रातभर रमा मुझे मनाती रही और सुबहसुबह ही अजय गाड़ी ले कर आ गया, ‘‘चलो बूआ, कुछ दिन हमारे पास ही रहना. मन नहीं लगेगा तो वापस छोड़ जाऊंगा.’’

रमा ने मेरा सामान जल्दी से पैक करवा लिया. अल्सर का औपरेशन हुआ है मेरा जिस की वजह से काफी कमजोरी भी लग रही थी मुझे.

‘‘भाभी कब से देखभाल कर रही हैं, कुछ दिन उन्हें भी आराम हो जाएगा और मायके की सैर भी हो जाएगी आप की. और बूआ, मायके से तो सभी मोटे हो कर आते हैं. आप भी मोटी हो कर आएंगी. देख लीजिएगा, मायके की हवा ही कुछ ऐसी होती है,’’ अजय ने ठिठोली की.

रमा के परिवार में हर पल हलकीफुलकी फुहार बहती है. गंभीर विषय को भी मजाक में उड़ा देना परिवार वालों की आदत है. ऐसा लगता है मुझे, जैसे उन्हें हर बात एक सी लगती है. समस्या आ जाए तो भी हंसते रहना और समस्या न हो तो भी मस्त रहना. अच्छा नहीं लगता मुझे किसी का बिना वजह खुश रहना. बिना वजह दुखी रहने की वजह जो हर पल ढूंढ़ लेती हूं इसलिए खुश रहना भला मुझे पसंद क्यों आएगा.

मायके पहुंची तो सब ने मुझे हाथोंहाथ लिया. बहू ने झट से मेरा सामान रमा की अलमारी में एक खाना खाली कर के लगा दिया. दवाएं एक ट्रे में रख सिरहाने सजा दीं. खाना खाने लगे तो बड़ा विचित्र लगा मुझे. रमा की बहू ने मेरा खाना अलग ट्रे में सजा रखा था जो सिर्फ मुझे ही खाना था. उन का खाना अलग था. मेरा खाना किसी ने नहीं छुआ था. मैं ने अपनी दाल उन्हें खाने को कहा तो हंस पड़ा था अजय, ‘‘आप की दाल में नमकमसाला कम है न बूआ, सब्जी भी अलग है. मैं तो आप की दाल खा लूंगा फिर आप मेरी कैसे खाएंगी?’’

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