भारत में सरकारी तंत्र और सरकार से जुड़े ब्यूरोके्रट्स अपने ही अंदाज में काम करते हैं. इनकी कार्यशैली को कोई बदल नहीं सकता. सरकारें आती जाती रहती हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद केंद्र में ‘‘भारतीय जनता पार्टी’’ के नेतृत्व में ‘एनडीए’ की सरकार बनी थी. और अब 2019 में भी पुनः वही सरकार शासन में आयी है. सरकारी काम काज में अमूल चूल परिवर्तन लाने के नाम पर केंद्र सरकार ने कई संस्थानों के अध्यक्ष, चेयरमैन व बोर्ड मेंबर अपने हिसाब से नियुक्त किए थे. मगर कहां क्या काम हुआ, उस पर नजर दौड़ाई जाए तो पता चलता है कि सब कुछ ढाक के तीन पात रहा.
बहरहाल, 2015 में केंद्र सरकार ने दूरदर्शन और ‘आल इंडिया रेडियो’ में सुधार लाने के मकसद से प्रसार भारती में कई नए लोगों की नियुक्ति की थी. प्रसार भारती के बोर्ड मेंबर की हैसियत से भजन सम्राट के रूप में मशहूर पद्मश्री अनूप जलोटा की नियुक्ति की गयी थी. अपनी नियुक्ति के छह माह बाद अनूप जलोटा ने हमें बताया था कि वह भक्ति संगीत के अलावा भारतीय संस्कृति को बढ़ावा देने वाले दो नए चैनल दूरदर्शन पर शुरू करने वाले हैं. पर आज तक ऐसा नहीं हो पाया.
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हाल ही में जब ‘‘शेमारू भक्ति स्टूडियो’’ के कार्यक्रम की शुरूआत के वक्त हमने अनूप जलोटा से सवाल किया कि ‘‘आप प्रसार भारती से जुड़े हुए थे. उस वक्त आप दूरदर्शन पर नए चैनल लेकर आने वाले थे. चैनल तो आज तक नहीं आए. कहां गड़बड़ी हो गई? इस पर अनूप जलोटा ने कहा- ‘‘अफसोस की बात है कि दूरदर्शन ही आगे नहीं बढ़ पाया. हम प्रसार भारती में बोर्ड मेंबर की हैसियत से 2 साल रहे. मैंने देखा कि वहां लालफीताशाही हावी है. जो फैसला तुरंत व फटाफट लेना चाहिए, उसे लेने में भी कई माह लगा देते हैं. प्रसार भारती में सारे फैसले जल्द लिए जाने लगे तो दूरदर्शन का भी फायदा होगा. दूरदर्शन का विस्तार होगा. कई नए चैनल शुरू होंगे. काफी कुछ हो सकता है.गुंजाइश बहुत है. पर सबसे बड़ा सवाल यह है कि फैसला कब लेगा? लेकिन मुझे लग रहा है कि अब कुछ बदलाव वहां भी हो रहे हैं. शायद इन बदलाव के चलते दूरदर्शन में जो प्रगति होगी, वह देखने लायक होगी.’’