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एफडब्ल्यूआईसीई ने गायक उदित नारायण, कुमार शानू और अलका यागनिक को भेजा नोटिस !

फेडरेशन औफ वेस्टर्न इंडिया सिने एम्प्लाइज (एफडब्ल्यूआईसीई) ने गायक कुमार शानू, उदित नारायण और गायिका अलका याज्ञनिक को एक नोटिस भेजकर कहा है कि वह १७ नवंबर को पाकिस्तानी नागरिक मोज्जमा हुनईन द्वारा अमेरिका में आयोजित एक कार्यक्रम में प्रस्तुति देने से पहले पुर्नविचार करें. फिल्म और टेलीविजन जगत की ३२ एसोसिएशनों का प्रतिनिधित्व करने वाले फेडरेशन औफ वेस्टर्न इंडिया सिने एम्प्लाइज ने स्पष्ट कहा है कि अगर यह कलाकार अपना पाकिस्तान के प्रति प्रेम बंद नहीं करेंगे, तो फेडरेशन उनका बायकौट करेगा. फेडरेशन में फिलहाल १० लाख से ज्यादा सदस्य हैं.

१६ सितंबर को इन तीनों गायक गायिकाओं को भेजी गयी नोटिस में फेडरेशन औफ वेस्टर्न इंडिया सिने एम्पलाईज की ओर से कहा गया है कि इस समय जबकि हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान से संबंध अच्छे नहीं हैं और जम्मू काश्मीर में आर्टिकल ३७० हटाने के बाद पाकिस्तान जिस तरह के बयान जारी कर भारत के प्रति जहर उगल रहा है, ऐसे में आपका देश के प्रति निष्ठावान होना जरुरी है. फेडरेशन औफ वेस्टर्न इंडिया सिने एम्प्लाइज के प्रेसिडेंट श्रीबी.एन. तिवारी, जनरल सेक्रेटरी अशोक दुबे, ट्रेजरार ज्ञानेश्वरलाल श्रीवास्तव,  मुख्य सलाहकार अशोक पंडित  और मुख्य सलाहकार शरद शेलार के हस्ताक्षर से यह नोटिस गायक कुमार शानू, उदित नारायण और गायिका अलका यागनिक को भेजी गयी है, जिसमें कहा गया है कि फेडरेशन ने तय किया है कि हम पाकिस्तान से किसी भी सांस्कृतिक प्लेटफार्म को साझा नहीं करेंगे. हमारे लिए देश प्रथम है.’’

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इस नोटिस में कहा गया है कि आप भारत के सम्माननीय गायक हैं. भारत के लोगों की भावनाओं का सम्मान करते हुए १७ नवंबर को पाकिस्तानी नागरिक मोज्जमा हुनईन द्वारा अमेरिका में आयोजित कार्यक्रम में प्रस्तुति देने से पहले आप पुर्नविचार करें. इससे पहले पाकिस्तान के अरबपति कारोबारी अदनान असद की बेटी की शादी में बौलीवुड सिंगर मीका सिंह ने ८ अगस्त परफॉर्म किया था.इस बात का खुलासा होने के बाद  फेडरेशन आॅफ वेस्टर्न इंडिया सिने एम्प्लाइज  ने मीका सिंह पर बैन लगा दिया था. इसके बाद मीका सिंह फेडरेशन के मुंबई में अंधेरी स्थित कार्यालय पहुंचे और मीडिया और फेडरेशन के पदाधिकारियों की मौजूदगी में देश से माफी मांगी और कहा कि आगे से यह गलती नहीं होगी.

नोटिस में कहा गया है कि इसके पहले गायक दिलजीत दोसांज ने २१ सितंबर को पाकिस्तानी नागरिक रेहान सिद्दीकी के आमंत्रण पर प्रस्तुति देने की सहमति दी थी. मगर फेडरेशन औफ वेस्टर्न इंडिया सिने एम्प्लाइज की असहमति के बाद देश के लोगों और फेडरेशन के लाखों सदस्यों की भावनाओं का सम्मान करते हुए उन्होंने इस कार्यक्रम में प्रस्तुति देने से इंकार कर दिया था.

फेडरेशन के प्रेसिडेंट बी. एन. तिवारी के मुताबिक फेडरेशन का स्टैंड बिल्कुल साफ है कि हमारे लिए देश और देश के लोगों की भावनाएं पहले हैं. अगर यह गायक अपना पाकिस्तान के प्रति प्रेम बंद नहीं करेंगे तो फेडरेशन उनका बायकौट करेगा.

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अजब गजब : 1.23 अरब रुपये के हैं ये जूते

क्या आपने इस दुनिया का सबसे महंगे जूते देखे हैं?  जी हां, आप यही सोच रहे होंगे न, इस महंगे जूते की कीमत क्या होगी. जब आप इस जूते की कीमत जानेंगे तो हैरान रह जाएंगे. इस अनोखे जूते का नाम पैशन डायमंड शू और इसकी कीमत 1.7 करोड़ डौलर यानी 1.23 अरब रुपये है. इस जूते की कीमत अरबों में है.

इस बेशकीमती जूते में 15 कैरेट का एक हीरा लगा है. इसके अलावा 236 दूसरे छोटे डायमंड की कतार और सोने की सजावट इसे और भी खास बनाता है. इस लग्जरी शू का नाम पैशन डायमंड शू रखा गया है. इसे सोने और हीरों से बनाया गया है. इस शू को डिजाइन करने और बनाने में 9 महीने का समय लगा है. इस शू में सैकड़ों हीरे लगे हैं.

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आपको बता दें कि ब्रांड जदा दुबई हीरे वाले जूते बनाने के लिए जाना जाता है. पैशन डायमंड शू के अलावा भी कुछ ऐसे शूज और स्लिपर्स हैं, जो अपनी कीमत के लिए जाने जाते हैं.

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विकृति की इंतेहा: भाग 2

विकृति की इंतहा: भाग 1

आखिरी भाग

अब आगे पढ़ें

मतलब साफ था कि फैजान की हत्या करने के बाद कातिल ने शव घर में ही छिपा कर रखा था, लेकिन पुलिस की सक्रियता के कारण उसे शव को ठिकाने लगाने का मौका नहीं मिल पाया था. लेकिन जब लाश से तेज बदबू आने लगी तो उसे ठिकाने लगाना कातिल की मजबूरी हो गई थी.

फैजान का शव जिस बोरी में मिला था, उस में धागों के टुकड़े मिले थे. बोरी का मुंह भी कपड़े की चिंदी से बांधा गया था. फैजान के घर में भी सिलाई का काम होता था. इस के अलावा मोहल्ले में अधिकांश घरों में टेलरिंग का काम होता था. इसलिए सुराग की तलाश में पुलिस ने करीब 200 घरों की गहनता से तलाशी ली.

पुलिस को पता चला कि फैजान के पड़ोस में रहने वाला 19 वर्षीय सोहेल अंसारी उर्फ मोनू घटना वाले दिन रतलाम में अपने घर पर ही था. 2 दिन बाद वह बहन की शादी में शामिल होने खंडवा चला गया था, जहां से वह 22 अप्रैल को वापस आया था.

उस के लौटने के अगले दिन ही 23 अप्रैल को सोहेल के घर से कुछ ही दूर नाले में फैजान का शव मिला था. इसलिए पुलिस ने सोहेल को पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया. ऐसा नहीं कि पुलिस ने सोहेल से पहले पूछताछ न की हो. घटना के ठीक बाद भी पुलिस उसे उठा कर थाने लाई थी लेकिन उस समय उस की बहन की शादी की वजह से उसे थाने से भेज दिया था.

फैजान का परिवार सोहेल पर खूब भरोसा करता था. घटना के ठीक बाद जब पुलिस मोहल्ले में घरों की तलाशी ले रही थी, तब फैजान के पिता ने खुद सोहेल के घर की तलाशी लेने से पुलिस को यह कह कर रोका था कि यह हमारे घर का ही आदमी है. अब उसी सोहेल को पुलिस ने पुख्ता शक के आधार पर हिरासत में लिया था. लेकिन सोहेल इस मामले में खुद को निर्दोष साबित करने पर तुला था.

अब तक पुलिस को इस बात की जानकारी मिल चुकी थी कि सोहेल को नशा करने के अलावा मोबाइल पर अश्लील फिल्में देखने की लत थी. फैजान के साथ भी अप्राकृतिक दुष्कृत्य की पुष्टि हुई थी. इसलिए पुलिस ने सोहेल के खून का सैंपल डीएनए जांच के लिए सागर भेज दिया. इस दौरान पुलिस ने उस के घर की तलाशी ली, उस के घर में पुलिस को वैसा ही एक प्लास्टिक का बोरा मिला, जिस तरह के बोरे में फैजान का शव नाले में पाया गया था.

30 अप्रैल, 2019 को पुलिस को डीएनए की रिपोर्ट मिल गई, जिस से साफ हो गया कि फैजान के साथ दुष्कृत्य करने वाला सोहेल ही था. पुलिस ने उस के साथ सख्ती बरती तो उस ने न केवल अपना अपराध स्वीकार कर लिया बल्कि यह भी बता दिया कि उस ने फैजान की लाश घर में छिपा कर रखी थी. लाश को छिपाते समय उसे उस की बड़ी बहन कश्मीरा ने देख लिया था.

लेकिन कश्मीरा ने यह जानकारी किसी को देने के बजाए भाई को बचाने की कोशिश की. इतना ही नहीं, 22 अप्रैल की रात में लगभग 8 बजे सोहेल ने कश्मीरा की मदद से ही फैजान की लाश नाले में फेंकी थी.

इस जानकारी के बाद पुलिस ने कश्मीरा को भी गिरफ्तार कर लिया. जिस के बाद पूरी कहानी इस प्रकार सामने आई.

रतलाम के हाट रोड पर बसी बस्ती में ज्यादातर परिवार सिलाई के काम से जुड़े हैं. जफर कुरैशी भी यही काम करता था. जफर का इसी बस्ती में घर भी है, जिस के पड़ोस में सोहेल का परिवार रहता है. सोहेल आवारा किस्म का युवक था. बताया जाता है कि उसे 12 साल की उम्र से ही नशा और सैक्स की आदत पड़ चुकी थी.

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उस के मोबाइल में तमाम देशीविदेशी अश्लील फिल्में रहती थीं, जिन्हें वह देखता रहता था. कई बार वह नाबालिग लड़कियों की अश्लील फिल्म दिखाते हुए अश्लील हरकतें कर चुका था. जिन में से कुछ ने उस के घर जा कर इस की शिकायत भी की थी. जिस के चलते मोहल्ले में कुछ लोगों से विवाद भी हो चुका था.

उस ने पुलिस को बताया कि उन दिनों उस की छोटी बहन की शादी खंडवा में होने जा रही थी, जिस के चलते उस का पूरा परिवार 12 अप्रैल, 2019 को खंडवा चला गया था. सोहेल को भी साथ जाना था लेकिन वह 14 अप्रैल को दोस्तों के संग आने की बात कह कर घर पर रुक गया था.

13 अप्रैल को सोहेल ने पहले तो जी भर कर नशा किया फिर अपने फोन पर अश्लील फिल्में देखनेलगा. फिल्म देखतेदेखते वह इतना उत्तेजित हो गया कि गली में किसी लड़की की तलाश करने लगा. दुर्भाग्य से इसी बीच फैजान उसे अकेला दुकान की तरफ जाते दिखा.

फैजान को देख कर उस के दिमाग का शैतान जाग उठा. उस ने फैजान को आवाज दे कर अपने घर में बुला लिया. फैजान उसे भाईजान कह कर बुलाता था, इसलिए आसानी से उस के बुलाने पर नजदीक चला गया. उसे ले कर सोहेल अंदर गया और दरवाजा बंद कर उस से मीठीमीठी बातें करते हुए उस के कपड़े उतारने लगा.

मासूम फैजान कुछ समझ नहीं सका. लेकिन इतना तो जानता था कि इस तरह से कपड़े नहीं उतारे जाते. उस ने विरोध करना चाहा तो सोहेल ने घर में पड़े टेप से उस के हाथपैर बांध दिए. वह चिल्ला न सके, इस के लिए उस ने मुंह पर भी टेप चिपका दिया. फिर वह उस मासूम के साथ अप्राकृतिक रूप से अपनी वासना शांत करने में जुट गया.

उस दौरान सोहेल इतना पागल हो चुका था कि उस ने इस बात पर भी ध्यान नहीं दिया कि टेप से फैजान की नाक भी बंद हो गई है. इसलिए जब तक सोहेल की वासना की आग शांत हुई, मासूम फैजान की धड़कनें भी शांत हो चुकी थीं.

यह देख कर सोहेल डरा नहीं बल्कि उस ने उसी हालत में फैजान का शव उठा कर वाशिंग मशीन में डाल दिया और खुद बाहर घूमने निकल गया. इस के बाद जब मोहल्ले में फैजान के लापता होने का हल्ला हुआ तो वह भी उस के घर पहुंच गया. सब के साथ मिल कर उस ने फैजान को खोजने का नाटक किया.

दूसरे दिन बात बढ़ी तो पुलिस ने शक के आधार पर मोहल्ले के कई बदमाशों के साथ सोहेल को भी पूछताछ के लिए उठा लिया. यह खबर उस की बहन की शादी के लिए खंडवा गए उस के परिवार को पता चली तो वहां से उस की बड़ी बहन कश्मीरा रतलाम आई.

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कश्मीरा घर पहुंची तो उस ने वाशिंग मशीन में रखा फैजान का शव देख लिया. लेकिन उस ने न तो इस बात की खबर पुलिस को दी और न ही किसी अन्य को. उलटे थाने जा कर छोटी बहन की शादी के नाम पर सोहेल को अपने साथ छुड़ा लाई और उसे ले कर खंडवा चली गई.

खंडवा से पूरा परिवार 22 अप्रैल को वापस रतलाम आया, जिस के बाद कश्मीरा और सोहेल ने मिल कर रात में लगभग ढाई बजे फैजान का शव बोरी में भर कर नाले में फेंक दिया. चूंकि फैजान का परिवार सोहेल पर काफी भरोसा करता था, इसलिए दोनों को विश्वास था कि पुलिस उन के ऊपर कभी शक नहीं करेगी.

लेकिन मोहल्ले में सोहेल 22 अप्रैल को वापस आया था और 23 को शव उस जगह मिला, जहां पहले ही पुलिस कई बार तलाश कर चुकी थी, इसलिए वह शक के घेरे में आ गया. बाकी का काम डीएनए रिपोर्ट के मिलान हो जाने से पुलिस को पुष्टि हो गई, जिस के बाद पुलिस ने दोनों भाईबहनों को सलाखों के पीछे पहुंचा दिया.

शादी के बाद जल्दी बच्चा होने से हो सकती हैं ये दिक्कतें

अगर आपका भी परिवार आपको जल्दी बच्चा करने के लिए दबाव डालता है तो हो जाए सावधान क्योंकि ऐसी बहुत सी दिक्कतें और असुविधाएं होती हैं जिसके कारण आप भी परेशान रहती हैं और साथ ही मानसिक तनाव भी बढ़ता है जो आपकी सेहत के लिए बिल्कुल भी अच्छा नहीं है.अक्सर जब किसी की शादी होती है तब उस लड़की की बहुत सी ख्वाहिशें होती हैं जिनके वो पूरा करना चाहती है.लेकिन फिर जब उसपर बच्चे के लिए दबाव बनाया जाता है तो वो बात मान जाती है.जिससे बहुत उसे बहुत सी परेशानियां उठानी पड़ती हैं.

  • सबसे पहला कारण घर के बड़े बुजुर्ग, अगर उनकी उम्र ज्यादा होती है तो सोचते हैं की पोते का तो मुंह देख लिया अब मरने से पहले परपोते का मुंह भी देख लूं इसलिए यहां पर भी लड़की पर फैमिली प्रेशर डाला जाता है और उसे न चाहते हुए भी बच्चे को जन्म देना पड़ता है. जिसके कारण वो उसकी देखभाल भी सही से नहीं कर पाती क्योंकि वो बच्चे के लिए तैयार ही नहीं रहती है.

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  • अगर बच्चा जल्दी हो जाता है तो फिर वो अपने पार्टनर को भी ज्यादा समय नहीं दे पाती क्योंकि जब इंसान शादी करता है तो उसकी कुछ जरुरतें होती हैं जो पूरी करना चाहता हैं वो या चाहती है लेकिन जल्दी बच्चा होने से वो इन सब से दूर होने लगती है ना ही पति को ज्यादा प्यार दे पाती है और ना ही समय जिसके कारण दोनों के ही मन में मन-मुटाव हो जाता है और दूरियां भी काफी हो जाती है इसलिए प्राइवेट लाइफ बहुत जरूरी है शादी के बाद.
  • अगर पति और पत्नी दोनों ही बच्चे के लिए रेडी नहीं होते हैं. उन्हें लगता हैं कि अभी उस बच्चे की जिम्मेदारी नहीं उठा सकते हैं लेकिन फिर भी बच्चा हो जाए तो उसकी देखभाल करना दोनों के लिए ही दिक्कत हो जाती है.क्योंकि बच्चे को संभालना उसकी देखभाल करना इतना आसान नहीं होता उसकी परवरिश करना पढ़ाना-लिखाना सारी चीजें देखनी पड़ती हैं और अगर इतना बैंक बैलेंस नहीं है व्यक्ति के पास तो दिक्कतें होनी ही हैं.

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  • कभी-कभी शादी कम उम्र में हो जाती है और फिर बच्चें भी जल्दी हो जाते हैं तो इसका असर शरीर पर भी पड़ता है और आप शारीरिक रूप से बहुत कमजोर भी हो जाती हैं क्योंकि उस वक्त तो आप खुद को भी नहीं संभाल पाती तो ऐसे में बच्चें की जिम्मेदारी कहां से संभालेंगी.

इसलिए जब भी आपको लगे कि आप बच्चे की जिम्मेदारी संभालने के लिए तैयार हैं उसकी परवरिश अच्छे से कर सकती हैं तभी बच्चे तो जन्म दें.कभी भी परिवार के दबाव में आकर बच्चे पैदा न करें.अपनी प्राइवेट लाइफ को शादी के बाद कम-से-कम तीन साल तो आपको देना ही चाहिए हर कपल की ख्वाहिश होती हैं कि उसका पार्टनर उसको समय दें इसलिए इस बात का हमेशा ध्यान रखें.जब आपको लगे कि आपने अपने भविष्य को सुरक्षित बना लिया और बच्चे को अच्छे से पढ़ा-लिखा सकते हैं तभी बच्चे के बारे में सोचें.

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पैरालिसिस: जब सुन्न पड़ जाए जिस्म

शंकर सुबह जागा तो बिस्तर से उठ ही नहीं पाया. उसके जिस्म में ताकत ही महसूस नहीं हो रही थी कि वह करवट भी ले ले. पत्नी को आवाज लगानी चाही तो मुंह टेढ़ा सा हो गया और आंखों के आगे अंधेरा छा गया. घूं-घूं की आवाज गले से निकली और फिर वह बेहोश हो गया. इसके बाद उसकी आंखें अस्पताल में खुलीं. देखा कि पत्नी और बेटा उसके पैरों की मालिश कर रहे थे. शंकर ने कुछ बोलने की कोशिश की तो मुंह से आवाज नहीं निकली. पत्नी उसको देख कर रो पड़ी. बोली, ‘डॉक्टर लकवा बता रहे हैं. भर्ती कर लिये हैं. तुम ठीक हो जाओगे…’ कह कर वह सुबक पड़ी.

शंकर रिक्शा चलाता है. उम्र यही कोई तीस-पैंतीस साल होगी. दुबला-पतला शरीर. जिसने उसकी बीमारी के बारे में सुना हैरान हुआ कि इस उम्र में क्या किसी को लकवा मार सकता है? मगर शंकर पर पैरालिसिस का अटैक पड़ा था. डौक्टर की मानें तो यह तनाव की वजह से हुआ था. शंकर गरीब है, हमेशा पैसे की तंगी रहती है, इसकी वजह से वह काफी दुख, परेशानी और तनाव में रहता है. इसी तनाव ने आखिरकार उसे बिस्तर पर पटक दिया.

पैरालिसिस को आमतौर पर लकवा, पक्षाघात, अधरंग, ब्रेन अटैक या ब्रेन स्ट्रोक के नाम से जाना जाता है. हमारे देश में हर साल 15-16 लाख लोग इस बीमारी की चपेट में आते हें. सही जानकारी न होने या समय पर इलाज न मिलने से इनमें से एक तिहाई लोगों की मौत हो जाती है, जबकि करीब एक तिहाई लोग अपंग हो जाते हैं. अपंगता की हालत में मरीज जीवन भर के लिए अपने परिवार वालों पर आश्रित हो जाता है. लकवाग्रस्त करीब एक तिहाई लोग ही खुशकिस्मत होते हैं, जो वक्त पर सही इलाज मिलने से पूरी तरह ठीक हो जाते हैं और पहले की तरह ही नौर्मल जिन्दगी जीने लगते हैं.

पैरालिसिस का अटैक पड़ने पर आमतौर पर शरीर का एक तरफ का हिस्सा काम करना बंद कर देता है. साथ ही उसी साइड की आंख और मुंह में भी टेढ़ापन आ जाता है. डौक्टर नीना बहल बताती हैं कि मनुष्य के दिमाग का दायां हिस्सा बाईं ओर के अंगों को कंट्रोल करता है और बायां हिस्सा दाईं ओर के अंगों को. पैरालिसिस स्ट्रोक पड़ने पर अगर हमारे दिमाग के दाएं हिस्से में दिक्कत हुई है तो हमारे बाएं हाथ-पैर पर इसका असर पड़ेगा और अगर बाएं तरफ दिमाग में गड़बड़ी हुई है तो दायां हाथ-पैर काम करना बंद कर देगा. आमतौर पर रात को खाना खाने के बाद और सुबह के वक्त पैरालिसिस का अटैक ज्यादा होता है. बोलने में अचानक समस्या हो, शरीर के एक तरफ के हिस्से में भारीपन महसूस हो, चलने में दिक्कत हो, चीजें उठाने में परेशानी हो, एक आंख की रोशनी कम होने लगे, चाल बिगड़ जाए तो फौरन डॉक्टर के पास जाएं. यह तमाम लक्षण पैरालिसिस स्ट्रोक के लक्षण हो सकते हैं.

पैरालिसिस यानी लकवा लाइलाज नहीं है. वक्त पर डौक्टर के पास पहुंच जाएं तो इस बीमारी का इलाज मुमकिन है और मरीज दूसरों पर आश्रित होने से बच जाता है.

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क्या हैं पैरालिसिस की वजहें

–  हमारा मस्तिष्क शरीर का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है और पैरालिसिस का सीधा सम्बन्ध हमारे मस्तिष्क से है. हमारा दिमाग ही हमारे शरीर के सभी अंगों और कामकाज को नियंत्रित करता है. जब दिमाग की खून की नलियों में कोई खराबी आ जाती है तो ब्रेन स्ट्रोक होता है, जो पैरालिसिस की वजह बनता है.

–  शरीर के दूसरे हिस्सों की तरह ही दिमाग में भी दो तरह की खून की नलियां होती हैं. एक जो दिल से दिमाग तक खून लाती हैं यानी धमनी, और दूसरी जो दिमाग से वापस दिल तक खून लौटाती हैं यानी शिरा. यों तो पैरालिसिस धमनी या शिरा दोनों में से किसी की भी खराबी से हो सकता है, लेकिन ज्यादातर लोगों  में यह समस्या धमनी में खराबी के कारण होती है.

–  हाई ब्लड प्रेशर, तनाव, गुस्सा, तेज बुखार आदि के कारण जब धमनी में खून का दबाव बहुत ज्यादा हो जाता है, तब या तो वह लीक करने लगती है अथवा फट जाती है, इससे खून बाहर निकलकर जम जाता है. जैसे-जैसे खून की मात्रा बढ़ती जाती है ‘क्लॉट’ यानी ‘खून के थक्के’ का साइज बढ़ता जाता है और जल्द ही यह थक्का खून की नली या उसके जख्म को बंद कर देता है, जिससे खून का निकलना तो बंद हो जाता है लेकिन यह नाड़ी में खून के आवाजाही के रास्ते को ब्लॉक कर देता है. बहुत से मरीजों में ब्रेन हेमरेज के वक्त इतना खून निकल जाता है कि सिर के अंदर दबाव बढ़ जाता है और इससे दिमाग काम करना बंद करने लगता है. इस बढ़ते दबाव की वजह से सिरदर्द या उलटी होने लगती है. ज्यादा दबाव बढ़ने पर बेहोशी, पैरालिसिस, सांस अटकने जैसी परेशानी हो जाती है.

–  खून की नली के बंद होते ही दिमाग का वह हिस्सा औक्सीजन के अभाव में भूखा-प्यासा तड़पने लगता है और काम करना बंद कर देता है. अगर दिमाग के इस भाग को आसपास से भी खून नहीं मिल पाता या खून की नली का क्लौट ज्यों का त्यों पड़ा रहता है तो दिमाग के इस भाग को भारी नुकसान पहुंचता है. इस भाग की कोशिकाएं मरने लगती हैं. यह पैरालिसिस स्ट्रोक का मुख्य कारण है. ऐसे में दो काम अहम होते हैं.

– पहला, जहां नली के फटने के कारण खून बाहर निकला है, वहां जल्दी से जल्दी थक्के को हटाना और दूसरा, धमनी जहां खून लेकर जा रही थी, वहां जल्दी से जल्दी खून पहुंचाना. अगर मरीज को जल्दी अस्पताल न पहुंचाया गया और समय रहते उसका इलाज शुरू नहीं हुआ तो दिमाग और शरीर पर असर पड़ता है और समस्या बढ़ने पर रोगी की जान भी जा सकती है. यही वजह है कि पैरालिसिस के इलाज में टाइम बहुत अहम चीज हो जाती है. जल्दी इलाज मिल जाए तो ज्यादा नुकसान होने से बचा जा सकता है. खून के थक्के को हटाने के लिए दवाएं चढ़ायी जाती हैं, अथवा सर्जरी करके थक्के को जल्द से जल्द हटा दिया जाता है ताकि दिमाग में खून पहुंचाने वाली नाड़ियों का अवरोध समाप्त हो सके.

कैसे होता है पैरालिसिस

चाहे हेमरेज हो या स्ट्रोक, दिमाग का प्रभावित हिस्सा काम करना बंद कर देता है. दिमाग के अंदर बना क्लौट आसपास के हिस्से को दबाकर निष्क्रिय कर देता है. ऐसे में उस हिस्से का जो भी काम है, उस पर असर पड़ता है. इससे हाथ पांव चलने बंद हो सकते हैं, दिखने और खाना निगलने में दिक्कत हो सकती है, बोलने में परेशानी हो सकती है और बात समझने में मुश्किल आ सकती है. अगर दिमाग का बड़ा हिस्सा प्रभावित हो तो स्ट्रोक जानलेवा भी साबित हो सकता है.

पैरालिसिस अचानक होता है. अक्सर देखा गया है कि पीड़ित रात का खाना खाकर सोया, मगर सुबह उठने पर पता चलता है कि उसके हाथ पांव काम नहीं कर रहे हैं. वह खड़ा होने की कोशिश करता है तो गिर पड़ता है. कई बार दिन में ही काम करते या खड़े-खड़े अथवा बैठे-बैठे अचानक पैरालिसिस का अटैक पड़ जाता है. ब्रेन हेमरेज अक्सर तेज सिरदर्द और उलटी के साथ शुरू होता है.

फेशियल पैरालिस्सिस भी बहुत कॉमन है. यह चेहरे की मसल्स के कमजोर होने से होता है. यह वायरल इंफेक्शन या उसके बाद भी हो सकता है. मरीज में इस तरह का कोई लक्षण या हिस्ट्री नहीं होने के बावजूद यह हो सकता है. इसमें चेहरे के एक तरफ का हिस्सा टेढ़ा सा होने लगता है और वहां पर स्पर्श महसूस नहीं होता.

ब्रेन हेमरेज और स्ट्रोक में फर्क

ब्रेन हेमरेज में खून की नली दिमाग के अंदर या बाहर फट जाती है. अगर बहुत तेज सिरदर्द  के साथ उलटी और बेहोशी छाने लगे तो हेमरेज होने की आशंका ज्यादा होती है. ब्रेन हेमरेज से भी पैरालिसिस होता है. इसमें दिमाग के बाहर खून निकल जाता है और इसे हटाने के लिए सर्जरी करके क्लॉट को हटाया जाता है. अगर किसी भी रुकावट की वजह से दिमाग को खून की सप्लाई में कोई रुकावट आ जाए तो उसे स्ट्रोक कहते हैं. स्ट्रोक और हेमरेज, दोनों से ही पैरालिसिस हो सकता है.

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लकवे के कारण

–  हाई ब्लड पे्रशर

–  डायबिटीज

–  स्मोकिंग

–  दिल की बीमारी

–  मोटापा

–  बुढ़ापा

कैसे खतरा कम करें

– हार्ट की बीमारी है तो उसकी उचित जांच और इलाज कराएं. 20-25 साल की उम्र से ही नियमित रूप से ब्लड प्रेशर चेक कराएं. डौक्टर की सलाह पर खाने में परहेज करें और एक्सरसाइज बढ़ाएं.

–  अगर आपका ब्लड प्रेशर 120/80 है तो अच्छा है. ज्यादा है तो 135/85 से कम लाना लक्ष्य होना चाहिए.

–  40 साल के बाद साल में एक बार शुगर और कोलेस्ट्रॉल की जांच जरूरी रकराएं.

–  वजन कंट्रोल में रखें. कोई बीमारी न हो तो भी 40 की उम्र के बाद ज्यादा नमक और फैट वाली चीजें कम खाएं.

–  तनाव और गुस्से से दूर रहें. मन को हमेशा शान्त रखें.

मिथ और फैक्ट

मिथ – पैरालिसिस का कोई इलाज नहीं.

फैक्ट – पैरालिसिस का इलाज मुमकिन है, बशर्ते जल्द से जल्द सही इलाज मिल जाए.

मिथ – पैरालिसिस अपने आप ठीक हो जाता है.

फैक्ट – अक्सर ऐसा नहीं होता है. अगर होता भी है तो आगे ज्यादा घातक पैरालिसिस अटैक न पड़े इसके लिए जांच और इलाज जरूरी है.

मिथ – कबूतर खाने या उसका शोरबा पीने से यह ठीक हो जाता है.

फैक्ट – ऐसी कोई बात नहीं है. मेडिकल हिस्ट्री में ऐसा कोई सबूत नहीं है. डॉक्टर इसे फिजूल की बात कहते हैं.

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घर पर बनाएं हरे मटर की बर्फी

हरी मटर की सब्जी तो आप बनाएं होंगे. पर क्या आपने कभी हरी मटर की बर्फी बनाया है. जी हां, आप हरी  मटर की बर्फी भी बना सकते हैं. तो आइए आज आपको हरी मटर की बर्फी बनाने की रेसिपी बताते हैं.

सामग्री

हरी मटर- 1 कप

पीस्ते (पानी में गर्म कर के छिलके हटा ले)

1/2 कप घी-

3 चम्‍मच मावा

2 कप शक्‍कर

3/4 कप हरी इलायची पावडर

3/4 चम्‍मच शक्कर

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बनाने की विधि

सबसे पहले एक मिक्‍सर जार में हरी मटर और थोड़ा सा पानी डाल कर उसे पीस लें.

फिर नौन स्‍टिक पैन में घी गरम करें, उसमें पिसी मटर डालें और लगातार चलाते हुए उसका पानी खतम कर लें.

फिर पैन में मावा डाल कर अच्‍छी तरह से मिक्‍स करें.

उसके बाद इसमें शक्‍कर मिलाएं और चलाएं.

अब दूसरी ओर एक एल्‍युमीनियम की ट्रे पर घी लगाएं.

फिर इसमें हरी इलायची और आधे पिस्‍ते डाल कर मिक्‍स करें.

इस मिश्रण को ट्रे पर डालिये और फैलाइये.

ऊपर से बाकी के बचे हुए पिस्‍ते डालिये और बर्फी को ठंडा होने के लिये रख दीजिये.

जब बर्फी ठंडी हो जाए, तब उसे फ्रिज में रख दीजिये और बाद में उसे निकाल कर चाकू से काट कर सर्व करें.

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मलमल की चादर : भाग 1

आज फिर बरसात हो रही है. वर्षा ऋतु जैसी दूसरी ऋतु नहीं. विस्तृत फैले नभ में मेघों का खेल. कभी एकदूसरे के पीछे चलना तो कभी मुठभेड़. कभी छींटे तो कभी मूसलाधार बौछार. किंतु नभ और नीर की यह आंखमिचौली तभी सुहाती है जब चित्त प्रसन्न होता है. मन चंगा तो कठौती में गंगा. और मन ही हताश, निराश, घायल हो तब…? वैदेही ने कमरे की खिड़की की चिटकनी चढ़ाई और फिर बिस्तर पर पसर गई.

उस की दृष्टि में कितना बेरंग मौसम था, घुटा हुआ. पता नहीं मौसम की उदासी उस के दिल पर छाईर् थी या दिल की उदासी मौसम पर. जैसे बादलों से नीर की नहीं, दर्द की बौछार हो रही हो. वैदेही ने शौल को अपने क्षीणकाय कंधों पर कस कर लपेट लिया.

शाम ढलने को थी. बाहर फैला कुहरा मन में दबे पांव उतर कर वहां भी धुंधलका कर रहा था. यही कुहरा कब डूबती शाम का घनेरा बन कमरे में फैल गया, पता ही नहीं चला. लेटेलेटे वैदेही की टांगें कांपने लगीं. पता नहीं यह उस के तन की कमजोरी थी या मन की. उठ कर चलने की हिम्मत भी नहीं हो रही थी उस की. शौल को खींच कर अपनी टांगों तक ले आई वह.

अचानक कमरे की बत्ती जली. नीरज थे. कुछ रोष जताते हुए बोले, ‘‘कमरे की बत्ती तो जला लेतीं.’’ फिर स्वयं ही अपना स्वर संभाल लिया, ‘‘मैं तुम्हारे लिए बंसी की दुकान से समोसे लाया था. गरमागरम हैं. चलो, उठो, चाय बना दो. मैं हाथमुंह धो आता हूं, फिर साथ खाएंगे.’’

एक वह जमाना था जब वैदेही और नीरज में इसी चटरमटर खाने को ले कर बहस छिड़ी रहती थी. वैदेही का चहेता जंकफूड नीरज की आंख की किरकिरी हुआ करता था. उन्हें तो बस स्वास्थ्यवर्धक भोजन का जनून था. लेकिन आज उन के कृत्य के पीछे का आशय समझने पर वह मन ही मन चिढ़ गई. वह समझ रही थी कि समोसे उस के खानेपीने के शौक को पूरा करने के लिए नहीं थे बल्कि यह एक मदद थी, नीरज की एक और कोशिश वैदेही को जिंदगी में लौटा लाने की. पर वह कैसे पहले की तरह हंसेबोले?

वैदेही तो जीना ही भूल गई थी जब डाक्टर ने बताया था कि उसे कैंसर है. कैंसर…पहले इस चिंता में उस का साथ निभाने को सभी थे. केवल वही नहीं, उस का पूरा परिवार झुलस रहा था इस पीड़ाग्नि में. वैदेही का मन शारीरिक पीड़ा के साथ मानसिक ग्लानि के कारण और भी झुलस उठता था कि सभी को दुखतकलीफ देने के लिए उस का शरीर जिम्मेदार था. बारीबारी कभी सास, कभी मां, कभी मौसी, सभी आई थीं उस की 2 वर्र्ष पुरानी गृहस्थी संभालने को. नीरज तो थे ही. लेकिन वही जानती थी कि सब से नजरें मिलाना कितना कठिन होता था उस के लिए. हर दृष्टि में  ‘मत जाओ छोड़ कर’ का भाव उग्र होता. तो क्या वह अपनी इच्छा से कर रही थी? सभी जरूरत से अधिक कोशिशें कर रहे थे. शायद कोई भी उसे खुश रखने का आखिरी मौका हाथ से खोना नहीं चाहता था.

अब तक उस की जिंदगी मलमल की चादर सी रही थी. हर कोई रश्क करता, और वह शान से इस मलमल की चादर को ओढ़े इठलाती फिरती. लेकिन पिछले 8 महीनों में इस मलमल की चादर में कैंसर का पैबंद लग गया था. इस की खूबसूरती बिगड़ चुकी थी. अब इसे दूसरे तो क्या, स्वयं वैदेही भी ओढ़ना नहीं चाहती थी. आजकल आईना उसे डराता था. हर बार उस की अपनी छवि उसे एक झटका देती.

‘‘धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा. देखो न, तुम्हारे बाल फिर से आने लगे हैं. और आजकल तो इस तरह के छोटे कटे बाल लेटेस्ट फैशन भी हैं. क्या कहते हैं इस हेयरस्टाइल को…हां, याद आया, क्रौप कट,’’ आईने से नजरें चुराती वैदेही को कनखियों से देख नीरज ने कहा.

क्यों समझ जाते हैं नीरज उस के दिल की हर बात, हर डर, हर शंका? क्यों करते हैं वे उस से इतना प्यार? आखिर 2 वर्ष ही तो बीते हैं इन्हें साथ में. वैदेही के मन में जो बातें ठंडे छींटे जैसी लगनी चाहिए थीं, वे भी शूल सरीखी चुभती थीं.

समोसे और चाय के बाद नीरज टीवी देखने लगे. वैदेही को भी अपने साथ बैठा लिया. डाक्टरों के पिछले परीक्षण ने यह सिद्ध कर दिया था कि अब वैदेही इस बीमारी के चंगुल से मुक्त है. सभी ने राहत की सांस ली थी और फिर अपनीअपनी दिनचर्या में व्यस्त हो गए थे. रिश्तेदार अपनेअपने घर लौट गए थे. नीरज सारा दिन दफ्तर में व्यस्त रहते. लेकिन शाम को अब भी समय से घर लौट आते थे. डाक्टरी राय के अनुसार, नीरज हर मुमकिन प्रयास करते रहते वैदेही में सकारात्मक विचार फूंकने की.

परित्यक्ता : भाग 1

बरसती बूंदें कजरी के पैरों से कदमताल कर रही थीं. अभी 6 ही तो बजे थे, पर तेज बारिश और काले बादलों ने वक्त से पहले ही जैसे अंधेरा करने की ठान ली थी. ठीक उस के जीवन की तरह, जिस में उस की खुशियों के उजाले को समय के स्याह बादलों ने हमेशा के लिए ढक लिया था. कजरी सोचती जा रही थी. झमाझम होती बारिश में उस की पुरानी छतरी ने भी आज उस का साथ छोड़ दिया था. बच्चों की चिंता ने उस के पैरों की गति को और बढ़ा दिया. उस का घर आने से पहले ही बाबूलाल किराने वाले की दुकान पड़ती थी, जहां से उसे कुछ किराना भी लेना था.

‘‘क्या चाहिए?’’ बाबूलाल ने कजरी की भीगी देह पर भरपूर नजर डालते हुए कहा.

‘‘2 किलो आटा, आधा लिटर तेल, पाव किलो शक्कर और हां, आधा लिटर दूध भी दे देना,’’ कजरी ने अपने आंचल को ठीक करते हुए कहा. बाबूलाल की ललचाई नजरों में उसे हमेशा ही एक मौन आमंत्रण दिखाई देता था. यह तो उस की मजबूरी थी कि वह यहां से वक्तबेवक्त कभी भी उधारी में सामान ले लिया करती थी, वरना उस की दुकान की ओर कभी वह मुड़ कर भी न देखती.

सोचतेसोचते कजरी घर पहुंच गई. बच्चे ‘‘मां, मां’’ कहते हुए उस से लिपट गए.

‘‘आई बहुत भूख लगी है, ताई ने कुछ खाने को नहीं दिया,’’ छोटे बेटे कमल ने दीदी की शिकायत की.

‘‘क्या करती आई, घर में आटा ही नहीं था,’’ सुमि ने सफाई देते हुए कहा.

‘‘अच्छा मेरा राजा बेटा, मैं अभी गरमागरम रोटी बना कर अपने लाल को खिलाती हूं, मीठे दूध में मींज के खा लेना,’’ कजरी ने बेटे को पुचकारते हुए कहा.

‘‘आई, मैं भी खाऊंगी,’’ 9 साल की रीना ने मचलते हुए कहा.

‘‘क्यों नहीं मेरी गोलू, तू भी खाना.’’ गोलमटोल बड़ीबड़ी आंखों वाली रीना को सब गोलू ही कह कर बुलाते थे.

‘‘मैं ने टमाटर की मस्त चटनी भी बनाई है, आई,’’ सुमि ने उसे पानी का गिलास पकड़ाते हुए कहा.

जल्दी से आटा गूंध कर उस ने बच्चों को खाना खिलाया. उन को सुलाने के बाद कजरी सुमि के साथ वहीं नीचे जमीन पर लेट गई.

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‘‘आई, आज फिर दीनू रीना को चौकलेट खिला रहा था. तब मैं ने रीना के हाथ से छीन कर वापस उस के मुंह पर फेंक दी, तो वह मेरे को देख लेने की धमकी दे कर चला गया. मुझे उस से बहुत डर लगता है, आई,’’ सुमि ने भयभीत स्वर में मां को बताते हुए कहा.

‘‘तुम घबराओ नहीं, सुमि, मैं उस की मां से बात करूंगी,’’ कजरी ने उसे तो समझा दिया, परंतु खुद सोच में पड़ गई.

जब से रमेश उसे छोड़ कर गया है, जीना कितना दूभर हो गया है. कभी सोचा नहीं था कि जिंदगी इस कदर बोझ बन जाएगी. रमेश के रहते उसे कभी भी बाहर जा कर काम करने की जरूरत नहीं पड़ी. 17 साल की थी जब मांबाप ने रमेश के साथ उस का ब्याह कर दिया था. बहुत खुश थी वह रमेश के साथ. पेशे से पेंटर रमेश इंदौर के राजेंद्रनगर इलाके से कुछ दूर बुद्धनगर के स्लम एरिया में किराए के मकान में रहता था. मकान बहुत अच्छा नहीं, पर रहने लायक जरूर था. दोनों की जिंदगी मजे में कट रही थी.

समय के साथ कजरी 3 प्यारे बच्चों की मां बनी. सब से बड़ी सुमि, उस से छोटी रीना और सब से छोटा कमल. बच्चों के जन्म के बाद कजरी का भरा बदन और भी सुंदर लगने लगा था. शादी के 12 साल बीत जाने पर भी रमेश उसे जीजान से चाहता था. आसपड़ोस के लोग उन दोनों के प्यारभरे रिश्ते से अनजान नहीं थे. कजरी के घर के पास ही एक बढ़ई परिवार रहता था. इस परिवार की इकलौती लड़की माया रमेश को बहुत पसंद करती थी, पर रमेश उस पर कभी ध्यान नहीं देता था.

इधर, बच्चों की देखरेख और घर के कामों में व्यस्त कजरी चाहते हुए भी रमेश को ज्यादा वक्त न दे पाती थी जिस वजह से अकसर दोनों में झड़प हो जाया करती थी. वह रमेश को समझाती थी कि बच्चों के आने के बाद उस का काम बढ़ गया है. पर पुरुषवादी सोच का गुलाम रमेश उस की न को अपना अपमान समझने लगा था. धीरेधीरे उन के बीच में दूरियां बढ़ती चली गईं.

अब काम से लौट कर रमेश सीधे जो बाहर निकलता, तो रात 11-12 बजे ही वापस आता. बच्चों के पालनपोषण में व्यस्त कजरी ने पहले तो इस ओर ध्यान नहीं दिया, और जब ध्यान दिया तब तक बड़ी देर हो चुकी थी.

35 साल का रमेश अब 16 साल की लड़की माया का दीवाना बन चुका था. इस बात का पता लगते ही कजरी ने बहुत बवाल मचाया. रमेश से लड़ीझगड़ी, उस माया के घर जा कर उसे लताड़ा. फिर भी उन दोनों पर कोई असर न होता देख कजरी ने माया के सामने अपना आंचल फैलाते हुए अपने बच्चों के पिता को छोड़ देने के लिए बहुत अनुनयविनय की. पर माया टस से मस न हुई. माया के मातापिता भी उस की इस हरकत के आगे मजबूर थे.

फिर, एक दिन वह दिन भी आया जब काम पर गया रमेश कभी घर नहीं लौटा. इधर, माया भी घर से गायब थी. कजरी की आंखों के सामने अंधेरा छा गया. वह फूटफूट कर रोई. पर अब हो भी क्या सकता था. भारी मन से उस ने इस सचाई को स्वीकार कर लिया कि अब वह एक परित्यक्ता है, जिसे उस का आदमी हमेशा के लिए छोड़ कर जा चुका है.

पति द्वारा छोड़ी हुई औरत समाज के पुरुषों की बपौती बन जाती है, कुछ ही दिनों में यह बात उस की समझ में आ चुकी थी. यह वह समाज है, जहां पुरुषों द्वारा की गई गलती की सजा भी औरत को ही भुगतनी पड़ती है. घर के बाहर हर दूसरा आदमी उस के शरीर पर अपनी गिद्ध निगाह जमाए बैठा था. पर बच्चों के भरणपोषण के लिए उस का घर से निकलना बेहद जरूरी हो चुका था. ऐसे में रमेश के दोस्त लखन ने उस की बहुत सहायता की. उस ने अपने मालिक के घर पर कजरी को काम दिला दिया.

जल्द ही कजरी ने भी बेशर्मी की चादर ओढ़ कर जीना सीख लिया. लेकिन, अब भी काम पर जाने के बाद बच्चों की देखरेख की समस्या उस के आगे मुंहबाए खड़ी थी, जिस का जिम्मा उस की 11 साल की बेटी ने ले लिया. अपनी पढ़ाई छोड़ कर वह अपने छोटे भाईबहन को संभालने लगी. पापा के घर छोड़ कर चले जाने से वह अचानक ही अपनी उम्र से कुछ ज्यादा बड़ी हो गई थी. कुछ महीनों में कजरी को ऐसा लगने लगा कि जिंदगी फिर पटरी पर आने लगी है.

एक दिन वह काम पर से वापस आ रही थी कि रास्ते में लखन मिल गया. बातोंबातों में उस ने कजरी से अपने प्यार का इजहार कर दिया. उस के एहसानों तले दबी कजरी उसे एकदम से इनकार न कर सकी. उस ने उस से सोचने के लिए कुछ समय मांगा. रातभर वह इसी ऊहापोह में रही कि अपने ही पति द्वारा वह एक बार ठगी जा चुकी है. क्या फिर से उसे किसी पर इतना विश्वास करना चाहिए? परंतु बिना मर्द के घर पर लोगों की चीलकौवे सी पड़ती निगाहों से बचने के लिए आखिरकार उसे यही रास्ता सब से उपयुक्त लगा.

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उस के घर में ही लखन ने कुछ पासपड़ोसियों के सामने उसे मंगलसूत्र पहना कर उस की मांग में सिंदूर भर दिया. अब लखन उस के साथ ही आ कर रहने लगा. बच्चों ने भी कुछ समय बाद आखिर उसे अपना लिया.

शादी को 8 महीने हो चुके थे. पुराने जख्म भरने लगे थे कि अचानक एक दिन सुबहसुबह एक औरत उस के दरवाजे पर आ कर उसे भलाबुरा कहने लगी. पहले तो कजरी समझ ही न पाई कि यह चक्कर क्या है. बाद में उसे समझ आया, तो उस पर फिर से एक बार आसमान टूट पड़ा.

वह औरत लखन की पत्नी थी जो रात ही अपने गांव से आई थी, और लखन व उस के संबंध की जानकारी मिलते ही वह उस से लड़ने चली आई थी. कजरी ने इस बारे में लखन से कई सवाल किए, पर उस की खामोशी देख कर वह समझ गई कि समय ने फिर से उस के साथ बहुत ही गंदा मजाक किया है. लखन ने सिर्फ अपनी वासनापूर्ति की खातिर ही उस से संबंध जोड़ा था.

लखन जा चुका था, कजरी अंदर ही अंदर टूट कर फिर बिखर चुकी थी. पर इस बार वह पहले की तरह एक कमजोर औरत नहीं थी, जो अपनी बेबसी का रोना ले कर बैठे. सो, दूसरे दिन से ही उस ने सुमि पर भाईबहनों की जिम्मेदारी छोड़ कर काम पर जाना शुरू कर दिया.

नो वन किल्ड पहलू खान

स्वतंत्रता दिवस से एक दिन पहले 14 अगस्त, 2019 को अलवर के सत्र न्यायालय ने पहलू खान लिंचिंग मामले में सभी 6 आरोपियों को बाइज्जत बरी कर दिया. पहलू खान, उन के 2 बेटों और 3 अन्य लोगों को  गौतस्कर बता कर 1 अप्रैल, 2017 को भीड़ ने उन पर लाठीडंडों के साथ हमला किया था. इस बर्बर हमले में बुरी तरह घायल पहलू खान की अस्पताल में मौत हो गई थी.

मामले में पुलिस ने विपिन यादव, कालू राम, रविंद्र कुमार, भीम सिंह, दयानंद, योगेश और 2 नाबालिग लड़कों को आरोपी बनाया था और उन के खिलाफ इंडियन पीनल कोड की धारा 302 (हत्या), 341 (सदोष अवरोध), 308 (गैरइरादतन हत्या की कोशिश), 323 (जानबूझ कर चोट पहुंचाना) आदि के तहत मुकदमा दर्ज किया था. लेकिन आरोपों को कोर्ट में सिद्ध करने के लिए पुलिस को जो आवश्यक साक्ष्य जुटाने चाहिए थे, वे उस ने नहीं जुटाए और अदालत ने संदेह का लाभ देते हुए सभी आरोपियों को मुक्त कर दिया. कुल जमा, नतीजा यह कि – नो वन किल्ड पहलू खान…

अप्रैल 2017 की बात है जब 55 वर्षीय किसान पहलू खान अपने 2 बेटों आरिफ, इरशाद और गांव के 3 अन्य लोगों के साथ जयपुर से दुधारू गाय खरीद कर अपने गांव जयसिंहपुर वापस लौट रहा था, कथित गौरक्षकों ने उन लोगों को घेर लिया. भीड़ में मौजूद दबंगों ने उन से उन के पैसे छीन लिए और उन्हें गौतस्कर बता कर लाठीडंडों से जम कर पीटना शुरू कर दिया. पहलू खान की कई पसलियां टूट गईं और उन के सिर में काफी चोट आई.

गहरी चोटों की वजह से कुछ समय बाद ही अस्पताल में पहलू खान की मौत हो गई. हमले में पहलू के दोनों बेटे आरिफ और इरशाद भी बुरी तरह जख्मी हुए थे. वक्त के साथ उन के शरीर के घाव तो भर गए, लेकिन दिलदिमाग पर लगे घाव और भीड़ की दहशत से शायद वे जीवनभर नहीं उबर पाएंगे.

बीते ढाई सालों से अपने पिता के हत्यारों को सजा दिलाने की आस में बैठे इस परिवार की सारी उम्मीदें अब सत्र न्यायालय द्वारा आरोपियों को बरी कर दिए जाने के बाद दम तोड़ चुकी हैं. अदालत इन आरोपियों को छोड़ने के लिए इसलिए मजबूर हुई क्योंकि अभियोजन पक्ष आरोपियों को अपराधी सिद्ध करने के लिए कोई ठोस सुबूत अदालत के सामने पेश ही नहीं कर पाया.

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पुलिस की दोगली भूमिका

राजनीतिक ताकतों के दम पर देशभर में दंगेफसाद, हिंसाहत्या को अंजाम देने वाले दुष्टोंहत्यारों को पुलिस किसकिस तरह बचाती है, पहलू खान का मामला उस का खुला उदाहरण है. कितनी हैरान कर देने वाली बात है कि पहलू खान और उस के परिजनों को सरेआम घेर कर बर्बर तरीके से पीटने और उन के साथ गालीगलौज करने की घटना जिस मोबाइल फोन से कैप्चर की गई थी और इंटरनैट पर फैलाई गई थी, उस मोबाइल फोन को पुलिस ने कभी अपने कब्जे में लिया ही नहीं. उस से बने वीडियो से कोई छेड़छाड़ हुई या नहीं, इस की जांच के लिए उसे फोरैंसिक लैब (एफएसएल) तक कभी भेजा ही नहीं गया. लिहाजा, मोबाइल फोन से बने वीडियो की विश्वसनीयता कोर्ट में संदेहपूर्ण बनी रही.

कोर्ट ने भीड़ द्वारा पहलू खान को पीटे जाने के एक अन्य वीडियो पर भी विचार करने से इनकार कर दिया क्योंकि उसे भी फोरैंसिक लैब नहीं भेजा गया और जिस व्यक्ति ने इसे शूट किया था, वह पहले ही अपने बयान से पलट चुका है. यही नहीं, पहलू खान के मृत्युपूर्व बयान को भी अदालत ने ठोस सुबूत नहीं माना क्योंकि पुलिस ने पहलू का इलाज कर रहे डाक्टरों के सहयोग के बिना ही उस का बयान दर्ज किया था.

पुलिस ने पहलू खान का बयान लेने के बाद अस्पताल के डाक्टर से इस बात का प्रमाणपत्र ही नहीं लिया कि पहलू खान उस वक्त बयान देने की स्थिति में था भी, या नहीं. वह बयान उस का था या नहीं, इस की भी कोई प्रामाणिकता नहीं है. वहीं, पहलू का मृत्युपूर्व बयान मुकदमा दर्ज होने के 16 घंटे बाद पुलिस स्टेशन में फाइल किया गया. सब से ज्यादा हैरतअंगेज बात यह है कि मरने से पहले पहलू ने जिन लोगों पर उसे पीटने का आरोप लगाया था, उन लोगों को क्लीनचिट दे कर पुलिस ने दूसरे लोगों को आरोपी बनाया और उन के खिलाफ चार्जशीट बनाई.

अदालत का कहना है कि जिन 6 आरोपियों को पुलिस ने कोर्ट के सामने पेश किया उन के नाम पहलू खान और अन्य शिकायतकर्ताओं के पर्चा बयान में दर्ज ही नहीं थे. पहलू खान ने मृत्युपूर्व बयान में जिन 6 लोगों के नाम लिए थे वे लोग थे – हुकुम चंद, ओम प्रकाश, सुधीर यादव, राहुल सैनी, नवीन शर्मा और जगमाल यादव. इन्हें राजस्थान पुलिस ने घटनास्थल पर मौजूद लोगों के बयान, फोटोग्राफ और मोबाइल लोकेशन के आधार पर सितंबर 2017 में ही क्लीनचिट दे कर आजाद कर दिया था. जबकि कोर्ट के सामने पुलिस ने जिन लोगों को आरोपी बना कर पेश किया वे दूसरे लोग थे, जिन की पहचान पुलिस ने उस वीडियो के जरिए की थी, जिस की विश्वसनीयता साबित करने के लिए उसे कभी फोरैंसिक लैब ही नहीं भेजा गया.

कितनी हास्यास्पद बात है कि पुलिस ने जिन लोगों को आरोपी बनाया उन की पहचान शिकायतकर्ताओं द्वारा की ही नहीं गई थी, जिसे सीआरपीसी की धारा 161 के तहत किया जाना चाहिए था. गौरतलब है कि इस मामले की जांच पहले बहरोड़ थाने के थानाधिकारी रमेश सिनसिनवार और उस के बाद तत्कालीन सर्कल अफसर परमल सिंह ने की.

मामले की जांच वसुंधरा राजे के नेतृत्व वाली पूर्व भाजपा सरकार के दौरान की गई थी और जांच अधिकारियों ने इस में जिस लापरवाही का परिचय दिया है, उस को ले कर कोर्ट काफी नाराज दिखी. बाद में मामले को जयपुर मुख्यालय के सीबीसीआईडी में स्थानांतरित किया गया और सीआईडी ने भी असल आरोपियों को बचाने में कोई कोरकसर नहीं छोड़ी.

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न्यायालय में मिला अन्याय

एडिशनल सेशंस जज डा. सरिता स्वामी ने संदेह का लाभ देते हुए सभी आरोपियों को बरी कर दिया. अपने 92 पृष्ठों के आदेश में उन्होंने लिखा कि अभियोजन पक्ष इस मामले में अभियुक्तों का दोष सिद्ध करने में नाकाम रहा है. ये सारी बातें साफ संकेत करती हैं कि अलवर जिला पुलिस किस तरह आरोपियों और उन को शह देने वाले सत्ताधारियों के दबाव में काम कर रही थी और पीडि़त को न्याय दिलाने में उसे कोई दिलचस्पी कभी नहीं थी.

अदालत के फैसले के बाद से पहलू खान का परिवार सदमे में है. ढाई साल से यह परिवार न्याय की आस लगाए बैठा था. इस दौरान यह परिवार अपना सबकुछ गंवा चुका है. ढाई साल पहले पहलू के फलतेफूलते घर में 7-8 गायभैंसें थीं और दूध बेचने से उन्हें 20-25 हजार रुपए महीने की आमदनी होती थी. पहलू खान की हत्या के बाद बीते ढाई सालों में घर की हालत जर्जर हो चुकी है. विरोध प्रदर्शनों, वकीलों और अदालतों के चक्कर में उन का सारा पशुधन बिक गया, खेतीबाड़ी चौपट हो गई. घर के नाम पर आज टूटेफूटे ईंटगारे का ढेर अपनी बदहाली की गाथा कह रहा है.

आज पहलू के घर में केवल एक भैंस और एक बछड़ा बचा है. पहलू की विधवा जैबुना अदालत के फैसले के बाद से सुन्न पड़ गई है और बेटा इरशाद यह कह कर रो पड़ता है कि दिमाग कुछ सोच नहीं पा रहा है, हम न्याय की उम्मीद कर रहे थे और अदालत ने उन लोगों को बरी कर दिया.

किस ने मारा, कौन हैं मुजरिम

अपने घर के उजाड़ से आंगन में बैठे इरशाद कहते हैं, ‘‘न्याय के लिए जयपुर, अलवर और दिल्ली भटकतेभटकते ढाई साल गुजर गए, हम को न्याय तो नहीं मिला, उलटा हमारे ऊपर ही पुलिस ने गौतस्करी का मुकदमा किया हुआ है. वह केस भी चल रहा है. हमारे साथ जो ज्यादतियां हुई हैं, वे सारी दुनिया के सामने हैं. इंटरनैट पर आज भी हमारी और हमारे अब्बा की पिटाई और कत्ल के वीडियो मौजूद हैं.

‘‘वे लोग हमें मारते हुए कह रहे थे, ‘ये मुसलमान हैं, इन को मारो. ये मुल्ले बीफ खाते हैं, गौतस्करी करते हैं, ये आतंकवादी हैं, इन को मारो, इन्हें पाकिस्तान भेजो.’

‘‘मेरे अब्बा ने उन्हें गाय की खरीद की रसीदें दिखाई थीं. हाथपैर जोड़ते हुए कहा था, ‘यह दूध देने वाली गाय हम दूध बेचने के लिए ले जा रहे हैं.’ लेकिन वहां किसी को हमारी बात सुनने का होश कहां था. वे तो बस हमें मार डालना चाहते थे. हमें मारते हुए वे लोग कह रहे थे कि वे गौरक्षक हैं, बजरंग दल से हैं और सरकार उन के साथ है. सच ही कह रहे थे, तभी तो उन के नाम जो मेरे अब्बा ने लिखवाए, उन्हें क्लीन चिट दे कर पहले ही रिहा कर दिया गया. बाद में जिन 8 आरोपियों के नाम पुलिस ने अपनी चार्जशीट में दर्ज किए, उन्हें यह कह कर बेल दे दी गई थी कि उन के खिलाफ सीधे सुबूत नहीं हैं.

‘‘अब वे लोग भी बाइज्जत बरी हो गए. कोई अपराधी नहीं है तो फिर किस ने मारा मेरे अब्बा को? किस ने पीटा मुझे और मेरे भाई को? पुलिस या कोर्ट हमें मुलजिम ला कर तो दे.’’

इरशाद बात करतेकरते बेचैनी में भर जाता है. कहता है, ‘‘कितने दिनों से नींद नहीं आ रही थी. फैसले का इंतजार था. अब कैसे नींद आएगी? ढाई साल से भागतेभागते यह दिन आया था और आज हमें ऐसा फैसला सुनाया गया है. इस से अच्छा होता कि हम मर जाते. क्या करेंगे हम ऐसे हिंदुस्तान में रह कर कि सरेआम मारते हुए सारी दुनिया सब देख रही है, फिर भी उन लोगों को बरी कर दिया गया. यह हम कैसे बरदाश्त करेंगे?’’

पहलू खान की विधवा जैबुना कहती हैं, ‘‘ढाई साल में जीवन बेकार हो गया है, इस से तो मर जाना बेहतर है. हमें लगता था कि अदालत से हमें न्याय मिलेगा, लेकिन हमें न्याय नहीं मिला. ढाई साल में हम बरबाद भी हो गए, हमारा आदमी भी मर गया. इस से ज्यादा बुरा और क्या होगा?’’

पहलू खान के परिवार के वकील कासिम खान अभियुक्तों के बरी होने का कारण पुलिस का ढीलापन, कमजोर चार्जशीट और राजनीतिक पैतरेबाजी मानते हैं. चाहे वायरल वीडियो की सत्यता का सवाल हो या पहलू की मौत से पहले दिए गए बयान की प्रामाणिकता की बात हो, पुलिस जांच पूरी तरह शक के घेरे में है.

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दोबारा जांच

पहलू खान केस के आरोपियों को बरी किए जाने के बाद राजस्थान सरकार की थूथू हो रही है. कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने भी ट्वीट किया कि अदालत के फैसले से वे अचंभित हैं. प्रियंका के ट्वीट के बाद से ही राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार मामले की फिर से जांच के लिए ऐक्शन में नजर आ रही है.

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पूरे मामले की दोबारा जांच कराने के लिए बाकायदा एसआईटी का गठन भी कर दिया है और 15 दिनों में रिपोर्ट भी तलब की है, ताकि फैसले के खिलाफ ऊपरी अदालत में अपील की जा सके. एसआईटी का प्रमुख स्पैशल औपरेशन गु्रप के डीआईजी नितिन देव को बनाया गया है, जबकि राज्य के एडीजी क्राइम बी एल सोनी जांच पर नजर रखेंगे.

एसआईटी में सीबीसीआईडी के एसपी समीर कुमार सिंह भी हैं. एसआईटी मुख्यरूप से पहलू खान मौबलिंचिंग केस की जांच में खामियों और मिलीभगत कर आरोपियों को बचाने वाले अधिकारियों की पहचान करेगी. एसआईटी मामले की पड़ताल में लापरवाही बरतने वाले अधिकारियों को चिह्नित करने के साथ ही मौखिक और कागजी साक्ष्य एकत्रित भी करेगी.

मौबलिंचिंग मौबलिंचिंग का शोर

बीते 5 सालों में देशभर में अल्पसंख्यक समुदाय गौरक्षकों के उत्पीड़न और आतंक से परेशान है. अखबार के पन्ने इरशाद, अखलाक, दानिश, पहलू, रकबर जैसों के सरेआम कत्ल की कहानियों से पटे रहे हैं. ह्यूमन राइट्स वाच की एक रिपोर्ट के मुताबिक, मई 2015 से दिसंबर 2018 के बीच भारत के 12 राज्यों में कम से कम 44 लोग मौबलिंचिंग में मारे गए, जिन में 36 मुसलमान थे. इस अवधि में 20 राज्यों में 100 से अधिक अलगअलग घटनाओं में करीब 280 लोग भीड़ द्वारा किए गए हमलों में घायल हुए.

रिपोर्ट कहती है कि लगभग सभी मामलों में शुरू में पुलिस ने जांच रोक दी, प्रक्रियाओं को नजरअंदाज किया और यहां तक कि हत्याओं तथा अपराधों पर लीपापोती करने में उस की मिलीभगत रही. पुलिस ने तुरंत जांच और संदिग्धों को गिरफ्तार करने के बजाय, गौहत्या निषेध कानूनों के तहत पीडि़तों, उन के परिवारों और गवाहों के खिलाफ शिकायतें दर्ज कीं. पहलू खान और उस के बेटों के खिलाफ भी पुलिस ने गौतस्करी का मामला दर्ज किया है, जिस का मुकदमा अलग चल रहा है.

बीते 5 सालों की मोदी सरकार के दौरान मौबलिंचिंग मौबलिंचिंग का ही शोर सुनाई देता रहा. गांवदेहातों में खौफ फैला रहा. हर तरफ ऐसा माहौल बना दिया गया कि हिंदू और मुसलमान एकदूसरे को शक की निगाह से देखने लगे. हिंदुओं को भड़काने और उन के दिमाग में यह बिठाने की कोशिश की गई कि मुसलमान सिर्फ गायों को मारते हैं. सवाल ये उठते हैं कि सदियों से गाएं क्या सिर्फ हिंदुओं के घरों में ही पली हैं, मुसलमानों के घरों में नहीं पलीं? सदियों से दूध का धंधा क्या सिर्फ हिंदू कर रहे हैं, मुसलमान नहीं कर रहे? बाजारहाट से दुधारू पशुओं की खरीद क्या सिर्फ हिंदू करते हैं, मुसलमान नहीं? मटन, चिकन, बीफ क्या सिर्फ मुसलमान खाते हैं, हिंदू नहीं खाते? बूचड़खाने क्या सिर्फ मुसलमानों के हैं, हिंदुओं के नहीं?

70 सालों में ऐसा नहीं हुआ जो बीते 5 सालों में मुसलमानों के साथ हुआ. हिंदुत्वहिंदुत्व का शोर मचा कर मुसलमानों की हत्या का खौफनाक खेल खेला गया. गौरक्षकों के नाम पर हत्यारों के गिरोह पैदा किए गए, ताकि इन के जरिए लोगों में भय पैदा किया जा सके, भावनाओं को भड़का कर हिंदुओं का धु्रवीकरण किया जा सके. मोदी सरकार-2 में भी लिंचिंग की घटनाएं रुकने का नाम नहीं ले रही हैं. साल 2019 में देशभर में गाय के नाम पर हिंसा की अब तक करीब 8 घटनाएं घट चुकी हैं. न सिर्फ हरियाणा बल्कि कर्नाटक, असम, झारखंड, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार राज्यों में भी गाय के नाम पर हिंसा हो चुकी है.

क्या इन्हें मिलेगा न्याय?

हरियाणा के नूह जिले के कोलगांव में अस्मीना के 26 साल के जवान बेटे रकबर को गौरक्षकों ने पीटपीट कर मार डाला. आज भी अस्मीना की आंखों के आंसू नहीं रुकते हैं. उस के जवान बेटे का कुसूर क्या था? सीधासादा वह ग्वाला भी अपने बाप और दोस्त के साथ बाजार से दुधारू गाएं खरीद कर ला रहा था. गायभैंस से ही उन का घर चलता था, उन्हीं का दूध बेच कर 7 बच्चों के परिवार को उस की मां अस्मीना ने पाला था.

अस्मीना गाय को अपनी मां समझती है, उस से भी ज्यादा उस का बेटा रकबर उन जानवरों से प्यार करता था. मगर गायों को प्यार करने वाले, उन को सानीपानी देने वाले, उन को तालाब पर ले जा कर रोज नहलाने वाले, दिनरात अपनी गायों से दुलार करने वाले रकबर को हत्यारी भीड़ ने गौतस्कर घोषित कर के लाठीडंडों से पीटपीट कर मार डाला. वह जान की भीख मांगता रहा, चीखता रहा, कि वह गाय को काटने के लिए नहीं ले जा रहा, दुधारू गाय को बाजार से खरीद कर घर ले जा रहा है. मगर हत्यारे नहीं रुके, इतने डंडे बरसाए कि रकबर की दोनों हथेलियों की सारी हड्डियां चकनाचूर हो गईं. पसलियां टूट गईं. घुटने, कुहनी सब टूट गईं. कीचड़ में लथेड़लथेड़ कर हैवानों ने उस निर्दोष को मारा. आज तक उस को मारने वाले खुलेआम घूम रहे हैं.

सितंबर 2015 में दादरी में मोहम्मद अखलाक की हत्या ने पूरी दुनिया में सनसनी मचा दी. बूढ़े अखलाक को गौरक्षकों ने यह कह कर मार दिया कि उन के घर के फ्रिज में गाय का गोश्त रखा है. उन के छोटे बेटे को भी मारमार कर अधमरा कर दिया. जबकि फोरैंसिक रिपोर्ट के बाद पता चला कि उन के घर के फ्रिज से जो मांस मिला वह गाय का नहीं, बकरे का था. आज अखलाक के बड़े बेटे सरताज, जो भारतीय एयरफोर्स के अधिकारी हैं, अपने निर्दोष पिता के कत्ल पर इंसाफ पाने के लिए अदालत के चक्कर लगा रहे हैं.

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हरियाणा के बल्लभगढ़ जिले के खंदावली गांव का 16 वर्ष का नाबालिग हाफिज जुनैद अपने भाइयों के साथ हरियाणा से दिल्ली आया था कि ईद पर कुछ नए कपड़े खरीद ले. मगर वापस लौटते वक्त ट्रेन में उस को भीड़ ने चाकू, छुरे और मुक्कों से मारमार कर खत्म कर दिया. उस के दोनों भाइयों को अधमरा कर दिया. क्यों? क्योंकि उस ने कुरतापाजामा और सिर पर टोपी पहन रखी थी. उस के सिर से टोपी खींच कर उसे पैरों तले रौंद दिया गया. कौन थे वे लोग? किस की शह पर कत्लेआम कर रहे थे? क्यों उन को कानून का खौफ नहीं था? क्या कभी इन पीडि़तों को न्याय मिलेगा? क्या कभी इन तमाम अपराधियों को सजा मिल सकेगी? यह बड़ा सवाल है.

खेती का भविष्य है एक्वापौनिक्स तकनीक

हमारे देश की 60 फीसदी आबादी का हिस्सा किसी न किसी रूप से खेती से जुड़ा है. यही वजह है कि भारत एक कृषि प्रधान देश है. अगर हम इस क्षेत्र में दूर तक नजर दौड़ाएं तो खेती में नवाचार की खासी कमी है. आज भी अनेक किसान पारंपरिक तरीके से खेती कर रहे हैं. खेती में हमें आज बहुतकुछ नए प्रयोग करने की जरूरत है. इन्हें इस्तेमाल कर के अच्छी पैदावार ली जा सकती है.

ऐसी ही एक आधुनिक तकनीक है एक्वापौनिक्स. इस तकनीक में मछलियां और पौधे आपस में एकदूसरे की मदद करते हैं यानी इस सिस्टम का इस्तेमाल कर मछलियों को सब्जियों के उत्पादन के एक्वाकल्चर और हाइड्रोपौनिक्स (पानी में पौधे उगाना) सिस्टम का एकसाथ इस्तेमाल किया जाता है. इस तकनीक को हम कम जगह में भी अपना सकते हैं. इस में मिट्टी या जमीन की जरूरत नहीं होती है.

एक्वापौनिक्स की शुरुआत शायद एशिया से हुई. यहां के किसानों ने देखा कि ज्यादा बरसात या बाढ़ आने के बाद खेतों में पानी भर जाता है जिस में मछलियां भी होती हैं. उन खेतों में उगाई गई धान की फसलों से अच्छी पैदावार मिलती है. मछलियों से निकलने वाली गंदगी धान या दूसरी फसल के लिए पोषक तत्त्वों का काम करती है.

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अगर आसान तरीके से बताया जाए तो जिस पानी का इस्तेमाल इस तकनीक में किया जाता?है उस पानी में मछली छोड़ दी जाती हैं, जो उस पानी में रह कर अपना मल वगैरह छोड़ती?हैं, वही पानी पौधों के लिए जैविक उर्वरक का काम करता है. इस के उलट हाइड्रोपौनिक्स सिस्टम में हमें पानी में जैविक उर्वरक के रूप में कुछ रसायन डालने होते?हैं.

इसी तकनीक को आज विकसित कर एक्वापौनिक्स सिस्टम का नाम दिया है. पारंपरिक खेती, एक्वाकल्चर या हाइड्रोपौनिक्स की तुलना में एक्वापौनिक्स तकनीक के कई फायदे हैं.

इस तकनीक में पौधे पानी से अमोनिया और नाइट्रोजन लेते हैं जिस से मछलियां शुद्ध और आक्सिजनयुक्त बेहतर माहौल में पलती बढ़ती हैं.

माहिरों का मानना है कि जमीन में खेती करने की तुलना में एक्वापौनिक्स सिस्टम के तहत सलाद और सब्जियां, जिस में टमाटर, बैगन, शलगम वगैरह पैदा की जा सकती हैं. इस तरह के पौधों में पानी की बहुत ही कम जरूरत होती है. साथ ही, इस सिस्टम के लिए ऊर्जा भी कम लगती है.

आने वाले समय में इस तकनीक को इस्तेमाल किया जाएगा तो इस से मछलियों के साथसाथ रसायनमुक्त सब्जियां भी मिलेंगी.

दुनियाभर में प्राकृतिक रूप से मछलियों का उत्पादन घटा है और अब माहिर भी मछली उत्पादन के लिए नए समाधान तलाश रहे?हैं. फार्म में मछलीपालन करने वालों के लिए भी एक्वापौनिक्स सिस्टम बेहतर विकल्प साबित हो सकता है.

इस बारे में हमारी बात अनुभव दास से हुई. वे एक्वापौनिक्स के क्षेत्र में काम कर रही कंपनी ‘रैड ओटर फार्म्स’ के संस्थापक हैं. उन का कहना?है कि पैदावार के मामले में हम दुनियाभर में कुछ उत्पादों में ऊंचाई पर हो सकते हैं, लेकिन हमारी फसल पैदावार प्रति हेक्टेयर

के हिसाब से कम है. पिछले 5 सालों में हमारे कृषि उत्पादन की वृद्धि दर 0.2 फीसदी से 4.2 फीसदी के आसपास रही है.

टमाटर का उदाहरण लें. साल 2017 में भारत चीन के बाद दुनिया में सब से ज्यादा टमाटर पैदा करने वाला देश था. चीन ने तकरीबन 110,000 हेक्टेयर जमीन पर 56.8 मिलियन टन टमाटर का उत्पादन किया, वहीं भारत ने तकरीबन 10 फीसदी कम जमीन पर 18.7 मिलियन टन का उत्पादन किया. टमाटर की यह प्रति हेक्टेयर उत्पादकता अतुलनीय है.

उन्होंने आगे बताया कि आज बड़े पैमाने पर सरकार द्वारा खेती से जुड़े कामों के लिए मदद भी की जाती?है?. इस के बाद भी भारत का कृषि उत्पादन कमजोर?है. तो क्या आने वाले कृषि उत्पादन बढ़ती आबादी की मांगों को पूरा करेगा? क्या हमारे खेत की पैदावार और उस की क्वालिटी बेहतर होगी जो स्वस्थ जीवन के लिए जरूरी है? क्या खेती कभी मौडर्न होगी वगैरह.

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इस पर अनुभव दास ने कहा कि आने वाले कल को बेहतर बना सकें, इस के लिए हमें कृषि क्षेत्र की मौडर्न तकनीकों की तरफ जाना होगा. बदलाव बहुत जरूरी है. एक बेहतर राष्ट्र के लिए खेती के विकास पर ध्यान देना ही होगा. दिनोंदिन हमारी खेत की जोत घट रही है जबकि आबादी बढ़ रही है. हमारे 65 फीसदी खेत फसल विकास के लिए मानूसन पर निर्भर हैं. इसलिए अगर हम प्रकृति के?भरोसे रहे तो हम प्रगति की राह नहीं चल सकते. सामाजिक नवाचारकों के?रूप में हम एक बदलाव लाना चाहते थे. हमें कृषि के क्षेत्र में एक अलग और नई सोच पैदा करने की जरूरत है. मानसून के भरोसे रह कर खेती नहीं की जा सकती. इस के अलावा हमें रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों के अत्यधिक इस्तेमाल को भी कम करने की जरूरत है.

हमारा मानना है कि एक्वापौनिक्स हमें यह यह मौका देता है. इसे हमें अपनाना चाहिए. एक्वापौनिक्स चक्र पारंपरिक मिट्टी आधारित कृषि की तुलना में 90 फीसदी से ज्यादा बढ़ने वाली फसलों के लिए पानी की जरूरत को कम करता है.

एक्वापौनिक्स तकनीक खेती की जमीन पर निर्भर नहीं है. यह बिना मिट्टी के होने वाली इस तकनीक को दुर्गम इलाकों, यहां तक कि शहरी जगहों में ले जाया जा सकता है. इस से बड़ी मात्रा में पानी की बचत होती है और खेती की पैदावार रासायनिक मुक्त होती है. पारंपरिक खेती के मुकाबले पैदावार भी 10-12 गुना ज्यादा है और क्वालिटी बेहतर है. एक लाइन में अगर कहा जाए तो एक्वापौनिक्स जिम्मेदार और टिकाऊ कृषि प्रणाली है और आने वाले समय में यह खेती का भविष्य है.

इंटरनैशनल लैवल पर एक्वापौनिक्स ने खेती के विकल्प के रूप में अच्छा कदम बढ़ाया है. खासतौर पर संयुक्त राज्य अमेरिका और आस्ट्रेलिया में. भारत में एक्वापौनिक्स अभी शुरुआती दौर में है. लेकिन अगर हम मिल कर कदम बढ़ाएंगे तो आने वाले समय में एक्वापौनिक्स एक प्रभावी तकनीक साबित होगी और अपनेआप में कृषि क्षेत्र में एक लीडर का काम करेगी.

 अनुभव दास (फाउंडर, रैड औटर फार्म्स)

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