लेखक- नीरज कुमार मिश्रा

‘छनाक’ की आवाज के साथ आईना चकनाचूर हो गया था. आईने का हर टुकड़ा सिया का अक्स दिखा रहा था. मांग में भरा सिंदूर, गले का मंगलसूत्र, कानों के कुंडल ये सब मानो सिया को चिढ़ा रहे थे. शायद समाज के दोहरेपन के आगे वह हार मान चुकी थी. एकसाथ कई सवाल उस के मन में उमड़घुमड़ रहे थे.

आईने के नुकीले टुकड़ों में सिया को उस के सवालों का जवाब नहीं मिल सका. आंखों में आंसुओं के साथ पिछली यादें किसी फिल्म की तरह सिया की आंखों के सामने से गुजरने लगी थीं.

श्री नाम था उस का. 20 साल का होतेहोते वह और उस के मांबाप ये समझ चुके थे कि श्री का शरीर भले ही एक मर्द का हो, पर उस के अंदर का मन एक औरत का ही है.

मांबाप ने श्री को कई डाक्टरों को दिखाया, इलाज भी चला, पर कोई फायदा नहीं हुआ. डाक्टरों ने श्री को ‘जैंडर आइडैंटिटी डिसऔर्डर’ का मरीज बताया, जिस में शरीर तो औरत या मर्द का हो सकता है, पर हावभाव और लक्षण विपरीत लिंग के होते हैं.

श्री के नैननक्श तीखे थे. उस के चेहरे की खूबसूरती और चमक से लड़कियों को जलन होना लाजिमी था. वह लड़कियों के कपड़े पहनता, उन की तरह हावभाव रखता, गाने गाता और लड़कियों की तरह डांस करना उसे बहुत अच्छा लगता था. किसी से बात करते समय लचकनामचकना श्री की आदत थी.

श्री 22 साल का हो चुका था. बाहर जाने पर लड़कियों जैसे कपड़े पहनने लगा था वह... मानो अब उसे जमाने के कहनेसुनने की कोई परवाह नहीं थी. उस ने अमर नाम का एक दोस्त बनाया, जिसे वह अपना बौयफ्रैंड कहता था.

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