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तो क्या मिथुन चक्रवर्ती स्वस्थ हैं?

लंबे समय बाद मिथुन चक्रवर्ती हौरर कौमेडी फिल्म ‘‘भूतियापा’’ में अभिनय करेंगे. बौलीवुड में मशहूर अभिनेता मिथुन चक्रवर्ती की घटी सक्रियता के चलते पिछले डेढ़ वर्ष से उनके गंभीर बीमारी से पीड़ित होने की खबरें गर्म रही हैं. इस बीच मिथुन चक्रवर्ती अमेरीका के लास एंजेल्स शहर भी दो तीन बार जा चुके हैं. हर बार यही कहा गया कि वह अपना इलाज कराने के लिए ही  अमेरीका गए हैं. यह एक अलग बात है कि यहां मुंबई में उनके बेटे हमेशा दावा करते रहे कि वह पूर्णरूपेण स्वस्थ हैं. सिर्फ पीठ का दर्द उन्हे परेशान करता रहता है. पर अब तो फिल्मकार मनोज शर्मा भी मिथुन चक्रवर्ती के स्वस्थ होने की बात कर रहे हैं.

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मनोज शर्मा ने अपने निर्देशन में बन रही हौरर कौमेडी फिल्म ‘‘भूतियापा’ ’में अहम किरदार निभाने के लिए मिथुन चक्रवर्ती को अनुबंधित किया हैं. इस फिल्म में मिथुन चक्रवर्ती के अलावा कृष्णा अभिषेक, सुगंधा मिश्रा व राजीव ठाकुर भी हैं, जिनके साथ मिथुन चक्रवर्ती अतीत में ‘कौमेडी सर्कस’ कर चुके हैं.

बुधवार, 15 मई को मुंबई में फिल्म ‘‘भूतियापा’’ के मुहुर्त कार्यक्रम के दौरान फिल्म से जुड़े सभी कलाकार मौजूद थे, पर मिथुन चक्रवर्ती अनुपस्थित थे. इस पर फिल्म के लेखक व निर्देशक मनोज शर्मा ने कहा- ‘‘आज मिथुन दादा मुंबई में नहीं है, इसलिए वह नहीं आ पाए. पर जल्द वह फिल्म की शूटिंग शुरू करेंगे. उनकी बीमारी की खबरें पूरी तरह से गलत हैं. मैं स्वयं अपनी इस फिल्म के सिलसिले में मिथुन दा से इसी माह लगातार चार दिन उनके मुंबई के मढ़ आयलैंड वाले बंगले पर मिल चुका हूं. उन्होंने हमारी फिल्म की पूरी स्क्रिप्ट सुनने के बाद प्रशंसा कीं. उन्हें उनका किरदार भी पसंद आया. हम अपनी फिल्म की अस्सी प्रतिशत शूटिंग लखनउ में करेंगे. बाकी की शूटिंग के लिए मुंबई में सेट लगाएंगे. पर हमारी फिल्म में मिथुन दा नृत्य करते हुए नहीं नजर आएंगे. हम अंत में एक प्रमोशनल सौग जरूर उन पर फिल्माने वाले हैं.’’

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मुहूर्त के अवसर पर अभिनेता कृष्णा अभिषेक, सुगंधा मिश्रा और राजीव ठाकुर ने भी मिथुन चक्रवर्ती के स्वस्थ होने की बात कही. कृष्णा अभिषेक ने कहा- ‘‘हम तीनो कलाकार मिथुन दा के साथ ‘कौमेडी सर्कस’ कर चुके हैं. अब हमें खुशी है कि इस फिल्म में हम एक साथ मिलकर धमाल करेंगे. कहानी के अनुसार इस फिल्म में मिथुन दा अपने महल में हम तीनों को कौमेडी का निजी कार्यक्रम करने के लिए बुलाते हैं और फिर कहानी में क्या होता है, उसे अभी बताना ठीक नहीं होगा.’’

यूं तो मार्च माह में मिथुन चक्रवती के छोटे बेटे नमाशी ने कहा था- ‘‘पिता जी स्वस्थ हैं. वह इन दिनों पीठ दर्द की थेरेपी के लिए केरला में हैं.’’

5 टिप्स: ड्राई, डैमेज और वाइट हेयर का ऐसे रखें ख्याल

लाइफस्टाइल बदलने के साथ ही हम अपनी बौडी और स्किन का ख्याल नही रख पाते. जिसका असर हमारी बौडी के साथ-साथ स्किन और हेयर पर भी पड़ता है. दरअसल, बिजी लाइफ में हम ज्यादा स्ट्रैस का शिकार हो जाते हैं, जिससे बाल अपना नेचुरल कलर व शाइन खोने लगते हैं. उम्र बढ़ने या तनाव में बालों का रंग सफेद होने लगता है. अगर आपके बाल भी उम्र से पहले ड्राई, सफेद और बेजान हो गए हैं तो इस खबर से आप जान पाएंगे बालों की इन प्रौब्लम का कारण…

  1. विटामिन और एनीमिया की कमी है बाल सफेद होने का कारण

बौडी में विटामिन बी 12 की कमी के कारण परनीशियस एनीमिया होने की आशंका रहती है, जिससे बाल सफेद होने लगते हैं. एनीमिया के कारण शरीर के विभिन्न अंगों तक औक्सीजन का प्रवाह कम हो जाता है. इस वजह से भी बाल सफेद हो सकते हैं.

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  1. बौडी में जि़ंक की कमी भी है बाल ड्राई और सफेद होने का कारण

हड्डियों, स्किन व स्कैल्प को हेल्दी रखने के लिए संतुलित न्यूट्रिशनल आहार लेना बहुत ज़रूरी होता है. खाने में जि़ंक की कमी होने से बाल असमय सफेद होने लगते हैं.

  1. थायरौयड डिसौर्डर से होती है बालों की शाइन कम

थायरौयड डिसौर्डर, हाइपोथायरौयडिज्म व हाइपरथायरौयडिज्म के कारण भी बालों की रंगत हल्की होने लगती है.

  1. स्कैल्प में फंगल इन्फैक्शन भी है बालों के लिए खतरा

स्कैल्प में इस तरह के इन्फैक्शन से बाल समय से पहले सफेद होने लगते हैं. इससे बचने के लिए ज़रूरी है कि सफाई का खास ख्याल रखा जाए.

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  1. तनाव और हौर्मोनल डिसबैलेंस से पड़ता है बालों पर फर्क

जो लोग जिंदगी के किसी मुश्किल दौर से गुज़र रहे हों या काम का बोझ अधिक हो, उनके बाल भी असमय सफेद होने लगते हैं. हॉर्मोन में हो रहे बदलाव का असर त्वचा व बालों पर ज़रूर पड़ता है.

बालों की बदबू को दूर करने के लिए अपनाएं ये 4 टिप्स

अगर आपके बाल लंबे और घने हैं तो बाल धोना काफी मुश्किल होता है. और अगर बाल न सूखे तो गीले बालों से बदबू भी आने लगती है. बालों से आने वाली गंध भी अजीब होती है. दरअसल, ये बदबू नमी की वजह से ही होती है. अगर बालों की नमी देर तक बनी रहती है तो इससे फंगल इंफेक्शन होने का खतरा भी बढ़ जाता है.

फंगल इंफेक्शन की वजह से बालों की जड़ें कमजोर हो जाती हैं और बाल झड़ना शुरू हो जाते हैं. ऐसे में कोशिश करें कि बालों में नमी रुकने न पाए. बाल धोने के बाद जितनी जल्दी हो सके बालों को सुखा लें. तो आइए जानते हैं बालों की बदबू को कैसे दूर करें.

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  1. बालों को बहुत देर तक गीला नहीं रहने दें. अगर आप बारिश में भींग गई हैं तो घर पहुंचकर ड्रायर से तुरंत बाल सुखा लें.
  2. अपनी डाइट में विटामिन सी से युक्त चीजों का इस्तेमाल करें. इसके साथ ही डाइट में उन सभी पौष्ट‍िक चीजों को शामिल करें जो सेहत के लिए जरूरी हैं.
  3. अगर आप बहुत अधिक चाय या कौफी लेती हैं तो उसका इनटेक कम कर दें. बहुत अधिक मात्रा में कोल्ड ड्रिंक या सौफ्ट ड्रिंक लेना खतरनाक हो सकता है.
  4. बालों को धोते समय स्कैल्प भी अच्छी तरह साफ करें. इंफेक्शन से बचने के लिए एंटी-फंगल या एंटी-बैक्टीरियल शैंपू यूज करें.

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अफेयर के बाद खोया विश्वास

खोए हुए विश्वास को दोबारा हासिल करना आसान नहीं. इस यात्रा में कई उतारचढ़ाव आते हैं. उतारचढ़ावों को कैसे फेस करें, आइए जानते है.

रेखा को जब पता चला कि उस के पति विनय का अफेयर कहीं चल रहा है, उस का चैन खत्म हो गया. आपस में काफी तनातनी हुई. रेखा ने विनय के बारबार माफी मांगने और फिर कभी वह गलती न करने का वादा करने पर बच्चों के भविष्य के बारे में सोचते हुए उसे माफ कर दिया. पर रेखा का कहना है कि वह फिर कभी विनय पर आंख बंद कर विश्वास नहीं कर पाई. विनय को भी यह पता है कि अब उन के बीच पहले जैसी बात नहीं रही है.

किसी भी रिश्ते में यह बात सब से दुखदाई होती है कि जब आप को पता चलता है कि आप को धोखा दिया जा रहा है. आप कई भावनाओं, जैसे गुस्सा, अविश्वास, अपराधबोध से भर उठते हैं. जिसे धोखा मिलता है, वह मूड स्ंिवग्स, अवसाद, भूख और नींद की कमी, नकारात्मक विचारों से प्रभावित हो सकता है, यहां तक कि उस की हर चीज में रुचि खत्म हो सकती है. उस के आत्मसम्मान और आत्मविश्वास पर फर्क पड़ सकता है. पूरे विश्वास की धज्जियां उड़ जाती हैं.

दोनों पार्टनर्स को यह समझना होगा कि स्थिति को संभालने में काफी समय लगेगा और दोनों को ही धैर्य से काम लेना होगा. कुछ कपल्स में चीटिंग के बाद फौरन ब्रेकअप हो जाता है, पर कुछ में अपने पार्टनर के लिए बहुत मजबूत भावनाएं होती हैं. अपने भावनात्मक जुड़ाव के कारण वे इस रिश्ते को एक मौका और देना चाहते हैं.

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बहुत से लोगों को व्यक्तिगत थेरैपी की जरूरत होती है और उन्हें इस बात की बड़ी चिंता होती है कि वे एक बार का खोया विश्वास दोबारा हासिल कर पाएंगे या नहीं. यह जानना अजीब तो लग सकता है पर इस बात की सौ फीसदी गारंटी नहीं दी जा सकती कि अब उन का पार्टनर कभी चीटिंग नहीं करेगा.

कई मामलों में यह भी देखने को मिला है कि पार्टनर समझौते के बाद भी चीटिंग करता रहा है. ऐसे समय में एक स्पष्ट निर्णय ले लेना चाहिए कि रिश्ता जारी रहे या इसे खत्म कर दिया जाए. कई बार तो पार्टनर को यह पता ही नहीं होता कि उस ने अपने पार्टनर को धोखा दिया क्यों है. कुछ कहते हैं कि यह किसी भावना के बिना बिलकुल वन नाइट स्टैंड था. कुछ का कहना है कि उन का विवाह बहुत छोटी उम्र में हो गया. वे कुछ और अनुभव भी चाहते थे. कुछ बच्चों के जन्म के बाद जीवन में आए परिवर्तनों को कारण बताते हैं.

टिप्स जो बनाएं विश्वास

कुछ को अपने पार्टनर के साथ चीटिंग करने के बाद बहुत अफसोस होता है और वे इस गलती को सुधारने के लिए काफी कोशिश भी करते हैं. विश्वास दोबारा पाने में बहुत मेहनत और कोशिश करनी पड़ती है. यदि दोनों पार्टनर्स रिश्ते को बचाना चाहते हैं तो ये बातें उन की मदद कर सकती हैं :

संवादहीनता के कारण कई बार रिश्ते टूटने लगते हैं. चीटिंग के मामले में पार्टनर्स को एकदूसरे से ईमानदारी से बात करनी चाहिए और हर तरह से डर, संदेह व चिंता पर फ्री हो कर बात करनी चाहिए.

लड़ते हुए भी एक बात याद रखें. अतीत की बात को ज्यादा न खींचे. वर्तमान में रह कर सोचें और भविष्य के संदेहों में न घिरे रहें. वर्तमान में रहने का सम्मिलित प्रयास करना होगा. दोनों पार्टनर्स को एक बार फिर रिश्ता बनाए रखने के लिए मिल कर फोकस करना होगा.

खुद को दोष देने की भावना न रहे, आत्मविश्वास बना रहे. चीटिंग करने वाले पार्टनर को यह स्पष्ट कर देना चाहिए कि गलती उस की है, उस के पार्टनर का दोष नहीं, जिस से उस का पार्टनर खुद को दोषी मान आत्मसम्मान न खो रहा हो.

चाहे कितना भी गुस्सा आए, एकदूसरे को शारीरिक, मानसिक या भावनात्मक हानि न पहुंचाएं. इस समय विश्वास बनाना है और एकदूसरे के सम्मान का ध्यान रखना है. दोनों पार्टनर्स का अपनी प्राइवेसी पर अब भी पूरा हक है. चौबीसों घंटे एकदूसरे पर नजर रखना, शक करना, सवाल पूछते रहना दोनों पार्टनर्स को चिड़चिड़ाहट से भर सकता है.

याद रखें, कोई भी इंसान या रिश्ता परफैक्ट नहीं है. एकदूसरे में कमियां ही न निकालते रहें. यही बारबार न खोदते रहें कि यह हुआ क्यों.

चीटिंग करने वाला पार्टनर साफसाफ बात करे और अपनी हरकत की जिम्मेदारी ले. सच्चे दिल से माफी मांग कर वह पार्टनर का दुख कम कर सकता है. उसे यह समझ लेना चाहिए कि उस की चीटिंग का पता चलने पर उस का पार्टनर कुछ महीनों तक ऐसे ही व्यवहार करेगा. उसे धैर्य रखना है. कभीकभी उस का हाथ पकड़ लेना या उसे गले लगाना भी बहुतकुछ कह जाता है.

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उसे स्पेस दें, उस का सम्मान करें, छोटेछोटे प्रौमिस न करें, झूठे वादों से परहेज करें.

खोए हुए विश्वास को दोबारा हासिल करने की यात्रा में कई उतारचढ़ाव आएंगे. यह एक चुनौतीभरा काम है. आत्मनिरीक्षण और सही सोच के साथ इसे शुरू करना है. स्पष्ट निर्णय लें. अनिश्चय की स्थिति में रहने से ज्यादा तकलीफ होती है और कभीकभी साथ रहना असंभव हो जाता है. कभीकभी एकदूसरे से कुछ ब्रेक लेना भी ठीक रहता है.

फिर भी, जब कभी दोनों पार्टनर्स साथ रहने और खोया विश्वास दोबारा पाने की कोशिश करते हैं, तो यह दोनों के लिए बहुत लाभदायक फैसला होता है. इस प्रक्रिया में काउंसलिंग या साइकोथेरैपी से प्रोफैशनल हैल्प लेना भी अहम होता है.

साधने की कला

रविवार की शाम रैस्तरां में बैठा चाय की चुस्कियों के बीच देश की समस्याओं के बारे में एक आम आदमी की तरह चिंतन कर परेशान हो रहा था. अचानक ही मेरा एक प्रशासनिक अधिकारी मित्र पंकज आ गया. थोड़ी देर दीनदुनिया की बातें होने के बाद मैं ने पूछा, ‘‘यार, आजकल बहुत व्यस्त रहते हो, इतने बड़े पद पर ऐसे क्याक्या कार्य करने होते हैं?’’

वह बोला कि इस पद पर कोई काम नहीं रहता. मुख्य काम साधने का रहता है.

मैं ने कहा, ‘‘साधने का काम, यह क्या होता है? समझा नहीं.’’

‘‘साधने का मतलब वजूद वालों को साधते रहना,’’ उस ने कहा.

मैं ने कहा, ‘‘फिर सरकारी काम का क्या करते हो? समाज कल्याण की, विकास की योजनाओं को कौन देखता है? स्कूलों, स्वास्थ्य केंद्रों की व्यवस्था कौन देखता है? आम लोगों की छोटीछोटी समस्याओं का क्या होता होगा?’’

तो वह मुसकराते हुए बोला, ‘‘ये सब तो आजादी के बाद से होता आया है और होता रहेगा. ये काम मुझे कौन से करने पड़ते हैं, ये तो करने वाले दूसरे हैं. सब अपनेआप होते रहते हैं.’’

‘‘तो फिर क्या तुम्हारे पास कोई नहीं आता अपनी समस्या ले कर?’’ मैं ने पूछा.

वह लापरवाही से बोला, ‘‘आते हैं, तो मैं नीचे भेज देता हूं या किसी को बुला कर डांट देता हूं. काम हो या न हो, सामने वाला खुश हो जाता है. या फिर फोन घुमा कर निर्देश दे देता हूं. सामने वाले को यह एहसास हो जाता है कि अब बड़े साहब ने ही फोन कर दिया है तो उस का काम होगा ही.’’

मैं ने कहा, ‘‘वाह, फिर यह साधने वाला काम क्या होता है, किस को साधते हो?’’

वह बोला, ‘‘वही ताकतवर शख्सीयतों को.’’

मैं ने प्रतिप्रश्न किया, ‘‘क्या केवल नेताओं को साधते हो?’’

‘‘नहीं, और भी हैं जिन की न्यूसैंस वैल्यू है, उन सब को साधते हैं. जैसे कि, कोई पत्रकार हो सकता है, सोशल ऐक्टिविस्ट हो सकता है, कोई ताकतवर ठेकेदार या सप्लायर भी हो सकता है.’’

मैं ने कहा, ‘‘तो क्या यह काम इतना बड़ा है कि दिनभर इसी में निकल जाता है?’’

वह माथे पर बल देते हुए बोला, ‘‘हां, अब यह काम बहुत विकट, बहुत जटिल व छितरा हुआ हो गया है. कई सत्ता केंद्र हैं. बल्कि, मैं कहूं कि न्यूसैंस के केंद्र हैं. इन को साधना बहुत जरूरी है. साधना आसान काम नहीं है. यह एक पूरा विज्ञान है. यह एक प्रकार की साधना ही है जैसी कि साधूसंन्यासी करते हैं. मैं इस के लिए पूरा एक प्लान बनाता हूं.

‘‘पहले न्यूसैंस वालों को सावधानीपूर्वक सूचीबद्ध करना पड़ता है. यहां सावधानी हटी और दुर्घटना घटी के बहुत अवसर होते हैं. फिर उन की तुलनात्मक तोल करता हूं. फिर किस को कैसे साधा जाए, यह विधा तय की जाती है.

‘‘कोई चंदे से सधता है, कोई विज्ञापन से, कोई छोटामोटा स्थानांतरण करवा देने से, कोई दिल्ली के टिकट से, कोई बंदूक के लाइसैंस से, कोई टैंडर पास होने से, तो कोई किसी स्वहित कार्यक्रम में शिरकत कर देने से और कोई केवल बिठा कर चाय पिलाने व गपशप कर देने से सधता है.

‘‘हजारों तरीके हैं. मैं तो सोच रहा हूं कि बाद में एक किताब ही इस पर लिख डालूंगा. मैं साधने के अनुभव की खान होता जा रहा हूं.’’

‘‘नहीं साधोगे, तो क्या होगा?’’ मैं ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘क्या होगा? मिनटों में शंट हो जाएंगे.’’

‘‘मतलब, इतनी जल्दी तबादला,’’ मैं ने आश्चर्य प्रकट किया.

‘‘इतनी जल्दी नहीं होता, लेकिन जब होता है, तो चुटकी बजते हो जाता है. नहीं साधो, तो ये कान भरना शुरू कर देते हैं. और इतने ज्यादा भर देते हैं कि मिनटों में शंट होने का मसाला इकट्ठा हो जाता है.’’

‘‘तो और किस को किस को साधते हो?’’ मैं ने फिर पूछा.

वह बोला, ‘‘चूंकि यह राजधानी है, इसलिए सब से पहले तो सरकार के मुखिया को साधना पड़ता है. वे कहीं भी शहर में दौरे पर हों, तुरंत वहां व्यवस्था देखनी पड़ती है. उन के साथ रहना पड़ता है, आगेपीछे होते रहते हैं.’’

‘‘और फिर किस कोे साधना पड़ता है? जनता के काम का क्या होता है?’’ मैं ने नेताओं की तरह जनताहितैषी बनने की कोशिश की.

‘‘वह तो होता रहता है. यार, तुम बारबार जनता को बीच में ले आते हो. यह जनता निरी मूर्ख होती है. इस का काम न हो तो भी यह अकेले हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकती है. इस में यह ताकत ही नहीं है और इस की स्मरणशक्ति भी कमजोर होती है. इसे एक नेता चाहिए जो इस की तरफ से पैरवी करे, न्यूसैंस पैदा करे. यह जनता अपनी पैरवी करने वाले से सधती है. और हम बस इन पैरवी करने वालों को साधने में लगे रहते हैं.

‘‘एक राज की बात सुनो, पहले मैं जब नौकरी में नयानया आया था तो जनता के काम करने के लिए इन नेताओं से सीधे भिड़ जाता था. मैं बहुत परेशान होता रहा, हर 6-8 माह में तबादला हो जाता. तबादले इतने ज्यादा होने लगे थे कि मैं ने एक ट्रक वाले से यारी कर ली. जब भी जरूरत हुई, उस का ट्रक बुलवा लिया. फिर मैं ने एक नया रास्ता खोज लिया और इन्हें साधना शुरू कर दिया. तो मेरी इमेज ऊपर तक अच्छी हो गई. यह ढोल सब तरफ पीटा जाने लगा कि यह अधिकारी जनता की समस्याओं के प्रति बहुत संवेदनशील है.’’

मैं ने कहा, ‘‘तो मतलब तुम ने व्यवस्था की पोल की थाह ले ली है. जबकि तुम वास्तव में पहले जनता के प्रति संवेदनशील थे. अब तुम न्यूसैंस वालों के लिए संवेदनशील हो गए हो?’’

उस ने कहा, ‘‘अब तुम बिलकुल ठीक समझे. आज 99 प्रतिशत अधिकारी यही कर रहे हैं, और वे सुखी हैं. एक प्रतिशत हैं जो कि जनता की समस्याओं को पूरी संवेदनशीलता से समझ कर उन का फौरन निदान करना चाहते हैं, लेकिन वे दुखी हैं.’’

मैं सोच में पड़ गया. वह इसे ताड़ गया, बोला, ‘‘साधने को एक कला का नाम दे देना चाहिए और इस के लिए अधिकारियों को हर साल पुरस्कार देना चाहिए. वे 1-2 नहीं, एक जिले में 20-20 या उस से अधिक लोगों को साध लेते हैं. और कईकई साल साधे रहते हैं. तभी तो, बिना काम कर के भी वे लगातार मलाईदार ओहदों पर विराजमान रहते हैं.’’

‘‘और किस को किस को साधना पड़ता है?’’ मैं ने कहा.

वह बोला, ‘‘पालक मंत्रीजी को साधना पड़ता है, फिर उन मंत्रीजी को भी जो पालक तो नहीं हैं लेकिन इसी शहर से निर्वाचित हो कर दूसरे जिले के लिए निर्वासित कर दिए गए हों. कम से कम उन के गुर्गों को, समर्थकों को, चमचों को फीलगुड की स्थिति में रखना पड़ता है. और ये आसान काम नहीं होता, यह समझ लो.

‘‘फिर सांसद होते हैं, और राज्यसभा के भी होते हैं, उन को साधना पड़ता है. केवल जनता के नेताओं को साधने से ही काम नहीं बनता है.’’

मैं ने कहा, ‘‘क्या मतलब?’’ तो वह बोला कि कर्मचारी भी बड़ी चीज हैं. कई कामचोर कर्मियों को यह नहीं बोल सकते हो कि आप काम क्यों नहीं करते? दफ्तर समय पर क्यों नहीं आते? उन पर वर्चस्व बनाए रखने व किसी भविष्य के पंगे से बचने के लिए तेजतर्रार कर्मचारी नेताओं को भी साधना पड़ता है.

‘‘लेकिन इन को कैसे साधते हो?’’

‘‘अरे कुछ नहीं, इन के कुछ व्यक्तिगत स्वार्थ के काम होते हैं, वे करने पड़ते हैं. कुछ चंदा, विज्ञापन वगैरह होते हैं, वे दिलवा देते हैं. इतने में साधने का कर्म हो जाता है.’’

‘‘साधने की सूची बस, इतनी ही है कि और भी हैं इस में लोग?’’

‘‘नहीं, सूची तो अभी शुरू हुई है. इस में विधायक हैं, आजकल अध्यक्ष जमानेभर के हो गए हैं. इन को भी साधना जरूरी है. न जाने कौन किस से जुड़ा हो और कब किस के कान भर क्या समस्या खड़ी कर दे. सो, इन को भी समुचित सम्मान देना पड़ता है.’’

‘‘अध्यक्ष बहुत हैं, मतलब?’’

‘‘जिला परिषद मंडी, तो फिर नगर अध्यक्ष हैं, और पार्टी के अध्यक्ष हैं. विपक्षी पार्टी के अध्यक्ष को भी पूरी तरह नाराज नहीं कर सकते हैं. उन की भी एक बड़ी न्यूसैंस वैल्यू है,’’ उस ने कहा.

मैं ने कहा, ‘‘दिन में कितना समय आप का साधने में और कितना काम करने में निकलता है, अलगअलग बताओ.’’

वह बोला, ‘‘यदि मैं 12 घंटे काम करता हूं तो समझो इस में से केवल 3 घंटे गैरसाधने का काम करता हूं. बाकी सारा काम साधने का ही रहता है. इस के लिए एक सभ्य शब्द भी है जिसे जनसंपर्क के नाम से जाना जाता है.’’

‘‘लेकिन, इस के लिए तो एक विभाग ही अलग बना है?’’

‘‘बना होगा, लेकिन साधने का काम हर व्यक्ति को, सफल प्रशासक को खुद करना पड़ता है. जो नहीं कर सकता, वह सफल नहीं रह सकता. हां, कुछ छोटे न्यूसैंस वालों को साधने का काम मैं अपने मातहतों को डेलीगेट कर देता हूं. विकेंद्रीकरण का समय है न. वे मेरी ओर से उन को साधते हैं. अब तुम पूछोगे कि इन को वे कैसे साधते हैं?

‘‘जनाब, किसी को कहीं जाने के लिए वाहन चाहिए. किसी को विज्ञापन चाहिए. किसी को चंदा चाहिए. कोई तो इतने में ही सध जाता है कि साहब आप हमारे कार्यक्रम में आ कर उसे सफल बना दें, उस की शोभा बढ़ा दें. काम कम करो उस का ढिंढोरा ज्यादा पीटो, यही मंत्र है. और इस के लिए जिन को हम साधते हैं वे ही हमारी सदाशयता, भलमनसाहत, संवेदनशील अधिकारी होने के सब से बड़े प्रचारक साबित होते हैं.

‘‘सूची बहुत लंबी है. कौफीहाउस बंद होने का समय हो रहा है. साधने की बाकी तकनीकों पर बाद में बात करेंगे. मुझे फोन भी आ रहा है. रात के 11 बजे भी मुझे एक को साधने के लिए जाना है. उस का एक छोटा सा काम है. यदि अभी नहीं साधा तो गड़बड़ हो जाएगी. वह शहर कमेटी का एक प्रमुख है. कल की शांति, समृद्धि व सुख के लिए मुझे यह आज ही करना जरूरी है.’’

और वह अपनी सेवानिवृत्त बत्ती वाली गाड़ी में साधने के मुकाम पर निकल गया.

मुझे साधने की कला का दिव्य ज्ञान प्राप्त हो गया था. सो, मैं भी अपने घर को रवाना हो गया. मेरे मन में खटका था कि काफी लेट हो गया हूं, तो पत्नी को आखिर कैसे साधूंगा. मेरा दोस्त भी सब को तो साध लेता होगा लेकिन गृह मोरचे पर उसे भी पसीना आ जाता होगा.

ढेर या शेर बन कर लौटेगी टीम इंडिया?

क्रिकेट की सब से बड़ी प्रतियोगिता यानी आईसीसी क्रिकेट विश्वकप 2019 का आगाज इंग्लैंड के शहर वेल्स में 30 मई से शुरू हो रहा है. दुनियाभर में करोड़ों क्रिकेट के दीवाने इस महाकुंभ का इंतजार कर रहे हैं. भारतीय टीम के फैंस तो क्रिकेट के कुछ ज्यादा ही दीवाने हैं.

इस दीवानगी की वजह भी है. पिछले कुछ वर्षों से टीम इंडिया जिस अंदाज में खेल रही है और देशविदेश की धरती पर जीत दर्ज कर रही है उस से क्रिकेट के दीवानों की एक और वर्ल्डकप जीतने की उम्मीद ज्यादा बढ़ गई है.

विराट कोहली, रोहित शर्मा, शिखर धवन, के एल राहुल, विजय शंकर, महेंद्र सिंह धौनी, दिनेश कार्तिक, केदार जाधव, हार्दिक पंड्या, रवींद्र जडेजा, जसप्रीत बुमराह, भुवनेश्वर कुमार, मोहम्मद शमी, युजवेंद्र चहल और कुलदीप यादव को इस विश्वकप के लिए चुना गया है.

इन खिलाडि़यों को देख कर यही लगता है कि चयनकर्ताओं ने टीम इंडिया को बैलेंस किया है. एक तरफ जहां युवा खिलाडि़यों का जोश देखने को मिलेगा  वहीं दूसरी तरफ उम्रदराज होते खिलाडि़यों का जोश व अनुभव. इस का सब से बड़ा सुबूत धौनी हैं जिन्होंने पिछले दिनों विदेशी धरती पर अपने शानदार प्रदर्शन से यह साबित किया है कि अनुभव के साथ युवाओं जैसा जोश उन में अभी भी बरकरार है.

इस टीम के साथ सब से बड़ा प्लस पौइंट यह है कि अब केवल एक बल्लेबाज के इर्दगिर्द टीम इंडिया का प्रदर्शन टिका नहीं रह गया है. पिछले कुछ मैचों में यह देखा गया है कि रोहित शर्मा, शिखर धवन, विराट कोहली, केदार जाधव जैसे बल्लेबाज अपनी भूमिका बखूबी निभा रहे हैं. इन में से किसी एक बल्लेबाज के जल्दी आउट हो जाने से ऐसा नहीं होता है कि टीम जल्दी ढेर हो जाती है. इन में से कोई न कोई बल्लेबाज टीम को संभाल लेता है.

बल्लेबाजी में कप्तान विराट कोहली, रोहित शर्मा, शिखर धवन, के एल राहुल के नाम सब से ऊपर हैं. लेकिन जब ये धुरंधर फेल हो जाएंगे तो टीम इंडिया को जीत में तबदील कराने का माद्दा रखने वाले महेंद्र सिंह धौनी हैं. आईपीएल के मैचों में उन्होंने यह साबित भी किया है.

टीम इंडिया के पास जहां चौकोंछक्कों की बारिश करने वाले हार्दिक पंड्या, रवींद्र जडेजा और केदार जाधव जैसे औलराउंडर हैं तो जसप्रीत बुमराह, भुवनेश्वर कुमार, मोहम्मद शमी जैसे तेज गेंदबाज के अलावा युजवेंद्र चहल व कुलदीप यादव जैसे स्पिन गेंदबाज भी हैं जो किसी भी बल्लेबाज को मैदान से बाहर का रास्ता दिखाने में माहिर हैं.

टीम इंडिया इंग्लैंड की जमीन पर उस इतिहास को दोबारा दोहराना चाहेगी जो 1983 में कपिल देव की टीम ने किया था.

हालांकि, टीम इंडिया ने विदेशी धरती पर हालफिलहाल कई कारनामे किए हैं. टैस्ट मैचों में आस्ट्रेलिया की धरती पर आस्ट्रेलिया को हराना आसान नहीं था, लेकिन टीम इंडिया ने विदेशी धरती पर इतिहास रचा. इसलिए यह कहना सही नहीं होगा कि टीम इंडिया विदेशी धरती पर ढेर हो जाती है. महेंद्र सिंह धौनी, विराट कोहली, रोहित शर्मा, शिखर धवन जैसे बल्लेबाजों को विदेशी धरती पर खेलने का खासा अनुभव है.

हां, केदार जाधव, रवींद्र जडेजा व विजय शंकर को थोड़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है. लेकिन जो अनुभवी बल्लेबाज हैं उन्हें ज्यादा दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ेगा बशर्ते कि वे उछाल वाली पिचों पर खास ध्यान रखें. टीम इंडिया की एक कमजोरी हमेशा से रही है, क्षेत्ररक्षण की. विदेशी खिलाडि़यों की तरह टीम इंडिया के खिलाडि़यों को फुरतीला बनना होगा. यदि आप एक रन बचाते हैं या फिर सटीक निशाने से गिल्ली उड़ा कर बल्लेबाज को बाहर का रास्ता दिखाते हैं तो यह बड़ी उपलब्धि होगी क्योंकि यहां तो एक रन से ही पासा पलट जाता है.

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टीम इंडिया अपना पहला मैच दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ खेलेगी और हैंपशायर के जिस मैदान में टीम इंडिया खेलेगी वह बल्लेबाजों के लिए अनुकूल माना जाता है. टीम इंडिया ने वर्ष 2004 में इसी ग्राउंड पर केन्या के विरुद्ध खेलते हुए 98 रन से जीत दर्ज की थी तो वहीं इंग्लैंड के खिलाफ खेलते हुए टीम इंडिया को वर्ष 2007 और वर्ष 2011 में हार का सामना करना पड़ा था. लेकिन इस मैदान में टीम इंडिया ने केन्या के विरुद्ध 4 विकेट पर सर्वाधिक 290 रन बनाए थे तो वहीं दक्षिण अफ्रीका ने इंग्लैंड के खिलाफ 5 विकेट पर सर्वाधिक 328 रन बनाए थे.

यानी, टीम इंडिया का पहला मुकाबला रोमांचक और चुनौती वाला होगा. लेकिन यह मैदान बल्लेबाजों के लिए माकूल है जो टीम इंडिया के पास है. खैर, यह तो एक मैच और मैदान की बात है लेकिन अगर इतिहास दोहराना है तो ऐसे कई मैदानों और मैचों में टीम इंडिया को सर्वश्रेष्ठ खेल का प्रदर्शन करना पड़ेगा, तभी इतिहास दोहरा पाएंगे और जो दर्शक या फैंस समय बरबाद कर के मैच देखते हैं उन्हें कुछ तो सुकून मिलेगा.

गरमियों के मौसम में बाहर के खाने से बचें…

 

टाइम ना होने के कारण अक्‍सर लोग बाहर का खाना ही खाना पसंद करते हैं. जंक फूड और फास्‍ट फूड लोगों की दिनचर्या में शामिल हो गए हैं. बाहर का खाना ज्‍यादा औइली और कैलोरी वाला होता है जिसे खाने से आप बीमारियों को बुलाते हैं. बाहर खाने से पेट से जुडी कई बीमारियां शुरू हो जाती हैं. गरमियों में फूड प्‍वाइजनिंग होने की संभावना ज्‍यादा होती है. इसके अलावा अनहेल्दी खाने से शुगर और कैंसर जैसी खतरनाक बीमारियां होने की संभावना बढ़ जाती है. इसलिए गरमियों के मौसम में बाहर का खाना अवोइड करना ही अपकी सेहत के लिए अच्छा है.

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बाहर का खाना बौडी को करता है कमजोर

बाहर के खाने में प्योरिटी का ख्‍याल नहीं रखा जाता है जिसके कारण बौडी को भरपूर मात्रा में प्रोटींस और विटामिंस नहीं मिल पाते हैं जिसके कारण शरीर की इम्युनिटी सिस्टस कमजोर होती है. गरमियों के मौसम में लगातार बाहर खाने से शरीर में थकान और आलस शुरू हो जाती है शरीर कमजोर और सुस्‍त पडने लगता है.

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बाहर के खाने से बढ़ता है मोटापा

बाहर का खाना ज्‍यादा औयली होता है. इसके अलावा बाहर के खाने में फैट की मात्रा ज्‍यादा होती है जिसके कारण मोटापा बढता है. गरमियों के मौसम में खाने के साथ सलाद ज्‍यादा मात्रा में प्रयोग करना चाहिए, लेकिन बाहर के खाने में सलाद की मात्रा कम होती है जिसके कारण मोटापे की समस्‍या शुरू होने लगती है.

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बाहर के खाने से होती है पेट की बीमारियां

पेट की बीमारियों का सबसे बड़ा कारण खान-पान होता है. बाहर का खाना उतनी सफाई से नहीं बनाया जाता है. उसमें कई प्रकार के कीटाणु होते हैं जो पेट में पहुंचकर बीमारियां फैलाते हैं. बाहर का खाना अच्‍छे से नहीं पचता है, जिसके कारण कब्‍ज, एसिडिटी, पेट मरोंडना, उल्टियां, डायरिया, बुखार जैसी समस्‍याएं शुरू हो जाती हैं. बाहर का खाना खाने से ही फूड प्‍वाइजनिंग होती है.

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सामान्‍य बीमारियां

गरमियों के मौसम में बाहर के खाने की प्योरिटी पर बिलकुल ध्‍यान नहीं दिया जाता है. प्योरिटी खाना होने के कारण कई बीमारियां शुरू हो जाती हैं. बाहर के खाने से कई सामान्‍य रोग जैसे- उल्‍टी, दस्‍त, पेचिश, बुखार होने शुरू हो जाते हैं. इसके अलावा कई दिनों तक बाहर का खाना खाने से कैंसर, डायबिटीज जैसी भयानक रोग भी होने लगते हैं.

Edited By – Neelesh Singh Sisodia 

8 साल बाद बौलीवुड में वापस आ रही हैं ‘‘रोजा’’

आठ वर्ष पहले प्रदर्शित फिल्म ‘‘लव यू मि.कलाकार’’ में अभिनय करने के बाद फिल्म ‘‘रोजा’’ फेम अभिनेत्री मधू ने अभिनय से दूरी बना ली थी. लेकिन अब वह कमल किशोर मिश्रा निर्मित और मनोज मिश्रा लिखित व निर्देशित हौरर कौमेडी फिल्म ‘‘खली बली’’ से बौलीवुड में दूसरी बार वापसी कर रही हैं. निर्माता कमल किशोर मिश्रा ने आज एक साथ ‘‘खली बली’’ ‘भूतियापा’’ और ‘‘फ्लैट नंबर 420’’ के निर्माण की घोषणा की. फिल्म ‘‘खली बली’’ की शूटिंग शुक्रवार,17 मई से मुंबई में शुरू होगी.

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ज्ञातब्य है कि हेमा मालिनी की भतीजी और ईशा देओल की कजिन मधू ने 1991 में अजय देवगन के साथ फिल्म ‘‘फूल और कांटे’’ में अभिनय करते हुए से बौलीवुड में कदम रखा था. जबकि 1991 में ही मधू ने दो मलयालम और एक तमिल फिल्म में भी अभिनय किया. फिर 1992 में फिल्मकार मणि रत्नम ने उन्हें अपनी फिल्म ‘‘रोजा’’ में अरविंद स्वामी के साथ हीरोईन बनाया, जिसे राष्ट्रीय पुरस्कार से समानित किया गया. उसके बाद मधू ने ‘पहचान’,‘प्रेम रोग’, ‘जालिम’, ‘हथकड़ी’, ‘रिटर्न आफ ज्वेलथीफ’,‘दिल जले’,‘मेरे सपनों की रानी’‘ मुलाकात सहित कई हिंदी के अलावा तमिल, तेलगू, कन्नड़ व मलयालम फिल्मों में अभिनय किया. पर 2001 से 2008 तक वह अभिनय करती रही. मगर 2001 से सात वर्ष के लिए वह गायब रही. 2008 में फिल्म ‘‘कभी सेाचा भी ना था’ से मधू ने पुनः अभिनय में वापसी की थीं. मगर 2011 में प्रदर्शित फिल्म ‘‘लव यू मि. कलाकार’’ के बाद उन्हे बौलीवुड में काम करने का अवसर नहीं मिला. जबकि वह तमिल, तेलगू व मलयालम की फिल्मों लगातार करती रहीं. 2019 में उनकी दो कन्नड़ और एक तमिल फिल्म प्रदर्शित होने वाली हैं.

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2011 के बाद बौलीवुड से दूरी बनाने की चर्चा चलने पर मधू कहती हैं- ‘‘फिल्म ‘लव यू मि. कलाकार’ से पहले सात वर्ष के लिए मैंने अपने बच्चों की सही परवरिश करने के मकसद से अभिनय से दूरी बनायी थी. फिर 2008 से 2011 के बीच मैंने तीन हिंदी फिल्मे की.  लेकिन ‘लव यू मि. कलाकार’ के बाद मुझे हिंदी फिल्मों के औफर नही मिले, जबकि मैं दक्षिण भारत में लगातार काम कर रही थी. बीच में गोल्डी बहल ने मुझे सीरियल ‘आरंभ’ में अभिनय करने के लिए बुलाया, तो मैंने किया. पर बौलीवुड में अब आठ वर्ष बाद मुझे हौरर कौमेडी फिल्म ‘खली बली’ के लिए याद किया गया. फिल्म‘खली बली’ में मेरे साथ रजनीश दुग्गल हैं, जिनके साथ मैने सीरियल ‘आरंभ’ किया था. हम इस फिल्म की शूटिंग पहले मुंबई में करेंगे, उसके बाद लखनउ में शूटिंग होगी.’’

योगी राज : आंकड़ों की पोल खोलता विधायक पर हमला

उत्तर प्रदेश सरकार जिस समय अपराध रोकने के आंकड़े जारी कर रही थी. ठीक उसी समय राजधानी लखनऊ से 40 किलोमीटर दूर लखनऊ-रायबरेली की सीमा पर स्थित दखिना शेषपुर टोल प्लाजा पर दिन दहाड़े नकाब पोश लोगों ने रायबरेली की विधायक अदिति सिंह की गाड़ी पर हमला किया.

जिला पंचायत सदस्य का अपहरण कर उसको अधमरा करके हरचंदपुर बाजार के पास फेंक दिया. इस घटना का सबसे बदनुमा पक्ष यह था कि पुलिस प्रशासन ने पूरी घटना को पहले एक दुर्घटना साबित करने की कोशिश की. टोल प्लाजा के सीसीटीवी फुटेज के सामने आने के बाद पुलिस के आला अफसर तेजी में आयेराय बरेली की घटना और कांग्रेस विधायक पर हमले के मामले में कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी के निंदा की. रायबरेली की विधायक अदिति सिंह ने कहा कि यह मेरे उपर हमला था.

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पूरा मामला रायबरेली जिला पंचायत अध्यक्ष पद के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव से जुड़ा था. जिला पंचायत सदस्य जिला पंचायत अध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव में वोट ना दे सकें. इसके कारण यह हमला हुआ. भाजपा बंगाल में चुनावी हिंसा को लेकर तमाम तरह के आरोप लगा रही है.

रायबरेली की घटना बताती है कि चुनाव की हर हिंसा सत्ता के द्वारा ही पोशित होती है. केवल जगह के हिसाब से किरदार बदल जाते हैं. योगी सरकार ने अपनी सरकार के द्वारा अपराध रोकने के प्रयासों को बताते हुये आंकड़े जारी किये. जिनको देखकर हर कोई यह कह सकता है कि बदमाशों में सत्ता का खौफ है.

सड़क पर इस तरह के हमले बताते हैं कि बहुत सारे प्रयासों के बाद भी बदमाश बेखौफ हैं. योगी सरकार के आंकड़े बताते हैं कि 73 अपराधी मारे गये, 3599 एनकांउटर हुये, एनकांउटर में 8251 अपराधी पकड़े गये, 1059 पुलिस वाले इन घटनाओ में घायल हुये, 4 पुलिस कर्मी शहीद हुये, 13866 अपराधी जमानत कैंसिल कराकर जेल गये, 1 लाख के 3 इनामी मारे गये, 50 हजार के 29 इनामी मारे गये, 6010 पर एंटी रोमियो काररवाई, 13602 पर गैंगस्टर, 67 करोड की संपत्ति जब्त, 1391 के खिलाफ गैंगस्टर और 15629 के खिलाफ गुंडा एक्ट के खिलाफ कररवाई हुई. आंकड़े अपनी जगह है और अपराध की सच्चाई अपनी जगह. हर सरकार अपने समय ऐसे आंकडे जारी करती हैं. आंकडों में कभी भी किसी सरकार को नाकाम होते नहीं दिखाया जाता है. इसके बाद भी जनता सच को समझती है. आज हत्या, बलात्कार, लूट, चोरी, धोखाधडी, जमीनों पर कब्जे की घटनायें जनता को परेशान कर रही है. दूसरी ओर राजनीति से प्रेरित रायबरेली जैसी घटनायें भी घट रही है. इससे साफ है कि आंकडे बाजी और एनकाउंटर से अपराध रूकने वाले नहीं है.

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अपराध रोकने के पुलिस को काम करना पडेगा. आज भी थाने में मुकदमा नहीं लिखा जाता या फिर मुकदमा हल्की धाराओं में लिखा जाता है. पुलिस जब रायबरेली जैसी बड़ी की. लीपापोती करने लगती है तो छोटी घटनाओं में उसकी नियत को साफतौर पर समझा जा सकता है.

नीता अंबानी ने तोड़े अंधविश्वासों और पाखंडों के वैदिक रिकार्ड

देश की सबसे रईस महिला नीता अंबानी ने आईपीएल टूर्नामेंट के फाइनल में अपनी टीम मुंबई इंडियन की जीत के लिए एक खास तरह की पूजा कराई थी. जिसे धर्मग्रंथों में चंडी पूजा कहा जाता है. बेशुमार दौलत के साथ साथ खूबसूरती की मालकिन नीता के पास पीएचडी की भी डिग्री है, इसके अलावा वे कत्थक की प्रशिक्षित नृत्यांगना भी भी हैं यानि नीता अंबानी बहुमुखी प्रतिभा की धनी हैं.

एक मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मी 54 वर्षीय नीता विकट की और एक सनक की हद तक अंधविश्वासी भी हैं. यह बात तब भी उजागर हुई थी जब वे आईपीएल की ट्राफी लेकर मुंबई के सिद्धि विनायक और जुहू स्थित राधा कृष्ण मंदिर पूरे धूम धड़ाके से पहुंची थीं, इस मंदिर में तो उन्होंने देवी देवताओं के साथ ट्राफी का भी पूजन पाठ करवा कर जाने क्या साबित करने की कोशिश की थी.

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वैसे यह बात जरूर इस लिहाज से हैरत की हैं कि हिन्दू धर्म में तो पत्थर, पेड़, पानी,  पक्षी, और पशु तक पूजे जाते हैं लेकिन ट्राफी पूजन का जिक्र कहीं नहीं मिलता. अब उम्मीद की जा सकती है कि जल्द यह भी होने लगेगा क्योंकि सांप सपेरों के देश में धार्मिक पाखंडों के नाम पर आप कुछ भी पूज सकते हैं बशर्ते आपके पास पूजा करने वाले पंडित को देने नीता अंबानी की तरह करोड़ों की दक्षिणा हो नहीं तो आपकी औकात और हैसियत दोनों सड़क किनारे अतिक्रमण के मकसद से बनाई गई मढ़िया ( लघु टाइप का मंदिर ) लायक भी नहीं है. वजह  श्रद्धा का पैमाना हमेशा ही हृदय बाला नहीं बल्कि बाजार बाला भाव रहा है.

खैर बात आईपीएल की हो रही थी जिसकी जीत के लिए नीता ने सिर्फ फाइनल ही नहीं बल्कि अपनी टीम के हर मैच के पहले चंडी पूजा कराई थी, जिसकी बदौलत उनकी टीम फाइनल तक पहुंची और जीती भी. जाहिर है मुंबई इंडियन टीम के खिलाड़ी तो निमित्त मात्र थे नहीं तो नीता पहले ही चंडी देवी से फिक्सिंग कर चुकी थीं जाहिर यह भी है कि ये मैच उनकी लीला थे.

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यह हर किसी ने देखा कि हर मैच के दौरान नीता मंत्र बुदबुदाते चंडी माता को याद दिलाती रहीं थीं कि हे माता व्यस्तता या किसी दूसरी आकस्मिक वजह के चलते मेरे करोड़ों पर पानी मत फेर देना. माता चंडी ने भी उनकी रईसी का मान सम्मान रखते उनका केस अर्ली हियरिंग में रखते उन्हें निराश नहीं किया. क्योंकि उन जैसी पैसे वाली यह भक्तिन अगर कुपित हो जाती तो उनका अस्तित्व जरूर खतरे में पड़ जाता और मिडिल क्लासी और लोअर क्लासियों का भरोसा पूजा पाठ और देवी देवताओं की चमत्कारिक शक्तियों से उठ जाता. इससे होता यह भी कि  लाखों पंडे पुजारियों को मेहनत की रोटी खाने इन्हीं तबकों की तरह पसीना बहाने मजबूर होना पड़ता. यह बात हिन्दू धर्म की मान्य और अमान्य दोनों परम्पराओं और सिद्धांतों के प्रतिकूल होती. इससे आम लोगों में भगवान के प्रति भी प्रतिकूल मैसेज ही जाता.

इन सब हालातों और नीता देवी की इच्छा के मद्देनजर चंडी माता ने उनकी टीम को जिताने में ही बेहतरी समझी. इस मैच जिताऊ पूजा को अंबानी परिवार के फैमिली पंडितों में से एक पंडित चन्द्र शेखर ने सम्पन्न कराया और उसकी महत्ता बनाए रखने उसका ढिंढोरा भी खूब पीटा. जिससे देश के अलावा विदेशों तक में भी यह संदेशा चला ही जाये कि भारत देवी देवताओं का देश है, जहां दैनिक नित्यकर्म भी बिना मंत्रो के नहीं किए जाते और यह वैज्ञानिक व्यवस्था जिनके यहां न हो वे जीत आदि के लिए भारतीय पंडितों की सेवाएं ले सकते हैं. यह चन्द्र शेखर जी का आर्थिक स्वार्थ नहीं बल्कि उदारता थी, जो वे इस तरह की सेवाओं का लाभ हर किसी को देना चाहते हैं.

चंडी पूजा कोई ऐसी वैसी या ऐरी गैरी पूजा भी नहीं है, इसका अस्तित्व या महात्म्य वैदिक काल से है. त्रेता युग में रावण पर विजय के लिए ब्रह्मा ने राम को इस पूजा का निर्देश दिया था. राम यह पूजा करा ही रहे थे, कि चालाक रावण ने राम के नीलकमल के फूल चुरा लिए. चंडी माता को पूजा के बाद अगर नीलकमल का फूल न अर्पित किया जाये तो वे क्रुद्ध हो जाती हैं और पूजा करने बाले को ही लपेटे में ले लेती हैं. इस कोप से बचने नव कुंज लोचन कंज मुखकर कंज पद कंजारुणम… वाले राम ने फूल की जगह अपनी आंख चढ़ाने का फैसला ले लिया जो रावण से जीत की ख्वाहिश कम माता चंडी के प्रकोप से बचने का टोटका ज्यादा था.

हर कोई यह भी जानता है कि हिन्दू देवी देवता जिस तरह बात बेबात पर कुपित हो जाते हैं  उतनी ही आसानी से भक्त की दयनीय हालत देखकर द्रवित भी हो जाते हैं. राम के नेत्र दान से बचने चंडी ने उन्हें जीत का आश्वासन दे दिया. नतीजतन लंका सुपर किंग आर्यावर्त इंडियन से हार गई.

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यही आईपीएल में हुआ नीता की पूजा रंग लाई और मुंबई इंडियन जीत गई और तो और  किसी को आंख भी नहीं चढ़ाना पड़ी. बस कुछ करोड़ रुपयों में बात बन गई जो कलयुग की लक्ष्मी नीता अंबानी उतनी देर में कमा लेती हैं जितनी देर उन्हें पलक झपकाने में लगती हैं. नीता अंबानी से क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड जैसी एजेंसियों से सबक लेना चाहिए कि जीत खिलाड़ियों की मेहनत और प्रतिभा से नहीं बल्कि चंडी पूजा से आती है. लिहाजा वर्ल्ड कप के लिए टेंशन लेने की जरूरत नहीं. टीम के साथ चन्द्र शेखर जैसे विशेषज्ञ पंडित भेज देने से ही काम चल जाएगा फिर कप हमारे देश में होगा.

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