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‘वेदिका’ के लिए ‘पल्लवी’ ने ‘कार्तिक नायरा’ को सुनाई खरी खोटी

टीवी शो ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में धमाकेदार ट्विस्ट एंड टर्न देखने को मिल रहे है. जिससे दर्शकों का खुब एंटरटेन हो रहा है. इस शो की कहानी वेदिका, नायरा, कार्तिक और कैरव के इर्द गिर्द घुम रही है. शो की कहानी में काफी इंटरेस्टिंग मोड़ आ चुका है. तो आइए बताते हैं कहानी के इंटरेस्टिंग ट्विस्ट एंड टर्न के बारे में.

इस सीरियल में  अचानक से वेदिका गोयंका हाउस से गायब हो चुकी है. घर के किसी भी सदस्य को नहीं पता है, वेदिका कहां गई. तो इधर वेदिका की दोस्त पल्लवी, कार्तिक नायरा को साथ में देखकर बिलकुल भी खुश नहीं है. पल्लवी चाहती है कि वेदिका कार्तिक साथ में रहे और नायरा, कैरव  को लेकर कहीं दूर चली जाए.

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कार्तिक नायरा बात कर रहे होते हैं. तभी पल्लवी वहां आती है और उन्हें खरी खोटी सुनाने लगती है. पल्लवी की इन बातों से कार्तिक गुस्से में आ जाता है और उसे कहता है कि जब कोई बात ठीक से पता न हो तो उस बारे में सोच समझ कर बात करनी चाहिए. पल्लवी नायरा को शर्मिंदा करने के लिए काफी बुरा बोलती है. लेकिन कार्तिक पल्लवी को चुप कराता है. इसी बीच कैरव और वंश वहां पहुंचते हैं. उन्हें चिल्लता देखकर कैरव और वंश शांत हो जाते हैं.

लेकिन पल्लवी अपनी आदतों से बाज नहीं आती और वो कैरव से कहती है, तुम्हारे मम्मी पापा तुमसे झूठ बोल रहे हैं. पल्लवी के इस बात से कार्तिक नायरा घबरा जाते हैं कि पल्लवी कैरव से क्या कहने जा रही है. दरअसल कैरव को ये नहीं पता कि कार्तिक नायरा साथ नहीं है और कार्तिक की शादी वेदिका से हुई है. तभी कैरव पल्लवी से पूछता है कि क्या? पल्लवी कहती है, तुम्हारे मम्मी पापा बहुत बहादुर हैं. उन्होंने ये बात तुमसे छिपाई है.

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उसके बाद पल्लवी कार्तिक के पास आती है और कहती है कि तुमने वेदिका के साथ अच्छा नहीं किया है. कार्तिक भी पल्लवी की सारी बातों का जवाब देता है. कार्तिक पल्लवी से बेहद नाराज होता है. शो के अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि कार्तिक और पल्लवी के बीच वेदिका को लेकर गहमागहमी बढ़ती जाएगी. वैसे जल्द ही इस शो में वेदिका की एंट्री होने वाली है.

आखिरकार व्हाट्सऐप हैक क्यों किया गया, जानिए इसका मकसद क्या था ?

जिस विषय पर मैं ये लेख लिख रहा हूं, ये समझ लीजिये कि ये मसला आम आदमी के लिए उतना ही जरुरी है जितना की एक पौधे के लिए पानी. यानी अगर पौधे को पानी नहीं दिया गया तो धीमें-धीमें कर के सूख जाएगा. हिंदुस्तान की आवाम की हालत भी कुछ ऐसी ही हो रही है. जिसको हम अभी भांप नहीं पा रहे हैं. याद कीजिए 24 अगस्त 2017 का दिन. जब सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए सरकार से कहा था कि निजता का अधिकार भले ही संविधान में लिखे मौलिक अधिकारों में न हो लेकिन हर मौलिक अधिकार से इसकी खुश्बू आती है. लेकिन क्या ये संभव हो पाया. नहीं हो पाया. हम गाहे-बगाहे अपनी सारी गोपनीय सूचना सार्वजनिक करते जा रहे है. अगर हम नहीं भी कर रहे तो ये कई कंपनी इस काम पर जुटी हुई हैं. हम अमेरिका चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप के लिए डाटा चोरी करने वारे कांड का जिक्र नहीं करेंगे लेकिन ताजा मामला तो और भी हैरान कर देने वाला है.

हाल ही में एक मीडिया जर्नलिस्ट के डाटा से छेड़छाड़ की गई. उसके स्मार्टफोन पर Pegasus Spyware अटैक हुआ. नतीजन एक खुफिया साइबर कंपनी को उसके फोन का रिमोट एक्सेस मिल गया और इसके बाद शुरू हुई उसकी जासूसी. जब तक जर्नलिस्ट को इस बात की जानकारी मिली उसकी निजी जानकारी साइबर कंपनी के हाथ लग चुकी थी.साइबर कंपनी के हत्थे चढ़ने वाला ये शख्स अकेला नहीं था. व्हाट्सअप के दावे के मुताबिक इस साइबर कंपनी ने कुल 1400 लोगों को टारगेट किया. फेसबुक के स्वामित्व वाले WhatsApp ने गुरुवार को पुष्टि की कि इजरायल की साइबर खुफिया कंपनी NSO ग्रुप की ओर से Pegasus नाम के spyware का इस्‍तेमाल कर भारतीय मानवाधिकार कार्यकर्ता और पत्रकारों को टारगेट कर उनकी जासूसी की गई. WhatsApp ने इस सप्ताह इजरायल की साइबर खुफिया कंपनी NSO ग्रुप पर मुकदमा दायर किया है. सोशल मीडिया प्लेटफौर्म ने आरोप लगाया है कि इसने वैश्विक स्तर पर 1,400 सलेक्टेड यूजर्स की जासूसी की है.

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जैसे ही ये खबर सुर्खियों में आई वैसे हड़कंप मच गया. उन 1400 लोगों की सूची में सब कोई अपने आपको पाने लगा. धड़ाधड़ लोगों ने प्राइवेट डाटा डिलीट किया. कई लोगों ने तुरंत ऐप ही अन इंन्सटौल कर दिया. भारत में इस मामले को लेकर व्हाट्सएप से जवाब मांगा गया है लेकिन उससे पहले ही राजनीति शुरू हो गई. बीजेपी-कांग्रेस के नेताओं ने एक दूसरे पर फोन टैपिंग और जासूसी करने का आरोप मढ़ दिया. लेकिन ये मामला कितना गंभीर है ये सियासतदानों की समझ से परे है.

इजराइली कंपनी NSO के स्पष्टीकरण को सच माना जाए तो सरकार या सरकारी एजेंसियां ही पेगासस सौफ़्टवेयर के माध्यम से जासूसी कर सकती हैं. ख़ुद अपना पक्ष रखने के बजाय, सरकार ने व्हाट्सऐप को 4 दिनों के भीतर जवाब देने को कहा है.कैंब्रिज एनालिटिका मामले में भी फ़ेसबुक से ऐसा ही जवाब मांगा गया था. कैंब्रिज मामले में यूरोपीय क़ानून के तहत कंपनी पर पेनल्टी भी लगी, पर भारत में सीबीआई अभी आंकड़ों का विश्लेषण ही कर रही है.

इस तरह के आरोपों के बाद व्हाट्सएप बैकफुट पर था. आनन-फानन ऐप ने अमरीका के कैलिफोर्निया में इजरायली कंपनी एनएसओ और उसकी सहयोगी कंपनी Q साइबर टेक्नोलौजीज लिमिटेड के ख़िलाफ मुकदमा दायर किया है. दिलचस्प बात यह है कि व्हाट्सऐप के साथ फेसबुक भी इस मुकदमे में पक्षकार है. फ़ेसबुक के पास व्हाट्सऐप का स्वामित्व है लेकिन इस मुक़दमे में फेसबुक को व्हाट्सऐप का सर्विस प्रोवाइडर बताया गया है जो व्हाट्सऐप को इंफ्रास्ट्रक्चर और सुरक्षा कवच प्रदान करता है.

पिछले साल ही फ़ेसबुक ने यह स्वीकारा था कि उनके ग्रुप द्वारा व्हाट्सऐप और इंस्टाग्राम के डाटा का व्यवसायिक इस्तेमाल किया जा रहा है. फेसबुक ने यह भी स्वीकार किया था कि उसके प्लेटफार्म में अनेक ऐप के माध्यम से डाटा माइनिंग और डाटा का कारोबार होता है. कैंब्रिज एनालिटिका ऐसी ही एक कंपनी थी जिसके माध्यम से भारत समेत अनेक देशों में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को प्रभावित करने की कोशिश की गई. व्हाट्सऐप अपने सिस्टम में की गई कौल, वीडियो कौल, चैट, ग्रुप चैट, इमेज, वीडियो, वाइस मैसेज और फ़ाइल ट्रांसफ़र को इंक्रिप्टेड बताते हुए, अपने प्लेटफ़ॉर्म को हमेशा से सुरक्षित बताता रहा है.

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कैलिफ़ोर्निया की अदालत में दायर मुक़दमे के अनुसार इज़रायली कंपनी ने मोबाइल फ़ोन के माध्यम से व्हाट्सऐप के सिस्टम को भी हैक कर लिया. इस सॉफ़्टवेयर के इस्तेमाल में एक मिस्ड कॉल के ज़रिए स्मार्ट फ़ोन के भीतर वायरस प्रवेश करके सारी जानकारी जमा कर लेता है. फ़ोन के कैमरे से पता चलने लगता है कि व्यक्ति कहां जा रहा है, किससे मिल रहा है और क्या बात कर रहा है?

अब यहां पर दो बातें हैं. ऐसा क्यों किया गया और इसके पीछे मकसद क्या है. इजरायली सौफ्टवेयर के माध्यम से अनेक भारतीयों की जासूसी में करोड़ों का खर्च सरकार की किस एजेंसी ने किया होगा? यदि यह जासूसी केंद्र सरकार की एजेंसियों द्वारा अनाधिकृत तौर पर की गयी है तो इससे भारतीय कानून और सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देशों का उल्लंघन हुआ है. यदि जासूसी को विदेशी सरकारों या निजी संस्थाओं द्वारा अंजाम दिया गया है, तो यह पूरे देश के लिए खतरे की घंटी है.

एक नई पहल : भाग 1

 लेखक- नीलमणि शर्मा

‘‘भाभी…जल्दी आओ,प्लीज,’’ मेघा की आवाज सुन कर मैं दौड़ी चली आई.

‘‘क्या बात है, मेघा?’’ मैं ने प्रश्न- सूचक दृष्टि उस की तरफ डाली तो मेघा ने अपनी दोनों हथेलियों के बीच मेरा सिर पकड़ कर सड़क की ओर घुमा दिया, ‘‘मेरी तरफ नहीं भाभी, पार्क की तरफ देखो…वहां सामने बैंच पर लैला बैठी हैं.’’

‘‘अच्छा, तो उन आंटी का नाम लैला है…तुम जानती हो उन्हें?’’

‘‘क्या भाभी आप…’’ मेघा चिढ़ते हुए पैर पटकने लगी, ‘‘मैं नहीं जानती उन्हें, पर वह रोज यहां इसी समय इसी बैंच पर आ कर बैठती हैं और अपने मजनू का इंतजार करती हैं. भाभी, मजनूं बस, आता ही होगा…वह देखो…वह आ गया…अब देखो न इन दोनों के चेहरों की रंगत…पैर कब्र में लटके हैं और आशिकी परवान चढ़ रही है…’’

मैं ने उसे बीच में ही टोकते हुए कहा, ‘‘इस उम्र के लोगों का ऐसा मजाक उड़ाना अच्छी बात नहीं, मेघा.’’

‘‘भाभी, इस उम्र के लोगों को भी तो ऐसा काम नहीं करना चाहिए…पता नहीं कहां से आते हैं और यहां छिपछिप कर मिलते हैं. शर्म आनी चाहिए इन लोगों को.’’

‘‘क्यों मेघा, शर्म क्यों आनी चाहिए? क्या हमतुम दूसरों से बातें नहीं करते हैं?’’

‘‘हमारे बीच वह चक्कर थोड़े ही होता है.’’

‘‘तुम्हें क्या पता कि इन के बीच क्या चक्कर है? क्या ये पार्क में बैठ कर अश्लील हरकतें करते हैं या आपस में लड़ाईझगड़ा करते हैं, मेरे हिसाब से तो यही 2 बातें हैं कि कोई तीसरा व्यक्तिउन का मजाक बनाए. फिर जब तुम उन्हें जानती ही नहीं हो तो उन के रिश्ते को कोई नाम क्यों देती हो.’’

‘‘रिश्ते को नाम कहां दिया है भाभी, मैं ने तो उन को नाम दिया है,’’ मेघा तुनक कर बोली, ‘‘मैं ने तो आप को यहां बुला कर ही गलती कर दी,’’ यह कहते हुए मेघा वहां से चल दी.

उस के जाने के बाद भी मैं कितनी देर यों ही बालकनी में बैठी उन दोनों बुजुर्गों को देखती रही और सोचती रही कि मांबाप अब समझदार हो गए हैं. लड़केलड़की की दोस्ती पर एतराज नहीं करते. समाज भी उन की दोस्ती को खुले दिल से स्वीकार रहा है, लेकिन 2 प्रौढ़ों की दोस्ती के लिए समाज आज भी वही है…उस की सोच आज भी वही है.

पार्क में बैठे अंकलआंटी को देख कर वर्षों पुरानी एक घटना मेरे मन में फिर से ताजा हो गई.

पुरानी दिल्ली की गलियों में मेरा बचपन बीता है. उस समय लड़के शाम को आमतौर पर गुल्लीडंडा या कबड्डी खेल लिया करते थे और लड़कियां छत पर स्टापू, रस्सी कूदना या कुछ बड़ी होने पर यों ही गप्पें मार लिया करती थीं. इस के साथसाथ गली में कौन आजा रहा है, किस का किस के साथ चक्कर है, किस ने किस को कब इशारा किया आदि की भी चर्चा होती रहती थी.

मैं भी अपनी सहेलियों के साथ शाम के वक्त छत पर खड़ी हो कर यह सब करती थी. एक दिन बात करतेकरते अचानक मेरी सहेली रेणु ने कहा, ‘देखदेख, वह चल दिए आरती के दादाजी…देख कैसे चबूतरे को पकड़- पकड़ कर जा रहे हैं.’

मैं ने पूछा, ‘कहां जा रहे हैं.’

‘अरे वहीं, देख सामने गुड्डन की दादी निकल आई हैं न अपने चबूतरे पर.’

और मैं ने देखा, दोनों बैठे मजे से बातें करने लगे. रेणु ने फिर कहा, ‘शर्म नहीं आती इन बुड्ढेबुढि़या को…पता है तुझे, सुबह और शाम ये दोनों ऐसे ही एकदूसरे के पास बैठे रहते हैं.’

‘तुझे कैसे पता? सुबह तू स्कूल नहीं जाती क्या…यही देखती रहती है?’

‘अरे नहीं, मम्मी बता रही थीं, और मम्मी ही क्या सारी गली के लोगों को पता है, बस नहीं पता है तो इन के घर वालों को.’

उस के बाद मैं ने भी यह बात नोट करनी शुरू कर दी थी.

कुनकुनी ठंड आ चुकी थी. रविवार का दिन था. मैं सिर धो कर छत पर धूप में बैठी थी. आदतन मेरी नजर उसी जगह पड़ गई. आरती के दादाजी अखबार पढ़ कर शायद गुड्डन की दादी को सुना रहे थे और दादी मूंगफली छीलछील कर उन्हें पकड़ा रही थीं. यह दृश्य मुझे इतना भाया कि मैं उसे हमेशा के लिए अपनी आंखों में भर लेना चाहती थी.

मुंडेर पर झुक कर अपनी ठुड्डी को हथेली का सहारा दिए मैं कितनी ही देर उन्हें देखती रही कि अचानक आरती दौड़ती हुई आई और अपने दादाजी से जाने क्या कहा और वह एकदम वहां से उठ कर चले गए. गुड्डन की दादी की निरीह आंखें और मौन जबान से निकले प्रश्नों का उत्तर देने के लिए भी उन्होंने वक्त जाया नहीं किया. ‘पता नहीं क्या हुआ होगा,’ सोचते- सोचते मैं भी छत पर बिछी दरी पर आ कर बैठ गई.

अभी पढ़ने के लिए अपनी किताब उठाई ही होगी कि गली में से बहुत जोरजोर से चिल्लाने की आवाज आने लगी. कुछ देर अनसुना करने के बाद भी जब आवाजें आनी बंद नहीं हुईं तो मैं खड़ी हो कर गली में देखने लगी.

देखा, गली में बहुत लोग खड़े हैं. औरतें और लड़कियां अपनेअपने छज्जों पर खड़ी हैं. शोर आरती के घर से आ रहा था. उस के पिताजी अपने पिताजी को बहुत जोरजोर से डांट रहे थे…‘शर्म नहीं आती इस उमर में औरतबाजी करते हुए…तुम्हें अपनी इज्जत का तो खयाल है नहीं, कम से कम मेरा तो सोचा होता…इस से तो अच्छा था कि जब मां मर गई थीं तभी दूसरी बिठा लेते…सारी गली हम पर थूथू कर रही है…अरे, रामचंदर ने तो अपनी मां को खुला छोड़ रखा है…पर तुम में अपनी अक्ल नहीं है क्या…खबरदार, जो आज के बाद गली में पैर रखा तो…’

जितनी चीखचीख कर ये बातें कही गई थीं उन से क्या उन के घर की बेइज्जती नहीं हुई पर यह कहने वाला और समझाने वाला आरती के पिताजी को कोई नहीं था. हां, ये आवाजें जैसे सब ने सुनीं वैसे ही सामने गुड्डन की दादी और उन के बाकी घर वालों ने भी सुनी होंगी.

कुछ देर बाद भीड़ छंट चुकी थी. उस दिन के बाद फिर कभी किसी ने दादी को चबूतरे पर बैठे नहीं देखा. बात सब के लिए आईगई हो चुकी थी.

अचानक एक रात को बहुत जोर से किसी के चीखने की आवाज आई. मेरी परीक्षा नजदीक थी इस कारण मैं देर तक जाग कर पढ़ाई कर रही थी. चीख सुन कर मैं डर गई. समय देखा, रात के डेढ़ बजे थे. कुछ देर बाद किसी के रोने की आवाज आई. खिड़की खोल कर बाहर झांका कि यह आवाज किस तरफ से आई है तो देखा आरती के घर के बाहर आज फिर लोग इकट्ठा होने शुरू हो गए हैं.

मेरे पिताजी भी घर से बाहर निकल चुके थे…कुछ लोग हमारे घर के बाहर चबूतरे पर बैठे धीरेधीरे बोल रहे थे, ‘बहुत बुरा हुआ यार, महेश को समझाना पड़ेगा, मुंह अंधेरे ही अपने पिताजी की अर्थी ले चले, नहीं तो उस के पिताजी ने जो पंखे से लटक कर आत्महत्या की है, यह बात सारे महल्ले में फैल जाएगी और पुलिस केस बन जाएगा. महेश बेचारा बिन मौत मारा जाएगा.’

मैं सुन कर सन्न रह गई. दादाजी ने आत्महत्या कर ली…सब लोग उस दिन की बात भूल गए पर दादाजी नहीं भूल पाए. कैसे भूल पाते, उस दिन उन का आत्मसम्मान उन के बेटे ने मार दिया था. आज उन की आत्महत्या पर कैसे फूटफूट कर रो रहा है.

योग की पोल

लेखक: हिमांशु जोशी

पिछले 3 दिनों से रतन कुमारजी का सुबह की सैर पर हमारे साथ न आना मुझे खल रहा था. हंसमुख रतनजी सैर के उस एक घंटे में हंसाहंसा कर हमारे अंदर एक नई ऊर्जा का संचार कर देते थे.

क्या बताएं, जनाब, हम दोनों ही मधुमेह से पीडि़त हैं. दोनों एक ही डाक्टर के पास जाते हैं. सही समय से सचेत हो, नियमपूर्वक दवा, संतुलित भोजन और प्रतिदिन सैर पर जाने का ही नतीजा है कि सबकुछ सामान्य चल रहा है यानी हमारा शरीर भी और हम भी.

बहरहाल, जब चौथे दिन भी रतन भाई पार्क में तशरीफ नहीं लाए तो हम उन के घर जा पहुंचे. पूछने पर भाभीजी बोलीं कि छत पर चले जाइए. हमें आशंका हुई कि कहीं रतन भाई ने छत को ही पार्क में परिवर्तित तो नहीं कर दिया. वहां पहुंच कर देखा तो रतनजी  योगाभ्यास कर रहे थे.

बहुत जोरजोर से सांसें ली और छोड़ी जा रही थीं. एक बार तो ऐसा लगा कि रतनजी के प्राण अभी उन की नासिका से निकल कर हमारे बगल में आ दुबक जाएंगे. खैर, साहब, 10 मिनट बाद उन का कार्यक्रम समाप्त हुआ.

रतनजी मुसकराते हुए बोले, ‘‘आइए, आइए, देखा आप ने स्वस्थ होने का नायाब नुस्खा.’’

मैं ने कहा, ‘‘यार, यह नएनए टोटके कहां से सीख आए.’’

वह मुझे देख कर अपने गुरु की तरह मुखमुद्रा बना कर बोले, ‘‘तुम तो निरे बेवकूफ ही रहे. अरे, हम 2 वर्षों से उस डाक्टर के कहने पर चल, अपनी शुगर केवल सामान्य रख पा रहे हैं. असली ज्ञान तो अपने ग्रंथों में है. योेग में है. देखना एक ही माह में मैं मधुमेह मुक्त हो जाऊंगा.’’

मैं ने कहा, ‘‘योगवोग अपनी जगह कुछ हद तक जरूर ठीक होगा पर तुम्हें अपनी संतुलित दिनचर्या तो नहीं छोड़नी चाहिए थी. अरे, सीधीसादी सैर से बढ़ कर भी कोई व्यायाम है भला.’’

उन्होंने मुझे घूर कर देखा और बोले, ‘‘नीचे चलो, सब समझाता हूं.’’

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नीचे पहुंचे तो एक झोला लिए वह प्रकट हुए. बड़े प्यार से मुझे समझाते हुए बोले, ‘‘मेरी मौसी के गांव में योगीजी पधारे थे. बहुत बड़ा योग शिविर लगा था. मौसी का बुलावा आया सो मैं भी पहुंच गया. वहां सभी बीमारियों को दूर करने वाले योग सिखाए गए. मैं भी सीख आया. देखो, वहीं से तरहतरह की शुद्ध प्राकृतिक दवा भी खरीद कर लाया हूं.’’

मैं सकपकाया सा कभी रतनजी को और कभी उन डब्बाबंद जड़ीबूटियों के ढेर को देख रहा था. मैं ने कहा, ‘‘अरे भाई, कहां इन चक्करों में पडे़ हो. ये सब केवल कमाई के धंधे हैं.’’

रतनजी तुनक कर बोले, ‘‘ऐसा ही होता है. अच्छी बातों का सब तिरस्कार करते हैं.’’

इस के बाद मैं ने उन्हें ज्यादा समझाना ठीक नहीं समझा और जैसी आप की इच्छा कह कर लौट आया.

एक सप्ताह बाद एक दिन हड़बड़ाई सी श्रीमती रतन का फोन आया, ‘‘भाईसाहब, जल्दी आ जाइए. इन्हें बेहोशी छा रही है.’’

मैं तुरंत डाक्टर ले कर वहां पहुंचा. ग्लूकोज चढ़ाया गया. 2 घंटे बाद हालात सामान्य हुए. डाक्टर साहब बोले, ‘‘आप को पता नहीं था कि मधुमेह में शुगर का सामान्य से कम हो जाना प्राणघातक होता है.’’

डाक्टर के जाते ही रतनजी मुंह बना कर बोले, ‘‘देखा, मैं ने योग से शुगर कम कर ली तो वह डाक्टर कैसे तिलमिला गया. दुकान बंद होने का डर है न. हा…हा हा….’’

मैं ने अपना सिर पकड़ लिया. सोचा यह सच ही है कि हम सभी भारतीय दकियानूसी पट्टियां साथ लिए घूमते हैं. बस, इन्हें आंखों पर चढ़ाने वाला चाहिए. उस के बाद जो चाहे जैसे नचा ले.

एक माह तक रतनजी की योग साधना जारी रही. हर महीने के अंत में हम दोनों ब्लड टेस्ट कराते थे. इस बार रतनजी बोले, ‘‘अरे, मैं पूरी तरह से स्वस्थ हूं. कोई परीक्षण नहीं कराऊंगा.’’

अब तो परीक्षा का समय था. मैं बोला, ‘‘दादा, अगर तुम्हारी रिपोर्ट सामान्य आई तो कल से मैं भी योग को पूरी तरह से अपना लूंगा.’’

बात बन गई. शुगर की जांच हुई. नतीजा? नतीजा क्या होना था, रतनजी का ब्लड शुगर सामान्य से दोगुना अधिक चल रहा था.

रतनजी ने तुरंत आश्रम संपर्क साधा. कोई संतोषजनक उत्तर न पा कर  वह कार ले कर चल पड़े और 2 घंटे का सफर तय कर आश्रम ही जा पहुंचे.

मैं उस दिन आफिस में बैठा एक कर्मचारी से किसी दूसरे योग शिविर की महिमा सुन रहा था. रतनजी का फोन आया, ‘‘यार, योगीजी अस्वस्थ हैं. स्वास्थ्य लाभ के लिए अमेरिका गए हैं. 3 माह बाद लौटेंगे.’’

मैं ठहाके मार कर हंसा. बस, इतना ही बोला, ‘‘लौट आओ यार, आराम से सोओ, कल सैर पर चलेंगे.’’

कुदरत को चुनौती: भाग 1

जसबीर कौर और दलजीत कौर आपस में पक्की सहेलियां ही नहीं थीं, बल्कि उन दोनों के बीच दिलों का गहरा संबंध भी था. जसबीर गांव ढडीके, अजीतवाला, मोगा में रहती थी, जबकि दलजीत कौर पड़ोस के गांव की रहने वाली थी.

दोनों ने स्कूल से कालेज तक की पढ़ाई साथसाथ की थी. दोनों के बीच दोस्ती तो शुरू से ही थी, पर युवा होते ही उन के बीच अजीब से पे्रम का रिश्ता बन गया था. दोनों की दोस्ती एक ऐसे रिश्ते में तब्दील हो गई, जैसी एक युवा और युवती के प्रेम संबंधों के बीच होती है.

धीरेधीरे दोनों ऐसे प्रेम की डोर में बंध गए, जिसे हमारा समाज स्वीकार नहीं करता. ऐसे रिश्ते का विरोध होना लाजिमी था. हुआ भी, लेकिन वे दोनों तो एकदूसरे की दीवानी थीं. यह बात ऐसी नहीं थी जो छिप पाती. उन के संबंधों की जानकारी दोनों के परिजनों तक पहुंची तो जैसे भूचाल सा आ गया.

दोनों के घर वालों ने उन्हें समझाया, गांव के बड़ेबूढ़ों से ले कर पंचायत तक ने भी सामाजिक मानमर्यादा का उन्हें पाठ पढ़ाया, पर उन्होंने किसी की बात नहीं मानी. जसबीर और दलजीत एक साथ रहने और साथसाथ जीनेमरने की कसमें खा चुकी थीं. फिर वे किसी की क्या परवाह क्यों करतीं.

इस बीच दोनों की नौकरियां भी लग गईं. जसबीर कौर को मोगा स्थित आईटीआई में बतौर क्लर्क की नौकरी मिल गई थी जबकि दलजीत कौर गांव चूहड़चक के आईटीआई कालेज में बतौर टीचर नियुक्त हो गई थी. दोनों जब अपने पैरों पर खड़ी हो गईं तो उन्होंने अपना घर बसाने के लिए आगे की योजना बनाई.

तय हुआ कि जसबीर कौर अपना लिंग परिवर्तन करा कर जसबीर सिंह बन जाए और दलजीत कौर उस की पत्नी बन कर रहे. दोनों शादी कर के पतिपत्नी की तरह रहेंगी और अपना अलग घर बसा लेंगी. दोनों लड़कियों ने जो सोचा था, वह काम बहुत कठिन था पर प्रेम में पागल इन दोनों दीवानियों को भला कौन समझाता. यह बात सन 1998 की है.

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आईटीआई में जसबीर की नौकरी महिला वर्ग में लगी थी. अपना लिंग परिवर्तन कराने से पहले उसे विभाग और सरकार से अनुमति लेनी जरूरी थी. लिहाजा उस ने स्वास्थ्य मंत्रालय से मंजूरी मांगी. उस की फाइल लुधियाना के सिविल सर्जन को सौंपी गई. वहां से अप्रूवल लेने के बाद औपरेशन के लिए सन 1998 में जसबीर ने अपने कार्यालय से छुट्टियां लीं.

लुधियाना के एक अस्पताल में औपरेशन द्वारा उस का लिंग परिवर्तन किया गया. लिंग परिवर्तन के बाद वह औरत से पुरुष बन गया था. इस बीच दलजीत कौर ने अपना फर्ज निभाते हुए उस की खूब सेवा की थी. जसबीर कौर से जसबीर सिंह बनने में उसे थोड़ा वक्त लग गया था. फिर साल 2004 में दोनों ने शादी कर अपनी नई जिंदगी की शुरुआत की.

जसबीर और दलजीत ने शादी के बाद जगराओं में मकान बनवा कर रहना शुरू कर दिया. शादी के बाद कुछ सालों तक पतिपत्नी के रिश्तों में बहुत मिठास थी. लेकिन शादी के 7 साल बीत जाने के बाद भी जब उन की कोई संतान नहीं हुई तो दोनों का मन निराशा से भर गया. कई डाक्टरों से इलाज भी करवाया पर दलजीत कौर की गोद सूनी ही रही.

अंत में सन 2011 में लुधियाना के एक अस्पताल में टेस्टट्यूब तकनीक से दलजीत कौर एक बेटे की मां बनी, जिस का नाम अमानत सिंह रखा गया. बच्चा होने के बाद दोनों के जीवन में जैसे खुशियों की बहार आ गई थी. उन की गृहस्थी की गाड़ी पटरी पर दौड़ने लगी थी. सब कुछ ठीक चल रहा था. अमानत भी अब 8 साल का हो गया था और स्कूल जाने लगा था.

4 अगस्त, 2019 की बात है. 8 वर्षीय अमानत ने सुबहसुबह अपने पड़ोसी सुरजीत के घर जा कर बताया कि उस के मातापिता की किसी ने हत्या कर दी है. सुरजीत ने अपनी पत्नी और कुछ पड़ोसियों के साथ जसबीर सिंह के घर जा कर देखा तो वह चौंक गया.

कमरे में बैड पर जसबीर सिंह और उस की बगल में उस की पत्नी दलजीत कौर लहूलुहान पड़े थे. सुरजीत ने पास जा कर देखा तो पाया कि दलजीत की सांसें चल रही थीं, जबकि जसबीर सिंह की मौत हो चुकी थी.

उन्होंने तुरंत इस घटना की सूचना थाना सिटी जगराओं को दी और दलजीत को जिला अस्पताल में भरती करा दिया.

घटना की सूचना मिलने पर थाना सिटी के प्रभारी निधान सिंह, लेडी एसआई किरनजीत कौर, डीएसपी गुरदीप सिंह, डीएसपी (देहात) रछपाल सिंह घटनास्थल पर पहुंच गए.

पतिपत्नी दोनों खून से लथपथ थे. थानाप्रभारी ने यह जानकारी अपने उच्चाधिकारियों को दी तो थोड़ी देर में सीआईए प्रभारी जगदीश सिंह, थाना सदर के प्रभारी किक्कर सिंह, नारकोटिक्स सैल के प्रभारी इकबाल हुसैन और पुलिस चौकी बस स्टैंड इंचार्ज सईद शकील मौके पर पहुंच गए.

मौके पर फोरैंसिक टीम और डौग स्क्वायड को भी बुला लिया गया. अधिकारियों ने मुआयना किया तो पता चला कि जसबीर सिंह पर तेजधार चाकू से 20-25 वार किए गए थे. घर की अलमारी और लौकर भी खुले हुए थे. अलमारी का सामान इधरउधर बिखरा पड़ा था. बाद में पुलिस को पता चला था कि  हत्यारे घर से लगभग 2 लाख रुपए और जेवर लूट ले गए थे.

पुलिस ने घर के आसपास लगे दोनों सीसीटीवी कैमरे खंगाले, लेकिन कोई भी सुराग नहीं मिला. इतना ही नहीं, न तो घर का कोई दरवाजा टूटा मिला और न ही खिड़की. जांच में पुलिस को यह भी पता चला कि घर का दरवाजा भी अंदर से बंद था, जिसे सुबह उन के बेटे अमानत ने कुरसी पर खड़े हो कर मुश्किल से खोला था और पड़ोसियों को घटना की जानकारी दी थी.

पड़ोसियों और रिश्तेदारों के बयान दर्ज करने के बाद मृतक के भांजे कमलजीत सिंह के बयान पर 4 अगस्त, 2019 को अज्ञात लोगों के खिलाफ थाना सिटी जगराओं में हत्या का मुकदमा दर्ज कर जसबीर सिंह की लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दी गई.

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केस का खुलासा करने के लिए डीएसपी गुरदीप सिंह ने थानाप्रभारी निधान सिंह के नेतृत्व में एक पुलिस टीम गठित की. टीम में एसआई किरनजीत कौर, एएसआई गुरमीत सिंह, कांस्टेबल जगजीत सिंह, गुरप्रीत सिंह, दर्शन सिंह आदि को शामिल किया गया.  टीम ने जांच शुरू कर दी.

पुलिस को अब अस्पताल में भरती दलजीत कौर के होश में आने का इंतजार था. इस मामले की वही एक ऐसी चश्मदीद गवाह थी, जिस ने सब कुछ अपनी आंखों से देखा था.

होश में आने के बाद दलजीत कौर ने अपने बयान में बताया कि 3 अगस्त की रात वह अपने पति जसबीर सिंह और 8 साल के बेटे अमानत के साथ घर में सो रही थी. उस रात वह खाना खा कर करीब साढ़े 9 बजे सो गए थे. आधी रात को 4 लोग घर में दाखिल हुए जिन के मुंह पर कपड़े बंधे थे.

उन में 2 कमरे के बाहर खड़े रहे और 2 अंदर आ गए. उन दोनों ने उन पर हमला कर दिया, वह उन से भिड़ गई तो बदमाशों ने उस की बाजू व कंधे पर तेज धारदार हथियार से हमला कर घायल कर दिया और उस के मुंह में कपड़ा ठूंस कर कुरसी से बांध दिया.

बदमाशों ने उस के पति पर कई वार किए, जिस से उन की मौके पर ही मौत हो गई थी. दलजीत ने बताया कि इस के बाद उन्होंने घर में लूट की और फरार हो गए. बाद में उस ने किसी तरह अपने बेटे को उठाया. जब वह उठा तो हमें खून से लथपथ देख घबरा गया. उस ने ही चाकू से रस्सी काट कर उसे खोला और पड़ोसियों को घटना की जानकारी दी.

पुलिस को दलजीत कौर का यह बयान झूठा और बचकाना लगा. क्योंकि घर के अंदर किसी जोरजबरदस्ती से एंट्री के निशान नहीं मिले थे. उस का बयान उस के बेटे अमानत के बयान से दूरदूर तक भी मेल नहीं खा रहा था. थानाप्रभारी ने उस समय दलजीत से कुछ कहना उचित नहीं समझा. वह उस के खिलाफ और पुख्ता सबूत हासिल करना चाहते थे. इसलिए उन्होंने अपने मुखबिरों को दलजीत कौर के बारे में पता लगाने के लिए कह दिया.

एसआई किरनजीत कौर को असपास के लोगों से पूछताछ करने पर केवल इतना ही पता चला कि पिछले कुछ समय से दोनों पतिपत्नी के बीच अकसर झगड़ा रहता था. उन के संबंध ठीक नहीं थे. उन्हें यह भी जानकारी मिली कि दलजीत कौर सप्ताह में 2-3 बार अमृतसर श्री हरमिंदर साहिब गुरुद्वारा जाती थी.

उन्होंने यह बात थानाप्रभारी को बताई. थानाप्रभारी ने जब दलजीत कौर के फोन की काल डिटेल्स निकलवाई तो उस में एक ऐसा नंबर मिला, जिस पर दलजीत की रातबेरात कई घंटे तक बातें होती थीं.

जांच में वह फोन नंबर अमृतसर निवासी हरकृष्ण सिंह का निकला लेकिन उस की लोकेशन जगराओं की थी. जिस से कहानी काफी हद तक साफ हो गई थी.

थानाप्रभारी निधान सिंह ने चौकी इंचार्ज सईद शकील की अगुवाई में एक टीम अमृतसर में हरकृष्ण के घर भेजी. पर वह घर पर नहीं मिला. हरकृष्ण सिंह और दलजीत कौर पुलिस के शक के दायरे में आ चुके थे. अब पुलिस मौके का इंतजार कर रही थी.

10 अगस्त, 2019 को मृतक जसबीर सिंह की अंतिम अरदास के तुरंत बाद पुलिस ने दलजीत कौर को गिरफ्तार कर लिया. उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने पति की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. उस से पूछताछ के बाद पुलिस ने उसी दिन देर शाम को करनवीर मज्जू की अदालत में पेश कर पूछताछ के लिए 4 दिन के रिमांड पर ले लिया.

दलजीत कौर से की गई पूछताछ के बाद इस हत्याकांड की जो कहानी प्रकाश में आई, वह 2 ऐसी औरतों की कहानी थी, जिन्होंने प्रकृति का नियम बदलने का प्रयास किया, जिस के बदले एक को मौत मिली और दूसरी को जेल.

हमारे समाज में अधिकांश अपराध मोह और आकर्षण के कारण ही होते हैं. दलजीत कौर और जसबीर कौर का भी एकदूसरे के प्रति बहुत आकर्षण था. इसीलिए साथ जीनेमरने की कसमें खाने के बाद जसबीर ने अपना लिंग परिवर्तन करा कर पतिपत्नी के साथ रहना शुरू कर दिया था.

सब कुछ ठीकठाक चल रहा था, पिछले कुछ सालों से दलजीत कौर को पति जसबीर सिंह में शारीरिक रूप से कई खामियां नजर आने लगी थीं. वह उस से शारीरिक रूप से संतुष्ट नहीं थी. वह किसी अन्य पुरुष का संग चाहती थी.

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ऐसे में उस ने अपना विकल्प फेसबुक को बनाया. जल्द ही फेसबुक के माध्यम से उस की मुलाकात सुल्तानविंड रोड अमृतसर निवासी हरकृष्ण से हो गई, जो पहले से ही विवाहित और युवा बच्चों का बाप था.

क्रमश:

 —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्य: मनोहर कहानियां

नई जिंदगी की शुरुआत : भाग 1

लेखक-अरुणा त्रिपाठी

पिता की असामयिक मौत ने कल्पना पर जिम्मेदारियों का बोझ लाद दिया था. आर्थिक तंगी के चलते जिंदगी के हर कदम पर उसे समझौता करना पड़ रहा था. लेकिन जब उस ने एक नई जिंदगी की शुरुआत करनी चाही तो अतीत के काले साए ने वहां भी उस का पीछा नहीं छोड़ा.

कई बार इनसान की मजबूरी उस के मुंह पर ताला लगा देती हैऔर वह चाह कर भी नहीं कह पाता जो कहना चाहता है. सुमित्रा के साथ भी यही था. घर की जरूरतों के अलावा कम उम्र के बच्चों के भरणपोषण का बोझ उन की सोच पर परदा डाले हुए था. वह अपनी शंका का समाधान बेटी से करना चाहती थीं पर मन में कहीं डर था जो बहुत कुछ जानसमझ कर भी उन्हें नासमझ बनाए हुए था.

पति की असामयिक मौत ने उन की कमर ही तोड़ दी थी. 4 छोटे बच्चों व 1 सयानी बेटी का बोझ ले कर वह किस के दरवाजे पर जाएं. उन की बड़ी बेटी कल्पना पर ही घर का सारा बोझ आ पड़ा था. उन्होंने साल भर के अंदर बेटी के हाथ पीले करने का विचार बनाया था क्योंकि बेटी कल्पना को कांस्टेबल की नौकरी मिल गई थी. आज बेटी की नौकरी न होती तो सुमित्रा के सामने भीख मांगने की नौबत आ गई होती.

बच्चे कभी स्कूल फीस के लिए तो कभी यूनीफार्म के लिए झींका करते और सुमित्रा उन पर झुंझलाती रहतीं, ‘‘कहां से लाऊं इतना पैसा कि तुम सब की मांग पूरी करूं. मुझे ही बाजार में ले जाओ और बेच कर सब अपनीअपनी इच्छा पूरी कर लो.’’

कल्पना कितनी बार घर में ऐसे दृश्य देख चुकी थी. आर्थिक तंगी के चलते आएदिन चिकचिक लगी रहती. उस की कमाई से दो वक्त की रोटी छोड़ खर्च के लिए बचता ही क्या था. भाई- बहनों के सहमेसहमे चेहरे उस की नींद उड़ा देते थे और वह घंटों बिस्तर पर पड़ी सोचा करती थी.

कल्पना की ड्यूटी गुवाहाटी रेलवे स्टेशन पर थी. वह रोज देखती कि उस के साथी सिपाही किस प्रकार से सीधेसादे यात्रियों को परेशान कर पैसा ऐंठते थे. ट्रेन से उतरने के बाद सभी को प्लेटफार्म से बाहर जाने की जल्दी रहती है. बस, इसी का वे वरदी वाले पूरा लाभ उठा रहे थे.

‘‘कोई गैरकानूनी चीज तो नहीं है. खोलो अटैची,’’ कह कर हड़काते और सीधेसादे यात्री खोलनेदिखाने और बंद करने की परेशानी से बचने के लिए 10- 20 रुपए का नोट आगे कर देते. सिपाही मुसकरा देते और बिना जांचेदेखे आगे बढ़ जाने देते.

यदि कोई पैसे देने में आनाकानी करता, कानून की बात करता तो वे उस की अटैची, सूटकेस खोल कर सामान इस कदर इधरउधर सीढि़यों पर बिखेर देते कि उसे समेट कर रखने में भी भारी असुविधा होती और दूसरे यात्रियों को एक सबक मिल जाता.

ऐसे ही एक युवक का हाथ एक सिपाही ने पकड़ा जो होस्टल से आ रहा था. सिपाही ने कहा, ‘‘अपना सामान खोलो.’’

लड़का किसी वीआईपी का था, जिसे सी.आई.एस.एफ. की सुरक्षा प्राप्त थी. इस से पहले कि लड़का कुछ बोलता उस के पिता के सुरक्षादल के इंस्पेक्टर ने आगे बढ़ कर कहा, ‘‘अरे, यह मेरे साहब का लड़का है.’’

तुरंत सिपाही के हाथों की पकड़ ढीली हो गई और वह बेशर्मी से हंस पड़ा. एक बुजुर्ग यह कहते हुए निकल गए, ‘‘बरखुरदार, आज रिश्वतखोरी में नौकरी से हाथ धो बैठते.’’

कल्पना यह सबकुछ देख कर चकित रह गई लेकिन उस सिपाही पर इस का कुछ असर नहीं पड़ा था. उस ने वह वैसे ही अपना धंधा चालू रखा था. जाहिर है भ्रष्ट कमाई का जब कुछ हिस्सा अधिकारी की जेब में जाएगा तो मातहत बेखौफ तो काम करेगा ही.

कल्पना का जब भी अपनी मां सुमित्रा से सामना होता, वह नजरें नहीं मिलाती बल्कि हमेशा अपने को व्यस्त दर्शाती. उस के चेहरे की झुंझलाहट मां की प्रश्न भरी नजरों से उस को बचाने में सफल रहती और सुमित्रा चाह कर भी कुछ पूछने का साहस नहीं कर पातीं.

कमाऊ बेटी ने घर की स्थिति को पटरी पर ला दिया था. रोजरोज की परेशानी और दुकानदार से उधार को ले कर तकरार व कहासुनी से सुमित्रा को राहत मिल गई थी. उसे याद आता कि जब कभी दुकानदार पिछले कर्ज को ले कर पड़ोसियों के सामने फजीहत करता, वह शर्म से पानीपानी हो जाती थीं पर छोटेछोटे बच्चों के लिए तमाम लाजशर्म ताक पर रख उलटे  हंसते हुए कहतीं कि अगली बार उधार जरूर चुकता कर दूंगी. दुकानदार एक हिकारत भरी नजर डाल कर इशारा करता कि जाओ. सुमित्रा तकदीर को कोसते घर पहुंचतीं और बाहर का सारा गुस्सा बच्चों पर उतार देती थीं.

आज उन को इस शर्मिंदगी व झुंझलाहट से नजात मिल गई थी. कल्पना ने घर की काया ही पलट दी थी. उन्हें बेटी पर बड़ा प्यार आता. कुछ समय तक तो उन का ध्यान इस ओर नहीं गया कि परिस्थिति में इतना आश्चर्यजनक बदलाव इतनी जल्दी कैसे और क्यों आ गया किंतु धीरेधीरे उन के मन में कुछ शंका हुई. कई दिनों तक अपने से सवालजवाब करने की हिम्मत बटोरी उन्होंने और से पूछा, ‘‘मेरी समझ में नहीं आता कल्पना बेटी कि तुम दिन की ड्यूटी के बाद फिर रात को क्यों जाती हो…’’

अभी सुमित्रा की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि कल्पना ने बीच में ही बात काटते हुए कहा, ‘‘मां, मैं डबल ड्यूटी करती हूं. और कुछ पूछना है?’’

कल्पना ने यह बात इतने रूखे और तल्ख शब्दों में कही कि वह चुप हो गईं. चाह कर भी आगे कुछ न पूछ पाईं और कल्पना अपना पर्स उठा कर घर से निकल गई. हर रोज का यह सिलसिला देख एक दिन सुमित्रा का धैर्य टूट गया. कल्पना आधी रात को लौटी तो वह ऊंचे स्वर में बोलीं, ‘‘आखिर ऐसी कौन सी ड्यूटी है जो आधी रात बीते घर लौटती हो. मैं दिन भर घर के काम में पिसती हूं, रात तुम्हारी चिंता में चहलकदमी करते बिताती हूं.’’

मां की बात सुन कर कल्पना का प्रेम उन के प्रति जाग उठा था पर फिर पता नहीं क्या सोच कर पीछे हट गई, मानो मां के निकट जाने का उस में साहस न हो.

‘‘मां, तुम से कितनी बार कहा है कि मेरे लिए मत जागा करो. एक चाबी मेरे पास है न. तुम अंदर से लाक कर के सो जाया करो. मैं जब ड्यूटी से लौटूंगी, खुद ताला खोल कर आ जाया करूंगी.’’

‘‘पहले तुम अपनी शक्ल शीशे में देखो, लगता है सारा तेज किसी ने चूस लिया है,’’ सुमित्रा बेहद कठोर लहजे में बोलीं.

कल्पना के भीतर एक टीस उठी और वह अपनी मां के कहे शब्दों का विरोध न कर सकी.

सुबह का समय था. पक्षियों की चहचहाहट के साथ सूर्य की किरणों ने अपने रंग बिखेरे. सुमित्रा का पूरा परिवार आंगन में बैठा चाय पी रहा था. उन की एक पड़ोसिन भी आ गई थीं. कल्पना को देख वह बोली, ‘‘अरे, बिटिया, तुम तो पुलिस में सिपाही हो, तुम्हारी बड़ी धाक होगी. तुम ने तो अपने घर की काया ही पलट दी. तुम्हें कितनी तनख्वाह मिलती है?’’

कल्पना ऐसे प्रश्नों से बचना चाहती थी. इस से पहले कि वह कुछ बोलती उस की छोटी बहन ने अपनी दीदी की तनख्वाह बढ़ाचढ़ा कर बता दी तो घर के बाकी लोग खिलखिला कर हंस दिए और बात आईगई हो गई.

सुमित्रा बड़ी बेटी की मेहनत को देख कर एक अजीब कशमकश में जी रही थीं. इस मानसिक तनाव से बचने के लिए सुमित्रा ने सिलाई का काम शुरू कर दिया पर बडे़ घरों की औरतें अपने कपड़े सिलने को न देती थीं और मजदूर घरों से पर्याप्त सिलाई न मिलती इसलिए उन्होंने दरजी की दुकानों से तुरपाई के लिए कपडे़ लाना शुरू कर दिया. शुरुआत में हर काम में थोड़ीबहुत कठिनाई आती है सो उन्हें भी संघर्ष करना पड़ा.

जैसेजैसे सुमित्रा की बाजार में पहचान बनी वैसेवैसे उन का काम भी बढ़ता गया. अब उन्हें घर पर बैठे ही आर्डर मिलने लगे तो उन्होंने अपनी एक टेलरिंग की दुकान खोल ली.

5 सालों के संघर्ष के बाद सुमित्रा को दुकान से अच्छीखासी आय होने लगी. अब उन्हें दम मारने की भी फुरसत नहीं मिलती. कई कारीगर दुकान पर अपना हाथ बंटाने के लिए रख लिए थे.

कल्पना ड्यूटी से आने के बाद औंधेमुंह बिस्तर पर लेट गई. छोटी बहन खाना खाने के लिए 2 बार बुलाने आई पर हर बार उसे डांट कर भगा दिया. सुमित्रा खुद आईं और बेटी की पीठ पर हाथ फेरते हुए बडे़ प्यार से पूछा, ‘‘क्या बात है बेटी, खाना ठंडा हो रहा है?’’

कल्पना उठ कर बैठ गई. उस के रोंआसे चेहरे को देख कर सुमित्रा भांप गई कि जरूर कुछ गड़बड़ है. उन्होंने पुचकारते हुए कहा, ‘‘बहादुर बच्चे दुखी नहीं होते. जरूर कुछ आफिस में किसी से कहासुनी हो गई होगी, क्यों?’’

‘‘वह चपरासी, दो टके का आदमी मुझ से कहता है कि मेरी औकात क्या है…’’ कल्पना रो पड़ी.

‘‘वजह?’’ सुमित्रा ने धीरे से पूछा.

‘‘यह सब इस कारण क्योंकि वह मुझ से ज्यादा तनख्वाह पाता है. एक सिपाही की कुछ हैसियत नहीं होती, मां.’’

‘‘ज्यादा तनख्वाह पाता है तो उस की उम्र भी तुम से दोगुनी होगी. इस में इतनी हीनभावना पालने की क्या जरूरत…’’

मां के कहे को अनसुना करते हुए कल्पना बीच में बोली, ‘‘सारे दिन हाथ में डंडा घुमाओ या फिर सलाम ठोंको. इस के अलावा सिपाही का कोई काम नहीं. किसी ताकतवर अपराधी को पकड़ लो तो उलटे आफत. किसी की शिकायत अधिकारी से करने जाओ तो वह ऐसे देखता है मानो वह बहुत बड़ा एहसान कर रहा हो और फिर इस की भी कीमत मांगता है. तुम से क्या बताऊं, मां, इन अधिकारियों के कारण ही तो मैं…’’

रोटावेटर खास जुताई यंत्र : मिल रही सरकारी मदद

रोटावेटर कैसे काम करता है

रोटावेटर स्टील फ्रेम का बना होता है जिस पर रोटरी शाफ्ट ब्लेड के साथ और शक्ति स्थानांतरण प्रणाली गियर बौक्स के साथ जुड़े होते?हैं. इस में अंगरेजी के ‘एल’ आकार की तरह के ब्लेड होते हैं जो कार्बन स्टील या मिश्रित स्टील के बने होते हैं. पीटीओ अक्ष की घूर्णन गति से शक्ति का स्थानांतरण गियर बौक्स होते हुए ब्लेड को मिलता है.

रोटावेटर की मदद से मिट्टी को ज्यादा भुरभुरा बनाया जा सकता है. कल्टीवेटर की 2 बार की जुताई इस की एक बार की जुताई के बराबर होती है. इस से?ट्रैक्टर चालित हल की तुलना में 60 फीसदी मजदूर की बचत, 40-50 फीसदी संचालन के खर्च में बचत और उपज में 2-3 फीसदी की बढ़ोतरी होती है.

रोटावेटर के लाभ

* इस में अंगरेजी के ‘एल’ आकार के?ब्लेड होते?हैं जो मिट्टी की ऊपरी और निचली परत को आसानी से काट कर मिट्टी को भुरभुरा बना देता?है, वह भी मिट्टी की परत पर अतिरिक्त दबाव डाले बिना.

* फसलों और पौधों की जड़ों को बिना किसी प्रतिरोध के प्रसार करने में मदद मिलती है और बेहतर विकास और उपज देती है.

* मिश्रण के द्वारा निचली परत तक पोषक तत्त्व पहुंचता है और मिट्टी के पोषण तत्त्वों को फिर से जिंदा करने में मदद करता है.

* इस से मिट्टी की जड़ों तक औक्सीजन आसानी से पहुंचता?है जो फसलों और पौधों के लिए जरूरी है. इस वजह से फसल की बढ़वार और पैदावार अच्छी होती है.

* जमीन में उग आए खरपतवार और दूसरे अवशेषों को काट कर जमीन में मिला देता है. इस से मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा बढ़ जाती है और उपज अच्छी होती है.

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* खेत में एक बार ही रोटावेटर से जुताई करने से खेत बोआई लायक हो जाता है और समय व पैसे की बचत होती है.

* खेत में ढेले नहीं बनते, जिस से अंकुरण अच्छा होता है.

* यह मशीन पिछली फसल कटने के बाद जो अवशेष खेत में रह जाते?हैं, उन्हें जड़ से खोद कर अच्छी तरह से मिट्टी में मिला देती है.

रोटावेटर का रखरखाव

* उपयोग से पहले यह तय कर लें कि उपकरण पूरी तरह से सही है.

* उपयोग करने के बाद छायादार जगह पर रखें.

सरकार कितना अनुदान देगी : रोटावेटर की अनुमानित लागत 90,000 से 1,00,000 रुपए तक है. इस में सरकार आप को एनएफएसएम यानी राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन योजना के तहत अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति लघु सीमांत एवं महिला किसानों के लिए 42,000 रुपए से 50,000 रुपए तक और अन्य किसानों के लिए इन योजनाओं में 34,000 से 40,300 रुपए तक का अनुदान देय है.

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कैसे मिलेगा यह अनुदान

अनुदान के लिए पत्रावली के साथ लगाए जाने वाले दस्तावेज

* आवेदनपत्र के साथ लाभार्थी का पासपोर्ट साइज प्रमाणित फोटो.

* जमीन की जमाबंदी या पासबुक.

* यंत्र का खरीद बिल या प्रोफार्मा इनवोइस और अधिकृत विक्रेता का प्रमाणपत्र.

* यंत्र की प्रमाणित फोटो लाभार्थी के साथ.

* शपथपत्र या अंडरटेकिंग.

* ट्रैक्टर के कागजातों की प्रतिलिपि.

अधिक जानकारी के लिए आप क्षेत्र के कृषि पर्यवेक्षक, सहायक कृषि अधिकारी या सहायक निदेशक, (कृषि) से संपर्क कर सकते हैं.

फेस्टिवल स्पेशल 2019: ऐसे बनाएं पनीर कौर्न चाट रेसिपी

आज आपको  पनीर  कौर्न चाट रेसिपी के बारे में बताने जा रहे है. जो बहुत ही स्वादिष्ट है और इसे आप आसानी से बना भी सकते हैं. तो आइए झट से आपको बताते है पनीर कौर्न चाट की रेसिपी.

 सामग्री

बेबी कौर्न (1 कप)

अंडे 2 (उबले हुए)

पनीर (1 छोटी कटोरी)

शिमला मिर्च 1 (बारीक कटी हुई)

प्याज 1 (बारीक कटी हुई)

आलू 1 (उबला और महीन कटा हुआ)

औलिव औयल (2 टेबल स्पून)

सरसों के दाने (1/2 छोटा चम्मच)

हरी मिर्च (2)

करी पत्ता (6-7)

जीरा पाउडर (1 चम्मच)

नींबू का रस (1 चम्मच)

चीनी (2 चम्मच)

नमक (स्वादानुसार)

काली मिर्च पाउडर स्वादानुसार

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बनाने की वि​धि

पैन में तेल गर्म करें और इसमें सरसों के दाने और करी पत्ता फ्राई कर लें.

अब इसमें कटी हुई प्याज डालकर सुनहरा होने तक सेकें.

प्याज सुनहरा होने पर इसमें बारीक कटी हुई शिमला मिर्च डाल दें. इसे अच्छी तरह भूनें.

बरीक कटा हुआ आलू, बेबी कॉर्न, पनीर और अंडा डालकर 1 से 2 मिनट के लिए धीमी आंच पर सेकें.

अब इसमें नमक, जीरा पाउडर और काली मिर्च डालकर अच्छी तरह मिलाएं.

तैयार मिश्रण को गैस से उतार लें और अब नींबू का रस और चीनी डालकर अच्छी तरह मिला दें.

अब इसे गर्मागर्म धनिए और पुदीने की चटनी या फिर सॉस के साथ सर्व करें.

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4 टिप्स: सर्दियों में स्किन का ऐसे रखें ख्याल

सर्दियों के मौसम में चलने वाली सर्द हवाएं त्वचा की नमी छीन लेती है जिसके कारण त्वचा लाल और शुष्क हो जाती है. खासतौर पर ये समस्या तब बढ़ जाती है जब आपकी त्वचा सेंसिटिव हो. त्वचा में आया लालपन इन्फ्लेम्शन की तरफ इशारा करता है. आपके त्वचा के लाल होने के पीछे दूसरे कारण भी हो सकते हैं, जैसे एंटी बैक्टीरियल साबुन, डिटर्जेंट या केमिकल युक्त साबुन.

सर्दियों में त्वचा के लालपन को कम करने के लिए बाजार में कई तरह के लोशन और क्रीम उपलब्ध हैं. इसके अलावा, आपको इस मौसम में अपनी त्वचा का ख्याल रखने के लिए कुछ बातों का खास ख्याल रखना बहुत जरूरी है.

  1. त्वचा की सौम्य तरीके से देखभाल

आपको इस मौसम में त्वचा का थोड़ा बेहतर और सौम्य तरीके से ख्याल रखना होगा. आपकी त्वचा पहले ही सेंसिटिव स्थिति में पहुंच गयी है इसलिए उसपर आप ज्यादा एक्सपेरिमेंट करेंगे तो वो और डैमेज हो जाएगी व खुजली होगी. आपको रोजाना अपनी त्वचा को साफ करने की जरूरत है लेकिन ये काम सतर्क होकर करें. त्वचा को ज्यादा ना रगड़ें. सौम्य तरीका अपनाएं और त्वचा को सुखाने के लिए मुलायम तौलिए का ही प्रयोग करें.

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2. मौइश्चराइज

ये पहला, जरूरी और सबसे बेसिक टिप है जिसे आपको फौलो करना चाहिए. त्वचा पर दिखने वाला लालपन ये इशारा करता है कि आपकी स्किन डीहाईड्रेटेड है और उसे हाईड्रेशन की सख्त जरूरत है. त्वचा के लाल हो जाने की वजह से उस जगह पर निशान या धब्बा भी बन सकता है. आप अपनी स्किन टाइप को ध्यान में रखते हुए मौइश्चराइजर चुन सकते हैं और त्वचा को लाल होने से बचाने के लिए आप दिन में दो बार इसका इस्तेमाल कर सकते हैं.

3. सनस्क्रीन का करें इस्तेमाल

सनस्क्रीन का इस्तेमाल हर मौसम में करना चाहिए चाहे सर्दी हो या गर्मी. ये त्वचा पर एक प्रोटेक्शन की परत चढ़ाता है. आपकी त्वचा सेंसिटिव है और आपको उसे और नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए. सूरज की रौशनी में सीधे निकलने पर यूवी किरणें आपकी त्वचा पर अटैक करती है, इस वजह से आप जब भी घर से बाहर निकलें सनस्क्रीन का इस्तेमाल जरूर करें.

4. डाइट का रखें ख्याल

बाहर से त्वचा को स्वस्थ बनाने के साथ ये भी जरूरी है कि आप अंदर से भी हेल्दी हों. ऐसा माना जाता है कि इस मौसम के दौरान आपका इम्युनिटी लेवल नीचे गिर जाता है. शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता को बनाए रखने के लिए जरूरी है कि आप अपना खानपान सही रखें. एंटीऔक्सीडेंट्स से भरपूर खाना इसमें आपकी मदद कर सकता है. आप अपनी त्वचा को बेहतर बनाने के लिए गाजर, बेरीज, चुकंदर आदि खा सकते हैं.

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जानिए, बौयफ्रेंड के किन सवालों से कतराती हैं लड़कियां

कहा जाता है कि लड़कियों को समझ पाना बहुत मुश्किल काम होता हैं, जो कि एक हद तक सही बात हैं. क्योंकि लड़कियों के मन में कब क्या चल रहा होता है, कोई नहीं जान पाता है. लेकिन कुछ बातें ऐसी होती हैं जो हर लड़की के मन में छिपी हुई होती हैं और लड़कियां कतराती है कि कहीं उनका बौयफ्रेंड उनसे ये सवाल ना पूछ ले.

जी हां, आज हम आपको उन्हीं कुछ सवालों के बारे में बताने जा रहे हैं जिनका जवाब देने से लड़कियां कतराती हैं और चाहती हैं की उनका बौयफ्रेंड उनसे कभी भी ये सवाल ना पूछे. तो आइये जानते हैं इन सवालों के बारे में.

क्या मैं तुम्हारा पहला प्यार हूं?

हर लड़का अपनी गर्लफ्रैंड से यह सवाल तो जरूर पूछना चाहता है कि क्या वह उसका पहला प्यार है. मगर लड़कियों को अपने बौयफ्रैंड से पहले कोई और जरूर पसंद होता है, चाहे वह उसका क्रश ही क्यों न हो.

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क्या तुम मेरी मौम के साथ शौपिंग पर जाओगी?

हर लड़का चाहता है कि उसकी गर्लफ्रैंड उसकी मौम के साथ शौपिंग पर जरूर जाए, ताकि वह इसी बहाने उन्हें अच्छे से जान लें. मगर लड़कियां अपने बौफ्रैंड की मौम के साथ शौपिंग पर जाने से बहुत डरती है.

तुम्हारे पैरेंट्स मुझे पसंद करेंगे या नहीं?

अपनी गर्लफ्रैंड के पेरेंट्स से मिलना लड़कों के लिए सबसे मुश्किल काम होता है और वह पहले ही अपने पार्टनर से यह सवाल करने लगते हैं. मगर लड़कियां इस बात को लेकर खुद इतनी टेंशन में होती है कि वह सवाल से बचना चाहती हैं.

मेरी फ्रैंड या बहन कितनी क्यूट है न!

हर लड़का अपनी गर्लफ्रैंड से यह जरूर पूछता है कि उसकी बहन या दोस्त उसे कैसे लगती है. मगर लड़कियां ऐसी बातों से दूर रहना ही पसंद करती हैं.

तुम अब किसी दूसरे लड़के को डेट तो नहीं करोगी?

लड़कों के मन में हमेशा यह डर रहता है कि उसकी पार्टनर किसी बात को लेकर गुस्सा न हो जाए. ऐसे में अपनी इस इनसिक्योरटी के चलते अपनी गर्लफ्रैंड से यह सवाल पूछ बैठते हैं.

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