झारखंड विधानसभा चुनावों के रिजल्ट आ चुके हैं और इसी के साथ भाजपा के पाले से एक और राज्य खिसक गया. भाजपा की हार से तमाम पार्टियों ने राहत की सांस ली है. कांग्रेस ने तो ऐसा जश्न मनाया मानों केंद्र की सत्ता हासिल कर ली हो. लेकिन यहां मायने ये नहीं रखता कि जीत कितनी बड़ी है बड़ी बात ये है कि ये एक नई हार नहीं है. झारखंड में बीजेपी ने 25, जेएमएम ने 30, कांग्रेस ने 16, जेवीएम (पी) 3, आरजेडी (1), बाकी अन्य के खाते में चार सीटें गईं. 2014 में भाजपा ने यहां आजसू के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था और पूर्ण बहुमत से सरकार बनाई थी.
इस चुनाव में सबसे ‘हौट सीट’ जमशेदपुर (पूर्वी) विधानसभा क्षेत्र बनी हुई थी. जहां से मुख्यमंत्री रघुवर दास चुनाव मैदान में उतरे थे. मिथक है कि राज्य में जितने भी मुख्यमंत्री बने हैं, उन्हें चुनाव में हार का स्वाद चखना पड़ा है. इसलिए सबके मन में यह सवाल आ रहा था कि क्या दास इस मिथक को तोड़ पाएंगे?
रघुवर दास की पहचान झारखंड में पांच साल तक मुख्यमंत्री पद पर बने रहने की है. बिहार से अलग होकर झारखंड बने 19 साल हो गए है परंतु रघुवर दास ही ऐसे मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने लगातार पांच साल तक मुख्यमंत्री पद पर काबिज रहे. यही कारण है कि मुख्यमंत्री पर हार का मिथक तोड़ने को लेकर भी लोगों की दिलचस्पी बनी हुई थी लेकिन ऐसा नहीं हो पाया. और एकबार फिर मिथक की जीत हुई. रघुवर दास को सरयू राय ने चुनाव हरा दिया. जबकि इसी जमशेदपुर (पूर्वी) सीट से रघुवर दास पांच बार लगातार विधानसभा चुनाव जीत चुके थे.
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कौन हैं सरयू राय
भ्रष्टाचार के खिलाफ हमेशा आवाज बुलंद करने वाले और तीन मुख्यमंत्रियों लालू प्रसाद, जगन्नाथ मिश्र और मधु कोड़ा को जेल की सलाखों के पीछे भिजवाने में अहम भूमिका निभाने वाले सरयू राय झारखंड विधानसभा चुनाव में एक मिसाल कायम किया है. आखिर किस बात को लेकर वह झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास से भिड़ गए और क्यों उन्होंने मंत्री पद के साथ ही भाजपा छोड़ दी?
सरयू राय से जब पूछा कि क्या रघुबर दास चौथे मुख्यमंत्री होंगे जिन्हें वे जेल भिजवाएंगे ? इस पर उन्होंने कहा था, “खनन विभाग के मसले पर मैं मुख्यमंत्री जी से कह चुका हूं कि यह रास्ता मधु कोड़ा का रास्ता है और इस पर चलने वाला वहीं पहुंचता है जहां मधु कोड़ा गए थे. मैं नहीं चाहता कि चौथा मुख्यमंत्री मेरे हाथ से जेल जाए. क्योंकि मुझे बहुत तकलीफ होती है जब मैं लालू जी की हालत देखता हूं, मधु कोड़ा की हालत देखता हूं. लालू जी हमारे मित्र रहे हैं. मधु कोड़ा हमारे अच्छे राजनीतिक कार्यकर्ता रहे हैं. इसलिए मैं बार-बार कहता हूं कि उस रास्ते पर मत चलिए.”
साल 2017 में 28 सितंबर को सिमडेगा के कारीमाटी की 11 वर्षीया संतोष कुमारी की भूख से हुई मौत के बाद भी सरयू राय ने तत्कालीन प्रमुख सचिव और सीएम रघुबर दास के करीबी अधिकारी के खिलाफ मोर्चा खोला था. भात खाने के इंतजार में संतोषी की मौत के पीछे आधार कार्ड को राशन की सरकारी दुकान के पीओएस मशीन नहीं जुड़े होने को कारण बताया गया था. सरकार ने तब ऐसे हजारों राशन कार्ड को रद्द कर दिया था. राय इसे मुद्दा बनाते हुए सरकार पर हमलावर हो गए थे. उनका यह कदम भी रघुबर से उनकी तल्खी की एक बड़ी वजह माना जाता है.
भारतीय राजनीति में सबसे चर्चित घोटालों में से एक पशुपालन घोटाले को उजागर करने वाले नेता का नाम सरयू राय है. उन्होंने 1994 में पशुपालन घोटाले का भंडाफोड़ किया था. घोटाले के दोषियों को सजा दिलाने के लिए उन्होंने हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक संघर्ष किया. इस मामले में आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव समेत कई नेताओं और अफसरों को जेल जाना पड़ा.
भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए हमेशा झंडा बुलंद करने वाले सरयू राय ने ही बिहार में अलकतरा घोटाले का भंडाफोड़ किया था. झारखंड के खनन घोटाले को उजागर करने में भी राय की महत्वपूर्ण भूमिका रही. सरयू राय ने 1980 में किसानों को दिए जाने वाले घटिया खाद, बीज और नकली कीटनाशकों का वितरण करने वाली सहकारिता संस्थाओं के खिलाफ आवाज उठाई थी.
बीजेपी के बागी नेता सरयू राय झारखंड में कैबिनेट मंत्री रहे हैं. जमशेदपुर पूर्व सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर मुख्यमंत्री रघुबर दास को पराजित कर जीत दर्ज की है. सरयू राय के ट्वीटर हैंडल पर कवर फोटो में लिखा है- ‘अहंकार के खिलाफ चोट, जमशेदपुर करेगा वोट.’ तो क्या अहंकार ने रघुबर दास की नैया डुबोई ? इससे पहले जमशेदपुर पूर्वी से रघुबर दास लगातार पांच बार विधानसभा चुनाव जीत चुके हैं. 2014 में रघुबर दास ने कांग्रेस के आनंद बिहारी दुबे को लगभग 70 हजार वोटों से हराया था, लेकिन इस बार वह अपने पुराने सहयोगी से मात खा गए.
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सरयू राय ने जमशेदपुर पश्चिम सीट से 2014 के चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार बन्ना गुप्ता को 10,517 वोटों के अंतर से हराया था. जुझारू सामाजिक कार्यकर्ता और नैतिक मूल्यों की राजनीति करने वाले सरयू राय ने अविभाजित बिहार में अपने जीवन का काफी लंबा हिस्सा बिताया और झारखंड के अलग राज्य बनने के बाद उन्होंने इसे अपनी कर्मभूमि बना लिया.
रघुबर दास की कैबिनेट में खाद्य, सार्वजनिक वितरण एवं उपभोक्ता मामलों के मंत्री सरयू राय ने इस साल 20 नवंबर को झारखंड मंत्री परिषद से इस्तीफा दिया था. चारा घोटाले पर सरयू राय की लिखी हुई पुस्तक चारा चोर, खजाना चोर चर्चित रही है. मधु कोड़ा लूटकांड भी सरयू राय ने किताब लिखकर घोटालों को उजागर किया था. सरयू राय पर्यावरणविद् भी हैं. उन्होंने दामोदर नदी को प्रदूषण मुक्त करने में कामयाबी पाई थी
साइंस कौलेज, पटना के मेधावी छात्र रहे सरयू राय लंबे समय से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े हैं. 1962 में वह अपने गांव में संघ की शाखा में मुख्य शिक्षक थे. चार साल बाद 1966 में वह जिला प्रचारक बनाए गए. 1975 में देश में जिस वक्त आपातकाल लगा, उस दौरान सरयू को जेल भी जाना पड़ा. संघ ने उन्हें 1977 में राजनीति में भेजा. फिर कुछ सालों तक राजनीति से अलग रहे. जेपी विचार मंच बनाकर किसानों के बीच काम किया. बाद में जब 1992 में बाबरी मस्जिद का विध्वंस हुआ, उसके बाद बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी के कहने पर पार्टी में आए. यहां उन्हें प्रवक्ता और पदाधिकारी बनाया गया. इसके बाद उन्होंने एमएलसी, विधायक, मंत्री तक तक की जिम्मेदारी संभाली.