दारा सिंह गए राम के पास...फ्रीस्टाइल कुश्ती के विश्व चैंपियन दारा सिंह का निधन हो गया . ऑक्सीजन की कमी के कारण कई दिनों तक मुंबई के हॉस्पिटल में वेंटिलेटर पर रहे अंततः उनका देहावसान हो गया. जैसा कि हमेशा होता है गम के बादल घिर आए, प्रधानमंत्री से लेकर  संपूर्ण बॉलीवुड ने उन्हें स्मरण किया और भावभीनी श्रद्धांजलि दी.

दारासिंह अर्थात सेल्यूलाइट के हनुमान जी ! संपूर्ण संसार में उन्हें बजरंगबली के स्वरूप में जाना जाता है .गो की दारासिंह जब नश्वर शरीर छोड़कर बैंकुंठ धाम को पहुंचे तो उन्हें हनुमान सदृश्य मान हर्षातिरेक छा गया .श्री राम, सीता जी और भैय्या लक्ष्मण के साथ खड़े हैं. दारासिंह जैसे ही विशाल  द्वार के भीतर प्रविष्ट हुए प्रभु, माता को देख प्रसन्नता से विभोर हो उठे.भगवान राम ने आत्मीय भाव से कहा- आओ ! हनुमान! तुम्हारा बैंकुठधाम में स्वागत है. यह तो बताओ, पृथ्वीलोक में सब ठीक तो है न !
दारासिंह ने हनुमान की भांति श्री राम के चरणों में गिरकर- प्रभु... प्रभु!! कह नीर बहाए और इन प्रेमाश्रुओं को देख भगवान राम के हृदय में हनुमान के प्रति प्रेम और भी बढ़ गया.राजीव लोचन श्री राम ने कहा- हनुमान... मेरे भाई ! सब ठीक तो है न ! हनुमान जी बनाम दारासिंह अश्रुपात करते हुए बोले- भगवान ! अनर्थ हो गया.
श्रीराम- हनुमान... शांत होवो. यह कह  भगवान ने दारासिंह को गले से लगा लिया.
हनुमान- भगवान ! सचमुच अनर्थ हो गया. अब सृष्टि का क्या होगा, क्या होगा भगवान आपके वरदान का ? श्रीराम- क्यों, क्या हो गया ? हनुमान पहेली बुझाने की तुम्हारी आदत नहीं गई है. त्रेता युग में भी जब हमने जन्म लेकर पृथ्वी में लीलाएं की थी तुम ऐसे ही पहेलियां बुझाकर हमें संशय में डाल देते थे. हनुमान ! तुम्हें स्मरण है न !
दारासिंह रूपी हनुमान जी के चेहरे पर स्मित मुस्कुराहट खेलने लगी, हौले से कहा- प्रभु ! सच तो यह है मुझे आपके और माता सीता के चरणों के सिवाय कुछ भी स्मरण नहीं.भक्त वत्सल श्रीराम के मुखमंडल पर मुस्कुराहट खेलने लगी- हनुमान !तुम्हारा स्वभाव तनिक भी नहीं बदला चलो मैं स्मरण कराता हूं .एक दफे तुमने अपने हृदय को फाड़कर दिखलाया था सभी ने देखा, हम सीता जी तुम्हारे हृदय में वास करते हैं .दारा सिंह ने बीच में कहा- प्रभु यह किस्सा तो मुझे भली-भांति स्मरण है, आप तो अभी  भी मेरे रोम रोम में समाए हुए हैं.श्रीराम बोले - हे अंजलि पुत्र ! एक दफे सीता जी की देखा देखी अपने शरीर पर सिंदूर लगा लिया था. याद है न !
हनुमान जी मंद मंद मुस्कुराए- प्रभु यह सारी कथाएं भला मैं भूल सकता हूं ? श्रीराम ने कहा- हे पवन पुत्र! तुम कहना क्या चाहते हो सविस्तार बताओ .हमें संशय में डालकर फिर कौन सी लीला करने जा रहे हो.
दारा सिंह रूपी हनुमान जी ने हाथ जोड़कर कहा - प्रभु ! सब कुछ आपकी कृपा पर निर्भर करता है.मैं तो तुच्छ भक्त मात्र हूं.
श्रीराम जी मुस्कुराए- अच्छा-अच्छा प्रशंसा का वितान मत तानों कहो.दारासिंह- प्रभु ! आप ने वरदान दिया था... आपको स्मरण है ? जब आप ने वरदान दिया था तो ऐसा कैसे हो सकता है ? मैं कैसे निर्वाण को प्राप्त कर सकता हूं .यही अनर्थ हो गया है प्रभु...!! भगवान राम ने कुछ क्षण सोचा फिर कहा - हे मारुति नंदन! तुम ठीक कह रहे हो .हमने तो तुम्हें वरदान दिया था की हनुमान तुम्हें चिरकाल तक पृथ्वी पर ही विचरण कर जगत का कल्याण करना है. हमारे वरदान का क्या हुआ ? तुम यहां कैसे चले आए ? वाकई यह तो अनर्थ हो गया है. अब पृथ्वीवासियों का क्या होगा ? कौन उनकी रक्षा करेगा.
दारासिंह अर्थात हनुमान जी मुस्कुराए और कहा - प्रभु ! एक बात कहूं .आप मुझे क्षमा तो कर देंगे न ! श्रीराम ने माता सीता की ओर देख कहा- हे बजरंगी ! तुम निर्दोष हो मैं जानता हूं... फिर भी कहो.
 दारासिंह ने अपनी वह भोली मुस्कुराहट बिखेरी जो अक्सर सीरियल रामायण में बांटा करते थे कहा- प्रभु ! मैं तो यहां आ गया, अब मृत्यु लोक में कौन लोगों की समस्याएं सुनेगा कौन कष्टों से मुक्ति दिलाएगा... मुझे इस बात की चिंता है.
भगवान ने कहा- तुम निश्चिंत रहो दारासिंह वहां दूसरे अभिनेता है न ! वे हनुमान की भूमिका करेंगे.
मानो एक धमाका हुआ । प्रभु राम की वाणी सुन दारा सिंह यानी फिल्मी हनुमान के हृदय को बड़ा संतोष मिला. उन्होंने कहा- बस प्रभु बस मैं यही चाहता हूं. आपसे क्या छिपा है.श्रीराम मुस्कुराए -" दारा ! मुझे पहचानो, अरे मैं विश्वजीत हूं."दारासिंह ने देखा, गौर से देखा -"अरे ! विश्वजीत !" दारा सिंह आत्म विभोर हो गए और एक पुरानी  फिल्म में राम बने विश्वजीत को, गले से लगा लिया.

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