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‘सब कुशल मंगल’ : अच्छे विषय पर कमजोर फिल्म

रेटिंगः दो स्टार

निर्माताः प्राची नितिन मनमोहन

निर्देशकः करण विश्वनाथ कश्यप

कलाकारः अक्षय खन्ना, रीना किशन, प्रियांक शर्मा, सतीश कौशिक, सुप्रिया पाठक, राकेश बेदी, श्रिया शरण व अन्य.

अवधिः दो घंटे 14 मिनट

बिहार व झारखंड के प्रचलित पकड़वा विवाह पर गत वर्ष फिल्म ‘‘जबरिया जोड़ी’’ आयी थी, जिसे दर्शकों ने सिरे से नकार दिया था. इस फिल्म में सिद्धार्थ मल्होत्रा व परिणीति चोपड़ा की जोड़ी थी.‘पकड़वा विवाह’ में शादी योग्य लड़के का अपहरण कर जबरन अपने घर ले जाकर लड़की से उस अपह्रत लड़के की शादी कर दी जाती है. और अब उसी विषय पर प्राची नितिन मनमोहन और करण विश्वनाथ कश्यप फिल्म‘‘सब कुशल मंगल है’’ लेकर आए हैं.

कहानीः

झारखंड के कर्नलगंज इलाके में  बाबा भंडारी (अक्षय खन्ना) राजनीति और अपराध में एक बड़ा नाम हैं. वह शादी योग्य लड़कों को जबरन पकड़कर या यूं कहें अपहरण कर उनका विवाह उन लड़कियों से करवाते हैं, जिनके माता पिता दहेज देने में असमर्थ हैं. इसके लिए वह खुद को परोपकारी मानते हैं. बाबा भंडारी के इस काम को गलत बताते हुए पत्रकार और एक टीवी रियालिटी शो ‘‘मुसीबत ओढ़ ली मैंने’’ के संचालक पप्पू मिश्रा (प्रियांक शर्मा) पूरा प्रकरण दिखा देते हैं. पप्पू मिश्रा जो कुछ अपने रियालिटी शो में दिखाते हैं, उससे बाबा भंडारी नाराज हो जाते हैं. तो वहीं इससे पप्पू मिश्रा के पिता मिश्रा (सतीश कौशिक) और मां इमरती देवी (सुप्रिया पाठक) परेशान हो जाती हैं. क्योकि संयोग से दोनों कर्नलगंज के ही निवासी हैं.

अब बाबा भंडारी, पप्पू मिश्रा को सबक सिखाने के बारे में सोचने लगते हैं. उधर तेज तर्रार मंदिरा शुक्ला उर्फ मंदा के पिता (राकेश बेदी) और भाई विष्णु, मंदा की शादी के लिए परेशान हैं. हारकर मंदा के पिता व भाई बाबा भंडारी के पास मदद मांगने जाते हैं. बाबा भंडारी हामी भर देते हैं. और जब पप्पू अपने माता पिता के साथ दिवाली मनाने दिल्ली से अपने घर आते हैं, तो भंडारी उसका अपहरण कर लेते हैं. मंदा के घर शादी की तैयारी शुरू हो जाती है. मगर मंदिरा ( रीवा किशन) खुद ही पप्पू को नाटकीय तरीके से भगा देती हैं. अपनी हार कबूल करने बाबा भंडारी मंदिरा के माता पिता से मिलने उनके घर जाते हैं और मंदिरा को देखते पहली ही नजर में प्यार कर बैठते हैं. अब वह मंदिरा से खुद ही विवाह करना चाहते हैं. तो वहीं वापस दिल्ली जाते समय मंदिरा व पप्पू मिलते हैं ओर दोनों प्यार का इजहार कर देते हैं. इसके बाद पप्पू दिल्ली जाने की बजाय वापस कर्नलगंज पहुंच जाते हैं. फिर कहानी कई मोड़ो से होकर गुजरती है.

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लेखन व निर्देशनः

ब्रजेंद्र काला द्वारा लिखित और करण विश्वनाथ कश्यप निर्देशित इस रोमांटिक कौमेडी फिल्म में रोमांस तो कहीं है ही नही. कौमेडी के नाम पर जो कुछ परोसा गया है,  उससे दर्शकों को हंसी नही आती. लेखक कौमेडी के पंचेस ठीक से बैठा ही नहीं पाए. सतीश कौशिक और सुप्रिया पाठक जैसे अनुभवी कलाकारों को उबाउ संवाद दिए गए हैं. इतना ही नही लेखक व फिल्मकार पकड़वा विवाह को लेकर भी सही ढंग से बात नहीं कह पाए. मंदिरा के भाई विष्णु का चरित्र तो बेपेंदा लोटा की तरह दिखया गया है, पर इसकी वजह भी नहीं बतायी गयी. इंटरवल के बाद फिल्म काफी गड़बड़ हो गयी है. पटकथा व चरित्र चित्रण में काफी कमियां हैं. कुल मिलाकर एक अच्छे विषय पर कमजोर फिल्म है.

एडीटिंग भी गड़बड़ है.फिल्म को कसने की जरुरत थी. फिल्म किसी भी स्तर पर दर्शकों को बांधकर नहीं रखती.

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अभिनयः

पप्पू मिश्रा के किरदार में अपने समय की चर्चित अदाकारा पद्मिनी कोल्हापुरे के बेटे प्रियांक शर्मा और मंदिरा शुक्ला के किरदार में अभिनेता व सांसद रवि किशन की बेटी रीवा किशन भी निराश ही करती हैं. दोनों के बीच परदे पर कोई केमेस्ट्री नजर ही नहीं आती. दबंग गुंडे के चरित्र में अक्षय खन्ना जमते नहीं है. सतीश कौशिक और सुप्रिया पाठक भी लेखक की कमजोरी के चलते अपनी प्रतिभा नहीं दिखा पाए.

फिल्म का गीत संगीत औसत दर्जे का है और जब भी गाने आते हैं,तो वह फिल्म की कहानी में व्यवधान ही पहुंचाते हैं.

उत्तर प्रदेश : अपराध का अधर्म राज

सतयुग से ले कर कलयुग तक नारी को छलने का काम पुरुषों ने किया. शारीरिक शोषण के लिए गंधर्व विवाह और फर्जी कोर्ट मैरिज तक धोखे में रख कर की. हर युग में महिला को ही दोषी ठहराया गया. कानून से ले कर समाज तक पुरुष की जगह नारी को ही दोषी माना गया. उन्नाव कांड में भी इस की झलक देखने को मिल रही है.

पूरे देश में उत्तर प्रदेश ही ऐसा प्रदेश है जहां धर्म का राज है. राज्य के  मुखिया के तौर पर गोरखनाथ रक्षा पीठ के महंत योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री की कुरसी पर आसीन हैं. मुख्यमंत्री के रूप में अपनी कुरसी पर बैठने से पहले मुख्यमंत्री के सरकारी आवास को पवित्र गंगाजल से शुद्ध भी किया गया था. 2017 से 2019 के बीच गंगा में बहुत सारा पानी बह गया है. पूरे प्रदेश में गाय और गंगा की पूजा हो रही है.

एक तरह से पूरे प्रदेश में रामराज्य की अवधारणा को जमीन पर उतार दिया गया है. उस युग का जाति और वर्ग आज फिर सत्ता वाले का बड़ा पैतरा बन गया है. धर्म के इस राज में अपराध का अधर्म छाया हुआ है. प्रदेश की राजधानी लखनऊ से महज 60 किलोमीटर दूर उन्नाव जिले में पिछड़ी विश्वकर्मा जाति की लड़की से प्रेमविवाह, उत्पीड़न और विरोध करने पर जिंदा जला देने की घटना घट जाती है. समाज और प्रशासन से खिन्न परिवार ने हिंदू रीतिरिवाज के बजाय लड़की को दफनाने का रास्ता अपनाया.

यह वही उन्नाव है जहां एक और संत सच्चिदानंद हरि साक्षी महाराज सांसद हैं. ऐसा नहीं है कि उन्नाव में महिला हिंसा की यह पहली घटना है. इस के पहले भाजपा के ही विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को लड़की से बलात्कार, उस के पिता की हत्या की साजिश और लड़की पर जानलेवा हमले के आरोप में अदालत ने दोषी करार दिया है.

इन 2 बड़ी घटनाओं को छोड़ दें तो उन्नाव में ऐसी तमाम और घटनाएं भी रहीं जिन में महिलाओं के साथ हिंसा हुई. देखा जाए तो यह हाल पूरे उत्तर प्रदेश का है. आंकड़ों को देखें तो महिलाओं के साथ हिंसा की सब से अधिक घटनाएं उत्तर प्रदेश में हो रही हैं. उन्नाव में रेप के बाद जलाने की घटना में भले ही प्रशासन ने तेजी दिखाई हो पर अधिकतर घटनाओं को पुलिस दबाने का प्रयास करती है.

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रसूखदारों का दबाव

उत्तर प्रदेश में अपराध का ग्राफ भी तेजी से बढ़ा है. 2015 में यह आंकड़ा 35,908 था जो 2016 में 11 फीसदी से भी अधिक बढ़ा और अपराध की संख्या बढ़ कर 49,262 पर पहुंची. 2017 में महिलाओं के खिलाफ बढ़ती हिंसा ने सारे रिकौर्ड तोड़ दिए और आंकड़ा 56 हजार पर पहुंच गया है. पूरे देश में महिलाओं के साथ हो रही हिंसा में अकेले उत्तर प्रदेश का 15.6 प्रतिशत का योगदान रहा है. 2017 के एनसीआरबी के आंकड़ों से पता चलता है कि उत्तर प्रदेश में बलात्कार के बाद महिलाओं के मर्डर की संख्या सब से ज्यादा सामने आई है.

2017 में ऐसे 67 मामले सामने आए थे. दहेज उत्पीड़न मामले में भी महिलाओं को प्रताडि़त करने के मामलों में भी उत्तर प्रदेश सब से आगे है.

सभी 29 राज्यों के आंकड़ों पर ध्यान दें तो 2017 में महिलाओं के साथ हुई हिंसा के 34,5989 मामले सामने आए हैं. यह 2016 के 33,8954 मामलों के मुकाबले काफी ज्यादा हैं. उत्तर प्रदेश में अपराध इसलिए बढ़े हुए हैं क्योंकि यहां पुलिस पीडि़त की मदद करने से पहले यह देखती है कि मामला किस के खिलाफ है. रसूखदार मामलों में पीडि़त के बजाय पुलिस आरोपित के साथ खड़ी नजर आती है.

कुलदीप सेंगर ही नहीं, शाहजहांपुर में भाजपा के ही पूर्व केंद्रीय मंत्री और राममंदिर आंदोलन के सारथी संत स्वामी चिन्मयानंद के मामले में भी ऐसा हुआ. ला कालेज में कानून की पढ़ाई कर रही लड़की ने जब स्वामी चिन्मयानंद के खिलाफ शारीरिक शोषण का मुकदमा लिखाया तो लड़की के खिलाफ ब्लैकमेलिंग का मुकदमा लिख कर उसे भी जेल भेज दिया.

गैरबिरादरी में प्रेम का हश्र

उन्नाव में हिंदूपुर गांव में लड़की को जलाने की घटना बताती है कि उत्तर प्रदेश जाति और धर्म की बेडि़यों में जकड़ा हुआ है. 20 साल की पिछड़ी जाति की लड़की के साथ ब्राह्मण जाति के लड़के का प्रेम होता है. लड़की पिछड़ी जाति के गरीब परिवार से थी और लड़का गांव के प्रभावशाली परिवार का था. गंवई प्रेमसंबंधों के बाद लड़की के शादी पर जोर दिए जाने के बाद 19 जनवरी, 2018 को नोटरी शपथपत्र के जरिए शिवम त्रिवेदी ने उस से शादी कर ली. दोनों अपने गांव से दूर रायबरेली शहर के साकेत नगर में रहने लगे.

घरवालों का दबाव पड़ा तो शिवम शादी से मुकरने लगा. दोनों के बीच सुलह कराने के लिए लड़की को मंदिर में ले जा कर गैंगरेप किया गया. 12 दिसंबर, 2018 को लड़की लालगंज कोतवाली मुकदमा दर्ज कराने पहुंची. वहां पुलिस ने मुकदमा दर्ज नहीं किया. 20 दिसंबर को लड़की ने एसपी रायबरेली को रजिस्टर्ड डाक से अपना शिकायती पत्र भेजा. इस की भी कोई सुनवाई नहीं हुई.

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पुलिस से निराश हो कर पीडि़त लड़की ने रायबरेली में अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की कोर्ट में मुकदमा दर्ज कराने के लिए पत्र दिया. 10 जनवरी, 2019 को मजिस्ट्रेट ने एफआईआर दर्ज कराने का आदेश दिया. इस के बाद भी पुलिस ने कोई कदम नहीं उठाया. 26 फरवरी को कोर्ट की अवमानना का नोटिस दिया गया. तब पुलिस ने दबाव में आ कर 5 मार्च को मुकदमा दर्ज किया. उस के बाद पीडि़ता मुख्यमंत्री से शिकायत करने पहुंची तो

22 सितंबर को आरोपियों ने कोर्ट में सरैंडर कर दिया. पुलिस के देर से मुकदमा दर्ज करने और लचर जांच के चलते ही आरोपियों को जल्दी जमानत मिल गई.

लड़की को इस बात की हैरानी थी कि इतनी जल्दी शिवम जमानत पर कैसे जेल से बाहर आ गया. लड़की ने अपने परिवार को यह बात बताई और कहा कि कल वह रायबरेली जा कर अपने वकील से मिल कर पता करेगी कि यह कैसे हो गया. रायबरेली जाने के लिए लड़की को कानपुर से रायबरेली जाने वाली ट्रेन सुबह 5 बजे मिलनी थी.

जलने के बाद चरित्र हनन

3 दिसंबर, 2019 की सुबह पीडि़त लड़की ट्रेन पकड़ने के लिए अपने घर से निकली. घर से बिहार स्टेशन करीब 2 किलोमीटर दूर था. पीडि़त लड़की सुबह 4 बजे घर से निकली. जाड़े का समय था. रास्ते में अंधेरा भी था. लड़की के पिता ने उसे स्टेशन छोड़ने के लिए कहा तो उस ने बूढ़े पिता की परेशानी को देखते हुए उन्हें मना कर दिया. खुद ही घर से निकल गई.

गांव से स्टेशन के रास्ते में कुछ रास्ते ऐसे थे जहां कोई नहीं रहता था. इसी जगह पर लड़की पर मिट्टी का तेल छिड़क कर आग लगा दी गई. लड़की खुद को बचाने के लिए मदद की तलाश में दौड़ रही थी. जली हालत में लड़की खुद को बचाने के लिए दौड़ी तो आग और भड़क गई और उस के कपड़े जल कर जिस्म से चिपक गए.

रास्ते में एक जगह कुछ लोग दिखे तो लड़की वहीं गिर पड़ी. लड़की के कहने पर रास्ते पर रहने वालों ने 112 नंबर पर जानकारी दी. शिकायत पर पहुंची पुलिस को लड़की ने जली हालत में पुलिस और प्रशासन को अपने ऊपर मिट्टी का तेल डाल कर जलाने वालों के नाम बताए. 90 फीसदी जली हालत में लड़की को पहले उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ और फिर देश की राजधानी दिल्ली इलाज के लिए ले जाया गया. पीडि़त लड़की ने जिंदगी और मौत के बीच 3 दिन संघर्ष करने के बाद दम तोड़ दिया. लड़की के पिता को दुख है कि घटना के दिन वह उसे छोड़ने स्टेशन तक क्यों नहीं गए. लड़की खुद अपनी लड़ाई लड़ रही थी. इस कारण वह विश्वास में थे. इस के पहले वह उसे छोड़ने स्टेशन तक जाते थे.

शिवम त्रिवेदी और दूसरे आरोपियों के परिवार के लोग घटना का तर्क देते कहते हैं कि गुनाह उन के घरवालों ने नहीं किया, उन को साजिश के तहत फंसाया जा रहा है. वे कहते हैं कि लड़की को जलाने की घटना जिस समय की है उस समय उन के लड़के घरों में सो रहे थे. पुलिस ने उन को सोते समय घर से पकड़ा है. अगर उन्होंने अपराध किया होता तो आराम से घर में सो नहीं रहे होते.

इन के समर्थक बताते हैं कि जेल से शिवम के छूटने के बाद लड़की ने उस को फिर से जेल भिजवाने की धमकी दी. इस के बाद खुद पर मिट्टी का तेल डाल कर खुद को जलाने का काम किया. ये लोग सोशल मीडिया पर इस बात का प्रचार भी कर रहे हैं कि शिवम को फंसाने और जेल भिजवाने के नाम पर 15 लाख रुपए की फिरौती लड़की मांग रही थी. इस में से 7 लाख रुपए शिवम के परिवार वाले दे भी चुके थे.

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दबाव में जागी सरकार

उन्नाव की घटना पर सरकार तब जागी जब कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने सोशल मीडिया से ले कर उन्नाव पहुंचने तक विरोध दर्ज किया. समाजवादी पार्टी नेता पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश की विधानसभा के बाहर धरनाप्रदर्शन किया और बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती ने प्रदेश के राज्यपाल से मिल कर उत्तर प्रदेश में महिला अपराध पर अपनी शिकायत दर्ज कराई. राजनीतिक दलों के साथ समाज के लोग भी सड़कों पर उतरे और सरकार के खिलाफ विरोधप्रदर्शन किया. इस के बाद भी भाजपा सरकार में मंत्री धन्नी सिंह ने कहा, ‘‘समाज अपराधशून्य तो रामराज में भी नहीं रहा.’’

उत्तर प्रदेश सरकार ने मामले को हलका करने के लिए लड़की के घरवालों को मुआवजा देने का काम किया. लड़की के घरपरिवार वालों को 25 लाख रुपए की आर्थिक मदद, गांव में 2 मकान और परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने का ऐलान किया गया. उन्नाव के मामले के बाद तमाम ऐसी घटनाएं प्रकाश में आने लगीं. इन घटनाओं से समाज की हकीकत का पता चलता है. इस बार रेप कांड सामाजिक है. समाज उन्नाव जिले की घटना को प्रेमप्रसंग मान कर दरकिनार कर रहा है.

उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है, जहां प्रेम को रोकने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के द्वारा शपथ ग्रहण करते ही ‘एंटी रोमियो दल’ का गठन किया गया था. मामला एक ही धर्म के लोगों का था. ऐसे में ‘एंटी रोमियो दल’ और पुलिस के लिए यह कोई बड़ी बात नहीं थी.

धर्म आधारित सत्ता तो रामायण और महाभारत काल से ही छले जाने पर औरत को ही दोषी मानती थी. अहल्या को पत्थर बना दिया जाना, सीता को घर से निकाला जाना और कुंती का पुत्र को त्याग करने जैसी बहुत सी घटनाएं उदाहरण हैं. ऐसे में उन्नाव के हिंदूपुर गांव की पिछड़ी जाति की लड़की के जलने के बाद भी समाज सच नहीं मान रहा तो कोई बड़े आश्चर्य वाली बात नहीं है.

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फिर वही शून्य : भाग 1

सौम्या अनिरुद्ध से विवाह कर पत्नी का कर्तव्य पूरी तरह निभा रही थी लेकिन मन से वह अभी भी समर की थी. ऐसे में फिर से समर को अपने सामने पा कर उस का दर्द आंखों से बह निकला. लेकिन अब परिस्थितियां कितनी बदल चुकी थीं.

सुनहरी सीपियों वाली लाल साड़ी पहन कर जब मैं कमरे से बाहर निकली तो मुझे देख कर अनिरुद्ध की आंखें चमक उठीं. आगे बढ़ कर मुझे अपने आगोश में ले कर वह बोले, ‘‘छोड़ो, सौम्या, क्या करना है शादीवादी में जा कर? तुम आज इतनी प्यारी लग रही हो कि बस, तुम्हें बांहों में ले कर प्यार करने का जी चाह रहा है.’’

‘‘क्या आप भी?’’ मैं ने स्वयं को धीरे से छुड़ाते हुए कहा, ‘‘विशाल आप का सब से करीबी दोस्त है. उस की शादी में नहीं जाएंगे तो वह बुरा मान जाएगा. वैसे भी इस परदेस में आप के मित्र ही तो हमारा परिवार हैं. चलिए, अब देर मत कीजिए.’’

‘‘अच्छा, लेकिन पहले कहो कि तुम मुझे प्यार करती हो.’’

‘‘हां बाबा, मैं आप से प्यार करती हूं,’’ मेरा लहजा एकदम सपाट था.

अनिरुद्ध कुछ देर गौर से मेरी आंखों में झांकते रहे, फिर बोले, ‘‘तुम सचमुच बहुत अच्छी हो, तुम्हारे आने से मेरी जिंदगी संवर गई है. अपने आप को बहुत खुशनसीब समझने लगा हूं मैं. फिर भी न जाने क्यों ऐसा लगता है जैसे तुम दिल से मेरे साथ नहीं हो, कि जैसे कोई समझौता कर रही हो. सौम्या, सच बताओ, तुम मेरे साथ खुश तो हो न?’’

मैं सिहर उठी. क्या अनिरुद्ध ने मेरे मन में झांक कर सब देख लिया था? नहीं, ऐसा नहीं हो सकता. खुद को संयत कर मैं ने इतना ही कहा, ‘‘आप भी कैसी बातें करते हैं? मेरे खुश न होने का क्या कारण हो सकता है? इस वक्त मुझे बस, समय से पहुंचने की चिंता है और कोई बात नहीं है.’’

शादी से वापस आतेआते काफी देर हो गई थी. अनिरुद्ध तो बिस्तर पर लेटते ही सो गए, लेकिन मेरे मन में उथलपुथल मची हुई थी. पुरानी यादें दस्तक दे कर मुझे बेचैन कर रही थीं, ऐसे में नींद कहां से आती?

कितने खुशनुमा दिन थे वे…स्कूल के बाद कालिज में प्रवेश. बेफिक्र यौवन, आंखों में सपने और उमंगों के उस दौर में वीरांगना का साथ.

वीरांगना राणा…प्यार से सब उसे वीरां बुलाते थे. दूध में घुले केसर सी उजली रंगत, लंबीघनी केशराशि, उज्ज्वल दंतपंक्ति…अत्यंत मासूम लावण्य था उस का. जीवन को भरपूर जीने की चाह, समस्याओं का साहस से सामना करने का माद्दा, हर परिस्थिति में हंसते रहने की अद्भुत क्षमता…मैं उस की जीवंतता से प्रभावित हुए बिना न रह सकी. हम दोनों कब एकदूसरे के निकट आ गईं, खुद हमें भी न पता चला.

फिर तो कभी वह मेरे घर, कभी मैं उस के घर में होती. साथ नोट्स बनाते और खूब गप लड़ाते. मां मजाक में कहतीं, ‘जिस की शादी पहले होगी वह दूसरी को दहेज में ले जाएगी,’ और हम खिलखिला कर हंस पड़ते.

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एक दिन वीरां ने मुझ से कहा, ‘आज भाई घर आने वाला है, इसलिए मैं कालिज नहीं चलूंगी. तू शाम को आना, तब मिलवाऊंगी अपने भाई से.’

वीरां का बड़ा भाई फौज में कैप्टन था और छुट्टी ले कर काफी दिन के बाद घर आ रहा था. इसी वजह से वह बहुत उत्साहित थी.

शाम को वीरां के घर पहुंच कर मैं ने डोरबेल बजाई और दरवाजे से थोड़ा टिक कर खड़ी हो गई, लेकिन अपनी बेखयाली में मैं ने देखा ही नहीं कि दरवाजा सिर्फ भिड़ा हुआ था, अंदर से बंद नहीं था. मेरा वजन पड़ने से वह एक झटके से खुल गया, मगर इस से पहले कि मैं गिरती, 2 हाथों ने मुझे मजबूती से थाम लिया.

मैं ने जब सिर उठा कर देखा तो देखती ही रह गई. वीरां जैसा ही उजला रंग, चौड़ा सीना, ऊंचा कद…तो यह था कैप्टन समर राणा. उस की नजरें भी मुझ पर टिकी हुई थीं जिन की तपिश से मेरा चेहरा सुर्ख हो गया और मेरी पलकें स्वत: ही झुक गईं.

‘लो, तुम तो मेरे मिलवाने से पहले ही भाई से मिल लीं. तो कैसा लगा मेरा भाई?’ वीरां की खनकती आवाज से मेरा ध्यान बंटा. उस के बाद मैं ज्यादा देर वहां न रह पाई, जल्दी ही बहाना बना कर घर लौट आई.

उस पूरी रात जागती रही मैं. उन बलिष्ठ बांहों का घेरा रहरह कर मुझे बेचैन करता रहा. एक पुरुष के प्रति ऐसी अनुभूति मुझे पहले कभी नहीं हुई थी. सारी रात अपनी भावनाओं का विश्लेषण करते ही बीती.

समर से अकसर ही सामना हो जाता. वह बहन को रोज घुमाता और वीरां मुझे भी साथ पकड़ कर ले जाती. दोनों भाईबहन एक से थे, ऊपर से सताने के लिए मैं थी ही. रास्ते भर मुझे ले कर हंसीठिठोली करते रहते, मुझे चिढ़ाने का एक भी मौका न छोड़ते. मगर मेरा उन की बातों में ध्यान कहां होता?

मैं तो समर की मौजूदगी से ही रोमांचित हो जाती, दिल जोरों से धड़कने लगता. उस का मुझे कनखियों से देखना, मुझे छेड़ना, मेरे शर्माने पर धीरे से हंस देना, यह सब मुझे बहुत अच्छा लगने लगा था. कभीकभी डर भी लगता कि कहीं यह खुशी छिन न जाए. मन में यह सवाल भी उठता कि मेरा प्यार एकतरफा तो नहीं? आखिर समर ने तो मुझे कोई उम्मीद नहीं दी थी, वह तो मेरी ही कल्पनाएं उड़ान भरने लगी थीं.

अपने प्रश्न का मुझे जल्दी ही उत्तर मिल गया था. एक शाम मैं, समर और वीरां उन के घर के बरामदे में कुरसी डाले बैठे थे तभी आंटी पोहे बना कर ले आईं, ‘मैं सोच रही हूं कि इस राजपूत के लिए कोई राजपूतनी ले आऊं,’ आंटी ने समर को छेड़ने के लहजे में कहा.

‘मम्मा, भाई को राजपूतनी नहीं, गुजरातिन चाहिए,’ वीरां मेरी ओर देख कर बडे़ अर्थपूर्ण ढंग से मुसकराई.

आंटी मेरी और समर की ओर हैरानी से देखने लगीं, पर समर खीज उठा, ‘क्या वीरां, तुम भी? हर बात की जल्दी होती है तुम्हें…मुझे तो कह लेने देतीं पहले…’

समर ने आगे क्या कहा, यह सुनने के लिए मैं वहां नहीं रुकी. थोड़ी देर बाद ही मेरे मोबाइल पर उस का फोन आया. अपनी शैली के विपरीत आज उस का स्वर गंभीर था, ‘सारी सौम्या, मैं खुद तुम से बात करना चाहता था, लेकिन वीरां ने मुझे मौका ही नहीं दिया. खैर, मेरे दिल में क्या है, यह तो सामने आ चुका है. अब अगर तुम्हारी इजाजत हो तो मैं मम्मीपापा से बात करूं. वैसे एक फौजी की जिंदगी तमाम खतरों से भरी होती है. अपने प्यार के अलावा तुम्हें और कुछ नहीं दे सकता. अच्छी तरह से सोच कर मुझे अपना जवाब देना…’

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‘सोचना क्या है? मैं मन से तुम्हारी हो चुकी हूं. अब जैसा भी है, मेरा नसीब तुम्हारे साथ है.’

हमारे प्यार को परिवार वालों की सहमति मिल गई और तय हुआ कि मेरी पढ़ाई पूरी होने के बाद हमारा विवाह किया जाएगा.

फिर वही शून्य : भाग 2

समर की छुट्टियां खत्म होने को थीं. उस के वापस जाने से पहले जो लम्हे मैं ने उस के साथ गुजारे वे मेरे जीवन की अमूल्य निधि हैं. उस का शालीन व्यवहार, मेरे प्रति उस की संवेदनशीलता और प्रेम के वे कोमल क्षण मुझे भावविह्वल कर देते. उस के साथ अपने भविष्य की कल्पनाएं एक सुखद अनुभूति देतीं.

मगर इनसान जैसा सोचता है वैसा हो कहां पाता है? पड़ोसी देश के अचानक आक्रमण करने की वजह से सीमा पर युद्ध के हालात उत्पन्न हो गए. एक फौजी के परिवार को किन परिस्थितियों से गुजरना पड़ता है, इस का अंदाजा मुझे उस वक्त ही हुआ. टीवी पर युद्ध के हृदयविदारक दृश्य और फौजियों की निर्जीव देहें, उन के परिजनों का करुण रुदन देख कर मैं विचलित हो जाती. मन तरहतरह की आशंकाआें से घिरा रहता. सारा वक्त समर की कुशलता की प्रार्थना करते ही बीतता.

ऐसे में मैं एक दिन वीरां के साथ बैठी थी कि समर की बटालियन से फोन आया. समर को लापता कर दिया गया था. माना जा रहा था कि उसे दुश्मन देश के सैनिकों ने बंदी बना लिया था.

कुछ देर के लिए तो हम सब जड़ रह गए. फिर मन की पीड़ा आंखों के रास्ते आंसू बन कर बह निकली. वहां समर न जाने कितनी यातनाएं झेल रहा था और यहां…खुद को कितना बेबस और लाचार महसूस कर रहे थे हम.

युद्ध की समाप्ति पर दुश्मन देश ने अपने पास युद्धबंदी होने की बात पर साफ इनकार कर दिया. हमारी कोई कोशिश काम न आई. हम जहां भी मदद की गुहार लगाते, हमें आश्वासनों के अलावा कुछ न मिलता. उम्मीद की कोई किरण नजर नहीं आ रही थी.

वक्त गुजरता गया. इतना सब होने के बाद भी जिंदगी रुकी नहीं. वाकई यह बड़ी निर्मोही होती है. जीवन तो पुराने ढर्रे पर लौट आया लेकिन मेरा मन मर चुका था. वीरां और मैं अब भी साथ ही कालिज जाते, मगर समर अपने साथ हमारी हंसीखुशी सब ले गया. बस जीना था…तो सांस ले रहे थे, ऐसे ही…निरुद्देश्य. जीवन बस, एक शून्य भर रह गया था.

फिर हम दोनों ने साथ ही बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन का कोर्स भी कर लिया. तब एक दिन मम्मी ने मुझे अनिरुद्ध की तसवीर दिखाई.

बच्चों की भावना

‘मैं जानती हूं कि तुम समर को भुला नहीं पाई हो, लेकिन बेटा, ऐसे कब तक चलेगा? तुम्हें आगे के बारे में सोचना ही पडे़गा. इसे देखो, मातापिता सूरत में रहते हैं और खुद अमेरिका में साफ्टवेयर इंजीनियर है. इतना अच्छा रिश्ता बारबार नहीं मिलता. अगर तुम कहो तो बात आगे बढ़ाएं,’  वह मुझे समझाने के स्वर में बोलीं.

उन की बात सुन कर मैं तड़प उठी, ‘आप कैसी बातें कर रही हैं, मम्मी? मैं समर के अलावा किसी और के बारे में सोच भी नहीं सकती. आप एक औरत हैं, कम से कम आप तो मेरी मनोदशा समझें.’

‘तो क्या जिंदगी भर कुंआरी  रहोगी?’

‘हां,’ अब मेरा स्वर तल्ख होने लगा था, ‘और आप क्यों परेशान होती हैं? आप लोगों को मेरा बोझ नहीं उठाना पडे़गा. जल्दी ही मैं कोई नौकरी ढूंढ़ लूंगी. फिर तो आप निश्ंिचत रहेंगी न…’

‘पागल हो गई हो क्या? हम ने कब तुम्हें बोझ कहा, लेकिन हम कब तक रहेंगे? इस समाज में आज के दौर में एक अकेली औरत का जीना आसान नहीं है. उसे न जाने कितने कटाक्षों और दूषित निगाहों का सामना करना पड़ता है. कैसे जी पाओगी तुम? समझ क्यों नहीं रही हो तुम?’ मम्मी परेशान हो उठीं.

मगर मैं भी अपनी जिद पर अड़ी रही, ‘मैं कुछ समझना नहीं चाहती. मैं बस, इतना जानती हूं कि मैं सिर्फ समर से प्यार करती हूं.’

‘और समर का कुछ पता नहीं. वह जिंदा भी है या…कुछ पता नहीं,’ वीरां की धीमी आवाज सुन कर हम दोनों चौंक पड़ीं. वह न जाने कब से खड़ी हमारी बातें सुन रही थी, लेकिन हमें पता ही न चला था. मम्मी कुछ झेंप कर रह गईं लेकिन उस ने उन्हें ‘मैं बात करती हूं’ कह कर दिलासा दिया और वह हम दोनों को अकेला छोड़ कर वहां से चली गईं.

‘वीरां, तू कुछ तो सोचसमझ कर बोला कर. तू भूल रही है कि जिस के बारे में तू यह सब बातें कर रही है, वह तेरा ही भाई है.’

‘जानती हूं, लेकिन हकीकत से भी तो मुंह नहीं मोड़ा जा सकता. हमारी जो जिम्मेदारियां हैं, उन्हें भी तो पूरा करना हमारा ही फर्ज है. तुम्हें शायद भाई के लौटने की आस है, लेकिन जब 1971 के युद्धबंदी अब तक नहीं लौटे, तो हम किस आधार पर उम्मीद लगाएं.’

‘लेकिन…’

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‘लेकिन के लिए कोई गुंजाइश नहीं है, सौम्या. तुम अपने मातापिता की इकलौती संतान हो. तुम चाहती हो कि वे जीवनभर तुम्हारे दुख में घुलते रहें? क्या तुम्हारा उन के प्रति कोई फर्ज नहीं है?’

‘लेकिन मेरा भी तो सोचो, समर के अलावा मैं किसी और से कैसे शादी कर सकती हूं?’

‘अपनी जिम्मेदारियों को सामने रखोगी तो फैसला लेना आसान हो जाएगा,’ उस दिन हम दोनों सहेलियां आपस में लिपट कर खूब रोईं.

फिर मैं अनिरुद्ध से विवाह कर के न्यू जर्सी आ गई, मगर मैं समर को एक दिन के लिए भी नहीं भूल पाई. हालांकि मैं ने अनिरुद्ध को कभी भी शिकायत का मौका नहीं दिया, अपने हर कर्तव्य का निर्वहन भली प्रकार से किया, पर मेरे मन में उस के लिए प्रेम पनप न सका. मेरे मनमंदिर में तो समर बसा था, अनिरुद्ध को कहां जगह देती.

यही बात मुश्किल भी खड़ी करती. मैं कभी मन से अनिरुद्ध की पत्नी न बन पाई. उस के सामने जब अपना तन समर्पित करती, तब मन समर की कल्पना करता. खुद पर ग्लानि होती मुझे. लगता अनिरुद्ध को धोखा दे रही हूं. आखिर उस की तो कोेई गलती नहीं थी. फिर क्यों उसे अपने हिस्से के प्यार से वंचित रहना पडे़़? अब वही तो मेरे जीवन का सच था. मगर खुद को लाख समझाने पर भी मैं समर को दिल से नहीं निकाल पाई. शायद एक औरत जब प्यार करती है तो बहुत शिद्दत से करती है.

फिर वही शून्य : भाग 3

अलार्म की आवाज ने विचारों की शृंखला को तोड़ दिया. सारी रात सोचतेसोचते ही बीत गई थी. एक ठंडी सांस ले कर मैं उठ खड़ी हुई.

फिर 1 साल बाद ही भारत आना हुआ. इस बीच वीरां का विवाह भी हो चुका था. जब इस बात का पता चला तो मन में एक टीस सी उठी थी.

‘‘तुम्हारी पसंद का मूंग की दाल का हलवा बनाया है, वहां तो क्या खाती होगी तुम यह सब,’’ मम्मी मेरे आने से बहुत उत्साहित थीं.

‘‘वीरां कैसी है, मम्मी? वह अपने ससुराल में ठीक तो है न?’’

‘‘हां, वह भी आई है अभी मायके.’’

‘‘अच्छा, तो मैं जाऊंगी उस से मिलने,’’ मैं ने खुश हो कर कहा.

इस पर मम्मी कुछ खामोश हो गईं. फिर धीरे से बोलीं, ‘‘हम ने तुम से एक बात छिपाई थी. वीरां की शादी के कुछ दिन पहले ही समर रिहा किया गया था. उस का एक पांव बेकार हो चुका है. बैसाखियों के सहारे ही चल पाता है. अभी महीना भर पहले ही उस का भी विवाह हुआ है. तुम वहां जाओगी तो जाहिर है, अत्यंत असहज महसूस करोगी. बेहतर होगा किसी दिन वीरां को यहीं बुला लेना.’’

वज्रपात हुआ जैसे मुझ पर. नियति ने कैसा क्रूर मजाक किया था मेरे साथ. समर की रिहाई  हुई तो मेरी शादी के फौरन बाद. किस्मत के अलावा किसे दोष देती? समय मेरी मुट्ठी से रेत की तरह फिसल चुका था. अब हो भी क्या सकता था?

इसी उधेड़बुन में कई दिन निकल गए. पहले सोचा कि वीरां से बिना मिले ही वापस लौट जाऊंगी, लेकिन फिर लगा कि जो होना था, हो गया. उस के लिए, वीरां के साथ जो मेरा खूबसूरत रिश्ता था, उसे क्यों खत्म करूं? अजीब सी मनोदशा में मैं ने उस के घर का नंबर मिलाया.

‘‘हैलो,’’ दूसरी तरफ से वही आवाज सुनाई दी जिसे सुन कर मेरी धड़कनें बढ़ जाती थीं.

विधि की कैसी विडंबना थी कि जो मेरा सब से ज्यादा अपना था, आज वही पराया बन चुका था. मैं अपनी भावनाओं पर काबू न रख पाई. रुंधे गले से इतना ही बोल पाई, ‘‘मैं, सौम्या.’’

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‘‘कैसी हो तुम?’’ समर का स्वर भी भीगा हुआ था.

‘‘ठीक हूं, और आप?’’

‘‘मैं भी बस, ठीक ही हूं.’’

‘‘वो…मुझे वीरां से बात करनी थी.’’

‘‘अभी तो वह घर पर नहीं है.’’

‘‘ठीक है,’’ कह कर मैं रिसीवर रखने लगी कि समर बोल उठा, ‘‘रुको, सौम्या, मैं…मैं कुछ कहना चाहता हूं. जानता हूं कि मेरा अब कोई हक नहीं, लेकिन क्या आज एक बार और तुम मुझ से शाम को उसी काफी शाप पर मिलोगी, जहां मैं तुम्हें ले जाता था?’’

एक बार लगा कि कह दूं, हक तो तुम्हारा अब भी इतना है कि बुलाओगे तो सबकुछ छोड़ कर तुम्हारे पास आ जाऊंगी, लेकिन यह सच कहां था? अब दोनों के जीवन की दिशा बदल गई थी. अग्नि के समक्ष जिस मर्यादा का पालन करने का वचन दिया था उसे तो पूरा करना ही था.

‘‘अब किस हैसियत से मिलूं मैं आप से? हम दोनों शादीशुदा हैं और आप की नजरों का सामना करने का साहस नहीं है मुझ में. किसी और से शादी कर के मैं ने आप को धोखा दिया है. नहीं, आप की आंखों में अपने लिए घृणा और वितृष्णा का भाव नहीं देख सकती मैं.’’

‘‘फिर ऐसा धोखा तो मैं ने भी तुम्हें दिया है. सौम्या, जो कुछ भी हुआ, हालात के चलते. इस में किसी का भी दोष नहीं है. मैं तुम से कभी भी नफरत नहीं कर सकता. मेरे दिल पर जैसे बहुत बड़ा बोझ है. तुम से बात कर के खुद को हलका करना चाहता हूं बाकी जैसा तुम ठीक समझो.’’

मैं जानती थी कि मैं उसे इनकार नहीं कर सकती थी. ?एक बार तो मुझे उस से मिलना ही था. मैं ने समर से कह दिया कि मैं उस से 6 बजे मिलने आऊंगी.

शाम को मैं साढे़ 5 बजे ही काफी शाप पर पहुंच गई, लेकिन समर वहां पहले से ही मौजूद था. जब उस ने मेरी ओर देखा, तो उठ कर खड़ा हो गया. उफ, क्या हालत हो गई थी उस की. जेल में मिली यातनाओं ने कितना अशक्त कर दिया था उसे और उस का बायां पैर…बड़ी मुश्किल से बैसाखियों के सहारे खड़ा था वह. कभी सोचा भी न था कि उसे इन हालात में देखना पडे़गा.

हम दोनों की ही आंखों में नमी थी. बैरा काफी दे कर चला गया था.

‘‘वीरां कैसी है?’’ मैं ने ही शुरुआत की.

‘‘अच्छी है,’’ एक गहरी सांस ले कर समर बोला, ‘‘वह खुद को तुम्हारा गुनाहगार मानती है. कहती है कि अगर उस ने जोर न दिया होता तो शायद आज तुम मेरी…’’

मैं निगाह नीची किए चुपचाप बैठी रही.

‘‘गुनाहगार तो मैं भी हूं तुम्हारा,’’ वह कहता रहा, ‘‘तुम्हें सपने दिखा कर उन्हें पूरा न कर सका, लेकिन शायद यही हमारी किस्मत में था. पकड़े जाने पर मुझे भयंकर अमानवीय यातनाएं दी जातीं. अगर हिम्मत हार जाता, तो दम ही तोड़ देता, लेकिन तुम से मिलन की आस ही मुझे उन कठिन परिस्थितियों में हौसला देती. एक बार भागने की कोशिश भी की, लेकिन पकड़ा गया. फिर एक दिन सुना कि दोनों तरफ की सरकारों में संधि हो गई है जिस के तहत युद्धबंदियों को रिहा किया जाएगा.

‘‘मैं बहुत खुश था कि अब तुम से आ कर मिलूंगा और हम नए सिरे से जीवन की शुरुआत करेंगे. जब यहां आ कर पता चला कि तुम्हारी शादी हो चुकी है, तो मेरी हताशा का कोई अंत न था. फिर वीरां भी शादी कर के चली गई. जेल में मिली यातनाओं ने मुझे अपंग कर दिया था. मैं ने खुद को गहन निराशा और अवसाद से घिरा पाया. मेरे व्यवहार में चिड़चिड़ापन आने लगा था. जराजरा सी बात पर क्रोध आता. अपना अस्तित्व बेमानी लगने लगा था.

‘‘उन्हीं दिनों नेहा से मुलाकात हुई. उस ने मुझे बहुत संबल दिया और जीवन को फिर एक सकारात्मक दिशा मिल गई. मेरा खोया आत्मविश्वास लौटने लगा था. मैं तुम्हें तो खो चुका था, अब उसे नहीं खोना चाहता था. तुम मेरे दिल के एक कोने में आज भी हो, मगर नेहा ही मेरे वर्तमान का सच है…’’

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मैं सोचने लगी कि एक पुरुष के लिए कितना आसान होता है अतीत को पीछे ढकेल कर जिं?दगी में आगे बढ़ जाना. फिर खुद पर ही शर्मिंदगी हुई. अगर समर मेरी याद में बैरागी बन कर रहता, तब खुश होती क्या मैं?

‘‘…बस, तुम्हारी फिक्र रहती थी, पर तुम अपने घरसंसार में सुखी हो, यह जान कर मैं सुकून से जी पाऊंगा,’’ समर कह रहा था.

‘‘मुझे खुशी है कि तुम्हें ऐसा साथी मिला है जिस के साथ तुम संतुष्ट हो,’’ मैं ने सहजता से कहने की कोशिश की, ‘‘दिल पर कोई बोझ मत रखो और वीरां से कहना, मुझ से आ कर मिले. अब चलती हूं, देर हो गई है,’’ बिना उस की तरफ देखे मैं उठ कर बाहर आ गई.

जिन भावनाओं को अंदर बड़ी मुश्किल से दबा रखा था, वे बाहर पूरी तीव्रता से उमड़ आईं. यह सोच कर ही कि अब दोबारा कभी समर से मुलाकात नहीं होगी, मेरा दिल बैठने लगा. अपने अंदर चल रहे इस तूफान से जद्दोजहद करती मैं तेज कदमों से चलती रही.

तभी पर्स में रखे मोबाइल की घंटी बज उठी. अनिरुद्ध का स्वर उभरा, ‘‘मैं तो अभी से तुम्हें मिस कर रहा हूं. कब वापस आओगी तुम?’’

‘‘जल्दी ही आ जाऊंगी.’’

‘‘बहुत अच्छा. सौम्या, वह बात कहो न.’’

‘‘कौन सी?’’

‘‘वही, जिसे सुनना मुझे अच्छा लगता है.’’

मैं ने एक दीर्घनिश्वास छोड़ कर कहा, ‘‘मैं आप से बहुत प्यार करती हूं,’’ जेहन में समर का चेहरा कौंधा और आंखों में कैद आंसू स्वतंत्र हो कर चेहरे पर ढुलक आए. जीवन में फिर वही शून्य उभर आया था.

पराली से प्रदूषण : जमीनी स्तर पर हो काम तभी फायदे में होगा किसान

हमारे देश की राजधानी दिल्ली व आसपास के इलाकों में पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण को लेकर खूब होहल्ला मचा. यह केवल इसी साल की बात नहीं है, पिछले कई सालों से धान की कटाई होने के बाद और इसे जलाने को ले कर प्रदेश की सरकारों में एकदूसरे पर आरोप लगाने का दौर चलता है और देश की अदालत को भी इस में अपना दखल देना पड़ता है. आखिरकार नतीजा भी कुछ खास नहीं निकलता और समय के साथ और मौसम में बदलाव होने पर यह मामला अपनेआप खत्म हो जाता है.

हां, इस प्रदूषित वातावरण के माहौल को ले कर राजनीतिक दलों में जरूर बन आती है, जो एकदूसरे पर कीचड़ उछालने का काम करते हैं और लेदे कर निशाना किसानों को बनाते हैं.

टैलीविजन चैनलों की आपस में होड़ लग जाती है कि कौन कितना बढ़ाचढ़ा कर हौआ पैदा करे. नतीजा मास्क बनाने वालों की पौबारह हो जाती है, जो औनेपौने दामों पर जनता को लूटती है. इस समस्या का समाधान अपनेअपने हिसाब से निकालने की नाकाम कोशिश करते हैं.

पराली प्रदूषण को ले कर देश की राजधानी दिल्ली में यातायात में औडईवन जैसे नियम लागू कर दिए जाते हैं, जिस में आम जनता जरूर परेशान होती है, पर नतीजा नहीं निकलता. भवन निर्माण जैसे कामों पर रोक लगा दी जाती है. इस का फायदा वे सरकारी कर्मचारी उठाते हैं, जो लोगों से अच्छीखासी रकम वसूलते हैं और चोरीछिपे यह काम भी चलता है.

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प्रदूषण फैलाने वाली इकाइयों पर भी रोक लगाई जाती है, लेकिन लेदे कर चोरीछिपे वह भी चलती है और जब कभी ऊपर से बड़े अधिकारियों का दबाव आता है तो बिचौलियों के माध्यम से फैक्टरी मालिकों को पहले ही आगाह कर दिया जाता है कि फलां दिन फलां समय अधिकारियों का दौरा है, इसलिए फैक्टरियां बंद रखें.

कहने का मतलब है कि सरकार का काम नियम बनाना है, लेकिन उस को अमलीजामा पहनाना सरकारी मुलाजिमों का काम है, इसलिए सभी को अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी, चाहे वे आम आदमी हो या सरकारी मुलाजिम, सरकार हो या किसान, तभी इस तरह की समस्या का समाधान संभव है.

किसानों का कहना है कि धान की फसल कटाई और गेहूं बोआई के बीच का समय कम रहा है और सभी किसानों के पास ऐसे संसाधन नहीं हैं जो पराली को इतने कम समय में ठिकाने लगा सकें. ज्यादातर किसानों की पहुंच ऐसे कृषि यंत्रों या ऐसी तकनीक तक नहीं है, जो पराली नष्ट करने में काम आते हैं.

पराली की खाद बनाने के लिए कृषि वैज्ञानिकों ने अनेक तरीके बताए हैं. उस की जानकारी भी समय पर किसानों तक नहीं पहुंच पाती. इस दिशा में कृषि वैज्ञानिकों द्वारा पराली से खाद बनाने के लिए वेस्ट डीकंपोजर व पूसा संस्थान, नई दिल्ली द्वारा कैप्सूल बनाए हैं, जिन में बहुत ज्यादा असरकारक बैक्टीरिया मौजूद होते हैं, जो तय समय में पराली को सड़ा कर खाद बनाने का काम करते हैं.

एक किसान का कहना है कि सरकार केवल प्रचार ही करती है, समस्या के समाधान के लिए जमीनी स्तर पर काम नहीं किया जाता. अगर किसानों की समस्या का सही निदान किया जाए तो किसान पराली क्यों जलाएगा? पराली जलाने से खेत की मिट्टी तो हमारी भी खराब होती है, अनेक पैदावार में फायदा देने वाले तत्त्व भी नष्ट हो जाते हैं, लेकिन हम क्या करें, हमें अगली फसल भी तो लेनी होती है.

4 कैप्सूल से 1 एकड़ की पराली बनेगी खाद

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पूसा, नई दिल्ली के कृषि वैज्ञानिकों ने एक ऐसा कैप्सूल तैयार किया है, जिस की कीमत महज 5 रुपए है. इस के 4 कैप्सूल ही एक एकड़ खेत की पराली को खाद बनाने में सक्षम है. इस के इस्तेमाल से पराली की खाद तो बनती ही है, इस के अलावा जमीन में नमी भी बनी रहती है. यह कैप्सूल जो एक तरफ तो पराली को सड़ा कर खाद बनाते हैं, वहीं दूसरी तरफ खेत की मिट्टी को उपजाऊ भी बनाते हैं.

कैसे इस्तेमाल करें 

कृषि वैज्ञानिक युद्धवीर सिंह के मुताबिक, सब से पहले हमें 150 ग्राम पुराना गुड़ लेना है. उसे पानी में उबालना है. उबालते समय उस में जो भी गंदगी आती है, उसे निकाल कर फेंक देना है. फिर उस घोल को ठंडा कर के लगभग 5 लिटर पानी में घोल देना है. इस में लगभग 50 ग्राम बेसन भी घोल कर मिला दें. इस के बाद इस में पूसा संस्थान से खरीदे गए 4 कैप्सूलों को खोल कर उसी घोल में मिला दें. इस काम के लिए बड़े आकार यानी चौड़ाई वाला प्लास्टिक या मिट्टी का बरतन लेना है.

अब इस घोल को हलके गरमाहट वाले किसी स्थान पर लगभग 5 दिनों के लिए रख दें. अगले दिन इस घोल की ऊपरी सतह पर एक परत जम जाएगी. इस परत को डंडे की मदद से उसी घोल में फिर मिला देना है. यह प्रक्रिया लगातार 5 दिनों तक करनी है. इस तरीके से आप का कंपोस्ट घोल तैयार हो जाएगा. यह 5 लिटर घोल लगभग 10 क्विंटल पराली को खाद बनाने के लिए काफी है.

अब इस तैयार घोल को आप खेत में फैली पराली पर छिड़क दें. फिर खेत में रोटावेटर चला दें. लगातार 20-25 दिनों में पराली की खाद बन जाएगी. इस के अलावा सिंचाई द्वारा भी इस घोल को पानी में डाल सकते हैं. यह घोल समान रूप से पानी में मिल कर पराली वाले खेतों में पहुंच जाए. 20-25 दिनों में ही पराली को खाद में बदल देते हैं.

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कृषि यंत्रों का होना जरूरी

इस काम में कृषि यंत्रों का होना बेहद जरूरी है जो पराली को खेत में मिला सके. इस दिशा में केंद्र सरकार ने कदम उठाया है और 600 करोड़ रुपए की धनराशि मुहैया कराई है, बाकी राशि राज्य सरकारों को वहन करनी है.

उन्नत किस्म के कृषि यंत्रों को किसानों तक पहुंचाने के लिए कस्टम हायरिंग सैंटर बनाए गए हैं, जिन्हें किसान समितियों द्वारा मिल कर चलाया जा रहा है. इस स्कीम के तहत 80 फीसदी अनुदान पर यह यंत्र किसानों की समितियों को मुहैया कराए जाते हैं, जिन्हें किसान अपनी खेती में तो इस्तेमाल करेंगे ही, बल्कि दूसरे किसानों के लिए भी यंत्र किराए पर दे सकेंगे. बदले में उन से तय किराया लेना होगा.

किसानों की पहुंच के लिए कस्टमर हायरिंग सैंटर को मोबाइल एप सीएचसी से जोड़ा गया है. इस एप के जरीए किसान इन यंत्रों का फायदा ले सकते हैं. एक कस्टमर हायरिंग सैंटर 50 किलोमीटर के दायरे में बनाया गया है, जहां से कोई भी छोटाबड़ा किसान अपने नजदीकी सैंटर में कृषि यंत्रों को किराए पर मंगा कर उन का इस्तेमाल कर सकता है.

पराली में काम आने वाले यंत्रों में मल्चर, एमबी प्लाऊ, रोटावेटर व सीडर है, जो पराली को काट कर मिट्टी में दबा देते हैं या अवशेषों को जमीन में दबा देते हैं. जीरो टिलेज या हैप्पी सीडर जैसे यंत्र से धान के कटने के बाद खेत में गेहूं की सीधे बोआई कर सकते हैं. हैप्पी सीडर यंत्र धान की पराली को छोटेछोटे टुकड़ों में काट कर खेत में मिला देता है, जिस की खाद बन जाती है और साथ ही, गेहूं की बोआई भी करता है. इस तरीके से किसान के एकसाथ 2 काम हो जाते हैं.

  क्या कहते हैं कृषि मंत्री

केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का कहना है कि प्रदूषण एक बहुत बड़ी समस्या है औैर चिंता की बात है. सभी लोग इस मसले पर गंभीर हैं खासकर दिल्ली व एनसीआर में बुरे हालात बने हैं. इस सिलसिले में पराली प्रोसैस के लिए कृषि मंत्रालय ने एक स्कीम तैयार की है. इस के तहत किसानों को अनुदान पर ऐसे कृषि यंत्रों को उपलब्ध कराया जा रहा है, जो इस समस्या के समाधान का सहायक है.

 कृषि यंत्र पैडी स्ट्रा चौपर

हार्वेस्टर मशीनें धान की कटाईर् में खेत की सतह से लगभग 1 फुट की ऊंचाई पर करती हैं, बाकी फसल अवशेष खेत में खड़ा रह जाता है जो किसानों के लिए समस्या बन जाता है. इस के समाधान के लिए पैडी स्ट्रा चौपर यंत्र है जो खेत में खड़ी पराली को छोटेछोटे टुकड़ों में काट देता है. इस यंत्र को ट्रैक्टर के साथ जोड़ कर चलाया जाता है. यंत्र की कीमत लगभग डेढ़ लाख रुपए है.

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  20 रुपए में वेस्ट डीकंपोजर से खाद

20 रुपए में मिलने वाले इस वेस्ट डीकंपोजर को गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश में स्थित नैशनल सैंटर औफ आर्गेनिक फार्मिंग द्वारा तैयार किया गया है. इस के इस्तेमाल से लगभग 30 से 40 दिनों में यह पराली की खाद बना देता है.

यह वेस्ट डीकंपोजर पर्यावरण और किसान दोनों के लिए फायदेमंद है. खाद बनाने के साथसाथ खेत की मिट्टी को उपजाऊ बनाता है और दीमक वगैरह में भी खेत का बचाव करता है और खेत में नमी बनाए रखता है.

इस का इस्तेमाल करने के लिए एक बडे़ प्लास्टिक के ड्रम में 200 लिटर पानी भर लें और इस में डीकंपोजर की डब्बी को खोल कर मिला दें. इसे किसी छायादार जगह पर रख लें. फिर 3 दिनों तक इस घोल को सुबहशाम रोज डंडे से मिला दिया करें. इस के बाद

11-12 दिनों तक इसे ऐसे ही छोड़ दें. यह घोल तैयार हो जाएगा औैर अच्छे नतीजों के लिए इस घोल को बनाते समय इस में गुड़ व बेसन भी मिला सकते हैं.

तैयार इस घोल को पहले की तरह ही पानी के जरीए खेत में पहुंचाना है, जो पराली को सड़ा कर खाद बना देगा.

प्रीवैडिंग इन्क्वायरी दोनों पक्षों के हित में

शादी के नाम से लड़केलड़की क्या, सभी के मन में लड्डू फूटने लगते हैं. और कहीं तय हो जाए तो समझिए दोनों पक्षों में लड्डू बंटना शुरू, जोरशोर से तैयारी में दनादन खर्च. क्यों न करें भई, शादी एक ही बार होती है, रोजरोज थोड़े ही. ठीक है, पर जरा रुक कर सोचिए तो सही, आजकल आएदिन बढ़ रहे तलाक, घरेलू हिंसा, ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर, धोखा, दहेज प्रताड़ना कहीं आप की भी खुशियों और खर्च पर पानी फेरने न आ जाएं. इसलिए, मन और खर्च पर थोड़ी लगाम कसें.

खर्च करना ही है तो उचित प्रीवैडिंग इन्क्वायरी पर करें तथा अपने पक्ष के बारे में सच्ची जानकारी के लिए दूसरे पक्ष का सहयोग करें. जिस से उस विवाह के सुखमय भविष्य की संभावनाएं बढ़ती ही जाएं.

पंडित, रीतिरिवाज, जन्मकुंडली मिलान से अधिक कुछ इन अधोलिखित बातों का ध्यान अवश्य रखें. संकोच न करें, बल्कि बिन चूके अवश्य ये प्रूफ लें और दें.

मैडिकल फिटनैस प्रूफ :  ब्लड गु्रप के साथ जानें लड़केलड़की के आंख, कान, हाथ, पैर सब सामान्य हैं या नहीं. सुनने की क्षमता, सही उच्चारण, स्पष्ट बोली का भी फिटनैस प्रूफ लें. हकलाहट या स को श और श को स तो नहीं बोलता या बोलती? पहले ही जान लें कि चाल भटकती तो नहीं. चश्मा लगा है तो कितने पावर का है. कोई बीमारी या वंशानुगत बीमारी, कोई मेजर औपरेशन, यदि हुआ है तो उस की जानकारी आप को भी होनी चाहिए. मानसिक संतुलन, सनक, फोबिया जान कर ही आगे बढ़ें.

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क्वालिफिकेशन या आईक्यू स्तर :  शिक्षा, प्रशिक्षा, योग्यता जांच कर ही रिश्ता पक्का करें. आईक्यू का मैच अवश्य बैठाएं. फर्जी डिगरी, सर्टिफिकेट को ले कर बाद में पछताना न पड़े. आजकल धोखे बहुत हो रहे हैं. जोड़े की खुशहाली के लिए दोनों के आईक्यू लैवल का मैच होना तो सब से जरूरी है, यह भूलें नहीं.

इनकम प्रूफ :  लड़कालड़की कितना कमाते हैं, आप को इस का इनकम प्रूफ अवश्य लेना चाहिए. सीधासादा सम झ कर लोगों की बातों के  झांसे में न आएं, न ही किसी लालच में. आखिर आप के बच्चों का भविष्य इस से जुड़ा है. कोई संकोच न करें, प्रूफ दें भी और लें भी.

हाउस ओनरशिप प्रूफ :  यदि मकान, दुकान, प्लौट की बातें बताई गई हैं तो सज्जन बने आंखें मूंदे यों ही न मान लें. इन का प्रूफ अवश्य लें ताकि बाद में इस को ले कर मलाल और  झगड़े की कोई संभावना न हो.

कैरेक्टर प्रूफ : कोई मुकदमा, जुर्माना, जेल, सजा, कर्ज, पूर्ववर्तमान कोई नाजायज/दत्तक संबंध तो नहीं? चालचलन सही होना बेहद जरूरी है, इसलिए पूरी जांचपड़ताल करें. शराब, जुआ, गुटका, तंबाकू, सिगरेट इत्यादि की बुरी लतें तो नहीं, यह जान लेना भी बहुत आवश्यक है जिस से बाद में कोई परेशानी न उठानी पड़े.

अन्य :  रीतिरिवाज, धर्मसंस्कार के कितने मानने वाले हैं, यह भी जान लें, ताकि बाद में किसी को कोई आपत्ति न हो. साफसफाई, नाक, कान, दांत में हर समय उंगली, मुंह पर डकारना, छींकना, असभ्य व्यवहार सब पर नजर रखें कि इन्हें नजरअंदाज किया जा सकेगा या नहीं. शिष्टता और व्यवहार कैसा है, यह भी अच्छी तरह सम झ लें. बाद में इन आदतों को बदलवाने की जद्दोजेहद में घर कलह से न भर जाए, इसलिए पहले से यह सब देखना, सम झ लेना जरूरी है.

क्या सोच खुली या संकीर्ण है? अकसर इस कारण भी रिश्तों में खटास भरती है. आत्मविश्वासी है या अंधविश्वासी? स्वभाव शक्की या गुस्सैल तो नहीं, यह भी जान लें वरना दोनों का वैचारिक मेल खाना दुष्कर है. लड़के और लड़की की जरूरतें, जिम्मेदारियां क्या और कितनी हैं? यह न हो कि बाद में पता चले कि अपने किन्हीं लोगों की जिम्मेदारी भी लड़के या लड़की के सिर है, तो यही फसाद की जड़ बन जाए. इसलिए, जो भी हो आप सभी को हर बात की सही जानकारी पहले ही होनी चाहिए. तभी आगे बढ़ें.

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खानदान, रिश्तेदार, रहनसहन तो आप देखते ही हैं, दोस्तसंगत, पड़ोसी, पतास्थान, बेसिक सुखसुविधा, हवापानी, पार्क, बाजार, स्कूल, दवा की दुकान, डाक्टरअस्पताल भी अवश्य देखें. अच्छी जांचपड़ताल करने के लिए एकदूसरे को संतोषप्रद समय दें. प्रीवैडिंग की अहमियत समझें और पूरी तसल्ली हो जाने पर ही शहनाई बजवाएं, लड्डू बांटें, बंटवाएं और हमें भी खिलाएं.

ऐसे बनाएं कोकोनट सूप

आज आपको कोकोनेट सूप की रेसिपी बताते हैं, जो बेहद ही टेस्टी है और बनाने में भी उतना आसान है. तो आइए जानते हैं, कोकोनेट सूप बनाने की रेसिपी.

सामग्री

– 2 बड़े चम्मच औलिव औयल

– थोड़ा सा प्याज बारीक कटा

– थोड़ा सा लहसुन का पेस्ट

– 1 कप मशरूम कटी

– 1 कप गाजर लंबे टुकड़ों में कटी

– 1 छोटा चम्मच अदरक का पेस्ट

– 1 छोटा चम्मच चीनी

– 1/2 छोटा चम्मच कालीमिर्च पाउडर

– थोड़ा सा नमक

– थोड़ा सा सोया सौस

– थोड़ा सा लैमन जेस्ट

– 3 कप वैजिटेबल स्टौक

– 2 केन कोकोनट मिल्क

– थोड़ी सी धनियापत्ती

– नीबू के टुकड़े सजाने के लिए स्वादानुसार नमक.

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बनाने की विधि

– एक बड़े बरतन में औलिव औयल ले कर उसे गरम करें.

– गरम होने पर उस में प्याज, लहसुन का पेस्ट व मशरूम डाल कर 5 मिनट तक चलाएं.

– फिर इस में बाकी बची सामग्री को अच्छे से मिक्स कर 15-20 मिनट तक पकने के लिए छोड़ दें.

– बीच में चलाना न छोड़ें.

– जब अच्छे से पक जाए तो नीबू के टुकड़ों से सजा कर सर्व करें.

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शिक्षकों की भर्ती : सच या ख्वाब

भारत में बेरोजगारी एक गंभीर समस्या बनी हुई है. देश में रोजगार की कमी होना ही बेरोजगारी की समस्या नहीं है, बल्कि युवाओं में असफलताओं और उम्मीदों में आशा की किरण न दिखाई देना भी समस्या है. यहां केवल शिक्षक व क्लर्क भरतियों की बात की जा रही है.

रक्षा मंत्रालय से संबद्ध संस्था, जिस के स्कूल चल रहे हैं, लाखों बेरोजगारों की उम्मीदों पर पानी फेर रही है.

आर्मी पब्लिक स्कूल की संस्था आर्मी वैलफेयर एजुकेशन सोसाइटी यानी (एडब्लूईएस) हर साल आवेदन आमंत्रित करती है, ‘शिक्षकों के लिए आर्मी स्कूल में शिक्षक बनने का सुनहरा मौका.’

सवाल है कि क्या वास्तव में शिक्षक नौकरी पाते हैं? क्या वे अपने सपनों को साकार कर पाते हैं? जवाब है, जी नहीं, यह संस्था पहले अनुबंध पर भरती की सीटें निकालती है, फिर स्थायी. लेकिन, क्या वास्तव में स्थायी भरती होती है?

देशभर में हर आर्मी क्षेत्र में एक स्कूल बना है जो कि आर्मी पब्लिक स्कूल के नाम से जाना जाता है. इन स्कूलों का सारा खर्च सरकार उठाती है. ये स्कूल ज्यादातर 12वीं कक्षा तक होते हैं. इन स्कूलों में हर कक्षा के कुछ सैक्शन होते हैं. बड़ी (हायर सैकंडरी) कक्षा में विज्ञान का भी विभाग होता है. कला संकाय में एक भी सैक्शन नहीं होता, अगर कहीं होता भी है तो सिर्फ एक सैक्शन होता है.

एडब्लूईएस का गठन 1983 में हुआ था. पूरे देश में 137 उच्चतर माध्यमिक व 249 प्राथमिक स्कूल हैं. 500 से भी कम शिक्षक वाले ये स्कूल शिक्षक भरती के लिए विज्ञापन निकालते हैं-‘आर्मी स्कूलों में निकली हजारों शिक्षकों की भरती’ यूट्यूब चैनलों, रोजगार समाचार व दैनिक अखबारों में यही छपता है.

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लाखों बेरोजगार शिक्षक आवेदन करते हैं. वे सपने संजोते हैं कि भारत के सैनिक बन कर देश की सेवा न कर सके तो क्या, शिक्षक बन कर भावी सैनिकों को ज्ञान तो देंगे. हर आवेदन के लिए शुल्क 1,500 रुपए होता है. चयन प्रक्रिया त्रिस्तरीय होती है. लिखित परीक्षा, साक्षात्कार और फिर व्यावहारिक परीक्षा होती है.

पूरी प्रक्रिया के 2 स्तरों को पूरा करने के लिए 2 माह लगते हैं. तीसरे स्तर तक पहुंचने में कितना समय लगेगा, कोई बता नहीं सकता क्योंकि यह संस्था नौकरी नहीं देती सिर्फ पैनल तैयार करती है. यह एक स्कोर कार्ड थमा देती है जोकि एक निश्चित अवधि तक ही मान्य होता है.

पूरी प्रक्रिया को सम झते हैं. पहले शिक्षक आवेदन करते हैं, फिर स्क्रीनिंग परीक्षा के बाद लिखित परीक्षा देते हैं. लिखित परीक्षा की कटऔफ लिस्ट तैयार होती है, जिस में ज्यादातर पास होते हैं, मैरिट में भी होते हैं. फिर इंतजार होता है साक्षात्कार का. यह प्रक्रिया तो लगता है शुरू होने से पहले ही समाप्त हो जाती है.

लिखित परीक्षा के 3 या 4 माह बाद स्कोरकार्ड अभ्यर्थी को सौंप दिया जाता है. अभ्यर्थी अपने पद के लिए चक्कर काटकाट कर थक जाता है इन औफिसों के. लेकिन उसे नौकरी नहीं मिलती.

क्यों नहीं मिलती नौकरी? दरअसल अभ्यर्थियों की संख्या स्कूलों के सैक्शनों से कई गुना ज्यादा होती है. दूसरा कारण, आर्मी में काम करने वाले कर्मचारियों के जानकारों या उन की विवाहितों या अविवाहिताओं को वहां नौकरी मिल जाना. तीसरा कारण, स्कूलों में सैक्शनों का अभाव है जिस के चलते शिक्षकों के द्वारा प्राप्त किए गए स्कोरकार्ड उन की फाइलों में ही रह जाते हैं. एक समय बाद अभ्यर्थियों की आयुसीमा खत्म हो जाती है और उन का ख्वाब पानी में बह जाता है.

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साफ है कि एडब्लूईएस का मकसद भरती प्रक्रिया के जरिए केवल पैसा कमाना है. सो, शिक्षकों की भरती के पीछे यह पूरी प्रक्रिया एक कालाबाजारी है. धन इकट्ठा करने का एक जरिया है. जबकि, शिक्षा तो यह सिखाती है कि भावनाओं को ठेस पहुंचा कर धन कमाना एक अपराध है.

कमलेश गुप्ता

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