्दों को नोचनेखसोटने को दौड़ जाते हैं. अभी यहां इन के और भी साथी भीड़ में छिपे होंगे,’’ सिपाही उन दोनों को जीप के अंदर धकेलते हुए बोला.

‘‘मारो सालों को, अभी सब उगलेंगे, मैं नीचे घटनास्थल का मुआयना कर के आता हूं,’’ अपने साथ 4 सिपाहियों को ले कर दीनानाथ तेजी से चल पड़े.

शाम के 6 बजे तक सभी घायलों और मृतकों को बरामद कर लिया गया.

‘‘एक बार फिर से सारी झाडि़यों का मुआयना कर लो. कोई जीवित या मृत छूटना नहीं चाहिए. इस इलाके में बहुत गिद्ध हैं. सुनसान होते ही मांस नोचने को टूट पड़ेंगे,’’ दीनानाथ ने दूर पेड़ों की फुनगियों में बैठे गिद्धों को देख कर कहा.

शाम तक सब इंस्पैक्टर भी पहुंच गए.

‘‘क्या प्रोग्रैस है दीनानाथ?’’

‘‘साहब, बरात की बस थी. इस में 40 लोग सवार थे. जिन में से 6 मृत और 4 गंभीर घायलावस्था में अस्पताल को रवाना कर दिए गए हैं. बाकी सभी की प्राथमिक चिकित्सा कर, उन के गंतव्य को भेज दिया गया है. ये हैं वे 4 लुटेरे, जो मृतकों के शरीर को, गिद्धों की तरह, नोचतेखसोटते हुए मौका ए वारदात से पकड़े गए हैं,’’ दीनानाथ ने अपनी जीप की तरफ इशारा कर बताया. इन सब कार्यवाही में बहुत समय लग गया.

दीनानाथ को घर पहुंचने में रात हो गई थी. रात गहरा गई. आंगन में खटिया डाले दीनानाथ को देररात तक नींद ही नहीं आई. एक झपकी सी आईर् थी कि लगा की किसी ने फिर उठा दिया, ‘जल्दी जगो, पास के जंगल में बस पलट गई है.’ चारों तरफ चीखपुकार मची थी. एक बुढि़या जोरजोर से चीख रही थी, ‘बचाओ बचाओ,’ उस ने पलट कर देखा, बुढि़या को गिद्ध नोचनोच कर खा रहे थे. कोई उस के गले पे चिपका है, कोई कान पे. वो गिद्ध भगाने को डंडा खोजने लगा. बुढि़या का चेहरा, मां का जैसा दिख रहा था. उस ने चीखना शुरू कर दिया ‘अम्मा, अम्मा.’ अचानक उसे गिद्धों में जानेपहचाने चेहरे दिखने लगे. उस के भाई, भाभी, बहन, पत्नी, अन्य परिवारजन.

वह पसीने से तरबतर हो उठा. उस की नींद पूरी तरह से खुल चुकी थी.

सब उसे घेर कर खड़े थे, ‘‘बुरा सपना देखा?’’

‘‘अम्मा दिखी क्या?’’

‘‘कुछ मांग तो नहीं कर रही,’’

‘‘कुछ कमी रह गई हो, तो ऐसे ही सपने आते हैं.’’

जितने मुंह उतनी बातें.

‘जीतेजी तो अम्मा को किसी ने पानी भी न पूछा. वे अपनी अलग रसोई बनाती, खाती रहीं. अब उन्हीं के रुपयों से पंडित को सारी सुखसुविधा की वस्तुएं दान भी कर दो, तो क्या फायदा? अब, जब अम्मा की मृत्यु हो गई तो भी चैन कहां हैं सब को? अब उन के सामान को ले कर छीनाझपटी मची हुई है. तुम लोग भी किसी गिद्ध से कम हो क्या? तुम सभी जीतेजी तो अम्मा का खून पीते रहे और अब मरने पर उन की बची संपदा की लूटखसोट में लगे हो. जाओ यहां से, मुझे सब समझ आ गया है.

‘‘वैसे, तुम से अच्छे तो वे गिद्ध हैं जो मरेसड़े को खा कर वातावरण को स्वच्छ रखने में अपना योगदान देते हैं. वे लुटेरे भी कई गुना बेहतर हैं जो अनजान को लूट कर अपने परिवार को पालते हैं. तुम लोग तो उन से भी अधिक गिरे हुए हो जो अपनी ही सगी मां को लूट कर खा गए. हट जाओ मेरे आगे से,’’ कह कर दीनानाथ अपना मुंह ढांप कर बिस्तर पर पड़ गया.

 

 

पट्टी वाला आम

Food Preservation-भाग 2: जानें फल और सब्जियों को सुखाने की विधि

फलसब्जियों को तैयार करना : चुने हुए फलसब्जियों को साफ पानी में धो कर साफ कर लेते हैं और सही आकार के टुकड़ों में काट लेते हैं.

विवर्णीकरण : इस के अंतर्गत कटी हुई सब्जियों को गरम पानी में तकरीबन 3-5 मिनट तक हलका उबाल कर मुलायम बना लेते हैं. सब्जियों के हरे स्वाभाविक रंग को बनाए रखने के लिए जिस पानी में उबालने के बाद सब्जियों को ठंडा करते है, उस में 0.5 प्रतिशत पोटैशियम मेटाबाई सल्फाइट डाल सकते हैं.

सुखाना : विवर्णीकरण के बाद सब्जियों को निर्जलीकरण यंत्र की जालियों पर एक निश्चित ताप और तय समय के लिए रख कर सूखने के लिए छोड़ देते हैं.

ये भी पढ़ें- जानें क्या है सब्जी और फल Preservation और इसके फायदे- भाग 1

संग्रहण : सूखने के बाद फलसब्जियों को सूखे बरतन में बंद कर नमीरहित स्थान पर संग्रहित कर देते हैं.
मटर थोड़ा नरम मटर ही सूखने के लिए चुनना चाहिए. मटर को एकत्र करने के तुरंत बाद निर्जलीकरण करना चाहिए, क्योंकि मीठे मटर की अधिकांश शर्करा 24 घंटे के अंदर स्टार्च (मांड) में बदल जाती है. इसलिए जितना सुखाने में देर करेंगे, उतनी ही मटर की मिठास कम हो जाएगी. फली में से मटर निकाल कर श्रेणीकरण, विवर्णीकरण के पश्चात टे्र में एकसमान फैला दें. इस के बाद धूप या सौर शुष्कक में सुखाएं. इस प्रकार 20-30 प्रतिशत शुष्क पदार्थ प्राप्त होता है.

गाजर सुखाने के लिए पीले रंग की गाजर उत्तम होती है. गाजर को अच्छी तरह साफ पानी से धोने के बाद 8-10 मिलीमीटर टुकड़ों में कतर ली जाती है. इस के बाद 3 से 4 मिनट तक उबलते पानी या भाप में विवर्णीकरण करने के बाद 10 मिनट तक पोटैशियम मेटाबाई सल्फाइट के ठंडे घोल में उपचार करते हैं. घोल से निकाल कर पानी निथार कर धूप या सौर शुष्कक में सुखाया जाता है. धूप में सूखने के लिए तकरीबन 15 घंटे लगते हैं. जब हर टुकड़ा टूटने लायक हो जाए, तब वायुरुद्ध अवस्था में पौलीथिन में पैक कर के रखें.

ये भी पढ़ें- कृषि उत्पादों का बढ़ता निर्यात

बैगन सुखाने के लिए पूर्ण विकसित नरम बैगनों की जरूरत होती है, चाहे बैगन बैगनिया रंग के हों या हरे या सफेद. इन्हें साफ पानी से धो कर डंठल अलग कर के 5-6 मिलीमीटर मोटाई में गोलाकार या लंबाई में कतर लेते हैं. कतरते समय बैगन काले हो जाते हैं. इस को रोकने के लिए 0.5 प्रतिशत पोटैशियम मेटाबाई सल्फाइट के घोल में कतरन को डालते रहें. इस घोल में कतरे हुए टुकड़ों को 10 मिनट तक रखते हैं. इन टुकड़ों को गरम पानी में 3-4 मिनट तक विवर्णीकरण करते हैं. सुखाने के समय 50 से 60 डिगरी सैंटीग्रेड से अधिक तापमान न होने पाए. इस प्रकार ये 8-9 घंटे में सूख जाते हैं.

हरी मेथी हरी मेथी जो शाक के लिए उगाई गई हो, सुखाने के काम में लेनी चाहिए. पत्तों को एकत्र कर, मोटे डंठलों को अलग कर के साफ पानी से अच्छी तरह धोया जाता है, ताकि पत्तों में लगी मिट्टी, सूक्ष्म जीव और कीड़ेमकोड़े नहीं रहें. इस के बाद 0.5 फीसदी पोटैशियम मेटाबाई सल्फाइट, 0.1 फीसदी मैग्नीशियम सल्फाइट और 0.1 फीसदी खाने के सोडे के घोल में 3 से 4 मिनट तक विवर्णीकरण करते हैं. सुखाने के समय तापमान 60 डिगरी सैंटीग्रेड से ज्यादा नहीं होना चाहिए. इसे छाया में भी सुखाया जा सकता है.

ये भी पढ़ें- Food processing: खाद्य प्रसंस्करण के क्षेत्र में संभावनाएं असीम, लेकिन मंजिल है दूर

पालक हरी पत्तियों को साफ पानी में पूरी तरह धो लेना चाहिए, ताकि धूलमिट्टी के कण साफ हो जाएं. इस के बाद पत्तियों के तने व क्षतिग्रस्त पत्तियों को अलग कर लेना चाहिए, क्योंकि क्षतिग्रस्त पत्तियों से विटामिनों की हानि हो जाती है. काटने के बाद पत्तियों को एक बार दोबारा धोया जाना चाहिए. कटाई से पालक में तकरीबन 45 से 65 फीसदी तक हानि होती है. इस के बाद पालक को विवर्णीकरण किया जाता है, जिस में पालक को उबलते पानी या भाप में 2 मिनट तक रखते हैं या उस की पत्तियों की नसें न दिखने लगें, तब तक उस को भाप देते रहें. विवर्णीकरण की प्रक्रिया के लिए पतले तार वाली छलनी या टे्र को प्रयोग में लाते हैं. पालक के निर्जलीकरण के लिए शुष्कक प्रयोग में लाते हैं. इस को 4 फीसदी की नमी तक सुखाते हैं. इस का उत्पादन कुल पालक का 3.5 फीसदी से ले कर 6.5 फीसदी तक होता है.

भिंडी सुखाने के लिए स्वस्थ व कीट बाधारहित भिंडियों का चुनाव करना चाहिए. छोटे आकार की भिंडियों को बिना काटे ही सुखाते हैं, पर डंठल व सिरे अलग कर लेते हैं. बड़े आकार की भिंडियों के डंठल इत्यादि अलग कर के 5 से 7 सैंटीमीटर लंबाई में टुकड़े काट लेते हैं. काटते समय ध्यान रहे कि भिंडी का बीज बाहर से नजर न आए. अब इन टुकड़ों को उबलते पानी या भाप से 8 से 10 मिनट तक विवर्णीकरण करें व 0.1 फीसदी पोटैशियम मेटाबाई सल्फाइट घोल में 10 मिनट रखने के बाद पानी निकाल कर सुखा दें. इन टुकड़ों को 60 डिगरी सैंटीग्रेड तापमान पर सुखाया जाता है. धूप में भी इसे सुखाया जा सकता है.
फूलगोभी फूलगोभी सुखाने के लिए ताजी कीटरहित गोभी काम में लेनी चाहिए.

सब से पहले ठंडल व बाहरी पत्ते अलग कर 10 सैंटीमीटर मोटे टुकड़ों में काट लेना चाहिए. इन टुकड़ों को साफ पानी से धो कर 5 से 6 मिनट तक उबलते पानी में या वाष्प से विवर्णीकरण करें. इस के बाद 0.1 फीसदी पोटैशियम मेटाबाई सल्फाइट के धोल में 10 से 12 मिनट तक डुबो कर रखना चाहिए. उस के बाद टुकड़ों को पानी से निकाल कर धूप या सौर शुष्कक में 50 डिगरी सैंटीग्रेड तापमान पर सुखाया जाता है.
पत्तागोभी पत्तागोभी की ऊपर की सूखी व खराब पत्तियां काटछांट कर के उस को साफ पानी में धो लेते हैं. बाहर की मात्र 1 या 2 पत्तियों को ही हटाते हैं, वरना उस के पोषक तत्त्व कम होने का डर रहता है. इस के बाद छिली हुई पत्तागोभी को 5-6 मिलीमीटर की चौड़ाई में काट लेते हैं. कटे हुए पत्तों को एक घंटे से ज्यादा नहीं रखें और उस का विवर्णीकरण कर लें. उबलते पानी या भाप में 1 से 2 मिनट तक विवर्णीकरण करते हैं.

इस के बाद 0.1 फीसदी सोडियम सल्फाइट व 0.1 फीसदी सोडियम बाईसल्फाइट के घोल में 10-12 मिनट तक डुबो कर रख देते हैं. उस के बाद उसे छेद वाली ट्रे में रख कर शुष्कक में तब तक सुखाते हैं, जब तक इस में नमी की मात्रा 7 फीसदी न हो जाए. सूखे उत्पाद की मात्रा लगभग 4 से 6 फीसदी बैठती है.
प्याज प्याज के कंद का ऊपर का छिलका हटा कर व उस के दोनों सिरों को स्टील के चाकू से काट देते हैं, ताकि उस की जड़ें व सूखी पत्तियां साफ हो जाएं. इस के बाद 3 मिलीमीटर से 6 मिलीमीटर के टुकड़े काट लेते हैं.

प्याज के कंदों के टुकड़े काटते समय जगह खुली होनी चाहिए, ताकि काटने वाले को किसी तरह की परेशानी न हो. इस में छिलाई व छंटाई का नुकसान तकरीबन 3 से 10 फीसदी होता है. इस के बाद कटे हुए कंद के टुकड़ों को शुष्कक में रखते हैं. इस का तापमान 60-70 डिगरी सैलिसयस होता है. इस को 4-5 फीसदी की नमी तक सुखाते हैं. सूखे प्याज की मात्रा तकरीबन 11 फीसदी तक बैठती है.लहसुन निर्जलीकृत लहसुन उत्पाद जैसे फ्लैक्स, गेन्यूल्स, पाउडर आदि बना कर विदेशी मुद्रा अर्जित की जा सकती है. लहसुन का निर्जलीकरण टनल ड्रायर, सोलर ड्रायर, गरम हवा वाले ड्रायर में करते हैं. भारतीय मानक संस्थान के आधार पर सुखाई से पहले लहसुन को किसी भी रसायन या रंग बढ़ाने वाले पदार्थ आदि से उपचारित करना वर्जित है. पाउडर में नमी 6.5 फीसदी से अधिक नहीं होनी चाहिए, वरना खराब होने का डर रहता है.

एक किलोग्राम लहसुन पाउडर बनाने के लिए 3 किलोग्राम से 3.5 किलोग्राम ताजा लहसुन की जरूरत होती है. गुणवत्ता को कायम रखने के लिए निर्जलीकृत उत्पादों को टिन के डब्बे, पाउच या उच्च घनत्व वाली पौलीथिन की थैलियों में या फाइल लेमिनेटिड ड्रम में भर देते हैं. निर्जलीकृत उत्पाद सब्जियों, बर्गर, पिज्जा, सलाद, सूप व फास्ट फूड्स में उपयोग में लाए जाते हैं.

लहसुन कंदों की छंटाई व सफाई कर लें. लहसुन की गांठों को तोड़ कर हर कली को अलगअलग करें व जड़, तना और ऊपरी छिलका हटा लें. इस के बाद कलियों को दबा कर पिचकाना जरूरी है, जिस से सुखाई जल्दी हो सके. इन्हें 6.5 फीसदी नमी तक सुखा लें, जिस से लहसुन फ्लैक्स तैयार हो जाते हैं. फ्लैक्स को पीस कर पाउडर भी बना सकते हैं.

खाने में इन 6 रंगों का तालमेल रखेगा आपको फिट एंड फाइन

यह हम सभी जानते हैं कि सेहतमंद रहने के लिए हरी सब्जियां खानी चाहिए पर बहुत कम लोगों को यह पता होगा कि पोषकतत्त्वों की कमी को पूरा करने के लिए एक रंग की नहीं बल्कि कई रंगों की सब्जियां खानी जरूरी हैं.

यहां रगीन सेहतमंद खाने की एक संपूर्ण सूची दी जा रही है:

लाल:

कुछ पोषक तत्त्व जैसेकि ऐंथोसाइनिन, लाइकोपीन, पोटैशियम, विटामिन ए व सी और इलैक्ट्रोलाइटिस लाल रंग के फलोंसब्जियों में पाया जाता है. चैरी, तरबूज, टमाटर, अनार, चुकंदर जैसे फलों और सब्जियों को सलाद में या फिर स्मूदी में मिश्रित किया जा सकता है.

ये भी पढ़ें- वैधानिक चेतावनी: तंबाकू का खतरा

लाल चुकंदर में दिल के लिए सेहतमंद पोषक तत्त्व होते हैं, जो आंखों और प्रतिरक्षा तंत्र को बेहतर करने, कोलैस्ट्रोल घटाने और त्वचा को धूप का ज्यादा प्रतिरोधी बनाने में मदद करते हैं.

लाल चैरी में शक्तिशाली ऐंटीऔक्सडैंट्स होते हैं, जो शरीर में फ्री रैडिकल्स से लड़ने में मदद करते हैं. टमाटर में भी ऐंटीऔक्सिडैंट्स मौजूद होते हैं, जो कैंसर के कारण फ्रीरैडिकल्स को शरीर के तंत्रों को नुकसान पहुंचाने से रोकते हैं.

नारंगी:

बीटा कैरोटिन एक पीला, नारंगी कैरोटिनौइड है, जो खट्टे फल- पपीता, खूबानी, गाजर, कद्दू जैसे नारंगी रंग के फलों और सब्जियों में प्रचुरता में पाया जाता है. बीटा कैरोटिन को विटामन ए में बदल दिया जाता है, जो नजर वृद्धि और शरीर की कोशिकाओं के विकास के लिए महत्त्वपूर्ण है. यह नुकसानदायक यूवी किरणों से भी शरीर की सुरक्षा करता है. नारंगी रंग वाले फल और सब्जियां युवा बनाए रखते हैं. संतरा और कद्दू विटामिन सी के प्रमुख स्रोत हैं.

ये भी पढ़ें- चलने की आदत बनाएगी आपको फिट

पीला:

पीली मिर्च, मक्का, नीबू, आम, केला, अनन्नास, पीला अमरूद, पीला सेब जैसे पीले रंग के फलों और सब्जियों के साथ अपनी सेहत बनाएं. अपने दैनिक आहार में पाचनतंत्र को बेहतर करना हो या फिर त्वचा विकार को ठीक करना हो पीले फल और सब्जियां खाना फायदेमंद होते हैं. अनन्नास में पाया जाने वाला ब्रोम  अपच में मदद करता है और सूजन घटाता है. मक्का में पाया जाने वाला निकोटिनिक ऐसिड शरीर में फ्रीरैडिकल्स को रोकता है. नीबू में विटामिन सी और सिट्रिक ऐसिड होता है. आम विटामिन ए से परिपूर्ण होता है.

हरा:

हरे खा-पदार्थ सब से सेहतमंद होते हैं और इन्हें अपने खाने में विभिन्न प्रकार से मिलाया जा सकता है. पालक, बाकला, मटर, पत्तागोभी, ब्रोकली, तुरई, शतावर, खीरा, चुकंदर, भिंडी, अजवायन पत्ती आदि बेहद पोषक उत्पाद हैं. इन में शर्करा बहुत कम मात्रा में तो फाइबर प्रचुर मात्रा में होता है.

ये भी पढ़ें- हैरान करने वाले फायदे हैं हल्दी के, आप भी जनिए

हरे फूड्स खून में शुगर के स्तर को व्यवस्थित करते हुए फाइटोन्यूट्रिऐंट्स के बेहतरीन स्रोत होते हैं. पालक में उच्च कैल्सियम की सामग्री, पोटैशियम और विटामिन ए एवं के शामिल होता है, जबकि ब्रोकली प्रतिरक्षातंत्र को बेहतर करती है.

नीला बैगनी:

ब्लूबैरी, अंगूर, आलूबुखारा, बैगन और गोभी में ऐंथोसाइनिंस नामक फाइटोकैमिकल्स होते हैं, जो कार्डियोवैस्क्युलर सेहत को बेहतर करते हैं. ये फूड्स कुछ निश्चित कैंसर और स्ट्रोक्स को रोकने में भी मदद करते हैं. ज्यादा ऐंथोसाइनिंस खाना टाइप 2 डायबिटीज के जोखिम को कम करता है. नीले और बैगनी फलों और सब्जियों में विटामिन सी व के, फाइबर, मैगनीज आदि प्रचुर मात्रा में होते हैं.

सफेद:

सफेद फूड प्रतिरक्षा तंत्र को बेहतर करता है. इस फूड में बीटा ग्लूकैंस होते हैं, जो श्वेत रक्तकोशिकाओं के उत्पादन को बढ़ाते हैं और कोशिकीय संघटन को बेहतर करते हैं. सफेद फूड्स में ईजीसीजी नामक एक ऐंटीऔक्सिडैंट भी होता है, जो कैंसर के इलाज में प्रभावी होता है. केला, गोभी, सेब, मटर, आलू, मशरूम आदि नियमित खाने चाहिए. नियमित केला खाने से मूड बेहतर होता है और बी6 व पोटैशियम की प्रचुर मात्रा की वजह से यह दिल की बीमारी से भी बचाता है.

खाने की तैयारी में रंगों का मिश्रण

– जब आप फलोंसब्जियों की खरीदारी करने जाएं तो हर रंग के फल और सब्जियां खरीदें.

– हर रंग के फल खाएं, क्योंकि इस से अलगअलग फाइटोन्यूट्रिऐंट्स मिलते हैं.

– नाश्ते में सिर्फ ओटमील खाने की जगह इस में विभिन्न प्रकार के फल, चिया बीज, कटे नट्स या अलसी मिलाएं.

– नाश्ते का एक अन्य सेहतमंद विकल्प ढेर सारी सब्जियों के साथ एक एग कप बनाना है. सुनिश्चित करें कि इस प्रोटीन से भरे स्नैक में कम से कम 2 अलगअलग रंगों की सब्जियां हों. पालक, लाल व हरी शिमलामिर्च और लाल प्याज को भी इस में शामिल किया जा सकता है.

– रंगीन सब्जियों के मिश्रण के साथ ताजा सलाद का बाउल तैयार करें. कच्ची सब्जियां कई ऐसे महत्त्वपूर्ण फाइटोन्यूट्रिऐंट्स देती हैं, जो कई बार सब्जियों के पकाते समय बरबाद हो जाते हैं.

– ब्लूबैरी, रसबैरी, अंगूर, ब्लैकबैरी को अपने सलाद में मिलाएं.

– बैगनी पत्तागोभी, अखरोट, अनन्नास, लाल सेब, हरी शिमलामिर्च जैसी सब्जियों के साथ अपने पास्ते को और भी परिपूर्ण बनाएं.

– लाल टमाटर, पीली शिमलामिर्च, सफेद मशरूम्स, तुरई, लाल प्याज और बैगनी बैगन के साथ चिकन सौसेज स्कूअर्स तैयार करें.

– पास्ता, ब्रैड या चावल बनाते हुए गोभी, ब्रोकली, लाल प्याज, शिमलामिर्च, मटर, आलू जैसी ढेर सारी सब्जियां मिलाएं.

– सोनिया नारंग, वैलनैस ऐक्सपर्ट, ओरिफ्लेम इंडिया

पट्टी वाला आम -भाग 1 : रिटायर्ड अफसर गांव की गरीबी को दूर कर पाया

मैं जब भी गांव जाता, पट्टी वाले आम को देखने जरूर जाता. पता नहीं हमारे किस बुजुर्ग ने उसे लगाया था. मीठा और रसीला आम. अपने जीवनकाल में ऐसे मीठे आम मैं ने कभी नहीं खाए थे. पूरे गांव के आम खत्म हो जाते थे पर हमारे इस पेड़ के आम जल्दी खत्म नहीं होते थे.

परिवार बिखरा. सब अपनेअपने हिस्से की जमीन बेच कर चले गए. पर मैं ने अपने बजुर्गों की जमीनों को शरीकों (साझीदारों) के हाथों नहीं जाने दिया. उस में मेरे पिताजी का बनाया हुआ मकान भी था. मन के भीतर केवल मोह यह था कि मैं अपनी धरती से जुड़ा रहूंगा. गांव के लगाव को छोड़ नहीं सका. गांव के बहुत से लागों ने समझाया कि आप तो सेना के अफसर हो। बाहर रहते हो. पैंशन के बाद भी यहां आ कर न रह सकोगे. इस घर और जमीन को बेच दो.

शरीकों को लालच था. मैं उन की बात को समझ रहा था. पर मैं नहीं माना. बच्चों ने भी कहा कि आप अकेले यहां रहेंगे, हम नहीं आ पाएंगे.पट्टी वाले आम के साथ के खेत और मकान को मैं ने अपने भाई लोगों से खरीद लिया था. मकान को नए सिरे से बनवाया, जिस में हर तरह की सुविधाएं थीं.

मैं ने अपने बचपन के दोस्त घीसू को मकान और जमीन का केयरटेकर बना दिया था. मैं जब भी छुट्टी पर आता, गांव जरूर जाता.सेवामुक्त होने के बाद मैं ने स्थाई रूप से गांव में रहने का मन बना लिया था. मैं ने अपनी पत्नी को समझाया, “बच्चों की अपनी जिंदगी है. वे अपनेअपने परिवारों में मस्त हैं. उन को अपने ढंग से जीने दो. हम अपने ढंग से जीवन जीएंगे. उन को लगना नहीं चाहिए कि अब मांबाप की जिम्मेदारी भी उन पर आ पड़ी है. तुम अपने उस घर को एक बार देख लो. सारी सुविधाएं उपलब्ध हैं. बच्चे भी कभीकभी पिकनिक के तौर पर आते रहेंगे.

“गांव में अब वैसा माहौल नहीं है जैसे पहले हुआ करता था. सभी अपनेअपने घरों में मस्त हैं. एक बार गांव जा कर देख लो. अगर अच्छा नहीं लगेगा तो फिर तुम जहां कहोगी वहां जा कर रहेंगे.”इस सरकारी क्वार्टर में हम अप्रैल तक रह सकते हैं. अभी फरवरी है. हमारा सारा समान यहां से सीधे गांव जाएगा.”

शन्नो के मान जाने के बाद हम अपनी कार से सीधे दिल्ली से गांव के लिए निकले. घीसू को मैं ने बता दिया था कि हम आ रहें हैं. उस ने खानेपीने से ले कर सारे जरूरी प्रबंध कर रखे थे. कार से सुबह 4 बजे चल कर शाम 5 बजे जा कर हम गांव पहुचे. रास्ते में खातेपीते आए थे, इसलिए थोड़ी देर लग गई थी.

घर देख कर शन्नो बहुत खुश हुई. आज के जमाने की सारी सुविधाएं देख कर उस की खुशी का ठिकाना नहीं रहा.”यह सब आप ने कब किया? मुझे कभी पता ही नहीं चला,” वह बोली.”मैं जब पठानकोट में था, तब सारे काम करवाए थे. तुम्हें बताता तो तुम मुझे करने नहीं देतीं. मैं तुम्हें सरप्राइज देना चाहता था. कहो, सरप्राइज कैसा लगा?”

“अद्भुत है और बेहद सुंदर भी…’’”जब यह पठानकोट रहते बन गया था, मैं ने तभी यहां आ कर रहने का मन बना लिया था. मैं ने सोचा था कि  मैं तुम्हें कैसे भी मना लूंगा.”और तो सब ठीक है. बस, गांव का माहौल ठीक नहीं होता. पहले जब वह कुछ दिनों तक गांव रही थी तो शन्नो के अनुभव बहुत खराब रहे थे. घर वालों ने उसे बहुत तंग किया था. घर वालों की शह पर गांव वाले भी उसे तंग करने में पीछे नहीं थे. वह उस के बाद कभी गांव नहीं आई थी. उसे तब के गांव की याद थी. तब मैं अफसर नहीं बना था.

“हमें गांव के माहौल से क्या लेनादेना है. मैं सेना का बड़ा अफसर हूं. मुझ से कोई पंगा नहीं लेना चाहेगा. बल्कि वे प्यार से रहेंगे तो मुझ से बहुत से फायदे उठा पाएंगे. तुम उस की चिंता मत करो. आज तो हम थक गए हैं. कल तुम्हें पट्टी वाला आम और सारे खेत दिखाऊंगा.””रात के खाने का क्या है?”

“यह घीसू है न खाना बनाएगा. यह खाना बहुत अच्छा बनाता है. किचन में जा कर देखो, सारे प्रबंध हैं.’’”सच में, आप ने तो कमाल किया हुआ है. जंगल में मंगल… गैस कब आई थी?””पिछले महीने. पास के गांव में ऐजैंसी है. होम डिलिवरी करता है. उस ने मेरे आईकार्ड की फोटो कापी मांगी और गैस बुक कर दी. पिछले महीने फोन आया था कि गैस आ गई है, पैसे जमा कर के गैस ले लें. मैं ने घीसू को पैसे भेज दिए और उस ने सिलेंडर ले कर रख लिए. चूल्हा हमारे पास था ही.”

तब तक घीसू भी आ गया. यह हमारा केयरटेकर ही नहीं बल्कि सारे गांव की खबर भी रखता है.घीसू ने पूछा,”मेमसाहब, रात को क्या खाएंगी?””मैं तुम्हारी मेमसाहब नहीं हूं, भाभी हूं.’’”सौरी, भाभीजी.””रात को हम कम खाते हैं. लंबाचौड़ा कुछ नहीं बनाना है. ऐसा करो, नमकीन पुलाव बना लो. क्यों जी, ठीक रहेगा?’’

“बिलकुल ठीक रहेगा. दिल्ली से सामान का ट्रक भी आने वाला होगा.””आ भी जाएगा तो सुबह अनलोड हो जाएगा.””नहीं, अनलोड हमें अभी करवाना पड़ेगा. सैट चाहे सुबह करेंगे. ये लोग रात को ही ज्यादा ड्यूटी करते हैं. मैं ने ट्रक वाले से कहा था कि कुछ मजदूर अपने साथ ले आएं अनलोड के लिए. देखो, लाता है या नहीं.”

रात को खाना खातेखाते 10 बज गए थे. तभी ट्रक आ गया. ड्राइवर अपने साथ 4 मजदूर भी लाया था. आधे घंटे में उन्होंने अनलोड कर दिया.”

Romantic Story :दिल के रिश्ते-भाग 3

बरसों बाद उस की भावनाएं आज सारी परतें खोल कर बाहर आ गई थीं. वह आदमी उस के करीब आता जा रहा था. पुष्पा को लगा वह इसी रास्ते से मेले में जा रहा है. पुष्पा धीरेधीरे सिसकती हुई अपने पर काबू पाने की कोशिश भी करती जा रही थी. इतने में उस के कानों में धीरे से एक आवाज टकराई, ‘‘पुष्पा.’’

वह चौंक पड़ी, नजर उठा कर देखा वही आदमी उस के सामने खड़ा था. पुष्पा हड़बड़ा कर उठ खड़ी हुई. जल्दीजल्दी आंखें साफ कर के बोली, ‘‘जी, कहिए?’’

तब तक उस आदमी ने अपना चश्मा उतार लिया. अब पुष्पा उसे देख कर सिहर उठी, ‘‘कि…शो…र.’’ इस के आगे वह कुछ भी नहीं बोल पाई. आंखें फिर से बरस पड़ीं.

‘‘नहीं पुष्पा, रोना नहीं है. बस, थोड़ी देर मेरी बात सुनो. मैं कभी तुम्हें भूला नहीं. हर साल मैं इसी दिन मेले में आता रहा कि शायद कभी तुम से मुलाकात हो जाए और पूरा यकीन था कि एक न एक दिन तुम जरूर मिलोगी. मैं ने तो तुम्हें पहले ही बोला था कि मैं तुम्हारी जिंदगी में शामिल नहीं हो सकता पर तुम को कभी भी भूल नहीं पाऊंगा और देखो, मैं आज तक भूल नहीं पाया. पर आज के बाद अब कभी मेले में नहीं आऊंगा. एक बार तुम से मिलने की इच्छा थी जो आज पूरी हो गई. अब कोई इच्छा शेष नहीं,’’ कहते हुए किशोर भावुक हो गया.

‘‘कि…शो…र’’ पुष्पा के आंसू नहीं रुक रहे थे.

‘‘हां पुष्पा, तुम से मिलने की चाह मुझे मेले में खींच लाती थी हर साल.’’

इतनी देर में पुष्पा अपने को कुछ संभाल चुकी थी और उसे अपनी हालत का भान हो चुका था. वह धीरे से बोली, ‘‘अकेले आए हो? शादी की या नहीं? बच्चों को क्यों नहीं लाए?’’ पुष्पा ने एकसाथ कई सवाल कर दिए.

‘‘बच्चे होते, तो लाता न. तुम दिल से कभी गई ही नहीं. तो फिर कैसे किसी को अपना बनाता? मैं ने शादी नहीं की. अब इस उम्र में तो सवाल ही नहीं उठता. पर मैं बहुत खुश हूं कि तुम्हारी यादों के सहारे जिंदगी आराम से कट रही है. बस, एक बार तुम्हें देखने की इच्छा थी जो पूरी हो गई. अब कभी तुम्हारे सामने नहीं पडं़ूगा, चलता हूं. तुम्हारे पति आते होंगे.’’ इतना कह कर किशोर पलट कर चल पड़ा.

पुष्पा जैसे नींद से जागी, किशोर के मुंह से पति का नाम सुन कर वह पूरी तरह यथार्थ के धरातल पर आ चुकी थी.

किशोर चला जा रहा था और वह चाह कर भी उसे रोक नहीं पा रही थी. वह उसे पुकारना चाहती थी, कुछ कहना चाहती थी पर कोई अदृश्य शक्ति उसे ऐसा करने से रोक रही थी. वह अपनी जगह से हिल न सकी, न ही उस के कोई बोल फूटे, पर दिल में एक टीस सी उठी और आंखों से न चाहते हुए भी दो बूंद आंसू लुढ़क कर उस के गालों पर लकीर खींचते हुए उस के आंचल में समा गए हमेशा के लिए. वह किशोर को तब तक देखती रही जब तक वह गाड़ी में बैठ कर उस की नजरों से ओझल नहीं हो गया. एक छोटी सी प्रेम कहानी मेले से शुरू हो कर मेल में ही खत्म हो गई थी.

पुष्पा ने अपने दिल के किवाड़ बंद किए और सामान्य दिखने की कोशिश करने लगी. उस ने वहीं पास के हैंडपंप से पानी खींच कर मुंह धोया और अपनी गाड़ी में आ कर बैठ गई. अतीत से वर्तमान में आ चुकी थी पुष्पा. किशोर की यादों को उस ने अपने दिल की पेटी में सब से नीचे दबा दिया फिर कभी न खोलने के लिए. थोड़ी देर बाद ही सब मेले से वापस घर आ गए और 2 दिनों बाद ही सब शहर के लिए रवाना हो गए.

इस बात को लगभग 2 महीने बीत चुके थे. कभीकभी वह अपराधबोध से ग्रस्त हो जाती थी किशोर के लिए. वह खुद तो एक बेहद प्यार करने वाले पति और बच्चों के साथ सुखद गृहस्थ जीवन जी रही थी पर किशोर उस के कारण अकेलेपन को गले लगा कर बैठा था. पर करे क्या वह, कुछ समझ नहीं पा रही थी. यों तो पुष्पा ने अपने दिल के भीतर किशोर की यादों को दबा कर किवाड़ बंद कर दिया था, पर कभीकभी पुष्पा को अकेली पा कर वे यादें किवाड़ खटखटा दिया करती थीं. अचानक फोन की घंटी बजी, फोन उठा लिया पुष्पा ने.

‘‘हैलो.’’

‘‘अच्छा…’’

‘‘वही ना जिन की शादी के एक महीने बाद ही…’’

‘‘ठीक…’’

‘‘अच्छी बात है…’’

‘‘कर देती हूं.’’

अशोक (उस के पति) का फोन था. उन की दूर की बहन आरती आ रही थी. वह प्राइमरी टीचर थी और उस का स्थानांतरण पुष्पा के शहर में हुआ था. कुछ दिन साथ रह कर फिर वह अपने लिए कोई ढंग का कमरा देख लेगी. इस शहर में अशोक और पुष्पा के सिवा और कोईर् भी नहीं था उस का.

अशोक हमेशा उस के बारे में पुष्पा से बातें करते रहते थे. आरती की शादी के एक महीने बाद ही होली के दिन उस के पति की डूब कर मृत्यु हो गई थी. होली खेलने के बाद वे नदी में स्नान करने के लिए गए थे, फिर वापस नहीं आए. उस दिन से आरती कभी ससुराल नहीं गई. कई बार उस ने जाने की जिद की, पर उस के मायके वालों ने जाने नहीं दिया. सभी इस कोशिश में थे कि कोई अच्छा लड़का मिल जाए तो आरती की दोबारा शादी कर दी जाए. चूंकि  वह एक महीने की सुहागिन विधवा थी, इसलिए विवाह में समस्या आ रही थी. दूसरे, वह भी इस के लिए राजी नहीं हो रही थी. अशोक भी उस की शादी के लिए कोशिश कर रहे थे.

पुष्पा ने बच्चों के कमरे में आरती के रहने का इंतजाम कर दिया. आरती लंबी सी भरेपूरे शरीर की खूबसूरत, हिम्मती, हौसलेमंद, स्वभाव की नेक और बच्चों में घुलमिल कर रहने वाली खुशदिल युवती थी. उस के आने से घर में रौनक हो गई थी. बच्चे भी खुश थे.

पता ही नहीं चला कि आरती के आए हुए एक सप्ताह हो गया था. उस दिन शाम को आरती और बच्चे आराम से बालकनी में बैठ कर कैरम खेल रहे थे. इतने में अशोक की गाड़ी की आवाज सुन कर पुष्पा चौंक पड़ी. उस ने सवालिया निगाहों से आरती की तरफ देखा और बोली, ‘‘आज, इतनी जल्दी कैसे?’’

पट्टी वाला आम -भाग 2 : रिटायर्ड अफसर गांव की गरीबी को दूर कर पाया

सुबह घीसू 4 आदमी और ले आया और शन्नो उन के साथ सामान सैट करवाने लगी. मैं खेतों की ओर निकल गया. पट्टी वाले आम को जा कर देखा, खूब निकले थे। पहले 1 साल छोड़ कर आम लगते थे. मैं पिछले 2 सालों से जड़ों को खोद कर खाद डलवा रहा था. उस का नतीजा यह निकला कि पिछले साल की तरह इस बार भी अमिया (टिकोरा) खूब निकले थे।

आम का यह पेड़ हमारे बजुर्गों की धरोहर है. इस पेड़ का नाम ‘पट्टी वाला आम’ कैसे पड़ा, मैं नहीं जानता. मैं बचपन में बाबे मुंशी के साथ यहां आया करता था, आमों की रखवाली के लिए. जहां हम आम चूसते थे, वहीं घीसू और उस के दोस्तों के साथ एक खेल खेला करते थे. बड़ा अजीब सा खेल था. एक डंडा फैंक कर सभी पेड़ों पर चढ़ जाते थे. जो सब से ऊपर चढ़ता था, वह जीतता था.

पहले पट्टी वाले खेत के साथ शरीकों के खेत थे. वे सारे खेत, अपनी जरूरतों को पूरी करने के लिए मेरे आगे बेच गए थे. किसी को विदेश जाना था. किसी को शहर जा कर बसना था. कोई गांव रहना ही नहीं चाहता था. सारी जमीन मिला कर कोई 10 किल्ले का बड़ा खेत बन गया था. गांव में चौधरी बिशन के खेत को छोड़ कर, चकबंदी के बाद उस के 40 किल्ले के खेत एक ही जगह थे. उस के बाद यह पट्टी वाले आम का खेत इतना बड़ा था.

धान काट कर गेहूं की फसल बोई गई थी. वहीं इस बड़े खेत को पानी देने के लिए सरकार को नलकूप लगाने की अर्जी दी थी. मंजूरी भी मिल गई थी. एक कंपनी से इसे लगाने की बात चल रही है. आशा है, इसी महीने नलकूप भी लग जाएगा. पानी लगाने के लिए पास में ही छोटी नहर बहती है. उस में कभी पानी आता है, कभी नहीं आता. बड़ी मारामारी रहती है. इसलिए अपना नलकूप लगाना बेहतर समझा.

लंच का समय घर आया तो शन्नो पूरा सामान सैट कर चुकी थी. मैं ने पूछा, “क्या बनाया है?””दालमानी और चावल. आप की फैवरिट.””वाह, मजा आएगा.”मानी वास्तव में महानी का अपभ्रंश शब्द है. यह ईमली को भिगो कर बनाई जाती है। कच्चे आम की महानी भी बनाया जाता है. बहुत स्वादिष्ट डिश है. एक बार जो खा लेता है, वह बारबार खाना चाहता है.

“और घीसू, गांव के क्या हालचाल हैं?” लंच करते हुए मैं ने उस से पूछा.”गांव का हाल कुछ अच्छा नहीं है. भाभी मित्री थी न, उस की मौत पिछले साल हो गई थी. उस के अकेले बेटे की मौत भी 2 महीने पहले हो गई.”उस की इकलौती बेटी चंपा बेसहारा हो गई थी. उस के चाचे भाई थुडू ने गांव मदीनपुर में उस से दोगुनी उम्र के दुआजू (ऐसा आदमी जिस की पहली बीवी मर गई हो, बच्चों को संभालने के लिए वह दूसरी शादी कर ले) के साथ शादी कर दी.

“अरे हां, पिछले महीने आई थी वह. तब मैं ने पूछा था,”चंपा, कैसी हो?”कहने लगी, ‘‘वैसे तो सब ठीक है. खानेपीने की कोई कमी नहीं है. बस, उस की पहली पत्नी के 2 बच्चे संभालने पड़ते हैं.’’”बेचारी को छोटी उम्र में इतनी बड़ी जिम्मेदारी संभालनी पड़ रही थी.”

“गरीबी की मार है, घीसू. मित्री भाभी होतीं तो कम से कम वह दुआजू से शादी न होने देतीं,’’ मैं ने अफसोस जताते हुए कहा.”नहीं, साहबजी, मित्री भाभी भी क्या कर लेतीं. गरीबी इतनी थी कि कईकई दिन भूखे रहना पड़ता था.”

भला हो सरपंच साहब का कि निब्बे के मरने के बाद चंपा के लिए उन के घर से खाना आता रहा. शादी में भी उन्होंने ही सारा खर्च किया. भाई थुडू ने कुछ भी नहीं किया. शरीक कहां कुछ करते हैं. इसी तरह चाचा पालो के जाने के बाद बेसहारा धन्नी चाची के लिए खाना भी सरपंच के यहां से आने लगा.

उस के बदले चाची धन्नी उन के घर का काम करने लगीं. चाचे पालो के समय धन्नी चाची घर की रानी थीं. बेटी की शादी हो गई और बेटा शहर में जा कर बस गया. चाची धन्नी को कोई पूछता तक नहीं था.

“चाचे सुक्खी का परिवार तो ठीक है न?””कहां ठीक है, साहबजी. चाचा सुक्खी, खुद निक्कमा आदमी था. शराब पी कर यहांतहां पड़ा रहता था. उस की बीवी ने सुक्खी के रहते किसी दूसरे आदमी से संबंध बना लिए थे. एक रोज वह घर से भाग गई. उसे अपने 3 बेटों की भी परवाह नहीं रही. सुक्खी शराब से मर गया. उस का बड़ा बेटा भी कहीं चला गया. बाकी के दोनों बेटे पठानकोट में कहीं मजदूरी करते हैं. घर और जमीन बंजर पड़ी है. वैसे भी इतनी जमीन कहां थी कि दालरोटी निकल पाती.’’

“अफसोस है, सब समय का फेर है, घीसू. हमारा परिवार कैसे बिखर गया था? मां से ले कर सब भाईयों तक एक से बढ़ कर एक बेईमान और धोखेबाज थे. मैं भी क्या कर लेता अगर मेरे पास पैसा न होता।

“खैर, घीसू, मेरे पास बहुत काम रहेगा. पट्टी वाले खेत में लगे गेहूं से घास निकालना है. अगर इस तरह के कोई जवान हैं तो मेरे पास ले आओ. कम से कम उन की दालरोटी तो चलेगी. मेरे पास हमेशा काम रहेगा. अभी ट्यूबवेल लगना है. उस के लिए पक्का कमरा बनेगा. मैं सोचता हूं कि हमारी जो हवेली बनी है उसे ठीक करवा दूं. 2 भैंसें रखी जा सकेंगी.

परीक्षाफल: क्या पूरा हो सका रत्ना और चिन्मय का सपना

जैसे किसान अपने हरेभरे लहलहाते खेत को देख कर गद्गद हो उठता है उसी प्रकार रत्ना और मानव अपने इकलौते बेटे चिन्मय को देख कर भावविभोर हो उठते थे.

चिन्मय की स्थिति यह थी कि परीक्षा में उस की उत्तर पुस्तिकाओं में एक भी नंबर काटने के लिए उस के परीक्षकों को एड़ीचोटी का जोर लगाना पड़ता था. यही नहीं, राज्य स्तर और राष्ट्रीय स्तर की अन्य प्रतिभाखोज परीक्षाओं में भी उस का स्थान सब से ऊपर होता था.

इस तरह की योग्यताओं के साथ जब छोटी कक्षाओं की सीढि़यां चढ़ते हुए चिन्मय 10वीं कक्षा में पहुंचा तो रत्ना और मानव की अभिलाषाओं को भी पंख लग गए. अब उन्हें चिन्मय के कक्षा में प्रथम आने भर से भला कहां संतोष होने वाला था. वे तो सोतेजागते, उठतेबैठते केवल एक ही स्वप्न देखते थे कि उन का चिन्मय पूरे देश में प्रथम आया है. कैमरों के दूधिया प्रकाश में नहाते चिन्मय को देख कर कई बार रत्ना की नींद टूट जाती थी. मानव ने तो ऐसे अवसर पर बोलने के लिए कुछ पंक्तियां भी लिख रखी थीं. रत्ना और मानव उस अद्भुत क्षण की कल्पना कर आनंद सागर में गोते लगाते रहते.

ये भी पढ़ें- Romantic Story: जो बीत गई सो बात गई

चिन्मय को अपने मातापिता का व्यवहार ठीक से समझ में नहीं आता था. फिर भी वह अपनी सामर्थ्य के अनुसार उन्हें प्रसन्न रखने की कोशिश करता रहता. पर तिमाही परीक्षा में जब चिन्मय के हर विषय में 2-3 नंबर कम आए तो मातापिता दोनों चौकन्ने हो उठे.

‘‘यह क्या किया तुम ने? अंगरेजी में केवल 96 आए हैं? गणित में भी 98? हर विषय में 2-3 नंबर कम हैं,’’ मानव चिन्मय के अंक देखते ही चीखे तो रत्ना दौड़ी चली आई.

‘‘क्या हुआ जी?’’

‘‘होना क्या है? हर विषय में तुम्हारा लाड़ला अंक गंवा कर आया है,’’ मानव ने रिपोर्ट कार्ड रत्ना को थमा दिया.

ये भी पढ़ें- सबक-भाग 1: भावेश की मां अपनी बहू को हमेशा सताती रहती थी

‘‘मम्मी, मेरे हर विषय में सब से अधिक अंक हैं, फिर भी पापा शोर मचा रहे हैं. मेरे अंगरेजी के अध्यापक कह रहे थे कि उन्होंने 10वीं में आज तक किसी को इतने नंबर नहीं दिए.’’

‘‘उन के कहने से क्या होता है? आजकल बच्चों के अंगरेजी में भी शतप्रतिशत नंबर आते हैं. चलो, अंगरेजी छोड़ो, गणित में 2 नंबर कैसे गंवाए?’’

‘‘मुझे नहीं पता कैसे गंवाए ये अंक, मैं तो दिनरात अंक, पढ़ाई सुनसुन कर परेशान हो गया हूं. अपने मित्रों के साथ मैं पार्क में क्रिकेट खेलने जा रहा हूं,’’ अचानक चिन्मय तीखे स्वर में बोला और बैट उठा कर नौदो ग्यारह हो गया.

मानव कुछ देर तक हतप्रभ से बैठे शून्य में ताकते रह गए. चिन्मय ने इस से पहले कभी पलट कर उन्हें जवाब नहीं दिया था. रत्ना भी बैट ले कर बाहर दौड़ कर जाते हुए चिन्मय को देखती रह गई थी.

‘‘मानव, मुझे लगता है कि कहीं हम चिन्मय पर अनुचित दबाव तो नहीं डाल रहे हैं? सच कहूं तो 96 प्रतिशत अंक भी बुरे नहीं हैं. मेरे तो कभी इतने अंक नहीं आए.’’

ये भी पढ़ें- सच के पैर: भैया-भाभियों की असलियत जानकर क्या था गुड्डी का फैसला

‘‘वाह, क्या तुलना की है,’’ मानव बोले, ‘‘तुम्हारे इतने अंक नहीं आए तभी तो तुम घर में बैठ कर चूल्हा फूंक रही हो. वैसे भी इन बातों का क्या मतलब है? मेरे भी कभी 80 प्रतिशत से अधिक अंक नहीं आए, पर वह समय अलग था, परिस्थितियां भिन्न थीं. मैं चाहता हूं कि जो मैं नहीं कर सका वह मेरा बेटा कर दिखाए,’’ मानव ने बात स्पष्ट की.

उधर रत्ना मुंह फुलाए बैठी थी. मानव की बातें उस तक पहुंच कर भी नहीं पहुंच रही थीं.

‘‘अब हमें कुछ ऐसा करना है जिस से चिन्मय का स्तर गिरने न पाए,’’ मानव बहुत जोश में आ गए थे.

‘‘हमें नहीं, केवल तुम्हें करना है, मैं क्या जानूं यह सब? मैं तो बस, चूल्हा फूंकने के लायक हूं,’’ रत्ना रूखे स्वर में बोली.

‘‘ओफ, रत्ना, अब बस भी करो. मेरा वह मतलब नहीं था, और चूल्हा फूंकना क्या साधारण काम है? तुम भोजन न पकाओ तो हम सब भूखे मर जाएं.’’

‘‘ठीक है, बताओ क्या करना है?’’ रत्ना अनमने स्वर में बोली थी.

‘‘मैं सोचता हूं कि हर विषय के लिए एकएक अध्यापक नियुक्त कर दूं जो घर आ कर चिन्मय को पढ़ा सकें. अब हम पूरी तरह से स्कूल पर निर्भर नहीं रह सकते.’’

ये भी पढ़ें- फादर्स डे स्पेशल : अम्मा बनते बाबूजी

‘‘क्या कह रहे हो? चिन्मय कभी इस के लिए तैयार नहीं होगा.’’

‘‘चिन्मय क्या जाने अपना भला- बुरा? उस के लिए क्या अच्छा है क्या नहीं, यह निर्णय तो हमें ही करना होगा.’’

‘‘पर इस में तो बड़ा खर्च आएगा.’’

‘‘कोई बात नहीं. हमें रुपएपैसे की नहीं चिन्मय के भविष्य की चिंता करनी है.’’

‘‘जैसा आप ठीक समझें,’’ रत्ना ने हथियार डाल दिए पर चिन्मय ने मानव की योजना सुनी तो घर सिर पर उठा लिया था.

‘‘मुझे किसी विषय में कोई ट्यूशन नहीं चाहिए. मैं 5 अध्यापकों से ट्यूशन पढ़ूंगा तो अपनी पढ़ाई कब करूंगा?’’ उस ने हैरानपरेशान स्वर में पूछा.

‘‘5 नहीं केवल 2. पहला अध्यापक गणित और विज्ञान के लिए होगा और दूसरा अन्य विषयों के लिए,’’ मानव का उत्तर था.

‘‘प्लीज, पापा, मुझे अपने ढंग से परीक्षा की तैयारी करने दीजिए. मेरे मित्रों को जब पता चलेगा कि मुझे 2 अध्यापक घर में पढ़ाने आते हैं तो मेरा उपहास करेंगे. मैं क्या बुद्धू हूं?’’ यह कह कर चिन्मय रो पड़ा था.

पर मानव को न मानना था, न वह माने. थोड़े विरोध के बाद चिन्मय ने इसे अपनी नियति मान कर स्वीकार लिया. स्कूल और ट्यूशन से निबटता चिन्मय अकसर मेज पर ही सिर रख सो जाता.

मानव और रत्ना ने उस के खानेपीने पर भी रोक लगा रखी थी. चिन्मय की पसंद की आइसक्रीम और मिठाइयां तो घर में आनी ही बंद थीं.

समय पंख लगा कर उड़ता रहा और परीक्षा कब सिर पर आ खड़ी हुई, पता ही नहीं चला.

परीक्षा के दिन चिन्मय परीक्षा केंद्र पहुंचा. मित्रों को देखते ही उस के चेहरे पर अनोखी चमक आ गई, पर रत्ना और मानव का बुरा हाल था मानो परीक्षा चिन्मय को नहीं उन्हें ही देनी हो.

परीक्षा समाप्त हुई तो चिन्मय ही नहीं रत्ना और मानव ने भी चैन की सांस ली. अब तो केवल परीक्षाफल की प्रतीक्षा थी.

मानव, रत्ना और चिन्मय हर साल घूमने और छुट्टियां मनाने का कार्यक्रम बनाते थे पर इस वर्ष तो अलग ही बात थी. वे नहीं चाहते थे कि परीक्षाफल आने पर वाहवाही से वंचित रह जाएं.

धु्रव पब्लिक स्कूल की परंपरा के अनुसार परीक्षाफल मिलने का समाचार मिलते ही रत्ना और मानव चिन्मय को साथ ले कर विद्यालय जा पहुंचे थे. उन की उत्सुकता अब अपने चरम पर थी. दिल की धड़कन बढ़ी हुई थी. विद्यालय के मैदान में मेला सा लगा था. कहीं किसी दिशा में फुसफुसाहट होती तो लगता परीक्षाफल आ गया है. कुछ ही देर में प्रधानाचार्या ने इशारे से रत्ना को अंदर आने को कहा तो रत्ना हर्ष से फूली न समाई. इतने अभिभावकों के बीच से केवल उसे ही बुलाने का क्या अर्थ हो सकता है, सिवा इस के कि चिन्मय सदा की तरह प्रथम आया है. वह तो केवल यह जानना चाहती थी कि वह देश में पहले स्थान पर है या नहीं.

उफ, ये मानव भी ऐन वक्त पर चिन्मय को ले कर न जाने कहां चले गए. यही तो समय है जिस की उन्हें प्रतीक्षा थी. रत्ना ने दूर तक दृष्टि दौड़ाई पर मानव और चिन्मय कहीं नजर नहीं आए. रत्ना अकेली ही प्रधानाचार्या के कक्ष में चली गई.

‘‘देखिए रत्नाजी, परीक्षाफल आ गया है. हमारी लिपिक आशा ने इंटरनेट पर देख लिया है, पर बाहर नोटिसबोर्ड पर लगाने में अभी थोड़ा समय लगेगा,’’ प्रधानाचार्या ने बताया.

‘‘आप नोटिसबोर्ड पर कभी भी लगाइए, मुझे तो बस, मेरे चिन्मय के बारे में बता दीजिए.’’

‘‘इसीलिए तो आप को बुलाया है. चिन्मय के परीक्षाफल से मुझे बड़ी निराशा हुई है.’’

‘‘क्या कह रही हैं आप?’’

‘‘मैं ठीक कह रही हूं, रत्नाजी. कहां तो हम चिन्मय के देश भर में प्रथम आने की उम्मीद लगाए बैठे थे और कहां वह विद्यालय में भी प्रथम नहीं आया. वह स्कूल में चौथे स्थान पर है.’’

‘‘मैं नहीं मानती, ऐसा नहीं हो सकता,’’ रत्ना रोंआसी हो कर बोली थी.

‘‘कुछ बुरा नहीं किया है चिन्मय ने, 94 प्रतिशत अंक हैं. किंतु…’’

‘‘अब किंतुपरंतु में क्या रखा है?’’ रत्ना उदास स्वर में बोली और पलट कर देखा तो मानव पीछे खड़े सब सुन रहे थे.

‘‘चिन्मय कहां है?’’ तभी रत्ना चीखी थी.

‘‘कहां है का क्या मतलब है? वह तो मुझ से यह कह कर घर की चाबी ले गया था कि मम्मी ने मंगाई है,’’ मानव बोले.

‘‘क्या? उस ने मांगी और आप ने दे दी?’’ पूछते हुए रत्ना बिलखने लगी थी.

‘‘इस में इतना घबराने और रोने जैसा क्या है, रत्ना? चलो, घर चलते हैं. चाबी ले कर चिन्मय घर ही तो गया होगा,’’ मानव रत्ना के साथ अपने घर की ओर लपके थे. वहां से जाते समय रत्ना ने किसी को यह कहते सुना कि पंकज इस बार विद्यालय में प्रथम आया है और उसी ने चिन्मय को परीक्षाफल के बारे में बताया था, जिसे सुनते ही वह तीर की तरह बाहर निकल गया था.

विद्यालय से घर तक पहुंचने में रत्ना को 5 मिनट लगे थे पर लिफ्ट में अपने फ्लैट की ओर जाते हुए रत्ना को लगा मानो कई युग बीत गए हों.

दरवाजे की घंटी का स्विच दबा कर रत्ना खड़ी रही, पर अंदर से कोई उत्तर नहीं आया.

‘‘पता नहीं क्या बात है…इतनी देर तक घंटी बजने के बाद भी अंदर से कोई आवाज नहीं आ रही है मानव, कहीं चिन्मय ने कुछ कर न लिया हो,’’ रत्ना बदहवास हो उठी थी.

‘‘धीरज रखो, रत्ना,’’ मानव ने रत्ना को धैर्य धारण करने को कहा पर घबराहट में उस के हाथपैर फूल गए थे. तब तक वहां आसपास के फ्लैटों में रहने वालों की भीड़ जमा हो गई थी.

कोई दूसरी राह न देख कर किसी पड़ोसी ने पुलिस को फोन कर दिया. पुलिस अपने साथ फायर ब्रिगेड भी ले आई थी.

बालकनी में सीढ़ी लगा कर खिड़की के रास्ते फायरमैन ने चिन्मय के कमरे में प्रवेश किया तो वह गहरी नींद में सो रहा था. फायरमैन ने अंदर से मुख्यद्वार खोला तो हैरानपरेशान रत्ना ने झिंझोड़कर चिन्मय को जगाया.

‘‘क्या हुआ, बेटा? तू ठीक तो है?’’ रत्ना ने प्रेम से उस के सिर पर हाथ फेरा था.

‘‘मैं ठीक हूं, मम्मी, पर यह सब क्या है?’’ उस ने बालकनी से झांकती सीढ़ी और वहां जमा भीड़ की ओर इशारा किया.

‘‘हमें परेशान कर के तुम खुद चैन की नींद सो रहे थे और अब पूछ रहे हो यह सब क्या है?’’ मानव कुछ नाराज स्वर में बोले थे.

‘‘सौरी पापा, मैं आप की अपेक्षाओं की कसौटी पर खरा नहीं उतर सका.’’

‘‘ऐसा नहीं कहते बेटे, हमें तुम पर गर्व है,’’ रत्ना ने उसे गले से लगा लिया था. मानव की आंखों में भी आंसू झिलमिला रहे थे. कैसा जनून था वह, जिस की चपेट में वे चिन्मय को शायद खो ही बैठते. मानव को लग रहा था कि जीवन कुछ अंकों से नहीं मापा जा सकता, इस का विस्तार तो असीम, अनंत है. उन्मुक्त गगन की सीमा क्या केवल एक परीक्षा की मोहताज है?

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें