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पत्नी के बहाने माया का मोदी पर वार

लोकसभा चुनाव के सातवे द्वार पर पहुंचने के बाद भी नेताओं ने मुद्दो की जगह एक दूसरे के चरित्र पर हमला करना जारी रखा है. ताजा मामले में बसपा नेता मायावती ने पीएम नरेन्द्र मोदी की पत्नी के बहाने भाजपा नेताओं की पत्नियों की चिंता पर अपनी राय दी है. मायावती के इस बयान की भाजपा में तीखी प्रतिक्रिया हुई है. भाजपा नेता इसे मायावती की हताशा, हार से डर और जेल जाने के खतरे तक को कारण बता रहे है.

बसपा नेता मायावती ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पत्नी के बहाने वार किया है. मायावती ने कहा कि ‘भाजपा की महिला नेता उनके पतियों के पीएम मोदी से करीबी से घबडाती है. उन महिलाओं को डर है कि कहीं पीएम मोदी उन्हे भी अपनी पत्नी की तरह अपने पतियों से अलग ना करवा दे’ मायावती ने कहा कि ‘मुझे तो मालुम चला है कि भाजपा में खासकर विवाहित महिलाये अपने आदमियों को पीएम मोदी के नजदीक जाते देखकर यह सोच कर काफी घबराती है कि कही मोदी अपनी औरत की तरह हमें भी अपने पतियों से अलग ना कर दे.’

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बसपा नेता मायावती के बयान पर प्रतिक्रिया के पहले भाजपा समर्थको को अपने नेताओं के बयानों पर गौर करना चाहिये. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने खुद कांग्रेस नेता सोनिया गांधी का मजाक बनाते हुए ‘विधवा’ कहा था. राहुल गांधी को मंदबुद्वि कहा था. प्रियंका गांधी के बौडी फीगर को लेकर ही ओछी टिप्पणी की थी. भाजपा के प्रमुख नेताओं की बात छोड़ दे तो छोटे स्तर पर बहुत स्तरहीन हमले किये गये.

सोशल मीडिया आने के बाद किसी भी व्यक्ति पर सोशल हमले करना कठिन काम नहीं रहा. मोदी सरकार की आलोचना करने वाले पत्रकारों को हमेशा निशाने पर रखा गया. रवीश कुमार इसकी मिसाल ही बन गये. भाजपा और हिन्दुत्व का समर्थन करने वाले लोग ने पत्रकारों के लेखन के बजाय उनके घर, परिवार, बीबी, बच्चों और जाति विरादरी तक को निशाने पर लेकर गालियां दी. एक तरह से समाज में अलोचना करने वाले को गाली देने का चलन शुरू हो गया. अब यही चलन चुनावी मुद्दा बन जा रहा है.

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लोकसभा चुनाव में बात बेरोजगारी, महंगाई, भ्रष्टाचार, विकास की होनी चाहिये थी. पर बातें तू चोर तू चोर की हो रही है. इसमें नेताओं को ही नहीं जनता को भी मजा आता है. जनता को इसमें उलझाकर नेता अपनी आलोचना से बच जाते है. यह उनके लिये सुविधाजनक होता है. सोशल मीडिया में गाली को बड़ी संख्या में देकर ट्रोल किया जाता है. जिससे यह बातें ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंच सके. नेताओं ने जनता को इस तरह की चीजों में उलझाकर अपनी कमियों को छिपा लिया है. एक तरह से पूरा चुनाव खत्म हो गया पर ऐसे बयान आने जारी है. इससे राजनीति और समाज दोनो के स्तर का पता चलता है.

मेरी शादी के 2 साल हो चुके हैं….

सवाल

मैं 26 वर्षीय विवाहिता हूं. मेरी शादी को 2 साल हो चुके हैं. पति बहुत अच्छे हैं. परंतु मेरी एक ननद है जो रंगरूप में मुझ से कहीं ज्यादा खूबसूरत है. मैं उसे अपनी बहन जैसी मानती हूं. उस का व्यवहार मेरे प्रति अच्छा नहीं है. कभी मजाकमजाक में वह मुझे काली बोलती है तो कभी मोटी. मैं ने उसे कई बार टोका, परंतु वह मेरी बात नहीं समझती. अब तो लगता है कि किसी दिन उसे 2 थप्पड़ लगा दूं. मैं अपने गुस्से पर काबू करना चाहती हूं, पर समझ नहीं आता कि क्या करूं. पति को मैं इन सब में ढकेलना नहीं चाहती और सासससुर सब जानते हुए भी कुछ कहते नहीं. बताएं कि मैं क्या करूं?

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जवाब

बहुत घरों में इस तरह के विशेषणों का प्रयोग हर किसी के लिए किया जाता है, यहां तक कि मातापिता भी अपने खुद के बच्चों के लिए करते हैं. यह आदत बन जाती है. आप की ननद का 21वीं सदी में जीते हुए आप को काली या मोटी कह कर पुकारना और आप के रंगरूप से आप को नीचा दिखाना बेहद शर्मनाक है. पर यदि घर वाले समझदार होते तो शायद वह न कहती. इस स्थिति में आप पहल करें, ननद को ही नहीं, सभी को आदर दें. सब से सभ्य शब्दों में बात करें. हो सकता है वे समझ जाएं. थप्पड़ मारना या लड़ाईझगड़ा करना किसी भी तरह से सही नहीं है. यह घटिया तरीका है. पूरे घर को अपने दर्द का एहसास अपने सही शब्दों से कराएं.

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मुद्दा शक्ति तो आ गई, अच्छे दिन कब आएंगे

भविष्य की चुनौतियों का सामना करने तथा देशवासियों के जीवन स्तर में सकारात्मक बदलाव के लिए आधुनिक तकनीक अपनानी जरूरी है लेकिन देश की भीतरी चरमराती संरचना में बदलाव कब आएंगे, जो देश की पहली जरूरत है.

सरकार ने 27 मार्च को एंटी सैटेलाइट (ए-सैट) मिसाइल टैस्ट की सफलता की घोषणा कर देश को बताया कि भारत अब एक एंटी सैटेलाइट मिसाइल संपन्न देश है. भारत सरकार ने इसे मिशन शक्ति नाम दिया है. मिशन शक्ति के सफल परीक्षण के बाद भारत अमेरिका, रूस और चीन के बाद दुनिया का चौथा देश बन चुका है जिस के पास यह मिसाइल है.

भारत ने इस परीक्षण में अपनी खुद की सैटेलाइट को गिराया जिस से किसी और देश को किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचा. शक्ति मिसाइल अंतरिक्ष के लो अर्थ और्बिट में किसी भी संदिग्ध या दुश्मन देश की सैटेलाइट को मार गिरा सकती है. इस की किसी सैटेलाइट को दागने की क्षमता का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि इस ने केवल 3 मिनटों मेें ही अपना लक्ष्य पूरा कर लिया.

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यह मिसाइल काइनैटिक किल तकनीक से काम करती है जिस के चलते यह दूसरी सभी मिसाइलों से अलग है. यह दूसरी मिसाइलों की तरह लक्ष्य पर पहुंच कर ब्लास्ट नहीं होती, बल्कि सैटेलाइट के पास पहुंच कर उस पर स्टील की परत को गेंद के रूप में गिराती है जिस से वह चरमरा कर ढह जाती है.

मिशन शक्ति पर डीआरडीओ के चैयरमेन जी सतीश रेड्डी ने बताया कि इस मिसाइल को विकसित करने की परियोजना 2 वर्षों से चल रही थी व पिछले 6 महीनों से इस के मिशन मोड पर काम चल रहा था. शक्ति मिसाइल ओडिशा में स्थित डा. एपीजे अब्दुल कलाम द्वीप से लौंच की गई थी.

वर्तमान में ए-सैट तकनीक से संपन्न 4 देश हैं. अमेरिका ने 1958 में इस का परीक्षण किया, सोवियत यूनियन ने 1964 में, चीन ने 2007 में और अब भारत ने 2019 में इस का परीक्षण किया है.

भारत के बाद ए-सैट संपन्न 5वां राष्ट्र इसराईल हो सकता है. इसराईल के पास 2010 से ही एंटी सैटेलाइट मिसाइल बनाने के संसाधन मौजूद हैं और वैज्ञानिक वहां इसे बनाने में लगे हैं.

शक्ति की जरूरत क्यों

दीन दयाल उपाध्याय कालेज के प्रोफैसर डा. आर एम भारद्वाज कहते हैं, ‘‘शक्ति संपन्न होना बिलकुल वैसा ही है जैसा परमाणु संपन्न होना है. भारत में एंटी सैटेलाइट मिसाइल होना उत्तर कोरिया का परमाणु संपन्न होने जैसा ही है. वहां की जनता भी भूखों मर रही है और यहां की भी. उत्तर कोरिया वर्षों से शक्ति संपन्न राष्ट्र बना हुआ है जिस से उस का आंतरिक विकास हो न हो, बाहरी तो होता रहा. कुछ इसी प्रकार भारत भी लगातार सैन्य शक्ति को बढ़ा रहा है जबकि उस की आंतरिक जनता आर्थिक व सामाजिक रूप से पिछड़ रही है.

‘‘शक्ति की जरूरत की बात करें तो विश्व के कई देश एकदूसरे से सैन्य शक्ति की होड़ में लगे हुए हैं. पहले सेना की होड़ थी, फिर परमाणु हथियारों की और अब एंटी सैटेलाइट मिसाइलों की. साम्यवादी राष्ट्र होते हुए भी रूस ने 1964 में एंटी सैटेलाइट मिसाइल लौंच की. कारण साफ था कि अमेरिका वैश्विक शक्ति था और खुद को वर्चस्व में बनाए रखने के लिए रूस के लिए ऐसा करना जरूरी था.

‘‘भारत विकासशील राष्ट्र है व चीन और पाकिस्तान जैसे राष्ट्रों से घिरा हुआ है. जहां पाकिस्तान ने 1948 में भारत से उस का पीओके छीन लिया व चीन द्वारा 1962 में अक्साई चिन छीन लिया गया, वहां भारत का यह कदम उठाना जरूरी था.

‘‘यदि सैनिक शक्ति को बढ़ाने की जरूरत देखें तो एक कारण तो लगातार बढ़ते विश्व युद्ध का खतरा भी है. देशों की एकदूसरे से आगे निकलने की होड़ और धौंस जमाने की प्रवृत्ति ही है जो इन हथियारों के अंधाधुंध निर्माण को बढ़ा रही है. जब तक राष्ट्रों के अहंकार पर रोक नहीं लगेगी तब तक ये मिसाइलें बननी नहीं रुकेंगी वरना एंटी सैटेलाइट ही नहीं, इस से खतरनाक मिसाइलें भी बनेंगी और कोई उन्हें नहीं रोक सकेगा. लाख कहते रहिए, शांति का मार्ग अपनाओ, शांति का मार्ग अपनाओ, लेकिन क्या दुनिया ने अपना लिया?’’

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सरकार और शक्ति

डीआरडीओ द्वारा मिशन शक्ति को अंजाम दिया गया. परंतु इस की घोषणा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा की गई. पुलवामा का बदला वायुसेना ने लिया लेकिन वाहवाही ली सरकार ने. मुद्दा यह नहीं है कि घोषणा सरकार क्यों कर रही है, बल्कि यह है कि आखिर चुनाव से एक महीना पहले, चुनाव के नियमों के विरुद्ध जा कर प्रधानमंत्री ने खुद यह घोषणा करने की क्यों सोची? यदि डीआरडीओ ने मिसाइल बना ली थी तो घोषणा तो वह खुद भी कर सकता था और शायद फिर इतना बवाल भी न होता. लेकिन नहीं, सरकार ने चुनाव आयोग के नियमों का उल्लंघन करना अधिक उचित समझा. खैर, इतने सस्पैंस के साथ की गई घोषणा में एंटरटेनमैंट तो था ही.

पिछले वर्ष सितंबर में सौर ऊर्जा को बढ़ाने के लिए संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण अवार्ड से नवाजे गए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज पर्यावरण के लिए बड़ा खतरा पैदा कर चुके हैं. नासा के अनुसार, ए-सैट ने भारतीय उपग्रह के 400 टुकड़े किए हैं जो पर्यावरण के साथसाथ इंटरनैशनल स्पेस स्टेशन के लिए बड़ा खतरा हैं.

सरकार द्वारा कहा तो यह जा रहा है कि एक महीने पहले मिसाइल परीक्षण का सब से बड़ा कारण वातावरण का अनुकूल होना था और दूसरे खतरों से बचाव के लिए उपग्रह को पृथ्वी की निचली कक्षा अर्थात लो अर्थ औरबिट में गिराया गया है, जिस के चलते टुकड़े कुछ हफ्तों में मलबे के रूप में वापस पृथ्वी पर आ गिरेंगे, परंतु 2007 में किए चीन के ए-सैट परीक्षण में उपग्रह के टुकड़े व मलबा अब भी अंतरिक्ष में हैं. मिशन शक्ति से फैला उपग्रह का मलबा स्पेस स्टेशनों के लिए खतरे को 44 फीसदी बढ़ा चुका है.

दरअसल, इंटरनैशनल स्पेस स्टेशन रहने योग्य उपग्रह है जो अमेरिका, कनाडा, रूस और जापान की अंतरिक्ष एजेंसियों का संयुक्त प्रोजैक्ट है. अब तक इस में 18 देशों के 36 अंतरिक्ष यात्री जा चुके हैं. नासा के प्रशासक जिम ब्राइडेंस्टाइन का कहना है, ‘‘भविष्य के अंतरिक्ष अभियानों के लिहाज से इस तरह की गतिविधि अनुकूल नहीं है और यह स्पेस स्टेशन के लिए और अंतरिक्षयान व अंतरिक्षयात्रियों के लिए खतरा पैदा कर रही है.’’ नासा ने भी इस मिशन को भयावय कहा है.

प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में बड़े गर्व से यह कहा कि भारत अब अंतरिक्ष में भी तैनात हो चुका है. मिशन शक्ति के विषय में यह भी कहा गया कि यह घुसपैठी देशों व युद्ध की स्थिति में दुश्मन देशों को असहाय करने के लिए उन की सैटेलाइट्स को मार गिराएगी. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के सैटेलाइट कम्युनिकेशन इंजीनियर एन कल्याण रमन का कहना है, ‘‘यदि भारत के मिसाइल बनाने के पीछे का यह कारण है तो पूरी तरह से निरर्थक है. अंतरिक्ष में ज्यादातर देशों की सैटेलाइट हाई औरबिट में स्थित हैं जहां भारतीय एंटी सैटेलाइट मिसाइल की पहुंच संभव नहीं है.’’

यदि भारत किसी सैटेलाइट को इतने हाई औरबिट पर नष्ट करेगा भी, तो यह विश्व के लिए बहुत बड़ा खतरा साबित होगा. अब देखना यह है कि अपनी सैटेलाइट्स को खतरे में पा कर विभिन्न देश किस तरह इस एंटी सैटेलाइट मिसाइल का निर्माण करते हैं और विश्व परमाणु खतरे से भयानक नए खतरे की चपेट में आता है.

आंतरिक ढांचे की सुध नहीं

बालाकोट अटैक और मिशन शक्ति जैसे कार्य राष्ट्र की सुरक्षा व सजगता को दर्शाते हैं परंतु यह बात भी नहीं झुठलाई जा सकती कि देश की भीतरी संरचना चरमरा रही है. स्वच्छता, बेरोजगारी, गरीबी, आर्थिक और सामाजिक विकास, भुखमरी और जाने कितने ही ऐसे मुद्दे हैं जिन पर सरकार का ध्यान जाने की जरूरत है और उस से भी ज्यादा जरूरी है उन पर असल में कुछ सुधार करने की.

भारत जहां दुश्मन देश के आतंकियों को मार गिराने में सफल रहा वहां उस के खुद के देशवासी नक्सलियों से जूझ रहे हैं. छत्तीसगढ़ का बस्तर जिला माओवादियों के आतंक से जूझ रहा है. सैनिक सुरक्षा से परिपूर्ण यह इलाका मारधाड़ का केंद्र बना हुआ है. लोग घर से बाहर निकलने में डरते हैं. सरकारी कर्मचारी यदि यहां काम के लिए जाएं तो उन से यह पूछा जाता है कि यहां आने से डर नहीं लगता?

प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर इस जिले के लोगों का जीवन खुशहाल नहीं है. एटीएम गांव से दूर है, बैंक अधिकारियों की मनमानी से लोग हताश हैं, सिलैंडर के लिए 800 रुपए भरने के लिए उतनी आमदनी नहीं है, युवाओं के लिए रोजगार नहीं हैं. इन सब से बढ़ कर वहां के रहवासियों को नक्सलियों से जान का खतरा बना हुआ है. बस्तरवासियों की देश की सरकार से केवल एक ही गुहार है कि एक स्ट्राइक वह नक्सलियों के खिलाफ भी कर दें.

वादे खोखले साबित हुए

सरकार ने रोजगार के बड़ेबड़े वादे किए थे और देश को बेरोजगारी से निकालने की बातें की थीं जबकि 2014 में बेरोजगारी 3.41 फीसदी थी जोकि वर्र्ष 2018 में बढ़ कर 6.1 हो गई.

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आंकड़े स्पष्ट करते हैं कि बेरोजगारी के क्षेत्र में सरकार का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा.

पिछले कुछ वर्षों में अप्रत्यक्ष रोजगार के दावे किए गए परंतु प्रत्यक्ष रोजगार देखने को नहीं मिले, जिस का अनुमान 3 करोड़ से ज्यादा बेरोजगारों की गिनती से लगाया जा सकता है. सरकार ने तो बेरोजगारी को ले कर देश के युवाओं की डिगरियों का यह कह कर मजाक भी उड़ाया था कि पकौड़े और चाय बेचना भी रोजगार है.

स्वच्छता और सफाई पर भी सरकार ने विशेष ध्यान देने की बात कही थी. साथ ही, उसे चुनावी एजेंडा के रूप में इस्तेमाल भी किया था, लेकिन सड़क किनारे पड़े कूड़े के ढेर सरकार के इस अभियान की हंसी उड़ाते नजर आते हैं. सार्वजनिक शौचालयों की सुविधा नहीं है, जहां है वहां पानी नदारद है. आर्थिक विकास के मुंह पर तो जीएसटी और नोटबंदी पहले ही हंस चुके हैं.

सार यह है कि वैश्विक स्तर पर अपनी ताकत का डंका बजाने में कोई बुराई नहीं है, लेकिन सरकार देश के भीतरी ढांचे को भी देख ले, तो अच्छा होगा.

जिस की लाठी उस की भैंस

जमीनों के मामलों में आज भी गांवों में किसानों के बीच लाठीबंदूक की जरूरत पड़ती है, जबकि अब तो हर थोड़ी दूर पर थाना है, कुछ मील पर अदालत है. यह बात घरघर में बिठा दी गई है कि जिस के हाथ में लाठी उस की भैंस. असल में मारपीट की धमकियों से देशभर में जातिवाद चलाया जाता है. गांव के कुछ लठैतों के सहारे ऊंची जाति के ब्राह्मण, राजपूत और वैश्य गांवों के दलितों और पिछड़ों को बांधे रखते हैं. अब जब लाठी और बंदूक धर्म की रक्षा के लिए दी जाएगी और उस से बेहद एकतरफा जातिवाद लादा जाएगा, तो जमीनों के मामलों में उसे इस्तेमाल क्यों नहीं किया जाएगा.

अब झारखंड का ही मामला लें. 1985 में एक दोपहर को 4 लोगों ने मिल कर खेत में काम कर रहे कुछ किसानों पर हमला कर दिया था. जाहिर है, मुकदमा चलना था. सैशन कोर्ट ने उन चारों को बंद कर दिया. लंबी तारीखों के बाद 2001 में जिला अदालत ने उन्हें आजन्म कारावास की सजा सुनाई.

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इतने साल जेल में रहने के बाद उन चारों को अब छूटने की लगी. हाथपैर मारे जाने लगे. हाईकोर्ट में गए कि कहीं गवाह की गवाही में कोई लोच ढूंढ़ा जा सके. हाईकोर्ट ने नहीं सुनी. 2009 में उस ने फैसला दिया. अब चारों सुप्रीम कोर्ट पहुंचे हैं. क्यों भई, जब लाठीबंदूक से ही हर बात तय होनी है तो अदालतों का क्या काम? जैसे भगवा भीड़ें या खाप पंचायतें अपनी धौंस चला कर हाथोंहाथ अपने मतलब का फैसला कर लेती हैं, वैसे ही लाठीबंदूक से किए गए फैसले को क्यों नहीं मान लिया गया और क्यों रिश्तेदारों को हाईकोर्टों और सुप्रीम कोर्ट दौड़ाया गया, वह भी 34 साल तक?

लाठी और बंदूक से नरेंद्र मोदी चुनाव जीत लें, पर राज नहीं कर सकते. पुलवामा में बंदूकें चलाई गईं तो क्या बालाकोट पर बदले की उड़ानों के बाद कश्मीर में आतंकवाद अंतर्ध्यान हो गया? राम ने रावण को मारा तो क्या उस के बाद दस्यु खत्म हो गए? पुराणों के हिसाब से तो हिरण्यकश्यप और बलि भी दस्यु थे, अब वे विदेशी थे या देशी ही यह तो पंडों को पता होगा, पर एक को मारने से कोई हल तो नहीं निकलता. अमेरिका 30 साल से अफगानिस्तान में बंदूकों का इस्तेमाल कर रहा है, पर कोई जीत नहीं दिख रही.

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बंदूकों से राज किया जाता है पर यह राज हमेशा रेत के महल का होता है. असली राज तब होता है जब आप लोगों के लिए कुछ करो. मुगलों ने किले, सड़कें, नहरें, बाग बनवाए. ब्रिटिशों ने रेलों, बिजली, बसों, शहरों को बनाया तो राज कर पाए, बंदूकों की चलती तो 1947 में ब्रिटिशों को छोड़ कर नहीं जाना पड़ता. जहां भी आजादी मिली है, लाठीबंदूक से नहीं, जिद से मिली है. जमीन के मामलों में ‘देख लूंगा’, ‘काट दूंगा’ जैसी बातें करना बंद करना होगा. जाति के नाम पर लाठीबंदूक काम कर रही है, पर उस के साथ भजनपूजन का लालच भी दिया जा रहा है, भगवान से बिना काम करे बहुतकुछ दिलाने का सपना दिखाया जा रहा है.

झारखंड के मदन मोहन महतो व उन के 3 साथियों को इस हत्या से क्या जमीन मिली होगी और अगर मिली भी होगी तो क्या जेलों में उन्होंने उस का मजा लूटा होगा?

संतरा खाने से आंखों को होंगे ये फायदे

अगर आप अपनी उम्र के साथ अपनी आंखों को भी स्वस्थ रखना चाहते हैं तो हर रोज एक संतरे का सेवन करें. ये आपकी आंखों को स्वस्थ रखनें में काफी मददगार हो सकता है.

ऐसा एक शोध आया है. इससे पता चलता है कि आंख में मैकुलर क्षय उम्र से जुड़ी हुई एक स्थिति है,  जिससे दृष्टि क्षेत्र के केंद्र में दिखाई देने में समस्या होती है. इस शोध के नतीजे बताते हैं कि जिन लोगों ने हर रोज कम से कम एक बार संतरे खाए, उनमें 15 साल बाद मैकुलर क्षय के विकसित होने की संभावना 60 फीसदी कम रही.

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ऐसा ये प्रभाव इसलिए हुआ क्योंकि संतरे में मौजूद फ्लेवोनवाएड्स की वजह से हैं, जो दृष्टि हानि को रोकता है.फ्लेवोनवाएड्स प्रभावशाली एंटीऑक्सिडेंट होते हैं, जो करीब सभी फलों और सब्जियों में पाए जाते हैं. यह इम्यून सिस्टम के लिए फायदेमंद है.

आपको बता दें कि सिडनी विश्वविद्यालय की बामिनि गोपीनाथ ने कहा, “हमने पाया कि जिन लोगों ने हर रोज संतरे खाए थे, उनमें कभी संतरे नहीं खाने वालों की तुलना में मैकुलर क्षय होने का खतरा कम था.” उन्होंने बताया कि यहां तक कि हफ्ते में एक संतरा खाने से भी महत्वपूर्ण लाभ मिलता है.”

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 दही कबाब की आसान रेसिपी

दही कबाब खाने में बहुत ही टेस्टी होता हैं. इसमें दही, पनीर, प्याज, अदरक और कालीमिर्च के साथ बनाया जाता है. आप इसे हरी चटनी के साथ भी खा सकते हैं. तो चलिए जानते हैं इसकी रेसिपी.

सामग्री

दही (1/2 कप)

प्याज (2)

हरी मिर्च (4)

नमक (1/2 टी स्पून)

चीज (75 ग्राम)

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धनिए के बीज और काली मिर्च (2 टेबल स्पून)

अदरक (1 टेबल स्पून)

चिली फलेक्स (1/2 टेबल स्पून)

बेसन  (रोस्टेड 1/2 कप)

पनीर (100 ग्राम)

तेल (तलने के लिए)

कौर्न फलोर (2 टेबल स्पून)

बनाने की वि​धि

एक मलमल का कपड़ा लें इसमें दही को डाल दें और इसे बांधकर लटका दें ताकि इसका पानी निकल जाए.

फीलिंग तैयार करने के लिए:

चीज़ को कददूकस कर लें और धनिए के बीज और कालीमिर्च को ड्राई रोस्ट कर लें, इसे पीसकर पाउडर बना लें.

कददूकस की हुई चीज, इसमें धनिया-कालीमिर्च पाउडर, हरी मिर्च, प्याज, अदरक और नमक डालकर मिक्स कर लें.

एक बाउल में हंग कर्ड लें, इसमें चिली फलेक्स और धनिया और बाकी बचा हुआ धनिया-कालीमिर्च पाउडर डालें.

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इसमें बेसन, पनीर और कौर्नफलोर डालकर इसे बाइंड कर लें.

इसे कबाब की फीलिंग में भरें और मिश्रण को कबाब की शेप दें.

इन्हें डीप फ्राई करके गर्मागर्म सर्व करें.

चेहरे पर क्यों स्क्रबिंग है जरूरी, जानें यहां

क्या आप भी खूबसूरत और आकर्षक त्वचा पाने की चाहत रखती हैं, लेकिन ऐसा हो नही पा रहा है. तो जरा ठहरिए और अपनी त्वचा को थोड़ा सा समय दीजिए. ब्यूटी एक्सपर्ट्स का मानना है कि  स्‍किन ड्राई दिखाई देती है जिसका कारण है उस पर जमी हुई डेड स्‍किन. हर हफ्ते आपको अपनी त्वचा से डेड स्‍किन हटाने के लिए स्‍क्रब करना चाहिये.

ब्यूटी एक्सपर्ट्स का कहना है कि अगर महिलाएं शहद और ब्राउन शुगर को मिला कर पेस्‍ट बना कर अपने चेहरे पर लगाकर स्‍क्रब करें तो इससे चेहरे को नमी भी प्राप्‍त होगी और डेड स्‍किन भी साफ हो जाएगी.

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उनका कहना है कि जितना हो सके उतना आपको स्‍किन पर कठोर उत्पाद लगाने से बचना चाहिये और ऐसे उत्पाद का चुनाव करना चाहिये जिसमें प्राकृतिक स्‍क्रब के तत्‍व मिले हों. स्‍किन स्‍पेशलिस्‍ट का कहना है कि मुंह धोने से पांच मिनट पहले चेहरे पर नींबू का रस लगाना चाहिये. इससे आपकी त्वचा से संबंधित कई समस्याओं से आपको छुटकारा मिल जाता है.

इसके अलावा इमली का गूदा भी बड़े काम का होता है. इमली का गूदा चेहरे पर लगा कर हल्‍के हाथों से कुछ मिनट के लिये रगड़िये और आप पाएंगी की चेहरे की डेड सेल्‍स घुल चुकी होगीं.

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इसके अलावा आपको बाजार में भी कई तरह के नेचुरल तत्‍व वाले स्‍क्रब मिलेगें जिसमें विटामिन सी आदि मिक्‍स रहेंगे. अगर आपकी स्‍किन संवेदनशील है तो ये स्‍क्रब आपके लिये ही हैं. इसे हफ्ते में एक बार लगाने से आपको काफी फर्क दिखाई देगा और आपकी त्वचा धीरे धीरे निखर उठेगी.

आईपीएल 2019: मुंबई इंडियंस ने जीता खिताब

ताबड़तोड़ क्रिकेट ट्वैंटी 20 का सब से मशहूर फौर्मेट इंडियन प्रीमियर लीग टूर्नामेंट पूरे तामझाम के साथ 12 मई, 2019 को खत्म हो गया. पहले यह अंदेशा था कि चूंकि देश में लोकसभा चुनाव भी इसी बीच हो रहे थे तो कहीं इसे दूसरे देश में तो नहीं शिफ्ट करना पड़ेगा, पर ऐसा नहीं हुआ.

फाइनल मुकाबले में मुंबई इंडियंस और चेन्नई सुपर किंग्स आमनेसामने थीं. ये दोनों टीमें इससे पहले 3-3 बार आईपीएल की ट्रौफी जीत चुकी थीं. जो भी टीम यह मुकाबला जीतती वह रिकौर्ड चौथी बार विजेता बनती.

हैदराबाद के राजीव गांधी इंटरनेशनल स्टेडियम में  यह मुकाबला खेला गया. मुंबई इंडियंस के कप्तान रोहित शर्मा ने टौस जीत कर पहले बल्लेबाजी चुनी. सब उम्मीद कर रहे थे कि इस मैच को रोमांचक बनाने के लिए मुंबई इंडियंस की टीम एक बड़ा स्कोर बनाएगी जिस से चेन्नई सुपर किंग्स पर दबाव बनाया जा सके.

मामला जम नहीं पाया

चूंकि इस पूरे आईपीएल में मुंबई इंडियंस के कप्तान रोहित शर्मा ज्यादा कमाल नहीं दिखा पाए थे, इसलिए उनके चाहने वालों को उम्मीद थी कि वे फाइनल में बढ़िया बल्लेबाजी करेंगे. मुंबई के ओपनर बल्लेबाज क्विंटन डिकौक ने अपने पार्टनर रोहित शर्मा के साथ मिल कर टीम को तेज शुरुआत दिलाई. दोनों के बीच पहले विकेट के लिए 45 रन की अच्छी पार्टनरशिप रही लेकिन चौथे ओवर की 5वीं गेंद पर तेज गेंदबाज शार्दुल ठाकुर ने क्विंटन डिकौक का विकेट ले लिया. क्विंटन डिकौक ने 17 गेंदों पर 29 रन बनाए थे जिसमें 4 छक्के शामिल थे.

इस के बाद रोहित शर्मा, जो अच्छी लय में दिख रहे थे, को तेज गेंदबाज  दीपक चाहर ने आउट कर दिया. इन दोनों बल्लेबाजों को विकेट के पीछे महेंद्र सिंह धौनी ने कैच किया था. रोहित शर्मा ने 14 गेंदों पर 15 रन बनाए थे. जल्दी ही गेंदबाज इमरान ताहिर ने सूर्यकुमार यादव को आउट कर के चेन्नई सुपर किंग्स को तीसरी कामयाबी दिला दी. उन्होंने 17 गेंदों पर 15 रन बनाए. थे.

इस के बाद क्रुणाल पांड्या मैदान पर आए, पर वे भी 7 गेंदों पर 7 रन बना कर शार्दुल ठाकुर का दूसरा शिकार बने. तब तक मुंबई इंडियंस के 12.3 ओवरों में 89 रन बन चुके थे. फिर 14वें ओवर में इमरान ताहिर ने  ईशान किशन को 23 रन पर सुरेश रैना के हाथों कैच करवा दिया. उस के बाद गेंदबाज दीपक चाहर ने हार्दिक पांड्या को अपना शिकार बनाया. तब तक मुंबई इंडियंस के 18.2 ओवर में 6 विकेट पर 140 रन बन चुके थे. चूंकि दूसरे छोर पर कायरन पोलार्ड बल्लेबाजी कर रहे थे तो लग रहा था कि अगली बची गेंदों पर वे कुछ अच्छे हिट्स लगा कर स्कोर को 160 तक पहुंचा देंगे.

पर ऐसा हो न सका. मुंबई इंडियंस ने राहुल चाहर और मिचेल मैक्लेनघन के रूप में 2 विकेट और गंवा दिए. इस तरह उस ने 20  ओवर में 8 विकेट पर 148 रन बनाए. कायरन पोलार्ड ने 25  गेंदों पर नाबाद 41 रन बनाए. चेन्नई सुपर किंग्स की ओर से दीपक चाहर ने 3, इमरान ताहिर और शार्दुल ठाकुर ने 2-2 विकेट चटकाए.

फाइनल मुकाबले में इतने रन कम ही बताए जा रहे थे, क्योंकि चेन्नई सुपर किंग्स की बल्लेबाजी इस पूरे सीजन में उम्दा रही थी और उस के कप्तान महेंद्र सिंह धौनी भी पूरी लय में दिख रहे थे.

हाथ को आया, मुंह लगा

उम्मीद के मुताबिक चेन्नई सुपर किंग्स के ओपनर बल्लेबाजों फाफ डुप्लेसिस और शेन वाटसन ने अच्छी शुरुआत दिलाई. आउट होने से पहले फाफ डुप्लेसिस ने महज 13 गेंदों में 26 रन बनाए थे.

चेन्नई सुपर किंग्स को 9वें ओवर में दूसरा झटका लगा था. राहुल चाहर की एक शानदार गेंद बल्लेबाज सुरेश रैना के पैर पर लगी थी और अंपायर ने उन्हें पगबाधा आउट करार दिया, लेकिन सुरेश रैना ने रीव्यू ले लिया. तीसरे अंपायर ने भी फील्ड अंपायर के फैसले पर मोहर लगा दी और 8 रन बना कर रैना आउट हो कर पवेलियन लौट गए. चौथे नंबर पर बल्लेबाजी करने आए अंबाती रायुडू ने काफी खराब बल्लेबाजी की और वे 4 गेंदों पर एक रन बना कर आउट हो गए.

उस के बाद बल्लेबाजी करने उतरे चेन्नई सुपर किंग्स के कप्तान महेंद्र सिंह धौनी सिर्फ 2 रन बना कर रन आउट हो गए. यह एक ऐसा फैसला था जिस पर थर्ड अंपायर भी शक के दायरे में आ गए थे.

इस के बाद मुंबई इंडियंस के तेज गेंदबाज जसप्रीत बुमराह ने मौके पर ड्वेन ब्रावो को आउट कर चेन्नई सुपर किंग्स को 5वां झटका दे दिया. उन्होंने 15 गेंदों पर 15 रन बनाए.

इस बीच ओपनर बल्लेबाज शेन वाटसन ने 59 गेंदों पर 80 रन की शानदार पारी खेली, पर मौके पर उन की पारी का भी अंत हो गया. वे रन आउट हुए.

मैच का आखिरी ओवर लसिथ मलिंगा करा रहे थे. आखिरी की २ गेंदों पर जीतने के लिए 4 रन बनाने थे. नए बल्लेबाज शार्दुल ठाकुर ने पहली गेंद पर 2 रन लिए. लेकिन आखिरी गेंद पर लसिथ मलिंगा ने ऐसी यॉर्कर गेंद फेंकी कि वे समझ नहीं पाए और पगबाधा आउट हो गए. इस तरह मुंबई इंडियंस ने यह दिल धड़काने वाला मुकाबला एक रन से जीत लिया.

हो गए मालामाल

  • मुंबई इंडियंस को विजेता ट्रौफी के साथ 20 करोड़ रुपए की इनामी राशि मिली.
  • रनरअप टीम चेन्नई सुपर किंग्स को साढ़े 12 करोड़ रुपए का इनाम दिया गया.
  • इस के अलावा एलिमिनेटर जीतने वाली और क्वालीफायर 2 हारने वाली दिल्ली कैपिटल्स को तीसरे नंबर पर रहने के लिए साढ़े 10 करोड़ रुपए की इनामी राशी मिली.
  • एलिमिनेटर मैच हार कर चौथे पायदान पर रहने वाली सनराइजर्स हैदराबाद को भी साढ़े 8 करोड़ रुपए इनाम के रूप में मिले.

इन शानदार खिलाड़ियों ने जीते ये अवार्ड्स…

  • फाइनल मुकाबले में 14 रन दे कर 2 विकेट चटकाने वाले जसप्रीत बुमराह को ‘प्लेयर औफ द मैच’ के खिताब से नवाजा गया.
  • कोलकाता नाइट राइडर्स के आंद्रे रसल को 510 रन बनाने और 11 विकेट लेने पर सब से ‘वैल्यूएबल प्लेयर’ का अवौर्ड दिया गया.
  • सनराइजर्स हैदराबाद की टीम को बिना कोई विवाद किए पूरा टूर्नामेंट खेलने के लिए ‘फेयरप्ले अवौर्ड’ मिला.
  • चेन्नई सुपर किंग्स के इमरान ताहिर ने टूर्नामेंट में 26 विकेट लिए इसलिए उन्हें ‘पर्पल कैप’ मिली.
  • सनराइजर्स हैदराबाद के डेविड वौर्नर को ‘ओरेंज कैप’ दी गई. उन्होंने इस टूर्नामेंट में सब से ज्यादा 692 रन बनाए.
  • इस सीजन की सब से तेज हाफ सेंचुरी मुंबई इंडियंस के हार्दिक पांड्या ने 17 गेंदों में बनाई.
  • मुंबई इंडियंस के कायरन पोलार्ड को ‘परफेक्ट कैच औफ द सीजन’ मिला.
  • कोलकाता नाइट राइडर्स के आंद्रे रसल को ‘सुपर स्ट्राइकर औफ द सीजन’ का अवार्ड दिया गया. उनकी स्ट्राइक रेट 204.81 थी.
  • किंग्स इलेवन पंजाब के केएल राहुल को ‘स्टाइलिश प्लेयर औफ द सीजन’ घोषित किया गया.
  • ‘इमर्जिंग प्लेयर अवौर्ड’ कोलकाता नाईट राइडर्स के शुभमन गिल की झोली में गया.
  • मुंबई इंडियंस के राहुल चाहर को ‘गेम चेंजर औफ द सीजन’ का ख़िताब मिला.

दो खेमे में बंट गए भोजपुरी गायक

आजमगढ़ लोकसभा चुनाव को लेकर भोजपुरी के गायक दो अलग अलग खेमे में बंट गये हैं. उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल इलाके और बिहार में भोजपुरी गाने और फिल्में जनमानस का हिस्सा हो गई हैं. ज्यादातर भोजपुरी के गायक ही भोजपुरी फिल्मों के हीरो भी बनते हैं और सफल भी होते हैं. भोजपुरी फिल्मों में जातीय आधार पर एक खेमेबंदी रही है. पहले यहां पर सवर्ण विरादरी का प्रभाव था पर दिनेश लाल यादव ‘निरहुआ’ के आने के बाद पिछड़ी जातियों के कलाकारों ने भोजपुरी फिल्मों पर अपना प्रभाव जमाना शुरू किया उसके बाद एक के बाद एक कलाकार और गायक यहां पर पिछडी जातियों के उभरे. इनमें दिनेश लाल यादव ‘निरहुआ’ के भाई विजय लाल यादव के अलावा खेसारी लाल यादव, प्रवेश लाल यादव जैसे कलाकार प्रमुख हैं.

भोजपुरी कलाकारों में पिछड़ी जातियों की यह बिरादरी उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बिहार में राष्ट्रीय जनता दल यानि राजद की समर्थक रही हैं. बिहार में लालू प्रसाद यादव ने हमेशा ही भोजपुरी कलाकारों का साथ दिया. उत्तर प्रदेश में भी समाजवादी पार्टी ने भोजपुरी कलाकारों का साथ दिया. विजय लाल यादव खुलकर समाजवादी पार्टी के साथ थे. उनके भाई दिनेश लाल यादव ‘निरहुआ’ भी समाजवादी पार्टी का चुनाव प्रचार करते थे. समाजवादी पार्टी के कार्यकाल में ही दिनेश लाल यादव ‘निरहुआ’ को यश भारती सम्मान मिला था.

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भोजपुरी कलाकार मनोज तिवारी ने भी समाजवादी पार्टी से ही अपना राजनीतिक सफर शुरू किया. बाद में वह भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुये. उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल की आजमगढ़ लोकसभा सीट पर भाजपा ने दिनेश लाल यादव ‘निरहुआ’ का चुनाव मैदान में उतारा तो सबसे बड़ी मुश्किल यह हो गई कि उनकी अपनी ही बिरादरी उनके खिलाफ हो गई हैं. भाई विजय लाल यादव तो खुले मंच से दिनेश लाल यादव ‘निरहुआ’ की आलोचना कर ही रहे हैं. दूसरे कलाकारों में कुछ दबी जुबान से तो कुछ खुल कर दिनेश लाल यादव ‘निरहुआ’  का विरोध कर रहे हैं.

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भोजपुरी गायकों में आपसी खेमेबंदी हो गई है. छोटू छलिया और उजाला यादव जैसे कलाकार तो खुल कर अपने गानों के जरीये दिनेश लाल यादव ‘निरहुआ’ और भाजपा की आलोचना कर रहे हैं. कुछ लोगों ने दिनेश लाल यादव ‘निरहुआ’ के समर्थन में भी गाने तैयार किये हैं पर भोजपुरी फिल्म जगत से जिस समर्थन की दिनेश लाल यादव ‘निरहुआ’ को उम्मीद थी वह नहीं मिल रहा है. दिनेश लाल यादव ‘निरहुआ’ की टीम के रूप में ही काम करने वाले आम्रपाली दुबे और पवन सिंह जैसे लोग चुनावी प्रचार में दिखे पर बाकी कलाकार दिनेश लाल यादव ‘निरहुआ’ के पक्ष में प्रचार करने नहीं आये. इसकी एक वजह भोजपुरी फिल्मों की जातीय और कैरियर की खेमेबंदी में दिनेश लाल यादव ‘निरहुआ’ अलग थलग पड़ गये हैं. ऐसे में वह समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव को चुनाव में हरा पायेगे यह बात आजमगढ के लोगों के गले नहीं उतर रही है.

‘टाइम’ मैगजीन ने मोदी को बताया : इंडियाज डिवाइडर-इन-चीफ

अमेरिका की प्रतिष्ठित ‘टाइम’ मैगजीन, जिसने वर्ष 2014 में भारत के प्रधानमंत्री पद पर काबिज हुए नरेन्द्र दामोदरदास मोदी को एक उभरते हुए ‘वर्ल्ड-लीडर’ के तौर पर पेश किया था और पत्रिका के कवर पर उनकी फोटो के साथ लिखा था – ‘मोदी मीन्स बिजनेस’, वही ‘टाइम’ मैगजीन अगर पांच साल बाद मोदी को ‘इंडियाज डिवाइडर-इन-चीफ’ बता रही है, तो यह मोदी और उनकी पार्टी के लिए ही नहीं, बल्कि भारत के लिए भी बेहद लज्जाजनक बात है. बकौल पत्रिका, मोदी की छवि जो वर्ष 2014 में ‘विकास पुरुष’ के रूप में निर्मित हो रही थी, आज ‘लोगों को बांटने और लड़ाने वाले एक चतुर राजनेता’ की बन चुकी है. पांच साल दुनियाभर के देशों का दौरा करके भारत को दुनिया के मंचों पर रिप्रेजेंट करने वाले मोदी की इस छवि ने नि:संदेह अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि को धूमिल किया है.

भारत में ‘डिवाइड एंड रूल’ की पौलिसी अपना कर हुकूमत करने की तोहमत अंग्रेजों पर लगी थी और आजादी के सात दशक बाद वह ‘काला ताज’ आज मोदी के सिर पर है. ‘टाइम’ ने मोदी के बीते पांच साल के कार्यकाल का पूरा कच्चा-चिट्ठा उकेरते हुए उन्हें स्पष्ट तौर पर भारत को बांटने वाला प्रमुख व्यक्ति बताया है. लोकसभा चुनाव के बीच पत्रिका ने बेहद हताशा से भरा यह सवाल भी उठाया है कि – क्या दुनिया का सबसे बड़ा लोकतन्त्र मोदी सरकार को फिर पांच साल के लिए भुगतेगा?

गौरतलब है कि अन्तरराष्ट्रीय मैगजीन ‘टाइम’ ने वर्ष 2012 में भी नरेन्द्र मोदी को एक विवादास्पद, अति महत्वाकांक्षी और एक चतुर राजनेता बताया था, जो अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है, मगर 2014 में मोदी के विकास के वादों और भ्रष्टाचार को जड़ से खत्म करने के दावों ने जनता में एक उम्मीद की अलख जगायी और मोदी की छवि को बदला. वर्ष 2014 में मोदी विकास पुरुष के रूप में उभरे, तो साल 2014-15 में ‘टाइम’ ने भी मोदी को दुनिया के 100 प्रभावशाली व्यक्तियों की सूची में शामिल किया, मगर बीते पांच साल में सारा पानी उतर गया. सारे मुखौटे उतर गये और मोदी का असली चेहरा एक बार फिर दुनिया के सामने है.

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पत्रिका लिखती है कि 2014 में डा. मनमोहन सिंह जैसे ‘खामोश प्रधानमंत्री’ के सामने जब एक ‘दहाड़ता प्रधानमंत्री’आया, तो लोगों का उत्साह चरम पर पहुंच गया. यूपीए सरकार में हुए भ्रष्टाचार के कारण लोगों के बीच उस वक्त जो गुस्सा था, नरेंद्र मोदी ने उस गुस्से को आर्थिक वायदे में बदला. उन्होंने युवाओं को नौकरी देने और देश के विकास की बातें कीं, लेकिन अब ये विश्वास करना मुश्किल लगता है कि 2014 का चुनाव उम्मीदों का चुनाव था. मोदी द्वारा आर्थिक चमत्कार लाने के तमाम वादे फेल हो गये. लोगों को एक बेहतर भारत की उम्मीद थी, लेकिन मोदी के कार्यकाल में अविश्वास का दौर शुरू हुआ. मोदी ने मासूम और समस्याओं से घिरी जनता की समस्याओं को दूर करने के बजाये उनके बीच धार्मिक उन्माद पैदा करके उनके दिलों में एकदूसरे के प्रति जहर भर दिया. उन्होंने देश भर में धार्मिक राष्ट्रवाद का तनावपूर्ण माहौल पैदा कर दिया. बीते पांच सालों में हिन्दू-मुसलमानों के बीच तेजी से सौहार्द कम हुआ है. पत्रिका लिखती है कि मोदी ने कभी भी शान्ति और एकता की बात नहीं की. उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम तनाव को बढ़ावा दिया है और पांच साल में भारत ऐसी अत्यधिक ज्वलनशील जगह बन गया है, जहां कुछ लोग हाथ में मशाल लेकर चुनाव प्रचार कर रहे हैं. पत्रिका ने 2002 के गुजरात दंगे को रेखांकित करते हुए नरेन्द्र मोदी पर ‘दंगाइयों के लिए दोस्त’ साबित होने की बात कहते हुए देश में दंगों और धार्मिक उन्माद के वक्त उनकी ‘चुप्पी साधने’ पर भी सवाल उठाया है. ‘टाइम’ के इस लेख में 1984 के सिख दंगों और 2002 के गुजरात दंगों का हवाला दिया गया है. लेख में कहा गया है कि हालांकि कांग्रेस नेतृत्व भी 1984 के दंगों को लेकर आरोप मुक्त नहीं है, लेकिन फिर भी उसने दंगों के दौरान उन्मादी भीड़ को खुद से अलग रखा, लेकिन नरेंद्र मोदी 2002 के दंगों के दौरान अपनी चुप्पी से ‘दंगाइयों के लिए दोस्त’ साबित हुए. पत्रिका आगे लिखती है कि बीते पांच साल में देश के प्रधानमंत्री के तौर पर मोदी के शासनकाल में देश भर में गुजरात दंगों जैसी ही हिंसा की पुनरावृत्ति हुई. ‘गौरक्षा’की आड़ में हुए मौब लीचिंग में एक धर्म विशेष का उत्पीड़न करने का आरोप लगाते हुए पत्रिका लिखती है कि भारत में गाय को लेकर मुसलमानों पर बार-बार हमले हुए और उनके कत्ल हुए. एक भी ऐसा महीना नहीं गुजरा, जब लोगों के स्मार्टफोन पर वो तस्वीरें न आयीं, जिसमें गुस्साई हिन्दू भीड़ मुस्लिम को पीट न रही हो. गाय के नाम पर सरेआम मुसलमानों को काटा गया. सबसे अहम यह कि सरकार ने इस पर कोई ठोस कदम उठाने की बजाए चुप रहना ही बेहतर समझा.

पत्रिका ने स्पष्ट तौर पर मोदी की अगुवाई वाली भाजपा को लोकतंत्र के लिए खतरा बताया है. उसने लिखा है कि भारत में मोदी की नीतियों के कारण लोगों के बीच साम्प्रदायिक खाई के साथ जातिवादी खाई तेजी से बढ़ती जा रही है. वर्ष 2017 में उत्तर प्रदेश में जब भाजपा ने विधानसभा चुनाव जीता तो भगवा पहनने वाले और नफरत फैलाने वाले एक महंत को सीएम बना दिया गया, जो सीधे तौर पर हिन्दू-मुस्लिम के बीच विभाजन की बात करता है.

पत्रिका लिखती है कि भाजपा की प्रतिद्वंद्वी पार्टी कांग्रेस चाहे कितनी ही दकियानूसी और भ्रष्ट क्यों न हो, लेकिन वह मासूम लोगों को एक-दूसरे से लड़ाती नहीं है. राहुल गांधी चाहे वंशानुगत राजनीति के नुमाइंदे हों, लेकिन उन्होंने कांग्रेस को आधुनिक बनाया है. गौरतलब है कि राहुल गांधी और कांग्रेस के समर्थन में यह ब्रिटिश पत्रिका पहली बार नहीं लिख रही है. पिछले लोकसभा चुनाव में भी इसने नरेन्द्र मोदी की तुलना में राहुल गांधी को ज्यादा समर्थ और धर्मनिरपेक्षता के पैमाने पर खरा बताया था.
‘टाइम’ देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के धर्मनिरपेक्षता के विचार और मोदी के शासनकाल में प्रचलित सामाजिक तनाव की तुलना भी करती है. मैगजीन लिखती है कि 1947 में ब्रिटिश इंडिया दो हिस्सों में बंटा और पाकिस्तान का जन्म हुआ, लेकिन कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से पढ़े भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने फैसला किया कि भारत सिर्फ हिन्दुओं का घर नहीं होगा, बल्कि हर धर्म के लोगों के लिए यहां जगह होगी. नेहरू की विचारधारा सेक्युलर थी, जहां सभी धर्मों की समान रूप से इज्जत थी. भारतीय मुसलमानों को शरिया पर आधारित फैमिली लौ मानने का अधिकार दिया गया, जिसमें तलाक देने का उनका तरीका तीन बार तलाक बोलकर तलाक लेना भी शामिल था, जिसे नरेन्द्र मोदी ने 2018 में एक आदेश जारी करके कानूनी अपराध करार दे दिया. किसी धर्म-विशेष के पर्सनल लॉ में बदलाव का यह तरीका बेहद गलत और दुर्भावना से भरा हुआ था. तीन तलाक को खत्म करके उन्होंने मुस्लिम महिलाओं का मसीहा बनने की कोशिश तो की, लेकिन तस्वीर का दूसरा पहलू यह भी है कि महिलाओं की सुरक्षा के मामले में भारत आज सबसे निचले पायदानों में से एक पर है. ‘टाइम’ अपने लेख में मोदी-शासन की आलोचना करते हुए लिखती है कि आजाद भारत की धर्मनिरपेक्षता, उदारवाद और स्वतन्त्र प्रेस जैसी उपलब्धियां ऐसा प्रतीत होता है जैसे वे किसी षड्यन्त्र का हिस्सा हों.
मोदी के पांच साल के ‘काले-शासन’ को देख कर पत्रिका मोदी पर आक्रामक है. वह पांच साल में ‘वर्ल्ड-लीडर’ से ‘नेशन डिवाइडिंग कैटलिस्ट’ के रूप में चर्चित हो चुके मोदी पर आरोप लगाती है कि उन्होंने भाजपा की हिन्दुत्व की राजनीति के कारण वोटरों के धु्रवीकरण के लिए नितान्त गलत और निन्दनीय तरीके इस्तेमाल किये हैं. नरेंद्र मोदी ने हिन्दू और मुसलमानों के बीच भाईचारे की भावना को बढ़ाने के लिए कभी कोई मंशा या इच्छा नहीं जाहिर की. दुनियाभर के मंचों पर आकर वह भारत की जिस कथित उदार संस्कृति की चर्चा करते थे, दरअसल उसके उलट वहां धार्मिक राष्ट्रवाद, मुसलमानों के खिलाफ भावनाएं और जातिगत कट्टरता ही पनप रही थी.

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मैगजीन का मानना है कि 2014 में लोगों को आर्थिक सुधार के बड़े-बड़े सपने दिखाने वाले मोदी अब इस बारे में बात भी नहीं करना चाहते. अब उनका सारा जोर हर नाकामी के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराकर लोगों के बीच राष्ट्रवाद की भावना का संचार करना है. अपनी नाकामियों के लिए अक्सर कांग्रेस के पुरोधाओं को निशाना बनाने वाले मोदी जनता की नब्ज को बेहतर समझते हैं. यही वजह है कि जब भी फंसा महसूस करते हैं तो खुद को गरीब का बेटा बताने से नहीं चूकते. मोदी ने हमेशा राजनीति को अपने इर्द-गिर्द घुमाने की कोशिश की है. तभी उनकी पार्टी के एक युवा नेता तेजस्वी सूर्या कहते हैं कि अगर आप मोदी के साथ नहीं हैं तो आप देश के साथ भी नहीं हैं. मोदी को लगता है कि सत्ता में बने रहने के लिए राष्ट्रवाद ही सबसे बेहतर विकल्प है. अपने ‘छद्म राष्ट्रवाद’ की आड़ में वह भारत-पाक के बीच चल रहे तनाव का फायदा लेने से भी नहीं चूकते हैं. उन्हें जोड़-तोड़ करके किसी तरह सत्ता में वापसी चाहिए और इसलिए आर्थिक विकास पर वह राष्ट्रवाद को तरजीह दे रहे हैं. मोदी ने लगभग हर क्षेत्र में अपने मन मुताबिक फैसले लिए. हिन्दुत्व के प्रबल समर्थक स्वामीनाथन गुरुमूर्ति को रिजर्व बैंक औफ इंडिया के बोर्ड में शामिल किया. उनके बारे में कोलम्बिया के अर्थशास्त्री ने कहा था – अगर वह अर्थशास्त्री हैं तो मैं भरतनाट्यम डांसर. मैगजीन का कहना है कि गुरुमूर्ति ने ही कालेधन से लड़ने के लिए नोटबंदी का सुझाव दिया था. इसकी मार से भारत आज भी नहीं उबर सका है.

मैगजीन का कहना है कि बेशक मोदी फिर से चुनाव जीतकर सरकार बना सकते हैं, लेकिन अब उनमें 2014 वाला करिश्मा नहीं है. तब वे मसीहा थे. लोगों की उम्मीदों के केन्द्र में थे. एक तरफ उन्हें हिन्दुओं का सबसे बड़ा प्रतिनिधि माना जाता था, तो दूसरी तरफ लोग उनसे साउथ कोरिया जैसे विकास की उम्मीद कर रहे थे. इससे उलट अब वे सिर्फ एक राजनीतिज्ञ हैं, जो अपने तमाम वायदों को पूरा करने में नाकाम रहा है.

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पत्रिका कहती है कि भाजपा की तुलना में कांग्रेस भारतीयों के वोट पाने की ज्यादा हकदार है. गौरतलब है कि वर्ष 2014 में भी ‘टाइम’ ने मोदी की तुलना में राहुल गांधी को ज्यादा समर्थ और धर्मनिरपेक्षता के पैमाने पर खरा बताया था, मगर उस वक्त यूपीए पर भ्रष्टाचार के कई आरोप लग चुके थे. उस वक्त मनमोहन सिंह जैसे ‘चुप्प’ प्रधानमंत्री के आगे ‘बड़बोले’ मोदी लोगों के दिलों पर छा गये थे. मगर पांच साल में मोदी का असली रूप देश ने भी देख लिया और ‘टाइम’ के जरिये दुनिया भी देख रही है. भारत में लोकसभा चुनाव के दौरान ‘टाइम’ की इस रिपोर्ट से राजनीतिक माहौल गरमाया हुआ है. कांग्रेसियों के ट्विटर अकाउंट्स, फेसबुक, वेबसाइट्स, वाट्सएप ग्रुपों पर पत्रिका का कवर ट्रेंड कर रहा है. चुनावी माहौल में एक तरफ प्रधानमंत्री देशभक्ति के नाम पर चुनावी-भाषणबाजी में जुटे हैं और दूसरी तरफ दुनिया की मशहूर पत्रिका के कवर पेज पर उन्हें भारत को बांटने वाला शख्स कहा जा रहा है, वह भी उनके ‘क्रूर’ चेहरे वाली तस्वीर के साथ !

 

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