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चीफ जस्टिस पर यौन शोषण का आरोप

भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई पर एक पूर्व कर्मचारी के यौन प्रताड़ना के आरोप को सुप्रीम कोर्ट ने पहले तो एक ही बैठक में खारिज कर दिया जिस में बैंच पर स्वयं वे खुद भी बैठे थे. यौन प्रताड़ना के आरोपों के सैकड़ों अपराधी आज बदनामी झेल रहे हैं, उन पर मीडिया ट्रायल हो रहे हैं. कुछ के मामले अदालतों में हैं तो कुछ आरोपी जेल की सलाखों के पीछे हैं. यौन प्रताड़ना पर आमतौर पर अदालतों का रुख रहा है कि शिकायतकर्ता की शिकायत ही खासा मजबूत सुबूत है, बाहरी सुबूत की जरूरत नहीं है.

यदि सुप्रीम कोर्ट के ही निर्णयों पर नजर डाली जाए तो स्पष्ट है कि शिकायतकर्ता की बात पूरी गंभीरता से सुनी जाएगी चाहे दोषी का कद कितना ही ऊंचा क्यों न हो. इस मामले में आरोप सर्वोच्च न्यायाधीश पर हैं. आरोप लगाने वाली स्वयं अपराधी रही या न रही, किसी गलती के कारण नौकरी से निकाली गई या नहीं, उस की शिकायत को तो सुनना पड़ेगा ही. यह नियम स्वयं सुप्रीम कोर्ट का है और सुप्रीम कोर्ट के कहने पर ही संसद ने सख्त कानून बनाया है.

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शिकायतकर्ता ने एक शपथपत्र में अपनी शिकायत की है और उस की प्रतियां सभी सुप्रीम कोर्ट के जजों और ‘सरिता’ की सहयोगी इंग्लिश पत्रिका ‘द कैरेवान’ को भी भेजी थीं.

‘द कैरेवान’ सहित 3 अन्य औनलाइन पोर्टलों ने इसे समाचार बता कर पोस्ट किया था और इसी कारण अवकाश के दिन सुप्रीम कोर्ट की विशेष अदालत लगी लेकिन उस में तथाकथित दोषी से कोई सफाई नहीं मांगी गई, न ही विशाखा नियमों के अंतर्गत इस पूर्व कर्मचारी की शिकायत को सुप्रीम कोर्ट की यौन प्रताड़ना संबंधी कमेटी, यदि कोई है तो, को भेजा गया.

सुप्रीम कोर्ट में अटौर्नी जनरल के उठाए सवालों के उत्तर में कहा गया कि यह सर्वोच्च अदालत पर आरोप है और किसी षड्यंत्र का हिस्सा है. पर कैसे, यह स्पष्ट नहीं किया गया है.

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यहां प्रश्न यही नहीं है कि क्या दोष वाकई सही है, बल्कि यह भी है कि क्या किसी भी औरत को अपना चरित्र दांव पर लगा कर किसी का भी चरित्रहनन करने का अधिकार है या नहीं, और यह भी कि जिस पर आरोप लगा हो वह बहुत ऊंचे पद पर हो तो क्या आरोप निरर्थक है?

सुप्रीम कोर्ट की गरिमा में सब की रुचि है पर जब सुप्रीम कोर्ट स्वयं अव्यावहारिक निर्णय देने लगेगा तो इस प्रकार की समस्याएं आएंगी ही. अदालतों के सम्मुख हर तरह के सच्चेझूठे मामले आएंगे ही और हर मामले में पूरी तरह सत्य पहचानना कठिन है. पर अगर औरतों और राजनीतिबाजों के मामलों में अदालतों के निर्णय भावनाओं व पूर्वाग्रहों पर सुनाए जाने लगे तो गरिमा पर अपनेआप ग्रहण लग जाएगा. यह मामला कुछ ऐसा ही है.

जब विवाद और खड़ा हुआ तो सुप्रीम कोर्ट ने दोबारा मामले को सुना. और अब तुरतफुरत फैसला दे दिया गया है कि आरोप निराधार है. इस फैसले से न्याय कितना हुआ, इस पर बहस होनी है, पर होगी गुपचुप.

फ्रौड की राह पर डिग्रीधारी

अक्तूबर 2018 : 24 वर्षीय गर्वित साहनी, जोकि टैक्नोलौजी जाइंट गूगल में नौकरी कर रहा था, को पुलिस ने चोरी के आरोप में गिरफ्तार किया. 11 सितंबर को हो रही मल्टीनैशनल कंपनियों के सीनियर एग्जीक्यूटिव्स की कौन्फ्रैंस में देवयानी जैन के हैंडबैग से 10 हजार रुपए चोरी हुए. जब पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज देखी तो आरोपी साहनी को गिरफ्त में लिया.

इंजीनियरिंग की डिगरी और गूगल जैसी विशालकाय कंपनी में नौकरी होने के बावजूद साहनी को यह चोरी करने की क्या जरूरत पड़ी? वजह पूछने पर साहनी ने बताया कि उस ने ये पैसे इसलिए चुराए क्योंकि वह आर्थिक तंगी से गुजर रहा था और उस के पास अपनी गर्लफ्रैंड के शौक पूरे करने व खर्च उठाने के पैसे नहीं थे.

कुछ इसी तरह की वारदातें आएदिन सामने आती रहती हैं जहां पढ़ेलिखों द्वारा छोटी और बड़ी चोरियों को अंजाम दिया जाता है. चोर जितना पढ़ालिखा होगा, उस के द्वारा किए गए अपराध भी उतनी ही निपुणता से किए जाएंगे. पढ़ेलिखे चोर ठगी में अपनी अक्ल का अच्छी तरह इस्तेमाल कर रहे हैं.

हाल ही में हुए एक सर्वे के मुताबिक, भारतीय कंपनियों में 18 फीसदी चोरी व ठगी, 14 फीसदी सप्लाई फ्रौड और 9 फीसदी डाटा की चोरी सामने आई है. ये सभी फ्रौड व चोरी पढ़ेलिखे उच्च पद पर बैठे व्यक्तियों द्वारा की गई हैं. वहीं, आम जनता को ठगने वाले मामले भी कम नहीं हैं.

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पढ़ेलिखे लोगों के चोरी करने के पीछे बहुत से कारण होते हैं. कोई कुछ न होने के कारण चोरी करता है तो कोई सबकुछ होते हुए अधिक पाने के लालच में. किसी के चोरी करने की वजह किसी व्यक्ति से घृणा व ईर्ष्या की भावना भी हो सकती है तो कोई धर्मगुरुओं की पनाह पा कर चोरी करता है. सभी को रातोंरात पैसे कमाने का सब से अच्छा रास्ता चोरी लगता है.

16 फरवरी, 2019 : सोनीपत से स्मार्ट एलईडी टीवी फ्रौड का मामला सामने आया. 3 दोस्तों ने मिल कर अलगअलग शोरूम्स से कुछ एलईडी खरीदे. पहले कुछ टीवी उन्होंने कैश में लिए और बाकी क्रैडिट कार्ड से. फरवरी 2019 तक इन तीनों ने 700 से ज्यादा टीवी खरीद रखे थे. ये पहले टीवी खरीदते थे, फिर पैसे चुकाए बिना फरार हो जाते थे औैर इन्हें दूरदूर के शोरूम्स में बेचते थे.

एक शोरूम के मालिक की शिकायत पर इन्हें हरियाणा के सोनीपत स्थित एक इमारत से 510 स्मार्ट एलईडी टीवी के साथ गिरफ्तार किया गया. दोषी लड़कों में से 2 लड़के विकास और हरेंद्र वकील व एमबीए गे्रजुएट थे. इन का साथी प्रतीक 12वीं में ही पढ़ाई छोड़ चुका था. इस पूरी धोखाधड़ी और ठगी का कारण पूछे जाने पर विकास ने बताया कि वह क्रिकेट पर सट्टा लगाने का शौकीन था, 45 लाख रुपए हार चुका था. लाखों के कर्ज में डूबने के बाद उसे पैसे चुकाने का एकमात्र रास्ता फ्रौड लगा. उस की यह मानसिक प्रवृत्ति ही है जिस के कारण वह आज जेल में चक्की पीस रहा है.

19 फरवरी, 2019 : 65 वर्षीय मौली कपूर और 43 वर्षीय अनुराधा कपूर को पुलिस ने 5 लोगों को एक ही घर बेचने के फ्रौड में दिल्ली के एनएफसी होटल से गिरफ्तार किया. दोनों मांबेटी ने मिल कर अपने 2.5 करोड़ रुपए के ग्रेटर कैलाश के घर को 5 अलगअलग व्यक्तियों को बेचा और पैसे ले कर विदेश फरार हो गई.

पूछताछ के दौरान पता चला कि अनुराधा दिल्ली के हंसराज कालेज से बीकौम ग्रेजुएट है और उस ने अपनी एमबीए लंदन की एक यूनिवर्सिटी से पूरी की है. इस पूरी ठगी का उद्देश्य और कारण पूछने पर दोनों महिलाओं ने बताया कि वे सारा पैसा ले कर अलगअलग देश घूमीं, जैसे यूके, यूएसए, आस्ट्रेलिया, श्रीलंका और सिंगापुर. इन्होंने इस ठगी से एक अच्छी खासी ऐश की जिंदगी जी है. यह मामला 2014 व 2015 का है और अब जा कर ये पुलिस की गिरफ्त में आई हैं.

पढ़ेलिखे होने के बावजूद इन व्यक्तियों ने अपने शौक और लालच के चलते आपराधिक राह चुनी. इस लालच और शौक के साथसाथ पढ़ेलिखों द्वारा चोरी करने के और भी बहुत से कारण हैं.

अहम वजह गरीबी

पूर्व न्यायाधीश मार्कंडेय काटजू के अनुसार, ‘‘अपराधों के पीछे मुख्य कारण गरीबी है. जब तक देश में गरीबी रहेगी, अपराध होते रहेंगे. भारत, अमेरिका या किसी भी देश की जेलों में आप को अधिकतर गरीब ही मिलेंगे.’’

इस कथन की सार्थकता से हम सभी अच्छी तरह परिचित हैं. घर में खाना न हो तो व्यक्ति अपनी डिगरियों को तो पका कर खाएगा नहीं. उसे बिना अच्छे पहनावे के किसी बड़ी कंपनी में नौकरी भी नहीं मिल सकती है. बेलदारी या किसी के घर काम करने के लिए एक पढ़ेलिखे का जमीर तैयार होता नहीं है. ऐसी स्थिति में व्यक्ति को चोरी ही अपनी सभी परेशानियों का हल लगने लगती है.

महत्त्वाकांक्षाओं की पूर्ति

बड़ा घर, नई गाड़ी, विदेश यात्राएं और लक्जरी लाइफस्टाइल के सपने कौन नहीं देखता. पढ़ालिखा होने के बावजूद कोई व्यक्ति कालेज से निकलते ही एक अच्छी नौकरी व भारी तनख्वाह नहीं पा सकता. 15-20 हजार रुपए मासिक की नौकरी हर व्यक्ति की महत्त्वाकांक्षाओं की पूर्ति नहीं कर सकती. रातोंरात अमीर बनने की चाह चोरी और ठगी की तरफ व्यक्ति को अग्रसर करती है. क्लाइंट को ठगना, औफिस डाटा की चोरी और नकली संस्था खड़ी कर फ्रौड, सब इन्हीं महत्त्वाकांक्षाओं के परिणाम हैं.

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महंगे शौक

ब्रैंडेड कपड़े, जूते, मेकअप और दूसरे ब्रैंडेड सामान की खरीदारी करनी है, पर बैंक बैलेंस जीरो है, तो शौक पूरे कैसे होंगे? दोस्त ने कहा, ‘इस हाईवे पर रात में बड़ीबड़ी गाडि़यां आती हैं, उन्हें किसी बहाने रुकवा कर चाकू दिखाएंगे और पैसे छीन लेंगे. ऐसी स्थिति में व्यक्ति हां कहेगा या न? एक समझदार पढ़ालिखा, जो लालच से कोसों दूर होगा, साफसाफ मना कर के चला जाएगा परंतु जिस के मन में लालच का बीज होगा, वह आपराधिक प्रवृत्ति अपनाने से चूकेगा नहीं. और वैसे भी, यह दुनिया भी तो ब्रैंड देखने वाली है. वह आया कहां से, यह कौन देखता है?’

अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए दिल्ली के बीटैक छात्र ने चोरी का एक अनोखा रास्ता अपनाया. दिल्ली पुलिस ने मौडल टाउन के निवासी वैभव खुराना को अगस्त 2018 में डिलिवरी बौय को लूटने के आरोप में गिरफ्तार किया. वैभव ने अपनी गर्लफ्रैंड को गिफ्ट देने के लिए रैडो कंपनी की 90 हजार रुपए की घड़ी एक शौपिंग वैबसाइट से और्डर की. वैभव अपनी गर्लफ्रैंड को उस के जन्मदिन पर कुछ महंगा गिफ्ट देना चाहता था. पर उस के पास उतने पैसे नहीं थे. इसलिए उस ने एक प्लान बनाया.

शौपिंग वैबसाइट से घड़ी और्डर कर वैभव ने डिलिवरी बौय को कश्मीरी गेट आ कर मिलने के लिए कहा. वहां से वैभव उसे अपने साथ सिविल लाइंस की तरफ ले गया और अपना घर कह कर किसी और के घर की घंटी बजाने के लिए कहा. डिलिवरी बौय घंटी बजाने लगा और वैभव वहां से घड़ी का पैकेट उठा कर अपनी बाइक पर सवार हो कर फरार हो गया. डिलिवरी बौय ने इस चोरी की सूचना पुलिस को दी और पुलिस ने वैभव को गिरफ्तार कर लिया.

मजबूरी के हाथों मजबूर

मजबूरियां किसी के जीवन में पूछ कर नहीं आतीं. घर में मां बीमार है और रातभर में 2 लाख रुपए का इंतजाम करना है. व्यक्ति के पास डिगरी भी है, अक्ल भी है और सूझबूझ भी, परंतु पैसे नहीं हैं. सरकारी नौकरी की तैयारी में लगा था, तो अभी नौकरी भी नहीं है. इस स्थिति में चोरी करना ही उसे सही लगता है. वह किसी औरत के गले से हार या कानों से बालियां चुराने की ताक में लग जाता है.

घटना अक्तूबर 2013 की है जब नालासोपारा से पुलिस को एक लाश मिली, जिसे देख कर सभी के रोंगटे खड़े हो गए. लाश की पहचान हुई तो पता चला व्यक्ति 25 वर्षीय संतोष साहा है.  तहकीकात ने पुलिस को संतोष के दोस्त और रूममेट्स तक पहुंचाया जो

21 वर्षीय उमेश जाधव और 18 वर्षीय लहू चौहान थे. तीनों में अच्छी दोस्ती थी, तो संतोष अकसर उन्हें पैसे दे दिया

करता था. जब उन दोनों को संतोष का एटीएम पासवर्ड पता लगा तो उन्होंने संतोष के अकाउंट से अच्छीखासी रकम निकाल ली.

इस चोरी का पता चलते ही संतोष ने उन दोनों से अपने पैसे मांगे तो उन्होंने पैसे देने से बेहतर संतोष की जान लेना समझा. वे संतोष को अपनी तय की गई जगह ले गए और उस का गला दबाते हुए उस पर लगातार वार किए तब तक जब तक कि वह मर नहीं गया. आरोपी पढ़ेलिखे थे, परंतु उन के लालच ने उन्हें अंधा कर दिया था.

 

मास्टरमाइंड प्लान

पढ़ेलिखों द्वारा चोरी के पीछे उन का खुद को मास्टरमाइंड समझना भी एक कारण है. वैसे भी फिल्में देख कर लोगों को ऐसे शातिर प्लान बनाने के नएनए तरीके तो आ ही जाते हैं. हालांकि अकसर फिल्मों के अंतिम पड़ाव में चोर पकड़ा जाता है, परंतु परिणाम की चिंता किस को है अगर सालोंसाल जिंदगी ऐश में बीते तो. वैसे भी, फिल्म का चोर तो हीरो होता है और असल जिंदगी में ‘हीरो’ कौन नहीं बनना चाहता. ‘धूम’, ‘धूम-2’ और 3, ‘आंखें’, ‘स्पैशल 26’, ‘बदमाश कंपनी’, ‘बंटी और बबली’ तथा ‘हैप्पी न्यू ईयर’ कुछ इसी तरह की फिल्में हैं.

बढ़ती बेरोजगारी

ट्रेडिंग इकोनौमिक्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 2017 के मुकाबले 2018 में 6.10 प्रतिशत बेरोजगारी बढ़ी है जो 2016 से 2017 में 3.52 प्रतिशत बढ़ी थी. तकरीबन 18.6 लाख लोग 2018 में बेरोजगार थे. बेरोजगारी पढ़ेलिखे व्यक्ति को अपराधों की तरफ ढकेल सकती है. ग्रेजुएशन या पोस्टगे्रजुएशन के बाद हर व्यक्ति को सरकारी नौकरी या एक अच्छी प्राइवेट नौकरी नहीं मिलती. और इस में तो कोई दोराय नहीं कि हर पढ़ालिखा व्यक्ति बीपीओ या कौल सैंटर की नौकरी नहीं करना चाहता. इसी परिस्थिति में फ्रौड और चोरी की घटनाएं गति पकड़ती हैं. पढ़ेलिखे होने के कारण लोग भी उन पर आसानी से भरोसा कर लेते हैं, और यह 10-12 हजार की चोरी लाखोंकरोड़ों तक पहुंचने में देर नहीं लगती.

धर्मगुरुओं का आश्रय

धर्म के नाम पर चोरी, धर्म की आड़ में चोरी और धार्मिक गुरुओं की शरण ले कर चोरी एक ही इमारत के 3 स्तंभ हैं. शहर हो या गांव, धर्मगुरुओं ने देश की आधी जनता को अपना भक्त बना रखा है. ये भक्त चाहे चोर हों या कातिल, इन बाबाओं के लिए तो सारे उस के बालक समान हैं. इन ढोंगियों का ही आश्रय है जिसे पा कर चोर और ठग अपनी करतूतों को अंजाम देते हैं और चढ़ावे के नाम पर रुपयों की गड्डियां झोलियों में डालते हैं.

2010 की बात है जब आसाराम की एक और पोलपट्टी को एक न्यूज चैनल ने स्ंिटग औपरेशन के जरिए खोला था. आसाराम के आश्रम में एक रिपोर्टर भक्त बन कर गया था. उस ने वहां उस से यह कहा कि उस की एक दोस्त, जो फ्रौड के केस में फंसी है, बाबा की शरण चाहती है.

इस पर आसाराम का जवाब था, ‘उस ने तो केवल फ्रौड किया है छोटामोटा, यहां तो कितने बड़ेबड़े अपराध कर के लोग आते हैं. यहां पुलिस से बच कर लोग छिपने आते हैं क्योंकि उन्हें पता है कि पुलिस बाबा का कुछ नहीं बिगाड़ सकती, वह बाबा को यह नहीं कह सकती कि ‘बाबा, इन्हें बाहर निकालो. अब कुछ नहीं होगा, पुलिस उस का बाल भी बांका नहीं कर सकती.’ यह तो फिर भी ठगों को शरण देने की बात थी, इन बाबाओं के खुद के अनुयायी लूट और चोरी के धंधे करते हैं और अनुयायी ही क्या, ये बाबा खुद भी तो लोगों को ठग ही रहे हैं.

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ऐसे कितने ही लोग हैं जो बड़ेबड़े अपराध करते हैं और फिर लाखों का चढ़ावा भी मंदिरों में चढ़ाते हैं. अपराध कर प्रायश्चित्त करने के ढोंग भी इन धर्मगुरुओं की देन हैं. इन भक्तों द्वारा टैक्स की चोरी से ले कर बडे़ से बड़े दूसरे फ्रौड भी किए जाते हैं. आखिर ये धर्मगुरु भी तो ऊंचीऊंची सोने की गद्दियों पर विराजमान हैं. जिन पर न कोई टैक्स लगता है, न जिन से जवाब मांगा जाता है. आखिर यह है तो चोरी ही.

एक पढ़ेलिखे व्यक्ति के लिए यह समझना जरूरी है कि वह अपनी प्रतिभा के साथ जीवन में आगे बढ़ना सीखे. धीमी गति ही सही, परंतु मेहनत से मिलने वाली सफलता सर्वोपरि है. चोरी या ठगी किसी को आज छप्पन भोग दे रही है तो कल जेल की सूखी रोटी भी देगी. खासकर, युवाओं को यह समझने की जरूरत है कि वे अमीर हों या गरीब, मजे के लिए करें या मजबूरी में, किसी की शरण में करें या गुट बना कर, चोरी हमेशा गलत ही है. अपराधी बनना किसी भी हालत में सही नहीं है.

सिंगल मदर: पुरुष साथियों से रिश्ता

आज के समय में सिंगल मदर समाज में अपना मुकाम बनाती जा रही हैं. सिंगल मदर के रूप में उन के पास जिम्मेदारी होती है. समाज सिंगल मदर को स्वीकार तो करने लगा है पर उन के पुरुष मित्रों को ले कर वह दकियानूसी सोच में ही जी रहा है.

सिंगल मदर की डबल जिम्मेदारी इसलिए होती है कि उन को अपने वजूद को बचाते हुए बच्चों का पालनपोषण करना होता है. सिंगल मदर के सामने कई तरह के हालात होते हैं. कुछ मामलों में उन के पेरैंट्स साथ होते हैं. कई बार पति साथ नहीं होता पर उस का दबाव बना रहता है.

देश में अभी भी तलाक या पतिपत्नी के बीच अलगाव आसान नहीं है. कईकई साल मुकदमों में गुजर जाते हैं. ऐसे में सिंगल मदर को बच्चों की देखभाल, उन की शिक्षा, स्वास्थ्य पर भी ध्यान देना होता है. इस के साथ पति के साथ मुकदमेबाजी का भी तनाव होता है. समाज का दबाव भी होता है. समाज सिंगल मदर के पुरुष साथियों को ले कर अपनी दकियानूसी राय से बाहर नहीं आ पाता है.

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सिंगल मदर को कचहरी, अस्पताल या स्कूल कहीं भी जाना हो, खुद ही जिम्मेदारी उठानी पड़ती है. कभीकभी अगर उन का साथ देने कोई पुरुष आ भी जाता है तो उन्हें शंकाभरी नजरों से देखा जाता है. ऐसे में सिंगल मदर के कैरेक्टर पर सवाल उठने लगते हैं. सो, सिंगल मदर के सामने चुनौतियां बढ़ जाती हैं कि वे अपने पुरुष साथियों से रिश्ता भी बनाएं और उन की चर्चा से बचें भी.

किसी के कैरेक्टर को ले कर चटपटी चर्चा करना बेहद सरल काम होता है. सोशल मीडिया के इस दौर में किसी के साथ संबंध को छिपाना मुश्किल हो गया है. ऐसे में संबंधों को निभाते समय सिंगल मदर खुद पर भरोसा और संबंधों में पारदर्शिता रखें, तभी समाज में रहते हुए वे अपने दायित्वों को पूरा कर सकेंगी.

सोच को पौजिटिव रखें

सिंगल मदर को ले कर तमाम तरह के गौसिप होते रहते हैं. ऐसे में जरूरी है कि वे अपनी सोच को पौजिटिव रखें. ‘फर्स्ट इंपैक्ट’ की इमेज कंल्सटैंट सौम्या चतुर्वेदी कहती हैं, ‘‘सिंगल मदर के सामने चुनौतियां अपार रहती हैं. चुनौतियों से निकल कर ही उन को सफल होना होता है. एक बार वे सफल हो जाएं तो आगे का रास्ता सरल हो जाता है. सफल होने के लिए जरूरी है कि वे अपने काम पर ध्यान दें.

‘‘पौजिटिव सोच ही इस में उन की सब से बड़ी मददगार होती है. इस के साथ उन को अपने को मजबूत बनाना चाहिए. अपने हर छोटेबड़े काम के लिए अगर वे किसी पर डिपैंड होंगी तो कभी खुद के पैरों पर खड़ी नहीं हो पाएंगी. किसी की मदद लेना बुरा नहीं है, मदद लेते समय यह सावधानी जरूर रहे कि वे उस पर निर्भर न हो जाएं.

‘‘अगर किसी के साथ पर्सनल रिलेशन बनते भी हैं तो वहां भी वे प्राइवेसी का खयाल रखें. ऐसे संबंध बनाते समय यह जरूर देखें कि जिस से रिश्ता बना रही हैं उस का रिलेशनशिप को ले कर नजरिया क्या है. कई बार मदद के बहाने लोग करीब आ कर फायदा उठाने की कोशिश में रहते हैं. संबंधों की नजर से भी वे किसी पर निर्भर न हो जाएं. वे हमेशा अपनी सोच साफ रखें ताकि समय आने पर यह न सोचना पड़े कि कहीं गलती हो गई है. सिंगल मदर को बड़े हो रहे बच्चों की मानसिक हालत की चिंता होनी चाहिए. क्योंकि बच्चों के मन पर बुरी बातों का प्रभाव अधिक पड़ता है.’’

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संबंधों का भ्रम न बनाएं

सिंगल मदर आपसी संबंधों में भ्रम न रखें. कई बार आप के व्यवहार से कई तरह के खयाल लोगों में पैदा होने लगते हैं. सो, मौडर्न सोच के साथ अपने व्यवहार में शालीनता रखें. सिंगल मदर कमजोर कड़ी होती हैं जिन को ले कर कुछ भी कहना सरल होता है. सिंगल मदर का लाभ उठाने के लिए कई बार लोग दिखावटी रिश्ते भी बना लेते हैं. ऐसे रिश्तों से दूर रहें.

शालीन व्यवहार से ही आपसी संबंधों के भ्रम को साफ किया जा सकता है. यह सही है कि लोगों की बातों का जवाब दे सकती हैं. सब से जरूरी होता है कि पुरुष मित्र से सहयोग लेने में किसी तरह का भ्रम न रखें कि जिस से मदद करने वाले को लाभ लेने का मौका मिल सके.

कई बार सिंगल मदर अपने पुरुष मित्रों से बात करते समय अपने निजी जीवन की ऐसी बातें बता देती हैं जो उन को नहीं बतानी चाहिए. निजी जीवन की बातें बेहद गोपनीय होती हैं. कई बातों को सुन कर पुरुष मित्रों को लगता है कि वे सीमाओं को पार कर सकते हैं. वे सोचने लगते हैं कि ये बातें उन के लिए औफर सी हैं. ऐसे में बातचीत के दायरे को समझ कर आगे बढ़ें.

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यह सच है कि सिंगल मदर की जिम्मेदारी दोहरी होती है. अपने पर भरोसा कर के ही आगे बढ़ा जा सकता है. कहीं पर कभी कोई मतभेद हो तो उसे आपसी बातचीत से सुलझा लें. जब मतभेद नहीं सुलझते तो हालात खराब हो सकते हैं. एक बार आक्षेप लगने पर उस से बचाव मुश्किल हो जाता है.

डांस से शरीर ऐक्टिव रहता है : वरुण धवन

बौलीवुड ऐक्टर वरुण धवन ने अपने अभिनय से चाहने वालों को निराश नहीं किया है. इन्होंने कई हिट फिल्में दी हैं. बावजूद इस के जो पहचान इन्हें मिलनी चाहिए वह अब तक नहीं मिल पाई है. वे इन दिनों हालिया रिलीज फिल्म ‘कलंक’ को ले कर चर्चा में हैं.

नए दौर के कलाकारों में अभिनेता वरुण धवन सब से अधिक प्रतिभावान माने जाते हैं. उन्होंने पढ़ाई पूरी करने के बाद निर्माता निर्देशक करण जौहर के साथ फिल्म ‘माय नेम इज खान’ में सहायक निर्देशक के रूप में काम किया. ऐक्टिंग कैरियर की शुरुआत उन्होंने फिल्म ‘स्टूडैंट औफ द ईयर’ से की, जिस में उन के काम को सराहना मिली और वे आगे बढ़े.

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हालांकि वरुण युवाओं में सब से अधिक पसंद किए जाने वाले कलाकार हैं लेकिन उन की फिल्में आजकल अधिक सफल नहीं हो पा रही हैं, जिस की वजह वे सही स्क्रिप्ट का न चुन पाना समझते हैं और कोशिश कर रहे हैं कि वे एक अच्छी और बेहतर फिल्म दर्शकों तक पहुंचा सकें. फिल्म ‘कलंक’ में अलग तरह की भूमिका निभा कर वे बहुत खुश हैं.

आजकल आप बहुत ही इंटैंस भूमिका निभा रहे हैं, हालांकि आप की फिल्म ‘अक्तूबर’ नहीं चली. ‘कलंक’ में खास क्या है, जिस से आप उत्साहित हुए? इस सवाल के जवाब में वरुण धवन कहते हैं, ‘‘कलंक फिल्म में मैं ने बहुत अलग काम किया है. इस जोनर में मैं ने कभी काम नहीं किया है. थिएटर करते वक्त मैं ने हमेशा ड्रामैटिक अभिनय किए हैं, जिसे करने का मौका अभी तक मुझे नहीं मिला था.

‘‘जब मैं ने ‘अक्टूबर’ जैसी फिल्म की थी, तो शुरू में ही पता लग गया था कि यह फिल्म कितनी चलेगी. जितनी भी चली, ठीक थी. मैं जब ‘कलंक’ जैसी फिल्में करता हूं तो सोचता हूं कि फिल्म में लगाए पैसे का लौस न हो. ऐक्ंिटग में प्रयोग करते रहना पसंद है.’’

ऐक्सपैरिमैंट से क्या आप को डर नहीं लगता? इस पर उन का कहना है, ‘‘हर कोई ऐक्सपैरिमैंट करता है. अमिताभ बच्चन आज भी ऐक्सपैरिमैंट करते हैं. इस के अलावा जो कहानी मुझे आकर्षित करे, उसे ही करना चाहता हूं. फिल्म ‘कलंक’ के साथ एक अलग जोनर मेरे लिए तैयार हो जाएगा. ऐक्सपैरिमैंट करने में डर होता है, लेकिन मुझे करते रहना चाहिए.’’

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इस में आप का एक अलग लुक है. जिस में आप ने मेहनत भी अधिक की है, कैसे की, यह आप के फैंस जानना चाहेंगे. इस पर वरुण कहते हैं, ‘‘इस में मुझे बालों पर बहुत काम करना पड़ा. इस में मैं ने बाल लंबे किए हैं. आंखों में सुरमा लगाया है, क्योेंकि मैं एक लुहार हूं. रियल लुक के लिए मैं ने सुरमा लगाया है.

‘‘इस में एक बुल फाइट पर भी सीन है, जिस के लिए मैं ने बौडी डबल नहीं लिया. इस फाइट सीन में मुझे काफी चोटें आई थीं. इतना ही नहीं, सैट पर जाने के बाद लगता था कि मैं एक अलग दुनिया में आ गया हूं. इस के अलावा, संवाद पर काफी काम करना पड़ा. यह फिल्म मुझे कंपलीट करती है, जो मुझे किसी फिल्म ने नहीं किया.’’

आप ने संजय दत्त के साथ काम किया है, कोई पुरानी बचपन की यादें, जिसे आप शेयर करना चाहें? इस पर वरुण कहते हैं, ‘‘बचपन के बहुत सारे यादगार पल हैं. मेरे पिता संजय दत्त की वजह से ही निर्देशक बने थे. उन की पहली फिल्म ‘ताकतवर’ थी, जिस में संजय दत्त और गोविंदा साथसाथ थे. हमारे साथ उन का एक अच्छा संबंध है, लेकिन फिल्म में अभिनय करते वक्त वे एक कलाकार के रूप में सामने आए, यह मुझे अच्छा लगा.’’

यूथ और बच्चों में आप का क्रेज बहुत है, सोशल मीडिया पर आप के फैनफौलोअर्स बहुत हैं, लेकिन आप की फिल्में उतनी नहीं आ रही हैं. इस की वजह क्या समझते हैं? इस पर उन का कहना है, ‘‘ऐसा इसलिए है कि लोग मुझे बच्चों की फिल्म में देखना चाहते हैं. लेकिन वैसी बहुत अच्छी कोई स्क्रिप्ट नहीं मिली है. अगर मिलेगी तो अवश्य करूंगा. मैं ने इसलिए यह फिल्म की है, ताकि लोगों के सामने मेरा दूसरा रूप आए. आगे मेरी कई फिल्में आ रही हैं.’’

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आप की नजर में लव या रिलेशनशिप क्या है? इस पर अपना नजरिया पेश करते हुए वरुण कहते हैं, ‘‘प्यार एक अच्छा एहसास है, जिस में आप किसी के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार रहते हैं. कई बार इंसान बुरा नहीं होता, पर ऐसा कुछ हो जाता है कि फिर उस का गलत इस्तेमाल कर लिया जाता है. मैं ने रियल लाइफ में फिलहाल ऐसा अनुभव अभी तक नहीं किया है. आजकल लव ऐसा नहीं रहा, पर होना चाहिए.’’

आज के यूथ फिटनैस पर बहुत अधिक जोर देते हैं. कई बार उन्हें चोट भी लग जाती है. आप का सुझाव उन के लिए क्या है? गंभीर हो कर वरुण कहते हैं, ‘‘जब आप वर्कआउट करते हैं और उस दौरान अगर मसल्स में चोट आ जाती है, तो उसे रिकवरी के लिए रैस्ट देने की जरूरत होती है. चोट लगने के बाद भी अगर आप वर्कआउट करते हैं, तो मसल्स और अधिक डैमेज होती जाती हैं. इसलिए अपने शरीर को रिपेयर करने के लिए समय देना पड़ता है.

‘‘स्ट्रैचिंग और पानी पीना बहुत जरूरी है. स्टेरौयड कभी न लें. फूड में प्रोटीन नैचुरली लेने की जरूरत होती है. पूरे दिन में नियमित एक घंटा वर्कआउट करें.

‘‘मेरी बौडी अभी जो है वह डांसिंग की वजह से है. डांस से शरीर का हर भाग ऐक्टिव रहता है. अगर आप स्पोर्ट्स के साथ शरीर को हैल्दी बना सकते हैं, तो वह ज्यादा अच्छा है, क्योंकि इस से मैटाबोलिज्म हाई हो जाता है और आप फिट भी रह सकते हैं.’’

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आगे आप की कौनकौन सी फिल्में आने वाली हैं? इस सवाल पर वरुण ने बताया, ‘‘फिल्म ‘कुली नंबर वन’ का रीमेक अपने पिता के साथ कर रहा हूं. इस के अलावा फिल्म ‘स्ट्रीट डांसर थ्री डी’ और ‘रणभूमि’ बन रही हैं.’’

फुरसत

घर के कामों से सरला को फुरसत कहां थी. ऐसे में यमदूतों का उसे ले जाने के लिए जाना, भला सरला के लिए सब काम छोड़ कर उन के साथ जाना कैसे संभव हो पाता?

सरला को कहां पता था कि आज उस के जीवन का यह आखिरी दिन है. पता होता तो क्या वह अचार के  दोनों बड़े मर्तबान भला धूप में न रख देती और छुटकी के स्वेटर का तो केवल गला ही बाकी बचा था, उसे न पूरा कर लेती. खैर, यह सब तो तब होता जब सरला को पता होता कि उसे बस, आज और अभी चल देना है.

पिछले 45 सालों से, इस 2 कमरे के छोटे से घर के अनंत कार्यों में वह इतनी व्यस्त थी कि सचमुच उसे मरने तक की फुरसत नहीं थी, लेकिन यह तो एक मुहावरा है. मरना तो उसे था ही. हर रोज की तरह आज भी जब मुंहअंधेरे उस की आंख खुली तो लगा कि उस का शरीर दर्द से जैसे जकड़ गया हो. बड़ी कोशिश के बाद भी न तो उस के मुंह से आवाज निकली न वह हिलडुल सकी. पंडित गिरजा शंकर शर्मा बगल के पलंग पर लेटे चैन से खर्राटे भर रहे थे. सरला को बहुत गुस्सा आया कि ऐसी भी क्या नींद कि बगल में लेटा इनसान मर जाए पर इस भले आदमी को खबर भी न हो. फिर पूरी शक्ति लगा कर उठने की दोबारा कोशिश की पर नाकामयाब रही.

सरला मन ही मन सोचने लगी, क्या करूं. अगर जल्दी उठ कर पानी नहीं भरा तो पूरे दिन घर में पानी की हायतौबा मचेगी. और तो और ऊपर वाली किरायेदारनी को तो मौका मिल जाएगा मुफ्त का पानी बहाने का.

वह झटके से उठ बैठी, लेकिन तभी उसे 4 बलशाली हाथों ने पुन: पकड़ कर लिटा दिया. सरला ने अचकचा कर देखा तो 2 अजीबोगरीब हुलिए के भयानक सी शक्लों वाले आदमी उसे पकडे़ हुए थे. वह पूरा जोर लगा कर चिल्लाई मगर उस की आवाज गले में घुट कर रह गई. वह आंखें फाड़फाड़ कर उन शक्लों को पहचानने की कोशिश करने लगी. तभी उस में से एक बोला, ‘‘श्रीमती सरला देवी, आप का समय पूरा हो गया है. हम यमदूत आप को लेने आए हैं.’’

पहले तो सरला को लगा कि शायद टीवी या रेडियो से आवाज आ रही है. जिंदगी भर छुटकी की मां, बहूजी, अम्मां और ऐसे कितने संबोधन सुनतेसुनते उसे याद ही नहीं रहा कि उसी का नाम ‘सरला’ है. इतने आदरपूर्वक श्रीमती सरला देवी तो आज तक किसी ने बुलाया नहीं. मारे खुशी के उस की आंखों में आंसू भर आए. हां, कभीकभी न्योते के कार्ड पर श्री एवं श्रीमती गिरजा शंकर शर्मा लिखा देख कर ही वह खुशी से गद्गद हो जाया करती है. पंडितजी से अलग उस का भी कोई नाम है यह वह भूल चुकी थी.

खैर, दिमाग पर जोर डालने पर याद आया कि श्रीमती सरला देवी उसी का नाम है. इस का मतलब उसी का बुलावा आ गया है पर पंडितजी के बगैर वह आज तक कहीं गई नहीं, अब क्या करे, यही सोच रही थी कि यमदूतों ने फिर कहा, ‘‘माताजी, चलिए. अभी हमें और भी बहुत काम हैं.’’

अब सरला रोंआसी हो कर कहने लगी, ‘‘भैया, जरा पंडितजी को उठ जाने दो. उन को घर की तालाकुंजी बता दूं फिर चलती हूं. तब तक तुम लोग कोई दूसरा काम कर आओ.’’

यमदूतों ने कहा, ‘‘माताजी, हमारे पास इतनी पावर नहीं होती, फिर भी हम आप को 5 मिनट का समय देते हैं. आप जो कुछ करना चाहती हैं, जल्दी कर लें.’’

सरला घुटनों का दर्द भूल कर फुर्ती से उठ बैठी और पंडितजी को झिंझोड़ कर जगाया. उनींदे से पंडितजी बोल पडे़, ‘‘क्या कर रही हो, नाहक ही मेरी नींद खराब कर दी. अब जाओ, अदरक वाली चाय जल्दी से बना लाओ.’’

‘‘अरे, आग लगे तुम्हारी नींद को, तुम्हें चाय की सूझ रही है…यहां यमदूत मुझे लेने के लिए खडे़ हैं.’’

‘‘तुम्हें तो रोज ही यमदूत लेने आते हैं, यह कौन सी नई बात है. जाओ, पहले चाय बना लाओ फिर चली जाना.’’

सरला ने सोचा इन से सर फोड़ने में ही 5 मिनट खर्च हो जाएंगे और कोई फायदा भी नहीं होगा. वह चाय बनाने गई ही थी कि इतनी देर में 5 मिनट खत्म. यमदूत फिर सर पर सवार. सरला ने कहा, ‘‘अब मैं क्या करूं? 5 मिनट तो पंडितजी की चाय बनाने में ही लग गए. घर का प्रबंध अभी कहां हुआ? भैया, आप लोगों का बड़ा पुण्य, मुझे थोड़ा समय और दे दो.’’

यमदूतों ने कहा, ‘‘अम्मां, यह नियम के विरुद्ध है. पर आप ने जिंदगी भर कोई बुराई नहीं की है इसलिए हम अपनी स्पेशल पावर से आप को 1 घंटा देते हैं. बस, इस के बाद कुछ मत कहना.’’

‘‘अरे बेटा, इतना बहुत है,’’ कह कर सरला देवी झटपट पिछले कमरे का दरवाजा खोल उस में रखे बडे़ बक्सों में से सामान निकालने लगी. अब क्या करूं. जब जाना ही है, तो सारे सामान का ठीक से बंटवारा करती चलूं. बक्सों में से निकालनिकाल कर पुरानी साडि़यां, कुछ बचेखुचे जेवर, चांदी के सिक्के, बड़के और छुटके के अन्नप्राशन के चांदी के छोटेछोटे बरतन, पायलें, पुराने कई जोड़ी बिछुए, शादी के समय के कुछ बरतन आदि जल्दीजल्दी निकाल कर उस की 4 ढेरियां बनाने बैठ गई.

सरला ने अपनी एक बनारसी साड़ी बड़के की बहू के नाम रखी तो दूसरी थोड़ी हलकी छुटके की बहू के नाम. इतने में याद आया कि अभी पिछली छुट्टी में जब बड़का आया था तो बड़ी बहू ने खुद तो कैसी बढि़याबढि़या साडि़यां पहनी थीं और उस के लिए लाई थी रद्दी साड़ी, जैसे कि वह इसी लायक है. सरला का मन फिर गया, तो उस ने वह भारी साड़ी उठा कर छुटके की बहू को रख दी, फिर सोचने लगी कि छुटके की बहू ने ही कब इस घर को अपना समझा है. न खुद आती है न छुटके को आने देती है. उसी ने कौन बड़ा सुख दिया है. सरला ने तत्काल वह साड़ी बड़की बिटिया शांति को देने का निर्णय कर लिया.

इसी तरह हर एक कपड़ा और गहना सभी बच्चों के गुणदोषों को परखते हुए अलगअलग ढेरी में रखते हुए कब 1 घंटा बीत गया पता ही नहीं चला. यमदूत फिर आ कर खडे़ हो गए. सरला फिर गिड़गिड़ाने लगी, ‘‘अभी तो सारे बक्सों का सामान वैसे ही पड़ा है. पंडितजी को तो कुछ पता नहीं है. तमाम धराउठाई मेरे ही हाथों की है. 45 साल से जोड़ी गृहस्थी भला ऐसे ही छोड़ कर कैसे चल दूं. पिछला कमरा फिर इस के बाद और भी न जाने कितने काम, खटाई धूप में डालनी है. कांच का बढि़या वाला टी सेट पड़ोसी की लड़की नयना को देखने वाले  आए थे तब ही नयना की मां मांग कर ले गई, उसे अभी वापस लाना है.

‘‘गुल्लो महरी की बिटिया कब से कह रही थी, सरला अपनी पुरानी साड़ी से उस का फ्राक सिल रही थी, जो वहीं का वहीं सिलाई मशीन पर आधा सिला रखा है. रमुआ पिछली बार के कपड़ों में पंडितजी की एक कमीज कम लाया था, वह भी मंगानी है.

‘‘छुटके के बेटे का मुंडन नजदीक है, सो अनाज धोनेपछोरने के लिए काम वाली लगा रखी है. वह भी 2 दिन की मजदूरी पेशगी ले कर बैठ गई है, उसे बुलवाया है. और यह छुटकी सुशीला… इस के लच्छन भी ठीक नहीं दिख रहे हैं, जब देखो, सिंगार में ही लगी रहती है. पंडितजी से कह कर इस साल इस का ब्याह भी निबटाना है. अरे, मुझे तो सचमुच ही मरने की भी फुरसत नहीं है.’’

बोलतेबोलते अचानक सरला को कोई भारी चीज गिरने की आवाज सुनाई दी. उसे पता ही नहीं चला कि उस की बात सुनतेसुनते दोनों यमदूत चकरा कर वहीं गिर पडे़ हैं. ताजा खबर मिलने तक वे दयालु यमदूत उसे समय पर समय देते गए. यहां तक कि यमलोक के नियम तोड़ने के जुर्म में उन्हें नौकरी से हाथ धोना पड़ा. दोनों यमदूत आज भी सरला के घर में उस के कामों को खत्म कराने में लगे हैं पर सरला के कामों का न कोई अंत होता है और न उस को मरने की फुरसत मिलती है.

समर रेसिपी : पत्तागोभी सैलेड

पत्तागोभी की सब्जी तो आप हमेशा बनाती होंगी लेकिन क्या आप जानती हैं पत्तागोभी से सैलेड भी बनाई जाती है. तो चलिए जानते हैं इसकी रेसिपी.

सामग्री

टमाटर (4 मीडियम)

शिमला मिर्च (1)

लाल शिमला मिर्च (1)

लाल मिर्च (दरदरी पीसी हुई)

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पत्तागोभी (250 ग्राम)

कालीमिर्च (1/8 टी स्पून)

फ्रेंच ड्रेसिंग (3 टेबल स्पून)

नमक (1 टी स्पून)

बनाने की वि​धि

टमाटर के बीच निकाल लें और उन्हें लम्बाई में काट लें.

पत्तागोभी, शिमला मिर्च और लाल शिमला मिर्च को बहुत ही बारीक लम्बाई में काट लें.

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फ्रेंच ड्रेसिंग तैयार करें और लाल मिर्च, नमक और काली मिर्च डालें.

सब्जियों को ठंडा करने के लिए रख दें और ड्रेसिंग को भी अलग रखें और इसे सर्व करने से पहले ही मिक्स करें.

200 के बजट में खरीदें ये 5 लिपस्टिक और पाएं ब्यूटीफुल लिप्स

गरमियां हो या सर्दियां आप कभी लिपस्टिक लगाना नहीं भूलते होंगे. लिपस्टिक हमारे मेकअप को एक अलग लेवल पहुंचाती है, साथ ही एक ब्यूटीफुल स्माइल भी आपको देती है. पर क्या आप मुस्कुराहट को बरकरार रखने के लिए आप बजट के बारे में सोचते हैं. अगर हां, तो यह खबर आपके काम की है. आज हम आपको 5 ऐसी लिपस्टिक के बारे में बताएंगे जो आपको ब्यूटीफुल स्माइल तो देगी ही, साथ ही यह आपके बजट में यानी 200 रूपए की कीमत के अंदर भी आएगी.

  1. एले 18 कलर पौप मैट लिप कलर, सेल्फी रेड

अगर आपको भी सेल्फी लेना पसंद है तो ये लिपस्टिक आपके काम की है. यह आपके लिप्स को अच्छा कलर देने के साथ एक अच्छी स्माइल देगी और आपके बजट में यानी 90 रूपए में दुकानों में आसानी से मिल जाएगी.

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  1. इनकलर मैट मी अल्ट्रा स्मूद लिप क्रीम

मैट मी एक मैट  लिपस्टिक है, जो एक कोट में ही अपना काम कर देती है. जिससे आप को पूरे दिन में बार-बार लिपस्टिक लगाने की जरूरत नहीं पड़ती. और यह आपके बजट यानी 150 रूपए में दुकानों पर आसानी से मिल जाती है.

  1. ब्लू हेवन वौक फ्री लिपस्टिक

ब्लू हेवन अपने ब्यूटी प्रौडक्टस के लिए मशहूर है. वहीं लिपस्टिक की बात करें तो यह लिप बाम की तरह लिपस्टिक है, जो लिप्स को सौफ्ट रखने के साथ एक अच्छा कलर भी देता है. यह आपको दुकानों में 150 रूपए में मिल जाएगी.

  1. लैक्मे एनरिच लिप क्रेयौन विद फ्री शार्पनर, शौकिंग पिंक

अगर आप भी पिंक लिप्स पाना चाहते हैं तो यह लिपस्टिक आपके लिए बेस्ट है. यह लिपस्टिक का लुक क्रेयौन की तरह है, जो फैशनेबल तो दिखता ही है. साथ ही आपके लिप्स को और भी खूबसूरत बनाता है. यह आपको दुकानों में 200 rs से कम की मिल जाएगी

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  1. कलरसेंस लिप कलर पैशनेट पिंक

यह आपको नेचुरल पिंक कलर के साथ एक नेचर एसेंस यानी खुशबू भी देता है, जिसे लगाने से आप ब्यूटीफुल तो दिखेंगी ही. साथ ही आपके मूड को भी फ्रैश करेगी. यह आपको दुकानों में 199 की मिल जाएगी.

हरियाणा की लड़कियों को लेकर सतीश कौशिक ने कही ये बात

नारी सशक्तिकरण के नाम पर देश में केंद्र और राज्य सरकारों की कई योजनाएं लागू हैं. इसके बावजूद पूरे देश में लड़कियों के मामले में सबसे पिछड़ा राज्य हरियाणा ही माना जाता है. 2011 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार हरियाणा में हजार लड़कों के बीच सिर्फ 762 लड़कियां थी. लेकिन पिछले पांच वर्ष के अंदर ‘‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’’ तथा ‘‘लाड़ली’’ योजना लागू होने के बाद 2018 के आंकड़ों के अनुसार अभी भी हरियाणा में हजार लड़कों के बीच महज 834 लड़कियां हैं.

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इतना ही नहीं हरियाणा एकमात्र ऐसा राज्य है, जहां लड़कियों पर सर्वाधिक पाबंदियां हैं. खेलकूद से कला जगत में भी सबसे कम लड़कियां हरियाणा की हैं. मगर लड़कियों के विकास और उनकी उन्नति के नाम पर हरियाणवी फिल्म ‘‘छोरियां छोरों से कम नहीं’’ का निर्माण व उसमें अभिनय करने वाले बौलीवुड के मशहूर अभिनेता व निर्देशक सतीश कौशिक की हरियाणा की लड़कियों को लेकर अलग ही राय है. वह कहते हैं-

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‘‘जी नहीं..ऐसा कुछ नही है. हरियाणा के रोहतक में ‘हरियाणा फिल्म इंस्टीट्यूट’ बना हुआ है. हमारी फिल्म में हरियाणा की विधि जायसवाल ने काम किया. गीता फोगाट व बबिता फोगाट खेल के मैदान में हरियाण का नाम रोशन कर चुकी हैं. हरियाणा की लड़की बलजिंदर कौर को फिल्म ‘पगड़ी’ में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का नेशनल अवार्ड मिल चुका है. हरियाणा में तो लड़कियां बहुत काम कर रही हैं. अभी मैंने अपनी हिंदी फिल्म ‘कागज’ की शूटिंग हरियाणा की झज्जर में की. इस हिंदी फिल्म में लोग हरियाणवी बोलते हैं. उसमें हरियाणा की तमाम लड़कियों ने काम किया है. फिल्म ‘सूरमा’ में भी हरियाणा की लड़की थी. 20-25 साल पहले लोग अपनी लड़कियों को काम करने से रोकते थे. लेकिन आज फिल्म उद्योग बहुत ही इज्जतदार प्रोफेशन है. यहां लोग पैसे कमा रहे हैं. पूरे दुनिया में बौलीवुड का नाम है. देखिए, क्रिएटिव होना या सपने देखना, हर इंसान का हक है. हमारी फिल्म ‘छोरियां छोरों से कम नहीं’ भी लड़कियों से यही कहती है कि आप सपने देखिए. जब तक सपना नहीं देखोगी, तब तक कुछ नहीं कर सकते. मैं हरियाणा की हर लड़की को यही सिखाना चाहता हूं कि वह सपना देखें, आगे बढ़े. ’’

फर्जी चुनाव सर्वेक्षण और चुनाव आयोग की चुप्पी

अनिल अंबानी समूह एडीएजी और विवाद कभी दूर नहीं होते हैं. एडीएजी के स्वामित्व वाली समाचार एजेंसी इंडो-एशियन न्यूज सर्विस ने 13 मई को देश के चुनाव आयोग द्वारा लगाये, आदर्श आचार संहिता की धज्जियां उड़ाते हुए अवैध रूप से एनडीए को मजबूती देता एक चुनाव सर्वेक्षण प्रकाशित किया, मगर उस पर कार्रवाई करना तो दूर चुनाव आयोग चुप्पी साध कर बैठा है. आखिर क्यों?

आम चुनाव 2019 के आखिरी चरण का चुनाव अभी बाकी है. वोटरों को गुमराह करने के लिए केन्द्रीय-सत्ता के समर्थक कैसे-कैसे दांवपेंच खेल रहे हैं कि देख कर आश्चर्य होता है. कहीं कोई लगाम नहीं, कहीं कोई कार्रवाई नहीं. ऐसा लग रहा है कि मोदी के पांच साल के शासनकाल में भ्रष्टाचार अपनी उस पराकाष्ठा पर पहुंच गया है, जिसने देश के सर्वोच्च संस्थानों में बैठे उन अधिकारियों तक का ईमान खरीद लिया है, जिनकी ईमानदारी और निष्पक्षता पर भरोसा करके ही देश की जनता अपने मत का प्रयोग लोकतंत्र को बचाये रखने के लिए करती है. जिस चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर देश का भविष्य टिका हुआ है, वह ऐसे कारनामों पर चुप्पी ओढ़ लें, यह आश्चर्यचकित करने वाला है. चुनाव आयोग ने 2019 के लोकसभा चुनाव में जिस तरह नरेन्द्र मोदी और उनकी पार्टी के प्रति अपना नरम और सहयोगात्मक रुख इख्तियार किया हुआ है, उससे उसकी विश्वसनीयता सवालों के घेरे में है. चुनावी रैलियों और सभाओं में आदर्श आचार संहिता की धज्जियां उड़ा रहे मोदी एंड पार्टी को लगातार क्लीन चिट्ट देते जाना और विपक्षियों को लगातार घेरना चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवालिया निशान लगाती है. ताजा मामला मोदी के खासमखास उद्योगपति अनिल अंबानी की स्वामित्व वाली कम्पनी के अन्तर्गत काम करने वाली समाचार एजेंसी आईएएनएस का सामने आया है, जिसने वोटरों को बरगलाने के लिए अवैध रूप से एक चुनाव सर्वेक्षण प्रकाशित किया, मगर चुनाव आयोग ने इस पर ध्यान देने या कोई कार्रवाई करने की जहमत नहीं उठायी.

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इस समय जबकि यूपीए की अगुवाई वाला गठबंधन भी सरकार बना सकता है, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का गठजोड़ भी उत्तर प्रदेश में अपना चमत्कार दिखा सकता है, कांग्रेस अपने पूरे दमखम के साथ खड़ी नजर आ रही है, ऐसे वक्त में सिर्फ भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) को जीत के करीब बताना और आखिरी चरण के चुनाव (19 मई) से पहले वोटरों को कुछ गुमराह करके शायद अनिल अंबानी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ‘उपकारों’ का बदला चुकाना चाहते हैं.

अनिल अंबानी समूह (एडीएजी) और विवाद कभी एकदूसरे से दूर नहीं होते हैं. एडीएजी के स्वामित्व वाली समाचार एजेंसी इंडो-एशियन न्यूज सर्विस (आईएएनएस) ने 13 मई को आदर्श आचार संहिता का बड़ा उल्लंघन करते हुए अवैध रूप से एक चुनाव सर्वेक्षण प्रकाशित किया. समाचार एजेंसी द्वारा अपलोड किये गये राज्य-वार सर्वेक्षण के अनुसार, भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) को 2019 के लोकसभा चुनाव में 234 सीटें मिलने की उम्मीद है. यह कांग्रेस के नेतृत्व वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) को 169 और अन्य को 140 पर आने की भविष्यवाणी करता है. वहीं यह एजेंसी अन्य 48 सीटों का बंटवारा उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी (सपा), बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और  राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) के बीच करती है, तो 31 सीटें तृणमूल कांग्रेस की झोली में जाने का दावा करती है. गौरतलब है कि आईएएनएस ने यह सर्वेक्षण प्रकाशित करके आदर्श आचार संहिता की धज्जियां उड़ाने की हिमाकत की है, मगर चुनाव आयोग इस पर खामोशी ओढ़े बैठा है. क्या यह ‘मूक सहयोग’ की निशानी है?

आईएएनएस के ट्विटर हैंडल ने 13 मई को सुबह 9:23 बजे यह अवैध सर्वेक्षण अपलोड किया. इस सर्वेक्षण पर जब प्रतिक्रियाएं आनी शुरू हुई और कई लोगों  ने इसे आचार संहिता का जबरदस्त उल्लंघन बताते हुए चुनाव आयोग को सचेत करने की कोशिश की, तब भी यह सर्वेक्षण तब तक डिलीट नहीं किया गया, जब तक एक औनलाइन समाचार एजेंसी ने इस पर अपनी रिपोर्ट प्रकाशित नहीं कर दी. 14 मई 2019 को दोपहर 12.45 पर जब समाचार एजेंसी ने अनिल अंबानी समूह (एडीएजी) के स्वामित्व वाली समाचार एजेंसी इंडो-एशियन न्यूज सर्विस (आईएएनएस) के कुकृत्य को उजागर करते हुए इसे आखिरी चरण के चुनाव से पहले वोटरों को बरगलाने की कोशिश बतायी और चुनाव आयोग को इस पर कोई कार्रवाई न करने के लिए घेरा, तब यह फर्जी सर्वेक्षण ट्विटर से डिलीट कर दिया गया, मगर तब तक यह काफी वायरल हो चुका था. कई लोगों का तो कहना है कि यह फर्जी सर्वेक्षण बीते तीन हफ्तों से अनेक व्हाट्एप ग्रुपों में प्रसारित हो रहा था. वहीं आईएएनएस से जुड़े लोग कहते हैं कि यह काम किसी ‘अनजान स्वतन्त्र चुनाव विश्लेषक’ का है.

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गौरतलब है कि आईएएनएस समाचार एजेंसी की स्थापना 1994 में हुई थी और पिछले 15 वर्षों से यह अनिल अंबानी समूह (एडीएजी) के नियंत्रण में है. इस समाचार एजेंसी को कई बार अनिल अंबानी ग्रुप के फेवर में झूठी और नकली कहानियां प्रकाशित करने के लिए भी पकड़ा जा चुका है. यह समाचार एजेंसी आईएएनएस इंडिया प्राइवेट लिमिटेड नाम की एक फर्म के स्वामित्व में है. वर्तमान में फर्म के दो निदेशक हैं – पहले निदेशक राहुल सरीन, जो अनिल अंबानी की रिलायंस जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड के निदेशक भी हैं. दूसरे निदेशक हैं पत्रकार संदीप बामजई, जो समाचार एजेंसी की संपादकीय गतिविधियों की देखभाल करते हैं. डेक्कन क्रौनिकल ग्रुप और इंडिया टुडे को छोड़ने के बाद संदीप बामजई को अनिल अंबानी के साथ अपनी निकटता के लिए जाना जाता है और हाल ही में आईएएनएस के साथ अपनी पारी की शुरुआत की है.

बीते तीस सालों से देश गवाह है कि इस तरह के फर्जी सर्वेक्षणों से लगातार वोटर्स को प्रभावित करने और गुमराह करने की कोशिशें होती रही हैं. चाहे एनडीटीवी के प्रणय रॉय हों या स्वराज अभियान पार्टी के योगेन्द्र यादव, इनके द्वारा चुनाव पूर्व ही राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाली सीटों को लेकर दिये जाने वाले आंकड़े न सिर्फ गलत साबित होते रहे हैं, बल्कि चुनाव पूर्व ऐसी भविष्वाणियां करना आदर्श आचार संहिता का घोर उल्लंघन भी हैं, इससे भोला-भाला वोटर गुमराह होता है. वह सोचता है कि क्यों न जीतने वाली पार्टी के पक्ष में ही अपना वोट दे दे, ताकि उसका वोट खराब न जाये. वोटर इन फर्जी आंकड़ों के जाल में फंस कर बहक जाता है. बावजूद इसके इन ‘डर्टी ट्रिक्स’ पर रोक लगाने की कोई कार्रवाई चुनाव आयोग की तरफ से कभी नहीं होती है.

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मिक्स वेजिटेबल की सबसे आसान रेसिपी

लौकी, केला इन सभी सब्जियों को दूध और मसालों के साथ पकाया जाता है. इसी के साथ इसमें अदरक और लहसून भी डाला जाता है. और यह जल्दी बनने वाली सब्जी भी है. तो आइए झट से बताते हैं इसकी रेसिपी.

सामग्री

2 करेला

हल्दी (3 टी स्पून)

कच्चा केला (2)

टुकड़ों में कटा हुआ (1 प्याज)

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हरी मिर्च (4 टुकड़ों में कटा हुआ)

अजवाइन (3 टी स्पून)

सरसों के दाने (3 टी स्पून)

बैंगन (2)

गोभी (1/2)

सरसों का तेल (आवश्यकतानुसार)

अदरक पेस्ट (1/2 टी स्पून)

मूली (1)

लौकी (1/2)

देसी घी (4 टी स्पून)

जावित्री (2-3 टुकड़े)

दूध (1 कप)

स्पून सौंफ (1/2 टी)

मेथी (1 टी स्पून)

कलौंजी (2 टी स्पून)

सरसों के दाने (1 टी स्पून)

हरा धनिया (टुकड़ों में कटा हुआ)

नमक (स्वादानुसार)

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बनाने की वि​धि

करेलों को छीलकर इनमें कट लगाकर इन्हें ब्लांच कर लें, इसमें नमक और हल्दी डालें.

इनके छिलके बाहर निकालकर छोटे टुकड़ो में काट लें.

इसी तरह कच्चे केलों में भी कट लगाकर नमक वाले पानी में इन्हें ब्लांच कर लें.

ठंडे बर्फ वाले पानी में इन्हें ठंडा करने के बाद छीनकर इनके भी छोटे टुकडों में काट लें.

सभी सूखें मसाले को एक साथ मिलाकर पीसकर पेस्ट बना लें.

अजवाइन और सरसों के दानों को गर्म पानी में भिगोने के बाद पेस्ट बना लें.

बैंगन, गोभी को काट लें और इसमें नमक और हल्दी वाले पानी डालें.

एक पैन में सरसों का तेल डालें, इसमें अदरक पेस्ट, अजवाइन और सरसों के दानों का पेस्ट, आलू, नमक और पानी डालकर पकाएं.

अब मूली, पानी, नमक, बैंगन, लौकी, कच्चा केला, करेला डालकर भूनें.

पानी डालकर आंच कम कर दें.

थोड़ा सा देसी और जावित्री डालकर मिलाएं. अब दूध और मसाला डालकर कुछ देर पकाएं और हरे धनिए से गार्निश करके सर्व करें.

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