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मोह का जाल
‘‘तू नहीं जानती है, बेटी, तेरे डैडी ने 1-2 जगह इस बात का जिक्र किया था, किंतु बीमारी का सुन कर लड़के वालों ने कोई न कोई बहाना बना कर चलती बात को बीच में ही रोक दिया.’’
भाग - 1
तनु की झोली में खुशी जिस तरह अचानक भर गई थी उसी तरह एक झटके में छिन भी गई. पर अपने हौसले से अपनी जिंदगी का सहारा वह खुद बन गई. फिर आज ऐसा क्या हुआ था कि अपने अंतहीन पथ पर चलते हुए उस के कदम लड़खड़ाने लगे थे?
भाग - 2
जीवन में अब न कोई उमंग थी और न ही तरंग. किसी पर भार बन कर रहना नहीं चाहती थी. सो, प्रीमैडिकल में सफल होना प्रथम और अंतिम ध्येय बन गया था. समय कम था. मन को पढ़ाई में एकाग्र किया.
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