‘‘जौनी गद्दार’’से लेकर ‘‘साहो’’ तक नील नितिन मुकेश ने कई फिल्मों में पौजीटिव के अलावा निगेटिव किरदार भी निभाए हैं. अब वह आठ नवंबर को प्रदर्शित हो रही फिल्म ‘‘बाय पास रोड’’ में नील नितिन मुकेश ने अपने किरदार के साथ एक नया प्रयोग किए है. इस फिल्म में व्हील चेयर पर बैठे अपाहिज इंसान की मुख्य भूमिका निभाने के साथ ही वह इसके लेखक व निर्माता भी हैं. जबकि फिल्म के निर्देशक उनके छोटे भाई नमन नितिन मुकेश हैं.

आप अपने 12 साल के करियर को किस तरह से आंकते हैं?

बारह साल पहले जब मैंने अभिनय के क्षेत्र में कदम रखा था, उस वक्त एक बहस छिड़ी थी कि क्या मशहूर गायक (नितिन मुकेश) का बेटा और गायक (मुकेश) का पोता सफल अभिनेता बन सकता है. मुझे लगता है कि इस तरह की बहस करने वालों को जवाब मिल चुका है. मैंने इन 12 साल में काम करते हुए बहुत कुछ सीखा और उस सीख के चलते अब मुझमें परिपक्वता आ गयी है. पहले मुझमें एक किस्म का घमंड और बचपना था कि मैं तो अभिनेता हूं. सच कह रहा हूं, अब मेरे अंदर का यह घमंड खत्म हो चुका है. जिंदगी के संघर्ष समझ में आ रहे हैं. मैंने हमेशा अलग तरह की फिल्में की. ‘जौनी गद्दार’,वजीर’,‘लफंगे परिंदे’,‘सात खून माफ’,‘डेविड’,‘प्रेम रतन धन पाओ’. मैं जिस किस्म की फिल्में करना चाहता हूं, वह तो मुझे औफर होती नहीं है. क्योंकि यहां एक फिल्म सफल हो जाती है, तो उसी तरह की सौ स्क्रिप्ट मेरे औफिस पहुंच जाती हैं. मैं यह भी मानता हूं कि यहां कौन सी फिल्म चलेगी और कौन सी नहीं कोई नहीं कह सकता.न मुझे ‘गोलमाल’ अच्छी लगी, इसे लोगों ने भी पसंद किया. ‘गोलमाल’ में मैंने जो किरदार निभाया, उस किरदार के बिना फिल्म की कहानी हो ही नही सकती. इसी तरह ‘वजीर’ की. दक्षिण भारत में फिल्में की. ‘प्रेम रतन धन पायो’ की. मेरी हर फिल्म में कहानी और कमर्शियल दोनों पक्ष को महत्व दिया गया.

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