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हमदर्द : भाग 2

‘‘रहने दे, मेरा मन नहीं है. तू कुछ खा ले फिर भैया का कमरा ठीक से साफ कर दे, आता ही होगा.’’

‘‘फिर कुछ हुआ? अरे, बिना खाए मर भी जाओ तो भी बेटा पलट कर नहीं देखने या पूछने वाला. तुम इतनी बीमार पड़ीं पर कभी बेटे ने पलट कर देखा या हाल पूछा?’’

‘‘बात न कर के कमरा साफ कर… आता ही होगा.’’

‘‘कहां गया है?’’

‘‘ब्याह करने.’’

इतना सुनते ही जशोदा धम से फर्श पर बैठ गई.

‘‘जल्दी कर, रजिस्ट्री में समय ही कितना लगता है…बहू ले कर आता होगा.’’

‘‘बेटा नहीं दुश्मन है तुम्हारा. कब से सपने देख रही हो उस के ब्याह के.’’

‘‘सारे सपने पूरे नहीं होते. उठ, जल्दी कर.’’

‘‘कौन है वह लड़की?’’

‘‘मैं नहीं जानती, नौकरी करती है कहीं.’’

‘‘तुम भी आंटी, जाने क्यों बेटे के इशारे पर नाचती हो? अपना खाती हो अपना पहनती हो…उलटे बेटे को खिलातीपहनाती हो. सुना है मोटी तनख्वाह पाता है पर कभी 10 रुपए तुम्हारे हाथ पर नहीं रखे और अब ब्याह भी अपनी मर्जी का कर रहा है. ऐसे बेटे के कमरे की सफाई के लिए तुम मरी जा रही हो.’’

गहरी सांस ली कावेरी ने और बोली, ‘‘क्या करूं, बता. पहले ही दिन, नई बहू सास को बेटे से गाली खाते देख कर क्या सोचेगी.’’

‘‘यह तो ठीक कह रही हो.’’

जब बड़ी सी पहिए लगी अटैची खींचते बिल्लू के साथ टाइट जींस और टीशर्ट पहने और सिर पर लड़कों जैसे छोटेछोेटे बाल, सांवली, दुबलीपतली लावण्यहीन युवती को ले कर आया तब घड़ी ठीक 12 बजा रही थी. एक झलक में ही लड़की का रूखा चेहरा, चालचलन की उद्दंडता देख कावेरी समझ गई कि उसे अब पुत्र मोह को एकदम ही त्याग देना चाहिए. यह लड़की चाहे जो भी हो उस की या किसी भी घर की बहू नहीं बन सकती. पता नहीं बिल्लू ने क्या सोचा? बोला, ‘‘रीटा, यह मेरी मां है और मां यह रीटा.’’

जरा सा सिर हिला या नहीं हिला पर वह आगे बढ़ गई. कमरे में जा कर बिल्लू ने दरवाजा बंद कर लिया. हो गया नई बहू का गृहप्रवेश. और नई चमचमाती जूती के नीचे रौंदती चली गई थी वह कावेरी के वे सारे सपने जो जीवन की सारी निराशाओं के बीच बैठ कर देखा करती थी. सुशील बहू, प्यारेप्यारे पोतेपोती के साथ सुखद बुढ़ापे का सपना.

जशोदा लौट कर रसोई की चौखट पर खड़ी हुई और बोली, ‘‘आंटी, यह औरत है या मर्द, समझ में नहीं आया.’’

जशोदा इतनी मुंहफट है कि उस की हरकतों से डरती है कावेरी. पता नहीं नई बहू के लिए और क्याक्या कह डाले. पहले दिन ही वह बहू के सामने बेटे से अपमानित नहीं होना चाहती. पर यह तो सच है कि अब उस को कुछ सोचना पड़ेगा. देखा जाए तो बेटे का जो बरताव उस के साथ रहा उस से बहुत पहले ही उस को अलग कर देना चाहिए था पर अनजान मोह से वह बंध कर रह गई.

‘‘अब तो मां के सहारे की उसे कोई जरूरत नहीं…अब क्यों साथ रहना.’’

जशोदा ने खाना बना कर मेज पर लगा दिया. न चाहते हुए भी कावेरी ने थोड़ी खीर बनाई. जशोदा फिर बौखलाई.

‘‘अब ज्यादा मत सिर पर चढ़ाओ.’’

‘‘नई बहू है, उसे तो पूरी खिलानी चाहिए. मीठा कुछ मंगाया नहीं, थोड़ी खीर ही सही.’’

‘‘अब तुम रहने दो. कहां की नई बहू? पैंट, जूता, बनियान में आई है, सास के पैर छूने तक का ढंग नहीं है. लगता है कि घाटघाट का पानी पी कर इस घाट आई है.’’

कंधे झटक जशोदा चली गई. थोड़ी देर में दोनों अपनेआप खाने की मेज पर आ बैठे. बेटा तो कुरतापजामा पहने था. बहू घुटनों से काफी ऊंचा एक फ्राक जैसा कुछ पहने थी और ऊपर का शरीर आधा नंगा था.

बेटे से एक शब्द भी बोले बिना कावेरी ने बहू को पारखी नजर से देखा. दोनों चुपचाप खाना खा रहे थे. उस के मुख पर भले घर की छाप एकदम नहीं थी और संस्कारों का तो जवाब नहीं. सास से एक बार भी नहीं कहा कि आप भी बैठिए. और तो और, खाने के बाद अपनी थाली तक नहीं उठाई और दरवाजा फिर से बंद हो गया.

घर का वातावरण एकदम बदल गया. यह स्वाभाविक ही था. घर में जब बहू आती है तो घर का वातावरण ही बदल जाता है. उसे भोर में उठने की आदत है. फ्रेश हो कर पहले चाय बनाती, आराम से बैठ कर चाय पीती, तब दिनचर्या शुरू होती. तब कभीकभी बेटा भी आ बैठता और चाय पीता, दोचार बातें न होती हों ऐसी बात नहीं, मामूली बातें भी होतीं पर अब तो साढ़े 8 बजे जशोदा चाय की टे्र ले कर दरवाजा पीटती तब दरवाजा खोल चाय ले कर फिर दरवाजा बंद हो जाता. खुलता 9 बजने के बाद फिर तैयार हो, नाश्ता करने बैठते दोनों और फौरन आफिस निकल जाते.

दोपहर का लंच आफिस में, शाम को लौटते, ड्रेस बदलते फिर निकल जाते तो आधी रात को ही लौटते. बाहर ही रात का खाना खाते तो नाश्ता छोड़ घर में खाने का और कोई झंझट ही नहीं रहता. छुट्टी के दिन भी कार्यक्रम नहीं बदलता. नाश्ता कर दोनों घूमने चले जाते…रात खापी कर लौटते.

बहू से परिचय ही नहीं हुआ. बस, घर में रहती है तो आंखों में परिचित है, संवाद एक भी नहीं. खाना खाने के बाद ऐसे उठ जाती जैसे होटल में खाया हो. न थाली उठाती न बचा सामान समेट फ्रिज में रखती. कावेरी हैरान होती कि कैसे परिवार में पली है यह लड़की? संस्कार दूर की बात साधारण सी तमीज भी नहीं सीखी है इस ने और यह सब छोटीमोटी बातें तो बिना सिखाए ही लड़कियां अपनी सहज प्रवृत्ति से सीख जाती हैं. इस में तो स्त्रीसुलभ कोई गुण ही नहीं है…पता नहीं इस के परिवार वाले कैसे हैं, कभी बेटी की खोजखबर लेने भी नहीं आते?

कावेरी ने अब अपने को पूरी तरह समेट लिया है. जो मन में आए करो, मुझ से मतलब क्या? कुछ इस प्रकार के विचार बना लिए उस ने. सोचा था घर छोड़ ‘हरिद्वार’ जा कर रहेगी पर इस घर की एकएक चीज उस की जोड़ी हुई, सजाई हुई है. बड़ी ममता है इस सजीसजाई गृहस्थी के प्रति, फिर यह घर भी तो उस के नाम है…वह क्यों अपना घर छोड़ जाएगी…जाना है तो बहूबेटे जाएंगे.

जशोदा भी यही बात कहती है. इस समय उस का अपना कोई है तो बस, जशोदा है. महीने का वेतन और रोटीकपड़े पर रहने वाली जशोदा ही एकमात्र अपनी है…बहुत दिनों की सुखदुख की गवाह और साथी.

बेटे ने घर के लिए कभी पैसा नहीं दिया और आज भी नहीं देता है. कावेरी ने भी यह सोच कर कुछ नहीं कहा कि ये लोग घर पर केवल नाश्ता ही तो करते हैं. बहू तो कमरे से बाहर आती ही नहीं है. कभीकभी चाय पीनी हो तो बेटा रसोई में जा कर चाय बना लेता है. 2 कप कमरे में ले जाते हुए मां को भी 1 कप चाय पकड़ा जाता है. बस, यही सेवा है मां की.

हमदर्द : भाग 1

कावेरी सन्न रह गई. लगा, उस के पैरों की शक्ति समाप्त हो गई है. कहीं गिर न पड़े इस डर से सामने पड़ी कुरसी पर धम से बैठ गई. 27 साल के बेटे को जो बताना था वह बता चुका  था और अब मां की पेंपें सुनने के लिए खड़े रहना उस के लिए मूर्खता छोड़ और कुछ नहीं था. फिर मां के साथ इतना लगाव, जुड़ाव, अपनापन या प्यार उस के मन में था भी नहीं जो अपनी कही हुई भयानक बात की मां के ऊपर क्या प्रतिक्रिया है उस को देखने के लिए खड़ा हो कर अपना समय बरबाद करता.

कावेरी ने उस की गाड़ी के स्टार्ट होने की आवाज सुनी और कुरसी की पुश्त से टेक लगा कर निढाल सी फैल गई. जीतेजागते बेटे से यह बेजान लकड़ी की बनी कुरसी उस समय ज्यादा सहारा दे रही थी. काम वाली जशोदा आटा पिसवाने गई थी. अत: जब तक वह नहीं लौटती अकेले घर में इस कुरसी का ही सहारा है.

पति का जब इंतकाल हुआ तो बेटा 8वीं में था. कावेरी को भयानक झटका लगा पर उस में साहस था. सहारा किसी का नहीं मिला, मायके वालों में सामर्थ्य ही नहीं थी, ससुराल में संपन्नता थी पर किसी के लिए कुछ करने का मन ही नहीं था.

वह समझ गई थी कि अब अपनी नाव को आप ही खींच कर किनारे पर लाना है. पति के फंड का पैसा ले कर मासिक ब्याज खाते में जमा किया. बीमा का जो पैसा मिला उस से आवासविकास का यह घर खरीद लिया. ब्याज जितना आता खाना और बेटे की पढ़ाई हो जाती पर कपड़ा, सामाजिकता, बीमारी आदि सब कैसे हो? उस का उपाय भी मिल गया. पड़ोस में एक प्रकाशक थे, पाठ्यक्रम की किताबें छापते थे. उन से मिल कर कुछ अनुवाद का काम मांग कर लाई. उस से जो आय होती उस का काम ठीकठाक चल जाता. अब अभाव नहीं रहा.

जशोदा को पूरे समय के लिए रख लिया. गाड़ी पटरी पर आ कर ठीकठाक चलने लगी. उस ने सोचा जीवन ऐसे ही कट जाएगा पर इनसान जो सोचता है उस के विपरीत करना ही नियति का काम है तो कावेरी के सपने भला कैसे पूरे होते.

अपने सपने पूरे नहीं होंगे इस का आभास तो बेटे के थोड़ा बडे़ होते ही कावेरी को होने लगा था. बेटा वैसे तो लोगों की नजरों में सोने का टुकड़ा है. पढ़ने में सदा प्रथम, कोई बुरी लत नहीं, बुरी संगत नहीं, रात में कभी देर से नहीं लौटता, पैसा, फैशनेबुल कपड़े या मौजमस्ती के लिए कभी मां को तंग नहीं करता पर जैसेजैसे बड़ा होता जा रहा था कावेरी अनुभव करती जा रही थी कि बेटे का रूखापन उस के प्रति बढ़़ता जा रहा था.

कोई लगाव, प्यार तो मां के प्रति बचा ही नहीं था. तेज बुखार में भी उठ कर बेटे को खाना बनाती और बेटा चाव से खा कर घर से निकल जाता. भूल कर भी यह नहीं पूछता कि मां, कैसी तबीयत है.

कावेरी इन बातों को कहे भी तो कैसे? ऊपर को मुंह कर के थूको तो थूक अपने मुंह पर आ कर गिरता है. दुश्मन भी यह जान कर खुश होंगे कि बेटा उस के हाथ के बाहर है. दूसरी बात यह थी कि उस के मन में भय भी था कि पति का छोड़ा यह घर उन के पीछे बिना बिखरे टिका  हुआ है. लड़ाईझगड़ा करे और बेटा घर छोड़ कर चला जाए तो एक तो घर घर नहीं रहेगा, दूसरी और बड़ी बात होगी कम उम्र की कच्ची बुद्धि ले घर से निकल वह अपना ही सर्वनाश कर लेगा.

बेटा कैसा भी आचरण क्यों न करे वह तो मां है. बेटे को सर्वनाश के रास्ते में नहीं धकेल सकती, अवहेलना अनादर सह कर भी नहीं. इन सब परिस्थितियों के बीच भी एक आशा की किरण टिमटिमा रही थी कि बेटा बिल्लू एम.बी.ए. कर एक बहुत अच्छी कंपनी में उच्च पद पर लग गया है. सुना है ऊंचा वेतन है. हां, यह जरूर है कि वेतन का बेटे ने एक 10 का नोट भी उस के हाथ पर रख कर नहीं कहा, ‘मां, यह लो, अपने लिए कुछ ले लेना.’

घर जैसे पहले वह चलाती थी वैसे ही आज भी चला रही है. अब तो बड़ेबड़े घरों से अति सुंदर लड़कियों के रिश्ते भी आ रहे हैं. कावेरी खुशी और गर्व से फूली नहीं समा रही. इन में से छांट कर एक मनपसंद लड़की को बहू बना कर लाएगी तो घर का दरवाजा हंस उठेगा. बहू उस के साथसाथ लगी रहेगी. बेटे से नहीं पटी तो क्या? पराई बेटी अपनी बेटी बन जाएगी पर बेटे ने उस की उस आशा की किरण को बर्फ की सिल्ली के नीचे दफना दिया और वह खबर सुना कर चला गया था जिस से उस के शरीर में जितनी भी शक्ति थी समाप्त हो गई थी और बेजान कुरसी ने उसे सहारा दिया.

आज कावेरी को पहली बार लगा कि जीवन उस के लिए बोझ बन गया है क्योंकि इनसान जीता है किसी उद्देश्य को ले कर, कोई लक्ष्य सामने रख कर. जिस समय पति की मृत्यु हुई थी तब भी उसे लगा था कि जीवन समाप्त हो गया पर उस को जीना पड़ेगा, सामने उद्देश्य था, लक्ष्य था, बेटा छोटा है, उस को बड़ा कर उस का जीवन प्रतिष्ठित करना है, उस का विवाह कर के घर बसाना है. मौत भी आ जाए तो उस से कुछ सालों की मोहलत मांग बेटे के जीवन को बचाना पड़ेगा पर आज तो सारे उद्देश्य की समाप्ति हो गई, जीवन का कोई लक्ष्य बचा ही नहीं पर बुलाने से ही मौत आ खड़ी हो इतनी परोपकारी भी नहीं.

जशोदा लौटी. आटे का कनस्तर स्टोर में रख कर साड़ी झाड़ती हुई आ कर बोली, ‘‘आंटी, नाश्ता बना लूं? भैया चला गया क्या? बाहर गाड़ी नहीं है.’’

विज्ञान : कैसा होगा भविष्य का इंसान ?

पिछली सदी के 1970-80 के सब्जी बाजारों की तुलना आज की सब्जी मंडियों से करें तो न्यूयौर्क, पेरिस या लंदन की सब्जी मंडियां ही नहीं, न सिर्फ दिल्ली और मुंबई के सब्जी बाजार, बल्कि लुधियाना और मेरठ तक के सब्जी बाजार तब के मुकाबले आज बहुत बदलेबदले नजर आएंगे. आखिर 1970-80 की सब्जी मंडियों में कहां थे- लाल, पीले और बैगनी रंग की शिमलामिर्च? 1970-80 की सब्जी मंडियों में कहां थे 4 किस्मों के टमाटर, 5-6 किस्मों के बैगन, कई किस्मों के बेर, दर्जनों किस्मों की फलियां और न जाने क्याक्या?

कहने का मतलब यह कि पिछले 4-5 दशकों में सब्जियों की दुनिया में बहुत सारे बदलाव हुए हैं. हर सब्जी की न केवल कईकई किस्में बाजार में आ गई हैं, बल्कि इन के साथ अब मौसमों और महीनों की बंदिशें भी खत्म हो गई हैं.

आज 4 दशकों पहले के मुकाबले हर सब्जी न केवल तमाम नईनई किस्म में मौजूद है बल्कि ये किस्में, किसी भी पुरानी किस्म के मुकाबले कहीं ज्यादा उपयोगी, स्वादिष्ठ और आकर्षक हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि इन्हें कोशिश कर के ऐसा बनाया गया है.

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लेकिन जरा रुकिए, यह सम झने के लिए कि यह बदलाव सिर्फ सब्जियों या फलों तक ही सीमित नहीं और न ही सीमित रहेगा. यह बदलाव और विकास इंसान की काया के संबंध में भी हो रहा है, कुछ अपनी तरफ से और बहुतकुछ कोशिशन. वास्तव में भविष्य में इंसान ऐसा ही नहीं होगा, जैसा आज है.

भविष्य के इंसान के शरीर में बहुत सारी मशीनरी की हिस्सेदारी होगी. सच तो यह है कि इस की अच्छीखासी शुरुआत हो चुकी है. ब्रिटिश रोबोटिक्स इंजीनियर केविन वारविक दुनिया के पहले ऐसे इंसान थे जो यह सम झने के लिए कि इंसान का नर्वस सिस्टम किसी बाहरी मशीन के साथ कैसे संगति करता है या आपस में मिलने पर कैसी प्रतिक्रिया करता है, उन्होंने अपनी बांह के नीचे एक सैंसर या कहें इलैक्ट्रौनिक डिवाइस इंप्लांट कराई थी. उन्हें दुनिया का पहला सायबोर्ग या अर्धमशीनी मानव होने का श्रेय हासिल है.

उड़ भी सकेगा मानव

यूनाइटेड किंगडम में रोबोटिक्स और आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस के अध्येता केविन वारविक, जोकि मौजूदा समय में कोवैंट्री यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर हैं, बहुत साफ शब्दों में कहते हैं, ‘‘कल का इंसान आज के जैसा बिलकुल नहीं होगा.’’ हम सब ने स्कूल की किताबों में पढ़ा है कि हमारे पूर्वजों के एक जमाने में, भले यह 10,000 साल पहले की बात हो, पूंछ हुआ करती थी. लेकिन कालांतर में वह गायब हो गई. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि इंसान के लिए उस की कोई उपयोगिता नहीं बची.

उपयोगिता का यही सिद्धांत आने वाले दिनों में इंसान के और बहुत से अंगों पर लागू होगा और तमाम ऐसे अंगों की जरूरत पर भी लागू होगा जोकि मौजूदा लाइफस्टाइल के हिसाब से भविष्य में चाहिए होंगे. मसलन, इंसान के जीवन में रफ्तार की जरूरत दिनोंदिन बढ़ती जा रही है. इसलिए, विकासक्रम का विश्लेषण करने वाले वैज्ञानिकों को लगता है कि भविष्य का इंसान उड़ भी सकता है.

इंसान के लिए उड़ने की बात कहते हुए वैज्ञानिक अभी भी बहुत सारे किंतुपरंतु का सहारा ले रहे हैं, लेकिन बंदरों को ले कर वे काफी विश्वसनीयता से ऐसा कह रहे हैं तो क्या भविष्य तथाकथित हनुमान के उड़ने को सच साबित करने जा रहा है? शायद हां, लेकिन हालफिलहाल में नहीं, बहुत सालों बाद, बल्कि हजारों साल बाद.

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दरअसल इस उम्मीद का आधार इंसान का क्रमागत विकास का इतिहास है, जिस के मुताबिक, शरीर के जिन अंगों की जरूरत हमें नहीं थी, वे स्वमेव खत्म हो गए और जिन की जरूरत थी लेकिन वे नहीं थे, धीरेधीरे विकसित हो गए. चूंकि पहले तो महज जरूरत ही एकमात्र कैटेलिटिक एजेंट थी, जिस के चलते ये जरूरी बदलाव और विकास हुए, जबकि अब तो इस जरूरत को विकास के लिए पंख देने हेतु विकसित विज्ञान भी है. ऐसे में क्यों न यह अनुमान लगाने की कोशिश की जाए कि भविष्य में इंसान का बहुत काल्पनिक हद तक विकास होगा.

आज के जैसा नहीं होगा जीवन

वैसे भी माना जाता है कि प्रकृति के विकास का पहिया हमेशा घूमता रहता है. इस प्रक्रिया के चलते भी इंसान के रंगरूप, आकार और गतिविधियों में कई किस्म के चौंकाने वाले बदलाव वैज्ञानिक कल्पना कर पा रहे हैं. बीबीसी भविष्य सीरीज के तहत छपे एक शोधलेख के मुताबिक, ‘आने वाले समय में पूरी कायनात में ऐसे परिवर्तन होंगे कि धरती पर रहने वाला कोई भी जीव आज के जैसा नजर नहीं आएगा.’

वर्ष 1980 में लेखक डुगल डिक्सन ने एक किताब लिखी थी, ‘आफ्टर मैन : ए जूलौजी औफ द फ्यूचर.’ इस किताब में उन्होंने लाखों साल बाद नजर आने वाली ऐसी दुनिया की कल्पना की है जिस पर यकीन कर पाना मुश्किल है. इस किताब में उड़ने वाले बंदर, चिडि़यों की शक्ल वाले ऐसे फूल जिन पर शिकार खुद आ कर बैठता है और उड़ने वाले ऐसे सांपों का जिक्र है जो हवा में ही अपना शिकार कर लेते हैं. किसी आम इंसान के लिए यह दुनिया किसी सनकी लेखक के दिमाग की उपज से ज्यादा कुछ नहीं. यह पूरी तरह मनगढ़ंत है. लेकिन, रिसर्चर इस किताब में भविष्य की तमाम संभावनाएं देखते हैं.

क्रमिक विकास के जीव वैज्ञानिक जोनाथन लोसोस के मुताबिक, ‘करीब 54 करोड़ साल पहले जब कैम्ब्रियन विस्फोट हुआ था, तो धरती कई तरह के अजीब जीवों से फट पड़ी थी. इस दौर के हैलोसेजिन्या नाम के एक जीव के जीवाश्म मिले हैं, जिस के पूरे शरीर पर हड्डियों का ऐसा जाल था जैसा कि हमारी रीढ़ की हड्डी में देखने को मिलता है. इस बात की पूरी संभावना है कि निकट भविष्य में ऐसे ही कुछ और जीव पैदा हो जाएं.’

जोनाथन जिस तरह की कल्पना से एक अर्धमानवों के विकास की बात कर रहे हैं वह बात विज्ञान के दायरे में भले पहली बार हो रही हो लेकिन माइथोलौजी के दायरे में इस तरह की जीव प्रजातियों के बारे में बातें ही नहीं, बल्कि उन के तमाम जीवन कौशलों का विस्तृत लेखाजोखा दुनिया की तमाम सभ्यताओं के पास है. हिंदू माइथोलौजी तो इस का भंडार है. इस में अनेक ऐसे राक्षसों का जिक्र है. जिन की आज भी किसी हाइब्रिड विज्ञान में कल्पना मुश्किल लगती है. लेकिन, रोमन और ग्रीकन माइथोलौजी में भी ऐसी जीव प्रजातियां हैं जो जलचर, नभचर और थलचर एकसाथ हैं.

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कुल मिला कर इंसान का तेज रफ्तार विकास उस तरफ जा रहा है जहां जल्द ही वह अपनी कोई नई पहचान हासिल करेगा. लेकिन इस नई पहचान पाने का समय कोई 10-20 या 50-100 साल की सीमा नहीं है, बल्कि यह सैकड़ों साल आगे की संभावनाओं का खाका है.

प्यार की कीमत : 3 लाशें

परेशानी की हालत में हरमन सिंह कुएं के चारों ओर चक्कर लगाते हुए गहरी सोच में डूबा हुआ था.

नवनीत कौर उर्फ बेबी कुएं की मुंडेर पर बैठी थी. उस के चेहरे पर भी चिंता के बादल मंडरा रहे थे. दोनों ही सोच में डूबे थे पर किसी से कुछ कह नहीं पा रहे थे. अचानक हरमन रुका और उस ने बेबी के नजदीक जा कर कहा, ‘‘हमारे पास इस समस्या का और कोई इलाज नहीं है, सिवाय इस के कि हम घर से भाग कर शादी कर लें. बाद में जो होगा, देखा जाएगा.’’

‘‘नहीं हरमन, हम ऐसा नहीं कर सकते.’’ चिंतित बेबी ने डरते हुए कहा. अपनी बात जारी रखते हुए उस ने आगे बताया, ‘‘मैं ने अपनी मां से अपनी शादी के बारे में बात की थी. मां ने वादा किया था कि वह बापू को मना लेगी. मेरे खयाल से हमें कुछ दिन और इंतजार करना चाहिए.’’

‘‘मैं ने भी अपने बापू को सब कुछ बता दिया है. शायद वह राजी हो जाएं. पर समस्या यह है कि तेरे बापू ने तेरे लिए जो लड़का ढूंढा है, जिस से अगले हफ्ते तेरी सगाई हो रही है. उस वक्त हम कुछ नहीं कर पाएंगे.’’ हरमन ने चिंतातुर होते हुए कहा.

‘‘मैं फिर कहती हूं कि हमें कुछ दिन और इंतजार करना चाहिए. अगर कोई चारा न बचा तो हम घर से भाग कर शादी कर लेंगे.’’ बेबी ने इतना बता कर बात खत्म कर दी. इस के बाद  दोनों अपनेअपने रास्ते चले गए. यह बात 2 अगस्त, 2019 की है.

भारतपाक सीमा पर स्थित तरनतारन के गांव नौशेरा के निवासी थे सरदार जोगिंदर सिंह. वह खेतीबाड़ी का काम करते थे. उन के 4 बच्चे थे, 2 बेटे और 2 बेटियां. सब से बड़ी बेटी सरबजीत कौर की शादी उन्होंने कर दी थी. उस से छोटा बेटा 22 वर्षीय हरमन अपने पिता के साथ खेतों में काम करता था.

हरमन से छोटी थी 19 वर्षीय प्रभदीप कौर, जिस की शादी के लिए वर की तलाश की जा रही थी. इन सब से छोटा 16 वर्षीय पवनदीप सिंह था. यह परिवार अपने आप में मस्त मगन रहने वाला शांत स्वभाव का था.

4 साल पहले जोगिंदर सिंह की पत्नी अमरजीत कौर की मृत्यु हो गई थी. उस समय गांव के ही बीर सिंह ने जोगिंदर सिंह और उस के परिवार का बड़ा ध्यान रखा था. बीर सिंह भले ही छोटी जाति का मजहबी सिख था, पर बीर सिंह और जोगिंदर सिंह की आपस में बड़ी गहरी दोस्ती थी.

पूरा गांव उन की दोस्ती की मिसाल देता था. दोनों एकदूसरे को भाई मानते थे, पर यह बात कोई नहीं जानता था कि आगे चल कर उन की दोस्ती एक ऐसे मुकाम पर जा पहुंचेगी कि जिस की कीमत लहू दे कर चुकानी पड़ेगी.

बीर सिंह भी नौशेरा ढाला गांव का निवासी था. उस के परिवार में पत्नी के अलावा 3 बेटे और 2 बेटियां थीं. बड़ी बेटी की उस ने शादी कर दी थी और बाकी बच्चे अभी अविवाहित थे. बीर सिंह और जोगिंदर के आपस में अच्छे संबंध होने के कारण दोनों परिवारों का एकदूसरे के घर काफी आनाजाना था.

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इसी आनेजाने के दौरान जोगिंदर के बेटे हरमन की आंखें बीर सिंह की बेटी नवनीत कौर उर्फ बेबी से लड़ गईं. दोनों बचपन से साथ खेलेबढ़े थे, युवा होने पर जब दोनों ने एकदूजे को देखा तो अपनाअपना दिल हार बैठे.

गांव के बाहर खेतों में किसी न किसी बहाने से दोनों की मुलाकातें होने लगीं. दिन पर दिन उन का प्यार परवान चढ़ने लगा और फिर अंत में वह दिन भी आ गया, जिस की दोनों ने कल्पना भी नहीं की थी.

बीर सिंह ने अपनी बेटी बेबी के लिए लड़का खोज लिया था और वह जल्द ही उस के हाथ पीले करना चाहता था. हरमन और बेबी के प्रेम संबंधों की दोनों परिवारों को भनक तक नहीं थी. बहरहाल, बेबी के कहने पर उस की मां ने अपने पति बीर सिंह से जब हरमन के रिश्ते की बात की तो उस ने साफ और कड़े शब्दों में इनकार कर दिया.

इस के बाद हरमन और बेबी के पास शादी करने के लिए घर से भागने के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं बचा था. सो आपस में सलाह कर वे दोनों अगस्त के पहले सप्ताह में घर से भाग गए. हरमन ने अपनी बड़ी बहन की सहायता से गुरुद्वारा साहिब में बेबी से शादी कर ली.

दोनों ने जाति की दीवार तोड़ कर एक साथ जीनेमरने की कसमें खाते हुए शादी तो कर ली, पर उन्हें क्या पता था कि इस की कीमत हरमनजीत सिंह के पूरे परिवार को चुकानी पड़ेगी.

बीर सिंह और उस के बेटों को जब इस बात का पता चला तो उन का खून खौल उठा. उन्होंने हरमन और बेबी को तलाशने की बहुत कोशिश की पर वे नहीं मिले. इस बीच गांव वालों के सामने बलबीर सिंह बीरा, उस के बेटों वरदीप सिंह, अर्शदीप सिंह, सुखदीप सिंह की ओर से हरमन और उस के परिवार को धमकाया जा रहा था.

शादी के बंधन में बंध जाने के बाद घर की जिम्मेदारी के चलते हरमन कोई भी विवाद नहीं चाहता था. इसी कारण लगभग डेढ़ महीने पहले विवाह के तुरंत बाद वह गांव छोड़ कर चला गया था.

29 जुलाई, 2019 को बीर सिंह और उस के बेटों को खबर मिली कि हरमन बेबी के साथ 2 दिनों से अपने घर आया हुआ है. यह खबर मिलने के बाद वे लोग पूरी तैयारी के साथ रात होने का इंतजार करने लगे. इस से पहले बीर सिंह के बेटे वरदीप सिंह, अर्शदीप सिंह, सुखदीप सिंह हाथों में नंगी तलवारें ले कर जोगिंदर के घर के आसपास मंडराते रहे थे.

खतरे का अंदेशा भांप कर हरमन ने चुपके से अपनी पत्नी बेबी को अपने घर से निकाला और बहन के गांव पहुंचा दिया. घटना वाली रात 29 तारीख को रात का खाने के बाद हरमन अपने पिता जोगिंदर सिंह के साथ छत पर सोने चला गया. उस का छोटा भाई पवनदीप सिंह और बहन प्रभदीप कौर नीचे कमरे में सो गए थे.

रात करीब डेढ़ बजे हरमन को अपने घर की चारदीवारी के पास कुछ आहट सुनाई दी. उस ने नीचे झांक कर देखा तो दंग रह गया. बीर सिंह अपने बेटों और कुछ अन्य लोगों के साथ घर की चारदीवारी फांदने की कोशिश कर रहा था.

यह देख वह घबरा गया और उस ने अपने पिता को जगा कर सचेत किया. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसे संकट में वह अपने परिवार को बचाने के लिए क्या करे. तब तक बीर सिंह अपने लोगों के साथ चारदीवारी फांद कर घर के आंगन में दाखिल हो चुका था.

हरमन ने छत से गली में छलांग लगाई और ‘बचाओ बचाओ’ का शोर मचाते हुए अपने ताया बलकार सिंह के घर की तरफ दौड़ा. तब तक कुछ और गांव वाले भी उठ कर अपने घरों से बाहर निकल आए और हरमन को भागते हुए देखा पर किसी की समझ में यह बात नहीं आई कि हरमन क्यों भाग रहा है.

हरमन ने अपने ताया को जा कर पूरी बात बताई. वह अपने छोटे भाई और बेटों के साथ तुरंत भाई जोगिंदर सिंह के घर की ओर दौड़े पर जब वह वहां पहुंचे तब तक बहुत देर हो चुकी थी.

बीर सिंह अपने बेटों, दामाद और अपने साथियों के साथ हरमन के परिवार की लाशें बिछा कर जा चुका था. शोर सुन कर पड़ोसी भी जमा हो गए थे. हरमन के ताऊ चाचा और पड़ोसियों ने पूरे गांव में बीर सिंह और उस के बेटों की तलाश की, पर वे गांव से फरार हो गए थे. बीर सिंह ने छत पर सो रहे जोगिंदर सिंह तथा नीचे कमरे में सो रहे पवनदीप सिंह और प्रभदीप कौर की बड़ी बेरहमी से हत्या कर दी थी.

सुबह जैसेजैसे दिन का उजाला फैलता गया, गांव में दहशत का माहौल बनता गया. इस तिहरे हत्याकांड ने पूरे इलाके को हिला कर रख दिया था. घटना की सूचना मिलते ही एसपी हरजीत धारीवाल, डीएसपी कमलजीत सिंह औलख और थाना सराय अमानत खां के प्रभारी इंसपेक्टर प्रभजीत सिंह क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम सहित मौकाएवारदात पर पहुंच गए.

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शुरुआती जांच में सामने आया कि किसी तेज धार और नुकीले हथियारों से इस वारदात को अंजाम दिया गया था. सब से अधिक घाव जोगिंदर सिंह के सीने और गरदन में पाए गए जबकि बेटी प्रभदीप कौर की छाती और पेट पर वार किए गए थे.

16 वर्षीय मासूम पवनदीप सिंह के सिर के पीछे गहरे घाव पाए गए. तीनों लाशों का पंचनामा कर उन्हें पोस्टमार्टम के लिए सरकारी अस्पताल भेज दिया गया.

पुलिस को बयान दर्ज करवाते समय हरमनजीत सिंह इस कदर सहमा हुआ था कि करीब से मौत को देखने के बाद उसे अपने व अपनी पत्नी बेबी के भविष्य की चिंता सता रही थी. वह बारबार सुरक्षा के लिए पुलिस अधिकारियों के समक्ष हाथपांव जोड़ रहा था.

हरमन और उस की पत्नी बेबी की सुरक्षा के लिए पुलिस ने उन्हें 2 गनमैन दिए. हरमन के बयानों पर थाना सराय अमानत खां में आरोपियों के खिलाफ 30 जुलाई को 11 आरोपियों बलबीर सिंह उर्फ बीरा, अर्शदीप सिंह, सुखदीप सिंह, गोविंदा, हैप्पी, मनी, बिक्रम सिंह, बिचित्र सिंह, जोगा सिंह व 3 अज्ञात लोगों पर मुकदमा दर्ज कर के गिरफ्तारी के लिए छापेमारी शुरू कर दी गई.

तीनों शवों का पोस्टमार्टम सिविल अस्पताल तरनतारन में 3 डाक्टरों के पैनल से करवाया गया. डीएसपी कमलजीत सिंह औलख की अगुवाई में बनाई गई विशेष टीम द्वारा दिनरात एक कर दिया गया. जिस के चलते 2 अगस्त, 2019 को इस हत्याकांड से जुड़े 3 आरोपी बीर सिंह, उस का दामाद जोबनजीत सिंह और बेटा वरदीप सिंह पुलिस के हाथ लग गए.

इस हत्याकांड का मास्टरमाइंड बीर सिंह का दामाद जोबनजीत सिंह था. नाबालिग वरदीप सिंह को जुवेनाइल एक्ट के तहत अदालत में पेश कर के बाल सुधार गृह फरीदकोट भेज दिया गया. जबकि बीर सिंह व उस के दामाद को 2 दिन के रिमांड पर ले कर पूछताछ की गई.

गिरफ्तारी के बाद पूछताछ के दौरान बीर सिंह ने बताया कि उस का रिश्ता जोगिंदर सिंह के साथ भाइयों जैसा था. लेकिन जोगिंदर के बेटे ने हमारी इज्जत खराब कर दी. जिस की वजह से वह समाज में मुंह दिखाने लायक नहीं रह गया था. तब मजबूरी में उसे अपराध के लिए मजबूर होना पड़ा था.

बीर सिंह और उस के दामाद जोबन सिंह की निशानदेही पर पुलिस ने वह तेजधार चाकू और हथियार बरामद कर लिए, जिन से जोगिंदर सिंह और उस के परिवार को मौत के घाट उतारा गया था. रिमांड अवधि समाप्त होने के बाद बीर सिंह और जोबन को अदालत में पेश कर जिला जेल भेज दिया गया था.

कथा लिखे जाने तक पुलिस बाकी फरार आरोपियों की तलाश में जुटी थी. इस मामले से जुड़े अभी 11 आरोपी अर्शदीप सिंह, सुखदीप सिंह, गोविंदा, हैप्पी, मनी, बिक्रम सिंह, बिचित्र सिंह, जोगा सिंह व 3 अज्ञात लोगों का कथा लिखने तक सुराग नहीं लग पाया था.

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दूसरी ओर हरमनजीत सिंह के साथ प्रेम विवाह करने वाली नवनीत कौर बेबी का कहना है कि अभी केवल मेरे पिता की ही गिरफ्तारी हुई है. पुलिस को चाहिए कि इस मामले से जुड़े सभी आरोपियों को पकड़ कर जेल में डाले.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

काजू बनी बेल और फंदे पर लटक गए किसान

रामकिशोर दयाराम पंवार

मध्य प्रदेश में आदिवासी बहुल बैतूल के यों तो अलगअलग नाम हैं, लेकिन ज्यादातर नाम उस के भौगोलिक पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए दिए गए हैं. बैतूल का मतलब कपासरहित इलाका, लेकिन अंगरेजी वर्णमाला के 5 अक्षरों से बने बैतूल शब्द यानी नाम को एक अलग ही पहचान दी गई है.

बैतूल की यही पहचान जिले में कौफी के बाद काजू के उत्पादन के नाम पर करोड़ों रुपए की हेराफेरी करने का केंद्र बन गई. बी से बैस्ट यानी सर्वश्रेष्ठ, ई से ऐनवायरमैंट यानी पर्यावरण, टी से टैंपरेचर मतलब तापमान, यू से यूनिक यानी बेजोड़, एल से लैंड यानी जमीन, इसलिए यहां पर राष्ट्रीय कृषि योजना के तहत बड़े पैमाने पर साल 2015 से काजू की खेतीबारी की बातें होने लगीं.

जब सरकारी पै्रस नोट में गांव निशाना के किसानों के अच्छे दिन के आने की खबरें सुर्खियों में छपीं तो लोग काजू कतली का स्वाद लेने के लिए इस गांव की ओर निकल पड़े.

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निशाने पर तरकश से सामने आया सच

आदिवासी बहुल शाहपुर ब्लौक के कुछ गांवों में बीते साल बाड़ी परियोजना के तहत काजू के पौधों को लगाया गया था. जिला उद्यानिकी विभाग ने अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए कामयाबी की एक अलग ही कहानी बना ली.

सरकारी प्रैस विज्ञप्ति के जरीए काजू के किसानों के लखपति बनने की एक दर्जन कहानियां परोस दीं. इस में हितग्राही वे किसान बताए गए, जो दूसरी परियोजनाओं के लाभार्थी हैं. नागपुरभोपाल फोर लेन से निशाना डैम से लगे गांवों में एक गांव निशाना भी है, जो नैशनल हाईवे के सामने बसा है.

इस गांव के किसान मोती उईके के नाती सेम सिंह और परसराम ने बताया कि उन के पास पानी का कोई पुख्ता बंदोबस्त न होने की वजह से वे खुद ही अपने परिवार की पानी की आपूर्ति करें या फिर काजू के पेड़ों की. पानी की कमी में ज्यादातर पौधे पेड़ भी नहीं बन पाए और असमय दम तोड़ गए.

निशाना गांव के एक किसान का तो यह कहना था कि उन के खेतों में बड़े पैमाने पर लगाए गए पौधों के लिए उन के घर वालों द्वारा खोदे गए गड्ढे तक का भुगतान नहीं किया गया.

अधिकारियों के अलावा मुलाजिमों ने भी सब्जबाग दिखाने में अच्छेअच्छों को पछाड़ दिया है. किसान के खेत में लगे सरकारी रिकौर्ड में 200 में से 163 पौधे जिंदा बताए गए, पर जब पेड़ की गिनती करते हुए किसान बताता है तो वह गरीब 60 के ऊपर जा नहीं पाता है. 200 में से महज 60 पौधे जिंदा हैं, जिन में से ज्यादातर बाां हो चुके हैं.

बैंक से कर्ज ले कर हितग्राही ने किया खेल

काजू के पौधों से काजू नहीं उगते, पर काजू के पौधों से काजू उगा कर घोड़ा डोंगरी गांव के एक धन्ना सेठ को काजू के बीजों से काजू निकालने की यूनिट डालने की सलाह दे दी. तकरीबन 70 से 80 फीसदी की सब्सिडी वाले इस यूनिट प्लांट के लिए खादी एवं ग्रामोद्योग से एक प्लांट घोड़ा डोंगरी गांव में डाला गया और उस के लिए कच्चे माल की पैदावार का जरीया बना निशाना गांव. यहां बाड़ी परियोजना के तहत काजू के तकरीबन 57 हजार, 410 पौधों को पेड़ बनाया जा चुका था. इन पौधों को शाहपुर, प्रभात पट्टन, भीमपुर, चिचोली, आठनेर जनपद पंचायत के तकरीबन 183 किसानों को लाभार्थी बताया गया.

मजेदार बात यह सामने आई कि काजू के उत्पादन के पीछे कामयाबी की जिस कहानी को सरकारी प्रचार तंत्र ने परोसा था, उस के मुताबिक काजू उत्पादक किसानों की सालाना आमदनी 18 लाख रुपए बताई गई. तकरीबन सवा लाख से डेढ़ लाख रुपए काजू से कमाने वाला किसान अगर चारपहिया की जगह दोपहिया में घूमता तो समा में आता कि अच्छे दिन आ गए, लेकिन काजू को उगाने वाला किसान काजू के पौधों और काजू यूनिट की आड़ में ठगा जा चुका था.

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बेमौसम लगे पौधे नहीं बन पाए पेड़

जानकारों का ऐसा मानना है कि बेमौसम लगे पेड़ों से भला कभी फल लगे हैं? मध्य प्रदेश में काजू की खेती की योजना ने बैतूल,छिंदवाड़ा, बालाघाट, सिवनी समेत प्रदेश के तकरीबन 29 जिलों को उपयोगी मान कर  कुछ चिंह्नित किसानों को कभी लीची, तो  कभी काजू को ले कर फल लगाने के लिए  बड़े पैमाने पर खरीदफरोख्त के खेल की गूंज प्रदेश की विधानसभा के शीतकालीन सत्र में सुनाई पड़ी है.

राष्ट्रीय काजू कोको विकास निदेशालय, कोच्चि, केरल द्वारा बड़े पैमाने पर प्रदेश में काजू के पौधों की सप्लाई की गई. काजू की खेती के लिए अचानक मध्य प्रदेश के इन चिंह्नित जिलों की जमीन भौगोलिक नजरिए से काजू के लिए उपयुक्त बता कर इन जिलों में गोवा व कोच्चि से बड़े पैमाने पर काजू के पौधे भेजे गए. प्रति हेक्टेयर 200 पौधों को रोपा जाना था.

मध्य प्रदेश के इन 4 जिले में से बैतूल जिले में 1,000, छिंदवाड़ा में 30, सिवनी में 200, बालाघाट में 32 किसानों द्वारा औनलाइन पंजीयन किया गया. अब तक 1 लाख,  60 हजार पौधे रोपे जा चुके हैं और 1लाख,  26 हजार पौधों का आना बाकी है. ऐसे में 1,430 हेक्टेयर चिंह्नित भूमि प्रति हेक्टेयर 200 पौधों का रोपित किया जाना तय है.

इस समय जिला उद्यानिकी विभाग, बैतूल, छिंदवाड़ा, सिवनी, बालघाट अपने यहां मौजूद पहले ही अमीर होने वाले किसानों को काजू और लीची की खेतीबारी का गुरुमंत्र दे कर उन्हें मुंगेरीलाल के हसीन सपने को सच बनाने वाली कहानी का हीरो बता कर उसे एक बार फिर बरगलाने में लगा है.

काजू की पकड़ से आम आदमी कोसों दूर

यों तो बैतूल जिला मुख्यालय ने डागाकोठी में अपने द्वारा तैयार की गई नर्सरी से महंगे दामों पर काजू और लीची के पौधों को बेचने में महारत हासिल की है. अब तक इस जिले में जिला लैवल पर काम कर रहे उद्यानिकी विभाग का कोई धुर्वे, परते अपने विभाग को जब दोनों हाथों से लूटने लगेगा तो उन्हें कोई तीसरा शख्स कैसे रोक पाएगा.

लोगों के सवाल अपनेआप में बेमिसाल हैं, तब जब आप को पता चले कि जिले में कोई काजू और लीची के बाजार और प्रोसैसिंग यूनिट लगाने को तैयार नहीं है. लेकिन जो शख्स यह यूनिट लगाने जा रहा है, वह सरकारी अनुदान पाने की एक तिकड़मी चाल का हिस्सा बन चुका है.

मध्य प्रदेश की ज्यादातर सरकारी नर्सरियां बंद होने की कगार पर हैं. इधर, बैतूल जिले की ज्यादातर नर्सरियों के हालात ठीक नहीं हैं. वहां आम के पौधे सूख रहे हैं. नर्सरी में बैठे मुलाजिम या मैडम का मोबाइल नंबर तक नहीं बताते हैं. मामला साफ है कि वे दहशत में नौकरी कर रहे हैं.

एक तरफ जिला प्रशासन पौधे लगाने की कवायद कर रहा है, वहीं दूसरी तरफ लापरवाह बन कर किसानों को काजू और लीची के सब्जबाग दिखा कर अपनी पीठ थपथपा रहा है. कभी फलोद्यान में शेखावत और बोबड़े की तूती बोलती थी और पेड़ के बजाय आम की डालियां तक लगा कर खूब वाहवाही लूटी थी, अब काजू, लीची और अनार लगा कर चर्चा में आए इस विभाग का आंवला लेने वाला कारोबारी तक किसानों को नहीं मिल रहा है. ऐसे में काजू और लीची की फसल के लिए घोड़ा डोंगरी के किसी अग्रवाल के एक कमरे में लगी काजू यूनिट अपनी स्थापना के बनने से ही रोज नए गुल खिलाना शुरू कर दिया है.

साल 2017 में बैतूल जिले में फलोद्यान विभाग ने नर्मदा बेसिन के नाम पर किसानों के खेतों में बड़ी तादाद में फलदार पौधे रोपे. किसानों को इन पौधों के साथ मुंगेरीलाल के सपने बेचे और उन्हें फलदार पौधे लगाने के बाद ड्रिप सिस्टम देने को कहा गया. साथ ही, कीटनाशक दवाओं और स्प्रे पंप भी देने को कहा गया. किसानों ने अपने खेतों में फलदार पौधे लगाए भी, पर विभाग ने कोई मदद नहीं की. इस के चलते सारे पौधे नर्मदा की बाढ़ में बह गए.

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आखिर कहां से आए पौधे

बैतूल जिले के किसानों के लिए 2 लाख से ज्यादा पौधे बालाघाट की नर्सरी से लाए गए और वह भी बिना निविदा मंगाए खरीदे गए.

सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, जिले में विभाग की 8 नर्सरियां हैं, पर दूसरे जिले से पौधे खरीदना भी गड़बड़ाले की ओर इशारा कर रहा है. आखिर नर्मदा बेसिन के नाम पर किसानों के खेतों में लगाए गए कितने फलदार पौधे जिंदा हैं? विभाग के पास इस की कोई सटीक जानकारी नहीं है. उद्यानिकी विभाग के मुताबिक, काजू के पौधे पेड़ बन गए और फल भी लग गए.

किसानों को अच्छे दिन के सपने बेचने में लगा बैतूल जिले का उद्यानिकी विभाग जिला प्रशासन के आला अफसरों को नवाज कर सरकारी सूचना एवं प्रचार तंत्र के जरीए काजू के पौधों को फलदार पेड़ बता कर वाहवाही लूटने में देरसवेर सब से आगे निकल गया.

दरअसल, एक सचाई यह भी है कि मध्य प्रदेश के होशंगाबाद संभाग के बैतूल जिले में ऐसा लगता है कि जिले के आला अधिकारी पहली बार काजू के पेड़ देख कर खुश हो रहे हैं, लेकिन सच यही है कि जिले का एक और सरकारी विभाग, जो अपने जंगल कानून को ले कर सुर्खियों में रहता है, उस ने कोटमी में काजू के पौधों को पेड़ बना कर यह कारनामा कर डाला है.

पश्चिम वन मंडल की चिचोलीमहुपानी रैंज से लगे गांव कोटमी में वन विभाग ने 2 दशक पहले काजू की कहानी लिख दी.

चिचोली ब्लौक के देवपुर कोटमी में काजू के पौधों का रोपण न कर वृक्षारोपण कर के खूब वाहवाही लूटी थी और प्रदेशभर के वन विभाग के आला अधिकारी भी काजू का बगीचा देखने के बहाने आतेजाते रहे. वर्तमान समय में देवपुर कोटमी के इस बहुचर्चित काजू के सब्जबाग में फल ही नहीं लगे और गांव वाले अब इसे बाां बगीचा कहने लगे हैं.

बाां हो गई काजू की बगिया देख रो रहे माली

उद्यानिकी विभाग ने शाहपुर ब्लौक में 20 गांवों में बाड़ी परियोजना के तहत गांव वालों के घर काजू, आम, नीबू और केले रोपे थे. कुछ जगह काजू के अब पेड़ तो बन गए हैं, पर ये पेड़ फल नहीं दे रहे, पर छांव जरूर दे रहे हैं.

खेल तो यह है कि बाड़ी परियोजना के कारनामे को अपने नाम करने में बैतूल जिले का उद्यानिकी विभाग सब से आगे आ गया. गांव निशाना की उस उपलब्धि को अपनी बता कर खुद ही पीठ थपथपा रहा है.

उद्यानिकी विभाग में लगाए जा रहे काजू के पौधे विभाग में अधिसूचित हैं भी या नहीं, इस बात का जवाब विभाग के आला अधिकारियों के पास नहीं है, वहीं जो फलदार पौधे विभाग रोप रहा है, उस में तोतापरी आम भी अधिसूचित नहीं है, फिर भी बड़े पैमाने पर खरीदी कर किसानों को दिए जा रहे हैं.

जब वन विभाग के जिला मुख्यालय के वन विद्यालय में लगे काजू के पेड़ फल नहीं दे रहे हैं, वहीं देवपुर कोटमी के वन विभाग के प्लांटेशन में आज तक काजू के पेड़ फल नहीं दे रहे हैं तो उद्यानिकी विभाग के काजू के पौधे फल देंगे या नहीं, यह तो आने वाला समय ही बताएगा. आखिर मुनाफे का धंधा समा

कर किसान भी अच्छे दिन के सपने मुफ्त में खरीद कर अपनी बेबसी पर खून के आंसू बहा रहा है.

ऐसे करें मल्टी पर्पस मेकअप प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल

अगर आप यह सोच कर कि किसी भी प्रोडक्ट को उपयोग करने का सिर्फ एक ही तरीका होता है तो एक बार फिर विचार कर लीजिए, आपको यह जानकर हैरानी होगी कि आप किसी भी मेकअप प्रोडक्ट का इस्तेमाल कई तरह से कर सकती हैं. इससे पैसे और समय दोनों की बचत होगी. इस प्रकार मेकअप का बजट बनाना आसान है, लेकिन इसका मतलब यह बिलकुल भी नहीं है कि इससे आपकी खूबसूरती में कोई कमी आ जाए. जी हां , तो जानते हैं इसके कुछ टिप्स जो आपके बजट में ही रहकर आपकी खूबसूरती में चारचांद लगाएंगे.
फेस मेकअप प्रोडक्ट 
बी बी क्रीम का उपयोग फाउंडेशन, प्राइमर की तरह 
इस क्रीम को आप फाउंडेशन के तौर पर भी उपयोग कर सकती हैं. इससे आपको फ्लॉलेस लुक प्राप्त होगा. यदि आपके चेहरे पर हलके दागधब्बे हो तो इससे बड़ी आसानी से छुपाया जा सकता है. बस चेहरा धोने के बाद मौइस्चराइजर अप्लाई करके इसे लगाएं एवं अच्छे से मिक्स करें.
– मेकअप को लम्बे समय तक ख़राब होने से बचाने के लिए प्राइमर का उपयोग बहुत जरूरी होता है. यह मेकअप हेतु स्मूद बेस तैयार करता है, लेकिन यदि आप इस पर पैसे खर्च नहीं करना चाहतीं तो बी बी क्रीम को प्राइमर की तरह भी इस्तेमाल कर सकती हैं.

– बी बी क्रीम को आप अपना ब्लश बनाकर पैसे बचा सकती हैं. इसके लिए बस थोड़ी सी बी बी क्रीम लेकर उसमें हलकी लिपस्टिक मिलाएं और फिर इसे पूरे गालों पर लगाकर ब्लेंड करें. इसे एक बार ट्राई करके तो देखें.

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 ब्लश का उपयोग आई शैडो या लिपस्टिक की तरह 
वैसे तो हम क्रीम ब्लश का इस्तेमाल गालों के लिए करते हैं लेकिन यदि आपके पास आपके मनपसंद रंग की लिपस्टिक या आई शैडो नहीं है तो क्रीम ब्लश को अपने काम में ले सकती हैं. इसके लिए आप लिपबाम में क्रीम ब्लश को मिक्स करें और ब्रश की मदद से अप्लाई कर पाएं मनचाहा लुक.
फाउंडेशन का उपयोग आई शैडो की तरह 
किसी मेकअप का बेस फाउंडेशन होता है. इससे मेकअप लम्बे समय तक टिका रहता है. आप चाहे तो फाउंडेशन का इस्तेमाल आई शैडो की जगह भी कर सकती हैं. अलग अलग रंगों के फाउंडेशन में लिपस्टिक मिला लें. अगर आपकी स्किन ड्राई है तो आप इसमें थोड़ा सा मॉइस्चराइजर मिला लें. आप हलके और गहरे दोनों रंगों के शेड्स काम में लें.
मौइस्चराइजर का उपयोग मेकअप रिमूवर की तरह 
आपको बता दें कि मौइस्चराइजर से आप अपनी स्किन को सिर्फ सॉफ्ट और स्मूद ही नहीं बना सकती , बल्कि आप इसका इस्तेमाल मेकअप रिमूवर  की तरह भी कर सकती हैं. ये स्किन को हाइड्रेट करने का काम भी करता है.
आई मेकअप प्रोडक्ट 
जेल बेस्ड कोल का उपयोग मस्कारा, आई लाइनर की तरह

जेल बेस्ड कोल को अपनी आँखों पर समज़ करके उससे स्मोकी लुक क्रिएट कर सकती हैं , तो वही मस्कारा लगाकर आप अपनी पलकों को लम्बा व घना दिखा सकती हैं. वाटर लाइन पर काजल के अलावा आप इससे अपनी आँखों की शेप को भी डिफाइन कर सकती हैं.

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आई लाइनर का उपयोग काजल, मस्कारा व टेम्पेररी टैटू की तरह 
आँखों की शेप डिफाइन करने और उन्हें आकर्षण बनाने में आई लाइनर को भी आप कई मेकअप प्रोडक्ट्स के तौर पर इस्तेमाल कर सकती हैं. रूप रंग को नज़र से बचाने वाले काजल के खत्म हो जाने के बाद आप आई लाइनर का इस्तेमाल आँखों में काजल लगाने के लिए भी कर सकती है. वैसे तो आजकल मार्केट में ऐसी कई तरह की आई पेंसिल उपलब्ध हैं जिन्हें आप काजल और आई लाइनर दोनों की तरह इस्तेमाल कर सकती हैं.
आई शैडो का उपयोग आई लाइनर, आई पेंसिल और नेल पेंट की तरह 
आप आई शैडो को आई लाइनर की तरह और आई ब्रोज़ को भरने के लिए एंजेल ब्रश का इस्तेमाल कर सकती हैं. यदि आप आई शैडो ब्रश का इस्तेमाल बारीकी से शेप देते हुए करती हैं तो इससे आपकी आंखें बड़ी और सुंदर दिखेंगी. आई शैडो में रंगों की वैरायटी उपलब्ध होती है, जिससे आप विभिन प्रकार के शेड्स को आई लाइनर की तरह इस्तेमाल कर सकती हैं.
आप अपने आई शैडो को कपड़े में रखकर किसी भारी चीज़ से मसल कर उसका पाउडर तैयार करें. अब बराबर मात्रा में पाउडर आई शैडो और ट्रंपेरेंट नेल पेंट को मिलाए. आपका नया नेल पेंट तैयार है.
इस तरह आप खुद को खूबसूरत दिखा सकती हैं.

छोटी सरदारनी: देखिए पर्दे के पीछे कैसा है मेहर और कुलवंत का रिश्ता

कलर्स के शो ‘छोटी सरदारनी’ में मां-बेटी यानी मेहर और कुलवंत कौर के बीच तकरार और दूरियां देखने को मिलती है. लेकिन पर्दे के पीछे मेहर और कुलवंत कौर का रिश्ता बहुत अलग है. दोनों सेट पर मस्ती कम नहीं होने देती. आइए आपको बताते हैं कैसे पर्दे के पीछे मस्ती करती नजर आती है मां-बेटी की ये जोड़ी…

 मजबूत है मेहर और कुलवंत का रिश्ता

जैसा कि हम शो में देखते हैं कि कुलवंत कौर के लिए मेहर के दिल में अपने प्यार मानव को मारने की वजह से खटास है. वहीं पर्दे के पीछे दोनों एक दूसरे के साथ एकदम अलग हैं. कुलवंत और मेहर के बीच का पर्दे के पीछे रिश्ता काफी मजबूत है.

एक साथ लंच करती हैं मेहर और कुलवंत

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अलग-अलग सेट पर शूटिंग करने के बावजूद मेहर और कुलवंत कोशिश करते हैं कि जब भी मिले वह एक साथ लंच करें.

मेहर के डौगी से मिलने सेट पर जाती हैं कुलवंत

हाल ही में मेहर ने अपने साथ सेट पर कम्पनी देने के लिए एक छोटा सा डौगी लिया है, जो सेट पर सभी स्टार्स का लाडला है. वहीं कुलवंत कौर को जब भी वक्त मिलता है तो वह मौका निकालते ही उससे मिलने के बहाने मेहर के सेट पर पहुंच जाती हैं.

बेहद खास है सीनियर और जूनियर का ये रिश्ता 

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सेट पर कुलवंत कौर सीनियर एक्टर होते हुए भी सभी को-एक्टर का ख्याल रखती हैं और बाकी एक्टर्स भी उनका सम्मान करते हैं. वहीं मेहर भी कुलवंत कौर का ख्याल रखती हैं और उनके साथ क्वालिटी टाइम बिताने के लिए वक्त निकाल लेती हैं.

अब देखना है कि शो में इस मां-बेटी की दूरी कब खत्म होती है? जानने के लिए देखते रहिए ‘छोटी सरदारनी’, सोमवार से शनिवार, रात 7:30 बजे, सिर्फ कलर्स पर.

घर पर ऐसे बनाएं फ्राइड मशरूम

फ्राइड मशरूम आप पार्टी स्नैक के लिए बना सकते हैं. ये काफी टेस्टी होती है. और इसे बनाना भी बेहद आसान है. इस रेसिपी की खासियत ये है कि आप इसे किचन में मौजूद चीजों के साथ आसानी से बना सकती हैं तो आइए जानते है इसे बनाने की रेसिपी.

सामग्री

सफेद तिल 2 चम्मच

मैदा ढाई कप

सफेद मिर्च पाउडर 2 चम्मच

मशरूम 6 कप

नमक आधा चम्मच

कौर्न फ्लार आधा कप

रिफाइंड औइल 1 कप

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बनाने की वि​धि

सबसे पहले मशरूम्स को अच्छी तरह से में धोएं और जब तक जरूरत न हो मशरूम को अलग रखें.

अब एक बड़े बाउल में मैदा लें और उसमें सफेद मिर्च पाउडर, कौर्न फ्लार, नमक और तिल डालें और पानी डालकर अच्छी तरह से मिक्स कर लें.

इस मिश्रण को तब तक मिक्स करें जब तक मिश्रण की कंसिस्टेंसी गाढ़ी न हो जाए.

अब मध्यम आंच पर एक पैन रखें और उसमें 1 कप तेल गर्म करें.

अब मशरूम को मैदा वाले मिक्सचर में डिप करें और सीधे पैन में गर्म तेल में डालकर फ्राई करें.

जब तक मशरूम का टेक्सचर क्रिस्पी और गोल्डन कलर का न हो जाए तब तक उसे फ्राई करें.

अपने पसंद की डिप या सौस के साथ सर्व करें.

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शुभारंभ: राजा-रानी की खुशियों में आ रही अड़चनों को कैसे दूर करेगी राजा की माँ?

कलर्स के शो ‘शुभारंभ’ में राजा-रानी की शादी में कई रुकावटें आ रही हैं. कीर्तिदा अपनी साजिशें चलकर शादी रोकने की कोशिश करने में जुटी हुई है. पर क्या ये साजिशें राजा-रानी की शादी को रोकने में कामयाब हो जाएंगी. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे…

रानी के परिवार को बचाती है राजा की माँ

पिछले एपिसोड में आपने देखा कि कीर्तिदा रानी के परिवार पर खानदानी ज्वैलरी चोरी करने का इल्जाम लगाती है, जिससे रानी टूट जाती है. वहीं राजा की माँ, आशा कीर्तिदा की चालें समझकर पूरा इल्जाम अपने ऊपर ले लेती है और कहती है कि चोरी होने के डर से उसने पोछी बदल दी थी.

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रानी को भरोसा दिलाएगा राजा

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आज के एपिसोड में आप देखेंगे कि रानी, राजा से मिलकर दोनों के परिवार के बीच आर्थिक स्थिति में अंतर होने के अपने डर के बारे में बताएगी, लेकिन राजा रानी को भरोसा दिलाएगा कि ये अंतर उनकी शादी और आने वाली जिंदगी में नही पड़ेगा.

आशा और कीर्तिदा में लगेगी शर्त

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राजा की माँ आशा और कीर्तिदा के बीच बहस होगी, जिसमें आशा कहेगी कि ये उसका दावा है कि वह घर और दुकान पर अपना अधिकार हासिल करके रहेगी, जबकि कीर्तिदा आशा को चुनौती देगी कि राजा खुद ही शादी को रोक देगा.

शादी को रोकने के लिए कहेगी रानी

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आज के एपिसोड में आप देखेंगे कि रानी को अपनी माँ, वृंदा के 2 लाख रुपए के लोन के बारे में पता चल जाएगा और गुस्से में राजा को मैसेज करेगी कि वह शादी को रोकना चाहती है. तभी, उत्सव 2 लाख रुपए लेकर आएगा और रानी से वादा करेगा कि वह पोपट के पैसे चुका देगा और उसे अब चिंता करने की ज़रूरत नहीं है.

आशा करेगी कीर्तिदा की चालों को नाकामियाब करने की कोशिश

आने वाले एपिसोड में आप देखेंगे कि शादी के दिन राजा-रानी अपनी शादी में खुशियों के पल साथ बिताते हैं. अब देखना ये है कि कीर्तिदा की चालों का क्या कोई समाधान निकाल पाएगी आशा? या फिर राजा-रानी की शादी में फिर आएगी कोई रुकावट? जानने के लिए देखते रहिए शुभारंभ, सोमवार से शुक्रवार रात 9 बजे, सिर्फ कलर्स पर.

सुष्मिता सेन ने बेटियों के साथ किया धमाकेदार डांस,  देखें ये वीडियो

मिस यूनिवर्ष सुष्मिता सेन सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव रहती हैं. आए दिन सुष्मिता अपनी फोटो और वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर करती रहती है.  हाल ही में सुष्मिता सेन ने दोनों बेटियों के साथ डांस करते हुए वीडियो शेयर की है. जी हां, उन्होंने इंस्टाग्राम पर अपने परिवार के साथ फोटोज भी शेयर की हैं.

आपको बता दें, वीडियो में सुष्मिता सेन अपनी बेटियों के साथ डांस प्रैक्टिस कर रही हैं. इस वीडियो के कैप्शन में  सुष्मिता ने लिखा है कि ‘’डांस इस तरह करो जैसे कोई आपको देख नहीं रहा हो.’ यह वीडियो सोशल मीडिया पर खुब वायरल हो रही है. सुष्मिता की इस डांस वीडियो को  उनके फैंस खुब पसंद कर रहे हैं. 9 लाख से भी ज्यादा लोग इसे देख चुके हैं.

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बता दें कि सुष्मित सेन आखिरी बार अमीज बाजमी की फिल्म ‘नो प्रौब्लम’ में नजर आई थी. उन्होने अपनी एक फोटो शेयर करते हुए लिखा था. मैं हमेशा प्यार के साथ धैर्य को जानती हूं. यह अकेला ही मुझे मेरे प्रशंसकों का प्रशंसक बनाता है.

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