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क्या आप को भी लगती है ज्यादा ठंड

क्या आप को जरूरत से ज्यादा ठंड लगती है, हमेशा आप के हाथपैर ठंडे रहते हैं और जाड़े के मौसम में स्वेटर्स की 2-3 लेयर्स से कम में आप का काम नहीं चलता? आइए जानते हैं क्यों लगती है कुछ लोगों को अधिक ठंड.

थायराइड की समस्या

हाइपोथायराइडिज्म एक स्थिति है जब थायराइड ग्लैंड कम एक्टिव होता है. थायराइड ग्लैंड बहुत सारे मेटाबौलिज्म प्रक्रियाओं के लिए उत्तरदायी है.

इस का एक काम शरीर के तापमान का नियंत्रण करना भी है. जाहिर है हाइपोथायरायडिज्म से पीड़ित व्यक्ति ज्यादा ठंड महसूस करते हैं क्यों कि उन के शरीर में थायराइड हार्मोन की कमी रहती है.

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अधिक उम्र

अधिक उम्र में ठंड अधिक लगती है. खासकर 60 साल के बाद व्यक्ति का मेटाबोलिज्म स्लो हो जाता है. इस वजह से शरीर कम हीट पैदा करता है.

एनीमिया

आयरन की कमी से शरीर का तापमान गिरता है क्यों कि आयरन रेड ब्लड सेल्स का प्रमुख स्रोत है. शरीर को पर्याप्त आयरन न मिलने से रेड ब्लड सेल्स बेहतर तरीके से काम नहीं कर पाते और हमें ज्यादा ठंड लगने लगती है.

खानपान

यदि आप गर्म चीजें ज्यादा खाते हैं जैसे ड्राई फ्रूट्स, नौनवेज, गुड, बादाम आदि तो आप को ठंड कम लगेगी. इस के विपरीत ठंडी चीजें जैसे, सलाद, आइसक्रीम, वेजिटेबल्स, दही आदि अधिक लेने से ठंड ज्यादा लगती है.

प्रेगनेंसी

प्रेगनेंसी के दौरान महिलाओं को एनीमिया और सरकुलेशन की शिकायत हो जाती है. इस वजह से कई बार ठंड लगने खासकर हाथ पैरों के ठंडा होने की शिकायत करती है.

डीहाइड्रेशन

पानी कम मात्रा में पीने से शरीर का मेटाबौलिज्म घट जाता है और शरीर खुद को गर्म रखने के लिए आवश्यक एनर्जी और हीट तैयार नहीं कर पाता.

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हारमोंस

अलगअलग तरह के हार्मोन्स भी हमारे शरीर के तापमान को प्रभावित करते हैं. उदाहरण के लिए एस्ट्रोजेन साधारणतः डाइलेटेड ब्लड वेसल्स और बौडी टेंपरेचर प्रमोट करता है. जबकि पुरुषों में मौजूद टेस्टोस्टेरोन हार्मोन इस के विपरीत कार्य करता है. इस वजह से महिलाओं का शरीर ज्यादा ठंडा होता है. एक अध्ययन के मुताबिक महिलाओं के हाथ पैर पुरुषों के देखे लगातार अधिक ठंडे रहते हैं. यही नहीं महिलाओं में थायराइड और अनीमिया की समस्या भी अधिक होती है. दोनों ही ठंड लगने के लिए अहम् कारक हैं.

पुअर सर्कुलेशन

यदि आप का पूरा शरीर तो आरामदायक स्थिति में है मगर हाथ और पैर ठंडे हो रहे हैं तो इस का मतलब है कि आप को सरकुलेशन प्रौब्लम है जिस की वजह से खून का प्रवाह शरीर के हर हिस्से में सही तरीके से नहीं हो रहा. हार्ट भी सही तरीके से काम नहीं कर रहा. ऐसी स्थिति में भी ठंड अधिक लगने की समस्या पैदा हो सकती है.

तनाव और चिंता

जिन लोगों की जिंदगी में अधिक तनाव और डिप्रेशन होता है वे अक्सर ठंड अधिक महसूस करते हैं क्यों कि तनावग्रस्त होने की स्थिति में हमारे मस्तिष्क का वह भाग सक्रिय हो जाता है जो खतरे के समय आप को सचेत रखता है.ऐसे में शरीर अपनी सारी ऊर्जा खुद को सुरक्षित रखने के लिए रिज़र्व रखता है और हाथपैर जैसे हिस्सों तक गर्मी नहीं पहुंच पाती.

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जब बीएमआई कम हो

न केवल बीएमआई और वजन कम होने के कारण आप को ठंड ज्यादा लग सकती है बल्कि आप के शरीर में फैट और मसल्स की मात्रा भी उस की वजह बनती है. मसल्स अधिक मात्रा में होने से शरीर अधिक हीट पैदा करता है और फैट की वजह से भी शरीर से हीट लौस कम होता है जिस से ठंड कम लगती है.

यदि आप को लगता है कि दूसरों के मुकाबले आप का शरीर हमेशा ही ज्यादा ठंडा रहता है या फिर पहले कभी आप ने ठंड महसूस नहीं किया मगर अब हमेशा ही ऐसा लगने लगा है तो आप को मेडिकल चेकअप कराना चाहिए. यदि ठण्ड के साथ आप के वजन में तेजी से बढ़ोतरी या कमी हो रही है, बाल झड़ रहे हैं और कब्ज की शिकायत रहने लगी है ,तो भी किसी अच्छे डाक्टर से जरूर मिलें.

अलविदा 2019 : इस साल शादी के बंधन में बंधे बौलीवुड के ये 5 कपल

आपको बताते हैं, 2019 मेें किन बौलीवुड सेलिब्रेटी ने शादी की.

  1. पूजा बत्रा और नवाब शाह

फिल्म ‘विश्वविधाता’ से बौलीवुड की दुनिया में कदम रखने वाली पूजा बत्रा ने एकटर नवाब शाह से शादी की. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, पूजा बत्रा और नवाब शाह ने पारंपरिक रीति-रिवाज से अपनी शादी की. दोनों की साथ में कई फोटो सोशल मीडिया पर भी वायरल हुई थी.

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Sea Sun Sand and a scorpion ❤️??

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2. आरती छाबड़िया और  विशारद बीडसी

बौलीवुड एक्ट्रेस आरती छाबड़िया ने आरती ने मुंबई में अपने बायफ्रेंड विशारद बीडसी के साथ सात फेरे ले लिए. आरती की शादी 24 जून को हुई,  मगर उन्होंने इसकी कानोंकान ख़बर नहीं लगने दी. आरती की शादी का खुलासा उनकी सोशल मीडिया पोस्ट से हुआ.

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3. नुसरत जहां और निखिल जैन

बंग्ला फिल्मों की मशहूर एक्ट्रेस नुसरत जहां कोलकाता के बिजनसमैन निखिल जैन के साथ 19 जून को तुर्की में शादी की. शादी की पहली तस्वीरें निखिल और नुसरत ने अपने-अपने सोशल मीडिया अकाउंट्स पर शेयर भी की थी.

4. नीति मोहन और निहार पांड्या

बौलीवुड में कई हिट गाने देने वाली नीति मोहन ने एक्टर और मौडल निहार पांड्या संग सात फेरे लिए थे.  शादी के 5 दिन बाद नीति ने अपनी शादी की पहली तस्वीर शेयर की थी. तस्वीर में नीति और निहार पिंक ड्रेस के कौम्बिनेशन में बेहद खूबसूरत लग रहे थे.

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5. शीना बजाज और रोहित पुरोहित

‘मरियम खान रिपोर्टिंग लाइव’ फेम एक्ट्रेस शीना बजाज  और ‘पोरस’ फेम ऐक्टर रोहित पुरोहित शादी के बंधन में बंध गए. इस शादी में दोनों के परिवार के लोग और नजदीकी लोग शामिल हुए थे. दोनों ऐक्टर्स की यह शादी रोहित के होम टाउन जयपुर में हुई.

भाईजान के जन्मदिन पर बहन ने दिया बेहद खास तोहफा

सलमान खान के जन्मदिन के मौके पर  उनके फैमली, फ्रेंड्स और फैंस सहित सभी ने उन्हें सोशल मीडिया के जरिए जन्मदिन की बधाई दी. लेकिन सब की बधाइयों के साथ सलमान खान की बहन अर्पिता खान शर्मा ने उन्हें दूसरी बार मामा बना कर सबसे खास तोहफा दिया. सलमान की बहन अर्पिता ने एक बेटी को जन्म दिया है . बेटी का नाम आयत रखा गया है.

अर्पिता के पति और अभिनेता आयुष शर्मा ने अपनी बेटी के नाम का खुलासा कर दिया है. उन्होंने इंस्टाग्राम पर बेटी का नाम साझा किया है. आयुष शर्मा की इंस्टा पोस्ट के अनुसार उनकी बेटी का नाम आयत शर्मा है. अर्पिता अस्पताल में सी-सेक्शन डिलीवरी के जरिए इस बेटी को जन्म दिया और भाईजान के 54वें जन्मदिन को जीवन भर के लिए यादगार बना दिया है.

सलमान के जन्मदिन के मौके पर हजारों फैंस उनके घर के बाहर बधाई देने पहुंचे. सलमान हर साल अपने फैंस की बधाई लेने के लिए घर की बालकनी पर आते हैं . कल जब सलमान अपने फैंस से मिले तो उन्होंने हाथ हिलाकर सबको धन्यवाद किया . इस बीच सलमान की आंखों में आंसू आ गए. सलमान ये देखकर भावुक हो गए कि उन्हें हजारों फैंस का प्यार मिल रहा है.

फैंस के साथ मिलते हुए सलमान की तस्वीरें और वीडियो भी सामने आए हैं. सलमान ने मीडिया के साथ अपना बर्थडे केक काटा . जब सलमान मीडिया के सामने आए तो सभी ने उन्हें जन्मदिन के साथ मामा बनने की भी बधाई दी . इस मौके पर सलमान ने कहा, ‘जब मैं सोकर उठा तो मैंने फोन में सबसे पहले आयत की फोटो देखी .’

‘हमारे परिवार के लिए इससे अच्छा तोहफा कुछ नहीं हो सकता .’ सलमान दूसरी बार मामा बने हैं . इस पर उन्होंने कहा, ‘अभी हो गया मामा का, चाचा का, अब बस बाप बनने का बाकी है .’ अर्पिता की बेटी का नाम आयत रखने पर सलमान ने बताया कि उनके परिवार ने दो नाम सोचे थे .

सलमान ने कहा, ‘हमने दो नाम सोचे थे एक सिफारा और दूसरा आयत . अर्पिता ने आयत चुना .’ सलमान ने बताया कि ये नाम पिता सलीम खान ने उनके बेटे या बेटी के लिए सोचे थे . वो कहते हैं, ‘ये दोनों ही नाम मेरे बेटे या बेटी के लिए सोचे गए थे . वो हमेशा से इसके लिए तैयार थे लेकिन अब इन नामों को ले लिया गया है.’

कोई शर्त नहीं : भाग 1

‘‘खानाबदोश सी बन गई है जिंदगी… अभी तंबू गाड़े भी नहीं थे कि उखाड़ने की तैयारी शुरू…’’ अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट कुलदीप अपना बैग पैक करतेकरते राज्य सरकार की ट्रांसफर पौलिसी को कोस रहे थे. पत्नी शशि गुमसुम सी सामान पैक करने में उन की मदद कर रही थी. उस की उदास आंखें भी सरकार की इस पौलिसी के प्रति अपनी नाराजगी की गवाही दे रही थीं.

अभी 2 साल भी पूरे नहीं हुए थे कुलदीप को अपने होम टाउन जयपुर में ट्रांसफर हुए कि फिर से ट्रांसफर और वह भी गुजरात सीमा के पास… एक आदिवासी इलाके में… सिरोही जिले में एक छोटी सी जगह पिंडवाड़ा…

हालांकि राज्य सरकार की तरफ से अपने प्रशासनिक अधिकारियों को सभी तरह की सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती हैं, मगर परिवार की अपनी जिम्मेदारियां भी होती हैं.

पिंडवाड़ा में सभी चीजें मुहैया होने के बावजूद भी कुलदीप की मजबूरी थी कि वे शशि और बच्चों को अपने साथ नहीं ले जा सकते थे.

बड़ी बेटी रिया ने अभी हाल ही में इंजीनियरिंग कालेज के फर्स्ट ईयर में एडमिशन लिया है और छोटा बेटा राहुल तो इस साल 10वीं जमात में बोर्ड के एग्जाम देगा. ऐसे में उन दोनों को ही बीच सैशन में डिस्टर्ब नहीं किया जा सकता, इसलिए शशि को बच्चों के साथ जयपुर में ही रहना पड़ेगा.

अगर दूरियां नापी जाएं तो जयपुर और पिंडवाड़ा के बीच ज्यादा नहीं है, मगर प्रशासनिक अधिकारियों की जिम्मेदारियां ही इतनी होती हैं कि हर हफ्ते इन दूरियों को तय कर पाना कुलदीप के लिए मुमकिन नहीं था. महीने में सिर्फ 1 या 2 बार ही कुलदीप का जयपुर आना मुमकिन होगा. यह बात पतिपत्नी दोनों ही बिना कहे समझ रहे थे.

कुलदीप की सब से बड़ी समस्या घर के खाने को ले कर थी. खाने के नाम पर उन्होंने कालेज में पढ़ाई के दौरान सिर्फ चावल बनाने ही सीखे थे और बाद में मैगी बनाना भी सीख लिया था. हां, शादी के बाद उन्हें चाय बनाना जरूर आ गया था.

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हमेशा तो ट्रांसफर होने पर शशि व बच्चे उन के साथ ही शिफ्ट हो जाते थे, मगर अब बच्चों की पढ़ाई उन की सुविधा से ज्यादा जरूरी हो गई है.

इधर जैसेजैसे उम्र बढ़ रही थी, होटलों और ढाबों के तेज मसालों वाले खाने से कुलदीप को एसिडिटी होने लगी थी. नौकरी वगैरह का तनाव होने के चलते शरीर में ब्लड शुगर का लैवल भी बढ़ने लगा था.

डाक्टरों ने कसरत करने के साथसाथ कम मसाले वाला खाना और हरी पत्तेदार सब्जियों के खाने की सख्त हिदायत दे रखी थी. पत्नी शशि परेशान थी कि उन के खाने का इंतजाम कैसे होगा.

पिंडवाड़ा पहुंचते ही जोरावर सिंह ने गरमागरम चाय के साथ कुलदीप का स्वागत किया.

जोरावर सिंह कुलदीप का सहायक होने के साथसाथ बंगले का चौकीदार और माली सबकुछ था.

जोरावर सिंह बंगले के पीछे बने सर्वेंट क्वार्टर में अपनी पत्नी राधा के साथ रहता था. चाय सचमुच बहुत अच्छी बनी थी. पीते ही कुलदीप बोले, ‘‘तुम्हें देख कर तो नहीं लगता कि यह चाय तुम ने ही बनाई है.’’

‘‘सही कहा साहब, यह चाय मैं ने नहीं, बल्कि मेरी जोरू ने बनाई है,’’ जोरावर सिंह अपने पीले दांत निकाल कर हंसा.

कुलदीप ने इस बार ध्यान से देखा उसे. बड़ीबड़ी मूंछें, कानों में सोने की मुरकी, सिर पर पगड़ी और धोतीअंगरखा पहने दुबलापतला जोरावर सिंह कुलदीप के पास जमीन पर उकड़ू बैठा हुआ उसे एकटक देख रहा था.

‘‘यहां खाने का क्या इंतजाम है?’’ कुलदीप ने पूछा.

‘‘आसपास कई गुजराती ढाबे हैं… आप को राजस्थानी खाना भी मिल जाएगा… और विदेशी खाना चाहिए तो फिर शहर में अंदर जाना पड़ेगा…’’ जोरावर सिंह ने अपनी जानकारी के हिसाब से बताया.

‘‘कोई यहां बंगले पर आ कर खाना बनाने वाला या वाली नहीं है क्या?’’ कुलदीप ने पूछा.

‘‘साहब, मैं पूछ कर बताता हूं,’’ कह कर जोरावर सिंह चाय का कप उठाने लगा.

‘कहां राजधानी जयपुर और कहां पिंडवाड़ा…’ सोच कर कुलदीप को अच्छा तो नहीं लगा, मगर उन्होंने देखा कि अरावली की पहाडि़यों की गोद में बसा पिंडवाड़ा एक खूबसूरत और शांत कसबा है.

यह एक हराभरा आदिवासी बहुल इलाका है. उन्हें यहां के लोग भी बहुत सीधेसादे और अपने काम से काम रखने वाले लगे.

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कुलदीप का सरकारी बंगला अंदर से काफी बड़ा और शानदार था. वैल फर्निश्ड घर में 2 बैडरूम अटैच बाथरूम समेत, एक ड्राइंगरूम, गैस स्टोव और चिमनी के साथ बड़ी सी किचन. एक लौबी के अलावा छोटा सा स्टोर भी था… लौबी में 4 कुरसी वाली डाइनिंग टेबल भी रखी थी.

चारों तरफ से खुलाखुला बंगला कुलदीप को बेहद पसंद आया. एक बैडरूम में एयरकंडीशनर भी लगा था. कुलदीप ने अपना सूटकेस बैडरूम में रखा और नहाने की तैयारी करने लगे.

औफिस का टाइम हो रहा था. कुलदीप नाश्ते के बारे में सोच रहे थे कि क्या किया जाए. अब तो मैगी बनाने जितना टाइम भी नहीं था. वे पहले ही दिन लेट नहीं होना चाहते थे.

‘वहीं कुछ खा लूंगा,’ सोचते हुए कुलदीप तैयार हो कर बाहर निकले तो डाइनिंग टेबल पर एक डोंगे में ढका हुआ नाश्ता रखा देखा. ढक्कन उठाया तो करीपत्ते से सजे हुए गरमागरम पोहे की खुशबू पूरे घर में फैल गई.

कुलदीप के मुंह में पानी आ गया… उन्होंने तुरंत प्लेट में डाल लिया. खाया तो स्वाद सचमुच लाजवाब था, मगर तारीफ सुनने के लिए आसपास कोई भी नहीं था. जोरावर सिंह भी नहीं…

औफिस में कुलदीप का दिन काफी थकाने वाला था. काम तो वही पुराना था, मगर नया माहौल… नए लोग… सब का परिचय लेतेलेते ही दिन बीत गया.

घर पहुंचते ही पत्नी शशि का फोन आ गया. बिजी होने के चलते दिन में बात ही नहीं कर पाए थे उस से…

यों भी शशि की बातें बहुत लंबी होती हैं, इसलिए फुरसत में ही वे उसे फोन करते हैं. अभी दोनों बातें कर ही रहे थे कि एक चीख की आवाज ने कुलदीप को चौंका दिया.

‘‘बाद में बात करता हूं,’’ कह कर उन्होंने शशि का फोन काटा और आवाज की दिशा में दौड़े.

‘आवाज तो सर्वेंट क्वार्टर में से आ रही है… तो क्या जोरावर सिंह अपनी पत्नी को पीट रहा है?’ कुलदीप कुछ देर खड़े सोचते रहे. धीमी होतीहोती सिसकियां बंद हो गईं तो वे बंगले की तरफ पलट गए.

चपरासी से कह कर रात का खाना पैक करा लिया था. सुबह नाश्ते के लिए ब्रैडजैम भी मंगवा लिया था, मगर सुबह की चाय का इंतजाम नहीं हो सका था.

सुबह उठ कर कुलदीप बंगले के गार्डन में सैर के लिहाज से चक्कर लगा रहे थे, मगर उन की आंखें सर्वेंट क्वार्टर की तरफ ही लगी थीं, तभी उन्हें जोरावर सिंह आता हुआ दिखाई दिया.

जोरावर सिंह के हाथ में चाय का कप देख कर कुलदीप को मनमांगी मुराद मिल गई.

चाय पीतेपीते उन्होंने जोरावर सिंह से फिर से खाना बनाने के इंतजाम का जिक्र किया.

‘‘साहब, कितने पैसे दोगे नाश्ता और 2 टाइम का खाना बनाने के?’’ जोरावर सिंह ने अपनी बात रखी.

‘‘तुम पैसे की चिंता मत करो, बस चायनाश्ता और खाना बिलकुल वैसा ही होना चाहिए, जैसा कल सुबह था.’’

‘‘साहब, इस का सीधा सा हिसाब है… 3 टाइम का खाना… 3,000 रुपए…’’ जोरावर सिंह ने अपने पीले दांत दिखाए.

‘‘मंजूर है, पर है कौन… कब से शुरू करेगा या करेगी?’’

‘‘अरे साहब, और कौन, राधा है न… वही बना देगी… आज और अभी से… मैं भेजता हूं उसे…’’ कह कर जोरावर सिंह ने चाय का कप उठाया और राधा को बुलाने चला गया.

राधा ने आते ही अपने सधे हुए हाथों से रसोई की कमान संभाल ली. टखनों से थोड़ा ऊंचा घाघरा और कुरती… ऊपर चटक रंग की ओढ़नी… पैरों में चांदी के मोटे कड़े और हाथों में पहना सीप का चूड़ा… कुलदीप की आंखों में ‘मारवाड़ की नार’ की छवि साकार हो उठी.

हालांकि कुलदीप ने उस का चेहरा नहीं देखा था, क्योंकि वह उन के सामने घूंघट निकालती थी, मगर कदकाठी से वह जोरावर से काफी कम उम्र की लगती थी.

सुबह की चाय जोरावर सिंह अपने घर से लाता था, उस के बाद कुलदीप का टिफिन पैक कर के राधा उन का चायनाश्ता टेबल पर लगा देती थी.

शाम का खाना कुलदीप के औफिस से लौटने से पहले ही बना कर राधा हौटकेस में रख देती थी. कुलदीप ने उसे अपने घर की एक चाबी दे रखी थी.

अभी 4-5 दिन ही बीते थे कि कुलदीप ने फिर से सर्वेंट क्वार्टर से चीखने की आवाज सुनी. उन के कदम उठे, मगर फिर ‘पतिपत्नी का आपसी मामला है’ सोच कर रुक गए.

अगले दिन उन्होंने देखा कि राधा कुछ लंगड़ा कर चल रही है. उन्होंने पूछा भी, मगर राधा ने कोई जवाब नहीं दिया.

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4 दिन बाद फिर वही किस्सा… इस बार कुलदीप ने राधा के हाथ पर चोट के निशान देखे तो उन से रहा नहीं गया.

कुलदीप ने खाना बनाती राधा का हाथ पकड़ा और उस पर एंटीसैप्टिक क्रीम लगाई. राधा दर्द से सिसक उठी.

कुलदीप ने नजर उठा कर पहली बार राधा का चेहरा देखा. कितना सुंदर… कितना मासूम… नजरें मिलते ही राधा ने अपनी आंखें झुका लीं.

अब तो यह अकसर ही होने लगा. जोरावर सिंह अपनी शराब की तलब मिटाने के लिए हर 8-10 दिन में आबू जाता था. पर्यटन स्थल होने के कारण वहां हर तरह की शराब आसानी से मिल जाती थी. वहां से लौटने पर राधा की शामत आ जाती थी.

राधा जोरावर सिंह की दूसरी पत्नी थी. वह बेतहाशा शराब पी कर राधा से संबंध बनाने की कोशिश करता और नाकाम होने पर अपना सारा गुस्सा उस पर निकालता था, मानो यह भी मर्दानगी की ही निशानी हो.

राधा के जख्म कुलदीप से देखे नहीं जाते थे, मगर मूकदर्शक बनने के अलावा उन के पास कोई चारा भी नहीं था. वह चोट खाती रही… कुलदीप उन पर मरहम लगाते रहे. एक दर्द का रिश्ता बन गया था दोनों के बीच.

धीरेधीरे राधा उन से खुलने लगी थी… अब तो खुद ही दवा लगवाने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ा देती थी… कभीकभी घरपरिवार की बातें भी कर लेती थी… उन की पसंदनापसंद पूछ कर खाना बनाने लगी थी. एक अनदेखी डोर से दोनों के दिल बंधने लगे थे.

2 महीने बीत गए. इस बीच कुलदीप एक बार जयपुर हो आए थे. राधा के खाना बनाने से कुलदीप को ले कर पत्नी शशि की चिंता भी दूर हो गई थी.

एक दिन सुबह राधा नाश्ता टेबल पर रखने आई तो कुलदीप टैलीविजन पर ‘ई टीवी राजस्थान’ चैनल देख रहे थे, जिस में एक मौडल लहरिया के डिजाइन दिखा रही थी.

लहसुन उखाड़ने की मशीन से काम हुआ आसान

राजस्थान के जोधपुर जिले का मथानिया गांव उम्दा खेतीकिसानी के लिए जाना जाता है. मथानिया की लाल मिर्च के नाम से इस गांव के खेतों में उपजी मिर्च की मांग विदेशों तक थी. फिर किसानों द्वारा फसलचक्र को तवज्जुह न देने की वजह से यहां की मिर्ची की खेती तमाम रोगों का शिकार हो गई. लेकिन धीरेधीरे किसान जागरूक हुए हैं और कुदरत के नियमों का पालन कर रहे हैं. अब इस इलाके में मिर्च के अलावा गाजर, पुदीना और लहसुन की खेती भी जोरों पर है. लहसुन की खेती में यहां के किसानों को शिकायत थी कि जब वे लहसुन को खेत में से उखाड़ने का काम करते हैं, तो उन के हाथ खराब हो जाते हैं. हाथ फटने और नाखूनों में मिट्टी चले जाने के कारण अगले दिन खेत में जा कर मेहनत करना कठिन होता था.

किसान मदन सांखला ने इस समस्या को चैलेंज के रूप में स्वीकारते हुए लहसुन की फसल निकालने के लिए एक मशीन बनाने की सोची. मदन को किसान होने के साथसाथ अपने बड़े भाई अरविंद के लोहे के यंत्र बनाने के कारखाने में मिस्त्री के काम का अनुभव भी था. उस ने अपने अनुभव के आधार पर जो मशीन बनाई, उसे काफी बदलावों के बाद कुली मशीन नाम दिया, चूंकि लहसुन में कई कुलियां होती हैं. बातचीत के दौरान मदन ने बताया, ‘हमारा पूरा परिवार खेती करता है. लहसुन की खेती में 1 मजदूर दिन भर में 100 से 200 किलोग्राम लहसुन ही खेत से उखाड़ (निकाल) पाता है. दिन भर की मेहनत के बाद हम सब के हाथ खराब हो जाते थे. अगले दिन खेत में मजदूरी करना सब के बस की बात नहीं रहती थी. इस तरह से लागत बढ़ने लगी और हम लोग लहसुन को कम महत्त्व देने लगे.

‘समस्या के हल के लिए हम ने लहसुन को लोहे की राड या हलवानी से निकालना शुरू किया. इस से हमें काम में थोड़ीबहुत आसानी जरूर हुई, पर यह समस्या का अंत नहीं था. मुझे अंत तक पहुंचने की जल्दी थी. ‘तब मैं ने एक मशीन बनाई. नालीदार शेप वाले मजबूत ऐंगल से बनी हल जितनी ऊंची यह मशीन खूब लोकप्रिय हो रही है. इसे ट्रैक्टर के पीछे टोचिंग कर के इस्तेमाल किया जाता?है. यह एक एडजस्टेबल मशीन है. खेत में मिट्टी के हिसाब से लहसुन की गांठें कम या ज्यादा गहराई तक बैठती हैं, लिहाजा ट्रैक्टर से जोड़ कर इसे हल की तरह मनचाहे एंगल पर खेत में उतारा जा सकता?है. जमीन के भीतर रहने वाले हिस्से में एक आड़ी पत्ती (ब्लेड) लगी रहती?है, जिसे जमीनतल के समानांतर न रख कर थोड़ा टेढ़ा रखा गया?है. यह आड़ी पत्ती मजबूत लोहे की बनी होती है.

मशीन की पत्ती जमीन में 7-8 इंच या 1 फुट तक गहरी जाती?है और मिट्टी को नरम कर देती?है. इस से फायदा यह होता है कि लहसुन को ढीली पड़ चुकी मिट्टी से बाद में आसानी से इकट्ठा किया जा सकता है. लहसुन रहता मिट्टी के अंदर ही है, बाहर निकलने और धूप में खराब होने का अब डर नहीं है. पहले हाथ से लहसुन निकालने पर पूरे दिन में 1 लेबर 5 क्यारियों से लहसुन निकाल पाता था. गौरतलब है कि 1 बीघे में 100 क्यारियां होती हैं. इस मशीन के नतीजे चौंकाने वाले हैं. इसे ट्रैक्टर से जोड़ कर 1 बीघे का लहसुन महज 15 मिनट में उखाड़ लिया जाता है.

हाथ से लहसुन उखाड़ने के दौरान करीब 3 से 4 फीसदी लहसुन जमीन में ही रह जाता था. किसान या मजदूर चाहे कितना भी अनुभवी क्यों न हो, लहसुन टूट कर जमीन में रह ही जाता था. इस के अलावा पत्तों समेत उखाड़े जाने वाले लहसुन की कुलियों (गांठों) को खराब होने से बचाने के लिए तुरंत ही इकट्ठा कर के छाया में सुखाना पड़ता था. इस काम की मजदूरी भी देनी पड़ती थी. अब 1 लेबर 1 दिन में 1 बीघे यानी 100 क्यारियों में से लहसुन उखाड़ सकता है. इस मशीन से वक्त की बचत हुई है और दाम भी अच्छे मिलने लगे हैं. राजस्थान के कोटा में लहसुन ज्यादा होता है, इसलिए वहां इस मशीन की मांग ज्यादा है.

पहले हाथ से लहसुन निकालने पर उसे खराब होने से बचाने के लिए बोरी से ढक कर रखना पड़ता था. अब यह फायदा है कि लहसुन रहता तो जमीन में ही है, बस मिट्टी नर्म हो जाती है, इसलिए इसे जरूरत के मुताबिक निकाला जा सकता?है. इस मशीन की लागत 13000 से 15000 रुपए के बीच आती है. ज्यादा जानकारी के लिए किसान निम्न पते पर संपर्क कर सकते हैं:

मदन सांखला, मार्फत विजयलक्ष्मी इंजीनियरिंग वर्क्स, राम कुटिया के सामने, नयापुरा, मारवाड़ मथानिया 342305, जिला जोधपुर, राजस्थान. फोन : 09414671300.

खराब बालों को रिपेयर करें एलोवेरा से

यदि आपके बाल कमजोर हो गए हों, बहुत झड़ रहे हों या फिर बालों में रूसी हो गई हो तो आप एलोवेरा की सहायता से इस समस्या से निजात पा सकती हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि एलोवेरा ना सिर्फ  आपके बालों के लिये अच्‍छा है बल्‍कि इसे लगाने से चेहरे के मुंहासे भी दूर भाग जाते हैं. आज हम आपको एलोवेरा का फायदा बालों के लिये बताएंगे, तो अगर बालों को चमकदार और स्‍वस्‍थ्‍य बनाना है तो एलोवेरा का प्रयोग जरुर कीजिये.

हेयर मास्क

एलोवेरा विटामिन ई से भरा होता है इसलिये आप इसे अंडे,नींबू के रस या अपने हेयर औइल के साथ मिक्स कर के बालों में लगा सकती हैं.

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हेयर कंडीशनर

बाल चाहे जितने भी मजबूत हों,लेकिन फिर भी उनमें कंडीशनर जरुर लगाना चाहिये. सिर को शैंपू से धो लें,फिर उस पर एलोवेरा जैल सिर से टिप तक लगाएं और 15 मिनट तक छोड़ दें. इससे आपको अच्छा रिजल्ट मिलेगा.

हेयर स्प्रे

एक स्प्रे बोतल में 1 कप डिस्टिल्लड वाटर को 1 चम्मच एलोवेरा जैल के साथ मिक्स करें. इसे अपने बालों पर स्प्रे करें. आप पाएंगी कि आपके बाल बाउंस कर रहे होगें और उनमें एक नई चमक पैदा हो गई होगी.

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धर्म के नाम पर राष्ट्रप्रेम

असम में नागरिकता को ले कर चल रहे विवादों में सैकड़ों परिवारों को अधर में लटका दिया गया है. गृहमंत्री अमित शाह चाहे चिल्लाते रहें कि वे एक भी विदेशी को भारत की भूमि पर नहीं रहने देंगे, सरकार कहती रहे कि भारत शरणार्थियों का देश नहीं बनेगा, पर यह पक्का है कि आदमियों, औरतों और बच्चों को जानवरों की तरह न हांका जा सकता है, न हिटलर के तानाशाही कारनामों की तरह गैस चैंबरों में ठूंसा जा सकता है.

इस विवाद के चलते और कट्टरपंथियों की बढ़ती हिम्मत के कारण अब गोलाबारी, बलात्कार, अपहरण, छीनाझपटी आम हो गई है और इन के शिकार लोगों के अपने गुस्से को इजहार करने पर भी आपत्ति की जाने लगी है.

असम पुलिस ने एक कवि को गोली, भाला, त्रिशूल चलाने पर नहीं, एक साधारण सी कविता लिखने पर अरैस्ट वारंट जारी कर दिया. पोइट्री लिखने के आरोप में डाक्टर हाफिज अहमद सहित 8 अन्य रेहाना सुलताना, अब्दुर रहीम, अशरफुल हुसैन, अब्दुल कलाम आजाद, काजी सरोवर हुसैन, बनमल्लिका चौधरी, सलीम एम. हुसैन, करिश्मा हजारिका व फरहाद भुईयां के खिलाफ मुकदमे दर्ज कर लिए.

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इतने नाम इसलिए लिखे जा रहे हैं कि एक कविता पर पुलिस ने इतनों के खिलाफ कैसे प्राथमिकी दर्ज की.

मामला भारतीय दंड विधि की धाराओं 153ए, 295ए पर दर्ज किया गया. कविता में कवि या पढ़ने वालों के खिलाफ एक हिंदू ने मामला दर्ज किया और पुलिस आननफानन में गिरफ्तारी करने पहुंच गई. उच्च न्यायालय ने गिरफ्तारी पर रोक तो लगा दी पर थानों और अदालतों के चक्करों से अभी मुक्ति नहीं दी. शिकायतकर्ता घर पर बैठ कर बांसुरी बजाएगा, क्योंकि उसे अब न थाने में जाने की जरूरत है न अदालत में. वह गवाह न भी बने तो भी मामला वर्षों चलता रहेगा.

धर्म के नाम पर इस तरह का अत्याचार व अनाचार सदियों से हो रहा है और आज भी बंद नहीं हुआ है. धर्म के दुकानदारों को हर समय लगता है कि उन की पोल न खुल जाए इसलिए वे ईशनिंदा के खिलाफ बने कानूनों का इस्तेमाल करते रहते हैं. इस कविता में धर्म को तो नहीं लपेटा पर धर्म के आधार पर बने नैशनल सिटिजनशिप रजिस्टर के प्रति रोष जताया गया है. इस बात को कहना भी कट्टरवादियों को नहीं सुहाया और वे पुलिस की धमकियों का इस्तेमाल करने लगे हैं. वे नहीं चाहते हैं कि नागरिकता के एकतरफा कानून की कोई बात भी करे.

यही औरतों के हकों पर करा जाता है. जहां कोई औरतों पर धार्मिक अत्याचारों की बात करता है धर्म के धंधेबाजों को खतरा महसूस होने लगता है.

धर्म के नाम पर औरतों को रातरातभर जगाया जाता है. उन को नचवाया जाता है. सिर पर घड़े रख कर सड़कों पर चलवाया जाता है. उबाऊ तीर्थयात्राओं में हांका जाता है. आग के सामने बैठ कर घंटों तपाया जाता है. हर बार कहा जाता है कि यह करो वरना समाज से बाहर हो जाओ, घर में दुत्कार सहो. जो इन की पोल खोलने और निरर्थकता की बात करता है उसे देशद्रोही या टुकड़ेटुकड़े गैंग का हिस्सा घोषित कर दिया जाता है. रातदिन संदेश दिया जा रहा है कि किसी भी धर्म के हों चलेगी तो तिलक व दुपट्टाधारियों की ही.

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समाज का पुनर्निर्माण आज पहली आवश्यकता है पर हम अब फिर धर्म, जाति व भाषा की दड़बों सी जेलों में बंद होने लगे हैं. चाहे हमारी जेल एक ही हो पर अंदर हम सब सिर्फ अपनों की बैरकों में सुरक्षित हैं, यह समझाना शुरू कर दिया गया है. खुली बहस, नई सोच, आलोचनाओं, आपत्तियों, पुरानी मान्यताओं के खोखलेपन की कोई बात भी न करे. देश का विवेक और देश की बुद्धि कुछ हाथों में सिमट रही है. न दूसरे धर्मों, न दूसरी जातियों और न दूसरी पार्टियों के लोग अब आजादी महसूस कर सकते हैं. औरतों को ज्यादा नुकसान होगा जो उन की नौकरियों में घटती संख्या और पाखंड में बढ़ते दखल के रूप में दिखने लगा है.

सभ्यता औरतों के हकों के खिलाफ क्यों

आज भी किसी औरत से मिलते हुए पहला नहीं तो दूसरा सवाल यही होता है कि आप के पति क्या करते हैं? आज भी औरतों का अकेले होना न समाज को स्वीकार है और न ही कानून को. कानून भी बारबार पूछता है कि आप के पति कौन हैं, कौन थे और अगर नहीं तो पिता कौन हैं? एक आदमी से कभी नहीं पूछा जाता कि आप की पत्नी कौन है, क्या करती है?

इस मामले ने हमेशा ही औरतों को अकेला रखा है मानो यदि पति न हो तो पत्नी की सुरक्षा हो ही नहीं सकती. यह तब है जब निर्भया कांड में बलात्कार की शिकार के साथ एक पुरुष मित्र था यानी पुरुष का सान्निध्य औरत की शारीरिक सुरक्षा की गारंटी नहीं है. आजकल सोशल मीडिया पर सैकड़ों वीडियो वायरल हो रहे हैं, जिन में 3-4 भगवा गमछाधारियों ने लड़केलड़की को पकड़ कर लड़की का लड़के के सामने बलात्कार किया और लड़का कुछ न कर पाया.

घरों में चोरी होने पर अकसर ऐसे मामले ही ज्यादा होते हैं जब औरतों के साथ पूरा परिवार होता है. औरतों के साथ किसी पुरुष का होना कोई सुरक्षा की गारंटी नहीं है. सदियों से दलितों की औरतों का उन के पतियों के सामने अपहरण किया जाता रहा है. यहां तक कि हमारी धार्मिक कहानियों में सीता का अपहरण विवाहित होने के बावजूद हुआ था. इस के मुकाबले तो शूर्पणखा अच्छी थी जो अकेले जंगल में राम और लक्ष्मण के साथ प्रेम निवेदन कर सकी थी या हिडिंबा भीम के समक्ष अपनी इच्छानुसार बिना शर्म के संबंध बना सकी थी.

आज अकेली औरतों की संख्या निरंतर बढ़ रही है पर समाज का दृष्टिकोण नहीं बदल रहा और कानून भी बहुत धीरेधीरे बदल रहा है. काफी जद्दोजहद के बाद कानूनी दस्तावेजों में पिता के स्थान पर मां का नाम लिखने की अनुमति मिली है पर अभी भी पत्नी की पहचान पति से ही हो रही है.

विवाह न औरतों की खुशी के लिए होता रहा है न उन की इच्छा पर. यह तो समाज का दबाव है कि पिता बेटी से छुटकारा पाना चाहता है. यदि समाज का दबाव न हो तो पिता बेटी को जिस से मरजी शादी की अनुमति दे देता पर भारत से ले कर तुर्की, इजिप्ट और यहां तक कि चीन और अमेरिका में भी पिताओं को यह चिंता रहती है कि कहीं बेटी का मनचाहा उन के परिवार व स्तर का नहीं हुआ तो क्या होगा.

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आदमियों को छूट है कि वे कुछ दिन खिलवाड़ कर लें किसी भी लड़की के साथ और कहते रहें कि वे सीरियस नहीं हैं पर अगर लड़की किसी के साथ 4 बार चाय भी पी ले तो मांबाप पीछे पड़ जाते हैं कि लड़का शादी लायक मैटीरियल है या नहीं? अकेली औरतों का वजूद ही नहीं है.

जेम्स बौंड की सीरीज में अब तक जेम्स बौंड 007 केवल गोरा पुरुष होता था. अब बदलाव की हवा को देखते हुए एक अश्वेत युवती को जेम्स बौंड की तरह प्रस्तुत किया जा रहा है जैसे हमारे देश में नाडिया को कालीसफेद फिल्मों के युग में एक बार किया गया था.

अकेली औरतों की दुर्दशा सभ्य समाजों में ज्यादा हुई है. दुनियाभर में आदिवासी समाजों में औरतों को बराबर के हक मिले हैं. सभ्यता औरतों के हकों और उन के व्यक्तित्व पर भारी पड़ी है, जहां वे गुलाम और खिलौना बन कर रह गई हैं.

सरकार मंदिरों के चढ़ावे का भी हिसाब ले जगन्नाथपुरी, तिरुपति बालाजी, पद्मनाभस्वामी जैसे मंदिरों की संपत्ति कितनी है, इस के बारे में केवल अंदाजा ही लगाया जा सकता है. किसी को अनुमति ही नहीं है कि उसे आंकने की कोशिश करे. वैसे भी गिनती कर के करना क्या है, क्योंकि यह सारी संपत्ति चंद पुजारियों की है जो खुद नहीं जानते कि वे इस बिना कमाई के पैसे का क्या कर सकते हैं.

मंदिरों को आज से नहीं हजारों सालों से भरपूर चंदा मिलता रहा है. धर्म की सफलता ही इस बात में रही है कि इस ने घरों से, औरतोंबच्चों के मुंह से निवाला छीनने में कसर नहीं छोड़ी. मिस्र के विशाल मंदिर और पिरामिड इस बात के सुबूत हैं कि घरों की मेहनत को निठल्ले पुजारियों के कहने पर राजाओं ने निरर्थक चीजों पर बरबाद कर दिया.

आज हम इन मंदिरों को देख कर आश्चर्य प्रकट कर लें पर सवाल उठता है कि इतनी मेहनत कराई क्यों गई थी? इस से जनता को क्या मिला?

जैसे तब के मंदिरों को जम कर लूटा गया और हर राजा विशाल और विशाल मंदिर बनाता रहा कि उस में चोरी न हो पाए ऐसे ही आज के मंदिरों में चोरियों का डर लगा रहता है. किसी भी मंदिर में चले जाएं, वहां बढि़या से बढि़या तिजोरी मिलेगी जिस पर 8-8, 10-10 ताले लगे होंगे. मोटी स्टील की बनी इन हुंडियों में डाले पैसे पर न तो चोरों से भरोसा है न पुजारियों से. आज भी हर मंदिर चढ़ावे का हिसाब देने से कतराता है.

जगन्नाथपुरी मंदिर के रत्न भंडार की चाबियां सालभर से गायब हैं और उच्च न्यायालय व सरकार दोनों माथापच्ची कर रहे हैं कि चाबियां कौन ले गया, क्यों ले गया और कैसे डुप्लिकेट चाबियों से काम चलाया जा रहा है जबकि डुप्लिकेट चाबियां होनी ही नहीं चाहिए.

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होना तो यह चाहिए कि मंदिर अगर सचमुच में किसी भगवान का केंद्र है तो वहां न संपत्ति होनी चाहिए और न ही कोई निर्माण. अगर प्रकृति का निर्माता हजारोंलाखों दूसरी चीजें बना सकता है तो अपने बनाए इंसान से अपनी पूजा करवाने के लिए मंदिर क्यों बनवाता है? मंदिर तो सदियों से चली आ रही धार्मिक चाल का परिणाम हैं जहां लोगों को इकट्ठा कर के खुशीखुशी लूटा जाता है. लोगों को कच्चे घरों में भूखा रख कर पक्के मंदिरों में भरपूर खाने के साथ ला कर सिद्ध किया जाता है कि देखो, मंदिर कितना शक्तिशाली है.

औरतों को इसीलिए धर्म का अंधा बनाया जाता है ताकि वे अपना और बच्चों का पेट काट कर मंदिर में तनमन और धन तीनों दें. इस का हिसाब कोर्ट न ले.

जब पत्नी हो प्रैगनेंट तो क्या करे पति

आज के दौर में ज्यादातर पतिपत्नी अकेले रहते हैं. ऐसे में गर्भावस्था के दौरान पत्नी की देखभाल और प्रसव यानी डिलिवरी बाद नवजात की देखभाल कठिन काम हो जाता है. इस हालात से निबटने के लिए पति को मानसिक रूप से तैयार रहना चाहिए. उसे प्रसव के दौरान की कुछ जानकारी भी होनी चाहिए. इस बारे में लखनऊ के मक्कड़ सैंटर की डाक्टर रेनू मक्कड़ ने कुछ टिप्स दिए. आंकड़े बताते हैं कि जिन औरतों के मामलों में गर्भावस्था के दौरान सावधानी नहीं बरती जाती, समय पर इलाज नहीं कराया जाता उन औरतों में प्रसव के दौरान रिस्क बहुत बढ़ जाता है. गर्भावस्था के दौरान औरतों के शरीर में तमाम तरह के बदलाव होते हैं, जिस से शरीर में भी कई तरह के बदलाव होते हैं. समय पर इन बदलावों को डाक्टर से बता कर सलाह लेनी चाहिए.

आने वाले संकट का मुकाबला करने के लिए शरीर को तैयार कर लिया जाए ताकि शरीर किसी भी गंभीर बीमारी के जाल में न फंसे. खतरे से न घबराएं

गर्भावस्था के दौरान कुछ लक्षण कभी नजरअंदाज नहीं करने चाहिए. योनि, गुदा और निपल से थोड़ा सा भी खून रिसता दिखाई दे तो इसे नजरअंदाज नहीं करना चाहिए. अगर चेहरे और हाथों में सूजन हो या किसी तरह का कोई उभार हो तो डाक्टर से जरूर बात करें. तेज सिरदर्द भी गर्भावस्था में किसी न किसी गंभीर बीमारी का संकेत देता है. अगर आंखों के सामने अंधेरा छा जाता है या फिर धुंधला दिखाई देता है तो इसे भी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए. पेट में तेज दर्द, कंपकंपी और बुखार भी खतरनाक संकेत माने जाते हैं.

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योनि से तरल पदार्थ का निकलना भी खतरे का संकेत है. पेट में बच्चे का घूमना पता न चले तो भी मामला खतरनाक हो सकता है. जब हो जाए बच्चा

कई बार ठीकठाक प्रसव होने के बाद भी कुछ परेशानियां हो जाती हैं. प्रसव के बाद औरत को सामान्य होने में कुछ समय लगता है. सब से बड़ी समस्या योनि से खून का बहना होता है. आमतौर पर यह सामान्य बात होती है मगर कभीकभी इस में किसी दूसरी बीमारी के लक्षण भी छिपे होते हैं.

इसलिए प्रसव के बाद भी अगर इस तरह की कोई परेशानी आए तो उसे नजरअंदाज नहीं करना चाहिए.

शिशु का जन्म औपरेशन से हो या फिर सामान्य रूप से शरीर प्रसव के बाद गैरजरूरी म्यूकस, प्लेसैंटल टिशूज और खून को बाहर कर देता है. इसे लोकिया कहा जाता है. यह प्रसव के 2-3 सप्ताह तक चलता है. कभीकभी

6 सप्ताह तक भी चलता है. इस परेशानी को कम करने के लिए आराम करें. खड़े रहने और चलने से परहेज करें. खून को सोखने के लिए पैड्स का प्रयोग करें. यह अपनेआप ठीक हो जाता है. अगर खून काफी मात्रा में बहता हो, बुखार और ठंड लगे, डिस्चार्ज में कोई गंध हो तो डाक्टर से संपर्क करें. पोस्टपार्टम हैमरेज प्रसव के बाद की गंभीर किस्म की बीमारी होती है, जिस में सामान्य से अधिक खून बह जाता है. इस का कारण प्लेसैंटा का पूरी तरह से बाहर न निकलना, उसे जबरन बाहर खींचा जाना, प्रसव के दौरान गर्भाशय, सर्विक्स या योनि पर चोट लगने से ऐसा होता है. हमारे देश में प्रसव के चलते होने वाली मौतों में 10 फीसदी इसी कारण से होती है.

पोस्टपार्टम हैमरेज का पता चलते ही डाक्टर को अपनी परेशानी के बारे में बताना चाहिए. इस दौरान शरीर की सफाई का खास खयाल रखें. लगातार बुखार बना रहे तो यह किसी इन्फैक्शन का कारण ही होता है. इसे नजरअंदाज न करें. स्तन में गांठ या दूध पिलाने में दर्द हो तो भी डाक्टर से सलाह लेनी होती है. अनचाहे गर्भ को रोकने के लिए गर्भनिरोधक साधनों का इस्तेमाल करें. यह न सोचें कि जब तक बच्चे को दूध पिलाएंगी तब तक गर्भ नहीं ठहरेगा.

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नागरिकता कानून : विरोध का साया, क्रिसमस के बाद नये साल पर भी छाया

नागरिकता कानून के विरोध से बिगड़े माहौल से शौपिंग और पार्टीज का उल्लास क्रिसमस पर नजर नही आया. अब नये साल का उल्लास और विंटर शौपिंग भी खतरे में नजर आ रही है. क्रिसमस से नये साल के बीच चलने वाला विंटर फेस्टिवल सीजन भी बिजनेस के लिए अच्छा नहीं दिख रहा है. मौल्स से लेकर दुकान तक सब खाली है. होटल और लाउंज नाममात्र की पार्टी कर रहे है. जिनको लेकर लोगों में उल्लास नहीं दिख रहा है.

नागरिकता कानून के विरोध के आन्दोलन की छाया क्रिसमस के बाद अब नए साल के उल्लास को भी फीका करेगी. उत्तर प्रदेश में 19 दिसम्बर के बाद 27 दिसम्बर तक केवल कुछ ही घंटों के लिये इंटरनेट की सुविधा बहाल की गई है. ऐसे में क्रिसमस की तमाम पार्टी और आयोजन प्रभावित हुये. प्रदेश की राजधानी लखनऊ में 80 फीसदी से अधिक कार्यक्रम स्थगित हो गये. जो कार्यक्रम आयोजित हुये उनमें भी लोगों की उपस्थित बेहद कम रही. 25 दिसबर से इंटरनेट बहाल हुआ तो लोगों को लगा कि अब हालात सामान्य हो जायेंगे जिससे वह नया साल उल्लास पूर्वक मना पायेंगे. 26 दिसम्बर से ही फिर से इंटरनेट बंद हो गया जिसकी वजह से लोगों में दहशत का माहौल कायम हो गया है. अब लोग मान रहे हैं कि नये साल पर भी सुरक्षा का हवाला देकर इंटरनेट सेवायें बाधित होती रहेगी. इसका असर केवल आपसी बातचीत पर ही नहीं पड़ता लोगों में मानसिक रूप से प्रभाव पड़ता है.

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नये साल पर पार्टियों का आयोजन करने वाले लोग डरे हुये है कि लोग रात में पार्टी में हिस्सा लेने आयेगे भी या नहीं. ऐसे में बड़े होटल और लाउंज में नये साल को लेकर कोई बड़े आयोजन का प्लान नहीं बन रहा है. आमतौर पर क्रिसमस से लेकर नये साल के बीच एक उल्लास का महौल बन जाता था. जिसमें कई आयोजन होते रहते थे. बड़े होटलों की पार्टियों में फिल्म स्टार से लेकर बड़े बड़े सेलेब्रेटी हिस्सा लेने आते थे. इसका प्रबंध पहले से शुरू हो जाता था. आज के दौर में होटल बड़े आयोजन की जगह पर केवल हल्काफुल्का सेलीब्रेशन ही प्लान कर रहे है. आयोजक कहते हैं कि हमें यह नहीं पता कि नये साल के समय कैसा माहौल रहेगा ? दूसरे जनता के मन में डर है. क्रिसमस के आयोजन केवल खानापूर्ति भर रहे. वैसे ही नये साल पर भी आयोजन के नाम पर खाना पूर्ति ही होगी.

असल में दशहरा से दीवाली तक के फेस्टिवल सीजन के बाद क्रिसमस से नये साल के बीच दूसरा फेस्टिवल सीजन आता है. कारोबारियों को भी उम्मीद होती है कि लोग इसमें उल्लास पूर्वक रहेंगे. जिसमें बाजार में खरीददारी बढ़ेगी. विंटर सीजन की सेल से लोगों को मुनाफा हो जाता था. नागरिकता कानून के विरोध में जब आन्दोलन शुरू हुये और उसको दबाने के लिये सरकार ने जिस तरह से धरपकड, जुर्माना वसूली और पुलिस के साथ मारपीट का जो माहौल बना उससे लोग दहशत में आ गये हैं.

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उसके उपर इंटरनेट की बंदी ने डर को हवा दे दी है. ऐसे में मौल्स और दुकानों में लोगों के जाने वालों की संख्या घट गई है. क्रिसमस में यह माहौल बना रहा. अब नये साल के रंग में भी भंग पड़ रहा है. बाजार के लोग मान रहे हैं कि क्रिसमस की ही तरह नये साल का उल्लास भी नागरिकता कानून की भेंट चढ़ जायेगा.

नक्सली और भूपेश बघेल आमने-सामने

छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार आने भूपेश बघेल के मुख्यमंत्री बनने की शपथ  के साथ “छत्तीसगढ़ सरकार और नक्सली आमने-सामने हैं ” एक तरफ छत्तीसगढ़ सरकार की मंशा नक्सलवाद को समूल नष्ट करने की है दूसरी तरफ नक्सलवाद बुझते दिए की तरह कुछ ज्यादा ही फड़फड़ाने लगा है. अब तो यह समय ही बताएगा कि नक्सलियों की देशभर में सबसे बड़ा संघात सहने वाली कांग्रेस पार्टी, छत्तीसगढ़ में सरकार बनाने के बाद क्या नक्सलवाद को खत्म कर पाएगी या नक्सलवाद अजेय बन करदेश की राजनीति को भी आंख दिखाता रहेगा. सनद रहे कि कांग्रेस ने झीरम घाटी कांड में नक्सलियों के हाथों अपने बड़े नेताओं को खोया है  मई 2014 का वह समय  था जब झीरम घाटी में एक तरह से कांग्रेसी नेताओं को नक्सलियों ने चारों तरफ से घेर कर बुरी तरह गोलियों से भून डाला था. शायद यह देश की एक सबसे बड़ी घटना थी. जिसमें कांग्रेस पार्टी ने अपने प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार पटेल उनके पुत्र दिनेश पटेल, विद्याचरण शुक्ल जैसे कद्दावर नेता जो कभी नेहरू और इंदिरा गांधी के साथ काम कर चुके थे. साथ ही महेंद्र कर्मा जिन्हें बस्तर टाइगर कहा जाता है और जो सलवा जुडूम के प्रवर्तक थे जैसे लोगों को नक्सलियों ने मार डाला था. वह दंश क्या कांग्रेस भूल सकती है? ऐसे में लाख टके का सवाल यह है कि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार बनने के बाद भूपेश बघेल ने नक्सलवाद को खत्म करने का संकेत दिया है?
नक्सलवाद अंतिम सांसे ले रहा!

जिस तरह छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद पनपा है वह आश्चर्यजनक है.उससे भी बड़ी बात यह है कि आने वाले दिनों में नक्सलवाद नाम की कोई चिड़िया भी कभी थी यह भी लोग सवाल पूछने लगेंगे. क्योंकि जैसी परिस्थितियां बन रही है उससे स्पष्ट आभास मिलता है कि छत्तीसगढ़ सरकार ने एक अल्टीमेटम जारी कर दिया है कि नक्सलवाद को समाप्त कर दिया जाए नक्सलियों को छत्तीसगढ़ में पूरी तरीके से कुचला जा रहा है इधर नक्सलवादी भी अपने उफान पर आ गए हैं और अपनी जान बचाने के लिए बारंबार हमले घात प्रतिघात  कर रहे हैं. सरकार की बंदूक और नक्सलियों के बंदूक चल रही है अब देखना यह होगा कि आने वाले समय में क्या नक्सलवाद सरकार के सामने घुटने टेक देगा या सरकार उसका प्रतिरोध के साथ समूल नष्ट कर देगी. क्योंकि भूपेश बघेल सरकार किसी भी हालत में नक्सलवाद को छत्तीसगढ़ में फूटी आंख भी देखना नहीं चाहती जो दंश, जो दर्द, जो त्रासदी   कांग्रेस पार्टी ने सही है उसे कांग्रेस भला कैसे बढ़ा सकती है? यही कारण है कि आए दिन नक्सली मारे जा रहे हैं या फिर नक्सलियों से अब समर्पण  कराया जा रहा है.दूसरी तरफ नक्सली भी लगातार हमले कर रहे हैं और इस हमलों में अनेकों लोग मारे जा रहे हैं.

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खंदक की लड़ाई जारी है
“बने पुलिस मित्र, तो मिलेगी मौत.”
नक्सल भमरागड़ एरिया कमेटी ने  एक हत्या की जिम्मेदारी लेते हुए पर्चा भी फेंका . जिसमें ग्रामीण को पुलिस का मित्र बताया है और कहा है कि पुलिस के बहकावे में मत आए. वरना सभी को मौत की सजा मिलेगी. हालांकि नक्सल पर्चा कॉपी वाले पेपर पर लिखकर फेंका गया है, जिससे फर्जी नक्सल हत्या भी हो सकती है. लेकिन अभी तक इसकी पुष्टि नहीं हुई है. इस परिप्रेक्ष्य में देखें तो छत्तीसगढ़ का बस्तर अंचल नक्सलियों का गढ़ है और यहां सरकार की बंदूक और नक्सलियों की बंदूक आमने-सामने हैं एक तरह से खंदक की लड़ाई चल रही है लेकिन कुल मिलाकर ही कहा जा सकता है कि सरकार की बंदूक के सामने नक्सली कहीं नहीं टिकेंगे  और अंततः अगर इसमें कोई बड़ी राजनीति नहीं हुई तो नक्सलियों का समाप्त होना तय है. यह खंदक की लड़ाई,सूत्रों के अनुसार एक तरह से अंतिम मोड़ पर है. नक्सली अब हत्याएं करने लगे हैं और लोगों को आगाह कर रहे हैं कि पुलिस का मुखबिर बनना तुम्हारे लिए कितना खतरनाक हो सकता है उलिया  गांव  के  रंजीत तिग्गा की मौत ऐसे ही कई प्रश्न खड़े करती है.
इस संदर्भ में  बस्तर के पखांजूर एएसपी राजेन्द्र जायसवाल का कथन समझने के लिए पर्याप्त है-” उलिया गांव के रहने वाले रंजीत तिग्गा की नक्सलियों ने हत्या कर दी. घटना की जानकारी मिलने पर बांदे पुलिस की टीम उलिया गांव के लिए रवाना हो गई  घटना में शामिल लोगों की पहचान कर कड़ी कार्रवाई की जाएगी.” एएसपी का कहना है कि मृतक रंजीत तिग्गा का पुलिस से कोई लेना देना नहीं था, निर्दोष ग्रामीण की हत्या कर नक्सली उसे पुलिस का आदमी बता देते हैं.

इधर उलिया गांव में नक्सली वारदात से ग्रामीणों में दहशत का माहौल है. वहीं मृतक के परिजनों का रो-रोकर बुरा हाल है.

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ग्रामीणों को नक्सली भयभीत कर रहे
नक्सलियों ने ग्रामीण को पुलिस मित्र बताकर दर्दनाक मौत दी है. दरअसल इसके पीछे नक्सलियों का यह मनोविज्ञान है कि लोगों में नक्सलियों के खिलाफ व्यापक भय फैल जाए और कभी भी  गांववाले  पुलिस की सहायता ना करें इससे नक्सलियों को एक सुरक्षा कवच मिलने की संभावना है. घटना के बाद इलाके के बीच सड़क में ग्रामीण की भीड़ इकठ्ठा हो गई . साथी ग्रामीण की हत्या से गांव के लोग आक्रोशित हो उठे . मृतक ग्रामीण का नाम रंजीत तिग्गा  (24 वर्ष) है ऐसी अनेक घटनाओं के बाद यह कहा जा सकता है कि नशा बाद अब अपनी समाप्ति के मुहाने पर खड़ा है अगर छत्तीसगढ़ सरकार एक दृढ़ संकल्प के साथ आगे बढ़ती है तो छत्तीसगढ़ से नक्सलवाद समाप्त हो जाएगा.
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