नौर्वे के ओस्लो में आयोजित 17वें बौलीवुड फैस्टिवल में बोमन ईरानी को भारतीय सिनेमा में उत्कृष्ट योगदान के लिए सम्मानित किया गया. हालिया फिल्मों ‘मेड इन चाइना’ और ‘झलकी’ में भी उन के किरदार को सराहा गया.

बौलीवुड अभिनेता बोमन ईरानी हमेशा अपने अद्भुत प्रदर्शन और प्रतिष्ठित किरदारों के लिए पहचाने जाते हैं. मगर बहुत कम लोगों को पता होगा कि बोमन ईरानी ने अपने कैरियर की शुरुआत बतौर वेटर और फिर बतौर फोटोग्राफर की थी. जबकि वे कालेज के दिनों में थिएटर किया करते थे. फोटोग्राफी करतेकरते उन्होंने कुछ विज्ञापन फिल्में की थीं. विज्ञापन फिल्मों के ही चलते उन्हें फिल्म ‘डरना मना है’ में एक होटल मालिक का किरदार निभाने का अवसर मिल गया.

इस फिल्म के एक दृश्य को एडीटिंग रूम में देख कर बोमन को 35 वर्ष की उम्र में फिल्मकार विधु विनोद चोपड़ा ने बुला कर उन के सामने फिल्म ‘मुन्नाभाई एमबीबीएस’ में अभिनय करने का प्रस्ताव रखा था. तब से बोमन निरंतर अपनी बेहतरीन अभिनय प्रतिभा से लोगों को अपना मुरीद बनाते आए हैं.

बोमन की हाल की फिल्मों पर नजर डालें तो ऐसा लगता है जैसे वे केवल चुनिंदा फिल्में ही कर रहे हैं. अब पहले की तरह उन की फिल्में धड़ाधड़ परदे पर नहीं आ रहीं. वजह पूछने पर वे कहते हैं, ‘‘ऐसा कुछ नहीं है. मैं लगातार 15 वर्षों तक फिल्मों में अभिनय करता रहा. समय कैसे गुजर गया एहसास ही नहीं हुआ. लेकिन जब मेरे पोते का जन्म हुआ तो मु झे एहसास हुआ कि काम के चक्कर में मैं तो अपने परिवार व घर से ही अलगथलग हो गया हूं.

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‘‘मुझे पता ही नहीं चल रहा था कि मेरे परिवार व मेरे घर के अंदर क्या हो रहा है. मुझे लगा कि मैं तो बहुतकुछ खो रहा हूं. पोते के आने के साथ ही उस के साथ समय बिताने का कारण बता कर मैं ने फिल्में स्वीकार करनी कम कर दीं. दूसरा, मेरे बचपन का सपना रहा है खुद फिल्म बनाना. तो मैं ने उस पर काम शुरू किया. मैं ने खुद फिल्म की पटकथा लिखी जिस में मु झे काफी समय लगा. अब 2020 में इस पटकथा पर फिल्म का निर्माण व निर्देशन करना है. मैं ने अपनी प्रोडक्शन कंपनी ‘ईरानी मूवीटोन’ स्थापित कर ली है.’’

बोमन फिल्मों में आने से पहले फोटोग्राफर के तौर पर तमाम लोगों की तसवीरें खींच चुके थे. जिन लोगों के बोमन ने पोर्टफोलियो शूट किए थे उन में से कुछ शायद आज कलाकार बन गए होंगे? कभी उन से दोबारा मुलाकात हुई, कैसा लगा, पूछने पर वे कहते हैं, ‘‘बहुत सारे लोग मिले. बहुत सारे लोगों के मैं ने फोटोग्राफ्स खींचे हैं. बहुत सारे मिलते रहते हैं कि आप ने मेरा सैशन किया था, उस समय पर मैं ‘मिस वर्ल्ड’ व ‘मिस यूनीवर्स’ के फोटोग्राफ्स किया करता था. जब मैं फोटोग्राफर था तब मैं ने शबाना आजमी के फोटोग्राफ्स लिए थे. नसीरुद्दीन साहब के भी लिए थे. बहुत सारे कलाकारों, क्रिकेटर्स के फोटो खींचे थे. मुझे वे दिन बहुत याद आते आते हैं.’’

जब बोमन से यह सवाल किया कि आप की फोटोग्राफी का अनुभव कहीं न कहीं अभिनय में आप की मदद करता है या नहीं तो उन्होंने कहा, ‘‘जी हां, 2-4 चीजें हैं. एक तो तकनीक बहुत काम आती है. लाइटिंग, लैंस की कंपोजिंग सम झ में आती है. यदि कैमरामैन से पूछ लूं कि कौन से लैंस पर है तो उस से सम झ में आ जाता है कि उस की मैग्नीफिकेशन के हिसाब से कहां मेरी परफौर्मैंस कैसी होनी चाहिए.’’

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कभी ऐसा भी हुआ कि इस मसले को ले कर आप की किसी निर्देशक या कैमरामैन से बहस हुई हो और फिर भी वे आप की बात मानने को तैयार न हुए हों? इस पर बोमन बताते हैं, ‘‘जी नहीं. मैं कभी सलाह नहीं देता, बहस नहीं करता. यह मेरा काम नहीं है. मेरा काम अभिनय करना है, मैं उतना ही करता हूं. कभी भी अपने डिपार्टमैंट से बाहर सैट पर बात नहीं करता हूं. कभी कोई दखलंदाजी नहीं. वह उन का काम है, वह प्रोफैशनल हैं. मु झ से ज्यादा जानते हैं.’’

‘‘पारसी थिएटर ने लोगों को बहुतकुछ सिखाया है. इस के बावजूद पारसी थिएटर से निकले हुए लोग बौलीवुड में कम से कम वह मुकाम नहीं पा पाए जो पाना चाहिए था? इस प्रश्न पर थोड़ा विचारते हुए वे कहते हैं, ‘‘पहली चीज तो यह कि पारसी थिएटर में सिर्फ पारसी लोग नहीं रहे, लेकिन वहां से ही शुरुआत हुई है. मेरा मानना है कि बदलाव होना ही होना है. मैं आप को एक बात बताता हूं. मैंने अपनी प्रोडक्शन कंपनी का नाम ‘ईरानी मूवीटोन’ रखा.

‘‘जब सिनेमा की शुरुआत हुई थी उस जमाने में फिल्मों में पारसी बहुत थे. वे अपनी कंपनी के नाम के साथ ‘मूवीटोन’ जोड़ते थे. मसलन, ‘वाडिया मूवीटोन’, ‘इंपीरियल मूवीटोन’. मेरा मानना है कि रुको मत, आगे बढ़ते रहो. हमें भी समय के साथ बदलना चाहिए.’’

अपने ‘ईरानी मूवीटोन’ नामक प्रोडक्शन हाउस की पहली फिल्म, जिस की कहानी खुद बोमन ने लिखी है, के विषय में बोमन बताते हैं, ‘‘यह बायोपिक किस्म की फिल्म नहीं है. मतलब इस में रीयल जीवन की कथा नहीं है. लेकिन मैं ने अपनी जिंदगी में पिता और पुत्र के रिश्ते के कई मसले देखे हैं. बहुत सारे केस ऐसे हैं कि बाप व बेटे में प्यार बहुत होता है लेकिन उन के बीच बातें कम होती हैं. तो मैं इसी तरह के विषय पर फिल्म बना रहा हूं.’’

बोमन के बेटे कायोज ईरानी भी अभिनेता हैं. साथ ही वे निर्देशन के क्षेत्र में भी काम कर रहे हैं. अपने बेटे के साथ काम करने के विषय में बोमन का कहना है कि उन का बेटा उन्हें मौका देगा तो वे उस के साथ काम जरूर करेंगे. वे कहते हैं, ‘‘मैं मानता हूं कि मेरा बेटा अच्छा काम कर रहा है. वह करण जौहर की फिल्म ‘तख्त’ में एसोसिएट डायरैक्टर है. वह मेहनत कर रहा है. हम लोग जब शाम को घर पर मिलते हैं तो दिनभर की बातें करते हैं.’’

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निजी जिंदगी में भी बोमन मोटिवेशन, प्रेरणादयक भाषण देते रहते हैं. इस से जुड़े अपने किस्से बताते हुए वे कहते हैं, ‘‘एक बार मैं मंच संचालन कर रहा था. कंपनी के सीईओ ने मु झ से कहा कि सर,  आप मंच संचालन कर रहे हैं, आइए,मैं आप से कुछ सवाल करता हूं. उन्होंने मु झ से ‘आप इतने साल कहां थे’ जैसे कुछ सवाल पूछे. मैं खड़े रह कर उन की बातें सुन रहा था. फिर मैं ने उन्हें बताया कि पहले मैं वेटर था. फिर मैं दुकानदार था. फिर फोटोग्राफर था. फिर मैं ने थिएटर शुरू किया. इस तरह बातचीत चलती रही. फिर उन्होंने कहा कि आप की कहानी तो काफी दिलचस्प व प्रेरणादायक है. उन्होंने मु झे सलाह दी कि मु झे अपनी इस कहानी का एक घंटे का कार्यक्रम बना कर पेश करना चाहिए. उन्होंने कहा कि पहले कार्यक्रम के लिए मेरी कंपनी के लिए 4 जगह बुक कर लीजिए. तो मैं ने यह शुरू किया. हर कार्यक्रम में मैं बातें करता था, कहानी सुनाता था.

‘‘अब एक पैकेज बन गया है. अब मैं  कौर्पोरेट्स में मोटिवेशनल स्पीकिंग करता हूं. अच्छा लगता है. मैं खुद भी अपनी जिंदगी, अपनी यात्रा को याद कर के सीखता हूं. हम कहां से आए हैं, यह भूलना नहीं चाहिए. अपनी जड़ों को कभी नहीं भूलना चाहिए. इंसान को अपने दोनों पैर जमीन पर ही रखने चाहिए. यह कार्यक्रम मु झे याद दिलाता रहता है कि मैं कौन हूं और मैं कहां से आया हूं.’’

बोमन का मानना है कि अपनी आसपास की चीजों से, किरदारों से हम बहुतकुछ सीखते हैं. वे कहते हैं, ‘‘मैं तो हर चीज से सीख लेता हूं. जब मैं कहीं जाता हूं और एयरपोर्ट पर कोई पिक करने आता है, तो उस से भी बातें करने लगता हूं. मेरी यह आदत है. कई बार लोगों के जो जवाब मिलते हैं उस से मैं इंस्पायर होता हूं. दूसरों में रुचि रख कर हम काफीकुछ सीखते हैं.’’

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