Download App

महाराष्ट्र : पिछड़ी शिवसेना ने पछाड़ा भाजपा को

महाराष्ट्र का घटनाक्र्रम केवल एक राजनीतिक ड्रामा नहीं था बल्कि इस में इतिहास की भी झलक साफसाफ दिखी. अब सारे सूत्र उस वर्ग के हाथ में हैं जो सदियों से पंडापुरोहितवाद से त्रस्त है. उस वर्ग ने महाराष्ट्र में भाजपा के अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा रोक लिया है.

‘अंत भला तो सब भला’ की तर्ज पर महाराष्ट्र का सियासी ड्रामा आखिरकार 28 नवंबर की शाम खत्म हुआ, जब शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने महाराष्ट्र के 18वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली. लेकिन यह अंत एक ऐसा प्रारंभ ले कर भी आता दिख रहा है जिस का गहरा संबंध महाराष्ट्र के इतिहास, जातिगत लड़ाइयों और समाज के अलावा धर्म से भी है.

यह ड्रामा, दरअसल, इतिहास का दोहराव भी है और इस मिथक को भी तोड़ गया कि सत्ता हमेशा सवर्णों या ब्राह्मणों के हाथ में ही रहेगी और जैसा पंडेपुजारियों और पुरोहितों को पूजने वाले चाहेंगे, इस बार या हर बार वैसा ही होगा.

क्या था ड्रामा, क्या थे इस के माने और कैसे विपरीत विचारधारा वाले 3 दल शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस ने एकसाथ आ कर सब को चौंका दिया, इस सवाल का जवाब महाराष्ट्र के इतिहास से मिलता है.

छत्रपति शिवाजी को महाराष्ट्र के लोग भगवान की तरह पूजते हैं जिन से संबंधित यह तथ्य हर कोई जानता है कि वे हिंदू शासन की नींव रखने वाले पहले शासक थे जिन्होंने पहले मुगलों और फिर अंगरेजों के खिलाफ कई अहम युद्ध कर हिंदू समाज के सभी तबकों को एकजुट किया था.

ये भी पढ़ें- ‘नोटबंदी’ से भी बड़ी है त्रासदी ‘नेटबंदी’

लेकिन शासक होने के बाद भी वे तत्कालीन ब्राह्मणों की नजर में राजा नहीं थे क्योंकि ब्राह्मण उन्हें शूद्र मानते थे. तब समाज पर ब्राह्मणवादी ताकतों का दबदबा था और उन की मरजी के बिना पत्ता भी नहीं हिलता था. रूढि़यां, कुरीतियां, अंधविश्वास, जातिगत भेदभाव और शोषण चरम पर थे और खुद को ईश्वरीय दूत और पूजनीय बताने वाले ब्राह्मणों की हरदम, मुमकिन कोशिश इन्हें बनाए और बढ़ाए रखने की होती थी जो उन की रोजीरोटी थी और जातिगत तौर पर उन्हें दूसरों से श्रेष्ठ साबित भी करती थी.

महाराष्ट्र और शिवाजी में दिलचस्पी रखने वाले बेहतर जानते हैं कि वे पहले मराठा थे जिस ने मुगल शासक औरंगजेब को पराजित कर अपना एक स्वतंत्र राज्य स्थापित किया था, लेकिन दिक्कत यह थी कि उन का विधिवत राज्याभिषेक नहीं हो पा रहा था. वह सिर्फ इसलिए कि ब्राह्मण उन्हें शूद्र या पिछड़ा, कुछ भी कह लें, मानते थे और यह बात शास्त्रसम्मत नहीं थी कि कोई छोटी जाति वाला राजा बने. अगर ऐसा हो जाता तो उन की दबंगई मिट्टी में मिल जाती.

समाज ब्राह्मणों का मुहताज था, इसलिए शिवाजी को हिंदू मान्यताओं व परंपराओं के मुताबिक राजा नहीं माना जा रहा था. ब्राह्मणों ने उन का राजतिलक करने से मना कर दिया था. शिवाजी बहादुर ही नहीं, बल्कि बुद्धिमान भी थे. सो, उन्होेंने ब्राह्मणों को ही हथियार बना कर खुद का राज्याभिषेक उन्हीं से करवा लिया. जातिवादी व्यवस्था से निकलने और तोड़ने का इस से कारगर व बेहतर रास्ता कोई और था भी नहीं.

शिवाजी ने काशी के जानेमाने पुरोहित गागाभट्ट को बुलावा भेजा जिन्होंने यह साबित कर दिया कि शिवाजी शूद्र या पिछड़े नहीं, बल्कि राजस्थान के सिसोदिया वंश के वंशज हैं जोकि एक क्षत्रिय जाति है. इस के बाद समारोहपूर्वक पूरे धूमधड़ाके से शिवाजी का राज्याभिषेक हो गया. ब्राह्मणों को इफरात से दानदक्षिणा मिल गई थी.

शिवाजी की जाति को ले कर विवाद आज भी होते रहते हैं. साल 2016 में सतारा के साहित्य सम्मेलन में एक दलित लेखिका प्रज्ञा पवार ने शिवाजी को शूद्र कहा था. तब खासा बवाल मचा था और प्रज्ञा को सम्मेलन बीच में छोड़ कर जाना पड़ा था. इसी तरह इसी साल जून में अभिनेत्री पायल रोहतगी ने भी शिवाजी की जाति पर टिप्पणी करते उन्हें शूद्र किसान परिवार का बताया था, तब भी बवंडर मचा था. इन पंक्तियों पर भी कुछ को आपत्ति हो सकती है पर इतिहास को अपनी मरजी से तोड़ामरोड़ा भी नहीं जा सकता.

इन और इस तरह के फसादों से जाहिर होता है कि जातिवाद अभी भी खत्म नहीं हुआ है. बात जहां तक शिवाजी की जाति की है, तो उस पर अब विवाद के कोई माने नहीं. वैसे  इतिहासकार भी इस संवेदनशील मुद्दे पर दोफाड़ हैं. एक इतिहासकार प्रोफैसर अब्दुल कादिर मुकद्दस के मुताबिक, शिवाजी के दौर में मराठा प्रभुत्वशाली समुदाय था, लेकिन ज्यादातर लोग निजामशाही में काम करते थे. उन से पहले मराठा समुदाय में किसी ने राजा बनने की कोशिश नहीं की थी.

1857 के स्वाधीनता संग्राम और विनायक दामोदर सावरकर के इतिहास पर लिखने वाले प्रोफैसर शेषराव मोरे के मुताबिक, पहले वर्ण को व्यवसाय के तौर पर बांटा गया, पर बाद में 2 ही वर्ण माने गए. एक था ब्राह्मण और दूसरे तीनों को एक श्रेणी में शूद्र माना गया.

यही तो अब हुआ था

विवादों से परे एक बात शीशे की तरह साफ है कि ब्राह्मणवाद पहले भी शबाब पर था और आज के लोकतांत्रिक युग में भी है. फर्क इतनाभर आया है कि लोकतंत्र के चलते अब गैरब्राह्मणों की आवाज पहले की तरह कुचली नहीं जा सकती और न ही पहले की तरह उन्हें धर्मग्रंथों के आधार पर दबा कर रखा जा सकता है.

महाराष्ट्र का इतिहास ही नहीं बल्कि वर्तमान भी इस बात की पुष्टि करता है कि अब शिक्षित होते और मुख्यधारा में आते पिछड़ों की जागरूकता को आप चुनौती नहीं दे सकते, बल्कि उसे स्वीकार कर लेना ही एकमात्र विकल्प देश के आकाओं के पास बचा है.

24 अक्तूबर को जब महाराष्ट्र विधानसभा के नतीजे आए तो भाजपा शिवसेना गठबंधन ने 288 में से 161 सीटों पर जीत हासिल की. भाजपा को 105 और शिवसेना को 56 सीटें मिलीं. एनसीपी को 54 और कांग्रेस को 44 सीटें मिलीं.

उम्मीद की जा रही थी कि भाजपा व शिवसेना का गठबंधन सरकार बना लेगा, लेकिन विवाद उस वक्त उठ खड़ा हुआ जब शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने साफ कर दिया कि गठबंधन के 50-50 के फार्मूले के तहत मुख्यमंत्री शिवसेना का होगा. इधर भाजपा उस के ब्राह्मण चेहरे देवेंद्र फडणवीस के नाम पर अड़ गई थी कि मुख्यमंत्री वही होंगे और उस ने ऐसा कोई वादा नहीं किया था जैसा कि उद्धव ठाकरे कह रहे हैं.

इस विवाद को शुरू में मराठा राजनीति के सर्वमान्य चेहरे और एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने खामोशी से देखा व सम झा. मीडिया के पूछने पर बारबार वे यही कहते रहे कि उन्हें विपक्ष में बैठने का आदेश जनता ने दिया, इसलिए वे  विपक्ष में बैठेंगे.

भाजपा अध्यक्ष अमित शाह अब तक बेफिक्र थे जो बाद में उन की बड़ी गलतफहमी, जिसे नादानी कहना ज्यादा ठीक होगा, साबित हुई कि उद्धव ठाकरे भाजपा के बगैर सरकार नहीं बना पाएंगे, कुछ दिनों में ही उन की ठसक निकल जाएगी और फिर वे उन की शरण में आ जाएंगे. चाणक्य और सरकार बनाने व गिराने के पंडित माने जाने वाले अमित शाह को उस वक्त  झटका लगा जब शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के साथ आ कर सरकार बनाने की चर्चा शुरू हुई.

शिवसेना पर उस के जन्म से ही कट्टर हिंदूवादी होने का ठप्पा लगा है. लिहाजा, यह बात किसी के भी गले नहीं उतर रही थी कि ऐसा भी हो सकता है. बिलाशक, यह पूरब और पश्चिम के मिलने जैसी बात थी. मामला अधर में लटका रहा. भाजपा और उद्धव ठाकरे दोनों अपनीअपनी जिद पर अड़े रहे.

भाजपा की तरफ से यह दावा किया जाता रहा कि वह ही सरकार बनाएगी और मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ही होंगे. इसी तरह उद्धव ठाकरे भी अड़ गए थे कि चाहे कुछ भी हो जाए, मुख्यमंत्री तो कोई शिवसैनिक ही होगा.

ये भी पढ़ें- लखनऊ में दंगा प्रदर्शन कैसे बन गया फंसाद

यों बिगड़ी बात

बात एक नवंबर से तब बिगड़ी थी जब शिवसेना सांसद संजय राउत ने यह कहा कि शिवसेना अपने दम पर सरकार बना लेगी. इस के पहले शिवसेना भाजपा की वह पेशकश ठुकरा चुकी थी कि उसे उपमुख्यमंत्री पद दे दिया जाएगा.

2 नवंबर को महाराष्ट्र ही नहीं, बल्कि देशभर में हलचल हुई जब उद्धव ठाकरे ने फोन पर शरद पवार से बात की. फिर दूसरे ही दिन 3 नवंबर को संजय राउत ने यह दावा कर डाला कि उन के पास 170 विधायकों का समर्थन है. इस बयान को गंभीरता से लिया जाता, इस के पहले ही शरद पवार ने यह बयान दे डाला कि जिन के पास संख्या बल है उन्हें ही सरकार बनानी चाहिए.

यहीं से शरद पवार की भूमिका शक के दायरे में आने लगी कि आखिर वे चाहते क्या हैं. राजनीतिक विश्लेषकों ने उन्हें चाणक्य, चालबाज और खिलाड़ी कहना शुरू कर दिया. 5 नवंबर को शिवसैनिकों ने मुंबई में उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाने के पोस्टर लगा दिए. यह बात, हालांकि 24 अक्तूबर से ही कही जा रही थी इसलिए लोगों ने सम झा यही कि पुत्रमोह उद्धव की जिद की वजह है.

6 नवंबर को शरद पवार ने फिर से पलटी मारते यह बयान दे डाला कि हम विपक्ष में बैठेंगे, जनता ने भाजपा व शिवसेना को सरकार बनाने का जनादेश दिया है.

बिलाशक, शरद पवार सियासी चालें ही चल रहे थे जिन का मकसद यह नापातोली करना भी था कि उद्धव ठाकरे वाकई गंभीर हैं या फिर भाजपा को हड़काने के लिए उन के नाम का इस्तेमाल कर रहे हैं. यानी, वे शिवसेना प्रमुख को ठोकबजा कर परख रहे थे और उकसाने के साथ तरसा भी रहे थे. तजरबेकार और सयाने इस नेता की यह आशंका अपनी जगह ठीक थी कि कहीं उद्धव ठाकरे हिंदुत्व के नाम पर जज्बाती हो कर भाजपा की बात न मान लें या फिर भाजपा ही उन्हें रोकने के लिए उद्धव ठाकरे की मांग न मान ले.

खेल अब किसी जासूसी उपन्यास जैसा दिलचस्प और सस्पैंसभरा हो चला था क्योंकि 8 नवंबर को सरकार का कार्यकाल खत्म हो रहा था. उस दिन तक आम लोग यह उम्मीद लगाए बैठे थे कि उद्धव ठाकरे कोई और रास्ता न निकलते देख भाजपा की बात मान लेंगे और गठबंधन दूसरी बार सरकार बना लेगा.

7 नवंबर को संजय राउत ने यह कहते इन उम्मीदों पर पानी फेर दिया कि भाजपा को ऐलान कर देना चाहिए कि वह सरकार बनाने में सक्षम नहीं है. सदन में पता चल जाएगा कि हमारे पास क्या आंकड़े हैं.

8 नवंबर को  देवेंद्र फडणवीस ने मन मारते हुए मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया तो तसवीर साफ हो गई कि शिवसेना-भाजपा गठबंधन सरकार नहीं बना रहा है. संवैधानिक औपचारिकता निभाते हुए राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने बहैसियत सब से बड़ा दल भाजपा को सरकार बनाने का आमंत्रण दिया.

भाजपा ने सरकार बनाने से इनकार कर दिया. इस के बाद राज्यपाल ने शिवसेना और एनसीपी को भी सरकार बनाने का न्योता बारीबारी से दिया. लेकिन, चूंकि 144 का आंकड़ा किसी के पास नहीं था, इसलिए सभी ने सरकार बनाने में असमर्थता जाहिर कर दी. 12 नवंबर को उम्मीद के मुताबिक राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया.

फिर यों बनी बात

अनिश्चितता का माहौल और गहरा हो उठा लेकिन भीतर ही भीतर एक नया विचार और गठबंधन लगभग आकार ले चुका था. 15 नवंबर को पहली बार यह बात सामने आई कि शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस मिल कर सरकार बनाएंगे और इस बाबत फार्मूला तैयार हो चुका है कि मुख्यमंत्री शिवसेना का ही होगा.

?लेकिन शरद पवार अभी भी पूरी तरह निश्ंिचत और आश्वस्त नहीं थे. लिहाजा, उन्होंने शिवसेना से एनडीए से अलग होने को कहा तो किसी भी कीमत पर सरकार बनाने की जिद लिए बैठे उद्धव ठाकरे ने उन की यह बात भी मान ली. 16 नवंबर को संजय राउत ने घोषणा कर डाली कि अब सरकार बनाने की औपचारिकताएं ही शेष रह गई हैं.

अब तक की उठापटक में कांग्रेस की भूमिका एक तटस्थ दर्शक की सी थी. लेकिन गठबंधन के आकार लेते ही वह सक्रिय हो गई. यह वह वक्त था जब शरद पवार उद्धव ठाकरे को ले कर पूरी तरह निश्ंिचत और आश्वस्त हो चुके थे. लेकिन वे यह भी सम झ रहे थे कि भाजपा इतनी आसानी से हार मानने वाली नहीं. लिहाजा, वे भागेभागे सोनिया गांधी के पास पहुंचे. अब गेंद सोनिया गांधी के पाले में थी. महाराष्ट्र में गठबंधन सरकार बनाने की उन्होंने इजाजत या सहमति, कुछ भी कह लें, दे दी तो बात आगे बढ़ी. पर तमाम चर्चाएं हां और न के बीच लटकी रहीं या शरद पवार ने जानबू झ कर लटकाए रखी, एक ही बात है.

इसी बीच, शरद पवार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से दिल्ली में मिले तो सस्पैंस और गहरा उठा. सारे देश ने एक स्वर में स्वीकारा कि शरद पवार 2 तरफ खेल रहे हैं और वे कभी भी भाजपा को समर्थन दे कर उस के साथ सरकार बना सकते हैं.

हालांकि अब तक गठबंधन सरकार के तमाम फार्मूले तैयार हो चुके थे लेकिन इस मुलाकात ने शरद पवार को फिर कठघरे में ला खड़ा कर दिया. इस में कोई शक नहीं कि शरद पवार नरेंद्र मोदी के पास मौसम का मिजाज पूछने नहीं गए होंगे. इस बात में दम है कि वे अपनी बेटी सुप्रिया सुले को केंद्र में मंत्री पद दिलाना चाहते थे जिस से उन के भतीजे अजित पवार महाराष्ट्र की राजनीति संभाले रहें और परिवार में फूट न पड़े.

भगवा खेमे ने तो प्रचार भी शुरू कर दिया कि भाजपा ही सरकार बनाएगी और एनसीपी उस का हिस्सा होगी. लेकिन 22 नवंबर को फिर सभी को चौंकाते हुए शरद पवार ने शिवसेना और कांग्रेस के नेताओं के साथ मीटिंग कर सरकार के गठन का खाका खींचने का ऐलान भी कर दिया कि सारी बातें तय हो चुकी हैं और मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ही होंगे.

ये भी पढ़ें- मुख्यमंत्री ने संभाला भाजपा का विद्रोह

तय यह हुआ कि 23 नवंबर को तीनों दलों के नेता राज्यपाल के पास जा कर सरकार बनाने का दावा पेश करेंगे लेकिन 23 नवंबर की ही सुबह उस वक्त न केवल मुंबई और महाराष्ट्र बल्कि पूरे देश में सनाका खिंच गया जब अलस्सुबह लोगों को मालूम हुआ कि देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री और शरद पवार के भतीजे व एनसीपी विधायक दल के नेता अजित पवार को राज्यपाल ने उपमुख्यंत्री पद की शपथ दिला कर उन्हें 30 नवंबर तक बहुमत सिद्ध करने का समय दिया है.

चोरीचोरी चुपकेचुपके

यह देश के लोकतंत्र का बेहद शर्मनाक नजारा और काला दिन था जिस में संविधान की धज्जियां खुलेआम पूरी बेशर्मी से उड़ाई गईं. बहुमत न होने पर भी देवेंद्र फडणवीस द्वारा मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने पर भाजपा की खूब छीछालेदर हुई. एक बार फिर भक्तों ने मोदीशाह की जोड़ी को सरकार बनाने का वैद्यहकीम कह कर प्रचारित किया.

इस रात किसी दुश्मन देश ने सीमा पार से हमला नहीं किया था और न ही देश के अंदर कहीं आतंकियों ने बम फोड़े थे, बल्कि आधी रात को राज्यपाल ने राष्ट्रपति से महाराष्ट्र से राष्ट्रपति शासन हटाने के लिए पत्र लिखा और देररात ‘जाग’ रहे राष्ट्रपति ने इसे तड़के मंजूरी भी दे दी और सुबह गुपचुप तरीके से शपथ भी हो गई. यह जान कर महसूस हुआ कि शायद हालात इमरजैंसी से भी बदतर हो गए हैं और सत्तारूढ़ भाजपा मनमानी व तानाशाही पर उतारू हो आई है.

अजित पवार ने क्यों भाजपा से हाथ मिलाया, यह राज शायद ही कभी उजागर हो लेकिन आफत फिर से शरद पवार की आ गई जिन पर तरहतरह की उंगलियां उठने लगी थीं. शरद पवार ने सफाई दी लेकिन उन पर सिवा उद्धव ठाकरे के किसी ने यकीन नहीं किया. निस्संदेह इस भीषण वक्त में भी उद्धव ने पर्याप्त सम झदारी और धैर्य का परिचय दिया.

बाजी फिल्मी स्टाइल में एक बार फिर पलट गई और हर किसी ने मान लिया कि अब भाजपा बहुमत साबित कर देगी क्योंकि एनसीपी में नंबर 2 की हैसियत रखने वाले अजित पवार कम से कम 15-20 विधायकों को तो फोड़ ही ले जाएंगे. बाकी का इंतजाम भाजपा कर लेगी. बात में दम इस लिहाज से था कि अजित पवार भी 4 दशकों से जमीनी राजनीति कर रहे थे और शरद पवार उन पर आंख बंद कर भरोसा करते रहे थे. इतिहास इस तरह के छलप्रपंचों से भरा पड़ा है कि रातोंरात पारिवारिक षड्यंत्र रचे गए और सत्ता बदल गई.

शिवसेना ने संभाला मोरचा

इस में शक नहीं कि राज्य महाराष्ट्र न होता और सामने शिवसेना नहीं होती तो अमित शाह अक्तूबर में ही भाजपा सरकार बनवा चुके होते. ठीक वैसे ही जैसे कभी कर्नाटक, गोवा और मणिपुर में बनाई थी.

एक बार फिर तीनों दलों की मीटिंग हुई जिस में सभी ने विकट की द्यएकजुटता दिखाई. तीनों दलों ने अपनेअपने विधायकों को मैनेज किया जिस से भाजपा के इस मंसूबे पर पानी फेरा जा सके कि सत्ता के लालच में विधायक उस की तरफ खिंचे चले आएंगे. विधायकों को ऐसे नाजुक मौकों की परंपरा के मुताबिक होटलों में नजरबंद कर रखा गया. शिवसैनिकों ने भाजपा को किसी भी दल के विधायक के पास फटकने नहीं दिया.

कांग्रेस, शिवसेना और एनसीपी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया तो उन्हें न्याय और राहत दोनों मिले. सुप्रीम कोर्ट ने देवेंद्र फडणवीस को बहुमत साबित करने के लिए 28 नवंबर का वक्त दिया लेकिन नाटकीय तरीके से उन्होंने 27 नवंबर को ही इस्तीफा दे दिया. उन के पहले अजित पवार ने भी राज्यपाल को अपना इस्तीफा सौंप दिया था.

इस से साबित हो गया कि भाजपा अंधेरे में तीर चला रही थी लेकिन साबित यह भी हुआ कि उद्धव ठाकरे और शिवसेना के जमीनी खौफ और बाहुबल के आगे उस की एक न चली. एक भी विधायक इधर से उधर भाजपा नहीं कर पाई तो यह उद्धव की फुरती थी और उन का मकसद भी था.

देवेंद्र फडणवीस के इस्तीफे के पहले दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और कार्यकारी अध्यक्ष जे पी नड्डा ने मीटिंग की और यह तय किया था कि तमाम चालें उलटी पड़ रही हैं. ऐसे में भलाई और सम झदारी इसी में है कि चुपचाप पांव वापस खींच लिए जाएं ताकि और जगहंसाई न हो.

अब ताबड़तोड़ तरीके से तीनों दलों ने एकजुटता व सम झदारी दिखाई और राज्यपाल के सामने सरकार बनाने का दावा पेश कर हारी हुई बाजी शानदार तरीके से जीत ली. जबकि तिलमिलाते भाजपाई महाराष्ट्र की सत्ता हाथ से जाते देखते रह गए.

देखते ही देखते माहौल बदला, रंगत बदली और लोगों के सोचने का नजरिया भी बदला कि क्यों नहीं शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस जैसी विपरीत विचारधारा वाली पार्टियां सरकार बना और चला सकतीं. महाविकास अघाड़ी बना और उस ने अपना न्यूनतम सा झा प्रोग्राम यानी एजेंडा भी जारी कर दिया जो धर्मकर्म की राजनीति से परहेज करता हुआ ही दिखाई दे रहा है. अघाड़ी मराठी शब्द है, इसे हिंदी में गठबंधन कहते हैं.

28 नवंबर की शाम मुंबई का शिवाजी पार्क गुलजार था जहां एक नई इबारत लिखी गई. स्टेज को जानबू झ कर शिवाजी के दरबार जैसा सजाया गया था और इस के पीछे एक मैसेज भी था.

शिवाजी, पिछड़े और लोकतंत्र

मैसेज यह था कि सही माने में देश में लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता की नींव शिवाजी ने ही रखी थी जिन के शासन में सभी वर्गों व धर्मों के लिए बराबर की जगह व महत्त्व मिला हुआ था.

ऊपर उन की जाति का जिक्र यह बताने के लिए किया गया है कि पंडेपुरोहितों को यह बरदाश्त नहीं हो रहा था कि कोई गैरब्राह्मण शासक बने. भाजपा ब्राह्मण देवेंद्र फडणवीस को थोपते यही कोशिश कर रही थी लेकिन लोकतंत्र में चूंकि राज्याभिषेक पुरोहित नहीं, बल्कि जनता करती है, इसलिए भाजपा मात खा गई.

इतिहास यह भी बताता है कि शिवाजी ने कभी पंडों के पांव नहीं धोए, कर्मकांड नहीं किए, धार्मिक पाखंड नहीं किए. इसलिए, ब्राह्मण उन्हें बहिष्कृत करते रहे. लेकिन जब उन्हें यथोचित दक्षिणा मिल गई तो उन्होंने शिवाजी को क्षत्रिय भी घोषित कर दिया.

सीधेसीधे कहा जाए तो उद्धव ठाकरे ने शरद पवार की मदद से बिना पंडों के अपना राज्याभिषेक करवा लिया है और इस में जागरूक होती पिछड़ी जाति वालों का खासा साथ और योगदान रहा है.

उद्धव ठाकरे ने खुद का तो लोकतांत्रिक अभिषेक कराने के साथ ही नरेंद्र मोदी के चक्रवर्ती सम्राट बनने के राजसूई यज्ञ का घोड़ा महाराष्ट्र में पकड़ उन की अधीनता स्वीकारने से मना कर दिया और उन्हें पराजित भी कर दिया.

चुनाव के पहले ही सभी दल पिछड़ों को साधने में जुट गए थे. खासतौर से शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने इस चुनाव में पिछड़ों की अहमियत सम झी थी और चुनाव के ठीक पहले वे धनगर, घुमंतु, कुनबी, बंजारा, तेली, माली और दूसरी पिछड़ी जाति के प्रतिनिधियों से मिले थे और उन्हें आश्वस्त किया था कि उन के स्वाभिमान और आत्मसम्मान का वे पूरा खयाल  रखेंगे. ये वे जातियां हैं जो सदियों से ब्राह्मणों के शोषण और अत्याचारों का शिकार रही थीं. धर्मग्रंथ इन्हें शूद्र बताते थे, लेकिन लोकतंत्र में इन की गिनती पिछड़ों में की जाने लगी है.

उलट इस के, भाजपा इस मुगालते में रही कि उसे तो पिछड़े वर्ग के वोट महज इस आधार पर मिलेंगे कि नरेंद्र मोदी पिछड़ी जाति के हैं और नरेंद्र मोदी ने चुनावी सभाओं में खुद के पिछड़ा होने की दुहाई दे कर भी वोट मांगे थे.

लेकिन हकीकत यह थी कि भाजपा के पास कोई वजनदार पिछड़ा नेता था ही नहीं. कभी भाजपा के लिए गोपीनाथ मुंडे ने पिछड़ों को पार्टी से जोड़ा था लेकिन उन के निधन के बाद उन की बेटी पंकजा मुंडे पिछड़े वर्ग को साध नहीं पाईं. भाजपा केवल एक ब्राह्मण चेहरे के सहारे लड़ी और उस ने एकनाथ खड़से और विनोद ताबड़े जैसे जमीनी पिछड़े नेताओं को हाशिए पर ला पटका था.

भाजपा अध्यक्ष अमित शाह इस बात को सम झ नहीं पाए कि पिछड़े अब जागरूक हो चुके हैं, इसलिए वे उन के इस  झांसे में नहीं आए कि विपक्षी सरकारें पिछड़ों के लिए कुछ नहीं कर पाईं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार पिछड़ों के लिए कुछ नहीं कर पाई. हालांकि मोदी ने ही संवैधानिक ढांचे के जरिए पिछड़े वर्ग के लोगों की समस्याओं के लिए ओबीसी आयोग का गठन किया.

दलितों का भरोसा खो चुकी भाजपा अब पिछड़ों का भी भरोसा खो रही है.  इस की वजह पिछड़ों की छटपटाहट है कि भाजपा बातों के बताशे तो बहुत फोड़ती है लेकिन पिछड़ों के लिए कुछ ठोस नहीं करती. सवर्णों से ज्यादा पिछड़े वर्ग के नौजवान रोजगार के लिए तरस रहे हैं. पिछड़ा आयोग और आरक्षण  झुन झुना साबित हो रहे हैं क्योंकि सरकार के पास देने को नौकरियां ही नहीं हैं और प्राइवेट सैक्टर नोटबंदी व जीएसटी के बाद से तंगी, बदहाली के दौर से गुजर रहा है.

लोकसभा चुनाव में पिछड़े वर्ग ने भाजपा का साथ महाराष्ट्र में भी दिया था, लेकिन विधानसभा ने उस से मुंह फेर लिया. इस से जाहिर है उस का पुरोहितों की इस पार्टी से मोहभंग हो रहा है और इसी का नतीजा है कि अक्तूबर 2018 में देश के 70 फीसदी हिस्से पर राज करने वाली भाजपा नवंबर 2019 में 40 फीसदी हिस्से पर सिमट गई है. दिल्ली और  झारखंड में भी पिछड़े भाजपा से यों ही बिदके रहे तो भगवा ग्राफ और भी गिरेगा.

महाराष्ट्र में पिछड़ों की कोई 356 जातियां हैं जिन में से 15 फीसदी को ही आरक्षण का लाभ मिल रहा है. वोटों के लिहाज से देखें तो इस राज्य में 40 फीसदी पिछड़े वोट हैं जो विधानसभा चुनाव में बड़ी तादाद में एनसीपी और शिवसेना के साथ आए. राजनीति से हट कर देखें तो यह सवर्ण और पंडों की पार्टी भाजपा से विद्रोह ही नजर आता है. महाराष्ट्र में भाजपा ने कभी ब्राह्मण प्रमोद महाजन को खूब भुनाया था. फिर उसे लगा कि पिछड़ों के बगैर काम नहीं चलना, तो वह इस वर्ग के गोपीनाथ मुंडे को आगे ले आई. इस चुनाव में पंकजा मुंडे की हार में देवेंद्र फडणवीस का रोल देखा जा रहा है, तो बात कतई हैरत की नहीं.

भाजपा ने सत्ता के लिए पिछड़ों का खूब इस्तेमाल किया और फिर उन्हें दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल फेंका. कल्याण सिंह और उमा भारती इस की जीतीजागती मिसाल हैं. यही अब मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान और छत्तीसगढ़ में रमन सिंह जैसों के साथ हो रहा है.

उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव और बिहार में लालू प्रसाद यादव सत्ता की छत पर अपनीअपनी जाति के वोटों के दम पर पहुंचे थे, लेकिन भाजपा ने दूसरी पिछड़ी जातियों का हाथ थाम कर इन कद्दावर नेताओं का जो हाल किया वह किसी से छिपा नहीं है. हरियाणा में जाटों ने भाजपा का भरोसा नहीं किया तो महाराष्ट्र से मराठा समुदाय जो उस पर शिवाजी के वक्त से ही भरोसा नहीं करता.

एक दिलचस्प समीकरण महाराष्ट्र में यह भी देखने में आया कि दलित और मुसलिम समुदाय वापस कांग्रेस की तरफ लौट रहा है यानी राजनीति अपने परंपरागत ढर्रे पर आ रही है जिस में भाजपा के खाते में सवर्ण और संपन्न पिछड़े ही बच रहे हैं.

शरद पवार ने सामाजिक वजहों के चलते उद्धव ठाकरे का साथ ज्यादा दिया लगता है और इस बाबत सोनिया गांधी को मनाने में भी वे कामयाब रहे हैं जिन का मकसद भी भाजपा को कमजोर करना है.

महाराष्ट्र से एक नई शुरुआत तो हुई है कि विपरीत विचारधारा वाले दल साथ आएं, यह बात स्वागतयोग्य होनी चाहिए. महा विकास अघाड़ी कितना चलेगा, यह बात कतई महत्त्वपूर्ण नहीं है. महत्त्वपूर्ण यह है कि महाराष्ट्र में धर्म और जाति की राजनीति की नई परिभाषा गढ़ी जा रही है. बात सिर्फ विकास की हो रही है जो इस अघाड़ी की मजबूरी भी हो जाएगा.

छोटी सरदारनी : क्रिसमस पर मेहर लाएगी परम के चेहरे पर खुशी, क्या करेगी हरलीन ?

सीरियल छोटी सरदारनी में जहां एक तरफ हरलीन मेहर को अपने फैसले के बचे हुए दिन याद दिला रही है तो वहीं दूसरी तरफ परम को धीरे-धीरे मेहर से दूर करने की कोशिश करने में जुट गई है, लेकिन मेहर क्रिसमस के मौके पर परम के चेहरे पर खुशी लाने वाली है. आइए आपको बताते हैं शो में क्या होगा आगे…

कुलवंत मांगेगी माफी

पिछले एपिसोड में आपने देखा कि सरब मेहर की मां कुलवंत कौर को टीचर पर हाथ उठाने के लिए माफी मांगने को कहता है, जिसके बाद कुलवंत कौर स्कूल जाकर टीचर से माफी मांगने को तैयार हो जाती है.

छोटी सरदारनी : फूटा हरलीन का गुस्सा, क्या परम से दूर हो जाएगी मेहर ?

kulwant

ये भी पढ़ें- छोटी सरदारनी : हम सबमें बसती है एक ‘मेहर’

परम को क्रिसमस पर सरप्राइज देगी मेहर

meher

अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि मेहर कहीं गायब हो जाएगी, जिससे पूरी फैमिली मेहर को ढूंढने में लग जाएगी. वहीं मेहर, परम के चेहरे पर खुशी लाने के लिए क्रिसमस के मौके पर सांता क्लॉस बनते हुए नजर आएगी.

परम को खुश करने की कोशिश करेगी मेहर

param

क्रिसमस के मौके पर मेहर, परम के लिए सांता क्लॉस के लुक में दिखेगी. इसी के साथ वह परम की मदद कैसे करेगी ये देखना भी दिलचस्प होगा.

अब देखना ये है कि क्रिसमस पर परम के लिए मेहर का सरप्राइज क्या बदल देगा हरलीन का रवैया? क्या मेहर परम और यूवी को फिर से स्कूल में दाखिला दिलवाने में कामयाब हो पाएगी? जानने के लिए देखते रहिए ‘छोटी सरदारनी’, सोमवार से शनिवार, रात 7:30 बजे, सिर्फ कलर्स पर.

हनी ट्रैप का रुख गांवों की ओर : भाग 1

पिछले कुछ सालों में हनीट्रैप के तमाम मामले सामने आए हैं, लेकिन इन में ज्यादातर मामले बड़े शहरों और पैसे वाले लोगों से जुड़े थे. लेकिन अब लगता है कि हनीट्रैप के पांव गांवों की ओर भी बढ़ चले हैं. यहां हम 3 ऐसी ही…

बदलते परिवेश में एक तरफ जहां महिलाओं के प्रति अपराध बढ़े हैं, वहीं दूसरी ओर अपराधों में महिलाओं की भागीदारी भी बढ़ी है. इस की वजह जो भी हो, लेकिन कुछ महिलाएं मोटी कमाई के चक्कर में अपना जमीर तक बेच देती हैं.

ऐसी महिलाएं किसी व्यक्ति को अपने आकर्षणपाश में फांस कर उसे ब्लैकमेल करती हैं और मोटी रकम वसूलती हैं. उन के लिए यह मोटी कमाई का आसान जरिया होता है.

प्रस्तुत कथा ऐसे ही अलगअलग गिरोहों की है, जिन में महिलाएं भी शामिल थीं. गैंग के सदस्य शिकार को अपने जाल में इतनी आसानी से फांसते थे कि उस का उन के चंगुल से निकलना मुश्किल हो जाता था. इन की पहली चाल शुरू हो जाती थी ब्लैकमेलिंग से.

ये भी पढ़ें- चिन्मयानंद एक और संत

14 अगस्त, 2019 को सिद्धमुख (चुरू) गांव में डेयरी पर नौकरी करने वाले सागर शर्मा के घर विपिन शर्मा अपनी पत्नी रितु शर्मा को ले कर पहुंचा. 6 महीने पहले वह पत्नी के साथ उसी डेयरी पर बने कमरे में किराए पर रहता था और सिद्धमुख गांव में गोलगप्पे की रेहड़ी लगाता था. बाद में वह कमरा खाली कर जयपुर चला गया था. सागर शर्मा ने दोनों की आवभगत की. फिर सागर और विपिन में इधरउधर की बातें होने लगीं.

उसी दौरान चाय का घूंट लेते हुए विपिन ने सागर से कहा, ‘‘भैया, मुझे रुपयों की सख्त जरूरत है. प्लीज, एक लाख रुपए उधार दे दो. अगर आप के पास नहीं हैं तो किसी से उधार ले कर दे दो. मैं अगले महीने सूद सहित लौटा दूंगा.’’

‘‘देखो विपिन, तुम्हें तो पता ही है कि मैं विनोद सेठ की दूध डेयरी पर नौकरी करता हूं. मेरे लिए यह बहुत बड़ी है. अगर तुम्हें 2-4 हजार की जरूरत हो तो मालिक से ले कर दे सकता हूं.’’ सागर ने कहा.

सागर के इस जवाब पर विपिन व रितु मुंह लटका कर वहां से चले गए. अगले दिन 16 अगस्त की सुबह सागर के मोबाइल पर विपिन की काल आई. उस ने काल रिसीव की तो विपिन ने उसे गालियां देते हुए कहा, ‘‘तू बड़ा कमीना निकला सागर. तूने दोस्ती की आड़ में मेरे साथ दगा किया है. मेरी बीवी के साथ गलत काम करते हुए कुछ तो शरम कर लेता.’’

इतना सुन कर सागर के होश उड़ गए. वह बोला, ‘‘अरे भैया, यह तुम क्या कह रहे हो. तुम भी तो भाभी के साथ थे. यह सरासर झूठ है.’’

‘‘देख सागर, तेरे कहने से कुछ नहीं होगा. जब रितु थाने जा कर तेरे खिलाफ बलात्कार का मुकदमा दर्ज करवाएगी तो तुझे दिन में तारे दिखाई दे जाएंगे.’’ विपिन ने सागर को धमकी दी.

सागर बालबच्चेदार था. बात झूठ थी फिर भी जलालत की सोच कर उस की रूह कांप गई. विपिन उसे फिर से गाली देते हुए बोला, ‘‘अब जल्दी से 25 लाख रुपयों का इंतजाम कर ले. नहीं तो तुझे जेल जाने से कोई नहीं बचा सकता.’’

विपिन के साथी गौरधन मीणा ने उस से फोन ले कर सागर को घुड़का. उस ने कहा, ‘‘जैसा विपिन कह रहा है, मान ले. विपिन को राजी कर ले, नहीं तो जेल में सड़ेगा.’’

ये भी पढ़ें- ब्लैकमेलिंग का धंधा, बन गया गले का फंदा !

सागर ने उसे बताया कि उस के पास इतने पैसे नहीं हैं, जो बन सकेंगे, वह दे देगा.

‘‘ठीक है, अब मैं बाद में बात करूंगा.’’ कह कर विपिन ने काल डिसकनेक्ट कर दी.

अचानक आई इस मुसीबत से सागर घबरा गया. वह समझ नहीं पा रहा था कि वह इस परेशानी से कैसे बाहर निकले. उसी रात विपिन ने सागर को फिर फोन किया.

वह बोला, ‘‘देख सागर, तेरे लिए 25 लाख का इंतजाम करना संभव नहीं है तो तू 15 लाख का इंतजाम कर ले. इतने में मामला सैटल हो जाएगा नहीं तो कल मीडिया में तेरी काली करतूत सामने आएगी तो तू जरूर आत्महत्या कर लेगा.’’

इस धमकी से सागर और भी ज्यादा डर गया. चूंकि विपिन पहले डेयरी मालिक विनोद अग्रवाल के यहां किराए पर रहता था, इसलिए विपिन को समझाने के लिए सागर ने अपने मालिक की विपिन से बात कराई. लेकिन विपिन नहीं माना.

2 दिनों बाद विपिन ने विनोद अग्रवाल को फोन कर कहा कि अगर 15 लाख का इंतजाम न हो पा रहा हो तो 10 लाख का जुगाड़ कर लो. इतने पैसों में मामला रफादफा कर देंगे. विपिन ने यह भी विश्वास दिलाया कि रकम मिलने पर रितु स्टांप पेपर पर लिख कर सागर को क्लीन चिट दे देगी.

अगले दिन सागर के पास फिर विपिन का फोन आया. वह बोला, ‘‘देख सागर रितु की बुआ रावतसर में रहती है. तू कल रकम ले कर रावतसर आ जा. 8 लाख से काम चल जाएगा. कल अगर सारे पैसों की व्यवस्था न हो पाए तो अगले दिन के चेक दे देना.’’

‘‘ठीक है, मैं पहुंच जाऊंगा.’’ सागर ने उस से कहा.

11 सितंबर को विपिन, रितु, बाबूलाल कीर, गोरेधन मीणा व मूलचंद मीणा को ले कर रावतसर आ गया. सागर भी रावतसर आ गया था. वे लोग रावतसर से 7 किलोमीटर दूर चाइया गांव के पास एक होटल में रुके. विपिन ने फोन कर सागर को भी वहीं बुला लिया था.

वहां पहुंचते ही सब लोग सागर को एक सुनसान जगह पर ले गए. उसे डराधमका कर उन लोगों ने सागर की जेब से 60 हजार रुपए निकाल लिए. बकाया रकम के लिए उन्होंने आईसीआईसीआई बैंक के 7,40,000 के 2 चैक ले लिए.

सागर को साथ ले कर वे लोग रावतसर के तहसील कार्यालय पहुंच गए. रितु ने 50 रुपए को स्टांप पेपर पर लिख कर दे दिया कि अब उसे सागर शर्मा से कोई शिकायत नहीं है.

ये भी पढ़ें- पति की प्रेमिका का खूनी प्यार

उस की एक फोटोकौपी उस ने सागर को दे कर बाकी रकम अगले दिन तक देने को कह दिया. इस के बाद सागर घर लौट गया. विपिन भी गिरोह के साथ रिश्तेदारी में चला गया.

सागर को बाकी की रकम देने की चिंता थी. उधर विपिन ने विनोद सेठ को फोन कर रकम का तकाजा कर दिया था. अगले दिन सागर विपिन के बताए अनुसार उसी होटल पर पहुंच गया. दूसरी तरफ विनोद ने विपिन को फोन कर रावतसर पहुंचने की सूचना दे दी थी. विनोद अपने एक दोस्त के साथ पहले ही रावतसर पहुंच गया था.

अग्निपरीक्षा : भाग 2

अग्निपरीक्षा : भाग 1

अब आगे पढ़ें

राज ने स्मिता को समझाया था, ‘व्यावहारिक बनो स्मिता, यही जिंदगी की वास्तविकता है. क्या करें, हर किसी को अपनी मंजिल नहीं मिलती, यही सोच कर तसल्ली दो अपने मन को. मैं तुम्हें ताउम्र प्यार करता रहूंगा, कभी शादी नहीं करूंगा. तुम शांत मन से शादी करो, भुवन बहुत अच्छा लड़का है, अच्छा कमाता है, तुम्हें बहुत खुश रखेगा,’ यह कहते हुए डबडबाई आंखों से राज ने स्मिता का माथा चूमा था और चला गया था.

स्मिता की शादी की तैयारियां जोरशोर से चल रही थीं. सुरभि ने भाई से साफसाफ कह दिया था, ‘राज, मुझ से एक वादा करो, स्मिता की शादी तक तुम घर नहीं आओगे. स्मिता को अपने सामने देख तुम सामान्य नहीं रह पाओगे तथा बेकार में लोगों को बातें करने का मौका मिल जाएगा.’

‘दीदी, मेरे साथ इतना अन्याय मत करो,’ राज गिड़गिड़ाता हुआ बोला, ‘मैं कसम खाता हूं, शादी होने तक मैं किसी के सामने स्मिता से एक शब्द नहीं बोलूंगा. उस की शादी का काम कर के मुझे बहुत आत्मिक संतोष मिलेगा. प्लीज दीदी, तुम ने मुझ से सबकुछ तो छीन लिया, अब यह छोटा सा सुख तो मत छीनो.’

भाई की यह हालत देख सुरभि का मन पसीज उठा था. लेकिन वह भी परिस्थितियों के हाथों मजबूर थी. मुंह मोड़ कर भर आई आंखों को भाई से छिपाते हुए उस ने राज से कहा था, ‘ठीक है, तू शादी का काम संभाल ले, पर इस बात का ध्यान रखना कि स्मिता से कभी बोलेगा नहीं?’ और राज सिर हिलाते हुए वहां से चला गया था.

आखिरकार स्मिता और भुवन की शादी हो गई थी. विदाई के समय रोते हुए राज को सामने देख कर स्मिता अपनेआप पर काबू नहीं रख पाई और बेहोश हो गई. होश आने पर उसे ऐसा महसूस हुआ था जैसे उस की दुनिया उजड़ गई हो.

खैर, टूटा हुआ दिल ले कर स्मिता भुवन के साथ अपनी ससुराल आ गई थी. सुहागरात को उस ने टूटे मन से रोते हुए भुवन के सामने समर्पण किया था. उन क्षणों में उस के अंतर्मन का सारा संताप उस के चेहरे पर आ गया था, जिसे भुवन ने संकोच और घबराहट समझा था.

ये भी पढ़ें- अब पछताए होत क्या 

भुवन एक बहुत ही अच्छे स्वभाव का, सज्जन युवक था. उस ने स्मिता को अपना पूरा प्यार दिया था, उसे टूट कर चाहा था.

शुरू में राज के बिना स्मिता बहुत बेचैन और उदास रही थी. जबजब भुवन उसे छूता, वह छटपटा उठती. लेकिन धीरेधीरे भुवन के सरल सहज बेशुमार प्यार की छांव में स्मिता सहज होने लगी, तथा उस के मन में भुवन के लिए चाहत पैदा होने लगी. वक्त गुजरने के साथ वह धीरेधीरे राज को भूलने भी लगी थी. हां, जब भी वह भैयाभाभी के घर आती, तो पुराने घाव हरे हो जाते.

भुवन के साथ रोतेहंसते कब 2 साल बीत गए, पता तक न चला था. स्मिता राज को एक हद तक भूल चुकी थी तथा भुवन के साथ अपनी नई जिंदगी में कुछकुछ रमने लगी थी.

राज की शादी भी उस की जाति की एक धनाढ्य परिवार की सुशिक्षित सुंदर लड़की से हो गई थी. राज अपनी शादी का कार्ड देने स्मिता के घर आया था. राज की शादी में जाने के लिए भुवन ने उस से कहा तो वह सिरदर्द का बहाना बना कर शादी में नहीं गई. उस दिन राज सारे दिन उसे बहुत याद आता रहा था तथा वह राज के साथ बिताए पलों को दोबारा जेहन में जीती रही थी. बाद में उस ने भाभी से सुना था कि राज ने यह शादी बहुत मुश्किल से की थी. उस की मां ने बहुत मिन्नतों- खुशामदों के बाद उसे शादी के लिए राजी किया था.

इधर कुछ दिनों से स्मिता कुछ परेशान चल रही थी. उस की शादी हुए 2 वर्ष हो चुके थे लेकिन उस की गोद भरने के कोई आसार नजर नहीं आ रहे थे. उस की परेशानी देख कर भुवन उसे डाक्टर के पास ले गया था. पूरी जांच करने के बाद डाक्टर ने उसे बताया कि आप की पत्नी में गर्भधारण की क्षमता सामान्य से कुछ कम है, लेकिन सही उपचार के बाद वह गर्भधारण कर सकती है.

डाक्टर की इस बात ने भुवन और स्मिता को हिला कर रख दिया था. उस दिन स्मिता फूटफूट कर रोई थी. रोतेरोते उस ने भुवन से कहा था, ‘भुवन, मैं बहुत बदनसीब हूं. विधाता ने बचपन में ही मेरी मां छीन ली. जिंदगी भर मैं मांबाप के प्यार से वंचित रही और अब मुझे बच्चे का सुख नहीं दिया?’

स्मिता की गर्भधारण क्षमता में कमी की बात सुन कर भुवन भी बहुत मायूस हो गया था. खैर, स्मिता का उपचार शुरू हो गया. स्मिता की शादी को 4 वर्ष पूरे होने को आए लेकिन उस को मातृत्व का सुख मिलने के कोई आसार नजर नहीं आ रहे थे.

बच्चों की कमी से उबरने के लिए भुवन ने अपनेआप को पूरी तरह अपने व्यापार में डुबो दिया था. बढ़ते व्यापार की वजह से वह स्मिता को बहुत कम वक्त देने लगा था. उन दोनों के बीच धीरेधीरे शून्य पसरता जा रहा था. इधर व्यापार के सिलसिले में वह अकसर नेपाल जाया करता और 2-2 महीने में वहां से वापस घर आया करता.

उस दिन सुबह ही भुवन नेपाल चला गया तो स्मिता को समझ में नहीं आ रहा था कि कैसे वह अपना वक्त काटे? शाम को यों ही वह भैयाभाभी से मिलने उन के घर चली गई थी. अचानक वहां राज भी आ गया. एक लंबे अर्से बाद राज और स्मिता में बातचीत हुई थी. लौटते वक्त राज ने स्मिता से कहा था, ‘चलो, गाड़ी से तुम्हें घर छोड़ देता हूं.’

सुरभि भाभी ने भी राज से कहा था, ‘हांहां, तू इसे गाड़ी से इस के घर छोड़ दे. अकेली कहां जाएगी.’

स्मिता राज के साथ उस की गाड़ी में बैठ गई थी. अपने घर उतरते वक्त उस ने औपचारिकतावश राज को घर पर कौफी पीने का आमंत्रण दिया था, जिसे राज ने स्वीकार कर लिया था और वह स्मिता के घर आ गया था.

एक मुद्दत बाद राज और स्मिता एकांत में मिले थे. स्मिता की समझ में नहीं आ रहा था कि राज के साथ बात कहां से शुरू की जाए. तभी मौन तोड़ते हुए राज ने स्मिता से कहा था, ‘स्मिता, सुना है आजकल भुवन लंबे वक्त के लिए नेपाल जाया करते हैं. इस बार कितने दिनों के लिए नेपाल गए हैं?’

‘इस बार भी 2 महीने के लिए वह नेपाल गए हैं,’ स्मिता ने जवाब दिया था.

‘तो तुम 2 महीने यहां अकेली रहोगी?’

‘रहना ही पड़ेगा और कोई चारा भी तो नहीं है.’

‘स्मिता, तुम खुश तो हो?’

जवाब में स्मिता की आंखों से आंसू टपक पड़े थे, जिन्हें देख कर राज छटपटा उठा था और स्मिता के आंसू पोंछते हुए उस ने उस से कहा था, ‘बताओ स्मिता, क्या बात है? मेरा दिल बैठा जा रहा है. मैं सबकुछ देख सकता हूं लेकिन तुम्हारी आंखों में आंसू नहीं देख सकता. बताओ स्मिता, बताओ…’

जवाब में स्मिता ने उसे अपने गर्भधारण में अक्षमता, इस की वजह से भुवन का अपने व्यापार में ज्यादा से ज्यादा समय देने तथा उसे अकेला छोड़ कर नेपाल में महीनों रहने की बात सुनाई, जिसे सुन कर राज का जी कसक उठा और उस ने अचानक उठ कर स्मिता को अपनी बांहों में समेट लिया और बोला, ‘स्मिता, तो तुम भुवन के साथ सुखी नहीं हो. मैं भी शोभा के साथ बिलकुल सुकून नहीं महसूस करता. मैं उसे अपने जीवन में वह जगह नहीं दे पा रहा हूं जो कभी तुम्हारे लिए सुरक्षित थी. स्मिता, मैं अभी तक तुम्हें पूरी तरह भूल नहीं पाया हूं. क्या तुम मुझे भूल पाई हो? बोलो स्मिता, जवाब दो?’

ये भी पढ़ें- रफ कौपी : इस की उम्र का किसी को नहीं पता

यह कह कर राज ने स्मिता को जोर से अपने आलिंगन में भींच लिया था. राज की बांहों में स्मिता कसमसा उठी थी और उस ने राज की बांहों के बंधन से अपने को मुक्त करने का प्रयास करते हुए कहा था, ‘राज, यह तुम क्या कर रहे हो? यह गलत है राज, मैं शादीशुदा हूं. तुम भी शादीशुदा हो. राज, प्लीज, तुम चले जाओ यहां से.’ लेकिन राज ने स्मिता को अपनी बांहों के घेरे से मुक्त नहीं किया, उसे चूमता ही चला गया. भावुकता के उन क्षणों में स्मिता भी कमजोर पड़ गई थी. उस रात वे सारे बंधन तोड़ बैठे थे तथा कमजोरी के उन क्षणों में उस रात वह हो गया था जो नहीं होना चाहिए था.

उस रात राज करीब 1 बजे अपने घर लौटा था.

राज के जाने के बाद स्मिता आत्मग्लानि से भर उठी थी. वह सोच रही थी, छि:छि:, वह यह क्या कर बैठी? उस ने भुवन जैसे सीधेसच्चे पति से विश्वासघात किया, नहींनहीं, अब वह दोबारा राज का मुंह तक नहीं देखेगी. उस प्रण ने उस के दिमाग को थोड़ा सुकून दिया था.

लेकिन अगले ही दिन रात को राज फिर उस के घर आया था. राज के आते ही स्मिता ने उस से कहा था, ‘राज, तुम अभी इसी वक्त अपने घर वापस चले जाओ. कल रात जो कुछ हुआ वह बहुत गलत था. हमें वापस अपनी गलती नहीं दोहरानी चाहिए.’

क्या होती है रेव पार्टी ?

बीते महीनो कई  रेव पार्टी में पकड़े गये. सवाल उठता है कि आखिर यह रेव पार्टी होती क्‍या है. आइये हम आपको बताते हैं कि इस गैरकानूनी काम में दरअसल चल क्‍या रहा होता है .

रेव पार्टी शराब, ड्रग्‍स, म्‍यूजिक, नाच गाना और सेक्‍स का कौकटेल होता है . ये पार्टियां बड़े गुपचुप तरीके से आयोजित की जाती हैं और जिनको बुलाया जाता है वे लोग पार्टी के बारे में वे ‘सर्किट’ के बाहर के लोगों को जरा भी भनक नहीं लगने देते . नशे के सौदागर अपना माल खपाने के लिए ऐसी पार्टियां अरेंज करते हैं. पार्टियों में लोगों को बुलाने के लिए कोड वर्ड्स और सीक्रेट मैसेजेज का इस्तेमाल होता है. पर अब तो पार्टियां न सिर्फ इंटरनेट पर भी तय होने लगी हैं, बल्कि इसे दूसरे सेलिब्रेशन के साथ जोड़ कर आयोजित किया जा रहा है, ताकि पुलिस से सुरक्षित रहा जा सके.

ये भी पढ़ें- रात्रि में ही विवाह क्यों ?

नशीले पदार्थ बेचने वालों के लिए ये रेव पार्टियां धंधे की सबसे मुफीद जगह बन गई हैं. मुंबई, पुणे, खंडाला, पुष्‍कर और दिल्‍ली के आसपास के इलाके इन रेवियों के लिए बड़ी मुफीद जगह हैं. इन पार्टियों में आम लोगों के लिए कोई जगह नहीं है. धनकुबेरों के आवारा लड़के लड़कियों की कुत्सित वासनाएं पूरा करने के लिए रात के अंधेरों में इन पार्टियों का आयोजन किया जाता है. महानगरों के युवक युवतियों में रेव के प्रति आकर्षण बढ़ता ही जा रहा है. इन पार्टियों में दो गैरकानूनी ड्रग्‍स चलते हैं एसिड और इक्सटैसी. इसे लेने के बाद युवा लगातार 8 घंटे तक डांस कर सकते हैं. ये ड्रग्स उनमें लगातार नाचने का जुनून पैदा करते हैं. जिनके पास पैसे होते हैं वे एसिड व इक्सटेसी जैसे महंगे ड्रग लेते हैं. जिनके पास उतना पैसा नहीं होता वे  हशीश या गांजा से ही काम चला लेते हैं.

माना जाता है कि इनमें सिर्फ ऊंचे तबके के लोग और रईसजादे ही शामिल होते हैं, पर पिछले कुछ सालों में मध्यम वर्ग भी इसकी ओर आकर्षित हुआ है. इन पार्टियों में दो गैर-कानूनी ड्रग्स चलते हैं एसिड और इक्सटैसी. इसे लेने के बाद युवा लगातार आठ घंटे तक डांस कर सकते हैं. ये ड्रग्स उनमें लगातार नाचने का जुनून पैदा करते हैं.

रेव पार्टियों में कोकीन ही नहीं चरस, गांजे जैसे सस्ते नशे से लेकर हेरोइन, हशीश, ब्राउन शुगर, स्मैक, एक्सटेसी की गोलियां और कैलीफौर्निया ड्रौप जैसे महंगे नशे भी मौजूद होते हैं, जिनका इंतजाम नशे के सौदागर करते हैं. जिनके पास पैसे होते हैं, वे एसिड व इक्सटेसी जैसे महंगे ड्रग लेते हैं. जिनके पास उतना पैसा नहीं होता, वे हशीश या गांजा या  हुक्का से ही काम चला लेते हैं.

ये भी पढ़ें- पुलिस या अदालत में जब बयान देने जाएं!

इन पार्टियों  में लड़कों के अनुपात में लड़कियों की संख्या में कमी होने का रोना रोते हों लेकिन इन रेव पार्टियों के मामले में लड़कियों ने लड़कों को काफी पीछे छोड़ दिया है. सौ रेवियों में लड़कियों की संख्या 60 होती ही है.

औरों से आगे : भाग 2

औरों से आगे : भाग 1

अब आगे पढ़ें

सभी को लगा कि लड़का लाखों में एक है. अम्मां ने कहा, ‘‘हिंदी तो ऐसे बोलता है, जैसे हमारे बीच ही रहता आया हो.’’ अम्मां का अनुकूल रुख देख कर बड़े भैया भी बदले थे. भाभी तो ऐसे अवसरों पर सदा तटस्थ रहती थीं. फिर भी बेटी को मनचाहा घरवर मिल रहा था, इस बात की अनुभूति उन के तटस्थ चेहरे को निखार गई थी. वह मन की प्रसन्नता मन तक ही रख कर अम्मां और भैया के सामने कुछ कहने का दुस्साहस नहीं कर पा रही थीं. बस, दबी जबान से इतना ही कहा, ‘‘आजकल तो वैश्यों में कितने ही अंतर्जातीय विवाह हो रहे हैं और सभी सहर्ष स्वीकार किए जा रहे हैं. जाति की संकुचित भावना का अब उतना महत्त्व नहीं है, जितना 15-20 वर्ष पहले था.’’ इतना सुनते ही अम्मां और भैया साथसाथ बोल उठे थे, ‘‘तुम्हारी ही शह है.’’ उस के बाद जब तक विवाह नहीं हुआ, भाभी मौन ही रहीं. वैसे यह सच था कि भाभी के बढ़ावे से ही कनु ने जाति से बाहर जाने की जिद की थी. सम्मिलित परिवार में रहीं भाभी नहीं चाहती थीं कि उन की बेटी सिर्फ आदर्श बहू बन कर रह जाए.

वह चाहती थीं कि वह स्वतंत्र व्यक्तित्व की स्वामिनी बने. कनु और राघवन विवाह के अवसर पर फुजूलखर्ची के खिलाफ थे. इसलिए बहुत सादी रीति से ब्याह हो गया, जो बाद में सब को अच्छा लगा. जैसेजैसे समय बीतता गया, राघवन का सभ्य व्यवहार, दहेज विरोधी सुलझे विचार और स्वाभिमानी व्यक्तित्व की ठंडी फुहार तले भीगता सब का मन शांत व सहज हो गया था. दोनों परिवारों में आपसी सद्भाव, प्रेम व स्नेह के आदानप्रदान ने प्रांतीयता व भाषा रूपी भेदभावों को पीछे छोड़, कब स्वयं को व्यक्त करने के लिए नई भाषा अपना ली, पता ही नहीं लगा. वह थी, हिंदी, अंगरेजी, तमिल मिश्रित भाषा. हमारे परिवार में भी तमिल समझने- सीखने की होड़ लग गई थी. यह जरूरी भी था. एक भाषाभाषी होने पर जो आत्मीयता व अपनेपन के स्पर्श की अनुभूति होती है, वह भिन्नभिन्न भाषाभाषी व्यक्तियों के साथ नहीं हो पाती. संभवत: यही कारण है कि अंतर्जातीय विवाहों में दूरी का अनुभव होता है. भाषा भेद हमारी एकता में बाधक है. नहीं तो भारत के हर प्रांत की सभ्यता व संस्कृति एक ही है.

प्रांतों की भाषा की अनेकता में भी एकता गहरी है या शायद विशाल एकता की भावना ने रंगबिरंगी हो भिन्नभिन्न भाषाओं के रूप में प्रांतों में विविधता सजा दी है. कनु के ब्याह के बाद स्मिता का ब्याह गुजराती परिवार में हुआ. मझली भाभी व भैया के लाख न चाहने पर भी वह ब्याह हुआ. सब से आश्चर्यजनक बात यह थी कि किसी को उस विवाह पर आपत्ति नहीं हुई. जैसे वह रोज की सामान्य सी बात थी. साथ ही रिंकू के लिए वर खोजने की आवश्यकता नहीं है, यह भी सोच लिया गया. अनिल व स्मिता को जैसे एकदूसरे के लिए ही बनाया गया था. दोनों की जोड़ी बारबार देखने को मन करता था. अम्मां इस बार पहले से कुछ अधिक शांत थीं. अनिल डाक्टर था, इसलिए आते ही अम्मां की कमजोर नब्ज पहचान गया था. जितनी देर रहता, ‘अम्मांअम्मां’ कह कर उन्हें निहाल करता रहता. एक बार जब अम्मां बीमार पड़ीं, तब ज्यादा तबीयत बिगड़ जाने पर अनिल सारी रात वहीं कुरसी डाले बैठा रहा. सवेरे आंख खुलने पर अम्मां ने आशीर्वादों की झड़ी लगा दी थी.

ये भी पढ़ें- रफ कौपी : इस की उम्र का किसी को नहीं पता

बेटी से ज्यादा दामाद जिगर का टुकड़ा बन चला था. अम्मां ने अनिल के पिता से बारबार कहा था, ‘‘हमारी स्मिता के दिन फिर गए, जो आप के घर की बहू बनी. हमें गर्व है कि हमें ऐसा हीरा सा दामाद मिला.’’ अनिल के मातापिता ने अम्मां का हाथ पकड़ कर गद्गद कंठ से सिर्फ इतना ही कहा, ‘‘आप घर की बड़ी हैं. बस, सब को आप का आशीर्वाद मिलता रहे.’’ सुखदुख में जाति भेद व भाषा भेद न जाने कैसे लुप्त हो जाता है. सिर्फ भावना ही प्रमुख रह जाती है, जिस की न जाति होती है, न भाषा. और भावना हमें कितना करीब ला सकती है, देख कर आश्चर्य होता था. अब रिंकू का ब्याह था. घर के कोनेकोने में उत्साह व आनंद बिखरा पड़ा था.

जातीयविजातीय अपनेअपने तरीके से, अपनीअपनी जिज्ञासा लिए अनेक दृष्टिकोणों से हमारे परिवार को समझने का प्रयास कर रहे थे. रिंकू बंगाली परिवार में ब्याही जा रही थी. कहां शुद्ध शाकाहारी वैश्य परिवार की कन्या रिंकू और कहां माछेर झोल का दीवाना मलय. पर किसी को चिंता नहीं थी, अम्मां उत्साह से भरी थीं. उन की बातों से लगता था कि उन्हें अपने विजातीय दामादों पर नाज है. अम्मां का उत्साह व रवैया देख कर जातीय भाईबंधु, जो कल तक अम्मां को ‘इन बेचारी की कोई सुनता नहीं’ कह कर सहानुभूति दर्शा रहे थे, अब चकित हो पसोपेश में पड़े क्या सोच रहे थे, कह पाना मुश्किल था. रिंकू का विवाह सानंद संपन्न हो गया. वह विदा हो ससुराल चली गई. दूसरे दिन मन का कुतूहल जब प्रश्न बन कर अम्मां के आगे आया तो पहले तो अम्मां ने टालना चाहा, लेकिन राकेश, विवेक, कनु, राघवन, स्मिता, अनिल सभी उन के पीछे पड़ गए, ‘‘अम्मां, सचसच बताइएगा, अंतर्जातीय विवाहों को आप सच ही उचित नहीं समझतीं या…’’ प्रश्न पूरा होने से पहले ही अम्मां सकुचाती सी बोल उठीं, ‘‘मेरे अपने विचार में इन विवाहों में कुछ भी अनुचित नहीं. पर हम जिस समाज में रहते हैं, उस के साथ ही चलना चाहिए.’’ ‘‘पर अम्मां, समाज तो हम से बनता है. यदि हम किसी बात को सही समझते हैं तो उसे दूसरों को समझा कर उन्हें भी उस के औचित्य का विश्वास दिलाना चाहिए न कि डर कर स्वयं भी चुप रह जाना चाहिए.’’ अब स्मिता को बोलने का अवसर भी मिल गया था, ‘‘अम्मां, जातिभेद प्रकृति की देन नहीं है.

ये भी पढ़ें- मृदुभाषिणी : शुभा को मामी का चरित्र बौना क्यों लगने लगा

यह वर्गीकरण तो हमारे शास्त्रों की जबरदस्ती की देन है. लेकिन अब तो हर जाति का व्यक्ति शास्त्र के विरुद्ध व्यवसाय अपना रहा है. अंतर्मन सब का एक जैसा ही तो है. फिर यह भेद क्यों?’’ राकेश ने अम्मां को एक और दृष्टिकोण से समझाना चाहा, ‘‘अम्मां, हम लोगों में शिक्षा की प्रधानता है. और शिक्षित व्यक्ति ही आगे बढ़ सकता है, ऐसा करने से हम आगे बढ़ते हैं. हमें जाति से जरा भी नफरत नहीं है. आप ऐसा क्यों सोचती हैं?’’ सब बातों में इतने मशगूल थे कि पता ही नहीं लगा, कब भैयाभाभी इत्यादि आ कर खड़े हो गए थे. अम्मां कुछ देर चुप रहीं, फिर बोलीं, ‘‘सच है, यदि हमारे परिवार की तरह ही हर परिवार अंतर्जातीय विवाहों को स्वीकार करे तो किसी हद तक तलाक व दहेज की समस्या सुलझ सकती है और बेमानी वैवाहिक जिंदगी जीने वालों की जिंदगी खुशहाल हो सकती है.’’ अम्मां के पोतेपोतियों ने उन्हें झट चूम लिया. एक बार फिर हमें गर्व की अनुभूति ने सहलाया, ‘हमारी अम्मां औरों से आगे हैं.’

बेदाग त्वचा के लिए ऐसे करें एलोवोरा का इस्तेमाल

अगर आप अपने चेहरे को सुंदर और बोदाग बनाए रखना चाहती हैं, तो आप बजार में मिलने वाले ब्यूटी प्रोडक्ट को छोड़ एलोवेरा जेल अपनाइये, क्योंकि त्वचा की समस्या के लिए एलोवेरा जेल सबसे अच्छा होता है. इसकी ठंडक से मुंहासे और दाग ठीक होने लगते हैं. आज हम आपको एलो वेरा का ऐसा मास्‍क बनाना सिखाएंगे जो हर तरह की स्‍किन प्रौब्‍लम के लिये प्रयोग किया जा सकता है.

चेहरे के लिये स्‍क्रब बनाएं

चेहरे को स्‍क्रब करना काफी जरुरी होता है नहीं तो आपके चेहरे पर बिल्‍कुल भी ग्‍लो नहीं दिखेगा. आप चाहें तो स्‍किन के लिये स्‍क्रब खुद घर पर ही तैयार कर सकती हैं. यह स्‍क्रब हर तरह की स्‍किन टाइप को सूट करता है. इसके लिये आपको एलो वेरा जेल, दही और थोड़ा ब्राउन या फिर वाइट शुगर की आवश्‍यकता होगी. इन सभी चीजों को मिक्‍स कर के चेहरे पर लगा कर गोलाई में रगड़ें. एलो वेरा स्‍किन को नमी पहुंचाता है और गंदगी से निजात दिलाता है. वहीं दही से स्‍किन में चमक आती है क्‍योंकि इसमें लैक्‍टिक एसिड पाया जाता है. और शुगर से डेड स्‍किन हटती है. इस स्‍क्रब को हफ्ते में एक बार लगाएं.

ये भी पढ़ें- अगर आपकी भी त्वचा रूखी है तो अपनाएं ये खास फेसपैक

मुंहासों के लिये

मुंहासो की सबसे बुरी बात यह होती है कि इनके दाग चेहरे पर लंबे समय तक टिके रहते हैं. मुंहासों को दूर करने के एलो वेरा जेल, थोड़ा सा जायफल पावडर और कुछ बूंद नींबू के रस की लें. इन सभी को मिला कर पेस्‍ट बनाएं और चेहरे पर लगा कर 10 मिनट रूक कर ठंडे पानी से धो लें. एलो वेरा जेल चेहरे पर पड़े मुंहासों को दूर कर उनके दाग को मिटाएगा.

रूखी त्‍वचा के लिये

त्‍वचा को नमी पहुंचाने के लिये एलो वेरा जेल काफी अच्‍छा होता है. आपको सिर्फ एलो वेरा जेल को औलिव औइल, शहद और बादाम तेल के साथ मिक्‍स करें. इसे चेहरे पर लगाएं और फिर आधे घंटे के बाद धो लें. यह आपके चेहरे को काफी लंबे समय तक मौइस्‍चराइज रखेगा और उम्र से पहले पड़ने वाली झुर्रियों को हटाएगा.

औइली स्‍किन के लिये

दही के साथ थोड़ा एलो वेरा जेल और टमाटर का रस मिलाइये और इस पेस्‍ट को चेहरे पर लगा कर हल्‍के हल्‍के मसाज कीजिये. इससे चेहरे का औइल निकलेगा और मुंहासों के निशान भी मिट जाएंगे. इस पेस्‍ट को चहरे पर 20 मिनट के लिये लगा छोड़ दें और फिर चेहरा धो लें.

ये भी पढ़ें- घर पर ही करें पार्लर जैसा मेकअप

संवेदनशील त्‍वचा के लिये

जिनकी स्‍किन संवेदनशील होती है, उनके चेहरे पर मुंहासे काफी जल्‍दी आते हैं और उनकी उम्र का भी जल्‍दी ही पता चलने लगता है. अगर आपकी त्वचा भी संवेदनशील है तो एलो वेरा और पपीते का पेस्‍ट बना कर लगाये, इसमें आपको काफी मदद मिलेगी. यह स्‍किन को हाइड्रेट करती है और एक्‍ने से बचाती है. इसके अलावा इससे चेहरे पर तुरंत ही ग्‍लो भी आता है.

बिहाइंड द बार्स : भाग 5

नोरा तब इस जेल में नयी-नयी आयी थी. वह लगातार गुमसुम सी बनी हुई थी. बैरक के एक कोने में सिमटी बैठी रहती थी. उसकी आंखें आंसुओं से तर रहती थीं और भय उसके चेहरे से टपकता था. मृणालिनी अपने बिस्तर पर बैठी उसे घूरती रहती थी. कुसुम ने एकाध बार उससे बात करने की कोशिश की, मगर ज्यादा नहीं.

मृणालिनी ने पहले दिन जोर से आवाज देकर पूछा था, ‘ऐ छोकरी… किस जुर्म में आयी खाला के घर? के नाम है? अरे बोल न… चुप काहे को लगी है?’

नोरा ने तब बड़ी मुश्किल से मृणालिनी को अपना नाम बताया था. फिर काफी कुरेदने पर बताया था कि उसे ड्रग्स ले जाते पकड़ा गया है. लेकिन साथ ही उसने यह भी कहा कि उसने कुछ नहीं किया है. वह निर्दोष है.

मृणालिनी उसकी बात सुन कर जोर से हंसी. लेकिन वह लगातार यही कहती रही कि वह निर्दोष है. मृणालिनी ने उसको झटका, ‘चल हट, सारे यही कहते हैं कि हम निर्दोष हैं. थोड़े दिन में खुद ही अपने करनी सुनाने लगते हैं. बड़े-बड़े टेढ़े यहां सीधे हो जाते हैं. ये जेल है मैडम, आपकी अम्मा का घर नहीं… कि सब आपकी बात पर भरोसा कर लेंगे.’

उस दिन मृणालिनी बुरी तरह नोरा को लताड़ कर बैरक से बाहर चली गयी. नोरा उससे बहुत डर गयी थी. डर के मारे उसने न तो शाम को चाय पी और न ही रात का खाना खाया. कुसुम ने कई बार कहा कि जाकर खाने की थाली ले आ, मगर वह बैरक से बाहर ही नहीं निकली. दूसरे दिन भी वह डरी-सहमी अपने कोने में दुबकी रही. तब कुसुम ने उससे कुछ हमदर्दी जतायी और खाना लाकर खिलाया. धीरे-धीरे नोरा सहज होने लगी. थोड़े दिन बाद मृणालिनी भी उसकी दशा देखकर उस पर तरस खाने लगी. उसकी शक्ल देखकर मृणालिनी के विचार बदले और उसे भी लगने लगा कि वह बेगुनाह है. एक दिन उसने नोरा के पास बैठ कर उसकी पूरी कहानी सुनी.

ये भी पढ़ें- ताज बोले तो

उस रात जब मृणालिनी की आंख खुली तो नोरा बैरक के कोने में अपने बिस्तर पर बैठी सिसक रही थी. उसकी सिसकियों से ही मृणालिनी की नींद खुली थी. वह अपने बिस्तर से उठ कर उसके पास गयी. उसने धीरे से नोरा के सिर पर अपना हाथ रखा तो नोरा सिसकते हुए बोली – मैं निर्दोष हूं.

मृणालिनी उसके बिस्तर पर उसके पास बैठ गयी. बोली, ‘लगता मुझे कि तू निर्दोष…. पर सिद्ध कैसे करेगी….? कोई है तेरा इस जेल से बाहर जो मदद करे?

नोरा ने ‘न’ में सिर हिलाया.

मृणालिनी झुंझलायी, बोली, ‘न पैसा, न आदमी, न जानपहचान… कैसे सिद्ध करेगी? बैग भर के कोकीन निकला तेरे पास से… तू मानी कि बैग तेरा… तू ही लेकर जा रही थी… फिर कैसे खुद को निर्दोष साबित करेगी?’

नोरा उससे लिपट कर रोने लगी. बोली, ‘फ्रेडरिक का पता चल जाए तो…’ वह बिलखने लगी. मृणालिनी ने जैसे-तैसे उसे संभाला. दिलासा दिया. वह जानती थी नोरा की कोख में एक नन्हा जीव पल रहा है. ऐसी हालत में हर वक्त उसका उदास रहना ठीक नहीं था. उस दिन के बाद से मृणालिनी धीरे-धीरे उसका दर्द बांटने लगी. उसे दिलासा देने लगी कि वह कोई न कोई जुगाड़ लगा कर उसके पति फ्रेडरिक का पता लगवाएगी. नोरा को मृणालिनी की बातों पर भरोसा होने लगा था कि किसी न किसी तरह वह उसके फ्रेडरिक का पता लगवा लेगी, लेकिन धीरे-धीरे सात महीने बीत गये, नोरा का गर्भ अपनी पूर्णत: की ओर बढ़ रहा था और मृणालिनी को कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था कि वह जेल की सख्त और ऊंची दीवारों के पार कैसे फ्रेडरिक का पता करवाए. नौ महीने पूरे होते ही एडबर्ड इस दुनिया में आ गया है. निर्दोष मां का निर्दोष बच्चा. यह सलाखें इन दोनों के लिए नहीं हैं. इन्हें यहां से बाहर निकालना ही होगा. मृणालिनी हर दिन खुद से यह वादा करती कि किसी न किसी तरह इन दोनों को यहां से निकालेगी.

नोरा ने मृणालिनी को बताया था कि वह हिन्दुस्तानी मां एलिना और अंग्रेज पिता आन्द्रे की इकलौती संतान है. वह अपने माता-पिता के साथ न्यूयॉर्क में रहती थी. नोरा सात साल की थी जब उसके माता-पिता का तलाक हो गया. नोरा की मां सात साल की नोरा को  साथ लेकर भारत आ गयी और हैदराबाद में अपनी एक आंटी के साथ रहने लगी. नोरा ने हैदराबाद में रह कर अपनी पढ़ाई पूरी की. वह बचपन से ही दुबली-पतली और डरपोक लड़की थी. उसकी मां अपनी दुर्दशा के लिए हर वक्त उसे दोषी ठहराती थी. हर वक्त उसे डांटती-फटकारती रहती थी. कहती कि अगर वह उसके जीवन में न आती तो वह आन्द्रे को तलाक देने के बाद किसी और अमीर आदमी से शादी कर लेती और एक सुखी और खुशहाल जीवन बिताती, मगर नोरा की वजह से वह ऐसा नहीं कर पायी.

हैदराबाद आने के बाद एलिना अपने अकेलेपन और हताशा को शराब में डुबाने लगी थी और अपना सारा फ्रस्टेशन नोरा पर उतारने लगी थी. नोरा जैसे-जैसे बड़ी हो रही थी, उसकी मां बूढ़ी और बीमार होती जा रही थी. कभी-कभी उसे नोरा की चिन्ता भी होती थी कि उसके बाद नोरा का क्या होगा. कॉलेज की पढ़ाई खत्म होने के बाद उसने नोरा की शादी अपनी आंटी की बहन के दूर के रिश्तेदार फ्रेडरिक से करवा दी.

शादी के बाद नोरा की जिन्दगी में थोड़ा परिवर्तन आया. फ्रेडरिक इंपोर्ट-एक्सपोर्ट का बिजनेस करता था. वह भले उससे उम्र में दस साल बड़ा था, लेकिन नोरा का काफी ख्याल रखता था. उसकी हर जरूरत पूरी करता था. वीक-एंड पर उसे लेकर घूमने भी जाता था. नोरा उसके साथ काफी खुश रहने लगी थी. फ्रेडरिक के घर आने के बाद नोरा को अपनी मां की डांट-फटकार, चीखने-चिल्लाने से निजात मिल गयी थी. यह उसकी नयी जिन्दगी थी. फ्रेडरिक का परिवार छोटा सा था. हैदराबाद में वह अपने छोटे भाई और पिता के साथ रहता था. चार लोगों का यह परिवार बहुत खुशहाल था. नोरा के दिन काफी अच्छे बीतने लगे. बीते जीवन की कड़ुवाहट अब खत्म होती जा रही थी.

ये भी पढ़ें- ऐसा तो होना ही था

नोरा की शादी के कुछ साल बाद उसकी मां एलिना की डेथ हो गयी और इधर फ्रेडरिक का छोटा भाई उसके पिता को लेकर कनाडा चला गया. घर में सिर्फ नोरा और फ्रेडरिक ही बचे. नोरा प्रेग्नेंट हुई तो फ्रेडरिक की खुशी का ठिकाना न रहा. उसने बकायदा पार्टी करके इस खुशी को सेलिब्रेट किया. उसके कारोबार के साथियों ने उस शाम नोरा के घर काफी रौनक लगायी. खूब खाना-पीना, नाचना-गाना हुआ. उस दिन नोरा को महसूस हुआ कि औरत को सबसे बड़ी खुशी और सम्मान मां बनने पर ही मिलता है. फ्रेडरिक और नोरा ने अपने होने वाले बच्चे के लिए खरीदारियां शुरू कर दी थीं. फ्रेडरिक हर शाम जब घर आता तो उसके बैग में कोई न कोई खिलौना या बेबी सूट जरूर होता था.

उन दिनों नोरा भविष्य के सुनहरे सपनों में खोयी हुई थी जब अचानक फ्रेडरिक ने उससे कहा कि उसने मेरठ में एक बड़ा मकान देखा है और अब वह दोनों मेरठ जाकर रहेंगे. मेरठ का नाम नोरा ने पहली बार सुना था. नोरा को समझ में नहीं आया कि फ्रेडरिक ने अचानक किसी दूसरे राज्य में शिफ्ट होने का फैसला क्यों किया? फ्रेडरिक से पूछने पर उसने सिर्फ इतना ही कहा कि उसके कारोबार से जुड़े ज्यादातर फ्रेंड्स मेरठ में हैं. वहां उसको काम करने में आसानी होगी. एक दिन फे्रडरिक ने नोरा से कहा कि वह मेरठ जाकर वह मकान देख आये जिसे उसके फ्रेंड हेनरी ने उन दोनों के लिए देखा है. काम की व्यस्तता के कारण फ्रेडरिक मेरठ नहीं जा सकता था और मकान का मालिक चाहता था कि वह जल्दी से जल्दी मकान देखकर हां कर दें, ताकि पेशगी मिलने पर वह दूसरे कस्टमर्स को मना कर सके.

फ्रेडरिक के कहने पर नोरा को मकान देखने मेरठ जाना पड़ा. हैदराबाद से फ्रेडरिक ने खुद उसे ट्रेन में बिठाया था. मकान का पता और हेनरी का मोबाइल नम्बर भी दिया था. स्टेशन पर हेनरी नोरा को रिसीव करने वाला था. लेकिन मेरठ स्टेशन पर नोरा को पुलिस ने रिसीव किया. उसके सामान की तलाशी ली गयी. उसके सामान के साथ कोकीन का बैग मिला. करोड़ों रुपये मूल्य की कोकीन. पुलिस ने नोरा को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया. उससे लम्बी पूछताछ हुई. जो बैग पुलिस को मिला था वह नोरा का ही था. उसने स्वीकार किया कि वह उसका बैग है, लेकिन उसमें जो चीज पुलिस को मिली थी, उसकी कोई जानकारी नोरा को नहीं थी. दूसरे सामान के साथ वह कब और कैसे इस बैग में आयी यह भी वह नहीं जानती थी. उसने अपने पति फ्रेडरिक को फोन मिलाया, मगर उसका फोन स्विच औफ था. उसने हेनरी का नम्बर मिलाया, वह भी स्विच औफ निकला.

ये भी पढ़ें- मेरा फुटबौल और बाबा की कुटिया

पुलिस ने नोरा को गिरफ्तार कर लिया. ड्रग तस्करी के आरोप में उसे अदालत के समक्ष पेश किया गया. पुलिस कस्टडी में उससे रात-दिन सवाल-जवाब किये गये. लेडी कौन्स्टेबल ने सच उगलवाने के लिए उसके गालों पर खूब थप्पड़ बरसाये. उसके जानने वालों के नाम-पते पूछे गये. नोरा ने सबकुछ बता दिया, जो वह जानती थी. फ्रेडरिक के बारे में, उसके परिवार के बारे में, अपने घर के बारे में, अपनी शादी और प्रेग्नेंसी के बारे में, अपने मेरठ के नये घर के बारे में उसने पुलिस से कुछ भी तो नहीं छिपाया. उसके डॉक्टरी परीक्षण में पता चला कि वह दो महीने की गर्भवती है. उसके पति को तलाशने की कोशिश की गयी, मगर फ्रेडरिक का कुछ पता नहीं चला. हैदराबाद के जिस घर में वह दोनों रह रहे थे, उसमें ताला पड़ा हुआ था. नोरा के पड़ोसियों को भी नहीं पता कि फ्रेडरिक अचानक कहां चला गया? उसे धरती निगल गयी कि आसमान खा गया? अदालत में नोरा रोती रही, बार-बार यही कहती रही कि वह बैग उसका है मगर जो चीज उसमें मिली है वह उसकी नहीं है, मगर अदालत ने कोई नरमी नहीं दिखायी. नोरा को पुलिस कस्टडी से जेल भेज दिया गया.

शुभारंभ : क्या अनगिनत अड़चनों के बावजूद हो पाएगी राजा रानी की शादी?

कलर्स के शो ‘शुभारंभ’ में राजा-रानी के बीच गलतफैमियाँ धीरे-धीरे खत्म हो रही हैं. वहीं दोनों की शादी की तैयारियां भी आगे बढ़ रही हैं. पर राजा-रानी की शादी क्या बिना किसी परेशानी के हो पाएगी? आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे…

राजा-रानी के बीच बढ़ता कनेक्शन

गुनवंत, राजा और रानी की शादी के लिए तैयार हो जाता है. राजा, रानी को बताता है कि वो वही शख्स है जिसने दुकान में उसकी मदद की थी, जब वो पुतला बनकर खड़ी थी. रानी इस बात से हैरान हो जाती है और ये बात उसके दिल को छू जाती है कि वो दोनों इतने लंबे समय से एक-दूसरे को जानते हैं. दोनों एक-दूसरे के साथ प्यार भरा  वक्त बिताते हैं, जहां राजा, रानी से कहता है कि वो सारी जिंदगी उसकी खुशी का ख्याल रखेगा.

subh-arambh

ये भी पढ़ें- शुभारंभ: क्या राजा-रानी के बीच बढ़ती गलतफहमियाँ कम हो पाएंगी?

क्या प्री वेडिंग फोटोशूट के लिए रानी होगी तैयार

subharambh-update

राजा, रानी को प्री-वेडिंग फोटोशूट के लिए कहता है, लेकिन रानी कहती है कि वो अपना काम नहीं छोड़ सकती क्योंकि इससे उसकी कमाई पर असर पड़ेगा लेकिन राजा उसे राजी करने की कोशिश करेगा.

आने वाले एपिसोड में आप देखेंगे कि कीर्तिदा और गुनवंत रानी के परिवार की आर्थिक स्थिति जानने की कोशिश करते दिखेंगे. जहां कीर्तिदा को पता चलता है कि उत्सव कोई राज़ छुपा रहा है.

subh

ये भी पढ़ें- छोटी सरदारनी : फूटा हरलीन का गुस्सा, क्या परम से दूर हो जाएगी मेहर ?

अब देखना ये है कि क्या बिना किसी रुकावट के राजा और रानी की शादी हो पाएगी? जानने के लिए देखते रहिए ‘शुभारंभ’, हर सोमवार से शुक्रवार रात 9 बजे सिर्फ कलर्स पर.

लोगों में NRC और CAA की अनभिज्ञता है विरोध का कारण

एक बार एक मधुमक्खी-पालक था जिसने मधुमक्खियों के लिए बहुत अच्छा स्थान बनाया था. वह मधुमक्खियों की अच्छी देखभाल करता था और मधुमक्खियां पित्ती में बहुत सारा शहद इकट्ठा करती थी.

एक बार मधुमक्खी-पालक किसी जरूरी काम के लिए बाजार गया और गलती से मधुमक्खियों के घर को बिना सुरक्षा के छोड़ दिया . मधुमक्खियां शहद इकट्ठा करने के लिए गई थीं .

दुर्भाग्यवश, एक चोर वहां आया और वहां पर किसी को न देखकर उसने सारा शहद चुरा लिया और अपने घर को भाग गया.

जब मधुमक्खी- पालक वापस आया, तो वह सभी मधुमक्खी के छत्ते को खाली देखकर परेशान हो गया. तभी मधुमक्खियां अपने मुंह में अधिक शहद लेकर लौटीं. अपने पित्ती को पलटा हुआ देख उनको लगा की मधुमक्खी पालक चोर है और उन्होंने बिना कुछ सोचे समझे उस पर हमला कर दिया.

ये भी पढ़ें- रात्रि में ही विवाह क्यों ?

मधुमक्खी पालने वाले ने रोते हुए कहा, “मुझे दंड देने से पहले आपको चोर को देखना चाहिए था.”

दोस्तों ये तो एक कहानी है पर हकीकत इससे कहीं ज्यादा बड़ी है.हम एक ऐसे देश में रह रहे है जहां हमें अपनी बात पूर्ण स्वतंत्रता से कहने का अधिकार है.पर फिर भी न जाने क्यों हम बिना कुछ सोचे समझे एक भेड़ चाल में चलते रहते है. हमारी इसी बात का बड़े-बड़े राजनेता फायदा उठाते है.

आज CAA और NRC के विरोध में देश में हर तरफ दंगे भड़क रहे है .लोग सड़कों पर उतर आये है .देश में एक अजीब सा माहौल बन गया है और हमारें नेताओं ने इसे प्रोटेस्ट का नाम दिया है.

पर क्या आप जानते हैं कि अनुच्छेद 11 के अंतर्गत AUTHORITIES ने हमें शांतिपूर्ण ढंग से विरोध करने, ट्रेड यूनियनों में शामिल होने और अपने विचारों को शातिपूर्ण ढंग से व्यक्त करने का अधिकार दिया है.हमें अपने अधिकारों का प्रयोग तो करना ही चाहिए पर सोच समझ कर-

ये भी पढ़ें- पुलिस या अदालत में जब बयान देने जाएं!

क्या है गलतफहमी

CAB (नागरिकता संशोधन बिल , 2019) को भारतीय संसद में 11 दिसंबर, 2019 को पारित किया गया, जिसमें 125 मत पक्ष में थे और 105 मत इसके विरोध में थे . संसद में पास होने और राष्ट्रपति की महुर लगने के बाद नागरिक संशोधन कानून ( CAA – Citizenship Amendment Act ) बन गया.

CAA के पारित होने से उत्तर-पूर्व, पश्चिम बंगाल और नई दिल्ली सहित पूरे देश में हिंसक विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया. हमारी राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की जामिया यूनिवर्सिटी में भी जबरदस्त प्रदर्शन हुए .जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्रों द्वारा विरोध मार्च का आयोजन किया गया और इसने हिंसक रुख अपना लिया.छात्रों और पुलिस में बहुत झड़पें हुईं और सार्वजनिक बसों में आग तक लगाई गई.

इसमें एक खास बात ये है कि इन सभी जगहों के विरोध एक जैसे नहीं हैं. हर कोई अलग-अलग सोच के साथ विरोध करने सड़क पर उतरा है.असम में लोगों को डर है कि बाहर के लोग वहां बसकर उनका हक छीन लेंगे, तो जामिया, एएमयू और नदवा कॉलेज के छात्रों द्वारा इस बात को लेकर प्रदर्शन हो रहा है कि मुस्लिमों की नागरकिता खतरे में है.

विरोधी इसे गैर-संवैधानिक बता रहे हैं जबकि सरकार का कहना है कि इसका एक भी प्रावधान संविधान के किसी भी हिस्से की किसी भी तरह से अवहेलना नहीं करता है. वहीं, इस कानून के जरिए धर्म के आधार पर भेदभाव के आरोपों पर सरकार का कहना है कि इसका किसी भी धर्म के भारतीय नागरिक से कोई लेना-देना नहीं है. सरकार ने कई बार साफ किया है कि यह कानून नागरिकता देने के लिए है, न कि नागरिकता छीनने के लिए.यानी एक बात तो साफ है कि लोगों को नागरिकता संशोधन कानून और नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन (National Register of Citizens) सही से समझ नहीं आया है, जिसकी वजह से तमाम तरह के भ्रम फैल रहे हैं. कई प्रदर्शनकारियों को लगता है कि इस कानून से उनकी भारतीय नागरिकता छिन जाएगी जबकि एक बड़ी आबादी को CAA और NRC के बारें में पता ही नहीं है.कुछ तो ऐसे है कि जिन्हें ये पता ही नहीं है की वो किस कारण विरोध कर रहे है. सब भेड़-चाल में शामिल है.

ऐसे में ये समझना बहुत जरूरी है कि CAA क्या है और NRC क्या है?

क्या है CAA ?

इस नागरिकता संशोधन कानून के तहत पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश से प्रताड़ित होकर आए हिंदू, सिख, ईसाई, पारसी, जैन और बुद्ध धर्मावलंबियों को भारत की नागरिकता दी जाएगी. इन अल्पसंख्यक लोगों को नागरिकता उसी सूरत में मिलेगी, अगर इन तीनों देशों में किसी अल्पसंख्यक का धार्मिक आधार पर उत्पीड़न हो रहा हो. अगर आधार धार्मिक नहीं है, तो वह इस नागरिकता कानून के दायरे में नहीं आएगा.

मुस्लिम धर्म के लोगों को इस कानून के तहत नागरिकता नहीं दी जाएगी. मुस्लिमों को इसमें शामिल ना करने के पीछे मोदी सरकार का ये तर्क है कि इन तीनों ही देशों में मुस्लिमों की बहुलता के कारण वहां धार्मिक आधार पर किसी मुस्लिम का उत्पीड़न नहीं हो सकता.

ऐसे अवैध प्रवासियों को जिन्होंने 31 दिसंबर 2014 की निर्णायक तारीख तक भारत में प्रवेश कर लिया है, वे भारतीय नागरिकता के लिए सरकार के पास आवेदन कर सकेंगे.

अभी तक भारतीय नागरिकता लेने के लिए 11 साल भारत में रहना अनिवार्य था. नए कानून CAA में प्रावधान है कि पड़ोसी देशों के अल्पसंख्यक अगर पांच साल भी भारत में रहे हों तो उन्हें नागरिकता दे दी जाएगी.

CAA में यह भी व्यवस्था की गयी है कि उनके विस्थापन या देश में अवैध निवास को लेकर उन पर पहले से चल रही कोई भी कानूनी कार्रवाई स्थायी नागरिकता के लिए उनकी पात्रता को प्रभावित नहीं करेगी.

ये भी पढ़ें- नाइट फिवर के माया जाल : डूबता युवा संसार

क्या है NRC

NRC नागरिकों का राष्ट्रीय रजिस्टर है, जो भारत से अवैध घुसपैठियों को निकालने के उद्देश्य से बनाया गया है. NRC से यह पता चलता है कि कौन भारत का नागरिक है और कौन नहीं. जो इसमें शामिल नहीं हैं और देश में रह रहे हैं उन्हें अवैध नागरिक माना जाता है.
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद एनआरसी प्रक्रिया हाल ही में असम में पूरी हुई. असम NRC के तहत उन लोगों को भारत का नागरिक माना जाता है जो 25 मार्च 1971 से पहले से असम में रह रहे हैं. जो लोग उसके बाद से असम में रह रहे हैं या फिर जिनके पास 25 मार्च 1971 से पहले से असम में रहने के सबूत नहीं हैं, उन्हें NRC लिस्ट से बाहर कर दिया गया है. NRC लागू करने का मुख्य उद्देश्य ही यही है कि अवैध नागरिकों की पहचान कर के या तो उन्हें वापस भेजा जाए, या फिर जिन्हें मुमकिन हो उन्हें भारत की नागरिकता देकर वैध बनाया जाए.

NRC की जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि 1971 के दौरान बांग्लादेश से बहुत सारे लोग भारतीय सीमा में घुस गए थे. ये लोग अधिकतर असम और पश्चिम बंगाल में घुसे थे. ऐसे में ये जरूरी हो जाता है कि जो घुसपैठिए हैं, उनकी पहचान कर के उन्हें बाहर निकाला जाए.

हालांकि, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने नवंबर में संसद में घोषणा की थी कि NRC पूरे भारत में लागू किया जाएगा.

मै अपने इस लेख में ये नहीं कहती कि आप अपने अधिकारों को भूल जाएँ ,मै सिर्फ ये कहना चाहती हूं कि अपने अधिकारों के साथ -साथ अपने कर्तव्यों को भी याद रखे .

“लोग अपने कर्तव्यों को भूल जाते हैं पर अधिकारों को याद रखते है “

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें