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मैं उस पीड़ित महिला की मदद करना चाहता हूं पर समझ नहीं आता कि मुझे इन सब में पड़ना चाहिए या नहीं ?

सवाल

मैं सरकारी डिस्पैंसरी में डाक्टर हूं. मेरे पास कुछ समय से एक महिला अपनी गर्भावस्था के चलते दवाइयां लेने आ रही है. पिछले कुछ हफ्तों से मैं नोटिस कर रहा हूं कि जब भी वह आती है तो उस के चेहरे पर तो कभी हाथ पर एक नया घाव का निशान दिखने लगता है. मैं ने उस के घाव का कारण पूछा तो उस ने कुछ बताया नहीं. उस के पीछे काफी लंबी लाइन थी तो मेरे पास उस से अधिक कुछ पूछने का समय भी नहीं था. मेरे अंदाज से वे निशान उस महिला के पति या घरवालों द्वारा मारपीट के थे. मैं वैसे तो उस महिला की मदद करना चाहता हूं पर समझ नहीं आता कि मुझे इस सब में पड़ना चाहिए या नहीं?

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जवाब

यह आप का सद्भाव है जो आप उस महिला के विषय में सोच रहे हैं और यकीनन सभी को इस तरह सोचना चाहिए, लेकिन यह भी सही है कि जब तक वह महिला आप को सचाई नहीं बता देती तब तक आप अंदाजे के आधार पर कुछ नहीं कर सकते.

हो सकता है कि वह महिला घरेलू हिंसा का शिकार हो रही हो. यदि वह खुद इस बात को कबूलने के लिए तैयार हो तब आप उसे कानूनी सहायता लेने की सलाह दे सकते हैं.

फिलहाल तो आप डाक्टर होने का कर्तव्य निभाएं और उस का इलाज करें. इस के अलावा आप किसी लेडी डाक्टर या नर्स को उस से बात करने के लिए कह सकते हैं. यदि वह खुद कुछ न बताना चाहे या कोई कदम न उठाना चाहे तो इस से आगे शायद ही आप का कुछ करना सही हो.

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अजब गजब: यहां 100 साल तक जीते हैं लोग

आज के गलत खान-पान, रहन-सहन, प्रदूषण और बहुत सारी बीमारियों के कारण लोग लंबे समय तक जीवित नहीं रह पाते हैं. पर क्या आप जानते हैं, एक ऐसा देश भी है जहां लोग 100 साल तक जीते ही हैं, ये उनके लिए एक मामूली सी बात है.

तो आइए जानते हैं वो कौन सा देश है, जहां लोग 100 साल तक जीते ही हैं.

जी हां, वो देश है जापान. जापान में 100 साल से ज्यादा उम्र वालों में वहां के पूर्व प्रधानमंत्री भी शामिल हैं, जिनका नाम यासुहिरो नाकासोने है, जो मई में ही 100 साल के हुए हैं. इसके साथ ही नेशनल इंस्टीट्यूट औफ पापुलेशन एंड सोशल सिक्योरिटी रिसर्च के मुताबिक अगले पांच सालों में जापान में 100 साल से अधिक उम्र वाले लोगों की संख्या 1 लाख को पार कर जाएगी.

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दूरी-भाग 1 : आखिर किस से भाग रही थी वो लड़की

फरीदाबाद बसअड्डे पर बस खाली हो रही थी. जब वह बस में बैठी थी तो नहीं सोचा था कहां जाना है. बाहर अंधेरा घिर चुका था. जब तक उजाला था, कोई चिंता न थी. दोपहर से सड़कें नापती, बसों में इधरउधर घूमती रही. दिल्ली छोड़ना चाहती थी. जाना कहां है, सोचा न था. चार्ल्स डिकेन्स के डेविड कौपरफील्ड की मानिंद बस चल पड़ी थी. भूल गई थी कि वह तो सिर्फ एक कहानी थी, और उस में कुछ सचाई हो भी तो उस समय का समाज और परिस्थितियां एकदम अलग थीं.

वह सुबह स्कूल के लिए सामान्यरूप से निकली थी. पूरा दिन स्कूल में उपस्थित भी रही. अनमनी थी, उदास थी पर यों निकल जाने का कोई इरादा न था. छुट्टी के समय न जाने क्या सूझा. बस्ता पेड़ पर टांग कर गई तो थी कैंटीन से एक चिप्स का पैकेट लेने, लेकिन कैंटीन के पास वाले छोटे गेट को खुला देख कर बाहर निकल आई. खाली हाथ स्कूल के पीछे के पहाड़ी रास्ते पर आ गई. कहां जा रही है, कुछ पता न था. कुछ सोचा भी नहीं था. बारबार, बस, मां के बोल मस्तिष्क में घूम रहे थे. अंधेरा घिरने पर जी घबराने लगा था. अब कदम वापस मोड़ भी नहीं सकती थी. मां का रौद्र रूप बारबार सामने आ जाता था. उस गुस्से से बचने के लिए ही वह निकली थी. निकली भी क्या, बस यों लगा था जैसे कुछ देर के लिए सबकुछ से बहुत दूर हो जाना चाहती है, कोई बोल न पड़े कान में…

पर अब कहां जाए? उसे किसी सराय का पता न था. जो पैसे थे, उन से उस ने बस की टिकट ली थी. अंधेरे में बस से उतरने की हिम्मत न हुई. चुपचाप बैठी रही. कुछ ऐसे नीचे सरक गई कि आगे, पीछे से खड़े हो कर देखने पर किसी को दिखाई न दे. सोचा था ड्राइवर बस खड़ी कर के चला जाएगा और वह रातभर बस में सुरक्षित रह सकेगी.

बाहर हवा में खुनक थी. अंदर पेट में कुलबुलाहट थी. प्यास से होंठ सूख रहे थे. पर वह चुपचाप बैठी रही. नानीमामी बहुत याद आ रही थीं. घर से कोई भी कहीं जाता, पूड़ीसब्जी बांध कर पानी के साथ देती थीं. पर वह कहां किसी से कह कर आई थी. न घर से आई थी, न कहीं जाने को आई थी. बस, चली आई थी. किसी के बस में चढ़ने की आहट आई. उस ने अपनी आंखें कस कर भींच लीं. पदचाप बहुत करीब आ गई और फिर रुक गई. उस की सांस भी लगभग रुक गई. न आंखें खोलते बन रहा था, न बंद रखी जा रही थीं. जीवविज्ञान में जहां हृदय का स्थान बताया था वहां बहुत भारी लग रहा था. गले में कुछ आ कर फंस गया था. वह एक पल था जैसे एक सदी. अनंत सा लगा था.

‘‘कौन हो तुम? आंख खोलो,’’ कंडक्टर सामने खड़ा था, ‘‘मैं तो यों ही देखने चढ़ गया था कि किसी का सामान वगैरा तो नहीं छूट गया. तुम उतरी क्यों नहीं? जानती नहीं, यह बस आगे नहीं जाएगी.’’ उस के चेहरे का असमंजस, भय वह एक ही पल में पढ़ गया था, ‘‘कहां जाओगी?’’

उस समय, उस के मुंह से अटकते हुए निकला, ‘‘जी…जी, मैं सुबह दूसरी बस से चली जाऊंगी, मुझे रात में यहीं बैठे रहने दीजिए.’’

‘‘जाना कहां है?’’

…यह तो उसे भी नहीं पता था कि जाना कहां है.

कुछ जवाब न पा कर कंडक्टर फिर बोला, ‘‘घर कहां है?’’

यह वह बताना नहीं चाहती थी, डर था वह घर फोन करेगा और उस के आगे की तो कल्पना से ही वह घबरा गई. बस, इतना ही बोली, ‘‘मैं सुबह चली जाऊंगी.’’

‘‘तुम यहां बस में नहीं रह सकती, मुझे बस बंद कर के घर जाना है.’’

‘‘मुझे अंदर ही बंद कर दें, प्लीज.’’

‘‘अजीब लड़की हो, मैं रातभर यहां खड़ा नहीं रह सकता,’’ वह झल्ला उठा था, ‘‘मेरे साथ चलो.’’

कोई दूसरा रास्ता न था उस के पास. इसलिए न कोई प्रश्न, न डर, पीछेपीछे चल पड़ी.

बसअड्डे तक पहुंचे तो कंडक्टर ने इशारा कर एक रिकशा रुकवाया और बोला, ‘‘बैठो.’’ रिकशा तेज चलने से ठंडी हवा लगने लगी थी. कुछ हवा, कुछ अंधेरा, वह कांप गई.

उस की सिहरन को सहयात्री ने महसूस करते हुए भी अनदेखा किया और फिर एक प्रश्न उस की ओर उछाल दिया, ‘‘घर क्यों छोड़ कर आई हो?’’

‘‘मैं वहां रहना नहीं चाहती.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘कोई मुझे प्यार नहीं करता, मैं वहां अनचाही हूं, अवांछित हूं.’’

‘‘सुबह कहां जाओगी?’’

‘‘पता नहीं.’’

‘‘कहां रहोगी?’’

‘‘पता नहीं.’’

‘‘कोई तो होगा जो तुम्हें खोजेगा.’’

‘‘वे सब खोजेंगे.’’

‘‘फिर?’’

‘‘परेशान होंगे, और मैं यही चाहती हूं क्योंकि वे मुझे प्यार नहीं करते.’’

‘‘तुम सब से ज्यादा किसे प्यार करती हो?’’

‘‘अपनी नानी से, मैं 3 महीने की थी जब मेरी मां ने मुझे उन के पास छोड़ दिया.’’

‘‘वे कहां रहती हैं?’’

‘‘मथुरा में.’’

‘‘तो मथुरा ही चली जाओ?’’

‘‘मेरे पास टिकट के पैसे नहीं हैं.’’ अब वह लगभग रोंआसी हो उठी थी.

वह ‘हूंह’ कह कर चुप हो गया था.

हवा को चीरता मोड़ों पर घंटी टुनटुनाता रिकशा आगे बढ़ता रहा और जब एक संकरी गली में मुड़ा तो वह कसमसा गई थी. आंखें फाड़ कर देखना चाहा था घर. घुप्प अंधेरी रात में लंबी पतली गली के सिवा कुछ न दिखा था. कुछ फिल्मों के खौफनाक दृश्यों के नजारे उभर आए थे. देखी तो उस ने ‘उमराव जान’ भी थी. आवाज से उस की तंद्रा टूटी.

‘‘बस भइया, इधर ही रोकना,’’ उस ने कहा तो रिकशा रुक गया और उन के उतरते ही अपने पैसे ले कर रिकशेवाला अंधेरे को चीरता सा उसी में समा गया था. वह वहां से भाग जाना चाहती थी. कंडक्टर ने उस का हाथ पकड़ एक दरवाजे पर दस्तक दी थी. सांकल खटखटाने की आवाज सारी गली में गूंज गई थी.

भीतर से हलकी आवाज आई थी, ‘‘कौन?’’

‘‘दरवाजा खोलो, पूनम,’’ और दरवाजा खोलते ही अंदर का प्रकाश क्षीण हो सड़क पर फैल गया. उस पर नजर पड़ते ही दरवाजा खोलने वाली युवती अचकचा गई थी. एक ओर हट कर उन्हें अंदर तो आने दिया पर उस का सारा वजूद उसे बाहर धकेलरहा था. दरवाजा एक छोटे से कमरे में खुला था, ठीक सामने एक कार्निस पर 2 फूलदान सजे थे, बीच में कुछ मोहक तसवीरें. एक कोने में एक छोटा सा रैक था जिस पर कुछ डब्बे थे, कुछ कनस्तर, एक स्टोव और कुछ बरतन, सब करीने से लगे थे. एक ओर छोटा पलंग जिस पर साफ धुली चादर बिछी थी और 2 तकिए थे. चादर पर कोई सिलवट तक न थी.

कुल मिला कर कम आय में सुचारु रूप से चल रही सुघड़ गृहस्थी का आदर्श चित्र था. वह भी ऐसा ही चित्र बनाना चाहती थी. बस, अभी तक उस चित्र में वह अकेली थी. अकेली, हां यही तो वह कह रहा था. ‘‘पूनम, यह लड़की बसअड्डे पर अकेली थी. मैं साथ ले आया. सुबह बस पर बिठा दूंगा, अपनी नानी के घर मथुरा चली जाएगी.’ युवती की आंखों में शिकायत थी, गरदन की अकड़ नाराजगी दिखा रही थी. वह भी समझ रहा था और शायद स्थिति को सहज करने की गरज से बोला, ‘‘अरे, आज दोपहर से कुछ नहीं खाया, कुछ मिलेगा क्या?’’

युवती चुपचाप 2 थालियां परोस लाई और पलंग के आगे स्टूल पर रखते हुए बोली, ‘‘हाथमुंह धो कर खा लो, ज्यादा कुछ नहीं है. बस, तुम्हारे लिए ही रखा था.’’ दोपहर से तो उस ने भी कुछ नहीं खाया था किंतु इस अवांछिता से उस की भूख बिलकुल मर गई थी. घर का खाना याद हो आया, सब तो खापी कर सो गए होंगे, शायद. क्या कोई उस के लिए परेशान भी हो रहा होगा? जैसेतैसे एक रोटी निगल कर उस ने कमरे के कोने में बनी मोरी पर हाथ धो लिए और सिमट कर कमरे में पड़ी इकलौती प्लास्टिक की कुरसी पर बैठ गई.

पूनम नाम की उस युवती ने पलंग पर पड़ी चादर को झाड़ा और चादर के साथ शायद नाराजगी को भी. फिर जरा कोमल स्वर में बोली, ‘‘क्या नाम है तुम्हारा, घर क्यों छोड़ आई?’’ ‘‘जी’’ कह कर वह अचकचा गई.

‘‘नहीं बताना चाहती, कोई बात नहीं. सो जाओ, बहुत थकी होगी.’’ शायद वह उस की आंखों के भाव समझ गई थी. एक ही पलंग दुविधा उत्पन्न कर रहा था. तय हुआ महिलाएं पलंग पर सोएंगी और वह आदमी नीचे दरी बिछा कर. वे दोनों दिनभर के कामों से थके, लेटते ही सो गए थे. हलके खर्राटों की आवाजें कमरे में गूंजने लगीं. उस की आंख में तो नींद थी ही नहीं, प्रश्न ही प्रश्न थे. ऐसे प्रश्न जिन का वह उत्तर खोजती रही थी सदा.

‘‘इंसान को अपने पैर जमीन पर ही रखने चाहिए’’: बोमन ईरानी

नौर्वे के ओस्लो में आयोजित 17वें बौलीवुड फैस्टिवल में बोमन ईरानी को भारतीय सिनेमा में उत्कृष्ट योगदान के लिए सम्मानित किया गया. हालिया फिल्मों ‘मेड इन चाइना’ और ‘झलकी’ में भी उन के किरदार को सराहा गया.

बौलीवुड अभिनेता बोमन ईरानी हमेशा अपने अद्भुत प्रदर्शन और प्रतिष्ठित किरदारों के लिए पहचाने जाते हैं. मगर बहुत कम लोगों को पता होगा कि बोमन ईरानी ने अपने कैरियर की शुरुआत बतौर वेटर और फिर बतौर फोटोग्राफर की थी. जबकि वे कालेज के दिनों में थिएटर किया करते थे. फोटोग्राफी करतेकरते उन्होंने कुछ विज्ञापन फिल्में की थीं. विज्ञापन फिल्मों के ही चलते उन्हें फिल्म ‘डरना मना है’ में एक होटल मालिक का किरदार निभाने का अवसर मिल गया.

इस फिल्म के एक दृश्य को एडीटिंग रूम में देख कर बोमन को 35 वर्ष की उम्र में फिल्मकार विधु विनोद चोपड़ा ने बुला कर उन के सामने फिल्म ‘मुन्नाभाई एमबीबीएस’ में अभिनय करने का प्रस्ताव रखा था. तब से बोमन निरंतर अपनी बेहतरीन अभिनय प्रतिभा से लोगों को अपना मुरीद बनाते आए हैं.

बोमन की हाल की फिल्मों पर नजर डालें तो ऐसा लगता है जैसे वे केवल चुनिंदा फिल्में ही कर रहे हैं. अब पहले की तरह उन की फिल्में धड़ाधड़ परदे पर नहीं आ रहीं. वजह पूछने पर वे कहते हैं, ‘‘ऐसा कुछ नहीं है. मैं लगातार 15 वर्षों तक फिल्मों में अभिनय करता रहा. समय कैसे गुजर गया एहसास ही नहीं हुआ. लेकिन जब मेरे पोते का जन्म हुआ तो मु झे एहसास हुआ कि काम के चक्कर में मैं तो अपने परिवार व घर से ही अलगथलग हो गया हूं.

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‘‘मुझे पता ही नहीं चल रहा था कि मेरे परिवार व मेरे घर के अंदर क्या हो रहा है. मुझे लगा कि मैं तो बहुतकुछ खो रहा हूं. पोते के आने के साथ ही उस के साथ समय बिताने का कारण बता कर मैं ने फिल्में स्वीकार करनी कम कर दीं. दूसरा, मेरे बचपन का सपना रहा है खुद फिल्म बनाना. तो मैं ने उस पर काम शुरू किया. मैं ने खुद फिल्म की पटकथा लिखी जिस में मु झे काफी समय लगा. अब 2020 में इस पटकथा पर फिल्म का निर्माण व निर्देशन करना है. मैं ने अपनी प्रोडक्शन कंपनी ‘ईरानी मूवीटोन’ स्थापित कर ली है.’’

बोमन फिल्मों में आने से पहले फोटोग्राफर के तौर पर तमाम लोगों की तसवीरें खींच चुके थे. जिन लोगों के बोमन ने पोर्टफोलियो शूट किए थे उन में से कुछ शायद आज कलाकार बन गए होंगे? कभी उन से दोबारा मुलाकात हुई, कैसा लगा, पूछने पर वे कहते हैं, ‘‘बहुत सारे लोग मिले. बहुत सारे लोगों के मैं ने फोटोग्राफ्स खींचे हैं. बहुत सारे मिलते रहते हैं कि आप ने मेरा सैशन किया था, उस समय पर मैं ‘मिस वर्ल्ड’ व ‘मिस यूनीवर्स’ के फोटोग्राफ्स किया करता था. जब मैं फोटोग्राफर था तब मैं ने शबाना आजमी के फोटोग्राफ्स लिए थे. नसीरुद्दीन साहब के भी लिए थे. बहुत सारे कलाकारों, क्रिकेटर्स के फोटो खींचे थे. मुझे वे दिन बहुत याद आते आते हैं.’’

जब बोमन से यह सवाल किया कि आप की फोटोग्राफी का अनुभव कहीं न कहीं अभिनय में आप की मदद करता है या नहीं तो उन्होंने कहा, ‘‘जी हां, 2-4 चीजें हैं. एक तो तकनीक बहुत काम आती है. लाइटिंग, लैंस की कंपोजिंग सम झ में आती है. यदि कैमरामैन से पूछ लूं कि कौन से लैंस पर है तो उस से सम झ में आ जाता है कि उस की मैग्नीफिकेशन के हिसाब से कहां मेरी परफौर्मैंस कैसी होनी चाहिए.’’

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कभी ऐसा भी हुआ कि इस मसले को ले कर आप की किसी निर्देशक या कैमरामैन से बहस हुई हो और फिर भी वे आप की बात मानने को तैयार न हुए हों? इस पर बोमन बताते हैं, ‘‘जी नहीं. मैं कभी सलाह नहीं देता, बहस नहीं करता. यह मेरा काम नहीं है. मेरा काम अभिनय करना है, मैं उतना ही करता हूं. कभी भी अपने डिपार्टमैंट से बाहर सैट पर बात नहीं करता हूं. कभी कोई दखलंदाजी नहीं. वह उन का काम है, वह प्रोफैशनल हैं. मु झ से ज्यादा जानते हैं.’’

‘‘पारसी थिएटर ने लोगों को बहुतकुछ सिखाया है. इस के बावजूद पारसी थिएटर से निकले हुए लोग बौलीवुड में कम से कम वह मुकाम नहीं पा पाए जो पाना चाहिए था? इस प्रश्न पर थोड़ा विचारते हुए वे कहते हैं, ‘‘पहली चीज तो यह कि पारसी थिएटर में सिर्फ पारसी लोग नहीं रहे, लेकिन वहां से ही शुरुआत हुई है. मेरा मानना है कि बदलाव होना ही होना है. मैं आप को एक बात बताता हूं. मैंने अपनी प्रोडक्शन कंपनी का नाम ‘ईरानी मूवीटोन’ रखा.

‘‘जब सिनेमा की शुरुआत हुई थी उस जमाने में फिल्मों में पारसी बहुत थे. वे अपनी कंपनी के नाम के साथ ‘मूवीटोन’ जोड़ते थे. मसलन, ‘वाडिया मूवीटोन’, ‘इंपीरियल मूवीटोन’. मेरा मानना है कि रुको मत, आगे बढ़ते रहो. हमें भी समय के साथ बदलना चाहिए.’’

अपने ‘ईरानी मूवीटोन’ नामक प्रोडक्शन हाउस की पहली फिल्म, जिस की कहानी खुद बोमन ने लिखी है, के विषय में बोमन बताते हैं, ‘‘यह बायोपिक किस्म की फिल्म नहीं है. मतलब इस में रीयल जीवन की कथा नहीं है. लेकिन मैं ने अपनी जिंदगी में पिता और पुत्र के रिश्ते के कई मसले देखे हैं. बहुत सारे केस ऐसे हैं कि बाप व बेटे में प्यार बहुत होता है लेकिन उन के बीच बातें कम होती हैं. तो मैं इसी तरह के विषय पर फिल्म बना रहा हूं.’’

बोमन के बेटे कायोज ईरानी भी अभिनेता हैं. साथ ही वे निर्देशन के क्षेत्र में भी काम कर रहे हैं. अपने बेटे के साथ काम करने के विषय में बोमन का कहना है कि उन का बेटा उन्हें मौका देगा तो वे उस के साथ काम जरूर करेंगे. वे कहते हैं, ‘‘मैं मानता हूं कि मेरा बेटा अच्छा काम कर रहा है. वह करण जौहर की फिल्म ‘तख्त’ में एसोसिएट डायरैक्टर है. वह मेहनत कर रहा है. हम लोग जब शाम को घर पर मिलते हैं तो दिनभर की बातें करते हैं.’’

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निजी जिंदगी में भी बोमन मोटिवेशन, प्रेरणादयक भाषण देते रहते हैं. इस से जुड़े अपने किस्से बताते हुए वे कहते हैं, ‘‘एक बार मैं मंच संचालन कर रहा था. कंपनी के सीईओ ने मु झ से कहा कि सर,  आप मंच संचालन कर रहे हैं, आइए,मैं आप से कुछ सवाल करता हूं. उन्होंने मु झ से ‘आप इतने साल कहां थे’ जैसे कुछ सवाल पूछे. मैं खड़े रह कर उन की बातें सुन रहा था. फिर मैं ने उन्हें बताया कि पहले मैं वेटर था. फिर मैं दुकानदार था. फिर फोटोग्राफर था. फिर मैं ने थिएटर शुरू किया. इस तरह बातचीत चलती रही. फिर उन्होंने कहा कि आप की कहानी तो काफी दिलचस्प व प्रेरणादायक है. उन्होंने मु झे सलाह दी कि मु झे अपनी इस कहानी का एक घंटे का कार्यक्रम बना कर पेश करना चाहिए. उन्होंने कहा कि पहले कार्यक्रम के लिए मेरी कंपनी के लिए 4 जगह बुक कर लीजिए. तो मैं ने यह शुरू किया. हर कार्यक्रम में मैं बातें करता था, कहानी सुनाता था.

‘‘अब एक पैकेज बन गया है. अब मैं  कौर्पोरेट्स में मोटिवेशनल स्पीकिंग करता हूं. अच्छा लगता है. मैं खुद भी अपनी जिंदगी, अपनी यात्रा को याद कर के सीखता हूं. हम कहां से आए हैं, यह भूलना नहीं चाहिए. अपनी जड़ों को कभी नहीं भूलना चाहिए. इंसान को अपने दोनों पैर जमीन पर ही रखने चाहिए. यह कार्यक्रम मु झे याद दिलाता रहता है कि मैं कौन हूं और मैं कहां से आया हूं.’’

बोमन का मानना है कि अपनी आसपास की चीजों से, किरदारों से हम बहुतकुछ सीखते हैं. वे कहते हैं, ‘‘मैं तो हर चीज से सीख लेता हूं. जब मैं कहीं जाता हूं और एयरपोर्ट पर कोई पिक करने आता है, तो उस से भी बातें करने लगता हूं. मेरी यह आदत है. कई बार लोगों के जो जवाब मिलते हैं उस से मैं इंस्पायर होता हूं. दूसरों में रुचि रख कर हम काफीकुछ सीखते हैं.’’

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल : अंधविश्वास और बैगा गुनिया के संजाल में

जब घर का मुखिया ही अंधेरे में जीना चाहे उसे रोशनी की दरकार समझ न हो, तो घर के अन्य प्राणी क्या खा कर उजाला पसंद करेंगे,रोशनी चाहेगे.यही परम सत्य इन दिनों छत्तीसगढ़ में दिखाई दे रहा है. छत्तीसगढ़ के तृतीय मुख्यमंत्री के रूप में भूपेश बघेल ने प्रगतिशील सोच को दरकिनार करते हुए बारंबार रूढ़िवादिता, अंधविश्वास को बढ़ावा दिया है. और यह संदेश छत्तीसगढ़ में प्रसारित किया है की ढोंग,बैगा, गुनिया अंधविश्वास ही आम छत्तीसगढ़िया के लिए विकास का दरवाजा है.

गोवर्धन पूजा के दिन रायपुर से दुर्ग जाकर ग्राम जंजगिरी में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सुख समृद्धि के नाम पर एक बैगा के हाथों कोडे खाएं और यह संदेश दिया की आज के वैज्ञानिक युग में प्रदेश का आम छत्तीसगढ़ वासी कोड़े खाकर सुख समृद्धि प्राप्त कर सकता है. इसके लिए उसे संघर्ष करने, कर्म करने की आवश्यकता नहीं है. सिर्फ बैगा के कोडे खाओ और पाप काट लो. समृद हो जाओ. यह ढकोसला, यह नाटक बेहद शर्मनाक है. यह और भी विभस्त हो जाता है. जब लोगों को प्रेरणा देने वाली विभूतियां यह धृतकरम करने लगे.

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श्रीमान ने “चाबुक” पड़वाए !

मुख्यमंत्री के रूप में भूपेश बघेल ने जब से छत्तीसगढ़ के मुखिया की कुर्सी पर विराजमान हुए हैं. उन्होंने छत्तीसगढ़ की अस्मिता संस्कृति को बढ़ावा देने का एकमात्र लक्ष्य तय कर लिया है. और ऐसा कोई भी मौका हाथ से जाने नहीं देते, जिसमें छत्तीसगढ़ के लोगों को यह एहसास हो की डा. रमन सिंह के 15 वर्ष के कार्यकाल के बाद छत्तीसगढ़ का बेटा मुख्यमंत्री बना है जो छत्तीसगढ़ की मिट्टी में रचा बसा है इस सोच और दौड़ में वे कब अंधविश्वास, पोगापंथ के संवाहक बन जाते हैं मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को पता ही नहीं चलता. 28 अगस्त 2019 को गोवर्धन पूजा के दिन उन्होंने प्रदेश में गाय के पूजा, गोठान दिवस मनाने की घोषणा की मगर जंजगिरी ग्राम जिला दुर्ग में गौरा गौरी पूजा मे उनके हाथ पर एक बैगा चाबुक मारता रहा यह वीडियो सभी चैनलों में प्रसारित हुआ और यह बताया गया की ऐसा करने से व्यक्ति के ऊपर किसी भी तरह की आफत नहीं आती और जीवन  खुशहाल हो जाता है .

सवाल है, ऐसे करके क्या मुख्यमंत्री के रूप में संवैधानिक रूप से भूपेश बघेल प्रदेश की जनता को अंधविश्वास की अंधेरी खाई में नहीं ढकेल रहे हैं. क्या आज के समय में कोई मानेगा की चाबुक खाने से दुख दर्द दूर हो जाते हैं,आफत भाग जाती है आदमी खुशहाल हो जाता है… दरअसल, यह सब कम पढ़े लिखे लोगों के छलावे हैं. जिनमें मुख्यमंत्री जैसे गरिमामयी कुर्सी पर बैठा शख्स डूबता है तो यह संदेश दूर तलक जाता है .

बैगा गुनिया की पौ बारह

छत्तीसगढ़ में टोनही अधिनियम सख्ती से लागू है. आदिवासी प्रदेश होने के कारण ग्रामीण अंचल में महिलाओं को टोनहीं कह कर प्रताड़ित किया जाता है. जाने कितनी महिलाएं प्रतिवर्ष क्रूरता  की शिकार होती है. यहाँ  बैगा गुनिया भी ग्रामीण अंचल में लोगों का इलाज करते हैं और खतरनाक ढंग से इलाज करते करते भोले-भाले लोगों पर क्रूरता  करने लगते हैं. ऐसे जाने कितने प्रकरण सामने आते रहते हैं.ऐसे में जब प्रदेश का मुखिया मुख्यमंत्री बैगा गुनिया के हाथों स्वयं को हंसते हंसते चाबुक पड़ वायेगा, चाहे वह प्रतीकात्मक ही क्यों न हो, तो इसका असर दूर अंचल मैं क्या हो सकता है, इसकी कल्पना सहज ही लगाई जा सकती है.

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आंचलिक उपन्यासकार बाबा नागार्जुन का उपन्यास “जमनिया का बाबा” में भक्तों की पीठ पर छड़ी  सेंकने वाले बाबाओं की कहानी है जो छड़ी मारते मारते इतने तरंग में आ जाते हैं की भक्त मरणासन्न हो जाते हैं और बाबा मस्तराम को जेल की हवा खानी पड़ती है.

मुख्यमंत्री को तो बैगा ने प्रतीकात्मक चाबुक मारा, मगर जब दूरदराज इलाको में बैगाओ की चल पड़ेगी तब लोगों को मार-मार कर लाल कर देंगे. तब उसका जिम्मेदार कौन होगा ? अंधविश्वास व्यवस्था के नाम पर छत्तीसगढ़ में तेजी से फैलता ढोंग घतूरा चिंता का बड़ा  सबब है.

‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’: क्या वेदिका के शादी का राज खुलते ही, एक हो जाएंगे कार्तिक नायरा!

छोटे पर्दे का मशहूर सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में  आए दिन दर्शकों को लगातार टर्न एंड ट्विस्ट देखने को मिल रहे है. जल्द ही इस शो में एक धमाकेदार ट्विस्ट होने वाला है. जी हां, वेदिका, कार्तिक और नायरा की जिंदगी में एक नयी मोड़ आने वाली है.

हाल ही में आपने देखा कि पूरा परिवार कार्तिक और कैरव के जन्मदिन की तैयारी कर रहे हैं तो इसी बीच गोयनका परिवार के हाथ वेदिका का एक पत्र लगता है कि वो जल्दबाजी में अमेरिका के लिए निकल रही है क्योंकि उसकी आंटी की तबियत खराब है.

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हालांकि सच्चाई कुछ और है, वेदिका अपने एक्स-हसबैंड से मिलने के लिए अमेरिका जा रही है, जो उसे लगातार मैसेज भेजकर परेशान कर रहा है. वेदिका यह सच्चाई सबसे छुपाना चाहती है, खासकर कार्तिक से. क्योंकि वह कार्तिक को खोना नहीं चाहती है.

तो दूसरी तरफ कैरव अपने पिता कार्तिक से नफरत करता है. क्योंकि कैरव को लगता है कि वो उसकी मां नायरा से लड़ाई करता है. कैरव अपना जन्मदिन भी सेलीब्रेट करना नहीं चाहता है लेकिन नायरा उसे गोयनका हाउस ले आती है. कैरव गुस्से में सारा केक बर्बाद कर देता है क्योंकि उसे लगता है कि कार्तिक उसकी मां से बेहद नफरत कर देता है.

इसी दौरान कैरव घर से भाग निकलता है. इसी बीच उसका एक्सीडेंट होता है. कार्तिक और नायरा अपने बेटे को लेकर अस्पताल की ओर भागते हैं, जहां कार्तिक बुरी तरह से टूट जाता है.

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तो उधर वेदिका को कैरव के एक्सिडेंट की जानकारी मिलेगी. इस शो के इस शो के अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि इस एक्सीडेंट के बाद पूरा परिवार एकजुट हो जाएगा. इसी दौरान वेदिका की सच्चाई की जानकारी पूरे परिवार को मिलेगी. खबरों के अनुसार कार्तिक और नायरा फिर से एक बार एक हो जाएंगे.

हिमालय की गोद में

साध्वी कम नेत्री ज्यादा उमा भारती के बारे में अगले बहुत दिनों तक भी किसी को कोई खबर नहीं रहेगी क्योंकि वे हिमालय की तरफ प्रस्थान कर गई हैं. इस मिथ्या, पापी संसार और मोहमाया से कुछ दिनों तक उमा के दूर कथित एकांत में रहने के फैसले का असली मकसद क्या है, यह तो उन के पुन: प्रकट होने के बाद पता चलेगा, लेकिन अंदाजा यह लगाया जा रहा है कि वे भोले शंकर की घनघोर अल्पकालिक तपस्या कर कोई हाहाकारी वरदान ले कर ही लौटेंगी. उन के वर्तमान राम और हनुमान उन्हें पसंद नहीं करते और उन्होंने उमा भारती का ऐसे ही त्याग कर दिया है जैसे कभी पौराणिक कथा के अनुसार सीता को त्यागा गया था.

अमरिंदर बाहुबली

2014 के लोकसभा चुनाव में अमृतसर लोकसभा सीट से भाजपाई दिग्गज अरुण जेटली को मोदी लहर में धूल चटा देने वाले अमरिंदर इन दिनों कई मोरचों पर एकसाथ जू झ रहे हैं. पहले तो लंगर में जीएसटी के मुद्दे पर अपनी सियासी दुश्मन नंबर वन केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर को उन्होंने मूर्ख  कहते धूल चटाई, फिर अपनी ही पार्टी के नवजोत सिंह सिद्धू क

विवाद तकनीकी तौर पर सुल झाया और जब बारी करतारपुर कौरिडोर के उद्घाटन की आई तो उन्होंने खुद के पाकिस्तान जाने से साफ इनकार कर हाट लूट ली.

अब इस कौरिडोर का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करेंगे. इस बीच, पंजाब के भाजपाई सिख और सहयोगी आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के इस बयान से खफा हैं कि देश के सभी लोग हिंदू हैं. इस विवाद का बचपना ही पंजाब में हाहाकार मचा रहा है तो उस की जवानी तो तय है

और कहर ढाएगी, जिस का सियासी फायदा लेने से अमरिंदर चूकेंगे, ऐसा लगता नहीं.

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कल के जोगी और…

क्रिकेटर से पूर्वी दिल्ली के भाजपा सांसद बन गए गौतम गंभीर अब दिल्ली का मुख्यमंत्री बन जाने का भी ख्वाब देखते दार्शनिकों जैसे अंदाज में कहने लगे हैं कि यह एक सपना मुकम्मल होने जैसी बात होगी.

राजनीति का ककहरा पढ़ रहे इस अतिउत्साही युवा को शायद ही सम झ आए कि दिल्ली यों ही दिल्ली नहीं कही जाती, और भाजपा पूरे देश में कहीं खुद को असहज महसूस कर रही है तो वह दिल्ली ही है जहां के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की तोड़ वह नहीं ढूंढ़ पा रही.

जैसे ही दिल में दिल्ली के तख्तेताउस का खयाल आया तो गौतम को केजरीवाल के कामकाज में खामियां नजर आने लगीं और वे इन्हें गिना भी रहे हैं. लेकिन, उन के सपने के आड़े केजरीवाल की लोकप्रियता और जमीनी कामों से ज्यादा दिल्ली भारतीय जनता पार्टी अध्यक्ष के मनोज तिवारी आ रहे हैं जो इसे देखने में उन से कहीं सीनियर हैं. देखना दिलचस्प होगा कि दिल्ली की सियासी पिच पर गौतम कितने टिक पाएंगे.

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डायपर में हिंदी

दक्षिणी राज्यों में हिंदी की स्थिति समोसे सरीखी ही है जो बड़े शहरों में मिल तो जाता है लेकिन उस का स्वाद उत्तर भारत सा नहीं होता. जैसे ही अमित शाह ने ‘एक देश, एक भाषा’ का फ्लौप राग अलापा तो अभिनेता से नेता बनने की प्रक्रिया से गुजर रहे नवोदित पार्टी मक्कल निधि माइम के मुखिया कमल हासन सब से पहले भड़क कर बाजी मार ले गए, जिन की नजर में हिंदी डायपर में छोटा बच्चा है.

यह मानव कल्पना से परे तुलना है जिस का मकसद और मैसेज यह है कि दक्षिण में भाजपा का हिंदुत्व नहीं चलने वाला और भाषा के संवेदनशील मसले पर रजनीकांत और कमल हासन सरीखे नेता एनटीआर, एमजीआर और करुणानिधि वगैरह के डिजिटल संस्करण हैं.

दलितों और गरीबों की राजनीति कर रहे कमल हासन तय है कि वे हिंदी थोपने की भाजपाई मंशा को चुनावी मुद्दा बनाएंगे. भले ही फिर पूरी भाजपा लुंगी पहन कर खुद को साउथ इंडियन दिखाने का टोटका आजमा ले, वहां के वोटर का ध्यान तेजी से लोकप्रिय हो रहे कमल हासन से हटाना उस के लिए टेढ़ी खीर ही साबित होगा.

मूर्ति विसर्जन आडंबर से दूषित नदियां

3अक्तूबर, 2019 को राजस्थान के धौलपुर जिले में दुर्गा मूर्ति विसर्जन के दौरान पार्वती नदी में उतरे 10 लोगों की मौत हो गई. इस से पहले 4 सितंबर को गुजरात के अरावली जिले में गणेश मूर्ति विसर्जन के समय 6 लोगों की अकस्मात मृत्यु हो गई थी. वहीं 13 सितंबर को मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में खटलापुरा घाट पर गणेश विजर्सन के दौरान 12 लोगों की मौत हो गई. यह तो बानगीभर है. हर वर्ष इस तरह की घटनाएं घटती हैं और लोग अपनी गलती से बेवजह मौत के मुंह में समा जाते हैं.

लोगों की जान जाने के साथसाथ प्रतिमाओं के विसर्जन से नदियों में प्रदूषण का खतरा लगातार बढ़ रहा है. हालांकि इस बार केंद्र सरकार और राज्य सरकारों ने नदियों में मूर्ति विसर्जन करने पर रोक लगाने के साथसाथ जुर्माने का भी आदेश दिया था पर आस्था के आगे लोग सुनते कहां हैं. कहींकहीं सख्ती की गई तो इस बार लोग मूर्ति विसर्जन नदियों पर नहीं कर पाए, पर ऐसा सब जगह नहीं हुआ.

यह कोरा सच है कि धर्म व आस्था के नाम पर उत्सव कर के न केवल नदियों के जल को प्रदूषित कर जहरीला किया जा रहा है बल्कि जलीय जीवों की जान भी खतरे में डाली जा रही है.

आडंबरों की ही देन है कि देश की कई नदियों का जल प्रदूषित होने के साथ उन की तलहटी तक जहरीली हो गई है. धर्म के ठेकेदारों के मुनाफे वाले चक्र से संचालित आस्था के आडंबर में लोगों के उल झने से देश के हर कोने में छोटीबड़ी नदियां मानवजनित प्रदूषण से छटपटा रही हैं. नदियों के संरक्षण के शोर और नियमकानून के बीच उन के अस्तित्व पर ही संकट मंडरा रहा है. एक तरह से नदियों को प्रदूषण फैलाने व पाप धोने का जैसे रजिस्टर्ड केंद्र बना दिया गया है.

कई अवसरों पर मूर्तियों को नदियों में विसर्जित करने की परंपरा है. पर्यावरण व सामाजिक दृष्टि से इस का कोई लाभ नहीं है, लेकिन धर्म के नाम पर ऐसा किया जाता है. कभी गणेशोत्सव, कभी दुर्गा, कभी काली, कभी विश्वकर्मा, तो कभी अन्य आडंबर कर के कैमिकलयुक्त मूर्तियों को नदियों में डाल दिया जाता है.

ऐसे आयोजनों पर रासायनिक रंगों, प्लास्टर औफ पेरिस व लोहे से बनाई गई प्रतिमाएं जल में गंभीर रूप से प्रदूषण का कारण बनती हैं. ये प्राकृतिक नहीं होतीं.

राष्ट्रीय हरित पंचाट (नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल-एनजीटी) प्रदूषण पर सख्त है और अल्टीमेटम देता रहता है.

विजर्सन के आयोजनों से लगता है कि जैसे धर्म की आड़ में नदियों को प्रदूषित करने का ठेका उठा लिया गया है. एक तरफ नदियों को पूजने का ढोंग किया जाता है, दूसरी तरफ उस के अमृतरूपी जल में जहर घोला जाता है.

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देश की अनेक नदियां सफाई के लिए छटपटा रही हैं, लेकिन ताल ठोक कर यह जिम्मेदारी लेने वाला कोई नहीं है कि उन की यह हालत आखिर हो क्यों रही है. पंडेपुजारियों द्वारा प्रचार किया जाता है कि गंगा में स्नान करने से पाप धुल जाते हैं. सारे पाप कीजिए, गंगा में डुबकी लगाते ही सब साफ हो जाएंगे. पुरानी फूलमालाएं, नारियल, कपड़े व राख आदि कुछ भी लीजिए और डाल दीजिए.

वैज्ञानिक दीपक शर्मा कहते हैं, ‘‘यह क्या जरूरी है कि धर्म का दिखावा आप नदियों में जा कर ही करें, एक तरफ नदियों को जीवनदायिनी कहा जाता है, दूसरी तरफ तरहतरह के आयोजनों से उन्हें प्रदूषित भी कर दिया जाता है. यह सोचना चाहिए कि हम नदियों को दे क्या रहे हैं. नदियों का अस्तित्व प्रकृति के संतुलन के लिए भी जरूरी है.’’

नदियों में बढ़ते प्रदूषण पर जलपुरुष राजेंद्र सिंह कहते हैं, ‘‘सभी को जागरूक हो कर काम करना चाहिए. नदियां नहीं बचेंगी तो हमारा वजूद खत्म हो जाएगा. नदियों को प्रदूषण से बचाने के अलावा उन के मूलस्वरूप से कोई छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिए.’’

सभी तरह के प्रदूषण मानव स्वास्थ्य को सीधे प्रभावित करते हैं. जलीय प्रदूषण जीवों के लिए बड़ा खतरा है. विसर्जन से एसिड व खनिज तत्त्वों की मात्रा जल में तेजी से बढ़ जाती है. इस प्रदूषण से घडि़याल, मछलियां, कछुए, डौल्फिन जैसे जीवों पर भी खतरा मंडरा रहा है. लाखों जीवों की मौत हो जाती है. बैक्टीरिया व कैमिकल की मात्रा बढ़ने से औक्सीजन कम हो जाती है. नतीजतन, जीवों की मौत हो जाती है. नदियों को साफसुथरा बनाने की कवायद में धार्मिक आडंबर आड़े आ रहे हैं. नदियों से ज्यादा फिक्र उन दुकानदारों की है जो इन के बहानों से आबाद हैं.

इस तरह होती हैं समस्याएं

प्लास्टर औफ पेरिस की मूर्तियां पानी में नहीं घुलतीं. वे महीनोंसालों एक ही अवस्था में रहती हैं, जो खतरनाक है.

ऐसी मूर्तियां पानी में औक्सीजन को कम कर देती हैं जिस के चलते जलीय जीवों की मौत हो जाती है.

मूर्तियों पर कैमिकल पेंट का इस्तेमाल किया जाता है. लेड से परिपूर्ण ये रंग पानी में घुल कर खतरा पैदा करते हैं.

मूर्तियां डालने से पानी में एसिड की मात्रा बढ़ जाती है.

सीमेंट की बनी मूर्तियां पानी को प्रदूषित करती हैं.

मूर्तियों पर इस्तेमाल होने वाले रंगबिरंगे कपड़े, प्लास्टिक के फूल, सामान, कपूर, धूप व अन्य सामग्री भी पानी को प्रदूषित करते हैं.

विसर्जन से पानी में भारी खनिज तत्त्वों लोहा, तांबा आदि की मात्रा 300 प्रतिशत तक बढ़ जाती है.

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नदियों में बढ़ा दोगुना प्रदूषण

कुछ सालों में नदियों को बचाने के लिए कई अभियान चले. बावजूद इस के 5 सालों में देश में प्रदूषित नदियों की संख्या दोगुनी हो गई. सीवेज, औद्योगिक व मानवजनित प्रदूषण नदियों में बजाय घटने के तेजी से बढ़ रहे हैं. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक 351 नदियां प्रदूषित हैं. जिन में 45 नदियां अत्यधिक प्रदूषित हैं.

देश में 12,363 किलोमीटर नदी क्षेत्र प्रदूषित हैं. यों तो जल प्रदूषण नियंत्रण और रोकथाम कानून 1974 की धारा 24 के तहत प्रदूषित पदार्थों को नहीं बहाया जा सकता, लेकिन इस कानून का पालन कभी नहीं होता. प्रदूषण का स्तर मानक से कई गुना बढ़ा है. प्रदूषण का आलम यह है कि प्रमुख नदी गंगा की तलहटी तक जहरीली हो चुकी है. पर्यावरण विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी केंद्र, बीएचयू द्वारा गंगा की गाद की जांच की गई, तो उस में आयरन, लेड (सीसा), क्रोमियम, कौपर, जिंक, कैडमियम, निकल और मैगनीज जैसी धातुएं अपना घर बना चुकी हैं.

जीजा पर भारी ब्लैकमेलर साली: भाग 2

भाग 2

रविवार या अन्य छुट्टियों में वह अपना दिन बिताने अकसर बहन शोभा के घर उज्जैन आ जाती थी. जितेंद्र के साथ उस का हंसीमजाक का रिश्ता था, सो खुले विचारों वाली अपनी इस साली से जितेंद्र की जल्द ही काफी अच्छी बनने लगी.

अदिति शर्मा के बयानों को सच मानें तो जितेंद्र मौका मिलने पर उस के साथ छेड़छाड़ कर लेता था. अदिति शर्मा उस की इस छेड़छाड़ का बुरा नहीं मानती थी, इसलिए जितेंद्र की हिम्मत बढ़ने लगी थी. अदिति शर्मा ने बताया कि 2018 में जीजू एक रोज उस के घर देवास आ धमके. उन्हें देवास में कुछ काम था. उस रोज जीजू ने जानबूझ कर देर कर दी और फिर लेट हो जाने का बहाना बना कर रात में मेरे घर पर रुक गए.

अदिति शर्मा के अनुसार, ‘देर रात तक हम दोनों बात करते रहे, उस के बाद मुझे नींद आने लगी और मैं सो गई. कुछ देर बाद मुझे अपने शरीर पर किसी के हाथों का स्पर्श महसूस हुआ. मैं ने आंखें खोल कर देखा तो जितेंद्र मेरे शरीर से छेड़खानी कर रहे थे.

‘मैं उठ कर बैठ गई और उन की इस हरकत के लिए नाराजगी व्यक्त की. लेकिन वह नहीं माने और उस रात उन्होंने जबरन मेरे साथ संबंध बना लिए. इस के बाद वह अकसर देवास आ कर मेरे साथ मौजमस्ती करते थे और लौट जाते थे.’

अदिति शर्मा ने माना कि कुछ समय पहले उस की नौकरी छूट गई थी, जिस से वह आर्थिक परेशानी में आ गई थी. इस के चलते उस ने जितेंद्र जीजू से कुछ पैसा उधार लिया था लेकिन बाद में वापस लौटा दिया था.

जबकि जितेंद्र के सुसाइड नोट के अनुसार अदिति शर्मा अकसर उसे खुला आमंत्रण देती रहती थी. लेकिन उस ने कभी गौर नहीं किया. बाद में एक दिन देवास में देर हो जाने के कारण उसे रात में अदिति शर्मा के घर पर रुकना पड़ा.

घर में दोनों अकेले थे, सो ऐसे में अदिति शर्मा रात में खुद चल कर उस के बिस्तर में घुस आई और उस से बुरी तरह लिपट कर प्यार करने लगी. अदिति शर्मा की पहल पर उस रात उस के और अदिति शर्मा के बीच शारीरिक संबंध बन गए थे.

इस घटना के बाद जितेंद्र अपराधबोध से ग्रस्त हो गया था. उस ने अदिति शर्मा से फिर कभी अकेले में न मिलने की कसम भी खा ली थी. लेकिन अदिति शर्मा ने खुद आगे बढ़ कर उसे अपने साथ फिजिकल होने को उकसाया था, इस का खुलासा कुछ दिन बाद तब हुआ, जब अदिति शर्मा ने जरूरत बता कर उस के सामने कुछ पैसों की मांग की. जितेंद्र ने उसे पैसे दे दिए तो वह आए दिन कभी 2 हजार तो कभी 5 हजार तो कभी 10 हजार रुपयों की मांग करने लगी.

वह बिना सोचेसमझे उस की मदद करता रहा, लेकिन जब अदिति शर्मा लगातार उस से ज्यादा रकम मांगने लगी तो उस ने पैसे न होने का बहाना बनाना शुरू कर दिया. जिस पर एकदो बार तो अदिति शर्मा ने कुछ नहीं कहा लेकिन एक दिन जब जितेंद्र ने उसे पैसे देने से मना किया तो वह धमकी देने लगी. उस ने कहा कि अगर उस की बात नहीं मानी तो वह सारी बात शोभा दीदी को बता देगी.

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उस दिन के बाद तो अदिति शर्मा जितेंद्र को सीधेसीधे धमका कर पैसों की मांग करने लगी. अदिति शर्मा को लगातार पैसा देने के कारण जितेंद्र की आर्थिक स्थिति भी बिगड़ने लगी थी, जिस से वह परेशान रहता था. जितेंद्र सोचता था कि कुछ दिनों बाद अदिति शर्मा की शादी हो जाएगी तो सब ठीक हो जाएगा.

लेकिन अदिति शर्मा शादी करने को तैयार नहीं थी. बताते हैं कि एक बार जितेंद्र ने उसे शादी कर लेने की सलाह दी तो अदिति शर्मा ने उस से कहा, ‘‘लड़की 2 जरूरतों के लिए शादी करती है. पहली जरूरत तन की भूख मिटाने की और दूसरी पेट की भूख मिटाने की. इन दोनों जरूरतों के लिए तुम हो तो मैं शादी की बेड़ी पहन कर किसी की गुलाम क्यों बनूं.’’

इस से जितेंद्र समझ गया कि अदिति शर्मा से आसानी से छुटकारा नहीं मिलेगा.

जितेंद्र काफी परेशान रहने लगा था. यह देख कर जब उस की पत्नी ने उस से बारबार पूछा तो घटना से एक दिन पहले उस ने अदिति शर्मा के साथ भूलवश शारीरिक संबंध बन जाने और उस के ब्लैकमेल करने की बात पत्नी और पिता को बता दी थी. दोनों ने ही उसे पुरानी बातें भूल कर नए सिरे से जीवन शुरू करने की सलाह दी थी.

जितेंद्र के पिता और पत्नी को इस बात का जरा भी अहसास नहीं था कि वह यह बात अपना मन हलका करने के लिए नहीं बल्कि आत्महत्या करने से पहले अपनी गलती स्वीकार करने की गरज से बता रहा था.

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उस की पत्नी और पिता दोनों का आरोप है कि उन्हें कहानी सुनाने के बाद जितेंद्र का मन हलका हो गया था. संभवत: इस के बाद उस ने अदिति शर्मा की बात मानने से इनकार किया होगा, जिस के बाद अदिति शर्मा ने उसे बदनाम करने की धमकी दी होगी, जिस से डर कर उस ने आत्महत्या कर ली.

सौजन्य: मनोहर कहानियां

 जमीन में यकीन, यकीन में धन

कृषि मेले की शुरुआत में सब्जियों की खेती में नैशनल लैवल पर पहचान बना चुके ‘पद्मश्री’ जगदीश प्रसाद पारीक ने किसानों के साथ अपने अनुभव साझा किए. साथ ही, आयुष मंत्रालय, भारत सरकार के राष्ट्रीय औषध पादप मंडल के सदस्य और जड़ीबूटियों की खेती के राष्ट्रीय सितारे राकेश चौधरी ने किसानों को संबोधित करते हुए खरपतवार को खरपतवार न समझते हुए उसे आमदनी में इजाफा करने का जरीया बनाने की बात कही.

उन्होंने कहा कि किसान खेत में उगी वनस्पतियों को पहचान कर उन्हें फार्मेसियों को मुहैया कराएं. खेत में अपनेआप उग रही वनस्पतियों को खरपतवार समझ कर उखाड़ने के बजाय उन के बारे में जानकारी ले कर उन्हें बेचा जाए. दरअसल, यह खरपतवार नहीं जंगली बूटियां हैं.

कैलाश चौधरी, कृषि एवं किसान कल्याण राज्यमंत्री

जोधपुर : भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान द्वारा किसान मेला और कृषि नवाचार दिवस (किसान वैज्ञानिक संगोष्ठी) का पिछले दिनों आयोजन किया गया. इस का उद्घाटन कृषि एवं किसान कल्याण राज्यमंत्री, भारत सरकार, कैलाश चौधरी ने किया.

उन्होंने किसानों को संबोधित करते हुए कहा कि राजस्थान में बाजरा फसल का उत्पादन क्षेत्र बहुत बड़ा है. बाजरे के उत्पादों बिसकुट, केक, ओट्स वगैरह बना कर किसान ज्यादा से ज्यादा आमदनी हासिल कर सकते हैं. बाजरे के मूल्य संवर्द्धन में किसानों के लिए अभी भी काफी संभावनाएं हैं.

काजरी द्वारा तैयार किया गया बाजरे के केक को काटते हुए उन्होंने कहा कि इस केक को बनाने में मुश्किल से एक किलोग्राम आटा लगा होगा और इस की कीमत 1,000 रुपए है, क्या यह समझने के लिए काफी नहीं है कि प्रोसैसिंग से किस तरह से किसान अपनी आमदनी में इजाफा कर सकते हैं.

राजस्थान में अनेक तरह के बहुमूल्य औषधीय महत्त्व के पेड़पौधे खेजड़ी, नीम, आक, तुंबा, ग्वारपाठा वगैरह हैं. जिन की मार्केट की जानकारी हासिल कर तमाम चीजें बना कर बेचने से आमदनी बढ़ाई जा सकती है.

कटाई के तुरंत बाद फल, सब्जियों के उत्पाद का पूरा उपयोग करने के लिए प्रोसैसिंग यूनिट लगाएं, जिस से आमदनी में बढ़ोतरी हो.

जब यहां के उत्पाद देश के बडे़बड़े बाजारों और विदेशों में निर्यात होने लग जाएंगे तो आमदनी को बढ़ने से कौन रोक सकता है.

किसान की आमदनी दोगुनी हो, इस के लिए किसानों को प्रचुर मात्रा में उन्नत बीज मुहैया कराए जाने की व्यवस्था की जाएगी.

कृषि शोध द्वारा खेती में लागत को कम करने के लिए तमाम प्रयास जारी हैं. फसल भंडारण की व्यवस्था को मजबूत करने की दिशा में तेजी से काम चल रहा है. किसानों को मार्केट उपलब्ध करवाया जा रहा है, ताकि किसानों को उन की मेहनत का पूरा फायदे मिले.

किसानों की भलाई के लिए चलाई जा रही किसान उत्पादन संघ (एफपीओ), प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना, प्रधानमंत्री मानधन योजनाओं के बारे में तमाम तरह की जानकारी देते हुए उन्होंने किसानों को इन योजनाओं से जुड़ कर फायदा लेने के लिए आगे आने का आह्वान किया.

कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि जेडीए के पूर्व अध्यक्ष प्रोफैसर महेंद्र सिंह राठौड़ ने कहा कि मरुस्थल में खेतीकिसानी के विकास में काजरी का खासा योगदान है.

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वहीं दूसरी ओर भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद यानी आईसीएआर के सहायक महानिदेशक डाक्टर एसपी किमोथी ने इस बात पर जोर देते हुए कहा कि नवीनतम तकनीकियों को किसानों तक पहुंचाने के लिए कृषि विज्ञान केंद्र और अटारी द्वारा विस्तार गतिविधियां, तकनीकी हस्तांतरण कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं.

काजरी के निदेशक डाक्टर ओपी यादव ने वहां मौजूद अतिथियों का स्वागत करते हुए संस्थान की शोध परियोजनाओं और उपलब्धियों की जानकारी दी.

पंतनगर में संपन्न हुआ अखिल भारतीय किसान मेला

देहरादून : पिछले दिनों पंतनगर में 4 दिवसीय अखिल भारतीय किसान मेले का शुभारंभ हुआ. 27 सितंबर से 30 सितंबर, 2019 तक चलने वाले किसान मेले का उद्घाटन प्रगतिशील किसान रेखा भंडारी ने किया. वे पिथौरागढ़ जिले की रहने वाली हैं. उन्हें प्रधानमंत्री वाईब्रैंट गुजरात ग्लोबल एग्रीकल्चर समिट में श्रेष्ठ किसान पुरस्कार से सम्मानित कर चुके हैं.

रेखा भंडारी कई स्वयंसहायता समूहों से भी जुड़ी हुई?हैं. साल 2016 में उन्हें नेपाल में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर अतिथि व्याख्यान के लिए आमंत्रित किया जा चुका है.

किसान मेले का उद्घाटन गांधी मैदान में सुबह 11 बजे किया गया. गोविंद वल्लभ पंत कृषि विश्वविद्यालय, पंतनगर के कुलपति डाक्टर तेज प्रताप और निदेशक प्रसार शिक्षा डाक्टर पीएन सिंह ने मेले में लगे विभिन्न महाविद्यालयों और अन्य संस्थाओं के स्टालों का भ्रमण किया.

मेले में विवि के विभिन्न महाविद्यालयों, शोध केंद्रों और कृषि विज्ञान केंद्रों, राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्यातिप्राप्त विभिन्न फर्मों की ओर से अपनेअपने उत्पादों और तकनीकों का प्रदर्शन किया गया.

मेले में विभिन्न फार्म के ट्रैक्टर, कंबाइन हार्वैस्टर, पावर टिलर, पावर वीडर, प्लांटर, सबस्वायलर, सिंचाई यंत्रों और अन्य आधुनिक कृषि यंत्रों का प्रदर्शन कर वहां आने वाले लोगों और किसानों को उन के बारे में जानकारी दी गई.

विवि की ओर से उत्पादित रबी की विभिन्न फसलों के साथ ही सब्जियों, फूलों, औषधीय फलों वगैरह के पौधों और बीजों की बिक्री के लिए भी स्टाल लगे.

गांव में जाति भेदभाव

‘फार्म एन फूड’ पत्रिका के 16 सितंबर, 2019 अंक के संपादकीय में सही लिखा है कि हिंदू वर्ण व्यवस्था में निचलों का पैसा लूटा गया है और उन्हें अपने बराबर नहीं समझा गया है. गांवदेहात में भी यही सब देखने को मिलता है.

यह बात एकदम सही है कि 1947 के बाद भूमि सुधार कानूनों की वजह से बहुत से किसानों के पास वे जमीनें आ गईं जो पहले ऊंची जातियों के पास हुआ करती थीं. शिक्षा के मामले में भी ओबीसी आरक्षण का विरोध सवर्णों ने किया था तो इसलिए कि वे नहीं चाहते थे कि मंडल आयोग के जरीए कल तक दास और सेवक बने पर समझदार थोड़ी हैसियत वाले लोग बराबरी की जगह लेने लगें.

इस के अलावा लेख ‘कृषि यंत्र अनुदान से किसानों को फायदा’ जानकारी से भरा लगा.

कमाल की जानकारी

‘फार्म एन फूड’ पत्रिका के 16 सितंबर, 2019 अंक में छपा लेख ‘कृषि यंत्र अनुदान से किसानों को फायदा’ जानकारी से भरा लगा.

बहुत से किसान तो यह भी नहीं जानते होंगे कि सरकार कृषि यंत्रों पर अनुदान भी देती?है. चूंकि ऐसे यंत्र महंगे होते हैं और उन्हें बहुत से किसान अपने दम पर नहीं खरीद पाते हैं तो इस तरह के अनुदान उन की काफी मदद करते हैं.

महेंद्र सिंह, जयपुर

सौंफ है फायदेमंद

‘फार्म एन फूड’ पत्रिका के 16 सितंबर, 2019 अंक में छपे ज्यादातर लेख जानकारी भरे लगे. इस अंक में छपा लेख ‘औषधीय फसल सौंफ’ काफी जानकारी से भरा लगा.

सौंफ की खेती भारत के बहुत से राज्यों में होती है लेकिन किसान इसे उपजाने का रिस्क नहीं लेते?हैं. अगर वे वैज्ञानिक तरीके से सौंफ की खेती करें तो उन्हें यकीनन फायदा होगा और उन की मिट्टी भी उपजाऊ बनी रहेगी.

रामेश्वर मिश्रा, मुजफ्फरपुर

खेती की दशा

‘फार्म एन फूड’ पत्रिका के 16 सितंबर, 2019 में छपा लेख ‘गिरती अर्थव्यवस्था के दौर में खेती की दशा’ में आंखें खोलने वाली जानकारी मिली. सच बात तो यह है कि किसान किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती देने में अहम होते?हैं लेकिन इस के बावजूद भारत जैसे बड़े देश में खेती के बारे में बहुत ज्यादा ठोस कदम नहीं उठाए जाते?हैं. बहुत सी योजनाएं बनती?हैं, लेकिन वे कागज पर ही रह जाती?हैं. अगर इन पर गंभीरता से विचार हो तो अर्थव्यवस्था पर काबू पाया जा सकता?है.

‘कुछ कहती हैं तसवीरें’ में फ्रांस में शैवाल की खेती के बारे में जान कर हैरानी हुई कि काई जैसे दिखने वाले शैवाल में इतने ज्यादा गुण होते?हैं और उन से सुपरफूड बनाया जा रहा है.

आदेश कुमार, हापुड़ 

सेमिनार

धान उत्पादन पर दिया गया प्रशिक्षण

मेरठ : सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, मेरठ और अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान संस्थान फिलीपींस के दक्षिण एशिया क्षेत्रीय कार्यालय, वाराणसी के सहयोग से कृषि महाविद्यालय के सभागार में 3 दिवसीय प्रशिक्षण का शुभारंभ कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफैसर आरके मित्तल और अंतर्राष्ट्रीय धान अनुसंधान संस्थान फिलीपींस के दक्षिण एशिया क्षेत्रीय कार्यालय के निदेशक डाक्टर अरविंद कुमार द्वारा किया गया.

इस मौके पर किसानों को संबोधित करते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफैसर आरके मित्तल ने कहा कि विश्वविद्यालय का प्रयास है कि कृषि विज्ञान केंद्रों और विश्वविद्यालय के माध्यम से किसानों को तकनीकी जानकारी का आदानप्रदान किया जाए जिस से उन की आमदनी में बढ़ोतरी हो सके.

कुलपति प्रोफैसर आरके मित्तल ने कहा कि देश की आबादी तकरीबन 1.35 मिलियन तक पहुंच गई?है, लेकिन उसी अनुपात में भारत का खाद्यान्न उत्पादन महज 85 मिलियन तक ही पहुंच पाया है.

उन्होंने कहा कि धान की 35 प्रजातियां तो ऐसी हैं जो पोषण से भरपूर हैं, वहीं 5 प्रजातियां ऐसी?भी हैं, जिन में प्रोटीन और जिंक प्रचुर मात्रा में पाया जाता है.

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कुलपति प्रोफैसर आरके मित्तल ने जानकारी देते हुए कहा कि विश्वविद्यालय ने अभी हाल ही में नगीना बासमती धान की प्रजाति विकसित की?है जो किसानों के बीच जल्दी ही पहुंचेगी.

उन्होंने बताया कि धान की फसल में पानी भी अधिक लगता है, जिस से पानी का लैवल लगातार गिर रहा है. साथ ही,मिट्टी संरक्षण और मिट्टी विखंडन एक बड़ी समस्या?है, इस से निबटना होगा.

वैसे तो धान की विभिन्न प्रकार की प्रजातियां हैं जिन को किसान अपने खेत में उगा सकते हैं. इस के अलावा संकर धान को भी बढ़ावा दिया जाना चाहिए.

उन्होंने कहा कि ऐसे शोध की जरूरत है जिस में कम मीथेन उत्सर्जन यानी छोड़ने की तकनीक और कम पानी में उगने वाली प्रजातियों को विकसित किया जा सके.

डाक्टर अरविंद कुमार, अंतर्राष्ट्रीय धान अनुसंधान फिलीपींस के क्षेत्रीय निदेशक ने अपने संबोधन में कहा कि आने वाले समय में भारत में गिरता भूजल लैवल भी चिंता का विषय है. किसानों को कम पानी में उगने वाली प्रजातियों का चयन करना चाहिए जिस से पानी की बचत होगी और उत्पादन भी अच्छा मिल सकेगा.

उन्होंने आगे बताया कि कुपोषण से बचने के लिए भी भारत सरकार तमाम तरह के काम कर रही?है. इस के लिए बायोफोर्टिफाइड फूड वितरण की व्यवस्था की जा रही है.

निदेशक डाक्टर एस. पवार ने कहा कि किसानों की लागत बढ़ रही है और आमदनी कम हो रही?है, इसलिए किसानों को ऐसी खेती करने पर जोर देना होगा जिस में कम लागत और अधिक उत्पादन हो.

उन्होंने आगे कहा कि देश में वैज्ञानिक और किसानों के सहयोग से हरित क्रांति आई और उस के परिणामस्वरूप आज हम जनता को भरपूर भोजन दे पा रहे हैं.

प्रशिक्षण में आए आगंतुकों का स्वागत अधिष्ठाता कृषि प्रशासन से डाक्टर एसके सचान और उद्घाटन सत्र का संचालन कार्यक्रम समन्वयक प्रोफैसर रामजी सिंह द्वारा किया गया.            ठ्ठ

कार्यशाला

केवीके की कार्यशाला हुई आयोजित

नई दिल्ली : केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण राज्यमंत्री कैलाश चौधरी ने पिछले दिनों राष्ट्रीय कृषि विज्ञान केंद्र परिसर में आयोजित ‘सी’ और ‘डी’ श्रेणियों के तहत और कुछ ‘बी’ श्रेणियों के अंतर्गत आने वाले कृषि विज्ञान केंद्रों की एकदिवसीय समीक्षा कार्यशाला का उद्घाटन किया.

उन्होंने ‘सी’ व ‘डी’ श्रेणियों के तहत आने वाले केवीके से कड़ी मेहनत करने का आग्रह किया. अगले मूल्यांकन में ‘ए’ श्रेणी को लक्षित करने के लिए उन्होंने केवीके को प्रोत्साहित किया.

उन्होंने किसान उत्पादक संगठनों यानी एफपीओ के तकनीकी बैकस्टौपिंग और विभिन्न कृषि उपज के विपणन में केवीके की भूमिका पर भी जोर दिया.

उन्होंने साल 2022 तक किसानों की आमदनी को दोगुना करने और देश के किसानों में विश्वास पैदा करने के लिए केवीके क्षमता पर जोर दिया और केवीके से आग्रह किया कि वे अपनी बुनियादी सुविधाओं के बारे में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अधिकारियों को सूचित करें.

डा. त्रिलोचन महापात्र, महानिदेशक (भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद) और सचिव (कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग) ने हालिया कार्यक्रमों जैसे कृषि कल्याण अभियान, जल शक्ति अभियान, राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम और वृक्षारोपण कार्यक्रम वगैरह में केवीके की सक्रिय भागीदारी के बारे में बताया.

डा. त्रिलोचन महापात्र ने केवीके खासकर ‘सी’ और ‘डी’ श्रेणियों के तहत आने वाले केवीके को मजबूत करने के लिए रणनीतियों को विकसित करने पर जोर दिया.

डा. वीपी चहल, अतिरिक्त महानिदेशक, (कृषि विस्तार), भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने कार्यशाला की सिफारिशों को पेश किया.

वहीं दूसरी ओर डा. रणधीर सिंह, अतिरिक्त महानिदेशक (कृषि विस्तार) ने आभार जताया. कार्यशाला में 63 केवीके के प्रमुखों के साथ भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद और राज्य कृषि विश्वविद्यालयों के वरिष्ठ अधिकारियों ने भाग लिया.

उपलब्धि

चने की 2 बेहतर किस्मों का हुआ विमोचन

नई दिल्ली : भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान अखिल भारतीय समन्वित चना अनुसंधान परियोजना ने बिरसा कृषि विश्वविद्यालय, रांची (झारखंड) में आयोजित 24वें वार्षिक समूह बैठक में जीनोमिक्स की सहायता से विकसित चना की 2 बेहतर किस्मों ‘पूसा चिकपी 10216’ और ‘सुपर एनेगरी 1’ को जारी किया है.

डाक्टर त्रिलोचन महापात्र, महानिदेशक (भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद) और सचिव (कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग) ने कहा कि यह भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद संस्थानों, राज्य कृषि विश्वविद्यालयों और इक्रिसैट जैसे अंतर्राष्ट्रीय संगठन के सहयोग की सफलता की कहानी?है.

उन्होंने कहा कि प्रजनन में इस तरह के जीनोमिक्स हस्तक्षेप से जलवायु परिवर्तन से प्रेरित विभिन्न प्रकार के तनावों से पार पाते हुए चना जैसे दलहनी फसलों की उत्पादकता में वांछित बढ़ोतरी होगी.

महानिदेशक ने अन्य फसलों में 24 नई उच्च पैदावार वाली किस्मों के प्रजनन के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा नई कार्यनीति पर प्रौद्योगिकी के बारे में विस्तार से बताया.

उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में इसी रणनीति से चना में नई उच्च पैदावार देने वाली किस्मों के विकास पर ध्यान केंद्रित करने से देश में दलहन उत्पादन और उत्पादकता में बढ़ोतरी की उम्मीद है.

डा. पीटर कारबेरी, महानिदेशक, इक्रिसैट ने चना के उन्नत किस्मों के रूप में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय, रायचूर और इक्रिसैट के सहयोग को  देख आभार व्यक्त किया. उन्होंने कहा कि इक्रिसैट के सहयोगी प्रयासों से न केवल भारत में, बल्कि उपसहारा अफ्रीका में भी छोटे किसानों को फायदा होगा.

मुहिम

छात्रों के लिए जल शक्ति अभियान

चेन्नई : भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद केंद्रीय खारा जल जीवपालन अनुसंधान संस्थान, चेन्नई के साथ मिल कर कृषि विज्ञान केंद्र, कांचीपुरम, तमिलनाडु ने 5 सितंबर और 10 सितंबर, 2019 को उच्च विद्यालय के छात्रों के लिए बाहरी (आउटरीच) गतिविधियों का आयोजन किया.

इस अभियान के एक भाग के रूप में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद सिबा और कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों ने 5 सितंबर, 2019 को चेन्नई हाईस्कूल, मायलापुर के छात्रों के साथ आयोजन किया.

वहीं दूसरी ओर 10 सितंबर, 2019 को टोंडियारपेट में मुरुगा धनुसकोडी गर्ल्स हायर सैकेंडरी स्कूल के छात्रों के लिए निबंध लेखन, अभिरुचि प्रतियोगिता और श्रव्यदृश्य प्रस्तुतियों का बेहतरीन तरीके से आयोजन किया गया.

इस के अलावा वहां मौजूद छात्रों को जल संसाधनों की कमी के बारे में विस्तार से बताया गया. इतना ही नहीं, जल प्रदूषण से होने वाली तमाम बीमारियां और इस के प्रभाव के बारे में विस्तार से बताया गया. साथ ही, वनरोपण, वर्षा जल संचयन यानी बरसात के पानी को जमा करना, संरक्षण और पानी के कुशल उपयोग के महत्त्व पर विस्तार से जानकारी दी गई.

इस मौके पर वहां मौजूद रहे छात्रों को जल संरक्षण का संकल्प भी दिलाया गया. इस अभियान में 1500 से भी अधिक स्कूली छात्रों ने भाग लिया.

जानकारी

विदेश में खेती का पाठ पढ़ने जाएंगे छात्र

कानपुर : खेतीकिसानी के बदलते तौरतरीकों को सीखने के लिए कृषि शिक्षा पाने वाले छात्र अब विदेश जा कर भी ट्रेनिंग ले सकेंगे. वहां अनाज, सब्जी, दलहनी फसलों के अलावा मशरूम, ब्रोकली और रंगबिरंगी शिमला मिर्च उगाने के ऐसे तरीकों की पढ़ाई करेंगे जो किसी भी मौसम में अधिक पैदावार दें.

संयुक्त शोध और आधुनिक तकनीक के बारे में विस्तार से जानने के लिए चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय यानी सीएसए ने वैगनिंगन यूनिवर्सिटी, नीदरलैंड्स व विश्व सब्जी केंद्र, ताइवान के पास इस बारे में एक प्रस्ताव भेजा है.

दोनों संस्थानों के साथ सीएसए ने प्रोफैसर व छात्रों के शैक्षणिक आदानप्रदान के लिए करार करने का प्रस्ताव भेजा है. इन विदेशी संस्थानों में जा कर वे खेतीकिसानी की नई विधियों को सीखने के साथसाथ वहां के खेतों में उन का प्रयोगात्मक अध्ययन कर सकेंगे.

वैगनिंगन यूनिवर्सिटी व विश्व सब्जी केंद्र के अलावा वह ताइवान व थाईलैंड के कुछ अन्य कृषि संस्थानों व शोध केंद्रों पर टे्रनिंग हासिल करेंगे. इस के लिए भी योजना बनाई जा रही है.

निदेशक शोध प्रो. एचजी प्रकाश कृषि के आधुनिक यंत्रों व खेती की नई तकनीक जानने के लिए पीएचडी व स्नातकोत्तर अंतिम साल के छात्रों को इन संस्थानों में भेजा जाएगा. साथ ही, खेती की बढ़ती चुनौतियों जैसे जलवायु परिवर्तन, एकीकृत खेती के बारे में वे विदेश से जानकारी हासिल कर के इसे अपने देश में लागू करेंगे.

सीएसए के पौलीहाउस में अब सब्जियों की सिंचाई स्प्रिंकलर यानी टपक सिंचाई विधि से की जाएगी. इस के लिए यहां पर माइक्रो इरीगेशन यूनिट लगाए जाने की रूपरेखा बना ली गई है.

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संयुक्त निदेशक शोध डाक्टर डीपी सिंह ने बताया कि ताइवान स्थित विश्व सब्जी केंद्र जा कर इस का मौडल देखा गया है. वहां पर माइक्रो इरीगेशन के जरीए टमाटर, बैगन, हरी मिर्च, थाईलैंड लौकी, कद्दू, खीरा, करेला की खेती कर के पानी का पूरा इस्तेमाल किया जाता है. यह सिंचाई की ऐसी तकनीक है, जिस में पानी सीधे जड़ों में पहुंचता है.

सीएसए में भी खीरा, लौकी,?टमाटर, कद्दू शिमला मिर्च व ब्रोकली समेत अन्य सब्जियों की खेती इसी विधि से किए जाने के साथ छात्रों को भी उस का पाठ पढ़ाया जाएगा.

भूसे से पोषक तत्त्व ही गायब, पशुओं में खून की कमी

रायपुर : राज्यस्तरीय रोग अन्वेषण प्रयोगशाला की एक रिपोर्ट ने प्रदेशभर के पशुपालकों को चिंता में डाल दिया है. पिछले 5 महीनों में की गई तकरीबन 8,000 से ज्यादा दुधारू पशुओं की जांच में 2,000 से ज्यादा पशु एनीमिक पाए गए यानी उन के खून में हीमोग्लोबिन की मात्रा सामान्य से भी बहुत कम पाई गई.

दुधारू पशुओं में हीमोग्लोबिन की मात्रा 7 से 14 प्रति जीडी (ग्राम डाल्यूशन) होनी चाहिए, जबकि इन पशुओं में यह मात्रा 5 ग्राम ही पाई गई.

पशु विशेषज्ञों का कहना है कि यूरिया के बढ़ते प्रयोग, फसल की कटाई में हार्वेस्टर के उपयोग और हरे चारे की कमी की वजह से यह समस्या आई है.

पिछले कुछ समय से पशुपालक शिकायत कर रहे थे कि उन के पशु दूध कम दे रहे?हैं, कमजोर दिखाई देते हैं और कई बार चक्कर खा कर गिर जाते हैं.

इन बढ़ती शिकायतों को देखते हुए पशु चिकित्सकों द्वारा राज्यस्तरीय रोग अन्वेषण प्रयोगशाला में मवेशियों के खून की जांच शुरू कराई गई. अप्रैल से अगस्त माह के बीच खून के कुल 9,359 नमूने जांचे गए, जिन में गाय, भैंस और बकरियों के तकरीबन 8,000 नमूने शामिल थे. जांच में 2,170 दुधारू पशुओं में होमोग्लोबिन की मात्रा सामान्य से कम थी.

पशु चिकित्सकों के मुताबिक, हीमोग्लोबिन की कमी की मुख्य वजह भोजन में पोषक तत्त्वों की कमी है.

यूरिया का बढ़ता प्रयोग : पशु विशेषज्ञ बताते हैं कि खेती में यूरिया के बढ़ते प्रयोग से उत्पादन तो बढ़ रहा है, लेकिन पोषक तत्त्वों की कमी होती जा रही है.

फसलों के अवशेष को दुधारू पशु चारे के रूप में इस्तेमाल करते हैं, लेकिन इस में अब पोषक तत्त्वों की मात्रा ज्यादा नहीं रही. पशुओं का पेट तो भरता है, लेकिन पर्याप्त तत्त्व नहीं मिलते.

हार्वेस्टर का उपयोग : पशु चिकित्सक मानते?हैं कि फसलों की कटाई में हार्वेस्टर का उपयोग पोषक तत्त्वों को खत्म कर देता है. जब किसान हार्वेस्टर से गेहूं की फसल काटता है तो केवल बालियां ही एकत्र की जाती हैं, जबकि बाकी हिस्सा खेत में ही बेकार छूट जाता है. इन डंठलों में पोषक तत्त्वों की खासी मात्रा होती?है.

हरे चारे की कमी : प्रदेश में हरे चारे का संकट है, क्योंकि राज्य में गेहूं से ज्यादा धान की खेती होती है. हालत यह हो जाती?है कि सीजन खत्म होने के बाद महज 50 फीसदी पशुओं को ही हरा चारा मिल पाता है. हरे चारे की कमी भी दुधारू पशुओं में हीमोग्लोबिन की कमी की एक बड़ी वजह है.

हालांकि गोठान योजना से इस समस्या को दूर करने की कोशिश की जाएगी. गोठान योजना के जरीए हरा चारा तैयार करने की योजना है.

समस्या

किसानों के लिए बनेगा मौल

जम्मू : जम्मू में 70 करोड़ रुपए की लागत से विभिन्न सुविधाओं वाला कृषि मौल का निर्माण किया जाएगा. इस मौल के जरीए किसानों एक छत के नीचे विभिन्न प्रकार की सुविधाएं मिलेंगी.

अधिकारियों ने पिछले दिनों यह जानकारी दी. उन्होंने बताया कि जम्मू के बिश्नाह में प्रस्तावित मौल बुनियादी ढांचा विकास परियोजना का हिस्सा है और इसी प्रकार की परियोजना को कश्मीर संभाग के लिए भी मंजूरी दी गई?है.

मिली जानकारी के मुताबिक, कृषि मौल में शीतगृह भंडारण यानी कोल्ड स्टोरेज की सुविधा, ट्रैक्टर, पावर ट्रिलर, स्प्रे उपकरण, उर्वरक, कीटनाशक और जैविक उर्वरक उपलब्ध होंगे.

साथ ही, किसानों को यहां मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला, फसल कटाई के उपकरण और कृषि के अन्य उपकरण मुहैया होंगे. किसान इन उपकरणों को किराए पर ले सकते?हैं या खरीद सकते हैं.    ठ्ठ

संकट

तिलहनदलहन की फसलों पर खतरा

लखनऊ : सितंबर में हुई बारिश ने उमस से राहत दिलाने के साथ मौसम तो खुशगवार बनाया, पर किसानों की चिंताएं बढ़ा दीं. उड़द, मूंग की फसलों में यह समय फूल आने का होता?है. ऐसे में बरसात आने से फूल खेतों में गिर गए.

हालांकि कृषि विशेषज्ञ डाक्टर विनोद कुमार त्रिपाठी की मानें तो उड़द और मूंग की उन फसलों में नुकसान की संभावना कम है, जहां फली आ गई हैं.

कृषि निदेशालय के उपनिदेशक आरएस जैसवारा की मानें तो यह बारिश का पानी अगर अरहर के खेतों में रुका रहा तो फसलों को नुकसान पहुंचाएगा. उत्तर प्रदेश में इस बार 1099.15 हजार हेक्टेयर में दलहन की बोआई की गई है.

इस के अलावा सोयाबीन की फसल भी खेत में कटी पड़ी है. ऐसे में बारिश के पानी से सोयाबीन के दागी होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है.

जानकारों की मानें, तो सब से ज्यादा नुकसान तिलहन को होगा. बुंदेलखंड में तिल की अधिक खेती होती है.

जिन राज्यों में जहां पहले तिल बोई गई थी, वहां फसल तैयार है और उस की कटाई होने वाली थी. ऐसे में बारिश आने से फली के टूटने से तिल खेत में ही गिर जाने का खतरा?है. जिन फसलों में फूल आने का समय है, वहां बारिश से फूल गिर जाएगा.

कृषि विशेषज्ञ डा. विनोद कुमार त्रिपाठी की मानें तो बारिश से तिल की फसलों में सब से ज्यादा खतरा फंगस का है. ?प्रदेश में इस बार 550 हजार हेक्टेयर में तिलहन की फसलों की बोआई हुई है.

सुविधा

कृषि मशीनें किराए पर लेने के लिए मोबाइल एप

नई दिल्ली : कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने बताया है कि देशभर के किसान अब ‘सीएचसी फार्म मशीनरी’ मोबाइल एप के जरीए ट्रैक्टर और दूसरी मशीनों को किराए पर ले सकते?हैं.

उन्होंने किसानों को नई कृषि तकनीकों के खेत पर प्रदर्शन, बीज केंद्र और मौसम परामर्श का फायदा उठाने में मदद उपलब्ध कराने के लिए एक और मोबाइल एप ‘कृषि किसान’ भी पेश किया.

उन्होंने बताया कि हम छोटे और सीमांत किसानों को सशस्त बनाने की कोशिश कर रहे है. उन तक पहुंचने के लिए हम ने मोबाइल एप तकनीक का उपयोग करने के बारे में सोचा है. जिस तरह से आप एप का इस्तेमाल कर के ओला या उबर कैब बुक करते हैं, हम ने उसी तरह से कृषि मशीनें किराए पर लेने के लिए एकसमान एप लाने का फैसला किया है.

उन्होंने बताया कि सभी सेवा प्रदाताओं और किसानों को एक साझा मंच पर लाया गया है. उन्होंने कहा कि अब तक इस मोबाइल एप पर 1,20,000 से अधिक कृषि यंत्रों और उपकरणों को किराए पर देने के लिए 40,000 कस्टम हायरिंग सैंटर पंजीकृत किए गए?हैं.

इस एप को ‘क्रांतिकारी सेवा’ बताते हुए उन्होंने कहा कि एप के माध्यम से किसान यह जान सकते?हैं कि उन के खेत के पास कौन सा केंद्र किराए पर मशीनें देने वाला है. वे मशीनों का फोटो अपने मोबाइन पर देख सकते?हैं. कीमत के बारे में मोलभाव कर के और्डर दे सकते?हैं.

कृषि मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि कृषि किसान एप में सरकार के पास जियो टैगयुक्त फसल प्रदर्शन करने वाले खेत और बीज केंद्र हैं, जो न केवल उन के प्रदर्शन को दिखा सकता?है, बल्कि किसानों को उस का फायदा उठाने में मदद कर सकता है.

संबंधित अधिकारी ने बताया कि बीज के मिनी किट बीज की संख्या बढ़ाने के लिए किसानों को वितरित किए जा रहे?हैं और अब जब वे ‘जियो टैग’ हैं, जिस से सरकार यह पता लगा सकती?है कि मिनी किट का उपयोग किया जा रहा?है या नहीं. इस ऐप के माध्यम से सरकार प्रायोगिक तौर पर 4 जिले भोपाल (मध्य प्रदेश), वाराणसी (उत्तर प्रदेश), राजकोट (गुजरात) और नांदेड़ (महाराष्ट्र) में खेत स्तर पर मौसम के बारे में परामर्श देगी.

ये दोनों मोबाइल एप मुफ्त?हैं और इन्हें गूगल प्लेस्टोर से डाउनलोड किया जा सकता है.   ठ्ठ

कामयाबी

वैज्ञानिकों ने ईजाद की लाल भिंडी

?वाराणसी : उत्तर प्रदेश के वाराणसी स्थित भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों को 23 साल बाद एक बड़ी कामयाबी मिली है.

भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी के वैज्ञानिकों ने  भिंडी की नई प्रजाति विकसित कर ली है, जो कि हरी के बजाय लाल है. इस नाम काशी लालिमा रखा गया है.

सब्जी वैज्ञानिकों ने बताया कि यह भिंडी औक्सीडैंट, आयरन और कैल्शियम सहित कई पोषक तत्त्वों से?भरपूर है. इस की कई किस्मों को विकसित किया गया है.

वैज्ञानिकों के मुताबिक, आम भिंडी की तुलना में इस की कीमत ज्यादा है. काशी लालिमा भिंडी की अलगअलग किस्मों की कीमत 100 रुपए से ले कर 500 रुपए प्रति किलोग्राम तक है.

वैसे, भारत के तमाम राज्यों में हरी भिंडी ही ज्यादा चलन में?है. लाल रंग की भिंडी केवल पश्चिमी देशों में मिलती है. भारत वहीं से अपने उपयोग के लिए इसे मंगाता आया है.

खुशखबरी यह है कि अब भारत को लाल भिंडी के लिए दूसरे देश का मुंह नहीं देखना होगा. भारतीय किसान भी अब इस का उत्पादन कर सकेंगे.

भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी के एक अधिकारी ने इस बारे में बताया कि साल 1995-96 में ही इस भिंडी की खोज के लिए काम शुरू हो गया था. वैसे, संस्थान से काशी लालिमा भिंडी का बीज बोने के लिए आम किसानों के लिए दिसंबर महीने से ही मिलने लगेगा.      ठ्ठ

जानकारी

देशी गाय किसानों के लिए वरदान

भरतपुर : लुपिन फाउंडेशन द्वारा बीते दिनों पब्लिक स्कूल सेवर मे 6 दिवसीय प्राकृतिक कृषि प्रशिक्षण शिविर के तीसरे दिन कृषि विशेषज्ञ और ‘पद्मश्री’ डाक्टर सुभाष पालेकर ने देशी गाय की अहमियत और जीवाणु अमृत बनाने की विधियों की जानकारी दी. इस प्रशिक्षण शिविर में 19 राज्यों के तकरीबन 6,000 किसान, कृषि विशेषज्ञ और कृषि विषय के छात्रों ने हिस्सा लिया.

प्रशिक्षण शिविर में डाक्टर सुभाष पालेकर ने बताया कि देशी गाय का दूध, गोबर और गौमूत्र इनसान के लिए एक प्रकार का वरदान है. देशी गाय के दूध में ओमेगा 3 फैटी एसिड, लियोनिक एसिड सहित विटामिन ए और डी सहित अन्य उपयोगी प्रोटीन होता है जो सेहत के लिए काफी उपयोगी माना गया?है. साथ ही, गौमूत्र खून को साफ करने के साथसाथ विषाणुरोधक होता है.

उन्होंने बताया कि देशी गाय के गोबर में कार्बन, नाइट्रोजन, अमोनिया, एडोल जैस तत्त्व होते?हैं, जो पौधों की बढ़ोतरी में सहायक होने के साथ सूक्ष्म जीवाणुओं के लिए भी भोज्य पदार्थ का काम करते?हैं.

उन्होंने गाय के गोबर को यूरिया का कारखाना बताते हुए कहा कि गोबर में सही मात्रा में नाइट्रोजन, फास्फेट व जैविक कार्बन जैसे तत्त्व मिलते?हैं.

डाक्टर सुभाष पालेकर ने खेती के लिए जीवाणु अमृत बनाने की विधि के बारे में कहा कि इस के लिए 200 लिटर पानी में 10 किलोग्राम देशी गाय का गोबर,

5 लिटर गौमूत्र के अलावा एकएक किलो गुड़ व बेसन और एक मुट्ठी खेत की मिट्टी का उपयोग किया जाता है. जीवाणु अमृत बनाने के लिए इन सभी वस्तुओं को एक बड़े ड्रम में घोल कर कई दिनों तक रखा जाता?है, ताकि उस में जीवाणु पैदा हो सके. इस के बाद इस घोल का फसलों पर छिड़काव किया जाता है ताकि फसलों व खेत की मिट्टी में ये जीवाणु पहुंच कर पौधों में सही पोषक तत्त्व दे सकें.

जीवाणु अमृत डालने के बाद किसी भी तरह के कैमिकल खादों की जरूरत नहीं होती. यहां तक की सिंचाई के लिए भी महज 10 फीसदी पानी की ही जरूरत होती?है.

प्रशिक्षण शिविर में उन्होंने बताया कि किसान ज्यादा मात्रा में कैमिकल खादों का इस्तेमाल कर रहे?हैं. इस की वजह से जमीन में पानी सोखने की कूवत घट गई है, वहीं फास्फेट व दूसरे हानिकारक तत्त्वों की मात्रा बढ़ जाने से कठोर हो गई है, जिस की वजह से बारबार सिंचाई करनी पड़ती?है.

कैमिकल खादों और कीटनाशक दवाओं के इस्तेमाल की वजह से खाने की चीजें जहरीली हो गई?हैं जो इनसानी सेहत पर बुरा असर डाल रही?हैं, जबकि प्राकृतिक कृषि विधि में जीवाणु अमृत का इस्तेमाल होने की वजह से खाने की चीजें पौष्टिक होने के साथ अधिक गुणकारी होती हैं, क्योंकि इन में सभी तरह के तत्त्व मौजूद होते हैं.

ईजाद

ड्रैगन फ्रूट सीताफल की प्रजाति विकसित

छत्तीसगढ़ : दुर्ग जिले के धमधा ब्लौक के ग्राम धौराभाठा, जहां 450 एकड़ में फैले हैं फलों के फार्महाउस, इस में जैविक तरीके से खेती हो रही है. यहां तकरीबन 18 वैरायटी के फलों की खेती की जा रही है.

यहां मध्य भारत में सीताफल के सब से विस्तृत 150 एकड़ में फैला फार्महाउस बालानगर प्रजाति का सीताफल उपजाया जा रहा?है जो सब से बड़े आकार का होता है.

उल्लेखनीय है कि इस वैरायटी में पल्प 80 फीसदी तक होता है. यहां सीताफल प्रोसैसिंग प्लांट भी?है.

इस फार्महाउस के संचालक और जेएस ग्रुप के एमडी अनिल शर्मा बताते?हैं कि उन के यहां गिर प्रजाति की 150 गाय?हैं. उन के गाबर का उपयोग जैविक खाद के रूप में होता है. जैविक खाद का पूरी तरह प्रयोग होने से मार्केट में इस की अच्छी मांग है.

उन्होंने बताया कि यहां रोबोटिक तरीके से खेती की जा रही है. यहां इजराइल का सिस्टम काम कर रहा है और पानी जैविक खाद आदि की जरूरत मशीन से तय कर ली जाती है.

फार्महाउस के संचालक अनिल शर्मा ने बताया कि प्रदेश में कांकेर सीताफल के बड़े उत्पादक जिले के रूप में उभरा है. इस प्रोसैसिंग प्लांट का लाभ उन्हें भी मिल रहा है क्योंकि यहां माइनस 20 डिगरी सैल्सियस तापमान में पल्प 1 साल तक महफूज रह सकता है.

सहूलियत

बना पीएम किसान पोर्टल

नई दिल्ली : प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के लाभ के लिए देशभर के किसानों को अब राज्यों का मोहताज नहीं होगा.

केंद्र सरकार ने अब पीएम किसान पोर्टल बना दिया है, जिस पर किसान अपने विस्तृत ब्योरे के साथ खुद ही रजिस्टे्रशन करा सकता है.

इस का सब से ज्यादा फायदा पश्चिम बंगाल के तकरीबन एक करोड़ किसानों को मिल सकता है. लेकिन यहां की सरकार ने अभी तक एक भी किसान के नाम प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के लिए केंद्र सरकार के पास नहीं भेजा?है.

इस योजना में हर किसान को साल में 3 किस्तों में 6,000 रुपए की आर्थिक मदद मुहैया कराई जाती?है.

हालांकि देश के ज्यादातर राज्यों के किसानों को इस का फायदा मिलने लगा है, लेकिन पश्चिम बंगाल की गैरभाजपा सरकार ने इस में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई?है.

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सार्वजनिक मंचों से इस योजना की आलोचना करती रही?हैं. लिहाजा, राज्य के किसानों की सूची इस बाबत केंद्र के पास नहीं भेजी जा रही है.

केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने उन किसानों की सुविधा के लिए अलग पोर्टल बनाया?है, जिस से किसान खुद भी सीधे जुड़ सकते हैं.

फैसला

फसल अवशेष न जलाने की शपथ

लखनऊ : कृषि भवन के सभागार में पिछले दिनों प्रदेश मेें जुटे किसानों को कृषि मंत्री सूर्यप्रताप शाही ने फसलों के अवशेष न जलाने की शपथ दिलाई. साथ ही, उन्होंने प्रदेश में रिकौर्ड अनाज उत्पाद के लिए वहां उपस्थित किसानों को बधाई दी.

कृषि मंत्री सूर्यप्रताप शाही आगामी रबी फसलों को ले कर कृषि व संबंधित विभागों द्वारा की गई तैयारियों की जानकारी देने को आयोजित राज्यस्तरीय रबी उत्पादकता गोष्ठी, 2019 में बोल रहे थे.

उन्होंने कहा कि आज की खेती वैज्ञानिक और उन्नत तरीकों से हो गई है. मिलियन फार्मर्स स्कूल के जरीए भी किसानों को कृषि के उन्नत साधनों और कृषि रक्षा के उपायों के बारे में बताया जा रहा है.

उन्होंने फसल अवशेष को खेत में ही मिला कर जमीन में मृदा संरक्षण और उर्वराशक्ति को बढ़ाने पर जोर दिया.

उद्यान मंत्री श्रीराम चौहान ने कहा कि कृषि क्षेत्र की अपनी सीमित सीमा?है, जब तक इस में बागबानी, पशुपालन, मत्स्यपालन और मधुमक्खी पालन को शामिल नहीं किया जाएगा, तब तक किसानों की आय दोगुनी होना नामुमकिन है.

गोष्ठी में जालौन से आए किसान सुभाष त्रिवेदी ने अपनी समस्या रखते हुए कहा कि अनुदान से जो ट्यूबवैल सरकार लगवा रही है, उन की कीमत तकरीबन सवा लाख रुपए है, जबकि वही ट्यूबवैल प्राइवेट कंपनियां महज 50 हजार से 60 हजार रुपए में लगा रही है. मंत्रीजी दोनों की कीमतों में अंतर क्यों है.

साथ ही, उन्होंने उद्यान विभाग द्वारा ड्रिप एवं स्प्रिंकलर विधि के सिंचाई के जो पाइप मुहैया कराए जा रहे?हैं, उन के रेट भी ज्यादा हैं और उतने मजबूत भी नहीं हैं.

इस पर उद्यान मंत्री श्रीराम चौहान ने कहा कि आपूर्तिकर्ता फर्म की जांच करा कर कुसूरवारों पर नियमानुसार कार्यवाही की जाएगी.

जलसा

रबी किसान मेले का आयोजन

पलवल : मेहर चंद गहलोत, उपाध्यक्ष, हरियाणा पशुधन विकास बोर्ड और सदस्य, आईएमसी, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान, करनाल ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा आयोजित ‘रबी किसान मेला’ का उद्घाटन किया.

कृषि और किसान कल्याण विभाग, हरियाणा सरकार के सहयोग से नेताजी सुभाष चंद्र स्टेडियम, पलवल में मेले का आयोजन किया गया?था.

उन्होंने किसानों द्वारा बेहतर कृषि प्रौद्योगिकियों के उपयोग पर जोर दिया. टिकाऊ और लाभदायक कृषि उत्पादन सुनिश्चित करने के लिए उन्होंने शोधकर्ताओं, किसानों, विकासात्मक एजेंसियों और कृषि उद्योगों सहित विभिन्न हितधारकों के बीच घनिष्ठ सहयोग के लिए भी आग्रह किया.

गहलोत ने केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई योजनाओं, जैसे मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना, प्रधानमंत्री बीमा योजना और प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना की सराहना की.

डा. पीसी शर्मा, निदेशक, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद और अध्यक्ष, रबी किसान मेला ने इस से पहले किसानों से अपील की कि वे अच्छा रिटर्न पाने के लिए बागबानी, पशुधन, मत्स्यपालन और खाद्य प्रसंस्करण जैसे उच्च आय वाले उद्यमों को तेजी से अपनाएं.

उन्होंने 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य रखने वाले विभिन्न सरकारी योजनाओं का फायदा उठाने पर जोर दिया.

इस मौके पर 5 प्रगतिशील किसानों को सम्मानित किया गया. मेले के दौरान लवणता प्रबंधन, फल विविधीकरण, एकीकृत खेती, बागबानी फसलों, मशरूम की खेती के लिए विभिन्न उन्नत तकनीकों का प्रदर्शन किया गया.

इस मौके पर गोष्ठी आयोजित की गई. तकरीबन 2,600 किसानों ने भाग लिया.                      ठ्ठ

जानकारी

बीज उत्पादक कंपनियों को जारी किया लाइसैंस

नई दिल्ली : देश में विकसित पौष्टिक गेहूं एचडी 3226 (पूसा यशस्वी) का बीज तैयार करने के लिए बीज उत्पादक कंपनियों को इस का लाइसैंस जारी कर दिया गया. गेहूं के इस बीज की बिक्री अगले साल से शुरू हो जाएगी.

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के महानिदेशक त्रिलोचन महापात्रा ने भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के प्रौद्योगिकी नवाचार दिवस के मौके पर बीज उत्पादक कंपनियों को लाइसैंस जारी किया.

इन कंपनियों को रबी फसल के दौरान गेहूं की इस नई किस्म का प्रजनक बीज उपलब्ध कराया जाएगा. किसानों को अगले साल से सीमित मात्रा में इस का बीज उपलब्ध कराया जाएगा.

एचडी 3226 किस्म को हाल में जारी किया गया?है. इस की सब से बड़ी विशेषता यह है कि इस में गेहूं की अब तक उपलब्ध सभी किस्मों से ज्यादा प्रोटीन और ग्लूटीन है. इस में 12.8 फीसदी प्रोटीन, 30.85 फीसदी ग्लूटीन और 36.8 फीसदी जिंक है. अब तक गेहूं की जो किस्में हैं, उन में अधिकतम 12.3 फीसदी तक ही प्रोटीन है. इस गेहूं से रोटी और ब्रैड को तैयार किया जा सकेगा.

इस गेहूं के प्रजनक और प्रधान वैज्ञानिक डाक्टर राजबीर यादव ने बताया कि 8 साल के दौरान इस बीज का विकास किया गया?है. आदर्श स्थिति में इस की पैदावार प्रति हेक्टेयर 70 क्विंटल तक ली जा सकती है. यह गेहूं रतुआ और करनाल मल्ट रोधी है.

उन्होंने कहा कि भारतीय गेहूं में कम प्रोटीन के कारण इस का निर्यात नहीं होता?था जो समस्या खत्म हो जाएगी.

उन्होंने बताया कि इस गेहूं की भरपूर पैदावार लेने के लिए इसे अक्तूबर के आखिर में या नवंबर के पहले हफ्ते में लगाना जरूरी है. इस की फसल 142 दिन में तैयार हो जाती है.

यह किस्म पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, राजस्थान व उत्तराखंड के तराई क्षेत्र, जम्मूकश्मीर और हिमाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों के लिए सही है. जीरो टिलेज तकनीक के लिए भी गेहूं की यह किस्म सही है.

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