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चित्तशुद्धि : भाग 2

मैं उस के साथ अंदर प्रवेश करती हूं. ड्राइंगरूम एकदम साफसुथरा लग रहा है, करीने से सजा हुआ. मैं सोफे पर बैठ जाती हूं. वह फ्रिज में से पानी की बोतल निकाल कर गिलास में डालती है और मु झे दे कर मेरे पास ही बैठ जाती है. फिर ढेर सारे सवाल करती है, ‘‘और बता, तू इतनी मोटी जो हो गई, पहचानती कैसे? और तू इस शहर में क्या कर रही है? किसी रिलेटिव के पास आई है क्या? और तु झे मेरा पता कैसे मिला?’’

‘‘अरे रुक यार, कितने सवाल पूछेगी एकसाथ?’’

वह हंसने लगती है. पर मैं देख रही हूं कि उस की हंसी में स्वाभाविकता नहीं है. एकदम फीकी सी हंसी. मैं सम झ रही हूं, वह खुश नहीं है, अंदर से परेशान है.

मैं उसे बताती हूं, ‘‘मैं ने यहां कल ही समाज कल्याण अधिकारी के पद पर जौइन किया है. आज ही सुबह अखबार में तेरी खबर पढ़ी, और बेचैन हो गई. इतनी चिंतित हुई कि किसी तरह तेरा नंबर और पता लिया. पहले फोन किया, वह स्विचऔफ जा रहा था. फिर मिलने चली आई.’’

‘‘किस से मिला मेरा फोन नंबर और पता?’’

‘‘अब यह सब छोड़. वैसे सीडीओ साहब से ही मिला.’’

‘‘क्या बात है, एक ही दिन में काफी मेहरबान हो गए सीडीओ साहब?’’ उस ने व्यंग्यात्मक मजाक किया.

‘‘हां, तो क्या हुआ? भले व्यक्ति हैं. मिलनसार हैं.’’

‘‘और मोहब्बत वाले हैं,’’ यह कह कर वह फिर हंसी.

‘‘हां, हैं मोहब्बत वाले. अब तो खुश. अब तू बता, तू ने यह क्या कांड कर डाला?’’

‘‘कैसा कांड?’’

‘‘अरे, तेरी कुक ने तु झ पर मारपीट का मामला दर्ज कराया है. यह कांड नहीं है.’’

‘‘अरे, वह कुछ नहीं है, उस से मैं निबट लूंगी.’’

‘‘कैसे? यह कहेगी कि वह  झूठ बोल रही है?’’

‘‘हां, तो क्या हुआ?’’

‘‘तेरे लिए गरीब औरत के लिए कोई इज्जत नहीं है?’’

‘‘काहे की गरीब और काहे की इज्जत? क्या मेरी कोई इज्जत नहीं है? मेरा धर्म भ्रष्ट कर के चली गई?’’ उस ने क्रोध से भर कर कहा.

‘‘कैसा धर्म भ्रष्ट? क्या किया उस ने?’’

तब उस ने बताया, ‘‘मु झे एक ब्राह्मण कुक की जरूरत थी. एक व्यक्ति ने एक औरत को मेरे यहां भेजा कि यह बहुत अच्छा खाना बनाती है और ब्राह्मण भी है. उस व्यक्ति के विश्वास पर मैं ने उसे रख लिया. वह काम करने लगी. सुबह में वह नाश्ता बनाती और दोनों समय का खाना बना कर, खिला कर चली जाती थी. अचानक 6 महीने बाद उस की कालोनी की एक औरत उस से मिलने आई. मैं ने उस से पूछा, ‘तुम इसे कैसे जानती हो?’ उस ने बताया, ‘यह हमारी ही कालोनी में रहती है.’

‘‘मैं ने पूछा, ‘कौन है यह,’ तो वह बोली, ‘यादव है.’

‘‘यह सुन कर मेरे तो बदन में आग लग गई. इतना बड़ा  झूठ मेरे साथ, यह घोर अनर्र्थ था. मैं 6 महीने से एक शूद्रा के हाथों का बना खाना खा रही थी. मेरे नवरात्र के व्रत तक भ्रष्ट कर गई. मेरा सारा धर्म भ्रष्ट कर गई.’’

मैं ने कहा, ‘‘इस का मतलब है कि तु झे दूसरी औरत ने बताया कि वह कुक यादव है, तब तु झे पता चला.’’

‘‘हां, वरना मैं ब्राह्मण ही सम झती रहती.’’

‘‘और भ्रष्ट होती रहती?’’

‘‘और क्या? मु झे उस ने बचा लिया.’’

‘‘अच्छा, उस पहले व्यक्ति ने उसे ब्राह्मण बताया था.’’

‘‘हां.’’

‘‘मतलब यह कि एक ने कहा, वह ब्राह्मण है, तो तू ने उसे ब्राह्मण मान लिया, दूसरे ने कहा, वह यादव है, तो तू ने उसे यादव मान लिया. कोई तीसरा उसे चमार बताता, तो उसे मान लेती.’’

‘‘तू कहना क्या चाहती है?’’

‘‘मैं यह कहना चाहती हूं कि औरत की जाति को पहचानने का तेरे पास कोई मापदंड नहीं है. जो भी जाति औरत अपनी बताएगी, या दूसरा व्यक्ति बताएगा, तू उसी पर विश्वास करेगी.’’

अब वह घूम गई, क्योंकि कोई जवाब उस के पास नहीं है. मैं ने कहा, ‘‘सरला, औरत के वर्ग की कोई पहचान नहीं है.’’

‘‘क्यों नहीं है?’’ उस ने बहस में अपने अज्ञान को निरर्थक छिपाने का प्रयास किया.

‘‘बता क्या पहचान है? किस चीज से पहचानेगी – चेहरे से? भाषा से? पहनावे से?’’

वह मौन रही.

‘‘अच्छा, तू बता, तेरी क्या पहचान है? तू कैसे साबित करेगी कि तू ब्राह्मण है?’’ मैं ने तर्क किया, ‘‘पुरुष तो अपना जनेऊ दिखा कर साबित कर देगा, पर औरत क्या दिखा कर साबित करेगी कि वह ब्राह्मण है?’’

वह सोच में पड़ गई थी. गरम लोहा देख कर मैं ने फिर तर्क का प्रहार किया, ‘‘क्या तेरा जनेऊ हुआ है?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘मेरा भी नहीं हुआ है,’’ मैं ने कहा, ‘‘तू धर्म को ज्यादा सम झती है. जिस का जनेऊ नहीं होता, उसे क्या कहते हैं?’’

वह चुप.

मैं ने कहा, ‘‘उसे शूद्र कहते हैं. तब बिना जनेऊ के तू भी शूद्रा हुई कि नहीं? मैं भी शूद्रा हुई कि नहीं?’’

उस का ब्राह्मण अहं आहत हो गया, तुरंत बोली, ‘‘एक ब्राह्मणी शूद्रा कैसे हो सकती है?’’

‘‘नहीं हो सकती न, फिर सम झा तू, किस तरह ब्राह्मण है?’’

‘‘मेरे पिता ब्राह्मण हैं, दादा ब्राह्मण थे, मेरी मां ब्राह्मण हैं,’’ उस ने तर्क दिया.

मैं ने कहा, ‘‘यह कोई तर्कनहीं है. तेरे पिता और दादा ब्राह्मण हो सकते हैं, पर तेरी मां भी ब्राह्मण हैं, इस का दावा तू कैसे कर सकती है? खुद तेरी मां भी ब्राह्मण होने का दावा नहीं कर सकती.’’

‘‘तू कैसी अजीब बातें कर रही है, क्यों नहीं कर सकती मेरी मां ब्राह्मण होने का दावा?’’ उस ने क्रोध में जोर दे कर कहा.

‘‘क्योंकि वे औरत हैं, इसलिए.’’

‘‘मतलब?’’

मतलब यह है कि औरत उस तरल पदार्थ की तरह है, जो जिस बरतन में रखा जाता है, वह उसी का रूप धारण कर लेता है. औरत अपने पिता या पति के वर्ग से जानी जाती है, उस का अपना कोई वर्ण नहीं होता है. वह ब्राह्मण से विवाह करने पर ब्राह्मणी, ठाकुर से विवाह करने पर ठकुरानी, लाला से विवाह करने पर लालानी होगी, और शूद्र वर्ण में जिस जाति से विवाह करेगी, उस की भी वही जाति मानी जाएगी. सरला, मैं फिर कह रही हूं कि औरत का अपना कोई वर्ण नहीं होता है.’’

वह मौन हो कर सुन रही थी. पर मैं सम झ रही थी कि उसे यह अच्छा नहीं लग रहा था. मैं ने अपनी बात जारी रखी, ‘‘तुम्हारी मां भी तुम्हारे पिता के वर्ण से ब्राह्मण हैं, और दादी भी तुम्हारे दादा के वर्ण से ब्राह्मण थीं. इस से पहले की पीढि़यों के बारे में भी जहां तक तुम्हें याद है, वहीं तक बता सकती हो. उस के बाद वह भी नहीं.’’

मैं ने आगे कहा, ‘‘तू ऋतु को तो जानती होगी. अभी पिछले महीने उस की किन्हीं प्रोफैसर शर्मा से शादी हुई है.’’

‘‘इस में अचरज क्या है?’’ अब उस ने पूछा.

‘‘सरला, अचरज यह है कि ऋतु की मां ब्राह्मण नहीं थीं. रस्तोगी जाति की थीं, जिसे शायद सुनार कहते हैं. फिर वह एक शूद्रा की बेटी हुई कि नहीं? पर चूंकि उस के पिता भट्ट थे, इसलिए वह भी ब्राह्मण है. अब उस के बच्चे भी भट्ट ब्राह्मण कहलाएंगे, क्योंकि दूसरी पीढ़ी में वह ब्राह्मण हो गई. इसलिए सरला, यह ब्राह्मण का भूत दिमाग से निकाल दे.’’

पर हार कर भी सरला हार मानने को तैयार नहीं थी. उस ने गुण का सवाल खड़ा कर दिया, ‘‘तो क्या ब्राह्मण का कोई गुण नहीं होता?’’

अनजाने में यह उस ने एक अच्छा प्रश्न उठा दिया था. मु झे उसे निरुत्तर करने का एक और अवसर मिल गया. मैं ने कहा, ‘‘इस का मतलब है, तू ने यह मान लिया कि ब्राह्मण गुण से होता है?’’

‘‘बिलकुल, इस में क्या शक है?’’

‘‘गुड, अब यह बता, ब्राह्मण के गुण क्या हैं?’’

‘‘ब्राह्मण के गुण?’’

‘‘हां, ब्राह्मण के गुण?’’

‘‘क्या तू नहीं जानती?’’

‘‘हां, मैं नहीं जानती. तू बता?’’ फिर मैं ने कहा, ‘‘अच्छा छोड़, यह बता, ब्राह्मण के कर्म क्या हैं.’’

‘‘वेदों का पठनपाठन और दान लेना.’’

‘‘गुड, और ब्राह्मणी के?’’

‘‘मतलब?’’

‘‘मतलब यह कि यह कर्म जो तू ने बताए हैं, वे तो ब्राह्मण के कर्म हैं. ब्राह्मणी के कर्म क्या हैं?’’

‘‘ब्राह्मण और ब्राह्मणी एक ही बात है.’’

‘‘एक ही बात नहीं है, सरला. स्त्री के रूप में ब्राह्मणी वेदों का पठनपाठन नहीं कर सकती. उस का कोई संस्कार भी नहीं होता. वह यज्ञ भी नहीं कर सकती. एक ब्राह्मणी के नाते क्या तू यह सब कर्म करती है?’’

‘‘नहीं, मेरी इस में कोई रुचि नहीं है.’’

‘‘वैरी गुड. अब तू ने सही बात कही. यार, तबीयत खुश कर दी. अब मैं तु झे बताती हूं कि शास्त्रों में ब्राह्मण का गुण भिक्षाटन कर के जीविका कमाना है. तू नौकरी क्यों कर रही है? यह तो ब्राह्मण का गुण नहीं है.’’

‘‘यार, तेरी बातें तो अब मु झे सोचने पर मजबूर कर रही हैं. मैं इतनी पढ़ीलिखी, क्यों भीख मांगूंगी? यह तो व्यक्ति की क्षमताओं का तिरस्कार है.’’

‘‘व्यक्ति की क्षमताओं का ही नहीं, गुणों का भी.

‘‘हर व्यक्ति में ब्राह्मण है, क्षत्रिय है, वैश्य है और शूद्र है. गुण के आधार पर वह स्त्री ब्राह्मण है, जिसे तू ने शूद्रा मान कर मारपीट कर निकाल दिया. उसे अगर पढ़नेलिखने का अवसर मिलता और बौस बन कर तेरे ऊपर बैठी होती, तो क्या तू तब भी उस से नफरत करती? लेकिन मैं जानती हूं, तू तब भी करती. तेरे जैसे अशुद्ध चित्त वाले जातीय अभिमानी लोग ही समाज को रुढि़वादी बनाए हुए हैं.’’

वह गुमसुम बैठी थी. मैं ने कहा, ‘‘यार, तू ने तो चाय भी नहीं पिलाई. चल, आज मैं ही तु झे चाय बना कर पिलाती हूं.’’ यह कह कर मैं उस के किचन में चली जाती हूं.

ऐसे बनाएं ककोरा की कुरकुरी सब्जी

 पिंटू मीना पहाड़ी

ककोरा एक जंगली फल है. जंगलों के साथसाथ खेत की मेंड़ों पर पहली बारिश होने के साथ ही यह पैदा होने लगता है. यह कहां और किस के खेत में पैदा होगा, यह नहीं कहा जा सकता. जंगलों में भी जहां झाडि़यां ज्यादा होती हैं, वहां यह आसानी से पैदा हो जाता है. इस की एक खूबी और भी है, जितनी अच्छी बारिश होगी, उतनी ही ककोरा की पैदावार भी अच्छी होगी. फल तोड़ लेने के बाद ककोरा की बेल से फिर से फल आने लगते हैं.

भारत के ज्यादातर हिस्सों में मिलने वाली इस सब्जी को केकरोल, काकरोल और दूसरे कई नामों से जाना जाता है. इस में कैलोरी कम होती है. इस वजह से यह फल वजन घटाने वालों के लिए  काफी बेहतर है. फाइबर से भरपूर ककोरा पाचन तंत्र को सही रखता है. इस फल में अनेक पौष्टिक तत्त्व होते हैं.

कैंसर की रोकथाम में मददगार : इस फल में मौजूद ल्यूटेन जैसे केरोटोनाइड्स, विभिन्न नेत्र रोग, दिल की बीमारी और यहां तक कि कैंसर की रोकथाम में यह मददगार है.

सर्दीखांसी में राहत दिलाए : इस में एंटीएलर्जिक तत्त्व होते हैं, जो सर्दीखांसी से राहत देने और इसे रोकने में मददगार साबित होते हैं.

सेहत सुधारने में सहायक : ककोरा में मौजूद फाइटोकैमिकल्स सेहत को सुधारने में मदद करते हैं. एंटीऔक्सीडैंट से भरपूर इस सब्जी से शरीर को साफ रखने में मदद मिलती है.

वजन घटाने वालों के लिए अच्छी : प्रोटीन और आयरन से भरपूर ककोरा में कम मात्रा में कैलोरी होती है. 100 ग्राम ककोरा में केवल 17 फीसदी कैलोरी होती है. इस वजह से यह वजन घटाने वालों के लिए बेहतर विकल्प है. यह फल ब्लड शुगर को कम करने और डायबिटीज को नियंत्रित करने में सहायक है.

पाचन तंत्र को सही रखने में होता है मददगार : इस की सब्जी में भरपूर मात्रा में फाइबर और एंटीऔक्सीडैंट होते हैं. इस वजह से यह आसानी से हजम हो जाती है. ये मानसून में कब्ज और इंफैक्शन को नियंत्रित कर आप के पेट को सही रखती है.

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छोटे ककोरा की सब्जी

सामग्री

250 ग्राम ककोरा, 1-2 टेबल स्पून तेल, 1 पिंच हींग, एकचौथाई छोटी चम्मच जीरा, एकचौथाई छोटी चम्मच से कम हलदी पाउडर, 2 छोटीछोटी कटी हुई हरी मिर्च, 1 इंच लंबा टुकड़ा अदरक (कद्दूकस किया हुआ), आधा छोटी चम्मच धनिया पाउडर, नमक व लाल मिर्च स्वादानुसार, अमचूर पाउडर एकचौथाई चम्मच से भी कम.

बनाने की विधि

ककोरा को साफ पानी में अच्छी तरह धो कर 4 टुकड़े काट लें. कड़ाही में तेल डाल कर गरम कीजिए, गरम तेल में हींग और जीरा डाल कर भूनिए.

जीरा भूनने के बाद हलदी पाउडर, हरी मिर्च, अदरक, धनिया पाउडर और सौंफ पाउडर डालिए और मसाले को हलका भूनिए.

अब कटे हुए ककोरे, नमक और लाल मिर्च पाउडर डाल कर तेज गैस पर इसे 2 मिनट तक अच्छी तरह भूनिए. एक टेबल स्पून पानी डालिए और ढक कर 5 मिनट के लिए धीमी आग पर पकने दीजिए.

अब ढक्कन खोलिए, ककोरा को चैक कीजिए. अगर यह अभी तक ठीक से नरम नहीं हुए हैं, तो 3-4 मिनट और धीमी आंच पर ढक कर पकने दीजिए.

लीजिए, सब्जी बन कर तैयार है और ककोरे भी अब अच्छी तरह से नरम हो गए हैं. खुले ककोरे तेज गैस पर 2 मिनट तक और पका लीजिए, बीच में चमचे से चलाते रहिए. सब्जी में अमचूर पाउडर और हरा धनिया डाल कर अच्छी तरह मिला दीजिए.

ककोरे की कुरकुरी सब्जी खाने के लिए तैयार है. सब्जी को कटोरे में निकालिए और गरमागरम परांठे या चपाती के साथ खाइए.

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सर्दियों में खाएं ये चीजें तो रहेंगे सेहतमंद

मौसम करवट बदल रहा है. अब गर्मी से राहत मिलने लगी है और सर्दियों का आगमन होने लगा है . सर्दियों के मौसम में सेहत का ध्यान रखना बेहद जरूरी होता है. सर्दी से बचने के  लिये केवल गर्म कपड़े ही काफी नहीं है. बल्कि जरूरी है कि शरीर में अंदरूनी गर्माहट बनी रहे जिस के लिये हमें  अपने खान पान का ध्यान रखना अति आवश्यक है. अगर हमारा आहार पौष्टिक और शरीर को गर्माहट देने वाला होगा तो हमारी सेहत भी ठीक रहेगी व हम अपने शरीर को सर्दी से होने वाले संक्रमण से भी बचा सकते हैं. ज्यादातर लोगों  के साथ यह परेशानी होती है की सर्दी जुखाम, खासी की गिरफ्त में जल्दी ही आ जाते हैं. इसका कारण इम्युनिटी सिस्टम का कमजोर होना भी  होता है सर्दियों में  खास तौर पर बच्चों का ध्यान अधिक रखना होता है. सर्दियों के मौसम में  हमें सामान्य से 500 कैलोरी  अधिक लेनी चाहिये क्योंकि हमारा मेटाबोलिज्म रेट बढ़ जाता है जिस कारण हमें ज्यादा ऊर्जा की आवश्यकता होती है. हर मौसम में मौसमी सब्जी, फल, नट्स अपनी एक अलग अहमियत रखते है. यह हमारे शरीर के तापमान को मौसम के अनुसार बना कर रखते  हैं. सर्दियों में हमारा रक्त संचार धीमी गति से होता है , जिस कारण ब्लड ब्लड प्रेशर की समस्या हो जाती है. इससे निबटने के लिये जरूरी है कि खान पान का अधिक ध्यान रखा जाये.

रोजाना खाये गुड़

गुड़ की तासीर गर्म होती है जिससे शरीर का तापमान ठीक रहता है इसमें कैल्शियम व मैग्नीशियम तत्व पाए जाते हैं जो हड्डियों के साथ मांसपेशियों व नसों की थकान को दूर करता है. गुड़ खाने  से पाचन तंत्र तंदरुस्त रहता है डायबिटीज के शिकार लोग चीनी की जगह मीठे के रूप में गुड़ खा सकते हैं क्योंकि यह नैचुरल शुगर है.

बाजरा व मक्का  करें डाइट मे शामिल  

बाजरा न केवल ऊष्मा देता है बल्कि यह  एक बहुत पौष्टिक आहार है. यह हमारे रक्त मे कोलेस्ट्रौल के स्तर को संतुलित रखता है यह रोटी खिचड़ी पुलाव के रूप मे खाया जाता है वहीं मक्का डायबेटिज के मरीजों के लिये बहुत लाभदायक होता है इसमें  विटामिन ए, बी व पोषक तत्व मौजूद होते हैं. इसे रोटी , सब्जी ,स्वीट कौर्न व पौप कौर्न के रूप मे खाया जाता है.

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 मूंगफली खाकर हड्डियां करें मजबूत

मूंगफली मे कैल्शियम और विटामिन डी होता है जो कि हड्डियों को कमजोर नहीं होने देता . इसके सेवन से कोलेस्ट्रौल का स्तर सही रहता है व खून की कमी नहीं होने देता. रोजाना सेवन से पाचन तंत्र ठीक रहता है मूंगफली का तेल जोड़ो की मालिश के लिये बहुत लाभदायक होता है. मूंगफली खाते समय उसका लाल छिलका उतार कर खाएं व  खाने के बाद आधा घंटे  तक पानी न पिये. क्योंकि छिलके समेत खाने से खांसी  की समस्या हो सकती है.

सरसों का साग खाएं

सर्दियां हो साग नहीं खाया तो क्या सर्दियों का  क्या मजा आया. जी हां साग स्वादिष्ट तो होता ही है और पौष्टिक भी सरसोें के साग में कैल्शियम और पोटाशियम मौजूद होता है जो कि हड्डियों को मजबूती देता है.  विटामन के, ओमेगा 3 फैटी एसिड पाए जाते हैं जो गठिए के रोग और शरीर के किसी भी भाग में सूजन से राहत दिलाने का काम करता है.

गाजर खाकर रहे तंदरुस्त

गाज़र  दिल, दिमाग, नस के साथ-साथ हेल्‍थ के लिए भी फायदेमंद है. इसमें विटामिन A, B,C,D,E, G और K पाए जाते हैं जिससे हमारी बौडी को काफी सारे न्‍यूट्रिएंट्स मिल जाते हैं. इसमें बीटा-कैरोटीन भी पाए जाते हैं क्योंकि ये  लाल, गहरे हरे, पीली  या फिर नारंगी रंग की सब्जी में पाया जाता है. एक गाजर  किसी व्यक्ति के भी शरीर में विटामिन-A की दैनिक खपत का 300 % ज्यादा पूर्ति करती है.गाजर हमें रतौंधी,कैंसर ,जैसी बिमारियों से बचाती है इससे  ब्लड कोलेस्ट्रौल कन्ट्रोल रहता है.

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देश की पहली नेत्रहीन महिला IAS के बारे में जानिए दिलचस्प कहानी

मन में हौसला हो और कुछ कर दिखाने का जज्बा तो कुछ भी नामुमकिन नहीं. अलबत्ता यह जज्बा और जोश पोगापंथियों को ठोकर मार खुद को नई पहचान देने की हो तो बात ही क्या.

कहते हैं, भारत जैसे देश में जहां अधिकांश लोग अब भी धर्म, पूजापाठ, अंधविश्वास के आगे हथियार डाल कर अपना भविष्य बेकार कर लेते हैं, वहीं महाराष्ट्र की रहने वाली प्रांजल पाटिल ने आंखों की रोशनी जाने के बाद न तो हिम्मत हारी और न ही किसी की दया का पात्र बन कर जीवन काटने जैसा रास्ता अपनाया. उन्होंने पढाई से दोस्ती कर ली, किताबों से बातें करना सीख लिया.

मेहनत ने दिलाई सफलता

कुछ लोगों ने इसका मजाक भी उङाया होगा, किसी ने संवेदनाएं जताई होंगी पर होना तो वही था, जिसे प्रांजल मन ही मन में ठान चुकी थी.

प्रांजल ने अपने पहले ही प्रयास में यूपीएससी की सिविल सेवा परीक्षा में 773वां रैंक हासिल कर दूसरों के लिए मिसाल बन गईं. ऐसा कर वे देश की पहली नेत्रहीन महिला आईएएस बनने का गौरव पाई हैं.

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अचानक चली गई आंखों की रौशनी

महाराष्ट्र के उल्लासनगर की रहने वाली प्रांजल बचपन से ही काफी मेधावी थीं. दिक्कत यह था कि प्रांजल की आंखों की रोशनी कमजोर थी. मातापिता ने कई अस्पतालों के चक्कर लगाए पर 6 साल होतेहोते उस की आंखों की रोशनी पूरी तरह चली गई.

जिंदगी अब पूरी तरह बदल चुकी थी पर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और अपना लक्ष्य निर्धारित कर जम कर मेहनत करने लगीं.

शुरुआती शिक्षा

प्रांजल की शुरुआती शिक्षा मुंबई के श्रीमती कमला मेहता स्कूल से पूरी हुई. इस स्कूल में ब्रेल लिपि में शिक्षा दी जाती है. प्रांजल ने 10वीं की शिक्षा इस स्कूल से लेने के बाद 12वीं की पढ़ाई चंदाबाई से पूरी की और फिर आगे की पढ़ाई सेंट जेवियर कालेज, मुंबई और फिर एमए की पढाई जेएनयू, दिल्ली से पूरी की.

साबित किया खुद को

प्रांजल ने अपनी बेहतरीन क्षमता से यह साबित कर दिया है कि शारीरिक अक्षमता कैरियर बनाने और सपने पूरे करने में बाधक नहीं होते. यही वजह है कि शारीरिक रूप से अक्षम लोग न सिर्फ शिक्षा बल्कि खेलों में भी सफलता के झंडे गाड़ रहे हैं.

समाज का बङा तबका भी अब अपनी सोच में परिवर्तन ला चुका है और दिव्यांगों को अब पहले से बेहतर माहौल मिलने लगा है.

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ये कैसा बदला ?

चीचली गांव कहने भर को ही भोपाल का हिस्सा है, नहीं तो बैरागढ़ और कोलार इलाके से लगे इस गांव में अब गिनेचुने घर ही बचे हैं. बढ़ते शहरीकरण के चलते चीचली में भी जमीनों के दाम आसमान छू रहे हैं. इसलिए अधिकतर ऊंची जाति वाले लोग यहां की अपनी जमीनें बिल्डर्स को बेच कर कोलार या भोपाल के दूसरे इलाकों में शिफ्ट हो गए हैं.

इन गिनेचुने घरों में से एक घर है विपिन मीणा का. पेशे से इलैक्ट्रिशियन विपिन की कमाई भले ही ज्यादा न थी, लेकिन घर को घर बनाने में जिस संतोष की जरूरत होती है वह जरूर उस के यहां था.  विपिन के घर में बूढ़े पिता नारायण मीणा के अलावा मां और पत्नी तृप्ति थी. लेकिन घर में रौनक साढ़े 3 साल के मासूम वरुण से रहती थी. नारायण मीणा वन विभाग से नाकेदार के पद से रिटायर हुए थे और अपनी छोटीमोटी खेती का काम देखते हैं.

इस खुशहाल घर को 14 जुलाई, 2019 को जो नजर लगी, उस से न केवल विपिन के घर में बल्कि पूरे गांव में मातम सा पसर गया. उस दिन शाम को विपिन जब रोजाना की तरह अपने काम से लौटा तो घर पर उस का बेटा वरुण नहीं मिला.

उस समय यह कोई खास चिंता वाली बात नहीं थी क्योंकि वरुण घर के बाहर गांव के बच्चों के साथ खेला करता था. कभीकभी बच्चों के खेल तभी खत्म होते थे, जब अंधेरा छाने लगता था.

थोड़ी देर इंतजार के बाद भी वरुण नहीं लौटा तो विपिन ने तृप्ति से उस के बारे में पूछा. जवाब वही मिला जो अकसर ऐसे मौकों पर मिलता है कि खेल रहा होगा यहीं कहीं बाहर, आ जाएगा.

विपिन वरुण को ढूंढने अभी निकला ही था कि घर के बाहर उस के पिता मिल गए. उन से पूछने पर पता चला कि कुछ देर पहले वरुण चौकलेट खाने की जिद कर रहा था तो उन्होंने उसे 10 रुपए दिए थे.

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चूंकि शाम गहराती जा रही थी और विपिन घर के बाहर आ ही गया था, इसलिए उस ने सोचा कि दुकान नजदीक ही है तो क्यों न वरुण को वहीं जा कर देख लिया जाए. लेकिन वह उस वक्त चौंका जब वरुण के बारे में पूछने पर जवाब मिला कि वह तो आज उस की दुकान पर आया ही नहीं.

घबराए विपिन ने इधरउधर नजर दौड़ाई तो उसे कोई बच्चा खेलता नजर नहीं आया, जिस से वह बेटे के बारे में पूछता. एक बार घर जा कर और देख लिया जाए, शायद वरुण आ गया हो. यह सोच कर वह घर की तरफ चल पड़ा.

घर आने पर भी विपिन को निराशा ही हाथ लगी क्योंकि वरुण अभी भी घर नहीं आया था. लिहाजा अब पूरा घर परेशान हो उठा. उसे ढूंढने के लिए विपिन ने गांव का चक्कर लगाया तो जल्द ही उस के लापता होने की बात भी फैल गई और गांव वाले भी उसे ढूंढने में लग गए.

रात 10 बजे तक सभी वरुण को हर उस मुमकिन जगह पर ढूंढ चुके थे, जहां उस के होने की संभावना थी. जब वह कहीं नहीं मिला और न ही कोई उस के बारे में कुछ बता पाया तो विपिन सहित पूरा घर किसी अनहोनी की आशंका से घबरा उठा.

वरुण की गुमशुदगी को ले कर तरहतरह की हो रही बातों के बीच गांव वालों ने एक क्रेटा कार का जिक्र किया, जो शाम के समय गांव में देखी गई थी. लेकिन उस का नंबर किसी ने नोट नहीं किया था.

हालांकि चीचली गांव में बड़ीबड़ी कारों का आना कोई नई बात नहीं है, क्योंकि अकसर प्रौपर्टी ब्रोकर्स ग्राहकों को जमीन दिखाने यहां लाते हैं. लेकिन उस दिन वरुण गायब हुआ था, इसलिए क्रेटा कार लोगों के मन में शक पैदा कर रही थी.

थकहार कर कुछ गांव वालों के साथ विपिन ने कोलार थाने जा कर टीआई अनिल बाजपेयी को बेटे के गुम होने की जानकारी दे दी. उन्होंने वरुण की गुमशुदगी दर्ज कर तुरंत वरिष्ठ अधिकारियों को इस घटना से अवगत भी करा दिया.

टीआई पुलिस टीम के साथ कुछ ही देर में चीचली गांव पहुंच गए. गांव वालों से पूछताछ करने पर पुलिस का पहला और आखिरी शक उसी क्रेटा कार पर जा रहा था, जिस के बारे में गांव वालों ने बताया था.

पूछताछ में यह बात उजागर हो गई थी कि मीणा परिवार की किसी से कोई रंजिश नहीं थी जो कोई बदला लेने के लिए बच्चे को अगवा करता और इतना पैसा भी उन के पास नहीं था कि फिरौती की मंशा से कोई वरुण को उठाता.

तो फिर वरुण कहां गया. उसे जमीन निगल गई या फिर आसमान खा गया, यह सवाल हर किसी की जुबान पर था. क्रेटा कार पर पुलिस का शक इसलिए भी गहरा गया था क्योंकि कोलार के बाद केरवा चैकिंग पौइंट पर कार में बैठे युवकों ने खुद को पुलिस वाला बता कर बैरियर खुलवा लिया था और दूसरा बैरियर तोड़ कर वे कार को जंगलों की तरफ ले गए थे.

चीचली और कोलार इलाके में मीणा समुदाय के लोगों की भरमार है, इसलिए लोग रात भर वरुण को ढूंढते रहे. 15 जुलाई की सुबह तक वरुण कहीं नहीं मिला और लाख कोशिशों के बाद भी पुलिस कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे पाई तो लोगों का गुस्सा भड़कने लगा.

यह जानकारी डीआईजी इरशाद वली को मिली तो वह खुद चीचली पहुंच गए. उन्होंने वरुण को ढूंढने के लिए एक टीम गठित कर दी, जिस की कमान एसपी संपत उपाध्याय को सौंपी गई. दूसरी तरफ एसडीपीओ अनिल त्रिपाठी के नेतृत्व में एक पुलिस टीम जंगलों में जा कर वरुण को खोजने लगी.

पुलिस टीम ने 15 जुलाई को जंगलों का चप्पाचप्पा छान मारा लेकिन वरुण कहीं नहीं मिला और न ही उस के बारे में कोई सुराग हाथ लगा. इधर गांव भर में भी पुलिस उसे ढूंढ चुकी थी. एक बार नहीं कई बार पुलिस वालों ने गांव की तलाशी ली लेकिन हर बार नाकामी ही हाथ लगी तो गांव वालों का गुस्सा फिर से उफनने लगा.

बारबार की पूछताछ में बस एक ही बात सामने आ रही थी कि वरुण अपने दादा नारायण से 10 रुपए ले कर चौकलेट खरीदने निकला था, इस के बाद उसे किसी ने नहीं देखा. इस से यह संभावना प्रबल होती जा रही थी कि हो न हो, बच्चे को घर से निकलते ही अगवा कर लिया गया हो.

विपिन का मकान मुख्य सड़क से चंद कदमों की दूरी पर पहाड़ी पर है, इसलिए यह अनुमान भी लगाया गया कि इसी 50 मीटर के दायरे से वरुण को उठाया गया है.

लेकिन वह कौन हो सकता है, यह पहेली पुलिस से सुलझाए नहीं सुलझ रही थी. क्योंकि पूरे गांव व जंगलों की खाक छानी जा चुकी थी इस पर भी हैरत की बात यह थी कि बच्चे को अगवा किए जाने का मकसद किसी की समझ नहीं आ रहा था.

अगर पैसों के लिए उस का अपहरण किया गया होता तो अब तक अपहर्त्ता फोन पर अपनी मांग रख चुके होते और वरुण अगर किसी हादसे का शिकार हुआ होता तो भी उस का पता चल जाना चाहिए था. चीचली गांव की हालत यह हो चुकी थी कि अब वहां गांव वाले कम पुलिस वाले ज्यादा नजर आ रहे थे. इस पर भी लोग पुलिसिया काररवाई से संतुष्ट नहीं थे, इसलिए माहौल बिगड़ता देख गांव में डीजीपी वी.के. सिंह और आईजी योगेश देशमुख भी आ पहुंचे.

2 बड़े शीर्ष अधिकारियों को अचानक आया देख वहां मौजूद पुलिस वालों के होश उड़ गए. चंद मिनटों की मंत्रणा के बाद तय किया गया कि एक बार फिर से गांव का कोनाकोना देख लिया जाए.

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इत्तफाक से इसी दौरान टीआई अनिल बाजपेयी की टीम की नजर विपिन के घर से चंद कदमों की दूरी पर बंद पड़े एक मकान पर पड़ी. उन का इशारा पा कर 2 पुलिसकर्मी उस सूने मकान की दीवार लांघ कर अंदर दाखिल हो गए. दाखिल तो हो गए लेकिन अंदर का नजारा देख कर भौचक रह गए क्योंकि वहां किसी बच्चे की अधजली लाश पड़ी थी.

बच्चे का अधजला शव मिलने की खबर गांव में आग की तरह फैली तो सारा गांव इकट्ठा हो गया. दरवाजा खोलने के बाद पुलिस और गांव वालों ने बच्चे की लाश देखी तो उस का चेहरा बुरी तरह झुलसा हुआ था. लेकिन विपिन ने उस लाश की शिनाख्त अपने साढ़े 3 साल के बेटे वरुण के रूप में कर दी.

सभी लोग इस बात से हैरान थे कि पिछले 2 दिनों से जिस वरुण की तलाश में लोग आकाशपाताल एक कर रहे थे, उस की लाश घर के नजदीक ही पड़ोस में पड़ी है, यह बात किसी ने खासतौर से पुलिस वालों ने भी नहीं सोची थी.

वरुण के मांबाप और दादादादी होश खो बैठे, जिन्हें संभालना मुश्किल काम था. घर वाले ही क्या, गांव वालों में भी खासा दुख और गुस्सा था. अब यह बात कहनेसुनने और समझने की नहीं रही थी कि मासूम वरुण का हत्यारा कोई गांव वाला ही है, लेकिन वह कौन है और उस ने उस बच्चे को जला कर क्यों मारा, यह बात भी पहेली बनती जा रही थी.

गुस्साए गांव वालों को संभालती पुलिसिया काररवाई अब जोरों पर आ गई थी. देखते ही देखते खोजी कुत्ते और फोरैंसिक टीम चीचली पहुंच गई.

डीआईजी इरशाद वली ने बारीकी से वरुण के शव का मुआयना किया तो उन्हें समझते देर नहीं लगी कि जिस किसी ने भी उसे जलाया है, उस ने धुआं उठने के डर से तुरंत लाश पर पानी भी डाला है. वरुण के शव पर गेहूं के दाने भी चिपके हुए थे, इसलिए यह अंदाजा भी लगाया गया कि उसे गेहूं में दबा कर रखा गया होगा. यानी हत्या कहीं और की गई है और लाश यहां सूने मकान में ला कर ठिकाने लगा दी गई है.

इस मकान के बारे में गांव वाले कुछ खास नहीं बता पाए सिवाए इस के कि कुछ दिनों पहले ही इसे भोपाल के किसी शख्स ने खरीदा है. पूछताछ करने पर विपिन ने बताया कि उस की किसी से भी कोई दुश्मनी नहीं है.

इस के बाद पुलिस ने लाश से चिपके गेहूं के आधार पर ही जांच शुरू कर दी. अच्छी बात यह थी कि खाली पड़े उस मकान से जराजरा से अंतराल पर गेहूं के दानों की लकीर दूर तक गई थी.

डीआईजी के इशारे पर पुलिस वाले गेहूं के दानों के पीछे चले तो गेहूं की लाइन विपिन के घर के ठीक सामने रहने वाली सुनीता के घर जा कर खत्म हुई. यह वही सुनीता थी जो कुछ देर पहले तक वरुण के न मिलने की चिंता में आधी हुई जा रही थी और उस का बेटा भी गांव वालों के साथ वरुण को ढूंढने में जीजान से लगा हुआ था.

पुलिस ने सुनीता से पूछताछ की तो उस का चेहरा फक्क पड़ गया. वह वही सुनीता थी, जो एक दिन पहले तक एक न्यूज चैनल पर गुस्से से चिल्लाती दिखाई दे रही थी. वह चीखचीख कर कह रही थी कि हत्यारों को कड़ी सजा मिलनी चाहिए.

इस बीच पूछताछ में उजागर हुआ था कि सुनीता सोलंकी का चालचलन ठीक नहीं है और उस के घर तरहतरह के अनजान लोग आते रहते हैं. पर यह सब बातें उसे हत्यारी ठहराने के लिए नाकाफी थीं, इसलिए पुलिस ने सख्ती दिखाई तो सच गले में फंसे सिक्के की तरह बाहर आ गया.

वरुण जब चौकलेट लेने घर से निकला तो सुनीता को देख कर उस के घर पहुंच गया. मासूमियत और हैवानियत में क्या फर्क होता है, यह उस वक्त समझ आया जब भूखे वरुण ने सुनीता से रोटी मांगी. बदले की आग में जल रही सुनीता ने उसे सब्जी के साथ रोटी खाने को दे दी, लेकिन सब्जी में उस ने चींटी मारने वाली जहरीली दवा मिला दी.

वरुण दवा के असर के चलते बेहोश हो गया तो सुनीता ने उसे मरा समझ कर उस के हाथपैर बांधे और पानी के खाली पड़े बड़े कंटेनर में डाल दिया. इधर जैसे ही वरुण की खोजबीन शुरू हुई तो वह भी भीड़ में शामिल हो गई. इतना ही नहीं, उस ने दुख में डूबे अपने पड़ोसी विपिन मीणा के घर जा कर उन्हें चाय बना कर दी और हिम्मत भी बंधाती रही.

जबकि सच सिर्फ वही जानती थी कि वरुण अब इस दुनिया में नहीं है. उस की तो वह बदले की आग के चलते हत्या कर चुकी है. हादसे की शाम सुनीता का बेटा घर आया तो उसे बिस्तर के नीचे से कुछ आवाज सुनाई दी. इस पर सुनीता ने उसे यह कहते हुए टरका दिया कि चूहा होगा, तू जा कर वरुण को ढूंढ.

बाहर गया बेटा रात 8 बजे के लगभग फिर वापस आया तो नजारा देख कर सन्न रह गया, क्योंकि सुनीता वरुण की लाश को पानी के कंटेनर से निकाल कर गेहूं के कंटेनर में रख रही थी. इस पर बेटे ने ऐतराज जताया तो उस ने उसे झिड़क कर खामोश कर दिया. सुनीता ने मासूम की लाश को पहले गेहूं से ढका फिर उस पर ढेर से कपड़े डाल दिए थे.

16 जुलाई, 2019 की सुबह तड़के 5 बजे सुनीता ने घर के बाहर झांका तो वहां उम्मीद के मुताबिक सूना पड़ा था. वरुण की तलाश करने वाले सो गए थे. उस ने पूरी ऐहतियात से लाश हाथों में उठाई और बगल के सूने मकान में ले जा कर फेंक दी.

लाश को फेंक कर वह दोबारा घर आई और माचिस के साथसाथ कुछ कंडे (उपले) भी ले गई और लाश को जला दिया. धुआं ज्यादा न उठे, इस के लिए उस ने लाश पर पानी डाल दिया. जब उसे इत्मीनान हो गया कि अब वरुण की लाश पहचान में नहीं आएगी तो वह घर वापस आ गई.

हत्या सुनीता ने की है, यह जान कर गांव वाले बिफर उठे और उसे मारने पर आमादा हो आए तो उन्हें काबू करने के लिए पुलिस वालों को बल प्रयोग करना पड़ा. इधर दुख में डूबे विपिन के घर वाले हैरान थे कि सुनीता ने वरुण की हत्या कर उन से कौन से जन्म का बदला लिया है.

दरअसल बीती 16 जून को सुनीता 2 दिन के लिए गांव से बाहर गई थी. तभी उस के घर से कोई आधा किलो चांदी के गहने और 30 हजार रुपए नकदी की चोरी हो गई थी. सुनीता जब वापस लौटी तो विपिन के घर में पार्टी हो रही थी.

इस पर उस ने अंदाजा लगाया कि हो न हो विपिन ने ही चोरी की है और उस के पैसों से यह जश्न मनाया जा रहा है. यह सोच कर वह तिलमिला उठी और मन ही मन  विपिन को सबक सिखाने का फैसला ले लिया.

सुनीता सोलंकी दरअसल भोपाल के नजदीक बैरसिया के गांव मंगलगढ़ की रहने वाली थी. उस की शादी दुले सिंह से हुई थी, जिस से उस के 3 बच्चे हुए. इस के बाद भी पति से उस की पटरी नहीं बैठी क्योंकि उस का चालचलन ठीक नहीं था.

इस पर दोनों में विवाद बढ़ने लगा तो दुले सिंह ने उसे छोड़ दिया. इस के बाद मंगलगढ़ गांव के 2-3 युवकों के साथ रंगरलियां मनाते उस के फोटो वायरल हुए थे, जिस के चलते गांव वालों ने उसे भगा दिया था. वे नहीं चाहते थे कि उस के चक्कर में आ कर गांव के दूसरे मर्द बिगड़ें.

इस के बाद तो सुनीता की हालत कटी पतंग जैसी हो गई. उस ने कई मर्दों से संबंध बनाए और कुछ से तो बाकायदा शादी भी की लेकिन ज्यादा दिनों तक वह किसी एक की हो कर नहीं रह पाई. आखिर में वह चीचली में ठीक विपिन के घर के सामने आ कर बस गई.

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चीचली में भी रातबिरात उस के घर मर्दों का आनाजाना आम बात थी. इन में उस की बेटी का देवर मुकेश सोलंकी तो अकसर उस के यहां देखा जाता था. इस से उस की इमेज चीचली में भी बिगड़ गई थी. लेकिन सुनीता जैसी औरतें समाज और दुनिया की परवाह ही कहां करती हैं. गांव में हर कोई जानता था कि सुनीता के पास पैसे कहां से आते हैं, लेकिन कोई कुछ नहीं बोलता था.

चोरी के कुछ दिन पहले विपिन का भाई उस के यहां घुस आया था और उस ने सुनीता को आपत्तिजनक अवस्था में देख लिया था. इस पर भी विपिन के घर वालों से उस की कहासुनी हुई थी. यह बात तो आईगई हो गई थी, लेकिन वह चोरी के शक की आग में जल रही थी इसलिए उस ने बदला मासूम वरुण की हत्या कर के लिया.

गांव वालों के मुताबिक यह पूरा सच नहीं है बल्कि तंत्रमंत्र और बलि का चक्कर है. गांव वाले इसे चंद्रग्रहण से जोड़ कर देख रहे हैं. गांव वालों के मुताबिक वरुण की लाश के पास से मिठाई भी मिली थी. घटनास्थल के पास से अगरबत्ती और कटे नींबू मिलने की बात भी कही गई. इस के अलावा वरुण की लाश को लाल रंग के कपड़े से ही क्यों लपेटा गया, इस की भी चर्चा चीचली में है.

गांव वालों की इस दलील में दम है कि अगर वाकई सुनीता के यहां चोरी हुई थी तो उस ने इस का जिक्र किसी से क्यों नहीं किया था और न ही पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई थी.

वरुण के नाना अनूप मीणा तो खुल कर बोले कि उन के नाती की हत्या की असली वजह तंत्रमंत्र का चक्कर है. उन्होंने घटनास्थल पर मिले नींबू के अलावा घर के बाहर पेड़ पर लटकी काली मटकी का भी जिक्र किया.

वरुण की हत्या चोरी का बदला थी या तंत्रमंत्र, इस की वजह थी, इस पर पुलिस बोलने से बच रही है. लेकिन उस की लापरवाही और नकारापन लोगों के निशाने पर रहा. चीचली के लोगों ने साफसाफ कहा कि लाश एकदम बगल वाले घर में थी और पुलिस वाले यहांवहां वरुण को ढूंढ रहे थे.

गांव वालों का यह भी कहना है कि अगर डीजीपी और आईजी गांव में नहीं आते तो ये लोग उस सूने मकान में भी नहीं झांकते और वरुण की लाश पता नहीं कब मिलती. उम्मीद के मुताबिक इस हत्याकांड पर राजनीति भी खूब गरमाई. मुख्यमंत्री कमलनाथ ने हादसे पर अफसोस जाहिर किया तो पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान बिगड़ती कानूनव्यवस्था को ले कर सरकार को कटघरे में खड़ा करते रहे.

हैरानी तो इस बात की भी है कि गुमशुदगी का बवाल मचने के बाद भी सुनीता ने वरुण की लाश बड़े इत्मीनान से जला दी और किसी को खबर भी नहीं लगी. सुनीता को अपने किए का कोई पछतावा नहीं है. इस से लगता है कि बात कुछ और भी हो सकती है.

पुलिस ने सुनीता से पूछताछ करने के बाद उस के नाबालिग बेटे को भी हिरासत में ले लिया. उस का कसूर यह था कि हत्या की जानकारी होने के बाद भी उस ने पुलिस को नहीं बताया था. पुलिस ने सुनीता को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया जबकि उस के नाबालिग बेटे को बालसुधार गृह भेजा गया.

नर्सरी से राजाराम की बदली जिंदगी

ऐसा कर दिखाया है राजस्थान के झुंझुनूं जिले की चिड़ावा तहसील के महरमपुर के बाशिंदे राजाराम ने, जो फलफूल व छायादार पौधे तैयार कर हर साल

4 लाख रुपए कमा रहा?है. नर्सरी के काम में हो रही ज्यादा आमदनी को देख कर उस ने आगामी साल में एक लाख पौधे तैयार करने की ठानी?है.

स्नातक की डिगरी हासिल करने के बाद राजाराम ने फल, छायादार पौधे व फूलों के पौधों की बढ़ती मांग को देख कर अपनी खेती लायक जमीन पर नर्सरी लगाने की ठानी. राजाराम को नए पौधे तैयार करने की जानकारी नहीं थी. उस के परिवार के आशाराम के यहां हरियाणा से नर्सरी का काम करने वाले लोग आते थे. उन से राजाराम ने कलमी पौधे तैयार करने के लिए कटिंग, बडिंग, ग्राफ्टिंग की तकनीक सीखी और 2 साल पहले उन के साथ काम भी किया. जब वह पूरी तरह से सीख गया तो उस ने अपनी 2 बीघा जमीन में नर्सरी लगा ली.

नर्सरी में राजाराम खुद कटिंग, बडिंग, ग्राफ्टिंग व दूसरे काम करता और परिवार के दूसरे लोग मिट्टी में खाद मिलाने, दीमक व दूसरे रोगों की रोकथाम के लिए कीटनाशक दवाओं का इस्तेमाल करते व थैलियां तैयार करने का काम करते.

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जब परिवार के सभी लोग मेहनत के साथ काम करते हैं तो इस के अच्छे नतीजे मिलने लगे जिस से तैयार पौधा सूखा नहीं. हालात ये रहे कि राजाराम ने पहले साल ही तकरीबन 50,000 पौधे तैयार किए, जिन की महज 4 महीने में बिक्री होने से उसे तकरीबन 2 लाख रुपए आसानी से मिल गए.

जब राजाराम को नर्सरी के पौधे तैयार करने में तकनीकी जानकारी की जरूरत होती तो रामकृष्ण जयदयाल डालमिया सेवा संस्थान के कृषि माहिरों से जरूर मिलता. पहले साल हुए मुनाफे को देख कर राजाराम ने अगले साल दोगुने जोश से नर्सरी पौधे तैयार करने शुरू किए. उस ने किन्नू, मौसमी, संतरा, आम, जामुन, करंज, पपीता के अलावा गुलमोहर, शीशम, देशी बबूल, नीम के हाई क्वालिटी के पौधे तैयार किए.

पौधों की क्वालिटी को देखते हुए राजाराम के पौधों की मांग राजस्थान के सभी जिलो के अलावा पड़ोसी राज्य हरियाणा में भी?बढ़ने लगी. आज हालात ये हैं कि राजाराम पौधों की मांग को पूरा नहीं कर पा रहा है.

पौधों की बढ़ती मांग को देखते हुए राजाराम आने वाले साल में तकरीबन एक लाख पौधे तैयार करेगा, जिस से उस की आमदनी भी बढ़ जाएगी.

राजाराम की कामयाबी देख कर क्षेत्र के गांव बिसाऊ व मलसीसर के किसानों ने भी नर्सरी लगाना शुरू कर दिया है. चिड़ावा क्षेत्र में फलदार पौधों की मांग को देखते हुए रामकृष्ण जयदयाल डालमिया सेवा संस्थान के सहयोग से अब तक 14 नर्सरियां लग चुकी हैं.

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फेस्टिवल स्पेशल 2019: किचन को दें ट्रेंडी लुक

किचन एक्सेसरीज की किचन में महत्वपूर्ण भूमिका होती है. आजकल ये काफी महंगे मिलने लगे है. पर किचन को ट्रेंडी लुक देने के लिए इनका इस्तेमाल करना जरुरी है. तो आइए जानते हैं कैसी होनी चाहिए आपकी किचन एक्सेसरीज.

–  जूसर-मिक्सर-ग्राइन्डर जैसी चीजें और माइक्रोवेव जैसी एक्सेसरीज किचन की शोभा बढाते हैं. माइक्रोवेव खरीदते समय एक बात का ध्यान जरूर रखना चाहिए कि माइक्रोवेव किचन के हिसाब से लें. यदि किचन छोटा है तो उसी के हिसाब से माइक्रोवेव लें.

–  चिमनी खरीदते समय कुछ बातों का ध्यान जरूर रखना चाहिए. भारत में वसा युक्त खाना ज्यादा बनता है तो इन चीजों को ध्यान में रखते हुए चिमनी ऐसी लेनी चाहिए जो धुएं पर काबू करने में कारगर हो.

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–  अगर किचन में रंगों की बात करें तो किचन की दीवारों में हमेशा हल्के रंगो का इस्तेमाल करना चाहिए क्योंकि किचन मे तेज रोशनी का होना बहुत जरूरी होता है और गहरे रंग अक्सर रोशनी को दबा देते हैं, इसलिए किचन में हमेशा लाइट यलों, व्हाइट, लाइट ब्लू और लाइट ग्रीन रंगों का इस्तेमाल करें.

–  किचन में सामान रखने के लिए रैक बहुत जरूरी है, पर किचन में स्पेस को ध्यान में रखते हुए रैक बनवाना चाहिए. आप वुडेन की जगह ग्लास का भी रैक बनवा सकती हैं. यह देखने में भी अच्छा लगेगा और सामान को ढूंढने में भी आपको असुविधा नहीं होगी, क्योंकि आपकों आसानी से पता चल जाएगा कि कौन-सा सामान कहां है.

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सांप सीढ़ी : भाग 1

जब से फोन आया था, दिमाग ने जैसे काम करना बंद कर दिया था. सब से पहले तो खबर सुन कर विश्वास ही नहीं हुआ, लेकिन ऐसी बात भी कोई मजाक में कहता है भला.

फिर कांपते हाथों से किसी तरह दिवाकर को फोन लगाया. सुन कर दिवाकर भी सन्न रह गए.

‘‘मैं अभी मौसी के यहां जाऊंगी,’’ मैं ने अवरुद्ध कंठ से कहा.

‘‘नहीं, तुम अकेली नहीं जाओगी. और फिर हर्ष का भी तो सवाल है. मैं अभी छुट्टी ले कर आता हूं, फिर हर्ष को दीदी के घर छोड़ते हुए चलेंगे.’’

दिवाकर की बात ठीक ही थी. हर्ष को ऐसी जगह ले जाना उचित नहीं था. मेरा मस्तिष्क भी असंतुलित हो रहा था. हाथपैर कांप रहे थे, मन में भयंकर उथलपुथल मची हुई थी. मैं स्वयं भी अकेले जाने की स्थिति में कतई नहीं थी.

पर इस बीतते जा रहे समय का क्या करूं. हर गुजरता पल मुझ पर पहाड़ बन कर टूट रहा था. दिवाकर को बैंक से यहां तक आने में आधा घंटा लग सकता था. फिर दीदी का घर दूसरे छोर पर, वहां से मौसी का घर 5-6 किलोमीटर की दूरी पर. उन के घर के पास ही अस्पताल है, जहां प्रशांत अपने जीवन की शायद आखिरी सांसें गिन रहा है. कम से कम फोन पर खबर देने वाले व्यक्ति ने तो यही कहा था कि प्रशांत ने जहर इतनी अधिक मात्रा में खा लिया है कि उस के बचने की कोई उम्मीद नहीं है.

जिस प्रशांत को मैं ने गोद में खिलाया था, जिस ने मुझे पहलेपहल छुटकी के संबोधन से पदोन्नत कर के दीदी का सम्मानजनक पद प्रदान किया था, उस प्रशांत के बारे में इस से अधिक दुखद मुझे क्या सुनने को मिलता.

उस समय मैं बहुत छोटी थी. शायद 6-7 साल की जब मौसी और मौसाजी हमारे पड़ोस में रहने आए. उन का ममतामय व्यक्तित्व देख कर या ठीकठीक याद नहीं कि क्या कारण था कि मुझे उन्हें देख कर मौसी संबोधन ही सूझा.

यह उम्र तो नामसझी की थी, पर मांपिताजी के संवादों से इतना पता तो चल ही गया था कि मौसी की शादी हुए 2-3 साल हो चुके थे, और निस्संतान होने का उन्हें गहरा दुख था. उस समय उन की समूची ममता की अधिकारिणी बनी मैं.

मां से डांट खा कर मैं उन्हीं के आंचल में जा छिपती. मां के नियम बहुत कठोर थे. शाम को समय से खेल कर घर लौट आना, फिर पहाड़े और कविताएं रटना, तत्पश्चात ही खाना नसीब होता था. उतनी सी उम्र में भी मुझे अपना स्कूलबैग जमाना, पानी की बोतल, अपने जूते पौलिश करना आदि सब काम स्वयं ही करने पड़ते थे. 2 भाइयों की एकलौती छोटी बहन होने से भी कोई रियायत नहीं मिलती थी.

उस समय मां की कठोरता से दुखी मेरा मन मौसी की ममता की छांव तले शांति पाता था.

मौसी जबतब उदास स्वर में मेरी मां से कहा करती थीं, ‘बस, यही आस है कि मेरी गोद भरे, बच्चा चाहे काला हो या कुरूप, पर उसे आंखों का तारा बना कर रखूंगी.’

मौसी की मुराद पूरी हुई. लेकिन बच्चा न तो काला था न कुरूप. मौसी की तरह उजला और मौसाजी की तरह तीखे नाकनक्श वाला. मांबाप के साथसाथ महल्ले वालों की भी आंख का तारा बन गया. मैं तो हर समय उसे गोद में लिए घूमती फिरती.

प्रशांत कुशाग्रबुद्धि निकला. मैं ने उसे अपनी कितनी ही कविताएं कंठस्थ करवा दी थीं. तोतली बोली में गिनती, पहाड़े, कविताएं बोलते प्रशांत को देख कर मौसी निहाल हो जातीं. मां भी ममता का प्रतिरूप, तो बेटा भी उन के स्नेह का प्रतिदान अपने गुणों से देता जा रहा था. हर साल प्रथम श्रेणी में ही पास होता. चित्रकला में भी अच्छा था. आवाज भी ऐसी कि कोई भी महफिल उस के गाने के बिना पूरी नहीं होती थी. मैं उस से अकसर कहती, ‘ऐसी सुरीली आवाज ले कर किसी प्रतियोगिता के मैदान में क्यों नहीं उतरते भैया?’ मैं उसे लाड़ से कभीकभी भैया कहा करती थी. मेरी बात पर वह एक क्षण के लिए मौन हो जाता, फिर कहता, ‘क्या पता, उस में मैं प्रथम न आऊं.’

‘तो क्या हुआ, प्रथम आना जरूरी थोड़े ही है,’ मैं जिरह करती, लेकिन वह चुप्पी साध लेता.

बोलने में विनम्रता, चाल में आत्मविश्वास, व्यवहार में बड़ों का आदरमान, चरित्र में सोना. सचमुच हजारों में एक को ही नसीब होता है ऐसा बेटा. मौसी वाकई समय की बलवान थीं.

मां के अनुशासन की डोरी पर स्वयं को साधती मैं विवाह की उम्र तक पहुंच चुकी थी. एमए पास थी, गृहकार्य में दक्ष थी, इस के बावजूद मेरा विवाह होने में खासी परेशानी हुई. कारण था, मेरा दबा रंग. प्रत्येक इनकार मन में टीस सी जगाता रहा. पर फिर भी प्रयास चलते रहे.

और आखिरकार दिवाकर के यहां बात पक्की हो गई. इस बात पर देर तक विश्वास ही नहीं हुआ. बैंक में नौकरी, देखने में सुदर्शन, इन सब से बढ़ कर मुझे आकर्षित किया इस बात ने कि वे हमारे ही शहर में रहते थे. मां से, मौसी से और खासकर प्रशांत से मिलनाजुलना आसान रहेगा.

पर मेरी शादी के बाद मेरी मां और पिताजी बड़े भैया के पास भोपाल रहने चले गए, इसलिए उन से मिलना तो होता, पर कम.

मौसी अलबत्ता वहीं थीं. उन्होंने शादी के बाद सगी मां की तरह मेरा खयाल रखा. मुझे और दिवाकर को हर त्योहार पर घर खाने पर बुलातीं, नेग देतीं.

प्रशांत का पीईटी में चयन हो चुका था. वह धीरगंभीर युवक बन गया था. मेरे दोनों सगे भाई तो कोसों दूर थे. राखी व भाईदूज का त्योहार इसी मुंहबोले छोटे भाई के साथ मनाती.

स्कूटर की जानीपहचानी आवाज आई, तो मेरी विचारशृंखला टूटी. दिवाकर आ चुके थे. मैं हर्ष की उंगली पकड़े बाहर आई. कुछ कहनेसुनने का अवसर ही नहीं था. हर्ष को उस की बूआ के घर छोड़ कर हम मौसी के घर जा पहुंचे.

घर के सामने लगी भीड़ देख कर और मौसी का रोना सुन कर कुछ भी जानना बाकी न रहा. भीतर प्रशांत की मृतदेह पर गिरती, पछाड़ें खाती मौसी और पास ही खड़े आंसू बहाते मौसाजी को सांत्वना देना सचमुच असंभव था.

शब्द कभीकभी कितने बेमानी, कितने निरर्थक और कितने अक्षम हो जाते हैं, पहली बार इस बात का एहसास हुआ. भरी दोपहर में किस प्रकार उजाले पर कालिख पुत जाती है, हाथभर की दूरी पर खड़े लोग किस कदर नजर आते हैं, गुजरे व्यक्ति के साथ खुद भी मर जाने की इच्छा किस प्रकार बलवती हो उठती है, मुंहबोली बहन हो कर मैं इन अनुभूतियों के दौर से गुजर रही थी. सगे मांबाप के दुख का तो कोई ओरछोर ही नहीं था.

बच्चे की जिज्ञासा से 27 साल बाद खुला रहस्य 

बच्चे जब बचपन को पीछे छोड़ किशोरावस्था में प्रवेश करते हैं तो उन में नईनई चीजों के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानने की उत्सुकता होती है. अपनी इसी उत्सुकता की वजह से कभीकभी वे कई ऐसे काम कर जाते हैं, जो आयु के हिसाब से उन के लिए मना होते हैं. ब्रिटिश कोलंबिया के एक जिज्ञासु किशोर ने अपनी उत्सुकता के चलते ऐसा कारनामा किया कि उस के मातापिता ही नहीं, पुलिस भी हैरत में रह गई.

दरअसल, कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया के 13 साल के किशोर मैक्स वेरेंका को प्रकृति से बहुत प्रेम था. वह अपने गो-प्रो कैमरे से फोटो खींचता रहता था. पिछले दिनों मैक्स ग्रिफिन झील के किनारे फोटो खींच रहा था. तभी उसे पानी में कोई चमकदार चीज दिखाई दी. कुछ समझ में नहीं आया तो मैक्स अपने घर वालों को बुला लाया. उन लोगों ने पानी के अंदर जा कर करीब से देखा तो पाया वह चमकदार चीज कोई कार थी.

मैक्स के घर वालों ने इस की सूचना पुलिस को दी. पुलिस वहां पहुंच भी गई लेकिन झील का पानी बहुत गंदा था और नीचे कुछ भी नजर नहीं आ रहा था. मैक्स के मन में उत्सुकता तो थी ही, वह अपनी बात को सच भी साबित करना चाहता था.

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इसलिए उस ने पुलिस के सामने उन की मदद करने का प्रस्ताव रखा. उस ने बताया कि उस के गो-प्रो कैमरे से पानी के भीतर फोटो भी खींची जा सकती हैं और वीडियो भी बनाई जा सकती है. इस से यह पता चल जाएगा कि पानी के भीतर क्या है.

पुलिस की स्वीकृति के बाद मैक्स अपना कैमरा ले कर पानी के अंदर उतर गया. थोड़ी देर बाद वह पानी के बाहर आया तो उस के कैमरे में एक वीडियो थी. जिस झील में यह कवायद हुई, उस में चमकने वाली चीज किनारे से केवल 10 फीट दूर थी. जबकि पानी का स्तर 20 फीट था. मैक्स ने पानी के अंदर की जो वीडियो बनाई थी, उस से पता चला कि पानी में एक कार थी.

बाद में पुलिस ने जब कार को बाहर निकाला तो उस में एक महिला का कंकाल मिला. काले रंग की उस कार के नंबर को चैक किया गया तो पता चला कार जैनेट नाम की एक महिला की थी, जो 1992 में लापता हो गई थी.

गायब होने के 27 साल बाद यह रहस्य खुला कि जैनेट क्यों और कैसे लापता हो गई थी.

छानबीन में सामने आया कि 1992 में 69 वर्ष की जैनेट अकेली ही अलबर्टा में एक शादी समारोह में शामिल होने गई थी. अनुमान लगाया गया कि रास्ते में किसी जानवर को बचाने की कोशिश या अन्य किसी कारण से जैनेट कार पर नियंत्रण खो बैठी होगी और उस की कार झील में जा गिरी होगी, इसीलिए 27 साल तक उस का कोई पता नहीं चला.

बहरहाल, मैक्स वेरेंका की जानने की जिज्ञासा बहुत काम आई. अगर उस के मन की उत्सुकता ने जोर न मारा होता तो न जाने कब तक जैनेट का कंकाल और कार झील में पड़ी रहती.

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अगर आप भी हो रहे हैं मोटापा का शिकार तो पढ़ें ये खबर

आज के समय मे लोगों का रहन सहन, खान पान और दिनचर्या ऐसी होती जा रही है कि हम खुद ही बिमारियों को दावत दे रहे हैं उन बिमारियों में से एक है बढ़ता मोटापा. मोटापा आजकल ज्यादातर लोगों के लिए परेशानी का सबब बनता जा रहा है. लोग पेट की चर्बी से परेशान है. मोटे होने से हमारी उम्र भी ज्यादा दिखती है व हमारे काम करने की क्षमता भी कम हो जाती है. कुछ लोग इस परेशानी को नजरअंदाज कर देते है और बाद में यह उनके जी का जंजाल बन जाता है. यही मोटापा कई बिमारियों की जड़ भी बन जाता है मोटापे सहाइपरटेंशन, हार्ट अटैक, कैंसर कई बीमारियों का खतरा भी बढ़ाता है.

मोटापे से होने वाली बीमारियां

हाइपरटेंशन, हार्ट अटैक, कैंसर, थायराइड, मधुमेह, गठिया,  दिल की बीमारी, सांस फूलना.

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मोटापे का कारण

दुनियाभर में करीब दो तिहाई आबादी मोटापे से परेशान है, जिसका कारण गलत लाइफस्टाइल, एक्सरसाइज ना करना और खराब खान-पान आदि है. इतना ही नहीं, इनमें युवाओं और बच्चों में भी मोटापे की समस्या सबसे ज्यादा है. क्योंकि बच्चों को जंक फूड का सेवन करना पसंद होता है. पुरूषों से ज्यादा महिलाओं को होता है मोटापा. मोटापे के कारण जेनटिक अनुवांशिक भी होते है अगर माता पिता मोटे है तो बच्चा भी मोटा रहता है सही पोषक आहार न लेने से, ज्यादा तैलीय पर्दार्थ खाने से, धूम्रपान करने से, महिलाओं में गर्भावस्था के समय हार्मोनल बदलाव के होने से, मासिक धर्म हमेशा के लिये बंद होने पर व ज्यादा देर बैठे रहने से भी मोटापा होता है.

कैसे बचें

दिन भर मे 3 लीटर पानी अवश्य पिएं इससे आपका मेटाबोलिज्म ठीक होगा व शरीर के विषैले पर्दार्थ भी बहार निकलते है.

ब्रेकफास्ट, लंच, डिनर सभी समय पर खाये पौष्टिक आहार का सेवन करें, व डाइटिंग से बचें, भूखे बिलकुल न रहे ,क्योंकि भूखे रहने से मोटापा बढ़ता है.
जंक फूड को बाई बाई कहे क्योंकि यह सिर्फ मोटापा ही नहीं बल्कि शरीर में बीमारियों को बढ़ता है. चौकलेट भी मोटापा बढ़ती हैं इसलिये इसका सेवन भी न करें.

खाने मे कार्बोहाइड्रेट  की मात्र कम करें क्योंकि कार्बोहाइड्रेट वजन बढ़ता है
वजन घटाने के लिए यह बेहद जरूरी है कि आप जो कुछ भी खाएं वो रीयल फूड हो. मार्केट में बिकने वाले प्रोसेस्ड और लो-कार्ब फूड खाने से परहेज करें.

बीयर को कहें अलविदा. बीयर में ऐसे कार्बोहाइड्रेट्स पाए जाते हैं जो बहुत जल्दी पच जाते हैं और वजन बढ़ाते हैं.

मिठाई से करें परहेज

कई बार ऐसा भी होता है कि किसी हार्मोन की अनियमितता के चलते भी वजन बढ़ जाता है. ऐसे में हार्मोन चेक करा लें ताकि किसी भी तरह की आंतरिक समस्या हो तो उसका पता चल जाए.

अगर आप वजन घटाने को लेकर पूरी तरह डेस्परेट हो चुके हैं तो आप डौक्टर की सलाह से पिल्स ले सकते हैं. ऐसे डाइट सप्लीमेंट भी आते हैं जो वजन घटाने में कारगर होते हैं.

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