अमेरिका की एजेंसी क्लाइमेट सेंट्रल की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि समुद्र का बढ़ता जलस्तर वर्ष 2050 तक पूर्व में अनुमानित संख्या से तीन गुना अधिक आबादी को प्रभावित कर सकता है. इसकी वजह से भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई पूरी तरह जलसमाधि ले सकती है. न्यू जर्सी स्थित क्लाइमेट सेंट्रल नाम की इस विज्ञान संस्था का कहना है कि समुद्र के बढ़ते जल स्तर, जंगलों की अंधाधुंध कटाई, कार्बन डाई औक्साइड के तीव्र उत्सर्जन और जलवायु परिवर्तन की वजह से देश की आर्थिक राजधानी मुंबई पर भारी खतरा मंडरा रहा है और आने वाले तीस-चालीस सालों में शहर के अधिकांश हिस्सों के समुद्र में समा जाने के खतरे से इन्कार नहीं किया जा सकता है. नए शोध के अनुसार, वर्तमान में लगभग 150 मिलियन लोग ऐसी भूमि पर रह रहे हैं जो मध्य शताब्दी तक हाई टाइड की जद में होगा. नये अनुमान के मुताबिक अगर कार्बन डाई औक्साइड के उत्सर्जन में कटौती नहीं की गयी तो भारत में 2050 तक कोलकाता, मुंबई, नवी मुंबई जैसे शहर जलमग्न हो सकते हैं. यह परेशानी इसलिए भी उत्पन्न हो रही है क्योंकि विकास परियोजनाओं की प्लानिंग के समय क्लाइमेट चेंज को ध्यान में नहीं रखा जाता है. मुंबई में कोस्टल रोड, शिवाजी स्मारक जैसे प्राजेक्ट पर बड़ा खतरा मंडरा है, यहां तक कि वहां अंडरग्राउंड मेट्रो भी सुरक्षित नहीं है. मुंबई के निचले किनारे को सबसे पहले और सबसे ज्यादा खतरा है. शहर का ज्यादातर दक्षिणी हिस्सा 2050 तक साल में कम से कम एक बार प्रोजेक्टेड हाई टाइड लाइन से नीचे जा सकता है. प्रोजेक्टेड हाई टाइड लाइन तटीय भूमि पर वह निशान होता है जहां सबसे उच्च ज्वार साल में एक बार पहुंचता है. गौरतलब है कि क्लाइमेट चेंज की वजह से 20वीं शताब्दी में ही समुद्र का जलस्तर 11 से 16 सेमी तक बढ़ गया है. अगर कार्बन उत्सर्जन में तत्काल कटौती नहीं की गयी तो इस सदी के अंत तक यह जलस्तर 0.5 मीटर तक और बढ़ सकता है.

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