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मेरी उम्र 18 साल है. मेरे चेहरे पर छोटे छोटे दाने निकल आए हैं. मैं क्या करूं?

सवाल
मेरी उम्र 18 साल है. मेरे चेहरे पर छोटेछोटे दाने निकल आए हैं. उन्हें हटाने के लिए मुझे कोई घरेलू उपाय बताएं?

जवाब
दानों को बिलकुल न छीलें, वरना भद्दे निशान पड़ सकते हैं. दानों को सुखाने के लिए यह पैक बना लें- 1 चम्मच मुलतान मिट्टी और थोड़ी सी सूखी व पिसी नीम की पत्तियों को गुलाबजल में मिक्स कर के इस पेस्ट को चेहरे पर लगाएं. ऐसा करने से दानें कुछ ही दिनों में सूख जाएंगे, साथ ही निकलने भी कम हो जाएंगे. इस के अलावा आप निशानों को कम करने के लिए कौस्मैटिक क्लीनिक से माइक्रोडर्मा ऐब्रेजर या फिर लेजर थेरैपी भी करवा सकती हैं. इस थेरैपी में लेजर किरणों से त्वचा को रिजनरेट कर के नया रूप दिया जाता है.

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चेहरे पर लगाती हैं नींबू तो..

अपनी त्वचा को दमकाने के लिए आपने कई तरह के घरेलू उपायों को अपनाया होगा. कभी बेसन और हल्दी से बना फेसपैक, तो कभी एलोवेरा जेल का प्रयोग तो कभी कच्चे दूध से चेहरा धुला होगा. लेकिन क्या आपने कभी नींबू का इस्तेमाल, त्वचा को सुंदर बनाने के लिए किया है. अगर नहीं तो आप कर सकती हैं.

कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि नींबू के इस्तेमाल से कुछ लोगों में रैशेज पड़ने और जलन होने की समस्या भी देखी गई है और इसके पीछे मुख्य वजह, लोगों की अलग-अलग प्रकार की त्वचा का होना होता है. चूंकि, नीबू की प्रकृति अम्लीय होती है, ऐसे में यह त्वचा पर विपरीत प्रभाव भी डाल देता है. अगर आपको नींबू के रस से एलर्जी हो तो इसका इस्तेमाल बिल्कुल न करें.

नींबू का पीएच मान बहुत कम होता है यानि उसमें अम्लीय गुण अधिक होता है. ऐसे में उम्मीद कहीं ज्यादा है कि आप चेहरे के जिस हिस्से का उपचार करें वो ठीक होने के बजाय धब्बे और चकत्तेदार हो जाएं.

कई लोगों को नींबू को चेहरे पर लगाने के बाद लाल चकत्ते भी पड़ जाते हैं और खुजली होने लगती है. आपको बता दें कि नींबू में फोटोसिंथेसाइजिंग कम्पाउंड होते हैं जो धूप में त्वचा को यूवी किरणों के प्रति अधिक संवेदनशील बनाते हैं. जिसकी वजह से चेहरे पर पिग्मेंटेशन भी हो सकता है.

इसलिए नींबू का इस्तेमाल करने से पहले इन बातों को ध्यान में रखें.

1. अगर आप नींबू का इस्तेमाल अपनी त्वचा को सुंदर बनाने के लिए करना चाहती हैं तो आपको सबसे पहले अपनी त्वचा का प्रकार जानना बेहद जरूरी है.

2. अगर त्वचा ड्राई या फ्लैकी है तो इसका इस्तेमाल न करें. इस्तेमाल से पहले चेहरे को नम कर लें.

3. चेहरे पर दाने या कील-कील-मुहांसे होने पर भी आप इसका इस्तेमाल न करें, वरना जलन हो सकती है.

4. नींबू से त्वचा हाईड्रेड हो जाती है इसलिए ये फायदेमंद साबित होता है.

5. गंदे हाथों से कभी भी इसे न लगाएं. अन्यथा आपको दाने हो सकते हैं या किसी प्रकार का संक्रमण भी हो सकता है.

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मैं एक लड़के से प्यार करती हूं लेकिन वह कहता है कि उसे कैंसर है. मुझे लग रहा है कि वह झूठ बोल रहा है, मैं क्या करूं?

सवाल
मैं 20 साल की युवती हूं, एक लड़के से बहुत प्यार करती हूं. हम दोनों 3 साल से साथ हैं लेकिन अब 10 दिनों से हमारे बीच कोई बात नहीं हो रही है. वह कहता है कि कुछ दिनों बाद बात करेगा क्योंकि उसे कैंसर है और उस का इलाज चल रहा है. वह मुझ से बहुत प्यार करता है. उस की इन बातों पर मुझे यकीन नहीं हो रहा है. मुझे लग रहा है कि वह झूठ बोल रहा है. अब आप ही बताएं कि मैं क्या करूं?

जवाब
जब आप का लवरिलेशन 3 वर्षों से चल रहा है तो अब तक आप दोनों के बीच बौंडिंग स्ट्रौंग हो जानी चाहिए थी, लेकिन आप की बातों से ऐसा लग रहा है कि सिर्फ यही नहीं, बल्कि आप का पार्टनर इस से पहले भी आप से झूठ बोलता रहा है. तभी आप के मन में यह बात बैठ गई है कि इस बार वह आप से अपनी बीमारी का झूठा नाटक कर के आप को धोखा दे रहा है.

आप संयम रखें और इस बीच उस से कोई बात न करें और खुद को भी स्ट्रौंग बनाएं ताकि अगर वह आप को धोखा भी दे रहा हो तो आप को खुद को संभालने का मौका मिल पाए. वक्त आने पर उस से बात कर के अपनी शंकाओं को दूर करें ताकि आप अंधकार में न रह कर, सही समय पर सही निर्णय ले पाएं.

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क्या तनु अपने प्रेमी अनिरुद्ध से मिल पाई

प्लेन से मुंबई से दिल्ली तक के सफर में थकान जैसा तो कुछ नहीं था पर मां के ‘थोड़ा आराम कर ले,’ कहने पर मैं फ्रैश हो कर मां के ही बैडरूम में आ कर लेट गई. भैयाभाभी औफिस में थे. मां घर की मेड श्यामा को किचन में कुछ निर्देश दे रही थीं. कल पिताजी की बरसी है. हर साल मैं मां की इच्छानुसार उन के पास जरूर आती हूं. मैं 5 साल की ही थी जब पिताजी की एक सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी. भैया उस समय 10 साल के थे. मां टीचर थीं. अब रिटायर हो चुकी हैं.

25 सालों के अपने वैवाहिक जीवन में मैं सुरभि और सार्थक के जन्म के समय ही नहीं आ पाई हूं पर बाकी समय हर साल आती रही हूं. विपिन मेरे सकुशल पहुंचने की खबर ले चुके थे. बच्चों से भी बात हो चुकी थी.

मैं चुपचाप लेटी कल होने वाले हवन, भैयाभाभी और अपने इकलौते भतीजे यश के बारे में सोच ही रही थी कि तभी मां की आवाज से मेरी तंद्रा भंग हुई, ‘‘ले तनु, कुछ खा ले.’’

पीछेपीछे श्यामा मुसकराती हुई ट्रे ले कर हाजिर हुई.

मैं ने कहा, ‘‘मां, इतना सब?’’

‘‘अरे, सफर से आई है, घर के काम निबटाने में पता नहीं कुछ खा कर चली होगी या नहीं.’’

मैं हंस पड़ी, ‘‘मांएं ऐसी ही होती हैं, मैं जानती हूं मां. अच्छाभला नाश्ता कर के निकली थी और प्लेन में कौफी भी पी थी.’’

मां ने एक परांठा और दही प्लेट में रख कर मुझे पकड़ा दिया, साथ में हलवा.

मायके आते ही एक मैच्योर स्त्री भी चंचल तरुणी में बदल जाती है. अत: मैं ने भी ठुनकते हुए कहा, ‘‘नहीं, मैं इतना नहीं खाऊंगी और हलवा तो बिलकुल भी नहीं.’’

मां ने प्यार भरे स्वर में कहा, ‘‘यह डाइटिंग मुंबई में ही करना, मेरे सामने नहीं चलेगी. खा ले मेरी बिटिया.’’

‘‘अच्छा ठीक है, अपना नाश्ता भी ले आओ आप.’’

‘‘हां, मैं लाती हूं,’’ कह कर श्यामा चली गई.

हम दोनों ने साथ नाश्ता किया. भैया भाभी रात तक ही आने वाले थे. मैं ने कहा, ‘‘कल के लिए कुछ सामान लाना है क्या?’’

‘‘नहीं, संडे को ही अनिल ने सारी तैयारी कर ली थी. तू थोड़ा आराम कर. मैं जरा श्यामा से कुछ काम करवा लूं.’’

दोपहर तक यश भी आ कर मुझ से लिपट गया. मेरे इस इकलौते भतीजे को मुझ से बहुत लगाव है. मेरे मायके में गिनेचुने लोग ही तो हैं. सब से मुधर स्वभाव के कारण घर में एक स्नेहपूर्ण माहौल रहता है. जब आती हूं अच्छा लगता है. 3 बजे तक का टाइम कब कट गया पता ही नहीं चला. यश कोचिंग चला गया तो मैं भी मां के पास ही लेट गई. मां दोपहर में थोड़ा सोती हैं. मुझे नींद नहीं आई तो मैं उठ कर ड्राइंगरूम में आ कर सोफे पर बैठ कर एक पत्रिका के पन्ने पलटने लगी. इतने में डोरबैल बजी. मैं ने ही दरवाजा खोला, श्यामा पास में ही रहती है. वह दोपहर में घर चली जाती है. शाम को फिर आ जाती है.

पोस्टमैन था. टैलीग्राम था. मैं ने उलटापलटा. टैलीग्राम मेरे नाम था. प्रेषक के नाम पर नजर पड़ते ही मुझे हैरत का एक तेज झटका लगा. मेरी हथेलियां पसीने से भीग उठीं. अनिरुद्ध. मैं टैलीग्राम ले कर सोफे पर धंस गई.

हमेशा की तरह कम शब्दों में बहुत कुछ कह दिया था अनिरुद्ध ने, ‘‘तुम इस समय यहीं होगी, जानता हूं. अगर ठीक समझो तो संपर्क करना.’’

पता नहीं कैसे मेरी आंखें मिश्रित भावों की नमी से भरती चली गई थीं. ओह अनिरुद्ध. तुम्हें आज 25 साल बाद भी याद है मेरे पिताजी की बरसी. और यह टैलीग्राम. 3 दिन बाद 164 साल पुरानी टैलीग्राम सेवा बंद होने वाली है. अनिरुद्ध के पास यही एक रास्ता था आखिरी बार मुझ तक पहुंचने का. मेरा मोबाइल नंबर उस के पास है नहीं, न मेरा मुंबई का पता है उस के पास. तब यहां उन दिनों घर में भी फोन नहीं था. बस यही आखिरी तरीका उसे सूझा होगा. उसे यह हमेशा से पता था कि पिताजी की बरसी पर मैं कहीं भी रहूं, मां और भैया के पास जरूर आऊंगी और उस की यह कोशिश मेरे दिल के कोनेकोने को उस की मीठी सी याद से भरती जा रही थी.

अनिरुद्ध… मेरा पहला प्यार एक सुगंधित पुष्प की तरह ही तो था. एक पूरा कालखंड ही बीत गया अनिरुद्ध से मिले. वयसंधि पर खड़ी थी तब मैं जब पहली बार मन में प्यार की कोंपल फूटी थी. यह वही नाम था जिस की आवाज कानों में उतरने के साथ ही जेठ की दोपहर में वसंत का एहसास कराने लगती. तब लगता था यदि परम आनंद कहीं है तो बस उन पलो में सिमटा हुआ जो हमारे एकांत के हमसफर होते, पर कालेज के दिनों में ऐसे पल हम दोनों को मुश्किल से ही मिलते थे. होते भी तो संकोच, संस्कार और डर में लिपटे हुए कि कहीं कोई देख न ले. नौकरी मिलते ही उस पर घर में विवाह का दबाव बना तो उस ने मेरे बारे में अपने परिवार को बताया.

फिर वही हुआ जिस का डर था. उस के अतिपुरातनपंथी परिवार में हंगामा खड़ा हो गया और फिर प्यार हार गया था. परंपराओं के आगे, सामाजिक नियमों के आगे, बुजुर्गों के आदेश के आगे मुंह सिला खड़ा रह गया था. प्यार क्या योजना बना कर जातिधर्म परख कर किया जाता है या किया जा सकता है? और बस हम दोनों ने ही एकदूसरे को भविष्य की शुभकामनाएं दे कर भरे मन से विदा ले ली थी. यही समझा लिया था मन को कि प्यार में पाना जरूरी भी नहीं, पृथ्वीआकाश कहां मिलते हैं भला. सच्चा प्यार तो शरीर से ऊपर मन से जुड़ता है. बस, हम जुदा भर हुए थे.

उस की विरह में मेरी आंखों से बहे अनगिनत आंसू बाबुल के घर से विदाई के आंसुओं में गिन लिए गए थे. मैं इस अध्याय को वहीं समाप्त समझ पति के घर आ गई थी. लेकिन आज उसी बंद अध्याय के पन्ने फिर से खुलने के लिए मेरे सम्मुख फड़फड़ा रहे थे.

टैलीग्राम पर उस का पता लिखा हुआ था, वह यहीं दिल्ली में ही है. क्या उस से मिल लूं? देखूं तो कैसा है? उस के परिवार से भी मिल लूं. पर यह मुलाकात हमारे शांतसुखी वैवाहिक जीवन में हलचल तो नहीं मचा देगी? दिल उस से मिलने के लिए उकसा रहा था, दिमाग कह रहा था पीछे मुड़ कर देखना ठीक नहीं रहेगा. मन तो हो रहा था, देखूंमिलूं उस से, 25 साल बाद कैसा लगता होगा. पूछूं ये साल कैसे रहे, क्याक्या किया, अपने बारे में भी बताऊं. फिर अचानक पता नहीं क्या मन में आया मैं चुपचाप स्टोररूम में चली गई. वहां काफी नीचे दबा अपना एक बौक्स उठाया. मेरा यह बौक्स सालों से यहीं पड़ा है. इसे कभी किसी ने नहीं छेड़ा. मैं ने बौक्स खोला, उस में एक और डब्बा था.

सामने अनिरुद्ध के कुछ पुराने पीले पड़ चुके, भावनाओं की स्याही में लिपटे खतों का 1-1 पन्ना पुरानी यादों को आंखों के सामने एक खूबसूरत तसवीर की तरह ला रहा था. न जाने कितनी भावनाओं का लेखाजोखा इन खतों में था. मुझे अचानक महसूस हुआ आजकल के प्रेमियों के लिए तो मोबाइल ने कई विकल्प खोल दिए हैं. फेसबुक ने तो अपनों को छोड़ कर अनजान रिश्तों को जोड़ दिया है.

सारा सामान अपनी गोद में फैलाए मैं अनगिनत यादों की गिरफ्त में बैठी थी जहां कुछ भी बनावटी नहीं होता था. शब्दों का जादू और भावों का सम्मोहन लिए ये खत मन में उतर जाते थे. हर शब्द में लिखने वाले की मौजूदगी महसूस होती थी. अनिरुद्ध ने एक पेपर पर लिखा था, ‘‘खुसरो दरिया प्रेम का, उलटी वाकी धार. जो उतरा सो डूब गया, जो डूबा सो पार.’’

मेरे होंठों पर एक मुसकराहट आ गई. आजकल के बच्चे इन शब्दों की गहराई नहीं समझ पाएंगे. वे तो अपने प्रिय को मनाने के लिए सिर्फ एक आई लव यू स्माइली का सहारा ले कर बात कर लेते हैं. अनिरुद्ध खत में न कभी अपना नाम लिखता था न मेरा, इसी वजह से मैं इन्हें संभाल कर रख सकी थी. अनिरुद्ध की दी हुई कई चीजें मेरे सामने पड़ी थीं. उस का दिया हुआ एक पैन, उस का पीला पड़ चुका एक सफेद रूमाल जो उस ने मुझे बारिश में भीगे हुए चेहरे को साफ करने के लिए दिया था. मुझे दिए गए उस के लिखे क्लास के कुछ नोट्स, कई बार तो वह ऐसे ही कोई कागज पकड़ा देता था जिस पर कोई बहुत ही सुंदर शेर लिखा होता था.

स्टोररूम के ठंडेठंडे फर्श पर बैठ कर मैं उस के खत उलटपुलट रही थी और अब यह अंतिम टैलीग्राम. बहुत सी मीठी, अच्छी, मधुर यादों से भरे रिश्ते की मिठास से भरा, मैं इसे हमेशा संभाल कर रखूंगी पर कहां रख पाऊंगी भला, किसी ने देख लिया तो क्या समझा पाऊंगी कुछ? नहीं. फिर वैसे भी मेरे वर्तमान में अतीत के इस अध्याय की न जरूरत है, न जगह.

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फिर पता नहीं मेरे मन में क्या आया कि मैं ने अंतिम टैलीग्राम को आखिरी बार भरी आंखों से निहार कर उस के टुकड़ेटुकड़े कर दिए. मुझे उसे कहीं रखने की जरूरत नहीं है. मेरे मन में इस टैलीग्राम में बसी भावनाओं की खुशबू जो बस गई है. अब इसी खुशबू में भीगी फिरती रहूंगी जीवन भर. वह मुझे भूला नहीं है, मेरे लिए यह एहसास कोई ग्लानि नहीं है, प्यार है, खुशी है.

‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’: क्या वेदिका, कार्तिक और नायरा को दूर कर पाएगी?

स्टार प्लस का मशहूर सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’  में लगातार आपको धमाकेदार ट्विस्ट देखने को मिल रहे हैं. फिलहाल इस शो की कहानी अखिलेश, सुरेखा, लीजा, वेदिका, नायरा और कार्तिक के इर्द-गिर्द घुम रही है. तो आइए अपकमिंग एपिसोड के बारे में आपको बताते हैं. अखिलेश ने खुद अपने अफेयर का खुलासा किया है. सुरेखा अपने हस्बैंड अखिलेश का ये बात सुनकर बेहोश हो जाती है.

तभी दादी गुस्से में अखिलेश को घर से बाहर निकलने को कहती हैं. अखिलेश दादी से माफी मांगता है लेकिन सुवर्णा उसे गुस्से में डांटती है और कहती है कि तुमने दो औरतों के साथ गलत किया है. दादी अखिलेश का हाथ पकड़ती हैं और उसे घर से बाहर निकालती है और कहती हैं कि अगर दोबारा इस घर में कदम रखा तो मेरा मरा मुंह देखेगा.

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लीजा, नायरा से कहती है कि उसे जाने से क्यों रोका. वो गोवा चली जाती तो ये सब नहीं होता, आज उसके साथ और भी कई रिश्ते टूट गए. इस पर समर्थ पूछता है कि क्या नायरा को ये बात पहले से पता थी? कार्तिक कहता है कि हां हमें पता थी, पहले नायरा को पता चला फिर उसने मुझे बताया. नायरा सबसे माफी मांगती है और कहती है कि उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वो ये बात कैसे बताए?

सुवर्णा, नायरा से कहती है कि उसे सौरी बोलने की जरूरत नहीं है, वो बताती भी तो शायद हममें से कोई यकीन नहीं करता. दादी भी नायरा को कहती हैं कि तुम्हारी कोई गलती नहीं थी. वेदिका ये सोचकर परेशान है कि कार्तिक ने उसे क्यों नहीं बताया? इसके बाद नायरा, वेदिका के पास आती है और कहती है कि दादी की तबीयत ठीक नहीं है हो सके तो डौक्टर से बात कर लीजिएगा. इस पर वेदिका को गुस्सा आ जाता है और वो नायरा से कहती है कि आपने मेरे परिवार के लिए जो कुछ भी किया उसके लिए शुक्रिया.

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कार्तिक, नायरा को कायरव की रिपोर्ट निकलवाने के लिए अपने कमरे में ले जाता है. वहां उसे कार्तिक संग बिताए सभी पुराने दिन याद जाते हैं. वहां कार्तिक अपने लैपटौप से कायरव की रिपोर्ट निकालता है. रिपोर्ट में सबकुछ ठीक देखकर कार्तिक और नायरा खुशी से डांस करने लगते हैं. डांस करते करते दोनों एक दूसरे के करीब आ जाते हैं, तभी वहां वेदिका आ जाती है. वैसे वेदिका कायरव रिपोर्ट के बारे में  जानकर बहुत खुश होती  है. अब आगे ये देखना दिलचस्प होगा  कार्तिक, नायर और वेदिका के लाइफ में कहानी क्या नया मोड़ लेगी.

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‘कसौटी जिंदगी की 2′: आखिर कौन-सी एक्ट्रेस निभाएगी कोमोलिका का किरदार

टीवी का मशहूर सीरियल ‘कसौटी जिंदगी की 2’  में कोमोलिका के किरदार में हिना खान दिखाई दे रही थी पर अब वो बौलीवुड में एंट्री करने वाली हैं. जी हां,  हिना जल्द ही विक्रम भट्ट की फिल्म ‘हैक्ड’ में नजर आएंगी.

इसकी जानकरी खुद हिना ने सोशल मीडिया के जरिए फैंस को दी थी. इसलिए हिना खान ने सीरियल ‘कसौटी जिंदगी की 2 ‘ से अलविदा लिया था. इस सीरियल के मेकर्स कोमोलिका के किरदार के लिए नए चेहरे की तलाश में थे.

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मीडिया रिपोर्टस के अनुसार करिश्मा तन्ना और गौहर खान कोमोलिका की भूमिका में दिखाई दे सकते हैं. अब हिना इस शो का हिस्सा नहीं होगी. शो की निर्माता एकता कपूर ने कई अभिनेत्रियों का औडिशन लिया लेकिन अभी तक किसी को भी फाइनल नहीं किया गया है.

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खबरों के अनुसार,  करिश्मा तन्ना और गौहर खान ने भी  इस शो में नई कोमोलिका की भूमिका निभाने में अपनी रुचि दिखाई हैं.  लेकिन अभी तक इस किरदार के लिए कोई एक्ट्रेस फाइनल नहीं हुई है. आपको बता दें, कुछ दिन पहले ही खबर आई थी कि जैस्मिन भसीन में नई कोमोलिका की भूमिका में नजर आएंगी. लेकिन इस खबर में भी कोई सच्चाई नहीं आई थी. अब देखना ये दिलचस्प होगा कि नई कौमोलिका का किरादार कौन-सी एक्ट्रेस निभाने वाली हैं.

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5 ट्रिलियनी भव: चरमराती अर्थव्यवस्था में सरकारी मंत्र

झारखंड में भाजपा के बारीडीह मंडल के आईटी सहसंयोजक कुमार विश्वजीत के 26 वर्षीय बेटे आशीष ने 16 अगस्त को अपने घर के पंखे से लटक कर जान दे दी. आशीष को डर था कि औटो सैक्टर में आने वाली भारी मंदी के चलते उस की नौकरी चली जाएगी और उस के घर का खर्च चलना मुश्किल हो जाएगा. आशीष टाटा मोटर्स के लिए जौबवर्क करने वाली कंपनी औटोमेटिक एक्सेल में काम कर रहा था.

आशीष के पिता कुमार विश्वजीत भी जौब इनसिक्योरिटी से ग्रस्त हैं. भारतीय जनता पार्टी के सदस्य होने के साथ ही वे टाटा स्टील के लिए कौंटै्रक्ट पर काम करते हैं. उन का कहना है कि उन की कंपनी टिस्को में भी कठिन ट्रेनिंग के बाद कर्मचारियों का टैस्ट लिया जा रहा था. ज्यादातर कर्मचारियों को डर था कि अगर वे टैस्ट में फेल हुए, तो अगले दिन उन का गेटपास तक नहीं बनेगा.

कुमार विश्वजीत कई दिनों से अपनी नौकरी को ले कर चिंतित थे और कुछ दिनों पहले ही आशीष से इस बारे में बातचीत भी हुई थी कि अगर उन की नौकरी चली जाएगी तो घर का खर्चा कैसे चलेगा. तब आशीष ने बताया था कि उस की नौकरी पर भी खतरा मंडरा रहा है. जौब इनसिक्योरिटी ने आखिरकार आशीष की जान ले ली. बारबार नौकरी खोने से उसे जान खोना ज्यादा आसान लगा. उस की पत्नी सदमे में है. अभी एक साल पहले ही जून 2018 में दोनों ने प्रेमविवाह किया था.

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गहरा रहा है संकट 

आर्थिक मंदी की वजह से औटो सैक्टर का हाल सब से खराब है. इस सैक्टर में मंदी की वजह से अब तक लाखों कर्मचारियों की नौकरियां जा चुकी हैं और कितने ही इस डर के साथ जी रहे हैं.

जमशेदपुर के एक अन्य युवा इंजीनियर प्रभात कुमार ने भी अपनी नौकरी गंवाने के बाद बर्मा माइंस इलाके में खुद को आग के हवाले कर दिया. प्रभात कुमार औटो इंडस्ट्री में इंजीनियर था. उस की कंपनी भी टाटा मोटर्स के लिए जौबवर्क करती है. टाटा मोटर्स में क्लोजर के कारण कंपनी ने प्रभात को नौकरी से निकाल दिया था.

गौरतलब है कि प्रभात को झारखंड सरकार ने प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के तहत ट्रेनिंग दिलवाई थी. उस के पिता तारकनाथ भी टाटा स्टील के कर्मचारी थे. अब रिटायरमैंट के बाद वे औटो चलाते हैं. इकलौते बेटे को खो देने के गम से वे अब शायद ही कभी उबर पाएं.

केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार न्यू इंडिया का नारा दे कर एक बार फिर सत्ता में है. सरकार कहती है कि 2024-25 तक वह भारत की अर्थव्यवस्था को 5 ट्रिलियन डौलर यानी 36,00,00,00,00,00,000 रुपए की अर्थव्यवस्था बना देगी. सरकार की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने लोकसभा में 2019-20 का बजट पेश करते हुए बाकायदा इस का विजन पेश किया और कहा कि इस विजन का मुख्य आधार निवेश प्रेरित विकास और रोजगार सृजन है.

उन का कहना है कि देश को अगले 5 वर्षों में ‘5 ट्रिलियन डौलर इकोनौमी’ की अर्थव्यवस्था बनाना मोदी सरकार का एक महत्त्वपूर्ण लक्ष्य है. इस के ठीक अगले दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी वाराणसी में भाजपा कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए अगले 5 वर्षों में ‘5 ट्रिलियन डौलर इकोनौमी’ का सपना दिखाया.

लेकिन, सरकारी व गैरसरकारी नौकरियों में छंटनी, बंदी और हताश नौजवानों की आत्महत्याएं मोदी सरकार की मजबूत होती अर्थव्यवस्था के दावे के ठीक उलट कहानी बयां कर रही हैं. लाखों लोग अपनी नौकरियां गंवा चुके हैं और करोड़ों की नौकरियों पर छंटनी की तलवार लटक रही है.

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कराह रहे कई उद्योग

रियल एस्टेट ध्वस्त हो रहा है. मार्च 2019 के अंत तक निर्माण उद्योग में 12 लाख 80 हजार फ्लैट बिना बिके पड़े थे. कताई उद्योग में एकतिहाई उत्पादन बंद हो चुका है. जो मिलें चल रही हैं, वे भारी घाटे का सामना कररही हैं. कौटन और ब्लैंड्स स्पिनिंग इंडस्ट्री आज उसी तरह के संकट से गुजर रही है जैसा कि 2010-11 में देखा गया था.

अप्रैल से जून की तिमाही में कौटन यार्न के निर्यात में 34.6 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई. जुलाईअगस्त में तो इस में 50 फीसदी तक की गिरावट आ चुकी है.

यही हालत रही तो अगले सीजन में भारतीय बाजार में आने वाले करीब 80 हजार करोड़ रुपए की 4 करोड़ गांठ कपास का कोई खरीदार नहीं मिलेगा. नौर्दर्न इंडिया टैक्सटाइल मिल्स एसोसिएशन के अनुसार, राज्य और केंद्रीय जीएसटी और अन्य करों की वजह से भारतीय यार्न वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धा के लायक नहीं रह गया है. भारतीय टैक्सटाइल इंडस्ट्री में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से करीब 10 करोड़ लोगों को रोजगार मिलता है.

टैक्सटाइल इंडस्ट्री कृषि के बाद सब से ज्यादा रोजगार देने वाला सैक्टर है. ऐसे में बड़े पैमाने पर लोगों के बेरोजगार होने की आशंका है. इसलिए नौर्दर्न इंडिया टैक्सटाइल मिल्स एसोसिएशन ने सरकार से मांग की है कि वह तत्काल कदम उठा कर नौकरियां जाने से बचाए और इस इंडस्ट्री को गैरनिष्पादित संपत्ति यानी एनपीए बनने से रोके.

बिस्कुट बनाने वाली देश की सब से बड़ी कंपनी पारले प्रोडक्ट्स आगाह करती है कि कन्जंपशन में सुस्ती आने के कारण उसे और उस के साथ काम करने वाले ठेकेदार को कच्चा माल देने वालों के 8,000-10,000 लोगों की छंटनी करनी पड़ सकती है. कंपनी के कैटेगरी हेड मयंक शाह कहते हैं, ‘‘हम ने 100 रुपए प्रतिकिलो या उस से कम कीमत वाले बिस्कुट पर जीएसटी घटाने की मांग की है. ये बिस्कुट आमतौर पर 5 रुपए या कम के पैक में बिकते हैं. हालांकि, अगर सरकार ने हमारी मांग नहीं मानी तो हमें अपनी फैक्ट्रियों में काम करने वाले 8,000-10,000 लोगों को निकालना पड़ेगा. सेल्स घटने से हमें भारी नुकसान हो रहा है.’’

पारलेजी, मोनाको और मैरी गोल्ड बिस्कुट बनाने वाली पारले कंपनी की बिक्री 10,000 करोड़ रुपए सालाना से ज्यादा होती है. 10 प्लांट चलाने वाली इस कंपनी में एक लाख कर्मचारी काम करते हैं. पारले के पास 125 सहयोगी थर्ड पार्टी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट हैं. कंपनी की सेल्स का आधा से ज्यादा हिस्सा ग्रामीण बाजारों से आता है.

जीएसटी लागू होने से पहले 100 रुपए प्रतिकिलो से कम कीमत वाले बिस्कुट पर 12 फीसदी टैक्स लगाया जाता था. कंपनियों को उम्मीद थी कि प्रीमियम बिस्कुट के लिए 12 फीसदी और सस्ते बिस्कुटों के लिए 5 फीसदी का जीएसटी रेट तय किया जाएगा. हालांकि, सरकार ने 2 साल पहले जब जीएसटी लागू किया था तो सभी बिस्कुटों को 18 फीसदी के स्लैब में डाला था. इस के चलते कंपनियों को इन के दाम 5 फीसदी बढ़ाने पड़े जिस से बिक्री में भारी गिरावट आई. लगातार घाटे में जा रही कंपनी अब अपने कर्मचारियों की छंटनी करने के लिए मजबूर है.

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समस्याओं से जूझता देश

कामगारों की छंटनी, रोजगार की तलाश, बाढ़ और सूखे से होने वाली मौतें और नुकसान, पानी व बिजली की कमी का संकट और असमानता जैसी समस्याओं से देश जूझ रहा है. बीएसई और एनएसई के सूचकांकों में भारी गिरावट, रुपए के अवमूल्यन, बौंड्स पर बढ़ते प्रतिफल, सरकारी क्षेत्रों के बैंकों के बढ़ते घाटे, कठोर करों, विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों द्वारा हाथ खींचने और कैफे कौफी डे के प्रमोटर वी जी सिद्धार्थ की आत्महत्या के बारे में चर्चा जारी है. ऐसे में भाजपा सरकार की 5 ट्रिलियन डौलर की अर्थव्यवस्था की बात दूर की कौड़ी है.

वर्ष 2018 की ग्लोबल जीडीपी रैंकिंग में भारत 7वें स्थान पर जा गिरा है. वर्ल्ड बैंक द्वारा जारी ग्लोबल जीडीपी (ग्रौस डोमैस्टिक प्रोडक्ट) रैंकिंग में 32.22 लाख वर्ग किलोमीटर वाले भारत का स्थान 7वां दर्ज हुआ है. जबकि वर्ष 2017 में भारत 5वें नंबर पर था. वर्ल्ड बैंक की नई सूची में 20.5 लाख करोड़ डौलर की अर्थव्यवस्था के साथ अमेरिका पहले स्थान पर है.

इस लिस्ट में चीन का स्थान दूसरा है और उस की जीडीपी का आकार 13.6 लाख करोड़ डौलर है. तीसरे स्थान पर 3.77 वर्ग किलोमीटर वाला जापान है, जिस की जीडीपी लगभग 5 लाख करोड़ डौलर की है. चौथे स्थान पर

3.57 लाख वर्ग किलोमीटर वाला जरमनी (4 लाख करोड़ डौलर), 5वें पर 2.42 लाख वर्ग किलोमीटर वाला ब्रिटेन (2.8 लाख करोड़ डौलर) और छठवें पर 6.4 लाख वर्ग किलोमीटर वाला फ्रांस (2.77 लाख करोड़ डौलर) हैं. भारत 2.73 लाख करोड़ डौलर की अर्थव्यवस्था के साथ 7वें स्थान पर है.

क्यों चौपट हुई अर्थव्यवस्था

देश की अर्थव्यवस्था को चलाने के मुख्य 4 कारक हैं – सरकारी खर्च, निजी निवेश, निजी खपत और निर्यात. बीते 5 वर्षों में इन में से कोई भी कारक ठीक तरीके से नहीं चल रहा है. इसीलिए भारत की अर्थव्यवस्था चौपट है. लोकसभा में बजट पेश करने के बाद से देश की अर्थव्यवस्था, बढ़ती बेरोजगारी और मंदी पर न तो सदन में कोई बात हो रही है और न मीडिया में कोई चर्चा है.

चर्चा है तो बस जम्मूकश्मीर विभाजन की, मुसलमानों से जुड़े विवादास्पद विधेयकों को सदन में पारित कराने की, नरेंद्र मोदी सरकार के दबदबे की, पाकिस्तान की खस्ता हालत की, कांग्रेस पार्टी के नेतृत्वविहीन हो जाने की, या पी चिदंबरम की गिरफ्तारी की.

कई मशहूर अर्थशास्त्री और वित्त विशेषज्ञ सरकार को बारबार आगाह कर रहे हैं कि अर्थव्यवस्था एक ऐसा क्षेत्र है, जिस में बाहुबल वाला राष्ट्रवाद काम नहीं करता है. इस के उलट, यह अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाने का काम कर सकता है. लेकिन अंधभक्त सरकार न तो किसी की बात सुनने की इच्छुक है, न वह कुछ समझना चाहती है.

देश की जीडीपी की वृद्धि दर लगातार गिर रही है. पूरे वर्ष के लिए 6.8 फीसदी और 2018-19 की आखिरी तिमाही में 5.8 फीसदी रहने के बाद 2019-20 की पहली तिमाही में इस के उठने की कोई उम्मीद नजर नहीं आती है. आरबीआई और अन्य बैंकिंग क्षेत्रों के अनुमान के मुताबिक यह 2019-20 में 6.9 फीसदी से ज्यादा नहीं रहेगी. जबकि मोदी सरकार, जो 5 ट्रिलियन डौलर की अर्थव्यवस्था हो जाने का सपना दिखा रही है, के लिए जीडीपी दर अगले 5 सालों में लगातार 8 फीसदी से ज्यादा रहनी चाहिए.

आर्थिक फ्रंट पर लगातार नाकाम रही मोदी सरकार भारतीय रिजर्व बैंक से बड़ी रकम की मांग करती रही थी. बैंक के 2 गवर्नर इसी वजह से इस्तीफा दे चुके हैं. अब, आखिरकार गैरअर्थशास्त्री भूमिका वाले मौजूदा गवर्नर ने मोदी सरकार की हां में हां मिला दी है.

आरबीआई से लिया पैसा

चरमराती अर्थव्यवस्था से उबरने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक ने मोदी सरकार को 24.8 अरब डौलर यानी लगभग 1.76 लाख करोड़ रुपए लाभांश और सरप्लस पूंजी के तौर पर देने का फैसला किया. यह फैसला सरकार के दबाव में है या आरबीआई की अपनी इच्छा से, इस को ले कर खुसुरफुसुर जारी है.

मोदी सरकार की नजर बहुत लंबे समय से आरबीआई के इस रिजर्व फंड पर थी और आरबीआई पर इस बात के लिए लगातार दबाव बनाया जा रहा था कि वह अपना रिजर्व फंड सरकार को दे दे. आरबीआई के गवर्नर रहे रघुराम राजन से ले कर उर्जित पटेल तक के इस्तीफों के पीछे आरबीआई की स्वायत्तता को बरकरार रखने और रिजर्व फंड सरकार को देने का दबाव ही कारण रहा है.

आसान भाषा में इस बात को समझें तो एक ऐसा घर जहां घर के सारे सदस्य कमाते हैं, फिर भी उस घर के खर्चे इतने हैं कि पैसा न तो बच रहा है और न ही किसी के लिए कोई नई चीज घर में आ रही है. मगर इसी घर में एक बुजुर्ग है जो बहुत समझदार है. उस ने अपना पैसा बचा कर रखा है. उस के पास धीरेधीरे कर के पैसे तभी जमा हुए जब घर के लोगों ने अपनी कमाई से उसे थोड़ेथोड़े दिए.

यह दिमागदार बुजुर्ग अपना पैसा पागलों की तरह खर्च नहीं करता है. वह बिलकुल भी शाहखर्च नहीं है, वह पैसे की वैल्यू समझता है और यह पैसा उस ने उस दिन के लिए रख रखा है, जब कोई बड़ी आफत घर पर आन पड़े. लेकिन बाकी लोग बिना सोचेसमझे अनापशनाप खर्च कर रहे हैं. उसी पैसे के बल पर बाजार से जरूरत पड़ने पर कर्ज मिल जाता है.

एक दिन घर के लोग उस बुजुर्ग से कहते हैं कि घर की हालत बहुत खराब हो गई है. हमारे पास पैसा नहीं बचा है. लोगों की नौकरी जाने वाली है. सारा कामधंधा चौपट हो गया है, हमें अपना पैसा दे दो. सब उस की चिरौरी करने लगते हैं. वह नहीं मानता है तो उस पर दबाव डालते हैं. इतना दबाव डालते हैं कि अंत में बुजुर्ग हथियार डाल देता है और अपनी जमापूंजी में से बहुत बड़ा हिस्सा दे देता है, मगर इस डर के साथ कि यह पैसा भी डूब जाएगा.

बस, यही हालत मोदी सरकार की है. सरकार को आरबीआई के सरप्लस रिजर्व से वह पैसा चाहिए जो आरबीआई को अपने कामधाम से मिलता है. हर वित्तीय वर्ष में सरकार की नजर इस पैसे पर रही है. इस पैसे को पाने के लिए सरकार 2014 से ही उस पर दबाव बना रही थी. पहले उस ने 3.96 लाख करोड़ रुपए की मांग की. आरबीआई ने नहीं दिया. फिर सरकार ने आरबीआई के कामों में दखल देना शुरू कर दिया. गवर्नर उर्जित पटेल ने इसी बात पर इस्तीफा दिया था. बावजूद इस के, सरकार की हरकतें नहीं रुकीं.

गौरतलब है कि जिस दिन शक्तिकांत दास आरबीआई के गवर्नर बने उसी दिन साफ हो गया था कि अब सरकार जो चाहेगी, वह आरबीआई को करना होगा. वजह यह कि शक्तिकांत दास आईएएस अधिकारी रहे हैं, सरकार के निकट और प्रिय हैं और वित्त मंत्रलाय में प्रवक्ता के तौर पर काम कर चुके हैं. दास ने मोदी सरकार की नोटबंदी का भी काफी समर्थन किया था.

आरबीआई से पैसा निकलवाने के लिए दास और सरकार की आपसी रजामंदी से पूर्व गवर्नर बिमल जालान की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की गई थी. इसी कमेटी ने 26 अगस्त को सरकार को 1.76 लाख करोड़ रुपए देने के लिए कहा था.

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ऐसा नहीं है कि आरबीआई ने इस से पहले सरकार को पैसा नहीं दिया. आरबीआई अपने कंटिनजैंसी फंड का एक हिस्सा सरकार को देती रही है. बीते साल आरबीआई ने सरकार को 68 हजार करोड़ रुपए दिए थे. उस के पहले लगभग 40 हजार करोड़ रुपए सरकार ले चुकी है. उस के पहले 2 साल लगभग 65 हजार करोड़ रुपए और साल 2014 में 52 हजार करोड़ रुपए मोदी सरकार आरबीआई से ले चुकी है. आरबीआई हर साल अपनी कमाई में से मोदी सरकार को हिस्सा दे रही है. लेकिन यह पहला मौका है जब हर साल का दुगनातिगुना रिजर्व सरकार को मिल रहा है.

यही सरकार यह कह कर सत्ता में आई थी कि वह विदेश में जमा सारा कालाधन वापस ले कर आएगी. भ्रष्ट नेताओं और पूंजीपतियों का स्विस बैंक में जमा सारा धन निकालेगी और आज इस सरकार की यह हालत हो गई है कि वह अपने ही घर में डाका डालने को मजबूर है. हाल ही में पूर्व आरबीआई गवर्नर डी सुब्बाराव ने कहा था कि आरबीआई के रिजर्व पर ‘धावा बोलना’ सरकार के ‘दुस्साहस’ को दर्शाता है.

आरबीआई का सरकार को पैसे देने का मतलब है कि सरकार खोखली हो चुकी है, उस के पास पैसे नहीं हैं. देश में मंदी है. और अब बड़ी मुसीबत सामने है क्योंकि पैसा छोटामोटा नहीं है, 1.76 लाख करोड़ रुपए है.

अर्थशास्त्री विवेक कौल कहते हैं कि जिस किस्म के स्लोडाउन में अभी हम हैं, मुझे तो नहीं लगता कि यह स्लोडाउन जल्दी खत्म होने वाला है. अगले साल अगर ऐसी ही कुछ हालत रही और टैक्स कलैक्शन धीमा ही रहा, तो फिर पैसा कहां से आएगा? उस हिसाब से आरबीआई से इतनी बड़ी धनराशि लेना एक गलत उदाहरण है. अभी तक सरकार के पास पैसे नहीं होते थे तो कभी एलआईसी से जुगाड़ कर के, ओएनजीसी ने एचपीसीएल को खरीदा जैसी तिकड़मबाजी कर के काम चलता था. अब आप आरबीआई के आगे कहां जाएंगे?

यह महत्त्वपूर्ण सवाल है कि इस साल तो आरबीआई से पैसा आ गया है, लेकिन अगले साल क्या होगा? सरकार की कोशिश होनी चाहिए थी कि अर्थव्यवस्था को ठीक किया जाए. लेकिन सरकार की शाहखर्ची किसी तरह कम नहीं हो रही है. आरबीआई से मिला 1.76 लाख करोड़ रुपया सरकार कहां और किस तरह खर्च करने वाली है, इस का कोई ब्योरा सरकार की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की ओर से अभी तक सामने नहीं रखा गया है.

इस में दोराय नहीं कि भारतीय अर्थव्यवस्था में आई कमजोरी से सरकार बड़े दबाव में है. भारतीय मुद्रा रुपया अमेरिकी डौलर की तुलना में 72 के पार चला गया है. सरकार ने टैक्स कलैक्शन का जो लक्ष्य रखा था उसे पाने में वह पूरी तरह नाकाम रही है. जीएसटी की वजह से जितनी रैवेन्यू यानी राजस्व की प्राप्ति की उम्मीद सरकार ने की थी, उतनी नहीं हुई. नोटबंदी का आइडिया भी सफल नहीं हुआ और जीडीपी भी लगातार गिरावट की ओर जा रही है.

लगातार चौथी तिमाही में आर्थिक वृद्धि दर में गति नहीं आ पाई है. यही नहीं, कई सरकारी संस्थान और मंत्रालय इस वक्त दिक्कत में हैं. कई चीजें घाटे में चली गई हैं. आरबीआई से मिले पैसे को सरकार किस तरह इस्तेमाल करेगी कि ये सारी चीजें पटरी पर आ जाएं. सवाल यह उभरता है कि क्या मोदी सरकार आरबीआई से पैसे ले कर अर्थव्यवस्था में मजबूती ला पाएगी या यह पैसा भी डूब जाएगा?

गिरता रुपया, घटता निवेश

आज भारतीय रुपए की हालत बद से बदतर हो चुकी है. रुपया इस वक्त एशिया की सब से खराब हालत वाली मुद्रा बन चुका है. अमेरिकी डौलर के मुकाबले अगस्त माह में यह 3.4 फीसदी तक गिर चुका है.

भारत में देशी और विदेशी निवेश लगातार घट रहा है. जून 2019 में समाप्त तिमाही में नई परियोजनाओं (निजी और सरकारी) में निवेश पिछले 15 वर्षों में सब से कम यानी 71,337 करोड़ रुपए रहा. इस तिमाही में पूरी हुई परियोजनाओं का मूल्य गिर कर 5 वर्षों में साल के न्यूनतम स्तर यानी 64,494 करोड़ रुपए पर आ गया. अप्रैलजून 2019 में रेलवे को कोयला, सीमेंट, पैट्रोलियम, उर्वरक, लौह अयस्क आदि की ढुलाई से जो कमाई हुई उस में सिर्फ 2.7 फीसदी का ही इजाफा हुआ, जो पिछले साल की इसी अवधि के मुकाबले 6.4 फीसदी कम है.

इस साल अप्रैल से जुलाई के बीच निर्यात (कारोबारी और सेवाएं) सिर्फ 3.13 फीसदी बढ़ा है. पिछली अवधि में भी यही था, जबकि आयात में 0.45 फीसदी की गिरावट आई है, जो अर्थव्यवस्था की निराशाजनक हालत को बयां करता है. वहीं, खपत में जैसी कमी आई है वैसी पहले कभी नहीं रही. 2019-20 की पहली तिमाही में कारों की बिक्री 23.3 फीसदी, दुपहिया वाहनों की 11.7 फीसदी, व्यावसायिक वाहनों की साढ़े 9 फीसदी घट गई है. ट्रैक्टरों की बिक्री में 14.1 फीसदी की कमी आई है. जुलाई में तो हालत सब से खराब रही. 286 डीलर अपना कारोबार बंद कर चुके हैं. उद्योग संगठनों – सियाम और फाडा ने 2 लाख 30 हजार नौकरियां जाने की बात कही है.

त्वरित उपभोग वाली वस्तुओं (एफएमसीजी) की खपत भी आशा के अनुरूप नहीं रही. हिंदुस्तान लीवर, डाबर, ब्रिटानिया इंडस्ट्रीज और एशियन पेंट्स सहित कई कंपनियों की कुल कारोबारी वृद्धि इस साल की पहली तिमाही में आधी रह गई है या पिछले साल की इसी अवधि के मुकाबले में कम रही है.

देश के मौजूदा वित्त वर्ष (2019-20) की पहली तिमाही में केंद्र सरकार का सकल कर राजस्व 1.4 फीसदी ही बढ़ा है जबकि पिछले साल इसी अवधि में यह 22.1 फीसदी रहा था. ये तमाम बातें इस बात का खुलासा हैं कि कौर्पोरेट और वैयक्तिक आय में लगातार कमी आ रही है और खर्च में भी भारी गिरावट है.

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धीमापन चिंताजनक

भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन अर्थव्यवस्था में इस समय दिख रहे धीमेपन को बहुत चिंताजनक करार देते हैं. उन का कहना है कि सरकार को ऊर्जा एवं गैरबैंकिंग वित्तीय क्षेत्रों की समस्याओं को तत्काल सुलझाना चाहिए. इसी के साथ निजी निवेश प्रोत्साहित करने के लिए जल्द ही सरकार को नए कदम उठाने चाहिए.

वर्ष 2013-16 के बीच आरबीआई के गवर्नर रहे रघुराम राजन ने भारत में जीडीपी की गणना के तरीके पर नए सिरे से गौर करने का भी सुझाव दिया है. इस संदर्भ में उन्होंने पूर्व मुख्य अर्थशास्त्री अरविंद सुब्रमण्यम के शोध निबंध का हवाला दिया, जिस में साफ कहा गया था कि मोदी सरकार में देश की आर्थिक वृद्धि दर को बढ़ाचढ़ा कर आंका गया है.

अरविंद सुब्रमण्यम ने दावा किया था कि 2011-12 से 2016-17 के दौरान देश की आर्थिक वृद्धि दर का अनुमान तकरीबन ढाई फीसदी अधिक बताया गया था. सरकार का कहना था कि इस अवधि में भारत की जीडीपी वृद्धि दर 7 फीसदी रही, जबकि सुब्रमण्यम कहते हैं कि यह इस आंकड़े से बहुत कम करीब साढ़े 4 फीसदी के आसपास ही थी.

हैरानी यह भी है कि वहीं दूसरी ओर मोदी सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के रक्षा उपक्रमों (पीएसयू) को भी बंद करने का प्रयास कर रही है. सांठगांठ वाले पूंजीवाद के लिए रक्षा क्षेत्र के पीएसयू को बंद करना देश की सुरक्षा से बड़ा खिलवाड़ साबित होगा.

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आनंद शर्मा इस पर चिंता व्यक्त करते हुए कहते हैं कि सरकार द्वारा भारतीय पीएसयू में हिस्सेदारी बेची जा रही है. कोई भी देश अच्छी गुणवत्ता वाले हथियारों का उत्पादन किए बिना अपनी रक्षा नहीं कर सकता है. केंद्र सरकार देश को बड़े खतरे की ओर ढकेल रही है. कुल मिला कर देश की आर्थिक सुरक्षा के फ्रंट पर नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र की भाजपा सरकार अब तक फेल रही है.

अगर सरकार सफल है तो सिर्फ नारेबाजी और भावनाएं उकसाने वाले फैसले करने में. लेकिन लट्ठ बजाने से न गेहूं उगता है, न कारखाना चलता है. द्य

  अर्थव्यवस्था के दावे

भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने एक नया शिगूफा छोड़ा है. स्वच्छ भारत, मेक इन इंडिया, अच्छे दिन, सब का विकास, जय श्रीराम, मंदिर वहीं बनाएंगे, गौमाता जैसे नारों को गढ़ने में उस्ताद भाजपाई सरकार का अब नया नारा है ‘5 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था.’ यह ट्रिलियन होता क्या है? इस का अर्थ क्या है, यह मत पूछिए. यह वेदों में छिपे ज्ञान की तरह है जिसे केवल तपस्वी, ऋषिमुनि, त्यागी, महात्मा समझ सकते हैं या फिर निर्मला सीतारमण. ये नरेंद्र मोदी सरकार की वित्त मंत्री हैं. आम व्यक्ति को इस से कुछ मतलब नहीं है पर उस का यह कर्तव्य है कि जैसे वह भारत माता की जय बोलता है, वैसे ही ‘हम 5 ट्रिलियन इकोनौमी होंगे’ हर दूसरी सांस में बोले.

वैसे 5 ट्रिलियन का मतलब है 5,000,000,000,000 डौलर यानी 36,00,00,00,00,00,000 रुपए (36 नील रुपए) की अर्थव्यवस्था. इस का अर्थ होगा कि प्रतिव्यक्ति वार्षिक आय जो आज लगभग 1,35,000 रुपए है, बढ़ कर 5-7 सालों में 2,40,000 रुपए प्रतिव्यक्ति हो जाएगी. यह मात्र खुशफहमी है, यह पक्का है, क्योंकि जब निर्मला सीतारमण पानी का घूंट पिए बिना लंबा बजट भाषण दे रही थीं, उस समय सुधरती अर्थव्यवस्था के 2 बड़े पैमाने, गाडि़यों और मकानों की बिक्री कम हो रही थी. कारें फैक्ट्रियों में बनीं लेकिन फैक्ट्रियां न बिकने वाली गाडि़यों को खड़ी करने की जगह ढूंढ़ रही थीं जबकि बिल्डर्स हाथ पर हाथ धरे दीवारें निकालने को बैठे थे.

वहीं, कुछ किसान मौनसून की कृपा के कारण तो कुछ बढ़ते खर्च व घटती आय के कारण जोत कम कर रहे थे. हां, बच्चे पैदा हो रहे थे. स्कूल भरे हुए थे. बेरोजगारों की फैक्ट्रियां चालू थीं.

इतना अवश्य है कि भारतीय जनता पार्टी की अद्भुत जीत, चाहे वह कैसे भी हासिल की गई हो, की वजह से मरघट सी चुप्पी छाई है. विपक्षी दलों की बोलती बंद है. मीडिया, जो पहले गुणगान में व्यस्त था, अब चुप हो गया. अमीर तो भारीभरकम अतिरिक्त टैक्स के खिलाफ भी नहीं बोल रहे, क्योंकि उन्हें डर है कि बोलने पर ईडी यानी एनफोर्समैंट डायरैक्टोरेट उन के दरवाजे खटखटाने न आ जाए.

यह 5 ट्रिलियन का नारा पूरा हो या न हो, फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि यदि किसी तरह की अमीरी आ भी गई तो वह पहले 2-3 फीसदी लोगों में आएगी. फिर कहीं खुरचन बंटी, तो ऊंची जातियों में बंट कर रह जाएगी. सरकारी कर्मचारी और पंडितों के व्यवसाय व ठाटबाट बेहतर होंगे. लेकिन बाकी सब लोग भगवान भरोसे, यदि वह कहीं है तो.

सत्ता में दोबारा आई मौजूदा सरकार के संसद में पेश किए गए पहले बजट के फैसलों से ऐसा कहीं नहीं लगता कि कुछ अच्छा होने वाला है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह विपक्षी कांग्रेस को ध्वस्त करने में ज्यादा लगे हैं, देश निर्माण में कम. अखबारों की सुर्खियां तो कम से कम यही कह रही हैं.

देश की प्रगति के लिए पूंजी निवेश चाहिए होता है, चाहे वह कारखानों में हो, सड़कों, पुलों पर हो, रेलों पर हो या स्कूलों में हो. हालत यह है कि इन की दर 2007-08 में 32.9 फीसदी से घट कर आज 29.3 फीसदी रह गई है. पूंजी निवेश के लिए जो सरकारी पैसा चाहिए होता है वह करों में चाहिए होता है. निर्मला सीतारमण के बजट का अंदाजा है कि इस वर्ष आयकर में 23.25 फीसदी की बढ़ोतरी होगी और जीएसटी में 44.98 फीसदी. हालांकि ऐसा संभव नहीं है, पर ऐसा अगर हुआ तो यह क्रूर रोमन सम्राटों या ईस्ट इंडिया कंपनी के अकाल के दिनों में भी कर बढ़ाने जैसा होगा, क्योंकि पूरी अर्थव्यवस्था ही धीमी चल रही है.

हां, अपना समर्थन देने के लिए जय 5 ट्रिलियन, जय गौवंश, जय भारतमाता बोलते रहें, अवश्य कल्याण होगा.

नीति आयोग का खुलासा

नीति आयोग के वाइस चेयरमैन राजीव कुमार ने साफ कहा है कि देश की अर्थव्यवस्था इस वक्त सब से जर्जर हालत में है और पिछले 70 वर्षों में देश ने ऐसी स्थिति का सामना नहीं किया है कि जब पूरी वित्तीय प्रणाली जोखिम में हो. राजीव कुमार के मुताबिक, नोटबंदी और जीएसटी के बाद कैश संकट बढ़ा है. राजीव कुमार ने कहा कि आज कोई किसी पर भरोसा नहीं कर रहा है. प्राइवेट सैक्टर किसी को कर्ज देने के लिए तैयार नहीं है. हर कोई नकदी दबा कर बैठा है. नोटबंदी, जीएसटी और आईबीसी (दीवालिया कानून) के बाद हालात बदल गए हैं. पहले करीब 35 फीसदी कैश उपलब्ध होता था, वह अब काफी कम हो गया है. इन सभी कारणों से स्थिति काफी जटिल हो गई है.

अर्थव्यवस्था में सुस्ती को ले कर राजीव कुमार ने कहा कि यह 2009-14 के दौरान बिना सोचेसमझे दिए गए कर्ज का नतीजा है. इस से 2014 के बाद नौन परफौर्मिंग एसेट (एनपीए) बढ़ा है. इस वजह से बैंकों की नया कर्ज देने की क्षमता कम हुई है. इस कमी की भरपाई गैरबैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) ने की. इन के कर्ज में 25 फीसदी की वृद्धि हुई है.

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जगदलपुर : प्राकृतिक सौंदर्य का ठिकाना

भारत के हृदय में बसा छत्तीसगढ़ सैलानियों के आकर्षण का केंद्र बनता जा रहा है. छोटीछोटी पर्वतमालाएं और इस की गोद में अठखेलियां करती नदियां बरबस ही अपनी ओर ध्यान आकर्षित करती हैं. जगदलपुर हरेभरे पहाड़ों, गहरी घाटियों, घने जंगलों, नदियों, झरनों, गुफाओं, प्राकृतिक पार्क, शानदार स्मारकों, समृद्ध प्राकृतिक संसाधनों और आनंदमय एकांत से भरापूरा है. प्राकृतिक सौंदर्य और जंगली जानवरों के लिए विशाल संरक्षित वन से समृद्ध जगदलपुर अपनी पारंपरिक लोक संस्कृति के लिए जाना जाता है जो इस क्षेत्र को विशिष्टता प्रदान करती है. इस बार हम आप को जगदलपुर के प्रसिद्ध पर्यटक स्थलों की सैर कराने जा रहे हैं–

चित्रकोट का जलप्रपात

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 274 किलोमीटर दूर स्थित जगदलपुर से 39 किलोमीटर की दूरी पर बहती इंद्रावती नदी के पास चित्रकोट जलप्रपात है. यह सैलानियों के आकर्षण का केंद्र है. चित्रकोट जलप्रपात छत्तीसगढ़ में सब से लोकप्रिय झरने के रूप में सूचीबद्ध है. इस जलप्रपात की ऊंचाई 90 फुट है. यह बस्तर संभाग का सब से प्रमुख जलप्रपात माना जाता है. जगदलपुर से समीप होने के कारण यह एक प्रमुख पिकनिक स्पौट के रूप में भी प्रसिद्धि प्राप्त कर चुका है. राज्य के बस्तर अंचल में स्थित जगदलपुर का चित्रकोट जलप्रपात इतना मनमोहक और आकर्षक है कि इसे भारत का नियाग्रा कहा जाता है. इस जलप्रपात की खासीयत यह है कि बारिश के दिनों में यह रक्तिम लालिमा लिए हुए होता है जबकि गरमी की चांदनी रात में यह झक सफेद नजर आता है.

यह जगह छत्तीसगढ़ के शीर्ष इकोटूरिज्म स्थलों में शुमार है. यहां आने के लिए रायपुर से जगदलपुर तक सड़क और रेलमार्ग द्वारा पहुंचा जा सकता  है.जगदलपुर में स्थित मानव विज्ञान संग्रहालय, बस्तर, जनजाति की जीवनशैली और संस्कृति पर प्रकाश डालता है. बस्तर पैलेस जगदलपुर का एक अन्य आकर्षण है जो ऐतिहासिक अवशेष है. वर्तमान में बस्तर के शाही परिवार वहां रह रहे हैं. जगदलपुर में स्थित इंद्रावती नैशनल पार्क और कांगेरघाटी नैशनल पार्क भी मुख्य आकर्षण हैं.

इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान

त्तीसगढ़ के बेहतरीन और सब से मुख्य वन्यजीव उद्यानों में से एक इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान है. यह उद्यान पशुओं, पक्षियों और सरीसृप की व्यापक प्रजातियों के लिए प्रसिद्ध है. इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान को 1981 में राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया और बाद में 1983 में इसे भारत के प्रसिद्ध प्रोजैक्ट टाइगर के तहत टाइगर रिजर्व का दरजा मिला. यह छत्तीसगढ़ में एकमात्र टाइगर रिजर्व है. दुर्लभ जंगली भैंसे और हिरण उद्यान के मुख्य आकर्षण हैं. उद्यान की यात्रा करने के लिए सब से अच्छा मौसम जून से दिसंबर के दौरान का होता है.

तीरथगढ़ का जलप्रपात

पूरे बस्तर क्षेत्र में कई और जलप्रपात भी अपार जलराशि के कारण सैलानियों को विहंगम अनुभूति से भर देते हैं. इन में तीरथगढ़ का जलप्रपात  प्रसिद्ध है. यह जगदलपुर से 25 किलोमीटर दूर कांगेर (फूलों की घाटी) वैली राष्ट्रीय उद्यान में है. यहां का नैसर्गिक सौंदर्य शहरी सैलानियों को रोमांच और कुतूहल से भर देता है. जगदलपुर के समीप 30 किलोमीटर की दूरी पर प्राकृतिक रूप से बनी कोटमसर गुफा भी है. यह विश्वप्रसिद्ध है.इस के अलावा, जगदलपुर इलाके का तमारा घूमर झरना भी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है. यह झरना जगदलपुर से लगभग 45 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. क्षेत्र के हरेभरे वन वाली भूमि, गहरी घाटियां और शानदार पहाडि़यों जैसे प्राकृतिक  सौंदर्य इस जगह की खूबसूरती को बढ़ाते हैं और अपनी ओर पर्यटकों को आकर्षित करते हैं.

फेस्टिव सीजन में भी औफर का सहारा

बिजनेस में औफर का सहारा आमतौर पर औफ सीजन में लिया जाता था. हर बिजनेस का एक औफ सीजन होता है. कारोबारी हमेशा से ही फेस्टिव सीजन को लेकर बहुत उत्साहित रहता है. उसे उम्मीद रहती है कि फेस्टिव सीजन में उसकी अच्छी कमाई हो जायेगी. जिससे औफ सीजन में कुछ लुभावने औफर के सहारें उसका बिजनेस चलता रहेगा. पितृपक्ष के पहले से फेस्टिवल सीजन शुरू होता है. पितृपक्ष में खरीददारी लोग कम करते हैं इसके बाद वापस खरीददारी का समय शुरू हो जाता है. पितृपक्ष के पहले गणेश उत्सव से ही फेस्टिवल माना जाता है. गणेश उत्सव में जिस बिजनेस की उम्मीद की जा रही थी वह इस बार नहीं दिखा है. गणेश उत्सव में भी बिजनेस का बढ़ाने के लिये औफर का सहारा लेना पडा. फैशन डिजाइनिंग स्टोर चलाने वाली नेहा दीप्ति कहती हैं ‘इस बार औफर के सहारे ही पूरा समय गुजर रहा है. बड़े- बड़े स्टोर में भी औफर लगा रहा. ऐसे में अब फेस्टिवल सीजन में भी औफर का ही सहारा लग रहा है.

केवल कपड़ों की दुकानों का ही यह हाल नहीं है. महिलाओं से हमेशा गुलजार रहने वाला ब्यूटी सेक्टर भी औफर की मजबूरी में फंसा है. ब्यूटी एक्सपर्ट पायल श्रीवास्तव का अपना ब्यूटी सैलून है. वह कहती है कि औफ सीजन में ब्यूटी सर्विस में औफर देने पड़ते है. पहले डिसकाउंट तक कम से कम दिया जाता था. अब बिजनेस के लिये पहले ही औफर देने पड़ रहे है.’ यही हालत ज्वैलरी बिजनेस के भी है. इन्द्रेष स्तोगी कहते हैं ‘सोना मंहगा होने से अब ज्वैलरी की खरीददारी कम होने लगी है. अभी तक लोगों को लग रहा था कि फेस्टिवल सीजन में तेजी आयेगी पर ज्वैलरी बनाने वाले से लेकर बेचने वाले तक में कोई उत्साह नहीं है. उनको लग नहीं रहा कि फेस्टिवल सीजन में बिजनेस में कोई बहुत तेजी आयेगी.‘

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आटो सेक्टर के बाद कपड़ा, ब्यूटी और ज्वैलरी बाजार में भी फेस्टिवल की तेजी नहीं दिखाई दे रही है. पितृपक्ष के बाद फेस्टिवल सीजन शुरू होने वाला है. ऐसे में सामान निर्माता जिस तरह से नये डिजाइन, नये उत्साह के साथ काम करते थे वह नहीं दिख रहा है. कपड़ा कारोबारी दीपक कुमार कहते हैं ‘सबसे अधिक परेशानी में हैंडवर्क करने वाले कारीगर है. मंहगी कढ़ाईदार कपड़ों का क्रेज कम हो गया है. हम लोग बनारसी साड़ी का काम करते हैं. इस बार वाराणसी के साड़ी बिजनेस में तेजी नहीं दिख रही है. लखनवी चिकन की कढ़ाई अब मशीनों से सूरत में तैयार होने लगी है. ऐसे में बिजनेस में फेस्टिवल सीजन को लेकर जो उसाह दिखता था वह नहीं दिख रहा. जानकार मानते हैं कि बिजनेस मैन फेस्टिवल सीजन के लिये भी नये नये औफर लेकर आने की तैयार में है. उनको लगता है कि बिना औफर के फेस्टिवल सीजन भी मंदा रह सकता है.

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सलवार सूट : भाग 2

लेखिका: सुधा सिन्हा

वर्षों पहले बांके बिहारी को किडनी स्टोन की तकलीफ हुई थी. उसी के सिलसिले में डा. कैप्टन शर्मा का इस घर में प्रवेश हुआ था. पास में ही रहते थे. कभी सैनिक अस्पताल में थे. घर में बड़ों या बच्चों की कोई बीमारी हो, तो हमेशा उन्हें ही बुला लिया जाता. धीरेधीरे वे इस घर के सदस्य जैसे बन गए.

दोनों परिवारों में भी सामाजिक संबंध हो गए थे. वे सरकारी अस्पताल के डाक्टर थे. वहां से छूटते ही अकसर वे यहां आ बैठते थे और ‘भाभी एक गरमगरम चाय हो जाए,’ कह सोफे पर पसर जाते थे. इस मरीज ने यह तमाशा किया, उस वार्ड बौय ने किसे कैसे तंग किया, किस नर्स का किस डाक्टर से क्या संबंध है, सबकुछ नाटकीय ढंग से बताते जाते. और बच्चों से ले कर बड़ों तक का हंसाहंसा कर दम भर देते. चमकी तो बचपन से ही मानो उन की दुम थी. जब वे आते, बस, उन्हीं से चिपकी रहती. अब बड़ी हो गई है, हजार काम हैं उस को, पर अब भी सबकुछ छोड़छाड़ कर कुछ देर के लिए तो जरूर ही आ बैठती है उन के पास.

‘कोई नजला नहीं, कोई जुकाम नहीं,’ वह हमेशा यही उत्तर देती रही है, लेकिन आज बोली, ‘‘बूआ से आप उन के कमरे में मिल ही लीजिए.’’

‘‘भई, ऐसी क्या बात हुई कि हमें वहां जाना पड़ेगा? तबीयत तो ठीक है न?’’ उन्होंने पूछा.

वर्षों से इस परिवार में आनाजाना है. अब रिटायर हो चुके हैं, पर कभी भी उन्होंने चंद्रा के कमरे में कदम नहीं रखा है. हां, जब भी आते हैं एक नजर उसे देखने की ख्वाहिश उन की अवश्य होती है. पहले जब वह जवान थी तो कभीकभी परदे की आड़ से, छिप कर उन के नाटकीय वर्णनों को सुना करती थी. एक अदृश्य शक्ति से उन्हें एकदम पता लग जाता था कि कब वह उन्हें सुन रही है. वे कुछ सजग हो जाते, वे कुछ और हंसीमजाक कर के उस वर्णन में जान डालने की कोशिश करते. मानो चंद्रा को खुश कर के उन्हें तृप्ति मिलेगी. जब चंद्रा चली जाती तो उन्हें पता चल जाता और उन की बातें भी खत्म हो जातीं और फिर वे चले जाते.

तब वे बालबच्चे वाले थे. घर में मां थीं, 2 बहनें थीं, पत्नी, बच्चे थे, बड़ी जिम्मेदारी थी. उन्होंने चंद्रा से चाहा भी कुछ नहीं था. उस की उदास जिंदगी में थोड़ी खुशी भरना चाहते थे, बस. अब मां, पत्नी परलोक सिधार चुकी हैं. बच्चे, बहनें अपनीअपनी गृहस्थी में सुखी हैं. कोई यहां, कोई वहां जा बसा है. बेटे विदेश में बस चुके हैं. अब वे नितांत अकेले हैं, रिटायर्ड हैं, पर स्वतंत्र ही रहना चाहते हैं. उन के परिवार के नाम पर बांके बिहारी के परिवारजन हैं. रोज ही आने लगे हैं यहां आजकल. लेकिन अभी भी चंद्रा सामने नहीं आती. यदि पड़ भी जाती है तो अभिवादन भर कर लेती है. मुसकरा कर, सिर हिला कर हां या न में उन के सवालों का जवाब दे देती है और वापस चली जाती है.

डा. कैप्टन शर्मा राधिका से अकसर पूछ लेते, ‘और चंद्रा कैसी है? कोईर् नजला, कोई जुकाम?’

राधिका हंसती, ‘नहीं, ठीक है वह. उसे नजलाजुकाम की फुरसत कहां है. आजकल उस के स्कूल में परीक्षाएं चल रही हैं. कुछ ट्यूशनें भी घर में लेनी शुरू कर दी हैं उस ने. आजकल बडि़यां बनाने में लगी है या आजकल स्वेटर बुनने में व्यस्त है,’ आदिआदि जैसी चंद्रा की सैकंडहैंड खबरें राधिका से उन्हें मिलती रहतीं. कभी वे कोई मैगजीन ले आते, उपन्यास ले आते उस के लिए.

बस, इतना ही. और कुछ नहीं. दुखिया को एकाकीपन से कुछ तो मुक्ति मिल जाए. अपने दायरे में ही रह कर जितना हो सके सुख बटोर ले. बस, यही इच्छा थी उन की.

‘‘कोई नजला नहीं, कोई जुकाम नहीं, पर बूआ से आप आज उन के कमरे में मिल ही लीजिए,’’ चमकी चमक कर कह रही थी.

‘‘भई, ऐसी क्या बात है कि हमें वहां जाना पड़ेगा? तबीयत तो ठीक है न?’’

‘‘आप वहां जाइए तो पहले, तभी तो पता लगेगा,’’ चमकी ने जोड़ा.

‘‘भाभी, राधिका भाभी, बात क्या है? क्या बहुत बीमार है वह?’’ उस तरफ जातेजाते डा. शर्मा बोले.

पीछे से राधिका आ गई. कुछ रास्ता रोकते हुए बोली, ‘‘नहीं, दीदी एकदम ठीक हैं. चमकी शरारत कर रही है.’’

‘‘अरे, एक लेडी के कमरे में बिना इजाजत जाने को कह रही है, आखिर माजरा क्या है?’’ उन्होंने पूछा.

‘‘क्या, बिना इजाजत वहां नहीं जा सकते आप?’’ चमकी ने आश्चर्य प्रकट किया.

‘‘एकदम नहीं, आखिर जैंटलमैन हूं मैं.’’

‘‘कायर हैं कायर, डरते हैं बूआ से,’’ चमकी ने चैलेंज किया.

‘‘ओके, जाता हूं,’’ डा. बोले और चंद्रा के कमरे के द्वार पर खड़े हो कर दरवाजा पर खटखटा कर अंदर आने की आज्ञा मांगी. फिर थोड़ा रुक कर उन्होंने भीतर प्रवेश किया.

साथ ही राधिका और चमकी भी पीछेपीछे घुसीं. देखा, उन की तरफ पीठ कर के वे खिड़की के पास खड़ी हैं. शायद रो भी रही हैं.

‘‘क्या हुआ?’’ डाक्टर ने राधिका से फुसफुसा कर पूछा.

सलवारसूट की तरफ इशारा कर के राधिका बोली, ‘‘परिवार के सब लोगों ने बड़ा मजाक उड़ाया है इन का. मैं ने समझाबुझा दिया था. अब चमकी की नासमझी से फिर बिफर पड़ी हैं ये शायद.’’

उलटे पैर डा. कैप्टन शर्मा बाहर निकल गए. चमकी भी बाहर आ गई, बोली, ‘‘डर गए न डाक्टर चाचा?’’

गंभीर हो कर कैप्टन शर्मा बोले, ‘‘हरेक आदमी की अपनी प्राइवेसी होती है. उस को तोड़ना अनुचित ही नहीं, बल्कि शर्म की बात भी है. वह जब उचित समझेगी, और मुझे यदि उपयुक्त समझेगी तो खुद ही बातचीत करने के लिए बाहर आएगी.’’

‘‘आप का यह संदेश मैं उन्हें दे आऊं? वे तो बाहर आने से रहीं.’’

‘‘तुम जाओ, चमकी, अपना काम करो.’’

‘‘आज कोई गपशप?’’

‘‘आज मैं किसी का इंतजार कर रहा हूं. इसलिए आज गपशप नहीं.’’

अनजान सी कुछ देर खड़ी रह कर चमकी वापस लौट गई.

डा. कैप्टन शर्मा की आवाज सुनते ही जो रुलाई फूट पड़ी थी, उस से चंद्रा लाज से गड़ी जा रही थी. लेकिन जब वे दरवाजे से लौट गए तो अचानक उस ने उन के प्रति बड़ी कृतज्ञता का अनुभव किया. बाहर जा कर मानो उन्होंने उसे एक बड़ी शर्म से बचा लिया. अब बाहर वे उस की प्रतीक्षा कर रहे हैं, क्यों?

राधिका उसे कमरे में अकेला छोड़ कर जा चुकी थी. चंद्रा अनिश्चित दशा में कुछ देर चुप खड़ी रही, फिर पानी से मुंह धो कर रसोई में राधिका के पास आ बैठी. चाय का कप उसे पकड़ा कर राधिका ने कहा, ‘‘जाओ, डाक्टर साहब को दे आओ.’’

‘‘मैं?’’

‘‘हां, क्यों?’’

‘‘इन कपड़ों में?’’

‘‘यदि कपड़े बदलने जाओगी, तो न तो चाय पीने के काबिल बचेगी और न तुम चाय ले कर जाने के काबिल बचोगी.’’

‘‘भाभी, क्या कह रही हैं आप.’’

‘‘कुछ कदम आगे बढ़ते हैं तो कुछ को पीछे छोड़ कर ही बढ़ते हैं. इसी तरह कुछ धारणाएं टूटती हैं तो कुछ बनती भी हैं. अब सलवारसूट पहन कर आगे बढ़ी हो, तो बैठक में जा कर चाय पेश करना भी सीखो.’’

चाय की ट्रे ले कर धीरेधीरे कदम बढ़ाती, सिर झुकाए, चंद्रा ने जब बैठक में प्रवेश किया तो सोफा छोड़ कर कैप्टन शर्मा अदब से मिलिटरी कायदे के अनुसार खड़े हो गए. और तब तक खड़े रहे, जब तक चंद्रा सोफे पर नहीं बैठ गई.

‘‘मैं कैप्टन शर्मा हूं. बिहारी परिवार का फैमिली डाक्टर,’’ उन्होंने अपनेआप को परिचित कराया.

पीछेपीछे राधिका भी कमरे में आ गई थी. हंस कर उस ने अपनी ननद का परिचय डाक्टर से कराया.

‘‘बहुत दिनों से आशा लगा रखी थी कि तुम्हें कभी नजला या कभी जुकाम हो तो मुझे याद किया जाए, लेकिन हमेशा मुझे निराशा ही हाथ लगी.’’

चंद्रा सिर झुकाए मुसकराती रही.

‘‘मैं बातें किए जा रहा हूं. तुम कोई जवाब ही नहीं देतीं. यह तो बड़ा जुल्म है.’’

चंद्रा जानती थी कि डाक्टर साहब के व्यक्तित्व में एक चुंबकीय आकर्षण है. शायद इसीलिए वह सदैव अपने को उन से दूर रखती आई थी. आज भी वह ठीक उन के सामने बैठी चुंबक के सामने पड़े लोहे की तरह छटपटा रही थी कि बांके बिहारी ने कमरे में प्रवेश कर के खामोशी तोड़ दी.

‘‘क्या मौके पर आए हो,’’ डाक्टर साहब बोले, ‘‘मैं चंद्रा के साथ सामने पार्क में घूमने जा ही रहा था,’’ डा. साहब अब उठ कर खड़े हो चुके थे, ‘‘अब आ ही गए हो तो तुम से भी इजाजत ले लेता हूं.’’

‘‘पी कर आए हो?’’ आश्चर्य से बांके बोले, ‘‘भले घर की स्त्रियां क्या पराए मर्दों के साथ घूमने जाती हैं?’’

‘‘जानता था, तुम यही कहोगे,’’ डाक्टर साहब हंस पड़े, ‘‘आज इन्होंने पहली बार सलवारसूट पहना है. बाहर घूमने के लिए तो इन्हें निकलना ही है. तुम तो ले कर जाओगे नहीं. तुम्हें छोड़ कर भाभी जाएंगी नहीं. बच्चे दोनों पहले से ही अपनेअपने गु्रप के साथ वहां पहुंच चुके होंगे. अब कौन बचा, मैं ही?’’

चंद्रा शर्म से गड़ी जा रही थी. वह कमरे से बाहर जाने के लिए खड़ी हुई. डाक्टर बोले, ‘‘तुम बहुत सुंदर लग रही हो. बहुत जंच रहा है तुम पर यह सलवारसूट. घूमने तो हम लोग साथ चलेंगे ही, चाहे इस के लिए मुझे बांके बिहारी को साला ही क्यों न बनाना पड़े.’’

एक बार फिर सब सकते में आ गए.बाहर की ओर जातेजाते चंद्रा के कदम थम गए. सोचने लगी, ‘कहीं यह उस का कोई दूसरा मजाक तो नहीं है?’ पर नहीं, डा. कैप्टन शर्मा चंद्रा के एकदम नजदीक आ खड़े हुए, ‘‘चंद्रा, क्या मुझे अपना जीवनसाथी चुनना स्वीकार करोगी.’’

एक भयभीत सी नजर चंद्रा ने अपनी भाभी पर डाली.

राधिका बोली, ‘‘डाक्टर बाबू, उन के भैया से तो पहले इजाजत ले लीजिए.’’

‘‘अरे, वह साला क्या इजाजत देगा, साला है न. इजाजत तो मुझे चंद्रा की चाहिए. हम दोनों बालिग हैं. इजाजत न  देगा, तो भाग निकलेंगे. यह गली छोड़ कर दूसरी गली में बस जाएंगे.

कोई कुछ बोले, उस से पहले ही आगे बढ़ कर राधिका ने डाक्टर साहब के हाथ में चंद्रा का हाथ रख दिया.

इस घटना के अरसे बाद तक चमकी उस सलवारसूट के करामाती किस्से सुनाती रही. जब भी उस की किसी सहेली के लिए रिश्ता आता, चमकी उस को सलवारसूट ही पहनने की सलाह देती, ‘‘देखो, सलवारसूट की ही वजह से तो मेरी 50 वर्षीया बूआ के हाथ पीले हुए.

लहलहाते वृक्ष : भाग 2

सरकार के साधन असंख्य होते हैं. फौरन जिलाधीशों और विकास अधिकारियों की आपातबैठक हुई. निर्देश दिया गया कि सच्चीमुच्ची में वृक्ष लगाए जाएं. इस के और नाना प्रकार के अन्य फंड पहले से ही सब की जेब में हैं, सो, कोई कमी या दिक्कत का बहाना नहीं सुना जाएगा. 15 दिनों बाद दोबारा जांच की जाएगी तब तक किसी न किसी बहाने कमीशन का दौरा अटकाया जाता रहेगा.

अधिकारसंपन्न अधिकारी वापस लौट आए. वे ऐसे आदेशों की अनसुनी करने के अभ्यस्त मगर अपनी खाल बचाने में पारंगत. उन्होंने फौरन तहसीलदारों और खंडविकास अधिकारियों को वृक्षारोपण सुनिश्चित करने के लिखित निर्देश जारी किए और चैन की बंसी बजाने लगे.

मगर अगंभीर सरकार इस बार गंभीर थी. मामला कोर्ट का था न. मुख्य सचिव को अपने अफसरों की ईमानदारी और कर्मठता के बारे में कोई गलतफहमी न थी. इसलिए एक दिन लावलश्कर के साथ खुद जांच के लिए निकल पड़े. जैसा अंदेशा था, बिलकुल वैसा ही हुआ. जिनजिन तहसीलों में छापे मारे वहां के वृक्ष केवल फाइलों में लहलहाते मिले. इतनी हिमाकत. मुख्य सचिव का कहर तहसीलदारों और खंडविकास अधिकारियों की पीठ पर निलंबन का कोड़ा बन बरसने लगा. एकदो जिलाधीश भी उस के लपेटे में आ गए.

पूरे प्रदेश में हंगामा मच गया. सारे तहसीलदारों और अधिकारियों की नींद हराम हो गई. मगर खेलावन बाबू मस्त थे. 15 वर्षों पहले वे पटवारी के रूप में सरकारी सेवा में भरती हुए थे और ‘कड़ी वाली’ मेहनत कर तहसीलदार बन गए थे. इस बीच वे कितने घाटों का पानी पी चुके थे, उन्हें खुद भी याद न होगा.

2 दिनों बाद मुख्य सचिव का लश्कर उन के इलाके में पहुंचा. सचिव से ले कर अपर सचिव तक के अधिकारियों की फौज उन के मुंह से निकले शब्दों को मूर्तरूप देने के लिए साथ में थी.

‘‘पिछली रिपोर्ट में बताया गया है कि आप के इलाके में वृक्ष नहीं लगाए गए हैं,’’ मुख्य सचिव ने फाइल देखते हुए कहा.

‘‘हुजूर, वृक्ष तो लगाए गए थे लेकिन उन्हें बकरियां खा गई थीं. मगर 15 दिनों में आप के गुलाम ने दोबारा वृक्ष लगवा दिए हैं,’’ खेलावन बाबू ने हाथ जोड़ अपनी कमर को जितना झुका सकते थे उतना झुकाते हुए कहा.

खेलावन बाबू ने दिखाया, मुख्य सचिव और उन की फौज ने देखा. वास्तव में दूरदूर तक लहराते हुए वृक्ष लगे हुए थे. हरेभरे. 4-4, 5-5 फुट के वृक्ष.

‘‘अरे वाह, ये तो बहुत खूबसूरत वृक्ष हैं. बिलकुल हरेभरे,’’ मुख्य सचिव ने सचिव से कहा.

‘‘यस सर, इन वृक्षों की ग्रोथ देख कर लग रहा है 10-15 दिनों में इन में फ्रूट्स भी उग आएंगे,’’ सचिव ने अपनी टाई ठीक करते हुए कहा.

‘‘सर, ये सारे वृक्ष हाइब्रिड के लग रहे हैं. इन में फसल भी बेहतर होनी चाहिए,’’ संयुक्त सचिव, जो शीघ्र ही सचिव बनने वाले थे, ने भी अपना ज्ञान बघारना जरूरी समझा.

‘‘आई थिंक खेलावन बाबू ने इन वृक्षों पर हाई क्वालिटी का इन्सैक्टिसाइड डाला है, तभी बकरियों ने इन्हें नहीं खाया,’’ मुख्य सचिव ने कुछ सोचते हुए कहा.

‘‘यस सर,’’ सचिव ने खोपड़ी हिलाई.

‘‘यू आर राइट सर,’’ संयुक्त सचिव ने अपनी पूरी गरदन हिला डाली. सरकारी सेवा में अधीनस्थों की कार्यकुशलता इन्हीं शब्दों में जाप की मात्रा से नापी जाती है.

मुख्य सचिव ने एक बार फिर अपनी दृष्टि दूरदूर तक लहलहाते

वृक्षों पर डाली. फिर संयुक्त सचिव की ओर मुखरित होते हुए बोले, ‘‘अभी तक हम सब को पनिश करते आ रहे थे, बट आई थिंक, हमें खेलावन को उस के गुड वर्क के लिए अवार्ड देना चाहिए ताकि दूसरों को मोटिवेशन मिल सके.’’

‘‘यस सर’’, ‘‘यू आर राइट सर,’’ सचिव और संयुक्त सचिव ने पूर्ववत अपनीअपनी खोपड़ी और गरदन हिलाई.

‘‘खेलावन, तुम ने 15 दिनों में इतना काम कैसे कर डाला?’’ मुख्य सचिव, खेलावन बाबू से मुखातिब हुए.

‘‘हुजूर, सब आप से प्रेरणा ले कर किया है वरना इस गुलाम में इतनी कूवत कहां,’’ खेलावन बाबू ने एक बार फिर हाथ जोड़ कर अपनी कमर को जितना झुका सकते थे उतना झुकाया.

खेलावन बाबू की मुद्रा देख सचिव का अंतर्मन तृप्त हो गया. खुश हो उन्होंने कहा, ‘‘खेलावन, तुम हमारे वृक्षारोपण अभियान के आईकन हो. हम तुम्हें अवार्ड देंगे.’’

खेलावन बाबू पूरी तरह नतमस्तक हो गए. तृप्त मुख्य सचिव ने इशारा किया तो अपर सचिव ने फौरन अपने ब्रीफकेस से एक लिफाफा निकाला. पुराने अनुभव के चलते वे छपेछपाए सस्पैंशन और्डर के साथसाथ अवार्ड के लिफाफे और एक फोटोग्राफर को भी ले कर मुख्यालय से चले थे.

फोटोग्राफर ने कैमरा संभाला. मुख्य सचिव ने दाता कृष्ण की मुद्रा बनाई और खेलावन बाबू ने सुदामा की मुद्रा में हाथ आगे बढ़ाया.

‘‘तभी हट…हट…हट…’’ करता एक धूलधूसरित 15-16 वर्षीय बालक अपनी बकरियों को हांकते हुए उधर आ गया.

‘‘हटवाओ इन बकरियों को वरना ये वृक्षों को खा जाएंगी और इन्हें उगाने में 15 दिनों की मेहनत बेकार हो जाएगी,’’ मुख्य सचिव ने हाथ रोक कर सचिव को आदेश दिया.

इस से पहले कि सचिव महोदय कुछ कह पाते, उस बालक ने ढीठ की तरह कमर पर हाथ रखते हुए मुख्य सचिव से पूछा, ‘‘बाबू, आप लोग शहर से आए हो?’’

‘‘हां.’’

‘‘तभी ऐसी बातें कर रहे हो,’’ बालक खिलखिला कर हंस पड़ा.

‘‘कैसी बातें?’’ मुख्य सचिव ने आंखें तरेरीं.

‘‘पहली बात, बकरियां खाती नहीं, चरती हैं. और दूसरी बात, वृक्ष 15 दिनों में नहीं, बल्कि 15 साल में तैयार होते हैं,’’ बालक के चेहरे पर व्यंग्यभरी मुसकान तैर गई.

मुसकान देख मुख्य सचिव तिलमिला गए. उन्होंने डपटते हुए कहा, ‘‘तू पूरा मूर्ख है क्या? तुझे ये वृक्ष दिखलाई नहीं देते?’’

वह बालक अपने गांव का राजकुमार सा था. उसी की धरती पर कोई बाहर वाला उसे मूर्ख कहे, यह बात बरदाश्त से बाहर थी. वह ताव खा गया, ‘‘मूरख हो तुम. पक्के पढ़ेलिखे मूरख, जिसे वृक्ष और ताजा खोद कर गाढ़ी गई डाल में फर्क करने की तमीज नहीं है.’’

मुख्य सचिव अवाक रह गए. उन्हीं के सूबे में उन के अफसरों के सामने कोई उन्हें मूर्ख कह सकता है, यह बात कल्पना से भी परे थी. उन की समझ में ही नहीं आया कि क्या कहें.

वक्त की नजाकत समझ उन की तरफ से मोरचा संभालते हुए खेलावन बाबू ने बालक को डपटा, ‘‘चलो, भागो यहां से. साहब लोग वृक्षों की जांच करने आए हैं. उन्हें जांच करने दो. सरकारी काम में बाधा मत डालो वरना अंदर कर दिए जाओगे.’’

पहले मूर्ख कहा और अब अंदर करने की धमकी. बालक का गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुंचा और वह हाथ नचाते हुए बोला, ‘‘जांच करने आए हैं तो कायदे से जांचें. झूठमूठ की फोटो क्यों खिंचवा रहे हैं?’’

इतना कह कर वह एक वृक्ष के करीब पहुंचा और बोला, ‘‘अगर ये वृक्ष हैं तो इन की जड़ें भी होंगी.’’

खेलावन बाबू खतरा भांप गए थे मगर इस से पहले कि वे कूद कर उस उद्दंड बालक को दबोच पाते, उस ने अपनी नन्ही भुजाओं से कई वृक्षें को उखाड़ डाला.

जड़विहीन वृक्षों ने सब को जड़ से हिला दिया. खेलावन बाबू तो पूरी तरह सनाका खा गए. अब तो नौकरी जाने की पक्की गारंटी. उन की टांगें कांपने लगीं. नीचे गिरने से पहले उन्होंने भयभीत नजरों से मुख्य सचिव की ओर देखा. वहां मंदमंद मुसकराहट छाई हुई थी.

समस्या का हल उन्हें मिल गया था. अब जहांतहां कमीशन जाएगा, वहांवहां एक दिन पहले ‘खेलावनी विधि’ से लहलहाते वृक्षों का रोपण कर दिया जाएगा. कमीशन के आसपास इस नादान बालक जैसे तत्त्व न भटकने पाएं, यह सुनिश्चित करवाने के उन के पास अनेक साधन थे. वे लावलश्कर के साथ फौरन राजधानी लौट पड़े. बहुत सी तैयारियां जो करनी थीं.

कर्फ्यू : भाग 2

लेखिका: सुरभि शर्मा

मैं ने कदम आगे बढ़ाए और दूसरी गली में पहुंच गई. मैं ने  झांक कर देखा, वह गली भी खाली थी. मैं उस गली में आगे बढ़ गई और गली के दूसरे कोने पर पहुंच कर आगे का जायजा ले ही रही थी कि मुझे ऐसा महसूस हुआ कि मेरे पीछे कोई है. मैं ने शायद किसी के पैरों की आवाज सुनी है. मैं इतना डर गई कि पीछे मुड़ कर देखने की भी मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी. बुत सी बन वहीं खड़ी रह गई. वह आवाज मेरे और पास आई. अब मुझे यकीन हो चला था कि मेरे पीछे कोई तो है. में ने डरते हुए पीछे देखा. वहां वाकई कोई था.

‘‘डरना मत, चिल्लाना मत, मैं कुछ नहीं करूंगा.’’

वह मेरी ही हमउम्र लड़का था. लंबा, अच्छी कदकाठी का, काली आंखों वाला. चिल्लाने की मुझ में हिम्मत थी भी नहीं. डर से मेरे हाथपैर ठंडे हो चुके थे.

‘‘मैं दंगाई नहीं हूं. मैं बाजार में फंसा था. घर जाना चाहता हूं. क्या तुम भी घर जा रही हो?’’

मुझ से कुछ भी बोलते नहीं बना, तो उस ने फिर पूछा.

‘‘कुछ तो बोलो. डरो मत. मैं तुम्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचाऊंगा.’’

मैं जवाब में सिर्फ ‘हां’ कह पाई.

‘‘तुम्हारा घर कहां है. मेरे साथ चलो. इस तरह अकेले पकड़ी जाओगी,’’ कह कर उस ने अपना हाथ बढ़ा कर मेरा हाथ पकड़ना चाहा. मैं ने अपना हाथ पीछे खींच लिया.

‘‘अच्छा ठीक है. बस, मेरे साथ रहो,’’ वह बोला.

पहली बार मैं ने हिम्मत कर के, बस, इतना कहा, ‘‘मैं खुद से चली जाऊंगी.’’ और अगली गली में जाने के इरादे से नजर डाली.

‘‘तुम जहां जाने की सोच रही हो वहां से मैं बड़ी मुश्किल से बच कर आया हूं, वहां लोग खड़े हैं, पकड़ी गई तो मारी जाओगी. बेहतर यही है कि मेरे साथ चलो. मैं तुम्हें घर पहुंचा दूंगा, भरोसा रखो.’’

मैं ने एक नजर उस की आंखों में डाली, क्या वह सच बोल रहा है? क्या उस पर भरोसा किया जा सकता है? मुझे इस तरह अपनी तरफ देखते हुए उस ने कहा, ‘‘मैं मनसुख चाचा की दुकान के बाद 2 दुकानें छोड़ कर जो घर है, उस में रहता हूं. तुम कहां रहती हो?’’

मनसुख चाचा की दुकान सब से मशहूर हलवाई की दुकान है. मैं समझ नहीं पाई कि जवाब दूं या नहीं, जवाब न पा कर उस ने दोबारा पूछा, ‘‘तुम कहां रहती हो?’’ तो मैं ने बता दिया, ‘‘तुम दरी वालों का घर जानते हो, वह घर हमारा है. मनसुख चाचा की दुकान के 2 गली पीछे. हमारे घर में दरी बनाने का काम किया जाता है, इसलिए सब दरीवालों का घर कहते हैं.’’

‘‘हां, जानता हूं, मैं तुम्हें पहुंचा दूंगा. बस मेरे साथ रहो.’’

डर से मेरे सोचने समझने की शक्ति खत्म हो गई थी. सहीगलत समझ नहीं आ रहा था. बस, इतना समझ आया कि वह मुझे मेरे घर पहुंचाने की बात कह रहा था.

वह सड़क के दूसरी तरफ जाने लगा और मैं उस के पीछे चल दी. चलतेचलते उस ने बताया कि उस का नाम अखिल है. उस ने कहा, ‘‘कल से मेन बाजार में फंसा हुआ था. वहां हालात इस से बदतर हैं. आज हिम्मत कर के घर के लिए निकला हूं.’’ फिर बोला, ‘‘देखो, मेरा घर तुम्हारे घर से पहले आएगा, इसलिए मैं अपने घरवालों को सूचित कर के कि मैं सहीसलामत हूं, फिर तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ आऊंगा. तुम्हारा नाम क्या है?’’

‘‘सांची.’’ मैं हां या न कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं थी. बस, इतना ही कह पाई और चुपचाप पीछे चलती रही.

कुछ दूर छिपतेछिपाते गलियों से निकलते हुए हम एक घर के सामने रुके. उस ने दरवाजे पर दस्तक दी. अंदर से कोई जवाब नहीं आया. उस ने फिर से दस्तक दी. और अपना नाम बताया. जैसे ही दरवाजा खुला, हम तूफान के जैसे अंदर दाखिल हुए और दरवाजा बंद हो गया. अंदर अखिल का परिवार था. सब उसे सहीसलामत देख कर बहुत खुश थे. फिर सब ने मेरी तरफ देखा. अखिल ने सारी कहानी कह सुनाई.

‘‘तुम आज रात यहीं रुक जाओ. अंधेरा भी हो गया है. कल सुबह हम तुम्हें छोड़ आएंगे,’’ अखिल की मां ने कहा.

‘‘जी शुक्रिया, मेरा घर अब पास ही है, मैं चली जाऊंगी,’’ मैं ने कहा और चलने के लिए दरवाजे की तरफ मुड़ी.

मैं चाहती थी कि अखिल मेरे साथ जाए पर जब उस की मां ने रात रुकने के लिए कहा तो मैं कुछ कह नहीं पाई.‘‘नहीं, अकेले मत जाओ. अखिल तुम्हें छोड़ आएगा,’’ अखिल के पिता ने कहा.

हम ने घरवालों से विदा ली और फिर से सड़क पर आ गए.

हम कुछ दूर चले ही थे कि अखिल ने मेरा हाथ पकड़ लिया. मैं ने गुस्से से उस की तरफ देखा, तो उस ने समझते हुए कहा, ‘‘तुम पीछे रह जाती हो, इसलिए. और अब हमें सड़क पार करनी है, पीछे रह गई, तो हम अलग हो जाएंगे.’’

मैं ने चुप रहना ही बेहतर समझा. हम ने कुछ कदम आगे बढ़ाए ही थे कि हमें हमारी तरफ आती हुई कुछ आवाजें सुनाई दीं. हम ने अपने कदम वापस लिए और भाग कर एक टूटी हुई कार के पीछे शरण ली. अखिल ने मेरा हाथ अपने दोनों हाथों से पकड़ा हुआ था और मैं अपना चेहरा उस के सीने में छिपाए बैठी थी. वे 3-4 लोग थे जो भाग रहे थे. उन के पीछे 3-4 पुलिस वाले भाग रहे थे.

अखिल के मैं इतना करीब बैठी थी कि मुझे उस की धड़कनें साफ सुनाई दे रही थीं. उस का दिल जोरों से धड़क रहा था और सांसें बहुत तेज चल रही थीं. यह अखिल की जिम्मेदारी नहीं थी कि वह मुझे  घर पहुंचाए, पर फिर भी न जाने क्यों उस ने अपनी जान का जोखिम लिया. मैं पहली बार अपनेआप को महफूज महसूस कर रही थी.

वे आवाजें दूर चली गईं. फिर सुनाई देना बंद हो गईं. हम ने एकदूसरे की तरफ देखा और हमारी नजरें उलझ कर रह गईं.

अपनेआप को संयत कर के उस ने कहा, ‘‘चलो, हमें निकलना होगा.’’ पर अब मुझे पहुंचने की जल्दी नहीं थी.

वे आवाजें फिर नहीं आईं और हम छिपतेछिपाते, रुकतेरुकाते हुए घर पहुंचे. घर के दरवाजे पर मैं ने धीरे से मां को आवाज लगाई. कुछ ही पलों में दरवाजा खुल गया. हम अंदर चले गए. सब सहीसलामत घर पर ही थे. उन्हें सिर्फ मेरी फिक्र थी. मैं ने उन्हें बताया कि किस तरह अखिल ने अपनी परवा न करते हुए मुझे घर तक पहुंचाया.

सब अखिल के बहुत शुक्रगुजार थे. अखिल हम से उसी वक्त विदा ले कर अपने घर के लिए निकल गया. हम उसे रोक नहीं पाए. खाना खा कर मैं सोने चली गई. घर में सब बहुत खुश थे. पर मुझे फिक्र थी अखिल की, क्या वह ठीक से घर पहुंचा होगा? क्या वे दंगाई फिर आए होंगे? मेरे सामने अखिल का चेहरा घूम रहा था. मेरा मन उसी की फिक्र कर रहा था. मन बारबार सोच रहा था कहीं उसे कुछ हो न गया हो. लगता था उस से कोई अनकहा रिश्ता जुड़ गया था.

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