दिल्ली के जमना पर ईस्ट दिल्ली इलाके में अवैध कही जाने वाली बस्तियों की भरमार है. उत्तर प्रदेश, बिहार ही नहीं देश के लगभग सब जगह मजदूर या गरीब दिल्ली में आ कर अगर कुछ नौकरी वगैरा पा जाते हैं तो झुग्गियों के बाद इन बेहद गंदी, संकरी बस्तियों में रहने आते हैं. ज्यादातर लोग पिछड़ी जातियों के हैं और अपने साथ गांवों से औरतों के साथ छेड़छाड़, रेप, देहव्यापार की आदते  साथ लाते हैं.

हर रोज के अखबार 2-3 रेप की घटनाओं से भरे होते हैं. रेप के आरोपों में कितने दोनों की इच्छा से हुए सैक्स के होते हैं, कितने जबरन कहां नहीं जा सकता. फरवरी के तीसरे सप्ताह में शहरपुर  इलाके में 2 महिलाओं को होटल ले जा कर रेप की शिकायत दर्ज की गई. यह साफ है कि इन औरतों को जबरन होटल तो ले जाया जा नहीं सकता. होटल मनमर्जी से गई पर वहां जब मनचाही बात नहीं बनी तो रेप का मामला बना.

असल में देह की जरूरत को दबाने का जो नकली ओढऩा हम लोग ओढ़े रहते हैं. यह औरतों पर भारी पड़ता है. औरतें और लड़कियां बदन का सुख चाहती हैं पर मामला खुले नहीं, यह डर भी रहता है. अगर समाज उदार हो, बदन की जरूरतों को समझे तो इच्छा से बने संबंधों को रेप का नाम तो नहीं दिया जाएगा.

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रेप का नाम देने पर आदमी या लडक़े की गिरफ्तारी तो हो जाती है. पर लडक़ी भी बदनाम हो जाती है. पुलिस हजार सवाल करती है. पुलिस वाले उसे चालू समझते हैं. बिरादरी में नाक कट जाती है, अगर सैक्स को आम माना जाएगा तो लडक़ा तैयार हो कर आएगा, कंडोम लाएगा, लडक़ी को पिल लेने को कहेगा. किसी साथी के बदन की जो जरूरत होती है वह पूरी होगी पर कोई निशान नहीं छूटेगा.

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