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Salman Khan Birthday: कभी सब्जियां बेचता था सलमान का ये फैन, अब बना सिंगर

यूं तो सलमान खान के कई फैन हैं, लेकिन उनका एक फैन ऐसा है जिसने सलमान के बर्थडे के मौके पर कुछ स्पेशल करके अपने फेवरेट हीरो को जन्मदिन की बधाई दी है. हम बात कर रहे हैं अरुण कुमार निकम की जो सलमान खान के बहुत बड़े फैन हैं.

कभी सब्जियां बेचते थे अरुण…

सूरत की सड़कों पर सब्जियां बेचने से लेकर गायक बनने तक उनकी जर्नी सबके लिए मिसाल है. बॉलीवुड के सुपरस्टार सलमान की अदाकारी ही हैं जो उनके सपने को आगे बढ़ाने में सबसे बड़ा जरिया बनी. हाल ही में अरुण कुमार ने अपना दूसरा म्यूजिकल वेंचर ‘कैसे मिलू मैं’ लॉन्च किया हैं, जो उन्होंने अपने पसंदीदा स्टार के जन्मदिन के एक दिन पहले उनको डेडीकेट किया है.

अरुण कुमार निकम का जन्म जलगांव में  एक मध्यम वर्गीय महाराष्ट्रीयन परिवार में हुआ. एक गायक-लेखक बनने के लिए उन्हें काफी संघर्ष करना पडा.

सलमान की वजह से हुए थे 12वीं में फेल…

जब सलमान खान पर आरोप लगाया गया था और लोगों ने दावा किया था कि वह एक अपराधी है तब अरुण बुरी तरह परेशान हो गए थे. उन्होंने बताया, “तब मैं 12 वीं की परीक्षा मे फेल हो गया था क्योंकि मैं पढ़ाई में  बिल्कुल भी ध्यान केंद्रित नहीं कर सका. लोग भाईजान के बारे में गलत गलत बातें कह रहे थे.” अरुण निकम के परिवार के सदस्य उनसे बिल्कुल खुश नहीं थे, क्योंकि उन्होंने उनकी शिक्षा पर जो भी पैसा बचाया था, वह सब बेकार हो रहा था. जब सब चीजें उनके लिए काम करना बंद हुई तो वह सूरत में सेटल होने और नए सिरे से काम शुरू करने के लिए मजबूर हो गये.

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जब हुई सलीम खान से मुलाकात…

“जब मैं पहली बार सूरत गया, तब मुझे कुछ समझ नही आ रहा था की मुझे क्या करना चाहिए ? फिर किसी तरह मैंने सब्जियां बेचना शुरू कर दिया. “2001 से यह संघर्ष भरी कहानी शुरू हुई तब में महज 15 साल का था. उन्होंने सलमान के पिता सलीम खान के साथ एक भेट को याद करते हुए कहा, “मैं सलीम सर से मिला और उनको अपनी इच्छाएं भी बताई कि मैं एक कहानी लिख रहा हूं जिसमें भाई का मुख्य किरदार होगा.” जिससे भी उस दौरान अरुण कुमार मिले उन्होंने कहा “आप लेखक बनने के लिये अभी बहुत छोटे हो. मैं भारत के नामचीन प्रोडक्शन हाउस में भी गया, लेकिन उन्होंने कहा यह मेरे लिए बहुत जल्दी होगा.” 15 साल के होने नाते तब कुछ नहीं हुआ ऐसा उनका मानना है. हालांकि सलमान से मिलने के अपने सपने को नहीं छोड़ते हुए, उन्होंने सप्ताह के दिनों में सूरत में सब्जियां बेचते और हर सप्ताह के अंत में सारी कमाई अपनी किस्मत आजमाई खर्च करते रहे.

14 साल के स्ट्रगल के बाद जब हुई सलमान से मुलाकात…

14 साल तक संघर्ष करते हुए अरुण कभी यह नहीं जानते थे कि वह सलमान से मिलेंगे या नहीं, पर उनका मानना था कि उनकी किस्मत चमक रही थी. उसी दौरान उन्हें संगीत निर्देशक निखिल कामथ के साथ काम करने का एक मौका मिला और अरुण निकम का पहला संगीत प्रोजेक्ट शुरू हुआ. इस पहले प्रोजेक्ट का शीर्षक था ‘वाह तेरी बेवफाई’. “इससे मुझे वह आत्मविश्वास हासिल हुआ जो मैं हमेशा से करना चाहता था जो है सलमान सर के लिए एक कहानी. फिर प्रेम रतन धन पायो ’के सेट पर, मेरा सपना पूरा हुआ. मैं अंत में अपनी आइडल से मिला.”

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जब भिखारियों के साथ गुजारी रात…

उन्होंने यह भी कहा कि उन कठिन समय के दौरान जब उन्होंने सलमान से मिलने की कोशिश की तो उनके पास पैसे समाप्त हो गए और ऐसी स्थिति हो गई कि वह अक्सर सड़क पर भिखारियों के साथ भोजन करते थे. उस दौरान के कुछ पलो को याद करते हुए उन्होंने कहा, “मैंने खुद से पूछा था कि मैं कैसे निकलूंगा. तब भीतर से एक आवाज उठी, ‘कैसे मिलूं मैं ? ’कुछ इस तरह इस गाने का जन्म हुआ.”

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यह मेरा आखिरी मौका है…

अरुण कुमार निकम सलमान से दोबारा मिलना चाहते हैं. सिर्फ इसलिए नहीं कि वह भाई के बहुत बड़े फैन हैं बल्कि इसलिए क्योंकि वह एक अच्छे लेखक है और उनके लिए एक विशेष कहानी भी लिखी है. “मुझे सलमान भाई से सिर्फ एक दिन चाहिए. क्योंकि यह मेरे पास आखिरी मौका है. अगर इसके बाद कुछ नहीं हुआ, तो जाहिर है मुझे फिर से सब्जियां बेचने के लिए वापस जाना होगा. मेरे परिवार ने बहुत समय पहले ही मुझे छोड़ दिया था, हालांकि उस एक एल्बम के लॉन्च के बाद से, हम फिर से बात करने लगे. क्योंकि वे जानते हैं कि मैं अब में स्थिर हूं, ”यह जानते हुए कि वह अपने जीवन में कुछ कर रहा हूं. कठोर परिश्रम ने मेरे लिए यह संभव कर दिया है.”, जुनूनी प्रशंसक अरुण कुमार निकम ने कहा.

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लॉन्च में शामिल हुए ये सितारे…

मुंबई के आलीशान सहारा स्टार के सिनेथेक्यु में आयोजित कार्यक्रम में मुकेश ऋषि, सुदेश भोसले, पवन शंकर, संतोष शुक्ला, अभिनव गौतम और अर्शी खान के साथ अरुण कुमार निकम के अन्य टीम मेंबर जिन्होंने हर घड़ी उनका साथ दिया जिनमे अभिनेता विनोद सोनी, निर्माता दीपिका सोनी, ख्याति भट्ट, जय तिलेकर और जेठमल सोनी, वीडियो निर्देशक सागर सहाय, संगीत निर्देशक गौरव कुमार, दोस्त और समर्थक अशोक हदिया, मनोज राठौड़ और अजय सोनी, सुनील मेवावाला, मोहन दास, लेखक-निर्देशक अनुशा श्रीनिवासन अय्यर, सुरेश मिश्रा और अन्य भी इस कार्यक्रम में उपस्थित थे. अनूप जलोटा द्वारा ‘कैसे मिलू मैं ..?’

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बिग बौस 13 : चुपके-चुपके रोमांस कर रहे हैं ये कंटेस्टेंट

कलर्स पर प्रसारित होने वाला रियलिटी शो  ‘बिग बौस 13’ में कंटेस्टेंट के बीच टकराव के साथ प्यार  भी देखने को मिल रहा है. इस शो में रिश्ते बनते भी है बिगड़ते भी है. जी हां, हम बात कर रहे हैं, कंटेस्टेंट मधुरिमा तुली और विशाल आदित्य सिंह की जोड़ी के बारे में. उन्हें ‘कबीर सिंह’ की जोड़ी के नाम से जाना जाता है. ये दोनों एक दूसरे से जितना प्यार करते हैं लड़ाई उससे कहीं ज्यादा करते हैं.

आपको बता दें, इन दोनों को बिग बौस के घर में कई बार एक दूसरे से लड़ते हुए देखा गया है.  लेकिन कुछ एपिसोड्स से मधुरिमा तुली और विशाल आदित्य सिंह के बीच का रिश्ता काफी तेजी से बदल रहा है.तभी तो घर में दोनों अब एक दूसरे का सपोर्ट करते नजर आए.

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दरअसल काम न करने की वजह से पूरा घर मधुरिमा को निशाना बनाता रहा  तो विशाल आदित्य सिंह ने सबको करारा जवाब दिया था.  तो उधर वहीं मधुरिमा भी विशाल के खिलाफ एक शब्द सुनना पसंद नहीं करती है.

हाल ही में दोनों की किसिंग वीडियो काफी वायरल हुई थीं.  पिछले एपिसोड में सुबह बिग बौस ने गाना बजा कर सारे घरवालों को उठाया. इस दौरान मधुरिमा तुली और विशाल आदित्य सिंह एक दूसरे को कंबल में छिप कर किस करते नजर आए.

वैसे आजकल मधुरिमा तुली और विशाल आदित्य सिंह दोनों एक ही बेड शेयर करते हैं. बात करते हुए विशाल आदित्य सिंह ने मधुरिमा तुली से पूछा कि, जब हम रिलेशनशिप में थे तब तुम कभी अपना प्यार क्यों जाहिर नहीं किया. जैसे हमेशा मैं अपने प्यार का इजहार करता हूं. इस शो के अपकमिंग एपिसोड में इस जोड़ी की कैमेस्ट्री और भी ज्यादा दिलचस्प होना वाला है.

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‘‘हमारी फिल्म ‘गुड न्यूज’, ‘आई वी एफ’ तकनीक पर है’’ : राज मेहता

व्यवसायी परिवार में जन्में राज मेहता का फिल्मों के प्रति रूझान बचपन से ही होने लगा था.जब वह उच्च शिक्षा के लिए अमरीका के न्यूयार्क शहर पहुंचे, तो उन्होेने वहां के फिल्म स्कूल से फिल्म विधा की शिक्षा गृहण की और फिर अभिनेता व निर्माता निर्देशक त्रिलोक मलिक की मदद से मुंबई आकर प्रकाश झा से मिले.उसके बाद उन्होेंने कुछ फिल्मेंं बतौर सहायक निर्देशक, कुछ फिल्में बतौर एसोसिएट निर्देशक की.

प्रस्तुत है उनसे हुई बातचीत के अंश..

फिल्मों के प्रति रूझान कैसे और कब हुआ ?

मैं दिल्ली में ‘सिरीफोर्ट औडीटोरियम में फिल्मों के प्रीमियर्स व फेस्टिवल्स के वक्त जाा करता था. सिरीफोर्ट औडीटोरियम में ही फिल्म ‘‘सौदागर’’ के प्रीमियर के वक्त  दिलीप कुमार,राजकुमार साहब और मनीषा कोइराला वगैरह आए थे. मुझे याद है मैं अपने चाचा के साथ गया था. तो धीरे धीरे फिल्मों के प्रति रूचि बढ़ती रही. फिर जब मैं उच्च शिक्षा के लिए सात आठ साल अमरीका में रहा, तो वहां पर फिल्म पत्रिकाएं ही पढ़ा करता था. मैं पढ़ाई के बीच मे वहां रिलीज होने वाली हर हिंदी फिल्म देखता था. उन दिनों वहां पर हिंदी फिल्मों के दो थिएटर ही थे. तो बौलीवुड का शौक शुरू से ही रहा है. उच्च शिक्षा हासिल करने के बाद मैने न्यूयार्क फिल्म स्कूल से फिल्म विधा की भी शिक्षा हासिल की.उसके बाद मुंबई पहुंच गया.

आप मुंबई कब आए और मुंबई में यात्रा किस तरह से शुरु हुई ?

मैं मुंबई फिल्म निर्देशक बनने की इच्छा लेकर ही आया था. लेकिन मुंबई में मैं किसी को जानता नहीं था. लेकिन न्यूयॉर्क में अप्रवासी भारतीय फिल्मकार त्रिलोक मलिक से मेरे अच्छे संबंध थे.उन्होंने ही फिल्म निर्देशक प्रकाश झा से मेरे लिए बात की थी.मुंबई पहुॅचने के डेढ़ माह बाद ही मैंने प्रकाश झा के साथ फिल्म‘आरक्षण’में बतौर सहायक निर्देशका काम करने लगा था.वह एक अलग किस्म का फिल्म स्कूल था.क्योंकि मैंने प्रकाश झा के साथ काम करते हुए जो कुछ सीखा,वह किसी भी फिल्म स्कूल में कोई नहीं सिखा सकता.काम करने का तरीका और उसकी बारीकियां यह सब मैने ‘आरक्षण’के सेट पर काम करते हुए सीखा.मैं उस अनुभव का बहुत-बहुत शुक्रगुजार हूं कि मुझे प्रकाश सर के साथ काम करने का मौका मिला और बहुत कुछ सीखने को मिला.उसके बाद मंैंने ‘यशराज फिल्मस’में बतौर सहायक निर्देशक दो फिल्में की.फिर मैंने शशांक खेतान के साथ बतौर एसोसिएट निर्देशक फिल्म‘‘ हम्टी शर्मा की दुल्हनिया’’की.यह धर्मा प्रोडक्शन की फिल्म थी.उसके बाद ‘कपूर एंड संस’और ‘बद्रीनाथ की दुल्हनियां’की.इस बीच मैने ख्ुाद  दो तीन फिल्मों की पटकथाएं लिखीं.करण जोहर सर से भी अच्छे संबंध बन चुके थे.मैं करण सर का शुक्रगुजार हूं कि उन्होेने मुझे ‘गुड न्यूज’के निर्देशन की जिम्मेदारी दी.

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आप निर्देशक बनना चाहते थे,तो फिर लिखने का शौक कैसे हो गया ?

फिल्म स्कूल में पढ़ाई के दौरान ही मेरे अंदर फिल्म पटकथा को लेकर एक समझ विकसित हुई.वैसे तो हम स्कूल की पत्रिका के लिए भी कुछ न कुछ लिखता रहा हॅूं. मगर कहानी लिखना और उसको रोमांचक बनाना,मेरे ख्याल से बहुत ही मुश्किल काम है.फिल्में तो कागज पर ही पहले बनती हैं,उसके बाद सेट पर हम उसको थोड़ा बदलते हैं.यदि कागज पर फिल्म अच्छी नही बनी यानी कि यदि पटकथा अच्छी नही है,तो फिर अच्छी फिल्म बनना मुश्किल है.मुझे अभी भी लगता है कि मैं अच्छा लेखक नही हूं. मैंने कई लेखकों को देखा है, जो ऐसा कुछ लिखते हैंं कि मैं सोच नहीं सकता. मैंने खुज पटकथा लिखी हैं पर मैं दूसरों के लेखन को पढ़ता रहता हूं. मैंने अक्षय कुमार से भी काफी कुछ सीखा.

फिल्म‘‘गुड न्यूज’’के निर्देशन की जिम्मेदारी कैसे मिली ?

मैंने अपनी एक पटकथा करण जौहर सर को पढ़ने के लिए दी थी. उन्हें वह पसंद आयी और उन्होंने उस पर फिल्म बनाने की सोची. फिर मैं खुद भी कई कलाकारों से मिला.करण जौहर ने भी कुछ कलाकारों से बात की, पर बात नहीं बनी. इसी बीच ज्योति कपूर ने ‘गुड न्यूज’ की कहानी दी. हमने इस पर काम किया. करण जौहर को भी यह पसंद आयी और अब यह फिल्म बन गयी.

ज्योति कपूर की कहानी में आपको किस बात ने उत्साहित किया ?

मेरी सोच यह रही है कि कैरियर की पहली फिल्म बहुत ही महत्वपूर्ण होनी चाहिए. क्योंकि उसी के बलबूते पर आपका कैरियर आगे चलेगा या नहीं चलेगा, यह सब कुछ निर्भर करता है. मैं बतौर एसोसिएट काम कर ही रहा था. इसलिए कुछ भी नहीं बनाना था. ज्योति कपूर की कहानी की आइडिया मुझे बहुत अच्छी लगी. इसकी आइडिया, आईवीएफ तकनीक की जो है, उसने काफी इंस्पायर किया. इसके अलावा दो अलग स्वभाव के दंपति जब आईवीएफ तकनीक से माता पिता बनने के लिए अस्पताल पहुंचे और उनके स्पर्म के अदला बदली का कांड हो जाए तो उनकी जिंदगी में क्या होगा, इस बात ने मुझे इस पर काम करने के लिए उकसाया. जिसके चलते अब फिल्म दर्शकों के सामने आने जा रही है. मैं मूलतः पंजाबी हूं. मुझे इसमें ह्यूमर का स्कोप बहुत नजर आया. निजी जिंदगी में भी मुझे हंसी मजाक करने का शौक है. कहानी में स्पर्म की अदला बदली दुःखद तो है, पर ह्यूमर व हंसी का स्कोप भी बहुत है. इसमें सेंसलेस ह्यूमर नही है. ह्यूमर के साथ कहानी व शिक्षा भी है. मेरा मानना है कि फिल्म देखकर सिनेमा घर से दशक यदि किसी न किसी इमोशन के साथ बाहर निकलता है, तो ही सफलता है. सिर्फ दो घंटे हंसने वाली बात नहीं होनी चाहिए. जब दर्शक अपने साथ कोई इमोशन ले जाता है, तो वह ज्यादा अच्छा लगता है. उसे फिल्म याद रह जाती है. मुझे इसमें यह सब नजर आया.फिर मैने करण जोहर से इस पर चर्चा की. करण जोहर को भी कहानी पसंद आयी.उसके बाद ढाई माह तक मैने ज्योति व रिषभ शर्मा के साथ मिलकर इसकी पटकथा पर काम किया.

आईवीएफ तकनीक के असफल होने का सबसे बड़ा सदमा शारीरिक और मानसिक रूप से औरत को ही झेलना पड़ता है.क्या इस पर आपकी फिल्म कुछ कहती हैं?

नही..हमारी फिल्म का कौंसेप्ट पूरी तरह से ह्यूमरस है. इसलिए कहानी जिस तरह से आगे बढ़ती है, उसमें यह कहीं नही आता.क्योंकि हमारी फिल्म की कहानी जब दो दंपतियों के स्पर्म की अदला बदली हो जाती है, उसके बाद इन दोनो दंपतियों की यात्रा है.इसलिए नेच्युरल कहानी में आई वीएफ तकनीक के असफल होने का औस्पेक्ट नहीं आता है. पर मैं आपकी बात से सहमत हूं कि आई वीएफ तकनीक का प्रोसेस सौ प्रतिशत सफल नही होता है. असफल होने की संभावना होती है. मैं कुछ कपल्स को जानता हूं, जो कि इस तकनीक का आठ से दस बार उपयोग कर चुके हैं. पर नब्बे प्रतिशत सफल हैं. मुझे किसी ने बताया कि इस वक्त आठ मिलियन बच्चे ‘आई वीएफ’ तकनीक की मदद से जन्म ले चुके हैं.कहने का अर्थ यह कि जो कपल्स नेचुरल तरीके सेे माता पिता नही बन सकते, उनके लिए ‘आई वीएफ’ तकनीक मददगार है.

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सरोगेसी पर कानून बनने के बाद आपकी फिल्म‘‘गुड न्यूज’’आ रही है?

हमारी फिल्म सरोगेसी के बारे में कम, आईवीएफ के बारे में ज्यादा है. यह पूरी तरह से आईवीएफ पर ही है.ट्रेलर में भी आईवीएफ के बारे में ही बात की गई.आईवीएफ ऐसी तकनीक है, जिसके संबंध में कुछ लोग जानते है,पर हम इसे ज्यादा लोगो तक पहुंचाना चाहते हैं. मैने अपने शोध के दौरान पाया कि मुंबई व दिल्ली जैसे बड़े शहरों में लोग ‘आई वीएफ ’तकनीक के बारे में जानते हैं,मगर छोटे शहर व गांव के लोेग इससे अनभिज्ञ हैं.

फिल्म देखने के बाद दर्शक अपने साथ क्या लेकर जाएगा ?

मैं यह दावा नही करता कि यह संदेशप्रद फिल्म है. यह एक बहुत ही सिंपल प्यारी कहानी है. लोग इंज्वाय करेंगे. इसमें इमोशंस भी हैं. इसमें गर्भधारण के दौरान एक औरत किन चीजों से गुजरती है, वह सब दर्शक अपने साथ लेकर जाएगा. इसमें कोई बहुत तगड़ा संदेश नहीं है.पर उम्मीद है कि जब दर्शक सिनेमाघर से बाहर निकलेंगे,तो कुछ तो अपने साथ लेकर जाएंगे.

छोटी सरदारनी : क्या मेहर की वजह से हरलीन कर देगी घर का बटवारा ?

सीरियल छोटी सरदारनी में हरलीन का मेहर और सरब के लिए गुस्सा कम होने का नाम ही नही ले रहा है. वहीं परम के स्कूल से निकाले जाने के मामले से हरलीन का गुस्सा नफरत में बदल गया है. आइए आपको बताते हैं क्या होगा अब शो में आगे…

मेहर के लिए बढ़ती हरलीन की नफरत

क्रिसमस के मौके पर जहां मेहर, परम को खुश करती है तो वहीं यूवी और परम के स्कूल से निकाले जाने की प्रौब्लम को भी खत्म कर देती है. पर हरलीन को मेहर का परम के मामले में आना पसंद नही आता.

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सरब और हरलीन के बीच पड़ी दरार

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पिछले एपिसोड में आपने देखा कि सरब, परम के साथ मेहर के बच्चे का नाम भी प्रौपर्टी में जोड़ने के लिए कहता है, जिससे हरलीन गुस्से में आ जाती है. वहीं मेहर, सरब से कहती है कि उसे आने वाले बच्चे के नाम प्रौपर्टी करने की कोई जरूरत नही है, लेकिन सरब, मेहर की बात नही मानता.

क्या हरलीन का फैसला बन जाएगा मेहर के लिए मुसीबत

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अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि हरलीन, सरब से बटवारे के लिए कहेगी. वहीं तरकश, मेहर से कहेगा कि वो कैसे भी करके ये बटवारा रोक ले, लेकिन मेहर तरकश से कहेगी कि अब कुछ नही हो सकता, जिसे सुनकर हरलीन सहित सभी घरवाले चौंक जाएंगे.

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अब देखना ये है कि क्या घर के बटवारे के बीच क्या सरब और हरलीन का रिश्ता फिर सही हो पाएगा? अब आगेे क्या मोड़ लेेेेगी मेेेहर की जिंदगी जानने के लिए देखते रहिए ‘छोटी सरदारनी’, सोमवार से शनिवार, रात 7:30 बजे, सिर्फ कलर्स पर.

कैसे समझें अकेलापन को सच्चा दोस्त

आज की युवापीढ़ी सब से ज्यादा अकेलापन महसूस करती है. लेकिन स्मार्टफोन और तरहतरह के गैजेट्स के जमाने में युवा कैसे खुद को अकेला महसूस कर सकते हैं, यह सोच कर ही हमें हैरानी होती है. हमारी जानकारी में तो बुजुर्ग ज्यादा अकेलेपन के शिकार होते हैं. लेकिन, एक रिसर्च पर गौर करें तो आज युवा और किशोर सब से ज्यादा अकेलेपन के शिकार हैं.

विश्व स्वास्थ संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में 16 से 24 आयुवर्ग के करीब 40 फीसदी युवा अकेलेपन के कारण डिप्रैशन के शिकार हैं. एक शोध में पता चला है कि इंसान का अकेलापन और सामाजिक रूप से अलगथलग रहने की उस की प्रवृत्ति के कारण उस में दिल की बीमारी का खतरा 29 फीसदी और स्ट्रोक का खतरा 32 फीसदी बढ़ जाता है.

ब्रिटेन में तो इस समस्या से निबटने के लिए अकेलापन मंत्रालय का गठन किया गया है. ब्रिटिश रैड क्रौस की मानें तो ब्रिटेन की कुल आबादी करीब 65 मिलियन यानी 650 लाख है. इन में से करीब 9 मिलियन यानी 90 लाख से ज्यादा लोग अकसर या कभीकभी अकेलापन महसूस करते हैं, लेकिन क्या सच में अकेलापन बहुत खतरनाक है और लोगों को इस से बच कर रहना चाहिए?

कुछ लोगों का मानना है कि अकेलापन काफी भयावह होता है और उन्हें अकेलेपन से डर लगता है. लेकिन कुछ लोग इस की पैरवी करते हैं. कहते हैं कि अकेलापन उन की लाइफ का सब से अच्छा समय होता है, क्योंकि यही वह वक्त होता है जब वे अपने बारे में गहराई से कुछ सोच सकते हैं, अपने अनुसार जी सकते हैं और जो मन में आए कर सकते हैं.

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सुकून, अपनी मरजी, रोकटोक नहीं

इसी बात पर बैंक में जौब कर रही 27 साल की प्रकृति, जोकि अपने परिवार से दूर दूसरे शहर में रहती है, का कहना है कि वह अकेले रह कर बहुत खुश है. क्योंकि उसे कोई रोकनेटोकने वाला नहीं है. वह कहती है कि अपने सारे काम निबटा कर वह बैंक चली जाती है और जब वापस आती है तो घर में एक अजीब सा सुकून पाती है. फिर जैसे चाहे वैसे ड्रैसअप हो कर आराम से टीवी देखती है, अपनी मनपसंद किताबें पढ़ती है, जो मन हो बना कर खाती है या फिर बाहर से और्डर कर के मंगवा लेती है. वह किसी की परवा नहीं करती कि कौन उस के बारे में क्या सोचता है.

वह कहती है, ‘‘लगता है जिन के साथ पहले मेरे पंख बंधे हुए थे, अब खुल गए हैं और मैं आजाद आसमान में उड़ रही हूं.’’ उस के गिनेचुने ही दोस्त हैं जिन के साथ क्वालिटी टाइम बिताती है. जरूरी नहीं कि जब वह फ्री हो, उस के दोस्त भी फ्री हों, इसलिए खुद अकेली ही फिल्म देखने निकल पड़ती है. भीड़भाड़ और शोरशराबे से दूर उसे अकेले रहना ज्यादा अच्छा लगता है.

वहीं, 21 साल का प्रदीप, जो अपने परिवार से दूर दूसरे शहर में रह कर इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा है, पूछने पर कि परिवार से दूर अकेले रहते उसे कैसा लगता है, तो हंसमुख मिजाज का प्रदीप कहता है, ‘‘अकेले हैं तो क्या गम है, चाहें तो हमारे बस में क्या नहीं.’’ फिर कहता है कि उसे अकेले रहने में ज्यादा मजा आ रहा है, क्योंकि यहां वह अपनी मरजी से जो चाहे कर सकता है, जो मन हो खा सकता है और जब मन हो तब सो कर उठता है. सब से बड़ी बात कि यहां उसे अपनी मम्मी की डांट खाने को नहीं मिलती है और न ही कोई रोकनेटोकने वाला ही है. वहीं, उस के ही दोस्त निश्चय का कहना है, ‘‘हां, कभीकभी अकेलापन खलने लगता है. तब म्यूजिक सुनने लगता हूं. दोस्तों से, परिवार से बातें कर लेता हूं या बाहर घूमने निकल जाता हूं.’’

20 साल की उन्नति का कहना है कि उसे अकेले में बहुत अच्छा लगता है. वैसे तो वह अभी अपने परिवार के साथ रहती है, लेकिन अकेले में ज्यादा मजा है, क्योंकि आप बेरोकटोक अपनी मरजी से जी सकते हैं, अपने मन की कर सकते हैं.

सिर्फ यही लोग नहीं, और भी कई युवाओं ने अकेले रहने की वकालत की है. उन का मानना है कि अकेले में हम अपने बारे में सोच सकते हैं. कोई फैसला ले सकते हैं. अपनी बुराई और अच्छाई को भी परख कर उसे सुधार सकते हैं. सब से बड़ी बात यह है कि हर बात के लिए पेरैंट्स को जवाब नहीं देना पड़ता है. इसलिए अकेले रहने के बहुत से फायदे हैं.

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खुद पर ज्यादा फोकस

अमेरिकी लेखिका एनेली रुफुस ने तो बाकायदा ‘पार्टी औफ वन : द लोनर्स मैनिफैस्टो’ नाम से किताब लिख डाली है. वे कहती हैं कि अकेले रहने के बहुत से मजे हैं.

जैसे :

आप खुद पर फोकस कर पाते हैं.

अपनी क्रिएटिविटी को बढ़ा पाते हैं.

लोगों से मिल कर फुजूल बातें करने या झूठे हंसीमजाक में शामिल होने से बेहतर है अकेले वक्त बिताना.

वहीं, अमेरिका की सैंट जोंस यूनिवर्सिटी के ग्रेगरी फिस्ट का कहना है कि  खुद के साथ वक्त बिताने से आप की क्रिएटिविटी को काफी बूस्ट मिलता है. अकेले रहने से आप में आत्मविश्वास बढ़ता है. आजाद सोच पैदा होती है. नए खयालात का खुल कर आप स्वागत करते हैं. जब आप अकेले कुछ वक्त बिताते हैं तो आप का जेहन सुकून के पलों का बखूबी इस्तेमाल करता है. शोरशराबे से दूर तनहा बैठे हुए आप का जेहन सोचनेसमझने की ताकत को मजबूत करता है.

55 साल की भगवंती के पति का 11 साल पहले देहांत हो चुका है. उन के 2 बच्चे हैं. एक अमेरिका में सैटल्ड है और दूसरा अहमदाबाद में. वे अकेली रहती हैं. पूछने पर कि क्या आप को कभी अकेलापन नहीं सताता? खुश हैं आप अकेले? तो कहने लगीं, ‘‘खुशी तो अपने अंदर होती है. अगर आप खुश हैं, तो अकेले भी खुश रह सकते हैं और दुखी हैं, तो भीड़ में भी दुखी ही रहेंगे.’’ रोज वे व्यायाम करती हैं. सैर पर जाती हैं. जरूरतमंदों का खयाल रखती हैं. बैंक से ले कर वे अपने सारे काम खुद ही करती हैं. वे सिर्फ खुद का ही नहीं, बल्कि हमउम्र औरतों को भी, जो अपने जीवन में अकेली रह गई हैं, खुश रहना सिखाती हैं. जरूरत पड़ने पर वे उन्हें डाक्टर के पास भी दिखाने ले कर जाती हैं.

एक शोध के मुताबिक, लंबे समय तक अकेले रहने वाले लोग खुद में ऐसी क्षमता को खोज लेते हैं जो आम लोगों में शायद ही होती है.

अपने पर काबू पाएं

अकेलापन अभिशाप नहीं, बल्कि वरदान हो सकता है आप के लिए, अगर आप चाहें तो. सोचिए कि जिंदगी ने आप को एक मौका दिया है, सिर्फ अपने बारे में सोचने का. पढ़ाई, नौकरी या पारिवारिक जिम्मेदारियों के कारण जो सपने आप के अधूरे रह गए, उन्हें आप पूरा कर सकते हैं. लेकिन, अगर अकेलापन बहुत ज्यादा हावी होने लगे तो कुछ उपायों को अपना कर आप अपने पर काबू पा सकते हैं.

भावनाओं पर काबू रखें : अकेलेपन का सब से बड़ा कारण है मन पर काबू न होना. कई बार मन ऐसी दिशा में बहने लगता है जहां हम खुद को बेहद अकेला महसूस करने लगते हैं. इसलिए अपने मन पर काबू रखें और अपने विचारों को अच्छी बातों पर केंद्रित करें.

कहीं दूर निकल जाएं : जब भी आप बहुत ज्यादा अकेलापन महसूस करें, कहीं दूर घूमने निकल जाएं. इस से आप को अच्छा लगेगा.

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खुद से प्यार करें : अकेलेपन से दूर रहने का सब से अच्छा तरीका है खुद से प्यार करें. आप अपनेआप को सब से बेहतर तरीके से जानते हैं. इसलिए अपनी अच्छीबुरी आदतों पर गौर करें और जरूरत पड़ने पर उन में बदलाव लाने की कोशिश करें. आप की जिंदगी और वक्त, दोनों अनमोल हैं, इसलिए इन का पूरा ध्यान रखें. जिंदगी में खुश रहें, मजे करें. सब बढि़या है, ऐसा सोचें.

क्रिएटिव बनें : अकेलापन यानी आजादी का यह मतलब नहीं कि बस खातेपीते, सोते और टीवी देखते रहें. वक्त मिला है, तो अपने अंदर की कला को बाहर निकालें. हर इंसान में कुछ न कुछ खूबी होती ही है, उसे आप पहचानने की कोशिश करें. शांत बैठ कर सोचें कि आप में क्या विशेषता है.

अकेलेपन का दोस्त हंसी : हंसने से शरीर में एंडोर्फिन नामक हार्मोन निकलता है और इस हार्मोन से गुस्से को कम करने में मदद मिलती है. इसलिए जब कभी अकेलापन महसूस हो, तब मजेदार चुटकुले पढ़ कर खूब हंसें. अपने स्कूलकालेज के दोस्तों के संग जो आप ने चुहलबाजी की थी, उन पलोें को याद कर ठहाके लगा कर हंसिए.

म्यूजिक थेरैपी : जब भी अकेलापन गहराने लगे, अपना मनपसंद संगीत सुनिए. पसंदीदा संगीत सुनने से दिमाग में डोपामाइन हार्मोन हमें खुश करने के लिए उत्साहित भी करता है और प्रेरित भी. इसलिए, मधुर आवाज वाले संगीत को अकेलेपन का दोस्त बनाइए.

पालतू जानवर पालें : यह बात तो आप जानते ही हैं कि जानवर सब से वफादार साथी होता है. इसलिए अपने अकेलेपन को दूर करने के लिए कुत्ता या बिल्ली पाल लें.

जिज्ञासु न बनें : जरूरी नहीं कि आप के आसपास के लोग, उन की बातें, वहां का माहौल आप को खुशी ही दें. इसलिए उन के बारे में ज्यादा न सोचें. बस, खुश रहें.

अकेलापन दूर करने के लिए सोशल मीडिया का सहारा ठीक नहीं. एक रिसर्च बताती है कि सोशल मीडिया पर ज्यादा वक्त बिताने वाले लोग ज्यादा अकेलेपन के शिकार होते हैं. आज सोशल मीडिया के कारण ही लोग एकदूसरे से दूर होते चले जा रहे हैं. जरूरी है कि आप अपने मोबाइल, कंप्यूटर के बाहर की दुनिया से संपर्क साधें. लोगों से मिलें जुलें. परिवार, दोस्त और समाज के बीच ज्यादा वक्त बिताएं. कभी आप पर अकेलापन हावी नहीं होगा.

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हनी ट्रैप का रुख गांवों की ओर : भाग 2

तीनों सलाहमशविरा कर के रावतसर पुलिस स्टेशन पहुंच गए. थाने में मौजूद सीआई अरुण चौधरी को पीडि़त पक्ष ने अपनी व्यथा सुना दी. सीआई के आदेश पर पुलिस पार्टी ने सादे कपड़ों में होटल पर दबिश दे कर ब्लैकमेलर विपिन शर्मा, उस की पत्नी रितु शर्मा, गोरेधन मीणा, बाबूलाल और मूलचंद मीणा को हिरासत में ले लिया.

पुलिस ने उन के पास से नकदी, चैक, शपथपत्र वगैरह बरामद कर के उन से पूछताछ की. उन लोगों ने सागर शर्मा को ब्लैकमेल करने की बात स्वीकार कर ली. पुलिस ने पांचों आरोपियों से पूछताछ कर उन्हें न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में धान का कटोरा माने जाने वाली एक तहसील है टिब्बी. घाघर नदी का बहाव क्षेत्र रही यहां की भूमि श्रेष्ठतम उपजाऊ है. इसी तहसील का एक गांव है पीर कामडि़या. अख्तर उर्फ अकरम इसी गांव का बाशिंदा था. वह 16 सितंबर, 2019 को हनुमानगढ़ के जिला स्वास्थ्य केंद्र में दवा लेने आया हुआ था. मरीजों की लाइन में लगे अख्तर के आगे सोमप्रकाश खड़ा था.

दोनों में बातचीत शुरू हुई तो उन्होंने एकदूसरे को अपनेअपने बारे में बताया. सोमप्रकाश ने बताया कि उस का हनुमानगढ़ में जूतेचप्पलों का शोरूम है. तब अख्तर ने सोम से कहा, ‘‘भैया, मेरे एक जानकार के पास पीरकामडि़या गांव में एक काउंटर व एक अलमारी पड़ी है. दोनों ही बहुत बढि़या हालत में हैं. आप के फायदे का सौदा है. आधे दाम में आप को दिला दूंगा.’’

सोम का मन ललचा गया. फिर दोनों ने एकदूसरे को अपने मोबाइल नंबर दे दिए थे, ताकि बात हो सके.

अगले दिन सोमप्रकाश अपनी बाइक से पीरकामडि़या गांव पहुंच गया. फोन करने पर अख्तर आ गया. अख्तर सोम को रशीदा बीबी के घर ले गया. उस के कहने पर वह अलमारी व काउंटर देखने के लिए एक कमरे में घुस गया. तभी वहां मोमन खां व 2 महिलाएं, जो परदे के पीछे थीं, अचानक आ गईं. सभी ने सोम के साथ मारपीट कर उसे निर्वस्त्र कर दिया.

कमरे में मौजूद महिलाएं भी नंगधड़ंग हो गईं. अख्तर ने सोम व महिलाओं की उसी अवस्था में वीडियो बना ली. इस के बाद मोमन खां ने सोम को छुरा दिखाते हुए धमकाया कि अगर उस ने उन का कहा नहीं माना तो वह उसे हलाल कर देंगे. आरोपियों का मंतव्य भांपते ही सोम को जैसे सांप सूंघ गया. वह वैसा ही करता गया, जैसा उन्होंने कहा.

वीडियो बनाने के बाद मोमन खां ने उसे धमकाया, ‘‘देख सोम, तूने 2 महिलाओं का रेप किया है. अब 10 लाख रुपयों की व्यवस्था कर हमें दे दे, नहीं तो तेरे खिलाफ बलात्कार का मुकदमा दर्ज करवाएंगे.’’

अख्तर ने राजीनामे की बात कह कर सोम को मामूली सी राहत की किरण दिखाई.

‘‘अरे भैया, मैं ने किसी का रेप नहीं किया. क्यों झूठी तोहमत लगा रहे हो. आप दोनों भी उस समय कमरे में मौजूद थे.’’ सोम गिड़गिड़ाया.

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‘‘सोम, हम दोनों की मौजूदगी ही तुझे बलात्कारी साबित करेगी. हमारे बयान तेरे खिलाफ होंगे.’’ अख्तर ने उसे फिर डपट दिया.

‘‘भैया, 10 लाख रुपयों का इंतजाम तो मेरी सात पुश्तें भी नहीं कर पाएंगी. हां, 5-7 हजार रुपयों का इंतजाम मैं जरूर कर लूंगा.’’ जैसे सोम ने अपना दिल खोल कर रख दिया.

सभी ने मिल कर सोम को 30 हजार रुपए अदा करने का फरमान सुना दिया. उन्होंने सोम की बाइक भी अपने पास रख ली. फिर सोम को अपने पास से किराया दे कर अगले दिन 30 हजार रुपए लाने के लिए पाबंद कर भगा दिया.

निढाल हुआ सोम जैसेतैसे टिब्बी पुलिस थाने पहुंचा और सीआई मोहम्मद अनवर को आपबीती सुनाई. उस की व्यथा सुनने के बाद सीआई ने आरोपियों को गिरफ्तार करने की योजना बना ली. अगले दिन निर्धारित समय पर सोम पीरकामडि़या गांव पहुंच गया.  उस ने अपने आने की सूचना फोन से अख्तर को दे दी थी.

सभी आरोपी रशीदा बीबी के घर इकट्ठे हो गए थे. सोम रुपए ले कर घर में घुसा तो सादे कपड़ों में आए पुलिसकर्मियों ने पांचों को हिरासत में ले लिया.

थाने में पांचों आरोपियों अकरम उर्फ अख्तर, मोमन खां, अनारा बीबी, रशीदा बीबी और अनीश बीबी से पूछताछ के बाद उन्हें कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

हनीट्रैप की तीसरी घटना भी हनुमानगढ़ की ही है. इसी जिले की जिला जेल में तैनात जेल वार्डन निहाल सिंह 9 सितंबर, 2019 को अपनी ड्यूटी पूरी करने के बाद बैरक में आराम कर रहे थे. तभी उन के मोबाइल की घंटी बजी.

उन्होंने काल रिसीव की तो दूसरी ओर से आवाज आई, ‘‘निहाल साहब हैं क्या?’’

‘‘हां, मैं बोल रहा हूं.’’ निहाल सिंह बोले.

‘‘साहब, प्लीज एकांत में आइएगा, आप से खास बात करनी है.’’ दूसरी तरफ से आवाज आई.

निहाल सिंह ने बाहर आ कर कालबैक की तो वह बोला, ‘‘साहब, मैं यूनुस खान बोल रहा हूं. पहचान गए न, लखुवाली निवासी यूनुस उर्फ मिर्जा. आप के यहां कई महीने जेल में रहा था.’’

‘‘अरे याद आया, तू अनवर उर्फ लंबा के साथ जेल में रहा था.’’ निहाल सिंह को याद आ गया.

‘‘साहब, हमारा जेल आनेजाने का क्रम लंबे समय से चल रहा है. अभी पिछले दिनों जमानत पर बाहर आए हैं. आप का अच्छा व्यवहार हमें बहुत पसंद आया था. हम आप को पार्टी देना चाहते हैं. देखो साहब, मना मत करना.’’ युनूस ने कहा, ‘‘साहब, हम ने आज का ही प्रोग्राम बना लिया है. अनवर भी मेरे साथ है. साथसाथ बैठेंगे तो आनंद आएगा.’’

मनचाहा पांसा फेंक यूनुस और अनवर प्रफुल्लित थे. वहीं दूसरी ओर निहाल सिंह भी आनंदविभोर थे. आज उन के अच्छे व्यवहार के सच्चे पारखी मिल गए थे. यूनुस ने कहा कि वह अनवर के साथ बाइक ले कर किला के पास उन का इंतजार कर रहा है.

आधे घंटे में निहाल सिंह वहां पहुंच गए. दोनों निहाल सिंह को बाइक पर बिठा कर गाहड़ू गांव की एक ढाणी में ले गए. वहां मौजूद 2 लोग और एक महिला निहाल सिंह की आवभगत में लग गए.

उन लोगों ने जेल वार्डन को कोल्डड्रिंक पीने को दी. कोल्डड्रिंक पीते ही निहाल सिंह पर नशा छा गया. महिला ने निहाल सिंह को नंगा कर दिया और खुद भी नंगी हो गई. दूसरे लोगों ने निहाल सिंह और महिला का आपत्तिजनक वीडियो बना लिया.

इस के बाद निहाल के साथ मारपीट कर उन्हें डरायाधमकाया गया. दोनों आरोपी हनुमानगढ़ पुलिस थाने के हिस्ट्रीशीटर थे. यूनुस के खिलाफ 32 मामले दर्ज थे तो अनवर के खिलाफ भी दरजनों मुकदमे दर्ज थे.

निहाल सिंह का नशा उतरने के बाद यूनुस बोला, ‘‘देख निहाल, तूने एक महिला का रेप किया है. यह हम नहीं, मोबाइल में सेव वीडियो कह रहा है. अगर अपनी नौकरी व मिलने वाले फंड को बचाना चाहता है तो हमें 3 लाख रुपए दे दे, अन्यथा नौकरी तो जाएगी ही साथ में जेल में भी सड़ना पड़ेगा.’’

यह सुन कर निहाल को कंपकंपी आ गई, ‘‘देखो भैया, मेरे पास अब कुछ भी नहीं है. आप ने मेरे विश्वास की हत्या की है. मैं ने किसी का रेप नहीं किया.’’ निहाल सिंह हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ाया.

‘‘देखो साहब, विश्वास को मारो गोली. सीधेसपाट शब्दों में सुन लो, हमें 3 लाख रुपए चाहिए तो चाहिए. तुम कैंटीन वाले पप्पू को फोन कर के अपनी चैकबुक हनुमानगढ़ बसस्टैंड पर मंगवा लो. वहां से चैकबुक अनवर ले आएगा. बस इतनी मोहलत मिल सकती है तुम्हें.’’

बचने का कोई रास्ता न देख निहाल ने जेल की कैंटीन में काम करने वाले पप्पू को फोन कर चैकबुक मंगाई और अनवर को देने को कह दिया.

आधे घंटे में अनवर पप्पू से चैकबुक ले कर ढाणी में आ गया. निहाल ने 2 चैक में डेढ़डेढ़ लाख रुपए की धनराशि भर कर चैक यूनुस खां को दे दिए. आरोपियों ने उस की जेब में पड़ी नकदी भी छीन ली थी. बाद में यूनुस निहाल को हनुमानगढ़ छोड़ गया था.

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10 सितंबर, 2019 को जेल वार्डन निहाल सिंह ने थाना हनुमानगढ़ जा कर सीआई नंदराम भादू को अपना दुखड़ा सुनाया. निहाल सिंह ने रिपोर्ट दर्ज कर मामले की जांच एएसआई जसकरण सिंह को सौंप दी. दोनों हिस्ट्रीशीटर आरोपी अनवर व यूनुस खां फरार हो गए थे. पुलिस उन के पीछे लगी थी.

करीब 20 दिनों बाद जांच अधिकारी जसकरण सिंह ने मुखबिर की सूचना पर यूनुस खान को गिरफ्तार कर लिया. रिमांड की अवधि में यूनुस ने चैक अपने सहयोगियों के पास होना बताया. अदालत के आदेश पर यूनुस को न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया.

लगभग एक महीने में पुलिस के सामने हनीट्रैप के 3 मामले आए. संभव है, कुछ मामले पुलिस तक पहुंचे ही न हों. सभ्य समाज के लिए यह शुभ संकेत नहीं है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सेम सैक्स ग्रुपिज्म से निकलें लड़कियां

लड़के और लड़कियां 2 अलग जैंडर हैं जिन का व्यवहार, पर्सनैलिटी, पसंदनापसंद और सोचविचार सभी इसी जैंडर पर निर्भर करते हैं. निर्भर इसलिए करते हैं क्योंकि बचपन से ही उन के चुनाव इसी जैंडर से प्रभावित होते हैं. लड़की है तो पिंक, लड़का है तो ब्लू, लड़की है तो बार्बी डौल, लड़का है तो एयरोप्लेन, लड़की है तो घरघर, लड़का है तो चोरपुलिस. बस, इसी के चलते 2 अलग जैंडर हमेशा के लिए अलग हो कर रह जाते हैं.

लड़कियों की पहचान इसी कारण शीतल, सौम्य और लड़कों की उत्तेजक? व गुस्सैल की बनी हुई है. यह पहचान उम्रभर साथ रहती है. बच्चे बचपन से ही अपने लैंगिक दोस्त बनाते हैं, और जब यही बच्चे बड़े होतेहोते इन्हीं लैंगिक गु्रप्स में रहते हैं तो उन के विचार, हावभाव, सोच और नजरिया सिर्फ इस एक जैंडर के अनुसार होता है.

लड़कियों के ग्रुप का हाल

लड़कियों का यदि एक गु्रप है जो हमेशा ही साथ रहता है, उस गु्रप की लड़कियां लड़केलड़कियों के मिक्स गु्रप की लड़कियों से बेहद अलग होंगी. उन की बातें हमेशा इस रहस्य से भरी हुई होंगी कि लड़के आपस में क्या बातें करते होंगे, उस लड़की ने कब कौन सी ड्रैस पहनी थी, कौन से मेकअप प्रोडक्ट्स मार्केट में नए आए हैं आदि. जबकि दूसरी यानी मिक्स गु्रप में रहने वाली लड़कियों की बातें दोनों लिंगों के आधार पर होंगी, जिन के विचार और बातें मुक्त होंगी न कि जैंडर बेस्ड.

17 वर्षीया ख्याति दिल्ली के नामी कालेज में पढ़ती है. इंग्लिश औनर्स में उस का प्रथम वर्ष है. ख्याति के कालेज में वैसे तो लड़केलड़कियां दोनों साथ पढ़ते हैं लेकिन उस के गु्रप में केवल लड़कियां ही हैं जिस का एक कारण तो यह भी है कि उस की 54 बच्चों की क्लास में केवल 12 ही लड़के हैं. कालेज के पहले महीने में ही ख्याति और उस की 5 सहेलियों का एक गु्रप बन चुका था.

कालेज के बीते 7 महीनों में ही ख्याति को अब इस गर्ल्स गु्रप से चिढ़ महसूस होने लगी है. हो भी क्यों न, जो मौजमस्ती वह अपनी कालेज लाइफ में करना चाहती थी वह उसे मिल जो नहीं रही.

उस की सहेलियां हर वक्त या तो लड़कों से संबंधित बातें करने में व्यस्त रहती हैं या फिर फैशन से. कालेज आ कर क्लास लेती हैं और कुछ देर कैंटीन में खापी कर घर को निकल जाती हैं. कैंटीन में मयंक जोकि ख्याति का क्रश है अकसर बैठा रहता है. लेकिन ख्याति उस के आसपास उस के दोस्तों को देख कर कभी उस से ‘हाय’ कहने की हिम्मत ही नहीं कर पाती.

उस के मन की यह झिझक पहाड़ बनती जा रही थी जिसे काटने का रास्ता सिर्फ यह था कि वह इस कुएं का मेढक बनना छोड़ नए दोस्त बनाए और लड़कों से बात करना सीखे. नहीं तो होगा यही कि वह सब मजा यों ही हमेशा मिस करती रहेगी और पछताती रहेगी.

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मिक्स ग्रुप के फायदे हैं बहुत

जब गु्रप में विविधता होती है तो साथ ही गु्रप की गतिविधियों में भी विविधता देखने को मिलती है. मिक्स गु्रप में जहां लड़के व लड़कियां दोनों ही साथ होते हैं, उस में विचारों का प्रवाह उन्मुक्त व खुला होता है. साथ ही, इस से अनेक फायदे मिलते हैं जो सेमसैक्स गु्रप में नहीं होता.

गौसिप से बढ़ कर भी बहुत कुछ

लड़कियां जब एक गुट बना कर रहने लगती हैं तो बातें कम और चुगलियां ज्यादा करने लगती हैं. जबकि लड़कों को इस तरह की चुगलियों में खासा इंटरैस्ट नहीं होता. जब लड़केलड़कियां एक साथ एक गु्रप में होते हैं तो उन की बातें अलगअलग तरह की होती हैं. वे सोसाइटी, राजनीति, विज्ञान व अन्य विषयों पर बढ़चढ़़ कर हिस्सा लेते हैं.

रिलेशनशिप्स पर असर

हमेशा लड़कियों से घिरी रहने वाली लड़कियां लड़कों से बात करने में झिझकने लगती हैं. उन्हें लड़के दूसरा जैंडर कम, रहस्यमयी जैंडर ज्यादा लगने लगते हैं. वे किसी लड़के को पसंद भी करती हैं तो उन से अपने दिल की बात कहने से डरती हैं और कभीकभी तो कहती भी नहीं हैं. सैक्स उन के लिए टैबू बन कर रह जाता है. लड़कों के साथ हैंगआउट करने वाली लड़कियों के विचार इस मामले में खुले हुए होते हैं. उन्हें लड़कों से बात करने में किसी प्रकार की नर्वसनैस नहीं होती और वे अपनी बात सामने से कहने में घबरातीं नहीं. वे अपने मन के अनुसार जिसे चाहे उसे डेट करती हैं.

फनफैक्टर का होना

लड़कियों से घिरी लड़कियां भी मजा करती हैं परंतु जो फनफैक्टर लड़कों की मौजूदगी में होता है वह कहीं और नहीं. अब किसी ऐतिहासिक किले में घूमने ही चले जाइए. जहां एकतरफ लड़कियां सैल्फी लेने में बिजी होती हैं वहीं लड़के उछलकूद करते रहते हैं.

इतना ही नहीं, ऐसे भी काम हैं जो लड़कियां करने में झिझकती हैं पर लड़के बड़े आराम से कर लेते हैं, जैसे किले के चारों तरफ बने पार्क में रोमांस करते प्रेमियों को परेशान करने के लिए बारबार उसी ओर जाते रहना. इन सब हरकतों में मजा खूब आता है.

माइंडसैट जानना

दूर से अटकलें लगाते रहने से होता तो कुछ नहीं है. बस, ‘लड़के ऐसे हैं,’ ‘लड़के वैसे हैं,’ ‘उन की सोच ऐसी है,’ ‘वे लड़कियों को ऐसा समझते हैं,’ वाली बातें ही होती रहती हैं. असल में जो लड़कियां लड़कों को जानती हैं, वे वह हैं जो उन की दोस्त हैं, उन के साथ उठतीबैठती हैं और उन्हें समझती हैं. लड़के जब खुद के दोस्त हों तभी पता चलता है कि उन का माइंडसैट कैसा है.

सुरक्षा की भावना

हालांकि लड़कियां लड़कों से कम नहीं हैं और खुद का ध्यान रखना भी बहुत अच्छी तरह जानती हैं लेकिन सुरक्षा से तात्पर्य केवल शारीरिक सुरक्षा ही नहीं होता. लड़केलड़कियों के गु्रप में रहने वाली लड़कियां लड़कों की पहचान करना सीख जाती हैं.

इन लड़कियों पर कोई भी लड़का यों ही ट्राई मारने से पहले 10 बार सोचता है, क्योंकि उसे पता है कि इस लड़की के बाकी लड़के दोस्त इस लड़के को सबक सिखाने से पहले सोचेंगे नहीं. वहीं, केवल लड़कियों के गु्रप में रहने वाली लड़कियों से अकसर ही मनचले आशिक टकराते रहते हैं.

लड़कों को साथ देख कर कोई भी लड़का किसी भी तरह के कमैंट पास करने से कतराता है जबकि सिर्फ लड़कियां साथ हों तो उन्हें अकसर ही राह चलते अजीबोगरीब कमैंट्स सुनने को मिल जाते हैं.

लाइफ में स्पोर्ट्स की ऐंट्री

लड़कियों के गु्रप में सभी अकसर अपनी चालढाल पर खूब ध्यान देतीं हैं. खेलनाकूदना तो दूर, भागती हुई भी नहीं दिखतीं. मिक्स गु्रप का सब से बड़ा फायदा तो यह है कि स्पोर्ट्स से भागने वाली लड़कियों की लाइफ में खेलकूद की एक अलग ही ऐंट्री हो जाती है. लेकिन यह खेल केवल क्रिकेट, फुटबौल या कबड्डी नहीं है.

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असल में लड़के हमेशा अपनी फीमेल दोस्तों से लड़तेझगड़ते रहते हैं, कभी उन का कोई सामान ले कर भाग जाते हैं तो कभी उन्हें परेशान करते रहते हैं. लड़कियों को भी हमेशा ही या तो उन के पीछे या उन से भागते रहना पड़ता है. तो हुई न लाइफ में स्पोर्ट्स की ऐंट्री.

नए दृष्टिकोण की तरफ बढ़ना

जब 2 व्यक्तियों का दृष्टिकोण एकसा नहीं होता तो भला 2 अलग लिंगों का दृष्टिकोण एकसा कैसे होगा. इसलिए मिक्स गु्रप्स में लड़केलड़की दोनों को ही दूसरे लिंग के व्यक्ति का दृष्टिकोण जानने का मौका मिलता है जो सेमसैक्स गु्रप में उन्हें नहीं मिलता. लड़कियों का जीवन बहुत सी सामाजिक जंजीरों से घिरा हुआ होता है, उन्हें अनेक नियमकानूनों में बांधने की कोशिश की जाती है.

दूसरी ओर लड़कों का जीवन बहुत अलग होता है. उन की परेशानियां लड़कियों से बेहद अलग होती हैं. दोनों यदि साथ मिल कर एकदूसरे के दृष्टिकोण जानेंगे तो इस समाज में जो कुरीतियां हैं, जो विकृत सोच है उसे बदलने में वे सक्षम होंगे.

विपरीत अनुभव जानना

लड़कियों के अनुभव लड़कों से हर तरह से अलग होते हैं. लड़कियों के लिए जहां किसी के सामने हलका सा धक्का लग कर गिरना बेहद शर्म की बात हो जाती है, वहीं लड़कों को इन छोटीमोटी चीजों से फर्क नहीं पड़ता. वे अपने जीवन के ऐसे ही मजेदार और कुछ सीरियस अनुभव बता कर यह एहसास करा देंगे कि आप की यह परेशानी तो उन के साथ हुए वाकए से लाख गुना बेहतर है.

मिक्स ग्रुप में अनुभवों की चर्चा एक रोमांचकारी सफर पर जाने जैसा लगता है.

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झारखंड : भाजपा की हार

झारखंड विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की हार के अंदाजे पहले से ही लग रहे थे. देश में नए बनाए गए नागरिकता संशोधन कानून के विरोध के दौरान इस हार का परिणाम आया. ऐसा लगा है मानो देश की जनता ने पौराणिक परंपरा को थोपने वाली सरकार को फिलहाल सबक सिखाने का मन बना लिया है. हालांकि झारखंड के मतदान कई चरणों में हुए और नागरिकता संशोधन कानून लाए जाने से पहले ही मतदान हो रहा था पर आज दोनों को मिला कर ही देखा जाएगा.

झारखंड में हालांकि पहले की तरह भाजपा को खासे वोट मिले पर कांग्रेस और झारखंड मुक्ति मोरचा के बीच समझौता होने के कारण दोनों को 81 में 47 सीटें मिल गईं. भारतीय जनता पार्टी 25 पर सिमट गई. भाजपा के मुख्यमंत्री रघुबर दास भी अपनी सीट नहीं बचा पाए.

महाराष्ट्र में मिले धक्के के बाद झारखंड में हुई हार से भाजपा का एकछत्र राज करने का सपना टूट रहा है. इस के पीछे कारण वही है जो उस की जीत के पीछे था – धर्म पर आधारित राजनीति. भाजपा दरअसल अपने शासन की नीतियां नहीं परोस रही, वह कोरे धर्मराज की स्थापना को परोस रही है और वह धर्म भी ऐसा जैसा पुराणों में वर्णित है, जिस में ज्यादा से ज्यादा लोग पूजापाठ, अर्चना में लगे रहें, सेवा करते रहें और कुछ मौज मनाते रहें.

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इस देश के कर्मठ लोगों और उपजाऊ जमीन की देन है कि धर्म के मर्म पर पैसा और समय देने की गुंजाइश बहुत रहती है. धर्म के नाम पर सदियों से यहां विशाल मंदिर, पगपग पर ऋषियोंमुनियों के आश्रम बनते रहे हैं. लोग अपनी अंधश्रद्धा के गुलाम बने हुए हैं. इस अंधश्रद्धा को बढ़ाने व भुनाने के लिए एक खास वर्ग सदियों से मुफ्त की खाता रहा है और असल में शासन भी करता रहा है. भारतीय जनता पार्टी उसे ही दोहराना चाह रही थी.

देश के सामने आर्थिक, राजनीतिक, प्रशासनिक व सामाजिक समस्याओं का अंबार है. लेकिन सरकार को किसी भी समस्या को सुलझाने की फुरसत नहीं है. वह राममंदिर पर सुप्रीम कोर्ट को मनवाने, कश्मीर से जुड़े संविधान के अनुच्छेद 370 पर, बंगलादेश से आए गरीब मुसलमानों, मजदूरों को भगाने के बहाने सभी मुसलमानों को कठघरों में खड़ा करने, बैकडोर से आरक्षण खत्म करने में लगी रही है.

झारखंड में ही नहीं, हरियाणा व महाराष्ट्र और बहुत से उपचुनावों में यह साफ हुआ है कि सरकार की टैक्स नीतियां भी अमान्य हैं, शासकीय भी. फिर भी भारतीय जनता पार्टी को लग रहा था कि नरेंद्र मोदी की करिश्माई छवि व अमित शाह की कूटनीति से वह जनता को बहकावे में रखने में कामयाब रहेगी.

पौराणिक सोच वालों ने रामायण और महाभारत के युद्धों में जीत के प्रसंग तो बहुत पढ़े हैं पर दोनों महाकाव्यों के नायकों का बाद में क्या हुआ, यह कम ही को मालूम है और यही जनता अब बिना पुराण पढ़े समझने लगी है.

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नहीं टूटा मिथक, तीन-तीन मुख्यमंत्रियों को जेल पहुंचाने वाले सरयू राय ने रघुवर दास को दी मात

झारखंड विधानसभा चुनावों के रिजल्ट आ चुके हैं और इसी के साथ भाजपा के पाले से एक और राज्य खिसक गया. भाजपा की हार से तमाम पार्टियों ने राहत की सांस ली है. कांग्रेस ने तो ऐसा जश्न मनाया मानों केंद्र की सत्ता हासिल कर ली हो. लेकिन यहां मायने ये नहीं रखता कि जीत कितनी बड़ी है बड़ी बात ये है कि ये एक नई हार नहीं है. झारखंड में बीजेपी ने 25, जेएमएम ने 30, कांग्रेस ने 16, जेवीएम (पी) 3, आरजेडी (1), बाकी अन्य के खाते में चार सीटें गईं. 2014 में भाजपा ने यहां आजसू के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था और पूर्ण बहुमत से सरकार बनाई थी.

इस चुनाव में सबसे ‘हौट सीट’ जमशेदपुर (पूर्वी) विधानसभा क्षेत्र बनी हुई थी. जहां से मुख्यमंत्री रघुवर दास चुनाव मैदान में उतरे थे. मिथक है कि राज्य में जितने भी मुख्यमंत्री बने हैं, उन्हें चुनाव में हार का स्वाद चखना पड़ा है. इसलिए सबके मन में यह सवाल आ रहा था कि क्या दास इस मिथक को तोड़ पाएंगे?

रघुवर दास की पहचान झारखंड में पांच साल तक मुख्यमंत्री पद पर बने रहने की है. बिहार से अलग होकर झारखंड बने 19 साल हो गए है परंतु रघुवर दास ही ऐसे मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने लगातार पांच साल तक मुख्यमंत्री पद पर काबिज रहे. यही कारण है कि मुख्यमंत्री पर हार का मिथक तोड़ने को लेकर भी लोगों की दिलचस्पी बनी हुई थी लेकिन ऐसा नहीं हो पाया. और एकबार फिर मिथक की जीत हुई. रघुवर दास को सरयू राय ने चुनाव हरा दिया. जबकि इसी जमशेदपुर (पूर्वी) सीट से रघुवर दास पांच बार लगातार विधानसभा चुनाव जीत चुके थे.

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कौन हैं सरयू राय

भ्रष्टाचार के खिलाफ हमेशा आवाज बुलंद करने वाले और तीन मुख्यमंत्रियों लालू प्रसाद, जगन्नाथ मिश्र और मधु कोड़ा को जेल की सलाखों के पीछे भिजवाने में अहम भूमिका निभाने वाले सरयू राय झारखंड विधानसभा चुनाव में एक मिसाल कायम किया है. आखिर किस बात को लेकर वह झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास से भिड़ गए और क्यों उन्होंने मंत्री पद के साथ ही भाजपा छोड़ दी?

सरयू राय से जब पूछा कि क्या रघुबर दास चौथे मुख्यमंत्री होंगे जिन्हें वे जेल भिजवाएंगे ? इस पर उन्होंने कहा था, “खनन विभाग के मसले पर मैं मुख्यमंत्री जी से कह चुका हूं कि यह रास्ता मधु कोड़ा का रास्ता है और इस पर चलने वाला वहीं पहुंचता है जहां मधु कोड़ा गए थे. मैं नहीं चाहता कि चौथा मुख्यमंत्री मेरे हाथ से जेल जाए. क्योंकि मुझे बहुत तकलीफ होती है जब मैं लालू जी की हालत देखता हूं, मधु कोड़ा की हालत देखता हूं. लालू जी हमारे मित्र रहे हैं. मधु कोड़ा हमारे अच्छे राजनीतिक कार्यकर्ता रहे हैं. इसलिए मैं बार-बार कहता हूं कि उस रास्ते पर मत चलिए.”

साल 2017 में 28 सितंबर को सिमडेगा के कारीमाटी की 11 वर्षीया संतोष कुमारी की भूख से हुई मौत के बाद भी सरयू राय ने तत्कालीन प्रमुख सचिव और सीएम रघुबर दास के करीबी अधिकारी के खिलाफ मोर्चा खोला था. भात खाने के इंतजार में संतोषी की मौत के पीछे आधार कार्ड को राशन की सरकारी दुकान के पीओएस मशीन नहीं जुड़े होने को कारण बताया गया था. सरकार ने तब ऐसे हजारों राशन कार्ड को रद्द कर दिया था. राय इसे मुद्दा बनाते हुए सरकार पर हमलावर हो गए थे. उनका यह कदम भी रघुबर से उनकी तल्खी की एक बड़ी वजह माना जाता है.

भारतीय राजनीति में सबसे चर्चित घोटालों में से एक पशुपालन घोटाले को उजागर करने वाले नेता का नाम सरयू राय है. उन्होंने 1994 में पशुपालन घोटाले का भंडाफोड़ किया था. घोटाले के दोषियों को सजा दिलाने के लिए उन्होंने हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक संघर्ष किया. इस मामले में आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव समेत कई नेताओं और अफसरों को जेल जाना पड़ा.

भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए हमेशा झंडा बुलंद करने वाले सरयू राय ने ही बिहार में अलकतरा घोटाले का भंडाफोड़ किया था. झारखंड के खनन घोटाले को उजागर करने में भी राय की महत्वपूर्ण भूमिका रही. सरयू राय ने 1980 में किसानों को दिए जाने वाले घटिया खाद, बीज और नकली कीटनाशकों का वितरण करने वाली सहकारिता संस्थाओं के खिलाफ आवाज उठाई थी.

बीजेपी के बागी नेता सरयू राय झारखंड में कैबिनेट मंत्री रहे हैं. जमशेदपुर पूर्व सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर मुख्यमंत्री रघुबर दास को पराजित कर जीत दर्ज की है. सरयू राय के ट्वीटर हैंडल पर कवर फोटो में लिखा है- ‘अहंकार के खिलाफ चोट, जमशेदपुर करेगा वोट.’ तो क्या अहंकार ने रघुबर दास की नैया डुबोई ? इससे पहले जमशेदपुर पूर्वी से रघुबर दास लगातार पांच बार विधानसभा चुनाव जीत चुके हैं. 2014 में रघुबर दास ने कांग्रेस के आनंद बिहारी दुबे को लगभग 70 हजार वोटों से हराया था, लेकिन इस बार वह अपने पुराने सहयोगी से मात खा गए.

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सरयू राय ने जमशेदपुर पश्चिम सीट से 2014 के चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार बन्ना गुप्ता को 10,517 वोटों के अंतर से हराया था. जुझारू सामाजिक कार्यकर्ता और नैतिक मूल्यों की राजनीति करने वाले सरयू राय ने अविभाजित बिहार में अपने जीवन का काफी लंबा हिस्सा बिताया और झारखंड के अलग राज्य बनने के बाद उन्होंने इसे अपनी कर्मभूमि बना लिया.

रघुबर दास की कैबिनेट में खाद्य, सार्वजनिक वितरण एवं उपभोक्ता मामलों के मंत्री सरयू राय ने इस साल 20 नवंबर को झारखंड मंत्री परिषद से इस्तीफा दिया था. चारा घोटाले पर सरयू राय की लिखी हुई पुस्तक चारा चोर, खजाना चोर चर्चित रही है. मधु कोड़ा लूटकांड भी सरयू राय ने किताब लिखकर घोटालों को उजागर किया था. सरयू राय पर्यावरणविद् भी हैं. उन्होंने दामोदर नदी को प्रदूषण मुक्त करने में कामयाबी पाई थी

साइंस कौलेज, पटना के मेधावी छात्र रहे सरयू राय लंबे समय से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े हैं. 1962 में वह अपने गांव में संघ की शाखा में मुख्य शिक्षक थे. चार साल बाद 1966 में वह जिला प्रचारक बनाए गए. 1975 में देश में जिस वक्त आपातकाल लगा, उस दौरान सरयू को जेल भी जाना पड़ा. संघ ने उन्हें 1977 में राजनीति में भेजा. फिर कुछ सालों तक राजनीति से अलग रहे. जेपी विचार मंच बनाकर किसानों के बीच काम किया. बाद में जब 1992 में बाबरी मस्जिद का विध्वंस हुआ, उसके बाद बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी के कहने पर पार्टी में आए. यहां उन्हें प्रवक्ता और पदाधिकारी बनाया गया. इसके बाद उन्होंने एमएलसी, विधायक, मंत्री तक तक की जिम्मेदारी संभाली.

नागरिकता कानून के मसले पर दिए गए बयान पर कंगना को मिला मनीष सिसोदिया का तगड़ा जवाब

सोमवार ,23 दिसंबर को अपनी फिल्म‘‘पंगा’’के ट्रेलर लौंच के मौके पर नागकिरता कानून का विरोध व हिंसा करने वालों के संदर्भ में कंगना ने कहा था- ‘‘इस मामले में मेरी राय तो इतनी लंबी-चौड़ी है कि यहां बताना शुरू करूंगी तो सुबह हो जाएगी. लेकिन इस समय उतना ही कहूंगी, जिससे मेरी फिल्म के ट्रेलर लौन्च इवेंट पर फर्क न पड़े. जब भी आप किसी भी चीज को लेकर प्रदर्शन करते हैं, तो यह ध्यान रखें कि आप हिंसा न करें. हमारे देश की जो जनसंख्या है, उसमें सिर्फ 3 से 4 प्रतिशत लोग ही टैक्स देते हैं, बाकी सबको उसी टैक्स के भरोसे रहना पड़ता है. ऐसे में यह अधिकार आपको कौन देता है कि आप बस और ट्रेन जलाकर देश का माहौल खराब करें. इस बारे में हमें ध्यान रखना होगा, एक-एक बस 90-90 लाख की होती है और यह कोई छोटा अमाउंट नहीं है. इस समय देश की जो हालत है. ऐसे में इस तरह की हिंसा की जरूरत नहीं है. लोग भुखमरी से मर रहे है. लोकतंत्र के नाम पर हम यह सब क्या कर रहे हैं.’’

कंगना ने आगे कहा था-‘‘जब हमारा देश अंग्रेजों के अधीन था, तब इस तरह की आगजनी और प्रदर्शन को कूल समझा जाता था. आज जो आपके लीडर हैं, वह जापान या इटली से तो नहीं हैं, वह आपके ही बीच के इंसान हैं, जो छोटी जगह से उठ कर अपने दम पर लीडर बनें हैं, आज 10-15 साल से वह लीडर हैं,यह उनकी खासियत है. देश के लीडर ने अपने मेनोफेस्टो में जो बात कही थी और उसके बाद उनको सत्ता मिली, वही काम तो वह पूरा कर रहे हैं… अब क्या यह डिमौक्रेसी नहीं है.’’

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फिल्म‘‘पंगा’’के ट्रेलर लौंच के मौके पर नागकिरता कानून का विरोध करने वालों को लेकर दिए गए कंगना रानौट के इस बयान के बाद सोशल मीडिया पर कईयों ने विरोध जताया. तो वहीं दिल्ली के उपमुख्यमंत्री व वित्त मंत्री मनीष सिसोदिया ने मंगलवार कंगना की नींद की है. मनीष सिसोदिया ने एक ट्वीट करते हुए लिखा- ‘‘हिंसा और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाना हर स्थिति में गलत है. यह मानवता और कानून के खिलाफ है.लेकिन यह देश सिर्फ तीन फीसदी लोगों के कर पर आश्रित नहीं हैं. देश का हर व्यक्ति कर देता है, एक दिहाड़ी मजदूर से लेकर अरबपति तक.‘’

मनीष सिसोदिया ने कंगना रानौट की निजी आमदनी में दिहाड़ी मजदूर के योगदान की याद दिलाते हुए कहा-‘‘और हां! यहां तक कि एक मजदूर जब सिनेमा देखने जाता है तो वह फिल्म स्टार की तिजोरी में योगदान देता है और देश के लिए मनोरंजन टैक्स का भुगतान करता है. अब सोचिए कि कौन किस पर निर्भर है.‘’

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ज्ञातब्य है कि जामिया मिलिया इस्लामिया और अलीगढ़ मुस्लिम युनिवर्सिटी में नागरिका कानून के विरोध में छात्रों के प्रदर्शन के दौरान काफी मात्रा में हिंसा हुई थी. पुलिस पर छात्रों के साथ बर्बरता के साथ पेश आने के आरोप भी लगे थ.इसके बाद स्वरा भास्कर,  सुशांत सिंह, ऋचा चड्ढा, फरहान अख्तर, मोहम्मद जीशान अय्यूब, तिग्मांशु धूलिया, आलिया भट्ट,सौरभ शुक्ला, दिया मिर्जा,  हंसल मेहता, विकी कौशल, भूमि पेडनेकर, परिणीति चोपड़ा,  हुमा कुरैशी,  निमरत कौर,  मनोज बाजपेयी सहित कई बड़ी फिल्मी हस्तियों ने नागरिकता कानून का विरोध कर रहे छात्रों के समर्थन में सामने आए थे.

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