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‘बिग बौस 13’: सिद्धार्थ शुक्ला को मिली रश्मि देसाई का नौकर बनने की सजा

छोटे पर्दे का विवादित शो “बिग बौस 13” में एक से बढ़कर एक कंटेस्टेंट ने हिस्सा लिया है. जिससे दर्शकों को इस शो से काफी इंटरटेन हो रहा है. वैसे इस शो में टीवी स्टार सिद्धार्थ शुक्ला और रश्मि देसाई के बीच आए दिन अनबन देखने को मिलती रही है. दोनों एक-दूसरे से बात तो कम करते हैं. लेकिन वो आपस में झगड़ते हुए ही नजर आते हैं.

आपको बता दें, इस ‘वीकेंड के वार’  एपिसोड में एक टास्क हुआ. जिसमें रश्मि और सिद्धार्थ के बीच पावर कार्ड को लेकर टक्कर थी. इस टास्क में सिद्धार्थ और रश्मि दोनों की ही घरवालों का बराबर सपोर्ट मिला. इसके बाद सलमान खान ने घर की क्वीन देवोलीना भट्टाचार्जी को दोनों में से किसी एक को चुनने को कहा. देवोलीना ने अपनी दोस्त रश्मि देसाई को चुना. जिसकी वजह से पावर कार्ड रश्मि देसाई जीत गई.

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टास्क खत्म होने के बाद सलमान खान ने ऐलान किया कि बिग बौस ने आदेश दिया है कि सिद्धार्थ शुक्ला को रश्मि देसाई को नौकर बनाना होगा. रश्मि ये बात जानकर तुरंत ये आदेश करने से मना करती हैं. फिर सलमान कहते हैं कि बिग बौस का और्डर उन्हें मानना ही पड़ेगा.

ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि रश्मि और सिद्धार्थ इस टास्क को कैसे हैंडल करते हैं. शो के दूसरे हफ्ते कोयना मित्रा और दलजीत कौर घर से बाहर हो गई हैं. नौमिनेशन में रश्मि देसाई और शहनाज गिल भी थे. लेकिन  भरपूर वोट कारण दोनों बच गए.

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कितनी बार बौद्ध धर्म अपनाएंगी मायावती ?

30 जून 2016 को एक बयान जारी कर बसपा प्रमुख मायावती ने बौद्ध धर्म अपनाने की बात कही थी फिर 5 सितम्बर 2016 को भी उन्होंने इलाहाबाद से दहाड़ लगाई थी कि वे बौद्ध धर्म अपना लेंगी और फिर 24 अक्तूबर 2017 को भी आजमगढ़ में उन्होंने बौद्ध धर्म में जाने की बात कही थी. इस बार मायावती नागपुर से बोली हैं कि वे बौद्ध धर्म की दीक्षा ले लेंगी लेकिन हर बार की तरह इस बार भी उन्होंने अपने बहुप्रतीक्षित धर्मपरिवर्तन के बारे में यह लेकिन फिर जोड़ दिया है कि उचित समय पर.

इत्तेफाक नहीं बल्कि बात हंसी और साजिश की है कि उक्त तारीखों की तरह अभी चुनाव के वक्त ही उन्हें बौद्ध धर्म अपनाने का दौरा पड़ा और यह भी उन्होंने जोड़ा कि वे अकेली नहीं बल्कि करोड़ों दलितों के साथ बौद्ध धर्म की दीक्षा लेंगी. नागपुर बौद्ध बाहुल्य शहर है और यहीं 1956 में भीमराव अंबेडकर ने हिन्दू धर्म त्याग कर बौद्ध धर्म अपनाया था अब मायावती के पास दलितों को लुभाने कुछ बचा नहीं है लिहाजा बौद्ध दलितों को रिझाने उन्हें एक बार और बौद्ध धर्म में जाने का एलान करना पड़ा वह भी बिना इस बात का हिसाब किताब किए कि उनके बौद्ध धर्म में जाने से कौन सा हाहाकार मच जाएगा और अंबेडकर के बौद्धिस्ट बनने से कौन सी क्रांति आ गई थी यानी दलितों की बदहाली दूर हो गई थी या दूर हो गई है.

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दरअसल  आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने दशहरे के मौके पर कहा था कि सभी भारतीय हिन्दू हैं. मोहन भागवत ने और भी कई सनातनी दार्शनिकों सरीखी बातें कहीं थीं जो विनायक दामोदार सावरकर की इस थ्योरी से मेल खाती हुईं थीं कि जो भारत में पैदा हुआ है वह हिन्दू है.

पर इन कट्टर हिंदूवादियों की शाश्वत समस्या यह है कि दूसरे धर्म के अनुयायी उनसे इत्तफाक नहीं रखते खासतौर से वे धर्म जिन्हें हिन्दुओ में पसरे जातिवाद से डर लगता है और जो कथित तौर पर हिन्दू धर्म से टूटकर अस्तित्व में आए हैं. इस्लाम और इसाइयत की तो बात करना बेमानी है लेकिन सिक्ख जैन पारसी और बौद्ध भी भागवत की हिन्दू राष्ट्र की अवधारणा  से सहमत नहीं हैं. कोई धर्म हिन्दू बनने के लालच में अपनी धार्मिक पहचान नहीं खोना चाहता तो इसके पीछे और आगे का सच हिन्दू धर्म की कमजोरियों और उसमें पसरे ब्राह्मणबाद है बाकी अंधविश्वासों, दिखावों, पैसा बटोरने और पाखंडों के मामले में कोई धर्म किसी से उन्नीस नहीं है.

मायावती को दरअसल में बताना जताना यह था कि वे हिन्दू हैं सो बता दिया जिसके अपने धार्मिक और राजनैतिक मायने भी हैं. मोहन भागवत के सभी हिन्दू हैं वाले बयान का सबसे ज्यादा अंदरूनी और खुला विरोध पंजाब के सिक्ख कर रहे हैं जिसे नींबू के टोटके को आस्था विज्ञान और परंपरा साबित करने तुला मीडिया जानबूझ कर नहीं दिखा और छाप रहा. सिक्खों से भी ज्यादा कट्टर जैन समुदाय के लोग भाजपा और आरएसएस के कहीं ज्यादा नजदीक हैं पर वे कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रहे रहे. पारसी तो वे बेचारे अपनी कम होती आबादी को लेकर जैनियों से ज्यादा हैरान परेशान हैं और जगह जगह युवाओं से अपील कर रहे हैं कि वे वक्त पर शादी करें और प्यार भी करें फिर भले ही शादी किसी दूसरे धर्म में करें लेकिन खुद को लुप्त होने से बचाएं.

अब बारी आती है बौद्ध धर्म की तो हर कोई जानता है कि वह हिन्दू धर्म पार्ट 2 सरीखा ही है जिसमें सवर्णों के सताये दलित भरे पड़े हैं लेकिन बौद्ध बन जाने से कोई उल्लेखनीय सुधार उनकी दयनीय हालत में नहीं हुआ है. जिस मकसद से बौद्ध धर्म का निर्माण बुद्ध ने किया था उसकी आधी हवा तो ब्राह्मणों ने उन्हें अवतार घोषित कर ही निकाल दी थी और खुद का अस्तित्व बचा लिया था. फिर धीरे धीरे हिन्दू धर्म के सारे पाखंड बौद्ध धर्म में भी पसर गए.  अब वे खूब मूर्ति पूजा करते हैं, अपने मंदिर भी बनाते हैं, अपने पंडितों को दक्षिणा भी देते हैं. टोने टोटके, जादू मंतर भी करते हैं. बुद्ध जयंती पर अल्पकालिक झांकी भी लगाते हैं और मुकम्मल धूम धड़ाके से धार्मिक जुलूस और भव्य व खर्चीली शोभा यात्राएं भी निकालते हैं.

अधिकांश नव बौद्ध, बुद्ध के साथ साथ हिन्दू देवी देवताओं की मूर्तिया भी रखते और पूजते  हैं यानी रग रग में बसे हिन्दू रीति रिवाज नहीं छोड़ पाते तो जाहिर है उनका बौद्ध बनना उनके किसी काम नहीं आता क्योंकि बौद्ध बन जाने के बाद ऊंची जाति वालों का नजरिया उनके प्रति बदलता नहीं है. कोई उन्हें गले नहीं लगाता और न ही उनसे रोटी बेटी के संबंध कायम करता.

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फिर बौद्ध बनने के मायने क्या यह शायद ही मायावती बता पाएं कि एक से निकलकर दूसरे नर्क में जाने से दलितों को हासिल क्या होता है असल बात तो यह है कि चमार जाति को छोड़कर अधिकतर दूसरी दलित जातियां भाजपा के साथ हो चली है और पिछड़े तो कांशीराम के वक्त में ही साथ छोड़ गए थे. पिछले लोकसभा चुनाव में जरूर इन दोनों समुदायों को फिर से  जोड़ने की कोशिश गठबंधन के जरिये हुई थी लेकिन जब नतीजे आए तो पता चला कि अब कुछ नहीं हो सकता. थोक में दलितों और पिछड़ों ने भाजपा को वोट कर जता दिया कि मायावती और अखिलेश यादव भाजपा से कम बेईमान नहीं लिहाजा भगवान वाली पार्टी क्या बुरी है जो कम से कम मोक्ष जैसी दुर्लभ चीज तो दिलबाने की बात करती है.

मायावती की भाजपा और आरएसएस को दी गई यह धौंस बेअसर साबित हो रही है तो इसकी सीधी वजह यह है कि पंडे पुजारी बसपा चला रहे हैं और मायावती सिर्फ चुनावी बातें करती हैं.  वे अब दलितों की हिफाजत की पहले सी गारंटी नहीं रहीं इसीलिए बसपा का ग्राफ लगातार गिर रहा है. अब मायावती हिन्दू रहें या बौद्ध बन जाएं इससे किसी को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला यह हकीकत भी वे समझ रहीं हैं लेकिन चूंकि नेतागिरी करते रहने ऐसे बयान जरूरी हैं इसलिए हर कभी दे देती हैं. मायावती अब मनु स्मृति पर कुछ बोलने की हिम्मत नहीं कर पातीं न ही वर्ण व्यवस्था का विरोध करती. हां यह जरूर कहती रहती हैं कि दलितों के साथ नाइंसाफी हो रही है. योगी मोदी और आरएसएस हिन्दुत्व का कार्ड खेल रहे हैं तो सुनने वाले उनकी तरफ हैरानी से देखने लगते हैं तो फिर आप क्या कर रहीं हैं.

वे लोग मूर्ति पूजा करते हैं तो आप भी तो खुद के साथ साथ बुद्ध की अंबेडकर की और कांशीराम की मूर्तियां लगवाती हैं जिन्हें देख प्रेरणा तो कोई मिलती नहीं उल्टे पूजा पाठ को जी मचलता है तो हम में और सवर्णों में फर्क क्या. वे लोग पैसा बनाते हैं तो आप भी तो करोड़ों के आलीशान महल में रहती हैं और इन्द्र जैसी सिंहासन नुमा कुर्सी पर विराजती हैं. परिवारवाद फैला रहे हैं तो बसपा कौन सा इसका अपवाद हैं आपका भतीजा बसपा का वारिस घोषित किया जा चुका है. उनके साथ ब्राह्मण हैं तो बसपा का बही खाता भी तो पंडित सतीश मिश्रा देख रहे हैं और क्या बसपा में आए ब्राह्मण भी बौद्ध धर्म अपनाएंगे यह क्यों स्पष्ट नहीं किया जा रहा. आप कश्मीर से धारा 370 हटाये जाने का समर्थन करती हैं और फिर मुसलमानों को भाजपा और आरएसएस का डर और हौव्वा भी दिखाती हैं यह कौन सी ईमानदार राजनीति की मिसाल है. जब आप दलितों को हिफाजत मुहैया नहीं करा पा रहीं तो मुसलमान आप पर क्या खाकर भरोसा करे .

अगर वाकई मायावती आरएसएस और भाजपा की मंशा को लेकर गंभीर है और उन्हें सबक सिखाना चाहती हैं तो उन्हें हिन्दू धर्म के विकल्प के रूप में इस्लाम को चुनना चाहिए क्योंकि इन दोनों ही समुदायों की आबादी 40 करोड़ के लगभग है और डरे सहमे इन दोनों वर्गों ने कभी एक साथ आने से गुरेज नहीं किया. लेकिन हिन्दुत्व मायावती के दिलोदिमाग में भी कूट कूट कर भरा है इसलिए वे बौद्ध धर्म में जाने की बात कर रहीं हैं जिससे देश जो आधा सा हिन्दू राष्ट्र बन चुका है का हिस्सा वे रहें. करोड़ों तो नहीं कोई 10-15 हजार दलित मायावती के साथ बौद्ध धर्म में जा सकते हैं बाकी करोड़ों को भाजपा ही भा रही है तो वे कुछ नहीं कर सकतीं सिवाय गीदड़ भभकी देने के जिसकी चिंता भगवा खेमा नहीं कर रहा क्योंकि बौद्ध उसका बड़ा वोट बेंक है खासतौर से महाराष्ट्र में जहां उसकी तादाद सबसे ज्यादा है.

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‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’: क्यों वेदिका को घर से बाहर निकालेगा कार्तिक?

स्टार प्लस का पौपुलर सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में आए दिन लगातार धमाकेदार ट्विस्ट देखने को मिल रहा है. फिलहास इस सीरियल की कहानी कायरव की कस्टडी केस के ईर्द गिर्द घुम रही है. हाल ही में आपको बताया था कि कार्तिक की वकील दामिनी मिश्रा कस्टडी केस को जीतने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है.

इस शो के आने वाले एपिसोड में  दामिनी   मिश्रा कोर्ट में प्रूफ करेगी कि जब नायरा प्रेग्नेंट थी तो वह गोवा में अकेली ही थी, ऐसे में वह बच्चा नहीं चाहती थी. यहां तक की उसने अपने बच्चे को अबौर्ट करने का फैसला भी  लिया था.

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खबरों के अनुसार, नायरा बैग पैक करती हुई नजर आएगी और जैसे ही कार्तिक को पता चलेगा, वह गुस्सा होगा. इसी बीच कैरव अपने मम्मी-पापा की लड़ाई देखेगा. और वह वहां से भागने लगेगा. ऐसे में सीढ़ियों से जाता हुए कैरव गिर जाएगा और उसे चोट भी लग जाएगी. आपको बता दें, ये सारी घटनाएं कार्तिक के सपने में होने वाली है.

जल्द ही इस शो में वेदिका का खुलासा होने वाला है. जी हां, उसके एक्स-हसबैंड की एंट्री होने वाली है. वेदिका ने अपने  बीते हुए कल के बारे में सबसे छुपाया है. लेकिन जल्द ही उसका सच सबके सामने आने वाला है.

बता दें कि सबसे पहले वेदिका के पास्ट की बातें नायरा को पता चलेगी और वह वेदिका के बारे में कार्तिक को सब कुछ बता देगी. ये बात सुनकर कार्तिक आग बबूला हो जाएगा. और वेदिका को अपने धक्के मारकर घर से बाहर निकालेगा.

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एक गुटखे के लिए हत्या!

हत्या अनेक ढंग से होती है,कभी कोई अपने परिजन की हत्या कर देता है, तो कभी कोई अपने प्रिय के लिए हत्या कर देता है. हत्या का मनोविज्ञान कुछ ऐसा है की इसे सार रूप में समझ पाना बेहद जटिल है. देश दुनिया में हत्या अर्थात मर्डर का अपराध अपने चरमोत्कर्ष पर है. आज हम आपको बताते हैं एक ऐसे मर्डर की कहानी जो बेहद छोटी सी बात पर हो गई, यह बात थी एक गुटके को लेकर सहकर्मी ने गुटका नहीं मिलने पर और असहनीय व्यवहार की परिणति हत्या करके कर दी. पुलिस 2 माह तक इस हत्याकांड की खुरद- बीन करती रही. अंततः अपराधी तक पहुंचने में कामयाब हुई. यह कहानी है छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के तिल्दा नेवरा थाना क्षेत्र की. जहां बजरंग पावर प्लांट में हुए अंधे क़त्ल की गुत्थी को पुलिस के लिए एक पहेली बन गई थी. मृतक शुभम नायक की मौत के बाद पुलिस इस मामले की लगातार जांच पड़ताल कर रही थी. आखिरकार हत्या को अंजाम देने वाले युवक को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है.

सहकर्मी ही निकला हत्यारा

इस समय हत्या का पर्दाफाश होने के बाद जो तथ्य सामने आए हैं यह बेहद चौंकाने वाले रहे. जांच अधिकारी शरत चंद्रा बताते हैं, हत्या को अंजाम देने वाला कोई और नहीं बल्कि मृतक के साथ पावर प्लांट में मजदूरी करने वाला युवक ही कातिल निकला है.

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पुलिस ने आरोपी को पकड़कर रायपुर सेंट्रल जेल भेज दिया है. थाना प्रभारी शरद चंद्रा ने बताया कि घटना 12 अगस्त 2019 की है. घटनास्थल बजरंग पावर प्लांट टंडवा में शुभम नायक 21 वर्ष निवासी ग्राम निनवा जो कि बजरंग पावर प्लांट में मजदूरी का काम किया करता था जिसको प्लांट के स्टोरेज बिल्डिंग में घायल अवस्था में मिलने से संयंत्र के द्वारा इलाज हेतु मेकाहारा रायपुर ले जाया गया था. जहां डौक्टरों ने मृत घोषित कर दिया . पुलिस की जांच पड़ताल और पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मृतक की मौत का कारण हत्या होना बताया गया था. पुलिस के सामने एक अंधे कत्ल के रूप में यह प्रकरण चुनौती बनकर सामने था निरंतर विवेचना करने के पश्चात भी पुलिस को कोई सूत्र नहीं मिल रहा था कि आखिर हत्या का कारण क्या है और जब हत्यारा पकड़ में आया और उसने कारण बताए तो पुलिस ने भी आश्चर्य से दांतो तले उंगली दबा ली.

छोटी सी बात और कर की हत्या

पुलिस इस मामले की निरंतर जांच में सतत जुटी हुई थी. तिल्दा नेवरा में मृतक की हत्या के मामले में तहकीकात में लगी हुई थी. लगातार सघन जांच से कुछ तथ्य सामने आए. संयंत्र के संबंधित कर्मचारियों से एवं मृतक के परिजनों से पूछताछ की जा रही थी.

इस दौरान पूछताछ में मृतक शुभम नायक का घटना के कुछ दिन पहले ही ग्राम किरना निवासी भूपेंद्र मिर्झा जो की शुभम के साथ ही भी संयंत्र में काम करता था उसके साथ मृतक शुभम नायक का विवाद होने की जानकारी सामने आई. तत्पश्चात तिल्दा पुलिस हरकत में आ गई और भूपेंद्र मिर्झा की जानकारी में आए बिना संयंत्र से प्राप्त रिकार्ड को खंगाला गया. जिसमें जांच में पाया गया कि घटना दिनांक 12 अगस्त 2019 के बाद से भूपेंद्र मिर्झा कार्य पर उपस्थित नहीं हो रहा था. जिससे कि पुलिस के संदेह को और बल मिला. पुलिस भूपेंद्र की चुपचाप पतासाजी करती रही थी. जैसे ही पता चला कि आरोपी अपने घर में छुपा बैठा है.वैसे ही पलिस ने उसे पकड़ पूछताछ के लिए तलब किया.आरोपी पुलिस के सवालों से घबरा गया और बताया की घटना से पहले मृतक शुभम नायक से गुटका मांगने पर उसे बेइज्जत किया गया. इसके बाद दूसरी बार भी आरोपी का चार्जिंग में लगा मोबाइल निकाल कर शुभम नायक अपना मोबाइल चार्जिंग में लगा देता था. आरोपी द्वारा मना करने पर मृतक शुभम नायक ने आरोपी का मोबाइल पटक कर तोड़ भी दिया था  जिससे आरोपी भूपेंद्र को मृतक से नाराज था.इसके बाद भूपेन्द्र ने शुभम नायक से बदला लेने के लिए मौके की तलाश में रहने लगा और एक दिन जब मौका मिला तो मृतक के सिर पर लोहे की राड़ से हमला कर उसे मौत के घाट उतार दिया. हत्य़ा के बाद लोहे के प्लांट के बंकर क्रमांक 2 में साक्ष्य छुपा दिया. आरोपी भूपेंद्र के ने स्वीकार किया  कि वह मृतक को प्लांट में खुद अपने हाथ से मौत के घाट उतारा जिसे लोहे के राड को पुलिस ने जप्त कर लिया है.  आरोपी को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है और ज्यूडिशियल रिमांड हेतु माननीय न्यायालय जेएमएफसी तिल्दा के न्यायालय पेश किया गया. जिसके बाद न्यायालय के आदेश पर आरोपी को रायपुर भेज दिया गया.

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भारतीय मूल के अभिजीत बनर्जी, उन की पत्नी ऐस्थर और माइकल क्रेमर को अर्थशास्त्र का नोबेल

अर्थशास्त्र के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार की घोषणा कर दी गई है. भारतीय मूल के अभिजीत बनर्जी, उनकी पत्नी ऐस्थर डफ्लो और माइकल क्रेमर को ‘वैश्विक गरीबी खत्म करने के प्रयोग’ के उन के शोध के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा.

भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिक अभिजीत बनर्जी फिलहाल मैसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट औफ टैक्नोलौजी में अर्थशास्त्र के प्रोफैसर हैं. वह और उनकी पत्नी डफ्लो अब्दुल लतीफ जमील पौवर्टी ऐक्शन लैब के सह संस्थापक भी हैं.

अभिजीत बनर्जी ने 1981 में कोलकाता यूनिवर्सिटी से बीएससी किया था, जबकि 1983 में जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) दिल्ली से एमए किया था. इस के बाद उन्होंने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से 1988 में पीएचडी की थी.

झप्पी रूम देगा टेंशन से मुक्ति

इंडिया इंक कंपनी ने 10 अक्टूबर यानी वर्ल्ड मेन्टल हेल्थ डे पर अपने औफिसों में नैप रूम बनाने का फैसला किया है. जोमैटो, ओयो, रेजरपे, स्टीलकेस, रेंटोमोजो और गोवर्क जैसी कंपनियों में पहले से ही नैप रूम बने हैं जहां दोपहर के वक़्त कर्मचारी एक से दो घंटे तक आराम फरमा सकते हैं. कम्पनीज का मानना है कि इससे कर्मचारियों की कार्यक्षमता में गज़ब की वृद्धि होती है.

कम नींद आने का असर दरअसल हमारे काम पर दिखता है और हमारी प्रौडक्टिविटी कम हो जाती है. इसलिए, इंडिया इंक ने वर्ल्ड मेंटल हेल्थ डे को औफिसों में नैप रूम यानी सोने या झपकी लेने वाला कमरा शामिल करने का फैसला लिया है.

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एक सर्वे के अनुसार एक हजार भारतीयों में से 40 फीसदी को अच्छी नींद नहीं मिलती है. अपर्याप्त नींद का असर उनके स्वास्थ पर भी पड़ता है और काम पर भी. इससे उनकी मेन्टल हेल्थ खासी प्रभावित होती है. सर्वे में पाया गया है कि भारत में ज्यादातर कर्मचारी बीमार होने के बावजूद औफिस जाने के लिए मजबूर होते हैं. देश के कौर्पोरेट सेक्टर में काम करने वाले हर 10 में से चार कर्मचारियों को नींद से जुड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ता है. इसकी दो प्रमुख वजह काम संबंधी तनाव और नौकरी की अनिश्चितता है.

40 फीसदी भारतीय कर्मचारी अपर्याप्त नींद के शिकार मनिपाल सिग्ना 360 वेल-बीइंग के सर्वे में हिस्सा लेने वाले एक हजार भारतीयों में से 40 पर्सेंट में अपर्याप्त नींद की शिकायत पाई गई. मनिपाल सिग्ना हेल्थ इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड की ह्यूमन रिसोर्स औफिसर रीना त्यागी के अनुसार ‘भारत में ज्यादातर कर्मचारी बीमार होने के बावजूद ऑफिस जाने के लिए मजबूर होते हैं. ऐसा खास तौर पर उन नौकरियों में होता है, जहां जॉब की अनिश्चितता बनी हो या छंटनी का दौर चल रहा हो.’

देर रात तक काम करने का बुरा असर

सिकोइया के निवेश वाली मैट्रेस कंपनी वेकफिट डौट ने 1,500 कर्मचारियों को अपने सर्वे में शामिल किया, जिसमें से 600 को तनाव और देर रात तक काम करने के कारण अनियमित निद्रा की शिकायत पाई गई. वेकफिट डौट को के को-फाउंडर चैतन्य रामलिंग गौड़ा कहते हैं कि ये सर्वे रिपोर्ट देखते हुए मैट्रेस स्टार्टअप ने हाल ही में कई कंपनियों में नैप रूम सेटअप किए हैं. इसके अलावा कर्मचारियों के मेन्टल हेल्थ में सुधार लाने के लिए कई कंपनियां मेडिटेशन, काउंसलिंग सेशन, हौबी ग्रुप जैसे आयोजन भी कर रही हैं. इससे औफिस में एक आरामदेह माहौल बनता है और कर्मचारियों की स्वास्थ्य संबंधित परेशानियां खत्म होती हैं.

डौक्टर्स की माने तो काम संबंधी तनाव और अनियमित निद्रा से होने वाले मानसिक रोग का आसानी से पता नहीं चलता है. इस समस्या के लगातार बने रहने से सिरदर्द, चक्कर, हाई बीपी, टेंशन, चिड़चिड़ापन और भूलने की बिमारी पैदा हो जाती है, जिसके चलते कार्यक्षमता प्रभावित होती है. ऐसे में ऑर्गनाइजेशन के लिए ज़रूरी हो जाता है कि अपनी प्रोडक्टिविटी बढ़ाने के लिए वे अपने कर्मचारियों को तनावमुक्त माहौल दें. उनका दायित्व है कि वे अपने कर्मचरियों की समस्याओं को समझ कर उनका हल निकालें.

एक्टिव लाइफस्टाइल को बढ़ावा

कई कंपनियों ने अपने कर्मचारियों के मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए अनलिमिटेड फोन काउंसलिंग, आठ हफ्तों का औनलाइन बिहेवियरल थेरेपी प्रोग्राम, मेडिटेशन ऐप का सब्सक्रिप्शन, औफिस के तनाव को संभालने के लिए कैंप और कर्मचारियों में एक्टिव लाइफस्टाइल को बढ़ावा देने जैसे कदम उठाए हैं. वहीं ब्लैकरौक के निवेश वाली को-वर्किंग स्पेस गोवर्क ने अपने गुड़गांव कैंपस में दो दर्जन से अधिक स्लीपिंग पाड लगवाए हैं. दोपहर में 2-4 के बीच उनके कर्मचारी यहां झपकी लेने के लिए आते हैं और फिर देर रात तक पूरे उत्साह से काम करते हैं.

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चित्तशुद्धि : भाग 1

इस शहर में मेरा पहली बार आना हुआ है. यह मेरे लिए अनजाना है. 5 साल तक एक ही शहर में रहने के बाद मेरा ट्रांसफर इस शहर में हुआ है. हुआ क्या है, किसी तरह कराया है. जहां से मैं आई हूं वहां एक मंत्री का इतना दबदबा था कि उस के गुंडे औफिस आ कर मेज पर चढ़ कर बैठ जाते थे, और मंत्री के नाम पर गलत काम कराने का दबाव बनाते थे. गालियां उन की जबान पर हर वक्त धरी रहती थीं. औरत तक का कोई लिहाज उन की नजरों में नहीं था.

मैं स्टेशन से बाहर निकलती हूं. बहुत सारे रिकशे खड़े हैं. मैं हाथ के संकेत से एक रिकशे वाले को बुलाती हूं. मैं उस से कुछ कहे बिना ही रिकशे में बैठ जाती हूं. रिकशे वाला पूछ रहा है, ‘‘बहनजी, कहां जाइएगा?’’ मैं उस से विकास भवन चलने को कहती हूं. नए शहर में रिकशे में बैठ कर घूमना मु झे अच्छा लगता है. सड़कें, बाजार और दिशाएं अच्छी तरह दिखाई देती हैं.

रिकशे वाला स्टेशन से बाहर निकल कर सीधे रोड पर चल रहा है. यह स्टेशन रोड है. कुछ दूर चल कर सड़क पर ढेर सी सब्जियों की दुकानें देख रही हूं. मैं अनुमान लगाती हूं, शायद यह यहां की सब्जी मंडी है. मैं रिकशे वाले से कन्फर्म करती हूं. वह बता रहा है, ‘‘बहनजी, यह अनाज मंडी है. सब्जियां भी यहां बिकती हैं.’’

मैं देख रही हूं, सड़क के दोनों ओर सब्जियों के ढेर से सड़क काफी संकरी हो गई है. गाय और सांड़ खुले घूम रहे हैं. इस भीड़ वाले संकरे रास्ते से निकल कर आगे दाहिने हाथ पर राजकीय चिकित्सालय की इमारत दिख रही है. फिर चौक आता है. रिकशे वाला कह रहा है, ‘‘यहां बाईं तरफ घंटाघर है, यह सामने नगरपालिका है.’’

रिकशा चौक से आगे जा कर बाएं मुड़ जाता है. इस रोड की सजीधजी दुकानें बता रही हैं कि यह यहां का मुख्य बाजार है. मैं दोनों ओर गौर से देखती जा रही हूं. किराने, वस्त्रों, साडि़यों, रेडीमेड गारमैंट्स, बरतन, स्टेशनरी आदि की काफी सारी दुकानें नजर आ रही हैं. साडि़यों के एक शोरूम पर नजर पड़ती है. बहुत ही भव्य शोरूम लग रहा है. अब तो इस शहर में रहना ही है. सो, मैं निश्चित कर रही हूं, इस शोरूम पर जरूर आना है.

कुछ दूर चल कर एक संकरा पुल आता है. इस पुल पर काफी जाम है. रिकशे वाला धीरेधीरे रास्ता बनाते हुए चल रहा है. पुल के नीचे नदी है, पर उस में पानी ज्यादा नहीं दिख रहा है. रिकशे वाला पुल और नदी का नाम बता रहा है, पर मेरा ध्यान उस की तरफ नहीं है. इसलिए मैं उसे सुन नहीं पाई. पुल पार करते ही बाईं ओर एक बड़ी सी मिठाई की दुकान नजर आई. रिकशे वाला बता रहा है, ‘‘बहनजी, इस दुकान की इमरती दूरदूर तक मशहूर है.’’

इमरती मुझे बहुत अच्छी लगती है. पर अब डायबिटीज की पेशेंट हूं, इसलिए परहेज करती हूं. इसी वक्त चमेली की खुशबू नथुनों में भर जाती है. देखती हूं कि सड़क के दोनों ओर इत्र की दुकानें हैं. यहां से आगे चल कर फिर एक बाजार आया है. दुकानों के बोर्ड पढ़ती हूं, कोई गंज बाजार है.

रिकशा अब बाएं मुड़ रहा है. आगे एक देशी शराब का ठेका बाईं तरफ दिखाई दे रहा है.

रिकशा वाला कह रहा है, ‘‘यहां शाम को मछली बाजार लगता है.’’ पर मैं उस की बात अनसुनी कर देती हूं. यहां से कोई 20 मिनट बाद कलैक्ट्रेट का गेट दिखाई देने लगा है. रिकशा इसी गेट के अंदर प्रवेश कर रहा है. मैं बाईं ओर जिला कोषागार का औफिस देख रही हूं. उस के थोड़ा ही आगे विकास भवन की बिल्डिंग दिखाई देने लगी है. रिकशा वहीं पर रुक जाता है.

मैं रिकशे से उतरती हूं. मैं उस से किराया पूछती हूं, वह 10 रुपए मांग रहा है. यहां इतना कम किराया. मु झे यह ठीक नहीं लग रहा है. मैं मन में सोच रही हूं, यह तो इस के श्रम के साथ न्याय नहीं है. पर मैं कर भी क्या सकती हूं. मैं ने उसे 10 रुपए दिए. बाद में सौ रुपए का नोट अलग से दिया कि वह मेरी तरफ से तुम्हारे बच्चों के लिए मिठाई है. आज इस शहर में मेरा पहला दिन है. जाओ, उसी दुकान से इमरती ले कर घर जाना.

रिकशे वाले की आंखों में खुशी देख कर मैं अपने बचपन की यादों में खो जाती हूं. पिताजी चीनी मिल में मजदूर थे. एक दिन जब वे रात में ड्यूटी से घर आए, तो उन के हाथों में मिठाई का डब्बा था. उस में इमरतियां थीं. मां ने पूछा था ‘मिठाई कहां से लाए,’ तो पिताजी ने बताया था, ‘एक नए अफसर आए हैं. उन के साथ मिल के विभागों में घूमा था. उन्होंने मु झ से घरगृहस्थी की बातें पूछी थीं. जब चलने को हुआ, तो उन्होंने 50 रुपए दे कर कहा था कि बच्चों के लिए मिठाई ले जाना.’ उस दिन मैं ने पहली बार इमरती खाई थी. ओह, मैं भी कहां खो गई. वर्तमान में लौटती हूं.

मैं सूटकेस ले कर विकास भवन में प्रवेश करती हूं. अपने विभाग में जा कर अपना जौइनिंग लैटर बनवाती हूं. बाबू बताता है, डीएम साहब अवकाश पर हैं, उन का चार्ज सीडीओ के पास है. मैं बाबू के साथ सीडीओ से मिलने जाती हूं. मैं उन्हें जिला समाज कल्याण अधिकारी के पद पर अपना जौइनिंग लैटर सौंपती हूं.

आज का दिन ऐसे ही बीत जाता है. सीडीओ से मिल कर अच्छा लग रहा है. रोबदाब वाली अफसरी उन में नहीं दिखी. वे मु झे मिलनसार और सहयोगी स्वभाव के लगे. उन्होंने पूछा, ‘‘क्या इस शहर में कोई संबंधी है?’’ मेरे मना करने पर उन्होंने तुरंत ही मेरे आवास की समस्या भी हल कर दी है.

डीआरडीए के परियोजना निदेशक का ट्रांसफर हो गया था, और उन का आवास खाली पड़ा था. वे मु झे उस की चाबी दिलवा देते हैं. मैं उन का आभार व्यक्त करती हूं.

बाबू ने आवास की साफसफाई करवा दी है. कुछ जरूरी सामान भी उस ने उपलब्ध करा दिया है. अकसर नई जगह पर नींद थोड़ी मुश्किल से आती है. पर 12 घंटे की रेलयात्रा की थकान थी, इसलिए लेटते ही नींद ने आगोश में ले लिया था. सुबह 6 बजे आंख खुली. आदत के अनुसार अखबार के लिए बाहर आई. पर अखबार कहां से होता. किसी हौकर से डालने को कहा भी नहीं गया था.

संयोग से साइकिल पर एक हौकर आता दिखाई दिया. मैं उस से एक हिंदी और एक इंग्लिश का अखबार लेती हूं, और यही 2 अखबार उस से रोज डालने को कहती हूं. ब्रश कर के चाय बनाती हूं. मैं दूध का इस्तेमाल नहीं करती हूं. बाकी सारा सामान इलैक्ट्रिक केतली, शुगरफ्री के पाउच और टीबैग्स घर से साथ ले कर आईर् हूं. चाय पीने के साथ अखबार पढ़ती हूं.

एक खबर पढ़ कर चौंक जाती हूं. क्या सरला इसी शहर में है? क्या यह वही सरला है, जो मेरी क्लासपार्टनर थी या यह कोई और है? नाम तो उस का भी सरला था. बहुत छुआछूत करती थी. मगर यह वही सरला है, तब तो यह बिलकुल नहीं बदली. वैसी की वैसी ही कूपमंडूक है अभी तक. सच में कुछ लोग कभी नहीं बदलते. घुट्टी में दिए गए संस्कार उन में ऐसे रचबस जाते हैं कि उन की पूरी दिनचर्या संस्कारों की गुलाम हो जाती है. अच्छाबुरा, और सहीगलत में वे कोई अंतर ही नहीं कर पाते. बस, उन के लिए उन की मान्यताएं, आस्थाएं और संस्कार ही उन का परम धर्म होते हैं. मु झे याद है, एक बार मैं ने कहा था, चल सरला, आज बाहर किसी रैस्तरां में कुछ खापी कर आते हैं.

वह तुरंत बोली थी, ‘तुम जाओ, मु झे अपना धर्म नहीं भ्रष्ट करना.’

मैं ने कहा, ‘क्या रैस्तरां में खाने से धर्म भ्रष्ट हो जाता है?’

‘और क्या?’

‘तु झ से किस ने कहा?’

‘किसी ने नहीं कहा, पर क्या तु झे पक्का पता है कि वहां जातकुजात के लोग नहीं होते हैं? ब्राह्मण ही खाना बनाते और परोसते हैं?’

‘तू जातपांत को मानती है?’

‘हां, मैं तो मानती हूं.’

उस का रिऐक्शन इतना खराब होगा, मु झे नहीं पता था. मैं तो सुन कर अवाक रह गई थी.

अगर यह वही सरला है, तब तो उस की नौकरानी ने उस के खिलाफ केस कर के ठीक ही किया है. बताइए, यह कोई बात हुई कि जो नौकरानी 6 महीने से चायनाश्ता और खाना बना रही थी, उसे इस वजह से मारपीट कर के नौकरी से निकाल दिया कि वह उसे ब्राह्मण सम झ रही थी जबकि वह यादव निकली. इस ब्राह्मणदंभी को यह नहीं पता कि जो आटा वह बाजार से लाती है, वह किस जाति या धर्म के खेत के गेहूं का आटा है- ब्राह्मण के, यादव के, चमार के या मुसलमान के?

पर ऐसे लोग यहां भी तर्क जमा लेते हैं, कहते हैं, अग्नि में तप कर सब शुद्ध हो जाता है. अन्न अग्नि में शुद्ध हो जाता है, लेकिन उसे बनाने वाला शुद्ध नहीं होता है. वह अगर ब्राह्मण है तो ब्राह्मण ही रहता है, और यादव है तो यादव ही रहता है. मैं तो यह खबर पढ़ कर ही परेशान हुई जा रही हूं, यह कितनी अवैज्ञानिक सोच है, कह रही है, नौकरानी ने मेरा धर्म भ्रष्ट कर दिया. इतने दिनों से मैं एक शूद्रा के हाथ का बना खाना खा रही थी.

मैं सरला से मिलने की सोचने लगी हूं. पर पहले तो यह पता करना होगा कि वह रहती कहां है. पर इस से भी पहले उस का फोन नंबर मिलना जरूरी है. यहां भी सीडीओ साहब काम आते हैं. और मु झे उस के आवास का पता व फोन नंबर मिल जाता है. मैं तुरंत नंबर मिलाती हूं. फोन स्विचऔफ जा रहा है. हो सकता है ऐसी परिस्थिति में उसे अनेक लोगों के फोन आ रहे होंगे. उसी से बचने के लिए उस ने फोन स्विचऔफ कर दिया होगा. पर उस से मिलना जरूरी है. इसलिए मैं उस से मिलने उस के आवास की ओर चल देती हूं.

ट्रांजिट होस्टल में सैकंड फ्लोर पर जा कर मैं एक दरवाजे की घंटी बजाती हूं. दरवाजा सरला ही खोलती है. मैं इतने सालों के बाद भी उसे पहचान लेती हूं. पर वह मु झे देख कर अवाक सी है, …..पहचानने का भाव उस की आंखों में मु झे दिख रहा है. फिर पूछती है, ‘‘जी कहिए?’’

मेरे जवाब देने से पहले ही वह फिर बोल पड़ती है, ‘‘बोलिए, किस से मिलना है?’’

‘‘अरे सरला, मु झे पहचाना नहीं? मैं आभा हूं, कानपुर वाली तेरी क्लासफैलो.’’

फिर वह थोड़ा चौंक कर बोली, ‘‘अरे आभा तू? तू यहां कैसे? माफ करना यार, कोई 10 साल के बाद मिल रही हो, इसलिए पहचान नहीं पाई. आओ, अंदर आओ.’’

कुछ बदल रहा है : भाग 2

लेखिका- अर्चना पैन्युली

पूर्व कथा

सुनीता भारत में बसे बेटे मनु से जब भी शादी की बात करतीं तो वह टाल जाता. विदेश में रहते हुए ही सुनीता उस की शादी के लिए कई भारतीय अखबारों और वेबसाइट पर उस की शादी का विज्ञापन देती हैं.

पिछली बार फोन पर बात करते हुए सुनीता मनु को चेतावनी देती हैं कि हमारे दिल्ली आने पर उसे शादी करनी पड़ेगी. पर मनु की ऊलजलूल बातें सुन कर सुनीता और परेशान हो जाती हैं.

10 साल से मनु अकेला भारत में रह रहा था. विदेश मंत्रालय में कार्यरत होने के कारण पति का तबादला होता रहता था, जिस के कारण वह बच्चों को पढ़ाई के लिए भारत भेज देती हैं. अब सुनीता की ख्वाहिश है कि बेटा शादी कर के घर बसा ले.

फोन पर बेटे की बातें सुन कर शर्मा दंपती जल्द ही दिल्ली आ जाता है. मनु उन्हें लेने एअरपोर्ट जाता है. घर की साफसफाई देख कर सुनीता मनु से पूछती हैं तो पति पंकज उस की गर्लफ्रेंड सेंनली के बारे में बताते हैं. सुनीता के पूछने पर मनु कहता है कि दोनों साथ पढ़ते थे. अगले दिन बेटी तुला भी दिल्ली आ जाती है.

सुनीता मनु को सेंनली से मिलाने के लिए कहती हैं. सेंनली जब आती है तो उसे देख कर वह चौंक जाती हैं. उस के टूटीफूटी हिंदी बोलने पर सुनीता और भी चिढ़ जाती हैं. सभी लोगों को सेंनली की मेहमाननवाजी में व्यस्त देख कर सुनीता को जलन होने लगती है.

और अब आगे…

नानी, तुला व पंकज से स्नेह से मिलते हुए सेंनली ने विदा ली. सुनीता को बस, दूर से ही उस ने हाथ जोडे़. मनु उसे टैक्सी स्टैंड तक छोड़ने चला गया.

सेंनली के जाने के बाद सुनीता अपनी जगह से हिलीं. सब से पहले अपने पति पर बिफरीं, ‘‘मुझे तो लड़की बिलकुल पसंद नहीं आई और तुम उस की फोटो पर फोटो खींचने में लगे थे.’’

‘‘अरे भई, अपने आफिस से जल्दी छुट्टी ले कर यह कह कर आया हूं कि लड़के की सगाई करनी है. वहां लोग पूछेंगे तो कुछ फोटो वगैरह तो उन्हें दिखानी ही पड़ेंगी.’’

‘‘और तुला, तेरे लिए भाई की गर्लफें्रड की खबर कोई नई खबर तो नहीं थी, तू शायद बहुत पहले से उसे जानती है.’’

‘‘मम्मी, आप जानने की बात कह रही हैं. मैं तो जब भी बंगलौर, भाई के पास जाती हूं, हम तीनों एकसाथ खूब घूमते हैं, रेस्तरां में जाते हैं, पिक्चर देखते हैं…’’

‘‘हम क्या मर गए थे जो तू ने भी हमें नहीं बताया?’’

‘‘भाई की प्राइवेट लाइफ मैं आप दोनों के साथ क्यों डिस्कस करूं,’’ तुला तुनक कर बोली, ‘‘भाई खुद ही बताए तो ठीक है वरना मैं क्यों…’’

प्राइवेट लाइफ. यह छोटेछोटे बच्चे कब इतने बड़े हो गए कि इन की जिंदगी अपनी निजी जिंदगी बन गई, जिस में मातापिता का हस्तक्षेप भी गवारा नहीं है. सहसा उन के दिमाग में कुछ कौंधा. बेटी से वह बोलीं, ‘‘तुला, अब तू भी बता दे कि कहीं तेरा तो किसी से कोई चक्कर वगैरह नहीं है?’’

‘‘मां, अतुल हिंदू है…और हमारी तरह ब्राह्मण भी,’’ वह ऐसे बोली जैसे समान जाति का होना कुछ कम हतप्रभ होने वाली बात हो.

सुनीता ने खामोश पति की तरफ देखा. क्या कहें वह अपने जवान बच्चों के बारे में.

‘‘यह अतुल…क्या तेरे साथ पढ़ रहा है?’’ पंकज ने बात का सूत्र पकड़ा.

‘‘1 साल मुझ से सीनियर है,’’ तुला शर्माते हुए बोली, फिर झट से उठी, अपना पर्स टटोला व एक फोटो निकाल कर उन की तरफ बढ़ा दिया. सुनीता व पंकज शर्मा दोनों काफी देर तक फोटो को निहारते रहे. लड़का रंगरूप में उन की लड़की से बीस ही था, उन्नीस नहीं.

‘‘पर बेटा, यह तुम पढ़ाई के वक्त लड़कों के चक्कर में…’’ सुनीता बेटी पर झुंझलाईं.

‘‘पढ़ाई भी हो रही है. सेकंड ईयर के अपने बैच में मेरी पोजीशन ऐसे ही तो नहीं आई है.’’

सुनीता की मां बीच में बड़बड़ाईं, ‘‘अब ज्यादा लागलपेट व नखरे मत करो. खुद तो दोनों विदेश में रहते हो और यहां बच्चों को अकेला छोड़ा हुआ है. बच्चे करेंगे ही अपनी मनमानी.’’

‘‘मां, अगर हम यहां दिल्ली में रहते भी तो क्या बच्चे हमारे साथ रहते? एक बंगलौर में रहता है और दूसरा हैदराबाद में. यहां कितने मांबाप के जवान बच्चे उन के साथ रहते हैं?’’

मनु जब सेंनली को छोड़ कर आया तो सुनीता उस से तरहतरह के प्रश्न पूछ कर सेंनली से उस की घनिष्ठता का जायजा लेने लगीं.

‘‘वह बंगलौर में तेरे घर से कितनी दूरी पर रहती है? उस का आफिस तेरे आफिस से कितनी दूर है? कितना तुम परस्पर मिलते हो? कहां मिलते हो? कैसे मिलते हो? एक छत के नीचे कभी अकेले में…’’

‘‘ओहो मम्मी… इस तरीके से मत कुरेदो. अपने बेटे को कुछ सांस तो लेने दो,’’ तुला चिल्लाई.

मां, पति व बेटी ने मिल कर सुनीता को समझाया कि सेंनली चाहे किसी भी प्रदेश की हो और किसी भी धर्म की हो, मनु की पसंद है. उन के बीच की घनिष्ठता पता नहीं किस हद तक है. उन की भलाई इसी में है कि चुपचाप उन के रिश्ते को स्वीकार कर लें और डेनमार्क जाने से पहले कुछ टीका वगैरह कर के अपनी तरफ से उसे होने वाली बहू का दरजा दे दें. बुझे मन से सुनीता मान गईं. विकल्प अधिक नहीं था.

सेंनली को फिर आमंत्रित किया गया. इस बार वह तनछुई साड़ी में     आई थी और माथे पर बिंदी भी लगाए हुए थी.

असमी ब्यूटी सुंदर लग रही थी. उस का चीनी जैसा रंगरूप सुनीता को रहरह कर अखर रहा था.

पंकज ने अंगरेजी में गंभीरता- पूर्वक सेंनली से बातें कीं. उस के राज्य के बारे में पूछा. उस के परिवार के बारे में पूछा. उस ने बताया कि उस का परिवार मूलत: असम में ब्रह्मपुत्र नदी के तटों से घिरा तटवर्ती शहर माजूली का है. वहां उन का पुश्तैनी घर अब भी है और उस के दादादादी वहीं रहते हैं. पर उस के मातापिता नौकरी के सिलसिले में गुवाहाटी बस गए थे. 2 साल हुए पिता एक हादसे में गुजर गए. मां एक आफिस में क्लर्क हैं. 2 छोटी बहनें व 1 छोटा भाई अभी पढ़ ही रहे हैं. छोटा भाई मात्र 12 साल का है.

हालांकि सेंनली ने खुल कर कुछ कहा नहीं पर सुनीता व पंकज समझ गए कि सेंनली पर अपने परिवार की थोड़ी जिम्मेदारी है.

पंकज ने सुनीता को इशारा किया तो वह उठी और भीतर के कमरे में आ कर अलमारी से सोने का सैट निकाला जो वह कोपनहेगन से साथ ले कर आई थीं, इस इरादे से कि अगर सब ठीकठाक रहा तो होने वाली बहू को पहना देंगी. पर बहू की शक्ल देख कर उन का मन इस तरह खट्टा हो रखा था कि पूरे सैट के बजाय सिर्फ एक अंगूठी ही उसे पहनाने के लिए निकाली, जैसे एक औपचारिकता अदा करनी हो.

सेंनली को टीका लगाया और अंगूठी उसे पहना दी. सेंनली भी अपनी कुछ तैयारी के साथ आई थी. शायद मनु ने उसे फोन पर पहले ही बता दिया हो. उस ने अपने बैग से असमी सिल्क की हलके हरे रंग की सुंदर सी साड़ी निकाली, साथ में असम चाय के कुछ पैकेट और सुनीता को आदरपूर्वक थमा दिए. पंकज शर्मा ने फिर कुछ तसवीरें खींचीं. कुछ पोज बने. सेंनली को घेर कर सभी की वीडियो फिल्म बनी और सेंनली चली गई.

मगर उन सभी से विदा लेते वक्त सेंनली मुसकराते हुए बोली, ‘‘भाषा कोई भी हो, भाव समझ में आने चाहिए. पर मैं बंगलौर जाते ही कोई हिंदी भाषी स्कूल ज्वाइन करूंगी और हिंदी सीखूंगी. देखना…आप से अगली मुलाकात होने पर मैं फर्राटे से हिंदी में बात करूंगी.’’

सुनीता व पंकज 1 महीने के लिए भारत आए थे. भारत आने के एक नहीं कई मकसद हुआ करते थे, सो सेंनली से ध्यान हटा कर वे अपने रिश्तेदारों से मिले, जरूरी खरीदारी की, अपने शहर के डाक्टरों से अपने शरीर के कुछ परीक्षण करवाए, नए चश्मे बनवाए, बीकानेर वाले के यहां जा कर जायकेदार भारतीय स्नैक्स खाए.

10 दिन मातापिता के साथ रह कर तुला हैदराबाद चली गई थी. बेटीदामाद के जाने के दिन करीब आने पर मां भी अपने बेटे के पास लौट गईं. मनु आखिरी दिन तक उन के साथ बना रहा. उन्हें दिल्ली शहर में इधर से उधर घुमाता रहा.

1 माह का समय पलक झपकते ही बीत गया और फिर एक शाम सुनीता व पंकज कोपनहेगन जा रहे प्लेन पर बैठे हुए थे. मनु उन्हें एअरपोर्ट तक छोड़ने आया था. अगले रोज वह भी बंगलौर वापस लौट रहा था. दोनों में से किसी ने उस से नहीं पूछा कि उस का शादी को ले कर क्या विचार है.

हवाईजहाज ने जब उड़ान भरी और हिंदुस्तान की धरती उस ने छोड़ी तो सुनीता लंबी सांस भरते हुए पति से बोलीं, ‘‘दोनों बच्चों ने अपने साथी खुद ही तलाश कर लिए. हमारी तो उन्हें जरूरत ही नहीं रही.’’

‘‘हां.’’

‘‘बेटे की शादी का क्या हुआ?’’

‘‘बहू को अंगूठी पहना आए हैं.’’

‘‘अरे, बधाई हो. आप इतनी अच्छी खबर इतने दुखी मन से क्यों सुना रही हो?’’

‘‘वह लड़की असम की ईसाई है. चाइनीज जैसी दिखती है.’’

‘‘कोई बात नहीं,’’ शीतल ने कहा, ‘‘दिल मिलने चाहिए. अच्छा, आप का खाना वगैरह…’’

‘‘खाना हम प्लेन में खा चुके हैं.’’

‘‘अच्छा, आप कल दोपहर लंच पर हमारे घर आइए. संडे है, आराम से बैठेंगे, बातें करेंगे.’’

दूसरे दिन भारत से लाए बीकानेर वाले की मिठाई का डब्बा और सेंनली की फोटो व वीडियो फिल्म ले कर वे दोपहर में उन के घर पहुंच गए. शीतल व उस के पति ने बड़ी दिलचस्पी से उन की होने वाली बहू की तसवीरों को निहारा. उन के बेटे की पसंद की दाद दी, ‘‘इस तरह की शादियां हमारे देश में होनी चाहिए. अब नई पीढ़ी के लोग ही ऐसी अंतरजातीय शादियां रचा कर हिंदुस्तान से जातिधर्म के भेदभाव को दूर कर सकेंगे. सदियों से पृथक हुई जातियां एकदूसरे से ऐसे ही जुड़ेंगी, परस्पर एकीकरण करेंगी.’’

35 साल की शीतल मेहरा ने खुद वेनू श्रीनिवासन से प्रेम विवाह किया था. वह पंजाबी थीं और वेनू दक्षिण भारतीय. 5 साल पहले वे शादी कर के मुंबई से कोपनहेगन आए थे. वेनू एक प्रतिष्ठित शिपिंग कंपनी में साफ्टवेयर प्रोफेशनल था. शीतल भी कोपनहेगन बिजनेस स्कूल से 2 साल का कोर्स कर के संयुक्त राष्ट्र की एक शाखा में नौकरी करने लगी थी. उन की 2 साल की प्यारी सी बच्ची भी थी. सुनीता शीतल के लिए बड़ी बहन जैसी और उस की बच्ची के लिए मौसी जैसी थीं.

एक दिन जब सुनीता, शीतल के साथ बैठी थीं, मन के ऊहापोह उस के सामने जाहिर करते हुए बोलीं, ‘‘शीतल, तुम मुझ से काफी छोटी हो. आजकल के जवान बच्चों के नए तौरतरीके मुझ से बेहतर समझती हो. तुला ने भी अपने लिए एक लड़का पसंद कर लिया है और मनु तो उस लड़की से पता नहीं कब से जुड़ा है…कहीं उन के बीच यौन घनिष्ठता…’’

‘‘आप को लगता नहीं कि भारतीय पुराने रीतिरिवाजों को अब थोड़ा बदलना चाहिए. आजकल आप की तरह 17-18 साल में तो लोगों की शादी नहीं होती. समाज में शादी की उम्र बढ़ रही है और लड़केलड़कियां प्यूबर्टी जल्दी हासिल कर रहे हैं. फिर टीवी, फिल्में व इंटरनेट का खुलाव…ऐसे में मातापिता अपने बच्चों से यह उम्मीद लगाएं कि उन के बच्चे 30-35 साल तक बिना सेक्स के रहें… मैं तो समझती हूं कि मातापिता स्वयं ही अपने बच्चों को उचित यौन शिक्षा दे कर उन्हें समझा दें ताकि उन के मन में बेवजह कोई गलत धारणा न पनपे, वे गलत राहों में न पड़ें.’’

‘‘शीतल…तुम्हारा भी वेनू से प्रेम काफी वर्षों तक चला था…उस दौरान कभी तुम दोनों के बीच…’’

एक पल के लिए शीतल ने सुनीता को निहारा. उन के प्रश्न को तौला. फिर बोली, ‘‘वैसे तो यह मेरा निजी मामला है पर आप की मनोस्थिति को समझते हुए बता देती हूं कि हां, हमारे बीच शादी से पहले कई बार सेक्स हुआ था. हमारे घर वाले हमारी शादी के पक्ष में नहीं थे क्योंकि हम अलगअलग जातियों के थे. शुरू के 2 साल तक तो हम ने अपने पर संयम रखा, फिर एक बार हम अपने किसी फें्रड के घर अकेले में मिले और वहां… फिर न तो कोई झिझक रही और न संयम ही…’’

सुनीता सोचने लगी कि शीतल व वेनू एक आदर्श व समर्पित पतिपत्नी हैं. वे डेनमार्क में बसे एक ऐसे भारतीय युगल हैं जिस पर हर किसी भारतीय को गर्व है.

‘‘सुनीताजी, आप का बेटा मनु एक परिपक्व व पढ़ालिखा लड़का है. आप बेवजह की शंकाएं पाल कर टेंशन मत लीजिए.’’

अगर ऐसे मित्र मिल जाएं जो मन का बोझ हलका कर दें तो चाहिए ही क्या…सुनीता ने अपना मोबाइल उठाया. सीधे भारत बेटे को फोन मिलाया. पहले उस से कुछ इधरउधर की बातें कीं, फिर उस से चुहल करते हुए बोलीं, ‘‘तू अपनी सेंनली से मिल कर अपनी शादी की कोई तारीख तय कर के हमें बता दे. हम पहुंच जाएंगे तेरी शादी में भारत…’’

पुलिस का नम्र व्यवहार

आज तो हद ही हो गई. दुर्गा प्रसाद की आज हिम्मत इतनी बढ़ गई कि उस ने मुझे जोर से एक मुक्का मारा और सामने के 2 दांत हिला दिए. यह रोज का किस्सा होने लगा था. नल में रोज पानी नहीं आता था और जब नगर निगम का टैंकर आता था, तब से महल्ले वाले तो पानी के लिए लाइन में लग जाते थे, पर ये दुर्गा प्रसाद लोगों से लड़ कर लाइन के आगे पहुंच जाता था. सिर्फ मुझ से ही नहीं, औरों से भी लड़ाई करता था. लोग डरते सिर्फ इसलिए थे कि वह कलैक्टर औफिस में काम करता था. वक्तबेवक्त हो सकता है कि काम पड़ जाए.

पर, मैं क्यों डरूं? मैं तो खुद इज्जतदार आदमी था और एक स्कूल में हैडमास्टर था. मेरे दांत टूटने पर मेरे बड़े लड़के ने कहा, ‘‘पापा, आज तो हद ही हो गई. आज जरूर इस की शिकायत थाने में करनी चाहिए, वरना इस की हिम्मत रोज बढ़ती जाएगी.’’ मैं ने भी आज फैसला कर लिया कि मैं अभी थाने में इस के विरुद्ध एफआईआर लिखवाता हूं.

थाने में जाते समय मेरे साथ 2-3 महल्ले वाले भी तैयार हो गए. पर सब ने यही कहा कि अभी सिर्फ 7 बजे हैं, थाने में अभी कुछ भी व्यवस्थित नहीं होगा. पर मुझे तो उस की ऐसीतैसी करने का भूत सवार था. सोच लिया था कि आज इधर या उधर.

थाने में जब मैं पहुंचा तो लोगों की सोच के विपरीत आज थाने में सब लोग ज्यादा ही मुस्तैद लग रहे थे. मेरे पूछने पर कि ‘शिकायत कहां लिखवाएं,’ मुझे हवलदार भीम सिंह के पास भेज दिया गया. वह भी मुस्तैदी से अपना रजिस्टर खोल कर कुछ काम में व्यस्त दिखाई दे रहा था. हम को लगा, हो सकता है कि जरूर ऊपर वालों की सख्ती से यह मुस्तैदी दिखाई दे रही है. मैं जैसे ही उस के पास पहुंचा, वह बोला, ‘‘हां, बोलिए, मैं आप की क्या सेवा कर सकता हूं?’’

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मैं ने कहा, ‘‘मैं गिरधारी लाल हूं…’’ बस, मेरा इतना बोलना था कि वह अपनी सीट से उठ गया और बोला, ‘‘सर, हम आप का ही इंतजार कर रहे थे.’’

मैं आश्चर्यचकित रह गया कि इस को कैसे मालूम हुआ कि मैं यहां दुर्गा प्रसाद के खिलाफ रिपोर्ट लिखवाने आ रहा हूं. मैं ने कहा, ‘‘अरे, आप को कैसे मालूम हुआ कि हम यहां आ रहे हैं?’’

वह बोला, ‘‘सर, हम को सब मालूम है. हमारा तो काम ही यही है, जनता की सेवा करना. फिर हमें कैसे नहीं मालूम होगा जो आप के साथ हुआ है.’’ वह आगे बोला, ‘‘सर, आप कहें तो उसे अंदर करवा दूं, 8-10 साल के लिए. या बोलें तो हवालात में दोचार दिन रख कर हाथपांव तुड़वा कर छोड़ दें.’’

मैं ने कहा, ‘‘अरे, नहींनहीं, इतनी कठोर सजा की जरूरत नहीं है. मैं तो चाहता हूं कि उसे कुछ सबक मिल जाए और वह दादागीरी करना छोड़ दे.’’

‘‘अरे सर, यदि आप आदेश करें तो हम लोग उस की ऐसी धुलाई करेंगे कि उस के असली दादा भी किसी और नाम से पुकारे जाने लगेंगे. पूरे खानदान में कोई दादा नहीं रहेगा, दादागीरी करने का तो फिर सवाल ही नहीं उठता.’’

हवलदार भीम सिंह की इस तरह की बातों से मैं बहुत प्रभावित हुआ. अकसर लोगों ने जिस तरह मुझे पुलिस थानों में अपने साथ हुए बुरे अनुभव बताए थे, उस के विपरीत मैं ने पाया कि यहां तो ऐसे सज्जन पुलिस वाले भी होते हैं. वे शहर में कुछ भी गड़बड़ बरदाश्त नहीं करते हैं और आम आदमियों से इस तरह इज्जत से पेश आते हैं.

भीम सिंह ने मुझ से फिर कहा, ‘‘सर, आप के आगे के 2 दांत ढीले दिखाई दे रहे हैं, यदि आप अपनी मैडिकल जांच करवाने के लिए तैयार हो जाएं, तो फिर हत्या की कोशिश के अपराध में यह दुर्गा प्रसाद या कोई और भी हो, 15 साल के लिए जेल के अंदर हो जाएगा. अरे, हमारे थानेदार साहब, जो रास्ते में हैं और थाने में आते ही होंगे, सर, वे तो ऐसे हैं कि बदमाश उन के नाम से ही कांपते हैं.’’

उस ने आगे कहा, ‘‘एक मुजरिम ने उन के दोस्त के होटल में खाना खाया और बिल नहीं चुकाया. बस, हमारे साहब ने पकड़ कर उसे अंदर कर दिया. आज 10 साल हो गए, जेल में है और आज तक कोर्ट में पहली पेशी भी नहीं हुई है. सर, आप तो आदेश करें, हम उस आदमी को शहर में ही नहीं रहने देंगे.’’

मैं बोला, ‘‘नहींनहीं, इतना सब करने की जरूरत नहीं है. मैं तो सिर्फ चाहता हूं कि थोड़ीबहुत डांटडपट हो जाए. हमें भी तो महल्ले में रहना है.’’

वह बोला, ‘‘सर, यह तो आप का बड़प्पन है जो इतना सब हो जाने के बाद भी उस की तरफ से बोल रहे हैं.’’

भीम सिंह ने एक सिपाही को बुलाया और उसे आदेश दिया, ‘‘सर और इन के साथ आए लोेगों के लिए कड़क चाय, पकौड़े और जलेबी ले कर आओ.’’

मैं बोला, ‘‘अरे, इस की क्या जरूरत है. हम तो घर से नाश्ता कर के निकले हैं.’’

मुझे उस के व्यवहार से आश्चर्य हो रहा था. बारबर सर बोल रहा था, शायद मेरे स्कूल में कभी विद्यार्थी रहा होगा. दिमाग में यह भी विचार आ रहा था कि कहीं यह थाना, आदर्श थाने के लिए कोई प्रतियोगिता में तो शामिल नहीं हो रहा है, या यहां के स्टाफ को आम आदमी से नम्रता से व्यवहार करने के लिए कोई ट्रेनिंग तो नहीं दी जा रही है. हो सकता है सीसीटीवी से लगातार इन पर नजर रखी जा रही हो. या यह हो सकता है कि इस थाने के थानेदार कोई बहुत ही नर्म दिल इंसान हों और उन्होंने सब को आदेश दिया हो कि सभी शिकायत करने वालों से नम्रता से पेश आया करो.

मैं अपनी सोच में डूबा हुआ था कि अचानक वह फिर बोला, ‘‘सर, हम आप को ऐसे नहीं जाने देंगे, कुछ तो लेना ही पड़ेगा. अरे, इस समय हम लोग भी तो कुछ जलपान करते हैं.’’

उस की बातें सुन कर मैं भावुक हो गया. मेरे दिमाग में पुलिस वालों के लिए जो छवि थी, वह धीरेधीरे गायब होने लगी. इतना नम्र व्यवहार तो मैं अपने स्कूल के होनहार बच्चों के मातापिता के साथ भी नहीं करता हूं, जब वे मेरे बुलाने पर स्कूल आते हैं.

थोड़ी देर बाद हवलदार भीम सिंह फिर बोला, ‘‘सर, आगे हमारा भी कुछ खयाल रखिएगा, गरीब आदमी हूं. 4 बच्चे हैं, खर्चा पूरा नहीं पड़ता और तरक्की रुकी हुई है.’’

मैं ने कहा, ‘‘हम जरूर आप के और आप के थाने के बारे में अच्छी रिपोर्ट देंगे. आप निश्ंिचत रहें.’’

मैं समझ रहा था कि जरूर कोई नया सिस्टम चालू हुआ होगा पुलिस विभाग में जहां वह आम पब्लिक से भी पुलिस वालों के अच्छे व्यवहार के बारे में राय लेता होगा और उसी के आधार पर उन्हें तरक्की दी जाए या न दी जाए, निर्भर रहता होगा.

मैं पुलिस वालों के बारे में यह सब सोच ही रहा था कि थाने में कुछ हलचल हुई. देखा, थानेदार साहब थाने के अंदर आ रहे थे. भीम सिंह ने एकदम उठ कर उन्हें जोरदार सैल्यूट किया.

वे भीम सिंह के पास आ कर बोले, ‘‘अरे, भीम सिंह, वह गृहमंत्रीजी के यहां से फोन आया था कि उन के साले कोई गिरधारी लाल…’’

थानेदार साहब का वाक्य पूरा होने के पहले ही भीम सिंह बोला, ‘‘हां साहब, वे आ गए हैं, मेरे सामने बैठे हैं और बड़ी इज्जत से उन से पेश आ रहा हूं. आधे घंटे में मुंह से एक भी गाली नहीं निकली. इन को और इन के साथ आए सभी लोगों को मैं ने अपने पैसों से नाश्ता भी करा दिया है. सरजी ने तो मेरे बारे में ऊपर अच्छी रिपोर्ट देने की बात भी कही है. सर, इन की और आप की कृपा हुई तो इस साल तरक्की हो जाएगी.’’

सुन कर थानेदार साहब जोर से चिल्लाए, ‘‘अरे चुप, साला पूरी बात सुनता नहीं है और इस के पहले बड़बड़ किए जा रहा है. गृह मंत्री जी के पीए ने फोन किया था कि अब मंत्री जी के साले नहीं आएंगे, झगड़े के बाद दूसरी पार्टी से समझौता हो गया है.’’

यह सुन कर भीम सिंह अचानक अपने अच्छे व्यवहार से पलट गया, उस के हावभाव ही बदल गए.

वह बोला, ‘‘सर, तो फिर ये कौन हैं आधे घंटे से मेरे ऊपर दबाव डाल रहे हैं कि सामने वाले को हत्या की कोशिश की धारा लगाओ, या उस के हाथपांव तोड़ दो.’’

मैं बोला, ‘‘मैं ने ऐसा कहां कहा था?’’

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इस बार थानेदार साहब का नंबर था, मेरी बात सुन कर गुस्से से गुर्राए, ‘‘अच्छा बेटा, चारसौबीसी. मंत्री का साला बन कर फायदा उठाना चाहता है. साले को अंदर करो, 2 दिन थाने में रहेगा, ठीक हो जाएगा, और लगाओ 420 की धारा. साले के ऊपर दंगा शुरू करने का भी चार्ज लगाओ.’’ फिर मेरी तरफ मुड़ कर बोले, ‘‘साले, तुम इम्पोस्टर, तुम्हारे जैसों को तो हम ठीक करना जानते हैं.’’

मैं डर से थरथर कांप रहा था, क्योंकि मुझे भीम सिंह थोड़ी देर पहले ही बता चुका था कि इन्होंने एक को चारसौबीसी के चक्कर में अंदर किया था तो 10 साल तक तो पहली पेशी भी नहीं हुई थी.

मैं बोला, ‘‘सर, मैं ने कब कहा कि मैं गिरधारी लाल, मंत्री जी का साला हूं. वह तो सामने वाले ने मेरे 2 दांत तोड़ दिए थे, उस की शिकायत लिखवाने आया हूं.’’

मेरी बात सुन कर थानेदार बोले, ‘‘अच्छा, सिर्फ 2 ही दांत टूटे हैं. चलो, बाकी बचे हुए अब हम तोड़ देते हैं. मंत्रीजी के साले बन कर हम पुलिस वालों को बेवकूफ बनाने आए थे. और फिर हमारे सीधेसाधे हवलदार को मंत्री जी की धौंस दे कर एक बेकुसूर इंसान को सजा दिलवाना चाहते हो?’’

इस बार भीम सिंह की बारी थी, बोला, ‘‘सर, और तो और, मुझ से चाय, जलेबी भी मंगवाई, अपने दोस्तों को भी खिलवाई. सर, आप तो जानते हैं कि मैं एक गरीब आदमी और ईमानदार पुलिस वाला हूं. सर, 51 रुपयों का मुझ गरीब पर चूना लगा दिया.’’

सुन कर थानेदार गुस्से से लाल हो रहे थे. वे बोले, ‘‘बहुत ही घटिया किस्म का इंसान लगता है. करो साले को अंदर. 2 दिनों में ठीक हो जाएगा.’’

मैं गिड़गिड़ाने लगा, ‘‘अरे सर, कुछ तो खयाल करो, मैं तो फरियादी हूं, मैं ने कभी नहीं कहा कि मैं मंत्री जी का साला हूं. मैं तो एक छोटे से स्कूल में हैडमास्टर हूं.’’

थानेदार बोले, ‘‘पर यह क्या कह रहा है हमारा हवलदार भीम सिंह. तुम ने तो एक सरकारी आदमी को दबाया, धमकाया और रिश्वत में चाय, नाश्ता मंगवाया. अभी तक तो हम पुलिस वाले दूसरों से खायाकमाया करते थे. यह उलटी गंगा कब से बहने लगी?’’

फिर भीम सिंह की तरफ देख कर बोले, ‘‘साले से सालभर के नाश्ते के पैसे ले लो, कितना होता है 51 रुपए के हिसाब से सालभर का?’’

थोड़ा हिसाब लगा कर वह बोला, ‘‘सर, सर करीब 18 हजार रुपए होते हैं.’’

मेरी तरफ देख कर बोले, ‘‘निकालो 18 हजार रुपए और निकल लो थाने से, फिर कभी नहीं आना किसी के साले बन कर.’’

मैं बोला, ‘‘सर, गलती हो गई, माफ कर दो.’’

वे बोले, ‘‘जुर्माना भर दो, हम माफ कर देंगे.’’

लड़के को फोन किया, उस से कहा, ‘‘एटीएम से पैसे निकालो और थाने आ जाओ.’’

मेरे पास और कोई चारा नहीं था पुलिस के इस नम्र व्यवहार से बचने का.       द्य

हमारी बेडि़यां

मेरे काका ससुर के निधन के समय उन की छोटी बहू गर्भवती थी. उसे 8 माह का गर्भ था. रिवाज के अनुसार, उसे अपने पिता जैसे ससुर की देह के आसपास रहने से भी मना कर दिया गया. वह सारा दिन अपने कमरे में अकेली बैठ कर रोती रही. अर्थी ले जाए जाने के बाद उसे अन्य महिलाओं के साथ कुएं से पानी खींच कर उसी ठंडे पानी से नहाना पड़ा.

गीले कपड़ों और लंबे गीले बालों के कारण वह बुरी तरह कांपने लगी. उस से कोई यह तक कहने वाला नहीं था कि तुम गर्भवती हो, भूखी होगी. सो, तुम जाओ और आराम करो.

हमारा हिंदू सनातन धर्म इतने अधिक आडंबर, पाखंड और आधारहीन परंपराओं से भरा पड़ा है कि चाहते हुए भी हम इन से छुटकारा नहीं पा रहे हैं. जो कृत्य किसी भी तर्क पर खरे नहीं उतरते, उन से भी चिपके हुए हैं. 12 महीने, 32 त्योहार और 2 करोड़ देवीदेवताओं का जाल हमें जकड़े हुए है. एक मेरी ससुराल है जहां हर महीने किसी देवता का पूजापाठ करना होता है जिन के बारे में विवाह होने तक तो सुना नहीं था.

अब सासुमां की आज्ञा का पालन तो करना ही होगा. इन पूजापाठों की धारणा इन की सास ने दी थी. विचित्र बात यह है कि मैं ने इन तथाकथित देवताओं के कभी नाम ही नहीं सुने थे. पर डर इतना कि कुछ गलत हो जाए तो कष्ट सहना पड़ेगा. इन सब बातों से ऐसे बंधे हुए हैं कि छूट ही नहीं सकते. तुर्रा यह कि मिट्टी या नई ईंट के नए चूल्हे बना कर, लकड़ी जला कर पूजा के लिए पकवान बनाए जाते हैं.

पकवान जो सासुमां की सास को पसंद थे, मसलन बेसन की कढ़ी, उड़द के दहीबड़े, कचौडि़यां, पिसे चावल के लड्डू, गुड़ के गुलगुले आदि. जब तक सारे पकवान बन न जाएं, पूजा पूरी न हो जाए, घर का कोई सदस्य चाय भी नहीं पी सकता.

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मेरी दृष्टि में आपस में परस्पर प्रेम रखना, एकदूसरे की मदद करना ही मानव धर्म होना चाहिए. फूलमाला, पानपत्ता चढ़ाना, घंटी बजाना, किताबें, चालीसा पढ़ना आदि अपने को तसल्ली देने वाली या दिखावटी बातें हैं. हालांकि, यह पूरे हिंदू धर्म में फैला हुआ है.

कोई क्रांतिकारी कदम ही इन सब बातों को बदल सकता है. इतनी गहराई से हमारे दिमाग में सबकुछ घुसा हुआ है कि मुझे नहीं लगता, निकट भविष्य में कोई परिवर्तन होगा.

दुनिया का सबसे लंबे नाखूनों वाला व्यक्ति

आज आपको एक ऐसे शख्स के बारे में बताने जा रहे है, जिसका नाखून दुनिया का सबसे लंबा नाखून माना जाता है. जी हां, ये शख्स पूणे  का रहने वाला है. आपको बता दें, इसका नाम गिनीज रिकौर्ड बुक में विश्व के सबसे लंबे नाखून वाले व्यक्ति के तौर पर दर्ज है.

एक खबर के अनुसार भारत के  पुणे में रहने वाले 82 साल श्रीधर चिल्लाल अपने लंबे नाखून की वजह से हमेशा चर्चा में रहे हैं. उनको एक हाथ  में सबसे लंबे नाखूनों वाले व्यक्ति के रूप में दुनिया भर में पहचान मिल चुकी है.

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श्रीधर के उल्टे हाथ के नाखूनों की औसत लंबाई करीब 900 सेंटीमीटर है. इनमें से सबसे लंबा नाखून अंगूठे का है जिसकी लंबाई 197.8 सेंटीमीटर, सबसे छोटी ऊंगली का नाखून 179.1 सेंमी, रिंग फिंगर का नाखून 181.6 सेंमी, बीच की ऊंगली का नाखून 186.6 और इंडेक्स फिंगर का नाखून 164.5 सेंमी का है. 2015 में श्रीधर का नाम लंबे नाखूनों के लिए गिनीज वर्ल्ड रिकौर्ड बुक दर्ज किया गया था.

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