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विश्व धरोहर मोंट सेंट माइकल चर्च     

क्षेत्र भले ही कोई भी हो, नई टैक्नोलौजी ने हर काम को आसान बना दिया है. लेकिन सदियों पहले इंसान के पास जब सीमित साधन थे, तब भी तमाम ऐसे निर्माण कार्य हुए, जो आजकल असंभव से लगते हैं. ऐसा ही एक चर्च फ्रांस के नौरमंडी प्रांत में एक टापू पर है, जिस का नाम है मोंट सेंट माइकल चर्च. इस चर्च को यूनेस्को ने 1979 में विश्व धरोहरों की सूची में शामिल किया था.

7 हेक्टेयर में फैला मोंट सेंट माइकल चर्च शिल्पकला का अद्भुत नमूना है. जिस टापू पर यह बना है, 708 ईस्वी में उस की खोज बिशप औबर्ट औफ एवरांचेज ने की थी. उन्होंने यहां चर्च बनवाया, जिसे 1203 में फ्रांस के राजा फिलिप (द्वितीय) ने नष्ट करवा दिया था. बाद में 1863 में इस का पुनरुद्धार कर इसे ऐतिहासिक इमारत घोषित किया गया. बाद में 1979 में इसे विश्व धरोहर में शामिल कर लिया गया.

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मध्यकाल में यह टापू समुद्र से 5 किलोमीटर दूर था, लेकिन धीरेधीरे खाड़ी में गाद जमा होने की वजह से किनारा नजदीक आता गया और इस की दूरी घट कर महज डेढ़ किलोमीटर रह गई. आज भी यह टापू महीने में 2 बार पूरी तरह पानी से घिर जाता है. इस टापू को यूरोप में अपने तीव्र ज्वार के लिए जाना जाता है. अमावस्या और पूर्णिमा को तो यहां 15 मीटर ऊंची लहरें उठती हैं.

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जैविक खेती से सुधरे जमीन की सेहत

 डा. मनोज कुमार, डा. ओमकार सिंह, डा. सतीश कुमार

हरित क्रांति के बाद उत्पादन बढ़ाने के लिए कैमिकल खादों और कीटनाशकों का अंधाधुंध इस्तेमाल किया गया. इस से उत्पादन तो बढ़ा, पर प्राकृतिक असंतुलन भी बढ़ता चला गया. पेड़पौधों के साथसाथ इनसानों में भी तरहतरह की बीमारियां पनपने लगी हैं, मिट्टी ऊसर होती जा रही है और खेती से उपजने वाली चीजों की क्वालिटी भी खराब हो रही है. ऐसी स्थिति में जैविक खेती का महत्त्व और भी बढ़ जाता है.

खेती की ऐसी प्रक्रिया जिस में उत्पादन के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले निवेशों के आधार पर जीव अंश से उत्पादित हो और पशु, इनसान और जमीन की सेहत को टिकाऊ बनाते हुए स्वच्छता के साथ पर्यावरण को भी पोषित करे, जैविक खेती कही जाएगी.

यानी जैविक खेती एक ऐसा तरीका है, जिस में कैमिकल खादों, कीटनाशकों और खरपतवारनाशियों के बजाय जीवांश खाद पोषक तत्त्वों (गोबर की खाद, कंपोस्ट, हरी खाद, जीवाणु कल्चर, जैविक खाद वगैरह) जैवनाशियों (बायोपैस्टीसाइड) व बायोएजेंट जैसे क्राईसोपा वगैरह का इस्तेमाल किया जाता है, जिस से न केवल जमीन की उपजाऊ कूवत लंबे समय तक बनी रहती है, बल्कि पर्यावरण भी प्रदूषित नहीं होता. साथ ही, खेती की लागत घटने व उत्पाद की क्वालिटी बढ़ने से किसानों को ज्यादा फायदा भी मिलता है.

जैविक खेती को अपनाने के लिए पशुपालन को बढ़ावा देना होगा. अगर हमारा पशुधन अच्छा, स्वस्थ और अधिक नहीं है तो जैविक खेती संभव नहीं है. जैविक खेती में देशी खादें जैसे गोबर की खाद, नाडेप कंपोस्ट, वर्मी कंपोस्ट व हरी खादों का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करना चाहिए.

जैविक खेती की प्रक्रिया : जैविक खेती के लिए हमेशा गरमी में जुताई करना, उस के बाद उस में हरी खाद की बोआई करना जरूरी रहता?है. खेत की तैयारी पशुओं द्वारा पशुचालित यंत्रों से करनी चाहिए.

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जैविक उर्वरक प्रयोग विधि

बीज का उपचार: 200 ग्राम नाइट्रोजन स्थरीकरण के लिए (एजोटोबैक्टर/ राइजोबियम) जैव उर्वरक और 200 ग्राम पीएसबी जैव उर्वरक 300 से 400 मिलीलिटर पानी में अच्छी तरह मिला लें. इस?घोल में

50 ग्राम गुड़ भी घोल लेते हैं, ताकि बीजों पर घोल अच्छी तरह से चिपक जाए.

इस?घोल को 10-12 किलोग्राम बीज पर डाल कर हाथ से तब तक मिलाएं, जब तक कि सभी बीजों पर एकसमान परत न चढ़ जाए. अब इन बीजों को छायादार और हवादार जगह पर सूखने के लिए रख दें.

अम्लीय या क्षारीय मिट्टी वाली जमीन के लिए किसानों को यह सलाह दी जाती है कि जैव आधारित बीजों को 1 किलोग्राम बुझा चूना अम्लीय मिट्टी में या जिप्सम पाउडर क्षारीय मिट्टी द्वारा उपचारित करें.

जड़ का उपचार : 1 किलोग्राम से 2 किलोग्राम नाइट्रोजन स्थरीकरण जैव उर्वरक (एजोटोबैक्टर/एजोस्पाइरिलम) और पीएसबी जैव उर्वरक को सही पानी (5-10 लिटर या

1 एकड़ में लगाई जाने वाली पौध की मात्रानुसार) का घोल बनाएं. बाद में रोपाई की जाने वाली पौध की जड़ों को इस घोल में 20-30 मिनट तक रोपाई करने से पहले डुबो कर रखें.

धान की रोपाई के लिए खेत में एक?क्यारी (2 मीटर×1.5 मीटर×0.15 मीटर) बनाएं. इस क्यारी को 5 सैंटीमीटर तक पानी से भर दें और इस में 2 किलोग्राम एजोस्पाइरिलम और 2 किलोग्राम पीएसबी डाल कर धीरेधीरे मिलाएं. इस के बाद रोपे जाने वाले पौधों की जड़ों को 8-10 घंटे के लिए डुबो कर रख दें और रोपाई करें.

मिट्टी का उपचार : 2-4 किलोग्राम एजोटोबैक्टर या एजोस्पाइरिलम और 2-4 किलोग्राम पीएसबी 1 एकड़ के लिए सही है. इन दोनों तरह के जैव उर्वरकों को 2-4 लिटर पानी में अलगअलग मिला कर 50-100 किलोग्राम कंपोस्ट के अलगअलग ढेर बना कर उन पर छिड़काव करें और दोनो ढेरों को अलगअलग मिला कर पूरी रात के लिए?छोड़ दें. 12 घंटे बाद दोनों ढेरों को आपस में अच्छी तरह मिला लें.

अम्लीय मिट्टी के लिए 25 किलोग्राम बुझा चूना इस?ढेर के साथ मिला लें. फल वृक्षों के लिए हर जड़ के पास खुरपी की मदद से इस मिश्रण को पेड़ के चारों ओर डाल दें. बोई जाने वाली फसलों के लिए पूरे खेत में बोआई से पहले इस मिश्रण को अच्छी तरह छिड़क दें और यह काम शाम के समय जब गरमी कम हो, तब करें.

बोआई के लिए यथासंभव जैविक बीज का इस्तेमाल करते हुए जैविक विधि या जैव उर्वरकों से बीज शोधन कर के बीज की बोआई पशुचालित यंत्र जैसे बैलचालित सीड ड्रिल या नाई चोंगा वगैरह से करना चाहिए. गोमूत्र, बीजामृत, दही वगैरह से भी बीज शोधन कर सकते हैं.

खाद : जैविक खेती अपनाने के लिए गोबर की खाद का इस्तेमाल करना चाहिए. गोबर की खाद सड़ी होनी चाहिए. यदि खेत में कच्चा गोबर डाल देते हैं तो उस से फायदे की अपेक्षा नुकसान हो जाता है. इस से खेतों में दीमक का प्रकोप बढ़ जाता है. गोबर की सड़ी खाद को फसल बोने से पहले आखिरी जुताई के समय मिट्टी में मिला देनी चाहिए.

पोषक तत्त्वों की पूर्ति के लिए जीवांशों से बनी खाद का इस्तेमाल करना चाहिए. जैसे मलमूत्र, खून, हड्डी, चमड़ा, सींग, फसल अवशेष, खरपतवार से बनने वाली खादें या वर्मी कंपोस्ट, नाडेप कंपोस्ट, काउपैट पिट कंपोस्ट वगैरह का इस्तेमाल करना चाहिए और जैव उर्वरकों से जमीन का शोधन जरूर करना चाहिए.

सिंचाई और खरपतवार नियंत्रण : पशुचालित यंत्रों जैसे बैलचालित सैंट्रीफ्यूगल पंप, सोलर पंप, नहर वगैरह से सिंचाई करनी चाहिए. खरपतवार पर नियंत्रण हाथ से निराईगुड़ाई कर के या पशु या इनसान से चलने वाले यंत्रों का इस्तेमाल कर के करनी चाहिए.

कीटों से हिफाजत : कीटों से हिफाजत के लिए गोमूत्र, नीम, धतूरा, लहसुन, मदार, मिर्च, अदरक वगैरह से बनने वाले कीटनाशकों या जैविक कीटनाशियों जैसे ट्राइकोग्राम कार्ड, बावेरिया बेसियाना, बीटी, एनपीवी वायरस, मित्र कीट, फैरोमौन ट्रैप व पक्षियों को बुलाने वगैरह एकीकृतनाशी जीव प्रबंधन की विधियां अपना कर करनी चाहिए.

रोगों से रक्षा: रोगों से रक्षा के लिए ट्राइकोडर्मा द्वारा जैविक बीज शोधन करना चाहिए. जमीन शोधन के लिए माइकोराजा, वैसिलस, स्यूडोमोनास वगैरह जैविक रोग नियंत्रकों का इस्तेमाल करना चाहिए और नियमित निगरानी के साथ खेत की मेंड़ों को खरपतवार मुक्त रखना चाहिए.

कटाई, मड़ाई और भंडारण: फसल की कटाई, मड़ाई इनसान या बैलचालित यंत्रों का इस्तेमाल कर के करनी चाहिए और इन्हीं का इस्तेमाल कर के उत्पादों को खलिहान तक लाने व ले जाने के लिए और दूसरे परिवहन के लिए करना चाहिए.

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भंडारण के लिए अनाज को खूब अच्छी तरह सुखा कर नीम की पत्ती या नमक या राख वगैरह मिला कर साफ जगह पर या भूसा वगैरह में भंडारित करना चाहिए.

फसलचक्र और बहुफसल प्रणाली : फसल चक्र सिद्धांत का इस्तेमाल करने से फसलों में रोग व कीड़े कम लगते हैं और जमीन की उर्वरता बनी रहती?है. साथ ही, पोषक तत्त्वों का सही प्रबंधन और उपयोग होता?है.

जैसे उथली जड़ वाली फसलों के बाद गहरी जड़ वाली फसलें मटर, गेहूं के बाद अरहर, सरसों वगैरह.

अधिक खाद के बाद कम खाद लेने वाली फसलें जैसे आलू के बाद प्याज, गन्ना के बाद जौ वगैरह.

फलदार के बाद बिना फलीदार फसलें जैसे मूंग के बाद गेहूं, मटर के बाद धान वगैरह.

अधिक निराईगुड़ाई करने के बाद कम निराईगुड़ाई वाली फसलें जैसे मक्का के बाद जौ, चना वगैरह.

मिश्रित फसलोत्पादन जैविक खेती का मूल आधार है. इस में कई तरह की फसलों को एकसाथ मिश्रित रूप में या अलगअलग समय पर एक ही जमीन पर बोया जाता है.

हर मौसम में ध्यान रखना होगा कि दलहनी फसलें तकरीबन 40 फीसदी में बोई जाएं. मिश्रित फसलोत्पादन से न केवल बेहतर प्रकाश संश्लेषण होता है, बल्कि विभिन्न पौधों के बीच पोषक तत्त्वों के लिए होने वाली मांग को भी नियंत्रित किया जा सकता है.

नोट : उपरोक्त विधियां जैविक खेती की वास्तविक प्रक्रिया?हैं, लेकिन किसान को तुरंत इस तरह से जैविक खेती करने में समस्या आ सकती?है. इसलिए जुताई, बोआई, सिंचाई, परिवहन, कटाई, मड़ाई वगैरह में पशुचालित यंत्रों की जगह किसान डीजल से चलने वाले यंत्र या बिजली से चलने वाले यंत्रों का इस्तेमाल कर सकते?हैं. लेकिन किसी भी तरह कैमिकल दवा का सीधा इस्तेमाल फसल पर या उत्पादित उत्पाद पर नहीं करना चाहिए. जैविक खेती टिकाऊ खेती का आधार है, पर यह पशुपालन पर आश्रित?है.

जैविक खेती से लाभ

*     जमीन की सेहत सुधरती है.

*     पशु, इनसान और लाभदायक सूक्ष्म जीवों की सेहत सुधरती है.

*     पर्यावरण प्रदूषण कम होता?है.

*     पशुपालन को बढ़ावा मिलता?है.

*     टिकाऊ खेती का आधार बनता?है.

*     गांव, कृषि और किसान की पराधीनता कम होती?है, जिस से वे स्वावलंबी बनते हैं.

*     उत्पादों का स्वाद और गुणवत्ता बढ़ती है

*     पानी की खपत कम होती है.

*     रोजगार में बढ़ोतरी होती है और पशु और इनसानी मेहनत का उपयोग बढ़ता है.

*     रसायनों का दुष्प्रभाव पशु, पक्षी, इनसान, जमीन, जल, हवा वगैरह पर कम होता है.

चुटकियों में पाएं कमर दर्द से राहत

जिस तरह की हमारी जीवनशैली हो गई है उसके कारण हमें कई तरह की परेशानियां होने लगी हैं. इनमें कमर दर्द कुछ प्रमुख परेशानियों में से एक हैं. सुस्त लाइफस्टाइल और लंबे समय तक औफिस में बैठने से कमर दर्द की परेशानी होती है. पर अगर आपकी लाइफस्टाइल एक्टिव है, आप एक्सरसाइजेज करते रहते हैं तो आप इस परेशानी से निजात पा सकते हैं.  पर जिस तरह की लोगों की जिंदगी भागदौड़ वाली हो गई है, सबके लिए एक्सरसाइज कर पाना मुश्किल होता है. लोगों के पास उतना वक्त नहीं होता.  ऐसे में हम आपको कुछ बेहद आसान एक्सरसाइजेज बताने वाले हैं जिसमें बिना पसीना बहाए, सिर्फ घर में बैठ कर आप कमर दर्द को दूर सर सकते हैं.

  • कुर्सी पर बैठ कर अपने हाथों को अपनी जांघ के नीचे दबा लें. इसके बाद अपने शरीर को आगे की ओर झुकाएं. इससे आपकी कमर में खिचाव होगा. इसे 3 से 5 बार तक करें.
  • अपनी ऐड़ी को जमीन पर रख लें. उसे बिल्कुल सीधा रखें. इसके बाद अपने शरीर को आगे की ओर खींचे. इस दौरान अपने शरीर को बिल्कुल सीधा रखें. इसे करीब 30 सेकेंड्स तक 5 से 6 बार करें.

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  • कुर्सी पर बैठ कर एक हाथ ऊपर की ओर ले जाएं और दूसरे हाथ की ओर झुकें. कम से कम 20 सेकेंड तक इस पोजिशन में रहें और दूसरे हाथ से भी ऐसा ही करें.
  • अपने हाथों से अपने दोनों घुटनों को पकड़ें और उसे ऊपर की ओर खीचें. इससे आपकी कमर में खिंचाव होगा. इस पोजिशन में 15 से 20 सेकेंड तक रहें और इसे 4 से 5 बार तक करें.

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बैकुंठ : भाग 1

बाथरूम में नहाते हुए लगातार श्यामाचरण की कंपकंपाती स्वरलहरी गूंज रही थी. उन की पत्नी मालती उन के कोर्ट जाने की तैयारी में जुटी कभी इधर तो कभी उधर आजा रही थी. श्यामाचरण अपनी दीवानी कचहरी में भगत वकील नाम से मशहूर थे. मालती ने पूजा के बरतन धोपोंछ कर आसन के पास रख दिए, प्रैस किए कपड़े बैड पर रख दिए, टेबल पर जल्दीजल्दी नाश्ता लगा रही थी. मंत्रपाठ खत्म होते ही श्यामाचरण का, ‘देर हो रही है’ का चिल्लाना शुरू हो जाता. मुहूर्त पर ही उन्हें कोर्ट भी निकलना होता. आज 9 बज कर 36 मिनट का मुहूर्त पंडितजी ने बतलाया था. श्यामाचरण जब तक कोर्ट नहीं जाते, घर में तब तक अफरातफरी मची रहती. लौटने पर वे पंडित की बतलाई घड़ी पर ही घर में कदम रखते.

बड़ा बेटा क्षितिज और बहू पल्लवी, बेटी सोनम और छोटा बेटा दक्ष सभी उन की इस पुरानी दकियानूसी आदत से परेशान रहते, पर उन का यह मानना था कि वे ऐसा कर के बैकुंठधाम जाने के लिए अपने सारे दरवाजे खोलते जा रहे हैं.

यों तो श्यामाचरण चारों धाम की यात्रा भी कर आए थे और आसपास के सारे मंदिरों के दर्शन भी कर चुके थे, फिर भी सारे काम ठीकठाक होते रहें और कहीं कोई अनर्थ न हो जाए, इस आशंका से वे हर कदम फूंकफूंक कर रखते और घर वालों को भी डांटतेडपटते रहते कि वे भी उन के जैसे विधिविधानों का पालन किया करें.

‘‘अम्मा, अब तो हद ही हो गई, आज भी पापाजी की वजह से मेरा पेपर छूटतेछूटते बचा. अब से मैं उन के साथ नहीं जाऊंगा, बड़ी मुश्किल से मुझे परीक्षा में बैठने दिया गया, पिं्रसिपल से माफी मांगनी पड़ी कि आगे से ऐसा कभी नहीं होगा,’’ दक्ष पैंसिलबौक्स बिस्तर पर पटक कर गुस्से में जूते के फीते खोलने लगा और बोलता रहा, ‘‘फिर मुझे राधे महाराज वाले मंदिर ले गए, शुभमुहूर्त के चक्कर में उन्होंने जबरदस्ती 10 मिनट तक मुझे बिठाए रखा कि परीक्षा अच्छी होगी. जब परीक्षा ही नहीं दे पाता तो क्या खाक अच्छी होती. उस राधे महाराज का तो किसी दिन, दोस्तों से घेर कर बैंड बजा दूंगा.’’

‘‘ऐसा नहीं कहते दक्ष,’’ मालती ने उसे रोका, उसे दक्ष के कहने के ढंग पर हंसी भी आ रही थी. श्यामाचरण के अंधभक्ति आचरण और पंडित राधे महाराज की लोलुप पंडिताई ने, जो थोड़ीबहुत पूजा वह पहले करती थी, उस से भी उसे विमुख कर दिया. लेकिन चूंकि पत्नी थी, इसलिए वह उन का सीधा विरोध नहीं कर पा रही थी. मन तो बच्चों के साथ उस का भी कुछ यही करता इस महाराज के लिए जो बस अपना उल्लू सीधा कर पैसे बटोरे जा रहा है.

सोनाक्षी, क्षितिज और पल्लवी सब अपनीअपनी जगह इन मुहूर्त व कर्मकांड के ढकोसलों से परेशान थे. सोनाक्षी को महाराज के कहने पर अच्छा वर पाने के लिए जबरदस्ती 72 सोमवार के व्रत रखने पड़ रहे थे. पता नहीं कौन सा ग्रहदोष बता कर पूजा व उपवास करवाए जा रहे थे. सोमवार के दिन कालेज में उस की अच्छी खिंचाई होती.

‘अरे भई, सोनाक्षी को पढ़ाई के लिए अब क्यों मेहनत करनी है, इस की लाइफ तो इस के व्रतों को सैट करनी है. पढ़लिख कर भी क्या करना है, बढि़या मुंडा मिलेगा इसे. अपन लोगों का तो कोई चांस ही नहीं,’ सब ठिठोली करते, ठठा कर हंस पड़ते.

बड़ा बेटा क्षितिज भी धार्मिक ढकोसलों से परेशान था. एक दिन उस ने छत की टंकी में गिरी बिल्ली को जब तक निकाला तब तक वह मर ही गई. श्यामाचरण ने सारा घर सिर पर उठा लिया, ‘‘अनर्थ, घोर अनर्थ, बड़ा पाप हो गया. नरक में जाएंगे सब इस के कारण,’’ उन्होंने फौरन राधे महाराज को फोन खड़खड़ा दिया. राधे पंडित को तो लूटने का मौका मिलना चाहिए, वे तुरंत सेवा में हाजिर हो गए.

‘‘मैं यह क्या सुन रहा हूं. यजमान से ऐसा पाप कैसे हो गया, मंदिर में अब कम से कम सवा किलो चांदी की बिल्ली चढ़ानी पड़ेगी. 12 पंडितों को बुला कर 7 दिनों तक लगातार मंत्रोच्चारहवन तथा भोजन कराना पड़ेगा, फिर घर के सभी सदस्य गंगास्नान कर के आएंगे, तभी जा कर शुद्धि हो पाएगी. बैकुंठ धाम जाना है तो यजमान, यह सब करना ही पड़ेगा,’’ राधे महाराज ने पूजाहवन के लिए सामग्री की अपनी लंबी लिस्ट थमा दी. उस में सारे पंडितों को वे कपड़ेलत्ते शामिल करने से भी नहीं चूके थे. क्षितिज को बड़ा क्रोध आ रहा था. एक तो पैसे की बरबादी, उस पर औफिस से जबरदस्ती छुट्टी लेने का चक्कर. औफिस में कारण बताए भी तो क्या. जिस को बताएगा, वह मजाक बनाएगा.

‘‘मैं तो इतनी छुट्टी नहीं ले सकता. आज रविवार है, फिर पूरा एक हफ्ते का चक्कर. हवन के बाद सब के साथ एक दिन भले ही चांदी की बिल्ली मंदिर में चढ़ा कर गंगास्नान कर आऊं, वह भी सवा किलो की नहीं, केवल नाम की, पापाजी की तसल्ली के लिए,’’ क्षितिज खीझ कर बोला.

‘‘पापाजी इस के लिए मानेंगे कैसे? सब की बोलती तो उन के सामने बंद हो जाती है. अम्माजी ही चाहें तो कुछ कर सकती हैं,’’ पल्लवी अपने बेटे किशमिश को साबुन लगाती हुई बोली. 4 साल का शरारती किशमिश श्यामाचरण की नकल करते हुए खुश हो, कूदकूद कर अपने ऊपर पानी डालने लगा.

‘‘तिपतिप, हलहल दंदे…हलहल दंदे,’’ वह उछलकूद मचा रहा था, पल्लवी भी गीली हो गई.

‘‘ठहर जा बदमाश, दादाजी की नकल करता है, अम्माजी देखो, आप ही नहला सकती हो इसे,’’ पल्लवी ने आवाज लगाई.

‘‘अम्माजी, आप ही इस शैतान को नहला सकती हैं और इन के पापा की समस्या भी आप ही सुलझा सकेंगी, देखिए, कल से मुंह लटकाए खड़े हैं,’’ मालती के आने पर पल्लवी मुसकराई और कार्यभार उन्हें सौंप कर अलग हट गई.

‘‘सीधी सी बात है, पंडित पैसों के लालच में यह सब पाखंड करते हैं. कुछ पैसे उन्हें अलग से थमा दो, कुछ नए उपाय ये झट निकाल लेंगे. न तुम्हें छुट्टी लेनी पड़ेगी, न कुछ. तुम्हारी जगह तुम्हारे रूमाल से भी वे काम चला लेंगे. इतने लालची होते हैं ये पंडित.

मैं सब जानती हूं पर सवा किलो की चांदी की बिल्ली की तो बात पापाजी के मन में बचपन से ही धंसी है, मानेंगे नहीं, दान करेंगे ही वरना उन के लिए बैकुंठ धाम के कपाट बंद नहीं हो जाएंगे?’’ वह हंसी, फिर बोली, ‘‘मैं तो 30 सालों से इन का फुतूर देख रही हूं. मांजी थीं, सो पहले वे कुछ जोर न दे सकीं वरना उस वक्त की मैं संस्कृत में एमए हूं, क्या इतना भी नहीं जानती थी कि ये पंडित क्या और कितना सही मंत्र पढ़ते हैं, अर्थ का अनर्थ और अर्थ भी क्या, देवताओं के काल्पनिक रूप, शक्ति, कार्यों का गुणगान. फिर हमें यह दे दो, वह दे दो. हमारा कल्याण करो. बस, खुद कुछ न करो. खाली ईश्वर से डिमांड. बस, यही सब बकवास. अच्छा हुआ जो संस्कृत पढ़ ली, आंखें खुल गईं मेरी, वरना धर्म से डर कर इन व्यर्थ के ढकोसलों में ही पड़ी रहती,’’ मालती किशमिश को नहला कर उसे तौलिये से पोंछती मुसकरा रही थी.

पल्लवी मालती को बड़े ध्यान से सुन रही थी. सोच रही थी कि आज की पीढ़ी का होने पर भी अपने धर्म के विरोध में कुछ कहने का इतना साहस उस में नहीं था जितना अम्माजी बेधड़क कह गईं. मैं ने एमबीए किया हुआ है, जौब भी करती हूं पर धर्म का एक डर मेरे अंदर भी कहीं बैठा हुआ है. सोनाक्षी भी कालेज में है. उस ने 72 सोमवार के व्रत केवल पापाजी के डर से नहीं रखे, बल्कि खुद अपने भविष्य के डर से भी, अपने विश्वास से रखे हैं.

‘‘अम्मा, आप ही राधे महाराज से बात कर लीजिए,’’ क्षितिज बोला.

‘‘मैं करूंगी तो उन्हें शर्म आएगी लेने में, उन से उम्र में मैं काफी बड़ी हूं. क्षितिज, तुम ही अपनी तरफ से बात कर लेना, यही ठीक रहेगा.’’

‘‘ठीक है अम्मा, आज ही शाम को बात कर लूंगा वरना हफ्तेभर की छुट्टी की अरजी दी तो औफिस वाले मुझे सीधा ही बैकुंठ भेज देंगे,’’ कह कर क्षितिज मुसकराया.

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‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’: क्या वापस नहीं लौटेंगी दया बेन, जानने के लिए पढ़ें पूरी खबर

छोटे पर्दे का मशहूर सीरियल ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ में दयाबेन की वापसी होने वाली थी. खबरों के अनुसार गरबे के मौके पर उनकी एंट्री होने वाली थी.  इस शो के मेकर्स ने प्रोमो जारी कर दया बेन की एंट्री की ओर इशारा किया था. हालांकि दया बेन यानी दिशा वकानी की एंट्री 2 साल बाद होती.

इस खबर से दया बेन के फैंस काफी खुश थे. पर इसी बीच दिशा वकानी के पति ने इस बात का ऐलान कर दिया है कि, दिशा अब शो में कभी वापस नहीं आएंगी. एक रिपोर्ट के अनुसार दिशा वकानी के पति मयूर पांडया ने बताया,  दिशा वकानी आने वाले एपिसोड की कुछ शूटिंग तो पूरी कर ली है, लेकिन हमारे और मेकर्स के बीच अभी भी बात अधूरी है.

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आगे उन्होंने कहा मेकर्स अभी भी हमारी शर्त मानने के लिए तैयार नहीं हैं. ऐसे में अब दिशा वकानी दोबारा शो का हिस्सा नहीं बनेगी. वैसे अभी भी हम सब मिलकर इस परेशानी का समाधान ढूढ़ रहे हैं.

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दिशा वकानी के पति मयूर पांड्या के इस बयान के बीच यह भी खबर आई है कि, दिशा वकानी ने शो के लिए कुछ सीन्स शूट किए हैं, जिनमें दयाबेन अपने पति जेठालाल से फोन पर बात करती नजर आएंगी.

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वर्ल्ड फूड डे: टेक्नोलौजी में करियर

वर्ल्ड फूड डे 16 अक्टूबर यानी आज ही के दिन मनाया जाता है. जी हां सुयंक्त राष्ट्रीय संघ द्वारा 16 अक्टूबर 1945 मे संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन की स्थापना की गयी थी. इस दिन को मनाने का कारण दुनिया भर में खाद्य सुरक्षा को सुरक्षित और उन्नत करना है. विश्व खाद्य दिवस 150  देशों में मनाया जाता है. इसके अलावा वर्ल्ड फूड प्रोग्राम और अंतर्राष्ट्रीय कृषि विकास कोष द्वारा भी इसे व्यापक रूप से मनाया जाता है. खाद्य और कृषि विकास का यह एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है जिसके अंतर्गत कृषि उत्पादन, वानिकी और कृषि विपणन का अध्ययन किया जाता है. इसके अलावा यह संगठन खाद्य और कृषि संबंधी ज्ञान और जानकारियों को आदान-प्रदान करने के लिए एक विश्वस्तरीय मंच भी प्रदान करता है. आज हम आपको इसी से जुड़े करियर फूड टेक्नोलौजी के बारे में बताने जा रहे हैं .

फूड टेक्नोलौजी

आज कल प्रोसेस्ड फूड मार्केट की डिमांड बहुत बढ़ गयी है इसी को देखते हुए फूड टेक्नोलौजिस्ट की डिमांड बढ़ रही है. चाहे मल्टीनेशनल कम्पनी हो या सरकारी दोनों मे फूड टेक्नोलौजिस्ट का बोलबाला है. फूड टेक्नोलौजिस्ट खाद्य वस्तुओं का स्वाद, रंग रूप हाइजीन और उनकी गुणवत्ता को देखते है और उनका स्टोरेज और एक्सपायरी जैसे मह्त्वपूर्ण कामों पर अपनी नजर बनाये रखते हैं. सीधे तौर पर कहें तो कम्पनी का भविष्य इन्हीं से जुड़ा होता है. सौफ्ट ड्रिंक, बटर, बिस्कुट, ब्रेड, आइसक्रीम, चौकलेट आज लोगों की रोजाना की जरूरत बन गये हैं और इसी को देखते हुए फूड टेक्नोलौजिस्ट कंपनियों की जरूरत बन गये है. यह दो भागों में बंटा हुआ है.

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मैनुफेक्चर्ड प्रोसेसेज और वैल्यु एडेड प्रोसेसेज

मैनुफेक्चर्ड प्रोसेसेज मे कच्चे उत्पाद जैसे अनाज, मीट, दुध सब्जियों आदि उत्पादों का भौतिक स्वरूप बदलकर उसे खाने और बिक्री योग्य बनाया जाता है.

वैल्यू एडेड प्रोसेसेज में कच्चे खाद्य उत्पादों में ऐसे कई बदलाव किए जाते है जिससे वह सुरक्षित और कभी भी खाने लायक बन जाते है. जैसे टमाटर सौस और आइसक्रीम.

योग्यता

यदि आप इस क्षेत्र से जुड़ना चाहते है तो आपको 12वीं साइंस (मैथ्स/बायो) के साथ पास करना होगा. 12वीं के बाद आप फूड टेक्नोलौजी में ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन कर सकते हैं.

प्रमुख कोर्सेस – बीएससी (औनर्स), फूड टेक्नोलौजी – बीटेक फूड टेक्नोलौजी -एमटेक फूड टेक्नोलौजी -पीजी डिप्लोमा इन फूड साइंस एंड टेक्नोलौजी – एमबीए (एग्री बिजनेस मैनेजमेंट).

नौकरी के अवसर

फूड प्रोसेसिंग यूनिट, रिटेल कंपनी, होटल्स, एग्री प्रोडक्ट बनाने वाली कंपनी से जुड़कर काम कर सकते है. इसके अलावा आपको कई प्रयोगशालाओं में भी काम मिल सकता है जो खाद्य वस्तुओं पर रिसर्च और उन्हें संरक्षित करने का काम करती है.

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सैलरी

शुरुआत में 10 -15  हजार कमा सकते हैं और अनुभव के बाद 30  हजार आसानी से कमा सकते हैं. चाहे तो अपना बिजनेस भी कर सकते हैं.

‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’: ‘नैतिक’ के किरदार में हो सकती है ‘करन मेहरा’ की वापसी

टीवी का मशहूर सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में करन मेहरा ‘नैतिक’ के किरदार से काफी पौपुलर हुए. फैंस को उनका किरदार काफी पसंद आया था. आपको बता दें, एक बार फिर से करन मेहरा यानी नैतिक फिर से सुर्खियों में छाए हुए है.

जी हां कई  खबरों के मुताबिक में  करन मेहरा जल्द ही  इस शो में ‘ नैतिक’ के किरदार में वापसी कर सकते हैं. दरअसल एक रिपोर्ट के मुताबिक ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ के प्रोड्यूसर राजन शाही और करन मेहरा को एक अवार्ड फंक्सन के दौरान एक दूसरे के साथ देखा गया था. करन और राजन ने काफी गर्मजोशी से एक दूसरे के साथ मिलते नजर आए. इस खबर के सामने आने के बाद से ये दावा किया जा रहा है कि करन जल्द ही  इस शो में वापसी कर सकते हैं.

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“Is there anything more beautiful than the way the ocean refuses to stop kissing the shoreline, no matter how many times it's sent away” I wish we did justice to the saying. Yesterday I, along with Nisha and Kavish #twoandahalfmehras went for my 1st Beach cleanup and it was so disheartening to witness Versova beach with the amount of dirt, filth and debris around. Kavish refused to step on the beach because it was that dirty and he kept saying ‘Dirty Yuck’ throughout the entire process of the beach cleanup. It was so sad to see a two-year-old who actually realises the fact that the beach is dirty and we as adults refuse to even acknowledge that our environment is going for a toss. I would like to request each and everyone to come forward for this initiative and inspire each other. I also took long to do this and I was wondering WHY? I ask myself and take this action! Let’s save our environment. After Ganpati and Durga Visarjan it takes 2 months for these volunteers to clean the beach of it. Let’s stop using plastic, stop dumping things in the ocean, stop harming the aquatic life, stop harming the ocean, stop harming nature, stop harming Mother Earth who we owe our existence ?? Thankyou @afrozshah_ for this great initiative who every Saturday is standing with his volunteers tirelessly cleaning our beaches that we polluted. Above all thankyou @missnisharawal for pulling me into this ? ? @styleepix . . . Styled by : @khyati_dhami Assisted by : @shivanitanwar_14 Outfit by : @all2defy

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हालांकि रिपोर्ट्स के अनुसार जब करन से “ शो में वापसी” के बारे में पूछा गया तो उन्होंने इस खबर को महज एक अफवाह बताया. करन ने कहा कि, ‘हम दोनों मैसेजेस के जरिए एक दूसरे के टच में है, लेकिन उस दिन में राजन सर ने नहीं मिला था. पता नहीं ऐसी खबरें कहां से आ जाती है. करन से इस सीरियल में कमबैक के बारे में उनका क्या कहना है, तो उन्होंने कहा, अभी तक तो कुछ ऐसा प्लान नहीं है.

फिलहाल इस शो  में आए दिन लगातार धमाकेदार ट्विस्ट देखने को मिल रहा है. जल्द ही इस शो में वेदिका का खुलासा होने वाला है. जी हां, उसके एक्स-हसबैंड की एंट्री होने वाली है. वेदिका ने अपने  बीते हुए कल के बारे में सबसे छुपाया है. लेकिन जल्द ही उसका सच सबके सामने आने वाला है.

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फैसला इक नई सुबह का : भाग 1

लखनऊ की पौश कौलोनी गोमतीनगर में स्थित इस पार्क में लोगों की काफी आवाजाही थी. पार्क की एक बैंच पर काफी देर से बैठी मानसी गहन चिंता में लीन थी. शाम के समय पक्षियों का कलरव व बच्चों की धमाचौकड़ी भी उसे विचलित नहीं कर पा रही थी. उस के अंतर्मन की हलचल बाहरी शोर से कहीं ज्यादा तेज व तीखी थी. उसे समझ नहीं आ रहा था कि आखिर उस से गलती कहां हुई है. पति के होते हुए भी उस ने बच्चों को अपने बलबूते पर कड़ी मेहनत कर के बड़ा किया, उन्हें इस काबिल बनाया कि वे खुले आकाश में स्वच्छंद उड़ान भर सकें. पर बच्चों में वक्त के साथ इतना बड़ा बदलाव आ जाएगा, यह वह नहीं जानती थी. बेटा तो बेटा, बेटी भी उस के लिए इतना गलत सोचती है. वह विचारमग्न थी कि कमी आखिर कहां थी, उस की परवरिश में या उस खून में जो बच्चों के पिता की देन था. अब वह क्या करे, कहां जाए?

दिल्ली में अकेली रह रही मानसी को उस का खाली घर काट खाने को दौड़ता था. बेटा सार्थक एक कनैडियन लड़की से शादी कर के हमेशा के लिए कनाडा में बस चुका था. अभी हफ्तेभर पहले लखनऊ में रह रहे बेटीदामाद के पास वह यह सोच कर आई थी कि कुछ ही दिनों के लिए सही, उस का अकेलापन तो दूर होगा. फिर उस की प्रैग्नैंट बेटी को भी थोड़ा सहारा मिल जाएगा, लेकिन पिछली रात 12 बजे प्यास से गला सूखने पर जब वह पानी पीने को उठी तो बेटी और दामाद के कमरे से धीमे स्वर में आ रही आवाज ने उसे ठिठकने पर मजबूर कर दिया, क्योंकि बातचीत का मुद्दा वही थी. ‘यार, तुम्हारी मम्मी यहां से कब जाएंगी? इतने बड़े शहर में अपना खर्च ही चलाना मुश्किल है, ऊपर से इन का खाना और रहना.’ दामाद का झल्लाहट भरा स्वर उसे साफ सुनाई दे रहा था.

‘तुम्हें क्या लगता, मैं इस बात को नहीं समझती, पर मैं ने भी पूरा हिसाब लगा लिया है. जब से मम्मी आई हैं, खाने वाली की छुट्टी कर दी है यह बोल कर कि मां मुझे तुम्हारे हाथ का खाना खाने का मन होता है. चूंकि मम्मी नर्स भी हैं तो बच्चा होने तक और उस के बाद भी मेरी पूरी देखभाल मुफ्त में हो जाएगी. देखा जाए तो उन के खाने का खर्च ही कितना है, 2 रोटी सुबह, 2 रोटी शाम. और हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि उन के पास दौलत की कमी नहीं है. अगर वे हमारे पास सुकून से रहेंगी तो आज नहीं तो कल, उन की सारी दौलत भी हमारी होगी. भाई तो वैसे भी इंडिया वापस नहीं आने वाला,’ कहती हुई बेटी की खनकदार हंसी उस के कानों में पड़ी. उसे लगा वह चक्कर खा कर वहीं गिर पड़ेगी. जैसेतैसे अपनेआप को संभाल कर वह कमरे तक आई थी.

बेटी और दामाद की हकीकत से रूबरू हो उस का मन बड़ा आहत हुआ. दिल की बेचैनी और छटपटाहट थोड़ी कम हो, इसीलिए शाम होते ही घूमने के बहाने वह घर के पास बने इस पार्क में आ गई थी.

पर यहां आ कर भी उस की बेचैनी बरकरार थी. निगाहें सामने थीं, पर मन में वही ऊहापोह थी. तभी सामने से कुछ दूरी पर लगभग उसी की उम्र के 3-4 व्यक्ति खड़े बातें करते नजर आए. वह आगे कुछ सोचती कि तभी उन में से एक व्यक्ति उस की ओर बढ़ता दिखाई पड़ा. वह पसोपेश में पड़ गई कि क्या करे. अजनबी शहर में अजनबियों की ये जमात. इतनी उम्र की होने के बावजूद उस के मन में यह घबराहट कैसी? अरे, वह कोई किशोरी थोड़े ही है जो कोई उसे छेड़ने चला आएगा? शायद कुछ पूछने आ रहा हो, उस ने अपनेआप को तसल्ली दी. ‘‘हे मनु, तुम यहां कैसे,’’ अचकचा सी गई वह यह चिरपरिचित आवाज सुन कर.

‘‘कौन मनु? माफ कीजिएगा, मैं मानसी, पास ही दिव्या अपार्टमैंट में रहती हूं,’’ हड़बड़ाहट में वह अपने बचपन के नाम को भी भूल गई. आवाज को पहचानने की भी उस की भरसक कोशिश नाकाम ही रही. ‘‘हां, हां, आदरणीय मानसीजी, मैं आप की ही बात कर रहा हूं. आय एम समीर फ्रौम देवास.’’ देवास शब्द सुनते ही जैसे उस की खोई याददाश्त लौट आई. जाने कितने सालों बाद उस ने यह नाम सुना था. जो उस के भीतर हमेशा हर पल मौजूद रहता था. पर समीर को सामने खड़ा देख कर भी वह पहचान नहीं पा रही थी. कारण उस में बहुत बदलाव आ गया था. कहां वह दुबलापतला, मरियल सा दिखने वाला समीर और कहां कुछ उम्रदराज परंतु प्रभावशाली व्यक्तित्व का मालिक यह समीर. उसे बहुत अचरज हुआ और अथाह खुशी भी. अपना घर वाला नाम सुन कर उसे यों लगा, जैसे वह छोटी बच्ची बन गई है.

‘‘अरे, अभी भी नहीं पहचाना,’’ कह कर समीर ने धीरे से उस की बांहों को हिलाया. ‘‘क्यों नहीं, समीर, बिलकुल पहचान लिया.’’

‘‘आओ, तुम्हें अपने दोस्तों से मिलाता हूं,’’ कह कर समीर उसे अपने दोस्तों के पास ले गया. दोस्तों से परिचय होने के बाद मानसी ने कहा, ‘‘अब मुझे घर चलना चाहिए समीर, बहुत देर हो चुकी है.’’ ‘‘ठीक है, अभी तो हम ठीक से बात नहीं कर पाए हैं परंतु कल शाम 4 बजे इसी बैंच पर मिलना. पुरानी यादें ताजा करेंगे और एकदूसरे के बारे में ढेर सारी बातें. आओगी न?’’ समीर ने खुशी से चहकते हुए कहा.

‘‘बिलकुल, पर अभी चलती हूं.’’

घर लौटते वक्त अंधेरा होने लगा था. पर उस का मन खुशी से सराबोर था. उस के थके हुए पैरों को जैसे गति मिल गई थी. उम्र की लाचारी, शरीर की थकान सभीकुछ गायब हो चुका था. इतने समय बाद इस अजनबी शहर में समीर का मिलना उसे किसी तोहफे से कम नहीं लग रहा था. घर पहुंच कर उस ने खाना खाया. रोज की तरह अपने काम निबटाए और बिस्तर पर लेट गई. खुशी के अतिरेक से उस की आंखों की नींद गायब हो चुकी थी. उस के जीवन की किताब का हर पन्ना उस के सामने एकएक कर खुलता जा रहा था, जिस में वह स्पष्ट देख पा रही थी. अपने दोस्त को और उस के साथ बिताए उन मधुर पलों को, जिन्हें वह खुल कर जिया करती थी. बचपन का वह समय जिस में उन का हंसना, रोना, लड़ना, झगड़ना, रूठना, मनाना सब समीर के साथ ही होता था. गुस्से व लड़ाई के दौरान तो वह समीर को उठा कर पटक भी देती थी. दरअसल, वह शरीर से बलिष्ठ थी और समीर दुबलापतला. फिर भी उस के लिए समीर अपने दोस्तों तक से भिड़ जाया करता था.

गिल्लीडंडा, छुपाछुपी, विषअमृत, सांकलबंदी, कबड्डी, खोखो जैसे कई खेल खेलते वे कब स्कूल से कालेज में आ गए थे, पता ही नहीं चला था. पर समीर ने इंजीनियरिंग फील्ड चुनी थी और उस ने मैडिकल फील्ड का चुनाव किया था. उस के बाद समीर उच्चशिक्षा के लिए अमेरिका चला गया. और इसी बीच उस के भैयाभाभी ने उस की शादी दिल्ली में रह रहे एक व्यवसायी राजन से कर दी थी. शादी के बाद से उस का देवास आना बहुत कम हो गया. इधर ससुराल में उस के पति राजन मातापिता की इकलौती संतान और एक स्वच्छंद तथा मस्तमौला इंसान थे जिन के दिन से ज्यादा रातें रंगीन हुआ करती थीं. शराब और शबाब के शौकीन राजन ने उस से शादी भी सिर्फ मांबाप के कहने से की थी. उन्होंने कभी उसे पत्नी का दर्जा नहीं दिया. वह उन के लिए भोग की एक वस्तु मात्र थी जिसे वह अपनी सुविधानुसार जबतब भोग लिया करते थे, बिना उस की मरजी जाने. उन के लिए पत्नी की हैसियत पैरों की जूती से बढ़ कर नहीं थी.

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भूलकर भी रिलेशनशिप में रेड फ्लैग्स न करें इग्नोर

रिलेशनशिप में रेड फ्लैग्स या कहें लाल झंडी पहचानना बहुत जरूरी है. नहीं नहीं, रेड फ्लैग्स का मतलब सचमुच में लाल झंडियां नहीं है. असल में रेड फ्लैग्स वे साइन होते हैं जो आप को बताते हैं कि आप के रिलेशनशिप और पार्टनर में कौन सी बुराइयां हैं जिन्हें देखना आप के लिए बेहद जरूरी है. जिस तरह लाल झंडी देख कर ट्रेन रुक जाती है उसी तरह रिलेशनशिप में भी जब यह दिखने लगे तो आप को रुक जाना चाहिए. लोग अकसर रेड फ्लैग्स इग्नोर करते हैं जो उन के पार्टनर व रिलेशनशिप के टौक्सिक होने की सब से बड़ी वजह बनता है और आगे जा कर खुद उन्हें ही तकलीफ देता है. कोई भी रिलेशनशिप पर्फेक्ट नहीं होती लेकिन अगर उस में हद से ज्यादा बुराइयां हों तो उसे खत्म कर देना ही अच्छा होता ही. आप के पार्टनर का आप पर हाथ उठाना, ओवर पोस्सेसिव होना, हर दूसरे व्यक्ति से फ्लर्ट करते रहना रेड फ्लैग्स ही तो हैं. आप को ऐसा लगता है कि यह छोटीछोटी बाते हैं जिन्हें नजरअंदाज कर आगे बढ़ जाना चाहिए. लेकिन, यही रेड फ्लैग्स आगे चल कर इतने गहरा जाएंगे, इतने बढ़ जाएंगे कि बहुत देर हो जाएगी.

सुरभि और रमन की मुलाकात एक फैमिली फंकशन में हुई थी. रमन एक समझदार और स्मार्ट लड़का था. दोनों ने आपस में बात की तो जाना कि दोनों की पसंदनापसंद भी लगभग मिलती है. सुरभि और रमन उस समय 12वीं मे थे और उन दोनों के मातापिता को भी उन के रिश्ते से कोई ऐतराज नहीं था. सुरभि ने दिल्ली यूनिवर्सिटी में एडमिशन लिया तो रमन ने आईआईटी में. दोनों अब एकदूसरे को डेट करने लगे. एकदूसरे से मिलने लगे. सुरभि धीरेधीरे रमन को जानने लगी. उसे पता चला कि रमन स्वभाव का गुस्सैल है. उसे सुरभि का किसी और लड़के से बात करना तक पसंद नहीं था. सुरभि को लगता कि रमन को उस से इतना ज्यादा प्यार है कि वह उसे किसी और के साथ नहीं देख सकता. उसे इस में कुछ गलत नहीं लगा. जब रातरात भर बैठके वे दोनों एकदूसरे से बातें किया करते तो रमन अक्सर ही सो जाया करता था. कभीकभी तो यह होता कि सुरभि उस का सुबह 4  बजे तक इंतेजार करती रह जाती.

रमन सुरभि को दिनभर में सिर्फ एक मैसेज किया करता था जिस पर उस का कहना होता कि वह बिजी रहता है और उस का शैड्यूल काफी टाइट है. जब सुरभि और रमन एकदूसरे से होटल में मिलने लगे तो रमन का बिहैवियर लव मेकिंग के समय काफी ज्यादा बदल जाता. वह हिंसक हो उठता. कितनी बार तो ऐसा भी हुआ जब सुरभि को गुप्तांगो में चोट भी आई. इस पर रमन उसे सौरी कहता और बताता कि वह फलो में बह गया था जिस पर सुरभि उसे हमेशा कि तरह माफ कर देती.

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यह रमन और सुरभि का कालेज का थर्ड इयर था जब दोनों के बीच चीजे काफी ज्यादा बिगड़ने लगीं. दोनों यकीनन ही एकदूसरे से प्यार करते थे लेकिन रमन सुरभि को ऐसे ट्रीट करता था जैसे वह उस की गर्लफ्रेंड न हो कर कोई आईगई लड़की है. उस के पास सुरभि के लिए न तो टाइम था न ही उसे जताने के लिए थोड़ा सा भी प्यार. इस पर जब भी वे दोनों मिलते तो वह सैक्स के लिए हमेशा ही कहता. सुरभि की क्लास में एक लड़का था जो उसे पसंद करता था. वह सुरभि को हद से ज्यादा इम्पौर्टेन्स देता था. सुरभि को भी वह अच्छा लगा था. बस, सुरभि से एक गलती हो गई कि उस ने इस लड़के के बारे में रमन को बता दिया. रमन ने यह सुनते ही सुरभि के गालों पर जोरदार तमाचा मार दिया. रमन और सुरभि की रिलेशनशिप अब लव स्टोरी कम और हेट स्टोरी ज्यादा बन गई थी. रमन ने कोई कसर नहीं छोड़ी सुरभि को यह बताने में कि वह एक बेहया और बच्चलन लड़की है जो हर दूसरे लड़के के साथ सैक्स करने की इच्छा रखती है. वह सुरभि को केवल ताने ही नहीं दिया करता था बल्कि उस के साथ मारपीट भी करता था. वक्त बेवक्त उसे गालियां मैसेज करता.

सुरभि पूरी तरह से डिप्रेशन में चली गई. उस ने अपने दोस्तों से बातें करना बंद कर दीं. किसी लड़के के साए से भी घबरा उठती. वह रमन से ब्रेकअप करना चाहती थी लेकिन उस का प्यार उसे हमेशा ही रोक लेता. एंजाइटी और डिप्रेशन से सुरभि की हालत इतनी बुरी होने लगी कि उस की बेस्ट फ्रेंड कशिश को उस से जबर्दस्ती सब उगलवाना पड़ा. वह सुरभि को  साइकाइट्रिस्ट के पास ले कर गई. सुरभि को रिकवर करने में बहुत समय लगा. वह हर एप्पोइंटमेंट में चीखचीख कर रोती. वह अनिद्रा की शिकार हो गई. आखिरकार उसे 4 साल लगे रमन से मूवऔन करने और इन सब से बाहर निकालने में.

रेड फ्लैग्स इग्नोर करने का नतीजा

सुरभि की ही तरह बहुत से लड़के व लड़कियां हैं जो रिलेशनशिप में रेड फ्लैग्स इग्नोर करने की गलती करते हैं. हां, सभी की हालत इतनी बुरी शायद नहीं होती लेकिन दिल तो टूटता ही है, तकलीफ तो होती ही है. रिलेशनशिप हमेशा के लिए परेशानी का सबब बन कर रह जाती है.

टौक्सिक बिहेवियर को बढ़ावा देना – रेड फ्लैग्स इग्नोर करने का साफ मतलब है कि आप अपने पार्टनर के टौक्सिक बिहेवियर को बढ़ावा दे रहे हैं. आप पर आप का पार्टनर यदि एक बार हाथ उठाता है और आप उसे माफ कर देते हैं तो यकीनन ही वह एक बार फिर ऐसा करेगा. आप की गर्लफ्रेंड आप के दोस्तों से हद से ज्यादा फ्लर्ट कर रही है और आप इस पर कुछ नहीं कहेंगे तो वह बेहिचक ऐसा करती रहेगी.

खुद को मानसिक प्रताड़ना देना – आप को अपने पार्टनर के रेड फ्लैग्स दिखाई दे रहे हैं और आप फिर भी उसे कुछ नहीं कह रहे तो इस का मतलब यह नहीं कि आप इस बारे में सोचेंगे नहीं. आप के पार्टनर से जुड़ी हर बुरी चीज आप के दिमाग में जरूरत से ज्यादा घूमती रहेगी. आप हर समय टेंशन मे रहेंगे और खुद को स्ट्रैस देते रहेंगे. इस से आप की मेंटल हैल्थ पर बहुत असर पड़ेगा.

खुद को कमतर समझना – इस में तो कोई दोराय नहीं कि जब हम टौक्सिक रिलेशनशिप में होते हैं तो हर समय हमारे दिमाग  में यह चलता रहता है कि आखिर इस रिलेशनशिप में कुछ सही क्यों नहीं चल रहा है. हो सकता है गलती हमारी ही है. यह सोच आप को अंदर ही अंदर कुरेदती रहती है और आखिर में सेल्फ डाउट इतने बढ़ जाते हैं कि आप को समझ नहीं आता कि इस का हल आखिर है तो है क्या.

आप को गलत सहने की आदत हो जाती है – एक गलत व्यक्ति के साथ रहने पर आप को अपने साथ होने वाली हर गलत चीज़ सही लगने लगती है. आप को लगता है कि उस का आप को हद से ज्यादा कंट्रोल करना सही है, या पोस्सेसिव होने में भी कोई बुराई नहीं है आखिर यह तो प्यार की ही निशानी है. यह सोच असल में आप को इन गलत चीजों का आदि बना देती है.

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खुशियों से समझौता – असल में होता यह है कि जब आप अपने पार्टनर को खुश करने की हद कोशिश करने लगते हैं तो आप अपनी खुशियों के बारे में सोचना छोड़ देते हैं. आप को लगने लगता है कि अगर आप के पार्टनर को आप का किसी से बात करना नहीं पसंद तो आप को नहीं करनी चाहिए, आप के पार्टनर को आप का ड्रेसिंग सैन्स नहीं पसंद तो आप वह भी बदलने लगते हैं. आप अपने पार्टनर की खुशी के आगे अपनी खुशी भूल जाते हैं.

फेस्टिवल 2019: अबकी दीवाली मनाएं कुछ हट के

संध्या हर साल दीवाली का त्योहार अपने परिवार के साथ ही मनाती थी. वही शाम को पूजा-अर्चना, फिर घर-बाहर की दीया-बत्ती, पटाखे, खाना-पीना, पड़ोसियों-दोस्तों में मिठाईयों का आदान-प्रदान और बस लो मन गयी दीवाली. एक बारं संध्या कम्पनी के काम से लालपुर गयी थी. जिस औफिस में उसको काम था, उसके बगल वाली बिल्डिंग के लौन में उसने बहुत सारे नन्हें-नन्हें बच्चों को खेलते देखा था. पहले तो उसको लगा कि कोई छोटा-मोटा स्कूल है, मगर वहां लगे एक धुंधले से बोर्ड पर जब उसकी नजर पड़ी तो पता चला कि वह एक अनाथाश्रम है. लंच टाइम में फ्री होने पर संध्या उस अनाथाश्रम को देखने की इच्छा से भीतर चली गयी. दरअसल बच्चों के प्रति उसका खिचांव ही उसे वहां ले गया. बरसों से उसकी कोख सूनी थी. शादी के दस साल तक एक बच्चे की चाह में उसने शहर के हर डौक्टर, हर क्लीनिक के चक्कर लगा डाले थे, हर तरह की पूजा-पाठ कर ली थी, मगर उसकी मुराद पूरी नहीं हुई. धीरे-धीरे उसने अपना मन काम में लगा दिया और उसकी मां बनने की इच्छा कहीं भीतर दफन हो गयी. मगर उस दिन उन छोटे-छोटे बच्चों को लॉन में खेलता देख उसकी कामना फिर जाग उठी.

अनाथाश्रम में जीरो से सात सात तक के कोई पच्चीस बच्चे थे. बिन मां-बाप के बच्चे. जिन्हें पता ही नहीं कि परिवार क्या होता है. मां-बाप का प्यार क्या होता है. वे तो यहां बस आयाओं के रहमो-करम पर पल रहे थे. उनके इशारे पर उठते-बैठते, सोते-जागते और खेलते-खाते थे. संध्या ने देखा कि कुछ बच्चे यहां-वहां पड़े रो रहे थे, मगर उनको उठा कर छाती से चिपकाने वाला कोई नहीं था. आयाएं अपनी बातों में मशगूल थीं. संध्या ने अनाथाश्रम चलाने वाले के बारे में पूछा तो पता चला कि वह शनिवार को आते हैं और दोपहर तक रहते हैं. बाकी दिनों में अनाथाश्रम का सारा जिम्मा वहां काम करने वाली चार आयाएं ही उठाती थीं.

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उस दिन के बाद से संध्या अक्सर ही उस अनाथाश्रम में जाने लगी थी. वह जगह उसके घर से ज्यादा दूर नहीं थी. एक शनिवार जाकर वह अनाथाश्रम के मालिक से भी मिल आयी थी और उन्होंने संध्या के वहां आने और बच्चों के साथ वक्त गुजारने पर कोई आपत्ति भी नहीं जाहिर की थी. दरअसल संध्या एक बड़ी कम्पनी में अच्छी पोस्ट पर काम कर रही थी. जिसका हवाला देने पर अनाथाश्रम के मालिक पर काफी प्रभाव पड़ा था. जब संध्या ने उनसे कहा कि वह बच्चों की जरूरत की चीजें डोनेट करना चाहती है, तो यह सुनकर वह खुश हो गये थे. संध्या जल्दी ही उन नन्हें-नन्हें बच्चों के साथ घुलमिल गयी थी. संडे की शाम तो वह उन बच्चों के लिए ही खाली रखने लगी थी और बच्चे भी उसके आने का इंतजार करते थे क्योंकि वह जब भी आती थी उनके लिए चॉकलेट्स, बिस्कुट, फल और चिप्स आदि के ढेर सारे पैकेट्स लेकर आती थी.

दीवाली आने वाली थी. संध्या ने अबकी दीवाली अलग तरह से मनाने का फैसला किया था. अपनी योजना से उसने जब अपने पति और परिवार के दूसरे सदस्यों को अवगत कराया तो वह भी खुशी-खुशी उसके फैसले में शामिल हो गये. योजना था कि इस बार की दीवाली सपरिवार अनाथाश्रम के बच्चों के साथ मनाएंगे. संध्या की ननद तो उनकी योजना के बारे में सुनकर खुशी से नाच उठी. हर साल एक जैसी दीवाली मनाने से यह योजना बहुत हट कर थी. दीवाली के दो दिन पहले ही संध्या और उसकी ननद बाजार से ढेर सारे पटाखे, दीये, मिठाइयां, चौकलेट्स, फल आदि खरीद लाये थे. दीवाली के साथ-साथ जाड़ा भी दस्तक दे देता है, इसको देखते हुए संध्या ने छोटी-छोटी पच्चीस दुलाइयां भी खरीद ली थीं. वहां की आयाओं के लिए साड़ियां और मिठाइयां अलग से पैक करवा ली थीं. घर के दूसरे सदस्यों ने भी संध्या की योजना में खूब हाथ बंटाया. दीवाली वाले दिन जब संध्या की सास ने उसके सामने एक बड़ा सा बैग खोला तो उसमें चार-पांच कम्बल, नन्हें-नन्हें मोजे, टोपे, स्वेटर्स, तौलिये, पाउडर के डिब्बे, सोप वगैरह देखकर तो संध्या खुशी के मारे अपनी सास के गले लग गयी. इन सब चीजों की तो उन बच्चों को बहुत जरूरत थी. पता नहीं मां और बाबू जी कब चुपके-चुपके जाकर इतनी सारी खरीदारी कर आये थे. संध्या के पति ने भी कमाल कर दिया. शौपिंग से हमेशा दूर रहने वाले पतिदेव टोकरी भर के खिलौने खरीद लाए थे.

दीवाली वाले दिन शाम को तीन बजे संध्या का पूरा परिवार सारे सामान के साथ अनाथाश्रम की ओर रवाना हो गया. अनाथाश्रम के गेट पर जैसे ही संध्या की गाड़ी रुकी, अन्दर शोर सा मच गया – संध्या दीदी आ गयीं, संध्या दीदी आ गयीं चिल्लाते एक आया भागती हुई गेट पर पहुंच गयी. उसके पीछे कई बच्चे भी भागते आये. सारे आकर संध्या से लिपट गये. संध्या के सास-ससुर, पति और ननद यह नजारा देखकर भावुक हो उठे. संध्या ने सबका परिचय वहां के लोगों से करवाया. उस दिन अनाथाश्रम के मालिक भी अपने परिवार के साथ वहां उपस्थित थे. सबने मिलकर पूरे अनाथाश्रम में दीये और मोमबत्तियां लगायीं. बच्चे तो इतने सारे लोगों को अपने बीच देख कर बेहद उत्साहित थे. संध्या ने सारे बच्चों को इकट्ठा करके एक मजेदार कहानी भी सुनायी. फिर कई तरह के खेल खेले गये. बच्चों को जब उनके मनपसंद तोहफे मिले तो वह खुशी से झूम उठे. किसी को गुड़िया, किसी को बत्तख, किसी को बंदर तो किसी को हाथी. बच्चे एक दूसरे को अपने खिलौने दिखाते घूम रहे थे. आज पूरा अनाथाश्रम खुशी के अलग ही रंग में रंगा हुआ था. बच्चे संध्या को छोड़ते ही न थे. कोई उसकी गोद में बैठा चौकलेट खा रहा था तो कोई उसकी पीठ पर झूल रहा था. संध्या की ननद भी जब से आयी थी उनके साथ खेलने में मशगूल थी. शाम को सबने एक साथ मिलकर दीवाली की पूजा की. फिर पटाखों का डिब्बा निकाला गया और बाहर के लौन में खूब जम कर पटाखे छुड़ाए गये. खूब रोशनी की गयी. बड़े बच्चों के हाथों में फुलझड़ियां भी दी गयीं. बच्चों को मिठाइयां, फल और चौकलेट्स बांटे गये. सच पूछो तो अबकी दीवाली संध्या के परिवार के लिए ही नहीं, बल्कि अनाथाश्रम के बच्चों, आयाओं और उसके मालिक के लिए भी बिल्कुल नयी और अनोखी थी.

रात को सबने इकट्ठा होकर खाना बनवाने में मदद की और खाने के बाद जब संध्या ने बच्चों के लिए लाए जरूरी सामान का बैग खोला तो अनाथाश्रम के मालिक भावुक होकर बोल पड़े – बहनजी, अगर शहर के कुछ अन्य लोग भी आपकी तरह का दिल रखते तो यह बच्चे अनाथ न कहलाते. हम अपनी हैसियत भर जो हो सकता है, इन बच्चों के लिए करते हैं मगर वह कम ही पड़ता है. जिस तरह आप इन बच्चों से जुड़ी हैं, इनको अपनापन दिया है, इनकी जरूरतों को समझा है, ऐसा कोई कोई ही समझता है. अपना त्योहार हमारे इन बच्चों के साथ मनाना बहुत बड़ी बात है और आप इनके लिए जो तोहफे और जरूरत का सामान लायी हैं वह हमारे लिए बहुत बड़ी मदद है.

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तब से संध्या हर साल दीवाली और होली इन्हीं नन्हें-मुन्नों के साथ मनाती है और इसमें हर साल उसके परिवार वाले भी शामिल होते हैं. क्या आपका दिल नहीं चाहता रुटीन से हट कर कुछ करने का? किसी के चेहरे पर मुस्कान बिखेरने का? सच्ची और असली खुशी पाने का? अगर करता है तो अपने खींचे हुए दायरों से बाहर निकलें. घर से बाहर निकलें. अपने आसपास नजर डालें. कितने वृद्धाश्रम हैं जहां मौत की कगार पर बैठे बूढ़ों की बुझती आंखों में आप अबकी त्यौहार में खुशियों की चमक पैदा कर सकते हैं. कितने अनाथाश्रम हैं जहां बच्चों को एक पैकेट फुलझड़ी की देकर आप उनकी खुशियों को आसमान पर पहुंचा सकते हैं. अगर यह न कर सकें तो देखें अपनी कॉलोनी के गार्ड को, अपनी मेड को, अपने रिक्शेवाले को, अपने ड्राइवर को… क्या इस दीवाली उनके बच्चों के लिए छोटा सा उपहार देकर आप उनके परिवार में थोड़ी सी खुशी भेज सकते हैं… अगर हां, तो इतना ही कर दीजिए… मगर इस दीवाली कुछ हट कर जरूर करिये…

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